रफू की हुई ओढ़नी : घूमर वाली मेघा – भाग 1

एक बार फिर गांव की ओढ़नी ने शहर में परचम लहराने की ठान ली. गांव के स्कूल में 12वीं तक पढ़ी मेघा का जब इंजीनियरिंग में चयन हुआ तो घर भर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. देश के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान में ऐडमिशन मिलना कोई कम बड़ी बात है क्या?

“लेकिन यह ओढ़नी शहर के आकाश में लहराना नहीं जानती, कहीं झाड़कांटों में उलझ कर फट गई तो?”

“हवाओं को तय करने दो. इस के बंधन खोल कर इसे आजाद कर दो, देखें अटती है या फटती है…”

“लेकिन एक बार फटने के बाद क्या? फिर से सिलना आसान है क्या? और अगर सिल भी गई तो रहीमजी वाले प्रेम के धागे की तरह क्या जोड़ दिखेगा नहीं? जबजब दिखेगा तबतब क्या सालेगा नहीं?”

“तो क्या किया जाए? कटने से बचाने के लिए क्या पतंग को उड़ाना छोड़ दें?”

न जाने कितनी ही चर्चाएं थीं जो इन दिनों गांव की चौपाल पर चलती थी.

सब के अपनेअपने मत थे. कोई मेघा के पक्ष में तो कोई उस के खिलाफ. हरकोई चाहता तो था कि मेघा को उड़ने के लिए आकाश मिले लेकिन यह भी कि उस आकाश में बाज न उड़ रहे हों. अब भला यह कैसे संभव है कि रसगुल्ला तो खाएं लेकिन चाशनी में हाथ न डूबें.

“संभव तो यह भी है कि रसगुल्ले को कांटे से उठा कर खाया जाए.”

कोई मेघा की नकल कर हंसता. मेघा भी इसी तरह अटपटे सवालों के चटपटे जवाब देने वाली लड़की है. हर मुश्किल का हल बिना घबराए या हड़बड़ाए निकालने वाली. कभी ओढ़नी फट भी गई ना, तो इतनी सफाई से रफू करेगी कि किसी को आभास तक नहीं होगा. मेघा के बारे में सब का यही खयाल था.

लेकिन न जाने क्यों, खुद मेघा को अपने ऊपर भरोसा नहीं हो पा रहा था पर आसमान नापने के लिए पर तो खोलने ही पडते हैं ना… मेघा भी अब उड़ान के लिए तैयार हो चुकी थी.

मेघा कालेज के कैंपस में चाचा के साथ घुसी तो लाज के मारे जमीन में गड़ गई. चाचाभतीजी दोनों एकदूसरे से निगाहें चुराते आगे बढ़ रहे थे. मेघा को लगा मानों कई जोड़ी आंखें उस के दुपट्टे पर टंक गई है. उस ने अपने कुरते के ढलते कंधे को दुरुस्त किया और सहमी सी चाचा के पीछे हो ली.

इस बीच मेघा ने जरा सा निगाह ऊपर उठा कर इधरउधर देखने की कोशिश की लेकिन आंखें कई टखनों से होती हुईं खुली जांघ तक का सफर तय कर के वापस उस तक लौट आईं.

उस ने अपने स्मार्टफोन की तरफ देखा जो खुद उस की तरह ही किसी भी कोण से स्मार्ट नहीं लग रहा था. हर तीसरे हाथ में पकड़ा हुआ कटे सेब के निशान वाला फोन उसे अपने डब्बे को पर्स में छिपाने की सलाह दे रहा था जिसे उस ने बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लिया था.

कालेज की औपचारिकताएं पूरी करने और होस्टल में कमरा अलौट होने की तसल्ली करने के बाद चाचा उसे भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर वापस लौट गए. अब मेघा को अपना भविष्य खुद ही बनाना था. गंवई पसीने की खुशबू को शहर के परफ्यूम में घोलने का सपना उसे अपने दम पर ही पूरा करना था.

कालेज का पहला दिन. मेघा बड़े मन से तैयार हुई. लेकिन कहां जानती थी कि जिस ड्रैस को उस के कस्बे में नए जमाने की मौडर्न ड्रैस कह कर उसे आधुनिका का तमगा दिया जाता था वही कुरता और प्लाजो यहां उसे बहनजी का उपनाम दिला देंगे. मेघा आंसू पी कर रह गई. लेकिन सिलसिला यहीं नहीं थमा था.

उस के बालों में लगे नारियल तेल की महक, हर कुरते के साथ दुपट्टा रखने की आदत, पांवों में पहनी हुई चप्पलें आदि उसे भीड़ से अलग करते थे. और तो और खाने की टेबल पर भी सब उसे चम्मच की बजाय हाथ से चावल खाते हुए कनखियों से देख कर हंसा करते थे.

“आदिमानव…” किसी ने जब पीछे से विशेषण उछाला तो मेघा को समझते देर नहीं लगी कि यह उसी के लिए है.

“यह सब बाहरी दिखावा है मेघा। तुम्हें इस में नहीं उलझना है,” स्टेशन पर ट्रैन में बैठाते समय पिता ने यही तो सीख की पोटली बांध कर उस के कंधे पर धरी थी.

‘पोटली तो भारी नहीं थी, फिर कंधे क्यों दुखने लगे?’ मेघा सोचने लगी.

हर छात्र की तरह मेघा का सामना भी सीनियर छात्रों द्वारा ली जाने वाली रैगिंग से हुआ. होस्टल के एक कमरे में जब नई आई लड़कियों को रेवड़ की तरह भरा जा रहा था तब मेघा का गला सूखने लगा.

“तो क्या किया जाए इस नई मुरगी के साथ?” छात्राओं से घिरी मेघा ने सुना तो कई बार देखी गई फिल्म ‘थ्री इडियट’ से कौपी आईडिया और डायलौग न जाने तालू के कौन से कोने में हिस्से में चिपक गए.

“भई, दुपट्टे बड़े प्यारे होते हैं इस के. चलो रानी, दुपट्टे से जुड़े कुछ गीतों पर नाच के दिखा दो. और हां, डांस प्योर देसी हो समझी?” गैंग की लीडर ने कहा तो मेघा जड़ सी हो गई.

एक सीनियर ने बांह पकड़ कर उसे बीच में धकेल दिया. मेघा के पांव फिर भी नहीं चले.

“देखो रानी, जब तक नाचोगी नहीं, जाओगी नहीं. खड़ी रहो रात भर,” धमकी सुन कर मेघा ने निगाहें ऊपर उठाईं.

“ओह, कहां फंसा दिया,” मेघा की आंखों में बेबसी ठहर गई.

‘अब घूमर के अलावा कोई बचाव नहीं,’ सोच कर मेघा ने अपने चिंदीचिंदी आत्मविश्वास को समेटा और अपने दुपट्टे को गले से उतार कर कमर पर बांध लिया.

‘हवा में उड़ता जाए, मेरा लाल दुपट्टा मलमल का…’, ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा…’, ‘लाल दुपट्टा उड़ गया रे बैरी हवा के झौंके से…’ जैसे कई फिल्मी गीतों पर मेघा ने घूमर नाच किया तो सब के मुंह उस के मिक्स ऐंड मैच को देख कर खुले के खुले रह गए. फिरकी की तरह घूमती उस की देह खुद चकरी हो गई थी.

लड़कियां उत्तेजित हो कर सीटियां बजाने लगीं. उस के बाद वह ‘घूमर वाली लड़की’ के नाम से जानी जाने लगी.

खुशी का गम : पति ने किया खिलवाड़ – भाग 1

Family Story in Hindi: मेरे बेटे आकाश की आज शादी है. घर मेहमानों से भरा पड़ा है. हर तरफ शादी की तैयारियां चल रही हैं. यद्यपि मैं इस घर का मुखिया हूं, लेकिन अपने ही घर में मेरी हैसियत सिर्फ एक मूकदर्शक की बन कर रह गई है. आज मेरे पास न पैसा है न परिवार में कोई प्रतिष्ठा. चूंकि घर के नौकरों से ले कर रिश्तेदारों तक को इस बात की जानकारी है, इसलिए सभी मुझ से बहुत रूखे ढंग से पेश आते हैं. बहुत अपमानजनक है यह सब लेकिन मैं क्या करूं? अपने ही घर में उस अपमानजनक स्थिति के लिए मैं खुद ही तो जिम्मेदार हूं. फिर मैं किसे दोष दूं? क्या खुशी, मेरी पत्नी इस के लिए जिम्मेदार है? अंदर से एक हूक  सी उठी. और इसी के साथ मन ने कहा, ‘उस ने तो तुम्हें पति का पूरा सम्मान दिया, पूरा आदर दिया, लेकिन तुम शायद उस के प्यार, उस के समर्पण के हकदार नहीं थे.’

