चालाक लड़की: भाग 1

‘‘कौन सी गाड़ी का टिकट कट रहा है साहब?’’ एक सुरीली आवाज ने राजेश का ध्यान खींचा. बगल में एक खूबसूरत लड़की को देख कर वह जैसे सबकुछ भूल चुका.

‘‘मैं आप से ही पूछ रही हूं साहब… कौन सी गाड़ी आ रही है?’’

‘‘जी… जी, ‘महामाया ऐक्सप्रैस’, डोंगरपुर से नागझिरी जाने वाली.’’

‘‘आप कौन सी क्लास का टिकट ले रहे हो? मेरा मतलब, मेरे लिए भी एक टिकट कटा दोगे तो आप की बड़ी मेहरबानी होगी. कहां जा रहे हैं आप?’’

‘‘रौधा सिटी.’’

‘‘तब तो और भी अच्छी बात है. मुझे भी रौधा सिटी ही जाना है,’’ कह कर उस लड़की ने अपने बैग से नोटों की गड्डी निकाल कर 100-100 के 2 नोट राजेश के हाथ में थमा दिए.

‘‘माफ करना… मैं कब से टिकट लेने की कोशिश कर रही हूं, पर भीड़ इतनी ज्यादा है…’’ रुपए की गड्डी बैग में रखते हुए वह लड़की बोली.

‘‘कोई बात नहीं. आप आराम से सामने वाली बैंच पर बैठ जाइए.’’

जब ट्रेन आई तो राजेश अपने डब्बे में चादर बिछा कर एक सीट पर बैठ गया. वह जैसे उस लड़की के विचारों में खो गया. काश, वह लड़की उसी के पास आ कर बैठती…

‘‘अरे, आप…’’ थोड़ी ही देर बाद वह लड़की उसी डब्बे में आ कर राजेश से बोली.

‘‘आप को एतराज न हो, तो आप की बिछाई चादर पर…’’

‘‘जी बैठिए. जब हम और आप एक ही शहर जा रहे हैं, तो एतराज कैसा?’’ राजेश बोला.

वह लड़की राजेश की बिछाई चादर पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद वह अपने हैंडबैग की चेन खोलने लगी. कभी इस पौकेट की चेन तो कभी दूसरे पौकेट की चेन खोलती और बंद करती. वह बारबार बैग टटोल रही थी. वह बहुत परेशान लग रही थी.

राजेश से रहा न गया, तो पूछ ही लिया, ‘‘क्या हो गया? लगता है कि कुछ…’’

‘‘मेरे रुपए का बंडल…’’ उस लड़की ने बैग टटोलते हुए कहा.

‘‘कितने रुपए थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘2,000 रुपए थे,’’ मामूली सी बात समझ कर लड़की ने लापरवाही से कहा.

‘‘लगता है, किसी ने हाथ साफ कर दिया. आप के साथ और कोई नहीं है क्या?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘छोड़ो, शहर तो पहुंच जाऊंगी. कोई नहीं है तो आप तो हो ही? मुझे घर तक छोड़ देना. घर पर आप को टैक्सी का किराया वापस कर दूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

तेज रफ्तार से ट्रेन चली जा रही थी. वह लड़की राजेश से सट कर बैठ गई. लड़की की छुअन पा कर राजेश को जैसे बिजली का झटका लगा. उस के बदन की खुशबू सेवह मदहोश हो रहा था.

‘‘आप रौधा सिटी के कौन से महल्ले में रहती हैं?’’

‘‘पटेल चौक में… और आप?’’ जवाब देने के बाद लड़की ने पूछा, ‘‘किसी सरकारी नौकरी में?’’

‘‘जी, मैं स्वास्थ्य विभाग में ट्यूटर हूं.’’

इसी बीच ट्रेन रुकी. वह लड़की राजेश से टकराई.

लाली : क्या रोशन की हुई लाली ? – भाग 1

वह दीवार के सहारे बैठा था. उस के चेहरे पर बढ़ी दाढ़ी को देख कर लगता था कि उसे महीने से नहीं छुआ गया हो. दाढ़ी के काले बालों के बीच झांकते कुछ सफेद बाल उस की उम्र की चुगली कर रहे थे. जिंदगी की कड़वी यादें और अनुभव के बोझ ने उस की कमर को भी झुका दिया था.

रात का दूसरा पहर और सड़क के किनारे अंधेरे में बैठा वह अपनी यादों में खोया था. यादें सड़क से गुजरने वाले वाहनों की रोशनी की तरह ही तो थीं, जो थोड़ी देर के लिए अंधेरी दुनिया को रोशन कर जाती थीं, लेकिन आज क्षणभंगुर रोशनी का भी आखिरी दिन था. आज लाली की शादी जो हो रही थी, उसी चारदीवारी के अंदर जिस के सहारे वह बैठा था. वह अपने 12 साल पुराने अतीत में चला गया.

रेल के डब्बे के पायदान पर बैठा वह बहुत खुश था. उम्र करीब 14 साल रही होगी. उस दिन बड़ी तन्मयता के साथ वह अपनी कमाई गिन रहा था.

2…4…10…15… वाह, आज पूरे 15 रुपए की कमाई हुई है. अब देखता हूं उस लाली की बच्ची को…कैसे मुझ से ज्यादा पैसे लाती है. हर बार मुझ से ज्यादा पैसे ला कर खुद को बहुत होशियार समझती है. आज आने दो उसे…आज तो वह मुझ से जीत ही नहीं सकती. 15 रुपए तो उस ने एकसाथ देखे भी नहीं होंगे. जो टे्रन की रफ्तार के साथ भाग रहे थे.

‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…’ भजन के स्वर कान में पड़ते ही वह अपने खयालों से बाहर आ गया. यह लाली की आवाज ही थी, जैसे दूर किसी मंदिर में घंटी बज रही हो.

उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो लाली खड़ी थी. उम्र करीब 12 वर्ष, आंखों में चमक मगर रोशनी नहीं, दाएं हाथ में 2 संगमरमर के छोटेछोटे टुकड़े जो साज का काम करते थे, सिर के बाल पीछे की ओर गुंथे हुए.

‘लाली, मैं यहां हूं. तू इधर आ. कब से तेरा इंतजार कर रहा हूं. स्टेशन आने वाला है. आज कितने पैसे हुए?’

‘रोशन, तू यहां है,’ लाली बोली और अपने दोनों हाथों को आगे की ओर उठा कर आवाज आने की दिशा की ओर मुड़ गई. इन 12 सालों में लाली ने हाथों से ही आंखों का काम लिया था. रोशन ने उसे अपने साथ पायदान पर बिठा लिया.

‘रोशन, जरा मेरे पैसे गिन दे.’

‘अभी तू इन्हें अपने पास रख. स्टेशन आने वाला है. उतरने के बाद पार्क में बैठ कर इन पैसों को गिनेंगे.’

स्टेशन आते ही दोनों टे्रन से उतर कर पार्क की ओर चल दिए.

पार्क की बेंच पर बैठते ही लाली ने अपने सभी पैसे रोशन को पकड़ा दिए.

रोशन के चेहरे पर विजयी मुसकान आ गई, आज तो उस की जीत होनी ही थी. उस ने पैसे लिए और गिनने लगा.

‘2…4…10…12…15…20…22, ओह, आज फिर हार गया और अब फिर से इस के ताने सुनने होंगे.’ रोशन ने मन ही मन सोचा और चिढ़ कर सारे पैसे लाली के हाथ में पटक दिए.

‘बता न कितने हैं?’

‘मैं क्यों बताऊं, तू खुद क्यों नहीं गिनती, मैं क्या तेरा नौकर हूं.’

‘समझ गई,’ लाली हंसते हुए बोली.

‘तू क्या समझ गई.’

‘आज फिर मेरे पैसे तुझ से ज्यादा हैं, तू मुझ से जल रहा है.’

‘अरे, जले मेरी जूती,’ रोशन ने बौखलाते हुए कहा.

‘तेरे पास तो जूते भी नहीं हैं जलाने को, देख खाली पैर बैठा है,’ लाली यह कह कर हंसने लगी. लाली की इस बात ने जैसे आग में घी डाल दिया. रोशन गुस्से में बोला, ‘अरे, तू अंधी है तभी तुझ पर तरस खा कर लोग पैसे दे देते हैं, वरना तेरे गाने को सुन कर तो जिंदा आदमी भी मर जाए और मरे आदमी का भूत भाग जाए.’

यह सुन कर लाली जड़ हो गई और उस की आंखों से आंसू निकल पड़े. लाली के आंसुओं ने रोशन के गुस्से को धो डाला. वह पछताने लगा मगर माफी मांगे तो कैसे?

‘लाली, माफ कर दे मुझे, मैं तो पागल हूं. किसी पागल की बात का बुरा नहीं मानते.’

लाली ने दूसरी तरफ मुंह मोड़ लिया.

‘अरे, लाली, मैं ने तुझ से अच्छा गाने वाला आज तक नहीं सुना. मैं सच बोल रहा हूं. तुझ से अच्छा कोई गा ही नहीं सकता.’

वह सच बोल रहा था. काश, लाली उस की आंखों में देख पाती तो जरूर विश्वास कर लेती. लाली के चेहरे पर अविश्वास की झलक साफ पढ़ी जा सकती थी.

‘लाली, मैं सच कह रहा हूं…बाबा की कसम. देख तुझे पता है मैं बाबा की झूठी कसम नहीं खाता. अब तू चुप हो जा.’

लाली के चेहरे पर अब मुसकान लौटने लगी थी.

‘अब मैं कभी तुझे अंधी नहीं बोलूंगा, तुझे आंखों की जरूरत ही नहीं है, ये रोशन तेरी आंखों की रोशनी है,’ अब लाली के चेहरे पर मुसकान लौट आई थी.

कमरे में खाट पर जर्जर काया लेटी हुई थी. टूटी हुई छत से झांकते हुए धूप के टुकड़ों ने कमरे में कुछ रोशनी कर रखी थी.

माखन खाट पर लेटा रोशन के आने का इंतजार कर रहा था. ‘आज इतनी देर हो गई रोशन आया नहीं है.’

माखन की उम्र करीब 65 वर्ष होगी. खाट पर लेटे हुए वह अपने अंतिम दिनों को गिन रहा था. लोगों की घृणा भरी नजरें और अपने शरीर को गलता देख माखन में जीने की चाह खत्म हो गई थी पर मौत भी शायद उस के साथ आंखमिचौली का खेल खेल रही थी.

दिल की इच्छा थी कि रोशन पढ़लिख कर साहब बने. उस ने वादा भी किया था रोशन से कि जिस दिन वह मैट्रिक पास कर लेगा उस दिन वह उसे अपने रिकशे में साहब की तरह बिठा कर पूरा शहर घुमाएगा. लेकिन गरीब का सपना पूरा कहां होता है.

4 साल पहले कोढ़ ने उसे रिकशा चलाने लायक भी नहीं छोड़ा और वह बोझ बन गया रोशन पर. रोशन को स्कूल छोड़ना पड़ा. गरीब की जिंदगी में बचपन नहीं होता, गरीबी और जिम्मेदारी ने रोशन को उम्र से पहले ही बड़ा कर दिया. कलम की जगह झाड़ू ने ले ली, स्कूल की जगह रेलगाड़ी ने और शिक्षक की प्यार भरी डांटफटकार की जगह लोगों के कटु वचनों और गाली ने ले ली.

