सत्ता का सैमीफाइनल माने जाने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में सब से बड़े 230 सीटों वाले राज्य मध्य प्रदेश में 15 सालों से राज कर रही भारतीय जनता पार्टी के हाथ से सत्ता की डोर तो उसी वक्त फिसलती दिखने लगी थी जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘नमामि देवी नर्मदे’ नाम से नर्मदा यात्रा शुरू की थी. यह यात्रा दिसंबर, 2016 में शुरू हो कर मई, 2017 में खत्म हुई थी.

लंबी और धर्मकर्म वाली इस नर्मदा यात्रा का भाजपा ने ऐसे होहल्ला मचाया था मानो विधानसभा चुनाव में उसे जनता नहीं, बल्कि नर्मदा नदी जिताएगी.

इस यात्रा पर सरकार के कितने करोड़ या अरब रुपए स्वाहा हुए थे, इस का साफसाफ ब्योरा आज तक भाजपा पेश नहीं कर सकी है.

शिवराज सिंह चौहान इस यात्रा की आड़ में जब मंदिरों और घाटों पर पूजापाठ करते और पंडों को दानदक्षिणा देते नजर आए थे, तो लोग मायूस हो उठे थे कि ये कैसी उपलब्धियां हैं जिन में हजारों की तादाद में छोटेबड़े नामी और बेनामी संत दानदक्षिणा से अपनी जेबें भर रहे हैं.

बाद में शिवराज सिंह चौहान ने 4 बाबाओं को मंत्री का दर्जा भी दे दिया था. इस से लोगों में यह संदेशा गया था कि अब साधुसंत सरकार चलाएंगे और दोबारा वर्ण व्यवस्था व ब्राह्मण राज कायम हो जाएगा. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में ही 15 सालों से सत्ता वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस आधी लड़ाई उस वक्त जीत गई थी जब कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह को हाशिए पर धकेलते हुए छिंदवाड़ा से सांसद और धाकड़ कांग्रेसी नेता कमलनाथ को प्रदेश का अध्यक्ष बनाया था और गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनावी मुहिम की कमान सौंपी थी.

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