2 भाइयों की करतूत : भाग 2

श्यामबाबू ने फोटो गौर से देखा फिर बोला, ‘‘सर, यह फोटो मेरी भांजी नीलम की है. इस की यह हालत किस ने की?’’

‘‘नीलम को उस के पति विजय प्रताप ने अपने भाई अजय की मदद से मार डाला है. इस समय दोनों भाई हवालात में हैं. 2 दिन पहले नीलम की लाश ईशन नदी पुल के नीचे मिली थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

नीलम की हत्या की बात सुनते ही श्यामबाबू फफक पड़ा. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने पहले ही नीलम को मना किया था कि विजय ऊंची जाति का है. वह उसे जरूर धोखा देगा. लेकिन प्रेम दीवानी नीलम नहीं मानी और 4 महीने पहले घर से भाग कर उस से शादी कर ली. आखिर उस ने नीलम को मार ही डाला.’’

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने बिलख रहे श्यामबाबू को धीरज बंधाया और उसे वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत विजय प्रताप व अजयप्रताप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने कातिलों के पकड़े जाने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल को दे दी.

ये भी पढ़ें- हत्या आत्महत्या में उलझी मौत की गुत्थी

जानकारी पाते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रैसवार्ता कर के कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

रमेश कुमार अपने परिवार के साथ  लखनऊ के चारबाग में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा एकलौती बेटी थी नीलम. रमेश रोडवेज में सफाईकर्मी था और रोडवेज कालोनी में रहता था. रमेश और उस की पत्नी सीता नीलम को जान से बढ़ कर चाहते थे.

रमेश शराब बहुत पीता था. शराब ने उस के शरीर को खोखला कर दिया था. ज्यादा शराब पीने के कारण वह बीमार पड़ गया और उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद पत्नी सीता टूट गई, जिस से वह भी बीमार रहने लगी. इलाज के बावजूद उसे भी बचाया नहीं जा सका. उस समय नीलम महज 8 साल की थी.

नीलम के मामा श्यामबाबू कानपुर शहर के फीलखाना थाना क्षेत्र के रोटी गोदाम मोहल्ले में रहते थे. बहनबहनोई की मौत के बाद श्यामबाबू अपनी भांजी को कानपुर ले आए और उस का पालनपोषण करने लगे. चूंकि नीलम के सिर से मांबाप का साया छिन गया था, इसलिए श्यामबाबू व उस की पत्नी मीना, नीलम का भरपूर खयाल रखते थे, उस की हर जिद पूरी करते थे. नीलम धीरेधीरे मांबाप की यादें बिसराती गई.

वक्त बीतता रहा. वक्त के साथ नीलम की उम्र भी बढ़ती गई. नीलम अब जवान हो गई थी. 19 वर्षीय नीलम गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श, इकहरे बदन और लंबे कद की खूबसूरत लड़की थी. वह साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी, लेकिन उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था.

नीलम को अपनी सुंदरता का अंदाजा था, लेकिन वह अपनी सुंदरता पर इतराने के बजाए सभी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से सभी उस से बातें करना पसंद करते थे.

नीलम के घर के पास एक प्लास्टिक फैक्ट्री थी. इस फैक्ट्री में विजय प्रताप नाम का युवक काम करता था. वह मूलरूप से कन्नौज जिले के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव पैथाना का रहने वाला था. उस के पिता हरिनारायण यादव किसान थे.

3 भाईबहनों में विजय प्रताप उर्फ शोभित सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई अजय प्रताप उर्फ सुमित पढ़ाई के साथसाथ खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. विजय प्रताप कानपुर के रावतपुर में किराए के मकान में रहता था और रोटी गोदाम स्थित फैक्ट्री में काम करता था.

फैक्ट्री आतेजाते एक रोज विजय प्रताप की निगाहें खूबसूरत नीलम पर पड़ीं तो वह उसे अपलक देखता रह गया. पहली ही नजर में नीलम उस के दिलोदिमाग में छा गई. इस के बाद तो जब भी विजय प्रताप फैक्ट्री आता, उस की निगाहें नीलम को ही ढूंढतीं.

नीलम दिख जाती तो उस के दिल को सकून मिलता, न दिखती तो मन उदास हो जाता था. नीलम के आकर्षण ने विजय प्रताप के दिन का चैन छीन लिया था, रातों की नींद हराम कर दी थी.

तथाकथित प्यार में छली गई नीलम

ऐसा नहीं था कि नीलम विजय की प्यार भरी नजरों से वाकिफ नहीं थी. जब वह उसे अपलक निहारता तो नीलम भी सिहर उठती थी. उसे उस का इस तरह निहारना मन में गुदगुदी पैदा करता था. विजय प्रताप भी आकर्षक युवक था. वह ठाठबाट से रहता था. धीरेधीरे नीलम भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. लेकिन अपनी बात कहने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पा रहा था.

जब से विजय प्रताप ने नीलम को देखा था, उस का मन बहुत बेचैन रहने लगा था. उस के दिलोदिमाग पर नीलम ही छाई रहती थी. धीरेधीरे नीलम के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह नीलम से बात कर के यह जानना चाहता था कि नीलम भी उस से प्यार करती है या नहीं. क्योंकि नीलम की ओर से अभी तक उसे कोई प्रतिभाव नहीं मिला था.

ये भी पढ़ें- खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी

एक दिन लंच के दौरान विजय प्रताप फैक्ट्री के बाहर निकला तो उसे नीलम सब्जीमंडी बाजार की ओर जाते दिख गई. वह तेज कदमों से उस के सामने पहुंचा और साहस जुटा कर उस से पूछ लिया, ‘‘मैडम, आप अकसर फैक्ट्री के आसपास नजर आती हैं. पड़ोस में ही रहती हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं पड़ोस में ही अपने मामा श्यामबाबू के साथ रहती हूं.’’ नीलम ने विजय प्रताप की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अब शायद आप मेरा नाम पूछोगे, इसलिए खुद ही बता देती हूं कि नीलम नाम है मेरा.’’

‘‘मेरा नाम विजय प्रताप है. आप के घर के पास जो फैक्ट्री है, उसी में काम करता हूं. रावतपुर में किराए के मकान में रहता हूं. वैसे मैं मूलरूप से कन्नौज के पैथाना का हूं. मेरे पिता किसान हैं. छोटा भाई अजय प्रताप पढ़ रहा है. मुझे खेती के कामों में रुचि नहीं थी, सो कानपुर आ कर नौकरी करने लगा.’’

इस तरह हलकीफुलकी बातों के बीच विजय और नीलम के बीच परिचय हुआ जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में विजय प्रताप नीलम के मोबाइल पर उस से बातें करने लगा. नीलम को भी विजय का स्वभाव अच्छा लगता था, इसलिए वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. इस का परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.

प्यार का नशा कुछ ऐसा होता है जो किसी पर एक बार चढ़ जाए तो आसानी से नहीं उतरता. नीलम और विजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब वे दोनों साथ घूमने निकलने लगे. रेस्टोरेंट में बैठ कर साथसाथ चाय पीते और पार्कों में बैठ कर बतियाते. उन का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा.

