फिर अनुराधा सोचने लगी थी कि क्या सासससुर एक छोटा सा त्याग नहीं कर सकते थे? वे बेटे के साथ आगरा में नहीं रह सकते थे? क्या शहर में बुजुर्ग नहीं रहते हैं? उस ने तो कई बुजुर्गों को आपस में बैठ कर गपें मारते देखा है. अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो केवल बहू ही ऐसा त्याग क्यों करे? हां, क्यों करे ऐसा त्याग…?
फिर अनुराधा का मन विद्रोही हो गया था. अगर सासससुर को उस का खयाल नहीं तो उस को भी उन का खयाल करने की जरूरत नहीं. मन फिर गुस्से से भरने लगा था. मलय के मातापिता हैं वे, मलय त्याग करे. अगर इतनी ही फिक्र है, तो नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाए. वह कुछ नहीं बोलेगी.
पर, सासूजी के चेहरे पर अपनी तकलीफों का तो दूरदूर तक अतापता नहीं था. उस के अचानक आगरा जाने के प्लान से लगता था कि सासूजी पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा था.
सामान भी बहुत भारी नहीं है,’’ अनुराधा ने धीरे से सिर झुका कर कहा था.
सासससुर के प्रति मन के अंदर का विद्रोह और गुस्सा अचानक जाने कहां गायब हो गए थे.
फिर अनुराधा ने घर के अंदर बिखरे सामान को देखा. ससुरजी अब भी इन सब से बेपरवाह सो रहे थे.
अनुराधा सोचने लगी कि उस के जाने के बाद घर में झाड़ू कौन लगाएगा? यहां कोई नौकरानी तो है नहीं. सुबह उठते ही उस के सासससुर को चाय की तलब होती है. घर में झाड़ू देने के बाद उस का पहला काम यही होता था, दोनों को चाय देना. किचन के सिंक में रात से ही जूठे बरतन पड़े थे. अपने सामान को ही सहेजने में काफी रात हो गई थी और वह उन्हें साफ न कर पाई थी.
देर रात तक जागने के चलते आज सुबह अनुराधा की नींद ही न टूट रही थी. अगर उस ने अलार्म न लगाया होता, तो ट्रेन के समय तक वह रेलवे स्टेशन ही न पहुंच पाती.
अनुराधा को मलय की नाराजगी की भी चिंता सता रही थी. मलय ने अगर बुरा मान लिया तो क्या वह उस के साथ रह कर अपने इम्तिहान की तैयार कर पाएगी? इस से उस की नींद तक उड़ गई थी.
सब से मुश्किल बात यह थी कि अनुराधा अब तक मलय को ठीक से समझ नहीं पाई थी. उसे याद आया कि शादी के बाद जब वह पहली बार अपनी ससुराल आई थी, तो सासससुर के चेहरे खुशी से दमक उठे थे, पर मलय के चेहरे पर कोई जोश नहीं था. उस ने अनमने तरीके से सारी रस्मों को पूरा किया था.
जब वे दोनों अपना हनीमून मनाने गोवा गए थे, तब समुद्र के तट पर कई नए शादीशुदा जोड़े आए हुए थे. यह तो अनुराधा नहीं जानती थी कि किस जोड़े के मन में क्या चल रहा था, लेकिन सभी के चेहरे खुशी का इजहार कर रहे थे. लेकिन ऐसा लग रहा था कि मलय वह हनीमून को भी एक रस्म जैसा निबटा रहा था.
ये भी पढ़ें- बताएं कि हम बताएं क्या
उस समय अनुराधा ने इस बात को महसूस तो किया था, लेकिन इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. उसे लगा था कि उस का ऐसा ही स्वभाव होगा, लेकिन जब मलय ने उस से कहा था कि वह मांबाबूजी के साथ गांव में रह कर उन की देखभाल करे, तब उस का मन उस से विद्रोह करने लगा था, किंतु वह एक तो नई थी, दूसरे उस के सासससुर बूढ़े और बीमार थे, इसलिए मन मसोस कर गांव में रहना स्वीकार कर लिया था.
मलय उसे आगरा नहीं ले जाना चाहता था, कभीकभी खुद ही गांव आ जाता और उस से वैसे ही संबंध बनाता, जैसे कोई दैनिक काम कर रहा हो. मन में न कोई उत्साह, न उमंग. उस ने कभी जाना ही नहीं कि शादीशुदा जिंदगी में नए जोड़ों की उमंग कैसी होती है, इसलिए जब मां ने उस को आगरा जाने से नहीं रोका और उस के जाने के बाद उन को होने वाली तकलीफ की ओर ध्यान गया तो उस ने अपना फैसला बदल दिया.
