“अपराधी नौकर” से कैसे  हो बचाव!

आमतौर पर माना जाता है कि मालिक और नौकर का संबंध चिरकालिक है. दोनों ही एक दूसरे के पूरक है. ऐसे में अगर नौकर विश्वासघात करने लगे, आस्तीन का सांप बन जाए तो फिर मालिक का तो भगवान ही मालिक है.

ऐसी अनेक घटनाएं हमारे आसपास घटित होती है. जब नौकर विश्वासघात पर उतर आता है.और अपने ही मालिक को डस लेता है. आखिर नौकर की ऐसी करतूतों से कैसे बचा जा सकता है.

आज के इस अपराध पूर्ण माहौल में, यह एक बड़ी चिंता का विषय है. क्योंकि कब कौन, कहां क्या निर्णय लेता है और अपराध कर बैठता है यह कोई भी नहीं जान सकता. आइए! आज इस लेख में नौकर मालिक के संबंधों और अपराध को रेखांकित करते हुए कुछ घटनाओं के माध्यम से हम आपको जिंदगी के सच को दिखाने का प्रयास करते हैं. विधि और समाज के महत्वपूर्ण लोगों के विचार भी इस आलेख में शामिल किए गए हैं.

Crime Story: प्यार के भंवर में (भाग-2)

घर का भेदी- नौकर

छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में अपने घर में लगातार चोरियां होती देख परेशान मालिक ने घर में मोबाइल को वीडियो रिकार्डिंग मोड पर रखकर छोड़ दिया. जब मोबाइल को दोबारा चेक किया तो पता चला कि आरोपी और कोई नहीं, घर का ही एक विश्वासपात्र नौकर  है. मालिक ने नौकर के विरुद्ध थाने में अपराध दर्ज करायी.  शशांक अग्रवाल (21 साल) पिता डा. राजेन्द्र फ्रेंड्स कॉलोनी में रहते हैं.

शशांक बताते हैं इनकी क्लिनिक गांधी गंज में है. क्लिनिक और घर की देखभाल के लिए डाक्टर ने दिलेश्वर पटेल निवासी चिनारा चैनपुर कोरबा को तीन साल से रखा है. 15 अप्रैल को शशांक अग्रवाल और इनके माता-पिता घर बंद कर शाम 5.30 बजे क्लिनिक गए थे. घर में इलेक्ट्रीशियन काम कर रहा था, दिलेश्वर भी घर पर था. कुछ महिनों से लगातार अलमारी से रुपए और जेवरात चोरी हो रहे थे. डॉ. राजेन्द्र ने चोरी का पता लगाने के लिए उनकी पत्नी के मोबाइल को वीडियो रिकार्डिंग मोड में डालकर बेडरूम में छिपा दिया था. रात करीब 9.30 बजे डॉक्टर अग्रवाल जब घर पहुंचे तो उन्होंने अपना मोबाइल चेक किया.मोबाइल की वीडियो रिकार्डिंग में दिलेश्वर घर की अलमारी खोलकर 90 हजार रुपए ले जाता दिखा.इस पर उनके द्वारा कोतरा रोड में पहुंच रिपोर्ट दर्ज कराई गई. रिपोर्ट पर कोतरा रोड पुलिस ने आरोपी नौकर को जेल की हवा खाने भेज दिया है.

मास्टरमाइंड नौकर

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मोबाइल दुकान में काम करने वाले कर्मचारी ने मालिक के विश्वास का फायदा उठाकर अकाउन्ट से अपने खाते में 6 लाख रुपए ट्रांसर्फर कर लिया. घटना की रिपोर्ट गुढिय़ारी थाने में दर्ज की गई है. रायपुर के अशोकनगर , गुढिय़ारी निवासी साधुराम जीवनानी ने रिपोर्ट दर्ज कराई  कि प्रार्थी का एक मोबाइल दुकान है. दुकान में काम करने वाले अखिलेश्वर पाण्डेय विश्वास के कारण ग्राहकों को मोबाइल फायनेंस ब्रिकी होम क्रेडिट कंपनी द्वारा किया जाता है.खिलेश्वर पाण्डेय दुकान का एकाउन्ट एवं मोबाइल खरीदी बिक्री का काम करता है, जिसके  कारण आरोपी को खाता संबंधित आईडी पासवर्ड दिया था. 7 जनवरी को प्रार्थी के मोबाइल पर 10 हजार रुपए निकालने के संबंध में मैसेज आया जिसके बाद बैंक जाकर खाते की जांच कराने पर अखिलेश्वर पाण्डे ने कई बार में 6 लाख 2 हजार 920 रुपए पीडि़त के एचडीएफसी बैंक खाते से अपने खाते में ट्रांसर्फर किया है. इसके बाद 7 जनवरी से दुकान में काम करना बंद कर दिया है. रिपोर्ट पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अमानत में खयानत की  के तहत अपराध कायम कर कर लिया.

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जब नौकर ही हत्यारा निकला

किस्से कहानियों और फिल्मों में हम अक्सर नौकर को वफादार के रूप में पाते हैं मगर ऐसी भी बहुत सी कहानियां हैं जब नौकर पीठ पर घाव कर देता है.

ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के नवगठित जिला पेंड्रा में घटित हुई.यहां पुलिस ने कंप्यूटर दुकान संचालक की हत्या का खुलासा करते हुए मामले में मृतक की पत्नी और उसके ड्राइवर को गिरफ्तार किया पुलिस की पूछताछ में मृतक की आरोपी पत्नी ने इकबालिया बयान में बताया पति से परेशान थी और  तंग आकर ड्राइवर के साथ मिलकर हत्या  की है. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार और वारदात को अंजाम देने के लिए उपयोग किये गए डंडे को भी बरामद कर लिया है.

यह सनसनीखेज मामला गौरेला थाना क्षेत्र का है,  पुलिस को सूचना मिली कि चुक्तिपानी और ज्वालेश्वर मार्ग पर सड़क किनारे खाई में एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिला है. पुलिस मौके पर पहुचकर जांच शुरू की तब पुलिस को पता चला कि शव पेण्ड्रा थानाक्षेत्र के कुदरी गांव में रहने वाले रजनीश डेनियल का है, जो कंप्यूटर दुकान संचालित करता था. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि रजनीश डेनियल  घर से अचानक गायब हो गया था, जिस पर उसकी पत्नी माग्रेट डेनियल ने  पेण्ड्रा थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

खाई में मिले शव की शिनाख्ती के लिए पुलिस ने मार्गेट डेनियल को बुलाया शव की पहचान उसकी पत्नी ने की और शव जो पुलिस ने पंचनामा पोस्टमार्टम कार्रवाई के बाद परिजन को सौंप दिया, शॉर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मृतक की हत्या किसी वजनी चीज से सर में चोट मारने और गला दबाने से हुई है.

पुलिस ने मामले में अलग-अलग बयान लिया यहां तक की मनोवैज्ञानिक तरीके से भी पूछताछ की गई. पुलिस को मामले में संदेह मृतक की पत्नी पर हुआ, जिस पर कड़ाई से की गई पूछताछ में उसने हत्या की बात कबूल कर ली. मृतक की पत्नी ने बतलाया कि वो अपने पति से काफी परेशान थी. रजनीश उसे शारीरिक और मानसिक रूप से काफी परेशान करता था, यहां तक की खाने-पीने को भी नहीं दिया करता था. प्रताड़ना से तंग आकर मार्ग्रेट डेनियल ड्राइवर भूरेलाल को पैसे और जमीन का लालच देकर रजनीश डेनियल को मारने का प्लान बनाया.

छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिला जशपुर में एक व्यापारी को उसके यहां काम करने वाले नौकर में ऐसा दंश दिया जिसे वह शायद कभी नहीं भूल सकता और पुलिस भी उस नौकर को अभी तक ढूंढ नहीं पाई है. रामलाल नामक एक कपड़ा व्यवसायी के गोदाम का पचास हजार का कीमती कपड़ा नौकर ने बेच दिया और पता चलने पर नौकर धीरज फरार है.

ऐसे ही एक घटना क्रम में जिला बेमेतरा के कोतवाली थाना अंतर्गत एक जनरल स्टोर के नौकर ने अपने मालिक  घनश्याम तिवारी को लाखों रुपए का चूना लगा दिया मालिक ने नौकर रमाकांत को रुपए जमा करने बैंक भेजा मगर नौकर पैसे लेकर से फरार हो गया.

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आखिर क्या है उपाय

जैसा कि हम जानते हैं नौकर और मालिक, मालिक और नौकर का संबंध चोली दामन का संबंध है. ऐसे में जब ऐसी बहुतेरी घटनाएं समाज में घटित हो रही हैं. जब नौकर अपराधी हो जाता है तब एहतियात, सतर्कता लाजमी हो जाती है.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता एसएस मसीह के मुताबिक आज समय आंख बंद करके किसी पर विश्वास करने का  नहीं है. ऐसे में जब आपके यहां कार्यरत सर्वेंट अर्थात नौकर चाहे कितना ही पुराना क्यों ना हो आप सहजता और सरलता बनाते हुए अपनी आंखें खुली रखें. कभी भी अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज, बैंक के दस्तावेज नौकर को न बताएं और एक मर्यादा के तहत माहौल बनाकर काम लें.

वहीं संगीत मनोविज्ञान के शिक्षक घनश्याम तिवारी के मुताबिक नौकर और मालिक एक दूसरे के पर्याय हैं नौकर के बिना काम नहीं चल सकता मगर मालिक को चाहिए कि एहतियात बरतते हुए अपने महत्वपूर्ण सूचनाओं को अभी भी नौकर से शेयर न करें.

सामाजिक कार्यकर्ता रमाकांत श्रीवास के मुताबिक नौकर पर पूर्ण रूप से आंख बंद करके विश्वास करना घातक हो सकता है. आज के समय में जब गुप्त कैमरे लग चुके हैं, ऐसे में बहुत तरह से राहत भी मिल जाती है मगर  एहतियात अपरिहार्य है.

