अगर लद्दाख की सीमा पर शांति हो जाती है तो यह बहुत ज्यादा राहत की बात होगी. चीन और भारत का असली सीमा का जो भी दावा है, वह लड़ाई से तय हो ही नहीं सकता तो उस बारे में लड़ने से फायदा क्या है? अब भारत और चीन फिलहाल अपनीअपनी जगह से 1.8 किलोमीटर पीछे हटने को तैयार हो गए हैं और अपने इलाकों में कम सैनिक रखने को भी राजी हो गए हैं ताकि 6 जून वाली झड़प फिर से नहीं हो जाए.
सीमा पर आज इसी इलाके में दोनों ने 25,000 के करीब सैनिक तैनात कर रखे हैं और दोनों ने टैंकों, तोपों, हवाईजहाजों को तैयार कर रखा है. जरा सी चिनगारी से पूरी तरह आग भड़क सकती है. सीमा पर तैनात सेनाओं के कमांडरों की आपसी सहमति से यह तय हुआ है कि दोनों के सैनिक बेबात आपस में न उलझें.
चीन के लिए यह युद्ध इतना महंगा नहीं है क्योंकि जो भी टैंक, तोपें, हवाईजहाज चीन ने सीमा पर लगाए हैं ज्यादातर उस के अपने बनाए हैं. भारत को हर चीज खरीदनी पड़ रही है. हमें तो बुलैटप्रूफ जैकेट भी खरीदनी पड़ती है और उन पर मोटा मुनाफा विदेशी सैनिक सामान बनाने वाले कमाते हैं. हमारी हालत ऐसी नहीं है कि हम मनचाहा पैसा सैनिक विवाद में हंस कर खर्च कर सकें. कुरबानी देने को देश की तैयारी है पर बेमतलब की झड़पों की वजह से करोड़ोंअरबों खर्च करना सही नहीं होगा.
यह अफसोस की बात है कि हम जिस चीन को मनाने में इतनी कोशिश कर रहे थे, कभी चीनी राष्ट्रपति को झूला झुलाने तो कभी प्राचीन धरोहरों की सैर कराने की कवायद हुई, उस चीन ने हमारी एक न सुनी और अपने सैनिकों को सीमा पर जमा ही नहीं कर दिया बल्कि उन्हें उस जमीन पर भेज दिया जो हम कहते हैं हमारी ही है.