Family Story: सैल्फी – निशि को हर वक्त अपनी बेटी की चिंता क्यों रहती थी?

Family Story: निशिपत्रिका के पेज पलटे जा रही थी, परंतु कनखियों से बेटी कुहू को देखे जा रही थीं. आधे घंटे से कुहू अपने फोन पर कुछ कर रही थी. देखतेदेखते निशि अपना धैर्य खो बैठीं तो डांटते हुए बोलीं, ‘‘कुहू, क्यों अपना भविष्य अंधकारमय कर रही हो? हर समय फोन से खेलती रहती हो… आखिर तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? यदि नंबर अच्छे नहीं आए तो किसी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिलेगा,’’ और उन्होंने उस के हाथ से फोन छीन लिया.

‘‘मम्मा, देखो भी मैं ने फेसबुक पर अपनी सैल्फी पोस्ट की थी. 100 लाइक्स थोड़ी सी देर में ही मिल गए और कौमैंट तो देखिए, मजा आ गया. कोई हौट, लिख रहा है, तो कोई सैक्सी… यह तो कमाल हो गया,’’ कह कुहू प्यार से मां से लिपट गई.

‘‘कुहू छोड़ो भी मुझे… तुम तो पागल कर के छोड़ोगी… फेसबुक पर अपना फोटो क्यों डाला?’’

‘‘तो क्या हुआ? मेरी सारी फ्रैंड्स डालती हैं, तो मेरा भी मन हो आया.’’

‘‘अच्छा, अब बहुत हो गया. उसे तुरंत डिलीट कर दो.’’

‘‘मम्मा, आप पहले कमैंट्स तो पढ़ो, मजा आ जाएगा.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब अक्ल आएगी,’’ निशि सिर पर हाथ रख कर बैठ गईं.

तभी निधि की सास सुषमाजी कमरे में घुसती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ निशि, क्यों बेटी को डांट रही हो? क्या किया इस ने?’’

‘‘मम्मीजी, आप इसे समझाती क्यों नहीं. इस ने फेसबुक पर अपना फोटो डाला है. 18 साल की हो चुकी है, लेकिन बातें हर समय बच्चों वाली करती है… आजकल समय बहुत खराब है.’’

‘‘निशि, मैं तुम्हें बारबार समझाती हूं… पर तुम कुछ ज्यादा ही इसे ले कर परेशान रहती हो.’’

‘‘क्या करूं मम्मीजी, टीवी, पत्रपत्रिकाएं सभी लड़कियों के साथ होने वाले अत्याचारों से भरे होते हैं. अब तो हद हो गई है… रास्ते में चलती लड़कियों को कार वाले खींच कर ले जाते हैं… अपनी दिल्ली अब लड़कियों के लिए कतई सुरक्षित नहीं रह गई है. जब से दामिनी वाला हादसा हुआ है मेरा तो दिल हर समय डर से कांपता रहता है.

‘‘कल शाम को मेरी सहेली पूजा आई थी. कह रही थी कि उस का मैनेजर उसे रोज शाम को काम के बहाने रोक लेता था और फिर कभी कौफी, तो कभी डिनर के लिए चलने को कहता. फिर एक दिन तो उस ने उस का हाथ भी पकड़ लिया. बस उसी दिन से इस्तीफा दे कर वह घर बैठ गई. अब दूसरी नौकरी ढूंढ़ रही है.

‘‘मम्मीजी, हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे होते जा रहे हैं… 2-3 दिन पहले मुंबई से ईशा का फोन आया था कि जूनियर लोगों की प्रोमोशन होती जा रही है, परंतु उस की प्रोमोशन रुकी हुई है, क्योंकि वह लड़की है… लड़के अपने बौस की विदेशी दारू से सेवा करते हैं… लड़की हो तो उन की डिमांड को समझो… मम्मीजी, मुझे अपनी कुहू को देख कर बहुत डर लगता है.’’

‘‘निशि, जो डरा सो मरा. इसलिए बहादुरी से जीवन जीओ… सब की लड़कियां बड़ी होती हैं और लड़के भी बड़े होते हैं. उसे अपने पास बैठा कर अच्छेबुरे की पहचान करना सिखाओ.

‘‘यदि उस ने फेसबुक पर फोटो पोस्ट कर दिया तो इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. आजकल सभी बच्चे ये सब करते रहते हैं.’’

छोटे शहर और साधारण परिवार से संबंध रखने वाली निशि अपनी सुंदरता के कारण नेताजी के लड़के साथ ब्याह कर दिल्ली जैसे महानगर में आ गई थीं. नेताजी कपड़ों की तरह पार्टियां बदलते रहते और उन का बेटा रंगीनमिजाज नीरज सुरा और साकी दोनों ही बदलता रहता. इन सब कारणों से वह अपनी बेटी के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं.

‘‘मम्मीजी, कुहू कुछ समझने को ही तैयार नहीं… अपने कमरे में शीशे के सामने मेकअप करेगी, म्यूजिक चैनल पर डांस देखदेख कर वैसे ही डांस करती है.’’

‘‘निशि, तुम समझदार बनो… यह तो उस की उम्र है. इस समय मस्ती नहीं करेगी तो कब करेगी? तुम अपना भूल गई… तुम भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ फिल्मी पत्रिकाएं और फैशन की बातें छिपछिप कर करती रही होंगी.’’

‘‘मम्मीजी, आप सही कह रही हैं, मैं भी एक बार स्कूल कट कर पिक्चर देखने गई थी…’’

‘‘नीरज कह रहे हैं कि यह को-एड कालेज में ही पढ़ेगी. आप क्यों नहीं मना करती हैं? यह इतनी सुंदर है और साथ ही भोली और नाजुक भी है. कैसे लड़कों की निगाहों को झेल पाएगी?’’

‘‘माई डियर मम्मा, लो गरमगरम चाय पीओ. मैं ने बनाई है. आप खुश रहा करो… तब आप बहुत प्यारी लगती हो. आप की बेटी किसी भी लफड़े में नहीं पड़ेगी, इतना तो आप पक्का समझो.’’ कह कुहू अंदर चली गई.

‘‘निशि, मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकती हूं कि तुम नीरज के रोजरोज के नएनए स्कैंडल से परेशान रहती हो, परंतु बेटी सब से अच्छा उपाय है कि तुम अपनी बेटी पर विश्वास करो. मैं ने भी तुम्हारे पापाजी की राजनीति में रहने के कारण बड़ी विषम परिस्थितियों को झेला है.’’

तभी निशि की बचपन की सहेली स्नेहा आ गई. बोली, ‘‘क्या बात है, चाय पर सासबहू में क्या चर्चा हो रही है?’’

सुषमाजी उठती हुई बोलीं, ‘‘मेरी तो मीटिंग है, इसलिए मैं चलती हूं… अपनी सहेली को समझा कर जाना.’’

‘‘कुहू, स्नेहा के लिए 1 कप चाय बना दो.’’

‘‘नो मम्मा. मेरा आज का चाय बनाने का कोटा फिनिश हो गया… अब मैं स्नेहा आंटी से बातें करूंगी.’’

स्नेहा एक कंपनी में मार्केटिंग हैड है, इसलिए निशि हमेशा उसे अपना आदर्श मानती हैं और अपने दिल का बोझ उस के सामने हलका कर लिया करती हैं.

स्नेहा ने कुहू को प्यार से गले लगाते हुए कहा, ‘‘माई स्वीटी, लुकिंग वैरी नाइस.’’

‘‘थैंक्यू आंटी. मम्मा ने तो मुझे परेशान कर रखा है.’’

‘‘क्या हुआ? निशि बड़ी परेशान दिख रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं… यह बड़ी हो रही है… इसे वही समझाने की कोशिश करती रहती हूं, पर इस ने तो मानो न समझने का प्रण कर रखा है.’’

‘‘दिन भर टीवी पर रेप की खबरें देखदेख कर जी दहल जाता है. जराजरा सी बात पर मुंह पर ऐसिड फेंक देते हैं.’’

‘‘निशि, सड़क पर ऐक्सीडैंट हो जाते हैं, यह सोच कर न तो गाडि़यां चलनी बंद होती हैं और न ही इनसानों का चलना. हर समय परेशान रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता… कुहू को अपनी सुरक्षा के लिए जूडोकराटे क्लास जौइन कराओ.’’

‘‘आंटी, मम्मा तो चाहती हैं कि मैं रातदिन किताबों के सामने से न हटूं… बताइए क्या यह संभव है? बालकनी में खड़ी हो कर बाल सुलझाने लगूं तो लंबा लैक्चर दे डालेंगी. यदि किसी दिन ट्यूशन से आने में 5 मिनट की भी देरी हो जाए तो हंगामा कर देंगी… आंटी, मेरी सारी फ्रैंड्स के बौयफ्रैंड हैं. सब साथ मूवी देखने जाते हैं, कैफे जाते हैं… खूब मस्ती करते हैं. लेकिन मैं कहीं नहीं जा सकती… सब मेरा मजाक उड़ाते हैं कि मम्माज डौटर.’’

निशि किसी काम से अंदर गई हुई थीं.

‘‘आंटी, मुझे तो खुद ही लड़कों से दोस्ती ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन हर समय टोकाटाकी से मैं परेशान हो जाती हूं,’’ कुहू की आंखें भर आई थीं.

तभी निशि कमरे में आ गईं. वे कुहू को डांटते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी शिकायतें पूरी हो गई हों तो जाओ… तुरंत पढ़ने बैठ जाओ.’’

‘‘मम्मा, प्लीज ठहरिए. मुझे आंटी से बात कर लेने दीजिए. मैं 15 मिनट बाद जा कर पढ़ने बैठ जाऊंगी.’’

स्नेहा प्यार से कुहू के सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘कुहू, अपने कालेज फ्रैंड़स के बारे में बताओ?’’

कुहू ने चुपके से निशि की ओर इशारा किया तो स्नेहा बोलीं, ‘‘निशि चाय पीने का मन है… चाय बना लाओ.’’

मजबूरन निशि को वहां से जाना पड़ा.

निशि के जाते ही कुहू बोली, ‘‘आंटी, मम्मा मुझ पर शक करती हैं… मेरे फोन के मैसेज छिपछिप कर चैक करती हैं… मेरा लैपटौप खंगालती रहती हैं.’’

‘‘यह तो गलत बात है. अपनी बेटी पर शक नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आंटी, एक मजे की बात बताऊं? मैं ने अपना फोटो पोस्ट किया तो मुझे 50 फ्रैंड रिक्वैस्ट आईं… मैं ने भी मस्ती के लिए एक को क्लिक कर चैटिंग करने लगी… उस ने लिखा था कि तुम बहुत सुंदर हो… मुझ से दोस्ती करोगी? मैं ने जवाब में लिखा कि मैं तो बहुत भद्दीमोटी और काली हूं… आई एम टोटली अगली गर्ल… इसलिए मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है. इस पर उस ने लिखा कि फिर भी मैं तुम से दोस्ती करूंगा, क्योंकि तुम लड़की तो हो ही… मस्ती के लिए लड़की चाहिए… गोरीकाली कोई भी चलेगी… बताओ कल शाम 5 बजे कहां मिलोगी?

‘‘आंटी, मुझे बहुत गुस्सा आया. अत: मैं ने लिख दिया कि मस्ती के लिए गंदे नाले में डूब मरो.

‘‘आंटी, मैं मम्मा से कहती हूं, पुरातनपंथी बातें छोड़ कर मेरी तरह मौडर्न बनो. मुझ से मेरी कालेज की बातें सुना करो, पर वे मुझे डांट देती हैं.’’

‘‘तुम्हारे पापा के स्कैंडल्स की वजह से वे परेशान रहती हैं.’’

‘‘हां, मैं समझती हूं… इसीलिए तो मैं उन्हें और भी हंसाना और खुश रखना चाहती हूं.’’

छोटी सी लड़की के दिमाग में इतना कुछ भरा हुआ है, सोच कर स्नेहा को बहुत अच्छा लग रहा था.

‘‘आंटी, परसों मेरा बर्थडे था… मम्मीपापा रात को डिनर के लिए बाहर ले जा रहे थे… मैं ने जींस के साथ शौर्ट टौप पहना… बस मम्मा ने डांटना शुरू कर दिया कि टौप बहुत छोटा है… तेरा पेट दिखाई दे रहा है. फिर पापा ही बोले कि ठीक है निशि, बच्ची है हर बात में टोका न करो.’’

निशि ने कुहू की बात सुन ली थी. आगे क्यों नहीं बताया कि मौल में किसी लड़के ने कुहनी मारी… फिर पापा से लड़ाई होने लगी… वह तो मौल के गार्ड के बीचबचाव से मामला शांत हो गया… मेरा तो मूड ही खराब हो गया था.

‘‘आप मम्मा को समझाइए कि अब मैं बड़ी हो गई हूं. चौकलेट मुझे पसंद है, इसलिए खाती हूं. जैसे ही मैं ड्रैसअप होती हूं, मुझे देखते ही डांटना शुरू कर देती हैं कि फिर तुम ने इस टौप को पहन लिया… कानों में ये क्या लटका लिए… किस के साथ जा रही हो? कहां जा रही हो? कब आओगी…? मेरी सारी फ्रैंड्स मेरा मजाक उड़ाती हैं.

‘‘भैया सारे घर में तौलिया पहन कर घूमता रहेगा… कोई कुछ नहीं बोलेगा. सारी बंदिशें मेरे लिए ही. स्लीवलैस टौप नहीं पहनोगी, शौर्ट्स नहीं पहनोगी, लिपस्टिक क्यों लगा ली? किस का फोन था? किस का मैसेज था? किस के संग बैठ कर पढ़ोगी… जैसे उन के हजार प्रश्नों से मैं तंग हो चुकी हूं. प्लीज आंटी मम्मा को समझाइए.’’

निशि के कमरे में घुसते ही कुहू पल भर में वहां से उड़नछू हो गई थी पर आंखोंआंखों से स्नेहा से रिक्वैस्ट कर गई थी.

‘‘निशि तुम ने चाय बहुत अच्छी बनाई है… क्या बात है, तुम्हारे चेहरे पर परेशानी और चिंता झलक रही है?’’

‘‘स्नेहा, मैं कुहू के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. नीरज को तो जानती ही हो, उन की अपनी दुनिया है, इसलिए हर पल मैं किसी अनिष्ट की आशंका से डरती रहती हूं.’’

‘‘ऐसा भी क्या है? अच्छीभली है तुम्हारी बेटी… पढ़ने में होशियार है… समझदार है… सुंदर है. तुम्हारे पास पैसा भी है. फिर किस बात का डर तुम्हें सताता रहता है?’’

‘‘मेरे घर का माहौल तो तुम जानती ही हो. पापाजी नेता हैं. सैकड़ों लोग आतेजाते रहते हैं… उन के कुछ दोस्त अकसर आते हैं, जिन्हें कुहू दादू कहती है… यह उन के पास बैठ कर बातें करती है, ठहाके लगाती है तो मेरा खून खौल उठता है… घर में पीनेपिलाने वाली पार्टियां होती रहती हैं… बापबेटा दोनों साथ बैठ कर पीते हैं. मैं अपने मन का डर आखिर किस से कहूं? अगले साल इसे अच्छे कालेज में दाखिला मिल जाए, तो होस्टल भेज दूंगी… मगर होस्टल का नाम सुनते ही मुझ से चिपक कर सिसकने लगती है.

‘‘जब टीवी या पेपर में रेप या ऐसिड अटैक की घटना सुनती हूं तो डर से कांपने लगती हूं. ऐसा मन करता है इसे अपने पल्लू में छिपा लूं. लेकिन ऐसा संभव नहीं है… इसे पढ़नालिखना है, भविष्य में आगे बढ़ना है, अपने पैरों पर खड़े होना है…’’

‘‘निशि, जब तुम ये सब समझती हो तो क्यों परेशान रहती हो?’’

‘‘जैसे ही मैं इसे डांटती हूं तो तुरंत मुझे जवाब देती है कि मम्मा आप बैकवर्ड हो… आप से अच्छी तो दादी हैं… वे मौडर्न हैं… आप मुझ से न जाने क्या चाहती हैं? ऐसा मन करता है कि एक दिन इस की पिटाई कर दूं.’’ एक ओर मासूम कुहू की बातें तो दूसरी ओर निशि के दिल का डर, सब कुछ मन में गड्डमड्ड होने लगा था. दोनों अपनीअपनी जगह सही थीं. फिर स्नेहा निशि का हाथ अपने हाथ में ले कर बोलीं, ‘‘निशि, मैं तुम्हारे डर को महसूस कर रही हूं… हर मां इस दौर से गुजरती है. मेरी भी बेटी बड़ी हो रही है. जब वह ड्राइवर के साथ गाड़ी में स्कूल जाती है, तो मुझे भी मन में बुरेबुरे खयाल आते हैं, लेकिन स्कूल भेजना बंद तो नहीं हो जाएगा? कुहू उम्र के ऐसे दौर में है जब सब कुछ इंद्रधनुष की तरह आकर्षक और सतरंगा दिखाई पड़ता है.

