Hindi Family Story: उन्मुक्त – क्यों रिमा की मां अकेले रहना चाहती थी?

Hindi Family Story: फिर प्रोफैसर ने नाश्ता और चाय लिया. रीमा बगल में ही बैठी थी पहले की तरह और आदतन टेबल पर पोर्टेबल टूइनवन में गाना भी बज रहा था. रीमा बोली, ‘‘आजकल आप कुछ ज्यादा ही रोमांटिक गाने सुनने लगे हैं. कमला मैडम के समय ऐसे नहीं थे.’’

उन्होंने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘अभी तुम ने मेरा रोमांस देखा कहां है?’’

रीमा बोली, ‘‘वह भी देख लूंगी, समय आने पर. फिलहाल कुछ पैसे दीजिए राशन पानी वगैरह के लिए.’’

प्रोफैसर ने 500 के 2 नोट उसे देते हुए कहा, ‘‘इसे रखो. खत्म होने के पहले ही और मांग लेना. हां, कोई और भी जरूरत हो, तो निसंकोच बताना.’’

रीमा बोली, ‘‘जानकी बेटी के लिए कुछ किताबें और कपड़े चाहिए थे.’’ उन्होंने 2 हजार रुपए का नोट उस को देते हुए कहा, ‘‘जानकी की पढ़ाई का खर्चा मैं दूंगा. आगे उस की चिंता मत करना.’’

कुछ देर बाद रीमा बोली, ‘‘मैं आप का खानापीना दोनों टाइम का रख कर जरा जल्दी जा रही हूं. बेटी के लिए खरीदारी करनी है.’’

प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जाओ, पर एक बार गले तो मिल लो, और हां, मैडम की अलमारी से एकदो अपनी पसंद की साडि़यां ले लो. अब तो यहां इस को पहनने वाला कोई नहीं है.’’

रीमा ने अलमारी से 2 अच्छी साडि़यां और मैचिंग पेटीकोट निकाले. फिर उन से गले मिल कर चली गई.

अगले दिन रीमा कमला के कपड़े पहन कर आई थी. सुबह का नाश्तापानी हुआ. पहले की तरह फिर उस ने लंच भी बना कर रख दिया और अब फ्री थी. प्रोफैसर बैडरूम में लेटेलेटे अपने पसंदीदा गाने सुन रहे थे. उन्होंने रीमा से 2 कौफी ले कर बैडरूम में आने को कहा. दोनों ने साथ ही बैड पर बैठेबैठे कौफी पी थी. इस के बाद प्रोफैसर ने उसे बांहों में जकड़ कर पहली बार किस किया और कुछ देर दोनों आलिंगनबद्ध थे. उन के रेगिस्तान जैसे तपते होंठ एकदूसरे की प्यास बु झा रहे थे. दोनों के उन्माद चरमसीमा लांघने को तत्पर थे. रीमा ने भी कोई विरोध नहीं किया, उसे भी वर्षों बाद मर्द का इतना सामीप्य मिला था.

अब रीमा घर में गृहिणी की तरह रहने लगी थी. कमला के जो भी कपड़े चाहिए थे, उसे इस्तेमाल करने की छूट थी. डै्रसिंग टेबल से पाउडर क्रीम जो भी चाहिए वह लेने के लिए स्वतंत्र थी.

कुछ दिनों बाद नवल बेटे का स्काइप पर वीडियो कौल आया. रीमा घर में कमला की साड़ी पहने थी. प्रोफैसर की बहू रेखा ने भी एक ही  झलक में सास की साड़ी पहचान ली थी. औरतों की नजर इन सब चीजों में पैनी होती है. रीमा ने उसे नमस्ते भी किया था. रेखा ने देखा कि रीमा और उस के ससुर दोनों पहले की अपेक्षा ज्यादा खुश और तरोताजा लग रहे थे.

बात खत्म होने के बाद रेखा ने अपने पति नवल से कहा, ‘‘तुम ने गौर किया, रीमा ने मम्मी की साड़ी पहनी थी और पहले की तुलना में ज्यादा खुशमिजाज व सजीसंवरी लग रही थी. मु झे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘तुम औरतों का स्वभाव ही शक करने का होता है. पापा ने मम्मी की पुरानी साड़ी उसे दे दी तो इस में क्या गलत है? और पापा खुश हैं तो हमारे लिए अच्छी बात है न?’’

‘‘इतना ही नहीं, शायद तुम ने ध्यान नहीं दिया. घर में पापा लैपटौप ले कर जहांजहां जा रहे थे, रीमा उन के साथ थी. मैं ने मम्मी की ड्रैसिंग टेबल भी सजी हुई देखी है,’’ रेखा बोली.

नवल बोला, ‘‘पिछले 2-3 सालों से पापामम्मी की बीमारी से और फिर उन की मौत से परेशान थे, अब थोड़ा सुकून मिला है, तो उन्हें भी जिंदगी जीने दो.’’

प्रोफैसर और रीमा का रोमांस अब बेरोकटोक की दिनचर्या हो गई थी. अब बेटेबहू का फोन या स्काइप कौल

आता तो वे उन से बातचीत में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे और जल्दी ही कौल समाप्त कर देना चाहते थे. इस बात को नवल और रेखा दोनों ने महसूस किया था.

कुछ दिनों बाद बेटे ने पापा को फोन कर स्काइप पर वीडियो पर आने को कहा, और फिर बोला, ‘‘पापा, थोड़ा पूरा घर दिखाइए. देखें तो मम्मी के जाने के बाद अब घर ठीकठाक है कि नहीं?’’

प्रोफैसर ने पूरा घर घूम कर दिखाया और कहा, ‘‘देखो, घर बिलकुल ठीकठाक है. रीमा सब चीजों का खयाल ठीक से रखती है.’’

नवल बोला, ‘‘हां पापा, वह तो देख रहे हैं. अच्छी बात है. मम्मी के जाने के बाद अब आप का दिल लग गया घर में.’’

जब प्रोफैसर कैमरे से पूरा घर दिखा रहे थे तब बहू, बेटे दोनों ने रीमा को मम्मी की दूसरी साड़ी में देखा था. इतना ही नहीं, बैड पर भी मम्मी की एक साड़ी बिखरी पड़ी थी. तब रेखा ने नवल से पूछा, ‘‘तुम्हें सबकुछ ठीक लग रहा है, मु झे तो दाल में काला नजर आ रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘हां, अब तो मु झे भी कुछ शक होने लगा है. खुद जा कर देखना होगा, तभी तसल्ली मिलेगी.’’

इधर कुछ दिनों के लिए रीमा की बेटी किसी रिश्तेदार के साथ अपने ननिहाल गई हुई थी. तब दोनों ने इस का भरपूर लाभ उठाया था. पहले तो रीमा डिनर टेबल पर सजा कर शाम के पहले ही घर चली जाती थी. प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जानकी जब तक ननिहाल से लौट कर नहीं आती है, तुम रात को भी यहीं साथ में खाना खा कर चली जाना.’’

आज रात 8 बजे की गाड़ी से जानकी लौटने वाली थी. रीमा ने उसे प्रोफैसर साहब के घर ही आने को कहा था क्योंकि चाबी उसी के पास थी. इधर नवल ने भी अचानक घर आ कर सरप्राइज चैकिंग करने का प्रोग्राम बनाया था. उस की गाड़ी भी आज शाम को पहुंच रही थी.

अभी 8 बजने में कुछ देर थी. प्रोफैसर और रीमा दोनों घर में अपना रोमांस कर रहे थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी तो उन्होंने कहा, ‘‘रुको, मैं देखता हूं. शायद जानकी होगी.’’ और उन्होंने लुंगी की गांठ बांधते हुए दरवाजा खोला तो सामने बेटे को खड़ा देखा. कुछ पलों के लिए दोनों आश्चर्य से एकदूसरे को देखते रहे थे, फिर उन्होंने नवल को अंदर आने को कहा. तब तक रीमा भी साड़ी ठीक करते हुए बैडरूम से निकली जिसे नवल ने देख लिया था.

रीमा बोली, ‘‘आज दिन में नहीं आ सकी थी तो शाम को खाना बनाने आई हूं. थोड़ी देर हो गई है, आप दोनों चल कर खाना खा लें.’’

खैर, बापबेटे दोनों ने खाना खाया. तब तक जानकी भी आ गई थी. रीमा अपनी बेटी के साथ लौट गई थी. रातभर नवल को चिंता के कारण नींद नहीं आ रही थी. अब उस को भी पत्नी की बातों पर विश्वास हो गया था. अगले दिन सुबह जब प्रोफैसर साहब मौर्निंग वौक पर गए थे, नवल ने उन के बैडरूम का मुआयना किया. उन के बाथरूम में गया तो देखा कि बाथटब में एक ब्रा पड़ी थी और मम्मी की एक साड़ी भी वहां हैंगर पर लटक रही थी. उस का खून गुस्से से खौलने लगा था. उस ने सोचा, यह तो घोर अनैतिकता हुई और मम्मी की आत्मा से छल हुआ. उस ने निश्चय किया कि वह अब चुप नहीं रहेगा, पापा से खरीखरी बात करेगा.

रीमा तो सुबह बेटी को स्कूल भेज कर 8 बजे के बाद ही आती थी. उस के पहले जब प्रोफैसर साहब वौक से लौट कर आए तो नवल ने कहा, ‘‘पापा, आप मेरे साथ इधर बैठिए. आप से जरूरी बात करनी है.’’

वे बैठ गए और बोले, ‘‘हां, बोलो बेटा.’’

नवल बोला, ‘‘रीमा इस घर में किस हैसियत से रह रही है? आप के बाथरूम में ब्रा कहां से आई और मम्मी की साड़ी वहां क्यों है? मम्मी की साडि़यों में मैं ने और रेखा दोनों ने रीमा को बारबार स्काइप पर देखा है. मम्मी की डै्रसिंग टेबल पर मेकअप के सामान क्यों पड़े हैं? इन सब का क्या मतलब है?’’

प्रोफैसर साहब को बेटे से इतने सारे सवालों की उम्मीद न थी. वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे. तब नवल ने गरजते हुए कहा, ‘‘पापा बोलिए, मैं आप से ही पूछ रहा हूं. मु झे तो लग रहा है कि रीमा सिर्फ कामवाली ही नहीं है, वह मेरी मम्मी की जगह लेने जा रही है.’’

प्रोफैसर साहब तैश में आ चुके थे. उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा, ‘‘तुम्हारी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता है. पर क्या मु झे खुश रहने का अधिकार नहीं है?’’

नवल बोला, ‘‘यह तो हम भी चाहते हैं कि आप खुश रहें. आप हमारे यहां आ कर मन लगाएं. पोतापोती और बहू हम सब आप को खुश रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे.’’

‘‘भूखा रह कर कोईर् खुश नहीं रह सकता है,’’ वे बोले.

नवल बोला, ‘‘आप को भूखा रहने का सवाल कहां है?’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘खुश रहने के लिए पेट की भूख मिटाना ही काफी नहीं है. मैं कोई संन्यासी नहीं हूं. मैं भी मर्द हूं. तुम्हारी मां लगभग पिछले 3 सालों से बीमार चल रही थीं. मैं अपनी इच्छाओं का दमन करता रहा हूं. अब उन्हें मुक्त करना चाहता हूं. मु झे व्यक्तिगत मामलों में दखलअंदाजी नहीं चाहिए. और मैं ने किसी से जोरजबरदस्ती नहीं की है. जो हुआ, दोनों की सहमति से हुआ.’’ एक ही सांस में इतना कुछ बोल गए वे.

नवल बोला, ‘‘इस का मतलब मैं जो सम झ रहा था वह सही है. पर 70 साल की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘तुम्हें जो भी लगे. जहां तक बुढ़ापे का सवाल है, मैं अभी अपने को बूढ़ा नहीं महसूस करता हूं. मैं अभी भी बाकी जीवन उन्मुक्त हो कर जीना चाहता हूं.’’

नवल बोला, ‘‘ठीक है, आप हम लोगों की तरफ से मुक्त हैं. आज के बाद हम से आप का कोई रिश्ता नहीं रहेगा.’’ और नवल ने अपना बैग उठाया, वापस चल पड़ा. तभी दरवाजे की घंटी बजी थी. नवल दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल पड़ा था. रीमा आई थी. वह कुछ पलों तक बाहर खड़ेखड़े नवल को जाते देखते रही थी.

तब प्रोफैसर साहब ने हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया था. फिर उसे बांहों में कस कर जकड़ लिया और कहा, ‘‘आज मैं आजाद हूं.” Hindi Family Story

Story In Hindi: एक ही आग में – एक विधवा की अधूरी चाह

Story In Hindi: ‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं सुगंधा?’’ मीना ने जब यह बात कही, तब सुगंधा बोली, ‘‘क्या सुन रही हो मीना?’’

‘‘तुम्हारा पवन के साथ संबंध है…’’

‘‘हां है.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि तुम विधवा हो और एक विधवा किसी से संबंध नहीं रख सकती,’’ मीना ने समझाते हुए कहा. पलभर रुक कर वह फिर बोली, ‘‘फिर तू 58 साल की हो गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ सुगंधा ने कहा, ‘‘औरत बूढ़ी हो जाती है तब उस की इच्छा नहीं जागती क्या? तू भी तो 55-56 साल के आसपास है. तेरी भी इच्छा जब होती होगी तो क्या भाई साहब के साथ हमबिस्तर नहीं होती होगी?’’

मीना कोई जवाब नहीं दे पाई. सुगंधा ने जोकुछ कहा सच कहा है. वह भी तो इस उम्र में हमबिस्तर होती है, फिर सुगंधा विधवा है तो क्या हुआ? आखिर औरत का दिल ही तो है. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

तब सुगंधा बोली, ‘‘जवाब नहीं दिया तू ने?’’

‘‘तू ने जो कहा सच कहा है,’’ मीना अपनी रजामंदी देते हुए बोली.

‘‘औरत अगर विधवा है तो उस के साथ यह सामाजिक बंधन क्यों?’’ उलटा सुगंधा ने सवाल पूछते हुए कहा. तब मीना पलभर के लिए कोई जवाब नहीं दे पाई.

सुगंधा बोली, ‘‘अगर किसी की पत्नी गुजर जाती है तो वह इधरउधर मुंह मारता फिरे, तब यह समाज उसे कुछ न कहे, क्योंकि वह मर्द है. मगर औरत किसी के साथ संबंध बनाए, तब वह गुनाह हो जाता है.’’

‘‘तो फिर तू पवन के साथ शादी क्यों नहीं कर लेती?’’ मीना ने सवाल किया.

‘‘आजकल लिव इन रिलेशनशिप का जमाना है,’’ सुगंधा बोली, ‘‘क्या दोस्त बन कर नहीं रह सकते हैं?’’

‘‘ठीक है, ठीक है, तेरी मरजी जो आए वह कर. मैं ने जो सुना था कह दिया,’’ नाराज हो कर मीना बोली, ‘‘मगर तू 3 बच्चों की मां है. वे सुनेंगे तब उन पर क्या गुजरेगी, यह सोचा है?’’

‘‘हां, सब सोच लिया है. क्या बच्चे नहीं जानते हैं कि मां के दिल में भी एक दिल छिपा हुआ है. उस की इच्छा जागती होगी,’’ समझाते हुए सुगंधा बोली, ‘‘देखो मीना, इस बारे में मत सोचो. तुम अपनी लगी प्यास भाई साहब से बुझा लेती हो. काश, ऐसा न हो, मगर तुम मुझ जैसी अकेली होती तो तुम भी वही सबकुछ करती जो आज मैं कर रही हूं. समाज के डर से अगर नहीं भी करती तो तेरे भीतर एक आग उठती जो जला कर तुझे भीतर ही भीतर भस्म करती.’’

‘‘ठीक है बाबा, अब इस बारे में तुझ से कुछ नहीं पूछूंगी. तेरी मरजी जो आए वह कर,’’ कह कर मीना चली गई.

मीना ने जोकुछ सुगंधा के बारे में कहा है, सच है. सुगंधा पवन के साथ संबंध बना लेती है. यह भी सही है कि सुगंधा 3 बच्चों की मां है. उस ने तीनों की शादी कर गृहस्थी भी बसा दी है. सब से बड़ी बेटी शीला है, जिस की शादी कोटा में हुई है. सुगंधा के दोनों बेटे सरकारी नौकरी में हैं. एक सागर में इंजीनियर है तो दूसरा कटनी में तहसीलदार.

