Valentine’s Special- हरिनूर: नीरज और शबीना की प्रेम कहानी

Valentine’s Special- हरिनूर: भाग 2

जब नई अम्मी को बेटा हुआ, तो जोया आपा और अम्मी को बेदखल कर उसी हवेली में नौकरों के रहने वाली जगह पर एक कोना दे दिया गया.

अम्मी दिनभर सिलाईकढ़ाई करतीं और जोया आपा भी दूसरों के घर का काम करतीं तो भी दो वक्त की रोटी मुहैया नहीं हो पाती थी.

अम्मी 30 साल की उम्र में 50 साल की दिखने लगी थीं. ऐसा नहीं था कि अम्मी खूबसूरत नहीं थीं. वे हमेशा अब्बू की दीवानगी के किस्से बयां करती रहती थीं.

सभी ने अम्मी को दूसरा निकाह करने को कहा, पर अम्मी तैयार नहीं हुईं. पर इधर कुछ दिनों से वे काफी परेशान थीं. शायद जोया आपा के सीने पर बढ़ता मांस परेशानी का सबब था. मेरे लिए वह अचरज, पर अम्मी के लिए जिम्मेदारी.

‘‘शबीना… ओ शबीना…’’ जोया आपा की आवाज ने शबीना को यादों से वर्तमान की ओर खींच दिया.

‘‘ठीक है, उस लड़के को ले कर आना, फिर देखते हैं कि क्या करना है.’’

लड़के का फोटो देख शबीना खुशी से उछल गई और चीख पड़ी. भविष्य के सपने संजोते हुए वह सोने चली गई.

अकसर उन दोनों की मुलाकात शहर के बाहर एक गार्डन में होती थी. आज जब वह नीरज से मिली, तो उस ने कल की सारी घटना का जिक्र किया, ‘‘जनाब, आप मेरे घर चल रहे हैं. अम्मी आप से मुलाकात करना चाह रही हैं.’’

‘‘सच…’’ कहते हुए नीरज ने शबीना को अपनी बांहों में भर लिया. शबीना शरमा कर बड़े प्यार से नीरज को देखने लगी, फिर नीरज की गाड़ी से ही घर पहुंची.

नीरज तो हैरान रह गया कि इतनी बड़ी हवेली, सफेद संगमरमर सी न शीदार दीवारें और एक मुगलिया संस्कृति बयां करता हरी घास का लान, जरूर यह बड़ी हैसियत वालों की हवेली है.

नीरज काफी सकुचाते हुए अंदर गया, तभी शबीना बोली, ‘‘नीरज, उधर नहीं, यह अब्बू की हवेली है. मेरा घर उधर कोने में है.’’

हैरानी से शबीना को देखते हुए नीरज उस के पीछेपीछे चल दिया. सामने पुराने से सर्वैंट क्वार्टर में शबीना दरवाजे पर टंगी पुरानी सी चटाई हटा कर अंदर नीरज के साथ दाखिल हुई.

नीरज ने देखा कि वहां 2 औरतें बैठी थीं. उन का परिचय शबीना ने अम्मी और जोया आपा कह कर कराया.

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अम्मी ने नीरज को देखा. वह उन्हें बड़ा भला लड़का लगा और बड़े प्यार से उसे बैठने के लिए कहा.

अम्मी ने कहा, ‘‘मैं तुम दोनों के लिए चाय बना कर लाती हूं. तब तक अब्बू और भाईजान भी आते होंगे.’’

‘‘अब्बू, अरे… आप ने उन्हें क्यों बुलाया? मैं ने आप से पहले ही मना किया था,’’ गुस्से से चिल्लाते हुए शबीना अम्मी पर बरस पड़ी.

अम्मी भी गुस्से में बोलीं, ‘‘चुपचाप बैठो… अब्बू का फैसला ही आखिरी फैसला होगा.’’

शबीना कातर निगाहों से नीरज को देखने लगी. नीरज की आंखों में उठे हर सवाल का जवाब वह अपनी आंखों से देने की कोशिश करती.

थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा, तभी सामने की चटाई हिली और भरीभरकम शरीर का आदमी दाखिल हुआ. वे सफेद अचकन और चूड़ीदार पाजामा पहने हुए थे. साथ ही, उन के साथ 17-18 साल का एक लड़का भी अंदर आया.

आते ही उस आदमी ने नीरज का कौलर पकड़ कर उठाया और दोनों लोग नीरज को काफी बुराभला कहने लगे.

नीरज एकदम अचकचा गया. उस ने संभलने की कोशिश की, तभी उस में से एक आदमी ने पीछे से वार कर दिया और वह फिर वहीं गिर गया.

शबीना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही उस के अब्बू चिल्ला कर बोले, ‘‘खबरदार, जो इस लड़के से मिली. तुझे शर्म नहीं आती… वह एक हिंदू लड़का है और तू मुसलमान…’’ नीरज की तरफ मुखातिब हो कर बोले, ‘‘आज के बाद शबीना की तरफ आंख उठा कर मत देखना, वरना तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का वह हाल करेंगे कि प्यार का सारा भूत उतर जाएगा.’’

नीरज ने समय की नजाकत को समझते हुए चुपचाप चले जाना ही उचित समझा.

