एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

निम्मो: क्या मनोज को मिला उसका प्यार

बिशना ठाकुर के पास बहुत से मवेशी थे. उन की रखवाली बीरू करता था. वह तब बच्चा ही था. उस की मां ‘बडे़ घर’ यानी बिशना ठाकुर की हवेली में काम करती थीं. बीरू हमेशा घास पर सुस्त पड़ा आकाश में मंडराते कौओं को गिनता रहता था.

खेत जोतने के बाद खाना खाने के लिए मनोज घर नहीं जा पाता था कि कहीं मौका पा कर बैल सारी खेती साफ न कर डालें. अगर वे ठाकुर के खेतों में घुस जाते तो डांटफटकार सुननी पड़ती थी, इसीलिए मनोज की मां जब खेतों की रखवाली करने जाने लगतीं, तो रास्ते में उसे भात दे जाती थीं. उधर बीरू के लिए भी बड़े प्यार से कटोरदान में खाना आता था. वे दोनों साथ बैठ कर खाते थे. उसे उस कटोरदान का बड़ा घमंड था.

बीरू के लिए खाना बड़े घर की नौकरानी निम्मो लाती थी. उस घर में वह कहां से और कैसे आई, यह कोई नहीं जानता था. मनोज को यकीन था कि उसे तनख्वाह नहीं मिलती थी, बल्कि सिर्फ खाना और कपड़ा मिलता था. वह तब छोटी ही थी. उस की उम्र 13 या 14 साल रही होगी. तब मनोज 15 या 16 बरस का था.

निम्मो सांवली थी, पर थी खूबसूरत. उस की देह सुडौल और गठी हुई थी. मनोज को देखते ही निम्मो पता नहीं क्यों नाकभौं सिकोड़ लेती थी. मनोज के भात के साथ सब्जी नहीं होती थी. अचार भी बेस्वाद सा ही होता था. शायद वह इसीलिए चिढ़ती थी या फिर इसलिए कि मनोज ठाकुर के खेतों में बैल चराता था. लेकिन निम्मो उसे बहुत अच्छी लगती थी.

मनोज ने तो कई बार उस से बात करने की कोशिश की, लेकिन बदले में उसे सिर्फ झिड़कियां ही सुनने को मिलीं. बीरू को सिर्फ खाने से मतलब होता था. वह कभी निम्मो की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.

एक दिन निम्मो ने बीरू के हिस्से में से थोड़ा सा अचार मनोज को भी दे दिया. अचार बहुत जायकेदार था. यह बात उस ने निम्मो से भी कही. उस के बाद वह हमेशा मनोज के लिए भी अचार के 1-2 टुकड़े ले आती थी. कई बार उस ने मनोज को थोड़ी सब्जी भी दी. अब वह झिड़कती तो नहीं थी, लेकिन बातें अभी भी नहीं हो पाती थीं.

निम्मो मनोज को अब बहुत ही प्यारी लगने लगी थी. उस ने कई बार उस के पास बैठ कर बातें करने की कोशिश की, पर वह ऐसे दूर भगा देती, मानो वह अछूत हो. दरअसल, मनोज उसे ही अछूत समझता था.

एक दिन बीरू खाना खा रहा था. निम्मो ने घास काटी और गट्ठर बांधा. फिर कटोरदान धो कर घर जाने की तैयारी करने लगी. वह चाहती थी कि मनोज घास का गट्ठर उस के सिर पर रखवा दे. वह बोली, ‘‘यह बीरू से तो उठेगा नहीं.’’

मनोज ने गट्ठर उस के सिर पर रखवा दिया. तब उसे पता चला कि वह बहुत ही हलका था. उसे उठाने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं थी.

वे दोनों आमनेसामने खड़े थे. सिर पर गट्ठर रखवाते हुए मनोज के हाथ निम्मो की छातियों से टकरा गए. उसे झुरझुरी सी महसूस हुई. सारा शरीर गरम हो गया और दिल जैसे आसमान में उड़ने लगा.

निम्मो मुंह फेर कर ऐसे भागी, जैसे वह बहुत जल्दी में हो. मनोज उसे देखता ही रह गया. बीरू तब भी आसमान में मंडराते हुए कौए गिन रहा था.

इस घटना के बाद मनोज निम्मो को और भी ज्यादा चाहने लगा. जायकेदार अचार में से एक हिस्सा उसे मिलता रहता था. अब तो सब्जी भी रोजाना मिलने लगी. बीरू इस बात से चिढ़ता था, लेकिन छोटा होने की वजह से एतराज नहीं कर पाता था.

निम्मो ने अब रोजाना घास ले जाना शुरू कर दिया. उस का गट्ठर हर रोज भारी होता जा रहा था. मनोज निम्मो के जिस्म के सुडौल हिस्सों की बनावट पहचानने लगा था.

इस बीच मनोज निम्मो को पागलपन की हद तक चाहने लगा था. बिशना ठाकुर को मदद की जरूरत होती तो वह खुशी से चला जाता, ताकि निम्मो के साथ काम कर सके. वह घास के गट्ठर उठाने में हमेशा उस की मदद करता.

इस दौरान निम्मो से मनोज की बात नहीं हो पाई, क्योंकि खेतों में काम करने वाली औरतें उसे नफरत भरी निगाहों से देखती थीं. मनोज यह सब ताड़ जाता और लोगों की मौजूदगी में निम्मो भी ऐसा दिखावा करती, जैसे उस से बहुत नफरत करती हो. तब वह परेशान हो जाता. समझ नहीं पाता कि क्या करे.

फसल कटने के बाद निम्मो से मुलाकात नहीं हो पाई थी. मनोज बेचैनी से इंतजार करने लगा कि कब सर्दियां आएं और उसे पशुओं की रखवाली का मौका मिले.

उन्हीं दिनों बिशना ठाकुर की पत्नी बीमार हो गईं, इसलिए निम्मो के लिए घर के तमाम काम बढ़ गए. उस ने घास काटना बंद कर दिया. एक दिन वह बीरू को खाना पहुंचाने आई, तो उस के साथ एक और लड़की भी थी.

उस दिन निम्मो ने घास काटी और मनोज ने हमेशा की तरह गट्ठर उठाने में उस की मदद की. वह बोली, ‘‘आज से मेरी जगह यह लड़की खाना लाया करेगी.’’

मनोज के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिताजी अब भी कर्ज में डूबे हुए थे. सारी कमाई तो ब्याज में चली जाती थी. जरूरी कामों के लिए फिर कर्ज लेना पड़ता था. जिंदगी में बड़ी कड़वाहट आ चुकी थी.

उन्हीं दिनों गांव के कुछ लड़के कोलकाता चले गए थे. वे छुट्टी ले कर घर आते तो सारे गांव में उन का रोब पड़ता था. आखिरकार एक दिन मनोज भी अपने ही गांव के एक लड़के तिलक के साथ कोलकाता चला गया. वहां जा कर वह एक कारखाने में मजदूरी करने लगा.

मनोज के दोस्त छुट्टियों में घर जाते, लेकिन वह नहीं जाता था मानो इस काम के लिए उस के पास पैसे ही न हों. पिताजी चिट्ठियों में पैसों के लिए तकाजा करते, तो वह उन को मनीऔर्डर भेज दिया करता.

तकरीबन 3 साल बाद कारखाने की नौकरी छोड़ कर मनोज ने पान और सिगरेटबीड़ी की छोटी सी दुकान खोल ली. देखते ही देखते अच्छी आमदनी होने लगी. वह हर महीने अपने पिताजी को मनीऔर्डर भेजता रहता था. इस दौरान निम्मो के बारे में उसे कोई खबर नहीं मिली. वह अब उस से मिलने के लिए बेताब रहने लगा था.

इसी तड़प ने मनोज को गांव जाने के लिए मजबूर कर दिया. वहां पहुंचते ही उस ने सब से पहले निम्मो का पता लगाया. मालूम हुआ कि बिशना ठाकुर की बीवी को मरे 2 साल हो चुके हैं और उस घर में अब निम्मो का रोब चलता है. खेतों में काम करना तो दूर, वह उन दिनों घर से बहुत ही कम बाहर निकलती थी. अब वह कपड़े भी शानदार पहनती थी. नौकरचाकर उस से कांपते थे.

पिताजी के मना करने पर भी मनोज बिशना ठाकुर से मिलने बड़े घर गया. वहां पर न तो निम्मो दिखाई पड़ी और न ही उस के बारे में किसी से पूछा ही. बीरू ने भी कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. मनोज ने इधरउधर की कुछ बातें पूछीं, पर वह टाल गया.

मनोज बहुत बेचैन रहा. बड़े तालाब के किनारे सब्जियों का खेत था. एक दिन वहां से गुजरते वक्त मनोज ने देखा कि निम्मो कोई सब्जी तोड़ रही है. उस की जवानी और गदराए बदन को देख कर वह सिहर उठा. एकटक उस की तरफ देखता रहा. समझ में नहीं आ रहा था कि उस से क्या कहे. आखिर में हिम्मत कर के उसे अपने पास बुला ही लिया.

निम्मो ने मुड़ कर मनोज की तरफ देखा, लेकिन उस के चेहरे पर जरा भी परेशानी नहीं थी.

‘‘निम्मो, मैं कोलकाता से कुछ दिनों के लिए आया हूं. मैं ने ठाकुर का सारा कर्ज चुका दिया है,’’ मनोज ने मुसकराते हुए कहा.

निम्मो खामोश ही रही. मनोज की बात को जैसे उस ने सुना ही न हो.

अचानक मनोज पूछ बैठा, ‘‘क्या हम… शादी कर सकते हैं?’’

‘‘नहीं…’’ वह उसे घूरते हुए बोली.

‘‘क्यों?’’

निम्मो ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हें नहीं चाहती. अगर तुम ने ठाकुर का कर्ज चुका दिया है, तो कौन सा एहसान किया है… वैसे, कोलकाता में मजदूरी ही तो करते हो…’’

‘‘नहीं निम्मो,’’ मनोज ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘पिछले साल मैं ने पानसिगरेट की दुकान खोल ली थी. अब मैं काफी पैसे कमा लेता हूं.’’

मनोज ने अपने उजले कपड़ों और घड़ी की ओर निगाह डालते हुए अकड़ कर कहा, ‘‘तुम्हें पहले वाले और अब के मनोज में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा? मैं तुम्हें पलकों पर बिठाऊंगा.’’

‘‘बसबस… अब ज्यादा शेखी बघारने की जरूरत नहीं,’’ निम्मो ने नफरतभरी नजरों से मनोज की ओर देखा, ‘‘पान की दुकान खोल लेने से कोई धन्ना सेठ तो नहीं बन गए. मैं भी अब पहले वाली निम्मो नहीं रही… ठाकुर की हवेली की मालकिन हूं.

‘‘फेरे नहीं लिए तो क्या हुआ… ठाकुर तो अब दिनरात मेरे तलवे चाटता है. जहांजहां तक उस का दबदबा है, वहांवहां पर अब मेरी हुकूमत चलती है.

‘‘जितना तुम महीने में कमाते हो, उतना तो मैं बिंदी, पाउडर और क्रीम पर ही खर्च कर देती हूं,’’ निम्मो ने होंठों को सिकोड़ते हुए ताना कसा, ‘‘अरे कंगले, यहां मैं लाखों की मालकिन हूं… नौकरचाकर मुझे ‘सेठानी’ कहते हैं. मुझ से ब्याह करने के सपने अब भूल कर भी मत देखना… अपनी औकात मत भूल,’’ निम्मो गुस्से से पैर पटकते हुए हवेली की ओर चली गई.

मनोज डबडबाई आंखों से उसे जाते हुए देखता रहा. घर लौटते समय इस मतलबी दुनिया की सचाई उस की आंखों के आगे घूमने लगी, ‘इस दुनिया में पैसा ही सबकुछ है. पैसे के बिना आदमी की औकात दो कौड़ी की भी नहीं होती.’

गांव अब मनोज को काटने को दौड़ रहा था. वह मायूस रहने लगा. मां के आंसुओं की परवाह किए बगैर वह इस वादे के साथ कोलकाता लौट गया कि उसे अब उसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना है.

अब मनोज सुबह 8 बजे से ले कर रात 10-11 बजे तक दुकान खुली रखता, खूब मेहनत करता. नजदीक ही एक सिनेमाहाल बन जाने की वजह से वह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा. एक छोकरा भी मदद के लिए रख लिया. लेकिन गांव से सैकड़ों मील दूर कोलकाता में रहते हुए भी वह निम्मो को भुला नहीं पाया.

तकरीबन ढाई साल बाद मनोज फिर गांव गया. वह निम्मो से मिलने के लिए बेचैन था. शाम को उस के पैर बड़े घर की ओर बढ़ चले थे. थोड़ा आगे जाने पर उसे अपना पुराना दोस्त चमन मिल गया.

बातों ही बातों में मनोज ने चमन से निम्मो के बारे में पूछा, तो उस ने एक जोरदार ठहाका लगाया, ‘‘अरे, उस की मत पूछ… खुद को मालकिन और सेठानी समझने लगी थी, पर ठाकुर के मरते ही वह अपनी औकात पर आ गई…’’

‘‘क्या ठाकुर चल बसे…?’’ मनोज ने चौंक कर पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें मालूम नहीं,’’ चमन हैरानी से बोला, ‘‘3-4 महीने पहले ही तो उन की मौत हुई थी. जैसे ही ठाकुर ने आंखें मूंदी, उन के बेटों ने उस बेहया को जूते मारमार कर हवेली से बाहर निकाल दिया.’’

‘‘तो निम्मो अब कहां रहती है?’’ मनोज ने जल्दी से पूछा.

‘‘अरे भैया, रहना कहां है… अपने सूबेदार जैमल सिंह दयालु आदमी हैं. उन्होंने उसे एक छोटी सी कोठरी रहने को दे रखी है. उन्हीं के खेतों में मजदूरी करती है और घर में सूबेदारनी की सेवाटहल करती रहती है… बड़ी चली थी मालकिन बनने…’’ कह कर चमन खिलखिलाता हुआ आगे बढ़ गया.

मनोज चंद पलों के लिए तो हक्काबक्का वहीं खड़ा रहा. अंधेरा घिर आया था. वह थके कदमों से घर की ओर चल पड़ा. खाना भी उस ने बेमन से खाया. रात को एक पल के लिए भी उसे नींद नहीं आई. सुबह जल्दी से नहाधो कर वह सूबेदार जैमल सिंह के घर की ओर चल पड़ा. बाहर का दरवाजा भीतर से बंद था. खटखटाने के थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला.

अचानक निम्मो को बेचारगी की हालत में देख मनोज हैरान रह गया. वह एकदम सूख कर कांटा हो गई थी. चेहरे पर जैसे कालिख पोत दी गई थी.

मनोज कुछ कह पाता, इस से पहले ही वह धीरे से बोली, ‘‘तुम… कोलकाता से कब आए?’’

‘‘सूबेदारजी घर पर हैं?’’ मनोज ने धीरे से पूछा.

‘‘नहीं… घर में इस वक्त मैं अकेली ही हूं… सभी लोग पास के गांव में एक ब्याह में गए हैं.’’

‘‘चलो, यह भी अच्छा हुआ निम्मो, मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं… अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘मुझे से मिलने…? खैर, आओ,’’ कह कर निम्मो अंदर की ओर मुड़ गई.

