दबंगों के वर्चस्व की लड़ाई : भाग 1

4 नवंबर, 2019 की सुबह से ही अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (स्पैशल न्यायाधीश) बद्री विशाल पांडेय की अदालत के बाहर भारी गहमागहमी थी. अदालत परिसर पुलिस छावनी में बदल गया था. लग रहा था कि कोई बड़ा फैसला होने वाला है.

यही सच भी था. 23 साल पहले 13 अगस्त, 1996 को शाम 7 बजे सिविल लाइंस थानाक्षेत्र के पैलेस सिनेमा हाल और कौफी शौप के बीच समाजवादी पार्टी के झूंसी विधानसभा के बाहुबली विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित, उन के चालक गुलाब यादव और राहगीर कमल कुमार दीक्षित की एके-47 से गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.

इस घटना में पंकज कुमार श्रीवास्तव व कल्लन यादव भी घायल हुए थे. कल्लन यादव की मृत्यु गवाही शुरू होने से पहले ही हो गई थी.

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बाहुबली विधायक जवाहर यादव के बड़े भाई और चश्मदीद गवाह सुलाकी यादव ने थाना सिविल लाइंस में मंझनपुर (तब इलाहाबाद लेकिन अब कौशांबी) के रहने वाले करवरिया बंधुओं रामचंद्र मिश्र, श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला, कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूर्यभान करवरिया के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

इंसपेक्टर आत्माराम दुबे ने यह मुकदमा धारा 147, 148, 149, 302, 307, 34 भादंवि व क्रिमिनल ला (संशोधन) एक्ट के तहत दर्ज किया था. न्यायाधीश बद्री विशाल पांडेय इसी केस का फैसला सुनाने वाले थे.

हत्या के बाद आरोपी कपिलमुनि करवरिया बसपा से फूलपुर के सांसद, उदयभान करवरिया भाजपा से बारा विधानसभा से विधायक और सूर्यभान करवरिया एमएलसी चुने जा चुके थे, इसलिए यह मामला हाईप्रोफाइल बन गया था.

बहरहाल, अदालत सुबह से छावनी में तब्दील थी. सुरक्षा के लिहाज से अदालत परिसर को 2 सैक्टरों में बांट दिया गया था. सभी गेटों पर पीएसी का कड़ा पहरा था. यहां तक कि वादियों को भी गहन जांचपड़ताल के बाद ही परिसर में आने दिया गया.

उधर दंगा नियंत्रण वाहनों और आंसू गैस गन ले कर जवान मुस्तैद थे. कर्नलगंज के साथसाथ अतरसुइया, मुट्ठीगंज, जार्जटाउन, खुल्दाबाद, दारागंज समेत यमुनापार व गंगापार के भी कई थानों की फोर्स को अदालत परिसर में लगा दिया गया था. कचहरी के मुख्य गेट पर रस्सा बांध कर बैरिकेडिंग कर दी गई थी. एसपी (सिटी) बृजेश कुमार और सीओ (बेरहना) रत्नेश सिंह गेट पर मोर्चा संभाले थे. सीओ (कर्नलगंज) सत्येंद्र प्रसाद तिवारी एडीजे-5 के कोर्ट के आसपास और इनर सेक्टर की कमान संभाल रहे थे.

प्रयागराज के नैनी जेल में बंद करवरिया बंधुओं कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया और उन के रिश्तेदार रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू अपराह्न पौने 2 बजे अदालत परिसर में लाए गए.

आरोपियों के परिसर में पहुंचते ही उन के समर्थकों की भारी भीड़ जमा हो गई थी. अभियुक्तों को अदालत कक्ष में ले जाना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था. जैसेतैसे एसपी (सिटी) बृजेश कुमार और सीओ रत्नेश सिंह ने चारों आरोपियों को पुलिस घेरे में ले कर एडीजे-5 के कक्ष तक पहुंचाया.

फैसला सुनाए जाने से पहले 31 अक्तूबर, 2019 को अभियोजन पक्ष के सरकारी वकील लल्लन सिंह यादव और बचावपक्ष के वकील ताराचंद गुप्ता के बीच तीखी बहस हुई थी.

आखिरी बहस के दौरान सरकारी वकील लल्लन सिंह यादव ने कहा था, ‘‘योर औनर, यह एक रेयरेस्ट औफ रेयर केस है. करवरिया बंधुओं को फांसी की सजा दी जाए. इस घटना में एके-47 जैसे स्वचालित असलहे का इस्तेमाल कर के भरे बाजार में घटना को अंजाम दिया गया, जिस में 3 लोग मारे गए. मरने वालों में एक राहगीर भी शामिल था. घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई थी. लोग भयभीत हुए और बाजार बंद हो गए थे.’’

बचावपक्ष के अधिवक्ता ताराचंद गुप्ता ने इस बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘सर, यह रेयरेस्ट औफ रेयर का मामला नहीं है. अभियुक्तों का यह पहला अपराध है. अभियुक्तों का इस से पहले का कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है. किस के हाथ में कौन सा असलहा था, इस का जिक्र प्राथमिकी में नहीं है. यह बात अदालत में 23 साल बाद पहली बार बताई गई, इसलिए उदारता बरतते हुए आरोपियों को कम से कम सजा दी जाए.’’

इस घटना में प्रयुक्त सफेद रंग की मारुति वैन को ले कर दोनों पक्षों के बीच बहस हुई. बचावपक्ष के अधिवक्ता ने अभियुक्तों के बचाव में दलील पेश की, ‘‘जिस मारुति वैन संख्या यूपी70-8070 से हमलावरों का आना बताया जा रहा है, उस वैन का इस घटना में इस्तेमाल ही नहीं हुआ. उस समय यह मारुति वैन सुरेंद्र सिंह के पिता के अंतिम संस्कार में शामिल लोग ले गए थे. फिर वह वैन घटनास्थल पर कैसे हो सकती है?’’

बाद में अभियोजन पक्ष के सरकारी अधिवक्ता लल्लन सिंह यादव ने अन्य गवाहों के साथ बहस की. बचावपक्ष की ओर से पेश किए गवाह छेदी सिंह से जब सरकारी वकील यादव ने मारुति वैन की बरामदगी को ले कर पूछताछ की तो उस का बयान विरोधाभासी निकला. गवाहों का कहना था कि घटना के समय वैन रसूलाबाद घाट गई थी. मगर इस का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया. जबकि घटना के कुछ ही देर बाद दर्ज कराई गई एफआईआर में मारुति वैन का नंबर यूपी70-8070 दर्ज किया गया था.

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बहरहाल, बचावपक्ष के अधिवक्ता चारों आरोपियों को बचा पाने में असफल रहे. अपने मुवक्किलों को बचाने के लिए उन्होंने 156 गवाह पेश किए थे, जबकि सरकारी वकील ने अदालत के सामने 18 गवाह पेश किए थे. दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस पूरी होने के बाद जज ने 4 नवंबर, 2019 को इस केस का फैसला सुनाने की तारीख तय कर दी थी. यह मामला क्या था और कैसे इतना चर्चित हुआ, जानने के लिए हमें 23 साल पीछे जाना होगा.

जवाहर यादव का किस्सा कोताह

32 वर्षीय जवाहर यादव उर्फ पंडित मूलत: उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के गांव खैरपाड़ा, थाना बक्शा के रहने वाले थे. उन के पिता भुल्लन यादव अपने तीनों बेटों सुलाकी यादव, जवाहर यादव और मदन यादव को ले कर इलाहाबाद आ गए और मजदूरी कर के परिवार का पालनपोषण करते थे. भुल्लन के तीनों बच्चे काफी छोटे थे.

किशोरावस्था में पहुंचते ही जवाहर यादव इलाहाबाद के नैनी थाना क्षेत्र के अरैल निवासी नामचीन अपराधी और शराब कारोबारी गुलाब मेहरा के संपर्क में आ गए. उन दिनों गुलाब मेहरा की नैनी में तूती बोलती थी. शराब कारोबार के साथसाथ वह गंगा बालू का धंधा भी करते थे.

आगे चल कर जवाहर यादव गुलाब मेहरा का सारा कारोबार देखने लगे. गुलाब मेहरा के ऊपर हत्या, बलात्कार, शराब तस्करी आदि के कई मुकदमे चल रहे थे. कई मामलों में गुलाब को सजा भी हो चुकी थी. उन्हीं दिनों गुलाब मेहरा की हत्या हो गई. गुलाब मेहरा के कत्ल के बाद जवाहर यादव जरायम की दुनिया में आगे बढ़ते गए.

