सस्ता होने के चलते भांग का नशा बड़ी तेजी से नशेडि़यों के बीच मशहूर होता जा रहा है. वैसे तो भांग सरकारी ठेके से ही मिलती है, लेकिन बहुत बार लोग खुद ही भांग की पत्तियों को पीस कर, उन के गोले बना कर नशे के तौर पर इस्तेमाल करने लगते हैं.

आमतौर पर लोग सालभर भांग का नशा करते हैं, लेकिन होली के त्योहार में इस का शौकिया इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. कई बार लोग भांग को मस्ती से जोड़ कर देखते हैं, पर असल में यह नशा मजा नहीं, बल्कि बड़ी सजा होता है.

भांग एक तरह का पौधा होता है, जिस की पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है. भांग खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में प्रचुरता से पाई जाती है.

भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं. इस के नर पौधे के पत्तों को सुखा कर भांग तैयार की जाती है. भांग के मादा पौधों के फूलों को सुखा कर गांजा तैयार किया जाता है. भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमी राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं.

भारत में भांग की खेती बहुत समय से की जाती रही है. ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुमाऊं, उत्तराखंड में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यापार को अपने हाथ में ले लिया था. उस ने काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी. दानपुर, दसौली और गंगोली की कुछ जातियां भांग के पौधे के रेशे से कुथले और कंबल बनाती थीं.

इन्होंने किया भांग का प्रचार

भांग के नशे का मस्ती वाला रंग कई फिल्मों और गानों में भी दिखाई देता है. इस को देख कर लोगों को लगता है कि भांग के नशे में मजा ही मजा होता है. भांग को पीसते, उस में ड्राईफ्रूट्स, दूध मिलाते और इस को ठंडाई के रूप में पीते दिखाया जाता है. इसी तरह कुछ लोग इस को प्रसाद के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं.

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