नेकी वाला पेड़: क्या हुआ जब यादों से बना पेड़ गिरा?

टन…टन… टन… बड़ी बेसब्री से दरवाजे की घंटी बज रही थी. गरमी की दोपहर और लौकडाउन के दिनों में थोड़ा असामान्य लग रहा था. जैसे कोई मुसीबत के समय या फिर आप को सावधान करने के लिए बजाता हो, ठीक वैसी ही घंटी बज रही थी. हम सभी चौंक उठे और दरवाजे की ओर लपके.

मैं लगभग दौड़ते हुए दरवाजे की ओर बढ़ी. एक आदमी मास्क पहने दिखाई दिया. मैं ने दरवाजे से ही पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

वह जल्दी से हड़बड़ाहट में बोला, ‘‘मैडम, आप का पेड़ गिर गया.’’

‘‘क्या…’’ हम सभी जल्दी से आंगन वाले गेट की ओर बढ़े. वहां का दृश्य देखते ही हम सभी हैरान रह गए.

‘‘अरे, यह कब…? कैसे हुआ…?’’

पेड़ बिलकुल सड़क के बीचोबीच गिरा पड़ा था. कुछ सूखी हुई कमजोर डालियां इधरउधर टूट कर बिखरी हुई थीं. पेड़ के नीचे मैं ने छोटे गमले क्यारी के किनारेकिनारे लगा रखे थे, वे उस के तने के नीचे दबे पड़े थे. पेड़ पर बंधी टीवी केबल की तारें भी पेड़ के साथ ही टूट कर लटक गई थीं. घर के सामने रहने वाले पड़ोसियों की कारें बिलकुल सुरक्षित थीं. पेड़ ने उन्हें एक खरोंच भी नहीं पहुंचाई थी.

गरमी की दोपहर में उस समय कोई सड़क पर भी नहीं था. मैं ने मन ही मन उस सूखे हुए नेक पेड़ को निहारा. उसे देख कर मुझे 30 वर्ष पुरानी सारी यादें ताजा हो आईं.

हम कुछ समय पहले ही इस घर में रहने को आए थे. हमारी एक पड़ोसिन ने लगभग 30 वर्ष पहले एक छोटा सा पौधा लगाते हुए मुझ से कहा था, ‘‘सारी गली में ऐसे ही पेड़ हैं. सोचा, एक आप के यहां भी लगा देती हूं. अच्छे लगेंगे सभी एकजैसे पेड़.’’

पेड़ धीरेधीरे बड़ा होने लगा. कमाल का पेड़ था. हमेशा हराभरा रहता. छोटे सफेद फूल खिलते, जिन की तेज गंध कुछ अजीब सी लगती थी. गरमी के दिनों में लंबीपतली फलियों से छोटे हलके उड़ने वाले बीज सब को बहुत परेशान करते. सब के घरों में बिन बुलाए घुस जाते और उड़ते रहते. पर यह पेड़ सदा हराभरा रहता तो ये सब थोड़े दिन चलने वाली परेशानियां कुछ खास माने नहीं रखती थीं.

मैं ने पता किया कि आखिर इस पौधे का नाम क्या है? पूछने पर वनस्पतिशास्त्र के एक प्राध्यापक ने बताया कि इस का नाम ‘सप्तपर्णी’ है. एक ही गुच्छे में एकसाथ 7 पत्तियां होने के कारण इस का यह नाम पड़ा.

मुझे उस पेड़ का नाम ‘सप्तपर्णी’ बेहद प्यारा लगा. साथ ही, तेज गंध वाले फूलों की वजह से आम भाषा में इसे लोग ‘लहसुनिया’ भी कहते हैं. सचमुच पेड़ों और फूलों के नाम उन की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं. उन के नाम लेते ही हमें वे दिखाई पड़ने लगते हैं, साथ ही हम उन की खुशबू को भी महसूस करने लगते हैं. मन को कितनी प्रसन्नता दे जाते हैं.

यह धराशायी हुआ ‘सप्तपर्णी’ भी कुछ ऐसा ही था. तेज गरमी में जब भी डाक या कुरियर वाला आता तो उन्हें अकसर मैं इस पेड़ के नीचे खड़ा पाती. फल या सब्जी बेचने वाले भी इसी पेड़ की छाया में खड़े दिखते. कोई अपनी कार धूप से बचाने के लिए पेड़ के ठीक नीचे खड़ी कर देता, तो कभी कोई मेहनतकश कुछ देर इस पेड़ के नीचे खड़े हो कर सुस्ता लेता. कुछ सुंदर पंछियों ने अपने घोंसले बना कर पेड की रौनक और बढ़ा दी थी. वे पेड़ से बातें करते नजर आते थे. टीवी केबल वाले इस की डालियों में अपने तार बांध कर चले जाते. कभीकभी बच्चों की पतंगें इस में अटक जातीं तो लगता जैसे ये भी बच्चों के साथ पतंगबाजी का मजा ले रहा हो.

दीवाली के दिनों में मैं इस के तने के नीचे भी दीपक जलाती. मुझे बड़ा सुकून मिलता. बच्चों ने इस के नीचे खड़े हो कर जो तसवीरें खिंचवाई थीं, वे कितनी सुंदर हैं. जब भी मैं कहीं से घर लौटती तो रिकशे वाले से बोलती, ‘‘भैया,

वहां उस पेड़ के पास वाले घर पर रोक देना.’’

लगता, जैसे ये पेड़ मेरा पता बन गया था. बरसात में जब बूंदें इस के पत्तों पर गिरतीं तो वे आवाज मुझे बेहद प्यारी लगती. ओले गिरे या सर्दी का पाला, यह क्यारी के किनारे रखे छोटे पौधों की ढाल बन कर सब झेलता रहता.

30 वर्ष की कितनी यादें इस पेड़ से जुड़ी थीं. कितनी सारी घटनाओं का साक्षी यह पेड़ हमारे साथ था भी तो इतने वर्षों से… दिनरात, हर मौसम में तटस्थता से खड़ा.

पता नहीं, कितने लोगों को सुकून भरी छाया देने वाले इस पेड़ को पिछले 2 वर्ष से क्या हुआ कि यह दिन ब दिन सूखता चला गया. पहले कुछ दिनों में जब इस की टहनियां सूखने लगीं, तो मैं ने कुछ मोटी, मजबूत डालियों को देखा. उस पर अभी भी पत्ते हरे थे.

मैं थोड़ी आश्वस्त हो गई कि अभी सब ठीक है, परंतु कुछ ही समय में वे पत्ते भी मुरझाने लगे. मुझे अब चिंता होने लगी. सोचा, बारिश आने पर पेड़ फिर ठीक हो जाएगा, पर सावनभादों सब बीत गए, वह सूखा ही बना रहा. अंदर ही अंदर से वह कमजोर होने लगा. कभी आंधी आती तो उसे और झकझोर जाती. मैं भाग कर सारे खिड़कीदरवाजे बंद करती, पर बाहर खड़े उस सूखे पेड़ की चिंता मुझे लगी रहती.

पेड़ अब पूरा सूख गया था. संबंधित विभाग को भी इस की जानकारी दे दी गई थी.

जब इस के पुन: हरे होने की उम्मीद बिलकुल टूट गई, तो मैं ने एक फूलों की बेल इस के साथ लगा दी. बेल दिन ब दिन बढ़ती गई. माली ने बेल को पेड़ के तने और टहनियों पर लपेट दिया. अब बेल पर सुर्ख लाल फूल खिलने लगे.

यह देख मुझे अच्छा लगा कि इस उपाय से पेड़ पर कुछ बहार तो नजर आ रही है… पंछी भी वापस आने लगे थे, पर घोंसले नहीं बना रहे थे. कुछ देर ठहरते, पेड़ से बातें करते और वापस उड़ जाते. अब बेल भी घनी होने लगी थी. उस की छाया पेड़ जितनी घनी तो नहीं थी, पर कुछ राहत तो मिल ही जाती थी. पेड़ सूख जरूर गया, पर अभी भी कितने नेक काम कर रहा था.

टीवी केबल के तार अभी भी उस के सूखे तने से बंधे थे. सुर्ख फूलों की बेल को उस के सूखे तने ने सहारा दे रखा था. बेल को सहारा मिला तो उस की छाया में क्यारी के छोटे पौधे सहारा पा कर सुरक्षित थे. पेड़ सूख कर भी कितनी भलाई के काम कर रहा था. इसीलिए मैं इसे नेकी वाला पेड़ कहती. मैं ने इस पेड़ को पलपल बढ़ते हुए देखा था. इस से लगाव होना बहुत स्वाभाविक था.

परंतु आज इसे यों धरती पर चित्त पड़े देख कर मेरा मन बहुत उदास हो गया. लगा, जैसे आज सारी नेकी धराशायी हो कर जमीन पर पड़ी हो. पेड़ के साथ सुर्ख लाल फूलों वाली बेल भी दबी हुई पड़ी थी. उस के नीचे छोटे पौधे वाले गमले तो दिखाई ही नहीं दे रहे थे. मुझे और भी ज्यादा दुख हो रहा था.

घंटी बजाने वाले ने बताया कि अचानक ही यह पेड़ गिर पड़ा. कुछ देर बाद केबल वाले आ गए. वे तारें ठीक करने लगे. पेड़ की सूखी टहनियों को काटकाट कर तार निकाल रहे थे.

यह मुझ से देखा नहीं जा रहा था. मैं घर के अंदर आ गई, परंतु मन बैचेन हो रहा था. सोच रही थी, जगलों में भी तो कितने सूखे पेड़ ऐसे गिरे रहते हैं. मन तो तब भी दुखता है, परंतु जो लगातार आप के साथ हो वह आप के जीवन का हिस्सा बन जाता है.

याद आ रहा था, जब गली की जमीनको पक्की सड़क में तबदील किया जा रहा था, तो मैं खड़ी हुई पेड़ के आसपास की जगह को वैसा ही बनाए रखने के लिए बोल रही थी.

लगा, इसे भी सांस लेने के लिए कुछ जगह तो चाहिए. क्यों हम पेड़ों को सीमेंट के पिंजड़ों में कैद करना चाहते हैं? हमें जीवनदान देने वाले पेड़ों को क्या हम इतनी जमीन भी नहीं दे सकते? बड़ेबुजुर्गों ने भी पेड़ लगाने के महत्त्व को समझाया है.

बचपन में मैं अकसर अपनी दादी से कहती कि यह आम का पेड़, जो आप ने लगाया है, इस के आम आप को तो खाने को मिलेंगे नहीं.

यह सुन कर दादी हंस कर कहतीं कि यह तो मैं तुम सब बच्चों के लिए लगा रही हूं. उस समय मुझे यह बात समझ में नहीं आती थी, पर अब स्वार्थ से ऊपर उठ कर हमारे पूर्वजों की परमार्थ भावना समझ आती हैं. क्यों न हम भी कुछ ऐसी ही भावनाएं अगली पीढ़ी को विरासत के रूप में दे जाएं.

मैं ने पेड़ के आसपास काफी बड़ी क्यारी बनवा दी थी. दीवाली के दिनों में उस पर भी नया लाल रंग किया जाता तो पेड़ और भी खिल जाता.

पर आज मन व्यथित हो रहा था. पुन: बाहर गई. कुछ देर में ही संबंधित विभाग के कर्मचारी भी आ गए. वे सब काम में जुट गए. सभी छोटीबड़ी सूखी हुई सारी टहनियां एक ओर पड़ी हुई थीं. मैं ने पास से देखा, पेड़ का पूरा तना उखड़ चुका था. वे उस के तने को एक मोटी रस्सी से खींच कर ले जा रहे थे.

आश्चर्य तो तब हुआ, जब क्यारी के किनारे रखे सारे छोटे गमले सुरक्षित थे. एक भी गमला नहीं टूटा था. जातेजाते भी नेकी करना नहीं भूला था ‘सप्तपर्णी’. लगा, सच में नेकी कभी धराशायी हो कर जमीन पर नहीं गिर सकती.

मैं उदास खड़ी उन्हें उस यादों के दरफ्त को ले जाते हुए देख रही थी. मेरी आंखों में आंसू थे.

पेड़ का पूरा तना और डालियां वे ले जा चुके थे, पर उस की गहरी जड़ें अभी भी वहीं, उसी जगह हैं. मुझे पूरा यकीन है कि किसी सावन में उस की जड़ें फिर से फूटेंगी, फिर वापस आएगा ‘सप्तपर्णी.’

लेखिका- मंजुला अमिय गंगराड़े

अच्छे शेर की तलाश : नेताओं के पालने के शौक

मैं कुछ सम झ नहीं पाया. मु झे लगा कि वे वन्य पशु संरक्षण बिल के खिलाफ जा कर अपने बंगले में शेर बांधना चाहते हैं. मैं ने उन्हें याद दिलाना चाहा  झ्कि वन्य प्राणी संरक्षा बिल के चलते वे शेर नहीं पाल सकते. लेकिन नेताओं का क्या, कुछ भी कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के एक नेता ने तो अपने बंगले में मगरमच्छ पाल रखे थे. नेता हैं तो अपने आलीशान बंगले में शेर, हाथी, गैंडा, हिरन, कछुआ कुछ भी रख सकते हैं. मु झे उन की शेर मंगवाने की वजह सम झ में नहीं आ रही थी. नेता तो कुछ भी पाल सकते हैं. गुंडे तो पालते ही हैं.

‘‘वह कवि सम्मेलनों या ऐसे ही किसी साहित्यिकफाहित्यिक कार्यक्रम में गा कर पढ़ते हैं न, उस वाले शेर की बात कर रहा हूं. लगता है कि तुम कवि सम्मेलनों में नहीं जाते?’’ उन्होंने मेरी जानकारी पर तरस खाते हुए कहा.

