Family Story In Hindi: संतुलन – रोहित का क्यों बढ़ा अपने माता पिता के साथ झगड़ा

Family Story In Hindi: झगड़ाशुरू कराने वाली बात बड़ी नहीं थी, पर बहसबाजी लंबी खिंच जाने से रोहित और उस के पिता के बीच की तकरार एकाएक विस्फोटक बिंदु पर पहुंच गई.

‘‘जोरू के गुलाम, तुझे अपनी मां और मेरी जरा भी फिक्र नहीं रही है. अब मुझे भी नहीं रखना है तुझे इस घर में,’’ ससुरजी की इस बात ने आग में घी का काम करते हुए रोहित के गुस्से को इतना बढ़ा दिया कि वे उसी समय अपने जानकार प्रौपर्टी डीलर से मिलने चले गए. मैं बहुत सुंदर हूं और रोहित मेरे ऊपर पूरी तरह लट्टू हैं. मेरी ससुराल वालों के अलावा उन के दोस्त और मेरे मायके वाले भी मानते हैं कि मैं उन्हें अपनी उंगलियों पर बड़ी आसानी से नचा सकती हूं. मेरे सासससुर ने अपनी छोटी बहू यानी मुझे कभी पसंद नहीं किया. वे दोनों हर किसी के सामने यह रोना रोते कि मैं ने उन के बेटे को अपने रूपजाल में फंसा कर मातापिता से दूर कर दिया है. वैसे मुझे पता था कि रोहित की घर से अलग हो जाने की धमकी से घबरा कर मेरी सास बिगड़ी बात संभालने के लिए जल्दी मुझे से मिलने मेरे कमरे  में आएंगी. गुस्से में घर से अलग कर देने की बात मुंह से निकालना अलग बात है, पर मेरे सासससुर जानते हैं कि हम दोनों के अलावा उन की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. ऊपरी मंजिल पर रह रहे बड़े भैया और भाभी मुझ से तो क्या, घर में किसी से भी ढंग से नहीं बोलते हैं.

मैं बहुत साधारण परिवार में पलीबढ़ी थी. इस में कोई शक नहीं कि अगर मैं बेहद सुंदर न होती, तो मुझ से शादी करने का विचार अमीर घर के बेटे रोहित के मन में कभी पैदा न होता. मेरे मातापिता ने बचपन से ही मेरे दिलोदिमाग में यह बात भर दी थी कि हर तरह की खुशियां और सुख पाना उन की परी सी खूबसूरत बेटी का पैदाइशी हक है. अपनी सुंदरता के बल पर मैं दुनिया पर राज करूंगी, किशोरावस्था में ही इस इच्छा ने मेरे मन के अंदर गहरी जड़ें जमा ली थीं. रोहित से मेरी पहली मुलाकात अपनी एक सहेली के भाई की शादी में हुई थी.वे जिस कार से उतरे उस का रंग और डिजाइन मुझे बहुत पसंद आया था. सहेली से जानकारी मिली कि वे अच्छी जौब कर रहे हैं. इस से उन से दोस्ती करने में मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी. उन की आंखों में झांकते हुए मैं 2-3 बार बड़ी अदा से मुसकराई, तो वे फौरन मुझ में दिलचस्पी लेने लगे. मौका ढूंढ़ कर मुझ से बातें करने लगते, तो मैं 2-4 वाक्य बोल कर कहीं और चली जाती. मेरे शर्मीले स्वभाव ने उन्हें मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने के लिए और ज्यादा उतावला कर दिया. उस रात विदा लेने से पहले उन्होंने मेरा फोन नंबर ले लिया. अगले दिन से ही हमारे बीच फोन पर बातें होने लगीं. सप्ताह भर बाद हम औफिस खत्म होने के बाद बाहर मिलने लगे.

हमारी चौथी मुलाकात एक बड़े पार्क में हुई. वहां एक सुनसान जगह का फायदा उठाते हुए उन्होंने अचानक मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ कर मुझे चूम लिया. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण मैं बहुत जोर से उन से लिपट गई. बाद में उन की बांहों के घेरे से बाहर आ कर जब मैं सुबकने लगी, तो उन की उलझन और बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई. बहुत पूछने पर भी न मैं ने उन्हें अपने आंसू बहाने का कारण बताया और न ही ज्यादा देर उन के साथ रुकी. पूरे 3 दिनों तक मैं ने उन से फोन पर बात नहीं की तो चौथे दिन शाम को वे मुझे मेरे औफिस के गेट के पास मेरा इंतजार करते नजर आए. उन के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने उदास लहजे में कहा, ‘‘आई ऐम सौरी पर हमें अब आपस में नहीं मिलना चाहिए, रोहित.’’

‘‘पर क्यों? मुझे मेरी गलती तो बताओ?’’ वे बहुत परेशान नजर आ रहे थे.

‘‘तुम्हारी कोई गलती नहीं है.’’

‘‘तो मुझ से मिलना क्यों बंद कर रही हो?’’

उन के बारबार पूछने पर मैं ने नजरें झुका कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो रही हूं…तुम्हारे साथ नजदीकियां बढ़ती रहीं तो मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सकूंगी.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ उन की आंखों में उलझन के भाव और ज्यादा बढ़ गए.

‘‘हम ऐसे ही मिलते रहे तो किसी भी दिन कुछ गलत घट जाएगा…तुम मुझे चीप लड़की समझो, यह सदमा मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. साधारण से घर की यह लड़की तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के सपने नहीं देख सकती है. तुम मुझ से न मिला करो, प्लीज,’’ भरे गले से अपनी बात कह कर मैं कुछ दूरी पर इंतजार कर रही अपनी सहेली की तरफ चल पड़ी. बाद में रोहित ने बारबार फोन कर के मुझे फिर से मिलना शुरू करने के लिए राजी कर लिया. मेरी हंसीखुशी उन के लिए दिनबदिन ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती चली गई. मेरे रंगरूप का जादू उन के सिर चढ़ कर ऐसा बोला कि महीने भर बाद ही उन के घर वाले हमारे घर रिश्ता पक्का करने आ पहुंचे. उस दिन हुई पहली मुलाकात में ही मुझे साफ एहसास हो गया कि यह रिश्ता उन के परिवार वालों को पसंद नहीं था. मेरी शादी को करीब 6 महीने हो चुके हैं और अब तक मेरे सासससुर और जेठजेठानी की मेरे प्रति नापसंदगी अपनी जगह कायम है. अपने पिता से झगड़ा करने के बाद रोहित को घर से बाहर गए 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि सासूमां मेरे कमरे में आ पहुंचीं. उन की झिझक और बेचैनी को देख कर कोई भी कह सकता था कि बात करने के लिए मेरे पास आना उन्हें अपमानित महसूस करा रहा है.

