Hindi Story: बहू हो या बेटी – हिना और शारदा के रिश्ते से लोगों को क्या दिक्कत थी

Hindi Story: रूबी ताई ने जैसे ही बताया कि हिना छत पर रेलिंग पकड़े खड़ी है तो घर में हलचल सी मच गई.

‘‘अरे, वह छत पर कैसे चली गई, उसे तीसरे माले पर किस ने जाने दिया,’’ शारदा घबरा उठी थीं, ‘‘उसे बच्चा होने वाला है, ऐसी हालत में उसे छत पर नहीं जाना चाहिए.’’

आदित्य चाय का कप छोड़ कर तुरंत सीढि़यों की तरफ दौड़ा और हिना को सहारा दे कर नीचे ले आया. फिर कमरे में ले जा कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया.

हिना अब भी न जाने कहां खोई थी, न जाने किस सोच में डूबी हुई थी.

हिना का जीवन एक सपना जैसा ही बना हुआ था. खाना बनाती तो परांठा तवे पर जलता रहता, सब्जी छौंकती तो उसे ढकना भूल जाती, कपड़े प्रेस करती तो उन्हें जला देती.

हिना जब बहू के रूप में घर में आई थी तो परिवार व बाहर के लोग उस की खूबसूरती देख कर मुग्ध हो उठे थे. उस के गोरे चेहरे पर जो लावण्य था, किसी की नजरों को हटने ही नहीं देता था. कोई उस की नासिका को देखता तो कोई उस की बड़ीबड़ी आंखों को, किसी को उस की दांतों की पंक्ति आकर्षित करती तो किसी को उस का लंबा कद और सुडौल काया.

सांवला, साधारण शक्लसूरत का आदित्य हिना के सामने बौना नजर आता.

शारदा गर्व से कहतीं, ‘‘वर्षों खोजने पर यह हूर की परी मिल पाई है. दहेज न मिला तो न सही पर बहू तो ऐसी मिली, जिस के आगे इंद्र की अप्सरा भी पानी भरने लगे.’’

धीरेधीरे घर के लोगों के सामने हिना के जीवन का दूसरा पहलू भी उजागर होने लगा था. उस का न किसी से बोलना न हंसना, न कहीं जाने का उत्साह दिखाना और न ही किसी प्रकार की कोई इच्छा या अनिच्छा.

‘‘बहू, तुम ने आज स्नान क्यों नहीं किया, उलटे कपडे़ पहन लिए, बिस्तर की चादर की सलवटें भी ठीक नहीं कीं, जूठे गिलास मेज पर पडे़ हैं,’’ शारदा को टोकना पड़ता.

फिर हिना की उलटीसीधी विचित्र हरकतें देख कर घर के सभी लोग टोकने लगे, पर हिना न जाने कहां खोई रहती, न सुनती न समझती, न किसी के टोकने का बुरा मानती.

एक दिन हिना ने प्रेस करते समय आदित्य की नई शर्ट जला डाली तो वह क्रोध से भड़क उठा, ‘‘मां, यह पगली तुम ने मेरे गले से बांध दी है. इसे न कुछ समझ है न कुछ करना आता है.’’

उस दिन सभी ने हिना को खूब डांटा पर वह पत्थर बनी रही.

शारदा दुखी हो कर बोलीं, ‘‘हिना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं, घर का काम करना नहीं आता तो सीखने का प्रयास करो, रूबी से पूछो, मुझ से पूछो, पर जब तुम बोलोगी नहीं तो हम तुम्हें कैसे समझा पाएंगे.’’

एक दिन हिना ने अपनी साड़ी के आंचल में आग लगा ली तो घर के लोग उस के रसोई में जाने से भी डरने लगे.

‘‘हिना, आग कैसे लगी थी?’’

‘‘मांजी, मैं आंचल से पकड़ कर कड़ाही उतार रही थी.’’

‘‘कड़ाही उतारने के लिए संडासी थी, तौलिया था, उन का इस्तेमाल क्यों नहीं किया था?’’ शारदा क्रोध से भर उठी थीं, ‘‘जानती हो, तुम कितनी बड़ी गलती कर रही थीं…इस का दुष्परिणाम सोचा है क्या? तुम्हारी साड़ी आग पकड़ लेती तब तुम जल जातीं और तुम्हारी इस गलती की सजा हम सब को भोगनी पड़ती.’’

आदित्य हिना को मनोचिकित्सक को दिखाने ले गया तो पता लगा कि हिना डिप्रेशन की शिकार थी. उसे यह बीमारी कई साल पुरानी थी.

‘‘डिपे्रशन, यह क्या बला है,’’ शारदा के गले से यह बात नहीं उतर पा रही थी कि अगर हिना मानसिक रोगी है तो उस ने एम.ए. तक की पढ़ाई कैसे कर ली, ब्यूटीशियन का कोर्स कैसे कर लिया.

‘‘हो सकता है हिना पढ़ाई पूरी करने के बाद डिप्रेशन की शिकार बनी हो.’’

आदित्य ने फोन कर के अपने सासससुर से जानकारी हासिल करनी चाही तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर कर दी.

शारदा परेशान हो उठीं. लड़की वाले साफसाफ तो कुछ बताते नहीं कि उन की बेटी को कौन सी बीमारी है, और कुछ हो जाए तो सारा दोष लड़के वालों के सिर मढ़ कर अपनेआप को साफ बचा लेते हैं.

‘‘मां, इस पागल के साथ जीवन गुजारने से तो अच्छा है कि मैं इसे तलाक दे दूं,’’ आदित्य ने अपने मन की बात जाहिर कर दी.

घर के दूसरे लोगोें ने आदित्य का समर्थन किया.

घर में हिना को हमेशा के लिए मायके भेजने की बातें अभी चल ही रही थीं कि एक दिन उसे जोरों से उलटियां शुरू हो गईं.

डाक्टर के यहां ले जाने पर पता चला कि वह मां बनने वाली है.

‘‘यह पागल हमेशा को गले से बंध जाए इस से तो अच्छा है कि इस का एबौर्शन करा दिया जाए,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा का विरोध घर के लोगों की तेज आवाज में दब कर रह गया.

आदित्य, हिना को डाक्टर के यहां ले गया,  पर एबौर्शन नहीं हो पाया क्योंकि समय अधिक गुजर चुका था.

घर में सिर्फ शारदा ही खुश थीं, सब से कह रही थीं, ‘‘बच्चा हो जाने के बाद हिना का डिप्रेशन अपनेआप दूर हो जाएगा. मैं अपनी बहू को बेटी के समान प्यार दूंगी. हिना ने मेरी बेटी की कमी दूर कर दी, बहू के रूप में मुझे बेटी मिली है.’’

अब शारदा सभी प्रकार से हिना का ध्यान रख रही थीं, हिना की सभी प्रकार की चिकित्सा भी चल रही थी.

लेकिन हिना वैसी की वैसी ही थी. नींद की गोलियों के प्रभाव से वह घंटों तक सोई रहती, परंतु उस के क्रियाकलाप पहले जैसे ही थे.

‘‘अगर बच्चे पर भी मां का असर पड़ गया तो क्या होगा,’’ आदित्य का मन संशय से भर उठता.

‘‘तू क्यों उलटीसीधी बातें बोलता रहता है,’’ शारदा बेटे को समझातीं, ‘‘क्या तुझे अपने खून पर विश्वास नहीं है? क्या तेरा बेटा पागल हो सकता है?’’

‘‘मां, मैं कैसे भूल जाऊं कि हिना मानसिक रोगी है.’’

‘‘बेटा, जरूर इस के दिल को कोई सदमा लगा होगा, वक्त का मरहम इस के जख्म भर देगा. देख लेना, यह बिलकुल ठीक हो जाएगी.’’

‘‘तो करो न ठीक,’’  आदित्य व्यंग्य कसता, ‘‘आखिर कब तक ठीक होगी यह, कुछ मियाद भी तो होगी.’’

‘‘तू देखता रह, एक दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा…पहले घर में बच्चे के रूप में खुशियां तो आने दे,’’ शारदा का विश्वास कम नहीं होता था.

पूरे घर में एक शारदा ही ऐसी थीं जो हिना के पक्ष में थीं, बाकी लोग तो हिना के नाम से ही बिदकने लगे थे.

शारदा अपने हाथों से फल काट कर हिना को खिलातीं, जूस पिलातीं, दवाएं पिलातीं, उस के पास बैठ कर स्नेह दिखातीं.

प्यार से तो पत्थर भी पिघल जाता है, फिर हिना ठहरी छुईमुई सी लड़की.

‘‘मांजी, आप मेरे लिए इतना सब क्यों कर रही हैं,’’ एक दिन पत्थर के ढेर से पानी का स्रोत फूट पड़ा.

हिना को सामान्य ढंग से बातें करते देख शारदा खुश हो उठीं, ‘‘बहू, तुम मुझ से खुल कर बातें करो, मैं यही तो चाहती हूं.’’

हिना उठ कर बैठ गई, ‘‘मैं अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं निभा पा रही हूं.’’

‘‘तुम मां बनने वाली हो, ऐसी हालत में कोई भी औरत काम नहीं कर सकती. सभी को आराम चाहिए, फिर मैं हूं न. मैं तुम्हारे बच्चे को नहलाऊंगी, मालिश करूंगी, उस के लिए छोटेछोटे कपडे़ सिलूंगी.’’

हिना अपने पेट में पलते नवजात शिशु की हलचल को महसूस कर के सपनों में खो जाती, और कभी शारदा से बच्चे के बारे में तरहतरह के प्रश्न पूछती रहती.

‘‘हिना ठीक हो रही है. देखो, मैं कहती थी न…’’ शारदा उत्साह से भरी हुई सब से कहती रहतीं.

आदित्य भी अब कुछ राहत महसूस कर रहा था और हिना के पास बैठ कर प्यार जताता रहता.

एक शाम आदित्य हिना के लिए जामुन खरीद कर लाया तो शारदा का ध्यान जामुन वाले कागज के लिफाफे की तरफ आकर्षित हुआ.

‘‘देखो, इस कागज पर बनी तसवीर हिना से कितनी मिलतीजुलती है.’’

आदित्य के अलावा घर के अन्य लोग भी उस तसवीर की तरफ आकर्षित हुए.

‘‘हां, सचमुच, यह तो दूसरी हिना लग रही है, जैसे हिना की ही जुड़वां बहन हो, क्यों हिना, तुम भी तो कुछ बोलो.’’

हिना का चेहरा उदास हो उठा, उस की आंखें डबडबा आईं, ‘‘हां, यह मेरी ही तसवीर है.’’

‘‘तुम्हारी?’’ घर के लोग आश्चर्य से भर उठे.

‘‘मैं ने कुछ समय मौडलिंग की थी. पैसा और शौक पूरा करने के लिए यह काम मुझे बुरा नहीं लगा था, पर आप लोग मेरी इस गलती को माफ कर देना.’’

‘‘तुम ने मौडलिंग की, पर मौडल बनना आसान तो नहीं है?’’

‘‘मैं अपने कालिज के ब्यूटी कांटेस्ट में प्रथम चुनी गई थी. फिर…’’

‘‘फिर क्या?’’ शारदा ने उस का उत्साह बढ़ाया, ‘‘बहू, तुम ब्यूटी क्वीन चुनी गईं, यह बात तो हम सब के लिए गर्व की है, न कि छिपाने की.’’

‘‘फिर इस कंपनी वालों ने खुद ही मुझ से कांटेक्ट कर के मुझे अपनी वस्तुओं के विज्ञापनों में लिया था,’’ इतना बताने के बाद हिना हिचकियां भर कर रोने लगी.

काफी देर बाद वह शांत हुई तो बोली, ‘‘मुझे एक फिल्म में सह अभिनेत्री की भूमिका भी मिली थी, पर मेरे पिताजी व ताऊजी को यह सब पसंद नहीं आया.’’

अब हिना की बिगड़ी मानसिकता का रहस्य शारदा के सामने आने लगा था.

हिना ने बताया कि उस के रूढि़वादी घर वालों ने न सिर्फ उसे घर में बंद रखा बल्कि कई बार उसे मारापीटा भी गया और उस के फोन सुनने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी.

शारदा के मन में हिना के प्रति वात्सल्य उमड़ पड़ा था.

हिना के मौडलिंग की बात खुल जाने से उस के मन का बोझ हलका हो गया था. वह बोली, ‘‘मांजी, मुझे डर था कि आप लोग यह सबकुछ जान कर मुझे गलत समझने लगेंगे.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचा तुम ने?’’

‘‘लोग मौडलिंग के पेशे को अच्छी नजर से नहीं देखते और ऐसी लड़की को चरित्रहीन समझने लगते हैं. फिर उस लड़की का नाम कई पुरुषों के साथ जोड़ दिया जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ था.’’

‘‘बेटी, सभी लोग एक जैसे नहीं हुआ करते. आजकल तुम खुश रहा करो. खुश रहोगी तो तुम्हारा बच्चा भी खूबसूरत व निरोग पैदा होगा.’’

शारदा का स्नेह पा कर हिना अपने को धन्य समझ रही थी कि आज के समय में मां की तरह ध्यान रखने वाली सास भी है, वरना उस ने तो सास के बारे में कुछ और ही सुन रखा था.

नियत समय पर हिना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशियों की शहनाई गूंज उठी.

हिना बेटे की किलकारियों में खो गई. पूरे दिन बच्चे के इतने काम थे कि उस के अलावा और कुछ सोचने की उसे फुरसत ही नहीं थी.

एक दिन शारदा की इस बात ने घर में विस्फोट जैसा वातावरण बना दिया कि हिना धारावाहिक में काम करेगी. पारस, मेरी सहेली के पति हैं और वह एक पारिवारिक धारावाहिक बना रहे हैं. उन्होंने हिना को कई बार देखा है और मेरे सामने प्रस्ताव रखा है कि आदर्श बहू की भूमिका वह हिना को देना चाहते हैं.

‘‘मां, तुम यह क्या कह रही हो. हिना को धारावाहिक में काम दिलवाओगी, वह कहावत भूल गईं कि औरत को खूंटे से बांध कर रखना चाहिए. एक बार औरत के कदम घर से बाहर निकल जाएं तो घर में लौटना कठिन रहता है,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा भी क्रोध से भर उठीं, ‘‘क्या मैं औरत नहीं हूं? पति के मरने के बाद मैं ने घर से बाहर जा कर सैकड़ों जिम्मेदारियां पूरी की हैं. मां बन कर तुम्हें जन्म दिया और बाप बन कर पाला है. सैकड़ों कष्ट झेले, पैसा कमाने को छोटीछोटी नौकरियां कीं, कठिन परिश्रम किया, तो क्या मैं ने अपना घर उजाड़ लिया? पुरुष तो सभी जगहों पर होते हैं, रूबी ताई भी तो दफ्तर में नौकरी कर रही है, क्या उस ने अपना घर उजाड़ लिया है. फिर हिना के बारे में ही ऐसा क्यों सोचा जा रहा है?