अब तक जवाहर यादव शराब और बालू का कारोबार अकेले देखते थे. बाद के दिनों में उन के बड़े भाई सुलाकी यादव और साला रामलोचन यादव उन के साथ आ गए. भाई और साले के आ जाने से जवाहर यादव का धंधा और ज्यादा जम गया. जल्द ही जवाहर यादव गांव में दबंग युवकों में शुमार हो गए. उन्होंने आसपास के लोगों से मेलजोल बढ़ाया और शराब के धंधे में और तेजी से जुट गए. उस समय झूंसी में गंगा बालू के ठेकों में करवरिया बंधुओं और उन के लोगों का साम्राज्य स्थापित था. बालू के ठेकों को ले कर जवाहर यादव और करवरिया बंधुओं के बीच दुश्मनी हो गई.

शराब के धंधे से की गई अकूत काली कमाई और नौजवानों की टोली से जवाहर यादव बाहुबली बन गए. इसी दम पर जवाहर यादव ने बालू के ठेकों में हाथ डालना शुरू कर दिया. दोनों परिवारों में अनबन की खूनी लकीरों की शुरुआत यहीं से हुई थी. जवाहर यादव ने धीरेधीरे बालू के ठेकों में वर्चस्व जमाना शुरू कर दिया.

1989 के आम चुनावों से पहले जवाहर यादव ने किसी के माध्यम से समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद जवाहर यादव  की पौ बारह हो गई.

धीरेधीरे वह इलाहाबाद में मुलायम सिंह यादव के करीबी लोगों में शुमार हो गए. जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो जवाहर यादव ने राजनीति में जाने की ठान ली. धीरेधीरे उन्होंने झूंसी में अपनी सियासी जमीन तैयार की और 1991 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कुछ वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा.

जवाहर यादव को चुनाव में भले ही हार का मुंह देखना पड़ा था, लेकिन खुद का सियासी रसूख स्थापित करने में वह नहीं चूके. रसूख बढ़ते ही बालू के ठेकों में उन का दखल और बढ़ गया. बालू के ठेकों को ले कर करवरिया बंधुओं और जवाहर यादव के बीच दुश्मनी और गाढ़ी होती गई.

जवाहर यादव उर्फ पंडित की किस्मत के सितारे बुलंदियों पर थे. सन 1993 में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश में गठबंधन हुआ तो जवाहर यादव पहली बार झूंसी विधानसभा से विधायक चुने गए.

सत्ता की चाबी हाथ आई तो जवाहर यादव का सियासी रसूख तेजी से बढ़ने लगा. बताया जाता है कि उस समय इलाहाबाद की समाजवादी पार्टी की राजनीति जवाहर यादव के इर्दगिर्द ही घूमती थी.

जैसेजैसे विधायक जवाहर यादव का सियासी कद बढ़ा, वैसेवैसे करवरिया बंधुओं की परेशानियां बढ़ती गईं. जवाहर यादव को टक्कर देने के लिए करवरिया बंधुओं ने भी कमर कस ली थी. अब जवाहर यादव और करवरिया बंधुओं की दुश्मनी खुल कर सामने आ गई थी. दुश्मनी की वजह से आखिरकार जवाहर यादव को अपनी जान गंवानी पड़ी.

13 अगस्त, 1996 को जवाहर यादव अपने छोटे भाई सुलाकी और ड्राइवर गुलाब के साथ सिविल लाइंस में एक सभा करने जा रहे थे. उस वक्त शाम के 7 बज रहे थे. जवाहर ने पत्नी को फोन कर के कहा कि पूजा कर लो, मुझे आने में थोड़ी देर होगी.

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जैसे ही विधायक की गाड़ी सिविल लाइंस स्थित पैलेस सिनेमा हाल और कौफीहाउस के बीच पहुंची, तभी एक सफेद रंग की मारुति वैन और एक सफेद रंग की कार आड़ीतिरछी जवाहर यादव के वाहन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. जवाहर यादव जब तक कुछ समझ पाते, तब तक बदमाशों ने एके-47 राइफल से गोलियां बरसा दीं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दबंगों के वर्चस्व की लड़ाई

दबंगों के वर्चस्व की लड़ाई : भाग 2

इस हमले में विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित, ड्राइवर गुलाब यादव और राहगीर कमल कुमार दीक्षित की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के अलावा राहगीर पंकज कुमार श्रीवास्तव और कल्लन यादव को भी गंभीर चोटें आईं. बाद में पंकज की मौत हो गई थी. इस केस की गवाही शुरू हाने से पहले ही कल्लन यादव की मृत्यु भी हो गई थी.

नामजद लिखाई रिपोर्ट

एकमात्र जीवित बचे और घटना के चश्मदीद गवाह विधायक के भाई सुलाकी यादव ने थाना सिविल लाइंस में इस वारदात की नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई. नामजद लोगों के नाम थे कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्यामनारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी. यह केस भादंसं की धारा 147, 148, 149, 302, 307 और 7 सीएल एक्ट के तहत दर्ज किया था.

विधायक जवाहर यादव की हत्या की खबर सुन कर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव खुद उन के घर पहुंचे और परिवार के लोगों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. बाद में उन्होंने उन की पत्नी विजमा यादव को फूलपुर विधानसभा से टिकट दिया और वह जीत कर विधायक बन गईं.

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जवाहर यादव की मौत के बाद उन की सियासी विरासत उन की पत्नी विजमा को मिली. अब तक सिर्फ घर संभाल रहीं विजमा ने पति की विरासत को बखूबी संभाला और फूलपुर से 2 बार लगातार विधायक बनीं. कहानी आगे बढ़ाने से पहले करवरिया बंधुओं के बारे में भी जान लें—

57 वर्षीय कपिलमुनि करवरिया मूलरूप से कौशांबी जिले के चकनारा के रहने वाले हैं. तब तक जिला कौशांबी नहीं बना था और यह इलाका इलाहाबाद जिले में आता था. करवरिया प्रयागराज के थाना अतरसुइया के मोहल्ला कल्याणी देवी में रहते थे. करवरिया बंधु दोआबा की गलियों से निकल कर सियासतदां बने थे.

इन के बाबा जगतनारायण करवरिया ने समाज में रुतबा पाने के लिए 1962 में पहली बार सिराथू विधानसभा सीट (तब इलाहाबाद) से चुनाव लड़ा था. हालांकि वह चुनाव हार गए. बाद में उन की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई.

जगतनारायण करवरिया के 2 बेटे थे श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला और वशिष्ठ मुनि करवरिया उर्फ भुक्खल महाराज. पिता उन के बड़े बेटे श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला महाराज ने पिता की हत्या को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया.

श्याम नारायण ने सियासी कदम बढ़ाते हुए मंझनपुर विकास खंड से ब्लौक प्रमुख का चुनाव लड़ा. लेकिन चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.

इस के बाद भी श्याम नारायण करवरिया ने कई चुनाव लड़े. हर चुनाव में उन्होंने हार का सामना किया. बावजूद इस के वह हताश नहीं हुए. छोटे बेटे वशिष्ठ नारायण उर्फ भुक्खल महाराज ने अपनी किस्मत प्रयागराज से आजमाई और चुनावी मैदान में उतर गए. वह वशिष्ठ मुनि के नाम से कम और भुक्खल महाराज के नाम से ज्यादा मशहूर थे. बड़े भाई श्याम नारायण के मुकाबले भुक्खल महाराज ज्यादा गरम मिजाज थे. सियासत के साथसाथ आपराधिक दुनिया में भी उन की अच्छी पैठ थी. कौशांबी से इलाहाबाद तक भुक्खल महाराज के नाम की तूती बोलती थी. इसी दौरान वह इलाहाबाद दक्षिणी से विधानसभा चुनाव लडे़ और हार गए.

भुक्खल महाराज का मंझला बेटा उदयभान करवरिया दोनों भाइयों से अलग मिजाज का था. मिलनसार होने की वजह से समाज पर उस की अच्छी पकड़ थी. उस में जमीनी नेताओं के गुण थे, इसलिए जनता के बीच उस का कारवां बढ़ता गया.

वर्चस्व की लड़ाई

डिस्ट्रिक्ट कोऔपरेटिव बैंक का चुनाव था. उदयभान ने चुनाव में हाथ डाल दिया. जिले के कद्दावर नेता और पूर्व डिस्ट्रिक्ट कोऔपरेटिव बैंक के अध्यक्ष शिवसागर सिंह को पराजित कर के वह अध्यक्ष बन गए. उदयभान करवरिया अपने परिवार में पहले जनता के सिरमौर बने थे.

