अगर भाजपा नही सुधरी तो मायावती बौद्ध धर्म अपना लेंगी. खुद मायावती ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक सभा में यह बात कही. मायावती का कहना है कि भाजपा ने दलितों, अति पिछडों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के प्रति अपनी सोच नहीं बदली तो वह हिन्दू धर्म छोडकर बौद्ध धर्म अपना लेंगी. मायावती ने यह बात बसपा के एक कार्यकर्ता सम्मेलन में कही.

पूर्वांचल के आजमगढ़ में आयोजित इस सम्मेलन में आजमगढ़, वाराणसी और गोरखपुर के कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे थे. मायावती की इस धमकी को फूलपुर लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. मायावती की रणनीति यह है कि किसी भी तरह से वह चुनावी लड़ाई में सबसे प्रबल दावेदार बनी रहे. मायावती ने बौद्ध धर्म अपनाने की धमकी देकर नये सवालों को जन्म दे दिया है. लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि डाक्टर भीमराव अम्बेडकर की नीतियों पर चलने के बाद अब तक मायावती ने बौद्ध धर्म स्वीकार क्यों नहीं किया? क्या अब तक दलितों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा था?

हिन्दू धर्म में बढ़े भेदभाव, धार्मिक कर्मकांड और ऐसी ही तमाम कुरीतियों का विरोध करते हुये डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म को छोड कर बौद्ध धर्म अपना लिया. इसका प्रभाव भी पडा. कम से कम दलित बिरादरी में नई सोच का जनम हुआ था. दलित वर्ग के लोग खुद तो जागरुक हो ही रहे थे, अपने साथियों को भी जागरुक कर रहे थे.

जब दलित आन्दोलन को लेकर कांशीराम आगे बढ़े, तो वह भी बौद्ध धर्म अपना नहीं पाये थे. हालांकि कांशीराम बौद्ध धर्म अपनाना चाहते थे. मायावती ने दलित आन्दोलन से एकजुट बिरादरी का लाभ लेकर उत्तर प्रदेश में अपनी एक ताकत बनाई. 4 बार वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. वह दलित चेतना की बात को भूल गई. राजनीतिक ताकत के लिये दलित ब्राहमण गठजोड़ कर लिया. ऐसे में कभी भी यह नहीं लगा कि सामाजिक रूप से कहीं दलित और ब्राहमण एक साथ खड़े हों.

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