फिर अनुराधा मलय से फोन कर के बोली कि आगरा अभी नहीं आ पाएगी और तब तक नहीं आएगी, जब तक कि सासससुर की देखरेख का कोई उचित इंतजाम नहीं हो जाता.
जब अनुराधा ने सामान को अनपैक करना शुरू किया, तो सासूजी ने पूछा, ‘‘क्यों बहू, सामान क्यों निकाल रही हो?’’
‘‘मांजी, अब आप लोगों को अकेले छोड़ कर मैं नहीं जा सकती. मेरी गैरहाजिरी में आप लोगों की कौन देखभाल करेगा? मुझ से गलती हो रही थी. माफ कीजिएगा मांजी, मैं यहीं रहूंगी.’’ रही हो?’’
‘‘मांजी, अब आप लोगों को अकेले छोड़ कर मैं नहीं जा सकती. मेरी गैरहाजिरी में आप लोगों की कौन देखभाल करेगा? मुझ से गलती हो रही थी. माफ कीजिएगा मांजी, मैं यहीं रहूंगी.’’
उधर मलय की अपनी ही जिंदगी थी. एक लड़की थी अर्पणा. वह भी मलय के ही बैक में काम करती थी.
मलय का अर्पणा से परिचय नौकरी के पहले से था. दोनों बैंकिंग की तैयारी के समय एक ही जगह से कोचिंग करते थे. उस का अर्पणा से परिचय भी एक इत्तिफाक था.
अर्पणा को किसी ने बताया था कि मलय गणित की कई ट्रिक जानता है, जिन से कई मुश्किल सवाल बहुत कम समय में ही हल हो जाते हैं. उन्हीं ट्रिकों को जानने के लिए अर्पणा
मलय से मिली थी. इस मुलाकात ने उन के संबंधों को ऐसा बढ़ाया कि वह नौकरी के बाद भी कायम रहा.
मलय अनुराधा से शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन वह खुल कर बाबूजी से अपने मन की बात कह भी नहीं पाया.
इधर अर्पणा मन की भी बात वह नहीं जानता था. उन के बीच संबंध जरूर था, लेकिन वे अपनी जिंदगी भी एकसाथ बिताएंगे, इस सवाल को किसी ने न उठाया था, फिर अर्पणा का एक दूसरे लड़के से भी संबंध था, जिस के साथ वह डेट पर जाती थी, इसलिए मलय की जब शादी की बात चल रही थी, तब उस ने उस को बधाई दी. तब मलय का मन उदास हो गया था और उस ने अनुराधा से शादी कर ली थी.
मलय की शादी के बाद अर्पणा की अपने प्रेमी से किसी बात को ले कर अनबन हो गई और उन का संबंध टूट गया. इसी बीच उस के प्रेमी की नौकरी देहरादून में लग गई और अर्पणा से उस की बातचीत भी बंद हो गई.
अब मलय और अर्पणा अकेले रहते थे, इसलिए उन दोनों के बीच यह जानते हुए भी कि मलय शादीशुदा है, प्रेम का अंकुरण होने लगा.
मलय ने अब तक अनुराधा को अर्पणा के बारे में कुछ नहीं बताया था. वैसे वह खुद ही इस बारे में बताता भी क्यों. ऐसे संबंधों को अकसर पतिपत्नी एकदूसरे से छिपा ही लेते हैं.
मलय यह जानता था कि अर्पणा से उस के प्यार की पेंगे बढ़ाना गलत है, अर्पणा भी इस बात से वाकिफ थी, लेकिन दोनों का मिलना बंद नहीं हो रहा था, जिसे अब बैंक के दूसरे मुलाजिम भी जान गए थे.
एक दिन अनुराधा ने मलय को फोन किया. उस समय रात के 11 बज रहे थे. उस रात अर्पणा के जन्मदिन की पार्टी थी. मलय भी उस पार्टी में शामिल हुआ था. अचानक उस के मोबाइल पर घंटी बजने पर अर्पणा ने देखा कि यह मलय का फोन है, जिसे छोड़ कर वह बाथरूम में चला गया है.
अर्पणा ने फोन रिसीव किया… ‘हैलो.’
किसी लड़की की आवाज सुन कर अनुराधा चौंक गई. वह बोली, ‘‘क्या यह मलय का फोन नहीं है?’’
‘मलय का ही फोन है. आप कौन बोल रही हैं?’
‘‘मैं, अनुराधा… मलय की पत्नी.’’