‘अरे, तू आ गया रोशन. कहां था अब तक और यह तेरे हाथ में क्या है?’

‘बाबा, यह लो अपनी दवाई, तुम्हें जलेबी पसंद है न. लो, खाओ और यह भी लो,’ यह कहते हुए उस ने देसी शराब की बोतल माखन की ओर बढ़ा दी.

‘अरे, बेटा, इतने पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी.’

रोशन के चेहरे पर मुसकान आ गई. उस ने बाबा की आंखों की चमक को पढ़ लिया था. उसे पता था कि बाबा को रोज शराब की तलब होती है, लेकिन पैसों की तंगी के कारण कई महीने बाद बाबा के लिए वह बोतल ला पाया था.

रोशन हर दिन की तरह उस दिन भी टे्रन के पायदान पर लाली के साथ बैठा था.

‘वह देख लाली, इंद्रधनुष, कितना खूबसूरत है,’ टे्रन के पायदान पर बैठे रोशन ने इंद्रधनुष की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘इंद्रधनुष कैसा होता है, कहां रहता है?’

‘अरे, तुझे इतना भी नहीं पता. इंद्रधनुष 7 रंगों से बना होता है. उस में लाल रंग सब से सुंदर होता है और पता है यह आसमान में लटका रहता है.’

स्कूल में सीखे हुए इंद्रधनुष के सारे तथ्य उस ने लाली को बता दिए लेकिन उसे खुद इन बातों में भरोसा नहीं था. जैसे इंद्रधनुष के 7 रंग.

उस ने 5 रंग बैगनी, नीला, हरा, पीला और लाल से ज्यादा रंग कभी इंद्रधनुष में नहीं देखे थे. और भी मास्टरजी की कई बातों पर उसे भरोसा नहीं होता था जैसे धरती गोल है, सूरज हमारी धरती से बड़ा है…इन सारी बातों पर कोई पागल ही भरोसा करेगा.

लेकिन दूसरे बच्चों पर अपनी धौंस जमाने के लिए ये बातें वह अकसर बोला करता था.

अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता देख माखन समझ गया अब उस का अंतिम समय आ गया है. रोशन को अंतिम बार देखने के लिए उस ने अपनी सांसें रोक रखी थीं, उस ने अपनी आंखें दरवाजे पर टिका रखी थीं. लेकिन जितनी सांसें उस के जीवन की थीं शायद सारी खत्म हो चुकी थीं. आत्मा ने शरीर का साथ छोड़ दिया था. बस, बचा रह गया था उस का ठंडा शरीर और इंतजार करती दरवाजे की ओर देखती आंखें.

बाबा को गुजरे 1 साल हो गया था. रोशन ने ट्रेन की सफाई के साथसाथ घर भी छोड़ दिया था. जब भी वह घर जाता उसे लगता बाबा का भूत सामने खड़ा है और बारबार उसे बारूद के कारखाने में काम करने से मना कर रहा है. टे्रन का काम रोशन को कभी पसंद नहीं था लेकिन बाबा के दबाव में वह कारखाने में काम नहीं कर पाया था. बाबा ने उस से वादा भी किया था कि उन के मरने के बाद रोशन बारूद के कारखाने में काम नहीं करेगा, लेकिन वह उस वादे को निभा नहीं पाया.

लाली को भी घर से निकलना पड़ा. उस के चाचा से अंधी लड़की का बोझ संभाला नहीं गया और अनाथ लड़की को अनाथ आश्रम में शरण लेनी पड़ी. शायद अच्छा ही हुआ था उस के साथ. आश्रम की पढ़ाई में उस का मन नहीं लगता था. पूरे दिन उसे बस, संगीत की कक्षा का इंतजार रहता और उस के बाद वह इंतजार करती रोशन का. रोज शाम को आधे घंटे के लिए बाहर वालों से मिलने की इजाजत होती थी. पर समय तो मुट्ठी में रखी रेत की तरह होता है, जितनी जोर से मुट्ठी बंद करो रेत उतनी ही जल्दी फिसल जाती है.

आज बेसब्री से लाली रोशन का इंतजार कर रही थी. जैसे ही रोशन के आने की आहट हुई उस की आंखों के बांध को तोड़ आंसू छलक पड़े.

पछतावा: थर्ड डिगरी का दर्द- भाग 1

‘‘सर, मुझे छोड़ दीजिए, मैं आप के पैर पड़ता हूं. मैं अपराधी नहीं, मुसीबत का मारा इनसान हूं…’’

जब इंस्पैक्टर राजन छेत्री ने उसे टौर्चर करते हुए थर्ड डिगरी का इस्तेमाल किया, तब रतन बापबाप बोल उठा. मारे दर्द के उस का रोमरोम कांप उठा. उसे ऐसा लगा, जैसे प्राण शरीर छोड़ कर उड़ जाएगा.

रतन ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ेगा, क्योंकि उसे अपनी काबीलियत और होशियारी पर कुछ ज्यादा ही घमंड था. पर वह जैसे ही ओम सिनेमा के पास पहुंचा, वहां सादे लिबास में तैनात पुलिस वालों ने उसे दबोच लिया. उस की चीते जैसी फुती और कुत्ते जैसी सतर्कता न जाने कहां फुर्र हो गई. उस पर सिलसिलेवार बम धमाके करने का गंभीर आरोप था, जिस में पुलिस उस को सरगर्मी के साथ तलाश कर रही थी.

रतन की गिरफ्तारी के बाद उसे जिला हैडक्वार्टर में लाया गया. जहां आरक्षी निरीक्षक राजन छेत्री उस से कुछ गुप्त चीजें उगलवाने की कोशिश में था.

‘‘बोल, तेरा नाम क्या है?’’

‘‘सर, अभी बताता हूं… सर…, पहले थोड़ा सा पानी पिला दीजिए न… मारे प्यास के मेरा गला सूखा जा रहा है. बिलकुल कांटे की तरह चुभ रहा है…’’ उस ने अपनी जबान को अपने होंठों पर फेरते हुए कहा.

‘‘कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती, तू ऐसे नहीं मानेगा?’’

‘‘सर….सर…सर…, मेहरबानी कर के मुझे थोड़ा सा पानी… प्लीज सर…’’

‘‘अच्छा, ठीक है…,’’ इतना बोल कर इंस्पैक्टर राजन छेत्री ने 2 गरम समोसे और एक गिलास गरम चाय मंगवा कर उसे दिया. साथ ही, जलती निगाहों से उसे घूरते हुए कहा, ‘‘फिलहाल तो यही मिलेगा…, तू समोसे खा कर चाय पी ले, प्यास मिट जाएगी.’’

मरता क्या न करता, भूखप्यास से बेहाल रतन उस के हाथों से समोसे झटक कर जल्दीजल्दी खाने लगा. लेकिन गला सूखा होने की वजह से निगलने में उसे दिक्कत होने लगी तो उस ने गरम चाय सुड़क ली. किसी तरह उस ने समोसा खाया और चाय पी, लेकिन प्यास कम होने की जगह और बढ़ गई.

‘‘सर… सर… थोड़ा सा पानी… चुल्लू में ही दे दीजिए न, नहीं तो मैं जीतेजी मर जाऊंगा,’’ वह मारे प्यास के तड़पते हुए हाथ जोड़ कर बोला. लेकिन इंस्पैक्टर राजन छेत्री पर उस का कोई असर नहीं दिखा.

‘‘पहले अपना नाम बता?’’

‘‘रतन विश्वास.’’

‘‘तेरे बाप का नाम क्या है?’’

‘‘सपन विश्वास.’’

‘‘सर, नेताजी आए हैं. उन्होंने आप को याद किया है,’’ इसी बीच थाने का एक सिपाही कस्टडी रूम में पहुंचा और आते के साथ ही एक पार्टी के कार्यकर्त्ता के आने की सूचना दी.

नेता का नाम सुनते ही इंस्पैक्टर राजन छेत्री गुस्से से लाल हो गया. कमरे से निकलते हुए उस ने एक बार रतन को घूरा जरूर, जैसे कह रहा हो कि तुम्हें छोड़ेंगे नहीं.

कमरे से इंस्पैक्टर राजन छेत्री के बाहर निकलते ही रतन ने गहरी सांस ली. वह समझ नहीं पा रहा था कि उस की मुखबिरी किस ने पुलिस से की है. उसे गिरफ्तार कराने में किस का हाथ है? कहीं मयंक और उस की प्रेमिका नैना थापा का हाथ तो नहीं. दार्जिलिंग के टाइगर हिल पर पिछले दिनों हुई थी उन से मुलाकात.

नैना टाइगर हिल में उगते सूरज को निहार रही थी. दूरदूर तक फैला हुआ नीला आकाश, उस के नीचे पहाड़ पर खूबसूरत कुदरती नजारे, रंगबिरंगी चिडि़यों का शोर मनभावन लग रहे थे. वह इन सब में खोई हुई थी कि अचानक रतन ने पीछे से आ कर उस की आंखों को अपनी उंगलियों से बंद कर दिया. वह हड़बड़ा कर अपनी आंखों पर से हथेलियों को हटाने की कोशिश करने लगी और बोली, ‘अरे मयंक, यह क्या मजाक है. मेरी आंखों के ऊपर से हटाओ हाथ, टाइगर हिल की वादियों का नजारा जीभर कर देख तो लेने दो.’

‘ऊहूं, पहले बुझो, मैं कौन हूं?’

अचानक पीछे से आई आवाज को नैना ने पहचान लिया. वह मयंक की आवाज नहीं, बल्कि रतन की आवाज थी. मयंक ने उसे बताया था कि रतन अच्छा इनसान नहीं है. उस का साथ आतंकवादियों से है.

रतन की आवाज पहचानते ही वह आगबबूला हो उठी और उस का हाथ अपनी आंखों से जबरन हटा दिया. उस की तरफ मुड़ कर नफरत भरी नजरों से देखते हुए वह बोली थी, ‘तू ने मुझे छुआ क्यों? मेरी आंखें बंद करने वाले तुम होते कौन हो? दफा हो जाओ मेरी नजरों के सामने से…’’

‘अरे नैना, इतनी छोटी सी बात पर इतना बड़ा गुस्सा. ऐसी आंखमिचौनी तो हम कितनी बार खेल चुके हैं. प्लीज नैना, गुस्सा थूक दो. मैं अपने किए की माफी मांगता हूं,’ ‘रतन ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘यह मयंक कौन है, जो तुम्हारे कान भरता रहता है. अनजान लोगों से दूर ही रहो तो अच्छा है. तुम उस के साथ यहां आई हो और वह तुम्हें ही अकेला छोड़ कर अपने दोस्तों के साथ किसी मसले पर बातचीत कर रहा है. मैं उधर से गुजर रहा था तो तुम पर नजर ठहर गई.’