‘‘अगर तुम हिना को खूंटे से ही बांधना चाहते हो तो पहले मुझे बांधो, रूबी को बांधो. हिना का यही दोष है न कि वह सामान्य से कुछ अधिक ही खूबसूरत है, पर यह उस का दोष नहीं है. अरे, कोई खूबसूरत चीज है तो लोगों की नजरें उस तरफ उठेंगी ही.’’

शारदा के तर्कों के आगे सभी की जुबान पर ताले लग गए थे.

हिना शारदा की गोद में मुंह छिपा कर रो रही थी. फिर अपने आंसुओं को पोंछ कर बोली, ‘‘मां, तुम सचमुच मेरे लिए मेरा आदर्श ही नहीं बल्कि मां भी हो.’’

एक दिन जब हिना का धारावाहिक टेलीविजन पर प्रसारित हुआ तो उस के अभिनय की सभी ने तारीफ की और बधाइयां मिलने लगीं.

हिना उत्तर देती, ‘‘बधाई की पात्र तो मेरी सास हैं, उन्हीं ने मुझे डिप्रेशन से मुक्ति दिलाई और एक नया सम्मान से भरा जीवन दिया.’’

शारदा सिर्फ मुसकरा कर रह जातीं, ‘‘बहू हो या बेटी, दोनों ही एक हैं. दोनों के प्रति एक ही प्रकार से फर्ज निभाना चाहिए.’’ Hindi Story

Story In Hindi: नहले पे दहला – साक्षी ने कैसे लिया बदला

Story In Hindi: साक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गई. सामने खड़ा टोनी बगैर कुछ कहे मुसकराता हुआ अंदर दाखिल हो गया.

‘‘तुम यहां पर…’’ साक्षी चौंकते हुए बोली.

‘‘क्या भूल गई अपने आशिक को?’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

‘‘भूल जाओ उन बातों को. मेरी जिंदगी में जहर मत घोलो,’’ साक्षी रोंआसी हो कर बोली.

‘‘चिंता मत करो, मैं तुम्हें ज्यादा तंग नहीं करूंगा. लो यह देखो,’’ टोनी ने एक लिफाफा साक्षी को देते हुए कहा.

साक्षी ने लिफाफे से तसवीरें निकाल कर देखीं, तो उसे लगा मानो आसमान टूट पड़ा हो. उन तसवीरों में साक्षी और टोनी के सैक्सी पोज थे. यह अलग बात थी कि साक्षी ने टोनी के साथ कभी भी ऐसावैसा कुछ नहीं किया था.

‘‘यह सब क्या है?’’ साक्षी घबरा गई और डर कर बोली.

‘‘बस छोटा सा नजराना.’’

‘‘क्या चाहते हो तुम?’’ साक्षी ने कांपते हुए पूछा.

‘‘ज्यादा नहीं, बस एक लाख रुपए दे दो, फिर तुम्हारी छुट्टी,’’ टोनी बेशर्मी से बोला.

‘‘लेकिन ये फोटो तो झूठे हैं. ऐसा तो मैं ने कभी नहीं किया था.’’

‘‘जानेमन, ये फोटो देख कर कोई भी इन्हें झूठा नहीं बता सकता.’’

‘‘तुम इतने नीच होगे, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था.’’

‘‘आजकल सिर्फ पैसे का जमाना है, जिस के लिए लोग अपना ईमान भी बेच देते हैं,’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

साक्षी बुरी तरह घबरा गई. उसे यह भी डर था कि कहीं कोई आ न जाए. लेकिन वे दोनों यह नहीं जानते थे कि दो आंखें बराबर उन पर टिकी थीं.

साक्षी ने टोनी को भलाबुरा कह कर एक महीने का समय ले लिया. टोनी दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया. एकाएक साक्षी की रुलाई फूट पड़ी. वह लिफाफा अब भी उस के हाथ में था.

सहसा उन दो आंखों का मालिक दीपक कमरे में दाखिल हुआ और चुपचाप साक्षी के सामने जा खड़ा हुआ. उस ने हाथ बढ़ा कर वह लिफाफा ले लिया.

‘‘देवरजी, तुम…’’ साक्षी एकाएक उछल पड़ी.

‘‘जी…’’

‘‘यह लिफाफा मुझे दे दो प्लीज,’’ साक्षी कांप कर बोली.

‘‘चिंता मत करो भाभी, मैं सबकुछ जान चुका हूं.’’

‘‘लेकिन, ये तसवीरें झूठी हैं.’’

दीपक ने वे फोटो बिना देखे ही टुकड़ेटुकड़े कर दिए.

‘‘मैं सच कह रही हूं, यह सब झूठ है,’’ साक्षी बोली.

‘‘कौन था वह कमीना, जिस ने हमारी भाभी पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘लेकिन…’’

‘‘चिंता मत कीजिए भाभी. अगर उस कुत्ते से लड़ना होता तो उसे यहीं पकड़ लेता. लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप की जरा भी बदनामी हो.’’

दीपक का सहारा पा कर साक्षी ने उसे हिचकते हुए बताया, ‘‘उस का नाम टोनी है. वह मेरी क्लास में पढ़ता था. उस से थोड़ीबहुत बोलचाल थी, लेकिन प्यार कतई नहीं था.’’

‘‘उस का पता भी बता दीजिए.’’

‘‘लेकिन तुम करना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपनी भाभी को बदनामी से बचाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उस का क्या करोगे?’’

‘‘उस का मुरब्बा तो बना नहीं सकता, लेकिन उस नीच का अचार जरूर बना डालूंगा.’’

‘‘तुम उस बदमाश के चक्कर में मत पड़ो. मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’

लेकिन दीपक के दबाव डालने पर साक्षी को टोनी का पता बताना ही पड़ा. पता जानने के बाद दीपक तेज कदमों से बाहर निकल गया. दीपक को टोनी का घर ढूंढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. घर में ही टोनी की छोटी सी फोटोग्राफी की दुकान थी. दीपक ने पता किया कि टोनी की 3 बहनें हैं और मां विधवा हैं.

दीपक ने फोटो खिंचवाने के बहाने टोनी से दोस्ती कर ली और दिल खोल कर खर्च करने लगा. उस ने टोनी की एक बहन ज्योति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया.

एक दिन मौका पा कर दीपक और ज्योति पार्क में मिले और शाम तक मस्ती करते रहे. उस दिन टोनी अपनी दुकान में अकेला बैठा था. तभी दीपक की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी.

दीपक को देखते ही टोनी का चेहरा खिल उठा. उस ने खुश होते हुए कहा. ‘‘आओ दीपक, मैं तुम्हीं को याद कर रहा था.’’

‘‘तुम ने याद किया और हम हाजिर हैं. हुक्म करो,’’ दीपक ने स्टाइल से कहा.

‘‘बैठो यार, क्या कहूं शर्म आती है.’’

‘‘बेहिचक बोलो, क्या बात है?’’

‘‘क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?’’

‘‘बोलो तो सही, बात क्या?है?’’

‘‘मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है. कुछ खास काम है,’’ टोनी हिचकते हुए बोला.

‘‘बस इतनी सी बात, अभी ले कर आता हूं,’’ दीपक बोला और एक घंटे में ही उस ने 5 हजार की गड्डी ला कर टोनी को थमा दिया. टोनी दीपक के एहसान तले दब गया. कुछ दिनों बाद ज्योति की हालत खराब होने लगी. उसे उलटियां होने लगीं. जांच करने के बाद डाक्टर ने बताया कि वह मां बनने वाली है.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. ज्योति की मां ने रोना शुरू कर दिया. लेकिन टोनी गुस्से में ज्योति को मारने दौड़ पड़ा. ज्योति लपक कर बड़ी बहन के पीछे छिप गई.

‘‘बता कौन है वह कमीना, जिस के साथ तू ने मुंह काला किया?’’ टोनी ने सख्त लहजे में पूछा.

ज्योति सुबक रही थी. उस की मां और बहनें रोए जा रही थीं और टोनी गुस्से में न जाने क्याक्या बके जा रहा था. काफी दबाव डालने पर ज्योति ने दीपक का नाम बता दिया.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. टोनी भी एकाएक ढीला पड़ गया. दीपक को घर बुला कर बात की गई, लेकिन वह साफ मुकर गया और उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

एक पल के लिए टोनी को गुस्सा आ गया और वह गुर्रा कर बोला, ‘‘अगर मेरी बहन को बरबाद किया तो मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है कि मैं ने चूडि़यां पहन रखी हैं?’’ दीपक सख्त लहजे में बोला.

‘‘तुम ने हम से किस जन्म का बदला लिया है,’’ टोनी की मां रोते हुए बोलीं.

‘‘आप जरा चुप रहिए मांजी, पहले इस खलीफा से निबट लूं,’’ दीपक ने कहा और टोनी को घूरने लगा.

टोनी ने पैतरा बदला और हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं दीपक, मेरी बहन को बरबाद मत करो.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी के शिकार हो रहे हो,’’ दीपक बोला.

‘‘देखो दीपक, मेरी बहन से शादी कर लो. तुम जो कहोगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ टोनी हार कर बोला.

‘‘तुम क्या कर सकते हो भला?’’

‘‘तुम जो कहोगे मैं वही करूंगा,’’ टोनी गिड़गिड़ा कर बोला.

‘‘अपनी इज्जत पर आंच आई तो कितना तड़प रहे हो. क्या दूसरों की इज्जत, इज्जत नहीं होती?’’ दीपक शांत हो कर बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ टोनी बुरी तरह चौंका.

‘‘अपने गरीबान में झांक कर देखो टोनी, सब मालूम हो जाएगा,’’ एकाएक दीपक का लहजा बदल गया.

टोनी सबकुछ समझ गया. उस ने मां और बहनों को बाहर भेजना चाहा, लेकिन दीपक उन्हें रोक कर बोला, ‘‘अब डर क्यों रहे हो, घर के सभी लोगों को बताओ कि तुम कितनी मासूमों का बसाबसाया घर तबाह करने पर तुले हो.’’

‘‘तुम कौन हो?’’ टोनी हैरत से बोला.

‘‘तुम मेरी बात का फटाफट जवाब दो, वरना मैं चला,’’ दीपक जाने के लिए लपका.

‘‘लेकिन मैं ने किसी की जिंदगी बरबाद तो नहीं की,’’ टोनी अटकते हुए बोला.

‘‘मगर करने पर तो तुले हो.’’

‘‘यह सच है, लेकिन तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं दोस्त. आज मुझे एहसास हुआ कि पैसे से कहीं ज्यादा इज्जत की अहमियत है,’’ टोनी बुझी आवाज में बोला.

दीपक के होंठों पर मुसकराहट नाच उठी. ज्योति भी मुसकराने लगी.

‘‘अब क्या इरादा है प्यारे?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘वह सब झूठ था. मैं कसम खाता हूं कि सारे फोटो और निगेटिव जला दूंगा,’’ टोनी ने कहा.

‘‘यह अच्छा काम अभी और सब के सामने करो,’’ दीपक ने कहा.

टोनी ने पैट्रोल डाल कर सारे गंदे फोटो और निगेटिव जला डाले और दीपक से बोला, ‘‘माफ करना दोस्त, मैं ने लालच में पड़ कर लखपति बनने का यह तरीका अपना लिया था.’’

‘‘माफी मुझ से नहीं पहले अपनी मां से मांगो, फिर मेरी मां से मांगना.’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

‘‘हां, साक्षी यानी मेरी भाभी मां. वह माफ कर देंगी तो मैं भी तुम्हें माफ कर दूंगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मंजूर है, लेकिन मेरी बहन?’’

‘‘इस का फैसला भी भाभी ही करेंगी.’’

साक्षी के पैर पकड़ कर माफी मांगते हुए टोनी बोला, ‘‘आज से आप मेरी बड़ी दीदी हैं. चला तो था चाल चलने, लेकिन आप के इस होशियार देवर ने ऐसी चाल चली कि नहले पे दहला मार कर मुझे चित कर दिया. क्या इस नालायक को माफ कर सकेंगी?’’

साक्षी ने गर्व से देवर की ओर देखा और टोनी से कहा, ‘‘फिर कभी ऐसी जलील हरकत मत करना.’’

माफी मिलने के बाद टोनी ने साक्षी को अपनी बहन व दीपक का मामला बताया तो साक्षी ने दीपक को घूरते हुए पूछा, ‘‘दीपक, यह सब क्या?है?’’

‘‘यह भी एक नाटक है भाभी. आप ज्योति से ही पूछिए,’’ दीपक हंस कर बोला.

‘‘ज्योति, आखिर किस्सा क्या है?’’ टोनी ने पूछा.

‘‘भैया, मैं भी सबकुछ जान गई थी. आप को सही रास्ते पर लाने के लिए ही मैं ने व दीपक ने नाटक किया था और उस में डाक्टर को भी शामिल कर लिया था,’’ ज्योति ने हंसते हुए बताया.

‘‘चल, तू ने छोटी हो कर भी मुझे राह दिखा कर अच्छा किया. मैं तेरी शादी दीपक जैसे भले लड़के से करने के लिए तैयार हूं.’’

दीपक ने इजाजत मांगने के अंदाज में भाभी की ओर देखा. साक्षी ने ज्योति को खींच कर अपने गले से लगा लिया. ज्योति की मां भी इस रिश्ते से बहुत खुश थीं. Story In Hindi

Story In Hindi: किस्सा डाइटिंग का – क्या अपना वजन कम कर पाए गुप्ताजी

Story In Hindi: एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में  देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’’

फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’

मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं.

मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’

पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’

आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.

रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’

मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.

जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.

पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.

मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.

खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.

डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.

‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.

शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’

मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.

फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.

तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’

मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’

मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.

तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.

उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.

मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.

उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.

बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.

फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.

मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए. मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.

‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.

पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’

मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.

मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया. मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’

पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’

मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया. Story In Hindi

Best Hindi Story: रेतीला सच – कैसी हो गई थी अनंत की जिंदगी

Best Hindi Story: ‘‘तुम्हें वह पसंद तो है न?’’ मैं  ने पूछा तो मेरे भाई अनंत  के चेहरे पर लजीली सी मुसकान तैर गई. मैं ने देखा उस की आंखों में सपने उमड़ रहे थे. कौन कहता है कि सपने उम्र के मुहताज होते हैं. दिनरात सतरंगी बादलों पर पैर रख कर तैरते किसी किशोर की आंखों की सी उस की आंखें कहीं किसी और ही दुनिया की सैर कर रही थीं. मैं ने सुकून महसूस किया, क्योंकि शिखा के जाने के बाद पहली बार अनंत को इस तरह मुसकराते हुए देख रही थी.

शिखा अनंत की पत्नी थी. दोनों की प्यारी सी गृहस्थी आराम से चल रही थी कि एक दर्दनाक एहसास दे कर यह साथ छूट गया. शिखा 5 साल पहले अनंत पर उदासी का ऐसा साया छोड़ गई कि उस के बाद से अनंत मानो मुसकराना ही भूल गया.