मेरे सामने झुकना उन की मजबूरी थी. उन का अपनी बड़ी बहू नेहा से 36 का आंकड़ा था, क्योंकि बेहद अमीर बाप की बेटी होने के कारण वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी. मेरे सामने बैठते ही सासूमां मुझे समझाने लगीं, ‘‘ घर में छोटीबड़ी खटपट, तकरार तो चलती रहती है, पर तू रोहित को समझाना कि वह घर छोड़ कर जाने की बात मन से बिलकुल निकाल दे.’’ मैं ने बेबस से लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप तो जानती ही हैं कि वे कितने जिद्दी इनसान हैं. मैं उन्हें घर से अलग होने से कब तक रोक सकूंगी? आप पापा को भी समझाओ कि वे घर से निकाल देने की धमकी तो बिलकुल न दिया करें.’’

‘‘उन्हें तो तब तक अक्ल नहीं आएगी जब तक गुस्से के कारण उन के दिमाग की कोई नस नहीं फट जाएगी.’’ ‘‘ऐसी बातें मुंह से न निकालिए, प्लीज,’’ मेरा मन ससुरजी के अपाहिज हो जाने की बात सोच कर ही बेचैनी और घबराहट का शिकार हो उठा था. कुछ देर तक अपनी व ससुरजी की गिरती सेहत के दुखड़े सुनाने के बाद सासूजी चली गईं. हम घर से अलग नहीं होंगे, मुझ से ऐसा आश्वासन पा कर उन की चिंता काफी हद तक कम हो गई थी. उस रात मुझे साथ ले कर रोहित अपने दोस्त की शादी की सालगिरह की पार्टी में जाना चाहते थे. उन का यह कार्यक्रम खटाई में पड़ गया, क्योंकि ससुरजी को सुबह से 5-6 बार उलटियां हो चुकी थीं. औफिस से आने के बाद जब उन्होंने मेरे जल्दी तैयार होने के लिए शोर मचाया, तो घर में क्लेश शुरू हो गया और बात धीरेधीरे बढ़ती चली गई.

सचाई यही है कि कुछ कारणों से मैं खुद भी रोहित के दोस्त द्वारा दी जा रही कौकटेल पार्टी में नहीं जाना चाहती थी. आज मैं जिंदगी के उसी मुकाम पर हूं जहां होने के सपने मैं हमेशा देखती आई हूं. संयोग से मैं ने जिस ऐशोआराम भरी जिंदगी को पाया है, उसे नासमझी के कारण खो देने का मेरा कोई इरादा नहीं था. रोहित की एक निशा भाभी हैं, जिन के अपने पति सौरभ के साथ संबंध बहुत खराब चल रहे हैं. उन के बीच तलाक हो कर रहेगा, ऐसा सब का मानना है. मैं ने पिछली कुछ पार्टियों में नोट किया कि फ्लर्ट करने में एक्सपर्ट निशा भाभी रोहित को बहुत लिफ्ट दे रही हैं. यह सभी जानते हैं कि एक बार बहक गए कदमों को वापस राह पर लाना आसान नहीं होता है. रोहित को निशा से दूर रखने के महत्त्व को मैं अपने अनुभव से बखूबी समझती हूं, क्योंकि अपने पहले प्रेमी समीर को मैं खुद अब तक पूरी तरह से नहीं भुला पाई हूं.

वह मेरी सहेली शिखा का बड़ा भाई था. मैं 12वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी करने उन के घर पढ़ने जाती थी. मेरी खूबसूरती ने उसे जल्दी मेरा दीवाना बना दिया. उस की स्मार्टनैस भी मेरे दिल को भा गई. उन के घर में कभीकभी हमें एकांत में बिताने को 5-10 मिनट भी मिल जाते थे. इस छोटे से समय में ही उस के जिस्म से उठने वाली महक मुझे पागल कर देती थी. उस के हाथों का स्पर्श मेरे तनमन को मदहोश कर मेरे पूरे वजूद में अजीब सी ज्वाला भर देता था. एक रविवार की सुबह जब उस की मां बाजार जाने को निकलीं. मां के बाहर जाते ही समीर बाहर से घर लौट आया. हमें कुछ देर की मौजमस्ती करने के लिए किसी तरह का खतरा नजर नहीं आया, तो हम बहुत उत्तेजित हो आपस में लिपट गए. फिर गड़बड़ यह हुई कि उस की मां पर्स भूल जाने के कारण घर से कुछ दूर जा कर ही लौट आई थीं. दरवाजा खोलने के बाद समीर और मैं अपनी उखड़ी सांसों और मन की घबराहट को उन की अनुभवी नजरों से छिपा नहीं पाए थे. उन्होंने मुझे उसी वक्त घर भेज दिया और कुछ देर बाद आ कर मां से मेरी शिकायत कर दी. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि मेरी शिखा से दोस्ती टूट गई और अपने मातापिता की नजरों में मैं ने अपनी इज्जत गंवा दी.

कच्ची उम्र में समीर के साथ प्यार का चक्कर चलाने की मूर्खता कर मैं ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी. मेरे सजनेसंवरने पर भी पूरी तरह से पाबंदी लग गई. मां की रातदिन की टोकाटाकी और पापा का मुझ से सीधे मुंह बात न करना मुझे बहुत दुखी करता था.  उन कठिन दिनों से गुजरते हुए एक सबक मैं अच्छी तरह सीख गई कि अगर मेरी ऐशोआराम की जिंदगी जीने की इच्छा और सारे सपने पूरे नहीं हुए तो जीने का मजा बिलकुल नहीं आएगा. घुटघुट कर जीने से बचने के लिए मुझे फौरन अपनी छवि सुधारना बहुत जरूरी था. ‘‘केवल सुंदर होने से काम नहीं चलता है. सूरत के साथ सीरत भी अच्छी होनी चाहिए,’’

मां से रातदिन मिलने वाली चेतावनी को मैं ने हमेशा के लिए गांठ बांध कर अपने को सुधार लेने का संकल्प उसी समय कर लिया. तभी से अपने जीवन में आने वाली हर कठिनाई, उलझन और मुसीबत से सबक ले कर मैं खुद को बदलती आई हूं. रोहित के विवाहेत्तर संबंध न बन जाएं, इस डर के अलावा एक और डर मुझे परेशान करता था. उन्हें सप्ताह में 1-2 बार ड्रिंक करने का शौक है. आज भी उन के गुस्से को बहुत ज्यादा बढ़ाने का यही मुख्य कारण था कि दोस्तों के साथ शराब पीने का मौका उन के हाथ से निकल गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि अगर हम अलग मकान में रहने चले गए, तो दोस्तों के साथ उन का पीनापिलाना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा. समीर वाले किस्से के बाद मेरी मां मेरे साथ बहुत सख्त हो गई थीं. उन की उस सख्ती के चलते मेरे कदम फिर कभी नहीं भटके थे. यहां मेरे सासससुर मां वाली भूमिका निभा रहे थे. रोहित और मुझे नियंत्रण में रख कर वे दोनों एक तरह से हमारा भला ही कर रहे थे. अब मुझे यह बात समझ में आने लगी थी.

