लेखक- डा. अर्जिनबी यूसुफ शेख
घर में जो सब से छोटा होता है, उसे भाईबहनों के साथसाथ मातापिता का भी सब से ज्यादा लाड़दुलार मिलना लाजिमी है.
31 जुलाई, 1965 को जनमी वंदना अपने भाईबहनों में सब से छोटी थीं. जब तक वे कुछ समझने लगीं, तब तक उन के 2 बड़े भाइयों और 3 बहनों की शादी हो चुकी थी. लिहाजा, भाईबहनों का साथ उन्हें कम ही मिला.
शादी होते ही दोनों बड़े भाई अलग रहने लगे थे. वंदना अपने मातापिता के साथ अकेली रहती थीं. पिता को शराब के नशे में बेहाल देख कर उन का मन दुखता था, पर 10 साल की बच्ची कर भी क्या सकती थी?
पिता रिटायर्ड थे, उन्हें पैंशन नहीं मिलती थी. वंदना ने 6ठी जमात में पढ़ते हुए किसी दुकान में 50 रुपए प्रतिमाह पर नौकरी करनी शुरू की. साथ ही, मां के साथ मिल कर पापड़, अचार, आलू के चिप्स वगैरह बनाने लगीं. वे उस सामान को प्लास्टिक की पन्नी में पैक कर घरघर बेच आती थीं.
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इस तरह वंदना इन घरेलू उत्पादों के और्डर लेने लगीं और अपने घर की गरीबी का रोना न रोते हुए मातापिता के साथ अपनी रोजीरोटी चलाने लगीं.
पिता शराबी, मां भोलीभाली और भाईबहन अपनी दुनिया में मस्त. जिस वंदना के बचपन को प्यार व अपनेपन की जरूरत थी, वह बचपन मातापिता को संभाल रहा था.
अकसर ज्यादा शराब पी लेने के चलते पिता बहुत बुरी हालत में घर पहुंचते थे. उन की कमीज के बटन टूटे रहते थे और लड़खड़ाते हुए उन का घर में आना वंदना को खून के आंसू रुला देता था.