Serial Story: पति की संतान- भाग 1

हरीतिमा के आने से सरिता की परेशानी बहुत कम हो गई थी, क्योंकि वह घर का सारा काम संभाल लेती थी.

पहले सरिता घर के बहुत से काम निबटा लेती थी. लेकिन जब से पति बीमार हुए थे और बिस्तर पकड़ चुके थे तब से पार्ट टाइम कामवाली बाई से उस का काम नहीं चलता था. उसे परमानैंट नौकरानी की जरूरत थी जो पूरा घर संभाल सके.

सरिता को पति का मैडिकल स्टोर सुबह से रात तक चलाना होता था. दुकान में 3 नौकर थे. सरिता बीच में थोड़ी देर के लिए खाना खाने और फ्रैश होने घर आती थी. सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक उसे मैडिकल स्टोर पर बैठना पड़ता था. काम सारा नौकर ही करते थे लेकिन हिसाब उसे ही देखना पड़ता था.

काफी समय तक सरिता को बहुत समस्या हुई. घर में एक बेटा, एक बेटी थे जो 8वीं और 9वीं क्लास में पढ़ते थे. उन के लिए चाय, नाश्ता, सुबह का टिफिन तैयार कर के स्कूल भेजना और शाम की चाय के बाद भोजन तैयार करना और खिलाना सब हरीतिमा की जिम्मेदारी थी.

बीमार पति को समय पर दवाएं और डाक्टर के बताए मुताबिक भोजन देना… यह सब हरीतिमा के बिना मुमकिन नहीं था.

सरिता जब बहुत परेशान हो गई तब उस ने एजेंसी में जा कर कई बार परमानैंट नौकरानी का इंतजाम करने के लिए कहा.

एक दिन एजेंसी के मालिक ने कहा, ‘‘अभी तो कोई लड़की नहीं है. जल्द ही असम और बिहार से लड़कियां आने वाली हैं. मैं आप को बता दूंगा.’’

सरिता ने एजेंसी वाले से कहा, ‘‘आप ज्यादा कमीशन ले लेना. लड़की को अच्छी तनख्वाह के साथ रहनेखाने की सारी सुविधाएं भी दूंगी लेकिन मुझे उस की सख्त जरूरत है.’’

और जल्द ही एजेंसी वाले का फोन आ गया. एजेंसी से 13 साल की हरीतिमा को लाने के बाद सरिता की सारी मुसीबतों का हल हो गया.

हरीतिमा सुबह से रात तक चकरघिन्नी बनी रहती. पूरे घर का काम करती. घर के हर सदस्य का ध्यान रखती.

हर समय पूरा घर साफसुथरा रहता. हरीतिमा हमेशा काम करती नजर आती. न कोई नखरा, न कोई शिकायत और न कोई छुट्टी.

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13 साल की खूबसूरत, गोरी, नाजुक, मेहनती हरीतिमा बिहार के एक छोटे से गांव की थी. घर की माली हालत खराब थी. मां बीमार थीं. घर में 2 छोटे भाई थे. उस के पिता बचपन में ही गुजर गए थे.

शुक्रवार को जब मैडिकल स्टोर बंद रहता तब सरिता उस से बात करती. उस से पूछती, ‘‘किसी चीज की कोई जरूरत हो तो बेझिझक कहना. खाने में जो पसंद हो, बना कर खा लिया करो.’’

हरीतिमा को पढ़ने का शौक था. सरिता उस के लिए किताबें भी ला देती.

पति रतनलाल के एक के बाद एक 2-3 बड़े आपरेशन हुए थे. उन्हें आराम की सख्त जरूरत थी.

सरिता पति के कमरे में कम ही जाती थी. कमरे से आती दवाओं और गंदगी की बदबू से उसे उबकाई आती थी. पति की ऐसी बुरी दशा देखने का भी उस का मन नहीं करता था.

पति बिस्तर पर लेटे रहते. काफी समय तक तो उन के मलमूत्र का मार्ग बंद कर प्लास्टिक की थैलियां लटका दी गई थीं. उन्हें साफ करने का काम पहले तो एक नर्स करती थी, बाद में रतनलाल खुद करने लगे थे. लेकिन अब हरीतिमा ने इस जिम्मेदारी को संभाल लिया था.

सरिता को लगता था कि उस के पति की जिंदगी एक तरह से खत्म ही हो चुकी है. उन्हें बाकी जिंदगी बिस्तर पर ही गुजारनी है. ठीक हो भी गए तो पहले जैसे नहीं रहेंगे.

सरिता ने अपना कमरा अलग तैयार कर लिया था. अपनी जरूरतों के हिसाब से सबकुछ अपने कमरे में रख लिया था. बच्चे बड़े हो रहे थे. वह गलती से ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती थी कि बच्चों की जिंदगी पर उस का बुरा असर पड़े.

सरिता की उम्र 40 साल थी और पति की उम्र 45 साल के आसपास. पिछले एक साल से वह पति की दुकान और घर सब देख रही थी.

आज रतनलाल को प्लास्टिक की थैली निकलवाने जाना था, लेकिन यह बहुत आसान काम नहीं था.

सरिता को साथ जाना था लेकिन उस ने कह दिया, ‘‘मैं जा कर क्या करूंगी? मुझ से यह सब देखा नहीं जाता. तुम हरीतिमा को साथ ले जाओ. फिर मुझे दुकान भी देखनी है. काम करूंगी तो पैसा आएगा. आप के इलाज में लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं.’’

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तय हुआ कि हरीतिमा ही साथ जाएगी.

रतनलाल अस्पताल से 3 दिन बाद घर वापस आए. उन्हें परहेज के साथ दवाएं समय पर लेनी थीं.

हरीतिमा बोर न हो, इस वजह से सरिता शुक्रवार को उसे बच्चों के साथ बाहर घुमाने ले जाती. बच्चे जो खाते, हरीतिमा को भी खिलाया जाता. चाट, पकौड़े, गोलगप्पे. बच्चे पार्क में खेलते तो हरीतिमा भी साथ में खेलती. बच्चों के लिए कपड़े खरीदने जाते तो हरीतिमा के लिए भी खरीदे जाते.

चाट खाते समय एक लड़के ने हरीतिमा से बात की. सरिता को अच्छा नहीं लगा. लौटते समय सरिता ने उस से पूछा, ‘‘तुम इसे कैसे जानती हो?’’

‘‘मेरे मुल्क का है मैडम.’’

‘‘मुल्क के नहीं राज्य के. मुल्क तो हम सब का एक ही है,’’ सरिता ने हंसते हुए कहा, फिर उसे समझाया, ‘‘देखो हरीतिमा, तुम मेरी बेटी जैसी हो. इस उम्र में लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं है. अभी तुम्हारी उम्र महज 15 साल है.’’

अब हरीतिमा को अकसर ऐसी हिदायतें मिलने लगी थीं.

रतनलाल लाठी के सहारे घर में ही टहलने लगे थे. एक बार वे लड़खड़ा कर गिर गए. तब से सरिता ने हरीतिमा को हिदायत दी, ‘‘तुम अंकल को थोड़ा बाहर तक घुमा दिया करो. कहीं और कोई परेशानी न हो जाए.’’

तब से हरीतिमा घर से थोड़ी दूर बने पार्क में उन के साथ जाने लगी. वह पहले जैसी शांत और सहमी हुई नहीं थी. अब वह हंसने, बोलने लगी थी. खुश रहने लगी थी.

लेकिन हरीतिमा के खिलते शरीर और उस में आए बदलावों को देख कर सरिता जरूर चिंता में रहने लगी थी. उसे उस लड़के का चेहरा याद आया तो क्या बाहर जा कर इतनी उम्र में वह सब करने लगी थी हरीतिमा, जो उस की उम्र की लिहाज से गलत था? कहीं पेट में कुछ ठहर गया तो? सरिता ने एजेंसी वाले को सारी बात फोन पर बताई.

एजेंसी वाले ने कहा, ‘‘मैडम, यह उस का निजी मामला है. हम और आप इस में क्या कर सकते हैं? वह अपनी नौकरी से बेईमानी नहीं करती. आप के घर की देखभाल ईमानदारी से कर रही है. और आप को क्या चाहिए?’’

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सरिता को लगा कि एजेंसी वाला ठीक ही कह रहा है. फिर हरीतिमा उस की जरूरत बन गई थी. जरूरी नहीं कि दूसरी लड़की इतनी ईमानदार हो, मेहनती हो.

सरिता इस बात को भूलने की कोशिश कर ही रही थी. 2-4 दिन ही गुजरे थे कि सरिता ने हरीतिमा को उलटी करते हुए देख लिया.

Serial Story: जड़ों से जुड़ा जीवन- भाग 4

लेखक-  वीना टहिल्यानी

मौम बिन बताए उस के लिए कितना कुछ कर गई थीं. उसे घर, धनसंपत्ति और सब से ऊपर जौन जैसा प्यारा भाई दे गई थीं.

मौम की अंतिम इच्छा को कार्यरूप देने में जौन ने भी कोई कोरकसर न छोड़ी.

स्कूल का सत्र समाप्त होते ही रोमांच से छलकती मिली हवाई यात्रा कर रही थी. जहाज में बैठी मिली को लग रहा था कि बचपन जैसे बांहें पसारे खड़ा हो. गुजरा, भूला समय किसी चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने चल रहा था.

पिछवाड़े का वह बूढ़ा बरगद जिस की लंबी जटाओं से लटक कर वह हमउम्र बच्चों के साथ झूले झूलती थी, और वेणु मौसी देख लेती तो बस, छड़ी ले कर पीछे ही पड़ जाती. बच्चों में भगदड़ मच जाती. गिरतेपड़ते बच्चे इधरउधर तितरबितर हो जाते पर मौसी का कोसना देर तक जारी रहता.

विमान ने कोलकाता शहर की धरती को छुआ तो मिली का मन आकाश की अनंत ऊंचाइयों में उड़ चला.

बाहर चटकचमकीली धूप पसरी पड़ी थी. विदेशी आंखों को चौंध सी लगी. बाहर निकलने से पहले काले चश्मे चढ़ गए. चौडे़ हैट लग गए. पर मान से भरी मिली यों ही बाहर निकल गई मानो कह रही हो कि अरे, धूप का क्या डर? यह तो मेरी अपनी है.

मिली के मन से एक आह सी निकली, ‘तो आखिर, मैं आ ही गई अपने नगर, अपने शहर.’ जौन ने भारत के बारे में लाख पढ़ रखा था पर जो आंखों से देखा तो चकित रह गया. ज्योंज्यों गंतव्य नजदीक आ रहा था, मिली के दिल की धुकधुकी बढ़ती जा रही थी. कई सवाल मन में उठ रहे थे.

कैसी होंगी फरीदा अम्मां? पहचानेंगी तो जरूर. एकाएक ही सामने पड़ कर चौंका दूं तो? तुरंत न भी पहचाना तो क्या…नाम सुन कर तो सब समझ जाएंगी…मृणाल…मृणालिनी कितना प्यारा लग रहा था आज उसे अपना वह पुराना नाम.