मनोज उस के पीछेपीछे आंगन में जा कर चारपाई पर बैठ गया. निम्मो जमीन पर बिछी बोरी पर बैठ गई.

‘‘निम्मो, मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है… और, वैसे भी हमें यहां अकेले… यानी मैं और तुम… लोग बेकार में बातें बनाएंगे…’’

‘‘मैं बहुत बदनाम हो चुकी हूं… मैं… बस एक जिंदा लाश बन कर रह गई हूं,’’ डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘खैर, यह बताओ, मुझ से क्या काम है?’’

‘‘ढाई साल पहले मैं ने तुम्हारे सामने शादी की बात रखी थी, मगर तब की बात और थी. मुझे चमन ने सबकुछ बता दिया है. जो हुआ उसे भूल जाओ… मैं आज भी तुम्हारे लिए तड़प रहा हूं… मुझे तुम्हारी जरूरत है निम्मो, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘क्या…? सबकुछ जानने के बाद भी…?’’ निम्मो ने मनोज को घूरते हुए कहा, ‘‘तुम सचमुच पागल हो. यहां गांव के लोग मुझे धंधेवाली, रखैल… और न जाने क्याक्या कहते रहते हैं… और तुम मुझ से ब्याह करोगे? यह दुनिया बहुत जालिम है. फिर मैं ने तो हमेशा तुम्हारी बेइज्जती ही की है… तुम्हें दुत्कारा है…’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहता. मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मेरे घर वाले, जातिबिरादरी और गांव वाले मुझे ऐसा कदम उठाने की कभी भी इजाजत नहीं देंगे… लेकिन मैं हर हालत में तुम से ही ब्याह करूंगा.’’

मनोज पलभर रुक कर आगे बोला, ‘‘मैं मांबाप से कोलकाता जल्दी लौटने का कोई बहाना बना लूंगा… तुम आज से ठीक 3 दिन बाद… यानी इतवार की सुबह मुझे स्टेशन पर मिलना. गाड़ी

7 बजे यहां पहुंचती है… सोमवार की सुबहसुबह हम कोलकाता पहुंच जाएंगे, जहां हम ब्याह करेंगे और अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे… अब इनकार मत करना.’’

‘‘यकीन रखो, मैं जरूर आऊंगी. तुम स्टेशन पर मेरा इंतजार करना,’’ निम्मो ने हौले से कहा.

इतवार की सुबह 6 बजे ही मनोज रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया था. अभी चारों ओर अंधेरा ही था. वह बेसब्री से निम्मो का इंतजार करने लगा.

धीरेधीरे अंधेरा छंटने लगा था. लेकिन मनोज दुख, चिंता और नाकामियों के अंधेरे में घिरता चला जा रहा था. घड़ी में समय देखा. 7 बजने में 10 मिनट बाकी थे. उस की उम्मीदों पर काली छाया फैलने लगी थी कि अचानक निम्मो को आते हुए देख कर वह उस की ओर दौड़ा.

निम्मो के पास पहुंच कर मनोज ने हांफते हुए कहा, ‘‘निम्मो, गाड़ी आने ही वाली है… मैं टिकट ले कर आता हूं. हमें होशियार रहना होगा… कहीं कोई जानपहचान वाला न मिल जाए… बेकार में मुसीबत खड़ी हो जाएगी.

‘‘मैं तुम्हें इशारा करूंगा. तुम जनाना डब्बे में चढ़ जाना. अगले स्टेशन पर मैं तुम्हें अपने डब्बे में ले आऊंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ निम्मो ने इधरउधर देखते हुए डरी हुई आवाज में कहा.

मनोज फौरन टिकट ले कर प्लेटफार्म पर आ खड़ा हुआ. जल्दी ही गाड़ी आ गई. वह निम्मो के करीब पहुंच गया और इशारे से उसे जनाना डब्बे में चढ़ा कर दरवाजे पर ही खड़ा हो गया. तभी गार्ड ने सीटी बजाई और हरी झंडी दिखाई.

धीरेधीरे गाड़ी सरकने लगी. मनोज खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गया. सुबह की ठंडी हवा के झोंकों के संग मनोज को यों महसूस हुआ, जैसे वह किसी उड़नखटोले पर सवार हो कर ऊंचे, नीले आसमान में घने बादलों में तैरता हुआ उड़ा चला जा रहा है. उस उड़नखटोले में वह अकेला नहीं था, उस की निम्मो भी उस के साथ थी.

नई शुरुआत: सुमन क्यों जलने लगी थी बॉयफ्रेंड राजीव से

सुमन और राजीव दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों बीएससी फाइनल में होने के बावजूद अलगअलग सैक्शन में पढ़ रहे थे. उन दोनों की पहली मुलाकात एक लाइब्रेरी में हुई थी. राजीव ने अपनी तरफ से नोट्स देने में सुमन की पूरी मदद की थी. यह बात सुमन को छू गई थी. राजीव वैसे भी लड़कियों से दूर ही रहता था. स्वभाव से शर्मीले राजीव को सुमन का सलीके से रहना पसंद आ गया था.

‘‘राजीव सुनो, क्या तुम मुझे एक कप चाय पिला सकते हो? मेरा सिरदर्द से फटा जा रहा है,’’ असल में सिर दर्द का तो बहाना था, सुमन राजीव के साथ कुछ देर रहना चाहती थी.

‘‘वैसे, मैं चाय नहीं पीता, लेकिन चलो तुम्हारे साथ पी लूंगा,’’ राजीव कहते हुए थोड़ा झेंप सा गया, तो सुमन मुसकरा दी. कालेज की कैंटीन की बैंच पर बैठ कर राजीव ने 2 कप चाय और्डर कर दी. सुमन बातचीत का सिलसिला शुरू करने की कोशिश करने लगी, ‘‘तुम्हारे, मेरा मतलब है कि आप के घर में और कौनकौन है?’’

‘‘जी, मेरा एक बड़ा भाई है और मांबाबूजी,’’ राजीव ने नजरें झुका कर जवाब दिया.

‘यह लड़का कहीं पिछले जन्म में लड़की तो नहीं था?’ राजीव की झिझक और शराफत देख कर सुमन सोचने लगी.

‘‘जी, आप ने मुझ से कुछ कहा?’’ राजीव ने सवाल किया, तो वह कुछ अचकचा सी गई.

‘‘बिलकुल नहीं जनाब, आप से नहीं कहूंगी तो क्या इस कैंटीन की छत से कहूंगी?’’ सुमन बोली.

इतने में बैरा चाय ले आया. राजीव ने कालेज के दूसरे लड़कों की तरह न तो बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया और न ही कोई ऐसीवैसी हरकत करने की कोशिश की.

‘‘चलो चलें, पीरियड का समय हो गया है शायद,’’ अपनी चाय खत्म करते हुए राजीव बोला, तो मजबूरी में सुमन को भी अपनी चाय जल्दीजल्दी पीनी पड़ी.

इस मीटिंग के बाद न राजीव ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही सुमन को राजीव से बात करने का मौका मिला.

‘‘तू ने तीर तो बिलकुल सही निशाने पर लगाया है राजीव. सुमन की एक झलक पाने के लिए लड़के लाइन लगाए खड़े रहते हैं, पर उस ने केवल तुझे घास डाली है,’’ राजीव की क्लास के दोस्त उसे छेड़ते.

‘‘तुम जैसा समझ रहे हो, वैसा कुछ नहीं है. उस ने मुझ से नोट्स मांगे थे और मैं ने दे दिए. बस, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं,’’ राजीव झल्ला कर कहता.

‘‘तुम ने न जाने उस लल्लू कबूतर में ऐसा क्या देखा है जानेमन? एक नजर हम पर भी डाल दो. न जाने कब से लाइन लगा कर खड़े हैं तुम्हारे दीदार के लिए,’’ राजीव के साथ सुमन को देख कर दूसरे लड़कों के सीने पर भी सांप लोट जाता.

‘‘राजीव, चलो न कहीं घूम आते हैं. वैसे भी आज गुप्ता सर का पीरियड नहीं होने वाला है, क्योंकि वे आउट औफ स्टेशन हैं,’’ एक दिन सुमन ने राजीव को अपने पास बुला कर कहा.

‘‘पीरियड खाली है तो चलो लाइब्रेरी में चलते हैं, वहीं बैठ कर कुछ समय का सही इस्तेमाल करते हैं,’’ राजीव ने घमूने जाने के अरमान पर पानी फेरते हुए कहा, तो सुमन ने इसे अपनी हेठी समझ और पैर पटकते हुए राजीव को अकेला छोड़ कर चली गई.

सुमन को राजीव द्वारा इस तरह साफ इनकार करना बिलकुल पसंद नहीं आया. अपने साथ हुई इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए वह तड़प उठी.

बहुत जल्दी ही सुमन को राजीव से अपनी बेइज्जती का बदला लेने का मौका भी मिल गया. एक दिन जब राजीव लाइब्रेरी से निकल कर अपनी क्लास की तरफ जा रहा था, तभी उस का ध्यान कहीं और होने के चलते वह एक लड़की नीलम से टकरा गया.

अचानक लगी इस टक्कर से नीलम खुद को संभाल न पाई और जमीन पर गिर गई. हालांकि उन दोनों ने ‘आई एम सौरी’ कह कर इस घटना को तूल नहीं दिया, पर सुमन ने बात का बतंगड़ बना कर हंगामा मचा दिया.

देखते ही देखते लड़कों की भीड़ वहां जमा हो गई और उन्होंने राजीव का कौलर पकड़ कर उसे नीलम से माफी मांगने के लिए मजबूर कर दिया.

राजीव को अपराधी की तरह खड़ा देख कर लड़कियों को बहुत मजा आ रहा था. बेचारा राजीव क्या करता, उसे कान पकड़ कर न केवल

माफी मांगनी पड़ी, बल्कि इतने सारे छात्रों के सामने जलील भी होना पड़ा.

सुमन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि उस ने अपनी बेइज्जती का बदला जो राजीव से ले लिया था.

इस घटना को कई दिन बीत गए. राजीव हमेशा अपने काम से काम रखता था. यही बात सुमन को चुभ जाती थी और उसे रिएक्ट करने के लिए मजबूर कर देती थी.

दरअसल, सुमन यह चाहती थी कि राजीव उस के आसपास मंडराए और उस की जीहुजूरी करे. उसे ऐसा ही बौयफ्रैंड चाहिए था, जो उस के नखरे सह सके.

कुछ ही दिनों में छात्र संघ के चुनाव होने जा रहे थे. राजीव के दोस्त चाहते थे कि वह छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़े. राजीव ऐसा नहीं चाहता था, पर दोस्तों के दबाव में उसे राजी होना ही पड़ा. उस का मुकाबला मोहित से था.

मोहित दबंग किस्म का हुल्लड़बाज लड़का था, जो किसी भी तरह अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहता था. लड़कों को अपने पक्ष में करने के लिए उस ने पैसा पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया था, जबकि राजीव के पास लगाने के लिए ज्यादा पैसा नहीं था.

सुमन भी बढ़चढ़ कर मोहित के पक्ष में वोटिंग कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. राजीव को दब्बू, नकारा और कबूतर साबित करने के लिए उस ने झूठीसच्ची कहानियां भी छात्रों को सुनाईं, ताकि वह हार जाए और एक बार फिर उस के कलेजे को ठंडक पहुंचे.

चुनाव नतीजे आए, तो सब ने दांतों तले उंगली दबा ली. राजीव जीत गया था. सुमन के सारे अरमान हवा हो गए. जीत की खुशी में दोस्तों ने राजीव को अपने कंधे पर उठा लिया और गुलाल उड़ाते हुए कालेज का चक्कर लगाने लगे.

‘‘जीत मुबारक हो राजीव. मुझे पता था कि तुम ही यह चुनाव जीतोगे,’’ सुमन ने रस्मीतौर पर राजीव को बधाई देते हुए कहा, तो उस ने हाथ जोड़ दिए.

राजीव के रवैए से सुमन समझ गई कि वह उस की असलियत को जान चुका है, इसलिए उस ने अब राजीव के बारे में सोचना बंद कर दिया था. उसे अब राजीव से कोई मतलब नहीं रह गया था.

इधर सुमन के घर वाले भी अब उस का रिश्ता पक्का करना चाहते थे. उन्होंने कई लड़के सुमन को दिखाए भी, पर उन में से कोई भी उसे नहीं जंच रहा था. उधर राजीव अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर के अच्छी नौकरी पर लग चुका था. एक तरह से सुमन उसे भुला ही चुकी थी.

‘‘सुमन, जल्दी से तैयार हो जाओ. लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं. उन के आने का समय हो गया है,’’ एक शाम जब सुमन दोपहर में सो कर उठी, तो उस की मम्मी ने आ कर बताया.

सुमन अब एक तरह से लड़कों के आ कर देखे जाने से उकता चुकी थी. उसे अब इन बातों में इंटरैस्ट कम होता जा रहा था.

‘‘कौन है वह? और क्या करता है?’’ खुद को आईने में देखते हुए सुमन ने अपनी मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि लड़का अच्छी पोस्ट पर है और अच्छे खानदान से है.

खैर, सुमन को तो यह सब झेलने की आदत हो चुकी थी. बाहर कार का हौर्न बजा तो घर वाले सतर्क हो गए. सुमन ने भी एक बार अपने मेकअप और ड्रैस को अच्छे से देख कर सही कर लिया.

अब सुमन को चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में जाना था. जैसे ही वह ट्रे ले कर वहां पहुंची, उस की नजर उसे देखने आए लड़के पर गई. उसे देखते ही वह बुरी तरह से चौंक गई और चाय की ट्रे उस के हाथ से गिरतेगिरते बची.

‘‘राजीव. तुम…?’’ दोनों शब्द उस के होंठों में फंस कर रह गए थे.

राजीव ने अपनी आदत के मुताबिक खड़े हो कर पहले हाथ जोड़े और फिर उसे हैलो कहा. उस का अंदाज बिलकुल नपातुला था.

बातों ही बातों में सुमन को पता चला कि राजीव एक अच्छी फर्म में मैनेजर हो चुका है और अच्छीखासी तनख्वाह पा रहा है.

‘‘सुमनजी, क्या आप को लगता है कि मैं आप का लाइफ पार्टनर बनने के काबिल हूं? अगर आप का दिल इस बात की गवाही देता हो तो ही आप हां करना, वरना साफ इनकार कर देना.’’

एकांत में जब राजीव ने सुमन से बड़े ही अदब के साथ पूछा, तो सुमन जैसे शर्म के मारे जमीन में गड़े जा रही थी. उसे लगा, जैसे राजीव ने उस से अपनी सारी बेइज्जती का बदला इस एक सवाल से ले लिया हो.

‘‘यह सवाल तो मुझे आप से करना चाहिए था. मेरी इतनी गलतियों को माफ करने के बाद भी अगर आप मुझे अपनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह आप की महानता है. मैं आप की गुनाहगार हूं, आप जो चाहे सजा मुझे दे सकते हैं,’’ सुमन के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘अरे, आप तो रोने लगीं. माफी चाहता हूं कि मेरी वजह से आप का दिल दुखा. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि पुरानी यादें हमारी नई जिंदगी की शुरुआत में रोड़ा अटकाएं, इसलिए जो भी फैसला करो, सोचसमझ कर ही करना,’’ कह कर राजीव जाने को तैयार हुआ, तो सुमन उस के पैरों में गिर पड़ी.

