मोदी जो दिखाते हैं, उसके पीछे उससे बड़ा खतरा छुपाते हैं. अभी हम जीएसटी देख रहे हैं. ‘राष्ट्र के इतिहास का सबसे बड़ा कर सुधार’ का जश्न देख रहे हैं. ‘एक राष्ट्र, एक कर, एक बाजार का सपना देख रहे हैं’ और यह सब दिखाने की मोदी सरकार की जल्दबाजी देख रहे हैं. यह विज्ञापन देख रहे हैं, कि ‘‘आईये, हम जीएसटी का सहर्ष स्वागत करें.”

हमें श्रम कानूनों में संशोधन, भूमि अधिग्रहण के तौर तरीके, किसान आंदोलन, जीएसटी का विरोध, अर्थव्यवस्था का निजीकरण और ‘एक राष्ट्र, एक दल और एक नेता’ की मंशा को देखने नहीं दिया जायेगा. यह भी देखने नहीं किया जायेगा कि गो-रक्षक हिंदू तालिबानी बन गये हैं. लोगों को सार्वजनिक रूप से पीट-पीट कर मारा जा रहा है. एक राष्ट्र, एक कर और एक बाजार का सपना, किसके लिये है?

राष्ट्र यदि बाजार के लिये है, तो एक कर का विधान भी बाजार के लिये ही होगा. और बाजार पर यदि निजी वित्तीय पूंजी की पकड़ है, तो मानी हुई बात है कि उसका लाभ निजी कम्पनियों को ही मिलेगा. आम जनता को तो उसके हितों का प्रचार ही मिलेगा. भूख, गरीबी, बेरोजगारी और बढ़ती हुई महंगाई से ही उसका वास्ता पड़ेगा. देश की अर्थव्यवस्था यदि मोटाती है, तो मोटापा उस वर्ग के बदन पर चढ़ेगा जो देश और दुनिया का मालिक बन गया है, और सरकारें उसके मालिकाना हक को वैधानिक बना रही हैं.

सरकार प्रचार कर रही है-

यह एक करामात है. देश को मिली आर्थिक आजादी है. क्या कमाल है? कैसी समानता बैठाने की कवायत है? कांग्रेस के नेतृत्व में देश को आजादी 15 अगस्त 1947 की आधीरात को मिली थी. जवाहरलाल नेहरू ने कमान संभाली थी. भाजपा के नेतृत्व में देश को आर्थिक आजादी 1 जुलाई 2017 की आधी रात को मिली. कमान नरेंद्र मोदी के हाथ में है.

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