राजनीति की विषबेल: भाग 3

सौजन्य:  मनोहर कहानियां

विपिन शर्मा मोदी नगर सौंदा रोड का रहने वाला था, जबकि अर्पण चौधरी गांव खुशहाल, गुलावठी का रहने वाला था. विपिन और अर्पण मोदीनगर में एक साथ पढ़े थे, उन की पुरानी दोस्ती थी. दोनों ही सुपारी ले कर हत्या करने के पेशे से जुड़े थे.

विपिन मनोज के साथ जितेंद्र को भी जानता था. इसी कारण साजिश करने वालों और सुपारी किलर की कडि़यां आपस में जुड़ गई थीं. विपिन अपनी बहन के साथ दिल्ली के अशोक नगर में रहता था. दोनों जितेंद्र को पहले से जानते थे.

जितेंद्र से उन्होंने इस काम के लिए 5 लाख मांगे. लेकिन बाद में सौदेबाजी करने के बाद 2 लाख रुपए में हत्या करने की बात तय हो गई. जितेंद्र ने विपिन तथा अर्पण को 50 हजार रुपए एडवांस दे दिए और  कहा कि जल्द ही मनोज के हाथों इस काम को करने के लिए हथियार उन तक भिजवा देगा.

जितेंद्र ने दोनों को नरेश त्यागी की फोटो दे दी साथ ही यह भी बता दिया कि वह हर सुबह साढ़े 5 बजे से 6 बजे के बीच लोहिया नगर के औफिसर पार्क में घूमने के लिए जाता है. उस ने एक दिन सुबह के वक्त दोनों को अपने साथ कार में ले जा कर नरेश त्यागी को दिखा भी दिया.

हत्यारों तक पहुंचाए हथियार

जितेंद्र ने मनोज के जरिए दोनों को एक .30 बोर का पिस्तौल तथा एक तमंचा और कुछ कारतूस भिजवा दिए थे. साथ ही जितेंद्र ने बता दिया कि काम होने के बाद वे उस से संपर्क न करें बल्कि मनोज को मैसेज भेज कर काम होने की बात बता दें. उन की बाकी की डेढ़ लाख की रकम उन्हें पुहंचा दी जाएगी.

9 अक्तूबर, 2020 को हत्या करने का दिन मुकर्रर हो गया. साजिश के मुताबिक अपने को सेफ करने के लिए 2 दिन पहले ही जितेंद्र त्यागी गिरीश त्यागी को ले कर लखनऊ चला गया, ताकि वारदात के वक्त उस की मौजूदगी घटनास्थल से दूर रहे.

इधर, विपिन और अर्पण ने 9 अक्तूबर, 2020 की सुबह लोहिया नगर जा कर नरेश की हत्या कर दी. वारदात के बाद उस ने मनोज को फोन करके काम होने की इत्तिला दे दी थी. हत्या करने के बाद दोनों स्कूटी से ही राजनगर एक्सेंटशन होते हुए दिल्ली चले गए.

पुलिस बेहद गोपनीय ढंग से काम करते हुए विपिन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकाल कर मनोज व जितेंद्र के संपर्क तक पहुंची.

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जितेंद्र की घटना वाले दिन लखनऊ में गिरीश के साथ मौजूदगी से साफ होने लगा कि नरेश त्यागी हत्याकांड की साजिश में दोनों की मिलभगत हो सकती है. इस के बाद जब पुलिस ने जितेंद्र के परिवार पर दबाव बनाया तो उसे पुलिस के सामने पेश होना पड़ा.

दरअसल, जितेंद्र को यह गलतफहमी थी कि उस के खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है. इसी खुशफहमी का शिकार हो कर वह पुलिस के सामने आया था. लेकिन जब पुलिस ने अपने हथकंडों का इस्तेमाल कर उस से पूछताछ की तो उस ने पूरी साजिश का खुलासा कर दिया.

इधर जितेंद्र की गिरफ्तारी की खबर सुन कर विपिन और अर्पण घबरा गए. उन्होंने मनोज से फोन पर संपर्क किया और बाकी रकम की मांग की. वे चाहते थे कि पुलिस की पकड़ में आने से पहले पैसा ले कर उत्तराखंड में कहीं जा कर छिप जाएं .

20 नवंबर को मनोज से संपर्क कर विपिन तथा अर्पण रुपए लेने के लिए जब गाजियाबाद आ रहे थे, तभी उन्हें पुलिस ने दबोच लिया. उन से पूछताछ के बाद मनोज को भी पकड़ लिया गया. बाद में तीनों ने जितेंद्र के साथ रची गई नरेश त्यागी हत्याकांड की पूरी कहानी का खुलासा कर दिया.

सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद जांच अधिकारी कृष्णगोपाल शर्मा ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन पुलिस गिरीश त्यागी के सामने नहीं आने के कारण अभी इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है कि गिरीश त्यागी के हाथ वाकई अपने मामा नरेश त्यागी की हत्याकांड के खून के छींटों से सने हैं.

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पुलिस फिलहाल गिरीश त्यागी को अभी तक पकड़े गए आरोपियों के बयान के आधार पर आरोपी मान कर उस की सरगर्मी से तलाश कर रही है.

—कहानी पुलिस की जांच, अभियुक्तों के बयान व जनसूत्रों पर आधारित

Crime Story: राजनीति की विषबेल

राजनीति की विषबेल: भाग 1

सौजन्य:  मनोहर कहानियां

नरेशपाल त्यागी न सिर्फ बड़े कौन्ट्रैक्टर थे बल्कि अपने भांजे विधायक अजीतपाल त्यागी के राजनीतिक सलाहकार भी थे. विधायक अजीत त्यागी भी अपने घर वालों के बजाय मामा नरेश त्यागी को ज्यादा अहमियत देते थे. विधायक के बड़े भाई गिरीश त्यागी ने ऐसी साजिश रची कि…

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में महानगर की पौश कालोनियों में शुमार लोहिया नगर में सुबह की सैर करने वालों की हलचल शुरू हो चुकी थी. मूलरूप से निवाड़ी थाना क्षेत्र के गांव सारा के रहने वाले नरेश त्यागी (60) पत्नी व 2 बेटों अभिषेक त्यागी उर्फ शेखर एवं अविनाश त्यागी उर्फ शैंकी के साथ पिछले 30 सालों से लोहिया नगर में रह रहे थे. वह नगर निगम, पीडब्लूडी समेत कई सरकारी विभागों में कौन्ट्रैक्टर थे.

उम्र बढ़ने के साथ वह अपनी सेहत को ले कर काफी संजीदा थे, इसलिए खुद को चुस्तदुरुस्त और स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने सुबह की सैर को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया था.

लोहिया नगर में ज्यादातर कोठियां और बंगले पूर्व नौकरशाहों और राजनीति से जुड़े लोगों के हैं, इसलिए इलाके में एक बड़ा सा पार्क भी है. इसी औफिसर पार्क में इलाके के लोग सुबह की सैर के लिए जाते हैं.

9 अक्तूबर, 2020 की सुबह के करीब पौने 6 बजे का वक्त था. हमेशा की तरह नरेश त्यागी अपने घर से निकले और करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोहिया नगर के औफिसर पार्क की तरफ जा रहे थे. नरेश त्यागी जैसे ही पूर्व सांसद के.सी. त्यागी की कोठी के सामने स्थित पार्क के पास पहुंचे तो उसी समय ग्रे कलर की स्कूटी उन के पास आ कर रुकी. पल भर के लिए वह ठिठक गए.