पेट में लगातार होने वाले हलकेहलके दर्द को शिखा ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. जब दर्द ज्यादा बढ़ने लगा तो जांच के बाद पित्त की थैली में पत्थर पाया गया जो काफी लंबे समय से हलकाहलका दर्द देते रहने के बाद अब पैंक्रियाज को कैंसरग्रस्त कर चुका था. इलाज शुरू हुआ पर 3 महीने के अंदर ही शिखा पति अनंत और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चल बसी.

शिखा के गुजरने के बाद मैं जब मायके गई तो कमरों की दीवारें हों या आंगन का खुला आसमान, अपनीअपनी भाषा में बस यही दोहराते हुए से लग रहे थे कि शिखा के साथ ही अब उस घर की रौनक भी हमेशा के लिए चली गई. अनंत और चारों बच्चों की आंखों से पलभर भी मायूसी जुदा नहीं होती थी. सभी एकदूसरे की ओर भीगी आंखों से मूक ताकते रहते. उन सब की हालत देख कर मन तड़प कर रह जाता.

6 महीने बाद रक्षाबंधन पर जब मैं दोबारा वहां गई तो घर का माहौल काफी अलग था. समय के साथ कितनाकुछ बदल जाता है. दोनों बहनें आकृति और सुकृति सुबहसुबह आईं और भाइयों को राखी बांध अपनाअपना नेग ले कर शाम को वापस चली गईं, क्योंकि उन के बच्चों के एग्जाम्स चल रहे थे. दोनों बेटे अनूप और मधूप तथा बहुएं झरना और नेहा भी अपनीअपनी दुनिया में बिजी नजर आईं. सुबह 8 बजे के बाद घर बिलकुल सूना हो जाता. शाम 5-6 बजे के बाद ही बेटेबहुएं वापस आतीं.

रात का खाना एकदिन तो सब ने साथ में खाया शायद मेरी वजह से, पर उस के बाद 8 बजे ही खाने के लिए एकदो बार मुझ से पूछ कर दोनों बहुओं और बेटों ने यह कह कर कि सुबहसुबह स्कूल, औफिस के लिए निकलना पड़ता है, खाना खा लिया. 9 बजतेबजते दोनों बेटे अपनीअपनी बीवियों के साथ अपनेअपने कमरों में बंद हो जाते. इतवार के दिन दोनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ घूमने निकल जाते.

अनंत के कहने पर मैं एक हफ्ते के लिए वहां रुक गई थी. इस एक ही हफ्ते में उन बच्चों की दिनचर्या से मेरे सामने यह साफ हो

गया कि मौजमस्ती को ही वे अपना जीवनमंत्र मानते थे. अनंत ने औफिस से हफ्तेभर की छुट्टी ले रखी थी. एक दिन वह किसी काम से 2 घंटे के लिए घर से बाहर गया. मैं घर में अकेली रह गई, तो उतने बड़े घरआंगन का सूनापन भांयभांय कर चीखता अनंत के जीवन में अंधेरे एकाकीपन को मेरे सामने बयान करने लगा.

पुराने ढंग के हमारे पुश्तैनी मकान को भैयाभाभी ने कितने पैसे और मेहनत से आलीशान बंगले का रूप दे दिया था पर हर तरह की सुखसुविधाओं वाले भरेपूरे घर में आज घर का मालिक ही अवांछित, तिरस्कृत सा हो गया था. अनंत को रात में देर से खाने की आदत थी. हम दोनों भाईबहन अकेले बैठे बातें करते रहते.

10 बजे मैं खाना निकालने किचन में जाती और वापस आ कर देखती कि अनंत सूनी आंखों से दीवारों को ताक रहा है.

खुद से 11 साल छोटे अपने इकलौते भाई की ऐसी दशा देख कर मेरा मन तड़प उठता. मैं मन को समझाती कि शायद संसार का रिवाज ही यही है. हम सब में से ज्यादातर लोग जिन अपनों के लिए अपने जीवन की सारी ऊर्जा खर्च कर खुशियों के इंतजाम में लगे रहते हैं वही एक दिन इतने संवेदनहीन हो जाते हैं कि उन्हें हमारी वेदनाओं, भावनाओं का कोई एहसास तक नहीं होता.

बड़ा बेटा मोटरपार्ट्स की एक बड़ी फर्म में मैनेजर था और छोटा दुलारा बेटा सरकारी स्कूल में टीचर. दोनों बहुएं एक कंप्यूटर सैंटर में पढ़ाने जाती थीं. पर चारों में से कोई भी परिवार के लिए एक पैसा नहीं निकालता था. पूरे घर का खर्च अनंत ही चलाता था. भाईभाभियों के व्यवहार की वजह से ही शायद घर की दोनों बेटियां भी ज्यादा आनाजाना नहीं रखती थीं. सब अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. अगर कोई अलगथलग और अकेला पड़ गया था तो वह था अनंत.

मैं ने मन में यह निर्णय कर लिया कि अनंत को इस तरह अकेले उपेक्षित जीवन नहीं जीने दूंगी  जाते वक्त मैं ने उस से कहा कि शनिवाररविवार तो छुट्टी होती है, हमारे पास आ जाया करो. हम भी अकेले ही रहते हैं. तुम्हारा भी दिल लगा रहेगा और हमारा भी. वह पहले एकाध बार आया पर धीरेधीरे अब हर शनिवार को हमारे घर आ जाता, रविवार रुक कर सोम की सुबह यहीं से सीधा अपने औफिस चला जाता.

इधर कई सालों से बच्चों के विदेश में सैटल हो जाने के बाद हम दोनों भी अकेले हो गए थे. कभीकभार छुट्टी वाले दिन मंजरी कुछ देर के लिए चली आती तो थोड़े समय को घर मैं रौनक रहती. शनिवार रविवार मंजरी की छुट्टी होती थी. हम सब बातें करते, कभीकभार बाहर घूमने भी चले जाते.

मंजरी मेरी बड़ी बेटी की सहेली है और यहीं एक कालेज में पढ़ाती है. हमारे लिए वह एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही है. देखने में खूबसूरत होने के साथसाथ उस के विचार भी सुलझे हुए हैं. वह तलाकशुदा है और अपने छोटे से जीवन में उस ने बहुत संघर्ष झेले हैं. आज से 15 साल पहले उस की उम्र तब 35 साल की रही होगी जब वह इस कालोनी में रहने आई थी. तब उस का तलाक का केस चल रहा था. उस की अरैंज मैरिज हुई थी. उस का पति बेहद घटिया इंसान था. वह मंजरी को परेशान करने के लिए 2-3 बार यहां भी आ चुका था.

मैं हर सुबह अपनी बालकनी से उसे काम पर जाते हुए और शाम को फिर घर वापस आते हुए देखती रहती थी. तब मेरे घर से 2 बिल्ंिडग छोड़ कर तीसरी में वह रहती थी. पर अपनी मेहनत के बल पर अब इसी कालोनी में उस ने अपना खुद का छोटा सा फ्लैट खरीद लिया है. पहले पैदल या औटो से कालेज आतीजाती थी, अब अपनी गाड़ी से आतीजाती है. 13 साल के मासूम से बच्चे को साथ ले कर आई थी. बच्चा आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर बेंगलुरु में जौब कर रहा है.

अपने देश की लचर कानून व्यवस्था की पीड़ा झेलते हुए 20 साल बाद आखिरकार उसे उस पति से तलाक मिल गया पर पति को छोड़ने की वजह से उस के पिता और परिजन आज भी उस से नाराज हैं. शुरुआती दिनों में ही एक बार जब मंजरी कालेज के लिए घर से निकली तो उस का पति रास्ता रोक कर उस से झगड़ने लगा था. उस ने मंजरी की कलाई को कस कर पकड़ रखा था. लोग तमाशा देख रहे थे. अनंत ने उधर से गुजरते हुए जब यह सब देखा तो उस ने मंजरी के पति का विरोध करते हुए पुलिस को फोन पर घटना की जानकारी दी. तब गुस्से से अनंत की ओर देख कर उस के पति ने घटिया लहजे में कहा था, ‘तू क्यों बीच में टपक रहा है, तू क्या इस का यार लगता है?’ लज्जा, पीड़ा और अपमान से मंजरी का चेहरा लाल हो गया था.

अनंत और मंजरी की यही पहली मुलाकात थी. उस के काफी समय बाद दोनों फेसबुक फ्रैंड बने, पर मुलाकातें नहीं होती थीं. अब जब मिलनाजुलना होने लगा तो मैं ने महसूस किया कि दोनों एकदूसरे का साथ काफी पसंद करते हैं.

एक दिन माहौल देख कर मैं ने अनंत से कहा कि दुनिया का यही दस्तूर है जब तक अपना स्वार्थ सिद्ध होता रहे, आदमी आदमी को पहचानता है. स्वार्थ खत्म तो रिश्ते खत्म. मौत से पहले अपनों की अवहेलना ही मार डालती है. तुम्हारे सामने अभी लंबा जीवन पड़ा हुआ है, ऐसे कैसे गुजारोगे. उधर, मंजरी भी अकेली है और मुझे लगता है कि वह तुम्हें पसंद भी करती है. तुम दोनों शादी कर लो, दोनों के जीवन में चटख रंग खिल उठेंगे. एकदूसरे के सहारे बन कर जीवन का सफर हंसतेमुसकराते पूरा हो जाएगा…कहो तो मैं मंजरी से बात करूं. थोड़ा ठहर कर अनंत बोला. ‘बच्चों से एक बार बात कर लेना उचित रहेगा.’ मैं अनंत को जाते हुए देखती रही.

एक दिन सुबह के 6 भी नहीं बजे थे कि फोन की घंटी लगातार बजने लगी. उस तरफ अनंत की बड़ी बेटी आकृति थी. न दुआ न सलाम, बडे़ ही गुस्से में वह बोली, ‘‘बुड्ढा शादी कर रहा है, तुम्हें पता है न?’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन बुड्ढा?’’

‘‘तुम्हारा भाई और कौन, ऐसे बाप को और क्या कहा जाए जिस ने यह भी नहीं सोचा कि उन के इस कारनामे के बाद मेरे बच्चों, खासकर, मेरी बेटियों से कौन शादी करेगा.’’ वह आक्रोशित स्वर में बोल रही थी.

मेरा मन गुस्से से सुलग उठा, बोली, ‘‘जो इंसान जीवनभर तुम सब के सुख की खातिर मेहनत की चक्की में पिसपिस कर मिट्टी होता रहा, तुम सब का जीवन संवारने के लिए क्याक्या जतन करता रहा, आज जब तुम सब सैटल हो गए तो वह तुम्हारे लिए पिता न हो कर बुड्ढा हो गया? अपने एकाकीपन में घुटघुट कर वह आज हर पल मर रहा है पर तुम सब को तो इस का एहसास तक नहीं? तुम सब के लिए सोचता रहे तो बहुत बढि़या, एक बार अपने लिए सोच लिया तो गुनाहगार हो गया? बुड्ढे होने से जीवन खत्म हो जाता है? आदमीआदमी न हो कर कुछ और हो जाता है? क्या तुम सब कभी बुड्ढे नहीं होगे?’’

इतना सुनते ही व्यंगभरी चुभती आवाज में वह बोली, ‘‘मुझे तो लगा था कि तुम अपने भाई को समझाओगी, पर बुरा न मानना बूआ, अब तो मुझे लग रहा कि यह सब तुम्हारा ही कियाधरा है.’’ और उधर से फोन पटकने की आवाज आई.

अनंत आज सुबह ही औफिस के किसी काम से 2-3 दिनों के लिए मुंबई निकल गया था.

मंजरी अपने घर में लेटी हुई टीवी देख रही थी. शाम को लगभग 6 बज रहे थे. बाहर हलका झुटपुटा सा हो रहा था. दरवाजे पर खटखट की आवाज सुन कर अलसाई हुई मंजरी ने दरवाजा खोला, सामने एक नवयुवक हाथ में रिवौल्वर लिए खड़ा नजर आया. उस ने चेहरे पर मास्क पहन रखा था, केवल उस की लाललाल आंखें ही नजर आ रही थीं. मंजरी घबरा कर दो कदम पीछे हो गई.

चेतावनीभरी आवाज मंजरी के कानों में पड़ी, ‘‘सुना है तुम डाक्टर अनंत कुमार सिंह से शादी करने की सोच रही हो? अगर ऐसा है तो इस सोच को यहीं विराम दे दो, तुम्हारी सेहत के लिए यही अच्छा होगा.’’ रिवौल्वर वाले हाथ को एक हलकी सी जुंबिश दे कर वह वापस मुड़ा और पलट कर बोला, ‘‘याद रखना.’’

मैं ने अपनी बालकनी से मधूप और 3 अन्य युवकों को मंजरी के घर की तरफ से निकल कर कालोनी से बाहर की तरफ जाते हुए देखा. यह इधर क्या करने आया था, सोच ही रही थी कि इतने में मंजरी का फोन आया, ‘‘अनंत के बच्चे अपने स्वार्थ के लिए इस हद तक गिर जाएंगे, मैं ने कभी सोचा भी न था.’’ इस सब के बाद मुझे लगा था मंजरी अब इस शादी से पीछे हट जाएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा.

अनंत को फोन कर के मैं ने सबकुछ बता दिया था. मंजरी के साथ अपने बेटे की करतूत जान कर वह बेहद लज्जित था. तीसरे दिन आया तो मंजरी के सामने आंखें नहीं उठा पा रहा था, हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘तुम्हारी जिंदगी तो वैसे ही गमों से खाली न थी, मैं तुम्हारा दर्द और नहीं बढ़ा सकता. समय का मारा हूं जो ऐसे बच्चों का बाप हूं और क्या कहूं. तुम्हारे जीवन को बदरंग करने का मुझे कोई हक नहीं.’’

अनंत की आंखों में नमी थी, उठ कर जाने लगा. मंजरी खड़ी हो गई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘यह तुम ने अपनी बात कही. अब मेरी बात सुनो. मैं न तो तुम्हें रोकूंगी न टोकूंगी, न सामाजिक नियमों की जंजीरों में जकड़ूंगी. न तुम मुझे रोकना न टोकना, न किसी नकशे में जकड़ना. हम उड़ेंगे एकदूसरे के साथ और अपनेअपने विवेक के साथ. शुरू करेंगे एक सफर जो पूरा होगा प्रेम के स्वच्छंद आसमान में. लेकिन उस से पहले अपने पंखों को मजबूत करना होगा. जीवन में वीरानी आ जाए तो अपने लिए एक नए जीवन का चयन करना कहीं से भी गलत नहीं. इस से पहले कि हमारा यह जीवन अवेहलना व उदासियों का गुच्छा सा बन कर रह जाए, कुछ चटकीले रंगों को मुट्ठियों में भर लेने का हक और हौसला हम सब के पास होना चाहिए.’’