कोई शर्त नहीं: ट्रांसफर की मारी शशि बेचारी- भाग 1

पत्नी शशि गुमसुम सी सामान पैक करने में उन की मदद कर रही थी. उस की उदास आंखें भी सरकार की इस पौलिसी के प्रति अपनी नाराजगी की गवाही दे रही थीं.

अभी 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कुलदीप को अपने होम टाउन जयपुर में ट्रांसफर हुए कि फिर से ट्रांसफर और वह भी गुजरात सीमा के पास… एक आदिवासी इलाके में… सिरोही जिले में एक छोटी सी जगह पिंडवाड़ा…

हालांकि राज्य सरकार की तरफ से अपने प्रशासनिक अधिकारियों को सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, मगर परिवार की अपनी जिम्मेदारियां भी होती हैं.

पिंडवाड़ा में सभी चीजें मुहैया होने के बावजूद भी कुलदीप की मजबूरी थी कि वे शशि और बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा सकते थे.

बड़ी बेटी रिया ने अभी हाल ही में इंजीनियरिंग कालेज के फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया है और छोटा बेटा राहुल तो इस साल 10वीं जमात में बोर्ड के एग्जाम देगा. ऐसे में उन दोनों को ही बीच सैशन में डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता, इसलिए शशि को बच्चों के साथ जयपुर में ही रहना पड़ेगा.

अगर दूरियां नापी जाएं तो जयपुर और पिंडवाड़ा के बीच ज्यादा नहीं है, मगर प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारियां ही इतनी होती हैं कि हर हफ्ते इन दूरियों को तय कर पाना कुलदीप के लिए मुमकिन नहीं था. महीने में सिर्फ 1 या 2 बार ही कुलदीप का जयपुर आना मुमकिन होगा. यह बात पतिपत्नी दोनों ही बिना कहे समझ रहे थे.

कुलदीप की सब से बड़ी समस्या घर के खाने को ले कर थी. खाने के नाम पर उन्होंने कालेज में पढ़ाई के दौरान सिर्फ चावल बनाने ही सीखे थे और बाद में मैगी बनाना भी सीख लिया था. हां, शादी के बाद उन्हें चाय बनाना जरूर आ गया था.

हमेशा तो ट्रांसफर होने पर शशि व बच्चे उन के साथ ही शिफ्ट हो जाते थे, मगर अब बच्चों की पढ़ाई उन की सुविधा से ज्यादा जरूरी हो गई है.

इधर जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, होटलों और ढाबों के तेज मसालों वाले खाने से कुलदीप को एसिडिटी होने लगी थी. नौकरी वगैरह का तनाव होने के चलते शरीर में ब्लड शुगर का लैवल भी बढ़ने लगा था.

डाक्टरों ने कसरत करने के साथसाथ कम मसाले वाला खाना और हरी पत्तेदार सब्जियों के खाने की सख्त हिदायत दे रखी थी. पत्नी शशि परेशान थी कि उन के खाने का इंतजाम कैसे होगा.

पिंडवाड़ा पहुंचते ही जोरावर सिंह ने गरमागरम चाय के साथ कुलदीप का स्वागत किया.

जोरावर सिंह कुलदीप का सहायक होने के साथसाथ बंगले का चौकीदार और माली सबकुछ था.

जोरावर सिंह बंगले के पीछे बने सर्वेंट क्वार्टर में अपनी पत्नी राधा के साथ रहता था. चाय सचमुच बहुत अच्छी बनी थी. पीते ही कुलदीप बोले, ‘‘तुम्हें देख कर तो नहीं लगता कि यह चाय तुम ने ही बनाई है.’’

‘‘सही कहा साहब, यह चाय मैं ने नहीं, बल्कि मेरी जोरू ने बनाई है,’’ जोरावर सिंह अपने पीले दांत निकाल कर हंसा.

कुलदीप ने इस बार ध्यान से देखा उसे. बड़ीबड़ी मूंछें, कानों में सोने की मुरकी, सिर पर पगड़ी और धोतीअंगरखा पहने दुबलापतला जोरावर सिंह कुलदीप के पास जमीन पर उकड़ू बैठा हुआ उसे एकटक देख रहा था.

‘‘यहां खाने का क्या इंतजाम है?’’ कुलदीप ने पूछा.

‘‘आसपास कई गुजराती ढाबे हैं… आप को राजस्थानी खाना भी मिल जाएगा… और विदेशी खाना चाहिए तो फिर शहर में अंदर जाना पड़ेगा…’’ जोरावर सिंह ने अपनी जानकारी के हिसाब से बताया.

‘‘कोई यहां बंगले पर आ कर खाना बनाने वाला या वाली नहीं है क्या?’’ कुलदीप ने पूछा.

‘‘साहब, मैं पूछ कर बताता हूं,’’ कह कर जोरावर सिंह चाय का कप उठाने लगा.

‘कहां राजधानी जयपुर और कहां पिंडवाड़ा…’ सोच कर कुलदीप को अच्छा तो नहीं लगा, मगर उन्होंने देखा कि अरावली की पहाडि़यों की गोद में बसा पिंडवाड़ा एक खूबसूरत और शांत कसबा है.

यह एक हराभरा आदिवासी बहुल इलाका है. उन्हें यहां के लोग भी बहुत सीधेसादे और अपने काम से काम रखने वाले लगे.

कुलदीप का सरकारी बंगला अंदर से काफी बड़ा और शानदार था. वैल फर्निश्ड घर में 2 बैडरूम अटैच बाथरूम समेत, एक ड्राइंगरूम, गैस स्टोव और चिमनी के साथ बड़ी सी किचन. एक लौबी के अलावा छोटा सा स्टोर भी था… लौबी में 4 कुरसी वाली डाइनिंग टेबल भी रखी थी.

चारों तरफ से खुलाखुला बंगला कुलदीप को बेहद पसंद आया. एक बैडरूम में एयरकंडीशनर भी लगा था. कुलदीप ने अपना सूटकेस बैडरूम में रखा और नहाने की तैयारी करने लगे.

औफिस का टाइम हो रहा था. कुलदीप नाश्ते के बारे में सोच रहे थे कि क्या किया जाए. अब तो मैगी बनाने जितना टाइम भी नहीं था. वे पहले ही दिन लेट नहीं होना चाहते थे.

‘वहीं कुछ खा लूंगा,’ सोचते हुए कुलदीप तैयार हो कर बाहर निकले तो डाइनिंग टेबल पर एक डोंगे में ढका हुआ नाश्ता रखा देखा. ढक्कन उठाया तो करीपत्ते से सजे हुए गरमागरम पोहे की खुशबू पूरे घर में फैल गई.

कुलदीप के मुंह में पानी आ गया… उन्होंने तुरंत प्लेट में डाल लिया. खाया तो स्वाद सचमुच लाजवाब था, मगर तारीफ सुनने के लिए आसपास कोई भी नहीं था. जोरावर सिंह भी नहीं…

औफिस में कुलदीप का दिन काफी थकाने वाला था. काम तो वही पुराना था, मगर नया माहौल… नए लोग… सब का परिचय लेतेलेते ही दिन बीत गया.

घर पहुंचते ही पत्नी शशि का फोन आ गया. बिजी होने के चलते दिन में बात ही नहीं कर पाए थे उस से…

यों भी शशि की बातें बहुत लंबी होती हैं, इसलिए फुरसत में ही वे उसे फोन करते हैं. अभी दोनों बातें कर ही रहे थे कि एक चीख की आवाज ने कुलदीप को चौंका दिया.

‘‘बाद में बात करता हूं,’’ कह कर उन्होंने शशि का फोन काटा और आवाज की दिशा में दौड़े.

‘आवाज तो सर्वेंट क्वार्टर में से आ रही है… तो क्या जोरावर सिंह अपनी पत्नी को पीट रहा है?’ कुलदीप कुछ देर खड़े सोचते रहे. धीमी होतीहोती सिसकियां बंद हो गईं तो वे बंगले की तरफ पलट गए.

चपरासी से कह कर रात का खाना पैक करा लिया था. सुबह नाश्ते के लिए ब्रैडजैम भी मंगवा लिया था, मगर सुबह की चाय का इंतजाम नहीं हो सका था.

सुबह उठ कर कुलदीप बंगले के गार्डन में सैर के लिहाज से चक्कर लगा रहे थे, मगर उन की आंखें सर्वेंट क्वार्टर की तरफ ही लगी थीं, तभी उन्हें जोरावर सिंह आता हुआ दिखाई दिया.

बेटे की चाह : भाग 1

गांव में बनी यह कोठी सब गांव वालों में हैरानी का मुद्दा बनी हुई थी, जिस की वजह थी सेना का एक रिटायर्ड फौजी जो इस का मालिक था. उस ने फौज की नौकरी छोड़ कर इस गांव में जमीन खरीद कर अपने रहने के लिए इसे बनवाया था.

फौजी का नाम शमशेर सिंह था. बड़ीबड़ी मूंछें और गोलगोल राज भरी आंखें. सीने पर लटकता हुआ एक सुनहरी मैडल, जिसे सरकार ने उस की सेवा से खुश हो कर उसे इनाम में दिया था. इसे वह बड़ी ही शान के साथ लोगों के बीच दिखाया करता था.

फौजी शमशेर सिंह की कोठी में कई नौकर काम करते थे, जो ज्यादातर कोठी के अंदर ही रहते थे. नौकरनौकरानियों का यह स्टाफ शमशेर सिंह अपने साथ शहर से ही ले कर आया था.

गांव के कुछ लोगों का मानना था कि फौजी शमशेर सिंह गांव की बहूबेटियों पर बुरी नजर रखता है, तभी तो मुंहअंधेरे ही खाकी रंग का कच्छा पहन कर, एक हाथ में कुत्ते की चेन पकड़ कर उसे टहलाने के बहाने से शौच गई और घाट पर नहाती हुई औरतों को अपनी गोल आंखों से घूरने निकल पड़ता है.

पर, कुछ लोग कहते थे कि फौजी का परिवार एक सड़क हादसे में मारा गया था. इसी दुख में उस ने नौकरी छोड़ दी और यहां शांति की तलाश में रहने आ गया है.

मंगलू भी इसी गांव में अपनी पत्नी सरोज और 3 बेटियों के साथ रहता था. उस की बड़ी बेटी रमिया की उम्र

18 साल थी. दूसरी बेटी का नाम श्यामा था और वह अभी 14 साल की थी. तीसरी बेटी मुन्नी अभी 8 साल थी.

बेचारा मंगलू अपनी इन जवान होती बेटियों को देखता और अपनी किस्मत को दोष देता कि काश, उसे एक बेटा हो जाता, तो उस का वंश चल जाता. लड़कियां तो अपनी ससुराल में जाते ही पराई हो जाती हैं. एक लड़का ही तो होता है, जो मांबाप का सहारा होता है और जो चिता को आग लगाए तभी तो बैकुंठ मिल पाता है.

मंगलू की इस भावना को बढ़ाने में गांव के कुछ लोगों का बहुत योगदान था, जिस में सब से आगे थी मंगलू के एक दोस्त की बीवी रसीली.

जैसा रसीली का नाम था, वैसा ही रस से भरा हुआ उस का गदराया बदन, बड़ीबड़ी आंखें और पतली कमर के नीचे तक लटकते हुए बाल.