पिछले दिनों तक मैं घर से अलग हो जाने की जरूर सोचती थी, पर अब इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं ने ऐसा करने का इरादा बदल दिया है. रोहित 2 घंटे बाद जब लौटे, तब भी उन की आंखों में तेज गुस्सा साफ झलक रहा था. फिर भी मैं ने रोहित को अपनी बात कहने का फैसला किया. उन्हें कुछ कहने का मौका दिए बिना मैंने आंखों में आंसू भर कर भावुक लहजे में पूछा, ‘‘तुम मुझे सब की नजरों में क्यों गिराना चाहते हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है?’’ उन्होंने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘टैंशन के कारण पापा को ढंग से सांस लेने में दिक्कत हो रही है. आपसी लड़ाईझगड़े की वजह से उन्हें कभी कुछ हो गया, तो मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर कभी नहीं जी सकूंगी.’’

‘‘वे लोग बात ही ऐसी गलत करते हैं…पार्टी में न जाने दे कर सारा मूड खराब कर दिया.’’

‘‘पार्टी में जाने का गम मत मनाओ, मैं हूं न आप का मूड ठीक करने के लिए,’’ मैं ने उन के बालों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम तो हो ही लाखों में एक जानेमन.’’

‘‘तो अपनी इस लाखों में एक जानेमन की छोटी सी बात मानेंगे?’’

‘‘जरूर मानूंगा.’’ मेरी सुंदरता मेरी बहुत बड़ी ताकत है और अब इसी के बल पर मैं सारे रिश्तों के बीच अच्छा संतुलन और घर में हंसीखुशी का माहौल बनाना चाहती हूं. इस दिशा में काफी सोचविचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि सासससुर के साथ अपने रिश्ते सुधार कर उन्हें मजबूत बनाना मेरे हित के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने रोहित के कान के पास मुंह ले जा कर प्यार भरे लहजे में पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें कभी किसी भी बात से नाराज हो कर सोने देती हूं?’’

‘‘कभी नहीं और आज भी मत सोने देना,’’ उन के होंठों पर एक शरारती मुसकान उभरी.

‘‘आज आप भी मेरी इस अच्छी आदत को अपनाने का वादा मुझ से करो.’’

‘‘लो, कर लिया वादा.’’

‘‘तो अब चलो मेरे साथ.’’

‘‘कहां?’’

‘‘अपने मम्मीपापा के पास.’’

‘‘उन के पास किसलिए चलूं?’’

‘‘आप उन के साथ कुछ देर ढंग से बातें कर लोगे, तो ही वे दोनों चैन से सो पाएंगे.’’

‘‘नहीं,’’ यह मैं नहीं…

मैं ने झुक कर पहले रोहित के होंठों पर प्यार भरा चुंबन अंकित किया और फिर उन की आंखों में प्यार से झांकते हुए मोहक स्वर में बोली, ‘‘प्लीज, मेरी खुशी की खातिर आप को यह काम करना ही पड़ेगा. आप मेरी बात मानेंगे न?’’ तुम्हारी बात कैसे टाल सकता हूं ब्यूटीफुल चलो,’’ रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूमने के बाद जब वे फौरन अपने मातापिता के पास जाने को उठ खड़े हुए, तो मैं मन ही मन विजयीभाव से मुसकराते हुए उन के गले लग गई. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: माय डैडी बेस्ट कुक

Family Story In Hindi: “सुनो! पेपर सोप और सैनीटाईजर पर्स में रख लिया है ना… और मास्क मत उतारना… दूरी बनाकर ही अपना काम करना है और हाथ बार-बार धोती रहना…” दो दिन के लिए टूर पर जाती विजया को पति कैलाश बस में बिठाने तक हिदायतें दे रहा था.

“हाँ बाबा! सब याद रखूँगी… और तुम भी अपना और निक्कू का खयाल रखना… संतरा को टाइम पर आने को कह देना ताकि आप दोनों को खाने-पीने की परेशानी ना हो…” विजया ने भी अपनी हिदायतों का पिटारा खोल दिया. बस चल दी तो कैलाश हाथ हिलाकर विदा करता हुआ पार्किंग की तरफ बढ़ गया.

“स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को घर में संभाले रखना कितना मुश्किल होता है… लेकिन कोई बात नहीं… दो दिन की ही तो बात है… संभाल लूँगा… फिर संतरा तो है ही…” मन ही मन सोचता… योजना बनाता… कैलाश घर की तरफ बढ़े जा रहा था. घर आकर देखा तो संतरा अपना काम निपटा रही थी.

“संतरा ना हो तो हम बाप-बेटे को दूध-ब्रेड से ही काम चलाना पड़े.” सोचते हुये कैलाश ने भी अपना टिफिन पैक करवाया और निक्कू को संतरा के पास छोडकर ऑफिस के लिए निकल गया.

“पापा! कार्टून चलाने दो ना.” रात को निक्कू ने कैलाश के हाथ से रिमोट लेने की जिद की.

“अभी ठहरो. आठ बजे हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं, उसके बाद.” कैलाश ने रिमोट वापस अपने कब्जे में कर लिया. मन मसोस कर निक्कू भी वहीं बैठकर भाषण समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा.

“आज रात बारह बजे से पूरे देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन किया जाएगा. समस्त देशवासियों से विनती है कि जो जहां है, वो वहीं रहकर इसमें सहयोग करे.” प्रधानमंत्री का उद्बोधन सुनते ही कैलाश के माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई. उसने तुरंत विजया को फोन लगाया.

“सुना तुमने! आज रात से पूरे देश में लॉकडाउन होने जा रहा है.” कैलाश के स्वर में चिंता थी.

“हाँ सुना! लेकिन तुम फिक्र मत करो. हमारा विभाग आवश्यक सेवाओं में शामिल है इसलिए ऑफिस बंद नहीं होगा.” विजया ने पति को आश्वस्त करने की कोशिश की.

“वो सब तो ठीक है लेकिन लॉकडाउन में तुम वापस कैसे आओगी?” कैलाश ने उत्तेजित होते हुये कहा.

“देखते हैं. कुछ न कुछ उपाय तो करना ही पड़ेगा. तुम फिक्र मत करो. बस! अपना और निक्कू का खयाल रखना. गुड नाइट.” कहते हुये विजया ने फोन काट दिया लेकिन कैलाश की चिंता दूर नहीं हुई. पूरी रात करवट बदलते-बदलते बीती. सुबह फोन की घंटी से आँख खुली. देखा तो संतरा का फोन था.

“साहब! हमारे मोहल्ले में एक आदमी कोरोना का मरीज निकला है. आसपास कर्फ़्यू लगा दिया गया है. मैं नहीं आ सकूँगी.” संतरा की बात सुनते ही कैलाश की नींद उड़ गई. वह फौरन बिस्तर से बाहर आया और निक्कू के कमरे में गया. निक्कू अभी तक सो रहा था. उसके चेहरे पर मासूमियत बिखरी थी. कैलाश को उस पर प्यार उमड़ आया.