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लोअर सर्कुलर रोड के मोड़ पर, जिस बड़े से फाटक के पास टैक्सी रुकी वह तो मिली के लिए बिलकुल अजनबी था पर ऊपर लगा नामपट ‘भारती बाल आश्रम’ बिलकुल सही.

टैक्सी के रुकते ही वर्दीधारी वाचमैन ने दरवाजा खोला और सामान उठवाया.

अंदर की दुनिया तो मिली के लिए और भी अनजानी थी. कहां वह लाल पत्थर का एकमंजिला भवन, कहां यह आधुनिक चलन की बहुमंजिला इमारत.

सामने ही सफेद बोर्ड पर इमारत का इतिहास लिखा था. साथ ही साथ उस का नक्शा भी बना था. मिली ठहर कर उसे पढ़ने लगी.

सिर्फ 5 वर्ष पहले ही, केवलरामानी नाम के सिंधी उद्योगपति के दान से यह बिल्ंिडग बन कर तैयार हुई थी. मिली भौंचक्क सी रह गई. लाल गलियारे और हरे गवाक्ष, ऊंची छतों वाला शीतल आवास काल के गाल में समा चुका था. मिली अनमनी हो उठी.

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रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने रजिस्टर में उन का नाम पता मिलाया. गेस्ट हाउस में उन की बुकिंग थी. कमरे की चाबी निकाल कर जब लड़की उन का लगेज लिफ्ट में लगवाने लगी तो मिली ने डरतेडरते पूछा, ‘‘क्या मैं पहली मंजिल पर बनी नर्सरी को देखने जा सकती हूं?’’

लड़की ने बहुत शिष्टता से कहा, ‘‘मैम, उस के लिए आप को आफिस से अनुमति लेनी होगी. और आफिस शाम को 5 बजे के बाद ही खुलेगा.’’

‘‘तो आप ऊपर से फरीदा अम्मां को बुलवा दीजिए, प्लीज,’’ मिली ने हिचक के साथ अनुरोध किया.

लड़की ने जब यह कहा कि वह यहां की किसी फरीदा अम्मां को नहीं जानती तो मिली निराश सी हो गई. उस का लटका चेहरा देख कर जौन ने लिफ्ट में उसे टोकते हुए कहा, ‘‘चीयर अप सिस्टर, वी आर इन इंडिया…’’

मिली बेमन से हंस दी.

मिली ने विशेष आग्रह कर के अपने लिए मछली का झोल और भात मंगवाया. पहले उसे यह बंगाली खाना पसंद था पर आज 2 चम्मच से अधिक नहीं खा पाई, जीभ जलने लगी. आंखों में जल भर आया.

मिली की हताशा पर जौन हंस कर बोला, ‘‘चलो, चलो, पानी पियो…मुंह पोंछो… यह लो, मेरे सैंडविच खाओ.’’

जौन की लाख कोशिशों के बाद भी मिली अधीर और उदास ही बनी रही. इतने बदलावों ने उस के मन में इस शंका को भी जन्म दिया कि कहीं अगर फरीदा अम्मां भी…और इस के आगे वह और कुछ नहीं सोच सकी.

मिली के लिए 2 घंटे 2 युगों के बराबर गुजरे. 5 बजे कार्यालय खुला और जैसे ही संचालक महोदय आए मिली सब को पीछे छोड़ती हुई जौन को साथ ले कर उन के पास पहुंच गई.

संचालक, मिलन मुखर्जी आश्रम की बाला को बरसों बाद वापस आया जान खूब खुश हुए और आदरसत्कार कर मिली से इंगलैंड के बारे में, उस के परिवार के बारे में बात करते रहे. मिली ने अधीरता से जब नर्सरी देखने के लिए आज्ञापत्र मांगा तो मुखर्जी महोदय होहो कर हंस दिए और बोले, ‘‘अरे, तुम्हारे लिए कैसा आज्ञापत्र? तुम तो हमारी अपनी हो…यह तो तुम्हारा अपना घर है…चलो…मैं दिखाता हूं तुम्हें नर्सरी.’’

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बड़ा सा हौल. छोटेछोटे पालने. नन्हेमुन्ने बच्चे. कितने सलोने, कितने सुंदर. वह भी तो ऐसे ही पलीबढ़ी है, यह सोचते ही मिली का मन फिर उमड़ने- घुमड़ने लगा.

हौल में बच्चों को पालनेपोसने वाली मौसियां उत्सुकता से मिलीं. वे सब जौन को देखे जा रही थीं. मुखर्जी बाबू ने बड़े अभिमान से मिली का परिचय दिया कि यहीं की बच्ची है मृणालिनी, अब लंदन से अपने भाई के साथ आई है.

हौल में हलचल सी मच गई. खूब मान मिला. मिली के साथसाथ लंबे जौन ने भी सब को बड़ा प्रभावित किया.

मिली बच्चों से मिली. बड़ों से मिली लेकिन उस फरीदा अम्मां से नहीं मिल पाई जिस के लिए समंदर पार कर वह भारत आई थी.

‘‘बाबा, फरीदा अम्मां कहां हैं?’’ उसे याद है बचपन में संचालक को सभी बच्चे बाबा ही कह कर बुलाते थे. आज मुखर्जी बाबू के लिए भी मिली के पास वही संबोधन था.

हैवान- भाग 1: प्यार जब जुनून में बदल जाए

जेल की जिस अंधेरी कोठरी में विक्रम सजा काट रहा था, उस की दीवारों पर बस एक ही नाम लिखा था, राधा. सिर्फ जेल की दीवारों पर ही नहीं, बल्कि राधा का नाम तो विक्रम के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. राधा ही वह नाम था, जिसे मौत भी विक्रम की जिंदगी से नहीं मिटा सकती थी.

विक्रम राधा से प्यार ही नहीं करता था, बल्कि उसे जुनून की हद तक चाहता भी था.

जिस कालकोठरी में लोग रोरो कर अपना समय काटते थे, वहां विक्रम के दिनरात राधा की यादों, खयालों और ख्वाबों में गुजरते थे. हर पल राधा से मिलने की तड़प और इंतजार ने उसे अब तक सलाखों के पीछे जिंदा रखा था, वरना वह कब का दुनिया को अलविदा कह चुका होता.

विक्रम लावारिसों की तरह एक अनाथालय में पलाबढ़ा था. उस के मांबाप का पता नहीं था. उस ने बचपन से ही हर ख्वाहिश के लिए मन मारना सीखा था.

जब अनाथालय की चारदीवारी में उस का दम घुटने लगा, तो एक दिन विक्रम भाग निकला.

पेट भरने के लिए पहले उस ने मजदूरी की, लेकिन जब पेट नहीं भरा, तो लोगों से पैसे छीनने लगा. 2-4 साथी मिल गए, तो एक गिरोह बना लिया.

इस के बाद विक्रम अपराध के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि बड़े गिरोह का सरदार बन गया. आलीशान कोठी ले ली और पुलिस से छिपने के लिए वह शहर से दूर उसी कोठी का सहारा लेता था.

एक दिन बाजार में घूमतेघूमते विक्रम की नजर एक खूबसूरत चेहरे पर पड़ी. यह चेहरा राधा का था. राधा ने जैसे उस के चेहरे पर एक जादू सा कर दिया था.

राधा को देखते ही विक्रम को पहली नजर का प्यार हो गया था. राधा की शक्ल में मानो उसे जिंदगी का नया मकसद मिल गया था. अब तो वह बस राधा का ही पीछा करता. राधा बाजार जाती, तो विक्रम भी उस की एक झलक पाने के लिए उस के पीछे हो लेता.

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रात को जब राधा घर में सोती, तो वह भी राधा के घर के बाहर दरवाजे पर ही सो जाता. विक्रम सोचता, ‘मैं उस से मिल कर अपने दिल की बात कह दूंगा. पूछेगी तो बता दूंगा कि मैं एक चोर हूं. कुछ कहेगी तो कह दूंगा कि चोर हूं, तो क्या हुआ. क्या चोरों के पास दिल नहीं होता? क्या उन्हें प्यार करने का हक नहीं? तुम एक बार मेरी बन जाओ, मैं ये सारे उलटेसीधे काम छोड़ दूंगा…’

विक्रम रोज यही सोचता, पर राधा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.

एक दिन विक्रम ने पक्का कर लिया कि वह आज राधा को अपने दिल की बात बता कर ही दम लेगा.

सुबह राधा कालेज के लिए घर से निकली. विक्रम भी उस के पीछे हो लिया. किसी अकेली या सुनसान जगह देख कर वह राधा से अपनी बात कहने वाला था.

राधा की उम्र तकरीबन 22 साल, रंग गोरा. कद 5 फुट, 5 इंच. खूबसूरत नैननक्श और मोरनी सी चाल. जो भी देखे, मरमिटे उस की खूबसूरती पर.

राधा नदी के पुल से गुजरने लगी. विक्रम तेज कदमों से राधा की तरफ चल पड़ा. राधा इस बात से बिलकुल अनजान थी कि कोई उस पर इस कदर फिदा है. पुल से इक्कादुक्का आदमी ही गुजर रहे थे.

इस से पहले कि विक्रम राधा के पास पहुंचता, 4 दिलफेंक मोटरसाइकिल सवार राधा को अकेले देख कर उस के चारों ओर मंडराने लगे.

‘हाय बेबी’, ‘हाय डार्लिंग’ और ‘हाय स्वीटी’ कह कर वे चारों राधा के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगे.

तभी एक ने राधा का दुपट्टा खींच लिया. अपना आंचल छिपाते हुए राधा रोनी सूरत बनाए कह रही थी, ‘‘प्लीज, मेरा रास्ता छोडि़ए… मुझे जल्दी कालेज पहुंचना है.’’

राधा की इस बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरे ने राधा के हाथों से किताबें छीन लीं. वह बोला, ‘‘हाय बेबी डौल, आओ मैं तुम्हें पढ़ाता हूं.’’

राधा की आंखों में आंसू आ गए. कुछ ही दूरी पर खड़ा विक्रम राधा की बेइज्जती को देख कर आगबबूला हो उठा. उसे ऐसा लगा, मानो कोई उस के बदन पर जहरबुझा खंजर घोंप रहा है.

विक्रम तेजी से आगे बढ़ा और मोटरसाइकिल सवार एक लड़के पर जोर से एक लात दे मारी. इस से पहले कि वह संभलता, विक्रम की दूसरी किक ने उस का बैलेंस बिगाड़ दिया और वह पुल के नीचे गिर गया.

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बाकी तीनों का ध्यान विक्रम की ओर गया. एक ने उसे मोटरसाइकिल से कुचलना चाहा, पर विक्रम ने फुरती से उस के जबड़े पर एक ऐसा घूंसा जड़ा कि वह मोटरसाइकिल समेत काफी दूर तक घिसटता चला गया. बाकी दोनों पर विक्रम ने लातघूंसों की बरसात कर दी. जख्मी हालत में सभी लड़के भाग खड़े हुए.