मु झे उन की इस 180 डिगरी की छलांग पर हैरानी हुई. बातबात में संस्कृत के श्लोक पढ़ने वाला आज उर्दू के शेर की बात कर रहा है. दल बदल तो नहीं कर लिया? वैसे भी अच्छे दिनों का सपना देखतेदेखते दोपहर हो गई है.

‘‘कहीं से भी लाओ, जल्दी लाओ. लाते रहो. काम आते जाएंगे. मु झे भाषण देना है. अब मैं घिसेपिटे भाषण देने

के बजाय शेर के जरीए अपनी बात कहूंगा,’’ उन्होंने कहा.

मैं शेर का मतलब सम झ तो गया था, लेकिन भाषण और शेर का नाता नहीं जोड़ पाया. मैं ने कलैंडर देखा. बजट या उस का संशोधन भी नहीं आया, जो वित्त मंत्री जातेजाते परंपरा के मुताबिक कोई शेर पढ़ें और ये भी उस का शेर में ही जवाब दें.

अपना तो शेरोशायरी से नाता कभी का टूट चुका था. कालेज के दिनों में तो जरूर मौकेबेमौके शेर ठूंस दिया करता था. साथ में पढ़ने वाली किसी लड़की की भी शादी हो गई तो उदासी का शेर गुनगुना लेता था. किसी लड़की ने खुद बात कर ली तो दिनभर रोमांटिक शेर जबान पर खेलता रहता था.

शादी के बाद जिंदगी से रोमांटिसिज्म विदा हो जाता है और उस की जगह रियलिज्म ले लेता है. अब तो ‘मेक इन इंडिया’ का नशा उतरने के बाद शेर की याद भी डराती है. बस याद आता है तो ‘अप्लाई अप्लाई बट नो रिप्लाई’.

अखबारों में बढ़ती रोजगारी और जमीन चूमने को बेचैन जीडीपी खबरों के चलते कोई शेर कैसे कह सकता है. सुनने की ही ताकत नहीं रही. फिर भी मैं ने उन्हें यकीन दिलाया कि जल्द ही शेर ढूंढ़ लाऊंगा.

‘‘कैसा शेर चाहिए आप को? खुशी का चाहिए या गम का? स्पिरिचुअल या रिवौलूशनल?’’ मैं ने जानना चाहा.

सच ही तो है. उन्हें गुस्से का शेर चाहिए हो और मैं मजाक का शेर पकड़ा दूं. खुशी का शेर चाहिए और मैं गम का ले आऊं तो बेइज्जती मेरी पढ़ाईलिखाई की होगी. उन का क्या, उन की शैक्षणिक योग्यता का पता तो उन्हें खुद को नहीं है.

‘‘सिचुएशनल… मु झे सिचुएशनल शेर चाहिए. आज की मांग सिचुएशनल शेर की है. कल तक जो अपने थे, वे आज बेगाने हो गए,’’ उन्होंने हताशा से शायराना अंदाज में कहा.

उन की बात में दम तो था. आजकल सामने वाले की खिल्ली उड़ाने के लिए शेरोशायरी का इस्तेमाल होने लगा है.

उन की फरमाइश पूरी करने के लिए मैं ने दोस्तों के घर जा कर शायरी की किताबें इकट्ठा कीं. सभी को हैरानी हो रही थी कि जो आदमी खर्चे कैसे कम करें, कम आमदनी में घर कैसे चलाएं, अखबार की रद्दी का सब से अच्छा भाव पाएं जैसे विषयों पर किताबें ढूंढ़ता रहता था, वह आज शेरोशायरी की किताबें मांग रहा है. उसे अब शायरी में फिर से कैसे दिलचस्पी हो आई. कहीं कोई ऐसावैसा चक्करवक्कर तो नहीं है.

लेकिन मैं ने सही बात नहीं बताई. मेरा ज्यादातर समय नौकरी ढूंढ़ने के साथसाथ शायरी की किताबें पढ़ने में जाने लगा. गालिब, मोमिन, अकबर इलाहाबादी से लगा कर साहिर लुधियानवी, कैफी आजमी, जां निसार, जावेद अख्तर, सरदार जाफरी, राहत इंदौरी, मुनव्वर राना तक को खंगाल डाला. कुछ शेर इस के लिए चुरा लिए तो कुछ उस के और 2 अलगअलग शेरों को जोड़ कर नया शेर बनाने की तिकड़म भी भिड़ाई.

सच कहूं तो खुद भी कुछ शेर लिख मारे. काफिया नहीं मिला तो क्या, भाषण देने वालों का शायरी से कोई मतलब नहीं होता. कभी सुना या देखा है नेता लोगों से मुशायरों में जाते हुए.

सब महाराष्ट्र के चलते हो रहा है, 2 हफ्ते बाद नेताजी ने मेरे चुने हुए सारे शेर खारिज कर दिए.

‘‘बयानों में शायरी का चलन वहीं से शुरू हुआ है. न वहां के नेता अपने अखबार में शेर पर शेर लिख कर सामने वाली पार्टी को ललकारते और न ही सामने वाले उस का जवाब शेर में देते. वह क्या, किसी ने कहा है कि मैं लहर हूं, लौट कर आऊंगा या ऐसा ही कुछ. अब तो इधर से एक शेर गया नहीं कि उधर से एक शेर दौड़ा चला आता है.

‘‘लगता है कि जिंदाबादमुरदाबाद के नारे घिस गए हैं जो शेर पर शेर चले आ रहे हैं. मेरे पास कोई शेर नहीं होता मौके पर. ऐसे में मैं खुद को पिछड़ा सम झने लगता हूं. तुम्हारी किताबों का एक भी शेर आज के हालात पर हो तो लगी शर्त.’’

वे बोले, ‘‘पढ़ाई के नाम पर फिल्में देखने या लड़कियों के साथ होटल में गुजारने के बजाय 2-4 शेर ही रट लेते, तो आज यह शर्मनाक नौबत नहीं आती. लगता है कि खुद ही शेर लिखना होगा.’’

मैं ने तो अपना काम कर दिया. रोज अखबार तो खरीदता ही था कि नौकरी का कोई इश्तिहार दिख जाए, लेकिन इस बार उन का कोई दहाड़ता शेर पढ़ने को मिल जाए, इस पर भी नजर दौड़ाने लगा हूं.

बहुत दिन हो गए, लेकिन उन का शेर मांद में ही रहा. उन्हें भी बिना शेर के चैन नहीं था. एक दिन मेरे घर आए और डांटने लगे कि मैं ने कोई नया शेर नहीं सु झाया. बड़ी देर तक वे हमारी दोस्ती का वास्ता देते रहे. मुसीबत के समय दोस्त ही काम आता है जैसी किताबी बातें करते रहे.

मैं सम झ गया कि अब मामला आईसीयू में ले जाने जितना गंभीर हो गया है. मैं उन्हें हाईवे के टोल नाके पर ले गया.

मैं ने उन से अदब से कहा, ‘‘कुछ पल गुजारिए टोल नाके पर, शेरों की बरात निकलेगी. इस रास्ते से दिनरात कई ट्रक गुजरते हैं. उन के पीछे देखते रहिए. नएनए शेर मिल जाएंगे.’’

दरिंदे से बदला: सोनाली का दर्द

पड़ोसी राजेश सिंह के घर मन रहे जश्न का शोर सोनाली के कानों में पिघले सीसे की तरह उतर रहा था. सारे खिड़कीदरवाजे बंद कर कानों को कस कर दबाए वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कह कहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती.

पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’

सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था.

6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी.

एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’

‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था. 2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब

2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी.

हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी. बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे.

जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था.

शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं.

दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था.

राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी.

सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता. उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा.

एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई.

आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था. बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई.

सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे ही अपने शरीर पर बंधा तौलिया हटाया कि अचानक 2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया.

अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी.

सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था.

सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था.

इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों

से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया.

काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे.

इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था.

भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई. राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था.

राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया. वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा.

‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया.

जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया.

सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए. दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए.

कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत पड़ते गए.

सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं.

आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे.

राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था. रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी.

कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था.

दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था.

राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा. उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था.

सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा.

सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया.

सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई. वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया.

राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इससे पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’

सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’

जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे.

भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया.

जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी.

दोस्त न होता तो : क्या माया को मिल पाया पृथ्वीपाल जैसा दोस्त

कोरोना काल में पृथ्वीपाल का परिवार कई तरह की मुश्किलों का सामना बड़ी हिम्मत से कर रहा था. उस का गांव बहादुरपुर राजधानी लखनऊ से महज 5 किलोमीटर दूर है. वहां सिर्फ 6-7 परिवार अमीर हैं. 20-25 गरीब परिवार मजदूरी से गुजरबसर करते हैं, वहीं 60-70 परिवार पृथ्वीपाल के परिवार जैसे हैं.

ये परिवार न पूरी तरह से गरीब हैं, न अमीर ही. ये लोग ‘रोज कुआं खोदो रोज पानी पीयो’ वाली हालत में हैं. इन सब की आमदनी मजदूरों से थोड़ी सी ज्यादा है.

पृथ्वीपाल के पास 2 बीघा जमीन थी, लेकिन पत्नी रामरती के इलाज की खातिर जमीन बेच डाली थी. रामरती को 6 साल पहले कैंसर हो गया था. सारे जेवर और जमीन बेचने के बाद भी रामरती की मौत हो गई थी.

अब पृथ्वीपाल के परिवार में उस की 3 बेटियां और एक छोटा बेटा बचा था. उस ने परिवार को चलाने के लिए बैंक से कर्ज ले कर एक आटोरिकशा खरीदा था. वह पिछले 3 साल से लखनऊ में आटोरिकशा चला रहा था.

पृथ्वीपाल की बड़ी बेटी माया बीए करने के बाद एक निजी स्कूल में पढ़ाने लगी थी. बापबेटी की कमाई से परिवार ठीकठाक चलने लगा था.

माया ने अपनी दोनों छोटी बहनों और भाई का नाम उसी स्कूल में लिखवा दिया था. पृथ्वीपाल को अब माया की शादी की चिंता रहती थी.

पृथ्वीपाल आटोरिकशा की अदायगी अच्छे ढंग से कर रहा था.

3 महीने की ही किसतें बाकी रह गई थीं. बैंक ने उसे मई में दूसरा आटोरिकशा लेने की सलाह दी थी.

पृथ्वीपाल ने भी सोच लिया था कि इस रिकशे की अदायगी होते ही वह दूसरा रिकशा निकाल लेगा. नया वाला खुद चलाएगा, पुराना किसी को किराए पर दे देगा. इस से उस की आमदनी और बढ़ जाएगी. पर उसे क्या पता था कि मार्च आते ही कोरोना महामारी आ जाएगी. आमदनी बढ़ना तो दूर की बात, खानेपीने के भी लाले पड़ जाएंगे.

देश में कोरोना महामारी के चलते 5वां लौकडाउन चल रहा था. कोरोना के मरीज बढ़ रहे थे. सरकार नए नियमकानून और पैकेज का ऐलान कर रही थी. इसी बीच लाखों मजदूरों का पलायन जारी था.

सत्ता पक्ष कोरोना से निबट लेने के दावे पेश कर रहा था. सरकार द्वारा हर महीने किसानों, मजदूरों और दूसरे गरीबों को मुफ्त में राशन, गैस सिलैंडर और नकद रुपए भी दिए जा रहे थे. वहीं, विपक्ष कोरोना से हो रही बदहाली पर अपनी राजनीति चमका रहा था.

समाजसेवी मजदूरों की सेवा में जुटे थे. कोई मजदूरों को भोजनपानी बांट रहा था, कोई गरीबों को राशन, कपड़े, जूतेचप्पल दे रहा था.

ये सारी खबरें टैलीविजन पर सुबह से रात तक चल रही थीं. सुबह अखबार भी इन्हीं खबरों से रंगे होते थे.

पृथ्वीपाल इन खबरों को देख कर भी अनदेखी करने लगा था. ढाई महीने की बंदी के बाद भी उस की खबर लेने वाला कोई नहीं था, क्योंकि वह सरकार और समाज की नजर में गरीब नहीं था. उस का परिवार मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखता था, इसलिए उसे न सरकार से और न ही समाजसेवियों से कोई मदद मिलनी थी.

पृथ्वीपाल ढाई महीने से घर में ही कैद था. आटोरिकशा दरवाजे पर धूल खा रहा था. पृथ्वीपाल ने लंबे समय से एक रुपया नहीं कमाया था. आटोरिकशा की किस्तें भी उस पर चढ़ती जा रही थीं.

वहीं, माया का भी स्कूल बंद हो गया था. पर वह स्कूल के बच्चों को रोज 4 घंटे औनलाइन पढ़ाती थी. स्कूल वालों ने बिना कुछ बताए उस की तनख्वाह आधी कर दी. अब उसे महज 3,500 रुपए मिल रहे थे. इस से घर का राशनपानी व खर्च नहीं चल पा रहा था.

बीते 3 महीने में चारों बच्चों की गुल्लक तोड़ी जा चुकी थी. अब घर में एक रुपया किसी के पास नहीं था. सारा राशन, तेल, मसाला और घरेलू गैस खत्म हो चुकी थी.

आज दूसरा दिन था, जब घर में चूल्हा नहीं जला था. माया गांव की दुकान से चीनी, चाय पत्ती, बिसकुट व दालमोठ उधार लाई थी. सुबहशाम पांचों प्राणी सिर्फ चाय पीते थे.