खुशी एक बहुत कुशल गृहिणी है जिस ने कई सालों तक मुझे पत्नी का निश्छल प्यार और समर्पण दिया. पर मैं ही नादान था जो उस की अच्छाइयां कभी समझ नहीं पाया. मैं हमेशा उस की आलोचना करता रहा. उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता रहा. अपने प्रति उस के लगाव को हमेशा मैं ने ढोंग समझा.

मैं सारा जीवन मौजमस्ती करता रहा और वह मेरी ऐयाशियों को घुटघुट कर सहती रही, मेरे अपमान व अवमाननापूर्ण व्यवहार को सहती रही. वह एक सीधीसादी सुशील महिला थी और उस का संसार सिर्फ मैं और उस का बेटा आकाश थे. वह हम दोनों के चेहरों पर मुसकराहट देखने के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहती थी लेकिन मैं अपने प्रति उस की उस अटूट चाहत को कभी समझ न पाया.

मैं कब विगत दिनों की खट्टीमीठी यादों की लहरों में बहता चला गया. मुझे पता भी नहीं चला था.

उन दिनों मैं कालिज में नयानया आया था. वरिष्ठ छात्र रैगिंग कर रहे थे. एक दिन मैं कालिज में अभी घुसा ही था कि एक दूध की तरह गोरी, अति आकर्षक नैननक्श वाली लड़की कुछ घबराई और परेशान सी मेरे पास आई और सकुचाते हुए मुझ से बोली, ‘आप बी.ए. प्रथम वर्ष में हैं न, मैं भी बी.ए. प्रथम वर्ष में हूं. वह जो सामने छात्रों का झुंड बैठा है, उन लोगों ने मुझ से कहा है कि मैं आप का हाथ थामे इस मैदान का चक्कर लगाऊं. अब वे सीनियर हैं, उन की बात नहीं मानी तो नाहक मुझे परेशान करेंगे.’

‘हां, हां, मेरा हाथ आप शौक से थामिए, चाहें तो जिंदगी भर थामे रहिए. बंदे को कोई परेशानी नहीं होगी. तो चलें, चक्कर लगाएं.’

मेरी इस चुटकी पर शर्म से सिंदूरी होते उस कोमल चेहरे को मैं देखता रह गया था. मैं अब तक कई लड़कियों के संपर्क में आ चुका था लेकिन इतनी शर्माती, सकुचाती सुंदरता की प्रतिमूर्ति को मैं ने पहली बार इतने करीब से देखा था.

उस के मुलायम हाथ को थामे मैं ने पूरे मैदान का चक्कर लगाया था और फिर ताली बजाते छात्रों के दल के सामने आ कर मैं ने उस का कांपता हाथ छोड़ दिया था कि तभी उस ने नजरें जमीन में गड़ा कर मुझ से कहा था, ‘आई लव यू’, और यह कहते ही वह सुबकसुबक कर रो पड़ी थी और मैं मुसकराता हुआ उसे छोड़ कर क्लास में चला गया था.

बाद में मुझे पता चला था कि उस सुंदर लड़की का नाम खुशी था और वह एक प्रतिष्ठित धनाढ्य परिवार की लड़की थी. उस दिन के बाद जब कभी भी मेरा उस से सामना होता, मुझ से नजरें मिलते ही वह घबरा कर अपनी पलकें झुका लेती और मेरे सामने से हट जाती. उस की इस अदा ने मुझे उस का दीवाना बना दिया था. मैं क्लास में कोशिश करता कि उस के ठीक सामने बैठूं. मैं उस का परिचय पाने और दोस्ती करने के लिए बेताब हो उठा था.

मेरे चाचाजी की लड़की नेहा, जो मेरी ही क्लास में थी, वह खुशी की बहुत अच्छी सहेली थी. मैं ने नेहा के सामने खुशी से दोस्ती करने की इच्छा जाहिर की और नेहा ने एक दिन मुझ से उस की दोस्ती करा दी थी. धीरेधीरे हमारी दोस्ती बढ़ गई और खुशी मेरे बहुत करीब आ गई थी.

मैं जैसेजैसे खुशी के करीब आता जा रहा था, वैसेवैसे मुझे निराशा हाथ लगती जा रही थी. मैं स्वभाव से बेहद बातूनी, जिंदादिल, मस्तमौला किस्म का युवक था लेकिन खुशी अपने नाम के विपरीत एक बेहद भावुक किस्म की गंभीर लड़की थी.

कुछ ही समय में वह मेरे बहुत करीब आ चुकी थी और मैं उस की जिंदगी का आधारस्तंभ बन गया था, लेकिन मैं उस के नीरस स्वभाव से ऊबने लगा था. वह मितभाषी थी, जब भी मेरे पास रहती, होंठ सिले रहती. जहां मैं हर वक्त खुल कर हंसता रहता था, वहीं वह हर वक्त गंभीरता का आवरण ओढे़ रहती.

प्यार अपने से: जब प्यार ने तोड़ी मर्यादा- भाग 1

झारखंड राज्य का एक शहर है हजारीबाग. यह कुदरत की गोद में बसा छोटा सा, पर बहुत खूबसूरत शहर है. पहाड़ियों से घिरा, हरेभरे घने जंगल, झील, कोयले की खानें इस की खासीयत हैं. हजारीबाग के पास ही में डैम और नैशनल पार्क भी हैं. यह शहर अभी हाल में ही रेल मार्ग से जुड़ा है, पर अभी भी नाम के लिए 1-2 ट्रेनें ही इस लाइन पर चलती हैं. शायद इसी वजह से इस शहर ने अपने कुदरती खूबसूरती बरकरार रखी है.

सोमेन हजारीबाग में फौरैस्ट अफसर थे. उन दिनों हजारीबाग में उतनी सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन की बीवी संध्या अपने मायके कोलकाता में ही रहती थी.

दरअसल, शादी के बाद कुछ महीनों तक वे दोनों फौरैस्ट अफसर के शानदार बंगले में रहते थे. जब संध्या मां बनने वाली थी, सोमेन ने उसे कोलकाता भेज दिया था. उन्हें एक बेटी हुई थी. वह बहुत खूबसूरत थी, रिया नाम था उस का. सोमेन हजारीबाग में अकेले रहते थे. बीचबीच में वे कोलकाता जाते रहते थे.

हजारीबाग के बंगले के आउट हाउस में एक आदिवासी जोड़ा रहता था. लक्ष्मी सोमेन के घर का सारा काम करती थी. उन का खाना भी वही बनाती थी. उस का मर्द फूलन निकम्मा था. वह बंगले की बागबानी करता था और सारा दिन हंडि़या पी कर नशे में पड़ा रहता था.

एक दिन दोपहर बाद लक्ष्मी काम करने आई थी. वह रोज शाम तक सारा काम खत्म कर के रात को खाना टेबल पर सजा कर चली जाती थी.

उस दिन मौसम बहुत खराब था. घने बादल छाए हुए थे. मूसलाधार बारिश हो रही थी. दिन में ही रात जैसा अंधेरा हो गया था.

अपने आउट हाउस में बंगले तक दौड़ कर आने में ही लक्ष्मी भीग गई थी. सोमेन ने दरवाजा खोला. उस की गीली साड़ी और ब्लाउज के अंदर से उस के सुडौल उभार साफ दिख रहे थे.

सोमेन ने लक्ष्मी को एक पुराना तौलिया दे कर बदन सुखाने को कहा, फिर उसे बैडरूम में ही चाय लाने को कहा. बिजली तो गुल थी. उन्होंने लैंप जला रखा था.

थोड़ी देर में लक्ष्मी चाय ले कर आई. चाय टेबल पर रखने के लिए जब वह झुकी, तो उस का पल्लू सरक कर नीचे जा गिरा और उस के उभार और उजागर हो गए.

सोमेन की सांसें तेज हो गईं और उन्हें लगा कि कनपटी गरम हो रही है. लक्ष्मी अपना पल्लू संभाल चुकी थी. फिर भी सोमेन उसे लगातार देखे जा रहे थे.

यों देखे जाने से लक्ष्मी को लगा कि जैसे उस के कपड़े उतारे जा रहे हैं. इतने में सोमेन की ताकतवर बाजुओं ने उस की कमर को अपनी गिरफ्त में लेते हुए अपनी ओर खींचा.