‘‘आजकल के बच्चे हम लोगों से ज्यादा होशियार और समझदार हैं… सब से पहली बात यह कि अपनी बेटी पर विश्वास करो. अपने मन से शक का कीड़ा निकाल फेंको.

‘‘तुम दिन भर घर में रहती हो. नीरज की अपनी दुनिया है. इन सब कारणों से तुम्हारे मन में नकारात्मक विचारों ने अपना घर बना लिया है… तुम्हें इस से उबरना पड़ेगा… तुम घर से बाहर निकलो. अनेक हौबी क्लासेज है… अपनी रुचि की क्लास जौइन कर लो… तुम्हें पहले घर सजाने का बड़ा शौक था… तुम इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन करो. इस समय तुम खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हो.

‘‘जब तुम रोज घर से निकलोगी. 10-20 लोगों से मिलोगी, उन की समस्याओं और बातों को सुनोगी तो तुम्हें समझ में आएगा कि दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है. अपने को व्यस्त रखोगी तो दिन भर कुहू के लिए होने वाली चिंता अपनेआप कम हो जाएगी.

‘‘तुम कुहू की सहेली बनने का प्रयास करो. वह 21वीं शताब्दी की लड़की है. वह अपने भविष्य के लिए पूरी तरह जागरूक है.

‘‘मेरी वह निशि कहां खो गई है, जो बड़ीबड़ी बहसों में सब को हरा कर प्रथम आती थी? यदि मेरी बात कुछ समझ में आई हो तो दोनों मांबेटी मिल कर फेसबुक के कौमैंट्स पर ठहाके लगा कर देखो, कितना मजा आता है. अच्छा निशि, बातों में समय का पता ही नहीं लगा… चलती हूं… किसी दिन मेरे घर आना.’’

पीछेपीछे कुहू भागती हुई आई… शायद वह हम दोनों की बातें सुन रही थी. उस की आंखों की मासूम चमक देख अच्छा लग रहा था. वह मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्स आंटी.’’

Family Story: अंदाज – रंजना पार्टी को लेकर क्यों परेशान थी?

Family Story: ‘‘जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया.

अपने सहयोगियों के दबाव में आ कर रंजना ने अपने पति मोहित को फोन किया, ‘‘ये सब लोग कल पार्टी देने की मांग कर रहे हैं. मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’’

‘‘मम्मीपापा की इजाजत के बगैर किसी को घर बुलाना ठीक नहीं रहेगा,’’ मोहित की आवाज में परेशानी के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘फिर इन की पार्टी कब होगी?’’

‘‘इस बारे में रात को बैठ कर फैसला करते हैं.’’

‘‘ओ.के.’’

रंजना ने फोन काट कर मोहित का फैसला बताया तो सब उस के पीछे पड़ गए, ‘‘अरे, हम मुफ्त में पार्टी नहीं खाएंगे. बाकायदा गिफ्ट ले कर आएंगे, यार.’’

‘‘अपनी सास से इतना डर कर तू कभी खुश नहीं रह पाएगी,’’ उन लोगों ने जब इस तरह का मजाक करते हुए रंजना की खिंचाई शुरू की तो उसे अजीब सा जोश आ गया. बोली, ‘‘मेरा सिर खाना बंद करो. मेरी बात ध्यान से सुनो. कल रविवार रात 8 बजे सागर रत्ना में तुम सब डिनर के लिए आमंत्रित हो. कोई भी गिफ्ट घर भूल कर न आए.’’ रंजना की इस घोषणा का सब ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

कुछ देर बाद अकेले में संगीता मैडम ने उस से पूछा, ‘‘दावत देने का वादा कर के तुम ने अपनेआप को मुसीबत में तो नहीं फंसा लिया है?’’

‘‘अब जो होगा देखा जाएगा, दीदी,’’ रंजना ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अगर घर में टैंशन ज्यादा बढ़ती लगे तो मुझे फोन कर देना. मैं सब को पार्टी कैंसल हो जाने की खबर दे दूंगी. कल के दिन बस तुम रोनाधोना बिलकुल मत करना, प्लीज.’’

‘‘जितने आंसू बहाने थे, मैं ने पिछले साल पहली वर्षगांठ पर बहा लिए थे दीदी. आप को तो सब मालूम ही है.’’

‘‘उसी दिन की यादें तो मुझे परेशान कर रही हैं, माई डियर.’’

‘‘आप मेरी चिंता न करें, क्योंकि मैं साल भर में बहुत बदल गई हूं.’’

‘‘सचमुच तुम बहुत बदल गई हो, रंजना? सास की नाराजगी, ससुर की डांट या ननद की दिल को छलनी करने वाली बातों की कल्पना कर के तुम आज कतई परेशान नजर नहीं आ रही हो.’’

‘‘टैंशन, चिंता और डर जैसे रोग अब मैं नहीं पालती हूं, दीदी. कल रात दावत जरूर होगी. आप जीजाजी और बच्चों के साथ वक्त से पहुंच जाना,’’ कह रंजना उन का कंधा प्यार से दबा कर अपनी सीट पर चली गई. रंजना ने बिना इजाजत अपने सहयोगियों को पार्टी देने का फैसला किया है, इस खबर को सुन कर उस की सास गुस्से से फट पड़ीं, ‘‘हम से पूछे बिना ऐसा फैसला करने का तुम्हें कोई हक नहीं है, बहू. अगर यहां के कायदेकानून से नहीं चलना है, तो अपना अलग रहने का बंदोबस्त कर लो.’’

‘‘मम्मी, वे सब बुरी तरह पीछे पड़े थे. आप को बहुत बुरा लग रहा है, तो मैं फोन कर के सब को पार्टी कैंसल करने की खबर कर दूंगी,’’ शांत भाव से जवाब दे कर रंजना उन के सामने से हट कर रसोई में काम करने चली गई. उस की सास ने उसे भलाबुरा कहना जारी रखा तो उन की बेटी महक ने उन्हें डांट दिया, ‘‘मम्मी, जब भाभी अपनी मनमरजी करने पर तुली हुई हैं, तो तुम बेकार में शोर मचा कर अपना और हम सब का दिमाग क्यों खराब कर रही हो? तुम यहां उन्हें डांट रही हो और उधर वे रसोई में गाना गुनगुना रही हैं. अपनी बेइज्जती कराने में तुम्हें क्या मजा आ रहा है?’’ अपनी बेटी की ऐसी गुस्सा बढ़ाने वाली बात सुन कर रंजना की सास का पारा और ज्यादा चढ़ गया और वे देर तक उस के खिलाफ बड़बड़ाती रहीं.

रंजना ने एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाला. अपना काम समाप्त कर उस ने खाना मेज पर लगा दिया. ‘‘खाना तैयार है,’’ उस की ऊंची आवाज सुन कर सब डाइनिंगटेबल पर आ तो गए, पर उन के चेहरों पर नाराजगी के भाव साफ नजर आ रहे थे. रंजना ने उस दिन एक फुलका ज्यादा खाया. उस के ससुरजी ने टैंशन खत्म करने के इरादे से हलकाफुलका वार्त्तालाप शुरू करने की कोशिश की तो उन की पत्नी ने उन्हें घूर कर चुप करा दिया. रंजना की खामोशी ने

झगड़े को बढ़ने नहीं दिया. उस की सास को अगर जरा सा मौका मिल जाता तो वे यकीनन भारी क्लेश जरूर करतीं. महक की कड़वी बातों का जवाब उस ने हर बार मुसकराते हुए मीठी आवाज में दिया.

शयनकक्ष में मोहित ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की, ‘‘किसी और की न सही पर तुम्हें कोई भी फैसला करने से पहले मेरी इजाजत तो लेनी ही चाहिए थी. मैं कल तुम्हारे साथ पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा.’’

‘‘तुम्हारी जैसी मरजी,’’ रंजना ने शरारती मुसकान होंठों पर सजा कर जवाब दिया और फिर एक चुंबन उस के गाल पर अंकित कर बाथरूम में घुस गई. रात ठीक 12 बजे रंजना के मोबाइल के अलार्म से दोनों की नींद टूट गई.

‘‘यह अलार्म क्यों बज रहा है?’’ मोहित ने नाराजगी भरे स्वर में पूछा.

‘‘हैपी मैरिज ऐनिवर्सरी, स्वीट हार्ट,’’ उस के कान के पर होंठों ले जा कर रंजना ने रोमांटिक स्वर में अपने जीवनसाथी को शुभकामनाएं दीं. रंजना के बदन से उठ रही सुगंध और महकती सांसों की गरमाहट ने चंद मिनटों में जादू सा असर किया और फिर अपनी नाराजगी भुला कर मोहित ने उसे अपनी बांहों के मजबूत बंधन में कैद कर लिया. रंजना ने उसे ऐसे मस्त अंदाज में जी भर कर प्यार किया कि पूरी तरह से तृप्त नजर आ रहे मोहित को कहना ही पड़ा, ‘‘आज के लिए एक बेहतरीन तोहफा देने के लिए शुक्रिया, जानेमन.’’

‘‘आज चलोगे न मेरे साथ?’’ रंजना ने प्यार भरे स्वर में पूछा.

‘‘पार्टी में? मोहित ने सारा लाड़प्यार भुला कर माथे में बल डाल लिए.’’

‘‘मैं पार्क में जाने की बात कर रही हूं, जी.’’

‘‘वहां तो मैं जरूर चलूंगा.’’

‘‘आप कितने अच्छे हो,’’ रंजना ने उस से चिपक कर बड़े संतोष भरे अंदाज में आंखें मूंद लीं. रंजना सुबह 6 बजे उठ कर बड़े मन से तैयार हुई. आंखें खुलते ही मोहित ने उसे सजधज कर तैयार देखा तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल,’’ अपने जीवनसाथी के मुंह से ऐसी तारीफ सुन कर रंजना का मन खुशी से नाच उठा. खुद को मस्ती के मूड में आ रहे मोहित की पकड़ से बचाते हुए रंजना हंसती हुई कमरे से बाहर निकल गई.  उस ने पहले किचन में जा कर सब के लिए चाय बनाई, फिर अपने सासससुर के कमरे में गई और दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.  चाय का कप हाथ में पकड़ते हुए उस की सास ने चिढ़े से लहजे में पूछा, ‘‘क्या सुबहसुबह मायके जा रही हो, बहू?’’

‘‘हम तो पार्क जा रहे हैं मम्मी,’’ रंजना ने बड़ी मीठी आवाज में जवाब दिया. सास के बोलने से पहले ही उस के ससुरजी बोल पड़े, ‘‘बिलकुल जाओ, बहू. सुबहसुबह घूमना अच्छा रहता है.’’

‘‘हम जाएं, मम्मी?’’

‘‘किसी काम को करने से पहले तुम ने मेरी इजाजत कब से लेनी शुरू कर दी, बहू?’’ सास नाराजगी जाहिर करने का यह मौका भी नहीं चूकीं.

‘‘आप नाराज न हुआ करो मुझ से, मम्मी. हम जल्दी लौट आएंगे,’’ किसी किशोरी की तरह रंजना अपनी सास के गले लगी और फिर प्रसन्न अंदाज में मुसकराती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई. वह मोहित के साथ पार्क गई जहां दोनों के बहुत से साथी सुबह का मजा ले रहे थे. फिर उस की फरमाइश पर मोहित ने उसे गोकुल हलवाई के यहां आलूकचौड़ी का नाश्ता कराया. दोनों की वापसी करीब 2 घंटे बाद हुई. सब के लिए वे आलूकचौड़ी का नाश्ता पैक करा लाए थे. लेकिन यह बात उस की सास और ननद की नाराजगी खत्म कराने में असफल रही थी.

दोनों रंजना से सीधे मुंह बात नहीं कर रही थीं. ससुरजी की आंखों में भी कोई चिंता के भाव साफ पढ़ सकता था. उन्हें अपनी पत्नी और बेटी का व्यवहार जरा भी पसंद नहीं आ रहा था, पर चुप रहना उन की मजबूरी थी. वे अगर रंजना के पक्ष में 1 शब्द भी बोलते, तो मांबेटी दोनों हाथ धो कर उन के पीछे पड़ जातीं. सजीधजी रंजना अपनी मस्ती में दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए रसोई में चली आई. महक ने उसे कपड़े बदल आने की सलाह दी तो उस ने इतराते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, आज तुम्हारे भैया ने मेरी सुंदरता की इतनी ज्यादा तारीफ की है कि अब तो मैं ये कपड़े रात को ही बदलूंगी.’’

‘‘कीमती साड़ी पर दागधब्बे लग जाने की चिंता नहीं है क्या तुम्हें?’’

‘‘ऐसी छोटीमोटी बातों की फिक्र करना अब छोड़ दिया है मैं ने, दीदी.’’

‘‘मेरी समझ से कोई बुद्धिहीन इनसान ही अपना नुकसान होने की चिंता नहीं करता है,’’ महक ने चिढ़ कर व्यंग्य किया.

‘‘मैं बुद्धिहीन तो नहीं पर तुम्हारे भैया के प्रेम में पागल जरूर हूं,’’ हंसती हुई रंजना ने अचानक महक को गले से लगा लिया तो वह भी मुसकराने को मजबूर हो गई. रंजना ने कड़ाही पनीर की सब्जी बाजार से मंगवाई और बाकी सारा खाना घर पर तैयार किया.

‘‘आजकल की लड़कियों को फुजूलखर्ची की बहुत आदत होती है. जो लोग खराब वक्त के लिए पैसा जोड़ कर नहीं रखते हैं, उन्हें एक दिन पछताना पड़ता है, बहू,’’ अपनी सास की ऐसी सलाहों का जवाब रंजना मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला कर देती रही. उस दिन उपहार में रंजना को साड़ी और मोहित को कमीज मिली. बदले में उन्होंने महक को उस का मनपसंद सैंट, सास को साड़ी और ससुरजी को स्वैटर भेंट किया. उपहारों की अदलाबदली से घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया था. यह सब को पता था कि सागर रत्ना में औफिस वालों की पार्टी का समय रात 8 बजे का है. जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया.

‘‘तुम्हें पार्टी में जाना है तो हमारी इजाजत के बगैर जाओ,’’ उस की मां ने उस पर नजर पड़ते ही कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘आज के दिन क्या हम सब का इकट्ठे घूमने जाना अच्छा नहीं रहता, भैया?’’ महक ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘रंजना ने पार्टी में जाने से इनकार कर दिया है,’’ मोहित के इस जवाब को सुन वे तीनों ही चौंक पड़े.

‘‘क्यों नहीं जाना चाहती है बहू पार्टी में?’’ उस के पिता ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘उस की जिद है कि अगर आप तीनों साथ नहीं चलोगे तो वह भी नहीं जाएगी.’’

‘‘आजकल ड्रामा करना बड़ी अच्छी तरह से आ गया है उसे,’’ मम्मी ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की. मोहित आंखें मूंद कर चुप बैठ गया. वे तीनों बहस में उलझ गए.

‘‘हमें बहू की बेइज्जती कराने का कोई अधिकार नहीं है. तुम दोनों साथ चलने के लिए फटाफट तैयार हो जाओ वरना मैं इस घर में खाना खाना छोड़ दूंगा,’’ ससुरजी की इस धमकी के बाद ही मांबेटी तैयार होने के लिए उठीं. सभी लोग सही वक्त पर सागर रत्ना पहुंच गए. रंजना के सहयोगियों का स्वागत सभी ने मिलजुल कर किया. पूरे परिवार को यों साथसाथ हंसतेमुसकराते देख कर मेहमान मन ही मन हैरान हो उठे थे.

‘‘कैसे राजी कर लिया तुम ने इन सभी को पार्टी में शामिल होने के लिए?’’ संगीता मैडम ने एकांत में रंजना से अपनी उत्सुकता शांत करने को आखिर पूछ ही लिया. रंजना की आंखों में शरारती मुसकान की चमक उभरी और फिर उस ने धीमे स्वर में जवाब दिया, ‘‘दीदी, मैं आज आप को पिछले 1 साल में अपने अंदर आए बदलाव के बारे में बताती हूं. शादी की पहली सालगिरह के दिन मैं अपनी ससुराल वालों के रूखे व कठोर व्यवहार के कारण बहुत रोई थी, यह बात तो आप भी अच्छी तरह जानती हैं.’’

