सिवान के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की बीवी हिना शहाब कहती हैं कि साल 2005 में जब नीतीश कुमार की 7 दिनों की सरकार बनी थी, तब मोहम्मद शहाबुद्दीन ने राष्ट्रीय जनता दल का साथ दिया था. उसी बात से बौखलाए नीतीश कुमार ने अगली बार सरकार बनते ही शहाबुद्दीन की जमानत रद्द कर दी थी और उन्हें जेल में ठूंस दिया था. लालू प्रसाद यादव ने भी कुछ नहीं कहा. पिछले साल जमानत पर छूटने के बाद मोहम्मद शहाबुद्दीन ने लालू प्रसाद यादव को अपना नेता बताया था और नीतीश कुमार के बारे में कहा था कि वे हालात की वजह से मुख्यमंत्री बन गए.

अब मोहम्मद शहाबुद्दीन के समर्थक नीतीश कुमार के साथसाथ लालू प्रसाद यादव से भी नाराज हैं. उन का आरोप है कि लालू प्रसाद यादव ने उन के नेता का इस्तेमाल कर उसे दरकिनार कर दिया है.

मोहम्मद शहाबुद्दीन की बीवी हिना शहाब और उन के समर्थकों को इस बात का भी मलाल है कि साजिश के तहत उन्हें सिवान से भागलपुर जेल और उस के बाद तिहाड़ जेल भेज दिया गया है. उन की ताकत और राजनीति को मटियामेट करने की साजिश रची गई है.

हिना शहाब और मोहम्मद शहाबुद्दीन के समर्थक इस बात से भी नाराज हैं कि लालू प्रसाद यादव इस मसले पर चुप क्यों हैं? यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि शहाबुद्दीन के कंधे पर बंदूक रख कर ही लालू प्रसाद यादव पिछले 20 सालों से राज्य के मुसलिम वोटरों को साधने में कामयाब होते रहे हैं.

राष्ट्रीय जनता दल के सूत्रों की मानें, तो लालू प्रसाद यादव भाजपा को रोकने के लिए मोहम्मद शहाबुद्दीन का जम कर इस्तेमाल करते रहे हैं. अल्पसंख्यक वोटरों के मन में यह बात गहराई तक बैठ चुकी थी कि शहाबुद्दीन ही भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. सिवान ही नहीं, बल्कि छपरा, गोपालगंज, किशनगंज, कटिहार वगैरह मुसलिम बहुल इलाकों में मोहम्मद शहाबुद्दीन मुसलिम वोटरों को राजद के पक्ष में गोलबंद करते थे. इन जिलों की 38 विधानसभा सीटों पर मुसलिम वोट किसी का भी पलड़ा भारी करने की कूवत रखते हैं.

साल 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद की करारी हार की बड़ी वजहों में से एक मोहम्मद शहाबुद्दीन का जेल में बंद रहना भी माना जाता है.

गोपालगंज जिले में मोहम्मद शहाबुद्दीन के समर्थकों ने ‘शहाबुद्दीन मुक्ति आंदोलन फ्रंट’ बना लिया है. उन का मानना है कि नीतीश कुमार ने पहले मोहम्मद शहाबुद्दीन को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया और अब लालू प्रसाद यादव ने उन्हें बिहार से बाहर तिहाड़ जेल भेज दिया है. अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को इस का खमियाजा भुगतना पड़ेगा. सिवान की राजद इकाई ने तो अपने पार्टी आलाकमान के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया है.

गौरतलब है कि पिछले 20 सालों से मोहम्मद शहाबुद्दीन ही सिवान के सियासत की धुरी रहे हैं. सिवान की कुल आबादी 27 लाख, 14 हजार, 349 है, जिस में से 4 लाख, 94 हजार, 176 मुसलिम आबादी है.

सिवान जिले में 8 विधानसभा सीटें आती हैं और सभी उम्मीदवारों के नाम वही तय करते रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने भाजपा के टिकट पर रघुनाथपुर सीट से अपने शूटर मनोज कुमार को मैदान में उतरवा दिया था.