एक दिन मोतीझील की मखमली घास पर बैठे दोनों बतिया रहे थे, तभी अचानक विजय नीलम का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

नीलम ने उस पर चाहत भरी नजर डाली और बोली, ‘‘विजय, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं और तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है.’’

‘‘कैसा डर?’’ विजय ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि हमारी और तुम्हारी जाति अलग हैं. तुम्हारे घर वाले क्या हम दोनों के रिश्ते को स्वीकार करेंगे?’’

विजय प्रताप नीलम के इस सवाल पर कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘नीलम, आसानी से तो घरपरिवार के लोग हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जब हम उन पर दबाव डालेंगे तो मान जाएंगे. फिर भी न माने तो बगावत पर उतर जाऊंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें मानसम्मान दिला कर ही रहूंगा.’’

लेकिन इस के पहले कि वे दोनों अपने मकसद में सफल हो पाते, नीलम के मामा श्यामबाबू को पता चल गया कि उस की भांजी पड़ोस की फैक्ट्री में काम करने वाले किसी युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. श्यामबाबू नहीं चाहता था कि उस की भांजी किसी के साथ घूमेफिरे, जिस से उस की बदनामी हो.

ये भी पढ़ें- मंदिर में बाहुबल : भाग 1

मामा का समझाया नहीं समझी नीलम

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

रासलीला बहू की

रासलीला बहू की : भाग 1

रात के 10 बज रहे थे. काली चौड़ी सड़कें स्ट्रीट लाइट की दूधिया रोशनी में नहाई हुई थीं. सड़क पर इक्कादुक्का वाहनों का जानाआना जारी था. खाली पड़ी सड़क पर सफेद रंग की एक वैगनआर कार सामान्य रफ्तार से दौड़ रही थी. कार की ड्राइविंग सीट पर 35 वर्षीय कार्तिक केसरी बैठा था.

उन की बगल वाली सीट पर पत्नी प्रीति बैठी थी. पतिपत्नी दोनों बेहद खुश थे. ये लोग झारखंड की राजधानी रांची से दुर्गा पूजा का सामान खरीद कर घर लौट रहे थे. उन का घर खूंटी जिले के पिठोरिया थाना क्षेत्र के विक्टोरिया में था.

जैसे ही कार्तिक की कार खूंटी जिले के बाड़ू चौक के पास पहुंची, एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक उस की कार को ओवरटेक करते हुए सामने आ गए. उन्होंने अपनी बाइक तिरछी कर के कार के आगे खड़ी कर दी.

ये भी पढ़ें- दरवाजे के पार

बाइक सामने आने से कार्तिक ने अचानक ब्रेक लगा कर कार को रोका. उन की कार बाइक से टकरातेटकराते बची. बाइक से करीब 10 मीटर दूर सफेद रंग की एक स्कौर्पियो कार खड़ी थी.

कार्तिक कुछ समझ पाता, तब तक दोनों बाइक सवार उस के करीब पहुंच गए और गालियां देते हुए उसे कार से बाहर निकलने को कहने लगे. इतने में स्कौर्पियो से भी 2 युवक बाहर निकले. उन में से एक के हाथ में करीब 3 फीट लंबा और मोटा लोहे का रौड था.

कार्तिक समझ गया कि उन की नीयत ठीक नहीं है. पतिपत्नी बुरी तरह से डर गए थे. दोनों कातर निगाहों से एकदूसरे को देखने लगे. कार्तिक समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें?

चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा था. दूरदूर तक कोई नहीं दिख रहा था, जिसे मदद के लिए पुकारा जाता. जबकि वे चारों बारबार उसे कार से बाहर निकलने के लिए गालियां दिए जा रहे थे. कार्तिक से जब नहीं रहा गया तो वह कार का दरवाजा खोल कर बाहर आ गया.

जैसे ही वह कार से बाहर निकला, वे चारों हिंसक पशु की तरह उस पर टूट पड़े, उस पर लात और घूंसों की बारिश कर दी. इसी बीच लोहे की रौड वाले युवक ने कार्तिक के सिर के पीछे से जोरदार वार किया.

उस का वार इतना जोरदार था कि एक ही वार में कार्तिक का सिर फट गया. उस के मुंह से दर्दनाक चीख निकली और वह कटे वृक्ष की तरह हवा में लहराता हुआ जमीन पर आ गिरा. जहां वह गिरा, उस के चारों ओर खून फैलने लगा. चारों युवक जब पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि वह मर चुका है तो वे वहां से चले गए.

प्रीति देखती रही पति को पिटते हुए

डरीसहमी प्रीति आंखों के सामने पति पर हुए हमले को देखती रही. हमलावरों के जाने के बाद वह रोती हुई कार से बाहर निकली. पति को हिलाडुला कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं थी, वह मर चुका था. प्रीति जोरजोर से रोने लगी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि संकट की इस घड़ी में मदद के लिए किसे पुकारे.

रोतेरोते उसे अपनी बहन का बेटा शंकर याद आया. उस ने फोन कर के पूरी बात शंकर को बता दी. मौसी की बात सुन कर शंकर बुरी तरह घबरा गया. उस ने मौसी की हिम्मत बढ़ाई और कहा कि घबराएं नहीं, वह अभी पहुंच रहा है.

शंकर ने फोन काट दिया और घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. इस बीच प्रीति ने अपने ससुर जनार्दन केसरी और चचेरे देवर रंजीत को भी फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही कार्तिक के घर वाले वहां पहुंच गए.

शंकर ने समझदारी दिखाते हुए सब से पहले पतले, रंगीन गमछे से कार्तिक का सिर बांधा, जहां से अभी भी खून बह रहा था. फिर वहां आए लोगों ने आननफानन में कार्तिक को कार में डाला और मेडिका हास्पिटल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. उस समय रात के 12 बज रहे थे और तारीख थी 28 सितंबर, 2019.

वह इलाका कांके थाने में आता था. जैसे ही कार्तिक केसरी की हत्या की सूचना कांके थाने को मिली, थानेदार विनय कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ मेडिका हास्पिटल पहुंच गए. हास्पिटल में भारी भीड़ एकत्र थी.

मृतक कार्तिक केसरी कोई सामान्य आदमी नहीं था, वह पिठोरिया का राशन डीलर और सामाजिक कार्यकर्ता था. दूरदूर तक के लोग उस के नाम से वाकिफ थे. उस के जानने वालों को जैसे ही उस की हत्या की सूचना मिली, वे मेडिका हास्पिटल पहुंच गए.

एसओ विनय सिंह भांप गए थे कि अगर अतिरिक्त पुलिस फोर्स नहीं बुलाई गई तो वहां बड़ा हंगामा हो सकता है, इसलिए उन्होंने उसी समय एसएसपी अनीश गुप्ता, एसपी अमित रेणू और डीएसपी-1 नीरज कुमार को वस्तुस्थिति से अवगत करा कर मौके पर पुलिस फोर्स भेजने का आग्रह किया.