‘‘यह आपआप क्या लगा रखी है राजीव? तुम्हारी बीवी बन कर मैं अपने सारे पापों का पछतावा करना चाहती हूं. क्या तुम मुझे यह मौका दोगे?’’

‘‘सोचेंगे…’’ उस समय बस इतना ही कह कर राजीव वापस ड्राइंगरूम में चला गया और अपनी मां के कान में कुछ फुसफुसा दिया.

‘‘भई, मेरे बेटे और हमें तो लड़की पसंद है. अगर सुमन को कोई एतराज न हो, तो आप दोनों की शादी तय कर दीजिए,’’ राजीव की मम्मी के कहे ये शब्द सुमन के कानों में मिश्री की तरह घुलते जा रहे थे. उस के मन की घबराहट अब धीरेधीरे खत्म होती जा रही थी.

प्याज के आंसू: क्यों पत्नी ने बर्बाद कर दिया पति का जीवन

आज घर का माहौल बहुत गमगीन था. भैया का सामान ट्रक से उतारा जा रहा था और हमारे पुराने घर में इस सामान के लिए  जैसेतैसे जगह बनाई जा रही थी. मेरे भतीजे और ममेरे, फुफेरे भाई सभी सजल नेत्रों के साथ सामान उतार रहे थे. वे किस तरह सहेज और संभाल कर सामान उतार रहे थे उसे देख कर मन भीग सा गया. काश, भाभी भी जीवन को इसी तरह सहेज कर चलतीं तो दरके मन के साथ भैया को आज यह दिन तो नहीं देखना पड़ता.

मन बरबस ही आज से 12 साल पहले  के माहौल में चला गया जब भैया मात्र 20 वर्ष की आयु में सरकारी नौकरी प्राप्त करने में सफल रहे थे. घर में मम्मीपापा ही क्या हम सब भाईबहन भी बेहद खुश थे. भैया दिल्ली में सेना मुख्यालय में निजी सहायक के पद पर चयनित हुए थे. 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन के जीवन में खुशी का यह क्षण आया था.

मम्मी और पापा यह सोच कर अत्यंत  भावुक हो गए थे कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में बेटा कहां रहेगा, उस के खानेपीने का ध्यान कौन रखेगा, लेकिन भैया बहुत उत्साहित थे. एक युवा मन में नौकरी पाने के बाद जो उमंग और उत्साह होता है वह सब भैया में मौजूद था.

भैया अपना सूटकेस ले कर एक अनजान शहर में जा चुके थे. दिल्ली जैसे महानगर में रहने की समस्या, खानेपीने की समस्या और आफिस आनेजाने की समस्या से भी भैया का सामना हुआ और उन्होंने इस का न केवल डट कर मुकाबला किया बल्कि इस पर विजय भी पाई.

बड़े शहर में जितने जन उतने सपने. हर इनसान एक जीताजागता सपना होता है और अपने सपने से संघर्ष करता हुआ नजर आता है. भैया भी इस भीड़ में शामिल हो गए थे और अपने सपनों को साकार करने में जुट गए.

भैया ने पढ़ाई से नाता जोड़े रखा और तमाम तरह की तकलीफों से अकेले जूझते हुए उन्होंने अपना ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया और अपनेआप को सिविल सेवा के लिए तैयार करने में जुट गए लेकिन वह इस में सफल नहीं हो सके.

भैया को जब भी अवकाश मिलता था वह घर आ जाते थे और हम सब मिल कर बहुत खुश होते थे. धीरेधीरे 5 वर्ष निकल गए. इन 5 सालों में बहुत कुछ बदल गया था. पापा अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. मैं खुद इंजीनियरिंग करने के बाद एक अदद नौकरी की तलाश में भटक रहा था. उधर भैया भी अपना जीवन स्तर उठाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. हम सब बहुत ही खुश थे और जिंदगी ठीकठाक चल रही थी.

भैया के सरकारी नौकरी में होने की वजह से उन के लिए जगहजगह से शादी के रिश्ते आने लगे थे. भैया बेहद स्मार्ट एवं सुडौल शरीर के मालिक थे. उन्हें ऐसी लड़की चाहिए थी जो पढ़ीलिखी, सुंदर व तेज दिमाग वाली हो ताकि दिल्ली जैसे शहर की सचाइयों के साथ जी सके और साथ ही भैया को अपनी परिपक्वता से कुछ सुकून के पल दे सके क्योंकि वह अब तक संघर्ष कर के बुरी तरह थक चुके थे और प्यार की, अपनत्व भरे सहयोग की शीतल छांव में थोड़ा विश्राम करना चाहते थे.

भैया की यह तलाश इंदौर जा कर समाप्त हुई. शादी बहुत ही धूमधाम से हुई. शादी में दोनों परिवारों ने दिल खोल कर खर्च किया था. शादी संपन्न होने के बाद सभी अपनीअपनी घरगृहस्थी में रम गए. भैयाभाभी बहुत खुश थे. दोनों ने मिल कर कहीं बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाया और वे लोग हनीमून मनाने के लिए शिमला गए.

मम्मीपापा  भी अपने को थोड़ा हलका महसूस कर रहे थे क्योंकि पापा ने अपनी एक जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा दी थी. भैया अपनी नौकरी और पत्नी में लीन हो  गए. कभीकभी मम्मी शिकायत भरे लहजे में कह भी देती थीं कि शादी के बाद तू बदल गया है, लेकिन ऐसा शायद नहीं था.

भैया ने भाभी को भी आगे पढ़ने व अपना एक मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया लेकिन अपने अंतर्मुखी स्वभाव के चलते वह वैसा न कर सकीं जैसा भैया चाहते थे. वह अपने को पति तक ही सीमित रखती थीं और  घर में किसी से ज्यादा बात नहीं करती थीं. यहां तक कि मम्मी और पापा से भी वह बात करना पसंद नहीं करती थीं.

भैया सदैव भाभी को खुश रखने का प्रयास करते थे. उन्हें न केवल सारी सुख- सुविधा देने का प्रयास करते बल्कि भाभी की हर इच्छा को पूरी करना अपना कर्तव्य समझते थे. अपने प्रति भैया का यह लगाव भाभी ने उन की कमजोरी समझ लिया और फिर पूरे षड्यंत्र के तहत वह सब किया जो आज की आम बात हो गई है.

भैया के घर आने पर वह किसी को कुछ नहीं समझती थीं लेकिन हम लोग भैया के डर से चुप रहते थे और सोचते थे कि थोड़े दिनों के लिए ये आए हैं जैसे रहते हैं रहने दिया जाए क्योंकि दोनों अपनी जिंदगी से खुश थे और उन की खुशी में ही हम सब की खुशी थी.

भाभी हमेशा अपने मायके वालों को ही सबकुछ समझती रहीं और उन के अंदर कभी इस परिवार के प्रति समर्पण व त्याग की भावना नहीं जागी जिस में वह शादी कर के आई थीं. शायद उन की शिक्षा ही ऐसी थी कि उन का दिमाग सदैव इसी बात में लगा रहता था कि किस प्रकार भैया को घर की तरफ से विमुख रखा जाए.

भैया का वैचारिक स्तर काफी ऊंचा व सुलझा हुआ था. भैया और मम्मी की वैचारिक बहस में कभीकभी मतभेद हो जाया करता था और इस वैचारिक मतभेद का भाभी व उन के मायके वालों ने बड़ा गलत फायदा उठाया. भाभी  को कभी भी हमारे परिवार के सदस्यों का सम्मान करने की शिक्षा नहीं दी गई. भैया भी भाभी पर ही विश्वास करते थे लेकिन भाभी लगातार इसी विश्वास का फायदा उठाने में लगी थीं और अपने घर वालों के साथ मिल कर भैया को उन के परिवार से दूर रखने का घिनौना प्रयास ही करती रहीं.

भाभी के मम्मीपापा व अन्य रिश्तेदार उन का लगातार दिमाग खराब कर रहे थे. वे इन बातों को समझ नहीं पा रही थीं कि ऐसा कर के अपनी ही घरगृहस्थी में सेंध लगा रही हैं. भैया को उन के परिवार से दूर रखने की जो कुत्सित मुहिम चलाई जा रही थी उस का पता उन को अपने ही ससुराल के एक अन्य सदस्य से लग गया और भैया ने अपने ससुराल वालों के यहां आनाजाना व उन्हें महत्त्व देना बंद कर दिया, लेकिन तब तक भाभी का दिमाग इतना खराब कर दिया गया था कि वह इस से उबर नहीं पा रही थीं और उन्हें वही सही लगता था जो उन के मायके वाले कहते थे. और आखिर तक इस मकड़जाल से वह कभी नहीं निकल पाईं. भाभी का दिमाग इतना खराब कर दिया गया कि वह भैया पर शक करने लगीं. भैया की हर गतिविधि को शक के घेरे में रख कर देखने लगीं और उन का दिमाग एक कूड़ेदान की तरह हो गया था जिस में कितनी भी अच्छी बातों को डाला जाए वह सड़  ही जाती है.

भैया ने भाभी को प्यार से कई बार समझाने का प्रयत्न किया और कहा कि अपना दिमाग ठीक रखो. भाभी के शंकालु स्वभाव के कारण भैया की परेशानी बढ़ गई और वह चिड़चिड़े हो गए. जब भाभी प्यार से नहीं मानती थीं तो धीरेधीरे उन के बीच झगड़ा होने लगा और उन का घरेलू जीवन एकदम नीरस हो गया. दोनों अकेले रहते थे लेकिन खुश नहीं थे.  भैया, भाभी को अपने  हिसाब से  रहने को कहते थे परंतु भाभी का अहंम बहुत ही चरम पर था. उन्होंने भैया की कोई बात न मानने की जैसे कसम ही खा ली थी.

भैया को अपने सपने टूटते से लगे और धीरेधीरे यह बात घर के बड़ेबुजुर्गों तक भी पहुंच गई. भैया को यह जान कर भी बहुत दुख हुआ था कि भाभी के मायके वाले भी उन्हें समझाने को तैयार नहीं थे और लगातार षड्यंत्र रच रहे थे.

भैया और भाभी के बीच का तनाव इतना ज्यादा बढ़ गया कि उसे देख कर दोनों परिवार के सदस्य परेशान हो गए. भाभी चोरीछिपे अपने मायके फोन कर के उलटासीधा बताने लगीं जिस ने जलती आग में घी का काम किया. समस्या के प्रति भाभी के मायके वाले कभी गंभीर नहीं रहे और उन्होंने कभी आमनेसामने खुल कर बात नहीं की और फिर वही हुआ जिस का सब को डर था.

एक रात भाभी दिल्ली जैसे शहर से अकेली भैया को बिना बताए ही अपने मायके पहुंच गईं. उन के घर के लोग पहले से ही भरे बैठे थे, उन्होंने भैया को सबक सिखाने की ठान ली.

उधर भाभी के इस तरह से अचानक चले जाने से भैया बहुत परेशान हुए और जगहजगह उन्हें ढूंढ़ते रहे. भाभी के मायके फोन कर के पूछने पर भी उन लोगों ने भैया को नहीं बताया कि भाभी उन के पास पहुंच गई हैं. अंतत: भाभी की गुमशुदगी की रिपोर्ट उन्होंने थाने में दर्ज करवा दी. इसी के बाद भैया के ससुराल के लोग उन्हें बरबाद करने की सोचने लगे.

भैया पर क्या बीत रही है जब इस का पता घर के लोगों को चला तो कुनबे के बड़ेबूढ़ों को ले कर पापा, भाभी को लेने उन के घर गए लेकिन उन्होंने शायद फैसला कर लिया था कि लड़की को नहीं भेजना है. वहां सभी बड़ों का अपमान होता रहा और भाभी परदे के पीछे से यह सब देखती रहीं. क्या मेरे घर के बुजुर्ग उन के कुछ नहीं लगते थे, शायद नहीं, तभी तो वह हमारे परिवार की बुजुर्गियत को शर्मसार होते चुपचाप देखती रही थीं.

इधर भैया यह सोच कर बहुत ही परेशान थे कि जिस औरत के साथ वह पिछले 5 सालों से रह रहे थे और जिस पर वह अपनों से ज्यादा भरोसा करते थे वही औरत उन के साथ इतना बड़ा  विश्वास- घात कैसे कर सकती है, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उस औरत की संवेदनशीलता मर चुकी थी.

भैया ने कई बार भाभी से फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उन के घर वालों ने भैया को अपनी ही पत्नी से बात नहीं करने दी. इस से बड़ा दुख तो इस बात का है कि भाभी ने कभी एक बार भी अपनी तरफ से भैया से बात नहीं की. भैया एक बार खुद भाभी को लेने पहुंचे तो ससुराल वालों ने सभी परंपराओं व मान्यताओं को ताक पर रख कर उन को बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया और यह सब होते हुए भाभी चुपचाप देखती रहीं. इतना सब हो गया कि आपस का प्यार व विश्वास तारतार हो गया. रहीसही कसर भाभी की उस हरकत ने पूरी कर दी जिसे आज औरत अपना सब से बड़ा हथियार मानती है और वह है भारतीय कानून की धारा 498.

भाभी ने भैया पर कई बेबुनियाद आरोप लगाए, उन्हें चरित्रहीन साबित करने की कोशिश की, उन पर मारपीट करने, दहेज के लिए प्रताडि़त करने का आरोप लगाया और ऐसे आरोप भैया के लिए मौत के समान थे. वह अपने पर लगाए गए आरोपों से टूट गए. भाभी ने मम्मी व मुझ पर भी आरोप लगाए, मेरी बड़ी बहन पर भी आरोप लगाए जबकि हम सब उन से करीब 1,500 किलोमीटर दूर रहते हैं. लेकिन यह एक परंपरा चल निकली है कि दहेज के  घेरे में सभी को रखा जाए और परेशान किया जाए, भले ही सचाई से इस का कोई लेनादेना नहीं. पुलिस भी कानून के आगे बेबस है.

भैया के लिए इन आरोपों का आघात किसी वज्रपात से कम न था. उन का सारा जीवन तबाह हो गया. इस घटना के बाद हंसतेमुसकराते भैया गम के गहरे सागर में चले गए थे जहां से उबरना उन के लिए शायद अब कभी संभव नहीं होगा. और हम लोग उन्हें धीरेधीरे खत्म होते देखने के लिए विवश थे.

भैया के लिए यह असहनीय बात थी कि वह एक ऐसी औरत के साथ पूरे मन से रह रहे थे जो पूरे मन के साथ उन के साथ नहीं रह रही थी. वह दोहरे चरित्र की साक्षी थीं. उन के दिलोदिमाग में भैया के लिए कितना जहर भरा था यह उन के द्वारा लिखे गए शिकायती पत्रों से पता चलता है जोकि उन्होंने थाने में व भैया के आफिस में लिखे और जिस के कारण भैया की सरकारी नौकरी चली गई.

