अंधविश्वास फैलाने वाले कर्म- कांडों में कांवर बहुत बड़े उद्योग का रूप धारण कर चुका है. सावन के मौसम में यह आमदनी का धंधा जोरों पर होता है. शिवपुराण व ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि जो सनातनी यानी सनातन धर्म को मानने वाला सावन के महीने में गंगा और दूसरी पवित्र नदियों से जल ला कर शिव की मूर्ति यानी शिवलिंग पर चढ़ाता है उस की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और मरने के बाद वह परम पद यानी स्वर्ग का अधिकारी बनता है.

अब धर्म के ठेकेदारों ने कहना शुरू किया है कि जो सनातनी पैदल, नंगे पैर सावन के महीने में गंगा और दूसरी नदियों से कांवर के जरिए पानी ला कर शिव की मूर्ति पर चढ़ाएगा वह मरने के बाद स्वर्ग का अधिकारी होगा. काल्पनिक स्वर्ग की चाह ने धीरेधीरे इसे व्यापार का रूप दे दिया है और अब तो यह अरबों रुपए का व्यापार बन चुका है, जिसे जनता के शोषण के लिए धर्म के नाम पर प्रचलित किया जा रहा है.

धर्म के ठेकेदारों ने तो इसे उद्योग का रूप देने के लिए बारहों महीने का धंधा बना दिया है. कांवर ले जाने वालों के लिए एक विशेष तरह की डे्रस बाजार में बड़ी तादाद में उपलब्ध रहती है. अमूमन यह गेरुए या लाल रंग की होती है. इस में हाफ पैंट, बनियान, टीशर्ट, शर्ट और गमछा तथा टोपी होती है. कांवर ले कर चलने वालों के लिए इसे पहनना जरूरी होता है. इस डे्रस को जो नहीं पहनता उसे कांवरिए के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता.

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