स्कूल ने इस महीने आधी तनख्वाह भी अब तक नहीं दी थी. दूध वाला और सब्जी वाला आज सुबह पैसों के लिए तगादा कर के गए थे. दोनों का 2 महीने से बकाया चल रहा था.

पृथ्वीपाल के बेटे की तबीयत भी खराब थी. उसे बुखार और दस्त की शिकायत थी. राशनपानी से ज्यादा जरूरी उस की दवा थी. पृथ्वीलाल किसी से कुछ ले भी नहीं सकता था. इस में उस का स्वाभिमान आड़े आ रहा था.

घर की इस दर्दनाक हालत को देख कर माया ने स्कूल के प्रिंसिपल को फोन लगाया. उस ने प्रिंसिपल से 2,000 रुपए एडवांस देने की गुहार लगाई, लेकिन प्रिंसिपल ने साफ इनकार कर दिया.

प्रिंसिपल फोन पर बोले, ‘‘माया, तुम जानती हो कि 3 महीने से स्कूल बंद है. किसी बच्चे की फीस जमा नहीं हो रही है. बड़ी मुश्किल से तुम लोगों को तनख्वाह दी जा रही हैं.’’

इतना सुन कर माया की आंखों से आंसू बहने लगे.

तभी माया के एक सहपाठी माधव का फोन आ गया. उस ने अपने को संभाला और फोन ले कर छत पर चली गई. तब वह रुंधे गले से ‘हैलो’ बोली.

माधव हैलो सुन कर बहुतकुछ समझ गया. उस ने माया से पूछा, ‘क्यों रो रही है? क्या मुझे नहीं बताओगी? आंसू पोंछो और मुझे बताओ कि क्या हुआ…?’

माया ने न चाहते हुए भी एक सांस में घर की पूरी कहानी बता डाली.

उस ने माधव को बता दिया कि घर में कई दिनों से एक रुपया नहीं है. 2 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला है. भाई

की तबीयत खराब है. उस की दवा भी लानी है.

यह सुनते ही माधव आगबबूला हो गया. वह गुस्सा हो कर बोला, ‘जाओ, आज के बाद मैं तुम से कभी बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझे कुछ नहीं समझ. अगर मुझे कुछ मानती तो बहुत पहले फोन करती.’

माया बोली, ‘‘गुस्सा न करो यार. तुम घर से इतनी दूर लौकडाउन में फंसे हो. ऐसे में तुम को क्या बताती.’’

माधव ने कहा, ‘चलो ठीक, कोई बात नहीं. तुम तुरंत अंकल के साथ आटोरिकशा से कसबे में जाओ. भाई को भी साथ ले जाओ. मैं तुम्हारे बैंक खाते में 5,000 रुपए ट्रांसफर कर रहा हूं. पहले बैंक से रकम निकालो, फिर भाई की दवा लो. उस के बाद घर का सारा राशनपानी खरीदो.’’

माधव की बात पूरी होते ही माया बोली, ‘‘नहीं माधव, ऐसा मत करो. मु?ो 2-3 दिन में स्कूल से तनख्वाह मिल जाएगी. तब यहां सब हो जाएगा. तुम परदेश में हो. तुम को अपने पास रुपए रखने चाहिए.’’

लेकिन माधव ने दोस्ती की कसम दे कर माया को रुपए लेने पर मजबूर कर दिया.

पृथ्वीपाल बरामदे में लेटा राशन न होने और बेटे की खराब तबीयत के बारे में सोच रहा था. उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. वह गांव में किसी से रुपए उधार नहीं लेना चाहता था.

तभी माया वहां आ कर बोली, ‘‘पापा तुरंत तैयार हो जाइए, कसबे में चलते हैं. छोटू को डाक्टर को दिखा कर दवा ले आएं. साथ ही, घर का राशनपानी और गैस सिलैंडर भी ले आएंगे. कल सुबह दूध वाले, सब्जी वाले और गांव की दुकान का बकाया भी चुका देंगे.’’

इतना सुन कर पृथ्वीपाल ने पूछा, ‘‘माया, क्या इस बार तुम्हें पूरी तनख्वाह मिल गई है?’’

माया ने ठंडी सांस भरी और बोली, ‘‘अरे, नहीं पापा. माधव ने मेरे बैंक खाते में जबरदस्ती 5,000 रुपए डाल दिए हैं. वह बाद में अपने रुपए ले लेगा.’’

पृथ्वीपाल ने कहा, ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन तुम ने घर की परेशानी उसे क्यों बताई? वह बेचारा खुद लौकडाउन की वजह से बाहर फंसा है.’’

माया ने कहा, ‘‘पापा, अब कसबे में चलो, बाकी बातें बाद में करना.’’

पृथ्वीपाल आटोरिकशा से माया और छोटू को ले कर कसबे की ओर निकल पड़े. रास्ते में माया बारबार यही सोच रही थी कि अगर दोस्त न होता तो…

मिशन पूरा हुआ : जगह-जगह रावण है

‘‘अ रे ओ लक्ष्मी…’’ अखबार पढ़ते हुए जब लक्ष्मी ने ध्यान हटा कर अपने पिता मोड़ीराम की तरफ देखा, तब वह बोली, ‘‘क्या है बापू, क्यों चिल्ला रहे हो?’’

‘‘अखबार की खबरें पढ़ कर सुना न,’’ पास आ कर मोड़ीराम बोले.

‘‘मैं तुम्हें नहीं सुनाऊंगी बापू?’’ चिढ़ाते हुए लक्ष्मी अपने बापू से बोली.

‘‘क्यों नहीं सुनाएगी तू? अरे, मैं अंगूठाछाप हूं न, इसीलिए ज्यादा भाव खा रही है.’’

‘‘जाओ बापू, मैं तुम से नहीं बोलती.’’

‘‘अरे लक्ष्मी, तू तो नाराज हो गई…’’ मनाते हुए मोड़ीराम बोले, ‘‘तुझे हम ने पढ़ाया, मगर मेरे मांबाप ने मुझे नहीं पढ़ाया और बचपन से ही खेतीबारी में लगा दिया, इसलिए तुझसे कहना पड़ रहा है.’’

‘‘कह दिया न बापू, मैं नहीं सुनाऊंगी.’’

‘‘ऐ लक्ष्मी, सुना दे न… देख, दिनेश की खबर आई होगी.’’

‘‘वही खबर तो पढ़ रही थी. तुम ने मेरा ध्यान भंग कर दिया.’’

‘‘अच्छा लक्ष्मी, पुलिस ने उस के ऊपर क्या कार्यवाही की?’’

‘‘अरे बापू, पुलिस भी तो बिकी हुई है. अखबार में ऐसा कुछ नहीं लिखा है. सब लीपापोती है.’’

‘‘पैसे वालों का कुछ नहीं बिगड़ता है बेटी,’’ कह कर मोड़ीराम ने अफसोस जताया, फिर पलभर रुक कर बोला, ‘‘अरे, मरना तो अपने जैसे गरीब का होता है.’’

‘‘हां बापू, तुम ठीक कहते हो. मगर यह क्यों भूल रहे हो, रावण और कंस जैसे अत्याचारियों का भी अंत हुआ, फिर दिनेश जैसा आदमी किस खेत की मूली है,’’ बड़े जोश से लक्ष्मी बोली.

मगर मोड़ीराम ने कहा, ‘‘वह जमाना गया लक्ष्मी. अब तो जगहजगह रावण और कंस आ गए हैं.’’

‘‘अरे बापू, निराश मत होना. दिनेश जैसे कंस को मारने के लिए भी किसी न किसी ने जन्म ले लिया है.’’

‘‘यह तू नहीं, तेरी पढ़ाई बोल रही है. तू पढ़ीलिखी है न, इसलिए ऐसी बातें कर रही है. मगर यह इतना आसान नहीं है. जो तू सोच रही है. आजकल जमाना बहुत खराब हो गया है.’’

‘‘देखते जाओ बापू, आगेआगे क्या होता है,’’ कह कर लक्ष्मी ने अपनी बात कह दी, मगर मोड़ीराम की सम?ा में कुछ नहीं आया, इसलिए बोला, ‘‘ठीक है लक्ष्मी, तू पढ़ीलिखी है, इसलिए

तू सोचती भी ऊंचा है. मैं खेत पर जा

रहा हूं. तू थोड़ी देर बाद रोटी ले कर वहीं आ जाना.’’

‘‘ठीक है बापू, जाओ. मैं आ जाऊंगी,’’ लक्ष्मी ने बेमन से कह कर बात को खत्म कर दिया.

मोड़ीराम खेत पर चला गया. लक्ष्मी फिर से अखबार पढ़ने लगी. मगर उस का ध्यान अब पढ़ने में नहीं लगा. उस का सारा ध्यान दिनेश पर चला गया. दिनेश आज का रावण है. इसे कैसे मारा जाए? इस बात पर उस का सारा ध्यान चलने लगा. उस ने खूब घोड़े दौड़ाए, मगर कहीं से हल मिलता नहीं दिखा.

काफी सोचने के बाद आखिरकार लक्ष्मी ने हल निकाल लिया. तब उस के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई.

दिनेश और कोई नहीं, इस गांव का अमीर किसान है. उस के पास ढेर सारी खेतीबारी है. गांव में उस की बहुत बड़ी हवेली है. उस के यहां नौकरचाकर हैं. खेत नौकरों के भरोसे ही चलता है. रकम ले कर ब्याज पर पैसे देना उस का मुख्य पेशा है.

गांव के जितने गरीब किसान हैं, उन को अपना गुलाम बना रखा है. गांव की बहूबेटियों की इज्जत से खेलना उस का काम है. पूरे गांव में उस की इतनी धाक है कि कोई भी उस के खिलाफ नहीं बोलता है.

इस तरह इस गांव में दिनेश नाम के रावण का राज चल रहा था. उस के कहर से हर कोई दुखी था.

‘‘लक्ष्मी, रोटियां बन गई हैं, बापू को खेत पर दे आ,’’ मां कौशल्या ने जब आवाज लगाई, तब वह अखबार एक तरफ रख कर मां के पास रसोईघर में चली गई.

लक्ष्मी बापू की रोटियां ले कर खेत पर जा रही थी, मगर विचार उस के सारे दिनेश पर टिके थे. आज के अखबार में यहीं खबर खास थी कि उस ने अपने फार्म पर गांव के मांगीलाल की लड़की चमेली की इज्जत लूटी थी. गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई थी, मगर ऊपरी जबान से कोई कुछ नहीं कह रहा था कि चमेली की इज्जत दिनेश ने ही लूटी है.

जब लक्ष्मी खेत पर पहुंची, तब बापू खेत में बने एक कमरे की छत पर खड़े हो कर पक्षी भगा रहे थे, वह भी ऊपर चढ़ गई. देखा कि वहां से उस की पूरी फसल दिख रही थी.

लक्ष्मी बोली, ‘‘बापू, रोटी खाओ. लाओ, गुलेल मुझे दो, मैं पक्षी भगाती हूं.’’

‘‘ले बेटी संभाल गुलेल, मगर किसी पक्षी को मार मत देना,’’ कह कर मोड़ीराम ने गुलेल लक्ष्मी के हाथों में थमा दी और खुद वहीं पर बैठ कर रोटी खाने लगा.

लक्ष्मी थोड़ी देर तक पक्षियों को भगाती रही, फिर बोली, ‘‘बापू, आप ने यह कमरा बहुत अच्छा बनाया है. अब मैं यहां पढ़ाई करूंगी.’’

‘‘क्या कह रही है लक्ष्मी? यहां तू पढ़ाई करेगी? क्या यह पढ़ाई करने की जगह है?’’

‘‘हां बापू, जंगल की ताजा हवा जब मिलती है, उस हवा में दिमाग अच्छा चलेगा. अरे बापू, मना मत करना.’’

‘‘अरे लक्ष्मी, मैं ने आज तक मना किया है, जो अब करूंगा. अच्छा पढ़ लेना यहां. तेरी जो इच्छा है वह कर,’’ हार मानते हुए मोड़ीराम बोला.

लक्ष्मी खुश हो गई. उस का कमरा इतना बड़ा है कि वहां वह अपनी योजना को अंजाम दे सकती है. इस मकान के चारों ओर मिट्टी की दीवारें हैं और दरवाजा भी है. एक खाट भीतर है. रस्सी और बिजली का इंतजाम भी है. फसलें जब भरपूर होती हैं, तब बापू कभीकभी यहां पर सोते हैं. मतलब वह सबकुछ है, जो वह चाहती है.

इस तरह दिन गुजरने लगे. लक्ष्मी दिन में आ कर अपने खेत वाले कमरे में पढ़ाई करने लगी, क्योंकि इस समय फसल में अंकुर फूट रहे थे, इसलिए बापू भी खेत पर बहुत कम आते थे. पढ़ाई का तो बहाना था, वह रोजाना अपने काम को अंजाम देने के लिए काम करती थी.

अब लक्ष्मी सारी तैयारियां कर चुकी थी, फिर मौके का इंतजार करने लगी. इसी दौरान बापू का उस ने पूरा भरोसा जीत लिया था. इसी बीच एक घटना हो गई.

बापू के गहरे दोस्त, जो उज्जैन में रहते थे, उन की अचानक मौत हो गई. तब बापू 13 दिन के लिए उज्जैन चले गए. तब लक्ष्मी का मिशन और आसान हो गया.