अब्बू ने शबीना का हाथ झटकते हुए अम्मी की तरफ धक्का दिया और गरजते हुए बोले, ‘‘नफीसा, शबीना का ध्यान रखो और देखो अब यह लड़का कभी शबीना से न मिले. इस किस्से को यहीं खत्म करो,’’ और यह कहते हुए वे उलटे पैर वापस चले गए.

अब्बू के जाते ही जो शबीना अभी तक तकरीबन बेहोश सी पड़ी थी, तेजी से खड़ी हो गई और अम्मी से बोली, ‘‘अम्मी, यह सब क्या है? आप ने इन लोगों को क्यों बुलाया? अरे, मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है कि ये इतने सालों में कभी तो हमारा हाल पूछने नहीं आए. हम मर रहे हैं या जी रहे हैं, पेटभर खाना खाया है कि नहीं, कैसे हम जिंदगी गुजार रहे हैं. दोदो पैसे कमाने के लिए हम ने क्याक्या काम नहीं किया.

‘‘बोलो न अम्मी, तब ये कहां थे? जब हमारी जिंदगी में चंद खुशियां आईं, तो आ गए बाप का हक जताने. मेरा बस चले, तो आज मैं उन का सिर फोड़ देती.’’

‘‘शबीना…’’ कहते हुए अम्मी ने एक जोरदार चांटा शबीना को रसीद कर दिया और बोलीं, ‘‘बहुत हुआ… अपनी हद भूल रही है तू. भूल गई कि उन से मेरा निकाह ही नहीं हुआ है, दिल का रिश्ता है. मैं उन के बारे में एक भी गलत लफ्ज सुनना पसंद नहीं करूंगी. कल से तुम्हारा और नीरज का रास्ता अलगअलग है.’’

Valentine’s Special- हरिनूर: भाग 3

शबीना सारी रात रोती रही. उस की आंखें सूज कर लाल हो गईं. सुबह जब अम्मी ने शबीना को इस हाल में देखा, तो उन्हें बहुत दुख हुआ. वे उस के बिखरे बालों को समेटने लगीं. मगर शबीना ने उन का हाथ झटक दिया.

बहरहाल, इसी तरह दिनहफ्ते, महीने बीतने लगे. शबीना और नीरज की कोई बातचीत तक नहीं हुई. न ही नीरज ने मिलने की कोशिश की और न ही शबीना ने.

इसी तरह एक साल बीत गया. अब तक अम्मी ने मान लिया था कि शबीना अब नीरज को भूल चुकी है.

उसी दौरान शबीना ने अपनी फैशन डिजाइन के काम में काफी तरक्की कर ली थी और घर में अब तक सब नौर्मल हो गया था. सब ने सोचा कि अब तूफान शांत हो चुका है.

वह दिन शबीना की जिंदगी का बहुत खास दिन था. आज उस के कपड़ों की प्रदर्शनी थी. वह तेजतेज कदमों से लिफ्ट की तरफ बढ़ रही थी, तभी लिफ्ट का दरवाजा खुला, तो सामने खड़े शख्स को देख कर उस के पैर ठिठक गए.

‘‘कैसी हो शबीना?’’ उस ने बोला, तो शबीना की आंखों से आंसू आ गए. बिना कुछ बोले भाग कर वह उस के गले लग गई.

‘‘तुम कैसे हो नीरज? उस दिन तुम्हारी इतनी बेइज्जती हुई कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि तुम से कैसे बात करूं, पर सच में मैं तुम्हें कभी भी नहीं भूली…’’

नीरज ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया, ‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि तुम यहां कैसे?

‘‘आज मेरे सिले कपड़ों की प्रदर्शनी लगी है, पर तुम…’’

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‘‘मैं यहां का मैनेजर हूं.’’

शबीना ने मुसकराते हुए प्यारभरी निगाहों से नीरज को देखा. नीरज को लगा कि उस ने सारे जहां की खुशियां पा ली हैं.

‘‘अच्छा सुनो, मैं यहां का सारा काम खत्म कर के रात में 8 बजे तुम से यहीं मिलूंगी.’’

आज शबीना का मन अपने काम में नहीं लग रहा था. उसे लग रहा था कि जल्दी से नीरज के पास पहुंच .

शबीना को देखते ही नीरज बोला, ‘‘कुछ इस कदर हो गई मुहब्बत तनहाई से अपनी कि कभीकभी इन सांसों के शोर को भी थामने की कोशिश कर बैठते हैं जनाब…’’

शबीना मुसकराते हुए बोली, ‘‘शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत कर नहीं सकते… क्योंकि हमारे होंठों को इजाजत नहीं है तुम्हारे खिलाफ बोलने की,’’ और वे दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘नीरज, तुम्हें पता नहीं है कि आज मैं मुद्दतों बाद इतनी खुल कर हंसी हूं.’’

‘‘शायद मैं भी…’’ नीरज ने कहा. रात को दोनों ने एकसाथ डिनर किया और दोनों चाहते थे कि इतने दिनों की जुदाई की बातें एक ही घंटे में खत्म कर दें, जो कि मुमकिन नहीं था. फिर वे दोनों दिनभर के काम के बाद उसी पुराने गार्डन या कैफे में मिलने लगे.

लोग अकसर उन्हें साथ देखते थे. शबीना के घर वालों को भी पता चल गया था, पर उन्हें लगता था कि वे शादी नहीं करेंगे. वे इस बारे में शबीना को समयसमय पर हिदायत भी देते रहते थे.