“कितना बेपरवाह होता है बचपन भी.” कैलाश ने निक्कू के बालों में हाथ फिरा दिया. निक्कू ने आँखें खोली.

“दूध कहाँ है?” निक्कू ने कहा तो कैलाश को याद आया कि निक्कू दूध पीने के बाद ही फ्रेश होने जाता है. वह रसोई की तरफ लपका. दूध गर्म करके उसमें चॉकलेट पाउडर मिलाया और निक्कू को दिया. पहला घूंट भरते ही निक्कू ने मुँह बिचका दिया.

“आज इसका टेस्ट अजीब सा हैं. मुझे नहीं पीना.” निक्कू ने गिलास उसे वापस थमा दिया. कैलाश ने रसोई में रखे दूध को सूंघा तो उसमें से खट्टी-खट्टी गंध आ रही थी.

“उफ़्फ़! रात में दूध को फ्रिज में रखना भूल गया. विजेता ही ये सब काम निपटाती है इसलिए दिमाग में ही नहीं आया.” सोचते हुये कैलाश कुछ परेशान सा हो गया और दूध की व्यवस्था के बारे में सोचने लगा.

भाषण में कहा गया था कि आवश्यक दुकानें खुली रहेंगी. याद आते ही  कैलाश ने तुरंत गाड़ी निकाली और दूध पार्लर से दूध के पैकेट लेकर आया. घर पहुँचते ही मेल चेक किया तो पता चला कि आज से आधे कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे. उसे आज नहीं कल ऑफिस जाना है. उसने राहत की सांस ली और दूध गर्म करने लगा. इस बीच मोबाइल पर अपडेट्स देखना भी चालू था. सर्रर्रर्र… से दूध उबल कर स्लैब पर बिखर गया तो कैलाश ने अपना माथा पीट लिया. मोबाइल एक तरफ रखकर वह रसोई साफ करने लगा.

“घर संभालना किसी मोर्चे से कम नहीं.” अचानक ही उसका मन विजया और संतरा के प्रति आदर से भर उठा.

“पापा! आज नाश्ते में क्या है?” निक्कू रसोई के दरवाजे पर खड़ा था.

“अभी तो ब्रेड-जैम से काम चला ले बेटा. लंच में बढ़िया खाना खिलाऊंगा.” कैलाश ने उसे किसी तरह राजी किया और ब्रेड पर जैम लगाकर निक्कू को नाश्ता दिया. दो-तीन ब्रेड खुद भी खाकर वह अपना लैपटाप लेकर बैठ गया और ऑफिस के काम को अपडेट करने लगा.

“पापा! खाने में क्या बनाओगे? आपको आता तो है ना बनाना?” निक्कू ने पूछा तो कैलाश सचमुच सोच में पड़ गया. उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं. बेचारी विजेता कितना चाहती थी कि कभीकभार वह भी रसोई में उसकी मदद करे लेकिन उसने तो अपने हिस्से का काम संतरा के सिर डालकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी.

कैलाश रसोई में घुसा. आटे का डिब्बा निकालकर परात में आटा साना और उसे गूंधने की कोशिश करने लगा. कभी आटे में पानी ज्यादा तो कभी पानी में आटा ज्यादा… किसी तरह पार पाई तो देखा कि इतना आटा तो वे दोनों पूरे सप्ताह भी खत्म नहीं कर सकेंगे.

“चलो ठीक ही है, रोज-रोज की एक्सर्साइज़ से मुक्ति मिली.” सोचते हुये कैलाश ने सिंक में अपने हाथ धोये और फ्रिज में से सब्जी निकालने लगा. लौकी… करेला… टिंडे… नाम सुनते ही निक्कू मना में सिर हिला रहा था. कैलाश भी खुश था क्योंकि उसे ये सब बनाना भी कहाँ आता था. किसी तरह आलू पर आकार बात टिकी तो कैलाश ने भी राहत की सांस ली.

धो-काटकर आलू कूकर में डाले. मसाले और थोड़ा पानी डालकर कूकर बंद कर दिया. सीटी पर सीटी बज रही थी लेकिन कैलाश को कुछ भी अंदाज नहीं था कि गैस कब बंद की जाये. थोड़ी देर में कूकर में से जलने की गंध आने लगी तो कैलाश ने भागकर गैस बंद कि. ठंडा होने पर जब कूकर खुला तो माथा पीटने के अलावा कुछ भी शेष नहीं था. सब्जी तो जली ही, कूकर भी साफ करने लायक नहीं बचा था. निक्कू का मुँह फूला सो अलग.

किसी तरह दो मिनट नूडल बना-खाकर भूख मिटाई गई लेकिन कैलाश ने ठान लिया था कि आज रात वह निक्कू को शाही डिनर जरूर करवाएगा.

शाम को जब विजया का फोन आया तो कैलाश ने झेंपते हुये दिन की घटना का जिक्र किया. सुनकर वह भी हँसे बिना नहीं रह सकी.

“अच्छा सुनो! उस खट्टी गंध वाले दूध का क्या करूँ?” कैलाश ने पूछा.

“एकदम सही समय पर याद दिलाया. तुम उसे गर्म करके उसमें एक नीबू निचोड़ दो. पनीर बन जाए तो उसके पराँठे सेक लेना.” विजेता ने आइडिया दिया तो कैलाश भी खुश हो गया. उसने विडियो कॉल पर विजेता की निगरानी में पनीर बनाया और उसे एक कपड़े में बांधकर कुछ देर के लिए लटका दिया. दो घंटे बाद जब पनीर का सारा पानी निकल गया तो विजया की मदद से उसने पनीर का भरावन भी तैयार कर लिया. अब शाम को कैलाश पूरी तरह से बेटे को शाही डिनर खिलाने के लिए तैयार था.

आटा तो दोपहर से गूँथा हुआ ही था, कैलाश ने खूब सारा भरावन भर के परांठा बेला और निक्कू की तरफ गर्व से देखते हुये उसे तवे पर पटक दिया.

“पापा! करारा सा बनाना.” निक्कू भी बहुत उत्साहित था. तभी कैलाश का फोन बजा और वह कॉल लेने चला गया. नेटवर्क कमजोर होने के कारण कैलाश फोन लेकर बालकनी में आ गया. बात खत्म करके जब वह रसोई में आया तो तवे से उठते धुएँ को देखकर घबरा गया. उसने भागकर पराँठे को पलटा लेकिन तवा बहुत गर्म था और जल्दबाज़ी में उसे चिमटा कहाँ याद आता। नतीजन! पराँठे को छूते ही उसका हाथ जल गया और हड़बड़ाहट में पनीर के भरावन वाला प्याला स्लैब से नीचे गिर गया.

“गई भैंस पानी में!” कैलाश ने सिर धुन लिया. निक्कू का मूड तो खराब होना ही था.

