दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का बड़ा नाम है क्योंकि यहीं आमतौर पर पिछड़ों, दलितों, मुसलमानों, औरतों और कमजोरों की बातें जोरदार ढंग से रखने की इजाजत हैं. इसे कांग्रेस ने बनवाया और यहीं कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार और नाइंसाफी के मामले सब से ज्यादा उजागर हुए. अब कट्टरपंथी पाखंडों में भरोसा रखने वाले पूजापाठी इस पर कब्जा करना चाहते हैं और इसे नक्सलवादी, अलगाववादी, टुकड़ेटुकड़े गैंग, लैफ्टिस्ट, माम्र्सवादी, अंबेडकरवादी वगैरा से नामों से पुकारते हैं.

हालांकि उसी विश्वविद्यालय के निकले कई आज सत्ता में ऊंचे पदों पर हैं पर फिर भी इस विश्वविद्यालय में कुछ ऐसा माहौल है कि यहां खुली बहस हो ही जाती है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने खास चुन कर यहां सांतिश्री धुलियदी पंडित के वाइस चांसलर बनाया कि इस विश्वविद्यालय पाखंड विरोधियों का सफाया किया जा सकेगा पर इस वाइस चांसलर को तो आजाद ख्यालों के कीड़े ने काट खाया और उन्होंने अंबेडकर लेक्चर सीरीज में पुरखों की कहानियों से अपनेआप साफ होती बात कह डाली कि ङ्क्षहदुओं का शायद ही कोई देवता ब्राह्मïण है.

न राम ब्राह्मïण थे, न कृष्ण, न शिव, न काली, न लक्ष्मी न गंगा, न गौमाता, न हनुमान न जगन्नाथ न वेंक्टेश्वर. गांवगांव बने मंदिरों में जिस देवतादेवी को पूजा जाता है और जिस पर कोई ब्राह्मïण बैठा चंदा जमा कर रहा है, वह ब्राह्मïण है, परशुराम शायद ब्राह्मïण थे पर उन के मंदिर यदाकदा ही हैं और वे भी वहांजहां दूसरे किसी देवीदेवता का एक विशाल मंदिर है.

जवाहर लाल नेहरू जैसे विश्वविद्यालय की जरूरत असल में हर जिले को है. देश के जहालत, पुराने रीतिरिवाजों, दानपुण्य, धर्म और जाति के नाम पर आए दिन होने वाले झगड़ों जिन में सिर्फ तूतू मैंमैं नहीं, दंगे, फसाद, लूट, रेप, रेड शामिल हैं से लोगों को निकालने के लिए जरूरी है कि नई सोच पनपे.

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