सुगंधा खुद अपने पुश्तैनी शहर जावरा में अकेली रहती है. अकेले रहने के पीछे यही वजह है कि मकान किराए पर दे रखा है.

सुगंधा के दोनों बेटे कहते हैं कि अम्मां अकेली मत रहो. हमारे साथ आ कर रहो, तब वह कभीकभी उन के पास चली जाती है. महीने दो महीने तक जिस बेटे के पास रहना होता है रह लेती है. मगर रहतेरहते यह एहसास हो जाता है कि उस के रहने से वहां उन की आजादी में बाधा आ रही है, तब वह वापस पुश्तैनी शहर में आ जाती है.

यहां बड़ा सा मकान है सुगंधा का, जिस के 2 हिस्से किराए पर दे रखे हैं, एक हिस्से में वह खुद रहती है. पति की पैंशन भी मिलती है. उस के पति शैलेंद्र तहसील दफ्तर में बड़े बाबू थे. रिटायरमैंट के सालभर के भीतर उन का दिल की धड़कन रुकने से देहांत हो गया.

आज 3 साल से ज्यादा समय बीत गया है, तब से वह खुद को अकेली महसूस कर रही है. अभी उस के हाथपैर चल रहे हैं. सामाजिक जिम्मेदारी भी वह निभाती है. जब हाथपैर चलने बंद होंगे, तब वह अपने बेटों के यहां रहने चली जाएगी. फिर किराएदारों से किराया भी समय पर वसूलना पड़ता है. इसलिए उस का यहां रहना भी जरूरी है.

ज्यादातर सुगंधा अकेली रहती है, मगर जब गरमी की छुट्टियां होती हैं तो बेटीबेटों के बच्चे आ जाते है. पूरा सूना घर कोलाहल से भर जाता है. अकेले में दिन तो बीत जाता है, मगर रात में घर खाने को दौड़ता है. तब बेचैनी और बढ़ जाती है. तब आंखों से नींद गायब हो जाती है. ऐसे में शैलेंद्र के साथ गुजारी रातें उस के सामने चलचित्र की तरह आ जाते हैं. मगर जब से वह विधवा हुई है, शैलेंद्र की याद और उन के साथ बिताए गए पल उसे सोने नहीं देते.

पवन सुगंधा का किराएदार है. वह अकेला रहता है. वह पौलीटैक्निक में सिविल मेकैनिक पद पर है. उस की उम्र 56 साल के आसपास है. उस की पत्नी गुजर गई है. वह अकेला ही रहता है. उस के दोनों बेटे सरकारी नौकरी करते हैं और उज्जैन में रहते हैं. दोनों की शादी कर के उन का घर बसा दिया है.

रिटायरमैंट में 6 साल बचे हैं. वह किराए का मकान तलाशने आया था. धीरेधीरे दोनों के बीच खिंचाव बढ़ने लगा. जिस दिन चपरासी रोटी बनाने नहीं आता, उस दिन सुगंधा पवन को अपने यहां बुला लेती थी या खुद ही वहां बनाने चली जाती थी.

पवन ऊपर रहता था. सीढि़यां सुगंधा के कमरे के गलियारे से ही जाती थीं. आनेजाने के बीच कई बार उन की नजरें मिलती थीं. जब सुगंधा उसे अपने यहां रोटी खाने बुलाती थी, तब कई बार जान कर आंचल गिरा देती थी. ब्लाउज से जब उभार दिखते थे तब पवन देर तक देखता रहता था. वह आंचल से नहीं ढकती थी.

अब सुगंधा 58 साल की विधवा है, मगर फिर भी टैलीविजन पर अनचाहे सीन देखती है. उस के भीतर भी जोश पैदा होता है. जोश कभीकभी इतना ज्यादा हो जाता है कि वह छटपटा कर रह जाती है.

एक दिन सुगंधा ने पवन को अपने यहां खाना खाने के लिए बुलाया. उसे खाना परोस रही थी और कामुक निगाहों से देखती भी जा रही थी. वह आंचल भी बारबार गिराती जा रही थी. मगर पवन संकेत नहीं समझ पा रहा था. वह उम्र में उस से बड़ी भी थी. उस की आंखों पर लाज का परदा पड़ा हुआ था.

सुगंधा ने पहल करते हुए पूछ लिया, ‘‘पवन, अकेले रहते हो. बीवी है नहीं, फिर भी रात कैसे गुजारते हो?’’

पवन कोई जवाब नहीं दे पाया. एक विधवा बूढ़ी औरत ने उस से यह सवाल पूछ कर उस के भीतर हलचल मचा दी. जब वह बहुत देर तक इस का जवाब नहीं दे पाया, तब सुगंधा फिर बोली, ‘‘आप ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘तकिया ले कर तड़पता रहता हूं,’’ पवन ने मजाक के अंदाज में कहा.

‘‘बीवी की कमी पूरी हो सकती है,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन हैरान रह गया, ‘‘आप क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मैं हूं न आप के लिए,’’ इतना कह कर सुगंधा ने कामुक निगाहों से पवन की तरफ देखा.

‘‘आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं.’’

‘‘बड़ी हुई तो क्या हुआ? एक औरत का दिल भी है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है, आप खुद कह रही हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं.’’

इस के बाद तो वे एकदूसरे के बैडरूम में जाने लगे. जल्दी ही उन के संबंधों को ले कर शक होने लगा. मगर आज मीना ने उन के संबंधों को ले कर जो बात कही, उसे साफसाफ कह कर सुगंधा ने अपने मन की सारी हालत बता दी. मगर एक विधवा हो कर वह जो काम कर रही है, क्या उसे शोभा देता है? समाज को पता चलेगा तब सब उस की बुराई करेंगे. उस पर ताने कसेंगे.

मीना ने तो सुगंधा के सामने पवन से शादी करने का प्रस्ताव रखा. उस का प्रस्ताव तो अच्छा है, शादी समाज का एक लाइसैंस है. दोनों के भीतर एक ही आग सुलग रही है.

मगर इस उम्र में शादी करेंगे तो मजाक नहीं उड़ेगा. अगर इस तरह से संबंध रखेंगे तब भी तो मजाक ही बनेगा.

सुगंधा बड़ी दुविधा में फंस गई. उस ने आगे बढ़ कर संबंध बनाए थे. इस से अच्छा है कि शादी कर लो. थोड़े दिन लोग बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. उस ने ऐसे कई लोग देखे हैं जो इस उम्र में जा कर शादी भी करते हैं. क्यों न पवन से बात कर के शादी कर ले?

‘‘अरे सुगंधा, आप कहां खो गईं?’’ पवन ने आ कर जब यह बात कही, तब सुगंधा पुरानी यादों से आज में लौटी, ‘‘लगता है, बहुत गहरे विचारों में खो गई थीं?’’

‘‘हां पवन, मैं यादों में खो गई थी.’’

‘‘लगता है, पुरानी यादों से तुम परेशानी महसूस कर रही हो.’’

‘‘हां, सही कहा आप ने.’’

‘‘देखो सुगंधा, यादों को भूल जाओ वरना ये जीने नहीं देंगे.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं पवन, आप से आगे रह कर जो संबंध बनाए… मैं ने अच्छा नहीं किया,’’ अपनी उदासी छिपाते हुए सुगंधा बोली. फिर पलभर रुक कर वह बोली, ‘‘लोग हम पर उंगली उठाएंगे, उस के पहले हमें फैसला कर लेना चाहिए.’’

‘‘फैसला… कौन सा फैसला सुगंधा?’’ पवन ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हमारे बीच जो संबंध है, उसे तोड़ दें या परमानैंट बना लें.’’

‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘मतलब यह कि या तो आप मकान खाली कर के कहीं चले जाएं या फिर हम शादी कर लें.’’

सुगंधा ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब पवन भीतर ही भीतर खुश हो गया. मगर यह संबंध कैसे होगा. वह बोला, ‘‘हम शादी कर लें, यह बात तो ठीक है सुगंधा. मगर आप की और हमारी औलादें सब घरगृहस्थी वाली हो गई हैं. ऐसे में शादी का फैसला…’’

‘‘नहीं हो सकता है, यही कहना चाहते हो न,’’ पवन को रुकते देख सुगंधा बोली, ‘‘मगर, यह क्यों नहीं सोचते कि हमारी औलादें अपनेअपने घर में बिजी हैं. अगर हम शादी कर लेंगे, तब वे हमारी चिंता से मुक्त हो जाएंगे. जवानी तो मौजमस्ती और बच्चे पैदा करने की होती है. मगर जब पतिपत्नी बूढ़े हो जाते हैं, तब उन्हें एकदूसरे की ज्यादा जरूरत होती है. आज हमें एकदूसरे की जरूरत है. आप इस बात को क्यों नहीं समझते हो?’’

‘‘आप ने ठीक सोचा है सुगंधा. मेरी पत्नी गुजर जाने के बाद मुझे अकेलापन खूब खलने लगा. मगर जब से आप मेरी जिंदगी में आई हैं, मेरा वह अकेलापन दूर हो गया है.’’

‘‘सच कहते हो. मुझे भी अपने पति की रात को अकेले में खूब याद आती है,’’ सुगंधा ने भी अपना दर्द उगला.

‘‘मतलब यह है कि हम दोनों एक ही आग में सुलग रहे हैं. अब हमें शादी किस तरह करनी चाहिए, इस पर सोचना चाहिए.’’

‘‘आप शादी के लिए राजी हो गए?’’ बहुत सालों के बाद सुगंधा के चेहरे पर खुशी झलकी थी. वह आगे बोली, ‘‘शादी किस तरह करनी है, यह सब मैं ने सोच लिया है.’’

‘‘क्या सोचा है सुगंधा?’’

‘‘अदालत में गुपचुप तरीके से खास दोस्तों की मौजूदगी में शादी करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मगर, इस की हवा किसी को भी नहीं लगनी चाहिए. यहां तक कि अपने बच्चों को भी नहीं.’’

‘‘मगर, बच्चों को तो बताना ही पड़ेगा,’’ पवन ने कहा, ‘‘जब हमारे हाथपैर नहीं चलेंगे, तब वे ही संभालेंगे.’’

‘‘शादी के बाद एक पार्टी देंगे. जिस का इंतजाम हमारे बच्चे करेंगे,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन भी सहमत हो गया.

इस के ठीक एक महीने बाद कुछ खास दोस्तों के बीच अदालत में शादी कर के वे जीवनसाथी बन गए. सारा महल्ला हैरान था. उन्होंने अपनी शादी की जरा भी हवा न लगने दी थी. 2 बूढ़ों की अनोखी शादी पर लोगों ने उन की खिल्ली उड़ाई. मगर उन्होंने इस की जरा भी परवाह नहीं की.

कोई खुश हो या न हो, मगर उन की औलादें इस शादी से खुश थीं, क्योंकि उन्हें मातापिता की नई जोड़ी जो मिल गई थी. Story In Hindi

Hindi Family Story: सूली ऊपर सेज पिया की

Hindi Family Story: आकृति भाग कर बैडरूम से बाहर निकलने लगी. राठीजी ने उसे दरवाजे पर ही पकड़ लिया और खींच कर दोबारा बिस्तर में ले आए. उस ने छूटने के लिए काफी जोर लगाया, मगर छूट नहीं पाई.

राठीजी अपने शरीर का पूरा भार लिए उस पर चढ़ गए. वह बुरी तरह दब गई. जब उस का तिलमिलाना बंद हुआ, तब वे उस की छाती से शुरू करने लगे.

‘‘नहीं…’’ आकृति चीखी.

‘‘डर मत. आज आराम से करूंगा,’’ कह कर राठीजी गीले होंठों से उसे चूमने लगे. मगर एक उबाल आने की देर थी कि तैश में आ कर राठीजी वहशी हो गए और उन्होंने उस की गोरी नरम चमड़ी पर दांत भींच दिए.

आकृति जोर से चिल्लाई. अचानक हुए तीखे दर्द ने मानो उसे पागल कर दिया हो. उस ने बाल नोंच कर राठीजी का सिर अपने से जुदा करने की कोशिश की. बदले में राठीजी ने पुरजोर अपनी देह उस के ऊपर छोड़ दी. उसे मजबूर कर के मनचाहे तरीके से मनचाहे समय तक लूटा.

काम हो जाने के बाद वे उतरे और लुढ़क कर बिस्तर में अपनी वाली साइड पर जा कर सो गए. आकृति देर रात तक रोती रही. उस की सुबकियां सुनने वाला कोई न था, फिर भी उस के मन के किसी कोने में इस बात का चैन था कि कम से कम आज का नरक बीत गया.

आकृति को घिन आती थी रोजरोज के मेलमिलाप से, पर उस के पति मानते नहीं थे. उन की आदत बन चुकी थी रोज रात को 11 बजे तक शराब पीना और फिर उस की सोई हुई देह के साथ मनमानी करना.

वह जितना मना करती, वे उतनी ही मर्दानगी दिखाते. कभीकभी उसे इतना गुस्सा आता कि मन होता तकिए के नीचे छुरा रख कर सोए, मगर छुरा चलाने के लिए हिम्मत चाहिए होती है, जो उस के पास नहीं थी. बात घर की चारदीवारी से निकल न जाए, इस बात का डर भी था और शर्म भी.

उन की शादी को 20 साल हो चुके थे. बच्चे बड़े हो कर पढ़ने के लिए विदेश जा चुके थे, मगर उन की हर रात ऐसे गुजरती मानो वे दूल्हादुलहन हों. राठीजी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते थे. न जाने कहां से इतना गंद सुन कर आते और रोज रात उस पर आजमाते.

एक बार आकृति ने पुलिस में शिकायत करने की धमकी दी, मगर कुछ फर्क नहीं पड़ा. राठीजी को पता था कि वह कहीं नहीं जाएगी. एक बार आधी रात में राठीजी की नाजायज हरकत पर आकृति ने चेतावनी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने मियांबीवी की आपस की जबरदस्ती को गैरकानूनी करार दिया है. 2 मिनट, सिर्फ 2 मिनट के लिए राठीजी रुके थे और फिर से अपने रूप में आ गए.

अगले दिन दफ्तर जाते वक्त उस की आंखों में पिछली रात की कहानी घूम रही थी. अपना दुख हलका करे भी तो किस के साथ? बहन से कहते हुए शर्म आती थी. वह बेचारी तलाकशुदा थी और पिछले 15 सालों से अकेली रह रही थी. फिर उसे डर लगता था कि कहीं बहन ऐसी सलाह न दे दे, जिस से उस की जिंदगी में भी कोर्टकचहरियों के चक्कर पड़ जाएं और शादी टूटने के कगार पर आ जाए.

दफ्तर में एक बार उस ने अपनी सहेली से पूछा था कि उस की शादीशुदा जिंदगी कैसी है, तो पता लगा कि वे 3-4 दिन में एक बार करते हैं और वह भी 2 मिनट में खत्म. आकृति ने अपनी बात बताई, तो वह कमबख्त सहेली बोली, ‘‘तो मजे ले न…’’

कभी अपने पति को दिन के समय प्यार से सम?ाने की कोशिश करती, तो वे सम?ा जाते, पर रात को बिस्तर पर लेटते ही सब भूल जाते. क्या उन के दोस्तों की सैक्स लाइफ भी उन की तरह थी?

राठीजी तपाक से बोले, ‘‘अरे नहीं, वंशी बता रहा था कि उस का और उस की बीवी का मामला तो बहुत ही मेकैनिकल रहता है.’’

आकृति एक दिन अपनी सहेली आशा के पास गई. वह एक महिला संगठन में काम करती थी. दोनों ने मिल कर इस समस्या पर बातचीत की.

आशा ने एक कहानी सुनाई. वह एक दफा किसी गांव की औरतों को ‘कन्या भ्रूण हत्या’ के बारे में सम?ाने गई थी. उस ने वहां इकट्ठा हुई औरतों को बताया कि कैसे पेट में पल रही कन्या के सिर को पैनी चिमटी से तब तक कुचला जाता है, जब तक वह मर न जाए. ऐसा मामला सुन कर औरतों को सम?ा आ गया कि कन्या भ्रूण हत्या किसी कत्ल से कम संजीदा गुनाह नहीं.