कुख्यात डौन मुख्तार अंसारी पर सरकार की टेढ़ी नजर: भाग 2

सौजन्य-सत्यकथा

मुख्तार अंसारी बड़े भाई के राजनैतिक रसूख का भरपूर लाभ उठाता रहा. जैसेजैसे राजनीतिक संरक्षण मिलता गया, वैसेवैसे उस का आपराधिक ग्राफ बढ़ता गया. यह हाल हो गया था कि अब पुलिस वाले भी मुख्तार अंसारी की गोली का शिकार बनने लगे थे.

इस का उदाहरण सन 1987 में वाराणसी पुलिस लाइन में देखने को मिला. मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट ने जिस दुस्साहस का परिचय दिया था, उस से प्रदेश पुलिस हिल गई थी. मामला जुड़ा हुआ था बृजेश ऐंड त्रिभुवन सिंह गैंग से. दरअसल, त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेडकांसटेबल था. वह वाराणसी में पुलिस लाइन में तैनात था. मुख्तार अंसारी ने अपने साथियों साधू सिंह, कमलेश सिंह, हरिहर सिंह और भीम सिंह के साथ मिल कर वाराणसी पुलिस लाइन में दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया था.

पुलिस ने मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने के लिए एड़ीचोटी का जोरलगा दिया, लेकिन विधायक भाई अफजल अंसारी के हस्तक्षेप से पुलिस उस का बाल बांका नहीं कर पाई.

इस के बाद बृजेश गैंग भी चुप नहीं बैठा. बृजेश और त्रिभुवन गैंग ने मिल कर मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ माने जाने वाले साधू सिंह को मौत के घाट उतार कर अंसारी को तोड़ने की कोशिश की. साधू सिंह की हत्या से मुख्तार अंसारी को बड़ा झटका लगा.

इस के बाद तो बृजेश गैंग ने एकएक कर के मुख्तार असांरी के कई नामचीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया. धीरेधीरे बृजेश सिंह गिरोह की पूर्वांचल में तूती बोलने लगी. नब्बे के दशक में 2 आपराधिक गिरोहों की समानांतर सरकार चल रही थी. कभी बृजेश सिंह गैंग मुख्तार अंसारी पर भारी पड़ता तो कभी मुख्तार अंसारी गिरोह बृजेश पर.

बृजेश सिंह के आपराधिक कद को बढ़ता देख मुख्तार अंसारी सहम सा गया था. बृजेश से टक्कर लेने के लिए उस ने अपने ट्रैक में बदलाव किया. भाई अफजल अंसारी की बदौलत मुख्तार अंसारी की पहुंच सत्ता के गलियारों में गहरा गई थी. अफजल विधायक थे ही. मुलायम सिंह यादव सरकार में उन की पैठ कुछ ज्यादा ही थी. भाई की बदौलत सपा सरकार के पहले शासन काल में मुख्तार अंसारी की मुलायम सिंह से नजदीकियां बन गई थीं.

इसी राजनीतिक पहुंच के कारण मुख्तार अंसारी के घर वालोंं के नाम हथियारों के लाइसेंस स्वीकृत कर दिए गए थे. इन में डीबीबीएल गन, मैग्नम रिवौल्वर, टेलिस्कोपिक राइफल इत्यादि खतरनाक हथियार शामिल थे. इस के बाद मुख्तार अंसारी खुलेआम गाजीपुर में रहने लगा. अब तक जिले की जो पुलिस मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी के लिए बेताब रहती थी, वही पुलिस उस के आगेपीछे घूमने लगी.

सत्ता के सनकी घोड़े की सवारी करते हुए मुख्तार अंसारी बृजेश गिरोह के बचे हुए गुरगों का एकएक कर सफाया करने लगा. दिसंबर, 1991 में मुख्तार अंसारी की पुलिस से मुठभेड़ हो गई. मुठभेड़ वाराणसी के मुगलसराय थाना क्षेत्र के पास हुई थी.

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मुगलसराय एसओ ने रात 8 बजे गश्त के दौरान एक मारुति जिप्सी में मुख्तार और उस के साथियों भीम सिंह, अरमान व रामजी को जाते हुए देखा तो इशारा कर के रुकने को कहा. जिप्सी रोकते ही मुख्तार और उस के साथियों ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी. जबावी काररवाई में पुलिस ने भी उन पर फायरिंग की और मुख्तार सहित सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया.

तलाशी लेने पर जिप्सी में से 2 आटोमैटिक राइफल, 2 बंदूक और एक रिवौल्वर बरामद हुई. गिरफ्तारी तो हो गई लेकिन मुख्तार अंसारी को कैद में रखना आसान नहीं था. गिरफ्तार करने वाले पुलिस वालों में से एक को मुख्तार अंसारी ने पहचान लिया, जो बृजेश गुट के एक कारकुन का भाई था और पुलिस में था.

मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से उस की हत्या कर दी और पुलिस कस्टडी से फरार हो गया. पुलिस हाथ मलती रह गई.

इस घटना ने खासा तूल पकड़ा. उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. सरकार की सख्ती से मुख्तार अंसारी के घर की कुर्की तक हो गई थी. पुलिस ने विधायक अफजल अंसारी के घर पर छापा मारा. मामले ने काफी तूल पकड़ा और सरकार पर आरोप लगा कि अन्य पार्टी का होने के नाते भाजपा सरकार विधायक का उत्पीड़न कर रही है.

मामला विधानसभा तक पहुंच गया और इसे ले कर खूब हंगामा हुआ. काफी हंगामे के बाद विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने विधानसभा के पूर्व अघ्यक्ष भालचंद्र शुक्ल को घटना की जांच का आदेश सौंपा.

पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी ने चंडीगढ़ और पंजाब के शहरों में छिप कर फरारी काटी. इसी दौरान उस की पंजाब के आतंकवादियों से साथ मुलाकात हुई. दुश्मनों का सफाया करने के लिए उस ने इन्हीं आतंकवादियों के जरिए एके-47 हासिल की. यह बात सन 1991-92 के करीब की है.

प्रदेश में भाजपा की सरकार के रहते मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ कर नहीं देखा. भाजपा का शासन खत्म होते ही मुख्तार अंसारी एक बार फिर सक्रिय हो गया.

वह 1993 का दौर था, जब मुख्तार अंसारी ने दिल्ली के व्यवसाई वेदप्रकाश गोयल का अपहरण कर के देश के पुलिस तंत्र को हिला दिया था. व्यवसाई गोयल को मुक्त करने के एवज में मुख्तार अंसारी ने उन के घर वालों से 50 लाख रुपयों की मांग की.

मुख्तार अंसारी ने गोयल को चंडीगढ़ के एक मकान में कैद कर के रखा था. अंतत: दिल्ली पुलिस एड़ीचोटी का जोर लगा कर वेदप्रकाश गोयल को माफिया डौन मुख्तार अंसारी के चंगुल से आजाद कराने में कामयाब हो गई थी. वैसे कहा जाता है कि उन्हें पैसा ले कर छोड़ा गया था.

पुलिस ने चंडीगढ़ के मकान से कई जहरीले इंजेक्शन तथा तमाम आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद कीं. इस के बाद पुलिस ने मुख्तार और उस के साथियों पर ‘टाडा’ लगा कर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. उस के बाद प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो मुख्तार की किस्मत का ताला फिर खुल गया. उसे टाडा कानून से राहत दे कर गाजीपुर जेल स्थानांतरित करा दिया गया.

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गाजीपुर में किसी जेल अधिकारी की मुख्तार की हरकतों को रोकने की हिम्मत नहीं थी. उस के गुर्गों की ओर से उन्हें धमकी मिलती थी ‘यदि जिंदा रहना है तो अपनी आंखें और जुबान दोनों बंद रखो, वरना कत्ल कर दिए जाओगे.’

मुख्तार की धमकियों के आगे जेल पुलिस नतमस्तक रहने को मजबूर थी. मुलायम सिंह यादव की अंसारी परिवार पर खास मेहर रहती थी. इस से पूर्व बसपा मुखिया मायावती की नजर मुख्तार अंसारी पर थी. एक ऐसा भी दौर था जब मायावती और मुलायम सिंह के बीच मुख्तार को अपनीअपनी पार्टी में लेने के लिए होड़ मची. तब वह मायावती के पाले में चला गया.

अगले भाग में पढ़ें- मुख्तार ने पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला

Crime Story: कुख्यात डौन मुख्तार अंसारी पर सरकार की टेढ़ी नजर (भाग-3)

सौजन्य-सत्यकथा

विधायक अफजल अंसारी मुलायम सिंह के हुए तो मुख्तार अंसारी ने भी मायावती को छोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. बाद के दिनों में बड़े आपराधिक कारनामों को अंजाम दे कर मुख्तार अंसारी ने सब को सकते में डाल दिया. ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्जा बरकरार था, जिस के दम पर उस ने अपनी सल्तनत खड़ी की.

मऊ की जनता का कहना है मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं. अमीरों से लूटते हैं तो गरीबों में बांटते हैं. मुख्तार अंसारी पुलों, अस्पतालों और स्कूल कालेजों पर अपनी विधायक निधि से 20 गुना ज्यादा पैसे खर्च करते थे.

यही वो वक्त था, जब मुख्तार की रौबिनहुड इमेज पर बसपा ने बहुत जोर दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी बनारस से खड़ा हुआ और बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से हार गया.

खास बात यह थी कि मुख्तार ने यह पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला. मुख्तार जब गाजीपुर की जेल में था तभी पुलिस रेड में पता चला कि उस की जिंदगी जेल में बाहर से भी ज्यादा आलीशान और आरामदायक है. अंदर फ्रिज, टीवी से ले कर खाना बनाने के बरतन तक मौजूद थे. इस पर उसे मथुरा जेल भेज दिया गया.

साल 2010 में बसपा ने मुख्तार के आपराधिक मामलों को स्वीकारते हुए उसे पार्टी से निकाल दिया. अब मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ नई पार्टी बनाई, जिस का नाम था- कौमी एकता दल. जिस से वह 2012 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीत गया.  2014 में मुख्तार ने ऐलान किया कि वह बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में उस ने यह कह कर आवेदन वापस ले लिया कि इस से वोट सांप्रदायिकता के आधार पर बंट जाएंगे.