‘‘उस रात को पलंग पर लेटने के बाद एक बड़ी खास बात मेरी पकड़ में आई थी. मुझे आंसू बहाते देख कर उस दिन कोई मुसकरा तो नहीं रहा था, पर मुझे दुखी और परेशान देख कर मेरी सास और ननद की आंखों में अजीब सी संतुष्टि के भाव कोई भी पढ़ सकता था. ‘‘तब मेरी समझ में यह बात पहली बार आई कि किसी को रुला कर व घर में खास खुशी के मौकों पर क्लेश कर के भी कुछ लोग मन ही मन अच्छा महसूस करते हैं. इस समझ ने मुझे जबरदस्त झटका लगाया और मैं ने उसी रात फैसला कर लिया कि मैं ऐसे लोगों के हाथ की कठपुतली बन अपनी खुशियों व मन की शांति को भविष्य में कभी नष्ट नहीं होने दूंगी. ‘‘खुद से जुड़े लोगों को अब मैं ने 2 श्रेणियों में बांट रखा है. कुछ मुझे प्रसन्न और सुखी देख कर खुश होते हैं, तो कुछ नहीं. दूसरी श्रेणी के लोग मेरा कितना भी अहित करने की कोशिश करें, मैं अब उन से बिलकुल नहीं उलझती हूं.

‘‘औफिस में रितु मुझे जलाने की कितनी भी कोशिश करे, मैं बुरा नहीं मानती. ऐसे ही सुरेंद्र सर की डांट खत्म होते ही मुसकराने लगती हूं.’’

‘‘घर में मेरी सास और ननद अब मुझे गुस्सा दिलाने या रुलाने में सफल नहीं हो पातीं. मोहित से रूठ कर कईकई दिनों तक न बोलना अब अतीत की बात हो गई है. ‘‘जहां मैं पहले आंसू बहाती थी, वहीं अब मुसकराते रहने की कला में पारंगत हो गई हूं. अपनी खुशियों और मन की सुखशांति को अब मैं ने किसी के हाथों गिरवी नहीं रखा हुआ है. ‘‘जो मेरा अहित चाहते हैं, वे मुझे देख कर किलसते हैं और मेरे कुछ किए बिना ही हिसाब बराबर हो जाता है. जो मेरे शुभचिंतक हैं, मेरी खुशी उन की खुशियां बढ़ाने में सहायक होती हैं और यह सब के लिए अच्छा ही है.

‘‘अपने दोनों हाथों में लड्डू लिए मैं खुशी और मस्ती के साथ जी रही हूं, दीदी. मैं ने एक बात और भी नोट की है. मैं खुश रहती हूं तो मुझे नापसंद करने वालों के खुश होने की संभावना भी ज्यादा हो जाती है. मेरी सास और ननद की यहां उपस्थिति इसी कारण है और उन दोनों की मौजूदगी मेरी खुशी को निश्चित रूप से बढ़ा रही है.’’ संगीता मैडम ने प्यार से उस का माथा चूमा और फिर भावुक स्वर में बोलीं, ‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो गई हो, रंजना. मेरी तो यही कामना है कि तुम जैसी बहू मुझे भी मिले.’’ ‘‘आज के दिन इस से बढिया कौंप्लीमैंट मुझे शायद ही मिले, दीदी. थैंक्यू वैरी मच,’’ भावविभोर हो रंजना उन के गले लग गई. उस की आंखों से छलकने वाले आंसू खुशी के थे.

Family Story: धोखा – क्या संदेश और शुभ्रा शादी से खुश थे?

Family Story: संदेश और शुभ्रा ने एकदूसरे को पसंद कर शादी के लिए रजामंदी दी थी. दोनों के परिवारों ने खूब अच्छी तरह देखपरख कर संदेश और शुभ्रा की शादी करने का फैसला किया था. यह कोई प्रेम विवाह नहीं था. रिश्तेदारों ने ही ये रिश्ता करवाया था.

संदेश एमबीए कर के एक कंपनी में सहायक मैनेजर के पद पर काम कर रहा था, तो शुभ्रा भी एमए कर के सिविल सर्विस के लिए कोशिश कर रही थी. ऐसे में शुभ्रा के एक रिश्तेदार ने संदेश के बारे में शुभ्रा के मम्मीपापा को बताया. शुभ्रा के मम्मीपापा रिश्ते की बात करने के लिए संदेश के घर गए.

संदेश के पिताजी बैंक से रिटायर्ड थे तो मम्मी घरेलू औरत थी. इस तरह देखादिखाई के बाद संदेश और शुभ्रा की शादी हुई.

संदेश के मातापिता उस के बड़े भाई के साथ रहते थे, तो संदेश दूसरे शहर में सर्विस करता था, इसलिए संदेश के मातापिता ने शुभ्रा को उस के साथ भेज दिया, ताकि उन को रहनेखाने में कोई दिक्कत न हो.

शुभ्रा संदेश के साथ रहने के लिए इस शहर में चली आई. संदेश के परिवार ने शहर की एक अच्छी सोसाइटी में फ्लैट ले कर दे दिया था, ताकि बारबार किराए के मकान के बदलने से छुटकारा मिल जाए.

3 कमरों का यह फ्लैट तीसरी मंजिल पर था. शुभ्रा के आने से तो मानो फ्लैट महक उठा. सुबह जब संदेश औफिस चला जाता, तो शुभ्रा अपने हाथों से साफसफाई करती, झाड़पोंछ कर घर को एकदम साफसुथरा रखती.

शाम को जैसे ही संदेश घर आता, उस के हाथ से ब्रीफकेस ले कर शुभ्रा रखती. उस के शर्ट के बटन खोलती, फिर पहले पानी और उस के बाद दोनों इकट्ठा ही चायनाश्ता करते. शाम को कभी पार्क, कभी मौल, तो कभी किधर घूमने अकसर निकल जाते संदेश और शुभ्रा. नईनई शादी हुई है, तो दोनों एकदूसरे को टूट कर प्यार करतेकरते एकदूसरे की बांहों में ऐसे समा जाते कि सुबह ही आंखें खुलती.

एकदूसरे की बांहों में समाए, प्यार करतेकरते कब शादी की सालगिरह आ गई, पता नहीं चला. शुभ्रा को तो सुबह जब संदेश ने चूम कर मुबारकबाद दी, तब याद आया.

औफिस जाते समय संदेश ने शुभ्रा से कहा, ‘‘आज शाम को बाहर चलेंगे, वहीं खाना खा कर आएंगे.’’

शाम 6 बजे सही समय पर संदेश घर आ गया, शुभ्रा पहले से ही तैयार थी. बस, संदेश तैयार होने लगा और थोड़ी देर में ही वे घर से निकल पड़े.

संदेश ने पहले से ही होटल में टेबल बुक करवा रखी थी. वहां पहुंच कर संदेश ने पहले स्नैक्स, उस के बाद खाने का और्डर दे दिया था.

जब तक वेटर ये सब ले कर आता, संदेश ने शुभ्रा को हाथ आगे करने को कहा.

जैसे ही शुभ्रा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, संदेश ने एक हीरे की बहुत ही सुंदर अंगूठी उस की उंगली में पहना दी.

यह देख शुभ्रा की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने संदेश को चूम लिया. दोनों खाना खा कर खुशीखुशी घर लौटे और सो गए.

प्यार का यह सिलसिला ठीकठाक चल ही रहा था कि अचानक संदेश के बरताव में शुभ्रा ने बदलाव महसूस करना शुरू कर दिया.

अब शाम को संदेश बहुत थकाहारा सा औफिस से लेट आता. इस के बाद खाना खा कर थोड़ीबहुत इधरउधर की बात करता, फिर सोने की तैयारी करता.

शुभ्रा उस को प्यार करने के लिए कहती, तो कभी थकावट, कभी गैस, तो कभी कोई बहाना बना कर मुंह फेर कर सो जाता. सुबह भी औफिस के लिए एक घंटा तय समय से पहले निकल जाता. सुबह इतनी हड़बड़ाहट में होता कि कभी लंच बौक्स भूल जाता, तो शुभ्रा भाग कर उस को थमा कर आती.

शुभ्रा इस की वजह जानने की कोशिश में थी, लेकिन अभी तो वह जान नहीं पाई.

ऐसे बोझिल माहौल से छुटकारा पाने के लिए शुभ्रा सुबह सोसाइटी के पार्क में घूमने लगी. सोसाइटी की एक आंटी से शुभ्रा की मुलाकात हो गई. अब सुबहसुबह दोनों इकट्ठे बैठ कर कसरत करतीं और बतियाती थीं.

एक दिन एक नौजवान लड़का भी वहां जौगिंग कर रहा था. शुभ्रा ने उसे देखा, तो आंटी ने शुभ्रा को देख लिया और शुभ्रा से कहा, ‘‘मीठा है ये.’’

शुभ्रा इस का मतलब नहीं समझी, तो आंटी ने बताया, ‘‘यह ‘गे’ है.’’

शुभ्रा ने पूछा, ‘‘कहां रहता है, यह?’’

आंटी ने कहा, ‘‘तेरे फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में किराए पर रहता हैं.’’

इस के बाद शुभ्रा अपने घर आ गई और आंटी अपने घर चली गई. लेकिन शुभ्रा उस नौजवान के बारे में सोच कर भिन्नाती रही कि आदमी हो कर भी यह सब. यह बात शुभ्रा के दिमाग से निकल ही नहीं रही थी.

आज भी संदेश बड़ी हड़बड़ाहट में तैयार हो कर निकला. शुभ्रा संदेश के जाने के बाद कपड़े धो कर बालकनी में सुखाने के लिए डाल रही थी, तभी उस ने नीचे देखा कि संदेश सोसाइटी से दफ्तर के लिए अब निकल रहा है, घर से निकलने के एक घंटे बाद…

शुभ्रा के दिल में शक ने जन्म ले लिया था. शाम को संदेश दफ्तर से घर आया, तो शुभ्रा ने ब्रीफकेस लिया और उस को टेबल पर रख ही रही थी कि वह खुल गया और उस में से डीओ, परफ्यूम, अंडरवियर जैसी चीजें बाहर आ गईं.

संदेश की नजर उन पर पड़ी, तो भाग कर उन को ब्रीफकेस में डाल कर बंद कर दिया.

शुभ्रा ने जब देखा, तो पूछ ही लिया, ‘‘यह सब किस के लिए…?’’

संदेश ने बहाना बना दिया कि औफिस का एक कर्मचारी रिटायर हो रहा?है, उस को गिफ्ट में देने के लिए यह सब लाया है. शुभ्रा ने कहा, ‘‘रिटायरमैंट के गिफ्ट में यह सब कौन देता है?’’

खैर, बात आईगई हो गई.

अब शुभ्रा को सब समझ आने लगा था. उस ने कई दिन जांचपड़ताल की और एक दिन सही समय पर संदेश को उस नौजवान के फ्लैट से निकलते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया. संदेश के चेहरे का रंग उड़ गया.

शुभ्रा संदेश को फ्लैट में ले कर आई. वहां संदेश ने उस नौजवान के साथ अपना संबंध स्वीकार कर लिया और कहा कि इस से संबंध बनाने के बाद मुझे तुम में या लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं रही. दोनों में काफी कहासुनी हुई.

शुभ्रा ने संदेश से कहा, ‘‘तुम ने मुझे धोखा दिया है. मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती,’’ वह गुस्से में फुफकारती हुई निकल गई और संदेश भी अपना सूटकेस ले कर घर से निकल पड़ा.

संदेश ने शुभ्रा को रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुकी.

संदेश आंखों से ओझल होती शुभ्रा को देख कर अपने बाल नोचने लगा.

Family Story: अपना घर – सीमा अपने मायके में खुश क्यों नहीं थी?

Family Story, लेखिका- अर्चना खंडेलवाल

मोबाइल की घंटी बजते ही सीमा ने तुरंत फोन उठा लिया. रिसीवर के दूसरी ओर मां थी, ‘‘मां, आप को ही याद कर रही थी. भैया रवाना हो गए? आप सब को देखे महीना हो गया.’’ सीमा थोड़ी सी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘भैया कब तक आएंगे? मु?ा से तो सब्र नहीं हो रहा. अब कब आ कर आप सब से मिलूं.’’

‘‘आ रहा है बेटा, तेरे बिना घर ही सूना हो गया. तू तो हमारे घर की रौनक थी. तेरे बाबूजी, भैया, मैं, हम सब को तू बहुत ही याद आती है. तेरी नई भाभी भी तु?ा से मिलने को अधीर है. दीदी कब आएंगी, बस यही पूछती रहती है. अच्छे से सामान पैक कर लेना. खानेपीने का सब रख लेना. ट्रेन से नीचे मत उतरना. मौसम थोड़ा ठंडा है, कुछ हलका ओढ़ने को रख लेना.’’

‘‘हां मां हां, अब मैं बच्ची नहीं रही. शादी हो चुकी है, मैं सब मैनेज कर लूंगी.’’ कह कर सीमा ने फोन रख दिया. ‘मां भी न,’ यह सोच कर सीमा मुसकरा दी.

दूसरे दिन सवेरे जल्दी उठ कर सीमा ने फाइनल पैकिंग कर ली. सीमा की सास ने आज उसे रसोई से छुट्टी दे दी ताकि वह आराम से सब पैक कर ले. रोहन से दूर होने का दुख था पर महीनेभर बाद मायके जाने की खुशी अलग थी. तभी डोरबेल बजी, ‘‘भैया, आप आ गए,’’ भैया को देख कर सीमा की प्रसन्नता देखने लायक थी.

सास ने दोपहर का खाना लगाया. पहली बार बहू के भाई की आवभगत में कोई कमी नहीं रखी. आते ही पूरा घर संभाल लिया. सीमा तो हमारे घर के कणकण में रचबस गई है, बेटा. इस के जाते ही बहुत अखरेगा. सीमा अपनी तारीफ में सास द्वारा कहे गए शब्दों के बो?ातले दबे जा रही थी.

‘‘जी,’’ मांजी, सास के पांव छू कर विदा ली. रोहन ने भैया, सीमा को रेलवे स्टेशन तक छोड़ दिया.

सीमा और उस के भैया की शादी दो दिनों के अंतराल से हुई थी. पहले भाभी घर में आई, एक दिन बाद सीमा की बिदाई. ज्यादा दिन साथ रहे नहीं, दोनों अपनीअपनी शादी में व्यस्त थीं. आज सीमा शादी के एक महीने बाद मायके में रहने जा रही है. दूर भी तो इतना भेज दिया, बारबार जल्दी से मायके आ भी नहीं सकते. ट्रेन की दूरी तो बहुत खल रही थी. काफी उत्साहित थी, सब से मिलने के लिए.

शादी के बाद रस्मोरिवाज, रिश्तेदारों के यहां आनेजाने में ही वक्त निकल गया. रोहन के साथ हनीमून की मीठी यादें याद करती रही, कभी मायके में बिताया हर पल. शादी के बाद लड़की 2 नावों की सवारी करती है, दोनों में संतुलन कर के चलती है. मायके वाले भी उतने ही प्रिय होते हैं जितने ससुराल वाले. मायके में जिंदगी का अल्हड़पन बीतता है. और ससुराल में जिम्मेदारी और कर्त्तव्यों को वहन करना होता है. मायके में कोई रोकटोक नहीं, कोई बंदिश नहीं, सब से बड़ी बात वहां अपेक्षाएं नहीं थीं.

ट्रेन में भैया, भाभी के गुणों की ही व्याख्या करते रहे हैं. सीमा का मन अधीर हो गया, भाभी से मिलने को.

घर की इकलौती लाड़ली सीमा काफी चतुर व सम?ादार थी. मां की बीमारी के चलते सारे घर की जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर थी. कौन सी चीज कहां रखनी है, कौन सा सामान किस तरह से घर में सैट करना है. अमुक चादर बैड पर जंचेगी या नहीं. अमुक टेबल कमरे के किस कौर्नर में रखें, गमले में आज कौन से फूल महकेंगे. सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने में क्या बनेगा. सब काम सीमा के फैसले से होते थे. सीमा मां, बाबूजी, भैया के साथ अपनी ही दुनिया में डूबी हुई थी.

एकाएक उसे आभास हुआ घर में उस की शादी के चर्चा होने लगी. रोज कहीं न कहीं बाबूजी लड़का देख कर आते. उस दिन जब बूआ आई थीं, सम?ा रही थीं, ‘‘लड़की को सही वक्त पर उस के घर भेज दो, यह तो पराया घर है. एक दिन तो उसे यह घर छोड़ कर जाना है,’’ बूआ की बात कानों से सुनी, तभी से सीमा की सांस ऊपरनीचे हो गई. क्यों यह पराया घर है. जिस घर पलीबढ़ी, खेलीकूदी, हर खुशी पाई. किसी के पास जवाब नहीं था, पर सब को यही कहना था, जाना तो होगा. आखिर सब के सम?ाने पर सीमा मान गई. पर उस ने शर्त रखी कि वह मां को बीमार छोड़ कर नहीं जाएंगी. पहले भैया की भी शादी कीजिए. शर्त मान  ली गई संयोग से सुयोग्य लड़की भी  मिल गई.