‘‘कुछ सम?ा?’’ आशा ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘इस दुनिया में घिनौने से घिनौने पाप होते हैं. बस जरूरत है उन पर रोशनी डालने की. एक बार जो लोगों को पता चल जाए कि ऐसा हो रहा है, तो गंदगी के कीटाणु ?ालस कर अपनी मौत मर जाते हैं,’’ आशा ने सम?ाते हुए कहा.

आकृति सलाह तो सम?ा गई थी, मगर उसे गैरअमली जान कर खामोश रह गई. बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?  फिर और बहुत सी बातें थीं, जिन की वजह से रिश्ता तोड़ना सही सलाह नहीं थी.

किसी की शराब कैसे छुड़वाई जाए, इस पर आकृति ने काफी खोज की. उसे लगता था कि अगर राठीजी की शराब पीने की आदत छुड़वा दी जाए, तो उस की हालत में सुधार हो जाए.

आकृति ने कोशिश की. नीमहकीमों के पास गई. टोनेटोटके किए. सब्जियों का जूस दिन में 4 बार पिलाया. सयानों ने ठीक कहा है कि शराब और जुए जैसी लतें कभी किसी की नहीं छूटतीं.

आकृति ने अपनी दूर की ननद से मदद मांगनी चाही, मगर उस के मन में राठीजी के लिए किसी पुरानी बात को ले कर कोई मलाल था, जिस की वजह से उस ने अपना पल्ला भी नहीं पकड़ाया. आकृति ने और भी कई कोशिशें कीं, पर मायूसी ही हाथ लगी.

आकृति को एक वाहियात खयाल आया. उस की गली में से एक आदमी निकलता था जो उसे देख कर फूहड़ इशारे करता था.

आकृति ने सोचा कि उस की मदद ली जाए, तो हो सकता है कि लोहा लोहे को काट दे, मगर फिर यह सोच कर पीछे हट गई कि अगर वह आदमी मुसीबत की तरह पीछे पड़ गया, तो अच्छीखासी बदनामी हो जाएगी. एक राठीजी पीछे से उतरेंगे और दूसरा पीठ पर सवार हो जाएगा. किसी को क्या जवाब देगी कि आखिर वह आदमी पीछे पड़ा कैसे?

ओशो कहते हैं कि आदमियों में सैक्स करने की चाह एक फूल की तरह होती है. जैसे फूल खिलता है, यह चाह जागती है और जब वे जवानी पार कर लेते हैं, तो जैसे फूल मुर?ा जाता है, यह चाह भी खत्म हो जाती है. इस का मतलब था कि उसे राठीजी के अंदर का फूल मुर?ाने का इंतजार करना होगा यानी उसे अभी और कई साल तक नरक भोगना होगा.

वक्त गुजरता गया. आकृति के दुखों को नजात न मिली. उस को अकसर एक सपना आता था कि वह एक लंबी रेस में भाग रही है. उस ने एक धाविका के कपड़े पहने हुए हैं. पसीने में तरबतर, भरी सड़क पर, बीच बाजार में, गली में, महल्ले में, वह भागी जा रही है. एक अंधी दौड़. मोड़ आता है तो मुड़ जाती है. कोई अटकल आती है तो बाजू से निकल जाती है, मगर वह भागती रहती है. यह दौड़ कभी खत्म नहीं होती. इस दौड़ की न कोई मंजिल है और न कोई पड़ाव.

कुछ दिनों बाद आकृति को राठीजी के गांव जाना पड़ा. वह जगह हरियाणा के एक बेहद पिछड़े देहात में थी. उन के चचेरे भाई की शादी का न्योता था.

शादी के माहौल में एक ऐसा समय आया, जब घर के आंगन में बैठी औरतें यों ही बतिया रहीं थीं.

आकृति भी उन में जा कर बैठ गई. कोई राठीजी की चाची थी, कोई ताई, कोई भाभी, तो कोई पड़ोसन.

बातोंबातों में मर्दों की औरत पर रोब जमाने की बातें चल निकलीं. एक भाभी ने बताया कि कैसे एक बार उन के घर में किसी रिश्तेदार के आने पर उन से खाना बनाने में जरा सी चूक हो गई.

इस बात को ले कर उन के पति ने बात को इतना खींचा कि भाभी का जीना मुश्किल कर दिया. उन के मायके में शिकायत लगाई. हर आएगए के सामने बात को छेड़ा.

बात तब खत्म हुई, जब भाभी ने किसी अगले मौके पर उस ही रिश्तेदार की आवभगत जीजान लगा कर न कर दी, माफी मांगी सो अलग.

तभी एक बूढ़ी अम्मां बोलीं, ‘‘अरे, क्या तुम लोगों ने सुना है किशना का किस्सा?’’

‘‘क्या किस्सा है उस के बारे में?’’ किसी ने पूछा.

‘‘अरे, वह इतना जालिम था कि जब देखो तब अपनी बीवी को मारने के लिए तैयार रहता था. एक बार वह चूल्हे पर खाना बना रही थी कि किशना ने बेंत से मारमार कर बेचारी के कुहनीघुटने छील दिए.’’

एक बूढ़ी औरत बोली, ‘‘अजी, गृहस्थ सुख तो इतना बड़ा सुख है कि इस को पाने के लिए जो भी सहना पड़े,

सह लेना चाहिए. इसी में औरत की इज्जत है.’’

उन की बातें चलती जा रही थीं…

‘‘अरे, घर में मर्द होना जरूरी है, चाहे लंगड़ालूला ही क्यों न हो.’’

चाची बोलीं, ‘‘मैं तो कहती हूं कि घर के दरवाजे पर मर्द की चप्पल भी पड़ी हो, वह भी बहुत बड़ी चीज है. उसी को देख कर समाज चुप हो जाता है.’’

आकृति को एक अजीब तरह की घबराहट हुई. वह उठ कर हवेली के अंदर चली आई. देर तक उस के दिमाग में उन औरतों की बातें घूमती रहीं. उन की नजर में औरत अभी तक मर्द के पैर की जूती थी. फिर उस ने अपनी जिंदगी की ओर एकतरफा हो कर सोचा.

आकृति का दुख ऐसा नहीं था कि राठीजी उसे मारतेपीटते हों या मेहमानों के आगे सिर ?ाकवाते हों. बस रातों को ही सैक्स चाहते थे… अपनी पसंद का, अपने तरीके का, जिस में न सिर्फ उन्हें राहत चाहिए थी, बल्कि अपने वहशीपन की खुराक भी.

बाकी समय तो वे ठीक रहते थे. जब सूफी होते, तो उन से बढि़या कोई आदमी ही नहीं था. ‘आकृतिआकृति’ कर के उस के आगेपीछे फिरते थे.

आकृति एक शहर में रहने वाली कामकाजी औरत थी. वह उन औरतों की इस बात से इत्तिफाक रखती थी कि घर में मर्द की मौजूदगी बहुत जरूरी है. यह समाज ही कुछ ऐसा है. इसे बदलने में अभी बहुत समय लगेगा.

उस की सहेली पूनम, जो उस के दफ्तर में ही काम किया करती थी, किसी वजह से कुंआरी रह गई. उस की कैसीकैसी कहानियां बनती थीं. दफ्तर में काम करने वाले एक अधेड़ उम्र के नरूलाजी, जिन्होंने कभी उसे 1-2 बार लिफ्ट दी थी, के साथ उसे जोड़ा जाता मानो दोनों में कुछ गंभीर मसला हो. अगर कभी आकृति लोगों को नकारने की कोशिश करती, तो अपनेआप को बेबस पाती.

पितृसत्तात्मक व्यवस्था की जन्मी रूढि़वादी सोच ने लोगों के दिमागों में ऐसा घर किया हुआ है कि उसे निकालना उस अकेली के बस की बात नहीं. फिर जितने मुंह उतनी बातें, वह किसकिस को रोकती.

फिर वह चपरासिन शीला… जवान, सुंदर, भरी छाती वाली, मगर गरीब. ऊपर से वह विधवा हो गई. बेचारी सादी सूती साड़ी में जिस्म ढक कर बिना साजसिंगार के आती थी. सारा दिन नजरें नीची रख के काम करती रहती, मगर फिर भी प्रताप नाम का दरिंदा उस का पीछा नहीं छोड़ता था. सारे मुलाजिमों के सामने उस पर डोरे डालने से बाज नहीं आता था.

लंबाचौड़ा, 6 बच्चों का बाप, बेशर्मी से कहता था, ‘शीला, तू किसी चीज की फिक्र मत करना. पैसों की तो बिलकुल ही नहीं…’ शीला को वह रखैल बनाने के चक्कर में था.

और वह विधवा कुसुम, जिस की दफ्तर में ही काम करने वाले एक बूढ़े गुप्ताजी के साथ दोस्ती थी, की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. वह उन्हें अपना दोस्त मानती थी. उन के साथ घरपरिवार के दुखसुख कह लेती थी.

अपनी जवान होती बेटी के लिए रिश्ता ढूंढ़ने में कुसुम को दिक्कत हो रही थी. उस ने गुप्ताजी से मदद मांगी. दोनों एक ही समाज के थे. गुप्ताजी ने अपनी साख लगा कर एक रिश्ता ढूंढ़ निकाला. दहेज में कार देनी पड़ी, लेकिन लड़की की शादी ठीकठाक निबट गई.

बात मगर यहीं खत्म नहीं हुई. एक दिन वे कुसुम के घर रात को पहुंच गए. मौका पा कर उस की बांह अपनी ओर खींची. कुसुम ‘नहींनहीं, गुप्ताजी’ कह कर पीछे हो गई. फिर क्या था, गुप्ताजी ने अगले दिन यह किस्सा आम कर दिया. अगर कुसुम के पति जिंदा होते, तो ऐसा कुछ भी नहीं होता.

गांव से शादी निबटाने के बाद आकृति और राठीजी घर वापस आ गए. अब उस ने पंख फड़फड़ाने बंद कर दिए. उस के मांबाप मर चुके थे. भैयाभाभी सात समंदर पार रहते थे. एक बहन थी, जो तलाक और जिल्लत ?ोलते?ोलते पथरा गई थी. अपने हालात को मद्देनजर रख कर उस ने अपने पिंजरे में ही खुशी ढूंढ़ने की कोशिश की.

अब भी आकृति को वही सपना आता था, मगर थोड़ा सा अलग. सपने में वह खुद को भागते हुए देखती. भीड़ में बिना किसी की परवाह किए, पसीनापसीना होने के बावजूद वह भागती रहती. भागभाग कर उस का जिस्म गठीला हो चुका है. उस की टांगों में ताकत आ गई है, बाजुओं में भी और वह बहुत खूबसूरत हो गई है. चेहरे का नूर बढ़ गया है. लोग उसे कामयाब मान कर इज्जत दे रहे हैं.

अब आकृति की जिंदगी बढि़या गुजरती है. हां, लेकिन कभी कोई जब उस के कांच के घर पर पत्थर फेंकता है, तो सारा ढांचा टूट कर बिखर जाता है, जिसे समटेने में उसे दोबारा मेहनत करनी पड़ती है. वह रोज तप करती है और रोज उस का स्वाद भोगती है. Hindi Family Story

Hindi Kahani: नहीं बचे आंसू – सुधा ने कैसे उठाया जवानी का फायदा

Hindi Kahani: सुधा का पति राम सजीवन दूरसंचार महकमे में लाइनमैन था. एक दिन काम के दौरान वह खंभे से गिर गया. उसे गहरी चोट लगी. अस्पताल ले जाते समय रास्ते में उस ने दम तोड़ दिया.

सुधा की जिंदगी में अंधेरा छा गया. वह कम पढ़ीलिखी देहाती औरत थी. उस के 2 मासूम बच्चे थे. बड़ा बेटा पहली क्लास में पढ़ता था और छोटा 2 साल का था.

पति का क्रियाकर्म हो गया, तो सुधा ससुराल से मायके चली आई. वहां उस के बड़े भाई सुखनंदन ने कहा, ‘‘बहन, जो होना था, वह तो हो ही गया. गम भुलाओ और आगे की सोचो. बताओ कि नौकरी करोगी? बहनोई की जगह तुम्हें नौकरी मिल जाएगी. एक नेता मेरे जानने वाले हैं. उन से कहूंगा तो वे जल्दी ही तुम्हें नौकरी पर रखवा देंगे.’’

‘‘कुछ तो करना ही होगा भैया, वरना इन बच्चों का क्या होगा? लेकिन, मैं 8वीं जमात तक ही तो पढ़ी हूं. क्या मुझे नौकरी मिल जाएगी?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘चपरासी की नौकरी तो मिल ही जाएगी. मैं आज ही नेता से मिलता हूं,’’ सुखनंदन बोला.

सुखनंदन की दौड़धूप काम आई और सुधा को जल्दी ही नौकरी मिल गई. ‘‘बहन, तुम बच्चों को ले कर शहर में रहो. मैं वहां आताजाता रहूंगा. कोई चिंता की बात नहीं है. तुम्हारी तरह बहुत सी औरतें हैं दुनिया में, जो हिम्मत से काम ले कर अपनी और बच्चों की जिंदगी संवार रही हैं,’’ सुखनंदन ने बहन का हौसला बढ़ाया.

सुधा शहर आ गई और किराए के मकान में रह कर चपरासी की नौकरी करने लगी. उस ने पास के स्कूल में बड़े बेटे का दाखिला करा दिया.

सुखनंदन सुधा का पूरा खयाल रखता था. वह बीचबीच में गांव से राशन वगैरह ले कर आया करता था. फोन पर तो रोज ही बात कर लिया करता था.

सुधा खूबसूरत और जवान थी. महकमे के कई अफसर और बाबू उसे देख कर लार टपकाते रहते थे. उस से नजदीकी बनाने के लिए भी कोई उस के प्रति हमदर्दी जताता, तो कोई रुपएपैसे का लालच देता.

सुधा का मकान मालिक भी रसिया किस्म का था. वह नशेड़ी भी था. सुधा पर उस की नीयत खराब थी. कभीकभी शराब के नशे में वह आधी रात में उस का दरवाजा खटखटाया करता था. आतेजाते कई मनचले भी सुधा को छेड़ा करते थे. किसी तरह दिन कटते रहे और सुधा खुद को बचाती रही. उस के साथ राजू नाम का एक चपरासी काम करता था. वह उस का दीवाना था, लेकिन दिल की बात जबान पर नहीं ला पा रहा था.

राजू बदमाश किस्म का आदमी था और शराब का नशा भी करता था. वह अकसर लोगों के साथ मारपीट किया करता था, लेकिन सुधा से बेहद अच्छी बातें किया करता था.

राजू उसे भरोसा दिलाता था, ‘‘मेरे रहते चिंता बिलकुल मत करना. कोई आंख उठा कर देखे तो बताना… मैं उस की आंख निकाल लूंगा.’’

सुधा को राजू अकसर घर भी छोड़ दिया करता था. कुछ दिनों बाद राजू सुधा को घुमानेफिराने भी लगा. सुधा को भी उस का साथ भाने लगा. वह राजू से खुल कर हंसनेबोलने लगी.

जल्दी ही दोनों के बीच प्यार हो गया. अब तो राजू उस के घर आ कर उठनेबैठने लगा. सुधा के बच्चे उसे ‘अंकल’ कहने लगे. वह बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें भी लाया करता था.

सुधा के पड़ोस में एक और किराएदार रहता था. राजू ने उस से दोस्ती कर ली.

एक दिन वह किराएदार अपने गांव जाने लगा, तो राजू ने उस से मकान की चाबी मांग ली. दिन में उस ने सुधा से कहा, ‘‘आज रात मैं तुम्हारे साथ गुजारूंगा.’’

‘‘लेकिन, कैसे? बच्चे भी तो हैं,’’ सुधा ने समस्या रखी.

‘‘उस की चिंता तुम बिलकुल न करो…’’ यह कह कर उस ने जेब से चाबी निकाली और कहा, ‘‘यह देखो, मैं ने सुबह ही इंतजाम कर लिया है. आज तुम्हारा पड़ोसी गांव चला गया है. रात को मैं आऊंगा और उसी के कमरे में…’’

सुधा मुसकराई और फिर शरमा कर उस ने सिर झुका लिया. उस की भी इच्छा हो रही थी और वह राजू की बांहों में समा जाना चाहती थी.