लक्ष्मी भी रोमांचित हो उठी. उसे मरियल पियक्कड़ पति से ऐसा मजा नहीं मिला था. उस ने कोई विरोध नहीं किया और दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस घटना के कुछ महीने बाद सोमेन ने अपनी पत्नी और बेटी रिया को रांची बुला लिया. हजारीबाग से रांची अपनी गाड़ी से 2 ढाई घंटे में पहुंच जाते हैं.

सोमेन ने उन के लिए रांची में एक फ्लैट ले रखा था. उन के प्रमोशन की बात चल रही थी. प्रमोशन के बाद उन का ट्रांसफर रांची भी हो सकता है, ऐसा संकेत उन्हें डिपार्टमैंट से मिल चुका था.

इधर लक्ष्मी भी पेट से हो गई थी. इस के पहले उसे कोई औलाद न थी. लक्ष्मी के एक बेटा हुआ. नाकनक्श से तो साधारण ही था, पर रंग उस का गोरा था. आमतौर पर आदिवासियों के बच्चे ऐसे नहीं होते हैं.

अभी तक सोमेन हजारीबाग में ही थे. वे मन ही मन यह सोचते थे कि कहीं यह बेटा उन्हीं का तो नहीं है. उन्हें पता था कि लक्ष्मी की शादी हुए 6 साल हो चुके थे, पर वह पहली बार मां बनी थी.

सोमेन को तकरीबन डेढ़ साल बाद प्रमोशन और ट्रांसफर और्डर मिला. तब तक लक्ष्मी का बेटा गोपाल भी डेढ़ साल का हो चुका था.

इंसाफ का अंधेरा: 5 कैदियों ने रचा जेल में कैसा खेल – भाग 1

Family Story in Hindi: वह कैद में है. उसे बदतर खाना दिया जाता है. वह जिंदा लाश की तरह है. उस की जिंदगी का फैसला दूसरे लोग करेंगे. वे लोग जो न उसे जानते हैं, न वह उन को. कागज पर जो उस के खिलाफ लिखा गया है उसी की बुनियाद पर सारे फैसले होने हैं. वह कैद क्यों किया गया? वह यादों में चला जाता है. बुंदेलखंड का छोटा सा गांव. डकैतों की भरमार. सब का अपनाअपना इलाका. डाकू मानसिंह का गांव और पुलिस. कई बार पुलिस और डाकू मानसिंह का आमनासामना हुआ. गोलियां चलीं. मुठभेड़ हुई. दोनों तरफ से लोग मारे गए. कई बार डाकू मानसिंह भारी पड़ा, तो कई बार पुलिस. दोनों के बीच समझौता हुआ और तय हुआ कि डाकू मानसिंह के साथ मुठभेड़ नहीं की जाएगी. लेकिन पुलिस को सरकार को दिखाने और जनता को समझाने के लिए कुछ तो करना होगा.

दारोगा गोपसिंह ने कहा, ‘‘ऐसा करो कि हफ्ते, 15 दिन में तुम अपना एक आदमी हमें सौंप देना. जिंदा या मुरदा, ताकि हमारी नौकरी होती रहे.’’

शुरू में तो मानसिंह राजी हो गया, लेकिन जब उसे यह घाटे का सौदा लगा तब उस के साथियों में से एक ने उस से कहा, ‘‘आप अपने लोगों को ही मरवा रहे हैं. इस तरह पूरा गिरोह खत्म हो जाएगा. लोग गिरोह में शामिल होने से कतराएंगे.’’

मानसिंह ने कहा, ‘‘मैं अपने आदमी नहीं दूंगा. पासपड़ोस के गांव के लोगों को सौंप दूंगा अपना आदमी बता कर.’’

‘‘क्या यह ठीक रहेगा? क्या हम पुलिस को बलि देने के लिए डाकू बने हैं?’’ गिरोह के एक सदस्य ने पूछा.

मानसिंह बोला, ‘‘नहीं, यह कुछ समय की मजबूरी है. अभी हमारे गिरोह पर पुलिस का शिकंजा कसा हुआ है. जैसे ही हम पुलिस को मुंहतोड़ जवाब देने लायक हो जाएंगे तब पुलिस वालों की ही बलि चढ़ेगी.’’

‘‘कब तक?’’ गिरोह के दूसरे सदस्य ने पूछा.

‘‘दिमाग पर जोर मत दो. 1-2 आदमी पुलिस को सौंपने से कुछ नहीं बिगड़ जाता. हम गांव के अपने किसी दुश्मन को पकड़ कर पुलिस को सौंपेंगे, वह भी जिंदा. तब तक हमें भी संभलने का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘और दारोगा मान जाएगा?’’ गिरोह के एक सदस्य ने पूछा.

मानसिंह चुप रहा. उस ने एक योजना बनाई. शहर से लगे गांवों में रहने वाले पुलिस वालों को उठाना शुरू किया. उन्हें डकैतों के कपड़े पहनाए. कुछ दिन उन्हें बांध कर रखा. जब उन की दाढ़ीबाल बढ़ गए, तो गोली मार कर उन्हें थाने के सामने फेंक दिया.

हैरानी की बात यह थी कि यह खेल कुछ समय तक चलता रहा. जब बात खुली तो पुलिस बल समेत दारोगा ने कई मुठभेड़ें कीं और हर मुठभेड़ में कामयाबी हासिल की.

मानसिंह कुछ समय के लिए अंडरग्राउंड हो गया. दारोगा गोपसिंह ने गांव वालों को थाने बुला कर थर्ड डिगरी देना शुरू कर दिया. उसे मानसिंह का पता चाहिए था और मानसिंह की मदद उस के गांव के लोग करते थे, यह बात दारोगा जानता था.

एक बार खेत को ले कर गांव के 2 पक्षों में झगड़ा हुआ. दूसरा पक्ष मजबूत था और जेल में बंद शख्स का पक्ष कमजोर था. पैसे से और सामाजिक रूप से भी. उस के पिता के पास महज 5 एकड़ जमीन थी. दूसरे पक्ष को जब लगा कि मामला उस के पक्ष में नहीं जा पाएगा तब उस ने दारोगा गोपसिंह से बात की.

गोपसिंह ने बापबेटे को थाने में बुला कर धमकाया कि एक एकड़ खेती दूसरे पक्ष के लिए छोड़ दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा. लेकिन बापबेटा धमकी से डरे नहीं.

एक दिन जब बेटा शहर से मैट्रिक का इम्तिहान दे कर पैदल ही गांव आ रहा था कि तभी दारोगा की जीप उस के पास आ कर रुकी. 4 सिपाही उतरे. उसे जबरन गाड़ी में बिठाया और थाने ले गए.

उस ने लाख कहा कि वह बेकुसूर है, तो दारोगा गोपसिंह ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम्हारे बाप ने मेरी बात नहीं मानी.

अब भुगतो. आज से कानून की नजर में तुम डाकू हो. आज रात में ही तुम्हारा ऐनकाउंटर होगा.’’

उसे हवालात में बंद कर दिया गया. अपनी मौत के डर से वह अंदर तक कांप गया.

रात होने से पहले मानसिंह के गिरोह ने थाने पर हमला कर दिया. दोनों तरफ से फायरिंग हुई. मानसिंह गिरोह के कई सदस्य मारे गए. दारोगा गोपसिंह और कई पुलिस वाले भी मारे गए.

शहर से जब एसपी आया तो नतीजा यह निकाला गया कि वह लड़का मानसिंह गिरोह का आदमी था. मानसिंह अपने गिरोह के साथ उसे छुड़ाने आया था. गिरोह की जानकारी के बारे में उसे थर्ड डिगरी टौर्चर से गुजरना पड़ा. आखिर में उसे जेल भेज दिया गया.

बाप को बहुत बाद में पता चला कि उस का बेटा डकैत होने के आरोप में जेल में बंद है. बाप ने अपनी औकात के मुताबिक वकील किया. जमानत रिजैक्ट हो गई.

बेटे का कानून पर से यकीन उठ चुका था. उसे अपने आगे अंधेरा दिखाई दे रहा था. उसे तब गुस्सा आया जब अदालत ने उसे गुनाहगार मान कर उम्रकैद की सजा सुना दी. अब उस की तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया. पहली बार उस के मन में खयाल आया कि उसे भाग जाना चाहिए और जब उसे अपने जैसी सोच के कुछ लोग मिले तो वे आपस में भागने की योजना बनाने लगे.

वे सब जेल में एकसाथ टेलर का काम करते थे जो उन्हें सिखाता था और उस के अलावा 3 और कैदी मिला कर वे 5 लोग थे. पांचों को उम्रकैद की सजा हुई थी.