लक्ष्मी का खेत ऐसी जगह पर था, जहां कोई भी बाहरी शख्स आसानी से नहीं देख सकता था. अब वह आजाद हो गई, इसलिए इंतजार करने लगी दिनेश का. बापू के न होने के चलते लक्ष्मी अपना ज्यादा समय खेत में बने कमरे पर बिताने लगी. सुबह कालेज जाती थी, दोपहर को वापस गांव में आ जाती थी. और फिर खेत में फसल की हिफाजत के बहाने पक्षियों को भगाती और खुद अपने शिकार का इंतजार करती.

अचानक लक्ष्मी का शिकार खुद ही उस के बुने जाल में आ गया. वह कमरे की छत पर बैठ कर गुलेल से पक्षियों को भगा रही थी, तभी गुलेल का पत्थर उधर से गुजर रहे दिनेश को जा लगा.

दिनेश तिलमिलाता हुआ पास आ कर बोला, ‘‘अरे लड़की, तू ने पत्थर क्यों मारा?’’

‘‘अरे बाबू, मैं ने तुम पर जानबूझकर पत्थर नहीं मारा. खेत में बैठे पक्षियों को भगा रही थी, अब आप को लग गया, तो इस में मेरी क्या गलती है?’’

‘‘चल, नीचे उतर. अभी बताता हूं कि तेरी क्या गलती है?’’

‘‘मैं कोई डरने वाली नहीं हूं आप से. आती हूं, आती हूं नीचे,’’ पलभर में लक्ष्मी कमरे की छत से नीचे उतर

गई, फिर बोली, ‘‘हां बाबू, बोलो. कहां चोट लगी है तुम्हें? मैं उस जगह को सहला दूंगी.’’

‘‘मेरे दिल पर,’’ दिनेश उस का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हाथ छोड़ बाबू, किसी पराई लड़की का हाथ पकड़ना अच्छा नहीं होता है,’’ लक्ष्मी ने हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश की.

‘‘हम जिस का एक बार हाथ पकड़ लेते हैं, फिर छोड़ते नहीं,’’ दिनेश ने उस का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.

लक्ष्मी ने देखा कि उस ने खूब शराब पी रखी है. उस के मुंह से शराब का भभका आ रहा था.

लक्ष्मी बोली, ‘‘यह फिल्मी डायलौग मत बोल बाबू, सीधेसीधे मेरा हाथ छोड़ दे.’’

‘‘यह हाथ तो अब हवेली जा कर ही छूटेगा… चल हवेली.’’

‘‘अरे, हवेली में क्या रखा है? आज इस गरीब की कुटिया में चल,’’ लक्ष्मी ने जब यह कहा, तो दिनेश खुद ही कमरे के भीतर चला आया. उस ने खुद दरवाजा बंद किया और पलंग पर बैठ गया. ज्यादा नशा होने के चलते उस की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

लक्ष्मी बोली, ‘‘जल्दी मत कर. मेरी झोपड़ी भी तेरे महल से कम नहीं है. देख, अब तक तो तू ने हवेली की शराब पी, आज तू झोपड़ी की शराब पी कर देख. इतना मजा आएगा कि तू आज मस्त हो जाएगा.’’

इस के बाद लक्ष्मी ने पूरा गिलास उस के मुंह में उड़ेल दिया. हलक में शराब जाने के बाद वह बोला, ‘‘तू सही कहती है. क्या नाम है तेरा?’’

‘‘लक्ष्मी. ले, एक गिलास और पी,’’ लक्ष्मी ने उसे एक गिलास और शराब पिला दी. इस बार शराब के साथ नशीली दवा थी. वह चाहती थी कि दिनेश शराब पी कर बेहोश हो जाए, फिर उस ने

2-3 गिलास शराब और पिला दी. थोड़ी देर में वह बेहोश हो गया.

जब लक्ष्मी ने अच्छी तरह देख लिया कि अब पूरी तरह से दिनेश बेहोश है, इस को होश में आने में कई घंटे लगेंगे, तब उस ने रस्सी उठाई, उस का फंदा बनाया और दिनेश के गले में बांध कर खींच दिया. थोड़ी देर बाद ही वह मौत के  आगोश में सो गया.

लक्ष्मी ने पलंग के नीचे पहले से एक गड्ढा खोद रखा था. उस ने पलंग को उठाया और लाश को गड्ढे में फेंक दिया.

लक्ष्मी ने गड्ढे में रस्सी और शराब की खाली बोतलें भी हवाले कर दीं. फिर फावड़ा ले कर वह मिट्टी डालने लगी.

मिट्टी डालते समय लक्ष्मी के हाथ कांप रहे थे. कहीं दिनेश की लाश जिंदा हो कर उस पर हमला न कर दे. जब गड्ढा मिट्टी से पूरा भर गया, तब उस ने उस जगह पर पलंग को बिछा दिया. फिर कमरे पर ताला लगा कर वह जीत की मुसकान लिए बाहर निकल गई.

News Kahani: दोस्ती प्यार और झांसा

नई दिल्ली का डिफैंस कालोनी इलाका. दोपहर के 2 बजे थे. सड़क सुनसान थी. इतने में वहां एक आटोरिकशा आ कर रुका, जिस में एक जवान लड़की बैठी थी. उस ने मिनी स्कर्ट और टाइट शर्ट पहनी हुई थी. आटोरिकशा वाले ने शायद शराब पी रखी थी, तभी तो वह उस लड़की को छेड़ने लगा था.

वह लड़की पहले तो सकपकाई, फिर जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी, ‘‘बचाओ…बचाओ, यह शराबी मेरे साथ बदतमीजी कर रहा है,’’ और जल्दी से आटोरिकशा से बाहर आ गई.

तभी एक कोठी का दरवाजा खुला और एक कुत्ते के भूंकने की आवाज आई. फिर उस घर से एक नौजवान और उस के 2-3 नौकर बाहर की ओर दौड़ते से आए. यह देख कर वह आटोरिकशा वाला तेजी से निकल गया.

वह लड़की अभी भी डरी हुई थी. उस नौजवान ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘घबराइए मत, वह आटोरिकशा वाला भाग चुका है. लेकिन मैं ने उस

के आटोरिकशा का नंबर नोट कर लिया है.’’

‘‘थैंक्स. मु?ो नहीं पता था कि उस ने शराब पी रखी है, वरना मैं उस के आटोरिकशा में कभी नहीं बैठती.’’

‘‘मेरा नाम रोहन है. मैं सामने वाले घर में रहता हूं. आप चाहें तो थोड़ी देर हमारे घर में आराम कर सकती हैं,’’ उस नौजवान ने कहा.

‘‘मेरा नाम दीपा है और मैं नोएडा में रहती हूं. यहां किसी फ्रैंड से मिलने आई थी,’’ उस लड़की ने कहा.

थोड़ी देर में वे दोनों घर के अंदर थे. दीपा ने पानी पिया और वहां से जाने की बात कही.

रोहन ने दीपा को अपना विजिटिंग कार्ड दिया और बोला, ‘‘कभी भी मेरी याद आए, तो दिए गए नंबर पर काल कर लेना.’’

यह सुन कर दीपा शरमा गई. वह खूबसूरत और गोरी तो थी ही, शरमाते ही उस के चेहरे पर लाली छा गई. वैसे, रोहन भी एक हैंडसम लड़का था और करोड़पति भी.

दीपा रोहन के घर से बाहर निकली और फोन किया, ‘‘कहां है भई तू. बड़ी जल्दी आटोरिकशा ले कर भागा.’’

थोड़ी देर में वही आटोरिकशा वाला दीपा के सामने खड़ा था. वह बोला, ‘‘वह लड़का तेरे हुस्न के जाल में फंसा या नहीं… कहीं हमारी चाल फेल तो नहीं हो गई?’’

‘‘ऐसा कभी हुआ है. आज उस ने अपना विजिटिंग कार्ड दिया है, कल

दिल भी देगा,’’ दीपा ने सिगरेट जलाते

हुए कहा.

दरअसल, दीपा जो दिखती थी, वह थी नहीं. वह तो रोहन जैसे अमीर लड़कों को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल करती थी. कुछ लड़कों को तो उस ने अपने गुरगों से पिटवा भी दिया था. पैसा पाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी.

इस घटना को बीते 2 महीने हो गए थे और इस बीच दीपा और रोहन कई बार मिल चुके थे, पर ज्यादातर रोहन के औफिस में. दीपा उस के बारे में सबकुछ जान चुकी थी. यहां तक कि रोहन ने उसे बता रखा था कि उस के ब्रीफकेस में हमेशा बहुत सारे पैसे रखे रहते हैं.

अब दीपा ने जाल बुनना शुरू कर दिया था. वह चाहती थी कि रोहन उसे अकेले में किसी होटल में मिले, जहां उस के पास उस का ब्रीफकेस जरूर हो.

एक दिन दीपा ने कहा, ‘‘रोहन, मु?ो तुम्हारे साथ डेट पर जाना है. कब तक हम औफिसऔफिस खेलते रहेंगे…’’

‘‘ओह, तो यह बात है,’’ रोहन बोला. वह भी दीपा के साथ कौफी पीपी कर बोर हो गया था, ‘‘बोलो, कब और कहां मिलना है?’’

‘‘मेरी जानपहचान का एक होटल है,’’ दीपा ने कहा.

‘‘देखो दीपा, अगर होटल में मिलना है, तो वह होटल मेरी पसंद का होगा. वहां हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा.’’

‘‘अच्छा,’’ दीपा ने कह तो दिया, पर किसी अनजान होटल में वह रोहन को अपने साथियों के साथ मिल कर लूटेगी कैसी, यह सम?ा नहीं आ रहा था, पर फिर भी वह बोली, ‘‘जहां तुम कहो, मैं आ जाऊंगी.’’

‘‘फिर ठीक है. हम कल ही मिलते हैं. मैं होटल की लोकेशन तुम्हें भेज दूंगा. मैं सीधा औफिस से वहां आ जाऊंगा.’’

‘‘यह ठीक रहेगा. नेक काम में देरी क्यों करें,’’ दीपा ने रोहन के पास जा

कर कहा.

दीपा के इतना करीब आते ही रोहन ने अपने होंठ उस के होंठों पर रख दिए. दीपा पीछे हटते हुए बोली, ‘‘अभी कुछ भी नहीं. जो भी करना है कल होटल

में कर लेना,’’ फिर वह जाने लगी.

आज रोहन ने दीपा को बड़े ध्यान से देखा था. वह लंबी और खूबसूरत तो थी ही, उस के नाजुक अंग भी जैसे तराशे हुए थे.

रोहन और दीपा ने अगले दिन यानी 24 अक्तूबर को शाम के 6 बजे तय होटल में मिलने का प्लान बनाया. रोहन ने उसे होटल की लोकेशन भेज दी थी.

रोहन समय से थोड़ा पहले ही होटल जा पहुंचा था और लौबी में बैठ कर दीपा का इंतजार कर रहा था. उस के मोबाइल फोन में चार्जिंग कम थी, तो टाइमपास करने के लिए उस ने सामने टेबल पर रखा एक हिंदी अखबार उठा लिया.

यों तो रोहन इंगलिश मीडियम स्कूल और कालेज से पढ़ा था, पर उस की हिंदी पर भी अच्छी पकड़ थी. कुछ

पन्ने पलटने के बाद उस की नजर एक सनसनीखेज खबर पर गई और उत्सुकता में वह खबर पढ़ने लगा.

मामला दिल्ली का था. अखबार के मुताबिक, राजधानी दिल्ली के भलस्वा डेयरी थाने की पुलिस उस समय हैरान रह गई, जब एक औरत थाने पहुंची और उस ने पुलिस वालों को बताया कि

उस ने अपने लिवइन पार्टनर की हत्या कर दी है.

शुरू में तो पुलिस वालों को लगा कि वह औरत शायद दिमागीतौर पर बीमार है, लेकिन उस के बारबार कहने पर पुलिस ने सोचा कि क्यों न एक बार चैक कर लिया जाए.

पुलिस जैसे ही उस औरत के साथ क्राइम सीन पर पहुंची, तो हैरत में पड़ गई. कमरे में फर्श पर खून से लथपथ एक नौजवान पड़ा था.

पुलिस वालों ने तुरंत मर्डर की तसदीक करते हुए थाने में बताया. मौकामुआयना करने पर पता चला कि उस औरत ने अपने साथी की पेचकस, सिलबट्टा, हथौड़े और चाकू से वार कर के हत्या की थी.

पुलिस ने उस नौजवान की लाश को फौरन ही पोस्टमौर्टम के लिए भेज दिया. उस औरत की निशानदेही पर वारदात

में इस्तेमाल सामान को भी जब्त कर लिया गया.

पुलिस के मुताबिक, यह वारदात मंगलवार, 22 अक्तूबर, 2024 की थी. भलस्वा डेयरी थाने में गली नंबर 1, रामा गार्डन, मुकुंदपुर में रहने वाली मुन्नी ने बताया कि वह मोहम्मद तवारक उर्फ साहिल खान के साथ काफी समय से लिवइन रिलेशनशिप में रह रही थी, जिस की घर में पत्थर (सिलबट्टा), हथौड़े और चाकू से हत्या कर दी.

पुलिस की पूछताछ में मुन्नी से पता चला कि उस के पति बंटी यादव की साल 2018 में मौत हो चुकी है. उस के 4 बच्चे हैं, एक लड़की और 3 लड़के. पति की मौत के बाद से वह मुकुंदपुर में रह रही थी.

मुन्नी पिछले 2 सालों से मोहम्मद तवारक उर्फ साहिल खान के साथ रिलेशनशिप में थी. साहिल खान पेशे से प्लंबर था. वह शादीशुदा था और उस का एक बच्चा भी है.