स्कूटी पर 2 युवक सवार थे, दोनों ने हेलमेट और मास्क पहने थे, जिस से वह उन का चेहरा तो नहीं देख पाए, लेकिन बदमाशों ने स्कूटी रुकते ही जब उन से कहा, ‘राम राम जी’ तो प्रत्युत्तर में उन की राम राम का जवाब देते हुए नरेश सोचने लगे कि शायद वे कोई जानकार होंगे और कोई पता पूछने के लिए उन के पास रुके होंगे.

नरेश त्यागी यह सोच ही रहे थे कि अचानक स्कूटी पर पीछे बैठे युवक ने कमर में खोंसा पिस्तौल निकाल कर उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं. स्कूटी ड्राइव कर रहे युवक ने भी कमर में लगा तमंचा निकाला और नरेश त्यागी पर फायर झोंक दिए.

एक के बाद एक 6 फायरों की आवाज से इलाका गूंज उठा. सुबह की सैर करने वाले जो इक्कादुक्का लोग उस वक्त सड़क पर मौजूद थे, उन्होंने दूर से यह माजरा देखा तो सहम गए.

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सब कुछ इतनी जल्दी घटित हुआ था कि नरेश त्यागी को संभलने का मौका नहीं मिला. उन के शरीर में पिस्तौल की गोलियां पेवस्त हो चुकी थीं, फिर भी वह जान बचाने के लिए करीब 70 मीटर तक भागे, लेकिन स्कूटी पर बैठे बदमाश ने उतर कर पीछा करते हुए जब उन के सिर में 2 गोलियां उतार दीं तो उन की हिम्मत जवाब दे गई. खून से सराबोर हो चुके नरेश त्यागी लहरा कर वहीं जमीन पर गिर गए.

भाजपा विधायक के मामा

गोलियों की गूंज सुन कर कुछ राहगीर तथा आसपास की कोठियों में रहने वाले लोग बाहर निकल आए थे. नरेश त्यागी मुरादनगर विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के विधायक अजीत पाल त्यागी के सगे मामा थे और उन के राजनीतिक कामकाज भी वे ही संभालते थे. लिहाजा लोहिया नगर इलाके में उन्हें सब अच्छी तरह पहचानते थे.

किसी ने फोन कर के जब यह सूचना उन के बेटों को दी तो वे भी दौड़ते हुए मौके पर पहुंच गए. कुछ लोगों ने तब तक पुलिस को फोन कर दिया. उन का बेटा शैंकी गाड़ी ले आया था. गाड़ी में लाद कर नरेश त्यागी को समीप के एक बड़े नर्सिंगहोम ले जाया गया. लेकिन वहां के डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

वारदात की जानकारी मिलने के बाद सिहानी गेट थाने के प्रभारी निरीक्षक कृष्णगोपाल शर्मा, एसआई ब्रजकिशोर व स्टाफ को ले कर मौके पर पहुंच गए.

मामला चूंकि एक सत्तारूढ़ पार्टी के पदासीन विधायक के मामा की हत्या का था, लिहाजा कुछ ही देर में सीओ (सिटी) अवनीश कुमार, एसपी (सिटी) अभिषेक मिश्रा और एसएसपी कलानिधि नैथानी आसपास के थानों की पुलिस और उच्चाधिकारी मौके पर पहुंच गए.

नरेश त्यागी की हत्या की खबर पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई. वैसे भी लोहिया नगर में जहां पर नरेश त्यागी की हत्या हुई, वह गाजियाबाद की पुरानी पौश कालोनी है. यहां पर जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व सांसद के.सी. त्यागी, पूर्व कांग्रेसी विधायक के.के. शर्मा समेत कई पुलिस अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारियों के आवास भी हैं. वहां हुई एक रसूखदार व्यक्ति की हत्या ने लोगों को चौंका दिया था.

सुबह का सूरज चढ़ने के साथ लोहिया नगर में उन के आवास पर लोगों का हुजूम उमड़ आया. पुलिस ने तब तक घटनास्थल पर लोगों से पूछताछ कर ली थी. वारदात पर कोई भी चश्मदीद नहीं मिला था. संयोग से पुलिस को घटनास्थल के पास एक सीसीटीवी कैमरा जरूर मिल गया, जिस में पूरी वारदात कैद हो गई थी.

इस बीच सिहानी गेट पुलिस ने अस्पताल जा कर नरेश त्यागी का शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. वारदात की गंभीरता को भांप कर मेरठ परिक्षेत्र के आईजी प्रवीन कुमार भी नरेश त्यागी के घर पहुंचे. उन के द्वारा पूछने पर परिजनों ने सीधे तौर पर किसी पर भी हत्या का शक नहीं जताया.

इस बीच उच्चाधिकारियों के निर्देश पर सिहानी गेट थाने में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंसं संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एसएसपी के निर्देश पर एसपी सिटी ने एक विशेष टीम का गठन कर दिया, जिस की निगरानी का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अवनीश कुमार को सौंपा गया. विशेष टीम में थानाप्रभारी कृष्णगोपाल शर्मा के साथ स्वाट टीम के प्रभारी इंसपेक्टर संजय पांडेय व उन के सहयोगी एसआई अरुण मिश्रा, सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर लक्ष्मण वर्मा व उन के सहयोगी एसआई नरेंद्र कुमार, एसआई ब्रजकिशोर गौतम, हैडकांस्टेबल बालेंद्र, राजेंद्र, कांस्टेबल मनोज, रविंद्र, अखिलेश व खुर्शीद को शामिल किया गया.

सब से पहले पुलिस ने सर्विलांस टीम के जरिए मृतक नरेश त्यागी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उसे खंगालना शुरू किया. साथ ही उन के वाट्सऐप की चैट से भी कातिलों का सुराग लगाने की कोशिश शुरू कर दी.

सर्विलांस टीम ने घटनास्थल से एक्टिव मोबाइल नंबरों के डंप डाटा भी खंगालना शुरू कर दिया, जिस से पता चल सके कि वहां उस वक्त कौन लोग मौजूद थे.

सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से पता चला कि कातिल जिस स्कूटी पर सवार हो कर घटनास्थल पर पहुंचे थे, उस का नंबर यूपी14 सी जेड 7446 था. ग्रे कलर की वह स्कूटी मोदी नगर के सौंदा रोड निवासी ज्योति शर्मा के नाम पंजीकृत थी.

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पुलिस की एक टीम जब उक्त पते पर पहुंची तो पता चला कि ज्योति अपने भाई विपिन शर्मा के साथ दिल्ली के न्यू अशोक नगर में रहती है और दिल्ली में जौब करती है.

ज्योति से पूछताछ की गई तो जानकारी मिली कि वह यदाकदा ही स्कूटी का उपयोग करती थी. अधिकांशत: उस का भाई विपिन ही उस का उपयोग करता है.

9 अक्तूबर, 2020 की सुबह स्कूटी उस का भाई विपिन ले कर गया था. कुछ घंटों बाद वह स्कूटी घर पर खड़ी कर के कहीं चला गया था. साथ ही वह यह हिदायत भी दे गया था कि कुछ दिन तक स्कूटी को ले कर कोई बाहर न जाए. उस के बाद से परिवार में किसी को नहीं पता कि विपिन कहां और किस हाल में है.