इधर बूढ़े बाप ने सोचा, ‘क्या करूंगा 5 एकड़ खेती का. इस से अच्छा है कि जमीन बेच कर बेटे के लिए हाईकोर्ट में अपील की जाए.’

बाप ने गांव की खेती औनेपौने दाम में बेच कर सारा रुपया वकील को दे दिया. बेटे को इसलिए नहीं बताया क्योंकि उसे लगेगा कि बाप उसे झूठा ढांढस बंधा रहा है.

बोया पेड़ बबूल का : मांबेटी का द्वंद्व – भाग 1

दर्पण के सामने बैठी मैं असमय ही सफेद होते अपने केशों को बड़ी सफाई से बिखरे बालों की तहों में छिपाने की कोशिश कर रही थी. इस काया ने अभी 40 साल भी पूरे नहीं किए पर दूसरों को लगता कि मैं 50 पार कर चुकी हूं. बड़ी कोशिश करती कि 40 की लगूं और इस प्रयास में चेहरे को छिपाना तो आसान था मगर मन में छिपे घावों को कैसे छिपाती.

दरवाजे की घंटी बजने के साथ ही मैं ने घड़ी की ओर देखा तो 11 बजने में अभी 10 मिनट बाकी थे. मैं ने सोचा कि शायद मेरी कुलीग संध्या आज समय से पहले आ गई हों. फिर भी मैं ने सिर पर चुन्नी ढांपी और दरवाजा खोला तो सामने पोस्टमैन था. मुझे चूंकि कालिज जाने के लिए देर हो रही थी इसलिए झटपट अपनी डाक देखी. एक लिफाफा देख कर मेरा मन कसैला हो गया. मुझे जिस बात का डर था वही हुआ. मैं कटे वृक्ष की तरह सोफे पर ढह गई. संदीप को भेजा मेरा बैरंग पत्र वापस आ चुका था. पत्र के पीछे लिखा था, ‘इस नाम का व्यक्ति यहां नहीं रहता.’

कालिज जाने के बजाय मैं चुपचाप आंखें मूंद कर सोफे पर पड़ी रही. फिर जाने मन में कैसा कुछ हुआ कि मैं फफक कर रो पड़ी, लेकिन आज मुझे सांत्वना देने वाले हाथ मेरे साथ नहीं थे.

अतीत मेरी आंखों में चलचित्र की भांति घूमने लगा जिस में समूचे जीवन के खुशनुमा लमहे कहीं खो गए थे. मैं कभी भी किसी दायरे में कैद नहीं होना चाहती थी किंतु यादों के सैलाब को रोक पाना अब मेरे बस में नहीं था.

एक संभ्रांत और सुसंस्कृत परिवार में मेरा जन्म हुआ था. स्कूलकालिज की चुहलबाजी करतेकरते मैं बड़ी हो गई. बाहर मैं जितनी चुलबुली और चंचल थी घर में आतेआते उतनी ही गंभीर हो जाती. परिवार पर मां का प्रभाव था और वह परिस्थितियां कैसी भी हों सदा गंभीर ही बनी रहतीं. मुझे याद नहीं कि हम 3 भाईबहनों ने कभी मां के पास बैठ कर खाना खाया हो. पिताजी से सुबहशाम अभिवादन के अलावा कभी कोई बात नहीं होती. घर में सारे अधिकार मां के हाथों में थे. इसलिए मां के हमारे कमरे में आते ही खामोशी सी छा जाती. हमारे घर में यह रिवाज भी नहीं था कि किसी के रूठने पर उसे मनाया जाए. नीरस जिंदगी जीने की अभ्यस्त हो चुकी मैं सोचती जब अपना घर होगा तो यह सब नहीं करूंगी.

एम.ए., बी.एड. की शिक्षा के बाद मेरी नियुक्ति एक स्थानीय कालिज में हो गई. मुझे लगा जैसे मैं अपनी मंजिल के करीब पहुंच रही हूं. समय गुजरता गया और इसी के साथ मेरे जीने का अंदाज भी. कालिज के बहाने खुद को बनासंवार कर रखना और इठला कर चलना मेरे जीवन का एक सुखद मोड़ था. यही नहीं अपने हंसमुख स्वभाव के लिए मैं सारे कालिज में चर्चित थी.

इस बात का पता मुझे तब चला जब मेरे ही एक साथी प्राध्यापक ने मुझे बताया. उस का सुंदर और सलौना रूप मेरी आंखों में बस गया. वह जब भी मेरे करीब से गुजरता मैं मुसकरा पड़ती और वह भी मुसकरा देता. धीरेधीरे मुझे लगने लगा कि मेरे पास भी दूसरों को आकर्षित करने का पर्याप्त सौंदर्य है.

एक दिन कौमन रूम में हम दोनों अकेले बैठे थे. बातोंबातों में उस ने बताया कि वह पीएच.डी. कर रहा है. मैं तो पहले से ही उस पर मोहित थी और यह जानने के बाद तो मैं उस के व्यक्तित्व से और भी प्रभावित हो गई. मेरे मन में उस के प्रति और भी प्यार उमड़ आया. आंखों ही आंखों में हम ने सबकुछ कह डाला. मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई जिस की आवाज शायद उधर भी पहुंच चुकी थी. मेरे मन में कई बार आया कि ऐसे व्यक्ति का उम्र भर का साथ मिल जाए तो मेरी दुनिया ही संवर जाए. उस की पत्नी बन कर मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगी. मेरी आंखों में एक सपना आकार लेने लगा.

उस दिन मैं ने संकोच छोड़ कर मां को इस बात का हमराज बनाया. उम्मीद थी कि मां मान जाएंगी किंतु मां ने मुझे बेहद कोसा और मेरे चरित्र को ले कर मुझे जलील भी किया. कहने लगीं, इस घर में यह संभव नहीं है कि लड़की अपना वर खुद ढूंढ़े. इस तरह मेरा प्रेम परवान चढ़ने से पहले ही टूट गया. मुझे ही अपनी कामनाओं के पंख समेटने पड़े, क्योंकि मुझ में मां की आज्ञा का विरोध करने का साहस नहीं था.

मेरी इस बात से मां इतनी नाराज हुईं कि आननफानन में मेरे लिए एक वर ढूंढ़ निकाला. मुझे सोचने का समय भी नहीं दिया और मैं विरोध करती भी तो किस से. मेरी शादी संदीप से हो गई. मेरी नौकरी भी छूट गई.

शादी के बाद सपनों की दुनिया से लौटी तो पाया जिंदगी वैसी नहीं है जैसा मैं ने चाहा था. संदीप पास ही के एक महानगर में किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में अधिकारी था. कंपनी ने सभी सुखसुविधाओं से युक्त घर उसे दिया था.

संदीप के आफिस जाने के बाद मैं घर पर बोर होने लगी तो एक दिन आफिस से आने के बाद मैं ने संदीप से कहा, ‘मैं घर पर बोर हो जाती हूं. मैं भी चाहती हूं कि कोई नौकरी कर लूं.’

वह हौले से मुसकरा कर बोला, ‘मुझे तुम्हारे नौकरी करने पर कोई एतराज नहीं है किंतु जब कभी मम्मीपापा रहने के लिए आएंगे, उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगेगा. अब यह तुम्हारा घर है. इसे बनासंवार कर रखने में ही स्त्री की शोभा होती है.’

‘तो फिर मैं क्या करूं?’ मैं ने बेमन से पूछा.

उस ने जब कोई उत्तर नहीं दिया तो थोड़ी देर बाद मैं ने फिर कहा, ‘अच्छा, यदि किसी किंडर गार्टन में जाऊं तो 2 बजे तक घर वापस आ जाऊंगी.’

‘देखो, बेहतर यही है कि तुम इस घर की गरिमा बनाए रखो. तुम फिर भी जाना चाहती हो तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा. तुम कोई किटी पार्टी क्यों नहीं ज्वाइन कर लेतीं.’

‘मुझे किटी पार्टियों में जाना अच्छा नहीं लगता. मां कहती थीं कि कालोनी वालों से जितना दूर रहो वही अच्छा. बेकार समय बरबाद करने से क्या फायदा.’

‘यह जरूरी नहीं कि मैं तुम्हारी मां के सभी विचारों से सहमत हो जाऊं.’

उस दिन मैं ने यह जान लिया कि संदीप मेरी खुशी के लिए भी झुकने को तैयार नहीं है. यह मेरे स्वाभिमान को चुनौती थी. मैं भी अड़ गई. अपने हावभाव से मैं ने जता दिया कि नाराज होना मुझे भी आता है. अब अंतरंग पलों में वह जब भी मेरे पास आना चाहता तो मैं छिटक कर दूर हो जाती और मुंह फेर कर सो जाती. जीत मेरी हुई. संदीप ने नौकरी की इजाजत दे दी.