2016 में जब मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल करने की बात आई, तो उस वक्त मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. बलराम यादव ने ही मुख्तार अंसारी को सपा में लाने की बात कही थी.

किसी तरह मुलायम सिंह से कहसुन कर बलराम यादव तो पार्टी में वापस आ गए, लेकिन अखिलेश यादव मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल न करने की बात पर अड़े रहे. इस के बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजल अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का मायावती की पार्टी बीएसपी में विलय कर लिया.

बहरहाल, विधायक मुख्तार अंसारी तमाम गुनाहों की सजा काटने के लिए 2006 से विभिन्न जेलों में बंद था. फिर उसे बांदा जेल में लाया गया था.

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23 जनवरी, 2019 को बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को बांदा जेल से पंजाब की मोहाली जेल ले जाया गया. अंसारी को मोहाली के बिल्डर से 10 करोड़ की रंगदारी मांगे जाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था.

इस मामले में उसे 24 जनवरी को मोहाली कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में मोहाली की रोपड़ जेल भेज दिया. तब से वह मोहाली जेल में बंद है. बाहुबली मुख्तार अंसारी के गुनाहों का शिकंजा उस के घर वालों पर कसता जा रहा है.

गाजीपुर जिले के विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर कोर्ट) गौरव कुमार की अदालत ने 19 सितंबर, 2020 को मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और 2 सालों के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया है. कोतवाली पुलिस द्वारा दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मामले में तीनों फरार चल रहे हैं.

एसपी डा. ओ.पी. सिंह ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार प्रदेश भर में माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ अभियान चल रहा है.

नगर कोतवाली में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के वांछित आईएस-191 गैंग के लीडर मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और उस के सालों शरजील रजा व अनवर शहजाद के खिलाफ गैंगस्टर कोर्ट द्वारा गैरजमानती वारंट जारी किया गया था.

अब बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, उस के घर वालों, रिश्तेदारों और करीबियों की सूची तैयार कर प्रदेश भर में काररवाई की जा रही है. पुलिस जांचपड़ताल में मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी व उस के साले शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा संगठित आपराधिक गिरोह के रूप में अपराध के मामले सामने आए थे.

साथ ही छावनी लाइन स्थित भूमि गाटा संख्या-162 और बवेरी में भूमि आराजी नंबर-598 कुर्क शुदा जमीन पर अवैध कब्जे का मामला भी सामने आया था. इस के अलावा आरोपी शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा सरकारी ठेका हासिल करने के लिए फरजी दस्तावेज तैयार कर प्रस्तुत करने की बात भी सामने आई थी.

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इस संबंध में भी थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज करने के बाद विवेचना और आरोप पत्र अदालत में भेजा गया है, जबकि आरोपी आफशां अंसारी द्वारा सरकारी धन के गबन व अमानत में खयानत के आपराधिक कृत्य के संबंध में भी सैदपुर में मुकदमा पंजीकृत है.

इन आपराधिक मामलों पर प्रभावी काररवाई करते हुए पुलिस ने साले शरजील रजा, अनवर शहजाद और पत्नी आफशां अंसारी के खिलाफ बीते 12 सितंबर, 2020 को गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा दर्ज होते ही तीनों फरार हो गए.

बहरहाल, मुख्तार अंसारी के जुर्म की दास्तानों पर कई सनसनीखेज किताबें लिखी जा सकती हैं. फिर भी उस के जुर्म की दास्तान कम पड़ जाएगी. शासन मुख्तार अंसारी द्वारा जुर्म कर के बटोरी संपत्ति का लेखाजोखा जुटा रहा है.

—कथा पुलिस सूत्रों आधारित

कुख्यात डौन मुख्तार अंसारी पर सरकार की टेढ़ी नजर: भाग 1

सौजन्य-सत्यकथा

गाजीपुर जिले के कोतवाली थानाक्षेत्र स्थित मोहल्ला मुहम्मदपट्टी (महुआबाग) का नाम सामने आते ही लोगों में डर की लहर उठने लगती थी. जब वाहनों का काफिला सड़कों पर निकलता था, तो कुछ देर के लिए ट्रैफिक भी बंद हो जाता था. जिस का यह डर था, उस आतंक के पर्याय का नाम है बाहुबली मुख्तार अंसारी.

57 वर्षीय बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने जिस तरह आतंक के बल पर कई सौ करोड़ की चलअचल संपत्ति अर्जित की थी, उस के पाईपाई का लेखाजोखा शासन के पिटारे में सालों से कैद था.

10 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जब पिटारे का ढक्कन खुला तो गाजीपुर ही नहीं समूचे प्रदेश में भूचाल सा आ गया.

25 जून, 2020 को एसडीएम सदर प्रभास कुमार ने होटल गजल की जमीन की पैमाइश कराई थी. यह होटल मुहम्मदपट्टी इलाके में है. नजूल की इस भूमि को ले कर न्यायालय में सरकार की ओर से वाद संख्या 123/2020 दायर किया गया था.

होटल की मालकिन बाहुबली की पत्नी अफशां अंसारी और उन के दोनों बेटे अब्बास अंसारी और उमर अंसारी थे. होटल के एक भाग में एचडीएफसी बैंक, एटीएम और रेस्टोरेंट किराए पर चल रहा था. यह भवन अवैध कब्जे वाली जमीन पर बनाया गया था.

इस संबंध में होटल मालिकों को कई बार नोटिस दिए गए थे. अंतिम नोटिस 16 सितंबर, 2020 को सुनवाई के लिए प्राधिकारी/उप जिलाधिकारी (सदर) प्रभास कुमार ने दिया था, जिस में चेतावनी दी गई थी कि अवैध निर्माण भवन स्वत: गिरा दें अन्यथा शासन द्वारा गिरा दिया जाएगा.

लेकिन धनबल के नशे में चूर मुख्तार अंसारी ने प्रशासन के आदेश की अनसुनी कर दी. इस पर मालिकों के नकारात्मक रवैए से नाखुश प्रशासन 10 अक्तूबर, 2020 को फोर्स के साथ सुबह 7 बजे होटल गिराने मुहम्मदपट्टी पहुंच गया.

Crime: नाबालिग के हाथ, खून के रंग

फोर्स में एसडीएम राजेश सिंह, एसडीएम सुशील कुमार श्रीवास्तव, एसडीएम सदर प्रभास कुमार, एसडीएम रमेश मौर्या, एसपी (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (सिटी) ओजस्वी चावला, शहर कोतवाल विमल मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी सरस सलिल, नंदगंज थाना प्रभारी राकेश सिंह और तहसीलदार मुकेश सिंह मौजूद थे.

मौके पर भारी पुलिस टीम देख कर सैकड़ों तमाशबीन जुट गए. तमाशबीन यह देखकर हैरान थे कि पहली बार प्रशासन ने बाहुबली से टकराने की जुर्रत की है, जिन में आज तक ऐसी कूवत नहीं थी. देखते ही देखते प्रशासन के बुलडोजर ने होटल गजल को घंटे भर में मलबे में तब्दील कर दिया.

जिस होटल को मलबे में तब्दील किया गया था, उस की कीमत 22 करोड़ 23 लाख रुपए आंकी गई थी. सचमुच किसी मजबूत सरकार के कार्यकाल में पहली बार ऐसा कठोर फैसला लिया गया था, जिस से होटल के साथसाथ मुख्तार अंसारी का घमंड भी मलबे में मिल गया था. आइए, जानते हैं मुख्तार अंसारी की माफिया डौन से राजनीतिक सफर की कहानी—

57 वर्षीय मुख्तार अंसारी पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया सरगनाओं में एक है. प्रदेश में सक्रिय सरगनाओं में उस की गिनती नंबर एक पर होती है. मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के थाना मोहम्मदाबाद के गांव यूसुफपुर के सम्मानित परिवार में हुआ था.

उस के पिता काजी सुभानउल्ला अंसारी किसान थे. गांव में उन की इज्जत थी. गांव वालों के सुखदुख में खड़ा होना उन का शौक था. उन की समस्याएं सुनना और निदान करना उन्हें अच्छा लगता था.सुभानउल्ला अंसारी के 2 बेटे थे अफजल अंसारी और मुख्तार अंसारी. बड़े बेटे अफजल अंसारी ने ग्रैजुएशन के बाद सन 1985 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. 1985 से लगातार इसी पार्टी से वह 4 बार मोहम्मदाबाद से विधायक चुने गए.

उन के नाना डा. अंसारी 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. आजादी के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के समय भारतीय सेना की कमान संभालने वाले परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान अली भी मुख्तार अंसारी के परिवार से ताल्लुक रखते थे.

खैर, भाई का राजनीतिक कद देख मुख्तार अंसारी के भीतर भी राजनीति में जाने की चाहत घर कर गई. 1985 में भाई को विधानसभा पहुंचाने में मुख्तार अंसारी ने काफी मेहनत की थी. अफजल विधानसभा का चुनाव जीत कर माननीय का दर्जा प्राप्त कर चुके थे.

मुख्तार अंसारी के भाग्य की लकीरें कालेज के समय में उस समय बदलीं, जब कालेज में छात्रसंघ के चुनाव को ले कर उन की बृजेश सिंह से ठन गई थी. मुख्तार अंसारी की कालेज में तेजतर्रार छात्र के रूप में पहचान थी. उस के साथ दोस्तों की खासी टोली थी. इतने खास दोस्त कि जरा सी बात पर लड़नेमरने के लिए तैयार हो जाते थे.

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मुख्तार अंसारी को क्रिकेट खेलने, शिकार करने और तरहतरह के हथियार रखने का शौक था. बृजेश सिंह भी उसी कालेज में पढ़ता था. कसरती बदन और तेजतर्रार दिमाग वाले बृजेश की शैतानी टोली थी. उस में बातबात पर लड़ने और दुश्मनों को धूल चटाने की कूवत थी.