इस गांव में वह अपने ससुर के साथ रहती थी. उस का ससुर भी दमे का मरीज था और ज्यादातर खटिया पर ही लेटा रहता था.

रसीली का आदमी शहर कमाने गया हुआ था और 2-3 महीने में एक बार ही आ पाता था, इसीलिए रसीली किसी मस्त हिरनी की तरह उछलती फिरती थी.

गांव के जवान तो जवान, बूढ़े भी फिदा थे रसीली की इस जवानी पर, लेकिन रसीली तो फिदा थी 3 लड़कियों के बाप मंगलू पर.

‘‘अरे, जिस छप्पन छुरी के पीछे पूरा जमाना पड़ा है, वह तो सिर्फ तुझे चाहती है और तू है कि मेरा प्यार ही नहीं समझता है रे,’’ रसीली ने खेत की तरफ जाते हुए मंगलू की गरदन में अपनी बांहों का घेरा डालते हुए कहा.

‘‘अरे… अरे… रसीली… यह क्या कर रही हो… कोई देख लेगा… तो क्या सोचेगा,’’ मंगलू घबराते हुए बोला.

‘‘अरे, देख लेने दो… मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे और तेरे रिश्ते की बात सब लोगों तक पहुंच जाए,’’ रसीली ने प्यार से मंगलू को निहार कर कहा.

‘‘अरे… नहीं रसीली. यह सब ठीक नहीं. मुझे यह सब करना अच्छा नहीं लगता,’’ मंगलू बोला.

‘‘मैं जानती हूं कि जिंदगी के 40वें साल में भी तू किसी गबरू जवान से कम नहीं है और मैं यह भी जानती हूं कि तेरे अंदर एक बेटे का बाप बनने की बहुत इच्छा है.

‘‘पर बीज चाहे जितना अच्छा हो, अगर जमीन ही बंजर होगी तो उस में फल कहां से आएगा,’’ रसीली कहे जा रही थी.

‘‘अरे, क्या अनापशनाप बके जा रही है…’’

‘‘तो फिर तू ही बता न कि तेरी घरवाली एक लड़का पैदा क्यों नहीं कर पाई, क्योंकि उस में एक बेटे को जनने की ताकत नहीं है. अगर तू लड़के का बाप बनना चाहता है, तो मुझे एक मौका दे, फिर देख मैं तुझे कैसे बनाती हूं एक बेटे का बाप,’’ रसीली ने मंगलू की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

मंगलू वैसे तो औरतखोर नहीं था, पर रसीली जैसी मस्त औरत का न्योता तो शायद ही कोई मर्द अस्वीकार कर सकता और फिर मंगलू के अंदर एक बेटे का बाप बनने की तीव्र इच्छा भी बलवती तो थी ही.

‘‘तू मेरे बेटे की मां बनेगी…पर क्यों? तेरा भी मर्द है न?’’ मंगलू के चेहरे पर कई आशंकाएं एकसाथ घूम रही थीं.

‘‘तुम भी बहुत भोले हो मंगलू… मेरा आदमी तो 2-3 महीने में एक बार ही आता है, वह भी 2-4 दिन के लिए. अब इस जवान शरीर को तो रोज ही मर्द का साथ चाहिए न…’’ रसीली ने थोड़ा शरमाते हुए कहा.

‘‘मतलब, तू चाहती है कि मैं तेरे साथ संबंध बनाऊं और जो बेटा पैदा होगा, उसे मैं ले लूं. पर ऐसा हमारे धर्म में नहीं होता और फिर गांव में पंचायत है, बड़ेबूढ़े हैं, वे सब क्या कहेंगे,’’ मंगलू ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘हूं…’’ रसीली ने बदले में सिर्फ सिर हिलाया.

‘‘पर, मेरे और तेरे मिलन से लड़की भी तो पैदा हो सकती है… फिर?’’

‘‘नहीं, मुझे बेटी नहीं पैदा हो सकती है. शादी से पहले मैं ने एक ज्योतिषी को हाथ दिखाया था और बताया था कि मेरी कोख से सिर्फ लड़के ही पैदा होंगे, लड़कियां नहीं.’’

‘‘अच्छा… तब तो ठीक बात लगती है,’’ मंगलू सोच में डूब गया था.

‘‘अरे, अब ज्यादा सोच मत. जो लड़का मुझे पैदा होगा, वह तेरा ही तो होगा. पर, उसे मैं अपने पास ही रखूंगी. वह तेरी आंखों के सामने ही होगा और फिर तेरे मन में यह भावना भी तो नहीं रहेगी कि तेरे अंदर एक लड़के को जनने की ताकत नहीं है.

‘‘जब भी मैं बुलाऊं, तब मेरे बताए टाइम पर मुझ से मिलने आ जाना,’’ रसीली ने शरारती मुसकान से कहा.

मंगलू रसीली जैसी औरत के न्योते पर मन ही मन खुश हो रहा था और फिर उस के द्वारा पैदा होने वाला एक बेटा उस की मर्दानगी के अहंकार को पोषित भी कर देगा, यह सब सोच कर वह फूला न समाता था.

मंगलू और रसीली अपनी इसी चर्चा में ही मगन थे कि अचानक वहां पर फौजी शमशेर सिंह आ पहुंचा और रसीली के भरे बदन को ताकने लगा.

फौजी को देख मंगलू बिना कुछ बोले अपने रास्ते चला गया और रसीली भी तेज कदमों से अपने घर की ओर भाग गई.

आज खेत से लौटते समय अंधेरा सा होने लगा था. आकाश में काले बादल भी आ गए थे. अचानक से बारिश होने लगी. पास में ही रसीली का घर था. मंगलू ने सोचा कि जब तक बारिश हो रही है, कुछ देर जा कर पनाह ले लूं.

रसीली के ससुर खापी कर सो गए थे. रसीली ने काली साड़ी पहन रखी थी, जिस में से उस का गोरा बदन झलक रहा था और उस पर बारिश की बूंदें रसीली के आकर्षण को और बढ़ा रही थीं.

रसीली को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी और वह मंगलू से जा कर चिपक गई.

मंगलू और रसीली के बीच अब कोई परदा न रहा. रसीली की जवानी में मस्त मंगलू बारबार एक लड़के का बाप बनने की सोच से और उत्साहित हो उठता था, जो रसीली को और भी रोमांचित कर जाता था.

प्रेम गली अति संकरी

कबीर कहते हैं, ‘कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं, सीस उतारे हाथि धरे, सो पैसे घर माहिं.’ उन सस्ते दिनों में भी आशिक और महबूबा के लिए प्रेम करना खांडे की धार पर चलने के समान था. आम लोग बेशक आशिकों को बेकार आदमी समझते होंगे, जो रातदिन महबूबा की याद में टाइम खोटा करते हैं. आशिकों को मालूम नहीं कि प्रेम करते ही सारा जमाना उन के खिलाफ हो जाता है.

गालिब कहते हैं, ‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.’ जिगर मुरादाबादी ने कहा है, ‘इश्क जब तक न कर चुके रुसवा, आदमी काम का नहीं होता.’ अब कौन सही है और कौन गलत, जवानी की दहलीज पर पांव रखने वाले नवयुवक क्या समझें? ये सब उन पुराने जमाने के शायरों की मिलीजुली साजिश का नतीजा था कि लोग प्रेम से दूर भागने लगे थे. मीरा बोली, ‘जो मैं जानती प्रीत करे दुख होय, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोई.’ फिर वही जमाना पलट आया है, जब बच्चों को इस नामुराद इश्क के कीड़े से दूर रहने की सलाह दी जाती है. तभी तो आज फिल्मों में गाने भी इस तरह के आ रहे हैं जैसे, ‘प्यार तू ने क्या किया’, ‘इस दिल ने किया है निकम्मा’, ‘कमबख्त इश्क है जो’.

एक कवि कहता है, ‘प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए.’ दो का अर्थ है 2 रकीब, जो एक ही महबूबा को एक ही समय में एकसाथ लाइन मारते हैं. कवि कहता है कि प्रेम नगर की गली बहुत तंग है. इसे एक समय में एक ही व्यक्ति पार कर सकता है. आशिक और महबूबा का गली में साथसाथ खड़े होना संभव नहीं बल्कि खतरे से खाली नहीं है, वर्जित भी है क्योंकि पड़ोसियों की सोच बहुत तंग है. लड़की के भाई जोरावर हैं और बाप पहलवान है.

इतनी सारी पाबंदियों के चलते दैहिक स्तर पर प्रेम का प्रदर्शन सूनी छत पर तो हो सकता है, गली में नहीं. तभी कवि जोर देता है कि प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए. लोगों का मानना है कि गलियां तो आनेजाने के लिए होती हैं. सभी लोग गलियों में ही प्रेम का इजहार करने लग जाएंगे तो आवकजावक यानी यातायात संबंधी बाधाएं उत्पन्न हो जाएंगी.

प्यार पाना या गवांना इतना उल्लासपूर्ण या त्रासद नहीं जितना प्रेम की राह में किसी अन्य का आ जाना, किसी का आना मजा किरकिरा तो करता ही है, उस के साथ प्यार किसी प्रतियोगिता से कम नहीं रह जाता और इस प्रतियोगिता में सारी बाजी पलटती हुई नजर आती है. सारी उर्दू शायरी रकीब के आसपास घूमती है. नायिका को हर समय यही डर सताता रहता है कि उस ने जो प्रेम का मायाजाल रचा है उस में कोई तीसरा आ कर टांग न अड़ाए.

असली जिंदगी में भी एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं. प्रेम में त्रिकोण का साहित्यिक व फिल्मी महत्त्व भी है. होता यों है कि नायकनायिका प्रेम की पींगे भर रहे होते हैं तभी जानेअनजाने कोई तीसरा आदमी कबाब में हड्डी की तरह पता नहीं कैसे और कहां से टपक पड़ता है. वैसे तो उस के होने से ही कथा में तनाव गहराता है मगर उस का होना जनता को गवारा नहीं लगता. प्रेमी को प्रेमिका से सहज भाव से प्रेम हो जाए, शादी हो जाए और फिर बच्चे हो जाएं तो सारा किस्सा ही अनरोमांटिक हो जाता है. कथा को आगे बढ़ाने के लिए कोई न कोई अवरोधक तो चाहिए ही न. बहुत कम कहानियां ऐसी होती हैं जिन में नायक व नायिका खुद एक दूसरे से उलझ जाते हैं. बात उन के अलगाव पर जा कर खत्म होती है मगर 90 फीसदी कहानियों में बाहरी दखल जरूरी है. इसी हस्तक्षेप के कारण कथा को गति मिलती है व कुछ रोचकता पैदा होती है.

प्रेम में रुकावट के लिए या तो किसी दूसरे आदमी या विलेन या क्रूर समाज की मौजूदगी होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में जितनी बाधाएं होंगी, तड़प उतनी ही गहरी होगी और प्रेम की अनुभूति उतनी ही तीव्र होगी.