ज्योंज्यों मायका नजदीक आ रहा था, वैसे ही सीमा की बेचैनी भी बढ़ने लगी. आखिर उस का घर दिख गया. रोमरोम पुलकित हो गया. भैया ने जैसे ही सामान उतारा, सीमा ने घर के आंगन में पांव रखा कि चौंक गई. बाहर आंगन में उस ने जो छोटा सा बगीचा तैयार किया था, सुबहशाम पानी डाला करती थी, जहां बैठ कर अकसर पढ़ाई किया करती थी, कितनी मेहनत से तरहतरह के पौधे लगाए थे, उस के बगीचे का नामोनिशान नहीं था. आंगन की महकती खुशबू को बेजान पत्थरों ने दबा दिया था. सारा आंगन पक्का करवा दिया गया था.

भैया ने सीमा के चेहरे के भाव पढ़ लिए, दबी जबान में बोले, ‘‘यह तुम्हारी भाभी ने कहा, सारा घर मिट्टी से सन जाता है, वैसे भी तुम्हारे जाते ही सारे फूल मुर?ा गए थे.’’

उतरे चेहरे से सीमा अंदर ड्राइंगरूम में पहुंची. मांभाभी से मिली. भाभी चायनाश्ते में जुट गई. ड्राइंगरूम का नक्शा ही बदल गया था. सीमा की पेंटिंग्स दीवार से उतर कर घर के पिछवाड़े तक जा पहुंचीं, भाभी की बनाई पेंटिंग से रूम सज रहा था. दीवान पर पेंटिंग की चादर की जगह भाभी के हाथ की कशीदे की चादर फब रही थी. अब सोफा सैट की दिशा भी बदल गई. गमलों में बनावटी फूल खिल रहे थे. परदों के रंग भी उलटपुलट हो गए.

उसे लगा वह किसी नई जगह पर आ गई है. सीमा मनमसोस कर रह गई, कहने वाली थी कि मां यह क्या? तभी मां बोली, ‘‘तेरे घर पर सब ठीक है.’’

सीमा बोली, ‘‘हां, मां, मेरे घर पर सब ठीक है.’’

उधर मां भाभी की बनाई चीजों की तारीफ करते नहीं थक रही थी. तेरी भाभी ने आते ही अपना घर संभाल लिया. ‘सच है, यह भाभी का घर है, मेरा तो कभी था ही नहीं,’ हौले से सीमा बुदबुदा दी. यह घर पराया था नहीं, पर अब लगने लगा. मेरी इस घर में कोई अहमियत नहीं रही, सीमा मन ही मन रो दी.

रात के खाने से निबटी थी. अब उसे मेहमानों का कमरा दिया गया. रातभर सोचसोच कर करवट बदलती रही.

बचपन के स्कूल के, हर पल, हर क्षण याद आते रहे. वह अपने ही मन को सम?ाती रही. मां, बाबूजी, भैया, भाभी के प्यारदुलार में कोई कमी नहीं है. फिर भी अब वह बात नहीं रही जो शादी से पहले थी. हिचकिचाहट नहीं थी. कुछ भी काम करना हो, अब पूछना होता है. भाभी के हिसाब से घर की किचन की सैटिंग है, तो मु?ो क्यों अखर रहा है. अपनेआप से सवाल करने लगी. मैं ने भी तो रोहन का घर संभाल लिया है. जैसे मु?ो पता है, घर की कौन सी चीज कहां रखी है. यह सोचतेसोचते जाने कब आंख लग गई.

सुबह नाश्ते की टेबल पर भैया ने मां के हाथ में रुपए दिए. मां ने आवाज लगाई, ‘‘बहू ये रुपए अलमारी में रख दे,’’ सीमा ने रुपयों से एकाएक नजरें चुरा लीं. शादी से पहले चाबी सीमा के ही हाथ में रहती थी. कुछ दिन मायके में रही. उस की उपस्थिति मात्र मेहमानस्वरूप ही रही. उसे महसूस हुआ, शादी के बाद लड़की ही नहीं, उस की तमाम चीजें शौक, पसंद भी पराए हो जाते हैं.

मां, भैया, भाभी ने कुछ और दिन रुकने को कहा पर सीमा टस से मस नहीं हुई. उस के अपने पराए और पराए अपने हो गए थे. अगले दिन रोहन लेने आ गए. बिना किसी मोह, आंसू के सीमा अपने पति के साथ अपने घर चल दी.

घर की इकलौती लाड़ली सीमा काफी चतुर व सम?ादार थी. मां की बीमारी के चलते सारे घर की जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर थी. कौन सी चीज कहां रखनी है, कौन सा सामान किस तरह से घर में सैट करना है. अमुक चादर बैड पर जंचेगी या नहीं. अमुक टेबल कमरे के किस कौर्नर में रखें, गमले में आज कौन से फूल महकेंगे.

Family Story: निराधार डर – माया क्यों शक करती थी

Family Story: ‘‘शादी हुई नहीं कि बेटा पराया हो जाता है,’’ माया किसी से फोन पर कह रही थीं, ‘‘दीप की शादी हुए अभी तो केवल 15 दिन ही हुए हैं और अभी से उस में इतना बदलाव आ गया है. पलक के सिवा उसे न कोई दिखाई देता है, न ही कुछ सूझता है. ठीक है कि पत्नी के साथ वह ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता है, पर मां की उपेक्षा करना क्या ठीक है.’’ यह सुन कर दीप हैरान रह गया. उस ने अनुमान लगाया कि फोन के दूसरी तरफ सोमा बूआ ही होंगी. वही हैं जो इस तरह की बातों को शह देती हैं. वह भी तो हमेशा अपने बेटेबहू को ले कर नाराज रहती हैं. सब जानते हैं कि सोमा बूआ की किसी से नहीं बनती. वे तो सभी से परेशान रहती हैं और दूरपास का कोई ऐसा रिश्तेदार नहीं है जो उन के व्यंग्यबाणों का शिकार न हुआ हो. अपने बेटे को तो वे सब के सामने जोरू का गुलाम तक कहने से नहीं चूकती हैं. पर मां, उस के बारे में ऐसा सोचती हैं, यह बात उसे भीतर तक झकझोर गई. घर में और तो किसी ने ऐसा कुछ नहीं कहा, तो मां को ऐसा क्यों लग रहा है. पापा, उस की बहन दीपा, किसी ने भी तो ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया है जिस से लगे कि वह शादी के बाद बदल गया है. फिर मां को ही क्यों लग रहा है कि वह बदल गया है.

पलक को इस समय नए घर में एडजस्ट होने में उस का सहयोग और साथ चाहिए और वही वह उसे दे रहा है तो इस से क्या वह मां के लिए पराया हो गया है. पलक के लिए यह घर नया है, यहां के तौरतरीके, रहनसहन सीखनेसमझने में उसे समय तो लगेगा ही और अगर वह यहां के अनुरूप नहीं ढलेगी तो क्या मां नाराज नहीं होंगी. आखिर मां क्यों नहीं समझ पा रही हैं कि पलक के लिए नए माहौल में ढल पाना सहज नहीं है. इस के लिए उसे पूरी तरह से अपने को बदलना होगा और वह चाहती है कि इस घर को जल्दी से जल्दी अपना बना लें ताकि सारी असहजता खत्म हो जाए. वह पूरी कोशिश कर रही है, पर मां का असहयोग उसे विचलित कर देता है. दीप खुद हैरान था मां के व्यवहार को देख कर. मां तो ऐसी नहीं हैं, फिर पलक के प्रति वे कटु कैसे हो गई हैं.

‘‘मां, ये कैसी बातें कर रही हैं आप? मैं पराया कहां हुआ हूं? बताइए न मुझ से कहां चूक हो गई या आप की कौन सी बात की अवहेलना की है मैं ने? हां, इतना अवश्य हुआ है कि मेरा समय अब बंट गया है. मुझे अब पलक को भी समय देना है ताकि वह अकेलापन महसूस न करे.

‘‘अभी मायके की यादें, मांबाप, भाईबहन से बिछुड़ने का दुख उस पर हावी है. हम सब को उसे सहयोग देना चाहिए ताकि वह खुल कर अपनी बात सब से कह सके. उसे थोड़ा वक्त तो हमें देना ही होगा, मां छुट्टियां खत्म हो जाने से पहले वह भी सब कुछ समझ लेना चाहती है, जिस से औफिस और घर के काम में उसे तालमेल बिठाने में दिक्कत न हो.’’

‘‘मुझे तुझ से बहस नहीं करनी है, चार दिन हुए हैं उसे आए और लगा है उस की तरफदारी करने.’’ पलक अपने कमरे में बैठी मांबेटे की बातें सुन रही थी. उसे हैरानी के साथसाथ दुख भी हो रहा था कि आखिर मां, इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही हैं. वह तो उन के तौरतरीके अपनाने को पूरे मन से तैयार है, फिर मां की यह सोच कैसे बन गई कि उस ने दीप को अपनी मुट्ठी में कर लिया है. कमरे में दीप के आते ही उस ने पूछा, ‘‘मुझ से कहां चूक हो गई, दीप, जो मां इस तरह की बात कर रही हैं. मैं ने कब कहा कि तुम हमेशा मेरे पल्लू से बंधे रहो. इतना अवश्य है कि मां से मुझे किसी तरह भी सहयोग नहीं मिल रहा है, इसलिए मुझे तुम्हारे ऊपर ज्यादा निर्भर होना पड़ रहा है. फिर चाहे वह घरगृहस्थी से जुड़ी बात हो या रसोई के काम की या फिर मेरे दायित्वों की. इसी कारण तो हम हनीमून के लिए भी नहीं गए ताकि मुझे इस माहौल में एडजस्ट होने के लिए समय मिल जाए. जानते ही हो कि छुट्टी भी मुश्किल से एक महीने की ही मिली है.’’

‘‘मैं खुद हैरान हूं, पलक कि मां इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही हैं. जबकि उन्हें ही मेरी शादी की जल्दी थी. हमारी लव मैरिज उन की स्वीकृति के बाद ही हुई है. शादी से पहले तो वे तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती थीं, फिर अब अचानक क्या हो गया. कितने चाव से उन्होंने शादी की एकएक रस्म निभाई थी. सोमा बूआ टोकती थीं तो मां उन की बातों को नजरअंदाज कर देती थीं. सब से यही कहतीं, मेरा तो एक ही बेटा है, उस की शादी में अपने सारे चाव पूरे करूंगी. आज वे सोमा बूआ की बातों को सुन रही हैं, उन से ही हमारी शिकायत कर रही हैं. ‘‘आज उन्हें अपने ही बेटे की खुशी खल रही है. उन्हें तो इस बात की तसल्ली होनी चाहिए कि हम दोनों खुश हैं और एकदूसरे से प्यार करते हैं. डरता हूं सोमा बूआ कहीं हमारे बीच भी तनाव न पैदा कर दें. मां ने उन की बातें सुनीं तो अवश्य ही उन के बेटेबहू की तरह हमारे बीच भी झगड़े होने लगेंगे.’’

‘‘मुझ पर विश्वास रखो दीप, ऐसा कुछ नहीं होगा,’’ पलक के स्वर में दृढ़ता थी. ‘‘हमें मां के भीतर चल रही उथलपुथल को समझ कर उन से व्यवहार करना होगा. उन के मनोविज्ञान को समझना होगा. दीप, मनोविज्ञान की छात्र रहने के कारण मैं उन की मानसिक स्थिति बखूबी समझ सकती हूं. जब बेटे की शादी होती है तो कई बार एक डर मां के मन में समा जाता है कि अब तो उस का बेटा हाथ से निकल गया. उस में सब से खराब स्थिति बेटे की ही होती है, क्योंकि वह ‘किस की सुने’ के चक्रव्यूह में फंस जाता है. त्रिशंकु जैसी स्थिति हो जाती है उस की. पत्नी जो दूसरे घर से आती है वह पूरी तरह से नए परिवेश में ढलने के लिए उस पर ही निर्भर होती है, और मां को लगता है कि बेटा जो आज तक हर काम उन से पूछ कर करता था, अब बीवी को हर बात बताने लगा है. बस, यही वजह है जब मां को लगता है कि उन की सत्ता में सेंध लगाने वाली आ गई है और वह बहू के खिलाफ मोरचा संभाल लेती है. लेकिन हमें मां को उस डर से बाहर निकालना ही होगा.’’

‘‘पर यह कैसे होगा?’’ दीप पलक की बात सुन थोड़ा असमंजस में था. वह किसी भी तरह से मां को दुखी नहीं देख सकता था और न ही चाहता था कि पलक और मां के संबंधों में कटुता आए.

‘‘यह तुम मुझ पर छोड़ दो, दीप. बस यह खयाल रखना कि मां चाहे मुझ से जो भी कहें, तुम हमारे बीच में नहीं बोलोगे. इस तरह बात और बिगड़ जाएगी और मां को लगेगा कि मेरी वजह से मांबेटे के रिश्ते में दरार आ रही है या बेटा मां से बहस कर रहा है. हालांकि उन की जगह कोई नहीं ले सकता पर फिर भी हमें उन्हें बारबार यह एहसास कराना होगा कि उन की सत्ता में सेंध लगाने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ‘‘हर सदस्य की परिवार में अपनी तरह से अहमियत होती है. बस, यही उन्हें समझाना होगा. उस के बाद उन के मन से सारे भय निकल जाएंगे तब वे तुम्हें ले कर शंकित नहीं होंगी कि तुम उन के बुढ़ापे का सहारा नहीं बनोगे, न ही वे इस बात से चिंतित रहेंगी कि मैं उन के बेटे को उन से छीन लूंगी.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, पलक. मैं ने भी कई घरों में यही बात देखी है. इसी की वजह से न चाहते हुए मेरे दोस्त वैभव को शादी के बाद अलग होने को मजबूर होना पड़ा था. सासबहू की लड़ाई में वह पिस रहा था. यह देख उस के पापा ने ही उस से अलग हो जाने को कहा था. बेटा हाथ से न निकल जाए का डर, यह अनिश्चतता कि बुढ़ापे में कहीं वे अकेले न रह जाएं, बहू घर पर अधिकार न कर ले, बहू की बातों में आ कर कहीं बेटा बुरा व्यवहार न करे या घर से न निकाल दे, ये बातें जब मन में पलने लगती हैं तो निराधार होने के बावजूद संबंधों में कड़वाहट ले आती हैं. मैं नहीं चाहता कि मेरे परिवार में ऐसा कुछ हो. मैं अपने मांबाप को किसी हाल में नहीं छोड़ सकता,’’ दीप भावुक हो गया था.

‘‘दीप, अब अंदर ही बैठा रहेगा या बाहर भी आएगा. देखो, तुम्हारे मामामामी आए हैं,’’ मां के स्वर में झल्लाहट साफ झलक रही थी. दीप को बुरा लगा पर पलक ने उसे शांत रहने का इशारा किया. बाहर आ कर दोनों ने मामामामी के पैर छुए. फिर पलक किचन में उन के लिए चायनाश्ता लेने चली गई. ‘‘दीदी, अब तो आप का मन खूब लग रहा होगा. पलक काफी मिलनसार और खुशमिजाज लड़की है. बड़ों का आदर भी करती है. जब कुछ दिन पहले दीप और पलक घर आए थे तभी पता लग गया था. बहुत प्यारी बच्ची है.’’ अपनी भाभी के मुंह से पलक की तारीफ सुन माया ने सिर्फ सिर हिलाया. यह सच था कि पलक उन्हें भी अच्छी लगती थी, पर उस की तारीफ करने से वे डरती थीं कि कहीं इस से उन का दिमाग खराब न हो जाए. पलक उस की हर बात को मानती थी, पर वे थीं कि एक दूरी बनाए हुए थीं, पता नहीं पढ़ीलिखी, नौकरी वाली बहू बाद में कैसे रंग दिखाए. वैसे ही बेटा उस के आगेपीछे घूमता रहता है, न जाने क्यों उन के अंदर एक खीझ भर गई थी जिस के कारण वे पलक से खिंचीखिंची रहती थी. और इस वजह से उन के पति और बेटी भी उन से नाराज थे.

‘‘मां, आप एक मिनट के लिए यहां आएंगी,’’ पलक ने 5 मिनट बाद आवाज लगाई, ‘‘मां, प्लीज मुझे बता दीजिए कि मामामामी को क्या पसंद है. आप तो सब जानती हैं.’’ माया को यह सुन अच्छा लगा. पलक जब नाश्ता ले कर आ रही थी तो उस ने मामी को कहते सुना, ‘‘मानना पड़ेगा दीदी, इतनी पढ़ीलिखी होने पर भी पलक में घमंड बिलकुल नहीं है, वरना कमाने वाली लड़कियां तो आजकल रसोई में जाने से ही परहेज करती हैं. ‘‘उस दिन जब हमारे घर आई थी तभी परख लिया था मैं ने कि इस में नखरे तो बिलकुल नहीं हैं. मेरी भाभी की बहू को ही देख लो. उस ने शादी के बाद ही साफ कह दिया था कि घर का कोई काम नहीं करेगी. नौकर रखो या और कोई व्यवस्था करो, उसे कोई मतलब नहीं है. भाभी की तो उस के सामने एक नहीं चलती. आप को तो खुश होना चाहिए बेटाबहू दोनों ही आप को इतना मान देते हैं.’’