४सारस का एक जोड़ा आसमान से गुजर रहा था, अपनी बालकनी में बैठी मैं सोच रही थी, क्यों हम ने अपने जीवन के चारों ओर नियमों, रूढि़यों, धर्मों, और आडंबरों के झाड़झंखाड़ों की चारदीवारियां उगा रखी हैं. ये सब इंसानों के लिए होने चाहिए या इंसान इन सब के लिए… Best Hindi Story

Story In Hindi: बिगड़ी बात बनानी है – नंदा को नींद क्यों नहीं आ रही थी

Story In Hindi: रातभर नंदना की आंखों में नींद नहीं थी. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उस के साथ क्या हो रहा है. पूरा शरीर टूट रहा था. सुबह उठी तो ऐसे लगा चक्कर खा कर गिर जाएगी. गिरने से बचने के लिए बैड पर बैठ गई. नंदना चुपचाप अपने बैड पर बैठी थी कि तभी उसे अपनी भाभी तनुजा की आवाज सुनाई दी,’’ क्या बात है नंदू आज तुम्हें औफिस नहीं जाना है क्या?

नंदना ने किसी तरह भाभी को जवाब दिया कि हां भाभी जाना है… अभी तैयार हो रही हूं.नंदना की आवाज की सुस्ती को महसूस कर तनुजा अपना काम छोड़ कर उस के कमरे में चली आई. पूछा, ‘‘क्या बात है नंदू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?

‘‘हां, भाभी,’’ नंदू ने जवाब दिया.‘‘देखकर तो नहीं लगता,’’ तनुजा उस का माथा छूते हुए बोली, ‘‘अरे तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है.’’‘‘हां भाभी,’’ कहते हुए नंदना बाथरूम की तरफ भागी, उसे बहुत तेज उबकाई आई. तनुजा भी उस के पीछेपीछे गई. नंदना उलटी कर रही थी.

तनुजा चिंतित हो गई कि पता नहीं क्या हो गया नंदू को. इस के भैया भी शहर से बाहर गए हुए हैं. समझ नहीं आ रहा क्या करे. तनुजा नंदना को सहारा दे कर बिस्तर तक ले आई और फिर बिस्तर पर लेटाते हुए सख्त आवाज में बोली, ‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें औफिस जाने की… तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

नंदना बिना कोई जवाब दिए चुपचाप लेट गई.तनुजा नंदना के लिए चाय लेने किचन में चली गई. जब वह चाय ले कर आई, तो देखा कि नंदना की आंखों से आंसू टपक रहे हैं.तनुजा उस के आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘रो क्यों रही है पगली. ठीक हो जाएगी.’’

‘‘आप मेरा कितना ध्यान रखती हो भाभी. आप ने कभी मुझे मां की कमी महसूस नहीं होने दी. हमेशा अपने स्नेह तले रखा. मेरी हर गलती को माफ किया… पता नहीं भाभी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’‘‘क्या हो गया है तुझे? चायनाश्ता कर ले, फिर डाक्टर के पास ले चलती हूं.’’

तनुजा के कहने पर नंदना डाक्टर के पास चलने को तैयार हो गई. तनुजा की सहेली माधवी बहुत अच्छी डाक्टर हैं. वह नंदना को उसी के पास ले गई.माधवी ने नंदना का चैकअप करने के बाद तनुजा को अपने कैबिन में बुलाया और बोली, ‘‘तनुजा, नंदना की शादी हो गई है क्या?’’‘‘नहीं माधवी, अभी तो नहीं हुई. हां, उस के रिश्ते की बात जरूर चल रही है. पर तू ये सब क्यों पूछ रही है? कुछ सीरियस है क्या?’’

‘‘हां तनुजा, बात तो सीरियस ही है. नंदना प्रैगनैंट है… लगभग 4 महीने हो चुके हैं.’’माधवी की बात सुनते ही तनुजा के पैरों तले से जमीन ही निकल गई. वह मन ही मन बुदबुदाने लगी कि नंदना तूने यह क्या किया, 4 महीने हो गए और मुझे बताया तक नहीं.और फिर तनुजा नंदना को ले कर घर आ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से इस बारे में कैसे पूछे.

तनुजा ने नंदना को दवा और खाना दे कर सुला दिया. फिर सोचा शाम तक इस की तबीयत ठीक हो जाएगी तब इस से तसल्ली से पूछेगी कि ये सब कैसे हुआ.शाम को 5 बजे चाय ले कर तनुजा नंदना के कमरे में पहुंची तो देखा वह रो रही है.नंदना के सिरहाने बैठते हुए तनुजा बोली, ‘‘नंदू उठो चाय पी लो. फिर मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं.’’

‘‘जी भाभी, मुझे भी आप से एक बात करनी है,’’ कह कर नंदना चाय पीने लगी.चाय पीने के बाद दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगीं कि बात की शुरुआत कौन पहले करे.आखिर मौन को तोड़ते हुए तनुजा बोली, ‘‘नंदना तुम्हें पता है कि तुम प्रैगनैंट हो?’’‘‘नहीं भाभी, पर मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है.’’

नंदना की बात पर तनुजा को गुस्सा आ गया, तुम 30 साल की होने वाली हो नंदना और तुम्हें यह पता नहीं कि तुम प्रैगनैंट हो… 4 महीने हो चुके हैं.. कैसे इतनी बड़ी बात तुम ने मुझ से बताने की जरूरत नहीं समझी? तुम्हारे भैया को और पापाजी को क्या जवाब दूंगी मैं? दोनों ने तुम्हारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ी है और तुम ने ऐसा कर दिया कि मैं उन्हें मुंह दिखाने लायक नहीं रही.’’

नंदना रोते हुए बोली, ‘‘आप को तो पता है न भाभी मेरे पीरियड्स अनियमित हैं… मुझे नहीं पता चला कि  ये सब कैसे हो गया.’’तनुजा अपने गुस्से पर काबू रखते हुए बोली, ‘‘कौन है वह जिसे तुम प्यार करती हो? किस के साथ रह कर तुम ने अपनी मर्यादा की सारी हदें लांघ दीं? अगर तुम्हें कोई पसंद था तो मुझे बताती न, मैं बात करती तुम्हारी शादी की.’’

‘‘भाभी, मैं और भैया के बौस वीरेंद्र,’’ इतना कह कर नंदना रोने लगी.‘‘सत्यानाश नंदना… वीरेंद्र तो शादीशुदा है और उस के बच्चे भी हैं… वह तुम से शादी करेगा?’’‘‘पता नहीं भाभी,’’ वंदना धीरे से बोली.‘‘जब भैया ने मुझे उन से पार्टी में मिलाया था, तो मुझे नहीं पता था कि वह शादीशुदा हैं. उन्होंने तो मुझे अभी भी नहीं बताया.. यह आप बता रही हैं.’’

नंदना की बात सुन कर तनुजा गुस्से से पगला सी गई. फिर नंदना के कंधे झंझोड़ते हुए बोली, ‘‘अब मैं क्या करूं नंदना, तुम्हीं बताओ? मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है. 4 दिनों में पापाजी औैर तुम्हारे भैया आ जाएंगे… कैसे उन का सामना करोगी तुम?’’‘‘मुझे बचा लो भाभी.. भैया और पापा को पता चल गया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी… भैया तो मार ही डालेंगे मुझे.’’

‘‘कुछ सोचने दो मुझे,’’ कह कर तनुजा अपने कमरे में चली गई. सारी रात सोचते रहने के बाद उस ने यही तय किया कि उसे रजत को बताना ही होगा कि नंदना प्रैगनैंट है, भले ही गुस्सा होंगे, लेकिन कोई हल तो निकलेगा.’’सुबह ही तनुजा ने पति रजत को फोन कर के सारी बात बता दी. सब कुछ सुनने के बाद रजत सन्न रह गया. फिर बोला, ‘‘मैं दोपहर की फ्लाइट से घर आ रहा हूं. तब तक तुम अपनी सहेली माधवी से बात कर लो. अगर अबौर्शन हो जाए तो अच्छा है… बाकी बातें बाद में देखेंगे. मुझे नहीं पता था कि वीरेंद्र मुझे इतना बड़ा धोखा देगा,’’ कह कर रजत ने फोन रख दिया.

घर का काम निबटाने के बाद तनुजा नंदना के कमरे में गई. वह घुटनों पर मुंह रखे रो रही थी.तनुजा उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘अब रोने से कुछ नहीं होगा. नंदू चलो हम डाक्टर के पास चलते हैं, और दोनों तैयार हो कर माधवी के पास पहुंचीं.तनुजा माधवी से बोली, ‘‘अबौर्शन कराना है नंदना का.’’‘‘ठीक है, चैकअप करती हूं कि हो सकता है या नहीं.’’

नंदना का चैकअप करने के बाद माधवी बोली, ‘‘आईर्एम सौरी तनु यह अबौर्शन नहीं हो पाएगा. इस से नंदना की जिंदगी को खतरा हो सकता है. साढ़े 4 महीने हो चुके हैं.’’माधवी की बात सुन कर तनुजा परेशान हो उठी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे. थोड़े दिनों में तो सब को पता चल जाएगा नंदना के बारे में. फिर क्या होगा इस की जिंदगी का? कौन करेगा इस से शादी? अपनी नासमझी में नंदू ने इतनी बड़ी गलती कर दी है कि जिस की कीमत उसे जिंदगी भर चुकानी पड़ेगी. नंदू की हालत के बारे में सोच कर तनुजा की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘क्या करूं… कैसे संवारूं मैं नंदू की जिंदगी को,’’ तनुजा अपना सिर हाथों में दबाए सोच ही रही थी कि तभी रजत की आवाज सुनाई दी, ‘‘क्या हुआ तनु? सब ठीक है न?रजत को देखते ही तनुजा उस से लिपट गई, ‘‘कुछ भी ठीक नहीं है रजत, इस बेवकूफ लड़की ने अपनी जिंदगी बरबाद कर ली… माधवी कह रही है अगर अबौर्र्शन हुआ, तो उस की जान चली जाएगी.’’

रजत झल्लाते हुए बोला, ‘‘चली जाए जान इस की… क्या मुंह दिखाएंगे हम लोगों को?‘‘कैसी बातें कर रहे हो आप? आखिर नंदू हमारी बेटी जैसी है… उस ने गलती की है, तो उसे सुधारना हमारी जिम्मेदारी है न? आप हिम्मत न हारें कोई न कोई रास्ता निकलेगा ही… फिलहाल हम नंदू को घर ले चलते हैं.’’

रजत और तनुजा नंदना को ले कर घर आ गए. गुस्से की अधिकता के चलते रजत ने नंदना की तरफ न तो देखा न ही उस से एक शब्द बोला. उसे अपनेआप पर भी गुस्सा आ रहा था कि क्यों उस ने नंदू से वीरेंद्र का परिचय कराया.. उसे पता तो था ही कि साला एक नंबर का कमीना है. रजत ने कभी सोचा भी नहीं था कि वीरेंद्र उस की बहन के साथ ऐसा करेगा.

घर पहुंच कर नंदू रजत के पैरों पर गिर कर बोली, ‘‘भैया मुझे माफ कर दो… आप बचपन से मेरी गलतियां माफ करते आए हो.. भले ही आप मुझे पीट लो, लेकिन मुझ पर गुस्सा न करो.’’रजत उस का माथा थपक कर अपने कमरे में चला गया.

उस दिन तीनों में से किसी ने भी खाना नहीं खाया. सब परेशान थे. किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.तनुजा बोली, ‘‘3-4 दिन में पापाजी आ जाएंगे, उन से क्या कहेंगे? नंदना के बारे में सुन कर तो उन्हें हार्टअटैक ही आ जाएगा.’’रजत बोला, ‘‘मैं पापा से कह देता हूं कि वे अभी कुछ दिन और चाचा के यहां रह लें. तब तक हम कुछ सोच लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तनुजा अपने कमरे में चली गई औैर नंदना भी सोने चली गई.जब रजत कमरे में आया तो तनुजा उन से बोली, ‘‘मैं सोच रही थी कि कुछ दिनों के लिए शिमला वाले भैया के पास चली जाऊं नंदना को ले कर.’’‘‘वहां जा कर क्या करोगी? तुम्हारे भैया तो अकेले रहते हैं न,’’ रजत ने कहा.‘‘हां,’’ तनुजा ने जवाब दिया, ‘‘शादी नहीं की है उन्होंने… सोच रही हूं उन से नंदना से शादी करने की बात कहूं. वे मेरी बात नहीं काटेंगे.’’

‘‘यह तो ठीक नहीं है तनुजा कि तुम नंदना को जबरदस्ती उन से बांध दो. वैसे उन्होंने शादी क्यों नहीं की अभी तक 37-38 साल के तो हो ही गए होंगे न?’’‘‘दरअसल, वे जिस लड़की से प्यार करते थे उस ने उन्हीं के दोस्त के साथ अपना घर बसा लिया. तब से भैया का मन उचट गया. बहुत सारी लड़कियां बताईं पर उन्हें कोई भी नहीं जंची. मुझे लग रहा है नंदना और उन की जोड़ी ठीक रहेगी. मैं एक बार नंदना से भी पूछ लेती हूं.’’

‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो. अब तो दूसरा रास्ता भी नजर नहीं आ रहा… शहर में जा कर नंदना भी धीरेधीरे सब कुछ भूल जाएगी.’’अगले ही दिन तनुजा नंदना को ले कर शिमला चली गई. रजत ने अपने पापा को कुछ दिनों तक मुंबई चाचा के पास ही रुकने को कह दिया.शिमला पहुंच कर तनुजा ने अपने भैया विमलेश को सारी बात बताई, तो वे बोले, ‘‘तनु, मुझे कोई ऐतराज नहीं है. मुझे नंदना पसंद है, लेकिन तू पहले उस से पूछ ले.’’

तनुजा ने नंदना से इस बारे में पूछा तो उस ने अपनी स्वीकृति दे दी.तनुजा ने रजत को फोन कर के सारी बात बताई. रजत बहुत खुश हुआ. बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा तुम्हें कैसे धन्यवाद दूं. तनुजा तुम सही मानों में मेरी जीवनसंगिनी हो… तुम्हारी जगह कोई और होती तो बात का बतंगड़ बना देती, लेकिन तुम ने बिगड़ी बात को अपनी समझ से बना दिया… मैं सारी जिंदगी तुम्हारा आभारी रहूंगा.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो आप? क्या नंदना मेरी कुछ नहीं है? उसे मैं ने हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह माना है.’’रजत ने पापा को फोन कर के बुला लिया और उन्हें सारी बात बता दी, साथ ही यह भी बता दिया कि परेशान होने की जरूरत नहीं है. तनुजा के भैया विमलेश को नंदना बहुत पसंद है और उन्होंने उस से विवाह करने की इच्छा जताई है. फिर दोनों परिवारों की रजामंदी से नंदना का विमलेश के साथ विवाह हो गया. विदाई के समय नंदना अपनी भाभी तनुजा के गले लग कर खूब रोई. वह बस यही बोले जा रही थी कि आप ने मेरी जिंदगी फिर से संवार दी भाभी… आप जैसी भाभी सभी को मिले. Story In Hindi

Hindi Story: भूल – प्यार के सपने दिखाने वाले अमित के साथ क्या हुआ?