अगली बार मैं जब मां से मिलने गई तो उन्हें वह सब बताती रही जो नहीं बताना चाहिए था. मां की दबंग आवाज ने मेरे जख्मों पर मरहम का काम किया. वह मरहम था या नमक मैं इस बात को कभी न जान पाई.

मां ने मुझे समझाया कि पति को अभी से मुट्ठी में नहीं रखोगी तो उम्र भर पछताओगी. दबाया और सताया तो कमजोरों को जाता है और तुम न तो कमजोर हो और न ही अबला. मैं ने इस मूलमंत्र को शिरोेधार्य कर लिया.

मैं संदीप से बोल कर 3 दिन के लिए मायके आई थी और अब 7 दिन हो चले थे. वह जब भी आने के लिए कहता तो फोन मां ले लेतीं और साफ शब्दों में कहतीं कि वह बेटी को अकेले नहीं भेजेंगी, जब भी समय हो आ कर ले जाना. मां का इस तरह से संदीप से बोलना मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैं ने कहा, ‘मां, हो सकता है वह अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रमों में व्यस्त हों. मैं ऐसा करती हूं कि…’

‘तुम नहीं जाओगी,’ मां ने बीच में ही बात काट कर सख्ती से कहा, ‘हम ने बेटी ब्याही है कोई जुर्म नहीं किया. शादी कर के उस ने हम पर कोई एहसान नहीं किया है. जैसा हम चाहेंगे वैसा होगा, बस.’

नन्हा सा मन: कैसे बदल गई पिंकी की हंसती-खेलती दुनिया – भाग 1

Family Story in Hindi: पिंकी के स्कूल की छुट्टी है पर उस की मम्मी को अपने औफिस जाना है. पिंकी उदास है. वह घर में अकेली शारदा के साथ नहीं रहना चाहती और न ही वह मम्मी के औफिस जाना चाहती है. वहां औफिस में मम्मी उसे एक कुरसी पर बिठा देती हैं और कहती हैं, ‘तू ड्राइंग का कुछ काम कर ले या अपनी किताबें पढ़ ले, शैतानी मत करना.’ फिर उस की मम्मी औफिस के काम में लग जाती हैं और वह बोर होती है. अपनी छुट्टी वाले दिन पिंकी अपने मम्मीपापा के साथ पूरा समय बिताना चाहती है. पर दोनों अपनाअपना लंचबौक्स उठा कर औफिस चल देते हैं. हां, इतवार के दिन या कोईर् ऐसी छुट्टी जिस में उस के मम्मी व पापा का भी औफिस बंद होता है, तब जरूर उसे अच्छा लगता है. इधर 3 वर्षों से वह देख रही है कि मम्मी और पापा रोज किसी न किसी बात को ले कर झगड़ते हैं.

3 साल पहले छुट्टी वाले दिन पिंकी मम्मीपापा के साथ बाहर घूमने जाती थी, कभी पार्क, कभी पिक्चर, कभी रैस्टोरैंट, कभी बाजार. इस तरह उन दोनों के साथ वह खूब खुश रहती थी. तब वह जैसे पंख लगा कर उड़ती थी. वह स्कूल में अपनी सहेलियों को बताती थी कि उस के मम्मीपापा दुनिया के सब से अच्छे मम्मीपापा हैं. वह स्कूल में खूब इतराइतरा कर चलती थी.

अब वह मम्मीपापा के झगड़े देख कर मन ही मन घुटती रहती है. पता नहीं दोनों को हो क्या गया है. पहली बार जब उस ने उन दोनों को तेजतेज झगड़ते देखा था तो वह सहम गई थी, भयभीत हो उठी थी. उस का नन्हा सा मन चीखचीख कर रोने को करता था.

‘आज तुम्हारी छुट्टी है पिंकी, घर पर ठीक से रहना. शारदा आंटी को तंग मत करना,’ उस की मम्मी उसे हिदायत दे कर औफिस के लिए चली जाती हैं. बाद में पापा भी जल्दीजल्दी आते हैं और उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे ‘बाय’ कहते हुए वे भी चले जाते हैं. घर में वह और शारदा आंटी रह जाती हैं. शारदा आंटी घर के काम में लग जाती हैं. काम करने के बाद वे टीवी खोल कर बैठ जाती हैं. पिंकी के नाश्ते व खाने का पूरा खयाल रखती हैं शारदा आंटी. जब वह बहुत छोटी थी तब से ही शारदा आंटी उस की देखभाल के लिए आती थीं. पिंकी को नाश्ते में तथा खाने में क्या पसंद है, क्या नहीं, यह शारदा आंटी अच्छी तरह जानती थीं, इसीलिए पिंकी शारदा आंटी से खुश रहती थी. अब रोजरोज मम्मीपापा को झगड़ते देख वह अब खुश रहना ही भूल गई है.

स्कूल में पहले वह अपनी सहेलियों के साथ खेलती थी, अब अलग अकेले बैठना उसे ज्यादा अच्छा लगता है. एक दिन अपनी फ्रैंड निशा से उस ने पूछा था, ‘निशा, अलादीन के चिराग वाली बात तूने सुनी है?’

सच्ची श्रद्धांजलि : विधवा निर्मला ने क्यों की थी दूसरी शादी?- भाग 1

सुबह-सुबह फोन की घंटी बजी. मुझे चिढ़ हुई कि रविवार के दिन भी चैन से सोने को नहीं मिला. फोन उठाया तो नीता बूआ की आवाज आई, ‘‘रिया बेटा, शाम तक आ जाओ. तुम्हारे पापा और निर्मला की शादी है.’’

मुझे बहुत तेज गुस्सा आ गया. लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘नीता बूआ, आप को मेरे साथ इतना भद्दा मजाक नहीं करना चाहिए.’’

वे तुरंत बोलीं, ‘‘बेटा, मैं मजाक नहीं कर रही हूं, बल्कि तुम्हें खबर दे रही हूं.’’

मैं ने फोन काट दिया. मुझ में पापा की शादी के संबंध में बातचीत करने का सामर्थ्य नहीं था. बूआ का 2 बार और फोन आया किंतु मैं ने काट दिया. मेरी चीख सुन राजेश भी जाग गए तथा मुझ से बारबार पूछने लगे कि किस का फोन था, क्या बात हुई, मैं इतना परेशान क्यों हूं वगैरहवगैरह. मैं तो अपनी ही रौ में बोले जा रही थी, ‘आदमी इतना भी मक्कार हो सकता है. अपनी जान से प्यारी पत्नी के देहांत के ढाई माह के अंदर ही उस की प्यारी सखी से शादी रचा ले, इस का मतलब तो यही है कि मम्मी के साथ उन के पति और उन की सखी ने षड्यंत्र रचा है.’

पापा दूसरी शादी कर रहे हैं, यह सुन कर मैं हतप्रभ थी. रोऊं या हंसूं, चीखूं या चिल्लाऊं, करूं तो क्या करूं, पापा की शादी की खबर गले में फांस की तरह अटकी हुई थी. मम्मी को गुजरे अभी सिर्फ ढाई माह हुए हैं, उन की मृत्यु के शोक से तो मन उबर नहीं पा रहा है. रातदिन मम्मी की तसवीर आंखों के सामने छाई रहती है. घर, औफिस सभी जगह काम मशीनी ढंग से करती रहती हूं, पर दिलोदिमाग पर मम्मी ही छाई रहती हैं. अपने मन को स्वयं ही समझाती रहती हूं. मम्मी तो इस दुनिया से चली गईं, अब लौट कर आएंगी भी नहीं. जिंदगी तो किसी के जाने से रुकती नहीं. मैं खुद भी कितनी खुश हूं कि मेरी मम्मी मुझे सैटल कर, गृहस्थी बसा कर गई हैं. कितने ऐसे अभागे हैं इस संसार में जिन की मम्मी  उन के बचपन में ही गुजर जाती हैं, फिर भी वे अपना जीवन चलाते हैं.

मम्मी के साथसाथ इन दिनों पापा भी बहुत याद आते, मन बहुत भावुक हो आता पापा को याद कर. मन में विचार आता कि मैं तो अपनी गृहस्थी, औफिस और अपनी प्यारी गुडि़या रिंकू में व्यस्त होने के बावजूद मम्मी को भुला नहीं पाती हूं, बेचारे पापा का क्या हाल होता होगा? वे अपना समय मम्मी के बिना किस तरह बिताते होंगे? 30 वर्षों का सुखी विवाहित जीवन दोनों ने एकसाथ बिताया था. मम्मी के साथ साए की तरह रहते थे. उन की दिनचर्या मम्मी के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थी.