छात्र संघ चुनाव को ले कर दोनों के बीच उपजी प्रतिस्पर्धा दुश्मनी में बदल गई थी. कुछ समय बाद बृजेश सिंह का त्रिभुवन सिंह से संपर्क हो गया. त्रिभुवन सिंह मुडि़या, सैदपुर, गाजीपुर का रहने वाला था.

बनारस के धौरहरा गांव का रहने वाला बृजेश सिंह उन दिनों खासी चर्चा में था. उस की गांव के चिनमुन यादव से गहरी अदावत चल रही थी. बृजेश 4 भाइयों में तीसरे नंबर का था. एक दिन मौका मिलने पर चिनमुन यादव ने बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या कर दी. इस के बाद हत्याओं का जो दौर चला, गाजीपुर की धरती खून से लाल हो गई.

बृजेश सिंह के दुश्मन मुख्तार अंसारी की छत्रछाया में चले गए थे. अब बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आमनेसामने आ गए थे. यहीं से मुख्तार अंसारी की माफिया छवि का उदय हुआ, जो आज तक बरकरार है. इन के साथियों में साधू सिंह, लुल्लर और पांचू नामचीन थे और पुलिस रिकौर्ड में कुख्यात अपराधी भी. किसी की हत्या करना उन के लिए गाजर मूली काटने जैसा था.

साधू सिंह की वजह से मुख्तार अंसारी अंडरवर्ल्ड में गहराई से पांव जमा रहा था. अपराध की काली फसल तेजी से फैलती जा रही थी. मुख्तार के ताकतवर होने से बृजेश और उस के दोस्त त्रिभुवन सिंह के पसीने छूट रहे थे.

मुख्तार अंसारी को कमजोर करने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने मिल कर ऐसी पुख्ता योजना बनाई कि इन के कहर से घबरा कर खुद मुख्तार अंसारी ने दोनों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया.

मुख्तार अंसारी बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की परछाई तो नहीं छू पाया अलबत्ता उस ने त्रिभुवन सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह की हत्या की योजना बना ली और उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गया.

कई दिनों की मशक्कत के बाद भी मुख्तार अंसारी उस का बाल बांका नहीं कर सका और हाथ मलता रह गया. आखिर महीनों बाद मुख्तार अंसारी की मेहनत रंग लाई. 28 फरवरी, 1985 की शाम के समय मुख्तार अंसारी और अताउर्रहमान ने मोहम्मदाबाद कस्बे में तिवारीपुर मोड़ पर सच्चिदानंद की गोली मार कर हत्या कर दी.

पुलिस के अनुसार, जिस रिवौल्वर से मुख्तार अंसारी ने सच्चिदानंद की हत्या की थी, उसे गोरखपुर के माफिया कांग्रेसी नेता को बेच दिया था. सच्चिदानंद की हत्या से बृजेश सिंह और त्रिभुवन गिरोह बौखला सा गया था लेकिन गिरोह अंदर ही अंदर टूट भी गया था. मुख्तार अंसारी यही चाहता भी था कि बृजेश पूर्वांचल में अपने पांव न जमा सके.

इस के बाद बृजेश सिंह गिरोह को एक और झटका करीब एक साल बाद 2 जनवरी, 1986 को लगा. मुख्तार अंसारी गिरोह ने त्रिभुवन सिंह के सगे भाई रामविलास बेड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी. इस खूनी वार में मुख्तार अंसारी का साथ उस के पुराने साथी साधू सिंह, कमलेश सिंह, भीम सिंह और हरिहर सिंह ने दिया था.

इस के बाद तो मुख्तार अंसारी गिरोह का पूर्वांचल में खासा आतंक फैल गया था. पुलिस कुख्यात हो चुके मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट को गिरफ्तार करने की फिराक में थी. गिरफ्तार तो दूर की बात पुलिस गिरोह के सदस्यों की परछाई तक नहीं छू पाई और हाथ मलती रह गई. हर बार वह अपने भाई अफजल अंसारी की राजनीतिक पहुंच के कारण बच जाता था.

राजनैतिक दबाव के चलते पुलिस मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने में हिचकने लगी थी. यहां तक कि कोई भी एसपी मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने की कोशिश करता, तो उस का गाजीपुर से कुछ ही दिनों में स्थानांतरण हो जाता था.

अगले भाग में पढ़ें- मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से की हत्या 

Crime: नाबालिग के हाथ, खून के रंग

कभी-कभी छोटी सी बात हत्या का कारण बन जाती है. कभी-कभी नाबालिग हत्यारे बन जाते हैं. छोटे-छोटे हाथ कैसे किसी अपने ही दोस्त की गर्दन पर पहुंच जाते हैं, यह आज के सोशल मीडिया और अपराधिक होते माहौल का ही परिणाम है.आइए ! आज आपको ले चलते हैं छत्तीसगढ़ के जिला दुर्ग के ऐसे हत्याकांड की पृष्ठभूमि की ओर जहां छोटी सी बात पर नाबालिगों के हाथ खून से रंग गये.

दरअसल, इस हत्याकांड के पीछे सिर्फ चिढाना और मृतक का अपने सहपाठी दोस्तों को गालियां देना था . दुर्ग जिले के पुलगांव थाना के अंतर्गत आने वाले पुलगांव बस्ती से थाने में सूचना प्राप्त हुई कि, वहां शासकीय प्राथमिक शाला पुलगांव के तीसरी मंजिल में एक नाबालिग लड़के की लाश पड़ी हुई है. सूचना प्राप्त होने पर दुर्ग पुलिस अधीक्षक ,नगर पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला एवं पुलगांव थाना प्रभारी उत्तर वर्मा घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल पर पहुंच मुआयना किया.

उक्त मुआयना के दौरान यह बात प्रकाश में आई कि 13 वर्षीय वर्षीय किशोर दानेश्वर साहू उर्फ पप्पू का शव प्राथमिक शाला पुलगांव के तीसरे मंजिल पर पड़ा हुआ है. आश्चर्य की बात यह थी कि तीसरी मंजिल पर जाने के लिए कोई भी सीढ़ी वहां पर नहीं है! इससे यह बात स्पष्ट हुई कि, तीसरी मंजिल चढ़ने वाले ऐसे युवकों की खोज की जाए जो वहां अक्सर जाया करते हैं.टीम द्वारा अपनी विवेचना का एवं पूछताछ का केंद्र बिंदु यह बात रखते हुए सभी से पूछताछ की जाने लगी.साथ ही मृतक के सभी दोस्तों से बारी-बारी से पूछताछ किया जाना शुरू किया गया.

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इस बीच मौके पर एफएसएल की टीम एवं डॉग स्क्वाड भी पहुंचा एफएसएल टीम के प्रभारी डॉ मनोज पटेल द्वारा बताया गया कि उपरोक्त हत्या गले में किसी चीज को बांधकर की गई है और इस हत्या में संभवत 2 से 3 लोग शामिल होने का अनुमान लगाया और पूछताछ शुरू हो गई.

चिढ़ाना और गालियां देना

युवक जो उस स्कूल की छत पर अक्सर चढ़ा करते थे, उनसे लगातार पूछताछ की गई. इसी बीच एक अन्य सूचना मुखबिर के द्वारा प्राप्त हुई की मृतक आख़िरी समय में अपने कुछ दोस्तों के साथ देखा गया था अतः. उनसे बुलाकर पूछताछ की गई जिसमें उक्त किशोरों ने जो कि नाबालिक थे, ने पुलिस के समक्ष रोते हुए अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों ही अपचारी बालक जिनकी उम्र क्रमशः 17 वर्ष एवं 15 वर्ष है. दोनों ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि दानेश्वर साहू उर्फ पप्पू को हम अक्सर चिढ़ाया करते थे, और घटना दिवस को भी उसे चिढ़ा रहे थे जिससे वह आवेश में आकर आरोपी को मां बहन की गाली देने लगा .

जिससे हम लोगों को गुस्सा आ गया. और उन्होंने प्लान किया कि इसे स्कूल की छत पर ले जाते हैं, ऐसा सोचकर उन्होंने उसे स्कूल की छत चलने के लिए तैयार किया. और वहां ले जाने के बाद उससे बहस हुई बहस के दौरान पुनः मृतक ने उन्हें गाली दी.जिससे उनके द्वारा मृतक के गले को हुड वाले जैकेट जिसमें लेस लगा होता है. उसके लेस को निकालकर एक अपचारी बालक द्वारा गले मे कसकर बांध कर खींचा दिया गया. तथा दूसरे अपचारी बालक द्वारा उसके पैर को पकड़ कर रखा गया.

दोनों अपचारी बालक द्वारा अपना जुर्म स्वीकार कर लिया गया है. हत्या में प्रयुक्त लेस को भी आरोपी के शिनाख्त पर घटनास्थल से बरामद कर लिया गया . कुल मिलाकर हत्या का कारण होश संभालते किशोर बालकों का आपसी वाद विवाद सामने आ गया जो यह बताता है कि कभी-कभी छोटी सी बात कैसे गंभीर मसला बन जाती है.

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दानेश्वर सुबह अखबार बांटा करता. वह अपने परिवार में इकलौता पुत्र था. पिता मजदूरी करते हैं. दानेश्वर उसी स्कूल का 10 वीं कक्षा का छात्र था जिस छत पर उसकी हत्या की गई. कोरोना काल में छुट्टी की वजह से अपने पिता की साइकिल पर अखबार वितरण का काम करने लगा था. कोरोना काल में स्कूल की छुट्टियां है. इस कारण स्कूल नशेडिय़ों का अड्डा बन चुका था. नशेड़ी जंगला और छज्जा पकड़कर दूसरे माले पर चढ़ जाते. ऊपर ही नशा, जुआ, शराबखोरी करते हैं. लोगों ने पुलगांव थाने में कई बार शिकायत भी की थी.

पुलिस को उसके साथियों पर शक शुरू से ही था. पुलिस यह कयास लगा रही है कि दानेश्वर भी छत पर चढ़ जाता होगा. साथियों के साथ छत पर गया होगा. जहां उनके बीच किसी बात को लेकर विवाद हुआ. रस्सीनुमा किसी चीज से उसका गला घोंटा गया है. पुलिस ने जब दानेश्वर और उसकी बहन के दोस्तों से पूछताछ की तो अंततः हत्या का खुलासा हो गया.