कपिलमुनि करवरिया ने साल 2000 में जिला पंचायत के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा तो जिला पंचायत अध्यक्ष की कुरसी उन की झोली में आ गिरी.

इलाहाबाद के राजनीतिक गलियारों में करवरिया बंधुओं की तूती बोलने लगी. दोआबा की गलियों से ले कर इलाहाबाद तक उन की हनक थी. उदयभान करवरिया ने इस का फायदा उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया और सन 2002 में बारा विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर विधायक बन गए.

इसी बीच विधायक उदयभान के छोटे भाई सूर्यभान करवरिया भी ताल ठोंक कर राजनीति के अखाड़े में कूद पड़े. उन्होंने समाजवादी पार्टी के बाहुबली कहे जाने वाले कद्दावर नेता हरिमोहन यादव को हरा कर सन 2005 में मंझनपुर ब्लौक प्रमुख की सीट छीन ली.

बाद में ब्लौक प्रमुख सूर्यभान करवरिया ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया. उस वक्त विधानसभा चुनाव होने वाले थे. सूर्यभान ने विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन हार का सामना करना पड़ा.

जिला पंचायत अध्यक्ष और बड़े भाई कपिलमुनि करवरिया को सूरजभान ने बसपा की सदस्यता दिलाई. करवरिया बंधुओं की सियासी ताकत को देखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने सन 2009 में बतौर ईनाम कपिलमुनि करवरिया को फूलपुर सीट से चुनाव लड़ाया. भुक्कल महाराज ने फूलपुर सीट जीत कर अपना दबदबा कायम रखा.

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किसी की मजाल नहीं थी कि करवरिया बंधुओं से आंख से आंख मिला सके. इसी राजनैतिक कवच का फायदा यह मिला कि विधायक जवाहर यादव हत्याकांड में नामजद आरोपी होने के बावजूद उन की गिरफ्तारी नहीं हुई.

बहरहाल, विधायक जवाहर यादव हत्याकांड की शुरुआती जांच सिविल लाइंस पुलिस ने की थी. घटना के एक हफ्ते बाद यानी 20 अगस्त, 1996 को भाजपा सांसद डा. मुरली मनोहर जोशी ने विवेचना बदलने के लिए पत्र लिखा.

जिस के बाद 28 अगस्त को इस केस की विवेचना सीबीसीआईडी इलाहाबाद को स्थानांतरित कर दी गई. वहां 3 साल तक विवेचना की फाइल धूल फांकती रही. अंतत: 12 फरवरी, 1999 को विवेचना इलाहाबाद सीबीसीआईडी से ले कर सीबीसीआईडी वाराणसी को सौंप दी गई. वहां भी जांच ठंडे बस्ते में पड़ी रही.

सवा 3 साल बाद वाराणसी से लखनऊ सीबीसीआईडी को यह केस स्थानांतरित कर दिया गया. 25 नवंबर, 2003 को सीबीसीआईडी लखनऊ ने पहली प्रोग्रेस रिपोर्ट अदालत में दाखिल की. 20 जनवरी, 2004 को लखनऊ सीबीसीआईडी ने अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. आरोप पत्र में कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू का नाम दर्ज किया गया था.

आरोप पत्र दाखिल होने के बाद करवरिया बंधु गिरफ्तारी पर रोक के लिए हाईकोर्ट की शरण में गए. 16 अगस्त, 2005 को हाईकोर्ट ने कपिलमुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी के खिलाफ मुकदमे पर रोक लगा दी. फलस्वरूप तीनों गिरफ्तारी से बच गए. आरोप पत्र प्रस्तुत होने के बाद काफी दिनों तक इस मुकदमे की काररवाई स्पैशल सीजेएम के न्यायालय में विचाराधीन रही.

पहली जनवरी, 2015 को उदयभान करवरिया ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. करवरिया बंधुओं को हाईकोर्ट से मिला 8 अप्रैल, 2015 तक का स्टे आर्डर समाप्त हो गया.

20 दिनों बाद यानी 28 अप्रैल, 2015 को कपिलमुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से सभी को जेल भेज दिए गया. इस दौरान श्याम नारायण करवरिया का देहांत हो चुका था.

जवाहर की पत्नी को आना पड़ा सामने

19 अक्तूबर, 2015 से विधायक जवाहर यादव हत्याकांड की गवाही शुरू हुई. नवंबर, 2018 में उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथों में आई. हत्यारोपी और पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया (भाजपा) ने केस की सुनवाई में हस्तक्षेप किया. चूंकि मुकदमा राज्य बनाम आरोपीगण था, इसलिए योगी सरकार ने इस मुकदमे को जनहित में वापस लेने का पत्र न्यायालय में दिया.

जैसे ही यह बात जवाहर यादव की पत्नी पूर्व विधायक विजमा यादव को पता लगी तो उन्होंने योगी सरकार के इस पत्र को चुनौती दी. इस के अलावा अपर सेशन जज रमेशचंद्र ने यह कहते हुए सरकार के पक्ष को खारिज कर दिया था कि तिहरे हत्याकांड में सुनवाई खत्म होने के समय केस वापस लिया जाना ठीक नहीं है.

सरकार ने निचली अदालत के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने भी अपर सेशन जज द्वारा दिए गए आदेश को बरकरार रखा और मामले की शीघ्र सुनवाई के आदेश दिए. इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान जेल जाने के बाद करवरिया बंधुओं की जमानत अरजी सभी न्यायालयों से खारिज हो गई थी.

साल 2015 से मामले की सुनवाई लगातार जारी रही. तब से करवरिया बंधु जेल में बंद हैं. पहली जुलाई, 2017 को जवाहर यादव उर्फ पंडित हत्याकांड में करवरिया बंधुओं के पक्ष में गवाही के लिए कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र को तलब किया था.

आखिर आ ही गई फैसले की घड़ी

31 अगस्त, 2019 को अदालत में इस बहुचर्चित केस की सुनवाई पूरी हुई और जज ने फैसला सुरक्षित रख लिया. न्यायाधीश बद्री विशाल पांडेय को 4 नवंबर, 2019 को करवरिया बंधुओं समेत जेल में बंद चारों आरोपियों को धारा 147, 148, 149, 302, 307, 34 भादंसं व 7 सीएल एक्ट के तहत फैसला सुनाना था.

फैसला सुनने के लिए अभियुक्तों की तरफ से उन के तमाम शुभचिंतक कोर्ट परिसर में मौजूद थे. करीब शाम 4 बजे न्यायाधीश बद्री विशाल पांडेय ने फैसला सुनाया. अपने फैसले में उन्होंने कहा कि कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों की बहस सुनी.

बचाव पक्ष के वकील अपने मुवक्किलों को बचा पाने में विफल रहे हैं. जबकि अभियोजन पक्ष के वकील चारों अभियुक्तों का दोष सिद्ध करने में सफल रहे.

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अभियुक्तगण कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया एवं रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू में से सभी अभियुक्तों को धारा 302, 149 भादंवि के तहत दोषी पाते हुए अदालत आजीवन कारावास एवं एकएक लाख रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाती है. अर्थदंड अदा न करने पर प्रत्येक अभियुक्त को 2-2 साल का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा.

अदालत ने अभियुक्तगण कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू में से प्रत्येक को आईपीसी की धारा 307, 149 के अपराध में दोषी पाते हुए 10-10 साल के कठोर कारावास एवं 50-50 हजार रुपए का जुरमाना देने की सजा सुनाई. जुरमाना अदा न करने पर प्रत्येक दोषी को 1-1 साल की अतिरिक्त सजा भुगतने के आदेश दिए.

अदालत ने अभियुक्तगण कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया एवं रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू में से प्रत्येक अभियुक्त को भादंसं की धारा 147 में दोषी सिद्ध होने पर 2-2 साल की कठोर सजा एवं 10-10 हजार रुपए का जुरमाना अदा करने की सजा सुनाई. फैसले में जुरमाना अदा न करने पर प्रत्येक अभियुक्त को 3-3 महीने के अतिरिक्त कारावास की सजा का प्रावधान था.

अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद करवरिया बंधुओं ने फैसले पर सवाल उठाए और कहा कि अदालत ने मैरिट के बजाए प्रोफाइल पर फैसला दिया है. वे लोग इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे और वहां उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा.