Hindi Story: कैफे कौफी डे’ में रजत, अमित, विनोद और प्रशांत बैठे गपें मार रहे थे, इतने में अचानक रजत की नजर घड़ी पर गई तो वह बोला, ‘‘अमित, तुझे तो अभी ‘उपवन लेक’ जाना है न, वहां पायल तेरा इंतजार कर रही होगी.’’

अमित ने अपने कौलर ऊपर करते हुए कहा, ‘‘वही एक अकेली थोड़ी है जो मेरा इंतजार कर रही है, कई हैं, करने दे उसे भी इंतजार, बंदा है ही ऐसा.’’

प्रशांत हंसा, ‘‘हां यार, तू अमीर बाप की इकलौती औलाद है, हैंडसम है, स्मार्ट है, लड़कियां तो तुझ पर मरेंगी ही.’’

अमित ने इशारे से वेटर को बुला कर बिल मंगवाया और बिल चुकाने के बाद अपनी गाड़ी की चाबी उठाई और बोला, ‘‘चलो, मैं चलता हूं, थोड़ा टाइमपास कर के आता हूं,’’ सब ने ठहाका लगाया और अमित बाहर निकल गया. वह सीधा ‘उपवन लेक’ पहुंचा, पायल वहां बैंच पर बैठी थी, उस ने कार से उतरते अमित को देखा तो खिल उठी. वह अमित को देखती रह गई. शिक्षित, धनी, स्मार्ट अमित उस जैसी मध्यवर्गीय घर से ताल्लुक रखने वाली साधारण लड़की को प्यार करता है, यह सोचते ही पायल खुद पर इतरा उठी. पास आते ही अमित ने उस की कमर में हाथ डाल दिया और इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, कहीं चल कर कौफी पीते हैं.’’

‘‘नहीं अमित, अगर किसी ने देख लिया तो?’’

‘‘अरे पायल, मैं तुम्हें जिस होटल में ले जाऊंगा वहां तुम्हारी जानपहचान का कोई फटक भी नहीं सकता.’’

पायल को अमित की यह बात बुरी तो लगी, लेकिन उस के व्यक्तित्व के रोब में दबा उस का मन कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया, उस ने चुपचाप सिर हिला दिया. अमित उसे एक शानदार महंगे होटल में ले गया और दोनों ने एक कोने में बैठ कर कौफी और कुछ स्नैक्स का और्डर दे दिया, हलकाहलका मधुर संगीत और होटल के शानदार इंटीरियर को देख पायल का मन झूम उठा.

अमित की मीठीमीठी बातें सुन कर पायल किसी और ही दुनिया में पहुंच गई. करीब घंटेभर दोनों साथ बैठे रहे. इस दौरान कभी अमित पायल का हाथ अपने हाथ में ले कर बैठता तो कभी उस के खूबसूरत सुनहरे बालों को उंगलियों से सहलाने लगता. पायल हमेशा की तरह सुधबुध खो कर उस की बातों की दीवानी बन खोई रही. जब उस के मोबाइल की घंटी बजी तो वह होश में आई, उस के पापा का फोन था, उन्होंने पूछा, ‘‘कहां हो?’’

पायल ने तुरंत कहा, ‘‘बस पापा, रास्ते में हूं, घर पहुंचने वाली हूं.’’ उस ने अमित से कहा, ‘‘अब मैं जा रही हूं, फिर मिलेंगे.’’ अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं यहां अपने दोस्त का इंतजार कर रहा हूं, वह आता ही होगा.’’ पायल चली गई. अमित ने मुसकराते हुए घड़ी देखी. रंजना को उस ने आधे घंटे बाद यहीं बुलाया था. वह जानता था कि पायल घंटेभर से ज्यादा नहीं रुक पाएगी, क्योंकि उस के पापा काफी अनुशासनप्रिय हैं.

अमित बिजनैसमैन कमलकांत का इकलौता बेटा था, मम्मी का देहांत हो चुका था. उस ने अभीअभी एमबीए किया था ताकि बिजनैस संभाल सके. वह युवतियों को खिलौना समझता था, उन पर पैसा खर्च कर वह अपना उल्लू साधता था. वह कई युवतियों से एकसाथ फ्लर्ट करता था. कालेज में युवतियां उस की दीवानी थीं, जिस का उस ने हमेशा फायदा उठाया.

पायल के जाने के बाद वह अब रंजना का इंतजार कर रहा था. खुले विचारों वाली रंजना मौडर्न ड्रैस पहन कर मिलने आई थी. अमित को देख कर उस ने फ्लाइंग किस की और पास पहुंच कर उस से सट कर बैठ गई. अमित ने उस से प्यार भरी बातें कीं और छेड़खानी शुरू कर दी.

रंजना खुद को बड़ी खुशनसीब मानती थी कि उसे अमित जैसा दौलतमंद बौयफ्रैंड मिला. उस ने शादी का जिक्र किया, ‘‘अमित, तुम डैड से हमारी शादी की बात कब कर रहे हो?’’

अमित चौंक कर बोला, ‘‘देखता हूं, अभी तो डैड बहुत बिजी हैं,’’ कहते हुए वह मन ही मन हंसा, ’कितनी बेवकूफ होती हैं लड़कियां, दो बोल प्यार के सुन कर शादी के सपने देखने लगती हैं, हुंह. शादी और इन से, शादी तो अपने ही जैसे उच्चवर्गीय परिवार की किसी लड़की से करूंगा, मखमल में टाट का पैबंद तो लगने से रहा,’अमित ने रंजना की बातों का रुख मोड़ दिया. फिर घंटेभर टाइमपास कर रंजना को ले कर कार की तरफ बढ़ा और उस के घर से पहले ही कार रोक कर उसे उतार कर आगे बढ़ गया.

वह जब घर पहुंचा तो उस के पिता कमलकांत औफिस से आ चुके थे, वे ड्राइंगरूम में गुमसुम बैठे थे. अमित गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस से पापा की नजरें मिलीं. अमित ने अपने पिता के चेहरे की गंभीरता भांप ली और बोला, ‘‘डैड, कुछ प्रौब्लम है क्या? आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

कमलकांत कुछ नहीं बोले, बस, सोफे पर उन्होंने सिर टिका लिया. अमित घबरा कर आगे बढ़ा, ‘‘क्या हुआ डैड?’’

कमलकांत की बुझीबुझी सी आवाज आई, ‘‘2 दिन से सोच रहा हूं तुम्हें बताने के लिए, मुझे एबीसी कंपनी के शेयरों में काफी घाटा हुआ है. अब सारा पैसा डूब गया, जबरदस्त नुकसान हुआ है.’’

दोनों बापबेटा काफी देर सिर पकड़ कर बैठे रहे, फिर कमलकांत ने कहा,

‘‘मि. कुलकर्णी की बेटी से तुम्हारे रिश्ते की जो बात चल रही थी आज उन्होंने भी बात घुमाफिरा कर इस रिश्ते को खत्म करने का संकेत दे दिया है. अब तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता देना,’’ तभी नौकर ने आ कर खाना बनाने के लिए पूछा तो दोनों ने ही मना कर दिया.

दोनों के होश उड़े हुए थे, दोनों बापबेटा अपनेअपने कमरे में रातभर जागते रहे. कमलकांत रातभर अपने वकील, सैक्रेटरी, मैनेजर से बात करते रहे, अमित ने तो अपना फोन ही स्विचऔफ कर दिया था, कहां तो वह रोज इस समय फोन पर किसी न किसी लड़की को भविष्य के सुनहरे सपने दिखा रहा होता था. अगले कुछ दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट होती चली गई थी. शहर में चर्चा होने लगी, इसी वजह से कमलकांत को हार्टअटैक आ गया, उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती किया गया. अमित की भी हालत खराब थी. रिश्तेदारों ने भी उस से दूरी बना ली. सिर्फ एकदो दोस्त उस के साथ अस्पताल में थे.

अमित पिता की रातदिन देखभाल कर रहा था. कुछ दिन बाद जब उन की हालत में कुछ सुधार हुआ तो डाक्टर के निर्देशों के साथ घर आते ही उन्होंने अमित से कहा, ‘‘बेटा, तुम जल्दी से जल्दी साधारण ढंग से ही शादी कर लो, मेरी एक चिंता तो खत्म हो जाएगी. तुम्हारी तो इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती है. मुझे बताओ, किस से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘डैड, पहले आप ठीक तो हो जाओ, मुझे तय करने के लिए थोड़ा समय चाहिए.’’

समाचारपत्रों में छपी खबरों से अब तक रंजना, पायल और अन्य लड़कियों को भी अमित के चरित्र और कमलकांत की गिरती साख की खबर लग चुकी थी. अमित ने पायल को मिलने के लिए फोन किया तो उस ने साफ इनकार कर दिया और बोली, ‘‘तुम एक आवारा और चरित्रहीन लड़के हो, लड़कियों की भावनाओं से खेलते हो. शादी तो दूर मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती.‘‘

अमित पायल के व्यंग्यबाणों से अपमान, मानसिक पीड़ा और क्रोध में जला जा रहा था. इस पीड़ा से उस ने अपनेआप को बहुत मुश्किल से संभाला. सामान्य होने के बाद उस ने रंजना को फोन किया तो रंजना का भी जवाब था, ‘‘तुम अब कुछ भी नहीं हो अमित, जिस पिता के पैसे पर ऐश कर के लड़कियों को बेवकूफ बनाते थे वह पैसा तो अब डूब गया. अब मेरी भी तुम में कोई रुचि नहीं है. मुझे पूजा, अनीता और मंजू के बारे में भी पता चल चुका है, अब सब तुम्हारी हकीकत जान चुके हैं. पिता की दौलत के बिना तुम कुछ नहीं हो, किसी लड़की को अपने से कम समझना, तुम लड़कों का ही हक नहीं है बल्कि हम में भी फैसला लेने की क्षमता, इच्छा, रुचि और पसंद होती है. काश, तुम गरीब और साधारण रूपरंग वाले लेकिन चरित्रवान युवक होते और लड़कियों की भावनाओं से नहीं खेलते,’’ कह कर रंजना ने उस की बात सुने बिना ही फोन रख दिया.

अमित को ऐसा लगा जैसा कि रंजना ने उसे करारा तमाचा मारा हो. निष्प्राण सा वह बिस्तर पर ढह गया. उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शरीर का खून पानी हो गया हो. उस का गला सूखने लगा और वह अब कुछ करने की हालत में नहीं था. वह बड़ी मुश्किल से उठा और पापा को उस ने अपने हाथ से जबरदस्ती कुछ खिला कर दवा दी, फिर अपने कमरे में आ कर निढाल पड़ गया. उस के दिलोदिमाग में विचारों की आंधी का तांडव चल रहा था. वह इस तरह अपने को ठुकराना सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस जैसे स्मार्ट, हैंडसम लड़के का कोई लड़की इस तरह से अपमान कर सकती है. उस ने अब तक न जाने कितनी लड़कियों को अपनी बातों के जाल में फंसाया था, लेकिन आज उन साधारण लड़कियों ने उस के घमंड को चकनाचूर कर दिया.

मन शांत हुआ तो उस ने सोचा कि सिर्फ पुरुष होने के नाते वह किसी लड़की की भावनाओं से नहीं खेल सकता. उस ने हमेशा अपनी भावनाओं को ही महत्त्व दिया. कभी उस के मन में यह बात नहीं आई कि किसी लड़की का भी आत्मसम्मान व पसंदनपसंद हो सकती है. उस के दिमाग में तो हमेशा यही गलतफहमी रही कि उसे पा कर हर लड़की खुद को धन्य समझेगी, लेकिन उस रात आत्मविश्लेषण करते हुए उस ने महसूस किया कि पायल और रंजना की बातों ने उस की सोच को नया आयाम दिया है. सुबह उस का मन एकदम शांत था, ठीक तूफान के गुजरने के बाद की तरह शांत. उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका था. वह मन ही मन पायल, रंजना और पता नहीं कितनी लड़कियों से माफी मांग रहा था. Hindi Story

Hindi Family Story: क्या मैं गलत हूं – शादीशुदा मयंक को क्या अपना बना पाई मायरा?

Hindi Family Story: पियाबालकनी में आ कर खड़ी हो गई. खुली हवा में सांस ले कर ऐसा लगा जैसे घुटन से बाहर आ गई हो. आसपास का शांत वातावरण, हलकीहलकी हवा से धीरेधीरे लहराते पेड़पौधे, डूबता सूरज सबकुछ सुकून मन को सुकून सा दे रहा था. सामने रखी चेयर पर बैठ कर आंखें मूंद लीं. भरसक प्रयास कर रही थी अपने को भीतर से शांत करने का. लेकिन दिमाग शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. एक के बाद एक बात दिमाग में आती जा रही थी…

मैं पिया इस साल 46 की हुई हूं. जानपहचान वाले अगर मेरा, मेरे परिवार का खाका खींचेंगे तो सब यही कहेंगे, वाह ऐश है पिया की, अच्छाखासा खातापीता परिवार, लाखों कमाता पति, होशियार कामयाब बच्चे, नौकरचाकर और क्या चाहिए किसी को लाइफ में खुद भी ऐसी कि 4 लोगों के बीच खड़ी हो जाए तो अलग ही नजर आती है. खूबसूरती प्रकृति ने दोनों हाथों से है. ऊपर से उच्च शिक्षा ने उस में चारचांद लगा दिए. तभी तो मयंक को वह एक नजर में भा गई थी.

‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी, बेंगलुरु’ से मास्टर डिगरी ली थी उस ने.

जौब के बहुत मौके थे. मयंक का गारमैंट्स का बिजनैस देशविदेश में फैला था. फैशन इलस्टेटर की जौब के लिए उस ने अप्लाई किया था. उस के डिजाइन्स किए गारमैंट्स के कंपनी को काफी बड़ेबड़े और्डर मिले. मयंक की अभी तक उस से मुलाकात नहीं हुई, बस नाम ही

सुना था.

पिया के काम की तारीफ और स्पैशल इंसैंटिव के लिए मयंक ने उसे स्पैशल अपने कैबिन में बुलाया. कंपनी के सीईओ से मिलना पिया के लिए फक्र की बात थी.

