उत्तर प्रदेश में सहारनपुर में दलितठाकुरों के बीच दंगों ने एक बार फिर हिंदू समाज में हजारों सालों से फैली छूतअछूत और भेदभाव की सड़ीगली, बदबूदार गंद को गंगायमुना की ऊपरी सतह पर ला दिया है. कांग्रेस राज के बाद दलितों की नेता मायावती और पिछड़ों के नेता मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की गद्दी मिली थी, तो उस से लगा था कि सत्ता की झाड़ू से समाज का यह कोढ़ का रोग अब खत्म हो जाएगा और सभी जातियां सत्ता का स्वाद चख कर अपने समय का इंतजार करना भी सीख जाएंगी और एकदूसरे को सही ढंग से सहने का रास्ता भी अपनाने लगेंगी.

जाति का पौराणिक जहर, अफसोस है, इतना गहरा है कि मायावती के 4 बार के शासन या यादवों के 4 बार के शासन के बावजूद इस से पैदा मनमुटाव वहीं का वहीं है, जहां महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर ने छोड़ा था. अब जब भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर बिना दलितों, मुसलिमों और यादवों के राज करने का मौका मिला है, दंगे उभरने लगे हैं और डर है कि ये पूरे देश में न फैल जाएं. भारतीय जनता पार्टी के कट्टर समर्थक समझने लगे हैं कि शंबूक और एकलव्य का समय लौट आया है और सेवकों को पैर की जूती बन कर ही रहना होगा.

इस की एक बड़ी वजह यह है कि हिंदू समाज में सुधारों की बात पिछले 30-40 सालों में बिलकुल बंद हो गई है. समाज सुधार की जगह घड़ी की सूइयां उलटी घूम रही हैं और पूरा समाज, चाहे ऊंची जातियों का हो या दूसरी जातियों का, अपनेअपने दड़बों में बंद ही नहीं हो रहा, बल्कि दड़बों को किले बना रहा है. जिस खिचड़ी को बनाने की कोशिश की गई थी, जिस में एक जाति का दूसरी से फर्क ही न पता चले, उस का सपना टूट गया है और उत्तर प्रदेश ने दिखा दिया है कि इस देश में पैदा होते ही जाति का ठप्पा लगा है तो लगा है, वोटिंग मशीनों से नहीं जाने वाला.

भारतीय जनता पार्टी ने ऊंची सवर्ण जातियों के 10-15 प्रतिशत वोटों के साथ 35-40 प्रतिशत और जनता को लुभा तो लिया, पर बाकी को बुरी तरह नाराज कर के. पार्टी ने खुद चाहे ऐसी कोई बात नहीं करी हो या कही हो, जिस से निचलापिछड़ा या मुसलिम कोई नाराज हुआ हो, पर पार्टी के हर मुखर वर्कर का चालचरित्र तो पार्टी बदल नहीं सकती. चौराहों पर क्या बोला जा रहा है, कैसे बरताव करा जा रहा है, किस तरह की गालियां दी जा रही हैं, इसे पार्टी कंट्रोल नहीं कर सकती. चौराहों पर वही बोला जा रहा है, जो सदियों से बोला गया है.

भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 5 दशकों में संस्कृति, संस्कार, महान धर्म का ढिंढोरा इतना पीटा है कि उस से सदियों से सताए लोगों में एक बार फिर डर पैदा हो गया है और राज करने वालों के मन में फिर से गरूर खड़ा हो गया है. मध्य प्रदेश में माओवादियों, गुजरात में पटेलों, हरियाणा में जाटों, सहारनपुर में दलितों का डर व गुस्सा उसी की निशानी है. इन सब जगह पुराने ऊंचे और पिछड़ों में से अब पैसा कमा कर बन रहे नए सवर्ण ग्रंथों को बिना पढ़ेसमझे खंगाल रहे हैं कि उन का समाज में तो ऊंचा, सेवा करवाने का जन्मजात हक है ही.

