अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से पेट में आए बच्चे के गिराने के हक की बातचीत यहां भी कुछ ज्यादा होने लगी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले 23 हफ्ते के बिना शादी की युवती के पेट मेंं  पल रहे बच्चे को गिराने की इजाजत देने से इंकार कर दिया. हाईकोर्ट ने कानूनी दलीलें दीं और यह भी अद्भुत सुझाव दिया कि बच्चा पैदा कर के गोद के लिए दे दिया जाए कयोंकि आजकल गोद लेने वालों की लबी कतारें लगी हैं.

कानून ने 1971 से थोड़ा बहुत गर्भपात यानी पेट का बच्चा गिराने का हक दे दिया था पर आज भी ज्यादातर बच्चे चोरीछिपे की गिराए जाते हैं, चाहे नॄसगहोमों में या घरों में. शादी से पहले या बाद में अनचाहे बच्चे को गिराने का हक किस के पास होना चाहिए यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के अमेरिकी फैसले ने फिर से जता दिया है. 50 साल पहले अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह हक संविधान ने अमेरिकी औरतों को दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला बदला है और कहा है कि यह हक कहीं भी संविधान में नहीं लिखा.

भारत में ऐसे बहुत मामले सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं पर हर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हक की बात न कर के इजाजत दे कर मामला रफादफा कर दिया.

हमारे संविधान में यह हक है या नहीं इस पर कानूनी सर्कलों में बहस होती रहती है पर जमीनी हकीकत यह है कि गर्भपात कराना बहुत मुश्किल तो नहीं पर होते चोरीछिपे ही हैं.

असल में यह हक हर स्त्री का हक है कि वह अपने बदन का कब कैसे इस्तेमाल करे. सरकारी, समाज, धर्म को नैतिकता, पाप, पुण्य के नाम पर न तो आदमी औरत की सैक्स इच्छा पर कोई बंदिश लगाने का कोई हक है जरूरत. जैसे बच्चे पैदा करने के लिए शादीशुदा को कोई लाइसेंस नहीं देता वैसा ही गैर शादीशुदा को सरकार या पंडे, पादरी से कोई इजाजत चाहिए हो कि सैक्स वर्क या न और बच्चा गिराऊंगा नहीं की इजाजत नहीं चाहिए.

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