मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में जनमी माया विश्वकर्मा आज किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं. मध्य प्रदेश में उन्हें ‘पैडवुमन’ के नाम से जाना जाता है. वे चाहतीं तो दिल्ली जैसे महानगर में रह कर अपना कैरियर बना सकती थीं, लेकिन अपने गांव की तरक्की के लिए उन्होंने तय किया कि वे उसे एक आदर्श गांव बनाएंगी.माया विश्वकर्मा की इसी सोच को गांव के लोगों ने समर्थन दिया और जून, 2022 में जब सरपंच के चुनाव हुए तो माया विश्वकर्मा के मुकाबले किसी ने चुनाव में परचा दाखिल नहीं किया. गांव के लोगों ने उन्हें निर्विरोध सरपंच चुनने के साथसाथ पंचायत मैंबर के रूप में गांव की 11 दूसरी औरतों को भी निर्विरोध चुना.
नरसिंहपुर जिले के साईंखेड़ा जनपद के मेहरागांव की आबादी तकरीबन ढाई हजार है, जहां पर सवर्ण जाति के राजपूत लोगों की बहुलता है, पर पिछड़े और दलित तबके के लोगों की भी कमी नहीं है. पढ़ीलिखी माया विश्वकर्मा को गांव के सभी लोगों ने सरपंच बनाने के लिए सहयोग दिया, तो आज 40 साल की यह जीवट औरत गांव की अनोखी सरपंच बनी है.
अमेरिका से लौटने के बाद माया विश्वकर्मा का एक ही सपना रहा कि उन का अपना घर जो मिट्टी से बना था, उसे इस तरह पक्का बनवाया जाए, जिस में सारी नई सुखसुविधाएं हों.माया विश्वकर्मा का यह सपना जल्द ही पूरा हुआ और आज वे गांव में अपने मातापिता के साथ रहती हैं और कहीं आनेजाने के लिए खुद ही कार चलाती हैं.
माहवारी के दिनों में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनेटरी पैड के बारे में खुल कर बात करने वाली माया विश्वकर्मा अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं, ‘‘26 साल की उम्र तक मैं ने भी कभी सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं किया था, क्योंकि न तो इस के लिए मेरे पास पैसे थे और न ही मुझे इस की जानकारी थी, इसलिए माहवारी के उन दिनों में कपड़े के इस्तेमाल से सेहत संबंधी परेशानियों का भी सामना किया.’’माहवारी के बारे में पहली बार माया विश्वकर्मा को उन की मामी ने कपड़े के इस्तेमाल के बारे में बताया था, लेकिन इस से उन्हें कई तरह के इंफैक्शन होने से शारीरिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ा था.