मुन्नी का आरोप है कि मोहम्मद तवारक उस के साथ बदसुलूकी करता था और शराब पीने का आदी था. वह उसे या उस के बच्चों को जान से मारने की धमकी देता था.

वारदात के समय मोहम्मद तवारक नशे की हालत में घर आया और उस के साथ बदसुलूकी करने लगा. फिर मुन्नी ने पत्थर, चाकू और हथौड़े से तवारक के सिर पर वार कर उस की हत्या कर दी.

रोहन यह खबर पढ़ कर चौकन्ना हो गया. वह दीपा के बारे में ज्यादा नहीं जानता था और आज रात होटल में वह उस के साथ पूरी रात बिताने वाला था.

रोहन ने एक गिलास पानी पिया और टहलते हुए लौबी के उस हिस्से में चला गया, जहां से होटल की पार्किंग का हिस्सा शीशे से दिखता था, पर बाहर से लौबी में देखना मुमकिन नहीं था.

रोहन का ध्यान अचानक पार्किंग में घुसती एक कार में गया. थोड़ा भीतर जाते ही वह कार रुकी और उस में से

4 लड़के और एक लड़की बाहर निकली. लड़की ने टीशर्ट और टाइट लैगिंग पहनी हुई थी.

‘अरे, यह तो दीपा है. पर इस के साथ ये 4 लड़के क्या कर रहे हैं?’ रोहन ने सोचा. पहले तो उस का मन पार्किंग में जाने को हुआ, पर फिर उस ने वहीं से दीपा पर नजर रखी.

उधर दीपा इस बात से बेखबर थी कि रोहन लौबी से उसे देख रहा है. वह उन चारों लड़कों के साथ हंसीमजाक

कर रही थी कि तभी एक लड़के ने

उस के पिछवाड़े पर चपत लगाई, तो दीपा ने एकदम से उस के पेट पर मुक्का मार दिया.

वह लड़का एक बार को तो दर्द से बिलबिला गया, फिर दीपा के गले लग गया. इसी बीच उन सब लड़कों ने दीपा को एक तरह से घेर लिया और वह

उन की ओट में वहीं पार्किंग में लैगिंग

पर साड़ी बांधने लगी और मेकअप

करने लगी.

रोहन को यह बात खटकी, पर वह जानना चाहता था कि दीपा उस से

क्या चाहती है, तो वह सावधान भी हो गया. उस के दिमाग में पेचकस से खून करने वाली खबर घूमने लगी.

थोड़ी ही देर में दीपा लौबी में आ गई. रोहन को वहां देख कर दीपा मुसकराई और उस के गले लग गई. सैक्सी स्टाइल में बंधी साड़ी में दीपा के नाजुक अंग उभर रहे थे. उस ने एक खुशबूदार इत्र लगाया हुआ था.

रोहन का मन मचलने लगा, पर पार्किंग वाला सीन उसे फिर सावधान कर रहा था.

रोहन बोला, ‘‘अरे यार, हमें होटल का कमरा शाम को 7 बजे के बाद ही मिलेगा. उस की सफाई हो रही है. तब तक क्यों न कौफी पी ली जाए?’’

‘‘वाह कौफी, इस की तो मु?ो बहुत जरूरत है. रात को मुझे नींद भी नहीं आएगी,’’ दीपा ने आंख मारते हुए कहा.

पर, रोहन के दिमाग में तो वे चारों लड़के घूम रहे थे. दीपा का उन के साथ होटल में आने का क्या मकसद है? यह सवाल रोहन को परेशान कर रहा था.

‘‘ओ हैंडसम, कहां खो गए… अभी तो हम रूम में भी नहीं गए और तुम मु?ो पाने के सपने भी देखने लगे,’’ दीपा इतराते हुए बोली.

‘‘उन पलों का तो मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं. और हां, जब तक कौफी आती है, तब तुम अगर फ्रैश

होना चाहती हो, तो वहां साइड में वाशरूम है,’’ रोहन ने अपनी चिंता छिपाते हुए कहा.

‘‘यह अच्छा आइडिया है. तुम बैठो, मैं अभी फ्रैश हो कर आई,’’ दीपा ने कहा और अपना बैग वहीं छोड़ कर वाशरूम में चली गई.

रोहन को जब तसल्ली हो गई कि अब कम से कम 5 मिनट तक दीपा बाहर नहीं आएगी, तो वह तेजी से लौबी के उसी हिस्से में गया, जहां से पार्किंग एरिया दिखता था. वे चारों लड़के और वह कार वहीं खड़ी थी.

रोहन तुरंत वापस आया और दीपा का बैग खंगालने लगा. उस में 2 बड़ीबड़ी छुरियां रखी थीं. एक शीशी में क्लोरोफार्म भी था.

रोहन के दिमाग में अखबार में छपी खबर पर गया और मुन्नी का खयाल आया. कहीं दीपा उसे लूटने के चक्कर में तो नहीं आई है, क्योंकि दीपा को पता था कि रोहन के ब्रीफकेस में हमेशा 5-10 लाख रुपए कैश रहता ही था?

इस से पहले कि दीपा वापस आती, रोहन ने अपना ब्रीफकेस उठाया और चुपचाप वहां से निकल गया. आज अगर उस ने यह खबर नहीं पढ़ी होती, तो पता नहीं उस के साथ क्या हो सकता था.

फ्रैंडशिप क्लब का चक्कर

दीपक को अचानक एक दिन एक ऐसा नौजवान मिला, जो उस की जानपहचान का था और शहर की एक नामी कंपनी में इंजीनियर था.  दीपक ने उस से पूछा, ‘‘बड़े परेशान लगते हो… कोई दिक्कत तो नहीं है?’’पर उस नौजवान ने कुछ नहीं बताया. तभी उस का मोबाइल फोन बजा और वह बात करने में लग गया.दीपक को उस की बात से यह एहसास हुआ कि कोई उस से किसी बैंक अकाउंट में पैसे जमा कराने को कह रहा था.दीपक ने उस से पूछा,

‘‘क्या बात हो रही थी? लगता है कि कुछ पैसे जमा कराने की बात है. संभल कर रहना, इस शहर में ठगों की कोई कमी नहीं है.’’इस पर वह बोला,

‘‘अंकलजी, मैं तो बेवकूफ बन गया.’’‘‘कैसे?’’ दीपक ने पूछा.‘‘मैं ने अखबारों में फ्रैंडशिप क्लबों के इश्तिहार देखे थे. उन में लड़कियों के साथ मौजमस्ती करने के साथ हजारों रुपए रोज कमाने की बातें लिखी थीं. मैं ने उन में से एक का नंबर मिला दिया.’’‘‘फिर क्या हुआ?’’ दीपक भी इस बारे में जानने को बेचैन था.

उस ने बताया, ‘‘अंकलजी, फोन की घंटी बजते ही उधर से किसी लड़की की सुरीली आवाज आई कि क्या आप क्लब के मैंबर बनना चाहते हैं?‘‘मैं ने कहा कि बनना तो चाहता हूं, पर इस के लिए क्या करना होगा?’’‘‘उस ने बताया कि पहले आप को हमारे बैंक अकाउंट में एक हजार रुपए जमा कराने होंगे, तब आप का मैंबर के रूप में रजिस्ट्रेशन हो जाएगा

‘‘इस के बाद आप को आप की पसंद के मुताबिक कालेज गर्ल्स, मौडल, खूबसूरत औरतों के मोबाइल नंबर दे दिए जाएंगे. वे भी हमारे क्लब की मैंबर हैं. फिर आप जब चाहें, उन से बात कर लें.‘‘इतना कह कर उस ने पूछा कि क्या आप पैसे जमा करा रहे हैं?

‘‘मैं ने कहा कि थोड़ा सोच लेता हूं. वैसे, मेरी सम?ा में यह बात नहीं आई थी कि मौजमस्ती करने के लिए लड़कियां जहां पैसे लेती हैं, वहां हमें ही हजारों रुपयों की आमदनी कैसे होगी?‘‘इस पर उस लड़की ने कहा कि देखिए, इस शहर में ऐसी न जाने कितनी लड़कियां और औरतें हैं, जिन की सैक्स की इच्छा पूरी नहीं हो पाती, क्योंकि उन के पति दिनरात कारोबार में फंसे रहते हैं. इन औरतों के पास पैसों की कोई कमी नहीं होती, इसलिए अगर कोई उन्हें खुश कर देता है,

तो उसे वे पैसे क्यों न देंगी?‘‘मैं ने भी सोचा कि मस्ती की मस्ती और पैसे के पैसे. क्यों न मजे लूं और उसी वक्त अकाउंट नंबर मांग कर उस में एक हजार रुपए जमा करा दिए.‘‘2 घंटे बाद ही मेरे मोबाइल फोन पर 4 मोबाइल नंबर मैसेज कर दिए गए. कुछ देर बाद मैं ने एक नंबर पर फोन मिलाया. उधर घंटी बजने लगी, इधर मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी.वहां से एक मर्द की आवाज आई,

तो मैं ने जल्दी से फोन काट दिया. दूसरे नंबर पर फोन मिलाया, तो एक औरत की आवाज आई, ‘हैलो…’ ‘‘मैं ने कहा, ‘जी, यह नंबर लवली फ्रैंडशिप क्लब ने मु?ो दिया है, दोस्ती और मौजमस्ती…’‘‘वह औरत मुझे गालियां देने लगी. कहने लगी, ‘मैं किसी फ्रैंडशिप क्लब को नहीं जानती.’‘‘उस की गालियां सुन कर मेरी हिम्मत अगले 2 नंबरों पर फोन मिलाने की नहीं हुई.‘‘जब दिमाग कुछ शांत हुआ, तो मैं फ्रैंडशिप क्लब के नंबरों पर फोन मिलाने लगा.

2 नंबर तो बंद मिले. एक लगातार बिजी जा रहा था.‘‘शाम को क्लब का नंबर मिला, तो उसी लड़की ने फोन उठाया. मैं ने उसे सारी दास्तान सुनाई. उस ने ‘सौरी’ कहते हुए बताया कि दरअसल, क्लर्क की गलती से आप को इस क्लब के पुराने मैंबरों के नंबर चले गए हैं. हम खुद आप को फोन करने वाले थे, पर कुछ जरूरी काम आ गया. हम क्या जानते थे कि आप इतने बेकरार हैं.‘‘फिर उस लड़की ने कहा कि आप आखिरी नंबर ट्राई कर के देखिए. आप का काम बन जाएगा.

‘‘यह कह कर उस ने फोन काट दिया.‘‘मैं ने दूसरे दिन वह आखिरी नंबर मिलाया. इस बार जवाब में एक प्यारी सी ‘हैलो’ सुनने को मिली. ‘‘मैं ने क्लब की बात की. उस लड़की ने कहा कि उसे सब पता है. क्लब के मैंबर ही उसे फोन कर सकते हैं. फिर उस ने कहा कि मिलने की जगह और समय बताओ. मैं ने उसे शाम के 6 बजे इंडिया गेट पर मिलने का समय दे दिया.

उस ने कहा कि वह जींस और लाल टीशर्ट में होगी.‘‘उसी दिन मु?ो तनख्वाह मिली थी. अपनी ?ि?ाक दूर करने के लिए मैं ने 3-4 पैग शराब के गटक लिए और ठीक पौने 6 बजे मैं इंडिया गेट पहुंच गया.‘‘कुछ ही देर में जींस और लाल टीशर्ट पहने एक लड़की आटोरिकशे से उतरते हुए दिखाई पड़ी. मैं ने उस का नंबर मिलाया, तो उस के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी.

‘‘मैं लपक कर उस के पास गया. उस ने मु?ो देख कर कहा कि तो आप ही हैं. फिर मेरी कमर पर हाथ मारते हुए कहा कि चलो, कहीं बैठते हैं, वहीं मौजमस्ती की बातें होंगी.‘‘उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मु?ो खींचते हुए घास के मैदान के एक छोर पर ले गई.

वहां हम बैठ गए.‘‘उस ने कहा कि खुद तो शराब पी रखी है, हमें भी तो कुछ पिलाओ. उस के बिना मस्ती कैसे आएगी?‘‘हम ने एक आटोरिकशा लिया और कनाट प्लेस की तरफ चले गए. ‘‘रास्ते में ही उस लड़की ने मु?ा से लिपटनाचिपकना शुरू कर दिया. उस ने मेरी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया. मैं काफी जोश में आ गया था.‘‘आटोरिकशा के पैसे उस लड़की ने ही दिए.

मैं ने कहा भी कि मैं पैसे दे दूं, तो उस ने कहा कि सारा खर्च हमारा होगा और ऊपर से आप को 10 हजार रुपए तो मिलेंगे ही.‘‘मेरे अलावा आप को एक और लड़की को भी संतुष्ट करना होगा. कुछ खानेपीने के बाद हम होटल के कमरे में चलेंगे. पहले से एयरकंडीशंड कमरा बुक करा रखा है. हम जो कहते हैं, वह करते भी हैं.‘‘बार में बैठ जाने के बाद उस लड़की ने ड्रिंक और स्नैक्स के और्डर दे दिए. मैं ने तो पहले से पी रखी थी, इसलिए सिर्फ 2 पैग लिए, पर वह लड़की देखते ही देखते 4 पैग गटक गई. साथ में आधी दर्जन सिगरेट उस ने फूंक डालीं. बार का बिल भी उस ने ही चुकाया.