प्रेम कथा का प्लाट गहराएगा. लैलामजनूं, हीररांझा, शीरीफरहाद या रोमियोजूलियट जैसी विश्व की महान कथाओं में समाज पूरी शिद्दत के साथ प्रेमियों की राह में दीवार बन कर खड़ा हो गया था. कहीं पारिवारिक रंजिश के चलते तो कहीं विलेन की चालों के कारण 2 लोग आपस में नहीं मिल पाए तो एक बड़ी प्रेम कहानी ने जन्म लिया, जो सदियों तक लोगों को रुलाती रहती है.

कुछ कहानियों में किसी तीसरे की मौजूदगी इस कदर अनिवार्य व स्वीकार्य होती है कि प्रेमी या प्रेमिका उस की खातिर खुद को मिटाने का फैसला कर बैठता है. प्यार में यह अनचाही व बेमतलब की कुरबानी हमारी फिल्मों में सफलतापूर्वक फिट होती है मगर असल जिंदगी में ऐसे त्यागी लोग ढूंढ़े नहीं मिलेंगे.

आदमी की प्रकृति है जलन करना. इस जलन से मुक्ति पाने की कोशिश वैसे ही है जैसे अपनी परछाईं से मुक्त होना. इस जलन का एक दूसरा रूप है जब हम रिश्तों के क्षेत्र में संयुक्त स्वामित्व चाहते हैं यानी जिस से हम प्यार करते हैं उसे कोई दूसरा चाहने लगे तो हमारी ईर्ष्या चरम पर होती है. साहिर लुधियानवी ने इस जलन को क्या खूब बयान किया है, ‘तुम अगर मुझ को न चाहो, तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी…’ इस मुश्किल को आसान बनाने के लिए हमारे फिल्मी निर्देशकों ने कहानी में एक नए तरह के मोड़ को लाने की कोशिश की. नायक या नायिका को किसी दूसरे आदमी के प्रेम की छाया से मुक्त करने के लिए सहानुभूति के कारक की मदद ली गई. नया या पुराना आशिक किसी हालत का शिकार दिखाया जाने लगा. कैंसर या लापता होना या उस की अचानक मौत दिखा कर नायिका के मन में चल रहे द्वंद्व का हल निकाला गया.

नए चेहरे की तलाश : कंचन चली हीरोइन बनने

पूरा हाल ही तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा. प्रैस रिपोर्टरों के कैमरे चमकने लगे. कंचन को ‘नृत्य सुंदरी’ के अवार्ड से नवाजा जा रहा था.

उसी समय भंडारी ने कंचन के पास जा कर बधाई देते हुए कहा, ‘‘मिस कंचन, मैं मुंबई से आया हूं. अगर आप फिल्मों में काम करना चाहें, तो यह रहा मेरा कार्ड. मैं अलंकार होटल में ठहरा हूं.

कंचन के पिता बैंक की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. उन के कोई दूसरी औलाद नहीं थी, इसलिए कंचन का लालनपालन बहुत ही लाड़प्यार से हुआ था. पढ़ाईलिखाई में वह होशियार थी. डांस सीखने का भी उसे शौक था. कदकाठी की अच्छी कंचन रूपरंग में भी खूबसूरत थी.

कंचन के मन में फिल्मी हीरोइन बनने के ख्वाब पहले से ही करवट ले रहे थे. उस ने सोचा भी नहीं था कि फिल्मों में जाने का मौका उसे इतनी जल्दी मिल जाएगा. वह रातभर भंडारी का कार्ड ले कर सोई. अगले दिन दोपहर होतेहोते वह अलंकार होटल पहुंच गई.

‘‘क्या लेंगी… ठंडा या गरम?’’ भंडारी ने पूछा.

‘‘ठंडा लूंगी,’’ कंचन ने कहा.

भंडारी ने वेटर को ठंडा लाने का आर्डर दिया. इस बीच उस ने कंचन को कई एंगल से देखा.

भंडारी ने कंचन की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘मिस कंचन, मैं यहां फिल्मों के लिए नए चेहरे की तलाश में आया हूं. मुश्किल यह है कि जहां भी जाता हूं, वहां नए चेहरों की भीड़ लग जाती है.

‘‘मैं हर किसी को तो हीरोइन बना नहीं सकता, जिस में टेलैंट होगा, वही तो फिल्मों में आ सकेगा…’’

‘‘मेरे बारे में आप की क्या राय है?’’ कंचन ने शरमाते हुए भंडारी से पूछा.

भंडारी ने कहा, ‘‘तुम्हारा गोराभूरा भरा हुआ बदन है. फिगर भी अच्छी है. तुम्हारे मुसकराने पर गालों में जो ये गड्ढे बनते हैं, वे भी लाजवाब हैं. डांस में तो तुम होशियार हो ही. रही ऐक्टिंग की बात, तो ऐक्टिंग  टे्रनिंग जौइन करवा दूंगा.’’

भंडारी को लगा कि चिडि़या फंस रही है. उस ने कंचन की ओर देखते हुए फिर कहा, ‘‘मिस कंचन, मुझ पर भरोसा रखो. मैं आज रात को मुंबई जा रहा हूं. 2 दिन बाद मेरे इस पते पर आ जाना. साथ में कोई ज्यादा सामान लाने की जरूरत नहीं है. वहां मैं सारा इंतजाम कर दूंगा. अभी तुम अपने घरपरिवार या फिर यारदोस्त को भी मत बताना.’’

कंचन के ऊपर भंडारी की बातों का जादू की तरह असर हुआ. वह अभी से अपनेआप को फिल्मी हीरोइन समझने लगी थी. उस ने मन ही मन तय किया कि वह मुंबई जरूर जाएगी. रही मांबाप की बात, तो ढेर सारी दौलत आने के बाद सब ठीक हो जाएगा.

आज भंडारी को गए तीसरा दिन था. कंचन ने चुपचाप मुंबई जाने की तैयारी कर ली. स्टेशन पर पहुंचते ही उस ने भंडारी को फोन कर दिया कि वह सुबह की गाड़ी से मुंबई आ रही है. भंडारी ने उसे दादर स्टेशन पर मिलने के लिए कहा.

कंचन पहली बार मुंबई आई थी. दादर स्टेशन पर उतरते ही उसे भंडारी मिल गया. स्टेशन के बाहर निकलते ही भंडारी ने कंचन को कार में बैठाया और कार तेजी से चल दी.

भंडारी कंचन को एक आलीशन बंगले में ले गया. कंचन की आंखें भी उस बंगले को देख कर चौंधिया गईं.

भंडारी ने कहा, ‘‘मिस कंचन, आप थकी हुई हैं. नहाधो कर आराम कीजिए. मैं शाम 7 बजे आऊंगा.’’

शाम को 7 बजे से पहले ही भंडारी आ गया. उस ने कंचन को बड़े ध्यान से देखा और बोला, ‘‘मिस कंचन, वैसे तो सब ठीक है. पर तुम्हें यहां कुछ खास लोगों से मिलना होगा. पहनने को कुछ बढि़या कपड़े भी चाहिए… वैसे, मैं खरीदारी करवा दूंगा.

‘‘आज एक खास आदमी से तुम्हारी मुलाकात करानी है. मिस्टर कापडि़या फिल्म इंडस्ट्री की जानीमानी हस्तियों में से एक हैं. वे दर्जनों फिल्में बना चुके हैं. बहुत ही कामयाब फिल्मकार हैं.’’

भंडारी ने कंचन को गाड़ी में बैठाया और थोड़ी ही देर में वे समुद्र किनारे बने होटल स्टार में जा पहुंचे.

कापडि़या वहां पहले से मौजूद था. भंडारी ने कंचन का परिचय कराया. कापडि़या कंचन को देख कर बहुत खुश हुआ. एक अनछुई कली उसे मिलने वाली थी.

कापडि़या ने भंडारी से कहा, ‘‘क्या लेंगे… ठंडा या गरम?’’

भंडारी ने कहा, ‘‘कल की होने वाली हीरोइन हमारे सामने है. आज तो कुछ यादगार पार्टी हो जाए. आज का मीनू मिस कंचन की पसंद का होगा.’’

कंचन ने केवल ठंडा पीने की हामी भरी.

‘‘ठीक है, आज हम भी मिस कंचन की पसंद का ही ड्रिंक लेंगे.’’

कापडि़या ने वेटर को ठंडा सोफ्ट ड्रिंक लाने का आर्डर दिया. थोड़ी ही देर में वेटर ने टेबल पर ड्रिंक सजा दिया.

भंडारी ने गिलास में ड्रिंक डालते हुए कहा, ‘‘मिस कंचन, यह फिल्मी दुनिया है. यहां कुछ ज्यादा ही दिखावा करना पड़ता है. सामने देखो, फिल्मी हस्तियां बैठी हुई हैं. अपना मनोरंजन तो कर रही हैं, साथ ही अपने हावभाव से दूसरों को भी लुभा रही हैं.’’

कंचन ने एक बार फिर होटल में उफनते हुए मादक माहौल को देखा. वहां की बातचीत और हवा में अजीब सी गंध  तैर रही थी. तीनों लोग ठंडा पीने लगे. इसी बीच भंडारी ने कंचन के गिलास में एक पुडि़या घोल दी, जिसे कंचन नहीं देख सकी.

कापडि़या ने कंचन को तिरछी नजरों से देखा और कहा, ‘‘मिस कंचन, हम लोग फिल्मों में करोड़ों रुपए लगाते हैं. किसी नए कलाकार के लेने में रिस्क होता है. बैडरूम सीन भी लेने पड़ते हैं.

‘‘अगर नया हीरो उस सीन को करने में शरमा गया, तो अपना बेड़ा गर्क समझो, इसलिए हम बहुत सोचसमझ कर किसी नए हीरो को लेते हैं.’’

कंचन ने सोचा, ‘मुश्किल से मुझे यह मौका मिला है. अगर अपने भरोसे से इन्हें नहीं जीता, तो काम नहीं बनेगा…’

अचानक कंचन को अपना सिर भारी सा लगा. जगमगाती रोशनी नाचती सी दिखी. उस ने भंडारी से कहा, ‘‘मेरा सिर चकरा रहा है. मुझे नींद सी आ रही है. मैं अब बैठी नहीं रह सकूंगी.’’

भंडारी ने कापडि़या की ओर देखा और कहा, ‘‘चलो, हम लोग चलते हैं. कल स्क्रिप्ट पर चर्चा करेंगे.’’

भंडारी ने कंचन को सहारा दिया और होटल के बाहर खड़ी कार तक लाया. कंचन पर पुडि़या का पूरा असर हो गया था.

कंचन को साथ ले कर भंडारी कापडि़या के साथ बैठ गया. वे गाड़ी को सीधे एक कोठी पर ले गए. कंचन पूरी तरह बेसुध थी.

सुबह जब कंचन की नींद खुली, तो उस का बदन दर्द के मारे फटा जा रहा था. वह समझ गई कि उस के साथ धोखा हुआ है. अब पछतावे के सिवा वह कर भी क्या सकती थी… घर तो वापस जाने से रही. वह तकिए में मुंह छिपा कर सिसकती रही.

शाम होते ही मिस्टर कापडि़या दोबारा कमरे में आया.