एसएसपी अनीश गुप्त ने स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए पिठोरिया थाने के थानेदार विनोद राम को मय फोर्स के अस्पताल भेज दिया. दोनों थानों की पुलिस ने मेडिका अस्पताल पहुंच कर स्थिति को काबू में कर लिया था.

कुछ देर बाद एसपी अमित रेणू और डीएसपी-1 नीरज कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अधिकारियों से कार्तिक के घर वाले एक ही मांग कर रहे थे कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए, अन्यथा यहां जमा भीड़ को हम नहीं रोक पाएंगे. फिर इस का जिम्मेदार खुद प्रशासन होगा. अमित रेणू ने पीडि़तों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि कानून की मदद करें. हत्यारे जल्द ही गिरफ्तार कर लिए जाएंगे. कानून को अपने तरीके से काम करने दें.

उस वक्त तो पीडि़त के घरवाले कुछ नहीं बोले, एसपी साहब की बात सुन कर खामोश रह गए और वहां एकत्र लोगों को भी समझा दिया कि कानून को अपना काम करने दें.

ये भी पढ़ें- एक औरत : आतिश के परिवार का खात्मा

पुलिस ने कार्तिक की लाश को कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. एसपी अमित रेणू ने कार्तिक के चचेरे भाई रंजीत से मृतक की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि गांव में उस के जैसा हंसमुख और मिलनसार कोई नहीं था. दुश्मनी का तो कोई सवाल ही नहीं था.

फिर उन्होंने घटना की एकमात्र चश्मदीद मृतक की पत्नी प्रीति से पूछताछ की. प्रीति ने रोतेरोते पुलिस को बताया कि कार्तिक को 4-5 लोगों ने मिल कर लाठी, डंडे और रौड से मारमार कर जख्मी कर दिया था. इस के बाद वे 2 बाइकों से पिठोरिया चौक की ओर भाग निकले थे. दूर होने की वजह से वह उन का चेहरा ठीक से नहीं देख पाई थी.

पूछताछ करने के बाद एसपी अमित रेणू वापस लौट गए. उधर थानाप्रभारी (कांके) विनय कुमार सिंह और एसओ (पिठोरिया) विनोद राम कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मृतक के घर वालों को ले कर घटनास्थल पहुंचे.

घटनास्थल पर काफी दूरी तक खून फैल कर सूख चुका था. साक्ष्य के लिए पुलिस ने खून सनी मिट्टी का नमूना ले कर रख लिया. इस के अलावा वहां पुलिस को कोई और साक्ष्य नहीं मिला. कागजी खानापूर्ति करतेकरते पुलिस को रात के करीब 2 बज गए थे. उसी रात मृतक कार्तिक के पिता जनार्दन केसरी की तहरीर पर पुलिस ने 5 अज्ञात हत्यारों के खिलाफ धारा 302, 201 भादंसं के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

पुलिस पर दबाव था हत्यारों को गिरफ्तार करने का

अगली सुबह महावीर मंडल दल के जिला अध्यक्ष कृष्णा नायक और जन वितरण प्रणाली संघ के अध्यक्ष अनिल केसरी ने अपने समर्थकों के साथ पिठोरिया चौक को जाम कर दिया और हत्यारों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करने लगे.

चौक जाम की सूचना मिलते ही एसपी अमित रेणू वहां पहुंच गए. उन्होंने आंदोलनकारियों से बात की और फिर से भरोसा दिलाया कि हत्यारे चाहे कितने ही ताकतवर क्यों न हों, कानून से बच नहीं सकते. उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा. एसपी के भरोसा दिलाने के बाद आंदोलनकारियों ने धरना समाप्त किया.

30 सितंबर को कार्तिक केसरी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक कौपी थानाप्रभारी विनय कुमार सिंह के पास थी. उन्होंने रिपोर्ट के एकएक बिंदु को गौर से पढ़ा. रिपोर्ट में मौत का कारण सिर में आई गहरी चोट और अत्यधिक रक्तस्राव बताया गया था. कार्तिक केसरी की हत्या को 3 दिन बीत चुके थे. 3 दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई थी. एसएसपी अनीश गुप्ता ने घटना के खुलासे के लिए डीएसपी-1 नीरज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की.

इस टीम में एसओ (कांके) विनय कुमार सिंह और उन के तेजतर्रार, भरोसेमंद पुलिसकर्मी शामिल थे. टीम गठित करने के बाद पुलिस ने नए सिरे से घटना की बारीकी से जांच की.

ये भी पढ़ें- छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

रासलीला बहू की : भाग 3

ऐसा नहीं था कि प्रीति और अंकित के प्यार की बात उन के घर वालों को पता नहीं थी. उन के घर वालों को दोनों के प्रेम संबंध के बारे में सब पता था. इसीलिए प्रीति के घर वाले बेटी की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे ताकि आवारा अंकित से बेटी का पीछा छूट जाए.

प्रीति के घरवालों ने अंकित से पीछा छुड़ाने के लिए सन 2011 में उस की शादी पिठोरिया के रहने वाले जनार्दन केसरी के एकलौते बेटे कार्तिक केसरी के साथ कर दी. प्रीति के घर वाले प्रार्थना करते रहे कि बेटी की गृहस्थी बस जाए, उस पर अंकित का बुरा साया न पड़े.

सालों तक प्रीति और अंकित का प्यार राज बना रहा. पति के काम पर जाने के बाद प्रीति अपने आशिक अंकित से फोन पर घंटों बातें करती रहती थी.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

एक बार अंकित प्रेमिका की ससुराल आया तो उस ने अपने सासससुर और पति से उस का परिचय दूर के रिश्ते के भाई के रूप में कराया. इस के बाद अंकित का वहां आनाजाना शुरू हो गया. जिस दिन पति किसी काम से शहर के बाहर गया होता, प्रीति सीधेसादे सासससुर की आंखों में धूल झोंक कर अंकित को फोन कर के बुला लेती और दिन भर उस की बांहों में झूलती.

अंकित के बारबार आने से ससुर जनार्दन को अंकित पर शक हो गया कि वह बारबार क्यों आता है? इस बात को ले कर एक दिन कार्तिक पत्नी से पूछ बैठा कि अंकित बारबार क्यों आता है? मुझे उस के लक्षण कुछ ठीक नहीं लगते. तुम उसे यहां आने से मना कर दो.

प्रीति समझ गई थी पति को उस पर शक हो गया है. उस ने यह बात फोन पर अंकित को बता दी कि कार्तिक को उस पर शक हो गया है. जब तक मैं न कहूं, तब तक यहां मत आना. प्रीति की बात सुन कर अंकित थोड़ा मायूस जरूर हुआ, पर उस ने हिम्मत नहीं हारी.

अंकित भी एक रईस परिवार से था. उस के घर में गाड़ी, नौकर और सुखसुविधा के सभी महंगे सामान थे. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं थी. वह दिन भर आवारा दोस्तों के साथ आवारागर्दी करता था. उन पर पानी की तरह पैसे लुटाता था. उस के खास दोस्तों में गांव के विशाल पांडेय, दीपक लिंडा और उज्जवल केसरी शामिल थे. विशाल पेशे से वकील था और उज्जवल केसरी उस का ड्राइवर. इन तीनों से अंकित की प्रेम कहानी छिपी नहीं थी.