– कथा पीड़ित परिवार के बयानों और दस्तावेजों पर आधारित

आशिकी में उजड़ा आशियाना : भाग 3

पूछताछ में पता चला कि वह जख्मी व्यक्ति बीएसएनएल का जेटीओ है. जख्मी का डाक्टरों ने परीक्षण किया तो वह मृत पाया गया. प्रथमदृष्टया यह मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी. थाना शाहगंज के इंसपेक्टर अरविंद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने यह बात उच्चाधिकारियों को भी बता दी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मृतक को इमरजेंसी में लाने वाले मृतक के बड़े भाई सुशील वर्मा और उन का बेटा प्रशांत थे. पोस्टमार्टम के बाद जो रिपोर्ट आई, उस से पता चला कि वीरेंद्र की मौत चेहरे और छाती पर लगे जख्मों और पसलियों के टूटने से हुई थी. पसलियां किसी भारी चीज से तोड़ी गई मालूम होती हैं. संभवत: हत्या को एक्सीडेंट केस बनाने की कोशिश की गई थी. रिपोर्ट में गला दबाना भी बताया गया था.

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पूछताछ में सुशील ने पुलिस को बताया कि रात को उस की भाभी भावना का फोन आया कि वीरेंद्र किसी का फोन सुन कर घर से 7 हजार रुपए ले कर पैदल ही चले गए. जब वह नहीं लौटे तो उस ने उन्हें फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं की गई. फिर फोन स्विच्ड औफ हो गया. भावना ने आगे बताया था कि किसी परिचित ने 10 हजार रुपए मांगे थे, लेकिन घर में 7 हजार रुपए ही थे.

सुशील ने बताया कि भावना की बात सुनते ही वह अपने बेटे के साथ भाई को खोजने निकल गया. रात लगभग 3 बजे वीरेंद्र जख्मी हालत में घर से करीब 400 मीटर की दूरी पर दीप इंटर कालेज के पास खाली प्लौट के सामने मिले, जिन्हें वह गाड़ी में डाल कर ले आया.

पुलिस ने सुशील की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. सुशील ने पुलिस को बताया कि वीरेंद्र किसी को पैसे देने के लिए रात को एक बजे अकेले ही घर से निकले थे. लेकिन मौकाएवारदात पर पुलिस को कोई पैसा या मोबाइल नहीं मिला था.

मृतक की हत्या जिस तरीके से की गई थी, उसे देख कर लूट का मामला तो बिलकुल भी नहीं लग रहा था. यह बात सुशील के गले भी नहीं उतर रही थी, क्योंकि वीरेंद्र शाम के बाद कभी अकेले घर से नहीं निकलते थे.

पुलिस ने फूटफूट कर रो रही भावना से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस ने पति को अकेले रात में बाहर निकलने से मना किया था, पर वह नहीं माने और चले गए. भावना के हावभावों से पुलिस को शंका हो रही थी.

मामले की जांच का कार्य एसएसपी बबलू कुमार ने सीओ नम्रता श्रीवास्तव को सौंप दिया. शाहगंज थाने की टीम और सर्विलांस टीम को भी इस केस की जांच में लगाया गया. इसी के साथ हत्याकांड के खुलासे में एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन, प्रमोद और उन की टीम भी लग गई. एसपी (सिटी) खुद इंजीनियर हैं, सर्विलांस टीम में भी कई इंजीनियर थे.

पुलिस ने सब से पहले मृतक के एक नजदीकी रिश्तेदार से पूछताछ की. उस ने बताया कि भावना की कपिल नाम के एक युवक के साथ दोस्ती थी और कपिल का गहरा दोस्त था मनीष. 2 साल पहले कपिल की नौकरी दिल्ली नगर निगम में लग गई थी. वह अपने दोस्त मनीष के साथ किराए के कमरे में रहता है और मनीष का पूरा खर्च उठाता है.

अब पुलिस का फोकस नाजायज संबंधों पर ठहर गया. पुलिस ने कपिल और मनीष के बारे में जांच कर पता लगा लिया कि आगरा की पंचशील कालोनी में रहने वाला मनीष राम सिंह का बेटा है, जो एक फैक्ट्री में काम कर के परिवार पालता है. मनीष का एक छोटा भाई भी है.

पुलिस मनीष को दिल्ली से ले आई और उस से पूछताछ शुरू कर दी. उधर पुलिस की एक टीम पंचशील कालोनी और घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच कर रही थी. लेकिन कोहरे के कारण किसी सीसीटीवी कैमरे में कोई फोटो नहीं आ पाई थी, पर कालोनी के लोगों ने बताया कि 5 जनवरी, 2020 की रात में वीरेंद्र के घर पास एक कार देखी गई थी.

वीरेंद्र के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के फोन की आखिरी लोकेशन कालोनी में ही मिली. पुलिस को गुमराह करने के लिए हत्यारे ने फरजी नामपते पर एक सिम ली थी. साजिश को अंजाम देने के लिए उसी सिम से वीरेंद्र को काल की गई थी.

शक होने पर पुलिस ने भावना को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने मनीष और भावना से सख्ती से पूछताछ की तो उन के टूटने में ज्यादा देर नहीं लगी. इस के बाद कपिल को भी पुलिस दिल्ली से गिरफ्तार कर ले आई.

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पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पता चला कि नाजायज रिश्ते बरकरार रखने और अपनीअपनी खुशियां पाने के लिए उन्होंने हत्या की साजिश एक महीने पहले रची थी और उसे 4 जनवरी को अंजाम दिया था. अपनी खुशी और सुख पाने के लिए भावना इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने यह तक नहीं सोचा कि उस के इस कदम के बाद बच्चों का क्या होगा.

योजना के मुताबिक, 5 जनवरी, 2020 को कपिल अपने दोस्त दीपक की कार ले कर मनीष के साथ रात में आगरा पहुंचा. उस समय रात के करीब 12 बज चुके थे. भावना ने अपने घर का बाहरी दरवाजा खुला छोड़ दिया. दोनों अंदर आ गए. उस समय वीरेंद्र सो रहा था. कपिल ने तकिए से उस का मुंह और मनीष ने गला दबाया. भावना ने पति के पैर पकड़ लिए ताकि वह विरोध न कर सके.

जब वीरेंद्र ने छटपटाना बंद कर दिया तो तीनों ने मिल कर उसे कार में डाला और दीप इंटर कालेज के पास एक खाली प्लौट के सामने चार फुटा रोड पर डाल दिया. इस के बाद कई बार उस की लाश पर कार चढ़ाई, जिस से उस की पसलियां टूट गईं.

कोशिश की, लेकिन पुलिस को नहीं लगा एक्सीडेंट

बेशक कातिलों ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की, पर पुलिस की सूझबूझ से राज खुल ही गया. इश्क की मारी भावना का कोई ड्रामा काम नहीं आया.

हत्या के बाद कपिल और मनीष दिल्ली आए थे लेकिन उन दोनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई गई तो मनीष के फोन की लोकेशन घटनास्थल पर और फिर दिल्ली की पाई गई.

भावना ने फोन की काल डिटेल्स निकाली गई तो हत्या से पहले उस की कपिल से बात होने की पुष्टि हुई.

पुलिस ने 48 घंटे में इस हत्याकांड से परदा उठा दिया और तीनों आरोपियों भावना, कपिल और मनीष को गिरफ्तार कर 8 जनवरी, 2020 को पुलिस जब कोर्ट ले गई तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. तीनों को सुरक्षा घेरे में ले कर अदालत में पेश किया गया. जैसे ही अदालत ने उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए तो तीनों आरोपी रोने लगे.

अपने सुख के लिए पति नाम के कांटे को रास्ते से हटाने के लिए भावना ने गहरी चाल चली थी. भावना ने सोचा था कि विधवा हो जाने पर उसे सहानुभूति और प्रौपर्टी दोनों ही मिलेंगी, पर इस अपराध के लिए उसे मिली जेल. कुछ रिश्तेदारों और अपनों ने भावना से मुंह फेर लिया. अब उस के पास काली अंधी दुनिया के सिवाय कुछ नहीं है.

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भावना का बेटा 7वीं कक्षा में और बेटी 6ठी कक्षा में पढ़ती है. उन्हें नहीं मालूम कि मां ने उन्हें अनाथ क्यों किया. एक कातिल मां की इस कारगुजारी का बच्चों पर क्या असर होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. पर मां ने फिलहाल तो उन से उन के हिस्से की खुशियां छीन ही लीं.