‘‘हैलो मिस कंचन, कैसी हो? तुम्हारे लिए जल्द ही एक फिल्म शुरू कर रहा हूं. फिल्म के फाइनैंसर जयंत भाई आए थे. सभी बातें तय हो गई हैं. चलो, तुम्हें कुछ खरीदारी करवा दूं. हमारी नई हीरोइन जल्द ही बुलंदियों को छूने वाली है.’’

कंचन बेमन से उठी. उसे फिल्म में हीरोइन बनने का सपना बारबार खींच रहा था. कंचन ने भंडारी के बारे में पूछा, तो कापडि़या ने कहा कि वह फिल्म की लोकेशन देखने बाहर गया है. इस फिल्म की शूटिंग विदेशों में भी होगी.

कंचन जब रात को लौटी, तो उस के पास नए फैशन के कपड़े थे. वह अपनेआप को फिल्मी हीरोइन समझने लगी थी. इसी तरह कापडि़या के साथ पूरा महीना निकल गया. वह रोज रात को मिस्टर कापडि़या के साथ सोती.

एक दिन कापडि़या ने कंचन से कहा, ‘‘मिस कंचन, मैं फिल्म के सिलसिले में बाहर जा रहा हूं. इस बीच जयंत भाई आएंगे. वही फिल्मी टे्रनिंग भी दिलवाएंगे. मेरे लौटने पर फिल्म का भव्य मुहूर्त होगा.’’

जयंत भाई भी कंचन को फिल्मी ख्वाब दिखाते रहे. इस बीच न तो भंडारी लोकेशन देख कर लौटा और न ही कापडि़या अमेरिका से. जो खेल कापडि़या उस के साथ खेलता रहा था, वही खेल जयंत भाई ने भी खेला.

मुंबई आने पर कंचन पहली बार 3 दिन तक अकेली रही. दोपहर का समय था. वह चिंता में डूबी एक मैगजीन पलट रही थी कि बाहर की घंटी बजी.

कंचन ने दरवाजा खोला, तो दरवाजे पर कुछ दादाटाइप लोग खड़े थे. उन्होंने कंचन से कहा, ‘‘मैडम, यह कोठी खाली कीजिए. इस का एग्रीमैंट खत्म हो गया है… किराए पर थी.’’

‘‘मैं कहां जाऊं…? यहां तो मेरा कोई भी नहीं है. मिस्टर कापडि़या और जयंत भाई को आ जाने दीजिए.’’

‘‘कापडि़या और जयंत भाई अब कभी नहीं आएंगे.’’

‘‘और भंडारी…?’’

‘‘देखिए मैडम, भंडारी आप को कहां मिलेगा… वह तो नए चेहरे की तलाश में पूरा हिंदुस्तान घूम रहा होगा.’’

‘‘देखिए, मुझे कुछ तो समय दीजिए. यहां मेरा कोई नहीं है. अपना कुछ इंतजाम करती हूं. आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ठीक है, हम 24 घंटे का समय देते हैं. कल इसी समय आएंगे. अगर यहां से नहीं जाओगी, तो धक्के मार कर तुम्हें बाहर निकाल देंगे. यह मुंबई है मुंबई. ध्यान रखना मैडम.’’

कंचन के पैरों से जमीन खिसक गई. उसे ध्यान आया कि इस बीच मिस रीटा से उस की मुलाकात हुई थी. उस ने कहा था कि जब जरूरत हो, मुझे याद करना. रीटा का कार्ड उस के पर्स में था. उस ने फोन किया, ‘‘मैं कंचन बोल रही हूं.’’

‘ओह, कंचन, कैसी हो? बोलो, क्या बात है?’

कंचन ने रोतेरोते फोन पर सारी बात बता दी.

रीटा ने कहा, ‘मैं जानती थी कि एक दिन तुम्हारे साथ भी वही होगा, जो मेरे साथ हुआ था. ये अच्छेभले घर की लड़कियों को फिल्मी दुनिया के ख्वाब दिखाते हैं. तुम्हारी तरह मैं भी इन के चंगुल में फंस गई थी. हीरोइन तो नहीं बन सकी, लेकिन कालगर्ल जरूर बन गई.

‘मैं ने भंडारी के साथ तुम्हें पहले दिन ही देखा था. मुझे भी यही भंडारी का बच्चा हीरोइन बनाने के लिए लाया था. अब मैं घर की रही न घाट की.

‘तू ऐसा कर, मेरे पास आजा और मेरी रूम पार्टनर बन जा. शाम 7 बजे मुझे कहीं निकलना है. फोन पर फोन आते हैं. …समझ गई न, फिल्मी सिटिंग पर चलना है.

‘मेरी और तुम्हारी जैसी न जाने कितनी ही लड़कियां इस मायानगरी में आ गईं और कितनी ही आने वाली हैं. यह सिलसिला कब रुकेगा, कहा नहीं जा सकता.

‘आज भी मिस्टर भंडारी जैसे कई दलाल फिल्मी हीरोइन बनाने के लिए नए चेहरों की तलाश में हैं. मिस्टर कापडि़या और जयंत भाई भी नए चेहरों को ले कर फिल्म बना रहे हैं, लेकिन इन की फिल्म आज तक नहीं बनी.’

चाहत : संगीता ने राजा को चुना या सुनील को?

राजा संगीता के पीछे पड़ा रहता. संगीता की चाहत में उस ने अपनेआप को भुला डाला था. अगर राजा से कोई संगीता के बारे में पूछता, तो उस का एक ही जवाब होता, ‘‘तुम जानो, मुझे क्या पता?’’

अब तक की अपनी जिंदगी में राजा ने किसी भी लड़की की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा था और जब उस ने देखा, तो अपना सबकुछ सौंप दिया.

संगीता में गजब का खिंचाव था. वह खूबसूरत तो थी ही. गोल चेहरा, दूधिया रंग, हिरनी सी आंखें, गुलाब जैसे गुलाबी होंठ, बुलबुल की तरह की चाल, नागिन की तरह बलखाते काले बाल, जवानी से भरापूरा बदन. कहने का मतलब यह कि खूबसूरती का दूसरा नाम था संगीता. इतनी सारी खूबियां हर जवां दिल को हलचल में डालने के लिए काफी थीं. शायद राजा भी इन्हीं तीरों का निशाना बन गया था.

लेकिन संगीता ने राजा में कोई दिलचस्पी नहीं ली. जब भी राजा ने संगीता का दिल जीतने की कोशिश की, उसे नाकामी ही हाथ लगी, क्योंकि वह मन ही मन राजा से चिढ़ती थी. लेकिन राजा ने कभी गलत कदम नहीं उठाया और उस के इस तरह से मुंह मोड़ कर जाने का कभी उस ने बुरा भी नहीं माना.

राजा रात को पड़ापड़ा अपने एकतरफा प्यार के लंबेलंबे सपने बनाता, पर उस के सारे सपने मानो महाप्रलय में हाथपैर पीट रहे हों.

जब आखिरकार दिल नहीं माना, तब राजा ने एक दिन हिम्मत कर के संगीता के सामने अपने दिल को खोल कर रख दिया, ‘‘संगीता, मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी जिंदा नहीं रह सकता. मैं तुम से बेइंतिहा प्यार करता हूं. तुम्हारे प्यार में मेरा क्या हाल है, यह तुम खुद देख सकती हो,’’ कह कर राजा ने अपराधी की तरह नजरें ?ाका लीं.

‘‘मैं सब जानती हूं राजा…’’ संगीता पहली दफा राजा को गौर से देख रही थी. उस ने आगे कहा, ‘‘तुम मु?ा से प्यार करते होगे, लेकिन मैं तुम से प्यार नहीं करती, क्योंकि मैं किसी और को चाहती हूं.

‘‘तुम जानते हो कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं, इसलिए तुम बेवजह अपना दिल मत जलाओ.’’

राजा ने भीगी पलकों से उसे देखा और गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ऐसा मत कहो संगीता. तुम न सही, तुम्हारे दर्शन तो मिला करेंगे? जिंदगीभर तुम्हें इसी तरह देखदेख कर जिंदगी काट लूंगा. क्या तुम मुझे इतना भी हक नहीं दोगी?’’

राजा की बातों को सुन कर संगीता कुछ नहीं बोली और अपने रास्ते पर आगे बढ़ गई. राजा निराश हो गया. उसे ऐसा लगा, जैसे उस का दिल कांच की तरह टुकड़ेटुकड़े हो कर बिखर गया है. उस की सांसें थमने सी लगी हैं.

‘‘रुको संगीता…’’ अपनी समूची ताकत के साथ राजा बोला, तो संगीता के उठते कदम एकदम जहां के तहां रुक गए, ‘‘इतना तो बताती जाओ कि वह खुशनसीब कौन है, जिसे तुम्हारा प्यार मिल रहा है?’’ उस ने एक ही सांस में कह डाला.

‘‘सुनील,’’ कह कर बगैर पीछे देखे ही संगीता तेजी से बढ़ गई और पलभर में ही वह राजा की आंखों से ओझल हो गई. संगीता के प्रेमी का नाम जानते ही राजा के दिमाग की घंटियां बज उठीं.

वैसे तो सुनील में कोई कमी नहीं थी. देखने में खूबसूरत, हट्टाकट्टा जवान था, लेकिन हर चमकने वाली चीज सोना नहीं हुआ करती है. यह मुहावरा सुनील पर फिट बैठता, क्योंकि सुनील का चरित्र ठीक नहीं था. उस ने न जाने कितनी ही भोलीभाली मासूम लड़कियों को बरबादी के कगार पर पहुंचा दिया था.

काफी देर तक राजा विचारों में खोया रहा. उस ने सोचा कि वह संगीता को सुनील की असलियत बता देगा, लेकिन उस के दिल ने ही इस का विरोध किया कि संगीता उस की एक भी बात नहीं मानेगी. उलटे उसे ही छलिया, फरेबी कहेगी.

‘‘हैलो सुनील…’’ संगीता ने दूर से ही पार्क में बैठे सुनील को संबोधित किया, जो अपने 3-4 दोस्तों के साथ किसी खास मुद्दे पर बात करने में मशगूल था.

‘‘हैलो डार्लिंग…’’ सुनील भी जवाब में मुसकराया और बोला, ‘‘प्लीज संगीता, तुम कुछ देर वहीं बैठो. मैं अभी बात कर के आता हूं.’’ संगीता चहकती हुई किसी आज्ञाकारी नौकर की तरह वहीं बैठ गई.

सुनील के दोस्त संगीता को कामुक नजरों से देख रहे थे. एक दोस्त ने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा, ‘‘यार सुनील, चिडि़या तो गजब की फंसाई है. इस से खेलने को दिल करता है.’’

‘‘अबे अक्ल के दुश्मनो…’’ सुनील ने कहा, ‘‘क्या तुम जानते हो कि शिकारी चिडि़या का शिकार कैसे करता है? पहले अनाज के दाने डालता है, फिर जाल बिछाता है और उस के बाद धीरेधीरे जाल समेटता है. समझे.’’जोरदार हंसी के ठहाके से पार्क गूंज उठा.

‘‘वाह, मान गए सुनील भाई,’’ एक ने दाद दी.

हंसी संगीता ने भी सुनी थी, लेकिन वह इस के मतलब से अनजान थी.