राजू देर रात शराब के नशे में आया. उस ने सुधा के पड़ोसी के मकान का दरवाजा खोला. आहट मिली तो सुधा जाग गई. उस के दोनों बेटे सो रहे थे. उस ने आहिस्ता से अपना दरवाजा बंद किया और पड़ोसी के कमरे में चली गई.

राजू ने फौरन दरवाजा बंद कर लिया. उस के बाद जो होना था, वह देर रात तक होता रहा. लंबे अरसे बाद उस रात सुधा को जिस्मानी सुख मिला था. वह राजू की बांहों में खो गई थी. तड़के राजू चला गया और सुधा अपने कमरे में आ गई.

सुधा और पड़ोसी के मकान के बीच जो दीवार थी, उस में दरवाजा लगा था. पहले जो किराएदार रहता था, उस ने दोनों कमरे ले रखे थे. वह जब मकान छोड़ कर गया, तो मालिक ने दोनों कमरों के बीच का दरवाजा बंद कर दिया और ज्यादा किराए के लालच में 2 किराएदार रख लिए. अब उसे एक हजार की जगह 2 हजार रुपए मिलने लगे.

उस रात के बाद राजू अकसर सुधा के घर देर रात आने लगा. कई बार सुधा का भाई सुबहसुबह ही आ जाता और राजू अंदर. ऐसी हालत में बीच का दरवाजा काम आता था. राजू उस दरवाजे से पड़ोसी के मकान में दाखिल हो जाता था.

सुधा के भाई को कभी शक ही नहीं हुआ कि बहन क्या गुल खिला रही है. वह तो उसे सीधीसादी, गांव की भोलीभाली औरत मानता था. राजू का अपना भी परिवार था. बीवी थी, 4 बच्चे थे. परिवार के साथ वह किसी झुग्गी बस्ती में रहता था. बीवी उस से बेहद परेशान थी, क्योंकि वह पगार का काफी हिस्सा शराबखोरी में उड़ा दिया करता था.

बीवी मना करती, तो राजू उस के साथ मारपीट भी करता था. पैसों के बिना न तो ठीक से घर चल रहा था और न ही बच्चे पढ़लिख पा रहे थे.

पहले तो राजू कुछ रुपए घर में दे दिया करता था, लेकिन जब से उस की सुधा से नजदीकी बढ़ी, तब से पूरी तनख्वाह ला कर उसे ही थमा दिया करता था.

सुधा उस के पैसों से अपना शहर का खर्च चलाती और अपनी तनख्वाह बैंक में जमा कर देती. वह काफी चालाक हो गई थी. राजू डालडाल तो सुधा पातपात थी.

उधर राजू की बीवी घर चलाने के लिए कई बड़े लोगों के घरों में नौकरानी का काम करने लगी थी. वह खून के आंसू रो रही थी. लेकिन उस ने कोई गलत रास्ता नहीं चुना, मेहनत कर के किसी तरह बच्चों को पालती रही.

कुछ साल बाद रकम जुड़ गई, तो सुधा ने ससुराल में अपना मकान बनवा लिया. ससुराल वालों ने हालांकि उस का विरोध किया कि वह गांव में न रहे, वे उस का हिस्सा हड़प कर जाना चाहते थे, लेकिन पैसा मुट्ठी में होने से सुधा में ताकत आ गई थी. उस ने जेठ को धमकाया, तो वह डर गया. सुधा का बढि़या मकान बन गया.

‘‘भैया, तुम मेरा पास के टैलीफोन के दफ्तर में ट्रांसफर करा दो नेता से कह कर. इस से मैं घर और खेतीबारी भी देख सकूंगी,’’ एक दिन सुधा ने भाईर् से कहा.

‘‘मैं कोशिश करता हूं,’’  सुखनंदन ने उसे भरोसा दिलाया.

कुछ महीने बाद सुधा का तबादला उस के गांव के पास के कसबे में हो गया. यह जानकारी जब राजू को हुई, तो वह बेहद गुस्सा हुआ और बोला, ‘‘मेरे साथ इतनी बड़ी गद्दारी? तुम्हारे चलते मैं ने अपने बालबच्चे छोड़ दिए और तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी? ऐसा कतई नहीं होगा. या तो मैं तुम्हें मार डालूंगा या खुद ही जान दे दूंगा. तुम्हारी जुदाई मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘राजू, तुम मरो या जीओ, इस से मेरा कोई मतलब नहीं. यह मेरी मजबूरी थी कि मैं ने तुम से संबंध बनाया. तमाम लोगों से बचने के लिए मैं ने तुम्हारा हाथ पकड़ा. अब मेरा सारा काम बन चुका है. मुझे हाथ उठाने के बारे में सोचना भी नहीं, वरना जेल की हवा खाओगे. आज के बाद मुझ से मिलना भी नहीं,’’ सुधा ने धमकाया.

राजू डर गया. वह सुधा के सामने रोनेगिड़गिड़ाने लगा, लेकिन सुधा का दिल नहीं पसीजा. अगले ही दिन वह मकान खाली कर गांव चली गई.

प्यार में पागल राजू सुधा का गम बरदाश्त नहीं कर सका. कुछ दिन बाद उस ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली. जब राजू की पत्नी को उस के मरने की खबर मिली, तो वह बोली, ‘‘मेरे लिए तो वह बहुत पहले ही मर गया था. उस ने मुझे इतना रुलाया कि आज उस की मिट्टी के सामने रोने के लिए मेरी आंखों में आंसू नहीं बचे हैं,’’ यह कह कर वह बेहोश हो कर गिर पड़ी.

राजू के घर के सामने लोगों की भीड़ लग गई. लोग पानी के छींटे मार कर उस की पत्नी को होश में लाने की कोशिश कर रहे थे. Hindi Kahani

Hindi Story: बहू – कैसे बुझी शाहिदा की प्यास

Hindi Story: शाहिदा शेख प्रोफैसर महमूद शौकत की छात्रा रह चुकी थी. 3 साल पहले बीए की डिगरी ले कर वह घर बैठ गई थी. कुछ दिनों पहले न जाने कैसे और कब वह प्रोफैसर से आ मिली, कब दिलोदिमाग पर छाई, कब हवस बन कर रोमरोम में समा गई, उन्हें कुछ नहीं याद. यह भी याद नहीं कि पहले किस ने किस को बेपरदा किया था.

अगर याददाश्त में कुछ महफूज रखा था तो बस शाहिदा शेख की चंचलता, अल्हड़ता और उस का मादक शरीर जो उन की खाली जिंदगी और ढलती उम्र के लिए खास तोहफे की तरह था.

यही हाल शाहिदा शेख का भी था, क्योंकि दोनों ही एकदूसरे के बिना अधूरापन महसूस करते थे.

शाहिदा शेख अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी, इसलिए एक प्रोफैसर का उन के घर आनाजाना किसी इज्जत से कम न था. उन्हें अपनी बेटी पर फख्र भी होता था कि यह इज्जत उन्हें उसी के चलते मिल रही थी. वे समझते थे कि प्रोफैसर उन की बेटी को अपनी बेटी की तरह मानते हैं.

प्रोफैसर महमूद शौकत को दिलफेंक, आशिकमिजाज या हवस का पुजारी कहा जाए, ऐसा कतई न था, बल्कि वे तो ऐसे लोगों में से थे जो हर समय गंभीरता ओढ़े रहते हैं. अलबत्ता, वे सठिया जरूर गए थे यानी उन की उम्र 60वें साल में घुस चुकी थी.

प्रोफैसर महमूद शौकत की पत्नी 10 साल पहले ही इस दुनिया से जा चुकी थीं. पत्नी की इस अचानक जुदाई से प्रोफैसर महमूद शौकत ऐसे बिखरे थे कि उन का सिमटना मुहाल हो गया था. कालेज जाना तो दूर खानेपीने तक की सुध न रहती थी. हां, कुछ होश था तो बस उन्हें अपनी बेटी का, जो जवानी की दहलीज पर थी. अब तो वह भी अपने घरबार की हो गई थी और 2 बच्चों की मां भी बन चुकी थी. बेटा कंप्यूटर इंजीनियर था और एक निजी कंपनी में मुलाजिम था. प्रोफैसर महमूद शौकत समय से पहले रिटायरमैंट ले कर खुद आराम से सुख भोग रहे थे.

इधर लगातार कई दिनों से प्रोफैसर महमूद शौकत शाहिदा शेख का दीदार न कर सके थे. इंतजार जब आंख का कांटा बन गया तो वे सीधे उस के घर जा पहुंचे. पता चला कि वह पिछले 10 दिनों से मलेरिया से पीडि़त थी. खैर, अब कुछ राहत थी लेकिन कमजोरी ऐसी कि उठनाबैठना मुहाल हो गया था.

प्रोफैसर महमूद शौकत जैसे ही शाहिदा शेख के बैडरूम में गए, उन्हें देखते ही शाहिदा की निराश आंखें चमक उठीं और बीमार मुरझाया चेहरा खिल गया.

इस बीच प्रोफैसर महमूद शौकत शाहिदा की नब्ज देखने के लिए उस पर झुके थे कि उस ने झट उन पर गलबहियां डाल दीं और अपने तपतेसुलगते होंठों को उन के होंठों में धंसा दिया.

शाहिदा शेख के ऐसे बरताव से प्रोफैसर महमूद शौकत शर्मिंदा हो उठे और खुद को उस की पकड़ से छुड़ाते हुए बोले, ‘‘प्लीज, मौके की नजाकत को समझो.’’

‘‘समझ रही हूं सर कि मम्मी हमारे बीच दीवार बनी हुई हैं. मैं तो उम्मीद कर रही हूं कि वे थोड़ी देर के लिए ही सही, किसी काम से बाहर चली जाएं और हम एकदूसरे में…’’

शाहिदा की पकड़ से छूट कर प्रोफैसर महमूद शौकत सोफे पर बैठे ही थे कि शाहिदा की मम्मी चायनमकीन लिए कमरे में आ धमकीं.

यह देख प्रोफैसर का जी धक से हो गया और चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वे सोचने लगे कि अगर वे कुछ समय पहले आ जातीं तो…

बहरहाल, चाय की चुसकियों के दौरान उन में बातें होने लगीं. फिर शाहिदा की मम्मी अपने घराने और शाहिदा से संबंधित बातों की गठरी खोल बैठीं. बातों ही बातों में उस के ब्याह की चर्चा छेड़ दी. वे कहने लगीं, ‘‘प्रोफैसर साहब, हम पिछले 3 महीनों से शाहिदा के लिए लड़का खोज रहे हैं, पर अच्छे लड़कों का तो जैसे अकाल पड़ा है. देखिए न कोई मुनासिब लड़का हमारी शाहिदा के लिए.’’

इस से पहले कि प्रोफैसर कुछ कहते, शाहिदा झट से बोल पड़ी, ‘‘सर, अपनी ही कालोनी में देखिएगा, ताकि शादी के बाद भी मैं आप के करीब रहूं.’’

उस रात प्रोफैसर सो नहीं सके थे. शाहिदा का कहा उन के दिमाग में गूंजने लगता और वे चौंक कर उठ बैठते.

इसी उधेड़बुन में वे धीरेधीरे फ्लैशबैक में चले गए.

होटल मेघदूत के आलीशान कमरे में नरम बिस्तर पर शाहिदा शेख बिना कपड़ों के प्रोफैसर महमूद शौकत की बांहों में सिमटी कह रही थी, ‘जी तो चाहता है सर, मैं जवानी की सभी घडि़यां आप की बांहों में बिताऊं. आप ऐसे ही मेरे बदन के तारों को छेड़ते रहें और मैं आप की मर्दानगी से मस्त होती रहूं.’

इतना सुनने के बाद प्रोफैसर ने उस के रेशमी बालों से खेलते हुए पूछा था, ‘तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि हम जो कर रहे हैं, वह गुनाह है?’

शाहिदा ने न में सिर हिला दिया.

‘क्यों?’

‘क्योंकि, सैक्स कुदरत की देन है. इस को गुनाह कैसे कह सकते हैं. वैसे भी सर, मैं तो मानती हूं कि यह केवल हमारी शारीरिक जरूरत है. आप मर्द हैं और आप को मेरी जवानी चाहिए. मैं औरत हूं और मुझे आप की मर्दानगी की तलब है.’

‘ओह मेरी जान,’ शाहिदा की इस बात पर प्रोफैसर महमूद शौकत चहक उठे थे. साथ ही, उन के होंठ उस के होंठों पर झुकते चले गए.

शाहिदा इस अचानक हल्ले के लिए तैयार न थी, फिर भी उन की छुअन ने उस के शरीर को झनझना दिया था और उस का कोमल शरीर उन की बांहों के घेरे में फड़फड़ाने लगा था.

प्रोफैसर का यह कामुक हल्ला इतना तेज… इतना वहशियाना था कि शाहिदा का पोरपोर उधेड़े दे रहा था. शाहिदा भी अपने शरीर को ऐसे ढीला छोड़ रही थी मानो खुद को हारा हुआ मान लिया हो.

कुछ मिनट तक दोनों ऐसे ही बिस्तर पर उधड़ेउधड़े बिखरेबिखरे से रहे, फिर किसी तरह शाहिदा खुद को अपने में बटोरतेसमेटते फुसफुसाई, ‘सर…’

‘क्या…’

‘इस उम्र में भी आप में नौजवानों से कहीं ज्यादा मर्दानगी का जोश है.’

यह सुन कर प्रोफैसर महमूद शौकत हैरानी से उसे देखने लगे.

‘हां सर, मुझे तो अपने साथी लड़कों से कहीं ज्यादा सुख आप से मिलता है.’

‘लेकिन, तुम यह कैसे कह सकती हो?’ प्रोफैसर की आवाज में बौखलाहट आ गई थी.

‘आजमाया है मैं ने… 1-2 को नहीं, दसियों को.’

‘यानी तुम उन के साथ…’

‘बिलकुल, शायद पहले भी आप से कह चुकी हूं कि मेरे लिए जिंदगी मौत का नजरअंदाज किया हुआ एक पल है, तो क्यों न मैं हर पल को ज्यादा से ज्यादा भोगूं…’

यह सुन कर प्रोफैसर चौंक उठते हैं और फ्लैशबैक से वापस आ जाते हैं. वे फटीफटी आंखों से शून्य में घूरने लगते हैं और धीरेधीरे वह शून्य सिनेमा के परदे में बदल जाता है. उस में 2 धुंधली छाया निकाह कर रही होती हैं. जैसेजैसे दूल्हे के मुंह से ‘कबूल है’ की गिनती बढ़ती है, दुलहन शाहिदा का और दूल्हा प्रोफैसर का रूप धर लेता है.

उसी पल प्रोफैसर की बेटी अपने दोनों बच्चों की उंगली थामे शाहिदा के सामने आ खड़ी होती है और उन का यह सुंदर सपना इस तरह गायब हो जाता है जैसे बिजली गुल होने पर टैलीविजन स्क्रीन से चित्र.

सुबह होते ही प्रोफैसर शौकत बिना सोचेसमझे शाहिदा के घर जा पहुंचे. डोर बैल की आवाज पर शाहिदा की मम्मी ने दरवाजा खोला और अपने सामने प्रोफैसर को देख वे हैरत में डूब गईं, ‘‘प्रोफैसर साहब, आप…’’

प्रोफैसर महमूद शौकत चुपचाप निढाल कदमों से अंदर गए और खुद को सोफे पर गिराते हुए पूछा, ‘‘शेख साहब कहां हैं?’’

‘‘वे तो सो रहे हैं…’’ कहते हुए शाहिदा की मम्मी ने उन की आंखों में झांका, ‘‘अरे, आप की आंखें… लगता है, सारी रात आप जागते रहे हैं.’’

‘‘हां… मैं रातभर शाहिदा के निकाह को ले कर उलझा रहा… आप ने कहा था न कि मैं उस के लिए लड़का देखूं?’’

‘‘तो देखा आप ने?’’ मम्मी जानने के लिए उत्सुक हो गईं, ‘‘कौन है? क्या करता है? मतलब काम… फैमिली बैकग्राउंड क्या है?

‘‘अजी सुनते हो, उठो जल्दी… देखो, प्रोफैसर साहब आए हैं. हमारी शाहिदा के लिए लड़का देख रखा है इन्होंने. कितना ध्यान रखते हैं हमारी शाहिदा का.’’