इसी तरह साल दर साल बीतने लगे. एक दिन रात के अंधेरे में उन दोनों ने अपना शहर छोड़ एक बड़े से महानगर में अपनी दुनिया बसा ली, जहां उस भीड़ में उन्हें कोई पहचानता तक नहीं था. वहीं पर दोनों एक एनजीओ में नौकरी करने लगे.

उन दोनों का घर छोड़ कर अचानक जाना किसी को अचरज भरा नहीं लगा, क्योंकि सालों से लोगों को उन्हें एकसाथ देखने की आदत सी पड़ गई थी. पर अम्मी को शबीना का इस तरह जाना बहुत खला. वे काफी बीमार रहने लगीं. जोया आपा का भी निकाह हो गया था.

इधर शबीना अपनी दुनिया में बहुत खुश थी. समय पंख लगा कर उड़ने लगा था. एक दिन पता चला कि उस की अम्मी को कैंसर हो गया और सब लोगों ने यह कह कर इलाज टाल दिया था कि इस उम्र में इतना पैसा इलाज में क्यों बरबाद करें.

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शबीना को जब इस बात का पता चला, तो उस ने नीरज से बात की.

नीरज ने कहा, ‘‘तुम अम्मी को अपने पास ही बुला लो. हम मिल कर उन का इलाज कराएंगे.’’

शबीना अम्मी को इलाज कराने अपने घर ले आई. अम्मी जब उन के घर आईं, तो उन का प्यारा सा संसार देख कर बहुत खुश हुईं.

नीरज ने बड़ी मेहनत कर पैसा जुटाया और उन का इलाज कराया और वे धीरेधीरे ठीक होने लगीं. अब तो उन की बीमारी भी धीरेधीरे खत्म हो गई. मगर अम्मी को बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती. नीरज उन की परेशानी को समझ गया.

एक दिन शाम को अम्मी शबीना के साथ बैठी थीं, तभी नीरज भी पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘अम्मी, जिंदगी में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है, पर रिश्तों में ज्यादा जिंदगी होना जरूरी है. अम्मी, जब बनाने वाले ने कोई फर्क नहीं रखा, तो हम कौन होते हैं फर्क रखने वाले.

‘‘अम्मी, मेरी तो मां भी नहीं हैं, मगर आप से मिल कर वह कमी भी पूरी हो गई.’’

अम्मी ने प्यार से नीरज को गले लगा लिया, तभी नीरज बोला, ‘‘आज एक और खुशखबरी है, आप जल्दी ही नानी बनने वाली हैं.’’

अब अम्मी बहुत खुश थीं. वे अकसर शबीना के घर आती रहतीं. समय के साथ ही शबीना ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम शबीना ने हरिनूर रखा.

शबीना ने यह नाम दे कर उसे हिंदूमुसलमान के झंझावातों से बरी कर दिया था.

सबसे बड़ा सुख: भाग 2

‘‘हम दोनों ने सोचा है कि तुम्हें ‘वृद्ध आश्रम’ में भेज दें. वहां तुम्हारी देखभाल भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा. तुम्हारी सुखसुविधा का सभी प्रबंध हम कर देंगे. पैसे की कोई चिंता नहीं है. वैसे सबकुछ तुम्हारा ही है,’’ फिर खिसियानी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘हम दोनों तो देखरेख के लिए तुम्हारे मैनेजर हैं.’’

वे अवाक पागलों के समान बेटे का मुंह ताकती रहीं. थोड़ी देर के लिए उन्हें लगा कि शरीर का खून  किसी ने खींच लिया है, पर जल्द ही उन का स्वाभिमान जाग उठा. उन्होंने गरदन उठा कर कहा, ‘‘ठीक है बेटा, तुम दोनों ने ठीक ही सोचा होगा. वैसे भी इस घर को मेरी कोई आवश्यकता नहीं रह गई है.’’ अपमान से दुखी पलकों के ऊपर विवशता के जल की बूंदें टपक पड़ीं.

थोड़ी देर बाद ब्रजेश बोला, ‘‘इसी शहर में यह आश्रम खुला है. यहां सुखसुविधा का सब इंतजाम है. बड़ेबड़े लोग इसे मन लगाने का स्थान समझ कर रह रहे हैं. वैसे भी, जब तुम्हारा मन न लगे तो घर तो है ही, वापस चली आना.’’

पोते के चलते समय के शब्द उन्हें याद आने लगे. उस ने कैसे विश्वास से कहा था, ‘दादी, आज मातापिता मुझे घर से निकाल कर होस्टल भेज रहे हैं, किसी दिन ये तुम्हें भी घर से निकाल देंगे.’ पोते की भविष्यवाणी सचमुच सत्य साबित हो गई थी. उन्होंने अभिमान से गरदन उठा कर कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. तुम ने सभी इंतजाम पहले से कर लिया होगा. वैसे भी, यहां रुकने की तुक नहीं है. मैं भी चाहती हूं कि अपनी जिम्मेदारी से तुम दोनों को मुक्त कर दूं.’’

ब्रजेश मां से आंखें न मिला सका. चलतेचलते बोला, ‘‘इतनी जल्दी भी क्या है. 2-4 दिनों बाद चली जाना.’’