विक्रम ने दुपट्टा उठाया और राधा को अपने हाथ से ओढ़ा दिया.

‘‘अगर आज आप वक्त पर नहीं आते, तो न जाने मेरा क्या होता,’’ राधा बोली.

विक्रम ने पास पड़ी किताबें उठा कर राधा को दीं और बोला, ‘‘मैं… मैं…’’

राधा बोली, ‘‘मेरा नाम राधा है. समझ नहीं आ रहा कि मैं आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं?’’

‘‘नहीं, यह तो मेरा फर्ज था,’’ विक्रम के मुंह से ज्यादा शब्द नहीं निकल रहे थे.

‘‘आप ने अपना नाम नहीं बताया?’’

‘‘विक्रम…’’ अपना नाम किसी तरह जबान पर ला कर विक्रम तो बस राधा को ही देख रहा था.

राधा ने फिर से एक प्यारी सी मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो आप मेरे घर पर खाने के लिए आइए… इस बहाने मैं आप का शुक्रिया भी अदा कर सकूंगी और मेरे मांबाप भी आप से मिल कर खुश होंगे.’’

राधा की इस बात से विक्रम का हौसला बढ़ा और उस ने अचानक राधा के दोनों हाथ अपने हाथ में ले कर बोल दिया, ‘‘राधा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. प्लीज राधा, तुम गलत मत समझना.’’

विक्रम की इस हरकत से राधा चौंक पड़ी. अभी भी राधा के हाथ विक्रम के हाथों में थे. शायद विक्रम का छूना राधा को भी अच्छा लगा था.

राधा ने धीरे से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आप कल खाने पर मेरे घर जरूर आइएगा.’’

अगले दिन के इंतजार में विक्रम ने सारी रात करवटों में बिताई. विक्रम ठीक समय पर राधा के घर पहुंच गया. राधा के पिता ने बड़े आदर से विक्रम का स्वागत किया और उस का शुक्रिया अदा किया.

विक्रम ने भी समय देख कर उस के पिता से राधा की शादी की बात कह दी.

वैसे तो विक्रम उस के पिता को पसंद था, लेकिन शादीब्याह के मामले में वे थोड़े रूढि़वादी थे.

‘‘अपने बारे में कुछ बताओ विक्रम,’’ राधा के पिता ने पूछा.

‘‘जी, मेरा नाम विक्रम दास है. मैं अनाथ हूं, लेकिन आप की राधा का खयाल बहुत अच्छी तरह रखूंगा. पेशे से मैं इंपोर्टऐक्सपोर्ट का कारोबार करता हूं,’’ विक्रम ने बताया.

इस से पहले विक्रम अपनी बात आगे बढ़ाता, राधा के पिता के चेहरे के तेवर बदलने लगे, ‘‘विक्रम दास… दास यानी शिड्यूल कास्ट… तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘जी, मैं तो आप से आज ही मिला हूं.’’

‘‘वह मैं कुछ नहीं जानता, तुम्हारी शादी राधा से नहीं हो सकती.’’

‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारी जाति हमारी जाति से मेल नहीं खाती. हम ठहरे ऊंचे कुल के ब्राह्मण और तुम…’’

‘‘आप यकीन मानिए, मैं राधा से बहुत प्यार करता हूं.’’

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‘‘प्यारव्यार कुछ नहीं… मैं ने एक बार कह दिया कि मैं गैरब्राह्मण परिवार में राधा की शादी हरगिज नहीं कर सकता और तुम तो…’’

‘‘बस कीजिए आप, आज जमाना कहां से कहां पहुंच चुका है और आप अभी भी वहीं जातपांत और अमीरीगरीबी पर अटके हैं.’’

‘‘मैं इस बात पर कोई बहस नहीं चाहता. तुम ने मेरी बेटी को गुंडों से बचाया, इसलिए तुम यहां खड़े हो, वरना तुम्हारी जाति के लोग हमारी दहलीज के पार नहीं आते.’’

अब विक्रम को राधा के पिता की बात चुभने लगी. उधर राधा भी अपने पिता के आगे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

तभी पुलिस का सायरन बजा. इंस्पैक्टर अंदर आया और आननफानन विक्रम को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सब लोग अचानक पुलिस की ऐंट्री से चौंक गए.

राधा घबरा कर बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप यह क्या कर रहे हैं?’’

राधा की बात बीच में काट कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘मैं बिलकुल ठीक कर रहा हूं. यह बहुत बड़ा चोर है. पुलिस को कई दिनों से इस की तलाश थी.’’

राधा हैरान सी खड़ी रही और विक्रम चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं, मुझे गलत मत समझना. मेरा इंतजार करना. जेल और जाति की दीवारें मुझे तुम से जुदा नहीं कर सकतीं. तुम मेरा इंतजार करना राधा…’’ और पुलिस की जीप विक्रम को ले कर राधा की आंखों से ओझल हो गई.

सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि राधा सोचती रह गई, ‘विक्रम तो कारोबारी था, फिर पुलिस उसे चोर क्यों बता रही थी? इस का मतलब विक्रम ने मुझ से झूठ बोला था, मुझे धोखा दिया था.’

राधा के पिता ने उस से कहा, ‘‘तुम इस धोखेबाज के झांसे में आने से बच गई, वरना यह चोर तो हमें धोखा दे ही चुका था.’’

कल तक विक्रम के लिए दिल में इज्जत रखने वाली राधा अब उस से नफरत करने लगी थी.

उधर विक्रम जेल में अपनी सजा खत्म होने का इंतजार कर रहा था, ताकि जल्द से जल्द अपनी राधा से मिल सके.

तभी विक्रम का शागिर्द चंदू उस से मिलने आया, ‘‘नमस्ते उस्ताद.’’

‘‘कहो, कैसे हो चंदू? कैसी है मेरी राधा?’’

चंदू कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘उस्ताद, बुरी खबर है.’’

‘‘बुरी खबर… क्या बात है चंदू?’’

‘‘उस्ताद, वह… वह… वह…’’

‘‘वह… वह… क्या… तेरी जबान क्यों लड़खड़ा रही है? कुछ बोलता क्यों नहीं?’’

‘‘उस्ताद, राधा की कल शादी हो गई.’’

‘‘नहीं… नहीं… ऐसा नहीं हो सकता,’’ विक्रम के हाथ चंदू की गरदन पर थे, ‘‘कह दे कि यह झूठ है.’’

‘‘नहीं उस्ताद, यह सच है.’’

‘‘राधा मेरे सिवा किसी और की नहीं हो सकती. राधा सिर्फ मेरे लिए बनी है. उसे मुझ से कोई और नहीं छीन सकता. अगर ऐसा हुआ, तो मैं दुनिया को आग लगा दूंगा,’’ चंदू के गले पर विक्रम के हाथों का दबाव बढ़ने लगा. वह बड़ी मुश्किल से बोला, ‘‘उस्ताद, मेरी गरदन…’’

विक्रम ने गरदन छोड़ दी और अपना सिर सलाखों पर मारने लगा, ‘‘राधा, तुम मुझे धोखा नहीं दे सकतीं… मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा. तुम्हें सिर्फ मेरे लिए बनाया गया है,’’ विक्रम का माथा खून से लथपथ हो चुका था.

‘‘चंदू, जा कर पता करो कि मेरी राधा को मुझ से छीनने वाला आखिर कौन है?’’

‘‘जी उस्ताद…’’ कह कर चंदू चला गया.

विक्रम की जेल की कोठरी में बचे 2 दिन अब सदियों से लंबे लग रहे थे. वह अब एक पंछी की तरह आजाद होने के लिए फड़फड़ा रहा था. जेलर राउंड पर आया. उस ने देखा कि विक्रम ने बैरक की दीवारों पर हर जगह राधा का ही नाम लिख रखा है.

जेलर विक्रम पर चिल्लाया, ‘‘तेरे बाप की दीवार है क्या? खर्चा आता है खर्चा. हरामखोर कहीं का… यहां पर सजा काटने आया है या आशिकी करने.’’

विक्रम चुप रहा. सीखचों के पास आ कर जेलर फिर चीखा, ‘‘क्यों बे, गूंगा है क्या? कुछ बोलता क्यों नहीं? खड़ा हो…’’

विक्रम सलाखों के पास आ गया.

‘‘एक बात बता…’’ जेलर बोला, ‘‘कौन है यह? धोखा दे गई क्या… कौन थी? बीवी, प्रेमिका या फिर धंधे वाली?’’

जेलर इस से आगे कुछ और बोलता, विक्रम के दोनों हाथ उस की गरदन दबोच चुके थे.

विक्रम गुस्से से चीख उठा, ‘‘मेरी राधा को धंधे वाली बोलता है. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा. तेरी इस बदजबानी की सजा सिर्फ मौत है,’’ विक्रम के सिर पर खून सवार हो चुका था.

विक्रम के हाथ जेलर की गरदन पर लगातार दबाव बढ़ाते जा रहे थे. जेलर के हलक से घुटीघुटी चीखें निकल रही थीं. जेलर को बचाने के लिए 2-3 सिपाही दौड़े. उन्होंने विक्रम पर डंडों की बौछार कर दी, लेकिन उस के हाथों का दबाव तब तक ढीला नहीं पड़ा, जब तक जेलर की जान नहीं निकल गई.

विक्रम ने उस सिपाही पर वार कर दिया, जो दरवाजा खोल कर उस पर डंडे बरसा रहा था. बाहर खड़े सिपाही सीटी बजा रहे थे. विक्रम ने सलाखों से बाहर आ कर दोनों को एकएक घूंसे से ही जमीन सुंघा दी.

जेलर की कमर से रिवाल्वर निकाल कर विक्रम छत की तरफ दौड़ा. छत से सड़क पर एक ट्रक आता दिखा. पुलिस की एक गोली उस की पीठ में धंस चुकी थी. विक्रम चीख उठा, पर जैसेतैसे उस ने ट्रक में छलांग लगा दी.

इस बात को एक साल बीत चुका था. राधा एक प्यारे से बच्चे की मां बन चुकी थी. उस का पति अरुण एक बैंक में मैनेजर था. वह राधा को बहुत चाहता था. दोनों अपने छोटे से परिवार में बहुत खुश थे.

एक दिन पतिपत्नी बाजार से घर लौट रहे थे, तभी वहां से गुजर रहे चंदू की नजर राधा पर पड़ी. वह तो कई महीनों से राधा की तलाश में था ही, इसलिए दोनों के पीछे हो लिया. अरुण ने घर का दरवाजा खोला और वे दोनों अंदर दाखिल हो गए.

चंदू ने घर देखा और वापस हो लिया. विक्रम के जेल से फरार होने के बाद पुलिस बुरी तरह से उस के पीछे पड़ गई थी. विक्रम भी अपनी कोठी में कुछ वक्त के लिए अंडरग्राउंड हो गया था. जख्मी हालत में चंदू ने ही विक्रम का इलाज किया था. इस पूरे साल के दरम्यान वह राधा को भूल नहीं पाया था, बल्कि उस की दीवानगी और बढ़ चुकी थी.