मयंक को देखा तो देखती रह गई. किसी फिल्मी हीरो जैसी पर्सनैलिटी थी उस की. लेकिन पिया कौन सी कम थी. मयंक के दिल में उसी दिन से उतर गई थी. पिया कंपनी के सीईओ के लिए कुछ ऐसावैसा सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन मयंक ने तो बहुत कुछ सोच लिया था पिया को देख कर. अब तो वह नित नए बहाने बना कर पिया को डिस्कस करने के लिए कैबिन में बुला लेता. पिया बेवकूफ तो थी नहीं कि कुछ सम?ा न पाती. मयंक ने उस से जब बातों ही बातों में शादी का प्रस्ताव रखा तो पिया को लगा कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही. सपनों का राजकुमार उसे मिल गया था.

शादी के बाद पिया का हर दिन सोना और रात चांदी थी. 1 साल के अंदर ही पिया बेटे अनुज की मां बन गई और डेढ़ साल बाद ही स्वीटी की किलकारियों से घर फिर से गुलजार हो गया.

कहते हैं न जब प्रकृति देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है. दोनों बच्चे एक से बढ़ कर एक होशियार. अनुज 12वीं के बाद ही आस्ट्रेलिया चला गया और वहां से बीबीए करने के बाद उस ने मयंक के साथ बिजनैस संभाल लिया. बापबेटे की देखरेख में बिजनैस खूब फूलफल रहा था. स्वीटी का एमबीबीएस करते हुए शशांक के साथ अफेयर हो गया तो दोनों की पढ़ाई खत्म होते हुए उन की शादी कर दी. आज दोनों मिल कर अपना बड़ा सा क्लीनिक चला रहे हैं.

पिया की यह कहानी सुन कर यह लगेगा न वाऊ क्या लाइफ है. पिया को भी ऐसा लगता है. लेकिन लाइफ यों ही मजे से गुजरती रहे ऐसा भला होता है? बस पिया की जिंदगी में भी ट्विस्ट आना बाकी था.

मयंक का अपने बिजनैस के सिलसिले में दुबई काफी आनाजाना था. मायरा जरीवाला गुजरात से थी. गारमैंट्स स्टार्टअप से शुरुआत की थी उस ने और आज उस की गुजराती टचअप लिए क्लासिक और मौडर्न ड्रैसेज की खूब डिमांड हो रही थी. बहुत महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. मयंक की गारमैंट इंडस्ट्री के साथ टाइअप कर के वह अपने और पांव पसारना चाहती थी. इसी सिलसिले में उस ने दुबई में मयंक के साथ एक मीटिंग रखी थी.

मयंक 48 वर्ष का हो चुका था. कहते हैं कि पुरुष इस उम्र में अपने अनुभव, अपने धीरगंभीर व्यक्तित्व और पैसे वाला हो तो उस की पर्सनैलिटी में गजब की रौनक आ जाती है. माएरा मयंक के इस रोबीले व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उस की कंपनी के साथ टाइअप के साथसाथ उस की जिंदगी के साथ भी टाइअप करने की उस ने ठान ली.

पता नहीं क्यों पत्नी चाहे कितनी ही खूबसूरत, प्यार करने वाली हो, हर तरह से खयाल रखने वाली हो, लेकिन जहां कोई दूसरी औरत, ऊपर से खूबसूरत लाइन देने लगे तो पुरुष को उस की तरफ खिंचते हुए ज्यादा देर नहीं लगती. मयंक भी पुरुष था. मायरा एक बिजनैस वूमन थी. ऊपर से पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी 35 साल की खूबसूरत औरत.

मयंक धीरेधीरे उस की ओर आकर्षित होता गया. मायरा नए दौर की औरत थी, जिस के लिए पुरुष के साथ रिलेशनशिप बनाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी. अपनी खुशी उस के लिए सब से ज्यादा माने रखती थी. मयंक और वह अब अकसर दुबई में ही मिलते और हफ्ता साथ बिता कर अपनेअपने बिजनैस में लग जाते. दोनों बिजनैस वर्ल्ड में अपनी रैपो बना कर रखना चाहते थे.

‘‘मयंक डियर, मु?ो बुरा लगता है कि मेरे कारण तुम पिया के साथ धोखा कर रहे हो. लेकिन मैं क्या करूं. मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. अब मेरी खुशी तुम से जुड़ी है,’’ मायरा मयंक को अपनी बांहों के घेरे में घेरती हुई बोली.

‘‘मायरा, मैं तुम से ?ाठ नहीं बोलूंगा. पिया से मैं भी प्यार करता हूं. लेकिन अब जब भी तुम्हारे साथ होता हूं मु?ो अजीब सा सुकून मिलता है. मैं उसे कोई दुख नहीं पहुंचाना चाहता, लेकिन तुम्हें अब छोड़ भी नहीं सकता. वह मेरी जिंदगी है तो तुम मेरी सांस हो. मायरा, अब मैं तुम्हें जीवनभर यों ही प्यार करना चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब तक पिया की जगह एक तरफ

है और तुम्हारी दूसरी तरफ. मैं दोनों को ही शिकायत का मौका नहीं देना चाहता,’’ मयंक ने मायरा को एक भरपूर किस करते हुए अपने आगोश में ले लिया.

मयंक ने पूरी कोशिश की थी कि पिया को मायरा के बारे में कुछ पता न चले.

वह मायरा के साथ अपनी सारी चैट साथ ही

साथ डिलीट कर देता था. मोबाइल में अपना फिंगर पासवर्ड लगा रखा था. पिया खुद भी मयंक का मोबाइल कभी चैक नहीं करती थी, पूरा विश्वास जो था उस पर, लेकिन उस दिन मयंक नहाने के लिए जैसे ही बाथरूम में गया मायरा के 2-3 व्हाट्सऐप मैसेज आ गए.

पिया की नजर मोबाइल पर पड़ी. मोबाइल पर 2-3 बार बीप की आवाज हुई. नोटीफिकेशन में माई डियर लिखा दिख गया.

पिया का माथा ठनक गया. अब उसे मयंक की हरकतों पर शक होना शुरू हो गया. मयंक का बिजनैस ट्रिप की बात कह कर जल्दीजल्दी दुबई जाना, मोबाइल चैट पढ़ते हुए मंदमंद मुसकान, उस पर जरूरत से ज्यादा प्यार लुटाना, बातवेबात उसे गिफ्ट दे कर खुश रखना.

अपनी बौडी फिटनैस के लिए जिम एक दिन भी मिस न करना, डाइट पर पूरापूरा ध्यान देना जिस के लिए वह कहतेकहते थक जाती थी, लेकिन वह लापरवाही करता था. पिया को एक के बाद एक सब बातें जुड़ती नजर आने लगीं.

मयंक की जिंदगी में आजकल क्या चल रहा है उस का पता लगाना उस के लिए मुश्किल नहीं था. मयंक का ऐग्जीक्यूटिव असिस्टैंट समीर को एक तरह से पिया ने ही जौब पर रखा था. वह उस की फ्रैंड सीमा का कजिन था. समीर पिया की बहुत इज्जत करता था और अपनी बड़ी बहन मानता था.

पिया ने जब समीर से मयंक के प्रेमप्रसंग के बारे में पूछा तो उस ने अपना नाम बीच में न आने की बात कह पिया को मायरा के बारे में सबकुछ बता दिया.

समीर उसे मायरा और मयंक के बीच के बारे में बताता जा रहा था और पिया को लग रहा था जैसे उस के सपनों का महल जिसे उस ने प्यार से मजबूत बना दिया था आज रेत की तरह ढह गया है.

कहां कमी छोड़ दी थी उस ने. सबकुछ तो मयंक के कहे अनुसार करती रही थी. उस ने कहा नौकरी छोड़ दो, उस ने छोड़ दी. अपने कैरियर के पीक पर थी वह लेकिन मयंक के प्यार के आगे सब फीका लगा. उस ने कहा कि पिया बच्चों की देखभाल तुम्हारी जिम्मेदारी है, मैं अपने काम में बिजी हूं, तो यह बात भी उस ने मयंक की चुपचाप मान ली थी.

बच्चों की हर जिम्मेदारी उस ने खुद पर ले ली थी. अड़ोसपड़ोस, नातेरिश्तेदार, घरबाहर की सब व्यवस्था उस ने संभाल ली थी. किस के लिए, मयंक के लिए न, क्योंकि मयंक ही उस की दुनिया था. सबकुछ उस से ही तो जुड़ा था और उस ने कितनी आसानी से मायरा को उस के हिस्से का प्यार दे दिया. यह भी नहीं सोचा कि उस पर क्या बीतेगी, जब उसे पता चलेगा.

पिया को ऐसा लग रहा था जैसे उस की नसों में गरम खून दौड़ रहा है. तनमन दहक रहा है. मन कर रहा था कि मयंक को सब के सामने शर्मसार कर दे.

पिया यह सब तू क्या सोच रही है’, अचानक पिया को अपने मन की आवाज सुनाई दी, ‘पिया, यह तो तु?ो मयंक के बारे में अचानक शक हो गया तो तू ने सच पता कर लिया. अगर उस दिन फोन नहीं देखती तो? सबकुछ वैसा ही चलता रहता जैसे पिछले कई बरसों से चलता आ रहा है.’

पिया की सोच जैसे तसवीर का दूसरा पहलू देखने लगी थी. आज समाज में मयंक का एक रुतबा है. बेटे की बिजनैस टाइकून की इमेज बनी हुई. बेटी स्वीटी अपनी ससुराल में सिरआंखों पर बैठाई जाती है, क्योंकि उस का मायका रुसूखदार है. खुद का सोसाइटी में हाई प्रोफोइल स्टेट्स रखती है. आज अगर वह मुंह खोलती है तो मयंक के इस अफेयर को ले कर मीडिया वाले मिर्चमसाला लगा कर जगजाहिर कर देंगे. उन के बिजनैस पर इस का बहुत फर्क पड़ेगा.

बरसों से कमाई गई शोहरत पर ऐसा धब्बा लगेगा जिस का खमियाजा अनुज को भुगतना पड़ेगा, बेटा जो है. अभी तो उस का पूरा भविष्य पड़ा है आगे अपनी शोहरत बटोरने के लिए. स्वीटी के लिए मयंक उस के आइडियल पापा हैं. समाज में कितना रुतबा है उन के खानदान का. ऊफ, सब मिट्टी में मिल जाएगा. सोचतेसोचते पिया का सिर चकराने लगा था.

‘‘पिया मैडम, जरा संभल कर. आप ठीक तो हैं न, आप यहां आराम से बैठिए,’’ समीर ने पिया को कुरसी पर बैठाते हुए कहा.

पिया को पानी का गिलास दिया तो वह एक सांस में पी गई. उस की चुप्पी सबकुछ वैसा ही चलते रहने देगी जैसे चलता आ रहा है और अपने साथ हो रही बेवफाई को सरेआम करती है तो सच बिखर जाएगा. दिल और दिमाग में टकराव चल रहा था.

अचानक पिया कुरसी से उठ खड़ी हुई. पर्स से मोबाइल निकाला और

मयंक को फोन मिलाया, ‘‘मयंक, कहां हो तुम.’’

‘‘डार्लिंग, मीटिंग के लिए बाहर आया था. क्यों क्या बात है?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘वह मैं तुम्हारे औफिस आई थी कि साथ लंच करते हैं.’’

‘‘ओह, यह बात है. नो प्रौब्लम, ऐसा करो तुम शंगरिला होटल पहुंचो, मैं सीधा तुम्हें वहां

15 मिनट में मिलता हूं. साथ लंच करते हैं वहां,’’ मयंक ?ाट से बोला.

‘‘ठीक है मैं पहुंचती हूं,’’ बोल कर पिया ने फोन काट दिया.

पिया जब होटल पहुंची तो मयंक उसे उस का इंतजार करता मिला.

पिया को लगा जैसे मयंक वही तो है जैसे पहले था. उस का खयाल रखने वाला. उसे इंतजार न करना पड़े इसलिए खुद पहले पहुंच जाना. मयंक के प्यार में कमी तो उसे कहीं दिख नहीं रही.

दोनों ने साथ लंच किया और मयंक ने उसे घर छोड़ा और औफिस चला गया, क्योंकि 4 बजे उस की क्लाइंट के साथ फिर मीटिंग थी.

घर आ कर पिया बालकनी में बैठ गई थी. उस ने निर्णय ले लिया. मयंक का सबकुछ बिखेर कर रख देगा. जो कुछ वह देख पा रही है शायद मयंक ने उस बारे में सोचा तक नहीं है. उस का सबकुछ तबाह हो जाएगा.

मयंक ने शायद सोचा ही नहीं कि मायरा के साथ उस की खुशी बस तभी तक है जब तक सब परदे के पीछे है. सच सामने आ गया तो सब खत्म हो जाएगा. न प्यार का यह नशा रहेगा, न परिवार में इज्जत, न समाज में मानप्रतिष्ठा.

‘उस की तो दोनों तरफ हार है. मयंक की तबाही से उसे क्या हासिल होगा. खुशी तो मिलने से रही. फिर यह ?ाठ ही क्यों नहीं अपना लिया जाए,’ पिया दिल को एक तरफ रख दिमाग से सोचने लगी, ‘मयंक उस से मायरा का सच छिपाने के लिए उस से बेइंतहा प्यार करने लगा है. प्यार तो कर रहा है न.

‘उस के प्यार के बिना वह नहीं रह सकती. नहीं जी पाएगी वह उस के बिना. मयंक इस भुलावे में रहे कि वह उस की सचाई जानती तो अच्छा ही है. सब अच्छी तरह तो चल रहा है.

‘पत्नी हूं मैं उस की, मेरा हक कोई और छीन नहीं सकता. पतिपत्नी के रिश्ते में सचाई होनी चाहिए. यह बात मानती है वह लेकिन अगर आज वह मयंक को उस के सच के साथ नंगा कर देगी तो क्या उन के बीच वह पहले जैसा प्यार रह पाएगा? नहीं, कई बार झूठ को ही अपनाना पड़ता है. दवा कड़वी होती है, लेकिन इलाज के लिए खानी ही पड़ती है.’

पिया ने अब निर्णय ले लिया और एक नई पहल शुरू करने के लिए वह कमरे के भीतर गई. लाइट औन की. पूरा कमरा लाइट से जगमगा उठा. अब अंधेरा नहीं था. मयंक के सामने जाहिर नहीं होने देगी कि वह सब जान चुकी है. शायद यही सब के लिए ठीक है. गलत तो नहीं है वह कहीं? Hindi Family Story

Story In Hindi: औरों से जुदा – निशा ने जब खुद को रवि को सौंपने का फैसला किया

Story In Hindi: अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था. Story In Hindi

Long Hindi Story: सौदा – आखिरी भाग

Long Hindi Story, लेखक – हरे राम मिश्र

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : विधवा दुलारी की बेटी रुपाली घर से क्या गई, वापस नहीं लौटी. दुलारी नेता मनोहर लाल के दरवाजे गुहार लगाने पहुंची. उन्होंने भरोसा दिलाया और कहा कि थाने में रिपोर्ट लिखवा दो. वहां मुंशी ने खर्चापानी मांगा और दुलारी की चांदी की अंगूठी रख ली. इस के बाद दुलारी ऐयाश किस्म के सरपंच से मिलने गई. अब पढि़ए आगे…

हालांकि, सरपंच से दुलारी की मुलाकात नहीं हुई और वह फिर से घर लौट आई. काफी शाम हो चुकी थी. उस ने पतीले में थोड़ा चावल डाला और नमकप्याज के साथ पका कर किसी तरह उसे हलक से नीचे उतारा. दालसब्जी कुछ नहीं थी.