‘‘अरे, अभी उसे आए दिन ही कितने हुए हैं. औफिस जाना एक बार शुरू करने दो, सारे रंग सामने आ जाएंगे,’’ पलक को आते देख माया एकदम चुप हो गईं. पलक को बुरा तो बहुत लगा पर वह हंसते हुए नाश्ता परोसने लगी. दीप अंदर ही अंदर कुढ़ कर रहा गया था. वह कुछ कहना ही चाहता था कि पलक ने उसे इशारे से मना कर दिया. मामी ने महसूस किया कि माया पलक के प्रति कुछ ज्यादा ही कटु हो रही हैं और दीप को अच्छा न लगना स्वाभाविक ही था. जातेजाते वे बोलीं, ‘‘दीदी, हो सकता है आप को मेरा कुछ कहना अच्छा न लगे, पर आप पलक के बारे में कुछ ज्यादा ही गलत सोच रही हैं. हो सकता है उस में कुछ कमियां हों, तो क्या हुआ. वे तो सभी में होती हैं. बच्ची को प्यार देंगी तो वह भी आप का सम्मान करेगी. मुझे तो लगता है कि वह आप के जितना निकट आना चाहती है, आप उस से उतनी ही दूरियां बनाती जा रही हैं. ‘‘दीप की खुशी के बारे में सोचें. पलक की वजह से ही वह चुप है, पर कब तक चुप रहेगा. बेटा चाहे वैसे दूर न हो, पर आप की सोच की वजह से दूर हो जाएगा. बहू बेटे को छीन लेगी, यह डर ही आप को रिश्ते में दरार डालने के लिए मजबूर कर रहा है. पलक को खुलेदिल से अपना लीजिए, वरना बेटा सचमुच छिन जाएगा.’’

‘‘सही तो कह रही थीं तुम्हारी भाभी,’’ रात को मौका पाते ही उन के पति ने उन्हें समझाना चाहा, ‘‘इतनी अच्छी बहू मिली है, पर तुम ने दूसरों के बेटेबहू के किस्से सुन एक धारणा बना ली है जो निराधार है. आज वह हर बात तुम से पूछ रही है, लेकिन अगर तुम्हारा यही रवैया रहा तो दीप ही सब से पहले तुम्हारा विरोध करेगा. ‘‘सोचो, अगर पलक उसे तुम्हारे खिलाफ भड़काने लगे तो क्या होगा. सोमा की बातों पर मत जाओ. बहू को दिनरात ताने दे कर उस ने संबंध खराब किए हैं. नए घर में जब एक लड़की आती है तो उस के कुछ सपने होते हैं, वह नए रिश्तों से जुड़ने की कोशिश करती है. पर तुम हो कि उस की गलतियां ही ढूंढ़ती रहती हो. इस तरह तुम दीप को दुखी कर रही हो. क्या तुम नहीं चाहतीं कि तुम्हारा बेटा खुश रहे.

‘‘कल हमारी दीपा के साथ भी उस की सास ऐसा ही व्यवहार करेगी तो क्या वह सुखी रह पाएगी या तुम बरदाश्त कर पाओगी? अपने डर से बाहर निकलो माया, और पलक व दीप पर विश्वास करो.’’ पूरी रात माया कशमकश से जूझती रहीं. सच में बेटे के छिन जाने का डर ही उन्हें पलक के साथ कठोर व्यवहार करने को मजबूर कर रहा है. आखिर जितना प्यार वे दीप और दीपा पर उड़ेलती हैं, पलक को दें तो क्या वह भी उन की बेटी नहीं बन जाएगी. जरूरी है कि उसे बहू के खांचे में जकड़ कर ही रखा जाए? वह भी तो माया में मां को ही तलाश रही होगी? माया जब सुबह उठीं तो उन के चेहरे पर कठोरता और खीझ के भाव की जगह एक कोमलता व नजरों में प्यार देख पलक बोली, ‘‘मां, आइए न, साथ बैठ कर चाय पीते हैं. आज संडे है तो दीप तो देर तक ही सोने वाले हैं.’’

‘‘तुम क्यों इतनी जल्दी उठ गईं? जाओ आराम करो. नाश्ता मैं बना लूंगी.’’ ‘‘नहीं मां, हम मिल कर नाश्ता बनाएंगे और इस बहाने मैं आप से नईनई चीजें भी सीख लूंगी.’’ डाइनिंग टेबल पर मां को पलक से बात करते और खिलखिलाते देख दीप हैरान था. पलक ने आंखों ही आंखों में जैसे उसे बताया कि उसे यहां भी मां मिल गई हैं.

Hindi Story: चिड़िया का बच्चा

Hindi Story: ‘टिंग टांग…टिंग टांग’…घंटी बजते ही मैं बोली, ‘‘आई दीपू.’’

मगर जब तक दरवाजा न खुल जाए, दीपू की आदत है कि घंटी बजाता ही रहता है. बड़ा ही शैतान है. दरवाजा खुलते ही वह चहकने लगा, ‘‘मौसी, आप को कैसे पता चलता है कि बाहर कौन है?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘पता कैसे नहीं चलेगा.’’

तभी अचानक मेरे मुंह से चीख निकल गई, मैं ने फौरन दीपू को उस जगह से सावधानी से परे कर दिया. वह हैरान हो कर बोला, ‘‘क्या हुआ, मौसी?’’

मैं आंगन में वहीं बैठ गई जहां अभीअभी एक चिडि़या का बच्चा गिरा था. मैं ने ध्यान से उसे देखा. वह जिंदा था. मैं फौरन ठंडा पानी ले आई और उसे चिडि़या के बच्चे की चोंच में डाला. पानी मिलते ही उसे कुछ आराम मिला. मैं ने फर्श से उठा कर उसे एक डब्बे पर रख दिया. फिर सोच में पड़ गई कि अगर दीपू का पांव इस के ऊपर पड़ गया होता तो? कल्पना मात्र से ही मैं सिहर उठी.

मैं ने ऊपर देखा. पड़ोसियों का वृक्ष हमारे आंगन की ओर झुका हुआ था. शायद उस में कोई घोंसला होगा. बहुत सारी चिडि़यां चूंचूं कर रही थीं. मुझे लगा, जैसे वे अपनी भाषा में रो रही हैं. पशुपक्षी बेचारे कितने मजबूर होते हैं. उन का बच्चा उन से जुदा हो गया पर वह कुछ नहीं कर पा रहे थे.

‘‘करुणा…’’ कमला दीदी की आवाज ने मुझे चौंका दिया. मैं ने फौरन चिडि़या के बच्चे को उठाया और नल के पास ऊंचाई पर बनी एक सुरक्षित जगह पर रख दिया.

छुट्टियों में हमारे घर बड़ी रौनक रहती है. इस बार तो मेरी दीदी और उस के बच्चे भी अहमदाबाद से आए थे. इत्तफाक से विदेश से फूफाजी भी आए हुए थे. फूफाजी को सब लोग ‘दादाजी’ कहते थे. यह विदेशी दादाजी हमारे छोटे शहर के लिए बहुत बड़ी चीज थे. सुबह से शाम तक लोग उन्हें घेरे ही रहते. कभी लोग मेहमानों से मिलने आते तो कभी मेहमान लोग घूमनेफिरने निकल जाते.

मेहमानों के लिए शाम का नाश्ता तैयार कर के मैं फिर चिडि़या के बच्चे के पास चली आई. वह अपना छोटा सा मुंह पूरा खोले हुए था. ऐसा लगता था जैसे वह पानी पीना चाहता है. पर नहीं, पानी तो बहुत पिलाया था. मुझे अच्छी तरह पता भी तो नहीं था कि यह क्या खाएगा?

‘‘ओ करुणा मौसी, चिडि़या को पानी में डाल दो,’’ दीपू ने मेरे पास रखी गेंद उठाते हुए कहा.

मैं ने उसे पकड़ा, ‘‘अरे दीपू, सामने जो सफेद प्याला पड़ा है, उसे ले आ. मैं ने उस में दूधचीनी घोल कर रखी है. इसे भूख लगी होगी.’’

मेरी बात सुन कर दीपू जोर से हंसा, ‘‘मौसी, इसे उठा कर बाहर फेंक दो,’’ कहते हुए वह गेंद नचाते हुए बाहर चला गया.

मैं दूध ले आई, चिडि़या का बच्चा बारबार मुंह खोल रहा था. मैं अपनी उंगली दूध में डुबो कर दूध की बूंदें उस की चोंच में डालने लगी.

‘‘बूआ…’’ मेरी भतीजी उर्मिला की आवाज थी, ‘‘अरे बूआ, यहां क्या कर रही हो?’’ वह करीब आ कर बोली.

मैं ने उसे चिडि़या के बच्चे के बारे में बताया. मैं चाहती थी कि मेरी गैरमौजूदगी में उर्मिला जरा उस का खयाल रखे.

‘‘वाह बूआ, वाह, भला चिडि़या के बच्चे के पास बैठने से क्या फायदा?’’ कह कर वह अंदर चली गई. नल के पास बैठे हुए जो भी मुझे देखता वह खिलखिला कर हंस पड़ता. सब के लिए चिडि़या का बच्चा मजाक का विषय बन गया था.

मैं फिर रसोई में चली गई. थोड़ी देर बाद मैं ने बाहर झांका तो देखा कि मेरी भतीजी जूली, उर्मिला और कुछ अन्य लड़कियां नल के पास आ कर खड़ी हो गई थीं. मैं एकदम चिल्लाई, ‘‘अरे, रुको.’’

मैं उन के पास आई तो वे बोलीं, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘वहां एक चिडि़या का बच्चा है.’’

‘‘चिडि़या का बच्चा? अरे हम ने सोचा, पता नहीं क्या बात है जो आप इतनी घबराई हुई हैं,’’ वे भी जोरदार ठहाके मारती हुई चली गईं.

मैं खीज उठी और शीघ्र ही ऊपर चली गई. वहां आले में रखे एक घोंसले को देखा,जो इत्तफाक से खाली था. मैं ने उस में चिडि़या के बच्चे को रख कर घोंसले को ऊपर एक कोने में रख दिया.

मैं रसोई में आ गई और सब्जी काटने लगी. तभी पड़ोसन सुषमा बोली, ‘‘आज तो पता नहीं, करुणा का ध्यान कहां है? मैं रसोई में आ गई और इसे पता नहीं चला.’’

‘‘इस का ध्यान चिडि़या के बच्चे में है,’’ नमिता ने उसे चिडि़या के बच्चे के बारे में बताया.

‘‘अरे, पक्षी बिना घोंसले के बड़ा नहीं होगा. उसे किसी घोंसले में रखो,’’ सुषमा सलाह देती हुई बोली.

‘‘मैं उसे घोंसले में ही रख कर आई हूं,’’ मैं ने खुश होते हुए कहा.

रात को सब लोग खाना खाने के बाद घूमने गए. शायद किशनचंद के यहां से भी हो कर आए थे, ‘‘भई, हद हो गई, किशनचंद की औरत इतनी बीमार है. इतनी छटपटाहट घर के लोग कैसे देख रहे थे?’’ यह दादाजी की आवाज थी.

सब लोग आंगन में बैठे बातचीत कर रहे थे. दादाजी विदेश की बातें सुना रहे थे, ‘‘भई, हमारे अमेरिका में तो कोई इस कदर छटपटाए तो उसे ऐसा इंजेक्शन दे देते हैं कि वह फौरन शांत हो जाए. भारत न तो कभी बदला है और न ही बदलेगा. अभी मैं मुंबई से हो कर ही राजस्थान आया हूं. वहां मूलचंद की दादी की मृत्यु हो गई. अजीब बात है, अभी तक यहां लोग अग्निसंस्कार करते हैं.’’

सुनते ही अम्मां बोलीं, ‘‘आप लोग मृत व्यक्ति का क्या करते हैं?’’

‘‘अरे, बस एक बटन दबाते हैं और सारा झंझट खत्म. अमेरिका में तो…’’ दादाजी पता नहीं कैसी विचित्र बातें सुना रहे थे.

मैं ने सोने से पहले चिडि़या के बच्चे की देखभाल की और फिर सो गई. सुबह उठते ही देखा, चिडि़या का बच्चा बड़ा ही खुश हो कर फुदक रहा था. दीपू ने उस की ओर पांव बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मौसी, रख दूं पैर इस के ऊपर?’’

‘‘अरे, नहीं…’’ मैं उस का पैर हटाते हुए चीख पड़ी. अचानक मैं ने सामने देखा, ‘‘अरे, यह तो वही आदमी है…’’

शायद जीजाजी ने मेरी बात सुन ली थी. वह बाहर ‘विजय स्टोर’ की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘तुम जानती हो क्या उस आदमी को?’’

मेरे सामने एक दर्दनाक दृश्य ताजा हो उठा, ‘‘हां,’’ मैं ने कहा, ‘‘यह वही आदमी है. एक प्यारा सा कुत्ता लगभग मेरे ही पास पलता था, क्योंकि मैं उसे कुछ न कुछ खिलाती रहती थी. एक दिन वह सामने भाभी के घर से दीदी के घर की तरफ आ रहा था कि इस आदमी का स्कूटर उसे तेजी से कुचलता हुआ निकल गया. कुत्ता बुरी तरह तड़प कर शांत हो गया. हैरत की बात यह थी कि इस आदमी ने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा था.’’

जीजाजी पहले तो ठहाका मार कर हंसे फिर जरा क्र्रोधित होते हुए बोले, ‘‘अब कहीं वह फिर तुम्हें नजर आ जाए तो उसे कुछ कह मत देना. हम कुत्ते वाली फालतू बात के लिए किसी से कहासुनी करेंगे क्या?’’

कुछ दिन पहले की ही तो बात है. पड़ोस में शोर उठा, ‘अरे पास वाली झाडि़यों से सांप निकला है,’ सुनते ही मेरा बड़ा भतीजा फौरन एक लाठी ले कर गया और कुछ ही पलों में खुश होते हुए उस ने बताया कि सांप को मार कर उस ने तालाब में फेंक दिया है.

‘‘क्या?…तुम ने उसे जान से मार दिया है?’’ मैं ने सहमे स्वर में पूछा.

‘‘मारता नहीं तो क्या उसे घर ले आता? अगर किसी को काट लेता तो?’’

एक दिन दादाजी बालकनी में कुछ लोगों के साथ बैठे कौफी पी रहे थे, बाहर का दृश्य देखते हुए बोले, ‘‘अफ्रीका में सूअर को घंटों खौलते हुए पानी में डालते हैं और फिर उसे पकाने के लिए…’’ दादाजी बोले जा रहे थे और मैं सूअर की दशा की कल्पना मात्र से ही तड़प उठी थी. मुझे डर लगने लगा कि कहीं चिडि़या के बच्चे को कोई बाहर न फेंक दे.

घोंसले में झांका तो देखा कि बच्चा उलटा पड़ा था. मैं ने डरतेडरते हाथों में कपड़ा ले कर उसे सीधा किया. बिना कपड़ा लिए मेरे नाखून उसे चुभ जाते.

‘‘करुणा मौसी, आप ने चिडि़या के बच्चे को हाथ लगाया?’’ ज्योति ने पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’ मैं ने उसे आश्चर्य से देखा.

‘‘अब देखना मौसी, चिडि़या के बच्चे को उस की मां अपनाएगी नहीं. मनुष्य के हाथ लगाने के बाद दूसरे पक्षी उस की ओर देखते भी नहीं.’’

‘‘अरे, उठाती कैसे नहीं, आंगन के बीचोबीच पड़ा था. किसी का पांव आ जाता तो?’’ मैं ने कहा और अपने काम में लग गई.

3 दिन गुजर गए. जराजरा सी देर में मैं चिडि़या के बच्चे की देखभाल करती. चौथे दिन बहुत सवेरे ही चिडि़यों के झुंड के झुंड घोंसले के पास आ कर जोरजोर से चींचीं, चूंचूं करने लगे. मुझे लगा जैसे वे रो रहे हों. मैं ने घोंसले के अंदर देखा. चिडि़या का बच्चा बिलकुल शांत पड़ा था. मेरा दिल भर आया. तरहतरह के खयाल मन में उठे. रात को वह बिलकुल ठीक था. कहीं सच में दीपू ने उस के ऊपर पांव तो नहीं रख दिया?

चिडि़या के बच्चे पर किसी तरह के हमले का कोई निशान नहीं था. मगर फिर भी मैं ने दीपू से पूछा, ‘‘सच बता दीपू, तू ने चिडि़या के बच्चे को कुछ किया तो नहीं?’’