‘‘बार से निकलने पर उस ने मु?ो 5 सौ का नोट पकड़ाते हुए वोदका का एक अद्धा लाने को कहा.‘‘मैं ने कहा, ‘पहले ही काफी ले चुके हैं. अब क्या जरूरत है?’‘‘इस पर उस ने कहा, ‘जरूरत है, रात को लंबा खींचने के लिए. और हां, वह भी तो आ रही है. वह अपने साथ एकाध अद्धापव्वा लेती आएगी, पर पहले से इंतजाम रखने में क्या हर्ज है?’‘‘मैं जा कर वोदका का अद्धा ले आया. फिर उस ने एक आटोरिकशा कर के उसे एक होटल में चलने को कहा. ‘‘10 मिनट के भीतर हम होटल की लौबी में थे.

होटल शानदार था. उस लड़की को देखते ही रिसैप्शन पर बैठी औरत ने उसे चाबी पकड़ा दी और कहा, ‘मैडमजी, आप का कमरा नंबर 25 है… इसी फ्लोर पर.’‘‘लड़की ने उस से चाबी ली और चल पड़ी. मैं उस लड़की के पीछेपीछे मानो किसी डोर से बंधा चला जा रहा था. कमरे में घुसते ही लगा, मानो स्वर्ग में आ गया हूं. शानदार डबल बैड, काफी बड़ा सोफा, मेज और कुरसियां. कमरा एयरकंडीशंड था.‘‘अंदर जाते ही लड़की सोफे पर पसर गई. मैं भी उस के बगल में जा बैठा. उस ने मु?ो दबोचते हुए किस कर लिया. फिर उस ने फोन उठाया और आमलेट, नमकीन, काजू, सोड़ा, बर्फ और कोल्ड ड्रिंक की बड़ी बोतल लाने का और्डर दिया.

‘‘10 मिनट के भीतर बैरा सारा सामान ले आया और मेज पर सजा दिया.‘‘लड़की छोटेछोटे पैग बनाने लगी. हम पी रहे थे और वह मेरे बदन से खेल रही थी. इसी बीच धीरेधीरे उस ने कपड़े उतारने शुरू कर दिए थे. मैं यह सब देख कर हैरान था.‘‘उस ने मु?ा से कहा, ‘तुम कपड़े क्यों नहीं उतार रहे?

खेल का एक दौर तो चले. फिर मेरी सहेली भी आती होगी.’‘‘इतना कह कर उस ने वोदका का एक बड़ा पैग गटका और मेरे कपड़े उतारने लगी. फिर उस ने मेरे नाजुक अंगों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. मैं अपना जोश संभाल न सका. इस पर वह लड़की खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘उस ने कहा, ‘कोई बात नहीं, शुरूशुरू में ऐसा होता है. हम तुम्हें तैयार कर देंगे. ‘‘‘अच्छा, यह बताओ कि तुम ने पहले किसी लड़की से सैक्स किया है या नहीं?’‘‘मैं ने कहा, ‘नहीं जी, कभी नहीं.’‘‘वह लड़की बोली, ‘तभी तो… चलो, कोई बात नहीं…’ ‘‘तभी दरवाजे की घंटी बजी. वह लड़की बोली, ‘लो, वह भी आ गई…’‘‘एक मोटीताजी लड़की मिनी स्कर्ट और टौप में थी.

मैं ने जल्दी से बैड की चादर से अपनेआप को छिपाने की कोशिश की, पर उस लड़की ने वह चादर हटा दी और बोली, ‘इस तरह शरमाओगे, तो कैसे काम चलेगा?’‘‘उस लड़की ने आते ही मु?ो बांहों में भरते हुए कहा, ‘चूजा तो अच्छा दिखता है. देखें, कमाल क्या दिखाता है?’‘‘उस ने भी अपने बैग से एक अद्धा निकाला और उस लड़की से कहा, ‘जल्दी खाना मंगवाओ. खाने के बाद ही खेल शुरू होगा.’‘‘उस लड़की ने कमरे में लगे फोन से खाने का और्डर दिया.‘‘15 मिनट के बाद खाना आ गया.

उन दोनों ने तो जम कर खाया, पर ज्यादा नशे में होने के चलते मैं ज्यादा नहीं खा सका.‘‘इस के बाद उस लड़की ने अपने सारे कपड़े उतार डाले और मु?ो पलंग पर धकेल दिया. उस ने मु?ो चूमनाचाटना और दांतों से काटना शुरू कर दिया.‘‘मैं बिलबिला उठा. उस ने अभी असली खेल शुरू ही किया था कि मैं फिर अपना जोश संभाल नहीं पाया. इस पर उस ने मु?ो पलंग से धक्का दे दिया और कपड़े पहनने लगी.‘‘उस ने कहा, ‘यह चूजा सिर्फ दिखने में ठीक है, पर किसी काम का नहीं.

’‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हो रहा था. पहली वाली लड़की ने कहा, ‘यह एकदम कोरा है. मैं कोशिश करती हूं.’‘‘अब वह उछल कर पलंग पर आई और मु?ो दबोच लिया. फिर वही चूमनाचाटना और दांतों से काटना, पर उस की लाख कोशिशों के बावजूद मैं जोश में नहीं आ पा रहा था.

आखिर में निराश हो कर उस ने मु?ो एक जोरदार लात मारी और अपने कपड़े पहनने लगी.‘‘तब उस मोटी लड़की ने कहा, ‘इस चूजे को हम छोड़ेंगे नहीं. मैं कालू पठान को फोन लगाती हूं. वही इस का इलाज करेगा.’‘‘यह सुन कर मैं डर गया. उधर वह मोटी लड़की कालू पठान को फोन लगा कर बता रही थी, ‘अरे, एक चूजा जाल में फंसा था, पर किसी काम का नहीं है. तेरे लिए अच्छा रहेगा. जल्दी आ जा.’‘‘पता नहीं, उधर से क्या आवाज आई, पर आधे घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी. मोटी लड़की ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोला, तो एक लंबाचौड़ा आदमी अंदर आया.

‘‘अंदर आते ही वह सोफे पर पसर गया और पूछा, ‘कुछ पीने को है?’‘‘अभी वोदका का एक अद्धा वैसे ही पड़ा था. उस ने 2-3 पैग लगाए. दोनों लड़कियों को बांहों में भर कर किस किया और मेरे पास आ कर मेरे गालों को सहलाते हुए बोला, ‘सच, तू तो बड़ा मजेदार चूजा है.’‘‘यह सुन कर मैं और ज्यादा डर गया कि कहीं यह मु?ा से सैक्स न करे. मैं चुपचाप पड़ा था. मेरे शरीर ने हरकत करनी बंद कर दी थी, इधर दोनों अधनंगी लड़कियां ठहाके लगा रही थीं. पठान ने मोटी लड़की से कहा,

‘फिल्म तो तू बनाएगी न? चल तैयार हो जा.’‘‘यह सुनते ही उस लड़की ने बैग से कैमरा निकाल लिया. फिर उस ने पहली वाली लड़की से कहा, ‘देख, यह पूरी तरह कोरा है. काफी चीखपुकार मचाएगा. मेरे बैग में रस्सी होगी. निकाल ला और अच्छी तरह से बांध दे.’‘‘अब मेरी सम?ा में आ गया कि मेरे साथ क्या होने जा रहा था. पठान ने मेरे गालों को काटते हुए कहा, ‘चल, अच्छे बच्चे की तरह पेट के बल लेट जा.’‘‘मैं ने जब कोई हरकत नहीं की, तो उस ने जबरदस्ती मु?ो पलट दिया. लड़कियां खिलखिला कर हंस रही थीं. पहली वाली ने मेरे पैरों को चौड़ा कर पलंग के किनारे वाले हुकों से बांध दिया.

उसी तरह हाथों को भी.‘‘पठान ने कहा, ‘देख, यह चिल्लाएगा. टैलीविजन को तेज आवाज में चला दे.’ ‘‘इस के बाद वह मु?ा पर लद गया. मु?ा पर बेहोशी छा गई. पता नहीं, पठान कब तक मु?ा पर लदा रहा.‘‘सुबह जब आंख खुली, तो दर्द से मैं बेहाल था.‘‘मैं ने समय देखने के लिए हाथ सीधा करना चाहा तो पाया कि घड़ी नहीं थी. गले में सोने की एक चेन थी, वह भी गायब. मोबाइल फोन की तरफ हाथ बढ़ाया, तो एक पुराना सस्ता सा मोबाइल दिखाई पड़ा.‘‘मेरा महंगा मोबाइल गायब हो चुका था.

पैंट की जेब में हाथ डाला, तो पर्स गायब. उस में 6-7 हजार रुपए थे.‘‘मैं बुरी तरह लुट गया था. यह तो कहिए कि मेरे फोन से सिम निकाल कर उन्होंने इस पुराने मोबाइल फोन में लगा दी थी.‘‘इतनी मेहरबानी उन्होंने क्यों की थी, इस का पता मु?ो बाद में चला. ‘‘सब से पहले तो मैं ने दफ्तर में फोन मिला कर सूचना दे दी कि अचानक तेज बुखार हो जाने के कारण आज नहीं आ पाऊंगा.

‘‘तभी होटल का बैरा आया. उस ने पूछा कि रात कैसी रही साहब? अभी कुछ नाश्ता और चाय लेंगे?‘‘मैं ने कहा कि चायनाश्ता ले लूंगा. ‘‘15 मिनट के भीतर चायनाश्ता ले कर आ गया. इस बीच मैं नहाधो कर कपड़े पहन कर तैयार हो गया था.‘‘मैं नाश्ता करने लगा, पर बैरा वहीं खड़ा रहा. उस ने पूछा कि साहब, आज रहोगे? मेरे नहीं कहने पर उस ने कहा कि फिर बिल ले आता हूं.

‘‘मैं ने कहा, ‘बिल? क्या उन लोगों ने बिल नहीं दिया?’‘‘जवाब में बेरे ने कहा कि नहीं, उन्होंने बिल नहीं दिया. उन्होंने तो कहा कि बिल आप देंगे. 8 हजार रुपए का बिल है.‘‘यह सुन कर मेरा दिमाग चकरा गया. इधर बैरे की निगाह वोदका की बोतल पर लगी थी. उस में काफी शराब बची हुई थी. मैं ने उस से कहा कि पीना है, तो पी ले. वह जल्दीजल्दी वोदका गटकने लग गया.

‘‘मैं सोचने लगा कि 8 हजार रुपए कहां से लाऊंगा. ‘‘इधर बैरे ने देखते ही देखते बोतल साफ कर दी. फिर उसी ने कहा कि साहब, आप लुट चुके हो. यहां रोजाना यही खेल होता है. इतने पैसे कहां से लाओगे? पर शराब पिला कर आप ने मु?ो खुश कर दिया. मैं यहां से निकलने में आप की मदद करूंगा.‘‘मैं ने पूछा, ‘वह कैसे?’‘‘उस ने कहा कि आप के पास कोई खास सामान तो है नहीं,

बस एक थैला है. उस थैले में भी कुछ खास नहीं होगा.‘‘मैं ने कहा, ‘कुछ नहीं, एक जोड़ी कपड़े हैं.’बैरे ने कहा कि आप बाहर निकलो और मैनेजर से कहो कि मु?ो आज रुकना है. वह कुछ एडवांस जमा कराने को कहेगा. आप कहना कि अभी एटीएम से पैसे निकलवा कर जमा कराता हूं.

मेरा सामान कमरे में है. इस तरह आप निकल भागना.‘‘मु?ो बैरे की सलाह अच्छी लगी. मैं ने वैसा ही किया. होटल से निकलते ही मु?ो जो बस दिखाई पड़ी, उसी को पकड़ लिया और अपने कमरे पर पहुंचा.‘‘लेकिन असली मुसीबत तो अब शुरू हुई है. फ्रैंडशिप क्लब वालों के दिन में 2-4 फोन आ जाते हैं कि 50 हजार रुपए खाते में जमा कराओ, नहीं तो तेरे साथ जो कुछ हुआ है, उस की फिल्म वे इंटरनैट पर डाल देंगे. ‘‘वे कहते हैं कि इंटरनैट पर तेरी फिल्म लाख रुपए में बिकेगी, हम तो बस 50 हजार रुपए ही मांग रहे हैं…‘‘अंकलजी, अब आप ही बताएं कि मैं अब क्या करूं?

’’दीपक ने उस से पूछा, ‘‘क्या तू ने इस की शिकायत पुलिस में की?’’उस ने बताया, ‘‘हां, मैं थाने गया था. पुलिस को सारी बातें बताईं, पर उन्होंने मु?ो ही धमकाना शुरू कर दिया. ‘‘अंकलजी, मैं तो बरबाद हो गया. मेरे क्रेडिट कार्ड को भी उन्होंने खंगाल डाला. 40-45 हजार रुपए थे. एक रुपया भी नहीं छोड़ा.’’दीपक ने कहा, ‘‘बेटा, गलती तो तू ने की है. इतना पढ़नेलिखने और इंजीनियर जैसी पोस्ट पर लगने के बाद भी तुम इन फर्जी फ्रैंडशिप क्लबों की असलियत को नहीं सम?ा सके?

‘‘खैर, जो हुआ सो हुआ. मु?ो तुम से पूरी हमदर्दी है. अब तू एक सलाह मान. सब से पहले यह कर कि इस फोन का सिम निकाल कर फेंक दे और दूसरा नया सिम ले ले. इस से उन के मोबाइल फोन आने बंद हो जाएंगे.‘‘बाकी एक शिकायत इलाके के डीसीपी के नाम लिख कर दे दे.