कमला ने कहा, ‘‘मैं 2 घंटे बाद चली जाऊंगी, ड्राइवर को स्थान बता देना.’’

लगभग 60 सालों तक सुख की शय्या पर सोई उन की काया ने कांटों की चुभन का अनुभव नहीं किया था. जीवन के 2 पहलू भी होते हैं, यह अब उन्होंने जाना. अपने खून से सींची औलाद भी पराई हो सकती है, यह भी आज ही उन्हें पता चला. उन के अंतर्मन से आवाज आई, ‘मैं तो तन से स्वस्थ तथा धन से परिपूर्ण होते हुए भी इतनी सी चोट से घबरा उठी हूं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी, जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित हैं.’ अब उन्हें अपना दुख नगण्य लगा. एक अदम्य उत्साह तथा विश्वास से उन्होंने अपना पथ चुन लिया था. चैकबुक और अपना जरूरी सामान उन्होंने सूटकेस में रख लिया और बिना बेटाबहू की तरफ देखे गाड़ी में बैठ गईं.

वृद्धाश्रम शहर से दूर एकांत स्थान पर था. चारों तरफ हरियाली से घिरा वह भवन मन को शांति देने वाला था. अंदर जा कर उन्होंने देखा कि जीवन की सभी आवश्यकताओं का सामान वहां उपलब्ध है. जिस ने भी उसे बनवाया था, बहुत सोचविचार कर ही बनवाया था. चूंकि अभी वह नया ही बना था, इसी कारण 10-12 ही स्त्रीपुरुष वहां थे. सभी वृद्धों के चेहरों पर अपने अतीत की छाया मंडरा रही थी.

कमला ने मुसकराते हुए सब से अभिवादन किया. उन्हें प्रफुल्लित तथा मुसकराते देख सभी चकित रह गए. सभी वृद्ध समृद्ध परिवारों के सदस्य थे. पैसे की उन के पास कमी न थी, पर अपमान की वेदना सहतेसहते वे टूट चुके थे.

कमला उन के पास बैठ कर बोलीं, ‘‘देखिए, अगर मैं कुछ कहूं और उस से आप को पीड़ा पहुंचे तो इस के लिए मैं क्षमा चाहती हूं. मैं इसी शहर के सफल व्यवसायी प्रताप सिंह की पत्नी कमला हूं. 8 साल पहले मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. मैं अपने बेटे ब्रजेश के साथ रहती हूं. आप सब के समान मुझे भी घर का फालतू प्राणी समझ कर यहां भेज दिया गया है.

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‘‘थोड़ी देर के लिए मैं भी बहुत मायूस हो गई थी पर जब मैं ने सोचा कि मेरे पास तो धन और स्वास्थ्य दोनों ही हैं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित होंगे, तो यह महसूस करते ही मुझ में एक अदम्य उत्साह जागृत हो गया. फिर मुझे यह अपमान, अपमान न लग कर वरदान लगा. हम सब को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए कि कुछ तो हमारे पास है, जिस का उपयोग हम कर सकते हैं.

‘‘हमें यह नहीं दिखना है कि हम टूट चुके हैं. जीवन में यही समय है जब हम खाली हैं और कुछ सत्कार्य करने में सक्षम हैं. आप सब के पास दौलत की कमी नहीं है. यह सभी दौलत आप ने अपने पुरुषार्थ से संचित की है. इसे उपयोग में लाने का आप को पूरा हक है. अपने बच्चों के लिए तो सभी करते हैं पर किसी ने जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े उन वृद्धों के बारे में सोचा है, जो तिलतिल कर मर रहे हैं? चूंकि उन के पास पैसा नहीं है, इस कारण उन की जिंदगी कुत्तों से बदतर हो गई है. अपना ही खून सफेद हो गया है. क्या हम उन के लिए कुछ नहीं कर सकते?

‘‘अगर हम ने एक दुखी को अंत समय शांति तथा सुख दिया तो इस से बड़ा नेक कार्य और क्या हो सकता है. देने से बढ़ कर और कोई सुख नहीं है. मैं ने अपने बेटे को इस योग्य बना दिया है कि वह स्वयं कमा सकता है. मैं अपनी समस्त संपत्ति उन वृद्धों पर खर्च करूंगी जो इस वृद्ध आश्रम में पैसे के कारण नहीं आ सकते. हम उन से वही कार्य करवाएंगे, जिन में उन की रुचि होगी, ताकि वे अपने को दूसरों पर आश्रित समझ कर हीनभावना से ग्रसित न होने पाएं. हम अपने पैसे से दुत्कारे हुए वृद्धों को नवजीवन दे सकें तो इस से क्या सब को संतोष तथा प्रसन्नता नहीं होगी?’’

उन वृद्धों के पोपले मुखों पर संतुष्टि की एक स्मित रेखा सी खिंच गई. पूरा हौल तालियों से गूंज उठा. अब तक खाली बैठेबैठे उन की आंखों के आगे अतीत चलचित्र की भांति कौंध जाता था जब उन्हें पालतू प्राणी समझ कर उन की उपेक्षा की जाती थी. पर अब उन्हें अपने अस्तित्व की शक्ति का भान हुआ था. सभी बारीबारी से बोल उठे कि हमारी बड़ीबड़ी कोठियां हैं, उन्हें हम वृद्धों का निवासस्थान बना देंगे. वहां ऊंचनीच व जातपांत का भेदभाव नहीं रहेगा.