पर दीपू ने तो जैसे सोच ही रखा था कि मौसी को दुखी करना है. वह बोला, ‘‘मौसी, मैं ने सुबह उठते ही पहले उस का गला दबाया और फिर सैर करने चला गया.’’

मैं सरला दीदी से बोली, ‘‘दीदी, ऐसा नहीं लगता कि यह आराम से सो रहा है?’’

दीपू ने मुझे दुखी देख कर फिर कहा, ‘‘मौसी, मैं ने इसे मारा ही ऐसे है कि जैसे हत्या न लग कर स्वाभाविक मौत लगे.’’

पता नहीं क्यों, मुझ से उस दिन कुछ खायापिया नहीं गया. संगीतशाला भी नहीं गई. दिल भर आया था. कागजकलम ले कर दिल के दर्द को रचना के जरिए कागज की जमीन पर उतारने लगी. रचना भेजने के बाद लगा कि जैसे मैं ने उस चिडि़या के बच्चे को अपनी श्रद्धांजलि दे दी है.

Family Story: दूसरा विवाह – विकास शादी क्यों नहीं करना चाहता था?

Family Story: अपने दूसरे विवाह के बाद, विकास पहली बार जब मेरे घर आया तो मैं उसे देखती रह गई थी. उस का व्यक्तित्व ही बदल गया था. उस के गालों के गड्ढे भर गए थे. आंखों पर मोटा चश्मा, जो किसी चश्मे वाले मास्टरजी के कार्टून वाले चेहरे पर लगा होता है वैसे ही उस की नाक पर टिका रहता था लेकिन अब वही चश्मा व्यवस्थित तरीके से लगा होने के कारण उस के चेहरे की शोभा बढ़ा रहा था. कपड़ों की तरफ भी जो उस का लापरवाही भरा दृष्टिकोण रहता था उस में भी बहुत परिवर्तन दिखा. पहले के विपरीत उस ने कपड़े और सलीके से पहने हुए थे. लग रहा था जैसे किसी के सधे हाथों ने उस के पूरे व्यक्तित्व को ही संवार दिया हो. उस के चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी.

मैं उसे देखते ही अपने पास बैठाते हुए खुशी से बोली, ‘‘वाह, विकास, तुम तो बिलकुल बदल गए. बड़ा अच्छा लग रहा है तुम्हें देख कर. शादी कर के तुम ने बहुत अच्छा किया. तुम्हारा घर बस गया. आखिर कितने दिन तुम ममता का इंतजार करते. अच्छा हुआ तुम्हें उस से छुटकारा मिल गया.’’

उस के लिए चाय बनातेबनाते, मैं मन ही मन सोचने लगी कि इस लड़के ने कितना झेला है. पूरे 8 साल अपनी पहली पत्नी ममता का मायके से लौटने का इंतजार करता रहा. लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही कि वह नहीं आएगी. विकास को ही अपना परिवार, जिस में उस की मां और एक कुंआरी बहन थी, को छोड़ कर उस के साथ रहना होगा.

विकास के छोटे से घर में उन सब के साथ रहना उस को अच्छा नहीं लगता था. ममता की अपनी मां का घर बहुत बड़ा था. विकास ने उसे बहुत समझाया कि बहन का विवाह करने के बाद वह बड़ा घर ले लेगा. लेकिन ममता को अपने सुख के सामने कुछ भी दिखाई ही नहीं पड़ता था. उस के मायके वालों ने भी उसे कभी समझाने की कोशिश नहीं की. विकास ने ममता की अनुचित मांग को मानने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन ससुराल में जा कर ममता को समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अंत में वही हुआ, दोनों का तलाक हो गया. उन 8 सालों में हम ने विकास को तिलतिल मरते देखा था. वह मेरे बेटे रवि का सहकर्मी था. अकसर वह हमारे घर आ जाता था. मैं ने उस को कई बार समझाया कि वह अब पत्नी ममता का इंतजार न करे और तलाक ले ले. लेकिन वह कहता कि वह ममता को तलाक नहीं देगा, ममता को पहल करनी है तो करे. ममता को जब यह विश्वास हो गया कि विकास उस की शर्त कदापि पूरी नहीं करेगा तो उस ने विकास से अलग होने का फैसला ले लिया.

चाय पीते हुए मैं ने विकास से उस की नई पत्नी के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘आंटी, मैं तो शादी करना ही नहीं चाहता था, लेकिन मां और बहन की जिद के आगे मुझे झुकना पड़ा. आप को पता है कि उमा जिस से मैं ने शादी की है, वह एक स्कूल में टीचर है. उस के 2 बच्चे, एक लड़का और एक लड़की हैं. लड़का 12 साल का और लड़की 16 साल की है. उमा भी शादी नहीं करना चाहती थी. उमा के मांबाप तो उसे समझा कर थक गए थे, लेकिन अपने बच्चों की जिद के आगे उस ने शादी करना स्वीकार किया. जब उन बच्चों ने मुझे अपने पापा के रूप में पसंद किया, तभी हमारा विवाह हुआ. ‘‘मेरी होने वाली बेटी ने विवाह से पहले, मुझ से कई सवाल किए, पहला कि मैं उस के पहले पापा की तरह उन से मारपीट तो नहीं करूंगा. दूसरा, मुझे शराब पीने की आदत तो नहीं है? जब उसे तसल्ली हो गई तब उस ने मुझे पापा के रूप में स्वीकार करने की घोषणा की. मैं ने भी उन को बताया कि मेरे ऊपर जिम्मेदारी है, मैं उन को उतनी सुखसुविधाएं तो नहीं दे पाऊंगा, जो वर्तमान समय में उन्हें अपने नाना के घर में मिल रही हैं. मैं ने अभी बात भी पूरी नहीं की कि मेरी बेटी बोली कि उसे कुछ नहीं चाहिए, बस, पापा चाहिए. मुझे पलेपलाए बच्चे मिल गए और उन्हें पापा मिल गए.

‘‘मेरा तो कोई बच्चा है नहीं, अब इस उम्र में ऐसा सुख मिल जाए तो और क्या चाहिए. उमा भी यह सोच कर धन्य है कि उस को एक जीवनसाथी मिल गया और उस के बच्चों को पापा मिल गए. अब घर, घर लगता है. बच्चे जब मुझे पापा कहते हैं तो मेरा सीना गर्व से फूल जाता है. एक बार मेरी बेटी ने मेरे जन्मदिन पर एक नोट लिख कर मेरे तकिए के नीचे रख दिया. उस में लिखा था, ‘दुनिया के बैस्ट पापा’. उसे पढ़ कर मुझे लगा कि मेरा जीवन ही सार्थक हो गया है.’’

उस ने एक ही सांस में अपने मन के उद्गार मेरे सामने व्यक्त कर दिए. ऐसा करते हुए उस के चेहरे की चमक देखने लायक थी. बातबात में जब वह बड़े आत्मविश्वास के साथ ‘मेरी बेटी’ शब्द इस्तेमाल कर रहा था, उस समय मैं सोच रही थी कि कितनी खुश होगी वह लड़की, लोग तो अपनी पैदा की हुई बेटी को भी इतना प्यार नहीं करते. मैं ने कहा, ‘‘सच में, तुम ने एक औरत और उस के बच्चों को अपना नाम दे कर उन का जीवन खुशियों से भर दिया. एक तरह से उन का नया जन्म हो गया है. तुम ने इतना बड़ा काम किया है कि जिस की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है. तुम्हें घर बसाने वाली पत्नी के साथ पापा कहने वाले बच्चे भी मिल गए. मुझे तुम पर गर्व है. कभी परिवार सहित जरूर आना.’’ उस ने मोबाइल पर सब की फोटो दिखाई और दिखाते समय उस के चेहरे के हावभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह कोई नैशनल लैवल का मैडल जीत कर आया है और दिखा रहा है.

‘‘चलता हूं, आंटीजी, बेटी को स्कूल से लेने जाना है. वह मेरा इंतजार कर रही होगी. अगली बार सब को ले कर आऊंगा…’’ और झुकते हुए मेरे पांव छू कर दरवाजे की ओर वह चल दिया. मैं उसे विदा कर के सोच में पड़ गई कि समय के साथ लोगों की सोच में कितना सकारात्मक परिवर्तन आ गया है. पहले परित्यक्ता और विधवा औरतों को कितनी हेय दृष्टि से देखा जाता था, जैसे उन्होंने ही कोई अपराध किया हो. पहली बात तो उन के पुनर्विवाह के लिए समाज आज्ञा ही नहीं देता था और किसी तरह हो भी जाता तो, विवाह के बाद भी ससुराल वाले उन को मन से स्वीकार नहीं करते थे. अच्छी बात यह है कि अब बच्चे ही अपनी मां को उन के जीवन के खालीपन को भरने के लिए उन्हें दूसरे विवाह के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जैसा कि विकास के साथ घटित हुआ है. यह सब देख कर मुझे बहुत सुखद अनुभूति हुई और आज की युवा पीढ़ी की सोच को मैं ने मन ही मन नमन करते हुए आत्मसंतुष्टि का अनुभव किया.

Hindi Story: अंतिम निर्णय – कुछ तो लोग कहेंगे!

Hindi Story: सुहासिनी के अमेरिका से भारत आगमन की सूचना मिलते ही अपार्टमैंट की कई महिलाएं 11 बजते ही उस के घर पहुंच गईं. कुछ भुक्तभोगियों ने बिना कारण जाने ही एक स्वर में कहा, ‘‘हम ने तो पहले ही कहा था कि वहां अधिक दिन मन नहीं लगेगा, बच्चे तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं, हम सारा दिन अकेले वहां क्या करें? अनजान देश, अनजान लोग, अनजान भाषा और फिर ऐसी हमारी क्या मजबूरी है कि हम मन मार कर वहां रहें ही. आप के आने से न्यू ईयर के सैलिब्रेशन में और भी मजा आएगा. हम तो आप को बहुत मिस कर रहे थे, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

उन की अपनत्वभरी बातों ने क्षणभर में ही उस की विदेशयात्रा की कड़वाहट को धोपोंछ दिया और उस का मन सुकून से भर गया. जातेजाते सब ने उस को जेट लैग के कारण आराम करने की सलाह दी और उस के हफ्तेभर के खाने का मैन्यू उस को बतला दिया. साथ ही, आपस में सब ने फैसला कर लिया कि किस दिन, कौन, क्या बना कर लाएगा.

सुहासिनी के विवाह को 5 साल ही तो हुए थे जब उस के पति उस की गोद में 5 साल के सुशांत को छोड़ कर इस दुनिया से विदा हो गए थे. परिजनों ने उस पर दूसरा विवाह करने के लिए जोर डाला था, लेकिन वह अपने पति के रूप में किसी और को देखने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. पढ़ीलिखी होने के कारण किसी पर बोझ न बन कर उस ने अपने बेटे को उच्चशिक्षा दिलाई थी. हर मां की तरह वह भी एक अच्छी बहू लाने के सपने देखने लगी थी.

सुशांत की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. उस को कंपनी की ओर से किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में 3 महीने के लिए अमेरिका जाना पड़ा. सुहासिनी अपने बेटे के भविष्य की योजनाओं में बाधक नहीं बनना चाहती थी, लेकिन अकेले रहने की कल्पना से ही उस का मन घबराने लगा था.

अमेरिका में 3 महीने बीतने के बाद, कंपनी ने 3 महीने का समय और बढ़ा दिया था. उस के बाद, सुशांत की योग्यता देखते हुए कंपनी ने उसे वहीं की अपनी शाखा में कार्य करने का प्रस्ताव रखा तो उस ने अपनी मां से भी विचारविमर्श करना जरूरी नहीं समझा और स्वीकृति दे दी, क्योंकि वह वहां की जीवनशैली से बहुत प्रभावित हो गया था.

सुहासिनी इस स्थिति के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने बेटे को समझाते हुए कहा था, ‘बेटा, अपने देश में नौकरियों की क्या कमी है जो तू अमेरिका में बसना चाहता है? फिर तेरा ब्याह कर के मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती हूं. साथ ही, तेरे बच्चे को देखना चाहती हूं, जिस से मेरा अकेलापन समाप्त हो जाए और यह सब तभी होगा, जब तू भारत में होगा. मैं कब से यह सपना देख रही हूं और अब यह पूरा होने का समय आ गया है, तू इनकार मत करना.’ यह बोलतेबोलते उस की आवाज भर्रा गई थी. वह जानती थी कि उस का बेटा बहुत जिद्दी है. वह जो ठीक समझता है, वही करता है.

जवाब में वह बोला, ‘ममा, आप परेशान मत होे, मैं आप को भी जल्दी ही अमेरिका बुला लूंगा और आप का सपना तो यहां रह कर भी पूरा हो जाएगा. लड़की भी मैं यहां रहते हुए खुद ही ढूंढ़ लूंगा.’ बेटे का दोटूक उत्तर सुन कर सुहासिनी सकते में आ गई. उस को लगा कि वह पूरी दुनिया में अकेली रह गई थी.

सालभर के अंदर ही सुशांत ने सुहासिनी को बुलाने के लिए दस्तावेज भेज दिए. उस ने एजेंट के जरिए वीजा के लिए आवेदन कर दिया. बड़े बेमन से वह अमेरिका के लिए रवाना हुई. अनजान देश में जाते हुए वह अपने को बहुत असुरक्षित अनुभव कर रही थी. मन में दुविधा थी कि पता नहीं, उस का वहां मन लगेगा भी कि नहीं. हवाई अड्डे पर सुशांत उसे लेने आया था. इतने समय बाद उस को देख कर उस की आंखें छलछला आईं.

घर पहुंच कर सुशांत ने घर का दरवाजा खटखटाया. इस से पहले कि वह अपने बेटे से कुछ पूछे, एक अंगरेज महिला ने दरवाजा खोला. वह सवालिया नजरों से सुशांत की ओर देखने लगी. उस ने उसे इशारे से अंदर चलने को कहा. अंदर पहुंच कर बेटे ने कहा, ‘ममा, आप फ्रैश हो कर आराम करिए, बहुत थक गई होंगी. मैं आप के खाने का इंतजाम करवाता हूं.’

सुहासिनी को चैन कहां, मन ही मन मना रही थी कि उस का संदेह गलत निकले, लेकिन इस के विपरीत सही निकला. बेटे के बताते ही वह अवाक उस की ओर देखती ही रह गई. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. उस के बहू के लिए देखे गए सपने चूरचूर हो कर बिखर गए थे.

सुहासिनी ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहा, ‘मुझे पहले ही बता देता, तो मैं बहू के लिए कुछ ले कर आती.’

मां की भीगी आखें सुशांत से छिपी नहीं रह पाईं. उस ने कहा, ‘ममा, मैं जानता था कि आप कभी मन से मुझे स्वीकृति नहीं देंगी. यदि मैं आप को पहले बता देता तो शायद आप आती ही नहीं. सोचिए, रोजी से विवाह करने से मुझे आसानी से यहां की नागरिकता मिल गई है. आप भी अब हमेशा मेरे साथ रह सकती हैं.’ उस को अपने बेटे की सोच पर तरस आने लगा. वह कुछ नहीं बोली. मन ही मन बुदबुदाई, ‘कम से कम, यह तो पूछ लेता कि विदेश में, तेरे साथ, मैं रहने के लिए तैयार भी हूं या नहीं?’

बहुत जल्दी सुहासिनी का मन वहां की जीवनशैली से ऊबने लगा था. बहूबेटा सुबह अपनीअपनी जौब के लिए निकल जाते थे. उस के बाद जैसे घर उस को काटने को दौड़ता था. उन के पीछे से वह घर के सारे काम कर लेती थी. उन के लिए खाना भी बना लेती थी, लेकिन उस को महसूस हुआ कि उस के बेटे को पहले की तरह उस के हाथ के खाने के स्थान पर अमेरिकी खाना अधिक पसंद आने लगा था. धीरेधीरे उस को लगने लगा था कि उस का अस्तित्व एक नौकरानी से अधिक नहीं रह गया है. वहां के वातावरण में अपनत्व की कमी होने के चलते बनावटीपन से उस का मन बुरी तरह घबरा गया था.

सुहासिनी को भारत की अपनी कालोनी की याद सताने लगी कि किस तरह अपने हंसमुख स्वभाव के कारण वहां पर हर आयुवर्ग की वह चहेती बन गई थी. हर दिन शाम को, सभी उम्र के लोग कालोनी में ही बने पार्क में इकट्ठे हो जाया करते थे. बाकी समय भी व्हाट्सऐप द्वारा संपर्क में बने रहते थे और जरा सी भी तबीयत खराब होने पर एकदूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे.

उस ने एक दिन हिम्मत कर के अपने बेटे से कह ही दिया, ‘बेटा, मैं वापस इंडिया जाना चाहती हूं.’