चंदू दौड़ादौड़ा आया, ‘‘उस्ताद, उस्ताद…’’

‘‘क्या हुआ चंदू?’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘उस्ताद, राधा का पता लग गया है. मैं अभी उस का घर देख कर आ रहा हूं.’’

विक्रम खुशी से उछल उठा. उस ने चंदू को सीने से लगा लिया.

‘‘चंदू, मेरे दोस्त, मेरे भाई, आज तू ने मुझे वह खुशी दी है, जो मैं बयान नहीं कर सकता. मैं यह तेरा एहसान सारी जिंदगी नहीं भूलूंगा. कहां रहती है मेरी राधा?’’

‘‘बांद्रा पैडर रोड.’’

‘‘मैं अभी अपनी राधा के पास जाता हूं. अब और इंतजार नहीं होता.’’

‘‘उस्ताद, संभल कर. पुलिस पागल कुत्ते की तरह आप की तलाश में है.’’

‘‘तू मेरी फिक्र मत कर चंदू. आज मैं अपनी राधा को अपने साथ ले कर ही आऊंगा. आज मेरे और राधा के बीच पुलिस तो क्या कोई भी नहीं आ सकता.’’

विक्रम ने काला लिबास पहना. चश्मे और टोपी से अपना चेहरा छिपाते हुए वह राधा के घर निकल पड़ा. हाथ में रिवाल्वर लिए विक्रम आज राधा से मिलने को बेचैन था.

दिन के ठीक 12 बजे थे. अरुण रोजाना की तरह बैंक जा चुका था. राधा घर पर अकेली थी. बच्चा सो रहा था. घंटी बजी. राधा ने दरवाजा खोला. विक्रम को इतने दिनों बाद अचानक सामने देख वह चौंक गई.

‘‘विक्रम… तुम?’’

‘‘हां, मैं. तुम्हारा विक्रम. मैं ने तुम से कहा था ना कि तुम मेरा इंतजार करना. लेकिन तुम ने मेरा इंतजार क्यों नहीं किया? मैं तुम्हें एक पल भी नहीं भुला पाया. जेल में हर घड़ी बस तुम्हारा नाम लेता था. चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ… तुम्हें मेरे साथ चलना है.’’

‘‘तुम क्या बकवास कर रहे हो? हां, मैं मानती हूं कि तुम ने मुझे गुंडों से बचाया था, लेकिन तुम ने मुझ से अपनी जाति और चोर होने की बात भी तो छिपाई थी. तुम ने मुझे धोखे में रखा, वरना मैं तो यही समझती रहती कि तुम बिजनैसमैन हो, फिर भी मैं उस घटना के लिए तुम्हारी शुक्रगुजार हूं.’’

‘‘शुक्रगुजार… सिर्फ शुक्रगुजार? अरे, मैं तुम्हारे लिए सारी दुनिया से टकराने के लिए तैयार हूं. तुम्हारे चलते मैं ने जेलर का कत्ल कर दिया, जेल से भागा, गोलियां खाईं और कहती हो कि तुम शुक्रगुजार हो.’’

‘‘देखो विक्रम, आज मैं एक शादीशुदा औरत हूं. अच्छा होगा कि तुम खुद को पुलिस के हवाले कर दो.’’

विक्रम राधा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘नहीं राधा, मुझ से इतनी बेरुखी से बात मत करो. मेरे साथ चलो. मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता.’’

हैवान- भाग 2: प्यार जब जुनून में बदल जाए

इस बार राधा चीख उठी, ‘‘ओह विक्रम, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मैं अब किसी और की हो चुकी हूं. मेरा पति है, बच्चा है, अपना घर है. हो सके, तो तुम मुझे भूल जाओ. अगर तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे, तो मजबूरन मैं पुलिस को फोन कर दूंगी.’’

‘‘नहीं राधा… नहीं… मैं बगैर तुम्हारे जी नही पाऊंगा.’’

‘‘लगता है कि तुम ऐसे नहीं जाओगे,’’ राधा फोन की तरफ बढ़ी. फोन लगाया, ‘‘हैलो, पुलिस स्टेशन.’’

इस से पहले कि राधा अपनी बात पूरी करती, विक्रम ने फोन छीन कर तार काट दिया.

विक्रम गुस्से में चीखा, ‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगा राधा. अगर मैं तुम्हारे लिए इतना तड़प सकता हूं, तो तुम्हें भी अपने लिए तड़पा सकता हूं. अब तो तुम्हें मेरे साथ चलने से कोई नहीं रोक सकता,’’ विक्रम आगे बढ़ा.

‘‘आगे मत बढ़ना. मैं कहती हूं कि वहीं रुक जाओ,’’ राधा चिल्लाई, लेकिन विक्रम ने आगे बढ़ कर उसे आपनी बांहों में भर लिया. राधा कसमसाई. इस से पहले कि वह बचाव के लिए चीखती, विक्रम ने उस के सिर पर हलके से वार कर उसे बेहोश कर दिया. उसे अपनी गोद में उठाया. बाहर सन्नाटा था. राधा को अपनी कार की पिछली सीट पर लिटा कर गाड़ी अपनी कोठी की तरफ दौड़ा दी.

राधा को होश आया, तो उस ने खुद को एक खूबसूरत बैडरूम में पाया. पूरे कमरे में राधा की तसवीरें लगी थीं. राधा ने दरवाजा खोला. बाहर एक बहुत बड़ा कमरा था. 2 आदमी हाथ में रिवाल्वर लिए पहरेदारी कर रहे थे. राधा समझ गई कि भागना बेकार है. वह वापस कमरे में आ गई.

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‘‘कैसी हो राधा,’’ विक्रम बोला.

‘‘मुझे यहां क्यों लाए हो?’’

‘‘अपनी चीज को अपने पास ही तो लाया हूं.’’

‘‘तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो विक्रम.’’

‘‘नहीं, मैं कोई गलती नहीं कर रहा. प्यार करना कोई जुर्म नहीं है. तुम सिर्फ मेरी हो… सिर्फ मेरी.’’

‘‘मैं सिर्फ अपने पति की हूं. तुम मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. मुझे हाथ मत लगाना. मैं तुम से नफरत करती हूं.’’

‘‘नहीं राधा, मुझ से नफरत मत करो. मैं मर कर भी सुकून नहीं पाऊंगा.’’

‘‘मुझे यहां से जाने दो प्लीज,’’ राधा गिड़गिड़ाई.

‘‘नहीं, अब तुम यहीं रहने की आदत डाल लो. अब यही तुम्हारा घर है.’’

‘‘घर… थू… अरे, तुम क्या जानो कि घर किसे कहते हैं, पत्नी क्या होती है और प्यार क्या होता है? तुम तो छीनने वालों में से हो.’’

‘‘हां, मैं लुटेरा हूं. तुम मुझे आसानी से हासिल नहीं हुई, इसलिए मैं ने तुम्हें छीन लिया.’’

‘‘यहां ला कर तुम क्या साबित करना चाहते हो? प्यार के नाम पर तुम्हें मेरा जिस्म चाहिए… यह लो, लूट लो मेरी इज्जत. मुझे पा कर तुम्हारी हवस बुझ सकती है, तो बुझा लो,’’ कहते हुए राधा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए.

विक्रम ने राधा को एक जोरदार थप्पड़ मारा और जिस्म से हटी साड़ी राधा को थमाते हुए बोला, ‘‘तुम ने समझ क्या रखा है? अगर मुझे जिस्म की प्यास ही बुझानी होती, तो बाजार में जिस्म बेचने वालों की कोई कमी नहीं है. अरे, मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे जिस्म से नहीं. तुम्हें यहां मुझ से कोई खतरा नहीं है. मैं तुम्हारा अपना हूं.’’

‘‘ये कैसा प्यार है तुम्हारा, जो मेरी ही जिंदगी बरबाद करने पर तुला है, आखिर तुम्हें मुझ से चाहिए क्या?’’

‘‘शादी… मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ विक्रम ने जवाब दिया.

‘‘तुम जानते हो कि ऐसा नहीं हो सकता है. मैं शादीशुदा हूं?’’

‘‘तलाक दे दो उसे.’’

‘‘शादी कोई मजाक है, जो आज की और कल तलाक दे दिया? मैं ऐसी औरत नहीं हूं, जो तुम जैसे झूठे और अपराधी के लिए अपने पति को धोखा दे दे,’’ कहते हुए राधा ने विक्रम को चले जाने के लिए कहा.

‘‘अभी तो मैं जा रहा हूं, लेकिन तुम्हें हर हाल में हासिल कर के ही दम लूंगा,’’ विक्रम कमरे से बाहर निकल गया.

उधर थाने में अरुण ने इंस्पैक्टर को सारा हाल बताया.

‘‘मिस्टर अरुण…’’ इंस्पैक्टर दयाल ने पूछा, ‘‘आप यह कैसे कह सकते हैं कि आप की पत्नी किडनैप हुई है? हो सकता है कि वह अपनी मरजी से कहीं गई हो?’’

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‘‘इंस्पैक्टर साहब…’’ अरुण बोला, ‘‘मैं अपनी राधा को अच्छी तरह से जानता हूं. वह बिना बताए कहीं नहीं जाती. अपने दूधपीते बच्चे को छोड़ कर कहां जाएगी राधा? नहीं साहब, घर में बिखरा सामान और टैलीफोन का कटा तार साबित करता है कि हाथापाई के बाद कोई राधा को जबरदस्ती उठा ले गया है.’’

‘‘मिस्टर अरुण, बुरा मत मानना, पर आप की पत्नी का कोई चाहने वाला था? मेरा मतलब शादी से पहले उस का…’’

अरुण का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, पर अपना गुस्सा दबा कर वह बोला, ‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, अभी आप जाइए. हम आप की पत्नी को ढूंढ़ने की पूरी कोशिश करेंगे. अगर इस दौरान आप को कोई जानकारी मिले, तो हमें जरूर बताना.’’

‘‘ओके इंस्पैक्टर,’’ अरुण ने हाथ मिलाया और बाहर निकल गया. घर में बच्चा रो रहा था. अरुण ने दूध की बोतल से चुप कराना चाहा, लेकिन उसे तो मां की छाती चाहिए थी.

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अरुण इस अचानक हुए हादसे से सकते में था. उधर, विक्रम अपने खयालों में यही सोच रहा था कि अगर राधा का पति मर जाए, तो राधा का ध्यान उस की तरफ आएगा. उस का पति ही उस के रास्ते का सब से बड़ा कांटा था. उस की मौत ही उसे राधा के करीब ला सकती थी. एक शादीशुदा औरत दूसरी शादी नहीं कर सकती, लेकिन एक विधवा तो कर सकती है. हां… राधा तभी उस की होगी, जब उस के पति की मौत हो जाएगी… और विक्रम ने एक भयानक इरादा कर लिया. उस के चेहरे पर दरिंदगी के भाव आ गए थे.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ कालबैल की आवाज सुन कर अरुण ने जैसे ही दरवाजा खोला… ‘धांयधांय’ 2 गोलियां उस के सीने में समा गईं. अरुण कटे पेड़ सा ढेर हो गया. गोली की आवाज से बच्चे की नींद खुल गई. वह जोरजोर से रोने लगा.