आशिकी में उजड़ा आशियाना : भाग 1

मानव मन को समझना आसान नहीं है. इंसान कब किस को प्यार करने लगे और कब प्यार नफरत में बदल जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. ऐसा ही कुछ भावना के साथ भी हुआ. एक अच्छे और संभ्रांत परिवार की बेटी और बहू भावना कुछ ऐसा कर बैठेगी, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

कहते हैं, विनाश काल में इंसान की सकारात्मक सोच बंद हो जाती है. फिर समय की इस आंधी में सब कुछ तहसनहस हो जाता है. बिना सोचेसमझे भावना ने जो कदम उठाया, उस से कई जिंदगियां तबाह हो गईं और खुशियां मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गईं.

ताजनगरी आगरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जहां देशविदेश से पर्यटक आते हैं और शाहजहां मुमताज की यादगार मोहब्बत को नमन करते हैं. वहीं मोहब्बत की इस नगरी में खून से लथपथ आशिकी की अनगिनत कहानियां दफन हैं.

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आगरा के अशोक विहार में नाथूराम अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहे थे. उन के 3 बेटे थे सुशील, वीरेंद्र और नरेंद्र. नाथूराम सेना में सीनियर औडिटर थे. उन का बड़ा बेटा सुशील भी सेना में ही था. छोटा नरेंद्र पढ़ रहा था और मंझले बेटे वीरेंद्र की नौकरी पंजाब में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में लग गई थी. कुल मिला कर नाथूराम का अच्छा खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था.

लेकिन समय के चक्र के साथ जीवन में बदलाव आते रहते हैं. 14 साल पहले नाथूराम के मंझले बेटे वीरेंद्र की शादी गढ़ी भदौरिया निवासी ओमप्रकाश की बेटी भावना के साथ हुई थी. भावना की 2 बहनें शादीशुदा थीं और खुशहाल जीवन बिता रही थीं. इन का एक भाई था.

वीरेंद्र गंभीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था. उस की जिंदगी की गाड़ी ठीक चल रही थी. भावना ने कालांतर में आयुष और शुभि को जन्म दिया. सब कुछ ठीक था, भावना अपने पति और बच्चों के साथ खुश थी.

वीरेंद्र भी अपनी सरकारी नौकरी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अचानक कालचक्र अपनी धुरी पर उल्टा घूमने लगा. वीरेंद्र ने आगरा की पंचशील कालोनी में अपनी कोठी बनवाई. वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों को खुशहाल जीवन देना चाहता था.

करीब 3 साल पहले वीरेंद्र का तबादला आगरा हो गया वह अपने परिवार के साथ पंचशील कालोनी स्थित अपनी कोठी नंबर 12 में रहने लगा. वीरेंद्र बीएसएनएल में जूनियर इंजीनियर के पद पर था. उस की तैनाती आगरा के बिजली घर स्थित बीएसएनएल औफिस में थी. अपने पद के अलावा उस के पास एसडीओ का चार्ज भी था.

वीरेंद्र के पिता फौज की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. अपने औफिस जाने से पहले वीरेंद्र पिता के लिए खाना देने उन के अशोक विहार स्थित घर पर जाता था.

कालांतर में सुशील भी लांस नायक पद से रिटायर हो गए. जबकि नरेंद्र बीटेक के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. यानी सभी अपनेअपने काम में व्यस्त थे.

जिंदगी के रंगों को अचानक छुआ भावना की साड़ी ने

एक दिन वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों के साथ किसी शादी समारोह में गया. वहां भावना अचानक उस समय एक युवक से टकरा गई, जब दोनों प्लेट में खाना ले कर निकल रहे थे. युवक ने सौरी कहा. जवाब में भावना ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, भीड़भाड़ में ऐसा हो जाता है.’’

‘‘लेकिन आप की साड़ी में दाग लग गया है,’’ युवक ने विनम्रता से कहा.

‘‘दाग साड़ी पर ही तो लगा है, धुल जाएगा. बस जीवन पर नहीं लगना चाहिए.’’ भावना बोली.

युवक ने भावना को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी फिलौसफी है आप की मैडम, आप के लिए कुछ लाऊं?’’

भावना को युवक की विनम्रता पसंद आई. वह बोली, ‘‘हां, कुछ मीठा ले आइए.’’

युवक आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं?’’

‘‘मैं पंचशील कालोनी में रहती हूं,’’ भावना ने इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं, बच्चों ने कुछ खाया है या नहीं?’’ कह कर भावना वहां से चली गई.

वह युवक दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था. नाम था कपिल.

29 साल का कपिल एक रिटायर्ड अफसर का बेटा था. उस के पिता सूरजभान एफसीआई से रिटायर थे.  वह दिल्ली के अशोक विहार में रहते थे. उन का बड़ा बेटा देवेंद्र भी दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था, अत: कपिल ने देवेंद्र के पास रह कर ही पढ़ाई की थी.

कपिल शनिवार और रविवार की छुट्टियों में घर पर ही रहता था. नौकरी मिलने के बाद उस ने दिल्ली में किराए पर अलग कमरा ले लिया था. कपिल का दोस्त मनीष कपिल के साथ उस के कमरे में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. वह बीटेक पास कर चुका था और आगरा की पंचशील कालोनी स्थित अपने घर आनाजाना रहता था.

उस दिन शादी समारोह में कपिल और भावना की वह छोटी सी मुलाकात कुछ ऐसा गुल खिलाएगी, जिस में सब कुछ तबाह हो जाएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

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दिल्ली आने के बाद कपिल ने मनीष को बताया कि आगरा में शादी समारोह में उसे पंचशील कालोनी की एक महिला मिली थी, जिस से उस की बातचीत भी हुई थी. तुम तो पंचशील कालोनी में ही रहते हो, जरा पता लगाना कि कौन है.

मनीष ने ठहाका लगाया, ‘‘तूने मुझे क्या जासूस समझ रखा है? पंचशील में क्या वही एक औरत ही रहती है? अरे भाई, न नाम, न पता, इतनी बड़ी कालोनी में कैसे ढूंढेंगे उसे. वैसे उस औरत में ऐसा क्या है जो उसे तलाश कर उसे तुझ से मिलाना चाहिए.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बस जरा यूं ही. उस से एक बार फिर बात करने की इच्छा हो रही है.’’

‘‘ठीक है इस बार आगरा चलेंगे तो कालोनी के चक्कर लगाएंगे, शायद वह कहीं मिल जाए.’’ कह कर मनीष ने बात खत्म की.

भावना का पति वीरेंद्र व्यस्त अधिकारी था. उसे सुबह 10 बजे औफिस पहुंचना होता था और शाम 6 बजे घर लौटता था. सुबहशाम वह पिता को अशोक विहार स्थित घर जा कर खाना भी पहुंचाता था. कुल मिला कर भावना को लगता कि उस का पति आम पतियों की तरह उस की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता. फिर अचानक उस के जेहन में शादी समारोह में मिला वह युवक घूमने लगता था.

एक दिन अचानक फेसबुक पर भावना को एक फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. फोटो देख कर वह चौंकी. अरे यह तो वही युवक है. उस के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. उस ने खुद को आईने में निहारा और सोचा उस के चेहरे पर अभी भी कुछ ऐसा है, जो किसी युवक को आकर्षित कर सकता है.

साड़ी का रंग सोच में उतरने लगा

भावना जानती थी कि वह 39 साल की है और 2 बच्चों की मां भी. जबकि युवक काफी कमउम्र का था. समय काटने के लिए दोस्त बना लेने में कोई हर्ज नहीं है. सोच कर उस ने कपिल नाम के उस युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

कपिल बहुत खुश था, उसे मनचाही मुराद मिल गई थी. फेसबुक पर बात का सिलसिला शुरू हो गया, जो निकट भविष्य में कुछ और ही रंग लाने वाला था. चैटिंग के दौरान एक दिन कपिल ने भावना की एक फोटो पर लिख कर भेजा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं.’’

अपनी तारीफ सुन कर भावना का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने थैंक्स के साथ लिखा कि आज तक मेरी किसी ने तारीफ नहीं की.

उस दिन भावना देर तक सोचती रही कि उस ने वीरेंद्र के साथ शादी कर के गलती कर दी थी. पैसा ही सब कुछ नहीं होता. वह उसे कोमल भावनाओं से भरी पत्नी नहीं बल्कि मशीन की तरह इस्तेमाल करता है.

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आशिकी में उजड़ा आशियाना

आशिकी में उजड़ा आशियाना : भाग 2

वीरेंद्र के प्रति वितृष्णा के भाव मन में आ चुके थे. उस रात काम खत्म कर के जब वह पलंग पर आई तो वीरेंद्र एक फाइल देख रहा था. भावना ने कहा, ‘‘कभी अपनी बीवी के दिल की फाइल भी पढ़ लिया करो.’’

वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘बताओ, क्या है तुम्हारे दिल में?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि पत्नी क्या चाहती है?’’ वह बोली.

‘‘सब कुछ तो है तुम्हारे पास. खर्चे के लिए मैं पैसा भी बराबर देता हूं, जो जरूरत हो ले लो.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘मुझे जो चाहिए, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता. क्या तुम अपनी पत्नी की तारीफ में दो मीठे बोल भी नहीं कह सकते. बताओ क्या मैं सुंदर नहीं हूं?’’

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‘‘ओह तो यह बात है.’’ वीरेंद्र बोला, ‘‘कभी आईने में खुद को गौर से देखा है. 2 बच्चों की मां हो, उन का भी कुछ खयाल किया करो. तुम जैसी हो वैसी ही रहोगी, तारीफ करने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. अच्छा, अब बहुत रात हो गई है. चलो सो जाओ.’’

पति की बातें भावना को चुभ गईं. उस ने सोचा कि इस से अच्छा तो वह कपिल है जो उस की तारीफ करता है. धीरेधीरे कपिल उस के दिलोदिमाग पर छाने लगा. दोनों में चैटिंग तो होती ही थी दोनों ने फोन नंबर और अपना पता एकदूसरे को बता दिया. इस के बाद कभीकभी कपिल छुट्टी ले कर आगरा आने लगा. मौका देख कर वह भावना से भी मिलने लगा.

कपिल को यह बात अच्छी तरह पता चल चुकी थी कि पति और बच्चों के होते हुए भी भावना बिलकुल तनहा है. वह वीरेंद्र के साथ खुश नहीं है.

कभीकभी भावना कहती, ‘‘कपिल, यह जिंदगी एक जेल की तरह है और मैं खुद को आजीवन कारावास की सजा पाए हुए कैदी की तरह महसूस करती हूं.’’

‘‘तो फिर निकल जाओ न इस कैद से.’’ नादान कपिल ने सलाह दी.

‘‘मैं एमएससी पास हूं. कुछ कर के अपनी जिंदगी संवार सकती थी, पर पिता ने मुझे बोझ की तरह उतार फेंका. पढ़ाई के बाद कुछ भी मन का नहीं करने दिया और इस जंजाल में फंस गई. बच्चे पैदा कर के उन की आया बन जाओ और दिनरात घर के लोगों के लिए खाना पकाओ. बस, यही जिंदगी है मेरी.’’

भावना की खीझ और कुंठा उस के व्यक्तित्व को घेर रही थी और उस का नादान प्रेमी उन शोलों को हवा दे रहा था. दोनों इस बात से अनजान थे कि यदि ये शोले भड़क गए तो सब जल कर राख हो जाएगा.

भावना और कपिल के बीच नाजायज संबंध बन चुके थे. भावना खुद को कपिल की बांहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी. वह यह भूल गई थी कि वह उम्र में कपिल से बड़ी है और विवाह जैसे बंधन को अपवित्र कर एक बड़ा गुनाह कर रही है. लेकिन कपिल के प्रति उस की दीवानगी ने उस की सोच पर परदा डाल दिया था.

धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था और दीवानगी भरी मोहब्बत के बंधन और मजबूत हो रहे थे. भावना पति और बच्चों की परवाह किए बिना कुछ पाने की चाह में खतरनाक राह पर चली जा रही थी.

काश! वीरेंद्र ने स्थिति को संभाला होता

वीरेंद्र अभी तक इस खेल से अनजान था. बच्चों को भी कोई जानकारी नहीं थी, पर कोई भी गुनाह ज्यादा दिन तक नहीं छिप पाता. यह गुनाह भी नहीं छिप पाया.

एक दिन वीरेंद्र औफिस से कुछ जल्दी ही वापस आ गया. उस ने देखा कि कोई युवक अभीअभी उस के घर से बाहर निकला था. इस से पहले कि वह अपनी गाड़ी लौक कर के उसे पहचान पाता, वह चला गया.

वीरेंद्र ने डोरबैल बजाई तो भावना ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अरे तुम फिर वापस आ गए.’’

लेकिन सामने वीरेंद्र खड़ा था. पति को देखते ही भावना का चेहरा पीला पड़ गया. वीरेंद्र ने उस से पूछा, ‘‘कौन था वह?’’

‘‘कौन..? किस की बात कर रहे हो तुम?’’ वह बोली.

‘‘वही जो अभीअभी घर से निकल कर गया है.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, यहां से तो कोई नहीं निकला. तुम ने जरूर कहीं और  किसी को देखा होगा. चलो आओ, चाय बनाती हूं.’’ भावना ने बात संभालते हुए कहा.

लेकिन वीरेंद्र के दिल में शक का बीज पड़ चुका था. पिछले कुछ समय से उसे पत्नी का व्यवहार परेशान कर रहा था. अंदर आ कर उस ने देखा कि मेज पर बादाम, काजू की प्लेटें रखी थीं. भावना ने वीरेंद्र की नजरों को भांप लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा कि बच्चों के लिए कुछ बनाऊंगी, अभीअभी निकाले हैं. तुम खाओ, मैं चाय लाती हूं.’’ कह कर भावना किचन में चली गई.

वीरेंद्र को समस्या और उस के हल को खोजना था. पत्नी किस के साथ दोस्ती पाले हुए है, यह जानना बहुत जरूरी था. इस से पहले कि वीरेंद्र भावना का फोन चैक करता, भावना ने कपिल की दी हुई सिम फोन में से निकाल दी.

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भावना और कपिल के संबंधों की जानकारी वीरेंद्र को करीब डेढ़ साल बाद मिली, तब तक नाजायज संबंधों की बेल काफी बढ़ चुकी थी. इतना ही नहीं, बल्कि दोनों का संबंध खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका था.

इधर कपिल के पिता सूरजभान ने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी, लेकिन कपिल तय कर चुका था कि भावना ही उस की हमसफर बनेगी.

एक दिन उस ने मन की बात भावना को बताई तो वह चौंकी.

‘‘ये क्या कह रहे हो तुम? मैं तुम से उम्र में बड़ी हूं और 2 बच्चों की मां भी. ऐसे में मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे काफी बड़े हैं. उन्हें उन का बाप देखेगा. और रही उम्र की बात तो तुम्हारी उम्र से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम तलाक ले लो वीरेंद्र से.’’ कपिल ने साफ कहा.

‘‘ठीक है, मैं सोचूंगी.’’ भावना ने कहा.

इधर वीरेंद्र काफी डर गया था. क्योंकि भावना का रवैया पिछले कुछ दिनों से अच्छा नहीं था. वीरेंद्र जानता था कि वासना से पीडि़त बुद्धिहीन औरत कुछ भी कर सकती है. सुरक्षा के लिहाज से उस ने दरवाजों पर लोहे के जालीदार दरवाजे भी लगवा दिए पर वह यह भी जानता था कि खतरा कहीं बाहर नहीं बल्कि वह तो उस के घर में ही मौजूद है.

वीरेंद्र ने अपने कुछ खास परिचितों को बताया भी था कि वह इन दिनों खुद को खतरे में महसूस कर रहा है, पर खतरा कैसा है यह वह किसी को बता नहीं पाया. आखिर एक दिन वीरेंद्र को यह बात पता चल ही गई कि दिल्ली नगर निगम में काम करने वाले कपिल का उस की पत्नी के पास आनाजाना है. यह जान कर वह सन्न रह गया. समस्या को जान लेने के बाद उस का उपचार कैसे किया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

इधर कपिल इस बात पर जोर दे रहा था कि भावना जल्द से तलाक ले ले. लेकिन भावना जानती थी कि अगर उस ने वीरेंद्र से तलाक ले लिया तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी. उस ने साफ कह दिया कि तलाक तो नहीं ले सकती, कुछ और सोचो.

इधर वीरेंद्र ने भी तय किया कि वह पत्नी पर नजर रखेगा. इसलिए वह जबतब अचानक घर आ जाता. पति की इस हरकत से भावना का गुस्सा बढ़ गया. आए दिन दोनों में झगड़ा होता. दोनों बच्चे सहमे हुए रहने लगे.

एक दिन वीरेंद्र ने कहा कि भावना इस बार तुम अपना बर्थडे सेलिब्रेट करना, मैं तुम्हें एक अच्छा गिफ्ट दूंगा. वीरेंद्र ने ऐसा ही किया भी. उस ने पत्नी को एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट किया.