सबसे बड़ा सुख: भाग 3

कमला की आंखें नम हो गईं. उन्हें लगा, ‘जो हमसफर इतने पास आ जाते हैं, उन्हें फिर एकदूसरे को अपनी बात समझानी नहीं पड़ती. उन की आंतरिक अनुभूतियां ही वाणी समान मुखर हो उठती हैं.’ सभी वृद्धों की आंखें विजयीगर्व से चमक रही थीं.

दूसरे दिन कमला ने सभी वृद्धों से अपने पोते की भविष्यवाणी के बारे में बताया और यह भी कहा कि वे उस की पसंद की चीजें ले कर अकसर उस से मिलने जाया करेंगी.

इतवार के दिन उन्होंने राजू की पसंद की ढेर सारी चीजें खरीदीं, ताकि वह अपने दोस्तों को भी दे सके. होस्टल पहुंचते ही राजू उन से लिपट कर बोला, ‘‘दादी, मैं जानता था कि तुम जरूर मुझ से मिलने आओगी,’’ उस ने अपने दोस्तों से कहा कि यही मेरी प्यारी दादी हैं. कमला ने सभी सामान बच्चों में बांटा और कई घंटे उन के साथ व्यतीत करने के बाद यह कह कर लौट पड़ीं कि वे यहां आती रहेंगी.

राजू ने पूछा, ‘‘घर पर सब ठीक है न?’’

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ मैं घर में नहीं रहती. एक वृद्ध आश्रम है, वहीं पर रहती हूं.’’

राजू चीख कर बोला, ‘‘मैं समझ गया हूं, उन्होंने आप को भी घर से निकाल दिया है.’’

हंसते हुए उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘राजू, वहां तेरे बिना मेरा मन भी तो नहीं लगता था. इस कारण भी तेरे मातापिता ने मुझे आश्रम भेज दिया.’’

‘‘मैं सब समझता हूं. वे हम दोनों को प्यार नहीं करते, इसी कारण घर से निकाल दिया है.’’

उन्होंने प्यार से राजू के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘बेटे, मातापिता के लिए ऐसी बातें नहीं सोचनी चाहिए. वे जो कुछ भी कर रहे हैं, तुम्हारे भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए ही कर रहे हैं. होस्टल में बच्चों के संग तुम्हारा मन लग जाएगा, इसलिए तुम्हें यहां भेजा है.’’

राजू ने अविश्वास से दादी की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप कहती हो तो मान लेता हूं,’’ फिर मासूमियत से बोला, ‘‘दादी, अपने घर में कब ले चलोगी?’’

कमला की आंखों में आंसू तैर आए, जिन्हें उन्होंने बड़े कौशल से पी कर कहा, ‘‘बेटे, हमारे घर में सभी वृद्ध लोग हैं. वहां तुम्हारा मन नहीं लगेगा. हम हीतुम्हारे पास आते रहेंगे.’’

वृद्धाश्रम लौटने पर काफी देर उन का मन उदास रहा. फिर उन के भीतर से आवाज आई, ‘तुझे भावुकता में बह कर अपने ध्येय को नहीं भूलना. तेरा लक्ष्य तेरे सामने है. इस समय बीस हाथ तेरी सहायता के लिए तैयार हैं. ये हाथ दिनोंदिन बढ़ते ही जाएंगे. सफलता तुझे पुकारपुकार कर कह रही है, आगे बढ़ती जा, ‘यह सोचते ही अदम्य उत्साह से वे उठ खड़ी हुईं.

दूसरे दिन कमला ने आश्रम के वृद्धों से कहा, ‘‘आप लोगों के पास जो भी कोठियां हैं, अगर आप खुशीखुशी उन्हें वृद्धाश्रम बनाने के लिए दे सकें, तो जो व्यय हम इस वृद्धाश्रम पर कर रहे हैं, वही हम अपने आश्रम पर खर्च करेंगे. हम सभी मिल कर उन्हें आवश्यक सामान से सुसज्जित कर कई वृद्ध आश्रम बना सकते हैं. मेरे पास जितनी संपत्ति है, उसे मैं वृद्धाश्रमों को दे रही हूं. यह सही है कि इस उम्र में हम थक सकते हैं पर जिस उत्साह से हम कार्य करेंगे, उस से शायद किसी को भी थकावट महसूस नहीं होगी.’’

हर वृद्ध, जिस के पास पैसा था, ने वह दिया और जिस के पास कोठी भी थी, उस ने सहर्ष कोठी तथा पैसा दोनों ही दिए. जब वृद्धों ने अपनीअपनी कोठियां खाली करवानी शुरू कीं तो रिश्तेदारों के होश उड़ गए. इस प्रकार कई कोठियां खाली हो गईं. अब उन वृद्धों ने बड़े उत्साह से उन में आवश्यक सामान तथा नौकरों का बंदोबस्त करना शुरू कर दिया.

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समाचारपत्रों में इन वृद्ध आश्रमों की प्रशंसा में कौलम भर गए. मध्यवर्गीय परिवार के वृद्धों को प्राथमिकता मिली. हर वृद्धाश्रम का ट्रस्ट बना दिया गया, ताकि जिन्होंने पैसा दिया है, उन की मृत्यु के बाद भी वे सुचारु रूप से चलते रहें.