उस दिन तो भैया पूरी तरह से ही टूट गए जिस दिन इंदौर की पुलिस ने मां व दीदी को थाने में आने के लिए कहा. भाभी को इस बात का एहसास ही नहीं था कि वह क्या कर रही हैं. किसी की मांबहन को पुलिस से बेइज्जत कराने का क्या मतलब होता है? यह शायद उन्हें मालूम नहीं था, और फिर क्या मेरी मां तथा दीदी उन की कुछ नहीं लगती थीं, शायद नहीं.

आज भैया बीमार हैं और बहुत ही थकेथके से लगते हैं. वे अकेले में बहुत रोते हैं और शायद उन का पुरुष मन उन्हें सब के सामने रोने नहीं देता इसलिए वे रसोई में प्याज काटने चले जाते हैं ताकि उन की आंखों के पानी को प्याज की तिक्तता समझा जाए लेकिन मैं इतना नादान नहीं था.

मैं जब भी भैया को देखता यही सोचता कि इस देश का कानून क्यों एक औरत को इतनी निरंकुश होने की इजाजत देता है कि वह अपने अहं को शांत करने के लिए सबकुछ बरबाद कर दे, किसी के भी आत्मसम्मान के साथ मनमाना खेल, खेल सके.

पूरे घटनाक्रम में भाभी पूरी तरह से स्वयं षड्यंत्र का शिकार नजर आ रही थीं.

भारत में औरत को त्याग, बलिदान व  तपस्या की मूर्ति कहा जाता है लेकिन भाभी तो छोड़ गई थीं भैया को तिलतिल कर मरने के लिए. मुझे तो इस बात का भी आश्चर्य है कि वह इतना सब होते हुए प्रत्यक्ष देखने के बाद इस संसार में कैसे चैन से रह सकेंगी, कैसे वह अपनेआप से नजरें मिला सकेंगी और इस दंश से अपनेआप को कैसे मुक्त कर सकेंगी कि वह एक घर से भागी हुई तथा एक जिंदादिल इनसान और उस की रोजीरोटी की हत्यारिन हैं.

ट्रक वाला मुझ से बाकी पैसे देने को कह रहा था और मेरी तंद्रा टूट गई. मैं वर्तमान में आ गया था. भैया का सामान उतारा जा चुका था और भैया के स्वर्णिम कैरियर का दुखद अंत हो चुका था.

लेखक- छबी पराते

शॉर्टकट: नसरीन ने सफलता पाने के लिए कौन-सा रास्ता अपनाया?

उफ फिर एक नया ग्रुप. लगता है सारी दुनिया सिर्फ व्हाट्सऐप में ही सिमट गई है. कालेज जाने से पहले अपने मोबाइल में व्हाट्सऐप मैसेज चैक करते समय नसरीन ने खुद को एक नए व्हाट्सऐप ग्रुप सितारे जमीं पर से जुड़ा पाया.

यह व्हाट्सऐप का शौक भी धीरेधीरे लत बनता जा रहा है. न देखो तो कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं और जानकारी से वंचित रह जाते हैं और देखने बैठ जाओ तो वक्त कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. किसीकिसी ग्रुप में तो एक ही दिन में सैकड़ों मैसेज आ जाते हैं. बेचारा मोबाइल हैंग हो जाता है. आधे से ज्यादा तो मुफ्त का ज्ञान बांटने वाले कौपीपेस्ट ही होते हैं और बचे हुए आधों में भी ज्यादातर तो गुडमौर्निंग, गुड ईवनिंग या गुड नाइट जैसे बेमतलब के होते. लेदे कर कोई एकाध मैसेज ही दिन भर में काम का होता है. बच्चे का नैपी जैसे हो गया है मोबाइल. चाहे कुछ हो या न हो बारबार चैक करने की आदत सी हो गई है. नसरीन सोचतेसोचते सरसरी निगाहों से सारे मैसेज देख रही थी. कुछ पढ़ती और फिर डिलीट कर देती. कालेज जाने से पहले रात भर के आए सभी मैसेज चैक करना उस की आदत में शुमार है.

देखें तो क्या है इस नए ग्रुप में? ऐडमिन कौन है? कौनकौन जुड़ा है इस में? क्या कोई ऐसा भी है जिसे मैं जानती हूं? नसरीन ने नए ग्रुप के गु्रप इन्फो पर टैब किया. इस ग्रुप में फिलहाल 107 लोग जुड़े थे. स्क्रोल करतेकरते उस की उंगलियां एक नाम पर जा कर ठहर गईं. राजन? ग्रुप ऐडमिन को पहचानते ही नसरीन उछल पड़ी.

अरे, ये तो फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट के आयोजक हैं. इस का मतलब मेरा प्रोफाइल फर्स्ट लैवल पर सलैक्ट हो गया है. नसरीन के अरमानों को छोटेछोटे पंख उग आए.

नसरीन जयपुर में रहने वाले मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार की साधारण युवती है. मगर उस की महत्त्वाकांक्षा उसे असाधारण बनाती है. 5 फुट 5 इंच लंबी, आकर्षक नैननक्श और छरहरी काया की मालकिन नसरीन के सपने बहुत ऊंचे हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जाने का जनून रखती है. जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली नसरीन को समाज के रूढिवादी रवैए ने बागी बना दिया. उस का सपना मौडल बनने का है. मगर सब से बड़ी बाधा उस का खुद का परिवार बना हुआ है. उस के भाई को उस का फैशनेबल कपड़े पहनना फूटी आंख नहीं सुहाता और मां भी जितनी जल्दी हो सके अपने भाई के बेटे से उस का निकाह कराना चाहतीं. मगर इस सब से बेखबर नसरीन अपनी ही दुनिया में खोई रहती है. उस की जिंदगी में फिलहाल शादी और बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है. उस की हमउम्र सहेलियां उस से ईर्ष्या करती हैं. मगर मन ही मन उस की तरह जीना भी चाहती हैं.

महल्ले के बड़ेबुजुर्गों और मौलाना साहब तक उस के अब्बा हुजूर को हिदायत दे चुके हैं कि बेटी को हिजाब में रखें और कुरान की तालीम दें, क्योंकि उसे देख कर समाज की बाकी लड़कियां भी बिगड़ रही हैं. लेकिन अब्बा को जमाने से ज्यादा अपनी बेटी की खुशी प्यारी थी, इसलिए उन्होंने उसे सब की निगाहों से दूर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने दिल्ली भेज दिया.

एक दिन कालेज के नोटिस बोर्ड पर राजन की कंपनी द्वारा आयोजित फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट का विज्ञापन देखा, तो उसे आशा की एक किरण नजर आई. हालांकि दिल्ली में आए दिन इस तरह के आयोजन होते रहते हैं, मगर राजन की कंपनी द्वारा चुने गए मौडल देश भर में अलग पहचान रखते हैं. विज्ञप्ति के अनुसार विभिन्न चरणों से होते हुए प्रतियोगिता का फाइनल राउंड मुंबई में होना था तथा विजेता मौडल को क्व10 लाख नकद इनाम राशि के साथसाथ 1 साल का मौडलिंग कौंट्रैक्ट साइन करना था. यह जानते हुए भी कि फिल्मों की तरह इस क्षेत्र में भी गौड फादर का होना जरूरी है, नसरीन ने इस प्रतियोगिता के लिए अपनी ऐंट्री भेज दी. उस का सोचना था कि वह यह कौंटैस्ट जीत गई तो आगे का रास्ता खुल जाएगा.

राजन फैशन जगत में जाना माना नाम है. उस की रंगीनमिजाजी के किस्से अकसर सुनाई देते हैं. फिर भी उस के लिए मौडलिंग करना किसी भी नवोदित का सपना होता है. आज खुद इस ग्रुप में राजन के साथ जुड़ कर नसरीन को यों लगा मानो उस की लौटरी लग गई. आज आसमान मुट्ठी में कैद हुआ सा लग रहा था. उसे अचानक नीरस और उबाऊ व्हाट्सऐप अच्छा लगने लगा.

‘सब कुछ सिस्टेमैटिक तरीके से करना होगा.’ सोचते हुए मिशन की प्लानिंग के हिसाब से सब से पहले नसरीन ने व्हाट्सऐप प्रोफाइल की डीपी पर लगी अपनी पुरानी तसवीर हटा कर सैक्सी तसवीर लगाई. फिर राजन को पर्सनल चैट बौक्स में मैसेज भेज कर थैंक्स कहा. राजन ने जवाब में दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए 2 स्माइली प्रतीक भेजे. यह नसरीन की राजन के साथ पहली चैट थी.

एक दिन नसरीन ने अपने कुछ फोटो राजन के इनबौक्स में भेजे तथा तुरंत ही सौरी का मैसेज भेजते हुए लिखा, ‘‘माफ कीजिएगा, गलती से सैंड हो गए.’’

‘‘इट्स ओके. बट यू आर लुकिंग वैरी सैक्सी,’’ राजन ने लिखा.

‘‘सर, मैं इस वक्त दुनिया की सब से खुशहाल लड़की हूं, क्योंकि मैं आप जैसे किंग मेकर से सीधे रूबरू हूं.’’

‘‘मैं तो एक अदना सा कला का सेवक हूं.’’

‘‘हीरा अपना मोल खुद नहीं आंक सकता.’’

‘‘आप नाहक मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं.’’

‘‘जो सच है वही कह रही हूं…’’

राजन ने 2 हाथ जुड़े हुए धन्यवाद की मुद्रा में भेजे.

‘‘ओके सर बाय. कल मिलते हैं,’’ और 2 स्माइली के साथ नसरीन ने चैट बंद कर दी.

2 दिन बाद प्रतियोगिता का पहला राउंड था. नसरीन ने राजन को लिखा, ‘‘सर, यह मेरा पहला चांस है, क्या हमारा साथ बना रहेगा?’’

‘‘यह तो वक्त तय करेगा या फिर खुद तुम,’’ कह कर राजन ने जैसे उसे एक हिंट दिया.

नसरीन उस का इशारा कुछकुछ समझ गई. फिर ‘मैं यह कौंटैस्ट हर कीमत पर जीतना चाहूंगी,’ लिख कर नसरीन ने उसे हरी झंडी दे दी.

पहले राउंड में देश भर से चुनी गईं 60 मौडलों में से दूसरे राउंड के लिए  20 युवतियों का चयन किया गया. नसरीन भी उन में से एक थी. राजन ने उसे बधाई देने के लिए अपने कैबिन में बुलाया. आज उस की राजन से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई. राजन जितना फोटो में दिखाई देता था उस से कहीं ज्यादा आकर्षक और हैंडसम था. अपने कैबिन में उस ने नसरीन के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेबी, हाऊ आर यू फीलिंग नाऊ?’’

‘‘यह राउंड क्वालिफाई करने के बाद या फिर आप से मिलने के बाद?’’ नसरीन ने शरारत से पूछा.

‘‘स्मार्ट गर्ल.’’

‘‘अब आगे क्या होगा?’’

‘‘कहा तो है कि यह तुम पर डिपैंड करता है,’’ राजन ने उस की खुली पीठ को हलके से छूते हुए कहा.

‘‘वह तो है, मगर अब कंपीटिशन और भी टफ होने वाला है,’’ नसरीन ने राजन की हरकत का कोई विरोध न करते हुए कहा.

‘‘बेबी, तुम एक काम करो, नैक्स्ट राउंड में अभी 10 दिन का टाइम है. तुम रोनित शेट्टी से पर्सनैलिटी ग्रूमिंग की क्लासेज ले लो. मैं उसे फोन कर देता हूं,’’ राजन ने उस के चेहरे पर आई लटों को हटाते हुए कहा.

‘‘सो नाइस औफ यू… थैंक्स,’’ कह नसरीन ने उस के हाथ से रोनित का कार्ड ले लिया.

10 दिन बाद प्रतियोगिता के सैकंड राउंड में नसरीन सहित 10 मौडलों का चयन किया गया. अब आखिरी राउंड में विजेता का चयन किया जाना था. प्रतियोगिता का फाइनल मुंबई में होना था. निर्णायक मंडल में राजन सहित एक प्रसिद्ध टीवी ऐक्ट्रैस और एक प्रसिद्ध पुरुष मौडल था.

नसरीन भी सभी प्रतिभागियों के साथ मुंबई पहुंच गई. प्रतिभागियों के रुकने की अलग व्यवस्था की गई थी और बाकी टीम की अलग. राजन ने नसरीन को मैसेज कर के अपने रूम में बुलाया.

‘‘तो बेबी, क्या सोचा तुम ने?’’

‘‘इस में सोचना क्या? यह तो एक डील है… तुम मुझे खुश कर दो, मैं तुम्हें कर दूंगी,’’ नसरीन ने बेबाकी से कहा.

‘‘तो ठीक है, रात को डील पर मुहर लगा देते हैं.’’

‘‘आज नहीं कल रिजल्ट के बाद.’’

‘‘मुझ पर भरोसा नहीं?’’

‘‘भरोसा तो है, मगर मेरे पास भी तो सैलिब्रेट करने का कोई बहाना होना चाहिए न?’’ नसरीन ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा.

‘‘ऐज यू विश… औल द बैस्ट,’’ कहते हुए राजन ने उसे बिदा किया.

अगले दिन विभिन्न चरणों की औपचारिकता से गुजरते हुए अंतिम निर्णय के आधार पर नसरीन को फेस औफ द ईयर चुना गया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पिछले वर्ष की विजेता ने अपना क्राउन उसे पहनाया तो नसरीन की आंखें खुशी के मारे छलक उठीं. उस ने राजन की तरफ कृतज्ञता से देखा तो राजन ने एक आंख दबा कर उसे उस का वादा याद दिलाया. नसरीन मुसकरा दी.

आज की रात अपनी देह का मखमली कालीन बिछा कर नसरीन ने अपनी मंजिल को पाने के लिए शौर्टकट की पहली सीढ़ी पर पांव रखा. एक गरम कतरा उस की पलकों की कोर को नम करता हुए धीरे से तकिए में समा गया.

खिताब जीतने के बाद पहली बार नसरीन अपने शहर आई. पर रेलवे स्टेशन पर कट्टर समाज के लोगों ने उस के भाई की अगुआई में उसे काले झंडे दिखाए, मुर्दाबाद के नारे लगाए और उसे ट्रेन से उतरने नहीं दिया. भीड़ में सब से पीछे खड़े उस के अब्बा उसे डबडबाई आंखों से निहार रहे थे. नसरीन उन्हें देख कर सिर्फ हाथ ही हिला सकी और ट्रेन चल पड़ी. इस विरोध के बाद उस ने फिर कभी जयपुर का रुख नहीं किया.

देखते ही देखते विज्ञापन की दुनिया में नसरीन छा गई. लेकिन शौर्टकट सीढि़यां चढ़तेचढ़ते काफी ऊपर आ गई नसरीन के लिए मंजिल अभी भी दूर थी. उस की ख्वाहिश इंटरनैशनल लैवल तक जाने की थी और सिर्फ राजन के पंखों के सहारे इतनी ऊंची उड़ान भरना संभव नहीं था. उसे अब और भी सशक्त पंखों की तलाश थी, जो उस की उड़ान को 7वें आसमान तक ले जा सके.

एक दिन उसे पता चला कि फैशन जगत के बेताज बादशाह समीर खान को अपने इंटरनैशनल प्रोजैक्ट के लिए फ्रैश चेहरा चाहिए. उस ने समीर खान से अपौइंटमैंट लिया और उस के औफिस पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सीधे मुद्दे पर आते हुए समीर ने कहा, ‘‘देखो बेबी, यह एक बीच सूट है और बीच सूट कैसा होता है, आई होप तुम जानती होंगी.’’