‘‘महान नहीं, खुदा हैं खुदा,’’ शेख साहब ने आते हुए कहा.

‘‘खुदा तो आप हैं, एक हूर जैसी लड़की के पिता जो हैं. मगर आप दोनों मियांबीवी को एतराज न हो तो मैं शाहिदा को अपने घर… मतलब… मेरे बेटे को तो आप लोग जानते ही हैं, और…’’

‘‘बसबस, इस से बढ़ कर खुशी और क्या हो सकती है हमारे लिए,’’ मिस्टर शेख ने कहा, ‘‘हमारी शाहिदा आप के घर जाएगी तो हमें ऐसा लगेगा जैसे अपने ही घर में है, हमारे साथ.’’

फिर क्या था, आननफानन बड़े ही धूमधाम से शाहिदा प्रोफैसर के बेटे से ब्याह दी गई. वह प्रोफैसर के घर आ कर बहुत खुश थी. बेटा भी शाहिदा जैसी जीवनसाथी पा कर फूला न समाता था. दुलहनिया को ले कर हनीमून मनाने वह महाबलेश्वर चला गया.

प्रोफैसर चाहते हुए भी उसे रोक न सके और भीतर ही भीतर ऐंठ कर रह गए. खैर, दिन तो जैसेतैसे कट गया, पर रात काटे न कटती थी. वे जैसे ही आंखें मूंदते, उन्हें बेटे और बहू का वजूद आपस में ऐसे लिपटा दिखाई देता मानो दोनों एकदूसरे में समा जाना चाहते हों. ऐसे में उन्हें बेवफा महबूबा और बेटा अपना दुश्मन मालूम होने लगते. रहरह कर उन्हें ऐसा भी महसूस होता कि बेटे की मर्दानगी का जोश शाहिदा की जवानी की दीवानगी से हार रहा है.

बेटे और बहू को हनीमून पर गए 3 दिन बीत चुके थे. इस बीच प्रोफैसर की हालत पतली हो गई थी. घर में होते तो दिमाग पर शाहिदा का मादक यौवन छाया रहता या अपने ही बेटे की दुश्मनी में चुपकेचुपके सुलगते रहते. उन्हें यह तक खयाल न आता कि अब उन के और शाहिदा के बीच रिश्ते की दीवार खड़ी कर दी गई है. बेटे के संग गठबंधन ने उसे प्रेमिका से बहू बना दिया है. बहू यानी बेटी. वे अपनी इस चूक पर बस हाथ मलते थे.

इन्हीं दिनों उन का एक छात्र किसी काम के चलते उन से मिलने आया. इधरउधर की बातों के दौरान उस ने बताया कि बीकौम के बाद वह एक मैन पावर कंसलटैंसी में अकाउंटैंट के तौर पर काम कर रहा है. फिर उस ने प्रोफैसर के पूछने पर उस फर्म के काम करने के तरीके के बारे में बताया.

उस रात उन्हें काफी सुकून व बहके खयालात में ठहराव का अहसास हुआ. ऐसा महसूस होने लगा जैसे उस छात्र की मुलाकात ने उन्हें सांप के काटे का मंत्र सिखा दिया हो.

बेटा और बहू यानी प्रेमिका पूरे 20 दिन बाद हनीमून से लौटे थे. बेटा शाहिदा का साथ पा कर बेहद खुश दिखाई दे रहा था. देखने में तो शाहिदा भी खुश थी, पर उस की आंखों से खुशियों की चमक गायब थी.

प्रोफैसर की नजर ने सबकुछ पलक झपकते ही ताड़ लिया था और वे चिंता की गहराइयों में डूब गए थे.

अगले दिन चायनाश्ते के बाद प्रोफैसर महमूद शौकत ने अपने बेटे को कमरे में बुलाया और दुनियादारी, जमाने की ऊंचनीच का पाठ पढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अब तक तुम केवल अपनी जिंदगी के जिम्मेदार थे, पर अब एक और जिंदगी तुम से जुड़ चुकी है यानी तुम एक से 2 हो चुके हो. आने वाले दिनों में 3, फिर 4 हो जाओगे.

‘‘जरूरतों और खर्चों में बढ़ोतरी लाजिमी है, जबकि आमदनी वही होगी जो तुम तनख्वाह पाते हो, इसलिए मैं ने तुम्हारे सुनहरे भविष्य के लिए, तुम्हारी मरजी जाने बिना मौजूदा नौकरी से बढि़या और 4 गुना ज्यादा तनख्वाह वाली नौकरी का जुगाड़ कर दिया है.’’

इस बीच प्रोफैसर महमूद शौकत की नजर के पीछे खड़ी शाहिदा पर जमी थी. उस की आंखों में खुशी की लहरें और होंठों पर कामुक मुसकान रेंग रही थी. उस के इस भाव से खुश होते हुए उन्होंने मेज की दराज से एक लिफाफा निकाला और उसे शहिदा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘शाहिदा, यह मेरी ओर से तुम्हारे लिए एक छोटा सा तोहफा है.’’

‘‘शुक्रिया,’’ शाहिदा धीरे से बोली.

‘‘अगर अब तुम इस तोहफे को अपने हाथों से मेरे बेटे को दे दो तो यकीनन यह तोहफा बेशकीमती हो जाएगा.’’

वह उन की इच्छा भांप गई और एक अदा से लजाते, इठलाते हुए उस ने लिफाफा शौहर की ओर बढ़ा दिया.

बेटे को शाहिदा की इस अदा पर प्यार उमड़ आया. वह उसे चाहत भरी नजर से देखते हुए लिफाफा थाम कर ‘शुक्रिया डार्लिंग’ बोला.

लिफाफे में मोटे शब्दों में लिखा था, ‘पिता की तरफ से बेटे को अनमोल तोहफा’. उस में जो कागज था, वह

बेटे की दुबई में नौकरी का अपौंइटमैंट लैटर था. साथ में वीजा, पासपोर्ट और हवाईजहाज की टिकट भी थी. यह पढ़ते ही बेटे के हाथ कांपने लगे. Hindi Story

Hindi Story: नाजुक गुंडे – कौन थे वो नाजुक गुंडे

Hindi Story: मुंबई से कुशीनगर ऐक्सप्रैस ट्रेन चली, तो गयादीन खुश हुआ. उस ने पत्नी को नए मोबाइल फोन से सूचना दी कि गाड़ी चल दी है और वह अच्छी तरह बैठ गया है.

गयादीन को इस घड़ी का तब से बेसब्री से इंतजार था, जब उस ने 2 महीने पहले टिकट रिजर्व कराया था. वह रेल टिकट को कई बार उलटपलट कर देखता था और हिसाब लगाता था कि सफर के कितने दिन बचे हैं.

सफर में सामान ज्यादा, खुद बुलाई मुसीबत होती है. गयादीन इस मुसीबत से बच नहीं पाता है. कितना भी कम करे, पर जब भी गांव जाता है, तो सामान बढ़ ही जाता है. इस स्लीपर बोगी में उस के जैसे सालछह महीने में कभीकभार घर जाने वाले कई मुसाफिर हैं. उन के साथ भी बहुत सामान है.

इस गाड़ी के बारे में कहा जाता है, आदमी कम सामान ज्यादा. पर आदमी कौन से कम होते हैं. हर डब्बे में ठसाठस भरे होते हैं, क्या जनरल बोगी, क्या स्लीपर बोगी.

गयादीन इस बार अपने गांव में तो मुश्किल से एकाध दिन ही ठहरेगा. पत्नी को ले कर ससुराल जाना होगा. एकलौते साले की शादी है. इस वजह से भी सामान ज्यादा हो गया है.

एक बड़ी अटैची, 2 बड़े बैग, एक प्लास्टिक की बड़ी बोरी और खानेपीने के सामान का एक थैला, जिसे उस ने खिड़की के पास लगी खूंटी पर टांग दिया था.

वैसे तो इस ट्रेन में पैंट्री कार होती है और चलती ट्रेन में ही खानेपीने का सामान बिकता है, लेकिन रेलवे की खानपान सेवा पर खर्च कर के खाली पैसे गंवाना है. पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलता. खानेपीने का सामान साथ हो, तो परेशानी नहीं उठानी पड़ती.

इस बार गयादीन मां के लिए 20 लिटर वाली स्टील की टंकी ले जा रहा था, जिस के चलते एक अदद बोरी का बोझ बढ़ गया था. हालांकि बोरी में बहुत सा छोटामोटा सामान भी रख लिया है. एक बैग तो वहां के मौसम को ध्यान में रखते हुए बढ़ा है.

मुंबई जैसा मौसम तो हर कहीं नहीं होता. सफर लंबा है. पहली रात तो सादा कपड़ों में कट जाएगी, पर अगले दिन और रात के लिए तो गरम कपड़ों की जरूरत होगी. कंबल भी बाहर निकालना होगा.

सुबहसुबह जब गाड़ी गोरखपुर पहुंचेगी, तो कुहरे भरी ठंड से हाड़ ही कांप जाएंगे. फिर गांव तक का खुले में बस का सफर. वहां कान भी बांधने पड़ते हैं, फिर भी सर्दी पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन उसी पल पत्नी से मिलन और ससुराल में एकलौते साले की शादी में मिलने वाले मानसम्मान का खयाल आते ही गयादीन जोश से भर गया.

सामान ज्यादा होने की वजह से गयादीन को 2 दोस्त ट्रेन में बिठाने आए थे और वे ही बर्थ के नीचे सामान रखवा कर चले गए थे. उस की नीचे की ही बर्थ थी. कोच में सिर्फ रिजर्व टिकट वाले मुसाफिर थे. रेलवे स्टाफ ने कंफर्म टिकट वाले मुसाफिरों को ही कोच में सफर करने की इजाजत दी थी.

गयादीन ने चादर बिछाई. तकिए में हवा भरी और खिड़की की तरफ बैठ कर एक पतली सी पत्रिका निकाली. समय काटने के लिए उस ने रेलवे बुक स्टौल से कम कीमत की पत्रिका खरीद ली थी, जिस के कवर पर छपी लड़की की तसवीर ने उस का ध्यान खींचा था.

गयादीन अधलेटा हो कर पत्रिका के पन्ने पलटने लगा. सामने की बर्थ पर लेटे एक मुसाफिर ने उसे टोकते हुए सलाह दे दी, ‘‘भाई, रात बहुत हो गई है. लाइट बुझा कर सोने दो. आप भी सोओ. लंबा सफर है, दिन में पढ़ लेना.’’

साथी मुसाफिर की बात उसे ठीक लगी. पत्रिका बंद कर के पानी पी कर लाइट बुझाते हुए वह लेट गया.

दिनभर की आपाधापी के बावजूद उस की आंखों में नींद नहीं थी. एक तो घर जाने की खुशी, दूसरे सामान की चिंता.

नासिक रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो भीड़ का एक रेला डब्बे में घुस आया. लोग कहते रहे कि रिजर्वेशन वाला डब्बा है, पर किसी ने नहीं सुनी. वे तीर्थ यात्री मालूम पड़ते थे और समूह में थे. उन में औरतें भी थीं.

गयादीन चादर ओढ़ कर बर्थ पर पूरा फैल कर लेट गया, ताकि उस की बर्थ पर कोई बैठ न सके, फिर भी ढीठ किस्म के 1-2 लोग यह कहते हुए थोड़ी देर का सफर है, उस के पैरों की तरफ बैठ ही गए.

गयादीन सफर में झगड़ेझंझट से बचना चाहता था, इसलिए ज्यादा विरोध नहीं किया, पर मन ही मन वह कुढ़ता रहा कि रिजर्वेशन का कोई मतलब नहीं. किसी की परेशानी को लोग समझते नहीं हैं. वह कच्ची नींद में अपने सामान पर नजर रखे रहा. हालांकि सामान को उस ने लोहे की चेन से अच्छी तरह बांध रखा था, लेकिन चोरों का क्या, चेन भी काट लेते हैं.

खैर, मनमाड़ और भुसावल स्टेशन आतेआते वे सब उतर गए. उस ने राहत की सांस ली और पूरी तरह सोने की कोशिश करने लगा. उसे नींद भी आ गई. बुरहानपुर स्टेशन पर चाय और केले बेचने वालों की आवाज से उस की नींद टूटी.

सुबह हो चुकी थी. बुरहानपुर स्टेशन का उसे इंतजार भी था. वहां मिलने वाले सस्ते और बड़े केले वह घर के लिए खरीदना चाहता था.

पर यह क्या, फिर भीड़ बढ़ने लगी. अब कंधे पर बैग टांगे या खाली हाथ दैनिक मुसाफिर ट्रेन में चढ़ आए थे. उस का अच्छाखासा तजरबा है, दैनिक मुसाफिर किसी तरह का लिहाज नहीं करते, सोते हुए को जगा देते हैं कि सवेरा हो गया और बैठ जाते हैं. एतराज करने पर भी नहीं मानते.

ट्रेन चली तो सामने वाले मुसाफिर को जगा कर गयादीन शौचालय गया. लौटा तो बीच की बर्थ खोल दी गई थी और नीचे उस की बर्थ पर कई लोग डटे थे. यही हाल सामने वाली बर्थ का था. वह कुछ देर खड़ा रहा तो एक दैनिक मुसाफिर ने उस पर तरस दिखाते हुए थोड़ा खिसक कर खिड़की की तरफ बैठने की जरा सी जगह बना दी, जहां उस का तकिया व चादर सिमटे रखे थे.

गयादीन झिझकते हुए सिकुड़ कर बैठ गया और अपने सामान पर नजर डाली. सामान महफूज था. चादर और तकिया जांघों पर रख कर खिड़की के बाहर देखने लगा. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी.

गयादीन गाल पर हाथ धरे उगते हुए सूरज को देख रहा था कि एकाएक किसी के धीमे से छूने का आभास हुआ. पलट कर देखा तो चमकती नीली सलवार और पीली कुरती वाली बहुत करीब थी. उस की कलाइयों में रंगबिरंगी चूडि़यां थीं व एक हाथ में 10-20 रुपए के कुछ नोट थे.

यह देख गयादीन अचकचा गया. उस ने मुंह ऊपर उठा कर देखा. लिपस्टिक से पुते हुए होंठों की फूहड़ मुसकराहट का वह सामना न कर सका और निगाहें नीचे कर लीं. उस ने खाली हाथ बढ़ाते हुए मर्दानी आवाज में रुपए की मांग की, ‘‘निकालो.’’

‘‘खुले पैसे नहीं हैं,’’ गयादीन ने झुंझलाहट से कहा और लापरवाही से खिड़की के बाहर देखने लगा.

‘‘कितना बड़ा नोट है राजा? सौ का, 5 सौ का, हजार का? निकालो तो सब तोड़ दूंगी,’’ भारी सी आवाज में उस ने तंज कसा.

‘‘जाओ, पैसे नहीं हैं.’’

‘‘अभी तो बड़े नोट वाले बन रहे थे और अब कहते हो कि पैसे नहीं हैं. रेल में सफर ऐसे ही कर रहे हो…’’ उस ने बेहयाई से हाथ भी मटकाया. इस बीच उस का एक साथी पास आ कर खड़ा हो गया, जो मर्दाने बदन पर साड़ी लपेटे था.

गयादीन को लगा कि अब इन से पार पाना मुश्किल है. बेमन से कमीज की जेब से 10 रुपए का एक नोट निकाला और बढ़ाया.

‘‘हायहाय, 10 का नोट… क्या आता है 10 रुपए में.’’

गयादीन ने 10 का एक और नोट निकाल कर चुपचाप बढ़ा दिया. वह उन से छुटकारा पाना चाहता था.

सलवारकुरती वाले ने दोनों नोट झट से लपक लिए और आगे बढ़ गए. वह अपने को ठगा सा महसूस करते हुए शर्मिंदा सा उन्हें देखता रह गया.

वे दूसरे मुसाफिरों से तगादा करने में लग गए थे. कोई उन का विरोध नहीं कर रहा था. सब अपने को बचा सा रहे थे.