ऐसी फिल्म इंटरनैट कंपनियों को वे बेच सकते हैं, इस में कोई दोराय नहीं. पर अगर तू उन्हें 50 हजार रुपए दे भी देता है, तो इस की क्या गारंटी है कि वे फिल्म लौटा देंगे या तोड़ डालेंगे?’’उस नौजवान ने फोन से तुरंत सिम निकाल कर पर्स में रख लिया और अपने कमरे पर जा कर दस्तावेज और फोटो ले कर मोबाइल स्टोर पर चला गया.इस के बाद उस ने कसम खाई कि वह कभी इन चक्करों में नहीं पड़ेगा.

तू रुक, तेरी तो: रुचि की अनकही कहानी

‘‘चटाक…’’

समर्थ ने आव देखा न ताव, रुचि के गालों पर  झन्नाटेदार तमाचा आज फिर रसीद कर दिया. तमाचा इतनी जोर का था कि वह बिलबिला उठी. आंखों से गंगायमुना बह निकली. वह गाल पकड़े जमीन पर जा बैठी.

समर्थ रुका नहीं, ‘‘तू रुक तेरी तो बैंड बजाता हूं अभी,’’ कहते हुए खाने की थाली जमीन पर दे मारी, फिर इधरउधर से लातें ही लातें जमा कर अपना पूरा सामर्थ्य दिखा गया.

5 साल का बेटा पुन्नू डर कर मां की गोद में जा छिपा.‘‘चल छोड़ उसे, बाहर चल,’’ समर्थ उसे घसीटे जा रहा था, ‘‘चल, नहीं तो तू भी खाएगा…’’ वह गुस्से से बावला हो रहा था.‘‘नई…नई… जाना आप के साथ, आप गंदे हो,’’

पुनीत चीखते हुए रो रहा था.‘‘ठीक है तो मर इस के साथ,’’ समर्थ ने  झटके से उसे छोड़ा तो वह गिरतेगिरते बचा. अपने आंसू पोंछता हुआ भाग कर वह मां के आंसू पोंछने लगा.

रुचि का होंठ कोने से फट गया था, खून रिस रहा था.‘‘मम्मा, खून… आप को तो बहुत चोट आई है. गंदे हैं पापा. आप को आज फिर मारा. मैं उन से बात भी नहीं करूंगा. आप पापा से बात क्यों करते हो, आप कभी बात मत करना,’’

वह आंसुओं के साथ उस का खून भी बाजुओं से साफ करने लगा, ‘‘मैं डब्बे से दवाई ले आता हूं,’’ कह कर वह दवा लेने भाग गया.रुचि मासूम बच्चे की बात पर सोच रही थी, ‘कैसे बात न करूं समर्थ से. घर है, तमाम बातें करनी जरूरी हो जाती हैं, वरना चाहती मैं भी कहां हूं ऐसे जंगली से बात करना.

2 घरों से हैं, 2 विचार तो हो ही सकते हैं, वाजिब तर्क दिया जा सकता है कोई है तो, पर इस में हिंसा कहां से आ जाती है बीच में. समर्थ को बता कर ही तो सब साफ कर के खाना तैयार कर दिया था समय पर. अम्माजी को आने में देर हो रही थी.

फोन भी नहीं उठा रही थीं. खाना तैयार नहीं होता, तो भी सब चिल्लाते.’‘‘अपने को गलत साबित होते देख नहीं पाते ये मर्द. बस, यही बात है,’’

अपनी सूजी आंखों के साथ जब अपने ये विचार अंजलि को बताए तो वह हंस पड़ी.‘‘यार देख, मन तो अपना भी यही करता है.

कोई अपनी बात नहीं मानता तो उसे अच्छे से पीटने का ही दिल करता है. पर हम औरतों के शरीर में मर्दों जैसी ताकत नहीं होती, वरना हम भी न चूकतीं, जब मरजी, धुन कर रख देतीं, अपनी बात हर कोई ऊपर रखना चाहता है.’’

‘‘तू तो हर बात को हंसी में उड़ा देना चाहती है. पर बता, कोई बात सहीगलत भी तो होती है.’’‘‘हां, होती तो जरूर है पर अपनेअपने नजरिए से.’’‘‘फिर वही बात. ऐसे तो गोडसे और लादेन भी अपने नजरिए से सही थे. पर क्या वे वाकई में सही कहे जा सकते हैं?’’

अंजली को सम झ नहीं आ रहा था, वह रुचि का ध्यान कैसे हटाए. आएदिन मासूम सी रुचि के साथ समर्थ की मारपीट की घटनाएं उसे कहीं अंदर तक  झिझिक झोड़ रही थीं, बेचारे नन्हे पुन्नू के दिलोदिमाग पर क्या असर होता होगा. सारी बातें सुनी उस ने, किचन से सटे पूजाघर में सुबह से बह रहे दूध, बताशे, गुड़, खीर, मिष्ठान के चढ़ावे की सुगंध आकर्षित लग रही थी.

मक्खियों, चीटियों की बरात से परेशान हो कर रुचि ने लाईजोल डालडाल कर किचन के साथसाथ पूजाघर को भी अच्छी तरह चमका डाला था. किचन के चारों कोनों में पंडित मुखानंद के बताए 5-5 बताशे रख कर दूध चढ़ाने के टोटके का आज भी पालन कर के अपने भाई के घर गई.

सास को लौटने में देर हो रही थी. चींटियों, मक्खियों के बीच रात का खाना बनाना मुश्किल हो रहा था. रुचि ने तंग आ कर सफाई का कदम उठाया था, क्या गलत किया उस ने. रुचि की कोई गलती आज भी उसे नहीं लगी. और फिर, गलती हो भी तो क्या कोई जानवरों की तरह सुलूक करता है भला? रोजरोज ऐसे बेसिरपैर के टोटके, पूजा, पाखंड उन का चलता ही रहता.

हैरानी तो यह कि बहुत मौडर्न बनने वाला समर्थ भी ये सब मानता है. पहले ही मना किया था रुचि से कि समर्थ कुछ ज्यादा ही जता रहा है अपने को, अच्छे से एक बार और सोच ले, फिर शादी कर.

पर मानी नहीं. पापा के सिर का बो झ जल्द से जल्द उतार कर उन्हें खुश देखना चाहती थी वह तो?‘‘तू भी न, गौ बनी हुई है, गौ के भी 2 सींगें, 4 लातें और लंबी दुम होती है, वक्त आने पर इस्तेमाल भी करती है. पर तू तो बिलकुल सुशील, संस्कारी अबला नारी बनी हुई है, बड़ेबड़े मैडल मिलेंगे तु झे क्या?

इतनी ज्यादती सहती क्यों है? डिपैंडैंट है इसलिए…’’ इतनी पढ़ीलिखी है, बोला था जौब कर ले. पर नहीं, पतिपरमेश्वर नहीं मानते. अरे, मानेंगे कैसे भला, फुलटाइम की दासी जो छिन जाएगी,’’ उस ने चिढ़ते हुए उस की ही बात कही. अंजलि का घर रुचि से कुछ ही दूर था.

बचपन से कालेज तक साथ पढ़ी अंजलि अपनी शादी के 2 महीने बाद ही पति के हादसे में हुई मौत के बाद वापस आ कर उसी स्कूल में पढ़ाने लगी थी. पड़ोस के ब्लौक में ही रुचि की शादी हुई थी तो अकसर अंजलि लौटते समय रुचि से मिलने आ जाया करती.

खूबसूरत रुचि को स्मार्ट समर्थ ने अपने को खुलेदिमाग का जता, उस के पिता हरिभजन के आगे अपने को चरित्रवान बताया, महात्मा गांधी, विवेकानंद आदि पर अपना पुस्तक संग्रह दिखा कर अच्छे होने का प्रमाण देदे कर, उस से शादी तो कर ली पर शादी के बाद ही उस की 18वीं सदी की मानसिकता सामने आ गई.

खुलेदिमाग की हर तरह की सफाईपसंद रुचि जाहिलों में फंस कर रह गई. पिता के संस्कार थे, ‘बड़ों  की आज्ञा का पालन करना है सदैव, अवज्ञा कभी नहीं,’ सो, किए जा रही थी. मां तो थी नहीं. पर नेकी, ईमानदरी, सत्य पर चलने वाले पिता ने अच्छे संस्कार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पर यहां उन बातों की न इज्जत है न जरूरत.

अब रुचि को कौन सम झाए, उस ने तो पिता की बातें गांठ बांध अंतस में बिठा ली हैं. बात वही है, ‘सबकुछ सीखा हम ने, न सीखी होशियारी.’ क्या करूं इस लड़की का? रोज ही मार खाए जा रही है. पर पिता से बताती भी नहीं कि वे आघात सह नहीं पाएंगे. लेदे के वही तो हैं उस के परिवार में.पुन्नू घर पर होता तो वे रोतेरोते अपनी मासूम जबां से मम्मा के साथ घटी पूरी हिंसा का ब्योरा अंजलि मौसी को देने की कोशिश करता.

‘कैसे दादी, बूआ, चाचू सभी पापा की साइड लेते हैं. कोई मम्मा को बचाने नहीं आता. कहते हैं, और मारो और मारो.’ अंजलि सोचती, वे बचाने क्या आएंगे, सभी एक थाली के चट्टेबट्टे हैं. जंगली गंवई हूश. छोटे से बच्चे में दिनबदिन कितना आक्रोश भरता जा रहा है, अंजलि देख रही थी.

इतनी नफरत, इतना गुस्सा उस अबोध के व्यक्तित्व को बरबाद किए जा रहा है. पर करती भी क्या? रुचि तो हठ किए बैठी थी कि उस की मूक सेवाकभी तो रंग लाएगी, एक दिन प्रकृति सब ठीक करेगी. अब तो पुन्नू भी पापा, चाचू के जैसे चीजें तोड़नेफेंकने लगा है.

गुस्सा होता तो घरवालों की तरह चीखता है. खाना उठा कर जमीन पर दे मारता, तो रुचि थप्पड़ रसीद करती. तो रुचि को ही डांट पड़ने लगती. उसे तुरंत साफ करने के लिए आदेश हो जाता. घर के लोग शह भी देते उसे. कितनी बार देखासुना है उन्हें कहते हुए, ‘लड़का है, लड़की थोड़ी ही है. मर्द है वह क्यों करेगा भला.

बहू, चल साफ कर जल्दी से, मुखानंद महाराज आते ही होंगे, इस की कुंडली का वार्षिक फल विचार कर के. आजा मेरे लाल, तू तो हमारे घर का वारिस है. तेरा कोई कुछ भी नहीं बिगड़ेगा. तु झे तो, मिनिस्टर बनना है.

आज वे तेरे और तेरे पापा समर्थ के लिए असरदार टोटका बताने वाले हैं. नई तावीज भी लाएंगे तेरे लिए.’उस दिन अंजलि स्कूल से लौटी तो रुचि के घर के आगे ऐंबुलैंस खड़ी देख कर माथा ठनका, किस को क्या हो गया? उस ने पांव तेजी से बढ़ाए, पास पहुंची तो देखा लोग रुचि को स्ट्रैचर पर डाले ऐंबुलैंस से निकाल कर घर में ले जा रहे हैं. रुचि बेसुध थी.

खून से लथपथ सिर फट गया था, खून बह कर माथेचेहरेगरदन, कपड़ों पर जम चुका था. कुछ अभी भी सिर से बहे जा रहा था. पड़ोसियों ने बताया, ‘घर मैं काफी देर तक आएदिन की तरह चीखपुकार होती रही थी. 2 घंटे से रुचि यों ही पड़ी रही.

तब जा कर ऐंबुलैंस ले आने का इन्हें होश आया. तब तक देर हो चुकी थी. रुचि ने ऐंबुलैंस में जाते ही दम तोड़ दिया.’रुचि के पिता हरिभजन को किसी भले मानस ने खबर दे दी थी. वह ही उन्हें थाम कर रुचि के अंतिम दर्शन करवाने ले आया था.

वे रुचि के खून सने सिर पर हाथ रख कर बिलख उठे. पुन्नू को लिपटा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. हादसे से अवाक अंजलि के रुंधे गले से शब्द ही नहीं निकल रहे थे. अंकल को क्या और कैसे ढाढ़स बंधाए. उस को देखते ही रुचि के पिता विलाप करते हुए बोल पड़े, ‘‘बेटी, इतना सब हो रहा था उस के साथ, तू ने कुछ बताया क्यों नहीं कभी.

न उस ने कभी कोई भनक लगने दी. लकवे के कारण एक पैर से लाचार मु झे यह कह कर कि ‘ससुराल में यहां पूजा, पंडित, शकुन, अपशकुन बहुत मानते विचार करते हैं, घर नहीं आने देती थी मु झे. खुद ही पुन्नू को ले कर हफ्ते में एकदो बार आ जाती थी. तू तो उस की पक्की सहेली थी.

तु झ से पूछता तो तू कहती बिलकुल ठीक है, आप उस की चिंता मत कीजिए. अब बता, ठीक है? चली गई मेरी रुचि. ‘वे अंजलि को, तो कभी रुचि के शव को पकड़ कर लगातार हिचकियों से रोए जा रहे थे.उन का कं्रदन सुन अंजलि का दिल टूकटूक हुआ जा रहा था.

अपनी आंखों के सैलाब को किसी तरह रोकते हुए वह बोली, ‘‘अंकल, संभालिए अपने को, आप की तबीयत पहले ही ठीक नहीं. इसी से रुचि ने कसम दे रखी थी आप से कुछ न कहूं. मैं क्या करती अंकल.

यहां आप की अच्छी सीख ने उसे बांधे रखा, जिन का इन जाहिलों के यहां कोई मोल नहीं था,’’ पुन्नू अंजलि को देखते ही उस से लिपट गया.‘‘अंजलि मौसी, इन सब ने मिल कर मेरी मम्मा को मारा. पापा ने दीवार पर मम्मा का सिर दे मारा था.