प्रीति ने जब से अंकित को ससुराल आने से मना किया था, तब से उस के दिमाग में एक ही ख्याल बारबार आता था कि कार्तिक को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दे.

अंकित ने अपने मन की बात दोस्तों से शेयर की, लेकिन दोस्तों ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया. विशाल ने उसे समझाया कि बीच का कोई रास्ता निकालते है, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

सितंबर, 2019 के दूसरे हफ्ते की बात है. कार्तिक के एक रिश्तेदार के यहां पार्टी का आयोजन था. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े लोग शरीक हुए. रात का समय था. पार्टी में आए मेहमान प्लेटों में खाना लिए खाने का लुत्फ ले रहे थे.

पार्टी में कार्तिक ने प्रीति और अंकित को किया जलील

पार्टी में अंकित केसरी भी शामिल था. कार्तिक भी पत्नी को ले कर आया था. पार्टी में पत्नी को छोड़ कर कार्तिक मेहमानों और पुराने दोस्तों से मिलने चला गया. अंकित जानता था कि पार्टी में प्रीति जरूर आएगी. उसी दरमियान उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो वह खुशी से उछल पड़ा. अंकित प्लेट में खाना लिए खा रहा था, प्रीति भी उसी की बगल में खड़ी हो कर उसी की प्लेट में खाना खाने लगी. तभी वहां कार्तिक आ गया.

पत्नी को प्रेमी अंकित के साथ एक ही प्लेट में खाना खाते देख कार्तिक गुस्से से पागल हो गया. उस ने मेहमानों के सामने पत्नी और उस के आशिक को खूब झाड़ पिलाई. जो नहीं कहना था, गुस्से में आ कर वह तक कह गया. अंकित और प्रीति के सिर शर्म से झुक गए. अंकित प्रीति की खातिर उस समय अपमान का घूंट पी कर रह गया. लेकिन मन ही मन उस ने फैसला कर लिया कि जिस तरीके से कार्तिक ने भरी महफिल में उन दोनों को अपमानित किया है, उसे उस का फल तो भुगतना ही पड़ेगा. प्रीति भी खून का घूंट पी कर रह गई थी. पार्टी के बाद कार्तिक पत्नी को ले कर घर आ गया. पार्टी में उस ने पत्नी को जो डांट पिलाई थी, सो पिलाई थी, घर आ कर भी उस ने उसे खूब डांटा.

उस ने प्रीति से यहां तक कह दिया कि आज के बाद अगर अंकित से बात करने की कोशिश की या मिली तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. वह घर की इज्जत की खातिर अंकित को मार भी सकता है.

पति की धमकी से प्रीति डर गई. उस ने अंकित को फोन कर के सारी बातें बता दीं. साथ ही अंकित को कार्तिक को रास्ते से हटाने के लिए हरी झंडी भी दे दी.

माशूका की ओर से मिली हरी झंडी के बाद अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर कार्तिक की हत्या की योजना बना डाली. योजना के अनुसार, 28 सितंबर, 2019 की सुबह कार्तिक पत्नी के कहने पर उसे साथ ले कर अपनी कार से दुर्गा पूजा का सामान लेने रांची गया. दोनों ने दिन भर खरीदारी की. दुर्गा पूजा पर हर साल खरीदारी करने का जिम्मा कार्तिक का ही था. वह दुर्गा पूजा समिति का अध्यक्ष भी था.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

खैर, खरीदारी कर के रात 8 बजे वह रांची से खूंटी के लिए निकला. इसी बीच पति की आंखों में धूल झोंक कर प्रीति ने अपने आशिक अंकित को बता दिया कि वह रांची से घर के लिए लौट रहे हैं. 2 घंटे में वह खूंटी पहुंच जाएगी.

उधर अंकित ने अपनी स्कौर्पियो कार में विशाल पांडेय को बैठा लिया. विशाल उस का साथ देने के लिए पहले ही हामी भर चुका था. उस ने कार में लाठी, डंडा और लोहे का रौड छिपा दी थी. एक बाइक पर दीपक लिंडा और मुंगेश सवार हो कर अंकित के बताए स्थान कांके थानाक्षेत्र के बाड़ू चौक पर जा कर छिप गए. अंकित भी वहीं आ कर छिप गया.

रात 10 बजे कार्तिक की कार बाड़ू चौक के नजदीक पहुंची तो पहले से घात लगाए बैठे अंकित ने दीपक लिंडा को इशारा कर दिया कि शिकार किसी कीमत पर बचना नहीं चाहिए. तुम कार्तिक की कार ओवरटेक करो, हम पीछे से आते हैं.

दीपक ने वैसा ही किया, जैसा उस से करने को कहा गया. कार्तिक की कार जैसे ही बाड़ू चौक के पास पहुंची, दीपक ने अपनी मोटरसाइकिल से ओवरटेक किया और बाइक कार्तिक की कार के सामने तिरछा कर के खड़ी कर दी. तब तक पीछे से अंकित भी वहां पहुंच गया. इस के बाद अंकित और विशाल पांडेय लाठी, डंडा और रौड ले कर कार्तिक के पास पहुंचे.

कार्तिक को जबरन कार से बाहर निकलने पर मजबूर किया गया. कार से बाहर निकलते ही विशाल ने लोहे की रौड से कार्तिक के सिर पर जोरदार वार किया, जिस से कार्तिक का सिर 2 भागों में बंट गया और उस की मौके पर ही मौत हो गई. कार में बैठी प्रीति पति की पिटाई होते देख मन ही मन खुश हो रही थी कि उस की राह का कांटा हमेशा के लिए निकल गया. अब उसे और अंकित को एक होने से कोई नहीं रोक पाएगा.

बहरहाल, प्रीति ने जिस शातिराना अंदाज में शतरंज की बाजी खेली, कानून के जांबाज नुमाइंदों ने उसी चाल से उस की बाजी पलट दी और प्रीति और अंकित को जेल जाना पड़ा.

10 दिसंबर को विशाल पांडेय को गिरफ्तार किया गया. अंकित और उस के दोनों साथी फरार चल रहे थे. 6 मार्च, 2020 को दीपक लिंडा, उज्जवल केसरी और मुंगेश गिरफ्तार कर लिए गए.

फरार चल रहा अंकित अप्रैल, 2020 के दूसरे सप्ताह में गिरफ्तार हुआ. सभी आरोपियों ने कार्तिक केसरी की हत्या में अपना जुर्म कबूल कर लिया. अंकित ने हत्या में प्रयुक्त लाठी, डंडा और रौड बरामद करा दी थी. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

ये भी पढ़ें- छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रासलीला बहू की : भाग 2

घटना की वस्तुस्थिति जानने के लिए पुलिस टीम सब से पहले क्राइम साइट पर पहुंची. अभी तक की जांचपड़ताल में पुलिस को यही पता चला था कि घटना वाली रात पतिपत्नी दोनों रांची से दुर्गा पूजा की खरीदारी कर के घर लौट रहे थे. इसी बीच घटना घटी थी.