हैवान- भाग 3: प्यार जब जुनून में बदल जाए

विक्रम ने बच्चे को उठाया और बाहर निकला. गोली की आवाज सुन कर बाहर काफी लोग जमा हो चुके थे.

‘‘खबरदार कोई हिला तो गोली से भून कर रख दूंगा,’’ विक्रम चीखा. सभी सहम कर दूर हट गए. विक्रम ने गाड़ी खोली और बच्चे को ले कर खंडाला रोड की तरफ निकल गया.

विक्रम जैसे ही अपनी कोठी में पहुंचा, बच्चे का रोना सुन कर राधा दौड़ कर वहां आई. अपने बच्चे को सीने से लगाने लगी. बच्चे को भूखा जान कर उस ने उसे आंचल में छिपा लिया.

‘‘वे कैसे हैं?’’ राधा ने पूछा, ‘‘मैं उन से कब मिल सकूंगी? कब जाने दोगे मुझे उन के पास?’’

‘‘उस से तो अब तुम कभी नहीं मिल सकतीं.’’

‘‘क्यों?’’ राधा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘तुम पहले बच्चे को दूध पिलाओ.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. दूध पीतेपीते बच्चा सो गया.

‘‘क्यों नहीं मिल सकती मैं उन से?’’ राधा ने फिर पूछा.

‘‘क्योंकि अब वह इस दुनिया में नहीं है.’’

‘‘नहीं… तुम झूठ बोल रहे हो.’’

‘‘अपने हाथों से खत्म किया है मैं ने उसे. मेरे और तुम्हारे बीच दीवार था वह.’’

‘‘कमीने, तू ने मेरा सुहाग छीन लिया. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ राधा घायल शेरनी की तरह विक्रम पर झपट पड़ी.

विक्रम कुछ देर तो खामोश रहा, फिर अचानक राधा पर लातघूंसों से हमला कर दिया. उस पर दरिंदगी सी छाई थी.

‘‘मैं तेरे लिए मरा जा रहा हूं और तू मरे हुए आदमी के लिए जिंदा आदमी को मार रही है. तेरे और मेरे बीच जो भी आएगा, उस का अंजाम सिर्फ मौत होगा,’’ इतना कह कर विक्रम बाहर चला गया.

राधा बच्चे को सीने से लगा कर जोरजोर से रोने लगी. कुछ देर में वह सो गई. इसी बीच विक्रम आया और बच्चे को चंदू को थमा कर सोती हुई राधा के पास लेट गया और उस के पैरों को चूमने लगा.

राधा जाग कर चौंकते हुए बोली, ‘‘तुम यहां? मेरा बच्चा कहां है?’’

‘‘वह जहां भी है ठीक है,’’ विक्रम ने कहा, ‘‘तुम मुझे ही अपना बच्चा समझ लो,’’ विक्रम मासूम बच्चे की तरह राधा से लिपट गया.

राधा ने धक्का दे कर उसे दूर किया, ‘‘खबरदार, जो मेरे नजदीक आए, तुम खूनी हो, दरिंदे हो.’’

अचानक राधा के इस धक्के से विक्रम के अंदर एक बार फिर हैवानियत सी छा गई. उस ने राधा के बदन से कपड़े खींचने शुरू कर दिए.

राधा चीख उठी, ‘‘छोड़ो मुझे.’’

विक्रम ने एक झटके से साड़ी खींच दी. अब राधा के जिस्म पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज बचा था. विक्रम तेजी से राधा पर झपटा. राधा ने बचने की पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.

वह विक्रम की बांहों की गिरफ्त में आ चुकी थी. पिंजरे में बंद पंछी की तरह फड़फड़ा रही थी. मगर उस की चीखें सुनने वाला कोई नहीं था.

विक्रम ने उसे पलंग पर लिटा दिया. राधा कसमसाई. विक्रम ने उस का पेटीकोट खींच दिया.

राधा रोते हुए फरियाद करने लगी, ‘‘मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं, छोड़ दो मुझे.’’

विक्रम ने राधा के जिस्म को अपने जिस्म से सटा लिया. राधा फरियाद करती रही, पर विक्रम उस के एकएक अंग को चूमता रहा और बोला, ‘‘राधा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. उस दिन मैं ने तुम्हें मारा था. मुझे माफ कर दो. उस दिन मैं ने खुद को भी सजा दी थी. यह देखो,’’ विक्रम ने राधा के सीने से मुंह हटा कर अपने जिस्म पर लगे घावों को दिखाने लगा.

‘‘राधा, मैं ने तुम्हारे कपड़े इसलिए उतारे हैं, क्योंकि मैं नहीं चाहिता कि तुम्हारे जिस्म पर किसी और के दिए कपड़े हों. तुम मेरी हो और तुम्हारा जिस्म भी मेरा है. मैं बगैर शादी के तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूंगा. मैं ने तुम्हारे लिए कपड़े खरीदे हैं, अभी लाता हूं,’’ कह कर विक्रम पास के कमरे में चला गया.

राधा अपने जिस्म को हाथों से छिपाए बैठी थी. विक्रम वापस आया, तो उस के हाथ में खूबसूरत साड़ी, ब्लाउज और खूबसूरत गहने थे.

‘‘मैं अपने हाथों से तुम्हें ये पहनाऊंगा.’’

‘‘मैं तुम्हारी दी हुई कोई चीज नहीं पहनूंगी.’’

‘‘कैसे नहीं पहनोगी,’’ विक्रम गुर्राया.

विक्रम के सख्त चेहरे को देख कर राधा घबरा गई. वह जानती थी कि जब भी यह चेहरा खतरनाक होता है, या तो उस का कोई मरता है या उस की पिटाई होती है.

‘‘अरे, मुझ से क्या शरमाना,’’ विक्रम ने राधा से कहा. विक्रम उसे जबरदस्ती कपड़े पहनाने लगा. हाथों में हीरे की अंगूठी और गले में सोने की चेन पहना कर वह बोला, ‘‘राधा, देखो तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो.’’

विक्रम राधा को विशाल आईने के पास ले गया.

‘‘राधा, आज मैं तुम्हारे साथ सोऊंगा, पर करूंगा कुछ नहीं.’’

हैवान- भाग 4: प्यार जब जुनून में बदल जाए

राधा तो जैसे पत्थर की मूरत बन गई थी. विक्रम ने राधा को पलंग पर लिटाया और फिर बच्चे की तरह उस से लिपट कर सो गया.

‘‘सर, एमएमपी-9989 नंबर की गाड़ी खंडाला रोड पर जाती देखी गई है,’’ हवलदार बोला.

‘‘हूं,’’ इंस्पैक्टर ने सिगरेट का एक कश खींचा और पास खड़े आदमी से बोला, ‘‘इस नंबर की गाड़ी वाले ने अरुण का खून किया और बच्चे को ले गया?’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘पता करो कि कितने घर हैं इस इलाके में और यह नंबर किस के नाम पर हैं?’’

‘‘जी साहब,’’ हवलदार अपने काम पर लग गया.

‘‘राधा, मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता. प्लीज, तुम मुझ से शादी कर लो. तुम्हारे अलावा मेरा है ही कौन. हम दोनों कहीं दूर चले जाएंगे. मैं तुम्हारे बच्चे को भी अपना नाम दूंगा.’’

राधा चीख उठी, ‘‘तुम ने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई धंधे वाली हूं कि आज इस की हो गई और कल किसी और की. मैं अपने पति के हत्यारे के साथ शादी करूं, हरगिज नहीं. मैं अपने मासूम बेटे को उस के पिता का नाम दूंगी. अरे, तुम्हारे जैसे खूनी और हैवान का बेटा कहलाने से अच्छा है कि वह लावारिस ही रहे. और तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा कोई नहीं है? मेरा बच्चा है, उस के बल से मैं गर्व से जी लूंगी. थूकती हूं मैं तुम पर… थू…’’

राधा का थूक विक्रम के चेहरे पर गिरा. विक्रम गुस्से से लाल हो उठा. उस के चेहरे पर हैवानियत छाने लगी, पर वह चुपचाप बाहर चला गया.

विक्रम अपनी सोच में डूब गया, ‘मुझे राधा से दूर करने वाली एक ही दीवार है, उस का बच्चा. अगर वह उस के पास नहीं रहे, तो वह मेरी हो कर रहेगी. मैं यह दीवार हटाऊंगा…’ विक्रम के चेहरे पर दरिंदगी के इतने भयानक भाव आ गए, जो पहले कभी नहीं आए थे.

विक्रम ने पहले उस के बच्चे को मौत की नींद सुलाया, फिर राधा की इज्जत को तारतार करने के लिए उसे अपने वहशी आदमियों के हवाले कर दिया.

विक्रम के आदमी राधा को एक सुनसान कमरे की तरफ ले गए. वे आपस में बातें कर रहे थे, ‘‘आज तो मजा आ जाएगा. हम सब मिलबांट कर खाएंगे.’’

इस के बाद दरवाजे बंद हो गए. विक्रम उस झोंपड़ीनुमा मकान के पास पहुंच गया. खिड़की खुली थी. अंदर 6 लोग थे. राधा की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी.

‘‘कौन हो तुम लोग? मुझे यहां…’’

इस के बाद थोड़ेथोड़े अंतर के बाद राधा के कपड़े खिड़की से बाहर गिरते नजर आ रहे थे. राधा की चीखें बढ़ती जा रही थीं. हर चीख पर विक्रम अपनी रिवाल्वर में कारतूस भरता. उस के चेहरे पर हैवानियत सवार हो गई. यह आखिरी चीख थी. 6 लोगों ने राधा की इज्जत लूटी. एकएक कर मकान से बाहर आए. सभी बहुत खुश थे. विक्रम ने राधा के जिस्म को ढका और अपने कंधों पर उठा कर बाहर आया.

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विक्रम बाहर आ कर चिल्लाया, ‘‘ठहरो.’’

वे सभी रुक गए. विक्रम ने अपनी रिवाल्वर तानते हुए कहा, ‘‘तुम सब ने मेरी राधा को बहुत तकलीफ दी है, अब तुम्हारी बारी है.’’

इतना कह कर विक्रम ने सभी को गोलियों से भून दिया.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ इंस्पैक्टर ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, बांद्रा पुलिस स्टेशन?’’ दूसरी ओर से धरधराती आवाज आई.

‘‘इंस्पैक्टर रमेश हैं.’’

‘‘हां, मैं इंस्पैक्टर रमेश बोल रहा हूं.’’

‘‘मेरी बात गौर से सुनो इंस्पैक्टर. आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले सैंट्रल जेल में जेलर और कुछ पुलिस वालों की हत्या कर एक कैदी फरार हो गया था. उस पर एक लाख रुपए का इनाम भी है…’’

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‘‘क्या जानते हो तुम विक्रम के बारे में?’’

‘‘मैं यह पूछ रहा था कि अगर मैं विक्रम का पता बता दूं, तो मुझे इनाम कब और कैसे मिलेगा?’’