मम्मी की मृत्यु के बाद 4 दिन और पापा के साथ रह कर मैं वापस लखनऊ आ गई थी. मैं ने पापा को लखनऊ अपने साथ लाने की बहुत जिद की, पापा को अकेला छोड़ना मुझे नागवार लग रहा था. पापा 2 साल पहले रिटायर्ड हो चुके थे. मेरा सोचना था कि मम्मी के बिना वे अकेले यहां क्या करेंगे.

पापा मेरे साथ आने के लिए एकदम तैयार नहीं हुए. उन का तर्क था, ‘यह घर मैं ने और हेमा ने बड़े प्यार से बनवाया है, सजायासंवारा है. इस घर के हर कोने में मुझे हेमा नजर आती है. उस की यादों के सहारे मैं बाकी जिंदगी गुजार लूंगा. फिर तुम लोग हो ही, जब फुरसत मिले, मिलने चले आना या मुझे जरूरत लगेगी तो मैं बुला लूंगा. 4-5 घंटे का ही तो रास्ता है.’

मैं ने कहा, ‘ठीक है पापा, किंतु मेरी तसल्ली के लिए कुछ दिनों के लिए चलिए.’

पापा तैयार नहीं ही हुए. मैं सपरिवार लखनऊ लौट आई. अपनी गृहस्थी में रमने की लाख कोशिशों के बावजूद पूरे समय मम्मीपापा पर ध्यान लगा रहता. पापा से रोज फोन से बात कर लेती, पापा ठीक से हैं, यह जान कर मन को कुछ तसल्ली होती.

आज अचानक नीता बूआ से पापा की शादी की खबर मिलना, मेरे जीवन में झंझावात से कम न था. मेरी दशा पागलों जैसी हो रही थी. मन में बारबार यही खयाल आता कि बूआ ने कहीं मजाक ही किया हो, यह खबर सही न हो.

शिकार: किसने उजाड़ी मीना की दुनिया – भाग 1

Family Story in Hindi: चेन्नई एक्सप्रेस तेजी से अपने गंतव्य की ओर दौड़ी जा रही थी. श्याम ने गाड़ी के डिब्बे की खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा, ‘‘बस, थोड़ी ही देर में हम चेन्नई के सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचने वाले हैं.’’ फिर उस ने अपनी नव विवाहिता पत्नी के चेहरे को गौर से निहारा. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे इतनी सुंदर और पढ़ीलिखी पत्नी मिली है. जब उसे अपने पिता का पत्र मिला था कि उन्होंने अपने मित्र की बेटी से उस की शादी तय कर दी है तो उसे बहुत गुस्सा आया था. लेकिन मीरा की एक झलक देखने के बाद उस का गुस्सा हवा हो गया था. श्याम को अपनी ओर निहारते देख मीरा लजा गई. पर वह मन ही मन खुश थी. लेकिन उस वक्त उसे श्याम को यह जताना उचित नहीं लगा कि उस के मन में भी अपने विवाह को ले कर ढेर सारी शंकाएं थीं. एक अनजान व्यक्ति से शादी के गठबंधन में बंध कर उस के साथ पूरा जीवन बिताने के खयाल से ही वह भयभीत थी और मातापिता से विद्रोह करना चाहती थी.

लेकिन श्याम को देख कर उसे थोड़ा इत्मीनान हुआ. उस का चेहरामोहरा भी अच्छा था और वह स्मार्ट भी था. श्याम चेन्नई में एक निजी कंपनी में कार्यरत था. मीरा को ऐसा लगा कि श्याम के साथ उस की अच्छी भली निभ जाएगी और दोनों की जिंदगी आराम से कटेगी.

रेलगाड़ी से उतर कर श्याम और मीरा एक बेंच पर बैठ गए. श्याम ने अपना मोबाइल निकाला और मीरा की ओर देख कर बोला, ‘‘ओह, मेरे मोबाइल की बैटरी तो बिलकुल खत्म हो गई है. मैं ने अपने एक दोस्त को हमें पिक करने को कह दिया था, लेकिन वह कहीं दिख नहीं रहा. जरा अपना मोबाइल तो देना. मैं उसे फोन करता हूं, अभी तक आया क्यों नहीं?’’

फोन लगाने के कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘ताज्जुब है, उस का फोन औफ है. जरा मैं बाहर देख कर आता हूं कि वह आया है कि नहीं. तुम यहीं ठहरो.’’

‘‘लेकिन मैं यहां अकेली…’’ मीरा ने चिंता जताई.

‘‘ओह… अकेली कहां हो. चारों ओर इतनी भीड़भाड़ है. फिर अपना सामान भी तो है. इस की निगरानी कौन करेगा? बस, मैं यों गया, यों आया.’’

श्याम तुरंत बाहर की ओर चला गया.

मीरा के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक आई. एक तो सफर की थकान, दूसरे एकदम अजनबी शहर. वह अपने बक्सों पर नजर गड़ाए एक बैंच पर सिकुड़ कर बैठ गई. बारबार उस की नजरें बाहर वाले उस गेट की तरफ उठ जातीं, जहां से उस का पति बाहर गया था. पलपल उस की अधीरता बढ़ती जा रही थी. श्याम को गए काफी समय हो गया था और उस का कोई अतापता नहीं था. उस ने कुढ़ कर सोचा, ‘कहां रह गए.’

सहसा उस ने देखा कुछ युवक उस के पास आ कर रुके. ‘‘भाभी.’’ एक ने कहा, ‘‘आप मीरा भाभी ही हैं न, श्याम की पत्नी?’’

‘‘हां, लेकिन आप लोग कौन?’’ उस ने सवालिया नजरें उन पर गड़ा दीं.

‘‘हम उस के जिगरी दोस्त हैं, हम लोग श्याम की बारात में मुंबई आए थे न. आप ने हमें पहचाना नहीं क्या? मैं अनंत हूं और ये तीनों मनोहर, प्रेम और मुरुगन. हम आप दोनों को लेने निकले थे, लेकिन रास्ते में हमारी गाड़ी खराब हो गई. हमें टैक्सी कर के आना पड़ा, पहुंचने में थोड़ी देरी हो गई… खैर, श्याम कहां हैं?’’

‘‘वो तो आप को ही खोजने गए हैं.’’

‘‘ओह, हमारी नजर उस पर नहीं पड़ी. कोई बात नहीं, चलिए चलते हैं. श्याम को बाहर से ले लेंगे.’’

उन्होंने मीरा को कुछ बोलने का अवसर नहीं दिया और उसे लगभग खदेड़ कर साथ ले चले.

‘‘श्याम कहीं दिखाई दे नहीं रहा है,’’ अनंत ने कहा, ‘‘कोई हर्ज नहीं, हम में से कोई एक यहां रुक जाएगा, और उसे अपने साथ औटो में ले आएगा. वैसे भी टैक्सी में 4 से अधिक सवारी नहीं बैठ सकतीं.’’

धोखे का शिकार हुई नवविवाहिता मीरा उन्होंने मीरा को गाड़ी में बिठाया और आननफानन में टैक्सी चल पड़ी. मीरा के मन में धुकधुकी सी होने लगी. ये लोग उसे कहां लिए जा रहे हैं? अनजान शहर, अनजाने लोग. उस की घबराहट को भांप कर उस के साथ बैठा युवक हंसा, ‘‘भाभी, आप जरा भी न घबराएं. हम पर भरोसा कीजिए. हम चारों श्याम के बचपन के दोस्त हैं. अब तक हम बेसांटनगर में साथ ही रहते थे. अब उस ने अड्यार में किराए के एक दूसरे फ्लैट में शिफ्ट कर लिया है.’’

कुछ देर बाद टैक्सी रुकी.

‘‘आइए भाभी.’’ अनंत ने कहा.

मीरा ने चारों तरफ नजरें घुमाते हुए पूछा, ‘‘ये कौन सी जगह है?’’

‘‘ये हमारा घर है. आप को यहां थोड़ी देर रुकना पड़ेगा.’’

मीरा थोड़ी असहज हो गई, ‘‘लेकिन क्यों? और मेरे पति कहां रह गए?’’  उस ने पूछा.

‘‘बस, थोड़ी देर की बात है.’’ कहते हुए वे मीरा को घर के अंदर ले गए.