Crime Story: प्यार के भंवर में भाग 1

सौजन्य: सत्यकथा

उत्तर प्रदेश के जिला बांदा का एक गांव है-बदौली. रसपाल इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी
चंद्रकली के अलावा एक बेटा भानुप्रताप तथा बेटी सुनीता थी. रसपाल खेतीकिसानी के साथसाथ ट्यूबवैल मरम्मत का काम करता था. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

कुल मिला कर उस का परिवार खुशहाल था. रसपाल ने अपनी बेटी सुनीता का विवाह सन 2016 में हरिओम के साथ कर दिया था. हरिओम के पिता शिवबरन, फतेहपुर जिले के गांव लमेहटा के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी गेंदावती के अलावा 2 बेटे हरिओम व राममिलन थे. हरिओम जेसीबी चालक था, जबकि राममिलन पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था.

एक तरह से सुनीता और हरिओम की शादी बेमेल थी. हरिओम उम्र में तो बड़ा था, साथ ही वह सांवले रंग का भी था. जबकि सुनीता सुंदर थी और चंचल भी. इस के बावजूद उस के घरवालों ने हरिओम को पसंद कर लिया था. इस की वजह यह थी कि हरिओम जेसीबी चला कर अच्छा पैसा कमाता था.

हरिओम जहां सुनीता को पा कर खुश था, वहीं सुनीता उम्रदराज और सांवले रंग के पति को पा कर जरा भी खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति को ले कर जो सपने थे, वे चकनाचूर हो गए थे.
शादी के एक साल बाद सुनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्ष रखा. इस के बाद एक बेटी का जन्म हुआ. 2 बच्चों की किलकारियों से सुनीता का घरआंगन गूंजने लगा.

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सुनीता की अपने देवर राममिलन से खूब पटती थी. इस की वजह यह थी कि एक तो वह हमउम्र था, दूसरे सुनीता, राममिलन के बात व्यववहार से काफी प्रभावित थी. वह अपने देवर का हर तरह से खयाल रखती थी.

इसी वजह से राममिलन सुनीता के आकर्षण में बंध कर उस के नजदीक आने की कोशिश करने लगा. यही नहीं, वह उस की खूब तारीफ करता और उसे प्रभावित करने के लिए कभीकभार वह उस के लिए कोई उपहार भी ले आता.

हरिओम ड्राइवर था, सो पक्का शराबी था. अकसर वह झूमता हुआ घर वापस आता. वह कभी थोड़ाबहुत खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही सो जाता था. सुनीता 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन अभी उस में पति का साथ पाने की प्रबल इच्छा थी. लेकिन हरिओम तो बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता था. तब सुनीता मन मसोस कर रह जाती थी.

आखिर पति से जब उसे शारीरिक सुख मिलना बंद हुआ तो उस ने विकल्प की खोज शुरू कर दी.
सुनीता स्वभाव से मिलनसार थी. राममिलन भाभी के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब सुनीता उस से खुल कर हंसीमजाक करती. सुनीता का यह व्यवहार धीरेधीरे राममिलन को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में भाभी सुनीता का सौंदर्य रस पीने की कामना जागने लगी.

एक दिन राममिलन खाना खाने बैठा, तो सुनीता थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ढंकते हुए बोली, ‘‘लो देवरजी, खाना खा लो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.’’
राममिलन को भाभी की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘भाभी, तुम भी अपनी थाली परोस लो, साथ खाने में मजा आएगा.’’

सुनीता अपने लिए भी खाना ले आई. खाना खाते समय दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो राममिलन बोला, ‘‘भाभी, तुम सुंदर व सरल स्वभाव की हो, लेकिन भैया ने तुम्हारी कद्र नहीं की. मुझे पता है, वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

यह कह कर राममिलन ने सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में सुनीता पति से संतुष्ट नहीं थी. उसे न तो पति से प्यार मिल रहा था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेईमान हो चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

औरत जब जानबूझ कर बरबादी की राह पर कदम रखती है, तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुनीता के साथ हुआ. सुनीता जवान भी थी और पति से असंतुष्ट भी, अत: उस ने देवर राममिलन के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया.

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राममिलन वैसे भी सुनीता का दीवाना था. देवर राममिलन गबरू जवान था, दूसरे कुंवारा था. उस पर दिल आते ही सुनीता उसे अपने प्यार के भंवर में फंसाने की कोशिश करने लगी. भाभीदेवर के रिश्ते की आड़ में सुनीता राममिलन से ऐसेऐसे मजाक करने लगी कि राममिलन के शरीर में सिहरन सी होने लगी. जल्दी ही उस का मन स्त्री सुख के लिए बेचैन होने लगा.

अगले भाग में पढ़ें- सुनीता और राममिलन के नाजायज रिश्तों का क्या हुआ अंजाम

Crime Story: प्यार के भंवर में भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

एक शाम सुनीता बनसंवर कर बिस्तर पर लेटी थी, तभी राममिलन आ गया. वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. सुनीता को राममिलन की आंखों की भाषा पढ़ने में देर नहीं लगी. सुनीता ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. राममिलन के शरीर में हलचल मचने लगी.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद होश दुरुस्त हुए, तो सुनीता ने राममिलन की ओर देख कर कहा, ‘‘देवरजी, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. लेकिन हमारे बीच रिश्तों की दीवार है. अब मैं इस दीवार को तोड़ना चाहती हूं. तुम मुझे बस यह बताओ कि हमारे इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’

‘‘भाभी मैं तुम्हें कभी धोखा नहीं दूंगा. तुम अपना बनाओगी तो तुम्हारा ही बन कर रहूंगा. मैं वादा करता हूं कि आज के बाद हम साथ ही जिएंगे और साथ ही मरेंगे.’’ कह कर राममिलन ने सुनीता को बांहों में भर लिया.

ऐसे ही कसमोंवादों के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता ही न चला. उस दिन के बाद राममिलन और सुनीता बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुनीता से शारीरिक सुख पा कर राममिलन निहाल हो उठा. सुनीता को भी उस से ऐसा सुख मिला था, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. राममिलन अपनी भाभी के प्यार में इतना अंधा हो गया था कि उसे दिन या रात में जब भी मौका मिलता, वह सुनीता से मिलन कर लेता. सुनीता भी देवर के पौरुष की दीवानी थी. उन के मिलन की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.

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कहते हैं वासना का खेल कितनी भी सावधानी से खेला जाए, एक न एक दिन भांडा फूट ही जाता है. ऐसा ही सुनीता और राममिलन के साथ भी हुआ. एक रात पड़ोस में रहने वाली चचेरी जेठानी रूपाली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे राममिलन और सुनीता को देख लिया. इस के बाद तो देवरभाभी के अवैध रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

हरिओम को जब देवरभाभी के नाजायज रिश्तोें की जानकारी हुई तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत सुनीता से बात की तो उस ने नाजायज रिश्तों की बात सिरे से खारिज कर दी. उस ने कहा राममिलन सगा देवर है. उस से हंसबोल लेती हूं. पड़ोसी इस का मतलब गलत निकालते हैं. उन्होंने ही तुम्हारे कान भरे हैं.

हरिओम ने उस समय तो पत्नी की बात मान ली, लेकिन मन में शक पैदा हो गया. इसलिए वह चुपकेचुपके पत्नी पर नजर रखने लगा. परिणामस्वरूप एक रात हरिओम ने सुनीता और राममिलन को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. हरिओम ने दोनों की पिटाई की और संबंध तोड़ने की चेतावनी दी.

लेकिन इस चेतावनी का असर न तो सुनीता पर पड़ा और न ही राममिलन पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब वे सतर्कता बरतने लगे. जिस दिन हरिओम, सुनीता को राममिलन से हंसतेबतियाते देख लेता, उस दिन शराब पी कर सुनीता को पीटता और राममिलन को भी गालियां देता. उस ने गांव के मुखिया से भी भाई की शिकायत की. साथ ही राममिलन को भी कहा कि वह घर न तोड़े.

उन्हीं दिनों हरिओम को बांदा जाना पड़ा. क्योंकि उस के ठेकेदार को सड़क निर्माण का ठेका मिला था. चूंकि हरिओम जेसीबी चालक था, सो उसे भी वहीं काम करना था. जाने से पहले वह अपनी मां व पिता को सतर्क कर गया था कि वह सुनीता व राममिलन पर नजर रखें.

सास गेंदावती सुनीता पर नजर तो रखती थी, लेकिन देवर की दीवानी सुनीता सास की आंखों में धूल झोंक कर देवर से मिल कर लेती थी. हरिओम मोबाइल फोन पर मां से बात कर घर का हालचाल लेता रहता था.
वह सुनीता से भी बात करता था और उसे मर्यादा में रहने की हिदायत देता रहता था. लेकिन सुनीता पति की बातों को कोई तवज्जो नहीं देती थी. वह तो देवर के रंग मे पूरी तरह रंगी थी.

एक रात आधी रात को गेंदावती की नींद खुली तो उसे सुनीता की बेटी मासूम क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह उठ कर कमरे में पहुंची तो सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं थी.

सास गेंदावती को समझते देर नहीं लगी कि बहू राममिलन के कमरे में होगी. वह दबे पांव राममिलन के कमरे में पहुंची, वहां सुनीता उस के बिस्तर पर थी. उस रात गेंदावती के सब्र का बांध टूट गया. उस ने दोनों की चप्पल से पिटाई की और खूब फटकार लगाई. रंगेहाथ पकड़े जाने से दोनों ने माफी मांग ली.

लगभग एक सप्ताह बाद हरिओम बांदा से घर आया तो गेंदावती ने बहू को रंगेहाथ पकड़ने की बात बेटे को बताई. तब हरिओम ने सुनीता की खूब पिटाई की, राममिलन को भी खूब डांटा फटकारा और समझाया भी. उस ने दोनों को धमकाया भी कि यदि वे न सुधरे तो अंजाम अच्छा न होगा.