‘‘हां जरूर मिलेगा, पहले विक्रम का मिलना जरूरी है.’’

‘‘तो सुनो. विक्रम खंडाला रोड से 4 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर एक बंगले में रहता है.’’

‘‘अपना नाम बताओ.’’

‘‘नहीं इंस्पैक्टर, विक्रम बहुत खतरनाक अपराधी है. जब तक वह गिरफ्तार नहीं हो जाता, मैं सामने नहीं आऊंगा,’’ दूसरी ओर से फोन कट गया.

हैवान- भाग 5: प्यार जब जुनून में बदल जाए

इंस्पैक्टर रमेश सोचने लगा कि हो न हो, राधा का अपहरण और अरुण का कत्ल विक्रम ने ही किया है. सोचतेसोचते इंस्पैक्टर के चेहरे पर एक जीत भरी मुसकान फैल गई.

इधर बेहोश राधा को विक्रम अपनी गोद में लिटाए उस के बालों पर हाथ फेर रहा था.

‘‘राधा, अब हम एक हो गए हैं. अब हमें कोई और जुदा नहीं कर सकता. हमारी शादी होगी. हम दोनों साथ रहेंगे. मैं नौकरी करूंगा. महीने के आखिर में तनख्वाह तुम्हारे हाथों में सौंपूंगा. तुम दरवाजे पर खड़ी हो कर मेरा रास्ता देखोगी. मुझे लेट आने पर डांटोगी. मैं तुम्हें सारे सुख दूंगा. अब हम लोग खुशीखुशी साथ रहेंगे.’’

राधा की बेहोशी टूटने लगी. जैसे ही उसे होशा आया, वह विक्रम को धक्का दे कर दूर जा खड़ी हुई.

‘‘तुम ने मुझे बरबाद कर के ही दम लिया. अब तो तुम्हें चैन मिल गया न. और अब क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘ऐसा मत कहो राधा,’’ विक्रम रोने वाले अंदाज में बोला, ‘‘आज हमारी शादी है राधा.’’

‘‘शादी…’’ राधा नफरत से बोली, ‘‘मैं तुम से शादी करूंगी, तुम ने यह सोचा भी कैसे.’’

‘‘क्यों, अब तो हमारे बीच कोई दीवार भी नहीं है.’’

‘‘तुम ने मुझ से मेरा पति छीन लिया. मेरे सामने मेरे मासूम बेटे का कत्ल कर दिया. मुझे हवस के भूखे कुत्तों के सामने डाल कर मेरी इज्जत लुटवा दी. मैं… मैं… तुम से शादी तो क्या तुम पर थूकना भी पसंद नहीं करूंगी.’’

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विक्रम चीख पड़ा, ‘‘हां, मैं ने ये सब किया, सिर्फ तुम्हें पाने के लिए. तुम्हें पाने के लिए जेल से भागा. जेलर का खून किया. अरुण और तुम्हारे बच्चे की हत्या की. तुम्हारा बलात्कार करवाया. ये सब मैं ने इसलिए किया, ताकि तुम्हें पा सकूं. तुम्हीं ने तो कहा था कि तुम्हें मेरे सहारे की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम अपने पति, बेटे और इज्जत के सहारे जी लोगी. मुझे ये सब दीवारें तुम्हारे लिए गिरानी पड़ीं. अब तुम्हारे पास कुछ नहीं है. अब तुम्हें मुझ से शादी करनी ही पड़ेगी. अब इस हाल में तुम्हें कौन अपनाएगा सिवाय मेरे?’’

अब राधा चीखचीख कर कहने लगी, ‘‘मैं तुम से नफरत करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. तवायफ बन कर कोठों में नाच लूंगी, भीख मांग लूंगी, मगर तुम से शादी नहीं करूंगी. अपने दिल से यह खयाल निकाल दो. तुम्हारा यह सपना एक सपना ही बन कर रह जाएगा.’’

विक्रम रोने लगा, ‘‘आखिर तुम कैसे मानोगी? क्या चाहती हो तुम?’’

‘‘मैं ने तुम्हें पाने के लिए क्याक्या नहीं किया और तुम हो कि…’’

‘‘मैं तुम्हें जान से मार डालना चाहती हूं.’’

‘‘क्या, तुम मुझे मारना चाहती हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम…’’

‘‘हां… हां… मैं तुम से नफरत करती हूं,’’ राधा झल्ला गई.

विक्रम राधा से प्यार की भीख मांगता रहा, पर राधा हर बार यही जवाब देती कि मैं तुम से नफरत करती हूं.

‘‘राधा, तुम्हारी यह नफरत कैसे दूर होगी?’’ विक्रम बोला.

‘‘तुम्हारा खून कर के,’’ राधा भयानक आवाज में बोली.

‘‘तुम्हारी नफरत ले कर जीना मेरे बस का नहीं है. ये लो रिवाल्वर और खत्म कर दो मुझे. अगर मुझे मार कर तुम्हारी नफरत मिटती है, तो उतार दो मेरे सीने में इस रिवाल्वर की सारी गोलियां,’’ कहते हुए विक्रम ने गोलियों से भरा रिवाल्वर राधा के हाथों में थमा दिया. राधा ने भी विक्रम की ओर रिवाल्वर तान लिया.

‘धांय’ गोली चली, मगर राधा के हाथ की रिवाल्वर से नहीं, बल्कि चंदू की पिस्तौल से.

चंदू मुसकरा रहा था.

‘‘यह क्या हरकत है चंदू?’’ विक्रम चीखा.

‘‘उस्ताद, अगर तुम इस लड़की के हाथों मर गए, तो तुम्हारे ऊपर रखे गए उस इनाम का क्या होगा, जो पुलिस को बताने से मुझे मिलने वाला है. अगर मरना है, तो मेरी गोली से मरो, पुलिस की गोली से मरो.’’

‘‘चंदू… दगाबाज कहीं का…’’ विक्रम चीखा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में चिल्लाने का कोई फायदा नहीं उस्ताद. थोड़ी देर में तो पुलिस आने वाली है. उस के बाद तुम होगे पुलिस की गिरफ्त में और मैं इनाम के एक लाख रुपए ले कर इस लड़की को अपनी रखैल बना कर ऐश करूंगा.’’

‘‘चंदू…’’ विक्रम चंदू की ओर झपटा.

‘‘धांय,’’ एक गोली विक्रम के घुटने को पार करती हुई निकल गई. विक्रम वहीं गिर गया.

‘‘हा…हा…हा…’’ चंदू जोर से हंसा, ‘‘आज से मैं उस्ताद और यह लड़की भी मेरी हो गई. चल आजा रानी,’’ चंदू राधा को घसीटने लगा.

फिर एक बार विक्रम की ओर देख कर बोला, ‘‘चलते हैं उस्ताद.’’

चंदू राधा को ले कर दूसरे कमरे की तरफ चला गया. राधा की चीख सुन कर जख्मी विक्रम का चेहरा वीभत्स हो गया. वह पूरा जोर लगा कर उठा. चंदू ने राधा के जिस्म से साड़ी अलग कर दी. साड़ी विक्रम के चेहरे पर जा गिरी. विक्रम को देख चंदू ने रिवाल्वर तान दी.

इस से पहले कि चंदू ट्रिगर दबाता, विक्रम ने चंदू के ऊपर छलांग लगा दी. दोनों में जबरदस्त लड़ाई होने लगी. जख्मी होने की वजह से शुरू में चंदू भारी पड़ा, लेकिन उस्ताद तो उस्ताद ही होता है. विक्रम ने जख्मी होते हुए भी चंदू को अपने शिकंजे में ले लिया.

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इस बीच राधा ने जल्दी से साड़ी पहनी और पास में ही पड़े रिवाल्वर को उठा लिया. विक्रम ने चंदू को मारमार कर बुरी तरह से जख्मी कर दिया.

विक्रम बोला, ‘‘चंदू, उस्ताद उस्ताद ही होता है और चेला चेला.’’

हैवान- भाग 6: प्यार जब जुनून में बदल जाए

पल भर के लिए राधा सोच में पड़ गई, ‘‘यह आदमी जो मेरा गुनाहगार है… इस ने यह सब आखिर किया किसलिए? मुझे पाने के लिए न. क्या यही इस का जुर्म है कि इस ने मुझ से बेइंतहा प्यार किया. भले ही इस का तरीका गलत था, लेकिन चाहा तो मुझे बेपनाह ही था. लेकिन यह भी सच है कि इस चाहत में इस ने मेरा सबकुछ छीन लिया. मुझे बरबाद कर दिया. उस की सजा तो मैं इसे जरूर दूंगी. इतनी भयानक सजा दूंगी, जो यह सोच भी नहीं सकता.’’

विक्रम फिर बोला, ‘‘सोच क्या रही हो राधा, चलाओ गोली. आज तुम्हारे सामने तुम्हारा गुनाहगार खड़ा है. मार दो मुझे.’’

‘‘विक्रम…’’ तभी बाहर लाउडस्पीकर से तेज आवाज आई.

विक्रम ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा. बाहर चारों तरफ पुलिस फैली हुई थी. इंस्पैक्टर रमेश के हाथ में माइक था. पुलिस की बंदूकें विक्रम की कोठी की ओर तनी हुई थीं.

‘‘विक्रम, अपनेआप को पुलिस के हवाले कर दो,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फिर से लाउडस्पीकर से बोला.

‘‘हा…हा…हा…’’ चंदू ठहाके मार कर हंसा, ‘‘अब तुम मरोगे उस्ताद, पुलिस आ चुकी है. अब मेरे हाथों में होगा इनाम और तुम्हारी किस्मत में कालकोठरी या पुलिस की गोली. हा… हा… हा…’’ चंदू की हंसी गूंजने लगी.

विक्रम राधा से बोला, ‘‘राधा, जल्दी से खत्म कर दो मुझे. मैं पुलिस के हाथों गिरफ्तार होने के बजाय तुम्हारे हाथों से मरना पसंद करूंगा. तुम्हारी नफरत को अपने खून के कतरों से मिटा कर मुझ मर कर भी सुकून मिलेगा. राधा, जल्दी करो.’’

‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से मरने नहीं दूंगी विक्रम. तुम ने मुझे बहुत तड़पाया है. तुम्हें तो मौत से भी बदतर जिंदगी दूंगी मैं. मुझे पाने के लिए जो जुल्म तुम ने किए हैं, उन जुल्मों की यही सजा है कि मैं तुम्हें कभी न मिलूं. तुम जिंदा रहोगे, लेकिन मुझे कभी हासिल नहीं कर सकोगे. मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगी… कभी नहीं…’’ और राधा ने रिवाल्वर अपनी कनपटी पर लगा कर ट्रिगर दबा दिया.

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राधा ने दम तोड़ दिया. विक्रम चीख पड़ा.

‘‘नहीं राधा… नहीं… ये तुम ने क्या किया?’’ विक्रम राधा की लाश से लिपट कर रोने लगा.