‘‘श्याम भी आता ही होगा. आप बैठिए. मैं आप के लिए कौफी बना कर लाता हूं.’’ अनंत ने कहा.

‘‘आप के घर में कोई महिला नहीं है क्या?’’ मीरा ने सवाल किया.

अनंत हंस दिया, ‘‘नहीं, हम चारों अभी कुंवारे हैं.’’

थोड़ी देर में कौफी आ गई. मीरा ने अनिच्छा से कौफी को मुंह लगाया. उस के मन में एक अनजाना सा डर बैठ गया था. वह सोच रही थी, ‘आखिर श्याम कहां रह गया और उस ने अब तक उस से फोन पर बात क्यों नहीं की?’

‘‘भाभी,’’ अनंत आत्मीयता से बोला, ‘‘हमारी कुटिया में आप के चरण पड़े. आप के साथ हमारी थोड़ी पहचान भी हो गई. हमें बड़ा अच्छा लगा. बाद में तो मिलनामिलाना होता ही रहेगा.’’

अनंत उस से जबरन नजदीकियां बनाना चाह रहा था. मीरा ने चिढ़ कर सोचा. यह जबरन उस के गले पड़ रहा है. बात इतनी ही नहीं है. इन सब ने एक तरह से उसे स्टेशन से अगवा कर लिया था और उस की मरजी के बगैर उसे वहां रोक रखा था. वे चारों उस के इर्दगिर्द शिकारी कुत्तों की तरह मंडरा रहे थे, पर उस से आंखें मिलाने से कतरा रहे थे.

उन के संदिग्ध व्यवहार से साफ लग रहा था कि उन के इरादे नेक नहीं हैं. उन की नीयत में खोट है. मीरा के मन में भय का संचार हुआ. उस ने उन लोगों के साथ आ कर बड़ी भूल की. अब वह उन के जाल से कैसे छूटेगी?

वह भयभीत थी. तभी अनंत ने अचानक अपने चेहरे से भलमनसाहत का मुखौटा उतार फेंका. उस के होंठों पर एक कुटिल मुसकान खेल रही थी, आंखों में वासना की लपटें दहक रही थीं.

पति के दोस्त ही निकले दरिंदे एकाएक उस ने मीरा पर धावा बोल दिया. मीरा की चीख निकल गई.

‘‘ये क्या कर रहे हैं आप?’’ उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की, ‘‘आप अपने होश में तो हैं न?’’

‘‘होश में था. अब तो मैं मदहोश हूं, आप के रूप ने मुझे दीवाना बना दिया है. भाभी, आप नहीं जानतीं कि आप की मदमाती आंखें कितना कहर ढा रही हैं. जब से हम लोगों ने शादी में आप की एक झलक देखी, तभी से हम आप पर बुरी तरह लटटू हो गए थे.’’

मीरा उस की बांहों में छपटपटाने लगी. लेकिन अनंत के बलिष्ठ बाजू उस के इर्दगिर्द कसते गए. आखिर उस ने मीरा को अपनी हवस का शिकार बना ही लिया. कुछ देर बाद वह उसे छोड़ कर चला गया. दरवाजा खुला और एक और व्यक्ति ने कमरे में प्रवेश किया. उसे देख कर मीरा के होश उड़ गए. ‘‘नहीं…’’ वह प्राणपण से चीख उठी. लेकिन उस की गुहार सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

इज्जतआबरू लुटा कर असहाय रह गई मीरा बिस्तर पर असहाय सी पड़ी थी. उस की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. उस ने सोचा, अब वह इस नर्क से कैसे निकलेगी? वह अपने पति को क्या मुंह दिखाएगी? क्या कोई उस की बात पर यकीन करेगा? दोस्ती का दम भरने वाले अपने दोस्त की पत्नी से ऐसा घृणित आचरण कैसे कर सकते हैं? ये तो अमानत में खयानत हुई. क्या सभ्य समाज के सदस्य इस हद तक गिर सकते हैं? क्या दुनिया में इंसानियत बिलकुल मर गई है?

वे लोग मीरा के बदन से तब तक खेले, जब तक उन का मन नहीं भर गया. फिर उसे श्याम के घर पहुंचा दिया गया.

‘‘अपने नए घर में तुम्हारा स्वागत है मीरा,’’ श्याम ने हुलस कर कहा, ‘‘बताओ कैसा लगा तुम्हें ये घर? मैं ने थोड़ीबहुत साफसफाई करवा दी है और राशनपानी भी ले आया हूं. मैं ने बाथरूम में गीजर चला दिया है. तुम नहा धो लो.’’

मीरा जड़वत, गुमसुम बैठी रही.

‘‘चाय पिओगी? क्या बात है, तुम इतनी चुप क्यों हो? क्या नाराज हो मुझ से? सौरी, मुझे अचानक किसी जरूरी काम से जाना पड़ गया था. पर मैं जानता था कि मेरे दोस्त तुम्हें सहीसलामत यहां पहुंचा देंगे.’’

भग्न हृदय, मीरा मुंह नीचा किए कठघरे में खड़े मुलजिम की तरह बैठी रही. श्याम ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हुआ भई, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’

अचानक वह फूट पड़ी और बिलखबिलख कर रोने लगी.

‘‘अरे ये क्या? रो क्यों रही हो? क्या हुआ, कुछ तो बोलो?’’

एक प्रश्न लगातार

Story in Hindi

आलिया: आलिया को क्यों पसंद थी तन्हाई

अगर कोई कुछ सीखना चाहता है तो वह इन्हीं अच्छेबुरे लोगों के बीच रह कर ही सीख सकता है. अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है तो उसे इन्हीं लोगों के साथ ही आगे चलना होगा.

लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने यह दुनिया जी ही नहीं? ऐसे लोग जो अपने ख्वाबों में अपनी एक अलग दुनिया जीते हैं. वे किताबों, घर के बनाए उसूलों और टैलीविजन देख कर ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं.

ऐसे ही लोगों में से एक है आलिया. वह 12वीं क्लास में पढ़ती है. देखने में होशियार लगती है. और है भी, लेकिन उस ने अपना दिमाग सिर्फ किताब के कुछ पन्नों तक ही सिमटा रखा है. 12वीं क्लास में होने के बावजूद उस ने आज तक बाजार से अपनेआप एक पैन नहीं खरीदा है. वह छोटे बच्चों की तरह लंच बौक्स ले कर स्कूल जाती है और अपने पास 100 रुपए से ज्यादा जेबखर्च नहीं रखती है.

आलिया के पास आर्ट स्ट्रीम है और स्कूल में उस की एक ही दोस्त है हिना, जो साइंस स्ट्रीम में पढ़ती है. दोनों का एक सब्जैक्ट कौमन है, इसलिए वे दोनों उस एक सब्जैक्ट की क्लास में मिलती हैं और लंच बे्रक साथ ही गुजारती हैं.

आलिया को लगता है कि अगर कोई बच्चा 100 रुपए से ज्यादा स्कूल में लाता है तो वह बिगड़ा हुआ है. पार्टी करना, गपें मारना और किसी की खिंचाई करना गुनाह के बराबर है.

अगर कोई लड़की स्कूल में बाल खोल कर और मोटा काजल लगा कर आती है और लड़कों से बिंदास बात करती है तो वह उस के लिए बहुत मौडर्न है.

सच तो यह है कि आलिया बनना तो उन के जैसा ही चाहती है, पर चाह कर भी ऐसा बन ही नहीं पाती है. क्लास के आधे से ज्यादा बच्चों से उस ने आज तक बात नहीं की है.

एक बार रोहन ने आलिया से पूछा, ‘‘आलिया, क्या तुम हमारे साथ पार्टी में चलोगी? श्वेता अपने फार्महाउस पर पार्टी दे रही है.’’

आलिया का मन तो हुआ जाने का, पर उसे यह सब ठीक नहीं लगा. उस ने सोचा कि इतनी दूर फार्महाउस पर वह अकेली कैसे जाएगी.

‘‘नहीं, मैं नहीं आऊंगी. वह जगह बहुत दूर है,’’ आलिया बोली.

‘‘तो क्या हुआ. हम तुम्हें अपने साथ ले लेंगे. तुम कहां रहती हो, हमें जगह बता दो,’’ श्वेता ने भी साथ चलने के लिए कहा.

‘‘नहीं, मैं वहां नहीं जा पाऊंगी,’’ आलिया ने साफ लहजे में कहा.

‘‘बाय आलिया,’’ छुट्टी के वक्त रोहन ने आलिया से कहा.

आलिया सोचने लगी कि आज वह इतनी बातें क्यों कर रही है. वह रोहन की बात को अनसुना करते हुए आगे निकल गई.