लेकिन इस में एक बात खटक रही थी कि हत्यारों ने घटना को लूट की नीयत से तो अंजाम दिया नहीं था. अगर लूट की नीयत से वारदात की गई होती तो कार्तिक की पत्नी के साथ जरूर लूटपाट हुई होती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

दूसरी बात यह कि पत्नी की आंखों के सामने 4-5 अपराधी लाठी, डंडे और रौड से पति पर हमला करते रहे और पत्नी ने विरोध तक नहीं किया. वह कार में बैठेबैठे पति की हत्या का नजारा देखती रही. यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

ये भी पढ़ें- छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

तीसरी सब से खास बात यह, जोकि प्रीति ने पूछताछ में बताई थी कि अपराधी 2 बाइकों पर सवार हो कर पिठोरिया चौक की ओर भागे थे. उस मार्ग के सभी सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगालने पर उस रात बताए गए समय पर कोई भी बाइक से भागते हुए नहीं दिखा था. इस का मतलब था कि प्रीति झूठ बोल रही थी. पुलिस को प्रीति पर संदेह हो गया कि इस घटना में उस की कोई भूमिका जरूर है.

सच का पता लगाने के लिए पुलिस ने कार्तिक और उस की पत्नी प्रीति की काल डिटेल्स निकलवाई. प्रीति की काल डिटेल्स देख कर पुलिस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. घटना के समय प्रीति के फोन की लोकेशन मौके पर पाई गई. उस के फोन से घटना के कुछ देर पहले तक एक नंबर पर कई बार काल की गई थी. प्रीति की काल डिटेल्स ने पुलिस के इस शक को और पुख्ता कर दिया कि पति की हत्या में प्रीति का हाथ है. जांचपड़ताल से एक बात तो साफ हो गई थी कि कार्तिक की हत्या प्रेम प्रसंग के चलते हुई थी. लेकिन प्रीति को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस उस के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर लेना चाहती थी, ताकि अदालत में उस का मखौल न उड़े.

पुलिस ने प्रीति की काल डिटेल्स से नंबर ले कर उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से प्रीति की घटना के ठीक पहले कई बार बात हुई थी. वह नंबर खूंटी जिले के लोधमा कर्रा के रहने वाले अंकित केसरी उर्फ  बिट्टू का था, जिस से दोनों के बीच बातचीत हुई थी.

पुलिस ने अंकित के घर लोधमा कर्रा में दबिश दी तो वह फरार मिला. घर वालों से पूछताछ पर पता चला कि वह करीब 15 दिनों से कहीं गया हुआ है. कहां गया है, घर वालों को भी नहीं पता था.

प्रीति का प्रेमी अंकित आया संदेह के दायरे में

अंकित का घर से फरार होना पुलिस के शक को मजबूत कर रहा था. पुलिस को लग रहा था इस हत्याकांड में अंकित का हाथ अवश्य है तभी वह घटना के बाद से फरार है. कार्तिक हत्याकांड के खुलासे की एक आखिरी कड़ी मृतक की पत्नी प्रीति ही थी, जिस से पूछताछ कर के घटना से परदा उठ सकता था. वैसे भी 2 सप्ताह बीत चुके थे. घटना के खुलासे के लिए पुलिस पर दबाव था.

10 अक्टूबर, 2019 को पुलिस मृतक की पत्नी प्रीति को विक्टोरिया से हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए थाना कांके ले आई. पुलिस ने उस से कड़ाई से पूछताछ शुरू की. लेकिन प्रीति पुलिस को भरमाती रही कि वह निर्दोष है, पति की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

पुलिस ने जब उस के सामने अंकित से बातचीत की काल डिटेल्स रखी तो वह घबरा गई. खुद को फंसता देख उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उसी के कहने पर उस के प्रेमी अंकित केसरी उर्फ बिट्टू ने अपने साथियों के साथ मिल कर कार्तिक केसरी को मौत के घाट उतारा था.

इस के बाद प्रीति ने घटनाक्रम के बारे में विस्तार से बता दिया. अपने ही सिंदूर को मिटाने वाली पत्नी की करतूतों को जिस ने भी सुना, हैरत में रह गया. बहरहाल, पुलिस ने प्रीति को अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया. प्रीति से हुई पूछताछ में कई आरोपितों अंकित केसरी उर्फ बिट्टू, उज्जवल केसरी, दीपक लिंडा और विशाल कुमार पांडेय के नाम सामने आए.

पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी की कोशिश में लगी थी. घटना के बाद से ही सभी आरोपी भूमिगत हो गए थे. जब तक पुलिस जांच की प्रक्रिया आगे बढ़े, आइए जानते हैं दिल दहला देने वाली इस कहानी की पृष्ठभूमि—

35 वर्षीय कार्तिक केसरी मूलरूप से खूंटी जिले के पिठोरिया थानाक्षेत्र के विक्टोरिया का रहने वाला था. उस के पिता जनार्दन केसरी क्षेत्र के बड़े काश्तकारों में गिने जाते थे. उन के पास खेती की कई एकड़ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उन के परिवार में कुल जमा 4 सदस्य थे. 2 पतिपत्नी और 2 संतानें. एक बेटा कार्तिक और दूसरी बेटी. बेटी का विवाह हो चुका था.

पढ़लिख कर कार्तिक भी जवान हो गया था. वह पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. एकलौता होने की वजह से उन्होंने बेटे को सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं करने दिया था. उन का कहना था कि हमारे पास सब कुछ तो है, सरकारी नौकरी कर के क्या हासिल होगा.

कार्तिक भी यही सोचता था कि अगर वह नौकरी पर चला गया तो उस के बूढ़े मांबाप की सेवा कौन करेगा. उन के बुढ़ापे की एक आखिरी लाठी तो वही है, इसलिए उस ने कभी भी बाहर जाने की नहीं सोची.

कार्तिक शादी लायक हो चुका था. उस के लिए कई जगह से रिश्ते आ रहे थे. उन्हीं में एक रिश्ता लोधमा कर्रा के कुलहुट्टू से आया था. लड़की खूबसूरत, गुणी तथा संस्कारी बताई गई थी, नाम था प्रीति. जनार्दन केसरी को यह रिश्ता पसंद आ गया. उन्होंने सन 2011 में बेटे को प्रीति संग परिणय सूत्र में बांध दिया. प्रीति ससुराल विक्टोरिया आई तो वह खुश नहीं थी. उस ने जिस खूबसूरत राजकुमार के सपने संजोए थे, वे धरे का धरे रह गए थे. प्रीति के मुताबिक उस का पति भले ही अमीर था, लेकिन खूबसूरती के मामले में बेहद गरीब था. यह अलग बात है कि कार्तिक और उस के घर वाले प्रीति को पलकों पर बैठा कर रखते थे.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

आखिर वह घर की एकलौती बहू थी. कार्तिक तो हर घड़ी उस की फिक्र में रहता था. अच्छे से अच्छा खाना, मनपसंद कपड़े, गहने सब कुछ था प्रीति के पास. फुरसत मिलती तो कार्तिक मांबाप से अनुमति ले कर प्रीति को सिनेमा दिखाने भी ले जाता था. कार्तिक पत्नी को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करता था. समय के साथ प्रीति 2 बेटियों निशा (7 साल) और परी (3 साल) की मां बन गई थी.