सुनील ने संगीता को सच्चे दिल से कभी प्यार नहीं किया. वह तो उसे केवल खिलौना सम?ाता रहा.

उस दिन के बाद राजा के दिल में एक कसक सी भर गई. कसक इस बात की नहीं थी कि उसे संगीता का प्यार नहीं मिला, बल्कि इस बात की थी कि वह संगीता की जिंदगी के हरेभरे बाग को उजड़ने से कैसे बचाए? क्या वह संगीता के सामने सुनील के गलत कामों का कच्चाचिट्ठा खोल कर रख दे. पर उस के सामने एक ही समस्या थी कि वह संगीता को सचाई से कैसे परिचित कराए.

एक दिन संगीता ने जैसे ही सुनील के कमरे में कदम रखा, अंदर का नजारा देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. डर से उस के पैर कांप गए, क्योंकि सुनील अपने 2 दोस्तों के साथ शराब पी रहा था.

‘‘सुनील, तुम शराब पीते हो?’’ कांपते होंठों से संगीता ने पूछा.

सुनील के दोस्तों ने कामुक नजरों से संगीता को देखा. उस के उभरे अंगों को निहारा और होंठों पर जहरीली मुसकान लाते हुए एक ने कहा, ‘‘यार सुनील, शराब के साथ सुंदरी का भी जुगाड़ हो गया. अब तो मौज आएगी.’’

उन सब के ठहाकों से कमरा गूंज गया. संगीता के सामने सुनील का असली चेहरा आ गया था. उसे गुस्सा तो बहुत आया कि इस बेवफा का मुंह नोच डाले, मगर किसी तरह वह अपने गुस्से को पी गई.

तभी एक बदमाश ने उठ कर दरवाजे की कुंडी चढ़ा दी. दरवाजा बंद होते ही संगीता के चेहरे का रंग उड़ गया.

सुनील बेहूदा हंसी हंसते हुए मुसकराया, ‘‘अरे, इस में डरने की क्या बात है? हम कोई गैर थोड़े ही हैं. तुम मेरी माशूका हो न. हो न डार्लिंग?’’

सुनील के मुंह से शराब की बदबू आ रही थी.

‘‘जानेमन, हमें इस मतवाली जवानी का मजा चख लेने दो,’’ सुनील ने संगीता की कलाई पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचा.

‘चटाक…’ अगले ही पल सुनील के गाल पर संगीता का झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा, तो वह तिलमिला गया.

लेकिन एक अकेली लड़की उन तीनों से कब तक लड़ती? आखिर वह हार गई. उस ने उन दरिंदों से अपनी इज्जत की भीख मांगी, पर सब बेकार रहा. वह बेचारी लुट गई थी. जिसे अपनी जवानी का रक्षक समझ था, वह भक्षक निकला और उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला.

तभी राजा वहां आ पहुंचा और जैसे ही वह दरवाजे के करीब पहुंचा, उसे अंदर से किसी औरत के चीखने की आवाज सुनाई दी. आवाज पर गौर किया तो सन्न रह गया, क्योंकि यह तो यकीनन संगीता की चीख है.

दरवाजे को ढकेलने की कोशिश की, तो पाया कि वह अंदर से बंद है. जब भीतर जाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया, तो उस ने दरवाजा तोड़ने का मनसूबा बनाया और इस में कामयाब भी हो गया.

राजा को अचानक देख कर वे तीनों ही संगीता को छोड़ कर पीछे हट गए. डरीसहमी संगीता जल्दीजल्दी अपने उघड़े बदन को ढकने लगी.

यह सब देख राजा की त्योरियां चढ़ गईं और वह तीनों बदमाशों से भिड़ गया. इस मारामारी में राजा के सिर पर चोट आ गई. उसे लहूलुहान देख सुनील और उस के साथी वहां से फरार हो गए.

इस घटना के थोड़ी देर बाद कुछ और लोग भी घटना वाली जगह पर पहुंच गए. उन्होंने राजा को अस्पताल भिजवाया. उस के साथ संगीता भी गई. उस ने पुलिस में सुनील और उस के दोस्तों के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया और राजा की सेवा में जुट गई. उस ने अब बगले और हंस को पहचान लिया, पर उस का दिल धड़क रहा था.

कुछ घंटे बाद जब राजा को होश आया, तो वह वहां संगीता को देख अचरज में डूब गया. संगीता ने राजा को घूरते देख अपना चेहरा ?ाका लिया. लाज से उस का चेहरा लाल हो गया था.

‘‘संगीता…’’ राजा ने धीरे से कहा, ‘‘इस तरह दिल छोटा मत करो. जो हो गया, उसे भूल जाओ. आज से तुम अपनी नई जिंदगी की शुरुआत समझे.’’

राजा की बातों को सुन कर संगीता रो पड़ी और बोली, ‘‘मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है, सबकुछ लुट चुका है. अब तो मौत ही मु?ा कलंकिनी की जिंदगी सुधार सकती है.’’

‘‘किसी ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है संगीता…’’ राजा ने उस की कलाई पकड़ी और बड़े प्यार से कहा, ‘‘तुम वही संगीता हो, जो पहले थी. अब भी मैं तुम से उतना ही प्यार करता हूं, जितना आज से पहले करता था.’’

‘‘सच राजा,’’ संगीता ने राजा को फटी आंखों से देखा.

‘‘हां संगीता, बल्कि पहले से भी ज्यादा मैं तुम्हें चाहने लगा हूं, क्योंकि पहले तुम्हारा दिल किसी और के पास था,’’ राजा ने संगीता की आंखों में देखा.

संगीता को सच्चा मोती मिल गया था. उस की लुटी हुई सारी खुशियां जैसे फिर उस की ?ोली में आ गई थीं. यह राजा की सच्ची चाहत थी.

 

प्यार का पहला खत: सौम्या के दिल में उतरा आशीष

मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधरउधर देखे जा रही थी क्योंकि वह मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था या यों कहें वह कहीं छिप गया या वहां से दूर भाग चुका था. शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने उस से किताब ले ली थी. सच कहूं तो वह काफी समय से मुझे इंप्रैस करने में लगा हुआ था. हालांकि कभी कुछ कहा नहीं था और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस सब्जैक्ट की किताब की जरूरत है तो न जाने कहां से फौरन उस किताब को अरेंज कर के मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था.

मैं ने उस समय तो वह किताब पकड़ ली थी लेकिन अब उस के छिप जाने या गायब हो जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बैंच पर बैठ गई. वहां पर कुछ लोग जौगिंग कर रहे थे और वे मेरे आसपास ही घूम रहे थे. मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देख कर वे सब मेरे और करीब आ रहे हैं. खैर, हर तरफ से मन हटा कर मैं ने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफेद प्लेन पेपर मेरे हाथों के पास आ कर गिर पड़ा. न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इस में. फिर भी झुक कर उसे उठाया और खोल कर चैक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था.

मैं खुद को ही गलत कहने लगी. वह तो एक समझदार लड़का है और मेरी हैल्प करना चाहता है, बस. मैं ने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफेद प्लेन पन्ना सरक कर गिर पड़ा. इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी. पार्क में मौजूद आधे लोग पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे और बचेखुचे लोग भी अपनी सेहत पर ध्यान देने के बजाय मेरी ओर निहार रहे थे.

‘‘क्या हुआ सौम्या?’’ अचानक से आशीष दौड़ कर मेरे पास आ गया. वह मेरे चीखने की आवाज सुन कर काफी घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘कुछ नहीं, बस इस घास के कीड़े से डर गई थी. यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था,’’ उस ने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा.

‘‘तुम बहुत डरती हो सौम्या. इस नन्हे से कीड़े से ही डर गईं. देखो, वह तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया,’’ आशीष मुसकराते हुए बोला.

सौम्या भी थोड़ा झेंपते हुए मुसकरा दी.

‘‘तुम अभी तक कहां थे आशीष? मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचानक कहां से आ गए?’’

‘‘अरे पागल, मैं तो यहीं पर था, जौगिंग कर रहा था.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम यहां रोज आते हो?’’

‘‘हां और क्या. तुम्हें क्या लगा आज तुम्हारी वजह से पहली बार आया हूं?’’

‘‘नहींनहीं. ऐसा नहीं है, मैं ने यों ही पूछा.’’

‘‘चलो, अब मैं घर आ जा रहा हूं. तुम आराम से इस किताब को पढ़ कर वापस कर देना,’’ आशीष बिना कुछ कहे व रुके वहां से चला गया.

‘कितना बुरा है आशीष, बताओ उस ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि तुम साथ चल रही हो?’ उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किताब दे कर उस पर कोई एहसान कर के गया है.

मैं उदास होे घर की तरफ वापस चल पड़ी. मन में उस के लिए न जाने क्याक्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला.

घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा. कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा?

ओह, यह आज मेरे मन को क्या हो गया है. उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं. अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी. थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा.

वह मां के पास आ कर बैठ गई.

‘‘तुम आ गई सौम्या बेटा?’’

‘‘हां मा.’’

‘‘बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कौपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है. वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई.

लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की. उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं. शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं.

सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए.

आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. येलो कलर की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब उसे ही देख रहे थे. उसे लगा आज तो पक्का आशीष उस से बात करेगा. लेकिन पूरी पार्टी निकल गई पर आशीष ने एक बार भी उस की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा. अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था.

गुस्से और रोने के समय अकसर सौम्या के चेहरे पर लालिमा आ जाती है जो उस की सुंदरता में इजाफा कर देती है. वह यों ही कालेज गेट से बाहर निकल कर आ गई. अचानक से लगा कि कोई उस के पीछे आ रहा है. कौन हो सकता है, मन में थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा.

वह एकदम से सौम्या के सामने आ गया.

‘‘ओह आशीष तुम, मैं तो एकदम घबरा ही गई थी,’’ उस का दिल वाकई में घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था.

वह कुछ नहीं बोला, फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘यह सर ने आप के लिए भिजवाया है.’’

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘आप की ड्रैस के लिए शायद बैस्ट कौंप्लिमैंट्स हैं.’’

उस के चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वह सच ही कह रहा है, क्योंकि उस के चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिस से लगे कि वह मजाक कर रहा है. उस वक्त अचानक से उस के मन में यह खयाल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो.

‘‘सौम्या, अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं? आज मैं अपने पापा की कार ले कर आया हूं,’’ आशीष ने उसे जाते देख कर कहा.

उस ने बिना देर किए फौरन सिर हिला दिया था क्योंकि वह आशीष के साथ थोड़ी सी देर का साथ भी गंवाना नहीं चाहती थी. ड्राइविंग सीट पर बैठे आशीष के चेहरे को सौम्या बराबर पढ़ती रही पर उस पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिस से अनुमान भी लगाया जा सके कि उस के दिल में कोई कोमल भावना भी है.

सौम्या का घर आ गया था और वह उतर गई. उस ने आशीष से कहा, ‘‘आशीष घर के अंदर नहीं आओगे?’’

‘‘नहीं, आज नहीं फिर कभी. आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है.’’