कुछ दैनिक मुसाफिर उतरे, तो दूसरे आ गए. कुछ बिना रिजर्वेशन वाले और गुटका, तंबाकू, पेपर सोप बेचने वाले चढ़ आए. भीड़ इतनी बढ़ गई थी कि रिजर्व डब्बा जनरल डब्बे की तरह हो गया. इस बीच टिकट चैकर भी आया, पर उसे इन सब से कोई मतलब नहीं.

जब दिन चढ़ आया, तो दैनिक मुसाफिरों की आवाजाही तो जरूर कम हुई, पर बिना रिजर्व मुसाफिर बढ़ते रहे. हां, चैकिंग स्टाफ का दस्ता डब्बे में चढ़ा, तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वे उन से जुर्माना वसूल कर रसीद पकड़ा गए.

रात में ठीक से नींद न आ पाने से गयादीन की सोने की इच्छा हो आई, पर वह लेट नहीं सकता था. वह बैठेबैठे ही ऊंघने लगा. सामने वाले मुसाफिर ने उसे जगा दिया, ‘‘अपने डब्बे में फिर गुंडे चढ़ आए हैं.’’

‘‘गुंडे, फिर से,’’ वह चौंका.

‘‘हां, हां, यह अपनेअपने इलाके के गुंडे ही तो हैं… नाजुक गुंडे.’’

अब की बार वे 4 थे. पहले वालों के मुकाबले ज्यादा हट्टेकट्टे और ढीठ. ताली बजाबजा कर बड़ी बेशर्मी से मुसाफिरों से रुपयों की मांग कर रहे थे. किसीकिसी से तो 50 के नोट तक झटक लिए थे. गयादीन के पास भी आए और ताली बजाते हुए मांग की.

गयादीन बोला, ‘‘पीछे वालों को दे चुके हैं.’’

‘‘दे चुके होंगे. लेकिन यह हमारा इलाका है.’’

‘‘इलाका तो गुंडों का होता है,’’ सामने वाले मुसाफिर ने कहा.

गयादीन को लगा कि गुंडा कहने से बुरा मान जाएंगे, पर बुरा नहीं माना. एक भौंहें मटकाते हुए बोला, ‘‘वे एमपी वाले थे. हम यूपी वाले हैं. हमारा रेट भी उन से ज्यादा है.’’

और वह दोनों से 50 का नोट लेकर ही माना. जब वे दूसरे डब्बे में चले गए, तो सामने वाला मुसाफिर बोला, ‘‘इन से पार पाना मुश्किल है. ये नंगई पर उतर आते हैं और छीनाझपटी भी कर सकते हैं. मुसाफिर बेचारा क्या करे.झगड़ाझंझट तो कर नहीं सकता.’’

‘‘इन का कोई इलाज नहीं? रेलवे पुलिस इन्हें नहीं रोकती?’’

‘‘पुलिस चाहे तो क्या नहीं कर सकती, पर आप तो जानते ही हैं. खैर,  रात के सफर में कोई परेशान नहीं करेगा. इन की शराफत है कि ये रात के सफर में मुसाफिरों को परेशान नहीं करते.’’

दोनों ने राहत की सांस ली. Hindi Story

Story In Hindi: बेवफाई – हीरा ने दिया रमइया को धोखा

Story In Hindi: रमइया गरीब घर की लड़की थी. सुदूर बिहार के पश्चिमी चंपारण की एक छोटी सी पिछड़ी बस्ती में पैदा होने के कुछ समय बाद ही उस की मां चल बसीं. बीमार पिता भी दवादारू की कमी में गुजर गए. अनाथ रमइया को दादी ने पालपोस कर बड़ा किया. वे गांव में दाई का काम करती थीं. इस से दादीपोती का गुजारा हो जाया करता था. रमइया जब 7 साल की हुई, तो दादी ने उसे सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा, पर वहां उस का मन नहीं लगा. वह स्कूल से भाग कर घर आ जाया करती थी. दादी ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर हठीली पोती को नहीं पढ़ा पाईं. रमइया अब 16 साल की हो गई. चिकने बाल, सांवली रंगत और बड़ीबड़ी पनीली आंखों में एक विद्रोह सा झलकता हुआ.

अब दादी को रातों में नींद नहीं आती थी. रमइया के ब्याह की चिंता हर पल उन के दिलोदिमाग पर हावी रहने लगी. कहां से पैसे आएंगे? कैसे ब्याह होगा? वगैरह. जायदाद के नाम पर सिकहरना नदी के किनारे जमीन के छोटे से टुकड़े पर बनी झोंपड़ी और शादी के वक्त के कुछ चांदी के जेवर और सिक्के… यही थी दादी की जिंदगीभर की जमापूंजी.

रातदिन इसी चिंता में घुल कर बुढि़या की कमर ही झुकने लगी. गांवबिरादरी के ही कुछ लोगों ने बुढि़या पर तरस खा कर पड़ोस के गांव के हीरा के साथ रमइया का ब्याह करवा दिया. हीरा सीधासादा और मेहनती था, जो अपनी मां के साथ दलितों की बस्ती में रहता था. घर में मांबेटे के अलावा एक गाय भी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ पैसे आ जाते थे. इस के अलावा फसलों की रोपाईकटाई के समय मांबेटे दूसरे के खेतों में काम किया करते थे.

शादी के बाद 3 जनों का पेट भरना मुश्किल होने लगा, तो हीरा गांव के ही कुछ नौजवानों के साथ परदेश चला गया.

पंजाब जा कर हीरा खेतों पर काम करने लगा. वहां हर दिन कहीं न कहीं काम मिलता, जिस से रोजाना अच्छी कमाई होने लगी.

हीरा जी लगा कर काम करता, जिस से मालिक हीरा से बहुत खुश रहते. हीरा ने 8 महीने में ही काफी पैसे इकट्ठे कर लिए थे. पंजाब आए साथी जब गांव वापस जाने लगे, तो वह भी वापस आ गया. गांव आने से पहले हीरा ने रमइया और मां के लिए घरेलू इस्तेमाल की कुछ चीजें खरीदीं. अपने लिए उस ने एक मोबाइल फोन खरीदा.

घर आ कर हीरा ने बड़े जोश से रमइया को फोन दिखाया और शान से बोला, ‘‘यह देख… इसे मोबाइल फोन कहते हैं. देखने में छोटा है, पर इस के अंदर ऐसे तार लगा दिए हैं कि हजारों मील दूर रह कर एक बटन दबा दो और जितनी भी चाहे बातें कर लो.’’

यह सुन कर रमइया की आंखें चौड़ी हो गईं. उस ने फोन लेने के लिए हीरा की ओर हाथ बढ़ाया.

‘‘अरे, संभाल कर,’’ कह कर हीरा ने रमइया के हाथों में मोबाइल फोन थमाया.

रमइया थोड़ी देर उलटपलट कर फोन को देखती रही, फिर उस ने हीरा से कहा, ‘‘सुनो, हमें साड़ीजेवर कुछ नहीं चाहिए. तुम जाने से पहले हमें यह फोन देते जाना. वहां जा कर अपने लिए दूसरा फोन खरीद लेना. फिर हम दिनरात फोन पर बात करेंगे.’’

हीरा पत्नी रमइया के भोलेपन पर जोर से हंस पड़ा. रमइया के सिर पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए वह बोला, ‘‘पगली, बातें मुफ्त में नहीं होतीं. उस में पैसा भरवाना पड़ता है.’’

इस तरह हंसतेबतियाते कई महीने गुजर गए. गांव के साथियों के साथ हीरा फिर से वापस काम पर पंजाब जाने की तैयारी करने लगा. इस बार रमइया ज्यादा दुखी नहीं थी.

हीरा के जाने के बाद अब सास की डांट खा कर भी रमइया रोती नहीं थी. वह मां बनने वाली थी और यह खबर वह हीरा को सुनाने के लिए बेचैन थी. वह मोबाइल फोन ले कर किसी कोने में पड़ी रहती और हीरा के फोन के आने का इंतजार करती रहती.

हीरा चौथी क्लास तक पढ़ालिखा था, सो उस ने रमइया को मोबाइल फोन की सारी बारीकियां समझा दी थीं. 2 महीने बाद आखिर वह दिन भी आया, जब मोबाइल फोन की घंटी घनघना कर बज उठी. रमइया का दिल बल्लियों उछल पड़ा. थरथराते हाथों से उस ने फोन का बटन दबाया और जीभर कर हीरा से बातें कीं. सास से भी हीरा की बात करवाई गई. जब पैसे खत्म हो गए, तो फोन कट गया. देर तक फोन को गोद में ले कर रमइया बैठी रही.

वक्त गुजरता गया. हीरा फिर से गांव वापस आया. वह इस बार भी अपने साथ कपड़े, सामान और पैसे ले कर आया था. रमइया का पीला चेहरा देख कर हीरा को चिंता हुई. इस बार रमइया में वह चंचलता भी नहीं दिख रही थी. वह बिस्तर पर चुपचाप सी पड़ी रहती.

हीरा ने जब इस बारे में मां से बात की, तो मां ने कहा कि ऐसा होता ही है, चिंता की कोई बात नहीं. रमइया के वहां से जाने के बाद मां ने बेटे हीरा को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, रमइया को इस की दादी के पास छोड़ आ. काम न धाम, यहां दिनभर पड़ी रहती है… दादी बहुत अनुभवी हैं, उन की देखरेख में रहेगी तो सबकुछ ठीक रहेगा. जब तू दोबारा आएगा, तो इस को वहां से ले आना.’’

‘‘ठीक है मां,’’ कहते हुए हीरा ने सहमति में सिर हिला दिया.

तीसरे ही दिन हीरा रमइया को उस की दादी के पास पहुंचा कर अपने गांव लौट आया. अब हीरा को रमइया के बिना घर सूनासूना सा लगता. वह चुपचाप किसी काम में लगा रहता या फोन से खेलता रहता. एक दिन हीरा ने अपने किसी साथी को फोन लगाया. ‘हैलो’ कहते ही उधर से किसी औरत की आवाज सुन कर हीरा हड़बड़ाया और उस ने जल्दी से फोन काट दिया.

थोड़ी देर बाद उसी नंबर से हीरा के मोबाइल फोन पर 4 बार मिस्ड काल आईं. हीरा की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे… थोड़ी देर बाद उस ने फिर से उसी नंबर पर फोन लगाया. बात हुई… वह नंबर उस के दोस्त का नहीं, बल्कि कोई रौंग नंबर था. जिस औरत ने फोन उठाया था, वह उसी बस्ती से आगे शहर में रहती थी. उस का पति रोजीरोटी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था.

उस औरत का नाम प्रीति था. उस की आवाज में मिठास थी और बात करने का तरीका दिलचस्प था. रात के 10 बजे से 2 बजे के बीच हीरा के फोन पर 3 बार मिस्ड काल आईं. अब यह रोज का सिलसिला बन गया. हीरा जबजब अपने, रमइया और प्रीति के बारे में सोचता, तो उसे लगता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है. ऐसे में सारा दिन उसे खुद को संभालने में लग जाता, पर फिर जब रात होती, प्रीति की मिस्ड काल आती, तो हीरा का दिल फिर से उस मीठी आवाज की चपेट में आ कर रुई की तरह बिखर जाता.

अब उन में हर रोज बात होने लगी, फिर एक दिन मुलाकात तय की गई. शहर के पार्क में शाम के 4 बजे हीरा को आने को कहा गया. जहां हीरा समय से पहले ही पहुंच गया, वहीं प्रीति 15 मिनट देर से आई. गोरा रंग और छरहरे बदन की प्रीति की अदाओं में गजब का खिंचाव था. कुरती और चूड़ीदार पाजामी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. वह 5वीं जमात तक पढ़ीलिखी थी.

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते चले गए. रमइया एक बेटी की मां बन गई और इधर हीरा के गांव के साथी फिर से काम पर लौटने की तैयारी करने लगे. परदेश जाने से पहले मां ने हीरा से रमइया और बच्ची को देख आने को कहा. हीरा 5-6 दिनों के लिए ससुराल पहुंचा. रमइया का पीला और बीमार चेहरा देख कर हीरा के मन में एक ऊब सी हुई. काली और मरियल सी बच्ची को देख कर उस का मन बैठ सा गया.

हीरा का मन एक दिन में ही ससुराल से भाग जाने को हुआ. खैर, जैसेतैसे उस ने 4 दिन बिताए और 5वें दिन जेल से छूटे कैदी सा घर भाग आया. पंजाब जाने से पहले हीरा प्रीति से मिला, तो उस की सजधज और चेहरे की ताजगी ने उसे रिरियाती बच्ची और रमइया के पीले चेहरे के आतंक से बाहर निकाल लिया.

एक साल गुजर गया. हीरा वहीं रह कर दूसरा रोजगार भी करने लगा. अब वह प्रीति को पैसे भी भेजने लगा था. इधर रमइया की सास से नहीं बनने के चलते वह मायके में ही पड़ी रही. उम्र बढ़ने के साथसाथ रमइया की दादी का शरीर ज्यादा काम करने में नाकाम हो रहा है.

अपना और बेटी का पेट भरने के लिए रमइया ने बस्ती से आगे 2-3 घरों में घरेलू काम करना शुरू कर दिया. बच्ची जनने से टूटा जिस्म और उचित खानपान की कमी में वह दिनोंदिन कमजोर और चिड़चिड़ी होने लगी. इधर तकरीबन एक साल से भी ज्यादा समय बाद हीरा जब वापस घर आया, तो आते ही प्रीति से मिलने चल पड़ा. न तो उस ने रमइया की खबर ली, न ही मां ने उसे रमइया को घर लाने को कहा.

अब प्रीति भी उस से मिलने बस्ती की ओर चली आती. कभी बस्ती के बाहर वाले स्कूल में, कभी खेतों के पीछे, तो कभी कहीं और मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा. पोती की हालत और अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए रमइया की दादी ने हीरा की मां के पास बहू को लिवा लाने के लिए कई संदेश भिजवाए. आखिर में मां के कहने पर हीरा रमइया को लिवाने ससुराल पहुंचा.

ससुराल आ कर रमइया ने देखा कि हीरा या तो घर में नहीं रहता और अगर रहता भी है, तो हमेशा कहीं खोयाखोया सा या फिर अपने मोबाइल फोन के बटनों को दबाता रहता है. पता नहीं, क्या करता रहता है.ऐसे में एक रात रमइया की नींद खुली, तो उसे लगा कि हीरा किसी से बातें कर रहा है. आधी रात बीत चु की थी. इस वक्त हीरा किस से बातें कर रहा है? बातों का सिलसिला लंबा चला. रमइया दीवार से कान लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी, पर उस की समझ में ज्यादा कुछ नहीं आ सका.

दूसरे दिन रमइया मौका पा कर हीरा का फोन ले कर बगल वाले रतन काका के पोते, जो छठी जमात में पढ़ता था, के पास गई और उसे सारे मैसेज पढ़ कर सुनाने को कहा.

मैसेज सुन कर रमइया गुस्से से सुलग उठी. वह हीरा के पास पहुंची और उस नंबर के बारे में जानना चाहा. एक पल के लिए हीरा सकपकाया, पर दूसरे ही पल संभल गया. वह बोला, ‘‘अरे पगली, मुझ पर शक करती है. यह तो मेरे साथ काम करने वाले की घरवाली का नंबर है. वह इस दफा घर नहीं आया, इसलिए उस का हालचाल पूछ रही थी.’’

रमइया चुप रही, पर उस के चेहरे पर संतोष के भाव नहीं आए. वह हीरा और उस के मोबाइल फोन पर नजर रखने लगी थी. 2 दिन बाद ही रात को रमइया ने हीरा को प्रीति से फोन पर यह कहते हुए सुन लिया कि कल रविवार है. स्कूल पर आ जाना. 2-3 दिनों के बाद फिर मुझे वापस भी लौटना होगा. दूसरे दिन हीरा 12 बजे के आसपास घर से निकल गया और स्कूल पर प्रीति के आने का इंतजार करने लगा.

थोड़ी ही देर में प्रीति दूर से आती दिखी. कुछ देर तक दोनों खेतों में ही खड़ेखड़े बातें करते रहे, फिर स्कूल के भीतर आ गए. प्रीति थोड़ी बेचैन हो कर बोल उठी, ‘‘ऐसे छिपछिप कर हम आखिर कब तक मिलते रहेंगे हीरा. हमेशा ही डर लगा रहता है. अब मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूं.’’

