42 साल की कबूतरी की आंखें धंसी हुई हैं. इतनी कम उम्र की शहरी महिलाएं जहां लकदक कपङों में फिटफाट दिखती हैं, वहीं कबूतरी की बदन की हड्डियां दिख रही हैं. वह रात में अच्छी तरह देख नहीं पाती. अभी हाल ही में सरकारी अस्पताल गई थी तो हाथगोङ पकङने पर डाक्टर देखने को राजी हुए थे. डाक्टर साहब ने बताया था कि उसे मोतियाबिंद है और औपरेशन करना होगा.

कबूतरी औपरेशन का मतलब समझती है, भले ही वह पढीलिखी नहीं है. वह घबरा गई.

वह बोलने लगी,"न न... बाबू, बरबेशन नै करवैभों. मरिये जैबे हो..." ( न न... साहब, औपरेशन नहीं कराऊंगी. मर ही जाऊंगी)

वह किसी के लाख समझाने पर नहीं मानती, क्योंकि हाल ही में उस के टोला में एक महिला सोनबरसी की मौत डिलीवरी के दौरान हो गई थी. इस से वह डरी हुई थी. सोनबरसी की डिलीवरी कराने बगल के एक गांव की दाई और एक झोला छाप डाक्टर आए थे. पैसा बनाने के लिए शरीर में फुजूल का पानी चढ़ा दिया था. इस से शरीर अचानक से फूला और फिर सोनबरसी की मौत हो गई.

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कबूतरी के घर के पास ही उस के 3 बच्चे नंगधङंग खेल रहे थे. वे मिट्टी में लकङी के कोन से लकीर खिंचते  और फिर उन्हें मिटाते रहते. पति बनवारी काम पर गया था. वह दिहाङी मजदूर है. एक दिन की दिहाङी ₹300 से घर के 5-6 लोगों का पेट चलना मुश्किल होता है, वह भी तब जब काम रोजाना मिलता नहीं. जब काम नहीं मिलता कई दिनों तक तो मन को तो समझा लिया जाता है पर पेट को कैसे समझाएं, वह तो भरी दोपहरी के बाद ही अकुलाने लगता है.

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