आज अजीत कितना खुश था. मां व बिट्टी ने भी बहुत दिनों बाद घर में हंसीखुशी का माहौल देखा.

अजीत ने मेरे पैर छू कर कहा, ‘‘दीदी, अगर आप 4 हजार रुपए का इंतजाम न करतीं, तो यह नौकरी भी हाथ से निकल जाती. आप का यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भुला सकूंगा.’’

भाई की बातों को सुन कर मुझे कुछ अंदर तक महसूस हुआ. बड़ी हूं न, खुद को हर हाल में सामान्य रखना है.

मैं भाई का गाल स्नेह से थपथपा कर बोली, ‘‘पगले, बड़ी बहन हमेशा छोटे भाई के प्रति फर्ज का पालन करती?है. मैं ने कोई एहसान नहीं किया है.’’

वह भावुक हो उठा, ‘‘दीदी, आप ने इस घर के लिए बहुत सी तकलीफें उठाई हैं. पिताजी की मौत के बाद कड़ा संघर्ष किया है. अपने लिए कभी कुछ नहीं सोचा. अब आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा.’’

मेरे भीतर कुछ कसकता चला गया. अगर इसे पता लग जाए कि कितना कुछ गंवाने के बाद मैं 4 हजार की रकम हासिल कर सकी हूं, तो इस की खुशी पलभर में ही काफूर हो जाएगी और यह भी पक्की बात?है कि उस हालत में यह चोपड़ा का खून कर देने से नहीं हिचकेगा. लेकिन इसे वह सब बताने की जरूरत ही क्या है?

थोड़ी देर पहले बिट्टी चाय ले आई थी. मैं ने उसे लौटा दिया. मैं ने 2 दिन से कुछ नहीं खाया. मां से झूठ बोला कि उपवास चल रहा है.

बिट्टी इस साल इंटर का इम्तिहान दे रही?है. वह ज्यादा भावुक लड़की है. घरपरिवार के विचार मेरे दिमाग को घेरे हुए हैं. गुजरा हुआ सबकुछ नए सिरे से याद आ रहा है.

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