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इतना ही नहीं वीरेंद्र ने भावना के लिए कार भी खरीदी. उस ने सोचा कि शायद उस के व्यवहार से प्रभावित हो कर भावना सही रास्ते पर आ जाए और दोनों का वैवाहिक जीवन बिगड़ने से बच जाए. पर भावना पर आशिकी का नशा इतना चढ़ चुका था कि उतरने के लिए किसी बड़ी साजिश का इंतजार कर रहा था.

संदेह था वीरेंद्र की हत्या हुई

5 जनवरी, 2020 की रात 3 बजे आगरा के एस.एन. अस्पताल में 2 लोग एक व्यक्ति को जख्मी हालत में लाए. उन्होंने बताया कि वे लोग घायल को पहले साकेत कालोनी के प्रशांत अस्पताल ले गए थे. लेकिन उन्होंने भरती करने से इनकार कर दिया. तब वे उसे दिल्ली गेट स्थित पुष्पांजलि अस्पताल ले गए. लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे एस.एन. मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया है.

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2 भाइयों की करतूत

2 भाइयों की करतूत : भाग 1

12 दिसंबर, 2019 की सुबह तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर आवागमन शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने ईशन नदी पुल के नीचे एक महिला का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में पुल पर काफी भीड़ जमा हो गई. पुल पर लोग रुकते और झांक कर लाश देखने की कोशिश करते और चले जाते.

कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुल के नीचे जाते और नजदीक से शव की शिनाख्त करने की कोशिश करते. यह खबर क्षेत्र में फैली तो भुडि़या और आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. भीषण ठंड के बावजूद सुबह 10 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. इसी बीच भुडि़यां गांव के प्रधान जगदीश ने मोबाइल फोन से यह सूचना थाना तिर्वा को दे दी.

सूचना मिलते ही तिर्वा थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने लाश मिलने की सूचना जिले के पुलिस अधिकारियों को दी, और लाश का निरीक्षण करने लगे. महिला का शव पुल के नीचे नदी किनारे झाडि़यों में पड़ा था. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. वह हल्के हरे रंग का सलवारकुरता और क्रीम कलर का स्वेटर पहने थी, हाथों में मेहंदी, पैरों में महावर, चूडि़यां, बिछिया पहने थी और मांग में सिंदूर. लगता जैसे कोई दुलहन हो.

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मृतका का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था, और झुलसा हुआ था. उस के गले में सफेद रंग का अंगौछा पड़ा था. देख कर लग रहा था, जैसे महिला की हत्या उसी अंगौछे से गला कस कर की गई हो. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा कुचल कर तेजाब से जला दिया गया था.

महिला की हत्या पुल के ऊपर की गई थी और शव को घसीट कर पुल के नीचे झाडि़यों तक लाया गया था. घसीट कर लाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. महिला के साथ बलात्कार के बाद विरोध करने पर हत्या किए जाने की भी आशंका थी.

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम प्रभारी राकेश कुमार को बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम प्रभारी ने वहां से सबूत एकत्र किए.

अब तक कई घंटे बीत चुके थे, घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. लेकिन कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने महिला के शव के बारे में भुडि़या गांव के ग्राम प्रधान जगदीश से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘‘सर, यह महिला हमारे क्षेत्र की नहीं, कहीं और की है. अगर हमारे क्षेत्र की होती तो अब तक शिनाख्त हो गई होती.’’

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को भी ग्राम प्रधान की बात सही लगी. उन्होंने थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द महिला की हत्या का खुलासा करें.

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने आवश्यक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दी. किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी दर्ज तो नहीं है, यह जानने के लिए उन्होंने वायरलैस से सभी थानों में अज्ञात महिला की लाश मिलने की सूचना प्रसारित करा दी.

इस के साथ ही उन्होंने क्षेत्र के सभी समाचार पत्रों में महिला की लाश के फोटो छपवा कर लोगों से उस की पहचान करने की अपील की.

इस का परिणाम यह निकला कि 13 दिसंबर को अज्ञात महिला के शव की पहचान करने के लिए कई लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. लेकिन उन में से कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. शाम 4 बजे 3 डाक्टरों के एक पैनल ने अज्ञात महिला के शव का पोस्टमार्टम शुरू किया.

मिला छोटा सा सुराग

पोस्टमार्टम के पहले जब महिला के शरीर से कपड़े अलग किए गए तो उस की सलवार के नाड़े के स्थान से कागज की एक परची निकली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट के साथ वह मोबाइल नंबर लिखी परची भी थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को दे दी.

दूसरे दिन थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया. रिपोर्ट के मुताबिक महिला की हत्या गला दबा कर की गई थी. चेहरे को भारी वस्तु से कुचला गया था और उसे तेजाब डाल कर जलाया गया था. बलात्कार की पुष्टि के लिए 2 स्लाइड बनाई गई थीं.

थानाप्रभारी ने परची पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो फोन बंद था. उन्होंने कई बार वह नंबर मिला कर बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर बार वह नंबर स्विच्ड औफ ही मिला.

टी.पी. वर्मा को लगा कि यह रहस्यमय नंबर महिला के कातिल तक पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि घटना वाली रात वह नंबर पूरी रात सक्रिय रहा था. इतना ही नहीं, रात 1 से 2 बजे के बीच इस नंबर की लोकेशन भुडि़या गांव के पास की मिली. इस नंबर से उस रात एक और नंबर पर कई बार बात की गई थी. उस नंबर की लोकेशन भी भुडि़या गांव की ही मिल रही थी.

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने दोनों नंबरों की जानकारी निकलवाई तो पता चला कि वे दोनों नंबर विजय प्रताप और अजय प्रताप पुत्र हरिनारायण, ग्राम पैथाना, थाना ठठिया, जिला कन्नौज के नाम से लिए गए थे. इस से पता चला कि विजय प्रताप और अजय प्रताप दोनों सगे भाई हैं.

15 दिसंबर, 2019 की रात 10 बजे थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पुलिस टीम के साथ थाना ठठिया के गांव पैथाना में हरिनारायण के घर छापा मारा. छापा पड़ते ही घर में भगदड़ मच गई.

एक युवक को तो पुलिस ने दबोच लिया, किंतु दूसरा मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. इत्तफाक से गांव की नाली से टकरा कर उस की मोटरसाइकिल पलट गई. तभी पीछा कर रही पुलिस ने उसे दबोच लिया. मोटरसाइकिल सहित दोनों युवकों को थाना तिर्वा लाया गया.

थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम विजयप्रताप उर्फ शोभित निवासी ग्राम पैथाना थाना ठठिया जिला कन्नौज बताया. जबकि दूसरा युवक विजय प्रताप का भाई अजय प्रताप था.

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अजय-विजय को जब मृतका के फोटो दिखाए गए तो दोनों उसे पहचानने से इनकार कर दिया. दोनों के झूठ पर थानाप्रभारी वर्मा को गुस्सा आ गया. उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो विजय प्रताप ने बताया कि मृत महिला उस की पत्नी नीलम थी. हम दोनों ने ही मिल कर नीलम की हत्या की थी और शव को ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दिया था.

अजय और विजय ने हत्या का जुर्म तो कबूल कर लिया. किंतु अभी तक उन से आला ए कत्ल बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने इस संबंध में पूछताछ की तो उन दोनों ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त मफलर तथा खून से सनी ईंटें उन्होंने ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दी थीं.

थानाप्रभारी उन दोनों को ईशन नदी पुल के नीचे ले गए. वहां दोनों ने झाडि़यों में छिपाई गई ईंट तथा मफलर बरामद करा दिया. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

विजय प्रताप के पास मृतका नीलम के मामा श्यामबाबू का मोबाइल नंबर था. उस नंबर पर टी.पी. वर्मा ने श्यामबाबू से बात की और नीलम के संबंध में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए थाना तिर्वा बुलाया. हालांकि उन्होंने श्यामबाबू को यह जानकारी नहीं दी कि उस की भांजी नीलम की हत्या हो गई है.

श्यामबाबू नीलम को ले कर पिछले 2 सप्ताह से परेशान था. वजह यह कि उस की न तो नीलम से बात हो पा रही थी और न ही उस के पति विजय से. थाना तिर्वा से फोन मिला तो वह तुरंत रवाना हो गया.

मामा ने बताई असल कहानी

कानपुर से तिर्वा कस्बे की दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर है, इसलिए 4 घंटे बाद श्यामबाबू थाना तिर्वा पहुंच गया. थाने पर उस समय थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा मौजूद थे. वर्मा ने उसे एक महिला का फोटो दिखते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस महिला हो पहचानते हो?’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

2 भाइयों की करतूत : भाग 3

उस ने नीलम को डांटा और सख्त हिदायत दी कि विजय के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. नीलम ने डर की वजह से मामा से वादा तो कर दिया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी. लेकिन वह विजय को दिल दे बैठी थी. फिर उस के बिना कैसे रह सकती थी. सोचविचार कर उस ने तय किया कि अब वह विजय से मिलने में सावधानी बरतेगी.

