औरतों की कुछ तकलीफें तो ऐसी होती हैं, जिन्हें वे किसी से कह नहीं पाती हैं और उन्हें चुपचाप सहती रहती हैं या उन की पीड़ा भोगती रहती हैं. जब पीड़ा सहन के बाहर हो जाती है, तब वे अपने पति या परिवार वालों को बताती हैं. ऐसे में उन की समस्या इतनी बढ़ जाती है कि उसे ठीक होने में काफी वक्त लगता है या वह लाइलाज हो जाती है.
शादीशुदा औरतों में कइयों को तो जिस्मानी संबंध बनाने के दौरान अंग में तेज दर्द होता है, लेकिन पति के सुख में बाधा न पहुंचे, इसलिए वे दर्द को चुपचाप बरदाश्त करती हैं. अपने चेहरे के हावभाव से भी दर्द को जाहिर नहीं होने देतीं और सेक्स में पति का साथ देती हैं, ताकि वह संतुष्ट रहे.
माना कि पति की सेक्स संतुष्टि का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन जब इस में दर्द हो तो संतुष्टि एकतरफा ही होगी, जबकि वह संतुष्टि दोनों को मिलनी चाहिए. पति तो चरम सुख हासिल करता है और औरत उस की पीड़ा सहती रहती है, यह तो कोई बात नहीं हुई.
जिस्मानी संबंध बनाने के दौरान होने वाली तकलीफ के लिए मर्द द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कंडोम या औरत द्वारा लगाई गई कौपर टी भी जिम्मेदार होती है.
कुछ मर्द सेक्स के दौरान अपनी मर्दानगी को साबित करने की कोशिश करते हैं जो किसी बलात्कार से कम नहीं होता, जबकि सेक्स में ताकत दिखाने के बजाय प्यार का प्रदर्शन करना चाहिए.
एक उम्र के बाद यानी 45 साल से 50 साल की उम्र के बीच औरतों की माहवारी बंद हो जाती है, जिसे मेनोपोज कहते हैं. इस से हार्मोन में बदलाव आता है और औरतों की सेक्स में दिलचस्पी धीरेधीरे खत्म होने लगती है. अंग में पहले जैसी नमी नहीं रहती है, वह नमी सूख जाती है. इस से सेक्स के दौरान दर्द होने लगता है या इस में मजा नहीं आता.