भले ही प्रीति 2 बेटियों की मां बन गई थी, लेकिन आज भी उस का मन मायके कुलहुट्टू में ही अटका रहता था, क्योंकि वहां उस का प्रेमी दिलबर अंकित केसरी उर्फ बिट्टू रहता था.

बचपन का प्यार था दोनों का

बचपन में प्रीति और अंकित दोनों साथसाथ स्कूल जाया करते थे. वे सच्चे दोस्त थे. अगर किसी दिन प्रीति स्कूल नहीं जाती तो उस दिन अंकित भी कोई न कोई बहाना बना कर स्कूल नहीं जाता था. जिस दिन अंकित स्कूल नहीं जाता था, उस रोज प्रीति पेट दर्द का बहाना बना कर छुट्टी कर लेती थी. ऐसी दोस्ती थी दोनों के बीच. धीरेधीरे दोनों बड़े हुए. फिर पता नहीं कब उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. उन्हें प्यार का एहसास तब हुआ, जब  एक दिन भी न मिल पाते तो बेचैन हो जाते. ये बेचैनी ही उन्हें प्यार होने का एहसास दिला रही थी.

प्रीति और अंकित दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. वे एक जिस्म दो जान थे. अंकित दिल था तो प्रीति धड़कन. उस की नसनस में प्रीति खून बन कर समाई थी. वे दोनों एकदूसरे से इतना प्यार करते थे कि एकदूसरे के बिना जीने की कल्पना ही नहीं करते थे.

स्कूल के दिनों में हुआ प्यार जब कालेज तक पहुंचा तो प्रीति और अंकित संजीदा हो गए. अपने प्यार को दोनों एक खास मुकाम पर ले जाना चाहते थे. चूंकि दोनों एक ही गांव में और पासपड़ोस में रहते थे, इसलिए ऐसा संभव नहीं था.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

दरवाजे के पार

दरवाजे के पार : भाग 1

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

ये भी पढ़ें- एक औरत : आतिश के परिवार का खात्मा

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था.

आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ. ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था.

खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे.

मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी.

सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था.

ये भी पढ़ें- छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी.

पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं. लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी.

घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी.

आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है.

सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की.

एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया. लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली.

इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला.

सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे. वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती.

पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं. इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दरवाजे के पार : भाग 3

गीता का पति मुन्नालाल सफाईकर्मी था और शराब पीने का आदी. स्वभाव से वह गुस्सैल था. इसलिए गीता ने सोना की असलियत उसे नहीं बताई. इस के बजाए उस ने पति पर सोना का विवाह जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया. इसी के साथ गीता ने सोना का फैक्ट्री जाना भी बंद करा दिया और उस पर कड़ी नजर रखने लगी. उस ने अपनी बहू ज्योति तथा बेटों को भी सतर्क कर दिया था कि वह जहां भी जाए, उस के साथ कोई न कोई रहे.

मांभाइयों के कड़े प्रतिबंध के कारण सोना का आशीष से मिलन बंद हो गया. इस से सोना और आशीष परेशान हो उठे. दोनों मिलन के लिए बेचैन रहने लगे.

सोना को इस बात की भनक लग चुकी थी कि उस के घर वाले उस की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. जबकि सोना के सिर पर अब भी आशीष के प्यार का भूत सवार था.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

इधर मुन्नालाल की खोज भीमसागर पर समाप्त हुई. भीमसागर का पिता रामसागर दादानगर फैक्ट्री एरिया के मिश्रीलाल चौराहे के निकट रहता था. नहर की पटरी के किनारे उस का मकान था. रामसागर लकड़ी बेचने का काम करता था. उस का बेटा भीमसागर भी उस के काम में मदद करता था.

मुन्नालाल ने भीमसागर को देखा तो उसे सोना के लिए पसंद कर लिया. हालांकि सोना ने शादी से इनकार किया, लेकिन मुन्नालाल ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: सन 2017 के जनवरी महीने की 10 तारीख को सोना का विवाह भीमसागर के साथ कर दिया गया.

भीमसागर की दुलहन बन कर सोना ससुराल पहुंची तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. सुंदर पत्नी पा कर भीमसागर भी खुश था, वहीं उस के मातापिता भी बहू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. सब खुश थे, लेकिन सोना खुश नहीं नहीं थी.

सुहागरात को भी वह बेमन से पति को समर्पित हुई. भीमसागर तो तृप्त हो कर सो गया, पर सोना गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही. न तो उस के जिस्म की प्यास बुझी थी, न रूह की.

उस रात के बाद हर रात मिलन की रस्म निभाई जाने लगी. चूंकि सोना इनकार नहीं कर सकती थी, सो अरुचि से पति की इच्छा पूरी करती रही.

घर वालों की जबरदस्ती के चलते सोना ने विवाह जरूर कर लिया था, पर वह मन से भीमसागर को पति नहीं मान सकी थी. अंतरंग क्षणों में वह केवल तन से पति के साथ होती थी, उस का प्यासा मन प्रेमी में भटक रहा होता था.

3-4 महीने तक सोना ने जैसेतैसे पति से निभाया, उस के बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. कलह का पहला कारण सोना का एकांत में मोबाइल फोन पर बातें करना था. भीमसागर को शक हुआ कि सोना का शादी से पहले कोई यार था, जिस से वह चोरीछिपे एकांत में बातें करती है.

दूसरा कारण उस की फैशनपरस्ती तथा घर से बाहर जाना था. भीमसागर के मातापिता चाहते थे कि बहू मर्यादा में रहे और घर के बाहर कदम न रखे. लेकिन सोना को घर की चारदीवारी में रहना पसंद नहीं था. वह स्वच्छंद हो कर घूमती थी. इन्हीं 2 बातों को ले कर सोना का भीमसागर और ससुराल के लोगों से झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साल बीततेबीतते सोना ससुराल छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी. गीता ने सोना को बहुत समझाया और ससुराल भेजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. 6 महीने तक सोना घर में रही, उस के बाद उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में आया की नौकरी कर ली. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती, फिर शाम 5 बजे तक वापस आती. इस तरह वह मांबाप पर बोझ न बन कर खुद अपना भार उठाने लगी.

एक शाम सोना स्कूल से लौट रही थी कि दादानगर चौराहे पर उस की मुलाकात आशीष से हो गई. बिछड़े प्रेमी मिले तो दोनों खुश हुए. आशीष उसे नजदीक के एक रेस्तरां में ले गया, जहां दोनों ने एकदूसरे को अपनी व्यथाकथा सुनाई. बातोंबातों में आशीष उदास हो कर बोला, ‘‘अरमान मैं ने सजाए और तुम ने घर किसी और का बसा दिया.’’