‘‘यू डौंट वरी. जैसा आप चाहोगे हो जाएगा,’’ नसरीन ने उसे आश्वस्त किया.

‘‘ठीक है, नैक्स्ट वीक औडिशन है, लेकिन उस से पहले हम देखना चाहेंगे कि यह जिस्म बीच सूट लायक है भी या नहीं,’’ समीर ने कहा.

नसरीन उस का इशारा समझ रही थी. अत: उस ने कहा, ‘‘पहले औडिशन ले कर ट्रेलर देख लीजिए. कोई संभावना दिखे तो पूरी पिक्चर भी देख लेना.’’

‘‘वाह, ब्यूटी विद ब्रेन,’’ कहते हुए समीर ने उस के गाल थपथपाए.

नसरीन का चयन इस प्रोजैक्ट के लिए हो गया. 1 महीने बाद उसे समीर की टीम के साथ सूट के लिए विदेश जाना था. अब राजन से उस का संपर्क कुछ कम होने लगा था.

आज राजन ने उसे डिनर के लिए इनवाइट किया था. नसरीन जानती थी कि वह रात की गई सुबह ही वापस आएगी. कुछ भी हो, मगर राजन के लिए उस के दिल में एक सौफ्ट कौर्नर था.

‘‘समीर के साथ जा रही हो?’’

‘‘हूं.’’

‘‘मुझे भूल जाओगी?’’

‘‘यह मैं ने कब कहा?’’

‘‘तुम उसे जानती ही कितना हो… एक नंबर का लड़कीखोर है.’’

‘‘तुम्हें भी कहां जानती थी?’’

‘‘शायद तुम्हें उड़ने के लिए अब आकाश छोटा पड़ने लगा?’’

‘‘तुम्हें कहीं मुझ से प्यार तो नहीं होने लगा?’’ नसरीन ने माहौल को हलकाफुलका करने के लिए हंसते हुए कहा.

‘‘अगर मैं हां कहूं तो?’’ राजन ने उस की आंखों में झांका.

‘‘तुम ऐसा नहीं कहोगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि फैशन की इस दुनिया में प्यार नहीं होता. वैसे भी तुम्हारी कंपनी फेस औफ द ईयर कौंटैस्ट फिर से आयोजित करने वाली है. फिर एक नया चेहरा चुना जाएगा, जो तुम्हारी कंपनी और तुम्हारे बिस्तर की शोभा बढ़ाएगा. फिर से तुम साल भर के लिए बिजी हो जाओगे. मैं ने पिछले वर्ष की मौडल के चेहरे पर एक पीड़ा देखी थी जब वह मुझे क्राउन पहना रही थी. वह पीड़ा मैं अपनी आंखों में नहीं आने देना चाहती,’’ नसरीन ने बहुत ही साफगोई से कहा.

राजन उसे अवाक देख रहा था. उस ने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी पारदर्शी सोच वाली लड़की नहीं देखी थी.

नसरीन ने आगे कहा, ‘‘मेरी मंजिल अभी बहुत दूर है राजन. तुम जैसे न जाने कितने छोटेछोटे पड़ाव आएंगे. मैं वहां कुछ देर सुस्ता तो सकती हूं, मगर रुक नहीं सकती.’’

रात को सैलिब्रेट करने का राजन का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. उस ने नसरीन से कहा, ‘‘चलो, तुम्हें गाड़ी तक छोड़ दूं.’’

‘‘ओके, बाय बेबी… 2 दिन बाद मेरी फ्लाइट है. देखते हैं अगला पड़ाव कहां होता है,’’ कहते हुए नसरीन ने आत्मविश्वास के साथ गाड़ी स्टार्ट कर दी.

राजन उसे आंखों से ओझल होने तकदेखता रहा.

लौट आओ अपने वतन- विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

लंदन एयरपोर्ट पर ज्यों ही वे तीनों आधी रात उतरे, उर्वशी को छोड़ उस के मम्मीपापा का चेहरा एकाएक उतर गया. आंखें नम हो आईं.

एयरपोर्ट पर हर तरफ जगमगाहट थी. चकाचौंध इतनी थी कि रात होने का आभास ही नहीं हो रहा था.

इस चकाचौंध में भी उर्वशी के मम्मीपापा के चेहरों की उदासी साफ झलक रही थी. उर्वशी का रिश्ता तय करने के लिए वे लंदन उसे लड़के वालों को दिखाने लाए थे, लेकिन उन का मन इतना उदास था कि मानो उसे विदा करने आए हों.

सड़क  के दोनों ओर बड़ीबड़ी स्ट्रीट लाइटें, हर चौराहे पर रैड सिगनल, मुस्तैदी से ड्यूटी निभा रही टै्रफिक

पुलिस, साफसुथरी, चौड़ी सड़कों पर दौड़तीभागती लंबीलंबी चमचमाती कारें, बाइक, साइकिलें और विक्टोरिया (तांगे), पैदल यात्रियों के लिए ईंटों से बने फुटपाथ, अनगिनत दुकानें, मौल वहां की शोभा बढ़ा रहे थे.

उस समय लंदन की ठिठुरन वाली ठंड में भी हाफ जींस, टीशर्ट डाले, हर उम्र के कई जोड़े स्टालों पर कोल्डडिं्रक, आइसक्रीम का मजा उठाते दिखे. कहीं कोई तनाव नहीं. सुकूनभरी जीवनशैली चलती दिख रही थी.

विशाल बहुमंजिला इमारतें और उन पर टंगे बड़ेबड़े ग्लोसाइन. रास्ते में कई छोटेछोटे पार्क और उन की शोभा बढ़ाते फुहारे. हर तरफ एक सिस्टम. उर्वशी तो जैसे दूसरी दुनिया में भ्रमण कर रही थी. उस के चेहरे का उत्साह देखते ही बनता था. मन ही मन अनेक सपने संजोए उस ने. अपने वतन से कोसों दूर लंदन में अपने लिए वर देखने आना उर्वशी का उद्देश्य था. वह भारत में अपनी शादी के लिए किसी से भी बात करने में अपनी तौहीन समझती थी. और तो और अपनी मातृभाषा में बात करना भी उसे पसंद नहीं था. गिनती के लड़केलड़कियों से ही उस की मित्रता थी.

उसे लगता कि हर भारतीय गंदगी, आलस्य और बेचारगी में जीता है. भारतीय कामचोर होते हैं. यहां के बड़ेबड़े घोटाले, किसानों की लाचारी और नेताओं के बड़ेबड़े लच्छेदार भाषण? सारा दोष पब्लिक का ही तो है. यहां की सड़कें तो गायभैंसों के लिए बनी हैं ताकि वे सड़क के बीचोंबीच जुगाली कर सकें, धूलधुएं से भरा वातावरण, चूहोंमच्छरों से अस्तव्यस्त जनजीवन. ऊपर से दौड़तेभागते कुत्तों का झुंड. पान की पीकों से रंगी दीवारें, सड़कें,  बेतरतीबी से बने मकान, सोच कर ही उबकाई आने लगती थी उसे.

जमाने से चला आ रहा ‘ओल्ड फैशंड’ धोतीकुरता, सलवारजंपर, ऊपर से दुपट्टा. एडि़यों से ऊपर उठी सिमटीसिकुड़ी साडि़यां और किलो के भाव से लदे सोनेचांदी के जेवर, भला यह भी कोई पहनावा है? न चेहरे पर कोई क्रीम, न बौडीलोशन लेकिन खुद को फैशनेबल मानने वाली ये औरतें? कहीं कोई मैचिंग नहीं. अगर कपड़े ठीकठाक हों तो भी पैरों में फटी खुली जूतियां, जैसे मुंह चिढ़ा रही हों.

जेन ड्राइव कर रहा था. उर्वशी का ध्यान उस की तरफ नहीं था. उस का नाम जेन नहीं था. लेकिन जयदीप से बदल कर उस ने अपना अंगरेजों वाला नाम रख लिया था. पूरे परिवार में मात्र उर्वशी ही थी, जिस ने अपनी सभ्यता, संस्कृति बिलकुल पीछे छोड़ रखी थी. पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर खुद को अंगरेजों जैसा ही बना डाला था उस ने.

शौर्ट स्कर्ट, पैंसिल हील वाले सैंडल, जींस, ब्रेसलेट यही सब उर्वशी को पसंद था. कंधों तक का स्टाइलिश हेयरकट, इंगलिश फिल्मों और पौप म्यूजिक की शौकीन, कांटेछुरी से खाना, एकदम बोल्ड.

भारत में तो उर्वशी को एक भी लड़का पसंद नहीं आया था. यों कहें कि वह किसी भी लड़के को देखनेमिलने में इच्छुक ही नहीं थी. उस की तो इच्छा ही थी कि उस की शादी इंडिया से बाहर ही हो चाहे वह अमेरिका हो, आस्ट्रेलिया या फिर ब्रिटेन ही क्यों न हो, पर वह भारत में शादी नहीं करेगी. चाहे उसे जिंदगी यों ही क्यों न गुजारनी पड़े.

हरियाणा में रहने वाली उर्वशी की बूआ, जो अब मुंबई में थीं और अपनी पंजाबी बोलना नहीं भूल पाईर् थीं, को उर्वशी की मम्मी सरला ने फोन किया. एक समय था जब बूआजी को उर्वशी की मम्मी से बात करना पसंद नहीं था, लेकिन आज उर्वशी के लिए रिश्ता बताने के लिए उन्होंने फोन किया, ‘‘भाभीजी, तुसी

उर्वशी दे ब्याह दी चिंता न करो. चाहो ते इक फोटो भिजवा देवो, मुंडे दी माताजी नू. इक मुंडा हैगा लंडन विच… काफी साल होए, मां हरियाणा दी रहण वाली सी. मां चाहंदी है कि लड़के दा ब्याह हिंदुस्तानी कुड़ी नाल होवे. इस वास्ते मैं फून कीत्ता…’’ बस, इधर बूआ से फोन पर बात हुई और उधर उर्वशी का परिवार लंदन पहुंचा.

जेन को देखते ही उर्वशी को लगा कि जैसे उस के सपनों का राजकुमार मिल गया हो. उस ने उर्वशी का बैग  पिछली सीट पर डाला और तुरंत डिग्गी खोल दी. तब उर्वशी ने देखा कि उस के मम्मीपापा ने अपनेअपने बैग उठा कर डिग्गी में खुद ही रखे थे. थोड़ा बुरा तो लगा था तब उसे. जेन के कहने पर वह आगे की सीट पर बैठी थी.

जयदीप से जेन तक की कहानी लंबी तो नहीं थी. जेन का परिवार हरियाणा का था. 18 वर्ष से वे लंदन में रचबस गए. होश संभालते ही जयदीप ने सब से पहला और बड़ा काम यही किया कि अपना नाम बदल कर जेन रख लिया. साथ ही अपना तौरतरीका व रहनसहन भी बदल डाला. उसे देख कोई कह ही नहीं सकता था कि वह हिंदुस्तानी है.

उर्वशी को एक नजर में वह भा तो गया, पर अभी ढेर सारी जांचपड़ताल जो करनी थी उसे.

घर कालोनी में था और काफी अच्छा भी था. बड़ा सा मेन गेट और गेट के दोनों तरफ एक कतार में नारियल के कई ऊंचेलंबे वृक्ष मकान की शोभा बढ़ा रहे थे. हर कमरा बड़ी तरतीब से सजा हुआ मिला. पर वहां रहने वाले मात्र 2 प्राणी थे. एक उस की मम्मी और दूसरा खुद वह.

चंद मिनटों में उन के सामने जेन की मम्मी ने हिंदुस्तानी भोजन परोसा, उन की मम्मी आनेजाने वाले हर हिंदुस्तानी को खुद खाना बना कर ऐसे ही खिलाती थीं, फिर देर तक हिंदुस्तान में रह रहे खासमखास लोगों के विषय में पूछती रहीं, बतियाती रहीं. वे बड़ी सलीकेदार थीं, व्यावहारिक थीं. उन के मन में कई बातों की पीड़ा थी, दर्द था जो जबान से फूट पड़ा था.

‘‘अब तो जीनामरना, सबकुछ यहीं होगा. अपने वतन की खूब याद सताती है. फिर इस के डैडी ने तो हम से नाता ही तोड़ रखा है. एक अंगरेजन के साथ रह रहे हैं. वह तो अच्छा है जो यह नौकरी कर रहा है. वरना बड़ी खराब जगह है यह और लोग बड़े गंदे हैं. बस, चमकदमक के अलावा और कुछ भी नहीं है यहां. मन तो नहीं लगता, देखो, लड़का क्या चाहता है?’’

फिर थोड़ा ठहर कर, एक लंबी सांस खींची. जब वे बोलीं तो भीतर की कड़वाहट चेहरे पर साफ झलक रही थी, ‘‘अगर अंगरेजन के चंगुल से इस के डैडी मुक्त हो जाएं तो यकीन मानें, यह देश छोड़ अपने वतन लौट आऊंगी. काश, ऐसा हो जाए.’’

जेन और उर्वशी के बीच बातचीत अधिकतर अंगरेजी में ही होती थी. जेन की फर्राटेदार अंगरेजी कभीकभी उर्वशी समझ नहीं पाती. फिर भी वह संभाल लेती. ऐसा नहीं कि जेन हिंदी नहीं जानता था, पर टूटीफूटी. हिंदी बोलतेबोलते न जाने कब अंगरेजी में घुस जाता…

‘‘चलो, तुम्हें घुमा लाऊं,’’ बात दूसरे दिन की शाम की थी. खुशीखुशी उर्वशी ने मम्मीपापा को भी साथ चलने के लिए कहा. सुनते ही जेन आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘हमारे बीच इन बुड्ढों का क्या काम? सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. यह तुम्हारा इंडिया नहीं, जहां कहीं भी पूरा परिवार एकसाथ निकल पड़े. यहां का कल्चर, सोसाइटी, कुछ अलग है, तभी तो यह लंदन है.’’

वह अभी और कुछ कहता, तभी सरलाजी उर्वशी को देख कर अपनी आंख हौले से भींचते हुए इशारा कर बोलीं, ‘‘तुम दोनों हो आओ, जयदीप ठीक ही कह रहा है?’’

‘‘मेरा नाम जेन है. जयदीप नहीं. इस घटिया नाम से मुझे फिर न बुलाएं. सो प्लीज, जेन कहा करें,’’ उस ने एतराज जताते हुए कहा.

‘‘ओह, सौरी जेन, आगे से याद रखूंगी,’’ सरलाजी ने सुधार कर उस हिप्पी जेन से क्षमा मांगी. उधर पापाजी  का चेहरा तमतमा उठा. उर्वशी अपनी मम्मी का इशारा समझ जेन के साथ हो ली. तब जेन का व्यवहार उसे जरा भी नहीं भाया था. ऐसा रूखापन?

काफी देर इधरउधर भटकने के बाद वे दोनों डिस्कोथिक गए. आधी रात गए डिस्कोथिक में कईकई जोड़े थिरकते दिखे. कुछ पल वह भी उर्वशी के साथ डांस फ्लोर पर रहा. फिर वह एक अंगरेज युवती के साथ देर तक डांस करता रहा.