यह पार्टी के लिए भारी मुश्किल है कि जिस बड़ी लहर पर चढ़ कर वह सत्ता में आई है, वही सदियों के कूड़ेकरकट को भी तट पर छोड़ रही है और यह कूड़ाकरकट देश व समाज को काले रंग में पोत रहा है.

सहारनपुर के दंगे समाज के कोढ़ के पहले निशान हैं. यदि सही इलाज नहीं किया गया तो ये और उभरेंगे. इस का इलाज पुलिस या सेना तो है ही नहीं. इस का इलाज दलितों, यादवों और दूसरी छोटी जातियों को अपनेअपने छोटे भुलाए गए देवता देना भी नहीं है. इस का इलाज मुसलिमों को परमानैंट सामाजिक दुश्मन बना कर खड़ा कर देना भी नहीं है. उन से चुनाव जीते जा सकते हैं, राज किया जा सकता है, पर लगातार उस विकास की सीढि़यां चढ़ना आसान नहीं है, जिस के नाम पर चुनाव जीता गया. विकास के लिए तो जीतोड़ मेहनत करनी होगी और यह मंत्रों, हवनों और पाठों में नहीं दिखती.

नीची मेहनतकश जातियों ने अपनी मेहनत से देश और समाज को हमेशा बहुतकुछ दिया है. अमीरों की शानशौकत के पीछे उन्हीं का चुप रह कर कम ले कर काम कर के रहने की आदत है. आज के युग में जब समाज की ठेकेदारी खत्म होने लगी है, झुनझुनों से या डराने से काम नहीं चलेगा. कांग्रेस पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ में इसीलिए बहुत पहले विदा हो गई थी, क्योंकि वह उसी रास्ते पर चल रही थी, जिस पर आज भाजपा चल रही है. अब कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी ने ले ली है. पर हां, वह कांग्रेस से भी काफी कम लेनदेन में भरोसा करती है.

देश को बनाना है तो सब को साथ ले कर चलना होगा, सब को भरोसा देना होगा कि मेहनत से देश बनेगा और मेहनत का फायदा सब को ही होगा. हर समय सरकारी ताकत के तेवर दिखाने वाली सरकार तो कभी भी कमजोरों को मना न पाएगी. जब अमीर डर कर रहे तो आम गरीबों का तो कहना ही क्या है. यह सरकार कभी काले धन, कभी नोटबंदी, कभी जीएसटी, कभी राष्ट्रभक्ति का नाम ले कर, कभी पैसे वालों को तो कभी सोचने वालों को डराधमका कर राज कर रही है.

सहारनपुर, हरियाणा और गुजरात की घटनाएं गरीबों को डरा रही हैं. दलितों पर हमले सिर्फ जाति के नाम पर हों, यही गलत है. इसे ठीक करना सामाजिक नेताओं, अखबारों, स्कूलों, विचारकों आदि का काम है. अफसोस है, इन सब को सरकार ने हाशिए पर खड़ा कर दिया है. सरकार और उस की कट्टर फौज ने समाज का पूरा ठेका ले लिया है. कुछ बोलने वाले विकास का गायत्री मंत्र गागा कर मुक्ति का रास्ता दिखाने के हकदार बन गए हैं.

फिर भी उम्मीद है कि सब से ऊपर देश रहेगा. एक देश, एक लोग, एक सोच, एक रास्ता और एक रंग. लोकतंत्र का रंग अब हर सोच पर चढ़ चुका है. दूसरे रंग चढ़ाओगे तो फीके पड़ जाएंगे. चुनाव परिणाम भी बता रहे हैं कि सुनामी उतनी ऊंची नहीं है जितनी दिख रही है. शीतल जल की धारा भी साथ बह रही है. यह देश आज नहीं तो कल चेतेगा. नई सोच, सच की सही परख करेगा. हरेक को बराबरी का, इज्जत का, बढ़ने का हक मिलेगा.

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