बढ़ती महंगाई के चलते शहरी तो दूर देहाती इलाकों के लोग भी कमानेखाने में इतने मसरूफ हो चले हैं कि हर कोई कम से कम बच्चे पैदा कर रहा है. लोगों में परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता भी आ रही है कि इस से नुकसान तो कोई नहीं पर फायदे कई हैं.

यह बदलाव का वह दौर है जिस में गांवदेहात से बड़ी तादाद में बेहतर जिंदगी और सहूलियतों के लिए लोग शहर की तरफ भाग रहे हैं. इस भागमभाग से किसे क्या हासिल होता है, यह दीगर बात है. पर एक अच्छी बात इस में यह है कि छोटे और गरीब तबके के लोग भी बच्चों की अहमियत सम?ाते हुए उन्हें बेहतर तालीम दिलाने के लिए जीजान से कोशिश करते हैं और परवरिश पर भी खूब ध्यान देते हैं.

परेशानी उन लोगों को उठानी पड़ रही है जिन की महीने की आमदनी मात्र 5-6 हजार रुपए के आसपास है. यह तबका शहरी आबादी का तकरीबन 40 फीसदी है. गृहस्थी चलाने और बच्चे पालने के लिए मियांबीवी दोनों को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है तब कहीं जा कर उन का गुजारा हो पाता है. जैसेजैसे इन के बच्चे बड़े होते हैं वैसेवैसे खर्चे भी बढ़ने लगते हैं.

इन गरीब बच्चों की बदहाली कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही. इन में और अमीर बच्चों में एकलौती समानता यह है कि दोनों के मांबाप दिन में घर पर नहीं रहते. काम या नौकरी पर चले जाते हैं. अमीर तो बच्चों की देखभाल के लिए नौकर रख लेते हैं पर गरीब नहीं रख पाते. लिहाजा, उन के बच्चे प्रकृति के भरोसे पलते हैं और यह भरोसा अकसर महंगा साबित होता है जिस में बच्चों का कोई कुसूर नहीं होता.

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