‘ओह, कितना खड़ूस है यह, इस की नजर में उस की कोई वैल्यू ही नहीं. मैं ही पागल हूं, जो इस से एकतरफा प्यार कर रही हूं. आज से इस के बारे में सोचना बिलकुल बंद.’ उस ने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था. चाहे कैसे भी हो, मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा.

चलो, अब कभी उस का नाम ले कर उसे याद नहीं करूंगी. मैं मुसकराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गई. आईने के सामने खड़े हो कर खुद को निहारा. मन में उदासी का भाव आया. उस की वजह से ही तो इतना सजसंवर के गई थी. खैर, अब छोड़ो. उस ने हाथ में पकड़े लिफाफे को बैड पर रखा और कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने लगी.

‘चलो, पहले इस लिफाफे को ही खोल कर देख लूं, सर ने न जाने क्या लिखा होगा?’ बेमन से उस को खोला.

उस में से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा. ओह, यह तो आशीष की बदतमीजी है.

आज उसे फोन कर के कह ही देती हूं कि उसे इस तरह का मजाक पसंद नहीं है.

गुस्से में आ कर वह फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गई.

वह निकाल कर पढ़ने के लिए खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई.

मम्मी को भी अभी ही आना था.

‘‘बेटा, जरा मार्केट तक जा रही हूं, कुछ मंगाना तो नहीं है?’’

‘‘नहीं मम्मी, कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘चलो, ठीक है.’’

मम्मी के जाते ही उस ने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया, ‘प्रिय सौम्या, के संबोधन के साथ शुरू हुआ वह पत्र तुम्हारा आशीष के साथ खत्म हुआ. उस के बीच में जो लिखा था वह उसे खुशी से झुमाने के लिए काफी था. वह भी मुझे उतना ही प्यार करता था. वह भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था. वह भी कुछ कहने को तरसता था. वह भी मेरा साथ पाना चाहता था. लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूं. उस के प्यार को अस्वीकृत न कर दूं.

वाकई वह मुझे सच्चा प्यार करता है, तभी तो कभी उस ने मेरे हाथ तक को एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आए थे. वह खुशी से झूम उठी. एक बार खुद को आईने में निहारा और अब वह खुद पर ही मोहित हो गई और उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘आई लव यू, आशीष.’’

उस की आंखों के सामने आशीष का मुसकराता चेहरा था और अब वह शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ कर के जमीन को देखने लगी थी. आखिर, उस के सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गई थी.

यादों के सहारे : प्यार की अनोखी दास्तां

‘‘ तुम ने यह क्या फैसला कर लिया जेबा?’’ कार रोकते हुए प्रेम ने जेबा से पूछा.

‘‘इस के अलावा मैं और कर भी क्या सकती थी. मैं ने कोई गलत फैसला तो नहीं किया न?’’ प्रेम के करीब ही पार्क की नरम घास पर बैठते हुए जेबा ने जवाब दिया.

‘‘देखो जेबा, सवाल गलत और सही का नहीं, तुम्हारी जिंदगी का है.’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं?’’

‘‘हम इस शहर के बाहर चल कर कहीं शादी कर लेंगे.’’

‘‘हम चाहे कहीं भी जाएं, यह जालिम दुनिया वाले तो वहां होंगे ही. वैसे भी मेरे मांबाप चाहे जैसे भी हों, मैं उन के साथ धोखा नहीं कर सकती. मैं तुम्हारी यादों के सहारे जिंदगी गुजार दूंगी. किसी और मर्द से तो शादी कर ही नहीं सकती हूं, क्योंकि यह उस के साथ नाइंसाफी होगी. हां, तुम्हें पूरी इजाजत है, तुम जिस लड़की को पसंद करो, उस से शादी कर लेना.’’

‘‘तुम ने मुझे इतना नीच समझ लिया है जेबा…’’ दुखभरे शब्दों में प्रेम बोला, ‘‘तुम अगर अपने मांबाप के भरोसे को नहीं तोड़ सकती, तो मैं भी तुम्हारी तरह हमेशा कुंआरा ही रहूंगा. लेकिन मेरी एक इल्तिजा है. मुझ से कभी दूर मत होना, हमेशा मिलती रहना.’’

तब तक सूरज डूब चुका था. वे दोनों वहां से उठ गए. हमेशा हंसतीबोलती रहने वाली जेबा भी चुप थी रास्तेभर.

जेबा रहमान सांवले रंग, बड़ीबड़ी आंखों और खूबसूरत देह की धनी थी. वह अपने मांबाप की लाड़ली बेटी थी. उस से बड़ा एक भाई और था. उस के पिता यूनिवर्सिटी के जानेमाने प्रोफैसर थे.

जेबा और प्रेम ने एक ही स्कूल से मैट्रिक किया था. दोनों पढ़ाई में बहुत होशियार थे. मैट्रिक के बाद दोनों अलगअलग कालेजों में भरती हुए थे. जेबा ने आर्ट्स चुना था और प्रेम ने साइंस. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते थे.

बीए के बाद जेबा के मांबाप उस से शादी की जिद करने लगे. जेबा ने प्रेम का नाम लिया तो उन लोगों ने हिंदू लड़के का नाम सुनते ही कयामत खड़ी कर दी और उस की शादी प्रेम से करने से साफ इनकार कर दिया.

मांबाप ने जेबा के लिए उस की सहेली रूबीना के भाई यूसुफ को पसंद किया था, जो डाक्टर था और जेबा को चाहता भी था. लेकिन जेबा ने इस शादी से इनकार कर दिया और अपनी मां से कहा, ‘‘मैं शादी करूंगी तो सिर्फ प्रेम से, वरना जिंदगीभर कुंआरी रहूंगी.’’

उस के मांबाप ने उसे बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस ने एमए में दाखिला ले लिया.

समय बीतता गया. प्रेम इंजीनियर बन चुका था और जेबा लैक्चरर. लेकिन वे अब भी मिलते और एकदूसरे का दुख बांटते रहे.

एक बार जेबा ने प्रेम से कहा था, ‘‘मैं चाहती हूं, मेरा दम तुम्हारी ही बांहों में निकले.’’

तब प्रेम ने भी कहा था, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ अपनी जान दे दूंगा. तुम्हारे बगैर मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

प्रेम का तबादला दूसरे शहर में हो गया. फिर भी वह हर महीने आता और जेबा से मिलता था.

एक बार जब वह आने वाला था. जेबा के किसी रिश्तेदार की शादी थी, जहां वह अपने मांबाप और भाईभाभी के साथ गई थी. जेबा को मालूम था कि आज प्रेम आने वाला है, इसलिए वह सिर्फ दावत में शामिल हो कर तबीयत खराब होने का बहाना बना कर कार से आ रही थी.

जेबा प्रेम के खयालों में खोई हुई थी. कार पूरी रफ्तार से चल रही थी और सामने आते हुए ट्रक से टकरा गई. जेबा के होशोहवास गुम हो गए. वह बेहोश हो चुकी थी.

इधर प्रेम जेबा के घर पर उस का इंतजार कर रहा था. वहां सिर्फ नौकर ही था, तभी फोन की घंटी बज उठी. उस ने लपक कर रिसीवर उठा लिया.

दूसरी तरफ से आवाज आई कि जेबा का कार चलाते हुए एक्सिडैंट हो गया है. वह सदर अस्पताल में भरती

है. उस के सिर और बाएं पैर में बहुत चोट आई है और खून भी बहुत निकल चुका है.

जेबा के पर्स से विजिटिंग कार्ड मिला था. उसी से उस के फोन नंबर का पता चला था, जिस पर बचाने वाले ने फोन किया था. सारी बात नौकर को बता कर प्रेम अस्पताल की ओर लपका.

जेबा अब तक बेहोश थी. डाक्टर ने प्रेम से कहा, ‘‘2 बोतल खून की सख्त जरूरत है. एक बोतल का इंतजाम तो अस्पताल में हो जाएगा, एक बोतल का आप करें. इन का ग्रुप ओ नैगेटिव है.

इस ग्रुप का खून बहुत मुश्किल से मिलता है.’’

‘‘ओ नैगेटिव, मैं भी तो इसी ग्रुप का हूं, आप मेरा खून ले लें डाक्टर, लेकिन जेबा को बचा लें.’’

तब तक जेबा के मांबाप और रिश्तेदार भी आ गए. वे लोग एक अजनबी को खून देते देख हैरान थे. उस का भाई प्रेम की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगा.

प्रेम ने उसे एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन के कोई नाम नहीं होते, लेकिन ये बेनाम रिश्ते और रिश्तों से ज्यादा मजबूत होते हैं. मेरा भी जेबा से ऐसा ही रिश्ता है.’’

तभी जेबा को होश आ गया. उस ने आंखें खोल कर सब को देखा. उस की नजर प्रेम पर कुछ देर टिकी और उस ने आंखें बंद कर लीं.

सुबहशाम अस्पताल आना और जेबा को देखना प्रेम का रोजाना का काम हो गया था. जेबा की हालत में कुछ सुधार हो रहा था, लेकिन उस के पैर को डाक्टरों को काटना पड़ा था.

एक शाम जब प्रेम जेबा को देखने अस्पताल गया, तो अंदर से कुछ बातें करने की आवाजें आ रही थीं. वह दरवाजे पर ही रुक गया. अंदर जेबा और उस की सहेली रूबीना थी.

रूबीना कह रही थी, ‘‘जेबा, तुम कब तक यों ही यादों के सहारे अकेली जिंदगी बिता सकती हो?’’

‘‘नहीं रूबी, तुम नहीं जानतीं कि जिन के पास बीती हुई यादों के सहारे होते हैं, उन्हें किसी और सहारे की जरूरत नहीं होती.’’

‘‘जेबा, मेरी बात मानो, तुम शादी कर लो. यूसुफ अब भी तुम से शादी करने को तैयार है. अब तो तुम अपाहिज भी हो चुकी हो. तुम अकेली कैसे रहोगी?’’

जेबा को एक धक्का सा लगा. उस की सहेली रूबीना आज उसे अपाहिज कह रही है और ऐसी बातें कर रही है, जिन से उसे नफरत है. वह तड़प उठी.

प्रेम अंदर चला आया. उस ने जेबा को चमेली के फूलों का एक गुलदस्ता दिया. वह बैठ कर चूमने लगी. उस ने प्रेम को जी भर कर देखा. अचानक

उस की आंखें पथरा गईं और वह लुढ़कने लगी. प्रेम ने झट से जेबा को सहारा दिया.

जेबा ने थर्राई आवाज में कहा, ‘‘प्रेम मुझे भ… भूल जाना… और ज… जो लड़की… पसंद आए… उस… से शादी… कर लेना.’’

प्रेम की आंखों से आंसू ढलक कर जेबा की मांग पर गिर गए. उस की सूनी मांग पर आज उस के प्रियतम के आंसू चमक रहे थे.

जेबा ने अपने प्रियतम की बांहों में दम तोड़ दिया. उस की और किसी इच्छा को समाज ने पूरा नहीं होने दिया, पर यह इच्छा तो पूरी हो गई.

रूबीना चुपचाप खड़ी सब देख रही थी कि तभी प्रेम की गरदन भी एक ओर लुढ़क गई.

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