ज्योति ने बताया कि उस के भाई का मोबाइल नंबर भी तभी से बंद आ रहा है. उस के बाद पुलिस टीम के सादा लिबास पुलिस वालों ने विपिन शर्मा के घर की निगरानी शुरू करा दी.

सर्विलांस टीम ने विपिन के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकाल कर उस के बारे में छानबीन शुरू की. लेकिन मोबाइल फोन बंद होने के कारण लोकेशन ट्रेस नहीं हो सकी.

पुलिस ने विपिन के बारे में और जानकारी एकत्र की तथा उस की जानपहचान वाले लोगों को भी पकड़ कर पूछताछ शुरू की. मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इसलिए जांच विपिन से आगे नहीं बढ़ सकी.

पुलिस की सभी टीमें अलगअलग ऐंगल पर जांच कर रही थीं. पुलिस इस मामले में लगातार मृतक के भांजे विधायक अजीत पाल त्यागी के संपर्क में भी थी. क्योंकि अगर इस हत्याकांड के पीछे कोई राजनीतिक रंजिश रही होगी तो जाहिर है उस का आभास अजीत पाल त्यागी को जरूर होगा.

नरेश त्यागी पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी के साले भी थे. 6 बार विधायक रहने के बाद राजपाल त्यागी ने बढ़ती उम्र के कारण राजनीति से किनारा कर लिया था. जिस के बाद मुरादनगर विधानसभा क्षेत्र में कई नेता सक्रिय हो गए थे.

ये नेता क्षेत्र में राजपाल की विरासत को संभालने के प्रयास में थे, लेकिन राजपाल ने अपने पुराने राजनीतिक संबंधों का फायदा उठाते हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में अपने छोटे बेटे और जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके अजीत पाल त्यागी को न केवल बीजेपी से टिकट दिलवाने में सफलता हासिल कर ली बल्कि उम्रदराज होने के बाद भी धुआंधार प्रचार कर उन्हें विधायक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.

नरेश की व्यक्तिगत रंजिश के साथसाथ पुलिस पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी की 3 दशकों से चल रही रंजिश की भी जांच कर रही थी.

राजनैतिक दुश्मनी पर शुरू की जांच

दरअसल, राजपाल त्यागी की ब्राह्मणों के प्रभावशाली नौरंग पंडित परिवार से दुश्मनी चल रही थी. इस रंजिश के कारण ही राजपाल त्यागी के 2 भाइयों गाजियाबाद बार असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष कुशल पाल त्यागी और फिर कानपुर विकास प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर रहे टी.पी.एस. त्यागी की हत्या हो चुकी थी.

हालांकि राजपाल त्यागी के लोगों पर भी पंडित परिवार के रिश्तेदारों और करीबियों की हत्या कराने के आरोप लगे हैं. लेकिन बाद में कुछ लोगों ने कई हत्याओं के बाद दोनों परिवारों में समझौता करवा कर इस 3 दशक पुरानी दुश्मनी को खत्म कर दिया था.

पुलिस को भनक मिली थी कि अक्तूबर 2009 में 50 हजार के इनामी पूर्व ब्लौकप्रमुख रविंद्र त्यागी की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के बाद रविंद्र की पत्नी ने राजपाल त्यागी की भूमिका पर अंगुलियां उठाई थीं. लेकिन इस बिंदु पर जांच के बाद भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी.

पूछताछ चल रही थी कि इसी बीच 9 नवंबर को इस मामले में अचानक एक नया मोड़ आया. हुआ यूं कि पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी ने अपने छोटे बेटे भाजपा विधायक अजीत पाल त्यागी पर गंभीर आरोप लगा दिए. उन्होंने मीडिया से कहा कि अजीत अपने बड़े भाई गिरीश त्यागी को इस हत्याकांड में फंसाने के प्रयास में है.

राजपाल त्यागी ने कहा कि उन का बड़ा बेटा गिरीश त्यागी अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए शस्त्र लाइसैंस व गनर की मांग को ले कर 7 अक्तूबर से लखनऊ में था.

इस बारे में पूछने पर राजपाल त्यागी ने साफ कर दिया कि उन का छोटा विधायक बेटा अजीत पाल त्यागी नहीं चाहता कि गिरीश त्यागी का परिवार राजनीतिक रूप से सक्रिय हो. गिरीश के बेटे मोहित की पत्नी रश्मि जिला पंचायत चुनाव लड़ना चाहती थी. जबकि अजीत पाल ऐसा नहीं चाहता. उन्होंने कहा कि अब मेरे सगे साले नरेश त्यागी की हत्या के बाद पुलिस के साथ मिल कर मेरे बेटे गिरीश त्यागी को फंसाने की साजिश रची जा रही है.

राजपाल त्यागी ने पुलिस को यह भी बताया कि अजीत ने मेरे और गिरीश के ऊपर यह भी आरोप लगाए थे कि 2017 व 2019 में चुनावों में हम ने उस की मुखालफत की थी. जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने अजीत को पूरी ताकत और सहयोग के साथ चुनाव लड़वाया.

अगले भाग में पढ़ें- फूलप्रूफ रची थी साजिश

राजनीति की विषबेल: भाग 2

सौजन्य:  मनोहर कहानियां

हत्या का हुआ खुलासा

मामला चूंकि अब राजनीतिक रंग लेने लगा था और पुलिस की मुश्किल यह थी कि पीडि़त परिवार जो राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली था. उसी परिवार में एक दूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगने शुरू हो गए थे. इसलिए एसएसपी ने इस मामले में सभी टीमों को निर्देश दिया कि कातिलों पर हाथ डालने से पहले वे बेहद सावधानी से पुख्ता सबूत एकत्र कर लें और जांच की प्रक्रिया को पूरी तरह गोपनीय रखें.

इसी बीच सिहानी गेट पुलिस टीम के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण सुराग लगे और उस ने 18 नवंबर को अचानक नरेश त्यागी की हत्या का खुलासा करते हुए हिंदू युवा वाहिनी के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र त्यागी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का कहना था कि विधायक के बड़े भाई गिरीश त्यागी और हिंदू युवा वाहिनी के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र त्यागी ने घटना से 2 महीने पहले नरेश त्यागी की हत्या की रूपरेखा तैयार कर ली थी.

हालांकि पुलिस ने 18 नवंबर को भाड़े के हत्यारों और हत्या के मकसद के बारे में विस्तार से तो कुछ नहीं बताया, जिस के बाद इस बात के कयास व आरोप लगाए जाने लगे कि कहीं किसी दबाव में तो पुलिस ने बेगुनाहों को बलि का बकरा नहीं बना दिया.

लेकिन 2 दिन बाद ही पुलिस ने इस मामले में जब 3 अन्य लोगों की गिरफ्तारी की तो सारे कयास व आरोप निराधार साबित हो गए.

पुलिस ने विपिन शर्मा निवासी सौंदा रोड, मोदीनगर व हाल निवासी न्यू अशोक नगर दिल्ली, अर्पण चौधरी निवासी गांव खुशहाल, बुलंदशहर और मनोज कुमार निवासी सद्दीक नगर, थाना सिहानी गेट को गिरफ्तार किया. उन के कब्जे से .30 बोर का एक पिस्तौल तथा 315 बोर का कारतूसों के साथ एक तमंचा बरामद किया गया.