उर्वशी जेन को देर तक निहारती रही. उसे समझने का प्रयास करती रही पर विफल रही. अभी वह उस के विषय में सोच ही रही थी कि किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा. वह चौंक पड़ी. सामने एक युवक खड़ा था. वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘डांस प्लीज?’’

‘‘वाय नौट,’’ वह उठ खड़ी हुई.

अभी उस ने डांस शुरू किया ही था कि उसे महसूस हुआ कि वह बदतमीजी पर उतर आया है. यही नहीं उस की बदतमीजी लगातार बढ़ती ही जा रही थी. उस ने खुद को  छुड़ाने की कोशिश की, पर अपने को छुड़ा नहीं पाई और जेन से चिल्लाचिल्ला कर मदद मांगने लगी पर जेन ने यह सब देख कर भी अनदेखा कर दिया. जैसेतैसे वह खुद मुक्त हुई और साथ ही उस ने एक जोरदार थप्पड़ उस व्यक्ति के चेहरे पर रसीद कर दिया. अंगरेज थप्पड़ खा कर तिलमिला उठा था.

जोरदार थप्पड़ की झनझनाहट से उस का सिर घूम गया था. वह कुछ भी कर जाता, अगर जेन ने मिन्नतें न की होतीं. काफी देर बाद वह शांत हुआ और जेन को धक्का देते हुए वहां से हट गया. जेन ने इस बात की नाराजगी उर्वशी पर निकाली, ‘‘जानती हो, वह एक गुंडा है. फिर, वह कौन सा निगल रहा था तुम्हें?’’

‘‘तो क्या तुम किसी के साथ हो रहे अन्याय को बस देखते ही रहोगे. विरोध नहीं करोगे उस का? कैसी परवरिश है तुम्हारी?’’ उर्वशी गुस्से में बोली.

‘‘छोड़ो भी, तुम लोगों को जीना आता ही कहां है? हर पल किसी न किसी से उलझते ही रहो बस,’’ जेन बोला.

उर्वशी ने जेन से उलझना उचित नहीं समझा और चुपचाप घर लौट आई. फिर तो रास्तेभर दोनों ने एकदूसरे से बिल्कुल भी बात नहीं की. मम्मीपापा को सोता देख वह भी सोने चली गई.

‘‘कैसा रहा जेन के साथ कल का दिन तुम्हारा?’’ सरलाजी ने उर्वशी से पूछा. उस ने मुंह बिचका दिया. सरलाजी के होंठों पर एक मुसकान तैर गई. एक  शाम को उर्वशी और उस के मम्मीपापा को जेन समुद्र किनारे ले गया.

समुद्रतट पर अंगरेजों का साम्राज्य था. नंगेधड़ंगे, कुछ तो हदें पार कर रहे थे. सरलाजी उर्वशी के साथ थीं इसलिए, बात घुमा कर बोलीं, ‘‘चलो, यहां से… बहुत घूम लिए. फिर मेरी तो सांस भी फूलने लगी है.’’ फिर वे लौटते हुए देर तक न जाने क्याक्या बड़बड़ाती रही थीं. वैसे उर्वशी को समुद्रतट का नजारा जरा भी न भाया था. यहां के लोग सभ्य, सलीके वाले होते हैं, भ्रम टूटने लगा था अब तो.

जेन ने डायनिंग टेबल पर पूछा, ‘‘कैसा लगा हमारा लंदन?’’ उस ने शराब के 2 पैग बना, मम्मीपापाजी को पेश किए. पापाजी के इनकार करने पर उस ने कहा, ‘‘आप इंडिया के लोग शराब नहीं पीते? फिर जीते कैसे हैं?’’ यही वजह है कि भारत हमेशा पीछे रहा है. अब यहां के लोगों को ही देख लें. हर कोई एंजौय करता है. जेन का इतना कहना ही उस के लिए मुसीबत ले आया. अपने को बहुत

देर से दबा कर बैठी उर्वशी अपना आपा खो बैठी जैसे सहस्र बिच्छुओं ने उसे एकसाथ काट खाया हो. ऊंची आवाज में वह कहती रही और जेन स्तब्ध खड़ा बस, सुनता ही रहा.

‘‘मैं ने यहां की तहजीब और तमीज अच्छी तरह महसूस कर ली है. बड़ीबड़ी इमारतों और झूठी चकाचौंध के अलावा और कुछ नहीं पाया. यहां बुजुर्गों का तो जरा भी लिहाज नहीं. नग्नता के अलावा और कुछ भी नहीं. जबरन एंजौय का ढोंग. फिर तुम्हारी मम्मी के होते, तुम्हारे पापा ने कितना घृणित काम किया? यही है यहां का कल्चर. औैर बात इतने में खत्म नहीं होती. तुम बुजदिल हो. तुम में इंसानियत नाम की चीज नहीं है. मेरा भारत महान है, महान ही रहेगा. वहां दिखावा नहीं है. सच्चे, सीधेसादे लोग बसते हैं, हमारे वतन में.’’

वह तैश में थी, थोड़ा ठहर कर, पल भर रुक कर बोली, ‘‘जयदीप, तुम भी अंगरेज नहीं हो. नाम बदल लेने से किसी के संस्कार, संस्कृति नहीं बदलती, समझे मिस्टर जेन. तुम भी हिंदुस्तानी हो. इस देश ने तुम में अहम भर दिया है. इस देश में तुम पूरी जिंदगी क्यों न बिता लो, तब भी तुम्हारी यहां कोई अहमियत नहीं है. मेरी यह बात याद रखना.’’

हक्काबक्का जेन स्तब्ध खड़ा सुन रहा था. जेन की माताजी भी सिर झुकाए, शर्म से गढ़ी खड़ी थीं. मम्मीपापा के साथ उर्वशी ने डायनिंग टेबल छोड़ दी. उर्वशी ने महसूस किया कि उस के मम्मीपापा की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बह रही थी. वे खुश थे यह जान कर कि उन की बेटी अब इस लायक हो गई है कि वह अच्छेबुरे की पहचान कर सके और वे लोग उसे नासमझ समझते रहे थे.

बेहद दृढ़ स्वर में उर्वशी बोली, ‘‘हम कल लौट रहे हैं अपने वतन, तुम्हारा लंदन तुम्हें ही मुबारक. एक बात और कि तुम हमें छोड़ने नहीं आओगे.’’

उर्वशी का तमतमाया चेहरा देखने की ताकत जेन में थी ही नहीं, उस ने चुपचाप वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी.

लेखक- केशव राम वाड़दे

कम्मो डार्लिंग : कमली के साथ क्या हुआ

‘‘नीतेश…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर नीतेश के कदम जहां के तहां रुक गए. उस ने पीछे घूम कर देखा, तो हैरत से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘क्या हुआ नीतेश? मुझे यहां देख कर हैरानी हो रही है? अच्छा, यह बताओ कि तुम मुंबई कब आए?’’ उस ने नीतेश से एकसाथ कई सवाल किए, लेकिन नीतेश ने उस के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप आगे बढ़ गया. वह भी उस के साथसाथ आगे बढ़ गई.

कुछ दूर नीतेश के साथ चलते हुए उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नीतेश, मैं काफी अरसे से दिल पर भारी बोझ ले कर जी रही हूं. कई बार सोचा भी कि तुम से मिलूं और मन की बात कह कर दिल का बोझ हलका कर लूं, मगर… ‘‘आज हम मिल ही गए हैं, तो क्यों न तुम से दिल की बात कह कर मन हलका कर लूं.’’

‘‘नीतेश, मैं पास ही में रहती हूं. तुम्हें कोई एतराज न हो, तो हम वहां थोड़ी देर बैठ कर बात कर लें?’’ नीतेश के पैर वहीं ठिठक गए. उस ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा. उस के चेहरे पर गुजारिश के भाव थे, जो नीतेश की चुप्पी को देख कर निराशा में बदल रहे थे.

‘‘नीतेश, अगर तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो रहने दो,’’ उस ने मायूस होते हुए कहा. नीतेश ने उस के मन के दर्द को महसूस करते हुए धीरे से कहा, ‘‘कहां है तुम्हारा घर?’’

‘‘उधर, उस चाल में,’’ उस ने सामने की तरफ इशारा कर के कहा. ‘‘लेकिन मैं ज्यादा देर तक तुम्हारे साथ रुक नहीं पाऊंगा. जो कहना हो जल्दी कह देना.’’

उस ने ‘हां’ में गरदन हिला दी. ‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर नीतेश उस के साथ चल दिया.

नीतेश का साथ पा कर उस को जो खुशी हो रही थी, उसे कोई भी महसूस कर सकता था. खुशी से उस के चेहरे की लाली ऐसे चमकने लगी, मानो सालों से बंजर पड़ी जमीन पर अचानक हरीभरी फसल लहलहाने लगी हो. उस के रूखे और उदास चेहरे पर एकदम ताजगी आ गई. थोड़ी दूर चलने के बाद वह चाल में बने छोटे से घर के सामने आ कर रुकी और दरवाजे पर लटके ताले को खोल कर नीतेश को अंदर ले गई.

‘‘नीतेश, तुम यहां बैठो, मैं अभी आई,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई. जमीन पर बिछे बिस्तर पर बैठा नीतेश उस छोटे से कमरे की एकएक चीज को ध्यान से देखने लगा. तभी उस की नजर सामने मेज पर रखे एक फोटो फ्रेम पर जा कर अटक गई, जिस में नीतेश के साथ उस का फोटो जड़ा हुआ था. वह फोटो उस ने अपनी शादी के एक महीने बाद कसबे की नुमाइश में खिंचवाया था, अपनी मां के कहने पर.

मां ने तब उस से कहा था, ‘बेटा, तेरी नईनई शादी हुई है, जा, कमली को नुमाइश घुमा ला. और हां, नुमाइश में कमली के साथ एक फोटो जरूर खिंचवा लेना. पुराना फोटो देख कर गुजरे समय की यादें ताजा हो जाती हैं.’ मां की बात याद आते ही नीतेश का मन भर आया. एक तो पिता की अचानक मौत का दुख, दूसरे नौकरी के लिए उस का गाजियाबाद चले जाना, मां को अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाटने लगा था. नतीजतन, वे धीरेधीरे बिस्तर पर आ गईं.

नीतेश ने कई बार मां को अपने साथ शहर ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर से उन का इलाज करवाने को भी कहा, लेकिन वे गांव से हिलने के लिए भी राजी नहीं हुईं. वह तो शुक्र हो उस के पड़ोस में रहने वाली कमली का, जो मां की तीमारदारी कर दिया करती थी. कमली कोई खास पढ़ीलिखी नहीं थी. गांव के ही स्कूल से उस ने 6 जमात पढ़ाई की थी, पर थी बहुत समझदार. शायद इसीलिए वह उस की मां के मन को भा गई और उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया था, यह बात मां ने नीतेश को तब बताई थी, जब वह एक दिन उन से मिलने गांव आया था.

मां ने उस से कहा था, ‘बेटा, कमली मुझे बहुत अच्छी लगती है. तेरे पीछे वह जिस तरह मेरी देखभाल करती है, उस तरह तो मेरी अपनी बेटी होती, तो वह भी नहीं कर पाती. मैं ने सोच लिया है कि तेरी शादी मैं कमली से ही कराऊंगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि वह तेरा घर अच्छी तरह संभाल लेगी. नीतेश मन से अभी शादी करने को तैयार नहीं था. उस की इच्छा थी कि पहले वह अच्छा पैसा कमाने लगे. शहर में किराए के मकान को छोड़ कर अपना मकान बना ले, कुछ पैसा इकट्ठा कर ले, ताकि भविष्य में पैसों के लिए किसी का मुंह न ताकना न पड़े. लेकिन मां की खुशी के लिए उसे अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर कमली से शादी करनी पड़ी.

शादी के कुछ ही महीनों बाद अचानक नीतेश की मां की तबीयत बिगड़ गई. काफी इलाज के बाद भी वे बच नहीं पाईं. नीतेश कमली को अपने साथ शहर ले आया. वहां कमली के रहनसहन, खानपान, बोलचाल और पहननेओढ़ने में एकदम बदलाव आ गया. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह गांव की वही अल्हड़ और सीधीसादी कमली है, जो कभी सजनासंवरना भी नहीं जानती थी.

कमली में आए इस बदलाव को देख कर नीतेश को जितनी खुशी होती, उतना ही दुख भी होता था, क्योंकि वह दूसरों की बराबरी करने लगी थी. पड़ोस की कोई औरत 2 हजार रुपए की साड़ी खरीदती, तो वह 3 हजार रुपए की साड़ी मांगती. किसी के घर में 10 हजार रुपए का फ्रिज आता, तो वह 15 हजार वाले फ्रिज की डिमांड करती. नीतेश ने कई बार कमली को समझाया भी कि दूसरों की बराबरी न कर के हमें अपनी हैसियत और आमदनी के मुताबिक ही सोचना चाहिए, लेकिन उस के ऊपर कोई असर नहीं हुआ, जिस का नतीजा यह निकला कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने की खातिर एक ऐसे भंवरजाल में जा फंसी, जिसे नीतेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

एक दिन शाम को नीतेश अपनी ड्यूटी से वापस आया, तो घर के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. उस ने सोचा कि कमली किसी काम से कहीं चली गई होगी, इसलिए वह बाहर खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. इस बीच उस ने कई बार कमली को फोन भी मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद था. रात के तकरीबन 12 बज चुके थे, तभी उस के दरवाजे के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी, जिस में से कमली नीचे उतरी. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के लड़खड़ाते कदमों को देख कर कार में बैठा शख्स बोला, ‘‘कम्मो डार्लिंग, संभल कर.’’

कमली उस की ओर देख कर मुसकराई. वह शख्स भी मुसकराया और बोला, ‘‘ओके कम्मो डार्लिंग, बाय.’’ इतना कह कर वह वहां से चला गया. यह देख कर नीतेश हैरान रह गया. उस का दिल टूट गया. उसे कमली से नफरत हो गई. उस के जी में तो आया कि वह अपने हाथों से उस का गला घोंट दे, मगर…

कमली शराब के नशे में इस कदर चूर थी कि उसे घर का ताला खोलना भी मुश्किल हो रहा था. नीतेश ने उस से चाबी छीनी और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. विचारों की कश्ती में सवार सोफे पर बैठा नीतेश खुद से सवाल कर रहा था और खुद ही उन के जवाब दे रहा था. उसे खामोश देख कर कमली ने कहा, ‘‘नीतेश, मुझ से यह नहीं पूछोगे कि मैं इतनी रात को कहां से आ रही हूं? मेरे साथ कार में कौन था और मैं ने शराब क्यों पी है?’’

‘‘कमली, अगर बता सकती हो तो सिर्फ इतना बता दो कि मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जिस ने तुम्हें कमली से कम्मो डार्लिंग बनने के लिए मजबूर कर दिया?’’ ‘‘नीतेश, मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहती. सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं आकाश से प्यार करने लगी हूं.’’