सिवान जिले के तहत जीरादेई, दरौली, रघुनाथपुर, दरौंदा, बड़हडि़या, महराजगंज, गोरियाकोठी और सिवान विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं. साल 2004 में मोहम्मद शहाबुद्दीन को जेल में ठूंस दिया गया था, पर जेल से ही वे अपना राजपाट चलाते रहे. साल 2009 में उन्हें चुनाव लड़ने के लिए नाकाबिल ठहरा दिया था. उस के बाद से ही उन के पतन की कहानी शुरू हो गई. उन्होंने अपनी बीवी हिना शहाब को लोकसभा के चुनाव में उतारा, पर उन्हें भी जितवा न सके.

एक आम स्टूडैंट से बाहुबली और उस के बाद नेता बनने तक मोहम्मद शहाबुद्दीन की जिंदगी भी काफी उतारचढ़ाव से भरी रही है. 10 मई, 1967 को सिवान जिले के हुसैनगंज ब्लौक के प्रतापपुर गांव में जनमे शहाबुद्दीन ने कालेज में पढ़ाई के दौरान ही अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था.

साल 1986 में हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन पर पहला केस दर्ज हुआ था. सिवान की राजनीति पिछले 25 सालों से उन के ही इर्दगिर्द घूमती रही है. लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, नगरपालिका चुनाव से ले कर पंचायत चुनाव में उन की ही तूती बोलती थी.

साल 1990 में सिवान के डीएवी कालेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद मोहम्मद शहाबुद्दीन राजनीति में उतरे और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माले) से टक्कर लेते रहे.

साल 1990 में जीरादेई विधानसभा सीट से पहली बार निर्दलीय विधायक बनने के बाद वे लालू प्रसाद यादव की पार्टी में शामिल हो गए. साल 1995 में दोबारा जीरादेई सीट से विधानसभा का चुनाव जीता.

साल 1996 में जनता दल की टिकट पर सिवान लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए. उस के बाद 1998, 1999 और 2004 में भी वे सिवान

सीट से सांसद बने. सिवान की विधानसभा सीटों, विधानपरिषद की सीट, नगरपरिषद से ले कर जिला परिषद तक के चुनावों में भी मोहम्मद शहाबुद्दीन का ही दबदबा रहता था.

पिछले तकरीबन 20 सालों से वे सिवान में समानांतर सरकार चला रहे थे. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर अकसर यह आरोप लगता रहा है कि वे मोहम्मद शहाबुद्दीन को समर्थन और संरक्षण देते रहे हैं. सिवान में उन की अदालत लगती थी. चाहे जमीन का झगड़ा हो या पारिवारिक मामला, सभी मामलों का निबटारा शहाबुद्दीन की अदालत में ही होता था. इतना ही नहीं, सिवान के डाक्टरों की फीस भी वही तय किया करते थे.

15 मार्च, 2001 में राजद के पूर्व जिला अध्यक्ष मनोज कुमार को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम दूसरे दिन जब दारोगा राय कालेज पहुंची, तो मोहम्मद शहाबुद्दीन ने पुलिस अफसर संजीव कुमार को थप्पड़ जड़ दिया था और उन के गुरगों ने पुलिस वालों की भी जम कर पिटाई कर डाली थी.

उस के बाद शहाबुद्दीन को पकड़ने के लिए जब उस समय सिवान के एसपी रहे बच्चू सिंह मीणा की अगुआई में पुलिस ने उन के प्रतापपुर गांव वाले घर पर छापा मारा, तो पुलिस और शहाबुद्दीन के समर्थकों के बीच तकरीबन 4 घंटे तक गोलीबारी हुई, जिस में 8 बेकुसूर गांव वाले मारे गए और पुलिस को खाली हाथ ही लौटना पड़ा.

सियासी हलकों में उस समय यह चर्चा गरम थी कि लालू प्रसाद यादव ने शहाबुद्दीन को औकात बताने के लिए छापा मरवाया. शहाबुद्दीन उस समय तो पुलिस को झांसा दे कर भाग निकले, पर उन्होंने एसपी बच्चू सिंह मीणा को धमकी दी थी कि उन्हें राजस्थान तक खदेड़ के मारेंगे.

साल 2003 में जब डीपी ओझा बिहार के डीजीपी बने, तो उन्होंने मोहम्मद शहाबुद्दीन पर कानूनी शिकंजा कसना शुरू किया था. उन्होंने शहाबुद्दीन के पुराने मामलों को दोबारा खोल कर उन के खिलाफ सुबूत जुटाए.

माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण और हत्या के मामले में उन के खिलाफ वारंट जारी हुआ और अदालत में शहाबुद्दीन को आत्मसमर्पण करना पड़ा. इस से समूचे राज्य में सियासी बवाल मच गया और राजद को अपने मुसलिम वोटों के खिसकने का खतरा महसूस होने लगा.

मोहम्मद शहाबुद्दीन की मुसलिम वोटरों पर खासी पकड़ थी. तब की राबड़ी सरकार ने डीजीपी डीपी ओझा को आननफानन हटा दिया, तो गुस्साए ओझा ने वीआरएस ले ली.

साल 2005 में राष्ट्रपति शासन के दौरान सिवान के एसपी संजय रत्न ने 24 अप्रैल, 2005 को मोहम्मद शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर में छापा मारा और भारी तादाद में हथियार, गोलाबारूद, चोरी की गाडि़यां और विदेशी पैसे बरामद किए.

लंबे समय तक फरार रहने के बाद 6 नवंबर, 2005 को पुलिस ने शहाबुद्दीन को दिल्ली में उन के घर पर दबोच लिया. उस के बाद से आज तक वे न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं.

सिवान जिले में ‘साहेब’ के नाम से मशहूर बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन पिछले 13 सालों से जेल में बंद हैं और उन के सिर पर दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज हैं.

पटना हाईकोर्ट ने पिछले साल उन्हें 2004 के सिवान तेजाब कांड का मुजरिम करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने माना है कि शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर आ कर हत्याकांड की साजिश रची थी.

गौरतलब है कि 13 साल पहले सिवान के यादव मार्केट में रहने वाले कारोबारी चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू के 2 बेटों का अपहरण कर लिया गया था और 2 लाख रुपए की फिरौती की मांग की. फिरौती नहीं देने पर दोनों की तेजाब से नहला कर हत्या कर दी गई थी.

16 अगस्त, 2004 को मोहम्मद शहाबुद्दीन के इशारे पर उन के गुरगों ने दोनों भाइयों की हत्या की थी. गिरीश राज उर्फ निक्कू (24 साल) और सतीश राज उर्फ सोनू (18 साल) को अलगअलग जगहों से अगवा कर लिया गया और फिरौती नहीं मिलने पर हुसैनगंज थाने के प्रतापपुर गांव में मोहम्मद शहाबुद्दीन और उन के गुरगे ने तेजाब से नहला कर दोनों भाइयों को मार डाला था.

इस मामले में मृतकों की मां कलावती देवी के बयान पर आईपीसी की धारा 341, 323, 380, 435, 364/34, के तहत मुफस्सिल थाने में कांड संख्या 131/2004 दर्ज कराया गया था, जिस में राजकुमार साह, शेख असलम, मोनू मियां उर्फ सोनू उर्फ आरिफ हुसैन को नामजद किया गया था.

मामले की जांच के दौरान तब के राजद सांसद रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन  पर हत्या की साजिश रचने का खुलासा हुआ था. इस मुकदमे में स्पैशल कोर्ट ने 4 जून, 2010 को आईपीसी की धारा 120 (बी), 364 (ए) के तहत साजिश रचने और अपहरण का आरोप लगाया. बाद में हाईकोर्ट के आदेश पर 1 मई, 2014 को आईपीसी की धारा 302, 201, 120 (बी) के तहत आरोप तय किया गया. न्यायिक प्रक्रिया के बीच में ही दोनों मृतकों के भाई और घटना के चश्मदीद गवाह राजीव रोशन की भी 16 जून, 2014 में हत्या हो गई. इस मामले में शहाबुद्दीन और उस के बेटे ओसामा को भी आरोपी बनाया गया है. ओसामा फिलहाल फरार है.

इस समूचे मामले की शुरुआत सिवान के गोशाला रोड में चंदा बाबू के मकान के बाहरी हिस्से को ले कर झगड़े से हुई थी. उन की जमीन पर अराजक लोगों की नजरें गड़ी हुई थीं और वे उसे हड़पने की कोशिशों में लगे हुए थे.

16 अगस्त, 2004 की सुबह जमीन को ले कर पंचायत हो रही थी, उसी समय कुछ लोग आ धमके और जमीन पर कब्जा करने लगे. मारपीट की नौबत आ गई. कुछ बदमाशों ने गालीगलौज करते हुए मारपीट शुरू कर दी, तो चंदा बाबू और उन के घर वालों ने घर में रखे तेजाब को बदमाशों पर फेंक कर उन्हें भागने के लिए मजबूर कर दिया.

तेजाब से कई लोग जख्मी हो गए थे. इस के कुछ देर बाद ही चंदा बाबू के बड़हडि़या रोड पर बनी दुकान से उन के बड़े बेटे गिरीश राज का अपहरण कर लिया गया. उस के कुछ देर बाद ही चिउड़ा हट्टा बाजार से छोटे बेटे सतीश राज को भी उठा लिया गया.

इस घटना के 7 सालों के बाद तेजाब हत्याकांड के चश्मदीद गवाह के रूप में गिरीश और सतीश का बड़ा भाई राजीव रोशन सामने आया. उस ने 6 जून, 2011 को अपना बयान दर्ज कराया. उस ने अपने बयान में कहा कि उस के दोनों भाइयों के साथ उस का भी अपहरण किया गया था.

तीनों भाइयों को शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर ले जाया गया, जहां उस की आंखों के सामने शहाबुद्दीन के कहने पर गिरीश और सतीश को तेजाब से नहला कर मार डाला गया. उसी बीच राजीव वहां से भागने में कामयाब रहा.

राजीव की गवाही पर कई सवाल खड़े हुए थे और तब के सिवान कोर्ट के स्पैशल सैशन जज एके पांडे की अदालत ने सुनवाई के दौरान मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ मामला चलाने से इनकार कर दिया था. उस के बाद पटना हाईकोर्ट के आदेश पर शहाबुद्दीन के खिलाफ सुनवाई शुरू हो सकी थी.

राजीव रोशन ने कोर्ट को बताया था कि 2 भाइयों की हत्या के बाद वह जान बचाने के लिए गोरखपुर भाग गया था और वहीं छिप कर रहने लगा था. शहाबुद्दीन के जेल जाने और बिहार में सरकार बदलने के बाद वह वापस लौटा और गवाही देने की हिम्मत जुटाई.

पटना हाईकोर्ट ने 1 मई, 2014 को मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया और 16 जून, 2014 को राजीव की सिवान के डीएवी मोड़ के पास गोली मार कर हत्या कर दी गई. तेजाब कांड के चश्मदीद गवाह को भी रास्ते से हटा दिया गया था. छोटी सी जमीन के टुकड़े के विवाद ने चंदा बाबू के तीनों बेटों की बलि ले ली.

चंदा बाबू की बीवी कलावती कहती हैं कि मोहम्मद शहाबुद्दीन को सजा सुनाए जाने के बाद उन के लिए खतरा और ज्यादा बढ़ गया है. वे रोते हुए कहती हैं कि उन के तीनों बेटों की हत्या कर दी गई है और अब उन की और उन के पति की भी हत्या हो सकती है. चंदा बाबू ने बेटों के हत्यारे को सजा दिलाने की ठानी थी, वह पूरा हुआ है.

मोहम्मद शहाबुद्दीन को कई मामलों में सजा सुनाए जाने और 18 फरवरी, 2017 को दिल्ली के तिहाड़ जेल भेजने पर उन की बीवी हिना शहाब बारबार यही रट लगा रही हैं कि उन के शौहर को साजिश के तहत फंसाया गया है. उन के समर्थक अब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अगले चुनाव में औकात बताने की हुंकार भर रहे हैं.

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