वृद्धों के निराश चेहरों पर रौनक आने लगी. समाज के जो संभ्रांत परिवार थे, उन के यहां एक अनोखा परिवर्तन आया. परिवार की युवा पीढ़ी जहां सतर्क हुई, वहीं वृद्धों के प्रति उन के व्यवहार में भी परिवर्तन आया और उन की पूरी देखभाल होने लगी.

कमला तथा अन्य वृद्धों, जिन्होंने इन आश्रमों को बनवाने में अपना पूरा सहयोग दिया था, की देखादेखी बहुत से रईसों ने अपना पैसा तथा सहयोग देना शुरू

कर दिया क्योंकि वे स्वजनों के व्यवहारपरिवर्तन के इस छलावे को समझ चुके थे और किसी न किसी रूप में इन वृद्धाश्रमों से संपर्क बनाने की चेष्टा में लग गए थे. एक तरफ वाहवाही की चाह थी, तो दूसरी ओर परोपकार की भावना जोर मार रही थी. हृदय के किसी कोने में प्रतिकार भी था.

कमला वृद्धाश्रम के एक कक्ष में बैठी विचारों में मगन थीं. उन के चहेरे पर वेदना और शांति के भावों का अनोखा मिश्रण झलक रहा था. अब उन्होंने जाना कि कांटों की शय्या पर सोया प्राणी ही कुछ करने की क्षमता रखता है. जिस सत्कार्य को करने का उन्होंने बीड़ा उठाया था, उस को प्रेरणा देने वाला उन के बेटेबहू का व्यवहार ही तो था. कमला ने महसूस किया कि देने से बड़ा सुख और कोई नहीं है. दूसरों को सहायता तथा सुख पहुंचा कर अपने हृदय को कितनी शांति और सुकून मिलता है. उन्होंने जीवन का सब से बड़ा सुख पा लिया था.

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बदलाव: भाग 3

अवधेश सिंह के 2 बेटे थे. दोनों ही शादीशुदा थे. गांव में खेतीकिसानी करते थे. बेटों ने दूसरी शादी का विरोध किया, तो उस ने उन से रिश्ता ही तोड़ लिया. दरअसल, अवधेश सिंह औरत के बिना नहीं रह सकता था. वह वासना का भेडि़या था. भोलीभाली और गरीब लड़कियों को बहलाफुसला कर वह अपने घर लाता था, फिर तरहतरह का लोभ दिखा कर उन के साथ मनमानी करता था.

अवधेश सिंह सुबहसवेरे कभीकभी गंगा स्नान के लिए भी जाता था. उस दिन सुबह 8 बजे गए, तो उर्मिला पर उस की नजर चली गई. वह समझ गया कि उर्मिला कहीं दूर देहात की है. वह उस के चाल में जल्दी आ जाएगी.

वह उसे अपने घर ले जाने में कामयाब भी हो गया. अवधेश सिंह उर्मिला को निहायत ही भोलीभाली समझता था, पर वह उस की चालाकी समझ नहीं पाया. उसे लगा कि वह उर्मिला की बात मान लेगा, तो वह राजीखुशी उस का बिस्तर गरम कर देगी. फिर तो वह उर्मिला का दिल जीतने के लिए जीतोड़ कोशिश करने लगा. उस की हर जरूरत पर ध्यान देने लगा. महंगे से महंगा गिफ्ट भी वह उसे देने लगा.

इस तरह 10 दिन और बीत गए. इस बीच उर्मिला को राधेश्याम की कोई खबर नहीं मिली. उस के बाद एक दिन अचानक उर्मिला ने पति राधेश्याम को छोड़ अवधेश सिंह के साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत करने का फैसला किया. हुआ यह कि एक दिन अवधेश सिंह दफ्तर से लौट कर रात में घर आया. उस समय रतन सो चुका था. आते ही उस ने उर्मिला को अपने कमरे में बुलाया. उर्मिला कमरे में आई, तो अवधेश सिंह ने झट से दरवाजा बंद कर दिया.

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वह उर्मिला से बोला, ‘‘तुम मान जाओगी, तो जो कुछ कहोगी, वह सबकुछ करूंगा. तुम चाहोगी तो तुम से शादी भी कर सकता हूं.’’ उर्मिला उलझन में पड़ गई. बेशक, वह गांव से पति की तलाश में निकली थी, मगर शहरी चकाचौंध ने पति से उस का मोह भंग कर दिया था. अब वह गांव की नहीं, शहरी जिंदगी जीना चाहती थी.

अवधेश सिंह के प्रस्ताव पर वह यह सोचने लगी कि उस का पति मिल भी गया तो क्या वह अवधेश सिंह की तरह ऐशोआराम की जिंदगी दे पाएगा? अवधेश सिंह की उम्र भले ही उस से ज्यादा थी, मगर उस के पास दौलत की कमी नहीं थी. उस ने अवधेश सिंह का प्रस्ताव स्वीकार करने का फैसला किया.

अवधेश सिंह अपनी बात से मुकर न जाए, इसलिए उर्मिला ने लिखवा लिया कि वह उस से शादी करेगा. उस के बाद उर्मिला ने अपनेआप को उस के हवाले कर दिया. उर्मिला को पा कर अवधेश सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने अगले हफ्ते ही उस से शादी करने का फैसला किया.