‘‘प्यार…?’’ चौंकते हुए नीतेश ने कहा. ‘‘हां, नीतेश. यह वही आकाश है, जिस के साड़ी इंपोरियम से हम एक बार साड़ी खरीदने गए थे. तुम्हें याद होगा िमैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पसंद की थी और तुम ने उस साड़ी को महंगा बता कर खरीदने से इनकार कर दिया था. तब आकाश ने तुम से कहा था कि साड़ी महंगी बता कर भाभीजी का दिल मत तोड़ो. भाभीजी की खूबसूरती के सामने 3 हजार तो क्या 20 हजार की साड़ी भी सस्ती होगी. लेकिन तुम आकाश की बातों में नहीं आए, जिस से मेरा दिल टूट गया.’’

‘‘दिल टूट गया और तुम आकाश से प्यार करने लगीं?’’ ‘‘नीतेश, हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ सपने हैं. मैं भी ऐश की जिंदगी जीना चाहती हूं. महंगी से महंगी साड़ी और गहने पहनना चाहती हूं. मगर मैं जानती हूं कि तुम जैसे तंगदिल और दकियानूसी इनसान के साथ रह कर मेरा यह अरमान कभी पूरा नहीं होगा, इसलिए मैं सोचने लगी कि काश, मैं आकाश की पत्नी होती. वह कितने खुले दिन का इनसान है. कितनी खुशनसीब होगी वह लड़की, जो आकाश की पत्नी होगी. कितना प्यार करता होगा आकाश अपनी पत्नी को. लेकिन आकाश शादीशुदा नहीं है, यह तो मुझे तब पता चला, जब एक दिन आकाश से अचानक मेरी मुलाकात बाजार में हो गई और उस ने मुझ से अपने साथ कौफी पीने को कहा. मैं खुद को रोक नहीं पाई और उस के साथ कौफी पीने चली गई.’’

कौफी पीते समय आकाश ने मुझ से कहा था, ‘‘भाभीजी, उस दिन आप वह गुलाबी रंग की साड़ी नहीं खरीद पाईं. इस का मुझे आज भी अफसोस है. मेरा तो मन था कि वह साड़ी मैं आप को गिफ्ट कर दूं, लेकिन मैं आप के पति की वजह से ऐसा नहीं कर पाया था.’’ मैं ने आकाश से कहा था, ‘‘छोडि़ए आकाशजी, मेरे नसीब में वह साड़ी नहीं थी.’’

आकाश बोला था, ‘‘बात नसीब की नहीं होती है भाभीजी, बात होती है प्यार की. काश, आप मेरी पत्नी होतीं, तो मैं आप के लिए एक साड़ी तो क्या दुनियाजहान की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल देता. सचमुच, आप की हर ख्वाहिश, पूरी करता.’’ ‘‘आकाश की आंखों में अपने लिए इतना प्यार देख कर मैं खुद को रोक नहीं पाई. मैं ने कहा था, ‘‘आकाश, सचमुच अगर मैं तुम्हारी पत्नी होती, तो तुम मुझ से इतना ही प्यार करते…?’’

वह बोला था, ‘‘भाभीजी, एक बार आप मेरे प्यार की गहराई नाप कर तो देखिए, आप को खुद पता चल जाएगा कि इस दिल में आप के लिए कितना प्यार है.’’ ‘‘बस, उसी दिन से मैं आकाश के प्यार में डूबती चली गई.’’

‘‘नीतेश, मैं तो तुम्हें छोड़ कर आकाश के पास चली गई थी, लेकिन वह चाहता था कि मैं तुम्हें अंधेरे में न रख कर अपने प्यार के बारे में बता दूं. मगर मैं तुम्हें कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, इसीलिए मुझे शराब का सहारा लेना पड़ा.’’ ‘‘कमली, मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि तुम ने मेरे साथ बेवफाई की है, क्योंकि यह सब कहने का कोई फायदा भी नहीं होगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि आकाश जैसे पैसे वाले लोगों के पास दिल नहीं होता है, वे अपनी दौलत के बल पर तुम जैसी बेवकूफ और लालची औरतों के जिस्म से तो खेल सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं कर सकते.’’

‘‘आकाश उन लोगों में से नहीं है. वह मुझ से सच्ची मुहब्बत करता है.’’ ‘‘ऐसा तुम इसलिए कह रही हो, क्योंकि इस समय तुम्हारे दिमाग पर आकाश और उस की दौलत का नशा छाया हुआ है, पर हकीकत जल्दी ही तुम्हारे सामने आ जाएगी. लिहाजा, कोई भी कदम उठाने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लेना.’’

इतना कह कर नीतेश कमली के पास से उठ कर दूसरे कमरे में चला गया. उस ने सोचा कि जब कमली का नशा उतर जाएगा, तो उसे अपनी भूल का एहसास जरूर होगा और वह कोई भी गलत कदम नहीं उठाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अगले दिन सुबह जब नीतेश सो कर उठा, तो कमली को दुलहन की ड्रैस में देख कर चौंक गया. वह कमली से कुछ कहता, इस से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘नीतेश, अच्छा हुआ तुम जाग गए, वरना मैं तुम से मिले बिना ही चली जाती.’’

‘‘चली जाती…. कहां चली जाती?’’ ‘‘आज आकाश ने मुझे एक अलग फ्लैट ले कर दे दिया है. मैं और वह साथ रहेंगे.’’

कमली की यह बात सुन कर नीतेश को ऐसा झटका लगा, जैसे उस के कान पर किसी ने बम फोड़ दिया हो. उसी समय आकाश ने कार का हौर्न बजा दिया, जिसे सुन कर कमली उठ खड़ी हुई और अपना ब्रीफकेस उठा कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’’

नीतेश चुपचाप उसे जाता हुआ देखता रह गया. वह चाहता तो उसे रोक भी सकता था, फिर भी उस ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि जिस कमली ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने की गरज से उस की भावनाओं को भी नहीं समझा, उसे रोकने से भी क्या फायदा. ‘‘नीतेश…’’ कमली की आवाज ने नीतेश की यादों की कड़ी को तोड़ दिया. ऐसा लगा, जैसे 15 साल पहले मिले जख्म फिर से हरे हो गए, जिन की टीस को वह बरदाश्त नहीं कर पाया और चुपचाप वहां से उठ कर जाने लगा.

कमली ने मायूस हो कर कहा, ‘‘नीतेश, जो जख्म मैं ने तुम्हें दिए हैं, मैं उन की दवा तो नहीं बन सकती, लेकिन इतना जरूर है कि बेवफाई का जो जहर मैं ने तुम्हारी जिंदगी में घोला था, उस की कड़वाहट से मेरा वजूद जरूर कसैला हो चुका है.’’ ‘‘तुम ने ठीक ही कहा था नीतेश कि अमीरजादों के पास धनदौलत और ऐश करने की चीजें तो होती हैं, लेकिन प्यार करने वाला दिल नहीं होता. काश, उस समय मैं तुम्हारी बात मान लेती और अपनी इच्छाओं को काबू कर पाती, तो आकाश जैसा धोखेबाज, चालबाज और मक्कार इनसान मेरी जिंदगी बरबाद नहीं कर पाता. वह मुझे बड़ेबड़े सपने दिखा कर तब तक मेरी जिंदगी से खेलता रहा, जब तक मुझ से उस का दिल नहीं भर गया. इस के बाद उस ने मुझे उस दलदल में धकेलने की कोशिश की, जहां औरत मर्दों का दिल बहलाने वाला खिलौना बन कर रह जाती है. लेकिन मैं उस के नापाक इरादों को भांप गई और उस के चंगुल से निकल आई.’’

‘‘यहां आ कर मैं एक अनाथ आश्रम में गरीब और बेसहारा बच्चों की देखभाल करने लगी, क्योंकि इस के अलावा मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी. तुम्हारे पास आने के सारे हक मैं पहले ही खो चुकी थी, इसलिए तुम्हारे पास आने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई.’’ ‘‘मैं जीना नहीं चाहती थी, पर यही सोच कर अब तक जिंदा थी कि कभी तुम से मुलाकात होगी, तो तुम से माफी मांग कर मरूंगी. तुम चाहते, तो मुझे आकाश के साथ जाने से रोक सकते थे. मेरे साथ मारपीट भी कर सकते थे, पर तुम ने ऐसा नहीं किया. चुपचाप अपनी दुनिया को लुटता हुआ देखते रहे, सिर्फ मेरी खुशी के लिए.

‘‘नीतेश, मैं ने तुम्हारी हंसतीखेलती दुनिया को बरबाद किया है, हो सके तो मुझे माफ कर देना.’’ नीतेश ने ज्यादा बात नहीं की, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, क्या करे. वह खुद कमली के जाने के बाद अकेला था, पर उसे मालूम न था कि कमली पर भरोसा करा जा सकता है. उस ने उठ कर कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. फिर आऊंगा, तब बात करेंगे.’’

कमली ने कहा, ‘‘चलो, मैं आटोस्टैंड तक छोड़ आती हूं. मुझे लौटते हुए कुछ खरीदना भी है.’’ दोनों चाल से बाहर आए. नीतेश का ध्यान कमली की बातों में था और उस ने देखा ही नहीं कि बाएं से एक बस तेजी से आ रही है. वह बस उसे कुचल देती कि कमली ने उसे अपनी ओर खींच लिया. उस की जान बच गई, पर कमली को दाएं से आते एक आटो ने जोर से टक्कर मार दी.

यह देख नीतेश घबरा गया और तुरंत उसे अस्पताल ले गया. कई घंटों की मेहनतमशक्कत के बाद डाक्टरों ने कमली को खतरे से बाहर बताया, तो नीतेश ने राहत की सांस ली. इन घंटों में वह कमली के पास बैठा यही सोचता रहा कि जितनी गुनाहगार कमली है, उतना ही गुनाहगार वह खुद भी है. क्योंकि कमली तो दुनिया की भीड़ में भटक गई थी, लेकिन उस ने भी तो उसे सही रास्ता नहीं दिखाया. हो सकता है, उस समय वह उसे आकाश के पास जाने से रोक लेता, तो शायद आज कमली को घर छोड़ने जैसा काम करने की जरूरत ही न होती.

हलकी सी कराह के साथ कमली ने आंखें खोलीं, तो नीतेश ने उस से कहा, ‘‘अब कैसा महसूस कर रही हो?’’ ‘‘तुम ने मुझे क्यों बचाया? मुझे मर जाने दिया होता.’’

‘‘पगली कहीं की. एक गलती के बाद दूसरी गलती. यह कहां की समझदारी है. अरे, अपने बारे में नहीं तो कम से कम मेरे बारे में तो सोचा होता.’’ नीतेश की इस बात पर कमली हैरान सी आंखें फाड़ कर उसे देखने लगी. उसे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए नीतेश ने कहा, ‘‘हां कमली, तुम से मिलने के बाद और तुम्हारी सचाई जानने के बाद तो मैं ने भी जीने का मन बना लिया.’’

इतना सुनते ही कमली खुद को रोक नहीं पाई और नीतेश से लिपट कर सिसक पड़ी.

शक्ति प्रदर्शन

विजयकांत जब अपने बैडरूम में घुसा, तो रात के 10 बज रहे थे. उस की पत्नी सीमा बिस्तर पर बैठी टैलीविजन पर एक सीरियल देख रही थी. विजयकांत को देखते ही सीमा ने टैलीविजन की आवाज कम करते हुए कहा, ‘‘आप खाना खा लीजिए.’’

‘‘मैं खाना खा कर आ रहा हूं. मीटिंग के बाद कुछ दोस्त होटल में चले गए थे. कल गांधी पार्क में शक्ति प्रदर्शन का प्रोग्राम होगा. उसी के बारे में मीटिंग थी. कल देखना कितना जबरदस्त कार्यक्रम होगा. पूरे जिले से पार्टी के पांचों विधायक अपने दलबल के साथ यहां गांधी पार्क में पहुंचेंगे.’’ ‘‘चुनाव आने वाले हैं, इसीलिए प्रदेश सरकार ने प्रदेश में शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम शुरू कराया है, ताकि इतने जनसमूह को देख कर विरोधी दलों के हौसले पस्त हो जाएं. जनता हमारी ताकत देख कर अगली बार भी हमारी सरकार बनवाए,’’ विजयकांत ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा.

सीमा ने चैनल बदल कर खबरें लगाते हुए कहा, ‘‘आप का कार्यक्रम कितने घंटे का रहेगा?’’ ‘‘11 बजे से 3 बजे तक,’’ विजयकांत ने टैलीविजन की ओर देखते हुए कहा.

सीमा चुप रही. विजयकांत ने सीमा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘कब तक सुना रही हो खुशखबरी? डाक्टर ने कब की तारीख दे रखी है?’’ ‘‘बस, 5-7 दिन ही बाकी हैं,’’ सीमा बोली.

‘‘हमें यह खुशी कई साल बाद मिल रही है. बेटा ही होगा, क्योंकि डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने जांच कर के बता दिया था कि पेट में बेटा है. मैं ने तो उस का नाम भी पहले ही सोच लिया, ‘कमलकांत’,’’ विजयकांत खुश हो कर कह रहा था. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. उस ने स्क्रीन पर नाम पढ़ा, माधुरी वर्मा. वह बोल उठा, ‘‘कहिए मैडम, कैसी हो? मातृ शक्ति से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है, इसलिए आप को भी अपने महिला मोरचा की ओर से भरपूर शक्ति प्रदर्शन करना है, क्योंकि आप पार्टी की महिला मोरचा की नगर अध्यक्ष हैं. आप के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.’’

‘सो तो है. एक बात है, जिस के लिए फोन किया है,’ उधर से आवाज आई. ‘‘कहिए?’’ विजयकांत बोला.

‘आज शाम हमारी पार्टी की एक सदस्या के साथ एक सिपाही ने बेहूदा हरकत कर दी. उस ने मुझे मोबाइल पर सूचना दी, तो मैं ने थाना चंदनपुर के इंस्पैक्टर को बताया, लेकिन उस ने ढंग से बात ही नहीं की.’ ‘‘मैडम, इस इंस्पैक्टर का बुरा समय आ गया है. अरे, वह तो पुलिस इंस्पैक्टर ही है, हम तो एसपी और डीएम की भी परवाह नहीं करते. आज हमारी सरकार है, हमारे हाथ में शक्ति है. हम जिस अफसर को जहां चाहें फिंकवा सकते हैं.

‘‘कमाल है मैडम, आप सत्तारूढ़ पार्टी में होते हुए भी हमारे इन नौकरों से परेशान हुई हो. आप कहिए, तो मैं अभी आप के साथ चल कर उस इंस्पैक्टर को लाइन हाजिर और सिपाही को संस्पैंड करा दूं?’’ ‘कल का प्रोग्राम हो जाने दो, परसों इन दोनों का दिमाग ठीक कर देंगे,’ उधर से आवाज आई.

‘‘मैडम, आप जरा भी चिंता न करें. अभी तो आप को भी राजनीति की बहुत ऊंचाई तक जाना है. अब आप आराम करें, गुडनाइट,’’ विजयकांत ने कहा और मोबाइल बंद कर के सीमा की ओर देखा. वह सो चुकी थी. विजयकांत की उम्र 40 साल थी. वह सत्तारूढ़ पार्टी का नगर अध्यक्ष था. रुपएपैसे की उसे चिंता न थी. उसी के दम पर ही वह नगर अध्यक्ष बना था.