दुलारी की रात किसी तरह कटी. पूरी रात वह जागती रही. लेकिन, बिटिया का अभी कोई सुराग नहीं मिला था.

दूसरे दिन अलसुबह ही दुलारी फिर से मनोहर लाल के घर पहुंच गई थी. इस बार वह अपने साथ गांव के एक लड़के को ले कर गई थी. हालांकि, बदनामी के डर से उस ने रास्ते में बिटिया के गायब होने के बारे में कोई चर्चा नहीं की, लेकिन गांव में यह बात रायते की तरह फैल चुकी थी, क्योंकि थाने से सरपंच को फोन पर मामले की जानकारी दी गई थी, ताकि लापता रूपा को खोजने में मदद मिल सके.

मनोहर लाल के यहां दुलारी की जाति के ही एक और आदमी, जो बगल के गांव का छुटभैया नेता था, से उस की मुलाकात हुई. वह मनोहर लाल से अपने गांव के वोट उन के लिए फिक्स करवाने के एवज में सौदा करने आया था और मछली बाजार के ग्राहक की तरह उन से ‘मोलतोल’ कर रहा था.

उस नेता के बारे में दुलारी अच्छे से जानती थी कि उस का धंधापानी क्या है और कैसे वह नकली दारू का सप्लायर है, क्योंकि उसी की दी हुई दारू पीने से उस के गांव में कुछ लोगों की मौत हुई थी.

‘‘क्या हुआ…’’ देखते ही मनोहर लाल ने पूछा, ‘‘मिली आप की बेटी…’’

‘‘नहीं मिली…’’ इतना कह कर दुलारी रोने लगी.

‘‘थाने गई थीं?’’ पूछने पर दुलारी ने हां में सिर हिलाया.

फिर मनोहर लाल ने अपने एक शागिर्द से थानेदार को फोन करवाया और दुलारी को बताया गया कि बेटी को पुलिस खोज रही है. मिलने पर सूचित करेगी. परेशान नहीं हो.

थकहार कर दुलारी फिर घर लौट आई. अब तक दोपहर का सूरज चढ़ आया था.

2 दिन बीत गए. रोतेरोते दुलारी के आंसू खत्म हो गए. उस ने इन दिनों ठीक से खानापीना भी नहीं किया था और भागदौड़ में उसे तेज बुखार अलग से हो गया.

तीसरे दिन, दोपहर का समय था. दुलारी घर के भीतर अपनी खटिया पर चिंतित बैठी थी. तभी गांव के चौकीदार लुल्लन ने आ कर दुलारी को बताया कि उस की बेटी पड़ोस के जिले के एक अस्पताल में भरती है. पुलिस बयान लेने वहां जा रही है. तुम भी अस्पताल पहुंचो. दारोगाजी ने बोला है.

चौकीदार ने आगे कहा कि तुम्हारी बेटी नशे की हालत में तहसील के बसस्टैंड पर लावारिस मिली थी, जिसे कुछ लोगों ने स्थानीय चौकी के सुपुर्द कर दिया था. पुलिस वालों ने उसे अस्पताल में भरती करवा दिया है. जाओ मिल लो.

दुलारी की आंखों में चमक आ गई. उस ने किसी तरह गांव के एक आदमी से कुछ पैसे उधार लिए और अपने साथ चलने की चिरौरी की. वह अस्पताल पहुंची, तो बेटी उसे अकेले एक बिस्तर पर पड़ी मिली, जिसे कुछ पुलिस वाले और डाक्टर घेरे हुए थे और कुछ लिखापढ़ी कर रहे थे. काफी देर बाद दुलारी को अपनी बेटी रूपा से बात करने का मौका मिल पाया.

दुलारी ने देखते ही अपनी बेटी को प्यार से भींच लिया, माथा चूमा, गले लगाया. उस का हीरा उसे मिल गया था. उस ने बेतहाशा उसे चूमा, दुलारा और प्यार किया. बेटी भी मां को देख कर रोने लगी. आखिर वही तो उस का सबकुछ थी.

रूपा ने देर शाम को अपनी मां से अपने साथ रेप और मारपीट की दर्दनाक घटना बताई, जिसे गांव के बगल के यादव टोला के लड़कों ने अंजाम दिया था. दोनों लड़के गांव की ताकतवर और बहुसंख्यक पिछड़ी बिरादरी से थे, लेकिन उन की जातियां अलगअलग थीं.

खैर, पुलिस ने रूपा का बयान दर्ज किया और नियमानुसार मैडिकल भी हुआ. एफआईआर भी दर्ज हुई.
दुलारी अगले 2 दिन रूपा के साथ अस्पताल और थानेअदालत के चक्कर लगाती रही.

चूंकि मनोहर लाल इस मामले में थोड़ा लगे हुए थे, इसलिए पुलिस ने जांच शुरू की. पहले आरोपी सुमेश के नाई समुदाय के लोग सामने आ गए और आरोपी के घर वाले रूपा को ही सैक्स की भूखी लड़की साबित करने लगे.

ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह आरोपी लड़का टोले के पूर्व पंचायत सदस्य का बेटा और वर्तमान विधायक ‘मुंशीजी’ का खास आदमी था.

दूसरा आरोपी युवक क्षत्रिय समुदाय का रितेश था, जिस के यहां यह सब करना ‘मर्दानगी’ की पहचान थी. इस समुदाय में अपराध पर बहस न हो कर कौन उस लड़की की मदद कर रहा है, उस पर चर्चा हो रही थी.

सब जल्द ही पता चल गया. नाम मनोहर लाल का आया. बात मनोहर लाल तक, जो कुछ समय पहले ही दिल्ली से एक बिजनैस डील कर के लौटे थे, इस धमकी के साथ पहुंचाई गई कि क्षत्रियों की इज्जत से एक ‘धंधे वाली’ की आड़ में मत खेलो. निबटना है तो निबट लो. देखते हैं कि अगला चुनाव कैसे जीतते हो.

मनोहर लाल ने इस मामले को ध्यान से सुना. फिर कुछ दिन वे चुप रहे. उन्हें लगा कि मामला खत्म हो जाएगा. लेकिन, इधर नाई समुदाय जहां लड़के के पक्ष में जुलूस निकाल रहा था, वहीं क्षत्रिय समुदाय मनोहर लाल पर मामले को खत्म करवाने वरना सबक सीखने के लिए तैयार रहने का अल्टीमेटम दे कर पंचायत कर रहा था.

इधर दुलारी की जाति और गांव के कई छुटभैया लोग उस के पास सम?ाते के लिए दबाव बनाने के लिए रोज उस के घर पहुंच रहे थे. पुलिस आरोपियों से पैसा खाने के लिए दबाव बना रही थी. हालांकि, थानेदार की भी आरोपियों को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह दबाव बना कर सिर्फ वसूली कर रहा था.

परेशान थी तो बस दुलारी. उस के गांव और जाति के ताकतवर लोग भी उस के साथ खड़े होने को तैयार नहीं थे. जो भी उस से मिलता, एक ही ‘डील’ करने की फिराक में रहता. जातबिरादरी के किसी नेता, कार्यकर्ता की कोई दिलचस्पी नहीं थी कि पीडि़त परिवार को ‘इंसाफ’ मिले.

इधर, आरोपी लड़कों के परिवार वालों के साथ यह मामला दिन ब दिन जातबिरादरी का सवाल बनता जा रहा था. इस मामले को सत्ताधारी विधायकों ने भी अपने हित में मोड़ना शुरू कर दिया. नया तर्क गढ़ा गया कि मनोहर लाल को वोट नहीं देने के कारण क्षत्रिय और नाई बिरादरी को बदनाम करने का खेल खेला जा रहा है. एक दलित लौंडिया कैसे रेप का आरोप लगा सकती है…? उस की हैसियत क्या है…?

इसी बात पर आरोपियों ने जात की 2 साझा पंचायत भी करवाईं, जिन में कई स्थानीय नेता शामिल हुए.

इस से पुलिस के साथसाथ मनोहर लाल भी बैकफुट पर आ गए. वे मामले में शामिल नहीं होने की कसमें खाने लगे, क्योंकि उन्हें इस से दलित बिरादरी के वोट खिसकने का कोई डर नहीं था. डर तो बाकी जातियों के बिदकने का था. इन सब से रूपा और दुलारी तो इतना ज्यादा घबरा गईं कि उन्हें अपने ही घर में अब बहुत डर लगने लगा.

इधर, खुलेआम माइक लगा कर मनोहर लाल को ललकारा जाने लगा. मनोहर लाल को बड़े चुनावी नुकसान का डर लग गया, क्योंकि विधानसभा की 2 ताकतवर जातियों की गोलबंदी से उन का चुनाव हारना तय था. उन्हें कुछ लोगों ने समझाया कि एक अदद ‘लौंडिया’ के लिए अपनी सियासी पारी को कमजोर मत करो. केस में समझौता करवाइए और मामला निबटा दीजिए.

रूपा की जाति और गांव के कई छुटभैए नेता भी यही चाहते थे, ताकि मनोहर लाल को दोनों जातियों का सपोर्ट मिल सके और वे चुनाव जीत सकें.

अब मनोहर लाल को लगा कि चुप्पी से काम नहीं चलेगा, क्योंकि मामला बिगड़ चुका है. वे अब अपने ‘सियासी’ नुकसान के डर से इस मामले को मैनेज कराने में लग गए. उन्होंने अपने शार्गिंदों से लड़की को सैक्स की भूखी होने का प्रचार भी करवाया. उस की मां का भी दामन दागदार बताने की पूरी कोशिश करवाई गई, ताकि यह लगे कि उन्हें इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है. इस तरह पूरा एक महीना निकल गया.

लेकिन, इन सब से बहुत दूर विधवा दुलारी को बस इसी बात का संतोष था कि उस की बेटी उस के पास आ गई है. एक गरीब को और क्या चाहिए. पुलिस, थाना, वकील, कचहरी उस के बस का नहीं है. अब उसे और किसी चीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि वह रोज थानेकचहरी और वकील के पास जाने का खर्च ही नहीं उठा सकती थी. उसे तकरीबन रोज थाने बुलाया जाता और दिनभर बयान लेने के नाम पर बैठाए रखा जाता.

इस मामले का विवेचक भी दलित जाति का था, जिस के लिए एकमात्र मकसद पैसा कमाना था, क्योंकि वह एक खेत खरीदने के लिए 30 लाख की रकम किसी भी कीमत पर जल्द से जल्द इकट्ठा करना चाहता था. इस केस में आरोपी, पुलिस, जाति के छोटे नेता, कार्यकर्ता सब अपने हिसाब से फायदा लेने के लिए खेल रहे थे. लेकिन, दुलारी और रूपा इन सब से बेपरवाह और अनजान थीं. वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को फिर से पटरी पर लाना चाहती थीं, जो रूपा के साथ हुई घटना के बाद उतर गई थी.

दुलारी को अपनी बेटी मिल गई थी, बाकी उसे किसी ‘इज्जत’ की कोई फिक्र नहीं थी. भूखे, नंगे और गरीब लोग इंसाफ के बारे में नहीं सोचते.

तकरीबन एक हफ्ता और बीता होगा. एक दिन सुबह अचानक दुलारी को मनोहर लाल के एक शागिर्द ने हवेली पर पहुंचने का संदेश दिया.

दुलारी हवेली पर गई भी. बेटी के भविष्य को ले कर लंबी भूमिका बनाने के बाद, जिस में उसे रूपा के बदनाम होने से ले कर, शादी, सुरक्षा का डर सबकुछ दिखाया गया, धमकी वाली भाषा में भी सम?ाया गया. बोला गया कि समझौता कर लो.

डरीसहमी दुलारी से कुछ कागजों पर अंगूठा लगवाया गया, जो बाद में अदालत में समझौते के प्रपत्र के बतौर पुलिस द्वारा जमा किया गया. हवेली से चलते वक्त उसे एक लिफाफा दिया गया, जिसे उस ने घर में खोल कर देखा. उस मे 500 के 10 नोट थे. उस के इंसाफ का ‘सौदा’ हो चुका था, जिस में, जाति के नेता, पुलिस, सरपंच सब शामिल थे.

लेकिन, इस सौदे में शामिल नहीं थी तो सिर्फ दुलारी की ‘इच्छा’, जिसे पैसे और ताकत के दम पर मनोहर लाल ने अपनी जाति का होने के बावजूद रौंदवा दिया था. हालांकि, इस के बाद भी मनोहर लाल इस बार फिर विधायक नहीं बन पाए, क्योंकि पिछड़ों ने दलितों को इसलिए वोट नहीं दिए, ताकि वे सियासीतौर पर मजबूत न हों. शायद एक विधवा की आह ने उन के सियासी कैरियर को भस्म कर दिया था. Long Hindi Story

Family Story In Hindi: समाज से हारी विधवा

Family Story In Hindi: ‘भारत माता की जय’, ‘शहीद अमर जिंदाबाद’… कुछ ऐसे ही देशभक्ति के नारों से आकाश गूंज रहा था और लोगों की जोश भरी आवाज से दीवारें तक थर्रा रही थीं, पर तिरंगे में लिपटा हुआ अमर का शरीर तो बेजान पड़ा हुआ था. दुश्मन की एक गोली ने उस के शरीर से प्राण खींच लिए थे.

अमर की बटालियन के साथी बताते हैं कि वह अपने मोरचे पर बहुत बहादुरी से लड़ा था और मरने से पहले उस ने पाकिस्तान के कई सैनिक मार गिराए थे.

पर वही वीर अमर अब बेजान था. आसपड़ोस और सगेसंबंधियों के रोनेधोने के बीच पूरे राजकीय सम्मान
के साथ उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सरकार के कई नेता भी अमर के घर आए और मीडिया के कैमरे पर आ कर दुश्मन देश से अमर की मौत का बदला लेने की बात कह कर चले गए.

अगले दिन सरकार ने अमर के कसबे के एक चौराहे का नाम बदल कर ‘शहीद अमर चौक’ रखने का फरमान जारी कर दिया.

इस बीच सरकार की तरफ से शहीद अमर के लिए 10 लाख रुपए का मुआवजा घोषित किया गया, तो अमर के मांबाप को अपने बेटे पर और भी नाज हो उठा.

पर इन सब के बीच अमर की 25 साल की विधवा निधि भी थी, जिसे न तो सरकारी अनुदान से कुछ लेनादेना था और न तो देशभक्ति के नारों से. वह तो भरी जवानी में ही अपना जीवनसाथी खो चुकी थी.