आज विक्रम की सारी उम्मीदों और सपनों को कभी न खत्म होने वाला ग्रहण लग चुका था. दूर खड़ा चंदू मुसकरा रहा था. गोली की आवाज सुन कर इंस्पैक्टर रमेश चौंक गया.

‘‘विक्रम, अब मैं सिर्फ 3 तक गिनूंगा… अगर तब तक तुम ने खुद को पुलिस के हवाले नहीं किया तो मजबूरन मुझे गोली चलानी पड़ेगी.’’

उधर विक्रम राधा को अपनी बांहों में लिए रोए जा रहा था.

चंदू बोला, ‘‘अब ये मर चुकी है उस्ताद, अब तुम्हारी बारी है.’’

‘‘राधा, अगर तुम नहीं तो मैं जी कर क्या करूंगा? मैं खुद को गोली मार कर तुम्हारीनफरत दूर करूंगा.’’

‘‘एक…’’ इंस्पैक्टर की आवाज गूंजी.

चंदू, ‘‘उस्ताद, एक हो गया. तुम तो गए.’’

‘‘दो…’’ इंस्पैक्टर की आवाज फिर गूंजी.

विक्रम का चेहरा अचानक से भयानक हो गया. उस के चेहरे पर हैवानियत के भाव आ गए. उस ने सभी खिड़की और दरवाजे खोल दिए.

‘‘उस्ताद तुम गए और मैं मालामाल,’’ चंदू ठहाका लगा कर हंसा.

‘‘हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे. चंदू मैं चाहूं तो अब भी भाग सकता हूं लेकिन भागूंगा नहीं. अब मैं अपनी राधा के बिना जिंदा नहीं रहना चाहता.’’

विक्रम ने जेब से रिवाल्वर निकाली. चंदू कांप उठा.

‘‘उस्ताद, पुलिस से टक्कर लोगे?’’

‘‘नहीं चंदू नहीं… राधा ने खुदकुशी कर ली. मैं जिंदा नहीं रहना चाहता. फिर ये पुलिस खाली हाथ तो वापस जाएगी नहीं. तुम्हारी गद्दारी पर ही पुलिस इतनी दूर से आई है… ऐसे ही लौट जाए अच्छा नहीं लगा.’’

‘‘तीन…’’ इंस्पैक्टर रमेश अक्रामक स्वर में बोला.

विक्रम पर तो दयाल का कोई असर नहीं था. अलबत्ता चंदू जरूर घबरा गया था. उसे विक्रम के इरादे बेहद भयावह नजर आने लगे थे.

विक्रम ने राधा का माथा चूमा और कहा, ‘‘मैं भी तुम्हो पास आ रहा हूं राधा. मैं आ रहा हूं…’’

‘‘फायर,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने आर्डर दिया. सैकड़ों गोलियां खिड़की दरवाजों से अंदर आने लगीं. चंदू ने दीवार की आड़ ली. चंदू जोर से रमेश को आवाज लगा रहा था. यह बताने के लिए कि वे गोली न चलाए. अंदर वह भी है जिस ने विक्रम की फोन पर सूचना उस तक पहुंचाई थी. मगर गोलियों के शोर में चंदू की आवाज कहीं गुम हो गई.

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चंदू को बेबस देख कर विक्रम हंसा, ‘‘लगता है चंदू तुम ने पुलिस नहीं मौत बुलाई है.’’

विक्रम लेट कर घसीटता हुआ चंदू के पास पहुंच गया. उस ने चंदू का हाथ पकड़ लिया. चंदू घबरा गया.

विक्रम बोला, ‘‘ऐ चंदू, तुम ने बचपन में गिल्लीडंडा और कंचों का खेल तो बहुत खेला होगा. चल, आज हम दोनों मिल कर मौत का खेल खेलते हैं.’’

पुलिस की गोलियों से पूरा माहौल गूंज उठा.

विक्रम के इरादे भांपते ही चंदू दहशत से भर गया, ‘‘नहीं उस्ताद… नहीं.’’

विक्रम ने भरा रिवाल्वर उछाला और राधा की तरफ देख कर बोला, ‘‘राधा, मैं आ रहा हूं.’’

विक्रम ने चंदू और खुद को दीवार की आड़ से हटा कर खिड़की के सामने कर दिया. पलक झपकते ही गोलियां दोनों के जिस्म में समाती चली गईं.

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दोनों ने वहीं दम तोड़ दिया. पुलिस कोठी में घुसी. चंदू अपने लालच का शिकार हुआ.

विक्रम राधा को पाने की चाहत और जुनून में इस कदर हैवान हो गया था कि उस ने पहले राधा को बरबाद किया, फिर खुद को मौत के गले लगाया.

कमरे में 3 लाशें पड़ी थीं. फर्श पर खून बिखरा पड़ा था. इंस्पैक्टर रमेश ने अपनी टोपी निकाल कर हाथों में ले ली. विक्रम की राधा के लिए दीवानगी की बढ़ती हद ने उसे हैवान बना कर रख दिया था.

Mother’s Day Special- बहू-बेटी: भाग 3

रात को गैस के तंदूर पर रश्मि ने बढि़या स्वादिष्ठ मुर्गा और नान बनाए. इस बार बहू अपने मायके से तंदूर ले कर आई थी, पर वह वैसा का वैसा ही बंद पड़ा था. उस पर खाना बनाने का अवकाश किसे था. सास को आदत न थी और बहू को समय न था. तंदूर का खाना इतना अच्छा लगा कि विजय ने रश्मि से कहा, ‘‘कल हम भी एक तंदूर खरीद लेंगे.’’

दयावती के मुंह से निकल गया, ‘‘क्यों पैसे खराब करोगे? यही ले जाना. यहां किस काम आ रहा है.’’

कमलनाथ ने कहा, ‘‘ठीक तो है, बेटा. तुम यही ले जाओ. हमें जरूरत पड़ेगी तो और ले लेंगे.’’

बहू चुप. उस के दिल पर तो जैसे किसी ने हथौड़ा मार दिया हो. उस ने अपने पति की ओर देखा. बेटे ने मुंह फेर लिया. एक ही इलाज था. कल ही बहन के लिए एक नया तंदूर खरीद कर ले आए. लेकिन इस के लिए पैसे और समय दोनों की आवश्यकता थी.

बेटी को अपना माहौल याद आया. एक बार तंदूर ले गई तो उस के ससुर व पति दोनों जीवन भर उसे तंदूर पर ही बैठा देंगे. दोनों को खाने का बहुत शौक था. इस के अलावा उसे याद था कि जब मां का दिया हुआ शाल सास ने उस की ननद को बिना पूछे पकड़ा दिया था तो उसे कितना मानसिक कष्ट हुआ था. आंखों में आंसू आ गए थे. भाभी की हालत भी वही होगी.

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बात बिगड़ने से पहले ही उस ने कहा, ‘‘नहीं मां, यह तंदूर भाभी का है, मैं नहीं ले जाऊंगी. मेरे पड़ोस में एक मेजर रहते हैं. उन्होंने मुझे सस्ते दामों

पर फौजी कैंटीन से तंदूर लाने के

लिए कहा है. 2-2 तंदूर ले कर मैं

क्या करूंगी?’’

बेटी ने तंदूर के लिए मांग नहीं की थी, परंतु उस ने ससुराल लौटते ही मेजर साहब से तंदूर के लिए कहने का इरादा कर लिया था.

अगले दिन बेटी और दामाद चले गए. घर सूनासूना लगने लगा. चहलपहल मानो समाप्त हो गई थी. इस सूनेपन को तोड़ने वाली केवल एक आवाज थी और वह थी बच्ची के रोने की आवाज. वातावरण सामान्य होने में कुछ समय लगा. मां के मुंह से हर समय बेटी का नाम निकलता था. वह क्याक्या करती थी…क्या कर रही होगी…बच्चा ठीक से हो जाए…तुरंत बुला लूंगी. 3 महीने से पहले वापस नहीं भेजूंगी. बहू सोच रही थी, उसे तो पीछे पड़ कर 1 महीने बाद ही बुला लिया था.

दयावती की बहन की लड़की किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में आई थी, समय निकाल कर वह मौसी से मिलने भी आ गई.

‘‘क्या हो रहा है, मौसी?’’

‘‘अरे, तू कब आई?’’ दयावती ने चकित हो कर कहा, ‘‘कुछ खबर भी नहीं?’’

‘‘लो, जब खुद ही चली आई तो खबर क्या भेजनी? आई तो कल ही हूं. शादी है एक. कल वापस भी जाना है, पर अपनी प्यारी मौसी से मिले बिना कैसे जा सकती हूं? भाभी कहां हैं? सुना है, छुटकी बड़ी प्यारी है. बस, उसे देखने भर आई हूं.’’

‘‘अरे, बैठ तो सही. सब देखसुन लेना. देख कढ़ी बना रही हूं. खा कर जाना.’’

‘‘ओहो…बस, मौसी, तुम और तुम्हारी कढ़ी. हमेशा चूल्हाचौका. अब भाभी भी तो है, कुछ तो आराम से बैठा करो.’’

दयावती ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘क्या आराम करना. काम तो जिंदगी की अंतिम सांस तक करना ही करना है.’’

‘‘हाय, दीदी, तुम्हारा कितना काम करती थी. सच, तुम्हें रश्मि दीदी की बहुत याद आती होगी, मौसी?’’

‘‘अब फर्क तो होता ही है बहू और बेटी में,’’ दयावती ने फिर गहरी सांस ली.

जया सुन रही थी. उस के दिल पर चोट लगी. क्यों फर्क होता है बहू और बेटी में? एक को तीर तो दूसरे को तमगा. जब सास की बहन की लड़की चली गई तो जया सोचने लगी कि इस स्थिति में बदलाव आना जरूरी है. सास और बहू के बीच औपचारिकता क्यों? वह सास से साफसाफ कह सकती है कि बारबार बेटी की रट न लगाएं. पर ऐसा कहने से सास को अच्छा न लगेगा. अब उसे ही बेटी की भूमिका अदा करनी पड़ेगी. न सास रहेगी, न बहू. हर घर में बस, मांबेटी ही होनी चाहिए.

वह मुसकराई. उसे एक तरकीब सूझी. परिणाम बुरा भी हो सकता था, परंतु उस ने खतरा उठाने का निर्णय ले ही लिया. अगले सप्ताह होली का त्योहार था. अगर कुछ बुरा भी लगा तो होली के माहौल में ढक जाएगा. उस ने छुटकी को उठा कर चूम लिया.

प्रात: जब वह कमरे से निकली तो जींस पहने हुए थी और ऊपर से चैक का कुरता डाल रखा था. हाथ में गुलाल था.

‘‘होली मुबारक हो, मांजी,’’ कहते हुए जया ने ननद की नकल करते हुए सास के गालों पर चुंबन जड़ दिए और मुंह पर गुलाल मल दिया. दयावती की तो जैसे बोलती ही बंद हो गई. इस से पहले कि सास संभलती, जया ने खिलखिला कर ‘होली है…होली है’ कहते हुए सास को पकड़ कर नाचना शुरू कर दिया. होहल्ला सुन कर कमलनाथ भी बाहर आ गए और यह दृश्य देख कर हंसे बिना न रह सके.