सोना के मुंह से आह सी निकली, ‘‘हालात की मजबूरी इसी को कहते हैं. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना शादी कर दी. मैं ने मन से उसे कभी पति नहीं माना. साल बीतते उस से मेरा मनमुटाव हो गया और मैं उसे छोड़ कर मायके आ गई.’’ आशीष मन ही मन खुश हुआ. फिर बोला, ‘‘क्या अब भी तुम मुझे पहले जैसा प्यार करती हो?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. सच तो यह है कि मैं तुम्हें कभी भुला ही नहीं पाई. सुहागरात को भी तुम्हारी ही याद आती रही.’’ इस के बाद सोना और आशीष का फिर मिलन होने लगा. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी बन गया. आशीष कभीकभी सोना के घर भी जाने लगा. गीता को आशीष का घर आना अच्छा तो नहीं लगता था, पर उसे मना भी नहीं कर पाती थी. हालांकि गीता निश्चिंत थी कि सोना की शादी हो गई है. अब आशीष जूठे बरतन में मुंह नहीं मारेगा. पर यह उस की भूल थी.

सोना के कहने पर आशीष ने अगस्त, 2019 में दबौली (उत्तरी) में किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा पसंद करने सोना भी आशीष के साथ गई थी.

उस ने मकान मालकिन को बताया कि सोना उस की पत्नी है. मकान में अन्य किराएदार थे, उन को भी आशीष ने सोना को अपनी पत्नी बताया था.

सोना अब इस कमरे पर आशीष से मिलने आने लगी. सोना के आते ही दरवाजा बंद हो जाता और शारीरिक मिलन के बाद ही खुलता. किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था, क्योंकि उन की नजर में सोना उस की पत्नी थी.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

आशीष के रूम में आतेजाते सोना को एक रोज एक फोटो हाथ लग गई, जिस में वह एक युवती और एक मासूम बच्चे के साथ था. इस युवती और बच्चे के संबंध में सोना ने आशीष से पूछा तो वह बगलें झांकने लगा. अंतत: उसे बताना ही पड़ा कि वह शादीशुदा है और तसवीर में उस की पत्नी व बच्चा है.

लेकिन मनमुटाव के चलते पत्नी घाटमपुर स्थित अपने मायके में रह रही है. यह पता चलने के बाद सोना का आशीष से झगड़ा हुआ. लेकिन आशीष ने किसी तरह सोना को मना लिया.

आशीष को लगा कि सच्चाई जानने के बाद सोना कहीं उस का साथ न छोड़ दे. इसलिए वह उस पर दबाव डालने लगा कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन सोना ने यह कह कर मना कर दिया कि पहले तुम अपनी पत्नी को तलाक दो. तभी मैं अपने पति से तलाक लूंगी. इस के बाद तलाक को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा. 17 मार्च की दोपहर 12 बजे सोना दबौली स्थित आशीष के रूम पर पहुंची. आशीष ने उसे फोन कर के बुलाया था. सोना के आते ही आशीष ने रूम बंद कर लिया फिर दोनों में बातचीत होने लगी.

बातचीत के दौरान आशीष ने सोना से कहा कि वह अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले, पर सोना इस के लिए राजी नहीं हुई. उलटे पलटवार करते हुए वह बोली, ‘‘पहले तुम अपनी पत्नी से तलाक क्यों नहीं लेते, एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी?’’

तलाक को ले कर दोनों में गरमागरम बहस होने लगी. बहस के बीच आशीष ने प्रणय निवेदन किया, जिसे सोना ने ठुकरा दिया. इस पर आशीष जबरदस्ती पर उतर आया और सोना के कपड़े खींच कर उसे अर्धनग्न कर दिया. सोना भी बचाव में भिड़ गई.

तलाक लेने से इनकार करने और शारीरिक संबंध न बन पाने से आशीष का गुस्सा आसमान पर जा पहुंचा. उस ने सामने अलमारी में रखी कैंची उठाई और सोना के पेट में घोंप दी.

सोना पेट पकड़ कर फर्श पर तड़पने लगी. उसी समय आशिष ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. सोना पेट पकड़ कर तड़पने लगी. उसी समय उस ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. कुछ देर बाद सोना ने दम तोड़ दिया.

सोना की हत्या करने के बाद आशीष ने कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद की और मकान के बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने सोना की भाभी ज्योति को सोना की हत्या की जानकारी दी, फिर फरार हो गया.

इस घटना का भेद तब खुला, जब मकान मालकिन पुष्पा पहली मंजिल पर स्थित आशीष के कमरे पर पहुंची. पुष्पा ने इस घटना की सूचना थाना गोविंद नगर को दे दी. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या की बात सामने आई. 20 मार्च, 2020 को थाना गोविंद नगर पुलिस ने अभियुक्त आशीष सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरवाजे के पार : भाग 2

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है.

आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है. घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे.

पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है.

पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई.

थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था.

आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया.

शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने के बाद वह फरार हो गया था. चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था.

मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.

सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’

उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी.

सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.

अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ.

आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.

सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी.

प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी.

कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते. आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है.

एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’

गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया.

गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक औरत : भाग 3 – आतिश के परिवार का खात्मा

एक बार संबंध बन जाने के बाद यह सिलसिला सा बन गया. इस के बाद आतिश मोनिका की और ज्यादा मदद करने लगा. मोनिका का व्यवहार भी अब बदल चुका था. अब वह केसरवानी परिवार में ऐसे आत्मविश्वास के साथ काम और बातें करने लगी जैसे वह उस परिवार की ही सदस्य हो. मौका मिलने पर आतिश भी मोनिका को मौल, रेस्टोरेंट आदि जगहों पर ले जाने लगा.

अवैध संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, लेकिन एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. आतिश और मोनिका के साथ भी यही हुआ. एक दिन आतिश की बहन नीहारिका ने अपने भाई को मोनिका के साथ छेड़छाड़ करते देख लिया. हालांकि नीहारिका को मोनिका की बातों आदि से शक तो काफी दिनों से हो रहा था, लेकिन उस दिन सब कुछ अपनी आंखों से देखने के बाद उस का शक विश्वास में बदल गया.

यह बात छिपाने वाली नहीं थी. लिहाजा उस ने यह बात अपनी मां के कानों में डाल दी. मां ने आतिश को तो समझाया ही, साथ ही मोनिका को भी अपने घर के कामों से हटाने का फैसला ले लिया. लेकिन आतिश ने मोनिका का काम छुड़वाने का विरोध किया और साथ ही मां से वादा किया कि अब वह मोनिका से दूर रहेगा.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

घर वालों ने भी सोचा कि शायद आतिश अब मान जाएगा, लेकिनवह नहीं माना. मौका मिलते ही वह और मोनिका अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे. उधर नीहारिका और किरण की निगाहें आतिश और मोनिका की हरकतों को समझ लेती थीं.

