साल 2005 से ले कर साल 2009 के बीच झारखंड के त्रिशंकु जनादेश के बीच सब से ज्यादा मलाई काटने वाले हरिनारायण राय को कानून ने 7 साल के लिए जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है. हरिनारायण राय देश के पहले ऐसे नेता हैं, जो प्रिवैंशन औफ मनी लाउंड्रिंग ऐक्ट के तहत कुसूरवार पाए गए हैं. उन पर साल 2007 से ले कर साल 2008 के बीच 4 करोड़, 83 लाख रुपए की मनी लाउंड्रिंग का आरोप है. उन के साथ उन की बीवी सुशीला देवी और भाई संजय राय भी जेल में ठूंस दिए गए हैं. राज्य की राजनीति में जीरो से हीरो तक की छलांग लगाने वाले हरिनारायण राय ने निर्दलीय विधायकों के साथ सियासत का खूब गेम खेला और करोड़ों रुपयों के वारेन्यारे किए. वे कई बार पाला बदल कर सरकार गिराने और बनाने का खेल खेलते रहे. एक के बाद एक 3 सरकारों को उन्होंने अपनी उंगलियों पर नचाया और जब चाहा सरकार बना दी, जब चाहा गिरा दी.
साल 2005 में अपनी सियासी पारी शुरू कर पहली बार विधायक बनने वाले हरिनारायण राय झारखंड के किंगमेकर बने और अब जेल की हवा खाने के लिए मजबूर हैं.
प्रवर्तन निदेशालय की विशेष अदालत ने हरिनारायण राय को प्रिवैंशन औफ मनी लाउंड्रिंग ऐक्ट के तहत कुसूरवार पाया और उन्हें 7 साल की कैद की सजा सुना दी. साथ ही, उन पर 50 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. 4 सितंबर, 2009 को ईडी ने उन के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग मामले में केस दर्ज किया था. 27 नवंबर, 2011 को चार्ज फ्रेम हुआ था.
5 अक्तूबर, 1965 को देवघर में जनमे हरिनारायण राय पहली बार देवघर के जरमुंडी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीत कर साल 2005 में विधायक बने थे.
हरिनारायण राय के अलावा झारखंड के जिन नेताओं ने अपने इशारों पर कई सरकारों को बनाने और गिराने का खेल खेला, वे आज कानून के फंदे में फंस कर जेल और अदालत के बीच चक्कर लगा रहे हैं. करोड़ोंअरबों रुपयों की काली कमाई उन्हें जेल की काली कोठरी से नजात नहीं दिला पा रही है.
आदिवासियों के लिए बने अलग राज्य झारखंड को मधु कोड़ा, एनोस एक्का, भानुप्रताप शाही, हरिनारायण राय, कमलेश सिंह जैसे नेताओं ने लूट लिया. साल 2005 से ले कर साल 2009 तक कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा किया. आज पांचों नेता जेल की सलाखों के पीछे हैं.
मधु कोड़ा राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना घोटाला, प्रदूषण नियंत्रण घोटाला, कमाई से ज्यादा संपत्ति और मनी लाउंड्रिंग के मामले के आरोप में 30 नवंबर, 2009 से जेल की हवा खा रहे हैं.
एनोस एक्का और हरिनारायण राय पर मनी लाउंड्रिंग व आमदनी से ज्यादा जायदाद रखने का आरोप साबित हो चुका है और दोनों सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए हैं. कमलेश सिंह भी इन्हीं आरोपों के पेंच में फंस कर सींखचों के पीछे दिनरात बिता रहे हैं.
कोड़ा मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री रहे भानुप्रताप शाही 130 करोड़ रुपए के दवा घोटाला, मनी लाउंड्रिंग और आमदनी से ज्यादा कमाई के आरोप में 5 अगस्त, 2011 को सीबीआई के हत्थे चढ़े थे.
रांची महानगर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे विनय कुमार सिन्हा कहते हैं कि कानून से खेल करने वालों और जनता का भरोसा तोड़ने वालों को कानून ने सही जगह पहुंचा दिया है.
कोड़ा मंत्रिमंडल में रहे 14 में से 5 लोग जेल की हवा खा रहे हैं, जिस में मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा भी शामिल हैं. झारखंड बनने के बाद साल 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में मधु कोड़ा, कमलेश सिंह, भानुप्रताप शाही, एनोस एक्का और हरिनारायण राय को जीत मिली और तब से ये लोग झारखंड को लूटने और सत्ता का खेल खेलने में लगे रहे.
चुनाव के तुरंत बाद शिबू सोरेन की अगुआई वाली संप्रग सरकार में ये पांचों शामिल हुए और 7 दिनों के बाद ही पाला बदल कर अर्जुन मुंडा की अगुआई वाली राजग सरकार का झंडा उठा लिया.
साल 2006 आतेआते उन लोगों को दूसरे का झंडा उठाने में खास फायदा नहीं दिखा, तो निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी कर सत्ता की पूरी चाबी अपने हाथों में ले ली. उस के बाद खुल कर लूट का खेल खेला और सत्ता की मलाई खाई.
झारखंड में विधानसभा और अपने इलाके की जनता के बीच समय गुजारने के बजाय झारखंड के ज्यादातर विधायक और मंत्री जेल, अदालत, सीबीआई के दफ्तर और वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं.
सरकार बनाने और गिराने के खेल में ‘मोटी कमाई’ करने वाले नेताओं ने अपनी सियासी जमीन तो कमजोर कर ही ली है, राज्य का भी कबाड़ा कर के रख दिया है.
राज्य के 15 विधायक पिछले साल हुए राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवारों से पैसा ले कर वोट डालने के आरोप में सीबीआई के शिकंजे में फंसे हुए हैं. किसी का बंगला सील कर दिया गया है, तो किसी के बैंकों की पासबुक और जमीन के कागजात जब्त कर लिए गए. किसी के लैपटौप और मोबाइल फोन के डाटा को खंगालने के लिए सीबीआई अपने साथ ले गई.
झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें हैं और किसी भी दल या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए कम से कम 42 सीटों की दरकार होती है.
जानकारों का मानना है कि झारखंड में जबतब पैदा होने वाली सियासी उठापटक को दूर करने के लिए झारखंड विधानसभा में कम से कम 150 सीटें होनी चाहिए. विधानसभा सदस्यों की तादाद कम होने से ही अस्थिरता की हालत पैदा हो जाती है, जिस का खमियाजा झारखंड राज्य को भुगतना पड़ रहा है.
सीटें बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार समेत राज्य की सियासी पार्टियां पिछले कई सालों से बात कर रही हैं, पर कोई नतीजा नहीं निकल सका है.