2 मंत्री उस के रिश्तेदार थे. विजय ऐंड कंपनी के नाम से शहर में उस का एक बड़ा सा दफ्तर था, जहां फाइनैंस व जमीनजायदाद की खरीदबिक्री का काम होता था. उस ने एक गैरकानूनी कालोनी तैयार कर करोड़ों रुपए बना लिए थे. विजयकांत की पत्नी सीमा खूबसूरत और कुशल गृहिणी थी. उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

अजयकांत उस का छोटा भाई था, जिस ने पिछले साल एमबीए किया था. वह कुंआरा था. उस के रिश्ते आ रहे थे, पर वह अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस का कहना था कि पहले कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, बाद में शादी कर लेगा. वह विजय ऐंड कंपनी में मैनेजर के पद पर बैठ कर सारा कामकाज देख रहा था. विजयकांत की अम्मांजी की उम्र 65 साल थी. इतनी उम्र में भी वे बहुत चुस्त थीं. वे भी एक कुशल गृहिणी थीं. उन्हें अपना खाली समय समाजसेवा में बिताना पसंद था. तकरीबन 7 साल पहले विजयकांत, उस के पिता महेशकांत, अम्मांजी अपने 5 साला पोते राजू के साथ कार में जा रहे थे. कार विजयकांत ही चला रहा था. एक साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में कार एक पेड़ से टकरा गई थी. इस हादसे में पिता महेशकांत व बेटे राजू की मौके पर ही मौत हो गई थी.

इस हादसे से उबरने में उन सभी को काफी समय लग गया था. 2 साल पहले विजयकांत को जब पता चला कि सीमा मां बनने वाली है, तो उस ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के यहां जा कर जांच कराई. पता चला कि पेट में बेटी है, तब उस ने सीमा को साफ शब्दों में कह दिया था, ‘मुझे बेटी नहीं, बेटा चाहिए.’

उस के सामने सीमा व अम्मांजी की बिलकुल नहीं चली थी. सीमा को मजबूर हो कर बच्चा गिराना पड़ा था. अब फिर सीमा पेट से हुई थी. पहले ही जांच करा कर पता कर लिया था कि पेट में पलने वाला बच्चा बेटा ही है.

अगले दिन नाश्ता करने के बाद विजयकांत ने अजयकांत से कहा, ‘‘मैं नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद के यहां पहुंच रहा हूं. वहीं से हमें इकट्ठा हो कर जुलूस के रूप में गांधी पार्क पहुंचना है. तुम समय पर दफ्तर पहुंच जाना. आज शक्ति प्रदर्शन का यह बहुत बड़ा कार्यक्रम है. इस से विरोधी दलों की भी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.’’ अजयकांत ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं भी थोड़ी देर बाद गांधी पार्क में पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना. मैं मंच पर ही मिलूंगा,’’ विजयकांत ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया. कुछ देर बाद अजयकांत भी दफ्तर पहुंच गया. तकरीबन एक घंटे बाद कमरे में बैठी सीमा को प्रसव का दर्द होने लगा. उस ने अम्मांजी को पुकारा.

आते ही अम्मांजी ने सीमा का चेहरा देखते हुए कहा, ‘‘लगता है, अभी नर्सिंग होम जाना पड़ेगा. तुम बैठो, मैं जाने की तैयारी करती हूं. तुम ऐसा करो कि विजय को फोन कर दो, आ जाएगा,’’ कह कर अम्मांजी कमरे से चली गईं. सीमा ने विजयकांत को मोबाइल पर सूचना देनी चाही. घंटी जाने की आवाज सुनाई देती रही, पर जवाब नहीं मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला.

अम्मांजी ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘विजय से बात हुई क्या? क्या कहा उस ने? कितनी देर में आ रहा है?’’ ‘‘अम्मांजी, घंटी तो जा रही है, लेकिन वे मोबाइल नहीं उठा रहे हैं. जुलूस के शोर में उन को पता नहीं चल पा रहा होगा.’’

‘‘अजय को फोन मिला दो. वह दफ्तर से गाड़ी ले कर आ जाएगा,’’ अम्मांजी ने कहा. सीमा ने तुरंत अजयकांत को फोन मिला दिया. उधर से आवाज आई, ‘हां भाभीजी, कहिए?’

‘‘तुम गाड़ी ले कर घर आ जाओ. अभी नर्सिंग होम चलना है. तुम्हारे भैया से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.’’ ‘मैं अभी पहुंचता हूं. एक मिठाई का डब्बा लेता आऊंगा. वहां सभी का मुंह मीठा कराया जाएगा.’

‘‘वह बाद में ले लेना. पहले तुम जल्दी से यहां आ जाओ.’’ ‘बस, अभी पहुंच रहा हूं,’ अजयकांत ने कहा.

अम्मांजी ने एक बैग में कुछ जरूरी सामान रख लिया. तभी घरेलू नौकरानी कमला रसोई से निकल कर आई और बोली, ‘‘अम्मांजी, घर की आप जरा भी चिंता न करना. बस, जल्दी से बहूरानी को अस्पताल ले जाओ.’’

‘‘हां कमला, जरा ध्यान रखना. मैं तुझे खुश कर दूंगी. सोने की चेन, कपड़े, मिठाई सब दूंगी. इतने सालों से हमारी सेवा जो कर रही है,’’ अम्मांजी ने कहा. कुछ ही देर में अजयकांत गाड़ी ले कर घर आ गया.

‘‘अब जल्दी चलो, देर न करो. सीमा, तुम गाड़ी में बैठो,’’ कहते हुए अम्मांजी ने कमला की ओर देखा, ‘‘कमला, ठीक से ध्यान रखना. घर पर कोई नहीं है. पूरा घर तेरे ऊपर छोड़ कर जा रही हूं. कोई बात हो, तो हमारे मोबाइल की घंटी बजा देना.’’ ‘‘आप बेफिक्र हो कर जाओ अम्मांजी. बहुत जल्द मुझे भी फोन पर खुशखबरी सुना देना,’’ कमला ने खुशी से कहा.

कार में पीछे की सीट पर अम्मांजी व सीमा बैठ गईं. अजयकांत कार चलाने लगा. बच्चा होने का दर्द सीमा के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. कार चलाते हुए अजयकांत देख रहा था कि आज सड़क पर कुछ ज्यादा ही रौनक दिखाई दे रही है. ट्रैक्टरट्रौली, आटोरिकशा सड़कों पर दौड़े जा रहे थे. इन में लदे हुए लोग पार्टी के झंडे हाथों में लिए जोरदार आवाज में नारे लगा रहा थे, ‘जन विकास पार्टी, जिंदाबाद.’

अजयकांत रेलवे का पुल पार कर जैसे ही आगे बढ़ा, तो वहां जाम लगा हुआ था. उसे कार रोकनी पड़ी. सामने पटेल चौक था, जहां से पार्टी के एक विधायक का जुलूस जा रहा था. एक ट्रक पर ऊपर की ओर फूलमालाओं से लदा हुआ विधायक जनता की ओर हाथ हिलाहिला कर अभिवादन स्वीकार कर रहा था और कभी खुद भी हाथ जोड़ रहा था. उस के बराबर में पार्टी के दूसरे पदाधिकारी बैठे और कुछ खड़े थे.

कुछ के गले में फूलमालाएं थीं. ट्रक में पीछे लोग लदे हुए थे. ट्रक पटेल चौक में रुक गया. विधायक खड़ा हो कर नमस्कार करने लगा. कार में पीछे बैठी अम्मांजी ने पूछा, ‘‘यह किस पार्टी का जुलूस है? नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद का है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, यह तो जीवनदास का है, जो रामगढ़ का विधायक है. हो सकता है कि राजेश्वर प्रसाद का जुलूस गांधी पार्क में पहुंच गया हो या किसी दूसरे रास्ते से जा रहा हो. भैया भी तो राजेश्वर प्रसाद के बराबर में बैठे होंगे. भैया से फोन पर बात नहीं हो सकती. जुलूस में शोर ही इतना है,’’ अजयकांत ने जवाब दिया. कुछ ही देर में अजयकांत की कार के बहुत पीछे तक जाम लग चुका था. पैदल निकलने का रास्ता भी न बचा था. कोई अपनी जगह से हिल भी न सकता था. सभी को लग रहा था, मानो किसी चक्रव्यूह में फंस गए हों. कोई मन ही मन नेताओं को कोस रहा था, कोई जोरदार आवाज में गालियां दे रहा था.

सीमा दर्द को सहन करने की भरसक कोशिश कर रही थी. अम्मांजी ने सीमा के चेहरे की ओर देखा, तो मन ही मन तड़प उठीं. उन्होंने अजयकांत से कहा, ‘‘ओह, बहुत देर लगा दी इस जुलूस ने. पता नहीं, कितनी देर और लगाए?’’

‘‘लगता है, 10-15 मिनट और लग जाएंगे. अगर मुझे पता होता कि यहां ऐसा जाम लग जाएगा, तो मैं इस तरफ गाड़ी ले कर ही न आता,’’ अजयकांत ने दुखी मन से कहा. ‘‘अजय, तू यहां से जल्दी कार निकालने की कोशिश कर.’’

‘‘कैसे निकलें अम्मां? सभी तो फंसे खड़े हैं. सभी परेशान हैं, पर कोई कुछ नहीं कर सकता?’’ ‘‘सब की बात अलग है. तेरी भाभी की हालत ठीक नहीं है. किसी पुलिस वाले से बात कर. हो सकता है कि वह हमारी गाड़ी निकलवा दे.’’

अजयकांत ने देखा कि हर ओर भीड़ ही भीड़, मानो पूरे शहर का जनसमूह यहां आ कर इकट्ठा हो गया हो. वह बोल उठा, ‘‘वहां पटेल चौक में खड़े हैं पुलिस वाले. वहां तक पैदल जाना क्या आसान है? और फिर वे हमारी गाड़ी कैसे निकालेगी? आसमान में तो कार उड़ नहीं सकती.’’ ‘‘तो अब क्या होगा?’’ अम्मांजी ने घबराई आवाज में कहा.

अजयकांत चुप रहा. उस के पास कोई जवाब न था, जबकि वह जानता था कि देर होने से गड़बड़ भी हो सकती है. उस ने तो सपने में भी न सोचा था कि वह आज इस तरह जाम में फंस जाएगा. अजयकांत की कार के पीछे खड़ा एक रिकशे वाला बराबर में खड़े टैंपो ड्राइवर से कह रहा था, ‘‘इन नेताओं ने हमारे देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. जब देखो शहर में जुलूस निकाल कर जाम लगा देते हैं. हम गरीबों को मजदूरी भी नहीं करने देते. एक सवारी मिली थी, जाम के चलते वह भी बिना पैसे दिए चली गई.’’

‘‘अरे यार, इन नेताओं के पास तो हराम की कमाई आती है. इन्हें कौन सी मेहनतमजदूरी कर के बच्चे पालने हैं. आजकल तो जिसे देखो, खद्दर का लंबा कुरतापाजामा पहन कर हाथ में मोबाइल ले कर बहुत बड़ा नेता बना फिरता है. मेरे टैंपो में भी 4-5 ऐसे ही उठाईगीर नेता बैठे थे. वे भी ऐसे ही उतर कर चले गए, मानो उन के बाप का टैंपो हो,’’ टैंपो ड्राइवर ने बुरा सा मुंह बना कर कहा. अजयकांत पिंजरे में फंसे किसी पंछी की तरह मन ही मन तड़प उठा.

जाम खुलने में एक घंटा लग गया. अजयकांत ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना को मोबाइल पर सूचना दे दी थी कि वे जल्दी ही पहुंच रहे हैं. नर्सिंग होम में कार रोक कर अजयकांत तेजी से डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के पास पहुंचा. वे उस के साथ बाहर आईं. कार में सीमा निढाल सी हो चुकी थी.

अजयकांत ने कहा, ‘‘पटेल चौक पर जाम में फंसने के चलते हमें इतनी देर हो गई.’’ ‘‘यह जाम आप की पार्टी के शक्ति प्रदर्शन की वजह से लगा था. इस जाम से पता नहीं कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा होगा. खैर, आप चिंता न करें, मैं देखती हूं,’’ डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने कहा.

सीमा को स्ट्रैचर पर लिटा कर औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. कुछ देर बाद डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना बाहर निकलीं और दुख भरी आवाज में बोलीं, ‘‘आप लोगों के आने में देर हो गई. अम्मांजी, आप की बहू सीमा और पोता बच नहीं सके.’’

अम्मांजी के मुंह से दुखभरी चीख निकली. अजयकांत फूटफूट कर रोने लगा. तकरीबन 3 बजे अजयकांत के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने मोबाइल में नाम देखा, विजयकांत. अजयकांत के मुंह से आवाज नहीं निकली.

‘‘हैलो अजय, अभीअभी कार्यक्रम खत्म हुआ है. मैं ने मोबाइल चैक किया, तो सीमा और तुम्हारी बहुत मिस काल थीं. मुझे पता नहीं लग पाया. कोई बहुत जरूरी बात थी क्या?’’ उधर से विजयकांत की आवाज सुनाई दी. अजयकांत कुछ कह नहीं पाया और रोने लगा.

‘‘अजय… क्या हुआ?’’ उधर से विजयकांत की आवाज में चिंता का भाव था. अम्मांजी ने अजय से मोबाइल ले कर दुखी लहजे में कहा, ‘‘विजय, सब बरबाद हो गया. सीमा और मेरा पोता बच नहीं पाए, तुम्हारे शक्ति प्रदर्शन की बलि चढ़ गए.’’

‘‘ओह नहीं… यह क्या कह रही हो अम्मां? मैं अभी पहुंच रहा हूं नर्सिंग होम,’’ विजयकांत बोला. कुछ ही देर बाद 2 कारें नर्सिंग होम के बाहर रुकीं. कार से विधायक राजेश्वर प्रसाद, विजयकांत और 5-6 नेता बाहर निकले.

सभी उस कमरे में पहुंचे, जहां सीमा व नवजात बेटे की लाश थी. विजयकांत को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सीमा उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी है. उस ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया और सीमा को देखता रहा.

जिस शक्ति प्रदर्शन को वह एक यादगार मान कर खुश हो रहा था, वहीं उस के लिए दुखद यादगार बन गया. उस की अपनी सरकार है. हजारों लोग उस के साथ हैं. उस के पास इतनी ताकत होते हुए भी वह आज बुरी तरह टूट चुका था. आज के प्रदर्शन ने न जाने कितने लोगों को नुकसान पहुंचाया होगा? हो सकता है कि किसी दूसरे के साथ भी ऐसी ही दुखद घटना हुई हो.

जिस्म का मुआवजा

जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’ लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.

वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके. उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?

औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं. घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.

अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और समझ कहां होती है. पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब समझने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न समझ में आने वाली बातें भी समझ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.

15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…

मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी. मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’

कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मुझे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया. कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बोझ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.

मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई. बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.

मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली. गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए. वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.

उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें. मगनाबाई को कहा गया था कि वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी. तभी मगनाबाई के विचारों को झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?

क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था? चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था. यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…

बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को झकझोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’ मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मुझ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा. ‘‘चला तो तुझ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’

लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं. डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.

भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’

प्यार का चसका : अमित और रंभा ने की मस्ती

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

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