ये वही हथियार थे, जिन का इस्तेमाल नरेश त्यागी की हत्या में किया गया था. दोनों के कब्जे से वो स्कूटी भी बरामद हो गई, जिस का इस्तेमाल नरेश त्यागी की हत्या में किया गया था. पुलिस ने बरामद हथियार सीएफएल भेज दिए.

इन तीनों आरोपियों से पुलिस ने पूछताछ के बाद जो जानकारी हासिल की तो नरेश त्यागी हत्याकांड में उन के भांजे गिरीश त्यागी का नाम मुख्य खलनायक के किरदार के रूप में सामने आया. हालांकि गिरीश त्यागी पुलिस की पकड़ में नहीं आया था, इसलिए इस बात की तत्काल पुष्टि नहीं हो सकी कि पकड़े गए चारों आरोपियों ने जो आरोप लगाए हैं, उन में कितनी सच्चाई है.

मुख्य आरोपी जितेंद्र त्यागी के मुताबिक नरेश त्यागी की हत्या की पूरी साजिश का असली सूत्रधार गिरीश त्यागी था. जो अपने छोटे भाई अजीत त्यागी के बढ़ते प्रभाव के कारण मन ही मन अजीत त्यागी से जलने लगा था. अजीत के विधायक बन जाने के बाद से रिश्तेदार व बिरादरी के लोग भी परिवार का बड़ा बेटा होने के बावजूद उसे नहीं, बल्कि अजीत को ही पूछते थे. इस से गिरीश खुद को अपमानित महसूस करता था.

कुछ साल पहले तक अजीत अपने पिता व भाई से राजनीतिक मामलों में सलाहमशविरा करता तथा अपने लोगों को कहां किस पद पर चुनाव लड़ाना है या पार्टी संगठन में फिट कराना ये सब सलाह लेता था. मगर पिछले 1-2 सालों में यह जगह मामा नरेश त्यागी ने ले ली थी.

गिरीश ने मामा नरेश त्यागी से 1-2 बार कहा भी था कि वे अजीत को समझाएं कि वह उन की बात सुना करें, लेकिन मामा ने उस की बात को यह कह कर हवा में उड़ा दिया कि अजीत में उस से कहीं ज्यादा राजनीति की समझ है. बस, कुछ ऐसी ही छोटी बातें थीं जिन के कारण गिरीश मानने लगा कि मामा के कारण उस का व उस के बच्चों का रातनीतिक भविष्य नहीं बन सकता.

मामा नरेश के लिए मन में पल रही रंजिश उस वक्त अपने आखिरी मुकाम पर पहुंच गई, जब एक दिन परिवार के बीच विचारविमर्श के दौरान गिरीश ने जिला पंचायत सदस्य के लिए अपने बेटे मोहित की पत्नी रश्मि को चुनाव लड़ाने की बात कही. लेकिन अजीत ने इस बात का विरोध कर दिया और इस में मामा ने अहम भूमिका निभाई.

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विधायक के भाई का सामने आया नाम

इस के बाद गिरीश ने मामा नरेश त्यागी को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. जितेंद्र त्यागी ने बताया कि वह गिरीश त्यागी का पुराना दोस्त है.

सिहानी गांव के सद्दीक नगर का रहने वाला जितेंद्र त्यागी मार्च 2018 तक गाजियाबाद जिले का हिंदू युवा वाहिनी का अध्यक्ष रह चुका है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक अध्यक्ष हैं.

बीजेपी के कई बड़े नेताओं से उस के करीबी संबध थे. गिरीश त्यागी से भी उस के बेहद करीबी संबध थे.

दरअसल, उसे युवा वाहिनी के अध्यक्ष पद से हर्ष फायरिंग करने के आरोप में हटाया गया था. दीपावली के दिन अपने बेटे से फायरिंग करवाते उस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. इस मामले में पुलिस ने उस के खिलाफ मामला दर्ज किया था. बाद में मार्च 2019 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.

जितेंद्र त्यागी का भाई अमित राणा मुरादनगर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस ने छात्रों के बीच विवाद में मोदीनगर के एक कौन्वेंट स्कूल में अपने 2 साथियों के साथ गोलीबारी की थी.

अमित राणा भी अपने भाई के साथ हिंदू युवा वाहिनी से जुड़ा था. जितेंद्र त्यागी से पूछताछ में पता चला कि भाई अमित के कारण ही वह अजीत पाल त्यागी से रंजिश रखता था. क्योंकि विधायक अजीत पाल त्यागी के पुलिस पर दबाव के कारण ही अमित 2-3 मामलों में गिरफ्तार हुआ था.

जितेंद्र ने पुलिस को बताया कि गिरीश से उस की दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई थी कि गिरीश बेहिचक अपने मन की बात जितेंद्र से कह लेता था. बस एक दिन अपने मामा के बारे में बता कर गिरीश ने जब अपने मामा नरेश को खत्म करने की इच्छा जताई. इस से जितेंद्र त्यागी को लगा कि यही मौका है, जब वो अजीत पाल त्यागी को कमजोर कर सकता है. लिहाजा उस ने गिरीश को भरोसा दिलाया कि वह उस के लिए ये काम जरूर करेगा .

बस उसी दिन जितेंद्र त्यागी हत्याकांड की साजिश रचने में जुट गया. नरेश त्यागी की हत्या की पूरी योजना घटना से करीब 2 माह पहले तैयार हो गई थी.

फूलप्रूफ रची थी साजिश

जितेंद्र ने गिरीश के कहने पर भाड़े के हत्यारों का इंतजाम कर लिया. और ऐसी साजिश तैयार की जिस से हत्याकांड में उस का या गिरीश का कहीं भी नाम न आए.

जितेंद्र ने सिहानी गेट के ही सद्दीक नगर में रहने वाले अपने खास साथी मनोज कुमार को इस काम को करने के लिए चुना. जितेंद्र ने उसे बताया लोहिया नगर में नरेश नाम के एक आदमी की हत्या करनी है, इस के लिए कुछ लड़कों का इंतजाम करने में मदद करें. अच्छीखासी रकम मिलेगी.

मनोज ने कहा, ‘‘भैया लड़के तो हैं और आप उन को जानते भी हो.’’

‘‘कौन है?’’ जितेंद्र ने पूछा.

‘‘अरे भैया विपिन और अर्णव है… लौकडाउन के कारण आजकल कोई कामधाम नहीं है, इसलिए कमाई करने के लिए फड़फड़ा रहे हैं.’’ मनोज ने कहा.

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इस के कुछ दिन बाद मनोज ने दिल्ली में विपिन और अर्पण चौधरी से जितेंद्र की मीटिंग करवा दी.

अगले भाग में पढ़ें- हत्यारों तक कैसे पहुंचे हथियार

Crime Story: माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

पूर्वांचल की जमीन को बाहुबलियों की जमीन के नाम से जाना जाता है. ऐसा लगता है कि इस जमीन पर माफिया सरगनाओं की फसल उगती है. सब से

बड़ी बात यह है कि अपराध से शुरू हुआ इन माफिया सरगनाओं का सफर एक दिन पुलिस की गोली खा कर खत्म होता है. लेकिन ऐसे सरगनाओं की भी एक बड़ी फेहरिस्त है, जो अपने इसी बाहुबल के सहारे सियासत की ऊंचाइयों तक पहुंच गए.

पूर्वांचल की धरती पर कई माफियाओं का जन्म हुआ है. कुछ माफिया तो ऐसे हैं, जिन की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. राजनीति के गलियारों में इन की धमक अकसर सुनाई देती रहती है. इन माफियाओं ने प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी आतंक का खूनी खेल खेला.