उर्मिला भी जल्दी से जल्दी अवधेश सिंह से शादी कर लेना चाहती थी. 2 दिन बाद ही उस ने अपने भाई रतन को गांव जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया. उस से कह दिया कि वह गांव लौट कर नहीं जाएगी. अवधेश सिंह के साथ शहर में ही रहेगी. शादी के 2 दिन बाकी थे, तो अचानक राधेश्याम के रूममेट राघव के फोन पर उर्मिला को बताया कि गणपत गांव से आ गया है.

उर्मिला हर हाल में अवधेश सिंह से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह राधेश्याम का पता लगाने नहीं गई. तय समय पर उस ने अवधेश सिंह से शादी कर ली. एक महीने बाद अवधेश सिंह की गैरहाजिरी में राधेश्याम उर्मिला से मिला. ‘‘कहां थे इतने दिन…?’’ उर्मिला ने पूछा.

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‘‘गांव से आने के बाद मैं एक अमीर विधवा औरत के प्रेमजाल में फंस गया था. अब मैं उस के साथ नहीं रहना चाहता.

‘‘गणपत से मुझे जैसे ही पता चला कि तुम अवधेश सिंह के घर पर हो, मैं यहां चला आया. अब मैं तुम्हारे साथ गांव लौट जाना चाहता हूं.’’

‘‘आप ने आने में बहुत देर कर दी. मैं ने अवधेश सिंह से शादी कर ली है. अब मैं आप के साथ नहीं जा सकती.’’ राधेश्याम सबकुछ समझ गया. उस ने उर्मिला से फिर कुछ नहीं कहा और चुपचाप वहां से लौट गया.

Serial Story- बदलाव: उर्मिला ने चलाया अपने हुस्न का जादू

बदलाव: भाग 2

‘दरअसल, उसे किसी अमीर औरत से प्यार हो गया था. वह उसी के साथ रहने चला गया था,’ 3 दोस्तों में से एक दोस्त ने बताया. उर्मिला को लगा, जैसे उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी और वह मर जाएगी. उस के हाथपैर सुन्न हो गए थे, मगर जल्दी ही उस ने अपनेआप को काबू में कर लिया.

उर्मिला ने पूछा, ‘वह औरत कहां रहती है?’

तीनों में से एक ने कहा, ‘यह हम तीनों में से किसी को पता नहीं है. सिर्फ गणपत को पता है. उस औरत के बारे में हम लोगों ने उस से बहुत पूछा था, मगर उस ने बताया नहीं था. ‘उस का कहना था कि उस ने राधेश्याम से वादा किया है कि उस की प्रेमिका के बारे में वह किसी को कुछ नहीं बताएगा.’

‘गणपत कौन…’ उर्मिला ने पूछा.

‘वह हम लोगों के साथ ही रहता है. अभी वह गांव गया हुआ है. वह एक महीने बाद आएगा. आप पूछ कर देखिएगा. शायद, वह आप को बता दे.’

‘मगर, तब तक मैं रहूंगी कहां?’

‘चाहें तो आप इसी कमरे में रह सकती हैं. रात में हम लोग इधरउधर सो लेंगे.’ मगर उर्मिला उन लोगों के साथ रहने को तैयार नहीं हुई. उसे पति की बात याद आ गई थी. गांव से विदा लेते समय राधेश्याम ने उस से कहा था, ‘मैं तुम्हें ले जा कर अपने साथ रख सकता था, मगर दोस्तों पर भरोसा करना ठीक नहीं है.

‘वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं. मगर कब उन की नीयत बदल जाए और तुम्हारी इज्जत पर दाग लगा दें, इस की कोई गारंटी नहीं है.’ उर्मिला अपने भाई रतन के साथ बड़ा बाजार की एक धर्मशाला में चली गई. धर्मशाला में उसे सिर्फ 3 दिन रहने दिया गया. चौथे दिन वहां से उसे जाने के लिए कह दिया गया, तो मजबूर हो कर उसे धर्मशाला छोड़नी पड़ी.

अब उर्मिला अपने भाई रतन के साथ गंगा किनारे बैठी थी कि अचानक उस के पास एक 40 साला शख्स आया. पहले उस ने उर्मिला को ध्यान से देखा, उस के बाद कहा, ‘‘लगता है कि तुम यहां पर नई हो. कहीं और से आई हो. काफी चिंता में भी हो. कोई परेशानी हो, तो बताओ. मैं मदद करूंगा…’’

वह शख्स उर्मिला को हमदर्द लगा. उस ने बता दिया कि वह कहां से और क्यों आई है.

वह शख्स उस के पास बैठ गया. अपनापन जताते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम अवधेश सिंह है. मेरा घर पास ही में है. जब तक तुम्हारा पति मिल नहीं जाता, तब तक तुम मेरे घर में रह सकती हो. तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

‘‘मेरी जानपहचान बहुतों से है. तुम्हारे पति को मैं बहुत जल्दी ढूंढ़ निकालूंगा. जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद भी लूंगा.’’ कुछ सोचते हुए उर्मिला ने कहा, ‘‘अपने घर ले जा कर मेरे साथ कुछ गलत हरकत तो नहीं करेंगे?’’

‘‘तुम पति की तलाश करना चाहती हो, तो तुम्हें मुझ पर यकीन करना ही होगा.’’