“पापा प्लीज! आपसे नहीं होगा. मम्मी को बुला लीजिये.” निक्कू रोने लगा. वह अब कैलाश के हाथ का बना कुछ भी अंटशंट नहीं खाना चाहता था. निक्कू को खुश करने के लिए कैलाश ने ऑनलाइन खाने की तलाश की लेकिन उसे नाउम्मीदी ही हाथ लगी.

तभी उसे याद आया कि ऐसी ही कई परिस्थितियों में विजया झटपट मटरपुलाव बना लिया करती है. निक्कू भी शौक से खा लेता है. कैलाश ने फटाफट चावल धोये और थोड़े से मटर छील लिये. गैस पर कूकर भी चढ़ा दिया लेकिन फिर वही समस्या… कूकर में पानी कितना डाले और कितनी देर पकाये…

तुरंत हाथ फोन की तरफ बढ़े और विजया का नंबर डायल हुआ लेकिन कैलाश ने तुरंत फोन काट दिया. वह बार-बार अपने अनाड़ीपन का प्रदर्शन कर उसे परेशान नहीं करना चाहता था. घड़ी की तरफ देखा तो अभी नौ ही बजे थे. उसने संतरा को फोन लगाया.

“अरे साब! पुलाव बनाना कौन बड़ा काम है. पहले घी डालकर लोंग-इलाइची तड़का लो फिर चावल और जितना चावल लिया, ठीक उससे दुगुना पानी डालो… मसाले डालकर दो सीटी कूकर में लगाओ और पुलाव तैयार…” संतरा ने हँसते हुये बताया तो कैलाश को आश्चर्य हुआ.

“ये औरतें भी ना! कमाल होती हैं… कैसे उँगलियों पर हिसाब रखती हैं.” कैलाश ने सोचा. लेकिन तभी उसे कुछ और याद आ गया.

“और मसाले? उनका क्या हिसाब है?” कैलाश ने तपाक से पूछा.

“मसलों का कोई हिसाब नहीं होता साब. आपका अपना स्वाद ही उनका हिसाब है. पहले अपने अंदाज से जरा कम मसाले डालिए, फिर चम्मच में थोड़ा सा लेकर चख लीजिये… कम-बेसी हो तो और डाल लीजिये.” संतरा ने उसी सहजता से बताया तो कैलाश को पुलाव बनाना बहुत आसान लगने लगा.

और हुआ भी यही. यह डिश उसकी उम्मीद से कहीं बेहतर बनी थी. खाने के बाद निक्कू के चेहरे पर आई मुस्कान देखकर कैलाश का आत्मविश्वास लौटने लगा.

अगले दिन कैलाश को ऑफिस जाना था. पूरा दिन निक्कू अकेला घर पर रहेगा यह सोचकर ही वह परेशान हो गया. उसने रात को सोने से पहले ही निक्कू को आवश्यक हिदायतें देकर उसे सावधानी से घर पर रहने के लिए समझा दिया था.

आज कैलाश अपने हर काम में अतिरिक्त सावधानी बरत रहा था. दूध गर्म करके निक्कू को उठाना… फिर वेज सैंडविच का नाश्ता और लंच के लिए आलू का परांठा… ये सब करने में उसने यू ट्यूब की पूरी-पूरी मदद ली. विजया जैसा उँगलियाँ चाटने वाला तो नहीं लेकिन हाँ! काम चलाऊ खाना बन गया था.

शाम को घर वापस आते हुये जब उसने एक परचून की दुकान खुली देखी तो गाड़ी रोक ली. मुँह पर मास्क लगाकर वह भीतर गया और एक पैकेट मैदा और आधा किलो छोले खरीद लिए. साथ ही इमली का छोटा पैकेट भी. कई बार विजया ने उससे ये सामान मंगवाया है जब वो छोले-भटूरे बनाती है.

“निक्कू को बहुत पसंद हैं. कल सुबह मुझे ऑफिस नहीं जाना है. निक्कू को सरप्राइज दूँगा. शाम तक विजया आ ही जाएगी.” मन ही मन खुश होता हुआ अपनी प्लानिंग समझाने और छोले-भटूरे बनाने की विधि पूछने के लिए उसने विजया को फोन लगाया.

“सॉरी कैलाश! हमें अभी वापस आने की परमिशन नहीं मिली. लगता है तुम्हें कुछ दिन और अकेले संभालना पड़ेगा.” विजया के फोन ने उसे निराश कर दिया. आँखों के सामने तवा… कड़ाही… भगोना… चकला और बेलन नाचने लगे. मन खराब हो गया लेकिन घर पहुँचते ही जिस तरह निक्कू उससे लिपटा, वह सारा अवसाद भूल गया.

“पापा! आज हम दोनों मिलकर खाना बनाएँगे. आप रोटी बनाना और मैं डिब्बे में से अचार निकालूँगा…” निक्कू ने हँस कर कहा तो उसे फिर से जोश आ गया.

“लेकिन मैं गोल रोटी नहीं बना सकता…” कैलाश ने मुँह बनाया.

“कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएगी.” निक्कू खिलखिलाया तो कैलाश दुगुने जोश से भर गया. रात को दोनों ने आम के मीठे अचार के साथ पराँठे खाये. पराँठों की शक्ल पर ना जाया जाए तो स्वाद इतना बुरा भी नहीं था.

कैलाश ने रात को छोले भिगो दिये. सुबह दही डालकर भटूरे के लिए मैदा भी गूँध लिया. थोड़ा ठीला रह गया था लेकिन चल जाएगा. प्याज-टमाटर काटकर रख लिए. इमली को छानकर उसका गूदा अलग कर लिया. ये सारी तैयारी उसने निक्कू के जागने से पहले ही कर ली.अब छोले बनाने की रेसिपी देखने के लिये उसने यू ट्यूब खोला.

“छोला रेसिपी” टाइप करते ही बहुत सी लिंक स्क्रीन पर दिखाई देने लगी. सभी में सबसे पहला निर्देश था- “सबसे पहले नमक-हल्दी डालकर छोले उबाल लें.” यही तो सबसे बड़ी समस्या थी कि छोले कैसे उबालें… कितना पानी डाले… कितनी देर पकाये… कूकर को कितनी सीटी लगाए…

उसने विजया की अलमारी में से कुछ पत्रिकाएँ निकाली जिन्हें वह रेसिपी के लिये संभाल कर रखती है. उन्हीं में से एक में उसे छोले-भटूरे बनाने की रेसिपी मिल गई. कैलाश खुश हो गया लेकिन पहला वाक्य पढ़ते ही फिर से माथा ठनक गया. लिखा था- “सबसे पहले छोले उबाल लें.” यानी समस्या तो अब भी जस की तस थी.

“विजया को फोन लगाए बिना नहीं बैठेगा.” सोचकर उसने विजया को फोन लगाया.

“बहुत आसान है कैलाश! छोलों में दो उंगल ऊपर तक पानी डालो. फिर नमक-हल्दी डालकर दो चम्मच घी भी डाल देना. अब कूकर में प्रेशर आने दो. एक सीटी आते ही गैस को सिम कर देना. आधा घंटा पकने देना. छोले उबल जाएंगे.” विजया ने जिस सहजता से बताया उसे सुनकर कैलाश को लगा कि छोले बनाना सचमुच बहुत आसान है.

