चुनाव आयोग की नाराजगी समझी जा सकती है. पिछले कुछ समय से जो लोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं, वे दरअसल चुनाव आयोग पर ही कीचड़ उछाल रहे हैं. ये वे लोग हैं, जो खुद ईवीएम के जरिये ही चुनाव जीतकर सत्ता में पहुंचे हैं. कुछ समय पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद से कुछ जगह चुनाव आयोग को इस तरह निशाना बनाया जा रहा है, जैसे वह केंद्र सरकार के किसी सहायक अंग की तरह काम कर रहा हो. चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से सफाई देने की तमाम कोशिशें कीं, यहां तक कि ईवीएम को हैक करने की चुनौती तक दी, लेकिन ये आरोप थमने का नाम नहीं ले रहे. अब आयोग ने कहा है कि उसे यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह अपनी अवमानना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सके. विधि मंत्रालय को लिखे गए एक पत्र में आयोग ने कहा है कि उसकी हैसियत एक अर्द्धन्यायिक संस्था की है, इसलिए नियमों में संशोधन करके उसे यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह अपनी अवमानना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सके. इसके लिए उसने पाकिस्तान के चुनाव आयोग का उदाहरण भी दिया है, जिसके पास ऐसा अधिकार है.

अक्सर यह कहा जाता है कि भारत में अगर कोई सबसे सम्मानित संस्था है, तो वह चुनाव आयोग ही है. कई मामलों में जो सम्मान चुनाव आयोग को दिया जाता है, वह संसद और न्यायपालिका तक को नहीं मिलता. इस सम्मान की सबसे बड़ी वजह है कि हमारे चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर आमतौर पर संदेह नहीं किया जाता. इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि जितने बड़े पैमाने पर शांति से सरकारें भारत में बदलती हैं, उतनी दुनिया के बहुत ही कम देशों में बदलती हैं. चुनाव आयोग के इसी सम्मान के चलते हमने बैलेट बॉक्स वाले लोकतंत्र को बड़ी आसानी से ईवीएम वाले लोकतंत्र में बदल दिया, जबकि दुनिया के कई विकसित देश अब भी इसके लिए जूझ रहे हैं. तकनीक में वे हमसे आगे हो सकते हैं, लेकिन चुनाव आयोग की निष्पक्षता की स्वीकार्यता में वे अभी हमसे काफी पीछे हैं. इसलिए जो लोग अपनी चुनावी हार के बाद ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं, वे देश की अकेली सबसे सम्मानित संस्था की विश्वसनीयता को आहत कर रहे हैं. एक बड़ा सच यह है कि भारतीय मतदान प्रणाली की गड़बड़ियों और इससे जुड़े घपलों को किसी सरकार या किसी आंदोलन ने कम नहीं किया, बल्कि चुनाव आयोग ने खुद अपने प्रयासों से कम किया है.

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