अपराध की संगीन वारदातों को अंजाम दे कर पूर्वांचल की धरती दहलाने वाले इन्हीं माफिया में एक नाम है बृजेश सिंह का, जिन्होंने जुर्म की दुनिया को दहलाने के बाद अब सियासत में अपनी जमीन तैयार कर ली है. लेकिन राजनीति का लबादा ओढ़ने के बाद भी बृजेश सिंह के ऊपर जेल में रह कर रंगदारी वसूलने, ठेके पर हत्या कराने और टेंडर सिंडीकेट चलाने के आरोप लगते रहे हैं.

बृजेश सिंह की कहानी किसी फिल्म की स्टोरी से कम नहीं है. वह एक ऐसा माफिया सरगना रहा, जिस का आतंक उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी देखा  जाता था.

बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म वाराणसी के धरहरा गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उस के पिता रविंद्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे. सियासी तौर पर भी उन का रुतबा कम नहीं था और इलाकाई राजनीति में सक्रिय रहते थे. बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में काफी होनहार था.

सन 1984 में इंटरमीडिएट की परीक्षा में उस ने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे. उस के बाद बृजेश ने बनारस के यूपी कालेज से बीएससी की पढ़ाई की. वहां भी उस का नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था.

बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह को अपने होनहार बेटे से काफी लगाव था और इसीलिए वह चाहते थे कि बृजेश पढ़लिख कर अच्छा इंसान बने. समाज में उस का नाम हो.

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. 27 अगस्त, 1984 को वाराणसी के धौरहरा गांव में बृजेश के पिता रविंद्र सिंह की इलाके की राजनीति की रंजिश में हत्या कर दी गई. इस काम को उन के सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को जन्म दे दिया. इसी भावना के चलते बृजेश ने जानेअनजाने में अपराध की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया.

बृजेश सिंह अपने पिता की हत्या का बदला लेने लिए तड़प रहा था. उस ने बदला लेने के लिए एक साल तक इंतजार किया. आखिर वह दिन आ ही गया, जिस का बृजेश को इंतजार था. 27 मई, 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा बृजेश के सामने आ गया. उसे देखते ही बृजेश का खून खौल उठा और उस ने दिनदहाड़े अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया.

बदले की आग ने बदला जीवन

यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ थाने में मामला दर्ज हुआ. लेकिन वारदात के बाद बृजेश सिंह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा बल्कि फरार हो गया. क्योंकि उस का इंतकाम अभी पूरा नहीं हुआ था.

हरिहर को मौत के घाट उतारने के बाद भी बृजेश सिंह का गुस्सा शांत नहीं हुआ, उसे उन लोगों की भी तलाश थी, जो उस के पिता की हत्या में हरिहर के साथ शामिल थे. जल्द ही उसे अपना बदला लेने का मौका मिल गया.

9 अप्रैल, 1986 को चंदौली जिले का सिकरौरा गांव तब गोलियों की आवाज से गूंज उठा, जब बृजेश सिंह ने अपने साथियों के साथ पिता रविंद्र सिंह की हत्या में शामिल रहे गांव के पूर्वप्रधान रामचंद्र यादव सहित उन के परिवार के 6 लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला.

इस वारदात को अंजाम देने के बाद बृजेश सिंह पहली बार गिरफ्तार हुआ. दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में बृजेश पर 32 साल तक मुकदमा चला.

इसे बृजेश का बाहुबल और राजनीतिक रसूख ही मान सकते हैं कि इस घटना में चश्मदीद गवाह होने के बावजूद स्थानीय अदालत ने 32 साल बाद 2018 में गवाहों के बयानों को विरोधाभासी बताते हुए बृजेश को बरी कर दिया.

बहरहाल, पिता के हत्यारों को मौत की नींद सुलाने के बाद जब बृजेश सिंह सलाखों के पीछे पहुंचा तो यहीं से उस की जिंदगी की दिशा और दशा बदल गई.

कहते हैं जेल की सलाखों के पीछे एक ऐसी पाठशाला होती है, जहां इंसान की जिंदगी एक नया मोड़ लेती है. जो कैदी यहां आ कर अपने गुनाह का प्रायश्चित करना चाहता है, वह सुधर जाता है. और जिस कैदी की मंजिल अपराध की डगर पर आगे बढ़ने की होती है, वह जेल की सलाखों के पीछे अपराध के नए गुर सीखने और नए साथी बनाने में जुट जाता है.

अगले भाग में पढ़ें- बृजेश का मुख्तार अंसारी से हुआ सामना

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

गिरफ्तारी के बाद बृजेश जब वाराणसी जेल पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई. त्रिभुवन सिंह हिस्ट्रीशीटर अपराधी था. बृजेश के हौसलों को देखते हुए त्रिभुवन ने उस से दोस्ती कर ली.

त्रिभुवन सिंह भी अपने भाई व पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में उतरा था. इसीलिए दोनों की दोस्ती हो गई और दोस्ती का एक कारण यह भी था कि दोनों ही ठाकुर समुदाय से थे. कुछ लोग बृजेश के साथ थे तो कुछ त्रिभुवन के साथ. दोनों ने हाथ मिलाया तो जेल से निकलने के बाद साथ मिल कर काम करने लगे.

त्रिभुवन की मंजिल जहां पैसा और शोहरत कमाना था तो बृजेश ने समूचे पूर्वांचल में अपना सिक्का जमा कर अकूत दौलत कमाने का ख्वाब पाल लिया था.

अपराध की दुनिया में एक कहावत यह भी है कि इस दुनिया में ख्वाब उन्हीं के पूरे होते हैं जिन के हौसले और हिम्मत बुलंद होते हैं. बृजेश और त्रिभुवन सिंह की दोस्ती जल्द ही रंग लाने लगी, क्योंकि दोनों के ही हौसले और हिम्मत बुलंद थे. धीरेधीरे इन का गैंग पूर्वांचल में सक्रिय होने लगा.

दोनों ने मिल कर यूपी में शराब, रेशम और कोयले के धंधे में अपने पांव जमाने शुरू कर दिए. दोनों ने अपने बाहुबल से पहले छोटेमोटे काम शुरू किए फिर बड़ेबड़े काम करने लगे.

बृजेश का मुख्तार अंसारी से हुआ सामना

इसी बीच, 1990 के दशक में बृजेश सिंह ने धनबाद के पास झरिया का रुख किया. वह धनबाद के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के कारोबार की देखभाल करने के लिए उन के शूटर की तरह काम करने लगा. सूर्यदेव सिंह के इशारे पर बृजेश सिंह ने हत्या की 6 वारदातों को अंजाम दिया.

अपने कारनामों और कोयले के काले कारोबार के कारण बृजेश सिंह की दुश्मनी का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा था. असली खेल तब शुरू हुआ, जब बृजेश सिंह और माफिया डौन मुख्तार अंसारी कोयले की ठेकेदारी को ले कर आमनेसामने आ गए. मुख्तार अंसारी ने शुरुआत में चेतावनी दे कर कोयले के धंधे से दूर रहने की चेतावनी दी. लेकिन बृजेश सिंह को अपने बाहुबल और हौसले पर कुछ ज्यादा ही गुमान हो चला था.

