उत्तर प्रदेश की सरकार ने मार्च 2017 में 36 हजार रूपये का किसानों का कर्ज माफ किया. अब मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के किसान भी कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं. कर्ज माफी के लौलीपॉप के जरिये राजनीतिक दल किसानों के वोट हासिल करने का काम करते रहे हैं.

1990 में पहली बार विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने यह दांव चला था. इसके बाद केन्द्र और राज्य सरकारों ने इस लौलीपौप का झांसा देना जारी रखा. किसान भी बिना कुछ सोंचे समझे इस झांसें का शिकार होते रहे हैं. कर्ज माफी से किसानों की दशा में कोई भी बदलाव नहीं आता है. रिजर्व बैंक का कहना है कि कर्ज माफी का प्रभाव देश की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ता है जिससे देश में मंहगाई बढती है और उससे किसान भी प्रभावित होता है.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जब 36 हजार करोड़ रूपये का किसान कर्ज माफ किया तो देश के बाकी हिस्से के किसानों ने भी यही मांग करनी शुरू कर दी. अब वह किसी न किसी बहाने से इस मांग को बढाते जा रहे हैं. किसान आंन्दोलन के चलते मध्य प्रदेश में 6 किसानों की मौत हुई. ऐसे में वहां की सरकार और बाकी प्रदेशों की सरकारें दवाब में आ गई है.

कर्ज माफी के वादे पर चुनाव लड़ने और चुनाव जीतने के बाद कर्ज माफ करने के मामले में उत्तर प्रदेश पहला प्रदेश नहीं है. 2014 के आम चुनाव में आन्ध्र प्रदेश में तेलगू देशम पार्टी, तेलंगाना में कर्ज माफी कों मुददा बनाया गया. दोनों जगहों पर चुनाव जीतने के बाद 40 हजार करोड़ और 20 हजार करोड़ का किसान कर्ज माफ किया गया.

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