छोले उबल चुके थे. बाकी का काम रेसिपी बुक और यू ट्यूब की मदद से हो जाएगा. कैलाश ने गैस पर कड़ाही चढ़ा दी. एक तरफ रेसिपी बुक खुली थी, दूसरी तरफ यू ट्यूब पर विडियो चल रहा था. कैलाश उन्हें देख-पढ़कर पूरी तन्मयता से छोले बनाने में जुट गया.

तेल गरम होने पर पहले प्याज, लहसुन और अदरक का पेस्ट डाला फिर सब्जी वाले मसाले डालकर उन्हें अच्छी तरह से पकाया. उबले हुये छोले कड़ाही में डालते समय कैलाश के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. पिछले घंटे भर की सारी घटनाएँ आँखों के सामने घूम गई.

इमली का गूदा डालकर जब कैलाश ने चम्मच में लेकर छोले चखे तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वह भी इतने स्वादिष्ट छोले बना सकता है.

अब बारी थी भटूरे बनाने की. कैलाश ने रेस्टोरेंट जैसे बड़े-बड़े भटूरे बेलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. तभी उसे निक्कू की बात याद आ गई- “रोटी गोल नहीं बनी… कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएंगी.” कैलाश मुस्कुरा दिया.

“बड़े भटूरे जरूरी तो नहीं… छोटों में भी वही स्वाद आएगा.” कैलाश ने एक छोटा सा भटूरा बेला और सावधानी से गर्म तेल में छोड़ दिया. कचोरी की तरह फूलकर भटूरा कड़ाही में नाचने लगा और इसके साथ ही कैलाश भी.

“तो आज हमारे निक्कू राजा के लिए एक खास सरप्राइज़ है.” कैलाश ने उसे दूध का गिलास थमा कर उठाया.

“क्या?” निक्कू ने पूछा.

“छोले-भटूरे.”

“तो क्या मम्मी आ गई?” निक्कू खुश हो गया.

“नहीं रे! पापा की  तरफ से है.” निक्कू बुझ गया. कैलाश मुस्कुरा दिया.

“निक्कू! सरप्राइज़ तैयार है.” कैलाश प्लेट में छोले-भटूरे लेकर खड़ा था. निक्कू को यकीन नहीं हो रहा था. वह खुशी के मारे उछल पड़ा. पहला कौर मुँह में डालने ही वाला था कि कैलाश बोला- “आहा! गर्म है… जरा आराम से.”

निक्कू खाता जा रहा था… उसकी आँखें फैलती जा रही थी… चेहरे पर संतुष्टि के भाव लगातार बढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही कैलाश के चेहरे की मुस्कान भी. उसने विजया को विडियो पर कॉल लगाई और उसे यह दृश्य दिखाया. वह भी हँस दी.

“पापा! आप एक अच्छे कुक बन सकते हो.” निक्कू ने अपनी उंगली और अंगूठे को आपस में मिलाकर “लाजवाब” का इशारा किया तो विडियो पर ऑनलाइन विजया ने तालियाँ बजकर बेटे की बात का समर्थन किया.

“तुम आराम से आना… हमारी फिक्र मत करना… हम मैनेज कर लेंगे…” कैलाश ने विजया से कहा. उसे आज परीक्षा में पास होने जैसी खुशी हो रही थी.

“माय डैडी इज द बेस्ट कुक.” निक्कू ने एक निवाला कैलाश के मुँह में डालकर कहा. स्वाद सचमुच लाजवाब था. कैलाश ने विजया की तरफ देखकर अपनी कॉलर ऊंची की और बाय करते हुये फोन काट दिया. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: जीवन और नाटक

Hindi Family Story: ‘‘माहिका बेटे, देख तो कौन आया है. जल्दी से गरम पकौड़े और चाय बना ला. चाय बढि़या मसालेदार बनाना.’’ जूही ने अपनी बेटी को पुकारा और फिर से अपनी सहेली नीलम के साथ बातचीत में व्यस्त हो गई.

‘‘रहने दे न. परीक्षा सिर पर है, पढ़ रही होगी बेचारी. मैं तुम्हें लड़कियों के फोटो दिखाने आई हूं. पंकज अगले माह 25 का हो जाएगा. जितनी जल्दी शादी हो जाए अच्छा है. उस के बाद उस की छोटी बहन नीना का विवाह भी करना है. ले यह फोटो देख और बता तुझे कौन सी पसंद है,’’ नीलम ने हाथ में पकड़ा लिफाफा जूही की ओर बढ़ाया. देर तक दोनों बारीबारी से फोटो देख कर मीनमेख निकालती रहीं.

कुछ देर बाद जूही ने 2 फोटो निकाल कर नीलम को थमा दिए.

‘‘दोनों ही अच्छी लग रही हैं. वैसे भी हमारेतुम्हारे पसंद करने से क्या होता है. पसंद तो पंकज की पूछो. महत्त्व तो पंकज की पसंद का है. है कि नहीं? हमारीतुम्हारी पसंद को कौन पूछता है. यों भी फोटो से किसी के बारे में कितना पता लग सकता है. असली परख तो आमनेसामने बैठ कर ही हो सकती है.’’

तब तक माहिका पकौड़े और चाय ले कर आ गई थी.

‘‘सच कहूं जूही, तेरी बेटी बड़ी गुणवान है, जिस घर में जाएगी उस का तो जीवन सफल हो जाएगा,’’ नीलम ने गरमगरम पकौड़े मुंह में रखते हुए प्रशंसा की झड़ी लगा दी.

‘‘माहिका तू भी तो बता अपनी पसंद,’’ नीलम ने माहिका की ओर फोटो बढ़ाए.

‘‘आंटी मैं भला क्या बताऊंगी. यह तो आप बड़े लोगों का काम है.’’ माहिका धीमे स्वर में बोल कर मुड़ गई.

‘‘ठीक ही तो कह रही है, बच्चों को इन सब बातों की समझ कहां. वैसे भी परीक्षा की तैयारी में जुटी है.’’ जूही बोली.

‘‘तुझे नहीं लगता कि आजकल माहिका बहुत गुमसुम सी रहने लगी है. पहले तो अकसर आ जाती थी, दुनिया भर की बातें करती थी, घर के काम में भी हाथ बंटा देती थी, पर अब तो सामने पड़ने पर भी कतरा कर निकल जाती है.’’

‘‘इस उम्र में ऐसा ही होता है. मुझ से भी कहां बात करती है. किसी काम को कहो तो कर देगी. दिन भर लैपटौप या फोन से चिपकी रहेगी. इन सब चीजों ने तो हमारे बच्चों को ही हम से छीन लिया है.’’

‘‘सो तो है पर हमारा भी तो अधिकतर समय फोन पर ही गुजरता है,’’ जूही ऐसी अदा से बोली कि दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंसीं.