हीरा प्यार से बोला, ‘‘मैं भी तो यही चाहता हूं. बस, महीनेभर रुक जाओ… दोस्तों के साथ तुम्हें नहीं रख सकता… इस बार जाते ही कोई अलग कमरा लूंगा, फिर आ कर तुम्हें ले जाऊंगा. उस के बाद छिपछिप कर मिलने की कोई जरूरत नहीं होगी.’’

प्रीति ने कहा, ‘‘और तुम जो यहां आ कर 3-3 महीने तक रुकते हो, उस वक्त मैं क्या करूंगी? परदेश में कैसे अकेली रहूंगी और अपना घर कैसे चलाऊंगी?’’ हीरा बोला, ‘‘अरे, 3-3 महीने तो मैं यहां तुम्हारी खातिर पड़ा रहता हूं. जब मेरी प्रीतू मेरे पास होगी, तो मुझे यहां आने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी. यहां कभीकभार खर्च के पैसे भेज दिया करूंगा, बाकी जो भी कमाऊंगा, वह सब तुम्हारा.’’

प्रीति ने बड़ी अदा से पूछा, ‘‘अच्छा… तुम कितने पैसे कमा लेते हो कि वहां भी घर चलाओगे, यहां भी भेजोगे?’’

हीरा ने थोड़ा इतरा कर कहा, ‘‘इतना तो कमा ही लेता हूं कि 2 घर आराम से चला लूं,’’ कहते हुए हीरा ने जैकेट उतार कर अपनी दोनों बांहें किसी बौडी बिल्डर के अंदाज में ऊपर उठा कर दिखाईं. प्रीति ने आंखें झुका कर मुंह फेर लिया. हीरा की मजबूत हथेलियों ने प्रीति को कमर से थाम कर अपने करीब कर लिया और उस प्यारे चेहरे से बालों को हटाते हुए आगे झुका. प्रीति ने आंखें बंद कर लीं.

उधर टोकरे में गंड़ासा रख और पल्लू से चेहरे को ढक कर रमइया सीधा स्कूल जा पहुंची. गुस्से से जलती आंखों ने दोनों को एकसाथ ही देख लिया. फुफकारती हुई रमइया ने प्रीति के ऊपर गंड़ासा फेंका, जो सीधा जा कर हीरा को लगा. देखते ही देखते पूरी बस्ती में कुहराम मच गया. जैसेतैसे हीरा को अस्पताल पहुंचाया गया. रमइया को पुलिस पकड़ कर ले गई. प्रीति बड़ी मुश्किल से जान बचा कर वहां से भाग निकली.

गरदन की नस कट जाने से हीरा की मौत हो गई. सुनवाई के बाद अदालत ने रमइया को उम्रकैद की सजा सुनाई. डेढ़ साल की मरियल सी बच्ची को अनाथ बना कर, पेट में एक बच्चे को साथ ले कर रमइया हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दी गई. Story In Hindi

Hindi Kahani: राजू बन गया जैंटलमैन – एक कैदी की कहानी

Hindi Kahani: कानों में जानीपहचानी सी आवाज सुन कर मैं चौंक गई. देखा… अरे, यह तो राजू है. यहां दोबारा कैसे आ गया? मैं यह जानने के लिए बेचैन हो गई.

माफ कीजिए, पहले मैं आप को अपने बारे में बता तो दूं. मैं देश की सब से मजबूत दीवारों में से एक हूं. यह किसी कंपनी का इश्तिहार नहीं है. मैं तिहाड़ जेल की दीवार हूं. हिंदी में कहावत है न कि दीवारों के भी कान होते हैं. मैं भी सुनती हूं, देखती हूं, महसूस कर हूं, पर बोल नहीं पाती, क्योंकि मैं गूंगी हूं.

एक बार जो मेरी दहलीज के बाहर कदम रख देता है, वह मेरे पास दोबारा न आने की कसम खाता है. न जाने कितनों ने मेरे सीने पर अपने आंसुओं से अपनी इबारत लिखी है.

कैदियों के आपसी झगड़ों की वजह से अनगिनत बार उन के खून के छींटे मेरे दामन पर भी लगे, फिर दोबारा रंगरोगन कर मुझे नया रूप दे दिया गया.

समय को पीछे घुमाते हुए मैं वह दिन याद करने लगी, जब राजू ने पहली बार मुझे लांघ कर अंदर कदम रखा था. चेहरे पर मासूमियत, आंखों में एक अनजाना डर और होंठों पर राज भरी खामोशी ने मेरा ध्यान उस की ओर खींचा था. मैं उस के बारे में जानने को बेताब हो गई थी.

‘‘नाम बोल…’’ एक अफसर ने डांटते हुए पूछा था.

‘‘जी… राजू,’’ उस ने मासूमियत से जवाब दिया था.

‘‘कौन से केस में आया है?’’

‘‘जी… धारा 420 में.’’

‘‘किस के साथ चार सौ बीसी कर दी तू ने?’’

‘‘जी, मेरे बिजनैस पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया है.’’

‘‘और बंद तुझे करा दिया. वाह रे हरिश्चंद्र की औलाद,’’ अफसर ने ताना मारा था.

अदालत ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में यहां मेरे पास भेज दिया था. पुलिस वाले राजू को भद्दी गालियां देते हुए एक बैरक में छोड़ गए थे. बैरक में कदम रखते ही कई जोड़ी नजरें उसे घूरने लगी थीं. अंदर आते ही उस के आंसुओं के सैलाब ने पलकों के बांध को तोड़ दिया था. सिसकियों ने खामोश होंठों को आवाज की शक्ल दे दी थी.

मन में दर्द कम होने के बाद जैसे ही राजू ने अपना सिर ऊपर उठाया, उस ने अपने चारों ओर साथी कैदियों का जमावड़ा देखा था. कई हाथ उस के आंसुओं को पोंछने के लिए आगे बढ़े. कुछ ने उसे हिम्मत दी, ‘शांत हो जा… शुरूशुरू में सब रोते हैं. 2-3 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘घर की… बच्चों की याद आ रही है,’’ राजू ने सहमते हुए कहा था.

‘‘अब तो हम ही एकदूसरे के रिश्तेदार हैं,’’ एक कैदी ने जवाब दिया था.

‘‘चल, अब खाना खा ले,’’ दूसरे कैदी ने कहा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ राजू ने सिसकते हुए जवाब दिया था.

‘‘भाई मेरे, कितने दिन भूखा रहेगा? चल, सब के साथ बैठ.’’

एक कैदी उस के लिए खाना ले कर आ गया और बाकी सब उसे खाना खिलाने लगे थे.

राजू को उम्मीद थी कि उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मुलाकात करने जरूर आएंगे, लेकिन जल्दी ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. हर मुलाकात में उसे अपनी पत्नी के पीछे सिर्फ सन्नाटा नजर आता था. हर मुलाकात उस के हौसले को तोड़ रही थी.

राजू की हिरासत के दिन बढ़ने लगे थे. इस के साथ ही उस का खुद पर से भरोसा गिरने लगा था. उस के जिस्म में जिंदगी तो थी, लेकिन यह जिंदगी जैसे रूठ गई थी.

हां, साथी कैदियों के प्यार भरे बरताव ने उसे ऐसे उलट हालात में भी मुसकराना सिखा दिया था.

इंजीनियर होने की वजह से जेल में चल रहे स्कूल में राजू को पढ़ाने का काम मिल गया था. उस के अच्छे बरताव के चलते स्कूल में पढ़ने वाले कैदी उस से बात कर अपना दुख हलका करने लगे थे.

यह देख कर एक अफसर ने राजू को समझाया था, ‘‘इन पर इतना यकीन मत किया करो. ये लोग हमदर्दी पाने के लिए बहुत झूठ बोलते हैं.’’

‘‘सर, ये लोग झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि ये सच से भागते हैं…’’ राजू ने उन से कहा, ‘‘सर, किसी का झूठ पकड़ने से पहले उस की नजरों से उस के हालात समझिए, आप को उस की मजबूरी पता चल जाएगी.’’

अपने इन्हीं विचारों की वजह से राजू कैदियों के साथसाथ जेल के अफसरों का भी मन जीतने लगा था.

एक दिन जमानत पाने वाले कैदियों की लिस्ट में अपना नाम देख कर वह फूला न समाया था. परिवार व रिश्तेदारों से मिलने की उम्मीद ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे.

वहां से जाते समय जेल के बड़े अफसर ने उसे नसीहत दी थी, ‘‘राजू, याद रखना कि बारिश के समय सभी पक्षी शरण तलाशते हैं, मगर बाज बादलों से भी ऊपर उड़ान भर कर बारिश से बचाव करता है. तुम्हें भी समाज में ऐसा ही बाज बनना है. मुश्किलों से घबराना नहीं, क्योंकि कामयाबी का मजा लेने के लिए यह जरूरी है.’’

‘‘सर, मैं आप की इन बातों को हमेशा याद रखूंगा,’’ कह कर राजू खुशीखुशी मुझ दीवार से दूर अपने घर की ओर चल दिया था.

राजू को आज दोबारा देख कर मेरी तरह सभी लोग हैरानी से भर उठे. वह सभी से गर्मजोशी से गले मिल कर अपनी दास्तान सुना रहा था. मैं ने भी अपने कान वहीं लगा दिए.

राजू ने बताया कि बाहर निकल कर दुनिया उस के लिए जैसे अजनबी बन गई थी. पत्नी के उलाहने व बड़े होते बच्चों की आंखों में तैरते कई सवाल उसे परिवार में अजनबी बना रहे थे. वह समझ गया था कि उस की गैरहाजिरी में उस के परिवार ने किन हालात का सामना किया है.

राजू के रिश्तेदार व दोस्त उस से मिलने तो जरूर आए, लेकिन उन की नजरों में दिखते मजाक उस के सीने को छलनी कर रहे थे. उस की इज्जत जमीन पर लहूलुहान पड़ी तड़प रही थी.

राजू के होंठों ने चुप्पी का गहना पहन लिया था. उस की चुनौतियां उसे आगे बढ़ने के लिए कह रही थीं, लेकिन मतलबी दोस्त उस की उम्मीद को खत्म कर रहे थे.

राजू इस बात से बहुत दुखी हो गया था. जेल से लौटने के बाद घरपरिवार और यारदोस्त ही तो उस के लिए सहारा बन सकते थे, पर बाहर आ कर उसे लगा कि वह एक खुली जेल में लौट आया है.

दुख की घनघोर बारिश में सुख की छतरी ले कर आई एक सुबह के अखबार में एक इश्तिहार आया. कुछ छात्रों को विज्ञान पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर की जरूरत थी.

राजू ने उन बच्चों के मातापिता से बात कर ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. अपनी जानकारी और दोस्ताना बरताव के चलते वह जल्दी ही छात्रों के बीच मशहूर हो गया. उस ने साबित कर दिया कि अगर कोशिश को मेहनत और लगन का साथ मिले, तो वह जरूर कामयाबी दिलाएगी.

छात्रों की बढ़ती गिनती के साथ उस का खुद पर भी भरोसा बढ़ने लगा. यह भरोसा ही उस का सच्चा दोस्त बन गया.

प्यार और भरोसा सुबह और शाम की तरह नहीं होते, जिन्हें एकसाथ देखा न जा सके. धीरेधीरे पत्नी का राजू के लिए प्यार व बच्चों का अपने पिता के लिए भरोसा उसे जिंदगी के रास्ते पर कामयाब बना रहा था.

यह देख कर राजू ने अपनी जिंदगी के उस अंधेरे पल में रोशनी की अहमियत को समझा और एक एनजीओ बनाया.

यह संस्था तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जागरूक करेगी. अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए ही राजू ने मेरी दहलीज के अंदर दोबारा कदम रखा, लेकिन एक अलग इमेज के साथ. मुझे राजू के अंदर चट्टान जैसे हौसले वाला वह बाज नजर आया, जो अपनी हिम्मत से दुख के बादलों के ऊपर उड़ रहा था. Hindi Kahani

Hindi Story: कौन जिम्मेदार किशोरीलाल की मौत का

Hindi Story: ‘‘किशोरीलाल ने खुदकुशी कर ली…’’ किसी ने इतना कहा और चौराहे पर लोगों को चर्चा का यह मुद्दा मिल गया.

‘‘मगर क्यों की…?’’  भीड़ में से सवाल उछला.

‘‘अरे, अगर खुदकुशी नहीं करते, तो क्या घुटघुट कर मर जाते?’’ भीड़ में से ही किसी ने एक और सवाल उछाला.

‘‘आप के कहने का मतलब क्या है?’’ तीसरे आदमी ने सवाल पूछा.

‘‘अरे, किशोरीलाल की पत्नी कमला का संबंध मनमोहन से था. दुखी हो कर खुदकुशी न करते तो वे क्या करते?’’

‘‘अरे, ये भाई साहब ठीक कह रहे हैं. कमला किशोरीलाल की ब्याहता पत्नी जरूर थी, मगर उस के संबंध मनमोहन से थे और जब किशोरीलाल उन्हें रोकते, तब भी कमला मानती नहीं थी,’’ भीड़ में से किसी ने कहा.

चौराहे पर जितने लोग थे, उतनी ही बातें हो रही थीं. मगर इतना जरूर था कि किशोरीलाल की पत्नी कमला का चरित्र खराब था. किशोरीलाल भले ही उस के पति थे, मगर वह मनमोहन की रखैल थी. रातभर मनमोहन को अपने पास रखती थी. बेचारे किशोरीलाल अलग कमरे में पड़ेपड़े घुटते रहते थे. सुबह जब सूरज निकला, तो कमला के रोने की आवाज से आसपास और महल्ले वालों को हैरान कर गया. सब दौड़ेदौड़े घर में पहुंचे, तो देखा कि किशोरीलाल पंखे से लटके हुए थे.

यह बात पूरे शहर में फैल गई, क्योंकि यह मामला खुदकुशी का था या कत्ल का, अभी पता नहीं चला था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस आई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले गई.

यह बात सही थी कि किशोरीलाल और कमला के बीच बनती नहीं थी. कमला किशोरीलाल को दबा कर रखती थी. दोनों के बीच हमेशा झगड़ा होता रहता था. कभीकभी झगड़ा हद पर पहुंच जाता था. यह मनमोहन कौन है? कमला से कैसे मिला? यह सब जानने के लिए कमला और किशोरीलाल की जिंदगी में झांकना होगा. जब कमला के साथ किशोरीलाल की शादी हुई थी, उस समय वे सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे. किशोरीलाल की कम तनख्वाह से कमला संतुष्ट न थी. उसे अच्छी साडि़यां और अच्छा खाने को चाहिए था. वह उन से नाराज रहा करती थी.

इस तरह शादी के शुरुआती दिनों से ही उन के बीच मनमुटाव होने लगा था. कुछ दिनों के बाद कमला किशोरीलाल से नजरें चुरा कर चोरीछिपे देह धंधा करने लगी. धीरेधीरे उस का यह धंधा चलने लगा. वैसे, कमला ने लोगों को बताया था कि उस ने अगरबत्ती बनाने का घरेलू धंधा शुरू कर दिया है. इसी बीच उन के 2 बेटे हो गए, इसलिए जरूरतें और बढ़ गईं. मगर चोरीछिपे यह धंधा कब तक चल सकता था. एक दिन किशोरीलाल को इस की भनक लग गई. उन्होंने कमला से पूछा, ‘मैं यह क्या सुन रहा हूं?’

‘क्या सुन रहे हो?’ कमला ने भी अकड़ कर कहा.

‘क्या तुम देह बेचने का धंधा कर रही हो?’ किशोरीलाल ने पूछा.

‘तुम्हारी कम तनख्वाह से घर का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा था, तो मैं ने यह धंधा अपना लिया है. कौन सा गुनाह कर दिया,’ कमला ने भी साफ बात कह कर अपने अपराध को कबूल कर लिया.

यह सुन कर किशोरीलाल को गुस्सा आया. वे कमला को थप्पड़ जड़ते हुए बोले, ‘बेगैरत, देह धंधा करती हो तुम?’

‘तो पैसे कमा कर लाओ, फिर छोड़ दूंगी यह धंधा. अरे, औरत तो ले आया, मगर उस की हर इच्छा को पूरा नहीं करता है. मैं कैसे भी कमा रही हूं, तेरे से तो नहीं मांग रही हूं,’ कमला भी जवाबी हमला करते हुए बोली और एक झटके से बाहर निकल गई.