यह प्रस्ताव सुन कर सुशांत थोड़ा आश्चर्य और नाराजगी मिश्रित आवाज में बोला, ‘लेकिन वहां आप की देखभाल कौन करेगा? मेरे यहां रहते हुए आप किस के लिए वहां जाना चाहती हैं?’ वह जानता था कि उस की मां वहां बिलकुल अकेली हैं.

सुहासिनी ने उस की बात अनसुनी करते हुए कहा, ‘नहीं, मुझे जाना है, तुम्हारे कोई बच्चा होगा तो आ जाऊंगी.’ आखिर वह भारत के लिए रवाना हो गई.

सुहासिनी को अब अपने देश में नए सिरे से अपने जीवन को जीना था. वह यह सोच ही रही थी कि अचानक उस की ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी सुनीलजी, जो उसी अपार्टमैंट में रहते थे, के विवाह के प्रस्ताव ने मौनसून की पहली झमाझम बरसात की तरह उस के तन के साथ मन को भी भिगोभिगो कर रोमांचित कर दिया था. उस के जीवन में क्या चल रहा है, यह बात सुनीलजी से छिपी नहीं थी.

सुहासिनी के हावभाव ने बिना कुछ कहे ही स्वीकारात्मक उत्तर दे दिया था. लेकिन उस के मन में आया कि यह एहसास क्षणिक ही तो था. सचाई के धरातल पर आते ही सुहासिनी एक बार यह सोच कर कांप गई कि जब उस के बेटे को पता चलेगा तो क्या होगा? वह उस की आंखों में गिर जाएगी? वैधव्य की आग में जलते हुए, दूसरा विवाह न कर के उस ने अपने बेटे को मांबाप दोनों का प्यार दे कर उस की परवरिश कर के, समाज में जो इज्जत पाई थी, वह तारतार हो जाएगी?

‘नहीं, नहीं, ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती. ठीक है, अपनी सकारात्मक सोच के कारण वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और उन के प्रस्ताव ने यह भी प्रमाणित कर दिया कि यही हाल उन का भी है. वे भी अकेले हैं. उन की एक ही बेटी है, वह भी अमेरिका में रहती है. लेकिन समाज भी कोई चीज है,’ वह मन ही मन बुदबुदाई और निर्णय ले डाला.

जब सुनीलजी मिले तो उस ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मैं आप की भावनाओं का आदर करती हूं, लेकिन समाज के सामने स्वीकार करने में परिस्थितियां बाधक हो जाती हैं और समाज का सामना करने की मेरी हिम्मत नहीं है, मुझे माफ कर दीजिएगा.’’ उस के इस कथन पर उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जैसे कि वे पहले से ही इस उत्तर के लिए तैयार थे. वे जानते थे कि उम्र के इस पड़ाव में इस तरह का निर्णय लेना सरल नहीं है. वे मौन ही रहे.

अचानक एक दिन सुहासिनी को पता चला कि सुनीलजी की बेटी सलोनी, अमेरिका से आने वाली है. आने के बाद, एक दिन वह अपने पापा के साथ उस से मिलने आई, फिर सुहासिनी ने उस को अपने घर पर आमंत्रित किया. हर दिन कुछ न कुछ बना कर सुहासिनी, सलोनी के लिए उस के घर भेजती ही रहती थी. उस के प्रेमभरे इस व्यवहार से सलोनी भावविभोर हो गई और एक दिन कुछ ऐसा घटित हुआ, जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

अचानक एक दिन सलोनी उस के घर आई और बोली, ‘‘एक बात बोलूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगी? आप मेरी मां बनेंगी? मुझे अपनी मां की याद नहीं है कि वे कैसी थीं, लेकिन आप को देख कर लगता है ऐसी ही होंगी. मेरे कारण मेरे पापा ने दूसरा विवाह नहीं किया कि पता नहीं नई मां मुझे मां का प्यार दे भी पाएगी या नहीं. लेकिन अब मुझ से उन का अकेलापन देखा नहीं जाता. मैं अमेरिका नहीं जाना चाहती थी. लेकिन विवाह के बाद लड़कियां मजबूर हो जाती हैं. उन को अपने पति के साथ जाना ही पड़ता है. मेरे पापा बहुत अच्छे हैं. प्लीज आंटी, आप मना मत करिएगा.’’ इतना कह कर वह रोने लगी. सुहासिनी शब्दहीन हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. उस ने उसे गले लगा लिया और बोली, ‘‘ठीक है बेटा, मैं विचार करूंगी.’’ थोड़ी देर बाद वह चली गई.

कई दिनों तक सुहासिनी के मनमस्तिष्क में विचारों का मंथन चलता रहा. एक दिन सुनीलजी अपनी बेटी के साथ सुहासिनी के घर आ गए. वह असमंजस की स्थिति से उबर ही नहीं पा रही थी. सबकुछ समझते हुए सुनीलजी ने बोलना शुरू किया, ‘‘आप यह मत सोचना कि सलोनी ने मेरी इच्छा को आप तक पहुंचाया है. जब से वह आई है, हम दोनों की भावनाएं इस से छिपी नहीं रहीं. उस ने मुझ से पूछा, तो मैं झूठ नहीं बोल पाया. अभी तो उस ने महसूस किया है, धीरेधीरे सारी कालोनी जान जाएगी. इसलिए उस स्थिति से बचने के लिए मैं अपने रिश्ते पर विवाह की मुहर लगा कर लोगों के संदेह पर पूर्णविराम लगाना चाहता हूं.

‘‘शुरू में थोड़ी कठिनाई आएगी, लेकिन धीरेधीरे सब भूल जाएंगे. आप मेरे बाकी जीवन की साथी बन जाएंगी तो मेरे जीवन के इस पड़ाव में खालीपन के कारण तथा शरीर के शिथिल होने के कारण जो शून्यता आ गई है, वह खत्म हो जाएगी. इस उम्र की इस से अधिक जरूरत ही क्या है?’’ सुनील ने बड़े सुलझे ढंग से उसे समझाया.

सुहासिनी के पास अब तर्क करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. उस ने आंसूभरी आंखों से हामी भर दी. सलोनी के सिर से मानो मनों बोझ हट गया और वह भावातिरेक में सुनील के गले से लिपट गई.

अब सुहासिनी को अपने बेटे की प्रतिक्रिया की भी चिंता नहीं थी.

जीवन की मुसकान मैं इलाहाबाद में लोकनिर्माण विभाग में स्थानिक अभियंता के पद पर कार्यरत था. एक दिन मैं अपने स्कूटर से साइट निरीक्षण के लिए जा रहा था. मैं ने अपना ब्रीफकेस स्कूटर पर आगे रखा हुआ था, जिस कारण मेरा बायां पैर स्कूटर के बाहर लटका हुआ था.

मैं जब पुल पर पहुंचा, तभी एक स्कूल बस ने मुझे ओवरटेक किया और मेरे स्कूटर से आगे निकलने लगी. उस बस की खिड़की के पास एक 6-7 साल का छात्र बैठा था, उस ने स्कूटर से बाएं लटकते मेरे पैर को देखा और जोरजोर से मुझे आवाज देने लगा, ‘‘अंकल, अपना पैर अंदर कर लें वरना आप को चोट लग जाएगी.’’

इतनी कम उम्र में इतनी समझदारी व मुझ अनजान के प्रति प्रेम देख कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई. मैं ने मन ही मन अच्छे संस्कार देने के लिए उस छात्र के मातापिता व अध्यापकअध्यापिकाओं को धन्यवाद दिया.      राजेश कुमार सक्सेना पूरे 40 वर्षों तक सरकारी नौकरी करने के बाद मैं रिटायर हो गई. तब समकक्ष दोस्तों ने समझाया कि अब इंद्रियां शिथिल होने लगेंगी, इसलिए सक्रिय रहने के लिए स्वाध्याय कीजिए और समाज से जुड़ कर अपने अनुभव को प्रेमपूर्वक बांटिए.

मैं ने ऐसा ही किया और आसपास के इलाकों में घूमघूम कर लोगों से परिचय बढ़ाया. फिर इसी दौरान एक पोलियोग्रस्त युवक से लगाव हो गया. वह तसवीरों को फ्रेम करने का काम करता था और प्रतिदिन विकलांग वाली गाड़ी में बैठ कर महल्ले में घूमता था. उस की दुकान छोटी है, मगर ग्राहकों के बैठने के लिए एक छोटा सा स्टूल रखा हुआ है जिस पर बैठ कर मैं उस से बातें करती थी.

एक दिन पुरस्कारस्वरूप कुछ किताबें और एक प्रशस्तिपत्र कोरियर से मेरे पास आया. इस प्रशस्तिपत्र को फ्रेम कराने के लिए मै उसी युवक के पास गई और अपना पर्स स्टूल पर रख कर बतियाने लगी और फिर घर वापस आ गई.

घर आ कर मुझे अपने पर्स का ध्यान न रहा और दोपहर से शाम तक का वक्त गुजर गया. तभी वह युवक अपनी विकलांग गाड़ी चलाता हुआ मेरे दरवाजे तक आ गया और फ्रेम देने के बाद हंसता हुआ बोला, ‘‘यह लीजिए अपना पर्स, आप वहीं भूल आई थीं.’’

मैं उस की ईमानदारी देख कर हैरान रह गई.

Hindi Story: निकम्मा – जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने किया इंतजाम

Hindi Story: दीपक 2 साल बाद अपने घर लौटा था. उस का कसबा भी धीरेधीरे शहर के फैशन में डूबा जा रहा था. जब वह स्टेशन पर उतरा, तो वहां तांगों की जगह आटोरिकशा नजर आए. तकरीबन हर शख्स के कान पर मोबाइल फोन लगा था.

शाम का समय हो चुका था. घर थोड़ा दूर था, इसलिए बीच बाजार में से आटोरिकशा जाता था. बाजार की रंगत भी बदल गई थी. कांच के बड़े दरवाजों वाली दुकानें हो गई थीं. 1-2 जगह आदमीऔरतों के पुतले रखे थे. उन पर नए फैशन के कपड़े चढ़े हुए थे. दीपक को इन 2 सालों में इतनी रौनक की उम्मीद नहीं थी. आटोरिकशा चालक ने भी कानों में ईयरफोन लगाया हुआ था, जो न जाने किस गाने को सुन कर सिर को हिला रहा था.

दीपक अपने महल्ले में घुस रहा था, तो बड़ी सी एक किराना की दुकान पर नजर गई, ‘उमेश किराना भंडार’. नीचे लिखा था, ‘यहां सब तरह का सामान थोक के भाव में मिलता है’. पहले यह दुकान भी यहां नहीं थी.

दीपक के लिए उस का कसबा या यों कह लें कि शहर बनता कसबा हैरानी की चीज लग रहा था.

आटोरिकशा चालक को रुपए दे कर जब दीपक घर में घुसा, तो उस ने देखा कि उस के बापू एक खाट पर लेटे हुए थे. अम्मां चूल्हे पर रोटी सेंक रही थीं, जबकि एक ओर गैस का चूल्हा और गैस सिलैंडर रखा हुआ था.

दीपक को आया देख अम्मां ने जल्दी से हाथ धोए और अपने गले से लगा लिया. छोटी बहन, जो पढ़ाई कर रही थी, आ कर उस से लिपट गई.

दीपक ने अटैची रखी और बापू के पास आ कर बैठ गया. बापू ने उस का हालचाल जाना. दीपक ने गौर किया कि घर में पीले बल्ब की जगह तेज पावर वाले सफेद बल्ब लग गए थे. एक रंगीन टैलीविजन आ गया था.

बहन के पास एक टचस्क्रीन मोबाइल फोन था, तो अम्मां के पास एक पुराना मोबाइल फोन था, जिस से वे अकसर दीपक से बातें कर के अपनी परेशानियां सुनाया करती थीं.

शायद अम्मां सोचती हैं कि शहर में सब बहुत खुश हैं और बिना चिंता व परेशानियों के रहते हैं. नल से 24 घंटे पानी आता है. बिजली, सड़क, साफसुथरी दुकानें, खाने से ले कर नाश्ते की कई वैराइटी. शहर यानी रुपया भरभर के पास हो. लेकिन यह रुपया ही शहर में इनसान को मार देता है. रुपयारुपया सोचते और देखते एक समय में इनसान केवल एक मशीन बन कर रह जाता है, जहां आपसी रिश्ते ही खत्म हो जाते हैं. लेकिन अम्मां को वह क्या समझाए?

वैसे, एक बार दीपक अम्मां, बापू और अपनी बहन को ले कर शहर गया था. 3-4 दिनों बाद ही अम्मां ने कह दिया था, ‘बेटा, हमें गांव भिजवा दो.’

बहन की इच्छा जाने की नहीं थी, फिर भी वह साथ लौट गई थी. शहर में रहने का दर्द दीपक समझ सकता है, जहां इनसान घड़ी के कांटों की तरह जिंदगी जीने को मजबूर होता है.

अम्मां ने दीपक से हाथपैर धो कर आने को कह दिया, ताकि सीधे तवे पर से रोटियां उतार कर उसे खाने को दे सकें. बापू को गैस पर सिंकी रोटियां पसंद नहीं हैं, जिस के चलते रोटियां तो चूल्हे पर ही सेंकी जाती हैं. बहन ने हाथपैर धुलवाए. दीपक और बापू खाने के लिए बैठ गए.

दीपक जानता था कि अब बापू का एक खटराग शुरू होगा, ‘पिछले हफ्ते भैंस मर गई. खेती बिगड़ गई. बहुत तंगी में चल रहे हैं और इस साल तुम्हारी शादी भी करनी है…’

दीपक मन ही मन सोच रहा था कि बापू अभी शुरू होंगे और वह चुपचाप कौर तोड़ता जाएगा और हुंकार भरता जाएगा, लेकिन बापू ने इस तरह की कोई बात नहीं छेड़ी थी.

पूरे महल्ले में एक अजीब सी खामोशी थी. कानों में चीखनेचिल्लाने या रोनेगाने की कोई आवाज नहीं आ रही थी, वरना 2 घर छोड़ कर बद्रीनाथ का मकान था, जिन के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा गणेश हाईस्कूल में चपरासी था, जबकि दूसरा छोटा बेटा उमेश पोस्ट औफिस में डाक रेलगाड़ी से डाक उतारने का काम करता था.

अचानक न जाने क्या हुआ कि उन के छोटे बेटे उमेश का ट्रांसफर कहीं और हो गया. तनख्वाह बहुत कम थी, इसलिए उस ने जाने से इनकार कर दिया. जाता भी कैसे? क्या खाता? क्या बचाता? इसी के चलते वह नौकरी छोड़ कर घर बैठ गया था.

इस के बाद न जाने किस गम में या बुरी संगति के चक्कर में उमेश को शराब पीने की लत लग गई. पहले तो परिवार वाले बात छिपाते रहे, लेकिन जब आदत ज्यादा बढ़ गई, तो आवाजें चारदीवारी से बाहर आने लगीं.

उमेश ने शराब की लत के चलते चोरी कर के घर के बरतन बेचने शुरू कर दिए, फिर घर से गेहूंदाल और तेल वगैरह चुरा कर और उन्हें बेच कर शराब पीना शुरू कर दिया. जब परिवार वालों ने सख्ती की, तो घर में कलह मचना शुरू हो गया.

उमेश दुबलापतला सा सांवले रंग का लड़का था. जब उस के साथ परिवार वाले मारपीट करते थे, तो वह मुझे कहता था, ‘चाचा, बचा लो… चाचा, बचा लो…’

2-3 दिनों तक सब ठीक चलता, फिर वह शराब पीना शुरू कर देता. न जाने उसे कौन उधार पिलाता था? न जाने वह कहां से रुपए लाता था? लेकिन रात होते ही हम सब को मानो इंतजार होता था कि अब इन की फिल्म शुरू होगी. चीखना, मारनापीटना, गली में भागना और उमेश का चीखचीख कर अपना हिस्सा मांगना… उस के पिता का गालियां देना… यह सब पड़ोसियों के जीने का अंग हो गया था.

इस बीच 1-2 बार महल्ले वालों ने पुलिस को बुला भी लिया था, लेकिन उमेश की हालत इतनी गईगुजरी थी कि एक जोर का थप्पड़ भी उस की जान ले लेता. कौन हत्या का भागीदार बने? सब बालबच्चों वाले हैं. नतीजतन, पुलिस भी खबर होने पर कभी नहीं आती थी.

उमेश को शराब पीते हुए 4-5 साल हो गए थे. उस की हरकतों को सब ने जिंदगी का हिस्सा मान लिया था. जब उस का सुबह नशा उतरता, तो वह नीची गरदन किए गुमसुम रहता था, लेकिन वह क्यों पी लेता था, वह खुद भी शायद नहीं जानता था. महल्ले के लिए वह मनोरंजन का एक साधन था. उस की मित्रमंडली भी नहीं थी. जो कुछ था परिवार, महल्ला और शराब थी. परिवार के सदस्य भी अब उस से ऊब गए थे और उस के मरने का इंतजार करने लगे थे. एक तो निकम्मा, ऊपर से नशेबाज भी.