अमर ने न जाने कितने वादे किए थे निधि से. कितनी जगह दोनों को साथ घूमने जाना था, पर अफसोस कि अमर सिंह की मौत के बाद सबकुछ खत्म हो गया था.

रात में निधि जब बिस्तर पर लेटती, तो उसे अपने बगल में अमर के न होने का दुख सालता था. निधि के तनमन को एक साथी की जरूरत तो थी ही और अब उस के सामने पहाड़ सी जिंदगी भी पड़ी थी. भरी जवानी में विधवा हो जाने का इतना भारी दुख सहना भी उस के लिए मुश्किल था.

हालांकि, निधि मानसिक रूप से काफी मजबूत थी, फिर भी साथी के असमय चले जाने का दुख काफी गहरा होता है और इस दर्द से निकलने में निधि को पूरा एक साल लग गया था.

निधि भी जानती थी कि दुख को ओढ़ कर बैठने से दुख चार गुना बढ़ जाता है. दुख को कम करने के लिए उसे भूलना ही बेहतर होता है.

एक दिन निधि ने अपना मोबाइल उठाया, तो देखा कि उस की बैटरी सिर्फ एक फीसदी रह गई थी. उस ने अनमने ढंग से उसे चार्जिंग पर लगा दिया और बुदबुदा उठी, ‘‘इस मोबाइल की बैटरी की तरह मेरी जिंदगी भी क्यों खत्म नहीं हो जाती?’’

निधि की इस बुदबुदाहट में घोर पीड़ा थी, पर वह अब तक समझ चुकी थी कि उसे आगे की जिंदगी इसी पीड़ा के साथ काटनी होगी.

निधि ने गमले में लगे सूखे पौधों को पानी दिया. किचन की सिंक साफ की और घर की बाकी साफसफाई करने की शुरुआत कर दी.

निधि ने ध्यान दिया कि उस के सासससुर अब भी अपने बेटे के गम को पाले हुए हैं. बेटे की मौत का गम तो असहनीय तो होता है, पर जब बेटे की शहादत का फायदा अपने अहंकार और रुतबे को पोषित करने के लिए होने लगे, तब यह बात उचित नहीं लगती.

महल्ले के लोग अब भी निधि के सासससुर से अमर और उस की शहादत की बातें करते रहते और उस के सासससुर मुग्ध भाव से सुनते. शायद वे एक वीर बेटे के मांबाप होने पर गर्व महसूस करते थे, पर ऐसी बातों से निधि को सिर्फ दुख ही पहुंचता था.

निधि ने घर पर ध्यान दिया तो पाया कि बहुत सारा सामान खत्म हो चुका था. अब तो उसे खुद ही बाजार जाना होगा.

आईने के सामने खड़े हो कर निधि ने अपने चेहरे को देखा. उस की आंखें सूजी हुई थीं और चेहरा भी उतरा हुआ लग रहा था.

निधि ने बेपरवाही से बालों का जूड़ा बनाया और अपना मोबाइल चार्जिंग पौइंट से अलग किया. मोबाइल 82 फीसदी चार्ज हो चुका था.

अपने हाथों में मोबाइल की गरमी को महसूस करते हुए निधि ने थैला उठाया और अपनी सास से बाजार जाने की बात कह कर बाहर निकलने लगी.

निधि ने महसूस किया कि उस की सास नहीं चाहती हैं कि वह बाजार खुद जाए और बाहर लोगों से बातचीत करे. और तो और एक बार जब निधि ने गुलाबी रंग का सूट पहन लिया था, तब उस की सास ने कितना डांटा था उसे और अहसास कराया था कि विधवा को सिर्फ सफेद कपड़े ही पहनने चाहिए.

निधि ने अपने मोबाइल पर आए हुए ह्वाट्सएप मैसेज चैक करने शुरू किए.

वीरेश के कई मैसेज पड़े हुए थे और उस की कई काल्स भी आई थीं, जिन का जवाब वह नहीं दे पाई थी.

घर के माहौल में निधि भला वीरेश से बात भी क्या करती? वैसे भी अपने और वीरेश के बीच के प्यार को निधि ने दुनियाभर से छिपा रखा था. लोग क्या कहेंगे? समाज क्या सोचेगा? एक शादीशुदा औरत का एक गैरमर्द के साथ प्रेम संबंध समाज के लोगों को बिलकुल मंजूर नहीं और फिर निधि सवर्ण परिवार थी, जबकि वीरेश दलित जाति से था. पर प्यार तो प्यार है, वह न जाति देखता है और न ही शादी का बंधन.

अभी निधि अजीब सी उलझन में ही थी कि उस का मोबाइल बज उठा. यह वीरेश का ही फोन था. उस ने फोन को रिसीव करने की बजाय हड़बड़ाहट में काट दिया.

थोड़ी देर बाद फिर से वीरेश का फोन आया. इस बार निधि ने फोन रिसीव कर लिया, ‘‘देखो वीरेश, मैं गहरे दुख से उबरने की कोशिश कर रही हूं. तुम से शादी से पहले पहले प्यार था, पर अब मैं एक विधवा हूं और तुम से कोई मेलजोल ठीक नहीं होगा…’’

निधि एक सांस में बहुतकुछ कह देना चाहती थी, पर वीरेश ने उसे रोकते हुए कहा, ‘तो क्या तुम्हारे विधवा हो जाने से मेरे लिए प्यार खत्म हो गया है?’

वीरेश के इस सवाल का निधि को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था. वह खामोश थी. सच तो यह था कि अमर के जाने के बाद वह वीरेश के कंधे पर सिर रख कर रो लेना चाहती थी, उस से लिपट कर अपना दुख हलका कर लेना चाहती थी, पर समाज उसे इस की इजाजत नहीं देता.

कुछ सोचते हुए एक बार फिर से निधि ने फोन काट दिया था.

निधि की शादी उस की मरजी के बिना ही तय कर दी गई थी और जब निधि ने दबे शब्दों में मां से बताया था कि वह एक लड़के वीरेश से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है, तो मां ने लड़के के बारे में, उस के कामधंधे, उस की जाति के बारे में पूछा और यह जान कर वे बुरी तरह बिफर गईं कि लड़का एक दलित जाति का है.

मां ने आंखें तरेर कर निधि को फटकार लगाई थी और उसे चेताया था कि वह चुपचाप अपने प्यार का गला घोंट दे. उस के पिता अपनी ऊंची जाति के अहंकार के आगे किसी दलित लड़के को पसंद नहीं करेंगे.

निधि अपने मां के अनकहे शब्दों को भी अच्छी तरह समझ गई थी और उस ने अपने अरमानों का गला घोंटते हुए शादी के लिए हां कह दिया था.

निधि ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने होने वाले पति अमर सिंह से कोई धोखा नहीं करेगी, इसलिए अपने शादी से पहले के प्रेम संबंध और एक दलित प्रेमी के बारे में सबकुछ बता दिया था.

अमर ने सबकुछ बहुत शांति से सुन लिया था. उस के चेहरे का रंग भी फक्क पड़ चुका था, पर उस ने अपनेआप को संभाला और एक लंबी सांस छोड़ते हुए निधि की तारीफ की, ‘‘अच्छा किया जो तुम ने मुझे यह राज बताया, इसीलिए तो मैं यह बात जान सका. कहीं तुम यह बात मुझे न बताती तो भला मैं कैसे जानता?’’

इस के बाद अमर ने निधि से कहा कि उसे निधि के पुराने समय से कोई लेनादेना नहीं है. अब निधि और अमर पतिपत्नी हैं, वह इसी बात का ध्यान रखे और कोई गलत कदम न उठाए. तभी से निधि ने वीरेश से किनारा कर लिया था.

निधि ने एक मैसेज लिख कर वीरेश से माफी मांग ली और उसे हर जगह से ब्लौक भी कर दिया था. पर पहला प्यार किसी को भूले नहीं भूलता. निधि भी वीरेश को भूल नहीं पाई. उस के मन में वीरेश के लिए कोई कोना तो था ही और इस कोने में उस दिन एक मधुर संगीत बज उठा जब एक नए नंबर से फोन आया, जिसे रिसीव करते ही निधि जान गई कि वीरेश ने फोन किया है.

‘‘तुम्हें तो मैं ने ब्लौक कर दिया था वीरेश…’’

‘निधि, मैं तुम से यह कहना चाहता हूं कि एक प्रेमी की तरह नहीं, पर हम एक अच्छे दोस्त की तरह तो रह ही सकते हैं न.’

वीरेश की इस बात को निधि मना नहीं कर सकी और तब से एक बार फिर वीरेश और निधि के बीच बातचीत शुरू हो गई थी.

अमर की मौत के बाद वीरेश का कोई फोन नहीं आया था. उस दिन सुबह जब निधि ने मोबाइल उठाया तो उस ने देखा कि मोबाइल पर वीरेश का एक लंबा सा मैसेज आया हुआ था :

‘अमर के जाने का मुझे भी दुख है और मैं इसे अपने लिए कोई मौका नहीं समझ रहा, पर यह तो मेरे प्रेम की सूखी डाल पर दोबारा हरियाली आने जैसी बात है. तुम ने अपने घर वालों की बात रख कर ब्याह कर लिया था, पर अब क्या तुम्हारे सासससुर और मांबाप तुम्हारी दोबारा शादी करेंगे?

‘अगर नहीं तो क्यों और अगर हां तो फिर मेरे साथ क्यों नहीं? क्योंकि मैं दलित हूं, पर किसी से कम तो नहीं. अच्छा दिखता हूं, अच्छी नौकरी है मेरे पास. तुम को खुश रख सकता हूं.

‘और अगर तुम अपने सासससुर को नहीं छोड़ना चाहती तो मैं उन का बेटा बन कर उन के साथ रहने और उन्हें अपने साथ रखने तक को तैयार हूं. अब बताओ, हमारे प्रेम संबंध को शादी के बंधन में बदलने के लिए तैयार हो? तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा.’

यह पढ़ कर निधि की आंखें छलछला उठी थीं. उसे इस मैसेज का कुछ भी जवाब समझ नहीं आया. वह उठी और चाय बना कर बालकनी में चली लगी.

आज निधि को कुछ सामान लेने बाजार जाना था. शोरूम में निधि ने शैंपू पर नजर डाली, तो वीरेश की यादें ताजा हो गईं.

निधि जब भी अपने बालों को शैंपू करती थी, तो वीरेश उसे कहता था कि बालों को ऐसे ही खुला छोड़ दो. ऐसा कर के तुम बहुत खूबसूरत दिखती हो.

निधि घर का सामान खरीद कर घर लौट आई. उस के मांबाप आए हुए थे.

मां को देख कर निधि उन से लिपट गई थी. होंठों पर मुसकराहट थी, पर आंखों में नमी आने से नहीं रोक सकी.

पापा से गले लगते ही आंखों से मोती ढुलक ही पड़े.

निधि की दोबारा शादी किए जाने पर विचार हो रहा था.

‘‘मां, वीरेश का फोन आया था. वह मुझ से अब भी शादी करना चाहता है,’’ निधि ने अकेले में अपनी मां से सकुचाते हुए कहा.

मां ने गुस्से से निधि को घूरा और कोसने लगीं कि भले ही विधवा हो गई है, पर अब भी उस दलित लड़के के फेर में पड़ी हुई है. उस की शादी एक दलित से कतई नहीं हो सकती.

‘‘हमारा बेटा चला गया है और अब तो बहू को मिलने वाली पैंशन का सहारा रहेगा. हमारा बुढ़ापा तो बेटे की पैंशन पर ही कटेगा. और देखा जाए तो उस की पैंशन पर हमारा हक भी तो है.

आखिर बेटे को पढ़ानेलिखाने और अफसर बनाने में हम ने भी तो मोटा इंवैस्ट किया था और हम निधि की दोबारा शादी नहीं करेंगे. वह हमारे खानदान की शान है और हमारी शान हमारे पास ही रहेगी,’’ निधि के मांबाप को ससुर का टका सा जवाब मिल गया था.

उस रात निधि ठीक ढंग से सो नहीं पाई थी. यह बात ठीक है कि उस के पति ने सेना में अपना फर्ज निभाते हुए जान दी थी, जिस बात पर उसे गर्व है, पर अपने पिछले प्रेम के बारे में उस ने अमर से कुछ छिपाया भी तो नहीं था.

और आज जब अमर दुनिया में नहीं है, तो उसे वीरेश के साथ जिंदगी बिताने में कोई बुराई नजर नहीं आती, पर उस के मांबाप अपनी जाति के दंभ में अपनी बेटी के अरमानों को ताक पर रख रहे हैं और सासससुर उसे मिलने वाली पैंशन के लालच में उस का दूसरा ब्याह नहीं करना चाहते.

अगले दिन निधि ने वीरेश को फोन मिलाया और कहा कि वह उस से मिलना चाहती है. वे दोनों एक कैफे में सुबह के 11 बजे मिले. वीरेश ने मीठी कौफी ली, जबकि निधि ने हमेशा की तरह बिना चीनी वाली कौफी ही ली.

निधि ने पूरी बात बताई तो वीरेश ने कहा, ‘‘नीची जाति के उलाहने के नाम पर मैं ने बहुतकुछ झेला है. मेरी हर कामयाबी को इसीलिए कमतर आंका गया, क्योंकि मैं छोटी जाति का हूं. पर क्या केवल जाति से हमारी अचीवमैंट छोटी या बड़ी हो जाती है?’’ वीरेश की आवाज में गुस्सा था.

वीरेश ने आगे कहा, ‘‘आज जब मेरी जिंदगी में प्यार दोबारा दस्तक दे रहा है, तो यह समाज जाति के नाम पर फिर से मुझे दुखी कर रहा है.’’

‘‘और समाज मुझे शहीद की विधवा कह कर महिमामंडित तो कर रहा है, पर साथ ही यह भी चाहता है कि मैं इसी दर्द के सहारे झूठी मुसकराहट चिपकाए फिरूं और अपनी पूरी जिंदगी अकेले ही काट दूं,’’ निधि बोल पड़ी.

वे दोनों बारबार एकदूसरे को देख रहे थे. उन की समस्या का समाधान तो यह हो सकता था कि निधि सबकुछ छोड़ कर वीरेश के पास चली आए और अपने प्रेम को शादी में बदल ले, पर वह अपने सासससुर और समाज के डर से ऐसा नहीं कर पा रही थी. कहीं न कहीं जाति के दंभ ने 2 प्रेमियों को एक बार
फिर मिलने से पहले ही अलग कर दिया था.

वीरेश ने अपने कौफी खत्म कर दी थी और निधि ने आधी कप कौफी बिना पिए ही छोड़ दी थी. बिल वीरेश ने नहीं, बल्कि निधि ने चुकता किया था और बाहर निकल कर दोनों ने भारी मन से फीकी मुसकराहट के साथ एकदूसरे को अलविदा कहा और अपनेअपने रास्ते पर चल दिए. Family Story In Hindi

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