कोरोना को तमाशा मानने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद कोविड 19 के शिकार हो गए और अक्तूबर में उन्हें अस्पताल में भरती होना पड़ा, जब राष्ट्रपति पद का चुनाव महज 30 दिन दूर रह गया है. डोनाल्ड ट्रंप ने शुरू से ही उसे साधारण फ्लू कहा और चाहा कि अमेरिका काम पर चले चाहे लोगों को बीमारी हो. उन्होंने तब भारत आने का न्योता लिया जब चीन का वुहान शहर बिलकुल बंद था और बाकी शहरों में लौकडाउन था. लाखों की भीड़ को देख कर ट्रंप खूब खुश हुए थे.
अमेरिका में चुनावों में ट्रंप वही कर रहे थे जो उन्होंने मार्च में गुजरात में किया था. हजारों के सामने बिना मास्क के भाषण देना, खुले में घूमना, कोरोना पर जीत की डींग मारना. शायद नरेंद्र मोदी ने उन से सीखा था, जब 24 मार्च को कहा था कि 21 दिनों में कोरोना की लड़ाई जीत ली जाएगी. आज अमेरिका में सब से ज्यादा बीमार हैं, सब से ज्यादा मौतें हुई?हैं और फिर भी भारत के महान नेताओं की तरह वे यही कहते थे कि इस फ्लू को तो किसी भी कीटनाशक दवा से मारा जा सकता है.
गोरों की वोटों पर जीत कर आए ट्रंप असल में ठस दिमाग के कट्टर नेता हैं. अमेरिका में बसे ऊंची जातियों के भारतीय भी उन्हें और नरेंद्र मोदी को बराबर सा चाहते हैं. अमेरिका में दलितोंपिछड़ों की तरह कालों और लैटिनों से बुरी तरह व्यवहार किया जाता है. उन्हें जो थोड़ाबहुत मिल जाए वह भी गोरों को सहन नहीं होता. वहां तो गोरे 40-45 फीसदी हैं, पर वे जानते हैं कि भारत की तरह 10 फीसदी खास लोग चतुराई से राज कर सकते हैं. भला हो कोरोना का, जो न जाति देखता है, न धर्म, न रंग, न पैसा और पद. अमित शाह भी बीमार पड़े, दिल्ली के सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया भी और अब डोनाल्ड ट्रंप व उन की बीवी.