लेकिन सुनीता और राममिलन प्यार के भंवर में इतनी गहराई तक समा चुके थे, जहां से बाहर निकलना उन के लिए नामुमकिन था. अत: दोनों ने हरिओम की धमकी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. उन्हें जब भी मौका मिलता था, शारीरिक मिलन कर लेते थे.

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सुनीता और राममिलन के नाजायज रिश्तों ने पूरे घर को चिंता में डाल दिया था. वे इस समस्या से निजात पाने के लिए उपाय खोजने लगे थे. एक रोज गेंदावती ने अपने पति शिवबरन व बेटे हरिओम के साथ बैठ कर मंत्रणा की. फिर तय हुआ कि समस्या से निजात पाने के लिए राममिलन की शादी कर दी जाए. शादी हो जाएगी तो समस्या भी हल हो जाएगी.

शिवबरन निषाद अब राममिलन के लिए गुपचुप तरीके से लड़की की खोज करने लगा. कई माह की दौड़धूप के बाद शिवबरन को असोधर कस्बे में राम सुमेर निषाद की बेटी कमला पसंद आ गई. कमला सांवले रंग की थी. लेकिन शिवबरन व उस की पत्नी गेंदावती ने उसे पसंद कर लिया था.
फिर आननफानन में उन्होंने रिश्ता तय कर दिया. इस रिश्ते के लिए राममिलन ने न ‘हां’ की और न ही इनकार किया. बारात जाने की तारीख तय हुई मई 2021 की 7 तारीख.

राममिलन की जब शादी तय हुई थी, तब सुनीता मायके गई हुई थी. वह वहां से वापस आई तब उसे मालूम पड़ा कि देवर की शादी तय हो गई है. उस ने इस बाबत राममिलन से पूछा तो उस ने जवाब दिया कि उस से पूछ कर शादी तय नहीं की गई है. शादी के संबंध में वह कुछ भी नहीं बता सकता. लेकिन सुनीता को शक हुआ कि शादी के लिए राममिलन की रजामंदी है

सुनीता अब अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. वह सोचती, ‘‘कल को राममिलन की शादी हो जाएगी, तो वह उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा. वह अपनी रातें तो नईनवेली दुलहन के साथ रंगीन करेगा और वह पूरी रात करवट बदलते बिताएगी.’’

अगले भाग में पढ़ें- सुनीता में आए आकस्मिक परिवर्तन से राममिलन परेशान हो उठा

Crime Story: प्यार के भंवर में भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

सुनीता जितना सोचती, उतना ही उसे अपना जीवन अंधकारमय लगता. इसी उलझन में सुनीता ने राममिलन से हंसनाबोलना बंद कर दिया. वह उस के प्रणय निवेदन को भी ठुकराने लगी. राममिलन उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन वह उस की कोई बात नहीं सुनती.

सुनीता में आए आकस्मिक परिवर्तन से राममिलन परेशान हो उठा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह भाभी को कैसे मनाए. एक रोज जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछा, ‘‘भाभी, मुझ से ऐसी क्या खता हो गई, जो मुझ से नाराज हो. पहले तो तुम खूब हंसती थी, खूब बोलती थी. समर्पण को सदैव तैयार रहती थी. लेकिन अब दूर भागती हो. हंसनाबोलना भी गायब हो गया है. हमेशा चेहरे पर उदासी छाई रहती है. आखिर बात क्या है?’’

‘‘यह तुम अपने आप से पूछो देवरजी, तुम ने मेरे साथ जीनेमरने का वादा किया था. क्या वह वादा तुम शादी करने के बाद निभा सकोगे. शादी के बाद तुम दुलहन के पल्लू में बंध जाओगे और मुझे भूल जाओगे. यही सोच कर मैं उदास रहती हूं. तुम से दूर भागने का भी यही कारण है.’’ सुनीता बोली.

‘‘भाभी, मैं आज भी तुम्हारा हूं और कल भी रहूंगा. साथ जीनेमरने का वादा भी मैं नहीं भूला हूं. रही बात शादी की, तो वह मैं अपनी मरजी से नहीं कर रहा हूं. शादी तो मांबाप ने अपनी मरजी से तय कर दी है.’’
‘‘जो भी हो देवरजी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे. इसलिए हमेंतुम्हें एकदूसरे से किया गया वादा निभाना होगा.’’

‘‘हम वादा निभाने को तैयार हैं.’’ कहते हुए राममिलन ने सुनीता को अपनी बांहों में समेट लिया. उस के बाद उन दोनों ने एक साथ आत्महत्या करने का निश्चय किया. फिर वह समय का इंतजार करने लगे.
30 नवंबर, 2020 को शिवबरन की रिश्तेदारी में असोथर कस्बा में शादी थी. इसी शादी में सम्मिलित होेने के लिए शिवबरन अपने बड़े बेटे हरिओम के साथ शाम 6 बजे घर से निकल गया.

खाना खाने के बाद गेंदावती पोते हर्ष (3 वर्ष) के साथ कमरे में जा कर लेट गई. घर पर काम निपटाने के बाद सुनीता भी अपनी मासूम बेटी क्रांति के साथ कमरे में जा कर लेट गई. लेकिन उस की आंखों से नींद ओेझल थी.

रात लगभग 11 बजे राममिलन, सुनीता के कमरे में आ गया. उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान सुनीता ने कहा, ‘‘देवरजी, अपनी जीवनलीला समाप्त करने का आज सही समय है. तुम मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘तुम्हारे बिना मेरे जीवित रहने का मकसद ही क्या है. अत: मैं भी तुम्हारे साथ ही अपना जीवन समाप्त करूंगा.’’ इस के बाद सुनीता और राममिलन ने छत के कुंडे में साड़ी को बांधा और साड़ी के दोनों सिरों को फांसी का फंदा बनाया. फिर एकएक सिरा गले में डाल कर फांसी के फंदे पर झूल गए. कुछ देर बाद ही दोनों की गरदन लटक गई.

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पहली दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 7 बजे गेंदावती जागीं तो उन्हें मासूम बच्ची क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह सुनीता के कमरे पर पहुंचीं, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. तब उन्होंने दरवाजे की कुंडी खटखटाई और आवाज दी, ‘‘बहू, दरवाजा खोलो, बच्ची रो रही है. क्या घोड़े बेच कर सो रही हो?’’ पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह राममिलन के कमरे में पहुंची तो वह कमरे में नहीं था.
अब गेंदावती का माथा ठनका. उन के मन में तरहतरह के कुविचार आने लगे. इसी घबराहट में वह सुनीता की चचेरी जेठानी रूपाली को बुला लाई. उस ने भी दरवाजा थपथपाया और आवाज लगाई पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. शोरशराबा सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

उसी समय शिवबरन व उस का बेटा हरिओम भी असोथर से आ गए. उन दोनों ने अपने दरवाजे पर भीड़ देखी तो घबरा गए. गेंदावती ने पति व बेटे को बताया कि सुनीता दरवाजा नहीं खोल रही है. राममिलन भी कमरे में नहीं है.

शिवबरन व हरिओम ने भी दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और कमरे के अंदर प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बंधा था. साड़ी के एक छोर पर सुनीता तथा दूसरे छोर पर राममिलन का शव लटक रहा था. सुनीता का चेहरा राममिलन की छाती पर था. सुनीता का एक पैर चारपाई के नीचे लटक रहा था तथा दूसरा पैर चारपाई को छू रहा था.

देवरभाभी द्वारा आत्महत्या करने की खबर लमेहटा गांव में फैल गई. सैकड़ों लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. इसी बीच किसी ने थाना गाजीपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी कमलेश पाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो एसपी सतपाल, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ संजय कुमार शर्मा आ गए.

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पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक व मृतका के घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों शवों को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. फिर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया.

मृतक के पिता शिवबरन निषाद की तहरीर पर गाजीपुर पुलिस ने भादंवि की धारा 309 के तहत सुनीता और राममिलन के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन दोनों की मौत हो जाने से पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: प्यार में मिट गई सिमरन- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

आमिर ने पुलिस को बताया कि उस ने सिमरन से कोर्ट मैरिज की है लेकिन उस के ससुराल वाले इस शादी को नहीं मान रहे हैं. उन्होंने उस की बीवी को अपने घर में बंधक बना कर रखा हुआ है और उस के साथ नहीं भेज रहे. आमिर ने कोर्ट मैरिज का जो प्रमाण पत्र दिया था, उस की जांच की गई तो उस से आमिर का आरोप सच पाया गया.

लिहाजा आमिर की शिकायत पर पुलिस मोहम्मद शरीफ, उन की बेगम व बेटी को थाने ले आई. थाने ला कर दोनों पक्षों में बहस हुई. मातापिता के बेटी के पक्ष में अपने तर्क थे, तो आमिर व सिमरन के अपनी मोहब्बत के तर्क. लेकिन पुलिस को तो कानून देखना था.

पुलिस की नजर में आमिर व सिमरन दोनों बालिग थे, दोनों का धर्म भी एक था और कानूनन उन की शादी हुई थी. लिहाजा पुलिस ने मोहम्मद शरीफ को चेतावनी दी कि वे आमिर व सिमरन के बीच में बाधा न डालें और उसे अपने पति के पास जाने दें.

ऐसा ही हुआ भी शरीफ ने टूटे मन से बेटी को आमिर के हाथों में सौंप दिया. लेकिन उन का दिल बुरी तरह टूट गया था. उन्होंने बेटी को न जाने क्यों बद्दुआ दे दी कि मातापिता का दिल दुखा कर वो कभी खुश नहीं रह सकती.

उन्होंने थाने से ही सिमरन को आमिर के साथ भेज दिया. लेकिन साथ ही कहा भी कि आमिर के साथ उन की बिना मरजी के उस ने जो शादी की है, उस के बाद उस का उन के साथ कोई रिश्ता नहीं रहा.