वे गिर पड़ीं. मम्मा तभी से मु झ से बोली नहीं बिलकुल भी. दादी ने पापा, चाचू को भगा दिया. अब  झूठ कह रही हैं कि मम्मा सीढ़ी से गिर पड़ी,’’ वह रुचि से लिपट कर जोरजोर से रोने लगा. ‘‘उठो न मम्मा, अपने पुन्नू से बोलो न. मैं छोड़ूंगा नहीं किसी को. बड़ा हो कर बैंड बजा दूंगा इन सब की,’’ वह समर्थ से सीखे हुए शब्दों को दोहराने लगा.

रोजरोज की चीखनेचिल्लाने व मारपीट की आवाजों से तंग आ कर आज किसी पड़ोसी ने 100 नंबर डायल कर दिया था. पुलिस आ गई. नन्हे पुन्नू के बयान पर तफ्तीश हुई.

2 दिन के अंदर पुलिस ने समर्थ और उस के भाई को धरदबोचा. उन्हें जेल हो गई. नन्हा पुनीत किस के पास रहता, समस्या थी. क्योंकि पुन्नू अपनी दादी, बूआ के पास रहने को बिलकुल तैयार न था. अंजलि उसे यह कह कर अपने साथ ले गई.

‘‘अंकल, आज के दौर में सज्जनता, सिधाई, संस्कारों का मोल सम झने वाले बहुत कम हैं. दुनिया के हिसाब से अपने को तैयार करना चाहिए और सामने आई चुनौतियों को सिधाई से नहीं, चतुराई से निबटना चाहिए. सिधाई से अकसर आज की दुनिया मूर्ख बनाती है, दबाती है, अपना उल्लू सीधा करती है.

जो, रुचि  झेलती रही. कितना सम झाया था उसे. अंकल, पुन्नू चाहे कहीं भी रहे मैं उस को दूसरा समर्थ कभी नहीं बनने दूंगी. आप निश्चित रहें अंकल. शादी के 2 महीने बाद ही दुर्घटना में पति प्रशांत की मौत के बाद निरुद्देश्य बंजर से मेरे जीवन को पुनीत के रूप में एक नया लक्ष्य मिल गया है.

अब आप भी मु झे अपनी रुचि ही सम िझए अंकल. मैं इसे ले कर आप से मिलने उसी के जैसे आती रहूंगी.’’ रुचि के पिता हरिभजन के कांपते बूढ़े हाथ अंजलि के सिर पर जा रुके थे. उन से कुछ बोलते न बना, केवल आंसू आंखों से बहे चले जा रहे थे. अंजलि भीगे मन से उन्हें पोंछने लगी.

पुन्नू ने दोनों हाथों से नाना और अंजलि मौसी को कस कर पकड़ लिया और आंखें मीचे वह गालों पर ढुलकते आंसुओं में अपनी मम्मा का एहसास ढूंढ़ रहा था.‘‘मम्मा…’’ उस की हिचकियों के साथ निकलता बारबार वह एक शब्द सभी के हृदय को बींध रहा था.

एक ऐसी जिंदगी : इला की जिंदगी में क्या चल रहा था

18 साल की इला रामपुर में रहती थी. वह इसी साल कालेज में आई थी और हर रोज कालेज जाती थी. वह एक भी क्लास मिस नहीं करती थी. दरअसल, इला को पढ़ाईलिखाई बहुत ही खास लगती थी.

एक दिन इला मनोविज्ञान की क्लास में मगन हो कर व्यवहार मनोविज्ञान के एक बिंदु पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही थी कि उस के ठीक बगल में एक अजनबी लड़की आ कर बैठ गई.

इला ने चौंक कर देखा. वह एक जवान लड़की लग रही थी. इस से पहले कि इला कुछ कह पाती या कुछ सोचती, वह जवान लड़की आगे बढ़ कर इला से बोली, ‘‘हैलो, मेरा नाम गीता है. मैं ने आज ही कालेज में दाखिला लिया है.’’

इला को गीता की आवाज एकदम सच्ची और खरी सी लगी, इसलिए इला ने उस से बात करनी शुरू कर दी.

गीता इला से 2 साल बड़ी थी. किसी वजह से कालेज की पढ़ाई देर से शुरू कर रही थी. इला ने उसे मनोविज्ञान की प्रयोगशाला दिखाई. उसे पिछले नोट्स भी दे दिए.

धीरेधीरे गीता और इला की आपस में अच्छी ट्यूनिंग बन गई. गीता बहुत ही संयत और सुलझ हुई थी. गीता की कुछ बातें खास थीं. वह अपने हैंडबैग खुद ही बनाती थी. उस के हाथ में जो रूमाल रहता था, वह भी गीता किसी पुराने कुरते को काटछांट कर तैयार कर लेती थी.

इला आज तक गीता के घर नहीं गई थी, मगर इला मन ही मन में यह कल्पना करती थी कि गीता का परिवार बहुत ही शानदार होगा. मगर, गीता ने उसे कभी भी अपने घर नहीं बुलाया था. इला ने भी कभी जिद नहीं की थी.

वजह यह थी कि इला कालेज की पढ़ाई के बाद एक संस्थान से जुड़ कर समाजसेवा किया करती थी. यह संस्थान अपने शिविर लगा कर झुग्गी बस्ती में रहने वालों को साफसफाई की आदतें सिखाया करता था.

इला को उस संस्थान से बहुतकुछ सीखने को मिला था. उस ने यह जाना था कि इस दुनिया में करोड़ों लोग गरीबी में जी रहे हैं. उन्हें अगर हम कुछ भी दे सकें, तो हमारी जिंदगी उपयोगी हो जाएगी.

इला को इस तरह के काम करने में बहुत ही खुशी मिलती थी. एक बार रविवार के दिन उस के संस्थान ने एक बस्ती में ऐसा ही शिविर लगाया. इला समय पर बस्ती में पहुंच गई थी. उस के बैग में तमाम सामान था. पानी की बोतल, घर पर तैयार सूजी के बिसकुट, पुरानी जींस को साफधो कर काट कर तैयार किए गए छोटेछोटे थैले थे.

इला के सीनियर भी शिविर में पहुंच गए थे. अपने कार्यक्रम के तयशुदा एजेंडे के मुताबिक वे सभी एकएक कर हर ?ाग्गी के पास जा कर दरवाजा खटखटाते हुए बढ़ते रहे.

हौलेहौले उन के साथ 50 से ज्यादा झुग्गी वाले शामिल हो गए. अब वे सभी एक जगह पर खड़े हो कर आपस में चर्चा करने लगे. तभी एक लड़की नल से पानी भर कर ले जाती दिखाई दी.

इला ने उस लड़की की तरफ पहले तो सरसरी नजर से ही देखा, मगर दोबारा देखा तो उस के मुंह से बरबस ही निकल गया, ‘‘गीता… ओ गीता…’’

उधर पानी भर कर जाती हुई गीता ने भी इला की आवाज पहचान ली थी. वह ठिठक कर पलट गई और, ‘‘अरे, इला…’’ कह कर गीता ने बालटी उसी जगह पर रख दी और इला से जा कर मिली. उस दिन इला ने गीता की असलियत जानी थी.

अब, इला के कहने पर गीता भी उस शिविर में शामिल हुई, मगर इला को उस के बारे में जान कर बहुत ही अजीब सा लगा था. इला को झुग्गी बस्ती में रहने वाली गीता से दोस्ती करने की कोई फिक्र नहीं थी, मगर गीता इतनी गरीबी में भी इतनी सहज है, इला को इस बात पर बहुत हैरानी होती थी.

अब इला को गीता से और भी ज्यादा लगाव होने लगा था… इला को अब हर बात पता चल गई थी. गीता की सौतेली मां, गीता के 2 सौतेले भाईबहन. उस के पिता का लापरवाह स्वभाव…

इला का तो बड़ा मन होता कि वह गीता को अपने घर पर ले कर आए, मगर यह भी तो बहुत ही मुश्किल था. इलाका संयुक्त परिवार था. 4 कमरे का मकान था, मगर उस छोटे से घर में भी तो

10 लोग रहते थे. इला के मातापिता और चाचाचाची सभी टीचर थे. बेमतलब सुविधा बढ़ाना किसी को भी पसंद नहीं था. यही आदत इला की भी थी.

गीता और इला मन लगा कर पढ़ती थीं. कालेज में उन दोनों ने वृक्षारोपण अभियान और प्लास्टिकमुक्त शहर अभियान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था.

गीता तो वैसे भी खूब मेहनती थी. कालेज के आखिरी दिन वे दोनों अपनी ग्रेजुएशन की डिगरी पा कर खुश थीं. इला और आगे पढ़ना चाहती थी, मगर गीता की शादी तय कर दी गई थी. इला ने उसे बहुत सम?ाया कि ऐसे बेमेल रिश्ते को मना कर दे, मगर गीता ने उस की सलाह पर एक खामोशी ओढ़ ली थी.

कुछ पल ठहर कर गीता ने जवाब दिया था, ‘‘जितनी अशांति और असंतोष इस घर में है, पति का घर शायद ठीकठाक ही होगा.’’

गीता वहां से चली गई. इला के मन में अजीब खालीपन आने लगा. उस ने एक रैस्टोरैंट में पार्टटाइम नौकरी शुरू कर दी.

इला को एक महीना भी नहीं हुआ था कि रैस्टोरैंट की मालकिन ने उसे एक मनपसंद काम दे दिया. वह काम था मालकिन की बेटी को पढ़ाना. इला ने उस लड़की को खुशीखुशी सब पढ़ाया.

इला की मुलाकात वहां अकसर एक लड़के से होती थी. उस का नाम शान था. वह रैस्टोरैंट की मालकिन का भतीजा था.

शान यहां रह कर वर्क फ्रौम होम कर रहा था. वह मन ही मन इला को बेहद चाहने लगा था. इला की सरलता शान को बेहद भाती थी. सच यह था कि आग दोनों तरफ बराबर लगी थी.

एक दिन उन दोनों ने एकदूसरे से अपने मन की बात कह दी. इला के मातापिता को कोई परेशानी नहीं थी. वे जातपांत, धर्मकर्म या किसी भी रीतिरिवाज में कतई भरोसा नहीं करते थे, इसलिए उन दोनों का चट मंगनी पट ब्याह हो गया.

शान की मुंबई में नई नौकरी लगी थी. शान और इला वहां आ गए. मुंबई की उन की नईनवेली जिंदगी शुरू हो गई.

एक दिन शान ने इला को खुशखबरी दी कि उसे एक खास ट्रेनिंग के लिए तकरीबन 3 महीने के लिए विदेश जाना है. शानदार मौका है, बहुतकुछ सीखने को मिलेगा.

इला को यह सुन कर बहुत खुशी हुई. वह शान की तरक्की से बेहद खुश थी.

शान विदेश चला गया. खाली समय में इला को यहां आ कर भी समाजसेवा और जनसेवा का मौका मिल गया. शान को उस की इस इच्छा से कोई परेशानी नहीं थी… फालतू समय बरबाद करने की जगह इला सम?ादारी ही कर रही थी.

अब इला साफसफाई की आदत सिखाने जबतब धारावी के तंग इलाके में जाती रहती थी. एक दिन इसी तरह इला मुंबई के धारावी के किसी तंग इलाके में साफसफाई की आदतें सिखा रही थी कि उस ने कुछ बच्चों के हाथ में रूमाल देखे.

वे रूमाल देख कर इला ठिठक गई. ऐसे रूमाल तो गीता तैयार करती थी, उसे अच्छी तरह से याद था. वह झट से बच्चों के पास आई.

एक बच्चे ने बताया कि बचपन फाउंडेशन की एक गीता दीदी हैं, उन्होंने ही ये रूमाल उन्हें दिए हैं.

वहां से घर लौट कर इला ने शान को आज की सारी बातें बताईं, उस के बाद गीता को फोन लगाया.

गीता ने आज तक इला को अपनी यह  सचाई नहीं बताई थी. वह हमेशा यही कहती थी कि ससुराल में सब

ठीक है, जबकि कुछ भी ठीक नहीं था. 3 महीने में ही गीता को उस घर से धक्के मार कर निकाल दिया गया था.

वजह यह थी कि गीता अपने से 12 साल बड़े पति को साफसफाई की आदत सिखाने लगती थी. यह बात उस के पति और सास को बिलकुल भी पसंद नहीं आई.

पर गीता ने हिम्मत नहीं हारी थी. वह अपने मन में हौसला रख कर अपने पैरों पर खड़ी होने का संकल्प ले चुकी थी. अब वह अपने दम पर जीना चाहती थी, इसलिए वापस रामपुर नहीं गई.

गीता अब मुंबई में ही रहती थी. वह नौकरी करती थी और अपना एक फाउंडेशन भी चला रही थी, मगर अभी बस शुरुआत ही थी. वह इला को सब बताने ही वाली थी.

इला को गीता का यही भोलापन बहुत पसंद था. इला को मालूम था कि गीता बहुत ही जरूरू है. वह कुछ बेहतर ही करेगी.

इला ने गीता को बताया कि वह भी मुंबई में आ कर रहने लगी है, तो गीता बहुत खुश हुई. गीता उस के लिए भेंट में अपने हाथों से बनाए रूमाल लाना चाहती थी, मगर इला को तो पूरी गीता ही मिल रही थी. वह समाज के लिए कुछ करना चाहती थी. अब तो उस की खुशी का ठिकाना न था. उसे उपयोगी जिंदगी जीने को मिल रही थी.

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