‘‘आप के घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘यहां मैं अकेला रहता हूं. मेरा बेटा और परिवार गांव में रहता है. मेरी पत्नी नहीं है. उस की मौत हो चुकी है.’’

‘‘तब तो मैं हरगिज आप के घर नहीं रह सकती. अकेले में आप मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं.’’ अवधेश सिंह ने उर्मिला को हर तरह से समझाया. उसे अपनी शराफत का यकीन दिलाया. आखिरकार उर्मिला अपने भाई रतन के साथ अवधेश सिंह के घर पर इस शर्त पर आ गई कि वह उस के घर का सारा काम कर दिया करेगी. उस का खाना भी बना दिया करेगी.

अवधेश सिंह के फ्लैट में 2 कमरे थे. एक कमरा उस ने उर्मिला को दे दिया. शुरू में उर्मिला अवधेश सिंह को निहायत ही शरीफ समझती थी, मगर 10 दिन होतेहोते उस का असली रंग सामने आ गया. अवधेश सिंह अकसर किसी न किसी बहाने से उस के पास आ जाता था. यहां तक कि जब वह रसोईघर में खाना बना रही होती, तो वह उस के करीब आ कर चुपके से उस का अंग छू देता था. कभीकभी तो उस की कमर को भी छू लेता था.

उर्मिला को यह समझते देर नहीं लगी कि उस का मन बेईमान है. वह उस का जिस्म पाना चाहता है.

एक बार उर्मिला का मन हुआ कि वह उस का घर छोड़ कर कहीं और चली जाए, मगर इस विचार को उस ने यह सोच कर तुरंत दिमाग से हटा दिया कि वह जाएगी तो कहां जाएगी? क्या पता दूसरी जगह कोई उस से भी घटिया इनसान मिल जाए.

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गणपत के गांव से लौट आने तक उर्मिला को कोलकाता में रहना ही था. उस ने मीठीमीठी रोमांटिक बातों से अवधेश सिंह को उलझा कर रखने का फैसला किया. एक दिन उर्मिला रसोईघर में काम कर रही थी, अचानक वह वहां आ गया. उसी समय किसी चीज के लिए उर्मिला झुकी, तो ब्लाउज के कैद से उस के उभारों का कुछ भाग दिखाई पड़ गया.

फिर तो अवधेश सिंह अपनेआप को काबू में न रख सका. झट से उस ने कह दिया, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. तुम मेरी बन जाओ.’’

सही मौका देख कर उर्मिला ने अवधेश सिंह पर अपनी बातों का जादू चलाने का निश्चय कर लिया.

उर्मिला ने भी झट से कहा, ‘‘मैं भी अपना दिल आप को दे चुकी हूं.’’

अवधेश सिंह खुशी से झूम उठा. उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘सच कह रही हो तुम?’’

‘‘आप तो अच्छे आदमी नहीं हैं. मैं तो आप को शरीफ समझ कर अपना दिल दे बैठी थी, मगर आप ने तो मेरा हाथ पकड़ लिया.’’

अवधेश सिंह ने तुरंत हाथ छोड़ कर कहा, ‘‘तो क्या हो गया?’’

‘‘मेरी एक मुंहबोली भाभी कहती हैं कि किसी का प्यार कबूल करने से पहले कुछ समय तक उस का इम्तिहान लेना चाहिए.

‘‘वे कहती हैं कि जो आदमी झट से हाथ लगा दे, वह मतलबी होता है. प्यार का वास्ता दे कर जिस्म हासिल कर लेता है. उस के बाद छोड़ देता है, इसलिए ऐसे आदमियों के जाल में नहीं फंसना चाहिए.’’ ‘‘तुम मुझे गलत मत समझो उर्मिला. मैं मतलबी नहीं हूं, न ही मेरी नीयत खराब है. तुम जितना चाहो इम्तिहान ले लो, मुझे हमेशा खरा प्रेमी पाओगी.’’

‘‘तो फिर हाथ क्यों पकड़ लिया?’’

‘‘बस यों ही दिल मचल गया था.’’

‘‘दिल पर काबू रखिए. जबतब मचलने मत दीजिए. एक बात साफ बता देती हूं. ध्यान से सुन लीजिए.

‘‘अगर आप मेरा प्यार पाना चाहते हैं, तो सब्र से काम लेना होगा. जिस दिन यकीन हो जाएगा कि आप मेरे प्यार के काबिल हैं, उस दिन हाथ ही नहीं, पैर भी पकड़ने की छूट दे दूंगी. तब तक आप सिर्फ बातों से प्यार जाहिर कीजिए. हाथ न लगाइए.’’

‘‘वह दिन कब आएगा?’’ अवधेश सिंह ने पूछा.

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‘‘कम से कम एक महीना तो लगेगा.’’ उर्मिला की चालाकी अवधेश सिंह समझ नहीं पाया और उस की शर्त को मान लिया. अवेधश सिंह सरकारी अफसर था. कोलकाता में वह अकेला ही रहता था. जब तक उस की पत्नी जिंदा थी, वह साल में 4-5 बार गांव जाता था. पत्नी की मौत के बाद उस ने गांव जाना ही छोड़ दिया था. बात यह थी कि पत्नी की मौत के बाद उस ने दूसरी शादी करने का निश्चय किया, जिस का उस के बेटों ने पुरजोर विरोध किया था.

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