मांबाप का दिल तोड़ कर खुश थी सिमरन

माता पिता का दिल टूटने के दुख से ज्यादा सिमरन को इस बात की ज्यादा खुशी थी कि जिस के साथ उस ने जीवन जीने के सपने देखे थे, वह उस का हो गया. सिमरन की शादी भले ही कोर्ट मैरिज के रूप में हुई थी लेकिन ससुराल में आने के बाद आमिर ने घर में एक बड़ी दावत रखी.

शुरुआत के कुछ दिन आमिर के प्यार में कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला. लेकिन एक दो महीने बाद ही सिमरन का सामना जिंदगी की हकीकत से शुरू होने लगा. पिता के घर में लाड़प्यार से पली सिमरन को कभी किसी जरूरत के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पड़ा था. उस ने हमेशा खुले मन से पैसा खर्च किया था.

Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 4

चूंकि आमिर ने तब तक नौकरी शुरू नहीं की थी, सो वह खुद ही मांबाप व भाइयों के खर्चे पर पल रहा था. इसलिए शादी के 2 महीने बीतने के बाद सिमरन को छोटेछोटे खर्चो के लिए दूसरों का मोहताज होना पड़ा.

वह जब भी आमिर से खर्चे के लिए पैसे मांगती तो वह टका सा जवाब दे देता कि जब तक वह कमाएगा नहीं, तब तक वह उसे कुछ नहीं दे सकता. अगर वह चाहती है कि उस के पास पैसा हो और उस की जिंदगी किसी पर निर्भर ना रहे तो उस के साथ मेरठ चले. जहां वह नौकरी कर के उस की हर खुशी पूरी करेगा.

सिमरन के लिए गुरबत में जीने से अच्छा यही था कि वह उस के साथ मेरठ चली जाए. लिहाजा शादी के 2 महीने बाद ही सिमरन आमिर के साथ सरूरपुर चली गई. वहां आमिर ने हर्रा कस्बे में एक सस्ता सा किराए का मकान ले लिया. पास के जैनपुर गांव में अपने भाइयों की तरह उस ने भी एक पनीर बनाने वाले प्लांट में 10 हजार रुपए की पगार पर नौकरी शुरू कर दी.

आमिर चूंकि गाड़ी चलाने से ले कर पनीर की मार्केटिंग और प्लांट के दूसरे काम भी देखता था. लिहाजा इन कामों से भी उसे 4-5 हजार रुपए की अतिरिक्त कमाई हो जाती थी. किसी तरह सिमरन के साथ धीरेधीरे घरगृहस्थी  चलने लगी.

जिस तेजी के साथ समय गुजरने लगा, उसी तेजी के साथ सिमरन के उपर चढ़ा आमिर के प्यार का नशा भी उतरने लगा. क्योंकि शुरुआत में तो सिमरन ने सोचा था कि चलो जिदंगी का सफर शुरू करने के लिए तंगी में भी गुजर बसर की जा सकती है.

लेकिन एक सवा साल बीतने के बाद उसे लगा कि गुरबत में जिंदगी गुजारना मानों उस की नियति बन गई है. क्योंकि ना तो आमिर उसे अच्छे कपडे़ दिलाता था और ना ही उस की कोई ऐसी फरमाइश पूरी करता था जिस से उसे खुशी मिलती.

आमिर अब ये और ताने देने लगा था कि उस की जिंदगी ऐसी ही थी और आगे भी ऐसी ही रहेगी. मैं ने तेरे बाप से कोई दहेज नहीं लिया कि तेरी फरमाइशें पूरी करने के लिए चोरीडकैती करूं. जब कभी आमिर इस तरह के ताने देता तो सिमरन का मातापिता की लड़के की हैसियत को ले कर कही जाने वाली बातें याद आने लगती थीं.

अब उसे समझ आने लगा था कि मातापिता बेटी के सुखद भविष्य के लिए लड़के की हैसियत और उस के काम को तवज्जो क्यों देते हैं.

लेकिन सिमरन प्यार में अंधी हो कर आमिर से शादी का जो कदम उठा चुकी थी उस का पश्चाताप तो यही था कि हर हाल में भी उसे आमिर के साथ खुश रहना था. लेकिन इस दौरान एक अच्छी बात ये हुई कि कोर्ट मैरिज के कारण शुरू हुई मातापिता की नाराजगी खत्म हो गई. मातापिता और भाई व बहनें अब उस से अक्सर मोबाइल फोन पर बातें करने लगे थे.

कुछ दिन सिमरन को लगा कि परिवार ने संबधों को सुधारने के लिए जो पहल की है उसे उस पहल को आगे बढ़ाना चाहिए. लिहाजा वह भी एक दिन आमिर को साथ ले कर अपने मायके चली गई. लंबे समय बाद मांबाप से मिलन हुआ. कुछ शिकवेशिकायतें हुईं और फिर मांबाप भी बेटी को अपने शौहर के साथ खुश देख कर सारे गिलेशिकवे भूल गए.

इस तरह सिमरन का अपने मातापिता के घर आनाजाना शुरू हो गया. इधर, आमिर इस बात से खुश था कि चलो अब सिमरन के अपने मायके वालों के साथ संबध सुधर गए है तो उसे भी उन की बड़ी हैसियत का फायदा मिलेगा. बेटी को खुश रखने के लिए आखिर वे कुछ ना कुछ आर्थिक मदद तो करेंगे ही.

लेकिन एकदो बार मायके जाने के बाद भी जब सिमरन खाली हाथ लौटी तो आमिर के ससुराल वालों से मदद मिलने के सपने चकनाचूर हो गए.

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इधर मायके से संबध जरूर सुधर गए थे, लेकिन सिमरन कभी उन से अपनी गुरबत भरी जिंदगी का जिक्र नहीं करती थी. क्योंकि उस का मानना था कि उस ने अपनी इच्छा से आमिर से शादी की थी. इसीलिए वो जिस हाल में भी उसे रखेगा वह रहेगी लेकिन परिवार को अपने दुखों के बारे में नहीं बताएगी.

आमिर की भी उम्मीदें अधूरी, सिमरन की भी

इधर जब सिमरन अपनी जरूरतों के लिए आमिर से पैसा मांगती तो वह उसे टका सा जवाब दे देता कि मेरे साथ तो तुम को रूखी रोटी ही नसीब होगी. अगर ऐशोआराम के लिए पैसा चाहिए तो अपने बाप से मंगा लो.

जब भी आमिर इस तरह का ताना देता तो सिमरन का उस से झगड़ा हो जाता और वह उसे सुना देती कि उस ने अपने मातापिता की इच्छा के खिलाफ लड़झगड़ कर उस से शादी की है इसलिए उस की हर इच्छा और जरूरतों को पूरा करना भी उसी का फर्ज है.

ऐसे ही रोजमर्रा के झगड़ों में समय तेजी से बीतने लगा. लेकिन कोरोना और बीच में कुछ समय तक रहे लौकडाउन के कारण आमिर की कमाई में कमी आ गई थी.

घर की आम जरूरतें भी ठीक से पूरी नहीं हो पाती थीं. उस पर जब सिमरन उस से कोई फरमाइश कर देती तो इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो जाता था.

आमिर को भी अब लगने लगा था कि एक बड़े घर की लड़की से शादी कर के उस ने बड़ी गलती कर दी है. उस ने तो सोचा था कि बडे़ घर में शादी कर के उसे ससुराल वालों का सहारा मिलेगा, लेकिन जब ऐसा कुछ नहीं हुआ तो उस की खींझ बढ़ने लगी. इस दौरान आमिर व सिमरन के बीच आर्थिंक तंगियों के कारण झगड़े ज्यादा होने लगे थे.

जब भी ऐसा होता तो आमिर नाराज हो कर जैनपुर में अपने सब से बडे़ भाई के पास चला जाता. पूरे परिवार को इस दौरान आर्थिक तंगी के कारण पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़ों की बात पता चल चुकी थी.

आमिर अपने परिवार वालों के सामने सिमरन की गलत आदतों और ऊंची फरमाइशों की बात बता कर हमेशा उसे ही गलत ठहराता था. सब को यही लगता कि सिमरन बड़े घर की लड़की है, अपनी ऐश भरी फरमाइशें पूरी न होने के कारण आमिर से झगड़ा करती होगी.

29 नवंबर, 2020 को शाबरी बेगम अपने पति मोहम्मनद शरीफ व बेटे फिरोज को ले कर अचानक सरूरपुर थाने पहुंची. थानाप्रभारी अरविंद कुमार उस समय थाने पर ही अपने स्टाफ के साथ मीटिंग कर रहे थे.

शाबरी बेगम ने बताया कि उस की बेटी हर्रा कस्बे में अपने पति आमिर के साथ रहती है. लेकिन 26 नवंबर की सुबह से बेटी का फोन लगातार स्विच्ड औफ आ रहा है. वे लोग उस की खैरियत को ले कर परेशान हैं.

इसलिए हकीकत जानने के लिए जब पति व बेटे के साथ उस के घर पहुंची तो वहां ताला लगा मिला. ना ही बेटी का फोन मिल रहा है, ना ही उस की कोई खबर मिल रही है. ‘हो सकता है अपने हसबैंड के साथ ही गई हो या फोन में कोई परेशानी आ गई हो.’

इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने सारी बात जानने के लिए दूसरे पहलू को सोचते हुए अपनी राय दी तो शाबरी बेगम ने कहा सर मेरी चिंता इस बात को ले कर है कि मेरी बेटी को उस का पति पिछले कुछ महीनों से लगातार परेशान कर रहा था. दोनों ने कोर्ट मैरिज की थी. वो बेटी को इस बात के लिए परेशान कर रहा था कि उसे कोई दहेज नहीं मिला था.

इस के अलावा पिछले कुछ दिनों से वो हमारी बेटी से छुटकारा पा कर दूसरी शादी करने की बात भी करता था. जब मेरी बेटी से आखिरी बात हुई थी, उस दिन भी दोनों में झगड़ा हुआ था और आमिर ने सिमरन की पिटाई कर दी थी.