बृजेश ने बाहुबली माफिया डौन मुख्तार अंसारी की ताकत आंकने में गलती कर दी. क्योंकि बृजेश को उस वक्त इस बात का आभास नहीं था कि राजनीतिक तौर पर मुख्तार अंसारी कितना मजबूत है. ठेकेदारी और कोयले के कारोबार को ले कर दोनों गैंगों के बीच कई बार गोलीबारी हुई. दोनों तरफ से जानमाल का नुकसान भी हुआ.

मुख्तार अंसारी के प्रभाव की वजह से बृजेश पर पुलिस और नेताओं का दबाव बढ़ने लगा. बृजेश के लिए कानूनी तौर पर काफी दिक्कतें पैदा होने लगी थीं.

जिस ने भी ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ फिल्म देखी होगी, उसे पता होगा कि ठीक उसी खतरनाक तरीके से काम करने वाले गैंग्स 2009-10 के दौर में बनारस, मऊ, गाजीपुर और जौनपुर में पूर्वांचल की राजनीति पर हावी थे.

ये वो दौर था जब मुख्तार अंसारी का कारवां निकलता था तो लाइन से एक साथ 15-20 एसयूवी गाडियां गुजरती थीं. दिलचस्प बात यह होती थी कि सारी गाडि़यों के नंबर 786 से खत्म होते थे. किसी की क्या मजाल कि पूरे शहर का भारी ट्रैफिक उन्हें 2 मिनट भी रोक सके. इन इलाकों में पान, चाय की दुकान पर बैठे चचा लोग बता देंगे कि मुख्तार अंसारी जब चलता था, तो बौडीगार्ड समेत अपने पूरे गैंग में सब से लंबा दिख जाता था.

दरअसल, पूरा पूर्वांचल मुख्तार अंसारी के खानदान की हिस्ट्री से वाकिफ था. क्योंकि मुख्तार के दादाजी मुख्तार अहमद अंसारी कभी कांग्रेस पार्टी के प्रेसिडेंट रह चुके थे. इन के भाई अफजाल 4 बार कम्युनिस्ट पार्टी से एमएलए रह चुके हैं और एक बार समाजवादी पार्टी से. मुख्तार के अब्बा और दादाजी स्वतंत्रता सेनानी भी रह चुके थे. साथ ही चाचा और दादाजी नेहरू, सुभाषचंद्र बोस और गांधीजी के भी काफी करीब थे.

चाचा हामिद अंसारी अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के वीसी और देश के उपराष्ट्रपति बने थे. अब बात बृजेश सिंह की करते हैं.

अगले भाग में पढ़ें- बृजेश को मिला राजनैतिक संरक्षण

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

सन 2002 में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच कोयले की ठेकेदारी को ले कर भयानक गोलीबारी और लड़ाई हुई, जिस में मुख्तार गैंग के 3 लोग मारे गए और खुद बृजेश सिंह भी जख्मी हो गया. इस लड़ाई के बाद बृजेश सिंह के मरने की अफवाह फैल गई. इस खबर को लोगों ने सच भी मान लिया, क्योंकि महीनों तक किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई और ब्रजेश को किसी ने नहीं देखा.

बृजेश के मरने की खबर ने मुख्तार गैंग को और ज्यादा ताकतवर बना दिया और फिर से चौतरफा उस का वर्चस्व हो गया.

2002 में अचानक कई महीनों बाद बृजेश तब सामने आया जब उत्तर प्रदेश में चले रहे चुनाव में गाजीपुर से बीजेपी के उम्मीदवार कृष्णानंद राय मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ जबरदस्त तरीके से ताल ठोंक रहे थे.

बृजेश को मिला राजनैतिक संरक्षण

बृजेश सिंह एकाएक सामने आया और कृष्णानंद राय को समर्थन दे कर लोगों से उन के पक्ष में मतदान की अपील की. वास्तविकता तो यह थी कि बृजेश को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत थी. कृष्णानंद राय यूपी से ले कर केंद्र की सियासत तक में जबरदस्त रसूख रखने वाले नेता थे.

इसी राजनीतिक संरक्षण के लिए बृजेश ने कृष्णानंद राय से हाथ मिला कर उन्हें चुनाव में अपना समर्थन दिया था. फलस्वरूप बृजेश की अपील पर इलाके की ठाकुर लौबी राय के पक्ष में खड़ी हो गई.

इस चुनाव में कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई को हरा दिया. इस के बाद तो हालात ये हो गए कि अब गाजीपुर-मऊ इलाके में पूरी राजनीति हिंदू-मुसलिम के बीच बंट गई. जिस कारण इलाके में सांप्रदायिक लड़ाइयां होने लगीं. ऐसे ही एक मामले में मुख्तार गिरफ्तार हो गया.

मुख्तार अंसारी बृजेश की चोट से अकसर लगातार कमजोर हो रहा था. इसीलिए बृजेश का काला कारोबार संभालने वाले कई लोग मुख्तार गैंग के निशाने पर आ गए. बृजेश का राइट हैंड कहे जाने वाला अजय खलनायक भी उन में से एक था. जिस पर मुख्तार अंसारी ने जानलेवा हमला करा दिया.

मुख्तार अंसारी किसी भी हाल में बृजेश को कमजोर करना चाहता था, इसीलिए उस ने बृजेश सिंह के चचेरे भाई सतीश सिंह की दिनदहाड़े हत्या करवा दी. सतीश की हत्या से पूरा पूर्वांचल दहल गया और इलाके के लोगों में खौफ पैदा हो गया.

सतीश की हत्या को उस वक्त अंजाम दिया गया, जब वह वाराणसी के चौबेपुर में एक दुकान पर चाय पी रहा था. उसी वक्त बाइक पर सवार हो कर पहुंचे 4 लोगों ने उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं. जिस की वजह से उस की मौके पर ही मौत हो गई थी.

मुख्तार के साथ चल रही गैंगवार के बीच अपराध जगत में माफिया डौन बन चुका बृजेश सिंह धीरेधीरे अपना कारोबार भी बढ़ाता जा रहा था. पूर्वांचल के साथ उस ने पश्चिम बंगाल, मुंबई, बिहार, और उड़ीसा में अपना ठेकेदारी व शराब कारोबार का जाल फैला दिया था. हालांकि बृजेश तब तक इतना बड़ा अपराधी बन चुका था कि वह अधिकांशत: भूमिगत ही रहता था.

इसी दौर में एक गैंग और तेजी से उभर रहा था, जो त्रिभुवन सिंह के पिता के हत्यारोपी मकनू सिंह और साधू सिंह का गैंग था. बृजेश सिंह के साथी त्रिभुवन सिंह का भाई हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह वाराणसी पुलिस लाइन में तैनात था. अक्तूबर, 1988 में साधू सिंह ने कांस्टेबल राजेंद्र को मौत की नींद सुला दिया. जिस के बाद हत्या के इस मामले में कैंट थाने पर साधू सिंह के अलावा मुख्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी नामजद किया गया.

त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने पुलिस वाला बन कर गाजीपुर के एक अस्पताल में इलाज करा रहे साधू सिंह को गोलियों से भून डाला. इसी कारण बृजेश का गिरोह उस वक्त इस हत्याकांड की वजह से पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया.