नीलम को विदा करते ही जूही काम में जुट गई.

‘‘नीलम आती है तो जाने का नाम ही नहीं लेती. रजत के आने का समय हो गया है. अभी तक खाना भी नहीं बना है. रजत का कुछ भरोसा नहीं. कभी चाय पीते हैं, तो कभी सीधे खाना मांग लेते हैं,’’ जूही स्वयं से ही बातें कर रही थी.

‘‘माहिका तुम अब तक फोन से ही चिपकी हुई हो. यह क्या तुम तो रो रही हो. क्या हुआ?’’ माहिका का स्वर सुन कर जूही उस के कमरे में पहुंची थी.

‘‘कुछ नहीं अपनी सहेली स्नेहा से बात कर रही थी, तो आंखों में आंसू आ गए.’’

‘‘क्यों क्या हुआ? सब ठीक तो है.’’

‘‘कहां ठीक है. बेचारी बड़ी मुसीबत में है.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’

‘‘लगभग 4 वर्ष पहले उस ने सब से छिप कर मंदिर में विवाह कर लिया था. पर अब उस का पति दूसरी शादी कर रहा है.’’

‘‘क्या कह रही है? स्नेहा ने 4 वर्ष पहले ही विवाह कर लिया था? उस के मातापिता को पता है या नहीं?’’

‘‘किसी को पता नहीं है.’’

‘‘दोनों साथ रहते हैं क्या?’’

‘‘नहीं विवाह होते ही दोनों अपने घर लौट कर पढ़ाई में व्यस्त हो गए.’’

‘‘दोनों के बीच संबंध बने हैं क्या?’’

‘‘नहीं, इसीलिए तो दूसरा विवाह कर रहा है.’’

‘‘इस तरह छिप कर विवाह करने की क्या आवश्यकता थी. आजकल की लड़कियां भी बिना सोचेसमझे कुछ भी करती हैं. स्नेहा के मातापिता को पता लगा तो उन पर क्या बीतेगी?’’ जूही चिंतित स्वर में बोली.

‘‘पता नहीं आप ही बताओ अब वह

क्या करे?’’

‘‘चुल्लू भर पानी में डूब मरे और क्या. उस ने तो अपने मातापिता को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘थोड़ी ही देर में यहां आ रही है स्नेहा. आप ही उसे समझा देना.’’

‘‘यहां क्या करने आ रही है? उस से कहो अपने मातापिता से बात करे. वे ही कोई रास्ता निकालेंगे.’’ मांबेटी का वार्तालाप शायद कुछ और देर चलता कि तभी दरवाजे की घंटी बजी और स्नेहा ने प्रवेश किया.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के गले लिपट कर खूब रोईं. जूही सब कुछ चुपचाप देखती रहीं. समझ में नहीं आया कि क्या करे.

‘‘अब रोनेधोने से क्या होगा. अपने कमरे में चल कर बैठो मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं आंटी, कुछ नहीं चाहिए. मेरी चिंता तो केवल यही है कि इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा?’’ स्नेहा गंभीर स्वर में बोली.

‘‘सच कहूं, स्नेहा मुझे तुम से यह आशा नहीं थी.’’

‘‘पर मैं ने किया क्या है?’’

‘‘लो और करने को रह क्या गया है. तुम्हें छिप कर विवाह करने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मैं ने छिप कर विवाह नहीं किया आंटी? आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है.’’

‘‘समझती हूं मैं. पर मेरी मानो और जो हो गया सो हो गया, अब सब कुछ अपने मातापिता को बता दो.’’

‘‘मेरे मातापिता का इस से कोई लेनादेना नहीं है. वैसे भी मैं उन से कोई बात नहीं छिपाती. इस समय तो मुझे माहिका की चिंता सता रही है. आप को ही कोई राह निकालनी पड़ेगी जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘साफसाफ कहो न पहेलियां क्यों बुझा रही हो.’’

‘‘आंटी माहिका ने जो कुछ किया वह निरा बचपना था. जब तक उसे अपनी गलती समझ में आई, देर हो चुकी थी. मुझे भी लगा कि देरसबेर पंकज इसे स्वीकार कर लेगा पर यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. माहिका बेचारी हर साल पंकज के लिए करवाचौथ का व्रत करती रही पर वह नहीं पसीजा. अब बेचारी माहिका करे भी तो क्या?’’

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? विवाह तुम ने नहीं माहिका ने किया था?’’

‘‘वही तो. चलिए आप की समझ में तो आया. अभी तक तो आप मुझे ही दोष दिए जा रही थीं.’’ स्नेहा हंस दी.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं. माहिका इतनी बड़ी बात छिपा गईं तुम? हम ने क्याक्या आशाएं लगा रखी थीं और तुम ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. अब यह और बता दो कि किस से रचाया था तुम ने यह अद्भुत विवाह.’’

‘‘पंकज से.’’

‘‘कौन पंकज? नीलम का बेटा?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘नीलम जानती है यह सब?’’

‘‘मुझे नहीं पता.’’

‘‘पता क्या है तुझे कमबख्त. राखी बांधती थी तू उस को. मुझे अब सब समझ में आ रहा है इसीलिए तू करवाचौथ का व्रत करने का नाटक करती थी. तेरे पापा को पता चला तो हम दोनों को जान से ही मार देंगे. उन्हें तो वैसे भी उस परिवार से मेरा मेलजोल बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वे क्रोध में बोलीं और माहिका को बुरी तरह धुन डाला.

‘‘आंटी क्या कर रही हो? माना उस से गलती हुई है पर उस के लिए आप उस की जान तो नहीं ले सकतीं.’’ स्नेहा चीखी.

जूही कोई उत्तर दे पातीं उस से पहले ही माहिका के पापा रजत ने घर में प्रवेश किया. उन के आते ही घर में सन्नाटा छा गया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करें.

‘‘स्नेहा बेटे, कब आईं तुम और बताओ पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ बात रजत ने ही शुरू की.

‘‘जी ठीक चल रही है.’’

‘‘आज बड़ी शांति है घर में. जूही एक कप चाय पिला दो, बहुत थक गया हूं.’’ उत्तर में जूही सिसक उठीं.

‘‘क्या हुआ? इस तरह रो क्यों रही हो. कुछ तो कहो.’’

‘‘कहनेसुनने को बचा ही क्या है, माहिका ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा.’’

‘‘क्या किया है उस ने?’’

‘‘उस ने विवाह कर लिया है.’’

‘‘क्यों मजाक करती हो. कब किया उस ने विवाह?’’

‘‘4 साल पहले किसी मंदिर में.’’

‘‘और हम से पूछा तक नहीं?’’ रजत हैरानपरेशान स्वर में बोले.

‘‘हम हैं कौन उस के जो हम से पूछती?’’

