जर्जर पंचायत भवन, मुखिया और पंचायत प्रतिनिधियों की खोज में भटकते गांव वाले, ग्राम कचहरी का कहीं कोई नामलेवा नहीं मिलता. टूटी और कीचड़ से पटी गलियां, पंचायत की बैठकें भी समय पर नहीं होती हैं. रोहतास जिले की बिसैनी पंचायत की यही पहचान है. बिसैनी के रहने वाले बालेश्वर सिंह कहते हैं कि ग्राम कचहरी के बारे में सरकार बढ़चढ़ कर दावे करती रही है, लेकिन आज तक उसे कोई हक ही नहीं दिया गया है.
सरकारें बारबार रट लगाती रही हैं कि पंचायत के झगड़ों के निबटारे पंचायत में ही हो जाएंगे, कोर्ट जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, पर पंचायत चुनाव को 5 साल बीत गए, लेकिन ग्राम कचहरी को कोई हक ही नहीं दिया गया है. इस वजह से पंचायत के लोगों को सिविल कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.
भोजपुर जिले के शाहपुर ब्लौक की पंचायतें सरकार की बेरुखी और अफसरों की लापरवाही की कहानी चीखचीख कर कहती हैं. गोविंदपुर, मरचईया, पचकौरी डेरा, दलन छपरा, करीयन ठाकुर डेरा, रमकरही, लक्षुटोला वगैरह पंचायतों में सड़कों का कहीं भी नामोनिशान नहीं मिलता है. बरसात का पानी महीनों तक संकरी गलियों में जमा रहता है.
दलन छपरा गांव के जीवन लाल बताते हैं कि पंचायत को मजबूत करने का जितना ढोल पीटा जाता है, उस का 10 फीसदी भी काम नहीं होता है.
छपरा तक तो तरक्की की धारा आज तक पहुंच नहीं सकी है. गांव के लोगों को नैशनल हाईवे तक पहुंचने में ही पापड़ बेलने पड़ते हैं. गलियों और संकरी सड़कों पर बारह महीने कीचड़ और पानी जमा रहता है. कोई देखने वाला नहीं है. मुखिया से जब लोग इस बारे में शिकायत करते हैं, तो वे अपना ही रोना रोने लगते हैं. वे कहते हैं कि फंड ही नहीं मिलता है, तो काम कैसे करेंगे?