यह बात जब आतिश की पत्नी प्रियंका को पता चली तो उस ने घर में कोहराम मचा दिया. तब गुस्से में आतिश ने पत्नी की पिटाई कर दी. घर के सभी लोग आतिश को समझातेसमझाते थक गए, लेकिन उस के दिमाग में उन की बातें नहीं घुसी. उसे तो मोनिका के अलावा घर के सभी लोग दुश्मन लगने लगे थे.

आतिश की बहन नीहारिका को कहीं से आतिश और मोनिका की एक फोटो मिल गई, जिस में दोनों साथसाथ थे. उस ने भाई से कहा कि वह मोनिका को भूल जाए, वरना इस फोटो को सोशल मीडिया पर डाल देगी.

आतिश ने उस से कहा कि अगर वह अपने मोबाइल से फोटो डिलीट कर देगी तो वह मोनिका से नहीं मिलेगा. नीहारिका ने कहा कि वह कुछ दिनों तक देखेगी, अगर इस दौरान उस ने मोनिका से बात नहीं की तो वह फोटो डिलीट कर देगी.

आतिश 2-4 दिन तो मोनिका से नहीं मिला, लेकिन वह फिर उस से बातें करने लगा. जब नीहारिका ने देखा कि दोनों ने अपनी आदत नहीं सुधारी है तो उस ने आतिश और मोनिका की वह फोटो फेसबुक पर डाल दी. यह बात जब आतिश को पता लगी तो उस ने नीहारिका की पिटाई कर दी.

नौकरानी मोनिका से पति के संबंधों की वजह से प्रियंका मानसिक तनाव में रहने लगी, क्योंकि पति से वह कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था.

इस बात को ले कर घर में कलह रहने लगी. मां किरण बेटी और बहू का पक्ष लेती थीं, इसलिए आतिश मां को बुराभला कहने से नहीं चूकता था.

दिनोंदिन घर के हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे थे. आतिश अपने मांबाप तक की पिटाई करने लगा था. शोरशराबा सुन कर पड़ोसी घर आ कर आतिश को समझाने की कोशिश करते तो वह उन्हें भी बेइज्जत कर देता. लिहाजा पड़ोसी भी परेशान हो गए.

पिता तुलसीदास केसरवानी जब ज्यादा परेशान हो गए तो उन्होंने एक दिन अपने शुभचिंतक पड़ोसी से बात की. पड़ोसी की सलाह पर तुलसीदास ने फैसला लिया कि वह धूमनगंज थाने जा कर बेटे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएंगे.

किसी तरह आतिश को इस बात की भनक लग गई कि उस के पिता थाने में उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने जाने वाले हैं. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद उस के खिलाफ काररवाई हो सकती थी, लिहाजा उस ने अपने मातापिता के सामने हाथ जोड़ते हुए अपने किए की माफी मांगी और सुधर जाने का भरोसा दिया. मांबाप ने भी सोचा कि बेटे को अपनी गलती का अहसास हो रहा है तो उसे माफ कर देने में कोई बुराई नहीं है. लिहाजा उन्होंने उसे सुधर जाने की नसीहत देते हुए माफ कर दिया.

लेकिन माफी मांगने के पीछे आतिश के दिमाग में दूसरी ही खिचड़ी पक चुकी थी. उस ने सोच लिया था कि वह किसी तरह घर के सारे लोगों का काम तमाम कराएगा. उस के बाद पिता की सारी संपत्ति का मालिक बन जाएगा. साथ ही मोनिका के साथ रहने से उसे कोई रोकने वाला भी नहीं होगा.

आतिश की दुकान पर कई सालों से अनुज श्रीवास्तव नाम का एक युवक काम कर रहा था. वह दबंग किस्म का था. आतिश ने अपने घर वालों का कत्ल करने की बात उस से शेयर की, इस के लिए वह पैसे देने को भी तैयार था. अनुज पैसों के लालच में आ गया. 8 लाख रुपए में आतिश ने घर के 4 सदस्यों की हत्या कराने का सौदा पक्का कर दिया. इस के लिए उस ने अनुज को 75 हजार रुपए एडवांस भी दे दिए.

अनुज को लगा कि यह काम वह अकेला नहीं कर सकेगा, इसलिए उस ने कौशांबी के अजुहा गांव के अपने मामा राजकृष्ण श्रीवास्तव व एक अन्य आदमी को भी योजना में शामिल कर लिया. सभी ने तय किया कि गोली के बजाए चाकू से वारदात को अंजाम देना आसान रहेगा.

योजना को अंजाम देने के लिए 14 मई, 2020 बृहस्पतिवार का दिन तय हो गया. योजना के अनुसार आतिश दोपहर डेढ़ बजे किस्त जमा कराने के लिए बैंक चला गया, ताकि उस पर कोई शक न करे और बैंक के सीसीटीवी में भी उस की फुटेज आ जाए.

लौकडाउन की वजह से तुलसीदास की दुकान बंद थी. आतिश के घर से निकलने के बाद अनुज अपने मामा और साथी को ले कर तुलसीदास के घर पहुंच गया. चूंकि अनुज को घर के सभी लोग जानते थे, इसलिए उन्होंने सभी को घर में बुला लिया.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

अनुज ने तुलसीदास केसरवानी से साथ आए लोगों का परिचय अपने रिश्तेदारों के रूप में कराया और कहा कि लौकडाउन की वजह से इन्हें आर्थिक परेशानी है. अगर आप कुछ मदद कर दें तो इन का भला हो जाएगा.

उस समय तुलसीदास केसरवानी और उन की पत्नी किरण ही वहां मौजूद थे. बेटी नीहारिका ऊपर की मंजिल पर अपनी भाभी प्रियंका के पास थी. अनुज की बात पर तुलसीदास को दया आ गई. वह पैसे लेने के लिए अपनी दुकान की तरफ गए. क्योंकि उन की दुकान में जाने का एक दरवाजा घर के अंदर से भी था.

तुलसीदास के पीछेपीछे अनुज और उसका मामा भी गया. उन दोनों ने वहीं पर तुलसीदास केसरवानी का मुंह दबोच कर गला रेत दिया. गला कटने के बाद तुलसीदास जमीन पर गिरे तो आवाज सुन कर उन की पत्नी किरण वहां आई तो बदमाशों ने उन का भी गला रेत दिया. उसी दौरान बेटी नीहारिका भाभी के पास से नीचे आई तो उस की भी उन्होंने गला रेत कर हत्या कर दी.

इस के बाद वे ऊपर की मंजिल पर गए. वहां आतिश की पत्नी प्रियंका की भी उन्होंने हत्या कर दी. घर में 4 लोगों की हत्या करने के बाद उन्होंने बाथरूम में पहुंच कर खून से सने हाथ साफ किए. फिर दरवाजा भिड़ा कर वहां से चले गए.

सीओ बृजनारायण सिंह ने आरोपी आशीष उर्फ आतिश से पूछताछ के बाद अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर टीमें भेजीं. लेकिन अनुज श्रीवास्तव ही पुलिस के हाथ लग सका, अन्य अभियुक्त अपने घरों से फरार मिले. पूछताछ में अनुज श्रीवास्तव ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

हत्यारोपी अनुज श्रीवास्तव और आशीष उर्फ आतिश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें