महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव जांबुलनी की विज्ञान से 12वीं जमात पास सुरेखा कालेल में उस समय अपना काम करने की भावना जागी, जब खेतीबारी से उन का परिवार भरपेट खाने में नाकाम हो रहा था. पैसा कमाने के लिए वे सब्जियां बेचा करती थीं.

एक बार जब वे सब्जी बेचने बाजार गईं, तो वहां ‘मानदेशी संस्था’ का स्टौल लगा देखा और पता किया कि इस में होता क्या है.

वहां जा कर सब से पहले उन्होंने सेविंग्स अकाउंट खोला. इस के बाद उन्होंने रोजाना कुछ पैसे जमा करने की सलाह पा कर आसपास एक ग्रुप बनाया. देखते ही देखते उन्होंने कुछ ही समय में 10-10 औरतों के 3 ग्रुप बना डाले.

सुरेखा कालेल ने 3 साल तक इस जमा योजना पर काम किया. इस के बाद उन के हुनर को देख कर ‘मानदेशी संस्था’ ने उन्हें 6 दिन की ‘गोट इंसैमिनेशन ट्रेनिंग’ के लिए फौल्टन भेजा.

सुरेखा कालेल ने वहां 25 बकरियों में वीर्य रोपने का काम किया, जिस में से 15 केस कामयाब रहे. इस कामयाबी ने उन के आत्मविश्वास को बढ़ाया और वे इस कारोबार से जुड़ गईं.

सुरेखा कालेल कहती हैं, ‘‘मैं पढ़ीलिखी हूं. ऐसे में सब्जियां बेचना और खेतों में काम करना मुझे पसंद नहीं था. फसल की पैदावार भी इतनी कम होती थी कि पूरा साल भरपेट खाना मिलना मुश्किल था. ऐसे में यह काम मुझे अच्छा लगा.

‘‘यह ‘गोट प्रोजैक्ट’ काफी फायदेमंद था. इस में बकरियां अच्छी और तंदुरुस्त पैदा होती हैं, जिस से दूध तो मिलता ही है, साथ ही इन्हें बेच कर काफी पैसा भी कमाया जा सकता है.’’

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