शैलेंद्र सिंह

सिस्टम में बदलाव के लिए राजनीतिक सत्ता जरूरी होती है. राजनीतिक सत्ता को बनाए रखने के लिए विचारों की शुद्धता से समझौता करना पड़ता है. विचारों को बनाए रखते हुए सत्ता को बहुत लंबे समय तक बैलैंस नहीं रखा जा सकता है. ऐसे में कई बार दूसरे विचारों को अपनाने का दिखावा किया जाता है और मतलब निकल जाने पर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देने को राजनीतिक चतुराई कहा जाता है.

यह कड़वा सच है, जिस की हकीकत जान कर भी उस की धोखेबाजी की बुराई तो दूर बात भी नहीं की जाती. इसे सहज घटना की तरह लिया जाता है मानो यह बेईमानी तो धर्म से एप्रूव्ड है.

पौराणिक कथाओं तक में ऐसी कहानियों को बारबार दोहराया गया है, जिस की वजह से ऐसे कामों को गलत भी नहीं माना जाता है.

हिंदू पौराणिकजीवियों के सताए गए लोग भी पौराणिक कथाओं और नियमों में विश्वास करने लगे हैं, क्योंकि उन को समझाने के लिए कोई मीडिया या मंच नहीं है.

इस समुद्र मंथन की कहानी ऐसी ही एक पौराणिक कथा है, जिस के जरीए आज के हालात को समझाने की कोशिश करते हैं.

एक समय की बात है. राजा बलि के राज्य में दैत्य, असुर व दानव बहुत ज्यादा ताकतवर हो उठे थे. उन को असुरों के गुरु शुक्राचार्य से तमाम ताकतें हासिल हो गई थीं. दुर्वासा ऋषि के शाप से देवराज इंद्र कमजोर हो गए थे. दैत्यराज बलि का राज तीनों लोकों पर हो चुका था. इंद्र समेत सभी देवता उस से डरे रहते थे.

इस बात से दुखी देवता विष्णु के पास पहुंचे और उन को अपनी परेशानी सुनाई. तब विष्णु ने कहा कि यह तुम लोगों के लिए संकट का समय है. दैत्यों, असुरों व दानवों का दबदबा हो रहा है और तुम लोगों के लिए संकटकाल को दोस्ती के भाव से बिता देना चाहिए. तुम दैत्यों से दोस्ती कर लो और क्षीरसागर को मथ कर उस में से अमृत निकाल कर पी लो.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...