अगलेे भाग में पढ़ें- यूपी सरकार ने रखा ईनाम

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 5

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

बृजेश सिंह का राजनीतिक रसूख और धमक ही कहेंगे कि पिछले 12 साल में उस पर लगे सारे मुकदमे तेजी से हो रही सुनवाई के बाद हटते जा रहे हैं. ज्यादातर मामलों में उस के खिलाफ गवाही देने वाले मुकर गए या कुछ में पुलिस की कमजोर पैरवी और सबूत की कमजोरी के कारण एक के बाद एक मामले तेजी से खत्म होते जा रहे हैं.

चंद छोटे मामलों को छोड़ दें तो उस के खिलाफ चल रहे अधिकांश गंभीर और बड़े मामले अब खत्म हो चुके हैं. कुछ छोटे मामलों की सुनवाई भी अपने अंतिम चरण में है.

लेकिन इस के बावजूद बृजेश सिंह अभी जेल से बाहर नहीं आना चाहता क्योंकि मुख्तार गैंग से दुश्मनी के कारण जान का खतरा अभी भी बरकरार है.

बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी भले ही सलाखों के पीछे हों, लेकिन दोनों की दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई है. दोनों ही अपने भविष्य के लिए एकदूसरे का खात्मा चाहते हैं.

सन 2015 में बृजेश सिंह की एमएलसी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और भतीजे विधायक सुशील सिंह ने आरोप लगाया था कि मुख्तार अंसारी ने सेंट्रल जेल में लंबू शर्मा नाम के व्यक्ति को भेज कर बृजेश सिंह की जेल में ही हत्या कराने की साजिश रची थी.

इस के 3 दिन पहले भी बादशाह नाम के व्यक्ति को बनारस सेंट्रल जेल में बृजेश सिंह से मिलने के लिए भेजा गया था.  हालांकि इस मामले में बृजेश सिंह के परिजनों की शिकायत के बावजूद पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया था.

बृजेश सिंह के बारे में कहा जाता है कि सियासत में एंट्री के लिए ही उस ने खुद को दिल्ली पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवाया था. एक अपराधी भले ही कितना भी ताकतवर और रसूख वाला क्यों न हो, लेकिन अंतत: उस का अंत बुरा ही होता है. इसीलिए बृजेश सिंह ने बहुत पहले ही माफिया से माननीय बन कर अपने जीवन को नई दिशा देने की योजना पर काम शुरू कर दिया था.

माफिया से बना माननीय

हालांकि सियासत बृजेश सिंह के खून में रचीबसी थी. स्वर्गवासी पिता खुद इलाके में राजनीति करते थे. भले ही बृजेश का आपराधिक इतिहास उस के पूर्वांचल के बाहुबली होने की छवि की पुष्टि करता है, लेकिन इस के साथ अगर राजनीति में उस के दखल की ओर देखें तो वाराणसी-चंदौली में उस के परिवार का पुराना राजनीतिक प्रभाव साफ नजर आता है.

वाराणसी की एमएलसी सीट पर बृजेश और उस का परिवार पिछली 4 बार से जीतता आ रहा है. पहले 2 बार बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह इस क्षेत्र से एमएलसी रहे. बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल का 2018 में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. चुलबुल सिंह को पंचायत चुनावों का चाणक्य माना जाता था.

पूर्वांचल की राजनीति के जानकार मानते हैं कि चुलबुल सिंह ही वह शख्स थे, जिन्होंने पूरे परिवार का राजनीतिक रसूख कायम किया और पूर्वांचल के तमाम बाहुबली क्षत्रिय नेता इस परिवार के संपर्क में आए. उन्हीं की राजनीतिक धमक के कारण सियासत से बृजेश सिंह को जीवनदान मिलता रहा.

चुलबुल सिंह के लंबे समय तक बीमार रहने के कारण बाद में बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और उस के बाद मार्च 2016 में खुद बृजेश सिंह वाराणसी से एमएलसी बन कर राज्य की विधानसभा में दाखिल हो गया.

निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद उस ने रिकौर्ड मतों से जीत हासिल की थी. जिस के बाद माफिया से माननीय बनने का उस का सपना साकार हो चुका है. बृजेश सिंह ने एमएलसी बनने के बाद जब विधानसभा पहुंच कर एमएलसी पद की शपथ ली थी तो राजा भैया, धनंजय सिंह जैसे यूपी के कई क्षत्रिय बाहुबली नेता उस की वेलकम पार्टी में मौजूद थे.

सन 2017 में बृजेश सिंह भारतीय समाज पार्टी से सैयदराजा विधानसभा सीट (चंदौली) से चुनावी समर में उतरा, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था.

फिलहाल जेल में बंद बृजेश के परिवार के औपचारिक राजनीतिक चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले उस के भतीजे सुशील सिंह लगातार तीसरी बार चंदौली से विधायक चुने जा चुके हैं. कभी कृष्णानंद राय से ले कर राजनाथ सिंह जैसे भाजपा नेताओं के करीबी माने जाने वाले बृजेश के भतीजे सुशील भी अब औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो चुके हैं.

लेकिन राजनीति से इतर जो बात बृजेश को दूसरे बाहुबलियों से अलग करती है वह है अपराध के साथसाथ लगभग फिल्मी तरीके से फैला उस के व्यापार का सिंडिकेट.

पूर्वांचल के साथसाथ बिहार, झारखंड और मुंबई तक फैले बृजेश के व्यापारिक कनेक्शन उसे आर्थिक तौर पर पूर्वांचल के सब से मजबूत माफिया नेताओं में से एक बनाते हैं.

बृजेश ने अपना व्यापार लोहे के स्क्रैप से शुरू किया था. उस के बाद उस ने पहले कोयले के धंधे में पांव जमाया और फिर आजमगढ़ से शराब का व्यापार शुरू किया. बलिया, भदोही, बनारस से ले कर झारखंड, छत्तीसगढ़ तक अपने धंधे को फैलाया. इस के बाद वह जमीन और रियल एस्टेट में आया और अब उस का रेत के खनन का व्यापार भी चल रहा है.

अकसर मीडिया में ऐसी खबरें आती रहती हैं कि बृजेश सिंह वाराणसी सेंट्रल जेल में मिलने के लिए आने वाले मुलाकातियों से मिलने के लिए दरबार लगाता है.

पूर्वांचल के लोगों में इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में बृजेश सिंह अपने दामन पर लगे अपराध के दागों से मुक्ति पा कर सांसद बनने और लोकसभा में जाने की लालसा पाले हुए है. क्योंकि ऐसा होगा तभी बृजेश सिंह का समूचे पूर्वांचल पर कब्जा और अपने कारोबार को बढ़ाने का सपना साकार होगा.

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

लेकिन बृजेश सिंह ने जब मुंबई के जेजे अस्पताल में एक बड़ा गोलीकांड किया तो वह पूर्वाचंल के सब से खतरनाक माफिया डौन के रूप में स्थापित हो गया.

दरअसल, सितंबर 1992 की एक रात 20 से ज्यादा लोग डाक्टर के लिबास में अचानक बंबई (मुंबई) के जेजे अस्पताल के वार्ड नंबर 18 में घुस आए और बिस्तर पर लेटे शैलेश हलदरकर को गोलियों से छलनी कर दिया. हलदरकर बंबई के अरुण गवली गैंग का सदस्य था और उस की हत्या दाऊद इब्राहीम के रिश्तेदार इस्माइल पारकर की हत्या का बदला लेने के लिए उसी के इशारे पर की गई थी.