चूंकि शाबरी बेगम ने आमिर के खिलाफ अपनी बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने व हत्या की नियत से उस के अपहरण की आशंका जाहिर की थी, लिहाजा एसएचओ अरविंद कुमार ने सारी बात एसएसपी मेरठ अजय साहनी को बताई. उन्होंने एसपी देहात अवीनाश पांडे व सीओ सरधना आरपी शाही को थाने पहुंचने के लिए कहा.

अगले भाग में पढ़ें- प्रेमी पति ने सिमरन को लगाया ठिकाने

Crime Story: प्यार में मिट गई सिमरन- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

दरअसल दहेज उत्पीड़न के साथ अपहरण जैसे गंभीर मामलों में उच्चाधिकारियों को विश्वास में लिए बिना कोई कार्रवाई करने से मामला बिगड़ सकता था. एसपी देहात व सीओ सरधना थाने पहुंचे तो उन से भी शाबरी बेगम ने बेटी सिमरन के प्रेम विवाह से ले कर पति की प्रताड़ना तक की पूरी कहानी सुना दी.

बात पहुंची पुलिस तक

जिस तरह की शिकायत थी उस पर तत्काल काररवाई जरूरी थी. इसलिए  एसपी देहात के आदेश पर  इंसपेक्टपर अरविंद कुमार ने उसी दिन थाने पर धारा 498ए 364 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मामला दहेज उत्पीड़न का था लिहाजा जांच की जिम्मेदारी सीओ आरपी शाही को सौंपी गई.

उन्होंने आगे की काररवाई के लिए इंसपेक्टर अरविंद कुमार के नेतृत्व में एसएसआई योगेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेश कुमार, कांस्टेबल आशु मलिक, सचिन सिरोही, महिला कांस्टेबल अनु और बबली की एक टीम गठित कर दी.

पुलिस टीम ने जांच का काम हाथ में लेते ही सब से पहले आमिर के परिवार और मिलनेजुलने वाले लोगों की सूची तैयार कर उन से आमिर के बारे में पूछा. लेकिन किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं था. वह 26 नवंबर से काम पर भी नहीं गया था.

पुलिस ने आमिर के घर के पास लगे एक सीसीटीवी को चैक किया तो पता चला कि 25 व 26 नवंबर की रात में आमिर व 3 अन्य लोग काले रंग की एक बोलेरो गाड़ी में सिमरन को लाद कर कहीं ले गए थे.

साफ था कि सिमरन के साथ कुछ गलत हो चुका था. सिमरन को क्या हुआ था इस की जानकारी आमिर के पकड़े जाने पर ही मिल सकती थी. लिहाजा पुलिस ने आमिर के फोन की सीडीआर निकलवाई, जिस से पता चला  कि वारदात के अगले दिन 27 नंवबर को उस की लोकेशन दिल्ली में थी.

उस के बाद से उस की लोकेशन लगातार लखनऊ की आ रही थी. एसएसपी के आदेश पर उसी समय एक टीम को लखनऊ रवाना किया गया. जहां से सर्विलांस टीम तथा स्थानीय पुलिस की मदद से पुलिस ने आमिर को 1 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस टीम उसे सरूरपुर ले आई और पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. पता चला कि उस ने सिमरन की हत्या कर दी थी.

आमिर ने बताया कि उस की आय उतनी नहीं थी लेकिन सिमरन एक अच्छी जिंदगी जीने वाली लडकी थी और अपनी जरूरतों के लिए उस से कोई फरमाइश करती थी तो उसे गुस्सा आ जाता था. आमिर ने कई बार सिमरन से कहा था कि वह अपने परिवार से 2-4 लाख रुपए ले ले, जिस से कोई काम कर के उन की जिंदगी बदल सकती है.

Crime Story: प्रेमिका की बली- भाग 3

लेकिन सिमरन ने साफ कह दिया था कि उस ने अपने परिवार से बागी हो कर शादी की थी. ऐसे में उसे कोई हक नहीं बनता कि वह अपने परिवार से पैसा मांग कर उन की नजर में अपने फैसले को गलत साबित करे.

सिमरन खुद्दार लड़की थी लेकिन आमिर को इस से कोई मतलब नहीं था. जब सिमरन ने उस की बात नहीं मानी और उसकी फरमाइशें पूरी करने के चक्कर में आए दिन झगड़ा होने लगा तो आमिर का अपने बड़े भाई आदिल के घर आना जाना बढ़ गया. वहां भाई की जवान साली से उसका दिल लग गया.

आदिल की साली सिमरन जैसी बहुत खूबसूरत तो नहीं थी लेकिन गरीब परिवार की होने के कारण खुद को हर तरह के हालात में ढाल सकती थी. जैसेजैसे आमिर का आकर्षण भाई की साली की तरफ बढ़ता गया वैसेवैसे सिमरन से उस के झगडे़ बढ़ते चले गए.

वैसे भी अब उसे अपनी ससुराल से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं रह गई थी. इसलिए आमिर ने सोचा कि क्यों न जिंदगी भर होने वाली सिमरन की चिकचिक से छुटकारा पा कर भाई की साली से निकाह कर लिया जाए.

इसीलिए जब भी लड़ाई होती तो आमिर सिमरन से कहता कि अगर उस के साथ नहीं रहना चाहती तो उस का पीछा छोड़ दे और अपने घर चली जाए, कम से कम वह दूसरा निकाह तो कर लेगा. 25 नंवबर को भी ऐसी ही बात पर झगड़ा हुआ था. दोनों के बीच मारपीट भी हुई थी. यह बात सिमरन ने फोन पर अपनी मां को भी बता दी थी.

उसी दिन आमिर ने मन बना लिया कि बस अब बहुत हुआ रोजरोज के झगड़ों से अच्छा है कि आज सिमरन को खत्म कर दिया जाए. उस रात जब वो शाम को घर पहुंचा तो पहले उस ने सुबह के झगड़े के लिए सिमरन से माफी मांगी, फिर दोनों ने साथ खाना खाया. बिस्तर पर पहुंचते ही आमिर ने सिमरन को इस तरह प्यार किया मानों आज के बाद वे फिर कभी दोबारा नहीं मिलेंगे.

ऐसा ही हुआ भी. आधी रात को जब सिमरन गहरी नींद सो गई तो उस ने सोते समय सिमरन का गला दबा दिया. सिमरन एक क्षण को छटपटाई लेकिन आमिर की मजबूत पकड़ से निकल नहीं सकी और उस ने दम तोड़ दिया.

प्रेमी पति ने सिमरन को लगाया ठिकाने

हत्या करने के बाद आमिर अपने पनीर के जैनपुर स्थित प्लांट पर पहुंचा. वहां से वह फैक्टरी की बोलेरो गाड़ी में प्लांट पर काम करने वाले तीन मजदूरों को यह कहकर अपने हर्रा स्थित घर बुला लाया कि उस की पत्नी की तबीयत खराब है उसे अस्पताल ले जाना है. वह उसे गाड़ी में डालने में मदद कर दें.

जब मजदूर घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि आमिर की पत्नी तो मृत पड़ी है. मजदूरों ने ऐतराज किया तो आमिर ने उन्हें  नौकरी से निकलवाने की धमकी दी जिस से वे चुप हो गए, उन्होंने सोचा कि चलो बौडी को गाड़ी में ही तो रखवाना है. इस के बाद उस ने उन की मदद से सिमरन के शव को गाड़ी में डाला और वापस जैनपुर स्थित प्लांट के पास पीछे ले जा कर तिरपाल डाल कर गाडी खड़ी कर दी.

रात में करीब ढाई बजे आमिर ने प्लांट के पास एक खेत में गड्ढा खोदा और एक मजदूर की मदद से सिमरन के शव को गड्ढे में दबा दिया. राज खुलने के डर से आमिर ने अगली सुबह अपना मोबाइल स्विच औफ कर दिया और दिल्ली पहुंच गया. लेकिन वहां उसे पकड़े जाने का डर सताने लगा तो सीधा लखनऊ निकल गया. इस दौरान आमिर ने परिवार में या किसी को सिमरन की हत्या की भनक नहीं लगने दी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद आमिर की निशानदेही पर जैनपुर के एक खेत में दबे सिमरन के शव को बरामद कर लिया. साथ में मौजूद सिमरन के परिजनों ने उस की शिनाख्त भी कर दी. जिस के बाद पुलिस ने सिमरन का शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

आमिर से पूछताछ के बाद पुलिस ने सिमरन का शव ठिकाने लगाने में उस की मदद करने वाले उस की फैक्टरी के मजूदरों के नाम पते भी मिल गए, जिन की पहचान आरिफ निवासी नूरपुर, जिला अलीगढ़, नसीम निवासी शिकरावा जिला नूह मेवात हरियाणा तथा बबलू निवासी विनोली जिला बागपत के रूप में हुई.

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पुलिस ने उन्हें भी मुकदमे में आरोपी बना कर मामलें में हत्या की धारा 302 व सबूत खत्म करने की धारा 201 जोड़ दी. आमिर को सक्षम न्याधयालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस बाकी आरोपियों को गिरफ्तारी की कोशिश में लग गई.

कितनी हैरानी की बात है कि जिस युवक के लिए सिमरन ने अपने परिवार से बगावत की थी, उस का वहीं हम सफर जिंदगी भर साथ निभाना तो दूर उस की जिम्मेदारियां तक नहीं उठा सका और एक दूसरी औरत के आगोश में जाने के लिए उसे ही अपने रास्ते से हटा दिया.

यह कहानी सिर्फ एक सिमरन की नहीं है. आज की पीढ़ी के नौजवान लड़केलड़कियां प्यार में अंधे हो कर साथ जीने मरने की कसमें खा कर परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी तो कर लेते हैं. लेकिन तजुर्बे की कमी के कारण ये भूल जाते है कि जिंदगी की कठिन राह में जिम्मेदारियों के बहुत से कांटे भी होते हैं, जो कदमकदम पर चुभते हैं.

इसीलिए मातापिता बेटियों की शादी से पहले दामाद का परिवार, उस की हैसियत और उस के नौकरी या कारोबार को परखते हैं. क्योंकि इन्हीं छोटी बातों को अनदेखा करने से एक दिन जिंदगी का बड़ा फसाना बन जाने की संभावना बनी रहती है.

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