किशोरीलाल कुछ नहीं कर पाए. इस तरह कई मौकों पर उन दोनों के बीच झगड़ा होता रहता था. इसी बीच शिक्षा विभाग से शिक्षकों की भरती हेतु थोक में नौकरियां निकलीं. कमला ने भी फार्म भर दिया. उसे सहायक टीचर के पद पर एक गांव में नौकरी मिल गई.

चूंकि गांव शहर से दूर था और उस समय आनेजाने के इतने साधन न थे, इसलिए मजबूरी में कमला को गांव में ही रहना पड़ा. गांव में रहने के चलते वह और आजाद हो गई. कमला ने 10-12 साल इसी गांव में गुजारे, फिर एक दिन उस ने अपने शहर के एक स्कूल में ट्रांसफर करवा लिया. मगर उन की लड़ाई अब भी नहीं थमी.

बच्चे अब बड़े हो रहे थे. वे भी मम्मीपापा का झगड़ा देख कर मन ही मन दुखी होते थे, मगर उन के झगड़े के बीच न पड़ते थे. जिस स्कूल में कमला पढ़ाती थी, वहीं पर मनमोहन भी थे. उन की पत्नी व बच्चे थे, मगर सभी उज्जैन में थे. मनमोहन यहां अकेले रहा करते थे. कमला और उन के बीच खिंचाव बढ़ा. ज्यादातर जगहों पर वे साथसाथ देखे गए. कई बार वे कमला के घर आते और घंटों बैठे रहते थे.

कमला भी धीरेधीरे मनमोहन के जिस्मानी आकर्षण में बंधती चली गई. ऐसे में किशोरीलाल कमला को कुछ कहते, तो वह अलग होने की धमकी देती, क्योंकि अब वह भी कमाने लगी थी. इसी बात को ले कर उन में झगड़ा बढ़ने लगा. फिर महल्ले में यह चर्चा चलती रही कि कमला के असली पति किशोरीलाल नहीं मनमोहन हैं. वे किशोरीलाल को समझाते थे कि कमला को रोको. वह कैसा खेल खेल रही है. इस से महल्ले की दूसरी लड़कियों और औरतों पर गलत असर पड़ेगा. मगर वे जितना समझाने की कोशिश करते, कमला उतनी ही शेरनी बनती.

जब भी मनमोहन कमला से मिलने घर पर आते, किशोरीलाल सड़कों पर घूमने निकल जाते और उन के जाने का इंतजार करते थे.

पिछली रात को भी वही हुआ. जब रात के 11 बजे किशोरीलाल घूम कर बैडरूम के पास पहुंचे, तो भीतर से खुसुरफुसुर की आवाजें आ रही थीं. वे सुनने के लिए खड़े हो गए. दरवाजे पर उन्होंने झांक कर देखा, तो शर्म के मारे आंखें बंद कर लीं.

सुबह किशोरीलाल की पंखे से टंगी लाश मिली. उन्होंने खुद को ही खत्म कर लिया था. घर के आसपास लोग इकट्ठा हो चुके थे. कमला की अब भी रोने की आवाज आ रही थी. इस मौत का जिम्मेदार कौन था? अब लाश के आने का इंतजार हो रहा था. शवयात्रा की पूरी तैयारी हो चुकी थी. जैसे ही लाश अस्पताल से आएगी, औपचारिकता पूरी कर के श्मशान की ओर बढ़ेगी. Hindi Story

Hindi Story: बच्चे की चाह में – भौंरा ने कैसे सिखाया सबक

Hindi Story: भौंरा की शादी हुए 5 साल हो गए थे. उस की पत्नी राजो सेहतमंद और खूबसूरत देह की मालकिन थी, लेकिन अब तक उन्हें कोई औलाद नहीं हुई थी. भौंरा अपने बड़े भाई के साथ खेतीबारी करता था. दिनभर काम कर के शाम को जब घर लौटता, सूनासूना सा घर काटने को दौड़ता.

भौंरा के बगल में ही उस का बड़ा भाई रहता था. उस की पत्नी रूपा के 3-3 बच्चे दिनभर घर में गदर मचाए रखते थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजो रूपा के बच्चों को बुला लेती और उन के साथ खुद भी बच्चा बन कर खेलने लगती. वह उन्हीं से अपना मन बहला लेती थी.

एक दिन राजो बच्चों को बुला कर उन के साथ खेल रही थी कि रूपा ने न जाने क्यों बच्चों को तुरंत वापस बुला लिया और उन्हें मारनेपीटने लगी.

उस की आवाज जोरजोर से आ रही थी, ‘‘तुम बारबार वहां मत जाया करो. वहां भूतप्रेत रहते हैं. उन्होंने उस की कोख उजाड़ दी है. वह बांझ है. तुम अपने घर में ही खेला करो.’’

राजो यह बात सुन कर उदास हो गई. कौन सी मनौती नहीं मानी थी… तमाम मंदिरों और पीरफकीरों के यहां माथा रगड़ आई, बीकमपुर वाली काली माई मंदिर की पुजारिन ने उस से कई टिन सरसों के तेल के दीए में मंदिर में जलवा दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

बीकमपुर वाला फकीर जबजब मंत्र फुंके हुए पानी में राख और पता नहीं कागज पर कुछ लिखा हुआ टुकड़ा घोल कर पीने को देता. बदले में उस से 100-100 के कई नोट ले लेता था. इतना सब करने के बाद भी उस की गोद सूनी ही रही… अब वह क्या करे?

राजो का जी चाहा कि वह खूब जोरजोर से रोए. उस में क्या कमी है जो उस की गोद खाली है? उस ने किसी का क्या बिगाड़ा है? रूपा जो कह रही थी, क्या सचमुच उस के घर में भूतप्रेत रहते हैं? लेकिन उस के साथ तो कभी ऐसी कोई अनहोनी घटना नहीं घटी, तो फिर कैसे वह यकीन करे?

राजो फिर से सोच में डूब गई, ‘लेकिन रूपा तो कह रही थी कि भूतप्रेत ही मेरी गोद नहीं भरने दे रहे हैं. हो सकता है कि रूपा सच कह रही हो. इस घर में कोई ऊपरी साया है, जो मुझे फलनेफूलने नहीं दे रहा है. नहीं तो रूपा की शादी मेरे साथ हुई थी. अब तक उस के 3-3 बच्चे हो गए हैं और मेरा एक भी नहीं. कुछ तो वजह है.’

भौंरा जब खेत से लौटा तो राजो ने उसे अपने मन की बात बताई. सुन कर भौंरा ने उसे गोद में उठा लिया और मुसकराते हुए कहा, ‘‘राजो, ये सब वाहियात बातें हैं. भूतप्रेत कुछ नहीं होता. रूपा भाभी अनपढ़गंवार हैं. वे आंख मूंद कर ऐसी बातों पर यकीन कर लेती हैं. तुम चिंता मत करो. हम कल ही अस्पताल चल कर तुम्हारा और अपना भी चैकअप करा लेते हैं.’’

भौंरा भी बच्चा नहीं होने से परेशान था. दूसरे दिन अस्पताल जाने के लिए भाई के घर गाड़ी मांगने गया. भौंरा के बड़े भाई ने जब सुना कि भौंरा राजो को अस्पताल ले जा रहा है तो उस ने भौंरा को खूब डांटा. वह कहने लगा, ‘‘अब यही बचा है. तुम्हारी औरत के शरीर से डाक्टर हाथ लगाएगा. उसे शर्म नहीं आएगी पराए मर्द से शरीर छुआने में. तुम भी बेशर्म हो गए हो.’’

‘‘अरे भैया, वहां लेडी डाक्टर भी होती हैं, जो केवल बच्चा जनने वाली औरतों को ही देखती हैं,’’ भौंरा ने समझाया.

‘‘चुप रहो. जैसा मैं कहता हूं वैसा करो. गांव के ओझा से झाड़फूंक कराओ. सब ठीक हो जाएगा.’’

भौंरा चुपचाप खड़ा रहा.

‘‘आज ही मैं ओझा से बात करता हूं. वह दोपहर तक आ जाएगा. गांव की ढेरों औरतों को उस ने झाड़ा है. वे ठीक हो गईं और उन के बच्चे भी हुए.’’

‘‘भैया, ओझा भूतप्रेत के नाम पर लोगों को ठगता है. झाड़फूंक से बच्चा नहीं होता. जिस्मानी कमजोरी के चलते भी बच्चा नहीं होता है. इसे केवल डाक्टर ही ठीक कर सकता है,’’ भौंरा ने फिर समझाया.

बड़ा भाई नहीं माना. दोपहर के समय ओझा आया. भौंरा का बड़ा भाई भी साथ था. भौंरा उस समय खेत पर गया था. राजो अकेली थी. वह राजो को ऊपर से नीचे तक घूरघूर कर देखने लगा.

राजो को ओझा मदारी की तरह लग रहा था. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर वह थोड़ी देर के लिए घबरा सी गई. साथ में बड़े भैया थे, इसलिए उस का डर कुछ कम हुआ.

ओझा ने ‘हुं..अ..अ’ की एक आवाज अपने मुंह से निकाली और बड़े भैया की ओर मुंह कर के बोला, ‘‘इस के ऊपर चुड़ैल का साया है. यह कभी बंसवारी में गई थी? पूछो इस से.‘‘

‘‘हां बहू, तुम वहां गई थीं क्या?’’ बड़े भैया ने पूछा.

‘‘शाम के समय गई थी मैं,’’ राजो ने कहा.

‘‘वहीं इस ने एक लाल कपडे़ को लांघ दिया था. वह चुड़ैल का रूमाल था. वह चुड़ैल किसी जवान औरत को अपनी चेली बना कर चुड़ैल विद्या सिखाना चाहती है. इस ने लांघा है. अब वह इसे डायन विद्या सिखाना चाहती है. तभी से वह इस के पीछे पड़ी है. वह इस का बच्चा नहीं होने देगी.’’

राजो यह सुन कर थरथर कांपने लगी.

‘‘क्या करना होगा?’’ बड़े भैया ने हाथ जोड़ कर पूछा.

‘‘पैसा खर्च करना होगा. मंत्रजाप से चुड़ैल को भगाना होगा,’’ ओझा ने कहा.

मंत्रजाप के लिए ओझा ने दारू, मुरगा व हवन का सामान मंगवा लिया. दूसरे दिन से ही ओझा वहां आने लगा. जब वह राजो को झाड़ने के लिए आता, रूपा भी राजो के पास आ जाती.

एक दिन रूपा को कोई काम याद आ गया. वह आ न सकी. घर में राजो को अकेला देख ओझा ने पूछा, ‘‘रूपा नहीं आई?’’

राजो ने ‘न’ में गरदन हिला दी.

ओझा ने अपना काम शुरू कर दिया. राजो ओझा के सामने बैठी थी. ओझा मुंह में कुछ बुदबुदाता हुआ राजो के पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक हाथ से छू रहा था. ऐसा उस ने कई बार दोहराया, फिर वह उस के कोमल अंगों को बारबार दबाने की कोशिश करने लगा.

राजो को समझते देर नहीं लगी कि ओझा उस के बदन से खेल रहा है. उस ने आव देखा न ताव एक झटके से खड़ी हो गई.

यह देख कर ओझा सकपका गया. वह कुछ बोलता, इस से पहले राजो ने दबी आवाज में उसे धमकाया, ‘‘तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ रही हूं. तुम्हारी भलाई अब इसी में है कि चुपचाप यहां से दफा हो जाओ, नहीं  सचमुच मेरे ऊपर चुड़ैल सवार हो रही है.’’

ओझा ने चुपचाप अपना सामान उठाया और उलटे पैर भागा. उसी समय रूपा आ गई. उस ने सुन लिया कि राजो ने अभीअभी अपने ऊपर चुड़ैल सवार होने की बात कही है. वह नहीं चाहती थी कि राजो को बच्चा हो.

रूपा के दिमाग में चल रहा था कि राजो और भौंरा के बच्चे नहीं होंगे तो सारी जमीनजायदाद के मालिक उस के बच्चे हो जाएंगे.

भौंरा के बड़े भाई के मन में खोट नहीं था. वह चाहता था कि भौंरा और राजो के बच्चे हों. राजो को चुड़ैल अपनी चेली बनाना चाहती है, यह बात गांव वालों से छिपा कर रखी थी लेकिन रूपा जानती थी. उस की जबान बहुत चलती थी. उस ने राज की यह बात गांव की औरतों के बीच खोल दी.

धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैलने लगी कि राजो बच्चा होने के लिए रात के अंधेरे में चुड़ैल के पास जाती है. अब तो गांव की औरतें राजो से कतराने लगीं. उस के सामने आने से बचने लगीं. राजो उन से कुछ पूछती भी तो वे उस से सीधे मुंह बात न कर के कन्नी काट कर निकल जातीं. पूरा गांव उसे शक की नजर से देखने लगा. राजो के बुलाने पर भी रूपा अपने बच्चों को उस के पास नहीं भेजती थी.

2-3 दिन से भौंरा का पड़ोसी रामदा का बेटा बीमार था. रामदा की पत्नी जानती थी कि राजो डायन विद्या सीख रही है. वह बेटे को गोद में उठा लाई और तेज आवाज में चिल्लाते हुए भौंरा के घर में घुसने लगी, ‘‘कहां है रे राजो डायन, तू डायन विद्या सीख रही है न… ले, मेरा बेटा बीमार हो गया है. इसे तू ने ही निशाना बनाया है. अगर अभी तू ने इसे ठीक नहीं किया तो मैं पूरे गांव में नंगा कर के नचाऊंगी.’’

शोर सुन कर लोगों की भीड़ जमा हो गई.

एक पड़ोसन फूलकली कह रही थी, ‘‘राजो ने ही बच्चे पर कुछ किया है, नहीं तो कल तक वह भलाचंगा खापी रहा था. यह सब इसी का कियाधरा है.’’

दूसरी पड़ोसन सुखिया कह रही थी, ‘‘राजो को सबक नहीं सिखाया गया तो वह गांव के सारे बच्चों को इसी तरह मार कर खा जाएगी.’’

राजो घर में अकेली थी. औरतों की बात सुन कर वह डर से रोने लगी. वह अपनेआप को कोसने लगी, ‘क्यों नहीं उन की बात मान कर अस्पताल चली गई. जेठजी के कहने में आ कर ओझा से इलाज कराना चाहा, मगर वह तो एक नंबर का घटिया इनसान था. अगर मैं उस की चाल में फंस गई होती तो भौंरा को मुंह दिखाने के लायक भी न रहती.’’

बाहर औरतें उसे घर से निकालने के लिए दरवाजा पीट रही थीं. तब तक भौंरा खेत से आ गया. अपने घर के बाहर जमा भीड़ देख कर वह डर गया, फिर हिम्मत कर के भौंरा ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी, राजो को क्या हुआ है?’’

‘‘तुम्हारी औरत डायन विद्या सीख रही है. ये देखो, किशुना को क्या हाल कर दिया है. 4 दिनों से कुछ खायापीया भी नहीं है इस ने,’’ रामधनी काकी ने कहा.

गुस्से से पागल भौंरा ने गांव वालों को ललकारा, ‘‘खबरदार, किसी ने राजो पर इलजाम लगाया तो… वह मेरी जीवनसंगिनी है. उसे बदनाम मत करो. मैं एकएक को सचमुच में मार डालूंगा. किसी में हिम्मत है तो राजो पर हाथ उठा करदेख ले,’’ इतना कह कर वह रूपा भाभी का हाथ पकड़ कर खींच लाया.

‘‘यह सब इसी का कियाधरा है. बोलो भाभी, तुम ने ही गांव की औरतों को यह सब बताया है… झूठ मत बोलना. सरोजन चाची ने मुझे सबकुछ बता दिया है.’’ सरोजन चाची भी वहां सामने ही खड़ी थीं. रूपा उन्हें देख कर अंदर तक कांप गई. उस ने अपनी गलती मान ली. भौंरा ओझा को भी पकड़ लाया, ‘‘मक्कार कहीं का, तुम्हारी सजा जेल में होगी.’’

दूर खड़े बड़े भैया की नजरें झुकी हुई थीं. वे अपनी भूल पर पछतावा कर रहे थे. Hindi Story

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