‘‘यह क्या हो रहा है, बहू?’’ कमलनाथ ने हंसते हुए कहा.

‘‘होली है, पिताजी, और सुनिए, आज से मैं बहू नहीं हूं, बेटी हूं…सौ फीसदी बेटी,’’ यह कहते हुए उस ने ससुर के मुंह पर भी गुलाल पोत दिया.

इस से पहले कि कुछ और हंगामा खड़ा होता, पासपड़ोस के लोग मिलने आने लगे. स्त्रियां तो घर में ही घुस आईं. इसी बीच छुटकी रोने लगी. जया ने दौड़ कर छुटकी को उठा लिया और उस के कपड़े बदल कर सास की गोदी में बैठा दिया.

‘‘मांजी, आप मिलने वालों से निबटिए, मैं चायनाश्ता लगा रही हूं.’’

‘‘पर, बहू…’’

‘‘बहू नहीं, बेटी, मांजी. अब मैं बेटी हूं. देखिए मैं कितनी फुरती से काम निबटाती हूं.’’

लोग आ रहे थे और जा रहे थे. जया फुरती से नाश्ता लगालगा कर दे रही थी. रसोई का काम भी संभाल रही थी. गरमागरम पकौडि़यां बना रही थी, जूठे बरतन इकट्ठा नहीं होने दे रही थी. साथ ही साथ धो कर रखती जाती थी. सास को 2 बार रसोई से बाहर किया. उस का काम केवल छुटकी को रखना और मिलने वालों से बात करना था. सास को मजबूरन 2 बार छुटकी के कपड़े बदलने पड़े. सब से बड़ी बात तो यह थी कि दादी की गोद में छुटकी आज चुप थी, रोने का नाम नहीं. लगता था कि वह भी षडयंत्र में शामिल थी.

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जब मेहमानों से छुट्टी मिली तो दयावती ने महसूस किया कि छुटकी कुछ बदल गई है. रोई क्यों नहीं आज? बल्कि शैतान हंस ही रही थी.

कमलनाथ ने आवाज दी, ‘‘बहू, जरा एक दहीबड़ा और दे जाना, बहुत अच्छे बने हैं.’’

रसोई से आवाज आई, ‘‘यहां कोई बहूवहू नहीं है, पिताजी.’’

‘‘बड़ी भूल हो गई बेटी,’’ कमलनाथ ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब तो मिलेगा न?’’

‘‘और हां बेटी,’’ सास ने शरमाते हुए कहा, ‘‘अपनी मां का भी ध्यान रखना.’’

सास के गले में बांहें डालते हुए जया ने कहा, ‘‘क्योें नहीं, मां, आप लोगों को पा कर मैं कितनी धन्य हूं.’’

रमेश ने जो यह नाटक देख रहा था, गंभीरता से कहा, ‘‘इन हालात में मेरी क्या स्थिति है?’’ और सब हंस पड़े.

Serial Story: जड़ों से जुड़ा जीवन- भाग 5

लेखक-  वीना टहिल्यानी

‘‘कौन? फरीदा बेग? अरे, वह 4-5 साल पहले तक यहीं थी. उस की नजर कमजोर हो गई थी. मोतियाबिंद का आपरेशन भी हुआ पर अधिक उम्र होने के कारण वह काम नहीं कर पाती थी, लेकिन रहती यहीं थी. फिर एक दिन उस का बेटा सेना से स्वैच्छिक अवकाश ले कर आ गया और वह अपने साथ फरीदा को भी ले गया,’’ मुखर्जी ने पूरी जानकारी एकसाथ दे दी.

अम्मां चली गई हैं, यह जानते ही मिली का चेहरा सफेद पड़ गया. उस के निरीह चेहरे को देख कर जौन ने एक और प्रयत्न किया, ‘‘आप के पास उन का कोई पता तो होगा ही मिस्टर मुखर्जी?’’

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. आप उन से मिलने जाएंगे? खूब खुश होंगी वह अपनी पुरानी बच्ची से मिल कर.’’ मुखर्जी बाबू आनंदित हो उठे. मिली की जाती जान जैसे वापस लौट आई.

पुराने खातों की खोज हुई. कोलकाता के उपनगर दमदम से भी आगे, नागेर बाजार के किसी पुराने इलाके का पता लिखा था.

अगले दिन, संचालक ने उन के जाने के लिए टूरिस्ट कार की व्यवस्था कर दी.

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अम्मां के लिए फलफूल लिए गए. चौडे़ पाड़ वाली बंगाली धोती खरीदी गई. मिली बहुत खुश थी. आखिर दूरियां नापतेनापते जब वे दिए गए पते पर पहुंचे तो पता चला कि वहां तो कोई और परिवार रहता है. पड़ोसियों से पूछताछ की लेकिन पक्के तौर पर कोई कुछ कह न सका. शायद वे अपने गांव उड़ीसा चले गए थे, जहां उन की जमीन थी. पर वहां का पता किसी को मालूम न था.

मिली की तो जैसे सुननेसमझने की शक्ति ही जाती रही. फिर रुलाई का ऐसा आवेग उमड़ा कि उस की हिचकियां बंध गईं. जौन ने उसे संभाल लिया. बांहों में उसे बांध कर उस का सिर सहलाया. स्नेह से समझाया पर मिली तो जैसे कुछ सुननेसमझने के लिए तैयार ही न थी.

उस का कातर कं्रदन जारी रहा तो जौन घबरा उठा. कंधे झकझोर कर उस ने मिली को जोर से डांटा, ‘‘मिली, बहुत हुआ…अंब बंद करो यह नादानी.’’

‘‘यहां आना तो बेकार ही हो गया न जौन,’’ मिली रोंआसे स्वर से बोली.

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‘‘यह तो बेवकूफों वाली बात हुई,’’ जौन फिर नाराज हुआ, ‘‘अरे, अपने भाई के साथ तुम वापस अपने देश आई हो. मैं तो पहली बार ही इंडिया देख रहा हूं और इसे तुम बेकार कहती हो. असल में मिली, तुम्हारी अपेक्षाएं ही गलत हैं. तुम ने सोचा, तुम जो जैसा जहां छोड़ गई हो वह वैसा का वैसा वहीं पाओगी. बीच के समय का तुम्हें जरा भी विचार नहीं…तुम्हें तुम्हारा पुराना भवन न दिखा तो तुम निराश हो गईं. फरीदा अम्मां न मिलीं तो तुम हताश हो उठीं. तनिक यह भी सोचो कि बिल्ंिडग कितनी सुविधामयी है. फरीदा अम्मां अपने परिवार के साथ सुख से हैं. यह    दुख की बात है कि तुम उन से नहीं मिल पाईं पर इस बात को दिल से तो न लगाओ. जिन को चाहती हो, प्यार करती हो उन को अपना आदर्श बनाओ. जुझारू, बहादुर और सेवामयी बनो, फरीदा अम्मां जैसे.’’

भाई की बातों को ध्यान से सुनती मिली एकाएक ही बोल पड़ी, ‘‘जौन, मैं तो अभी कितनी छोटी हूं…मैं भला क्या कर सकती हूं.’’

‘‘तुम क्याक्या कर सकती हो, समय आने पर सब समझ जाओगी. फिलहाल तो तुम इस संस्था को कुछ दान दो जिस ने तुम्हें पाला, पोसा, बड़ा किया, प्यार दिया. मौम तुम्हें कितना सारा पैसा दे कर गई हैं…आओ, मैं तुम्हें चेक भरना बताऊं.’’

दोनों भाईबहनों ने ‘भारती बाल आश्रम’ के नाम एक चेक बनाया जिसे चुपचाप गलियारे में रखे दानपात्र में डाल दिया.

‘‘कोलकाता घूम कर शांतिनिकेतन चलेंगे फिर नालंदा और बोधगया देखेंगे. उस के बाद आगरा का ताज देख कर दिल्ली पहुंचेंगे और दिल्ली दर्शन के बाद वापस लंदन लौट चलेंगे. इस ट्रिप में तो बस, इतना ही घूमा जा सकता है.’’

आंख खुली तो मिली ने देखा एक सितारा अभी भी अपनी पूरी निष्ठा से दमक रहा था. मिली इस सितारे को पहचानती है यह भोर का तारा है.

फरीदा अम्मां कहती थीं, भोर का यह तारा भूलेभटकों को राह दिखाता है, दिशाहारों की उम्मीद जगाता है. बड़ा ही हठीला है पूरब दिशा का यह सितारा. किरणें उसे लाख समझाएं पर जबतक सूरज खुद नहीं आ जाता यह जिद्दी तारा जाने का नाम ही नहीं लेता. इसी हठी सितारे के आकर्षण में बंधी मिली बिस्तर से उठ खड़ी हुई.

पिछवाड़े की बालकनी खोल मिली ने बाहर कदम रखा ही था कि सहसा ठिठक गई. सामने जटाजूटधारी बरगद खड़ा था. वही वैभवशाली वटवृक्ष. पहले से कहीं ऊंचा, उन्नत, विराट और विशाल.

मिली ने हाथ आगे बढ़ा कर हौले से पेड़ के पत्तों को सहलाया, धीरे से उस की डालों को छुआ, मानो पूछ रही हो कि  पहचाना मुझे? मैं मिली हूं जो कभी तुम्हारी छांव में खेलती थी, तुम्हारी जटाओं पर झूलती थी. और इस तरह एक बार फिर मिली बचपन में भटकने लगी थी.

अचानक मसजिद से अजान की आवाज उभरी तो किसी मंदिर के घंटे घनघना उठे. और यह सब सुनते ही मिली को अभिमान हो आया कि कैसी विशाल, विराट, भव्य और उदार है उस की मातृभूमि.

मौम सच कहती थीं, हर जीवन अपनी जड़ों से जुड़ा होता है. मनुष्य अपनी माटी से अनायास ही आकर्षित होता है. अपनी जमीन और अपनी मिट्टी ही देती है व्यक्ति को असीम ऊर्जा और अलौकिक आनंद.

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दिन चढ़ने लगा था. कोलकाता शहर के विहंगम विस्तार पर सूरज दमक रहा था. सड़कों पर गलियों में धूप पसर रही थी. सूरज की किरणों के साथ ही जैसे संपूर्ण शहर जाग उठा था.

मिली को अचानक ही लंदन की याद हो आई. शांत, सौम्य लंदन. लंदन उस का अपना नगर, अपना शहर, जहां बर्फ भी गिरती है तो चुपचाप बेआवाज. सर्द मौसम में, पेड़ों की फुनगियों पर, घरों की छतों पर, सड़कों और गलियों में. यहां से वहां तक बस चांदी ही चांदी, बर्फ की चांदी. मिली के मन में जैसे बर्फ की चांदी बिखर गई. मिली अकुला उठी. उसे अपना घर याद हो आया. भोर का सितारा तो न जाने कब, कहां निकल गया था. अब तो उसे भी जाना था, वापस अपने घर.

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