साल 2017. अगस्त का महीना. बिहार के 18 जिलों के 164 ब्लौक, 1842 पंचायतें, 6625 गांव और एक करोड़, 22 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए.

21 अगस्त, 2017 तक 202 लोगों को बाढ़ ने लील लिया था. अररिया, किशनगंज, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया, सुपौल, शिवहर, मधुबनी, गोपालगंज, सारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधेपुरा, खगडि़या, दरभंगा, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण जिलों में बाढ़ ने जम कर तांडव मचाया.

देश में हर 5 साल में 75 लाख हैक्टेयर जमीन बाढ़ खा जाती है और तकरीबन 16 सौ जानें लील लेती है.

हर साल जून से ले कर अगस्त महीने के बीच बिहार और नेपाल की नदियां बिहार में कहर बरपाती रही हैं. हर साल बाढ़ की चपेट में फंस कर औसतन 5 सौ से ज्यादा इन्सानी और 2 हजार से ज्यादा जानवरों की जानें जाती हैं. साथ ही, 2 लाख से ज्यादा घरों को बाढ़ बहा ले जाती है और 6 लाख हैक्टेयर जमीन में लगी फसलों को बरबाद कर डालती है.

कुल मिला कर नेपाली नदियों की उफान से हर साल बिहार को 3 हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है. उत्तर बिहार की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी बाढ़ के खतरे के बीच जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर है. राज्य की जमीन का 70 फीसदी से ज्यादा इलाका बाढ़ से प्रभावित होता है.

राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के आकलन के मुताबिक, साल 1980 से ले कर साल 2015 के बीच हर साल तकरीबन 10 लाख हैक्टेयर खेती के लायक जमीन बाढ़ के पानी में डूबती रही है, जिस वजह से 6 लाख हैक्टेयर में लगी खरीफ की फसल तो पूरी तरह से चौपट हो जाती है. बाढ़ से 17 लाख मवेशी भी प्रभावित होते हैं.

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