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तब स्कूल में बराबर की अध्यापिकाओं में उन का मन रम गया था. कभी स्कूल से ही पास के बाजार में चाट खाने का कार्यक्रम बन जाता तो कभी फिल्म देखने का. उधर विजयजी ने भी चैन की सांस ली थी कि वे उन पर अपनी खीझ नहीं उतारतीं, अपनी सहेलियों में मस्त हैं.

एक दिन एक अध्यापिका के पिता की मृत्यु के कारण स्कूल 11 बजे ही बंद हो गया. सो, वे जल्दी घर आ गईं. 5 मिनट तक वे दरवाजा खटखटाती रहीं, तब कहीं आया ने खोला. वह कुछ हकलाते हुए बोली, ‘बच्चों को स्कूल छोड़ आईर् थी. स...स...साहब जल्दी घर आ गए हैं...’

‘क्यों?’

‘उन को दर्द हो रहा है?’

‘कहां?’

‘कमर में...न...नहीं सिर में...’

उस की हकलाहट पर उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने उसे घूर कर देखा था. यह देख उन्हें कुछ ज्यादा ही आश्चर्य हुआ कि यह तो बड़े सलीके से साड़ी बांधा करती है, पर इस समय वह बेतरतीब सी क्यों  नजर आ रही है? माला का पेंडेंट सदा बीच में रहता है, वह कंधे पर क्यों पड़ा हुआ है? बाल भी बेतरतीब हो रहे हैं. उन्हें कुछ अजीब सा लगा, लेकिन वे सीधे अंदर घुसती चली गईं. कमरे में देखा, पति कुरसी पर बैठे उलटा अखबार पढ़ रहे हैं. उन्हें हंसी आ गई, ‘क्या सिर में इतना दर्द हो रहा है कि उलटे अक्षर समझ में आ रहे हैं?’

‘किस के सिर में दर्द हो रहा है?’

‘आप के और किस के?’

‘मेरे तो नहीं हो रहा,’ खिसिया कर उन्होंने उलटा अखबार सीधा कर लिया.

‘कपिला तो ऐसा ही कह रही थी.’

‘पहले सिर में दर्द हो रहा था, लेकिन कपिला ने चाय बना दी. चाय के साथ दवा लेने से आराम है?’

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