नीलम ने विजय प्रताप को फोन पर अपने मामा द्वारा दी गई चेतावनी बता दी. लिहाजा विजय भी सतर्क हो गया. मिलना भले ही बंद हो गया लेकिन दोनों ने फोन पर होने वाली बात जारी रखी. जिस दिन नीलम का मामा घर पर नहीं होता, उस दिन वह विजय से मिल भी लेती थी. इस तरह उन का मिलने का क्रम जारी रहा.

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नीलम की जातिबिरादरी का एक लड़का था सुबोध. वह नीलम के घर के पास ही रहता था. वह नीलम को मन ही मन प्यार करता था. नीलम भी उस से हंसबोल लेती थी. उस के पास नीलम का मोबाइल नंबर भी था. इसलिए जबतब वह नीलम से फोन पर बतिया लेता था.

सुबोध नीलम से प्यार जरूर करता था, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. नीलम जब विजय प्रताप से प्यार करने लगी तो सुबोध के मन में प्यार की फांस चुभने लगी. वह दोनों की निगरानी करने लगा.

एक दिन सुबोध ने नीलम को विजय प्रताप के साथ घूमते देखा तो उस ने यह बात नीलम के मामा श्यामबाबू को बता दी. श्यामबाबू ने नीलम की पिटाई की और उस का घर के बाहर जाना बंद करा दिया. नीलम पर प्रतिबंध लगा तो वह घबरा उठी.

उस ने इस बाबत मोबाइल फोन पर विजय से बात की और घर से भाग कर शादी रचाने की इच्छा जाहिर की. विजय प्रताप भी यही चाहता ही था, सो उस ने रजामंदी दे दी. इस के बाद दोनों कानपुर छोड़ने की तैयारी में जुट गए.

विजय प्रताप का एक रिश्तेदार दिल्ली में यमुनापार लक्ष्मीनगर, मदर डेयरी के पास रहता था और रेडीमेड कपड़े की सिलाई का काम करता था. उस रिश्तेदार के माध्यम से विजय प्रताप ने दिल्ली में रहने की व्यवस्था बनाई और नीलम को दिल्ली ले जा कर उस से शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने फोन पर अपनी योजना नीलम को भी बता दी.

4 अगस्त, 2019 को जब श्यामबाबू काम पर चला गया तो नीलम अपना सामान बैग में भर कर घर से निकली और कानपुर सेंट्रल स्टेशन जा पहुंची. स्टेशन पर विजय प्रताप उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस समय दिल्ली जाने वाली कालका मेल तैयार खड़ी थी. दोनों उसी ट्रेन पर सवार हो कर दिल्ली रवाना हो गए.

उधर देर रात को श्यामबाबू घर आया तो घर से नीलम गायब थी. उस ने फोन पर नीलम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उस का फोन बंद था. श्यामबाबू को समझते देर नहीं लगी कि नीलम अपने प्रेमी विजय प्रताप के साथ भाग गई है. इस के बाद उस ने न तो थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उसे खोजने का प्रयास किया.

उधर दिल्ली पहुंच कर विजय प्रताप अपने रिश्तेदार के माध्यम से लक्ष्मीनगर में एक साधारण सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. एक हफ्ते बाद उस ने नीलम से प्रेम विवाह कर लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. नीलम ने विजय से विवाह रचाने की जानकारी अपने मामा श्यामबाबू को भी दे दी. साथ ही यह भी बता दिया कि वह दिल्ली में रह रही है.

इधर विजय प्रताप के परिवार वालों को जब पता चला कि विजय ने नीलम नाम की एक दलित लड़की से शादी की है तो उन्होंने विजय को जम कर फटकारा और नीलम को बहू के रूप में स्वीकार करने से साफ मना कर दिया.

यही नहीं, परिवार वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह नीलम से रिश्ता तोड़ ले. पारिवारिक दबाव से विजय प्रताप परेशान हो उठा. उस का छोटा भाई अजय प्रताप भी रिश्ता खत्म करने का दबाव डाल रहा था.

हो गई कलह शुरू

नीलम अपने पति विजय के साथ 2 महीने तक खूब खुश रही. उसे लगा कि उसे सारा जहां मिल गया है. लेकिन उस के बाद उस की खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. वह तनावग्रस्त रहने लगी. नीलम और विजय के बीच कलह भी शुरू हो गई. कलह का पहला कारण यह था कि नीलम सीलन भरे कमरे में रहते ऊब गई थी.

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वह विजय पर दबाव डालने लगी थी कि उसे अपने घर ले चले. वह वहीं रहना चाहती है. लेकिन विजय प्रताप जानता था कि उस के घर वाले नीलम को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वह उसे गांव ले जाने को मना कर देता था.

कलह का दूसरा कारण था नीलम का फोन पर किसी से हंसहंस कर बतियाना. जिस से विजय को शक होने लगा कि नीलम का कोई प्रेमी भी है. हालांकि नीलम जिस से बात करती थी, वह उस के मायके के पड़ोस में रहने वाला सुबोध था. उस से वह अपने मामा तथा घर की गतिविधियों की जानकारी लेती रहती थी. कभीकभी वह मामा से भी बात कर लेती थी.

एक तरफ परिवार का दबाव तो दूसरी तरफ शक. इन बातों से विजय प्रताप परेशान हो गया. मन ही मन वह नीलम से नफरत करने लगा. एक दिन देर शाम नीलम सुबोध से हंसहंस कर बातें कर रही थी, तभी विजय प्रताप कमरे में आ गया.

उस ने गुस्से में नीलम का मोबाइल तोड़ दिया और उसे 2 थप्पड़ भी जड़ दिए. इस के बाद दोनों में झगड़ा हुआ. नीलम ने साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली में नहीं रहेगी. वह उसे ससुराल ले चले. अगर नहीं ले गया तो वह खुद चली जाएगी.

नीलम की इस धमकी से विजय प्रताप संकट में फंस गया. उस ने फोन पर इस बारे में अपने छोटे भाई अजय से बात की. अंतत: दोनों भाइयों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए नीलम की हत्या की योजना बना ली. योजना बनने के बाद विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि वह जल्दी ही उसे गांव ले जाएगा. वह अपनी तैयारी कर ले.

11 दिसंबर, 2019 की सुबह विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि उसे आज ही गांव चलना है. नीलम चूंकि पहली बार ससुराल जा रही थी, इसलिए उस ने साजशृंगार किया, पैरों में महावर लगाई, फिर पति के साथ ससुराल जाने के लिए निकल गई.

विजय प्रताप नीलम को साथ ले कर बस से दिल्ली से निकला और रात 11 बजे कन्नौज पहुंच गया. विजय की अपने छोटे भाई अजय से बात हो चुकी थी. अजय प्रताप मोटरसाइकिल ले कर कन्नौज बसस्टैंड पर आ गया.

नीलम ने दोनों भाइयों को एकांत में खुसरफुसर करते देखा तो उसे किसी साजिश का शक हुआ. इसी के मद्देनजर उस ने कागज की परची पर पति का मोबाइल नंबर लिखा और सलवार के नाड़े के स्थान पर छिपा लिया.

रात 12 बजे विजय प्रताप, नीलम और अजय प्रताप मोटरसाइकिल से पैथाना गांव की ओर रवाना हुए. जब वे ईशन नदी पुल पर पहुंचे तो अजय प्रताप ने मोटरसाइकिल रोक दी. उसी समय विजय प्रताप ने नीलम के गले में मफलर लपेटा और उस का गला कसने लगा. नीलम छटपटा कर हाथपैर चलाने लगी तो अजय प्रताप ने उसे दबोच लिया और पास पड़ी ईंट से उस का चेहरा कुचल दिया.

हत्या करने के बाद दोनों नीलम के गले में अंगौछा डाल बांध कर शव को घसीट कर पुल के नीचे नदी किनारे ले गए और झाडि़यों में फेंक दिया. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा तेजाब डाल कर जला दिया. तेजाब की बोतल अजय प्रताप ले कर आया था. शव को ठिकाने लगाने के बाद दोनों भाई मोटरसाइकिल से अपने गांव पैथाना चले गए.

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17 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने अभियुक्त विजय प्रताप तथा अजय प्रताप को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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