लेकिन कौऐ के कोसने से जानवर मरता थोड़े ही है. वह जिंदा था और शराब पी कर सब की नाक में दम किए हुए था.

लेकिन आज खाना खाते समय दीपक को पड़ोस से किसी भी तरह की आवाज नहीं आ रही थी. बापू हाथ धोने के लिए जा चुके थे.

दीपक ने अम्मां से रोटी ली और पूछ बैठा, ‘‘अम्मां, आज तो पड़ोस की तरफ से लड़ाईझगड़े की कोई आवाज नहीं आ रही है. क्या उमेश ने शराब पीना छोड़ दिया है?’’

अम्मां ने आखिरी रोटी तवे पर डाली और कहने लगीं, ‘‘तुझे नहीं मालूम?’’

‘‘क्या?’’ दीपक ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे, जिसे ये लोग निकम्मा समझते थे, वह इन सब की जिंदगी बना कर चला गया…’’ अम्मां ने चूल्हे से लकडि़यां बाहर निकाल कर अंगारों पर रोटी को डाल दिया, जो पूरी तरह से फूल गई थी.

‘‘क्या हुआ अम्मां?’’

‘‘अरे, क्या बताऊं… एक दिन उमेश ने रात में खूब छक कर शराब पी, जो सुबह उतर गई होगी. दोबारा नशा करने के लिए वह बाजार की तरफ गया कि एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी. बस, वह वहीं खत्म हो गया.’’

‘‘अरे, उमेश मर गया?’’

‘‘हां बेटा, लेकिन इन्हें जिंदा कर गया. इस हादसे के मुआवजे में उस के परिवार को 18-20 लाख रुपए मिले थे. उन्हीं रुपयों से घर बनवा लिया और तू ने देखा होगा कि महल्ले के नुक्कड़ पर ‘उमेश किराने की दुकान’ खोल ली है. कुछ रुपए बैंक में जमा कर दिए. बस, इन की घर की गाड़ी चल निकली.

‘‘जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने इन का पूरा इंतजाम कर दिया,’’ अम्मां ने अंगारों से रोटी उठाते हुए कहा.

दीपक यह सुन कर सन्न रह गया. क्या कोई ऐसा निकम्मा भी हो सकता है, जो उपयोगी न होने पर भी किसी की जिंदगी को चलाने के लिए अचानक ही सबकुछ कर जाए? जैसे कोई हराभरा फलदार पेड़ फल देने के बाद सूख जाए और उस की लकडि़यां भी जल कर आप को गरमागरम रोटियां खाने को दे जाएं. हम ऐसी अनहोनी के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते.

Family Story: मायका – सुधा को मायके का प्यार क्यों नहीं मिला?

Family Story: सुबह घर की सब खिड़कियां खोल देना सुधा को बहुत अच्छा लगता था. खुली हवा, ताजगी और आदित्य देव की रश्मियों में वह अपने मन के खालीपन को भरने की कोशिश करती. हर दिन नई उम्मीदें लाता है, सुधा इस नैसर्गिक सत्य को जी रही थी. लेकिन मांजी को यह कहां पसंद आता? शकसंदेह के चश्मे से बहू को देखने की उन की आदत थी. बिना सोचेसमझे वे कुछ भी कह डालतीं.

‘‘किस यार को देखती है जो सुबहसुबह खिड़कियां खोल कर खड़ी हो जाती है.’’

कहते हैं तीरतलवार शायद इतनी गहरी चोट न दे सकें जितने शब्द घायल कर जाते हैं. यहां तो रोज का किस्सा था. औरत जो थी, जिस की नियति सब की सुनने की होती है, इसलिए सुधा उन के कटु शब्दों को भुला देती. सच ही तो है, जब विकल्प न रहे तो सीमा पार जा कर भी समझौते करने पड़ते हैं. इस समझदारी ने ही उसे ऐसा तटस्थ बना दिया था जिसे सब ‘पत्थर’ कह देते थे. कुछ असर नहीं, जो चाहे, कहो. लेकिन यह किसे पता था कि उस का अंतर्मन आहत हो कर कब टूटबिखर गया. यह तो उसे खुद भी पता नहीं था.

उस के मायके को ले कर ससुराल में खूब बातें बनतीं. रोजरोज के ताने सुधा को अब परेशान नहीं करते. आदत जो बन गईर् थी, सुनना और पत्थर की मूरत बनी रहना जिस की न जबान थी न कान. इस मूर्ति में भी दिल धड़कता था, यह एहसास शायद अब किसी को नहीं था. सास की फब्तियां उस के दिल को छलनी करतीं, लेकिन फिर भी वह उसी मुसकराहट से जीती जैसे कुछ हुआ ही नहीं. कितनी अजीब बात है, बहू मुसकराए तो बेहया का तमगा पाती है, बोले या प्रतिकार करे तो संस्कारहीन.

ससुराल में उस की एक देवरानी भी थी, प्रिया. बड़े घर की बेटी जिस के आगे सासुमां की जबान भी तलुए से चिपकी रहती. जब प्रिया अपने मायके जाती तो सुधा को भी अपने घर की बहुत याद आती. पर जाए तो कैसे? किस के घर जाए वह? रिश्ते इतने खोखले हो चुके थे कि अब कोई एक फोन कर के उस का हालचाल पूछने वाला भी नहीं था.

आज जब प्रिया अपने मायके से वापस आई तो उस का मन भी तड़पने लगा. सासुमां उस के लाए उपहारों, कपड़ेगहनों को देख फूली नहीं समा रही थीं. रहरह कर सुधा को कोसना जारी था. प्रिया, सुधा को अपने कमरे में ले आई. उसे अपने पीहर के मजेदार किस्से बताने लगी. सुधा जैसे अतीत

में खोने लगी. अपनी भाभी के कड़वे शब्द उसे फिर याद आने लगे. महारानी, जब चाहे मुंह उठा कर चली आती है. जैसे बाप ने करोड़ों की दौलत छोड़ रखी है.

प्रिया जा चुकी थी. दोपहर का समय था, इसलिए उदास मन के साथ सुधा बिस्तर पर सुस्ताने लेट गई. अतीत की यादें, कटु स्मृतियां चलचित्र की तरह मनमस्तिष्क में साकार होने लगीं. पापा दुनिया से विदा हुए तो पीहर का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो गया. मां बचपन में ही गुजर गई थीं. पापा ने ही दोनों भाईबहनों को संभाला था. यह सच था कि उन्होंने कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी थी.

सुधा ने छोटे भाई को ऐसा ही ममताभरा प्यार दिया जैसा बच्चा अपनी मां से उम्मीद करता है. उम्र में वह 3 साल बड़ी भी तो थी. लेकिन बचपन से उसे बड़ा भी तो बना दिया था. मासूमियत छिन गई, लेकिन भाई राहुल भी उस पर जान छिड़कता था.

समय पंख लगा कर ऐसे उड़ा कि पता ही न चला कि गुड्डेगुडि़यों से खेलते वे कब बड़े हो गए. पापा जल्दी से अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. विवान का रिश्ता आया. इंजीनियर, सुंदरसौम्य स्वभाव, प्रतिष्ठित परिवार, बस पापा को और क्या चाहिए था? झट से रिश्ता पक्का कर दिया.

सुधा खुदगर्ज नहीं थी. उसे अपनी शादी के अरमान खुशी तो दे रहे थे लेकिन पापा और भाई का खयाल उसे बेचैन करने लगा. वह विदा हुई तो फिर? कौन संभालेगा घर को? नारी के बिना घर, घर नहीं हो सकता. भाई के प्रति असीम प्रेम और पिता के स्नेह को समझ सुधा ने जिद पकड़ ली, ‘मैं शादी करूंगी तो एक ही शर्त पर, भाई की शादी भी उस के साथ हो.’ किसे पता था कि यह प्रेम ही आगे समस्या बन जाएगा. सरल जीवन को कठिन कर देगा, रिश्तों में दूरी बढ़ती जाएगी.

सब को झुकना पड़ा और सात दिनों के अंतराल पर दोनों की शादी संपन्न हो गई. सुधा ससुराल के लिए विदा हुई तो पीहर में उस की भाभी आ गई. बहुत खुश थी सुधा. कुदरत ने बहुत दिनों बाद कुछ ऐसा सुखद दिया था जिस से उन की अधूरी जिंदगी पूर्णता की ओर कदम बढ़ाने लगी थी.

लेकिन जिंदगी इतनी सरल कहां होती है? मन का सोचा पूरा हो जाए, तो क्या कहने. नई जिंदगी में सुधा के सपने यथार्थ की कठोर धरा पर शीघ्र ही दम तोड़ने लगे. विवान बहुत अच्छे समझदार पति थे लेकिन घर की स्थिति ऐसी थी कि वे खुलेरूम में अपनी पत्नी का साथ देने की स्थिति में नहीं थे. प्रतिभाशाली हो कर भी अभी बेरोजगार थे. दोनों ही सासससुर पर निर्भर थे, इसलिए मजबूरियों से समझौता समझदारी था. पापा को शायद यह उम्मीद न रही होगी, इसलिए सुधा की शादी के बाद क्षुब्धबेचैन रहने लगे. दूसरी तरफ राहुल भी अपनी पत्नी और पिता के बीच संतुलन बैठाने में पिस रहा था. पापा को दुख न पहुंचे, इसलिए सुधा ने मुंह सिल लिया.

लेकिन पापा थे कि उस की आंखों को पढ़ जाते. जितना वह छिपाने की कोशिश करती, पापा अनकही बातों को झट से पकड़ जाते. संतान के प्रति प्रेम ऐसा ही होता है जो बच्चे की हर बात को बिना कहे समझ जाता है. जिंदगी इसी का नाम है. अकसर हम अपने घरों में वही व्यवस्था लागू करने की जिद करने लगते हैं जो बेटियां अपनी ससुराल में जीती हैं. नतीजतन, घर में लोग टूटनेबिखरने लगते हैं. सच तो यह था कि सुधा को कहीं चैन नहीं मिल रहा था.

ससुराल में व्यंग्यतानों के बीच पिस रही थी तो मायके में अपने भाई राहुल और पिता के खयाल से. उस की भाभी ने जो समझदारी दिखानी चाहिए थी, उस के विपरीत आचरण किया. सुधा न तो मां बन सकी, न ही विवान के दिल में स्थान पा सकी. दूरी, तटस्थता, यंत्रचालित, कृत्रिम जीवन उसे आहत करता चला गया.

घड़ी ने टन्नटन्न अलार्म बजाया. सुधा जैसे चौंक पड़ी. उसे अपने जिंदा होने का एहसास हुआ. चेहरे पर पसीने की बूंदें झलक रही थीं. वह उठी, एक गिलास पानी पिया और खाली कमरे में फिर अपने खालीपन से खेलने लगी. पुरानी यादें फिर से न चाहते हुए भी उस के आगे नाचने लगीं. जब पिता का देहांत हुआ तो 12 दिन भी उस ने मायके में कैसे निकाले थे, वह कटु अनुभव उसे याद आने लगा. भाई राहुल बेचारा कितनी कोशिश करता रहा कि दीदी को कुछ महसूस न हो लेकिन सुधा कोई बच्ची नहीं थी.

वह समझ गईर् कि पापा के बाद उस का रिश्ता भी इस घर से टूट गया है. फिर एक दिन वह अनुभव भी हो गया जिस ने सुधा के सारे भ्रम तोड़ दिए. राहुल की जिद पर वह मायके चली गई. भाई के साथ बहन को देख भाभी का मुंह फूल गया. रात को सुधा ने उन के कमरे से आती तेज आवाजों को सुन लिया. राहुल अपनी पत्नी के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार से खीझ उठा था. उस की बीवी ने साफसाफ शब्दों में अल्टीमेटम दे दिया, ‘अगर यह बेहया मुझे दोबारा यहां दिखी, तो समझ लेना उसी क्षण फांसी के फंदे से झूल जाऊंगी. मुझे क्या बेवकूफ समझते हो. मुझे पता है, यह मायके में क्यों मंडराती है? पूरी संपत्ति हड़पने के बाद तुम्हें सड़क पर न ला दे, तो कहना.’

इस के बाद शायद हाथापाई भी हुई होगी. राहुल यह बात कैसे सहन कर पाता? नफरत से सुधा तड़प उठी. छी, क्या कोई ऐसी नीच सोच भी हो सकती हैं? पूरी रात सुधा ने जागते निकाल दी. वह घर जिस में वह पलीबढ़ी थी, अचानक जहर की तरह चुभने लगा. सुबह होते ही वह बिना कुछ कहे वापस अपनी ससुराल आ गई. उसे इंतजार था कि राहुल आएगा माफी मांगने. लेकिन वह नहीं आया.

अब सुधा को अपना फैसला सही लगने लगा. भाईभाभी की जिंदगी में वह दीवार नहीं बनना चाहती थी. उस ने फैसला कर लिया. अब कभी नहीं… खून के रिश्ते पानी हो गए. राखी का त्योहार आया, भाईदूज भी, लेकिन मायके से कोई बुलावा न आया. कहना आसान होता है लेकिन भाई की सूरत देखने को सुधा भी तड़पती. अब उस ने अपना मुंह सिल लिया. किसी से कोई शिकायत नहीं.

एक साल बीत गया. विवान को अच्छी नौकरी मिल गई. अब सुधा की हालत भी पहले से बेहतर होने लगी. विवान उसे नौर्मल करने की बहुत कोशिश करता, लेकिन बुझेमन में अब उमंग, उम्मीदें फिर से जागना मुश्किल लगने लगा था.

आज फरवरी की 22 तारीख थी. वैसे तो खास दिन, उस का जन्मदिन था, लेकिन यहां किसे कद्र थी उस की? सुबह के 8 बजे थे. विवान अभी भी सो रहे थे. सासुमां व्यस्त थीं. तभी दरवाजे की घंटी बजी. सुधा ने खिड़की से बाहर देखा. अचानक उस का रोमरोम खिल उठा. अपनों का प्यार सैलाब बन फूट कर बाहर निकलने लगा. दरवाजे पर राहुल और भाभी खड़े थे. सुधा चहकते हुए दौड़ी, ‘‘हैप्पी बर्थडे, दीदी.’’ राहुल ने पैर छूते हुए दी को शुभकामनाएं दीं. भाभी भी उस के पैर छू रही थीं. स्नेहिल क्षणों में कटुता क्षणभर में छूमंतर हो गई.

सास और प्रिया आश्चर्यचकित थे. राहुल आज उन सब के लिए उपहार लाया था. सुधा किचन की तरफ दौड़ी. ससुराल में बहू का सब से बड़ा मेहमान भाई होता है. सुधा के मन पर जमी बर्फ बहने लगी थी. भाभी भी उस का हाथ बंटाने रसोई में आ गई. दोनों खिलखिला कर ऐसे बातें करने लगीं जैसे पहली बार मिली हों.

विवान भी उठ गए. नाश्ते की तैयारी होने लगी. मौका देख विवान ने सुधा को बांहों में भर चूम लिया. ‘‘कैसा लगा मेरा गिफ्ट?’’ सुधा कुछ पूछती, उस से पहले राहुल आ गया, बोला, ‘‘दीदी, यह लो आप का सब से कीमती गिफ्ट… मुझे जीजू ने ही सजैस्ट किया.’’

सुधा पैकेट खोलने लगी. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. एक बड़ी सी फ्रेम की हुई पापा की तसवीर, जिस में उन की मुसकराहट सुधा को नया जीवन देती महसूस हो रही थी. फोटो के अलावा गुड्डेगुडि़या भी थे जिन से सुधा और राहुल बचपन में खेला करते थे.

उपहार तो और भी बहुत लाया था राहुल, लेकिन यह चीज उस का दिल छू गई. आज पूरा दिन सुधा के नाम था. विवान ने शाम को एक आलीशान होटल में डिनर रखा था.

रात में जब सुधा विवान के पास आई, तो देखा सामने की दीवार पर पापा की फोटो टंगी है. विवान कह रहा था, ‘‘सुधा, ससुराल में मायके की यादें न हों, तो जीवन अधूरा रह जाता है.

अब अपने बैडरूम में आधी चीजें मेरी और आधी तुम्हारे मायके की यादगार वाली होंगी.’’

‘‘ओ विवान, तुम इतना चाहते हो मुझे?’’ सुधा भावविह्वल हो विवान से लिपट गई.

‘‘सुधा, चाहने का मतलब ही यही है कि हम बिना कुछ कहे एकदूसरे को समझें, एकदूसरे की कमी को पूरा करें. तुम अंदर ही अंदर घुल रही थीं लेकिन मैं तुम्हें जीतेजी मरता नहीं देख सकता था.’’ बत्ती बुझ गई. दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए. आज अचानक बर्फ पूरी तरह पिघल गई.

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