रोहन को लगा कि वह बहुत घमंडी है. इस के बाद उस ने कभी आलिया से बात नहीं की.

अगले दिन आलिया को लंच ब्रेक में हिना मिली. अरे, हिना के बारे में तो बताया ही नहीं. वह आलिया की तरह भीगी बिल्ली नहीं है, बल्कि बहुत बिंदास और मस्त लड़की है. लेकिन अलग मिजाज होने के बावजूद दोस्ती हो ही जाती है. हिना की भी अपनी क्लास में ज्यादा किसी से बनती नहीं थी. इसी वजह से वे दोनों दोस्त बन गईं.

हिना को आलिया इसलिए पसंद थी, क्योंकि वह ज्यादा फालतू बात नहीं करती थी और कभी भी हिना की बात नहीं काटती थी. आलिया को कभी पता ही नहीं चलता था कि कौन किस तरह की बात कर रहा है.

बचपन से ले कर स्कूल के आखिरी साल तक आलिया सिर्फ स्कूल पढ़ने जाती है. बाकी बच्चे कैसे रहते हैं और कैसे पढ़ते हैं, इस पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. अपनी 17 साल की जिंदगी में वह इतना कम बोली है कि शायद बात करना ही भूल गई है. उस की जिंदगी के बारे में जितना बताओ, उस से कहीं ज्यादा अजीब है.

हां, तो हम कहां थे. अगले दिन आलिया लंच ब्रेक में हिना से मिली और रोहन के बारे में बताया.

‘‘आलिया, सिर्फ ‘बाय’ कहने से कोई तुम्हें खा नहीं जाएगा. अगर बच्चे पार्टी नहीं करेंगे, तो क्या 80 साल के बूढ़े करेंगे. वैसे, कर तो वे भी सकते हैं, पर इस उम्र में पार्टी करने का ज्यादा मजा है. स्कूल में हम सब पढ़ने आते हैं, पर यों अकेले तो नहीं रह सकते हैं न. बेजान किताबों के साथ तो बिलकुल नहीं.

‘‘खुद को बदलो आलिया, इस से पहले कि वक्त हाथ से निकल जाए. क्या पता कल तुम्हें उस से काम पड़ जाए, पर अब तो वह तुम से बात भी नहीं करेगा. तू एवरेज स्टूडैंट है, पर दिनभर पढ़ती रहती है और तेरी क्लासमेट पूजा जो टौपर है, वह कितना ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेती है. इतने सारे दोस्त हैं उस के.

‘‘टौपर वही होता है, जो दिमागी और जिस्मानी तौर पर मजबूत होता है. जो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करता, बल्कि जिंदगी को भी ऐंजौय करता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है. अब लैक्चर देना बंद कर,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तू फेसबुक पर कब आएगी? मुझे अपनी कजिन की शादी की पिक्स दिखानी हैं तुझे,’’ हिना ने कहा.

‘‘मेरे यहां इंटरनैट नहीं है. फोटो बन जाएं तब दिखा देना.’’

‘‘ठीक है देवीजी, आप के लिए यह भी कर देंगे,’’ हिना ने मजाक में कहा.

लंच ब्रेक खत्म हो गया और वे दोनों अपनीअपनी क्लास में चली गईं.

‘‘मम्मी, पापा या भाई से कह कर घर में इंटरनैट लगवा दो न.’’

‘‘भाई तो तेरा बाहर ही इंटरनैट इस्तेमाल कर लेता है और पापा से बात की थी. वे कह रहे थे कि कुछ काम नहीं होगा, सिर्फ बातें ही बनाएंगे बच्चे.’’

‘‘तो आप ने पापा को बताया नहीं कि भाई तो बाहर भी इंटरनैट चला लेते हैं और मुझे उस का कखग तक नहीं आता है. मेरे स्कूल में सारे बच्चे इंटरनैट इस्तेमाल करते हैं,’’ आलिया ने थोड़ा गुस्सा हो कर कहा.

‘‘अच्छा, अब ज्यादा उलटीसीधी जिद न कर. पता नहीं, किन जाहिलों में रह रही है. बात करने की तमीज नहीं है तुझे. इतना चिल्लाई क्यों तू?’’ मां ने डांटते हुए कहा.

आलिया अकेले में सोचने लगी कि भाई तो बाहर भी चला जाता है. उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और वह घर में ही रहती है, फिर भी भिखारियों की तरह हर चीज मांगनी पड़ती है.

कुछ पेड़ हर तरह का मौसम सह लेते हैं और कुछ बदलते मौसम का शिकार हो जाते हैं. आलिया ऐसे ही बदलते मौसम का शिकार थी.

आलिया का परिवार सहारनपुर से है. उस की चचेरी और ममेरी बहनें हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ती हैं. 12वीं क्लास के बाद ही ज्यादातर सब की शादी हो जाती है. दिल्ली में रहने के बाद भी आलिया नहीं बदली. जब वह छोटी थी तब उस के सारे काम भाई और मम्मी ही करते थे.

वे जितना प्यार करते थे, उतनी ही उस पर पाबंदी भी रखते थे. दिल्ली में एक अच्छे स्कूल में होने की वजह से उसे पढ़ाई का बढि़या माहौल मिला, पर स्कूल के दूसरे बच्चों के घर के माहौल में और उस के घर के माहौल में जमीनआसमान का फर्क था.

आलिया स्कूल से घर दोपहर के 3 बजे आती है, फिर खाना खाती है, ट्यूशन पढ़ती है. रात में थोड़ा टीवी देखने के बाद 10 या 11 बजे तक पढ़ कर सो जाती है. उस के घर के आसपास कोई उस का दोस्त नहीं है और उस के स्कूल का भी कोई बच्चा वहां नहीं रहता है.

कुछ दिनों के बाद स्कूल के 12वीं क्लास के बच्चों की फेयरवैल पार्टी थी. आलिया भी जाना चाहती थी, पर भाई और पापा काम की वजह से उसे ले कर नहीं गए और अकेली वह जा नहीं सकती थी. न घर वाले इस के लिए तैयार थे, न उस में इतनी हिम्मत थी.

12वीं क्लास के एग्जाम हो गए. पास होने के बाद हिना और आलिया का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. आलिया की आगे की कहानी क्या है. जो हाल स्कूल का था, वही हाल कालेज का भी था. घर से कालेज और कालेज से घर. पूरे 3 साल में बस 2-3 दोस्त ही बन पाए.

बाद में आलिया ने एमबीए का एंट्रैस एग्जाम दिया, पर पापा के कहने पर बीएड में एडमिशन ले लिया. उस के पापा को प्राइवेट कंपनी में जौब तो करानी नहीं थी, इसलिए यही ठीक लगा.

बीएड के बाद आलिया का रिश्ता पक्का हो गया. नवंबर में उस की शादी है.

एक बात तो बतानी रह गई. 12वीं क्लास के बाद उस ने अपना फेसबुक अकाउंट बना लिया था. जैसेतैसे घर पर इंटरनैट लग गया था. एक दिन उस ने फेसबुक खोला तो हिना का स्टेटस मिला कि उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है.

आलिया ने फिर हिना के फोटो देखे और दूसरे क्लासमेट के भी. सभी अपने दोस्तों के साथ किसी कैफे में तो किसी फंक्शन के फोटो डालते रहते हैं. सभी इतने खुश नजर आते हैं.

अचानक आलिया को एहसास हुआ कि सभी अपनी जिंदगी की छोटीबड़ी यादें साथ रखते हैं. सभी जितना है, उसे और अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं. स्कूल टाइम से अब तक सब कितने बदल गए हैं. कितने अच्छे लगने लगे हैं.

सभी काफी खुश लगते हैं और वह… आलिया को एहसास हुआ कि उस ने कभी जिंदगी जी ही नहीं. स्कूल या कालेज की एक भी तसवीर उस के पास नहीं है. शादी के बाद जिंदगी न जाने कौन सा रंग ले ले, पर जिसे वह अपने हिसाब से रंग सकती थी, वह सब उस ने मांबाप के डर और अकेलेपन से खो दिया.

वह दिन भी आ गया, जब आलिया की शादी हुई. हिना भी उस की शादी में आई थी. विदाई के वक्त आलिया की आंखों में शायद इस बात के आंसू थे कि वह जिस वक्त को बिना डरे खुशी से जी सकती थी, उसे किताबों के पन्नों में उलझा कर खत्म कर दिया. जो वक्त बीत गया है, उस में कोई कमी नहीं थी, पर आने वाला वक्त उसे नापतोल कर बिताना होगा.

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