लिहाजा, अब मोहन ने अपने गांव जाना ही छोड़ दिया था, ताकि लोगों को उसे जवाब न देना पड़े. लेकिन अभी भी उसे एक उम्मीद थी कि उस की रोली उस के पास जरूर आएगी, क्योंकि वह उस से प्यार जो बहुत करता था.
मगर एहसानफरामोश रोली ने तो रितेश की दी गई सुखसुविधा में मोहन को ही भुला दिया. वह मजे से रितेश के साथ उस के बढि़या से 2 कमरे के घर में रहने लगी, जहां पलंग, सोफा, बड़ा सा टैलीविजन और क्याक्या नहीं था.
एक बार रितेश उसे हवाईजहाज से मुंबई भी घुमाने ले गया था, जहां हीरोहीरोइन के बड़ेबड़े घर देख कर रोली की आंखें चौंधिया गई थीं. उस के शरीर के बदले रितेश उसे काफीकुछ दे भी रहा था.
मगर जब रितेश रोली की छोटी जाति को ले कर तंज कसता तो रोली का दिमाग गरम हो जाता था. एक बार तो अपने एक दोस्त के सामने ही रितेश ने बोल दिया कि यह तो छोटी जाति की औरत है, फिर दोनों ठहाके लगा कर हंस पड़े थे.
उस दिन रोली का दिमाग ऐसा गरमाया कि मन किया कि उन दोनों के मुंह पर गरम चाय फेंक दे और कहा कि फिर क्यों आते हो मेरे पास अपनी भूख शांत करने? जाओ न कोई ऊंची जाति की औरत के पास? लेकिन वह चुप रही.
एक दिन जब शराब के नशे में रितेश रोली के करीब आया तो वह उसे परे धकेलते हुए बोली, ‘‘आज मेरा मन नहीं है.’’
‘‘मन नहीं है... साड़ी, कपड़ा और पैसे लेते समय तो नहीं कहती कि मन नहीं है...’’ उसे अपनी तरफ खींचते हुए रितेश बोला.