इस घटना में वार्ड की पहरेदारी कर रहे मुंबई पुलिस के 2 हवलदार भी मारे गए थे. जेजे अस्पताल शूटआउट में पहली बार एके 47 का इस्तेमाल कर 500 से ज्यादा गोलियां चलाई गई थीं.

यह सवाल जेहन में उठना लाजिमी है कि पूर्वांचल का एक डौन आखिर मुंबई कैसे पहुंचा और उस की दोस्ती आज एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी के रूप में कुख्यात दाऊद इब्राहीम से कैसे हो गई.

दाऊद से हुई दोस्ती

हुआ यूं कि 90 के दशक में जब बृजेश सिंह मुख्तार अंसारी के गैंग पर हमले के बाद छिपता फिर रहा था तो वह पुलिस और मुख्तार के गैंग से बचने के लिए मुंबई चला गया. मुंबई में उस की दाऊद के करीबी सुभाष ठाकुर से मुलाकात हुई. सुभाष के माध्यम से वह दाऊद से मिला. दाऊद के जीजा इब्राहिम कासकर की हत्या हो चुकी थी. दाऊद उस का बदला लेने के लिए कसमसा रहा था. उस ने सुभाष ठाकुर को इस की सुपारी दे दी.

इसी काम के लिए बृजेश का गैंग सुभाष ठाकुर व उस के साथियों के साथ 12 फरवरी, 1992 को डाक्टर बन कर जेजे अस्पताल पहुंचा, जहां डाक्टर बन कर उन्होंने पुलिस पहरे के बीच गवली गैंग के शैलेश हलदरकर समेत वहां तैनात पुलिसकर्मियों को मार दिया.

बृजेश की इस शातिराना चाल को देख कर दाऊद बृजेश के दिमाग का लोहा मान गया. इस के बाद दोनों बेहद करीब आ गए.

लेकिन 1993 में हुए मुंबई बम ब्लास्ट के बाद बृजेश के दाऊद से मतभेद हो गए. बृजेश सिंह मुंबई को दहलाने की दाऊद की योजना से पूरी तरह अनजान था. इस ब्लास्ट में हजारों बेगुनाह मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हुए.

इस वारदात से बृजेश सिंह को गहरा आघात लगा. दाऊद के इस कदम के बाद दोनों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई. माना जाता है कि इसके बाद दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए.

हालांकि मुंबई ब्लास्ट के पहले ही दाऊद ने देश छोड़ दिया था, लेकिन बृजेश दाऊद को मारने का प्लान बनाने लगा. जिस के लिए उस ने कई बार भेष बदल कर दाऊद तक पहुंचने की कोशिश भी की, लेकिन अपने मनसूबे में सफल नहीं हो पाया.

इस घटना के बाद बृजेश को ‘देशभक्त डौन’, ‘हिंदू डौन’ और पूरब का रौबिनहुड के नाम से जाना जाने लगा.

बहरहाल जेजे हौस्पिटल शूटआउट में कई लोग गिरफ्तार हुए, लेकिन बृजेश फरार हो गया. अलबत्ता उस पर टाडा के तहत मुकदमा चला और सितंबर 2008 में सबूतों की कमी के कारण छूट गया. लेकिन इस मामले ने बृजेश को पूर्वांचल के एक गैंगस्टर से पूरे देश में एक बड़े डौन के तौर पर स्थापित कर दिया.

बृजेश सिंह पर अब तक चल रहे बड़े मुकदमों में 2001 का गाजीपुर का उसरी चट्टी कांड भी गिना जाता है. इस मामले में बृजेश और मुख्तार की सीधी गैंगवार में 2 लोगों की हत्या हुई थी, जिस में मुख्तार अंसारी घायल हो गया था. घटना के बाद बृजेश के खिलाफ मुकदमा लिखवाते हुए मुख्तार ने उस की गाडि़यों के काफिले पर अचानक हमला करने, उस के गनर की हत्या करने का आरोप लगाया था. इस घटना के बाद बृजेश काफी साल तक फरार रहा.

इसी बीच 2003 में बृजेश सिंह का नाम बिहार के कोल माफिया सूर्यदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह के अपहरण और हत्याकांड में बतौर मास्टरमाइंड सामने आया.

बृजेश सिंह एक के बाद एक जघन्य हत्याकांड और रंगदारी वसूलने के कारण इतना कुख्यात हो चुका था कि कई राज्यों की पुलिस उस के पीछे पड़ चुकी थी. हालांकि इस बीच बृजेश भेष बदल कर इस राज्य से उस राज्य में छिप कर रहता रहा और वहीं से अपने गिरोह के संपर्क में रह कर अपने काले धंधों को संचालित करता रहा.

कई बार जब लंबे समय तक उस की गतिविधियां सुनाई नहीं पड़तीं तो यह भी अफवाह उड़ती कि उस की मौत हो चुकी है. लेकिन जल्द ही उस के अगले कारनामे से उन अफवाहों पर धूल पड़ जाती थी.

यूपी सरकार ने रखा ईनाम

सूर्यदेव सिंह के बेटे के अपहरण व हत्या के मामले में फरारी के बाद बृजेश लंबे समय तक उड़ीसा के भुवनेश्वर में अरुण कुमार बन कर रहा. बृजेश सिंह के आपराधिक इतिहास को देखते हुए तत्कालीन यूपी सरकार ने उस की गिरफ्तारी या सुराग बताने वाले के लिए 5 लाख रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल भी लंबे समय से उस की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी थी. स्पैशल सेल को सन 2008 में बृजेश के भेष बदल कर भुवनेश्वर में छिपे होने की जानकारी मिल गई. यहीं से स्पैशल सेल ने उसे गिरफ्तार किया. जिस के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस बृजेश सिंह को उस के खिलाफ दर्ज मामलों में सुनवाई के लिए यूपी ले गई

जहां से अलगअलग अदालतों में उस की पेशी होती रही.

दिलचस्प बात यह है कि बृजेश की गिरफ्तारी के एक साल बाद सन 2009 में उस के गिरोह की कमान संभालने वाले त्रिभुवन सिंह ने भी एसटीएफ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस के ऊपर भी 5 लाख का ईनाम था.

वैसे इस बात की हमेशा चर्चा रही कि बृजेश का राजनीतिक रसूख इतना बढ़ चुका था कि उस के भीतर अपराध की राह छोड़ कर राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा जोर मारने लगी थी. इसी कारण दिल्ली पुलिस के जरिए उस की गिरफ्तारी को प्रायोजित कहा जाने लगा.

कहा जाता है कि बडे़ से बड़ा अपराध करने के बाद भी बृजेश सिंह केवल इसलिए पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता था, क्योंकि वह हाईप्रोफाइल हो कर भी लो प्रोफाइल बन कर रहता था. मीडिया से बात नहीं करता था और मोबाइल फोन व सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करता था.

अपने 3 दशक लंबे आपराधिक जीवन में 30 से ज्यादा संगीन आपराधिक मुकदमों में नामजद बृजेश सिंह पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट), टाडा (टेररिस्ट ऐंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज ऐक्ट) और गैंगस्टर एक्ट के अलावा हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश रचने से ले कर, दंगाबवाल भड़काने, सरकारी कर्मचारी को इरादतन चोट पहुंचाने, झूठे सरकारी कागजात बनवाने, जबरन वसूली करने और धोखाधड़ी से जमीन हड़पने तक के मुकदमे लग चुके थे.

अगले भाग में पढ़ेंमाफिया से बना माननीय

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