‘‘तो ठीक है, हम उस के विवाह को मानते ही नहीं. 4 साल पहले वह मात्र 15 वर्ष की थी. हमारी आज्ञा के बिना विवाह कर कैसे सकती थी. हम ने उस के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे हैं. उन का क्या?’’ रजत बाबू नाराज स्वर में बोले. कुछ देर तक सब सकते में थे. कोई कुछ नहीं बोला. फिर अचानक माहिका जोर से रो पड़ी.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘पापा, मैं पंकज के बिना नहीं रह सकती. भारतीय नारी का विवाह जीवन में एकबार ही होता है.’’

‘‘किस भारतीय नारी की बात कर रही हो तुम? आजकल रोज विवाह और तलाक हो रहे हैं. जिस तरह पंकज के बिना 19 साल से रह रही हो, आगे भी रहोगी.’’

‘‘देखा स्नेहा मैं न कहती थी. पापा भी बिलकुल पंकज की भाषा बोल रहे हैं. पर मेरे पास अपने विवाह के पक्के सबूत हैं.’’

‘‘कौन से सुबूत हैं तुम्हारे पास,’’ रजत ने प्रश्न किया.

‘‘विवाह का फोटो है. गवाह के रूप में स्नेहा है और पंकज के कुछ मित्र भी विवाह के समय मंदिर में थे.’’

‘‘अच्छा फोटो भी है? बड़ा पक्का काम किया है तुम ने. ले कर तो आओ वह फोटो.’’ माहिका लपक कर गई और फोटो ले आई. रजत ने फोटो के टुकड़ेटुकड़े कर के रद्दी की टोकरी में डाल दिए.

‘‘कहां है अब सुबूत और स्नेहा बेटे बुरा मत मानना. तुम माहिका की बड़ी अच्छी मित्र हो जो उस के साथ खड़ी हो. पर इस समय अपने घर जाओ. जब हम यह समस्या सुलझा लें तब आना. केवल एक विनती है तुम से कि इन बातों का जिक्र किसी से मत करना.’’

‘‘जी, अंकल.’’ स्नेहा चुपचाप उठ कर बाहर निकल गई.

‘‘यह क्या किया आप ने? मैं तो सोच रही थी स्नेहा के साथ पंकज के घर जाएंगे. वही तो जीताजागत सुबूत है.’’ जूही जो अब तक इस सदमे से उबर नहीं पाई थीं आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘मुझे शर्म आती है कि इतना बड़ा कांड हो गया और हम दोनों को इस की भनक तक नहीं लगी. हमारा मुख्य उद्देश्य है माहिका को इस भंवर से निकालना वह भी इस तरह कि किसी को इस संबंध में कुछ पता न चले. हम कहीं किसी के घर नहीं जा रहे, न कोई सुबूत पेश करेंगे. माहिका जब तक अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता.’’

‘‘मुझे नहीं लगता पंकज का परिवार इतने लंबे समय तक प्रतीक्षा करेगा. नीलम तो आज ही बहुत सारे फोटो ले कर आई थी मुझे दिखाने.’’

‘‘समझा, तो यह खेल खेल रहे हैं वे लोग. तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि माहिका का विवाह पंकज से संभव है. मैं ने उसे दसियों बार नशे में चूर पब से बाहर निकलते देखा है. पढ़ाईलिखाई में जीरो पर गुंडागर्दी में सब से आगे.’’

‘‘पर इन का विवाह तो 4 वर्ष पहले ही हो चुका है.’’

‘‘फिल्मों और नाटकों में अभिनेता अलगअलग पात्रों से कई विवाह करते हैं, तो क्या यह जीवन भर का नाता हो जाता है. समझ लो माहिका ने भी ऐसे ही किसी नाटक के पात्र का अभिनय किया था और एक चेतावनी तुम दोनों के लिए, उस परिवार से आप दोनों कोई संबंध नहीं रखेंगे. फोन पर भी नहीं. माहिका जैसी मेधावी लड़की का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. मैं नहीं चाहता कि वह बेकार के पचड़ों में पड़ कर अपना जीवन तबाह कर ले,’’ रजत दोनों से कठोर स्वर में बोले. मृदुभाषी रजत का वह रूप न तो कभी जूही ने देखा था और न ही कभी माहिका ने. दोनों ने सिर हिला कर स्वीकृति दे दी.

कुछ माह ही बीते होंगे कि एक दिन रजत ने सारे परिवार को यह कह कर चौंका दिया कि वे सिंगापुर जा रहे हैं. वहां उन्हें नौकरी मिल गई है. जूही और माहिका चुप रह गईं पर उन का 15 वर्षीय पुत्र विपिन प्रसन्नता से उछल पड़ा.

‘‘मैं अभी अपने मित्रों को फोन करता हूं.’’ वह चहका.

‘‘नहीं, मैं नहीं चाहता कि किसी को पता चले कि हम कहां गए हैं.’’ रजत सख्ती से बोले.

‘‘क्यों पापा?’’

‘‘बेटे हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है. जब तक उस का हल नहीं मिल जाता हमें सावधानी से काम लेना पड़ेगा. इसीलिए हम चुपचाप जाएंगे बिना किसी को बताए.’’

तभी उन्हें पास ही माहिका के सुबकने का स्वर सुनाई पड़ा. जूही उसे शांत करने का प्रयत्न कर रही थी.

‘‘माहिका, इधर तो आओ. क्या हुआ बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं पापा, आप की बात सुन कर लगा आप अब भी मुझ पर विश्वास नहीं करते,’’ माहिका आंसुओं के बीच बोली.

‘‘तुम ने जो किया उस के बाद विश्वास करना क्या इतना सरल है माहिका? विश्वास जमने में सदियां लग जाती हैं पर टूटने में कुछ क्षण. बस एक बात पर सदा विश्वास रखना कि तुम्हारे पापा तुम्हें इतना प्यार करते हैं कि तुम्हारे हितों की रक्षा के लिए किसी सीमा तक भी जा सकते हैं.’’

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए मैं ने आप को बहुत दुख पहुंचाया है,’’ माहिका फूटफूट कर रो पड़ी. सारे गिलेशिकवे उस के आंसुओं में बह गए. Hindi Family Story

Hindi Family Story: कुछ हट कर

Hindi Family Story: एक सुबह कविता सो कर उठी और फ्रैश हुई. तभी अचानक उस की नजर कैलेंडर पर पड़ी तो वह जरा ठिठकी, ओह, कुछ ही दिनों में वह 42 साल की हो जाएगी. बस यही ठंडी सी सांस उस के मुंह से निकली. किचन में चाय बनाते हुए मन अजीब सा हुआ कि क्या सच में काफी उम्र हो रही है? चाय ले जा कर मेज पर रखी और फिर विनय का बाथरूम से निकलने का इंतजार करने लगी. लगा इतने सालों से वह बस इंतजार ही तो कर रही है…

आजकल कई दिनों से मन में फैली अजीब सी उदासीनता कविता से सहन नहीं होती. उसे अपने जीवन में शांत झील का ठहराव नहीं, बल्कि समुद्र की तूफानी लहरों का उफान चाहिए, कुछ तो खट्टामीठा स्वाद हो जीवन का.

दोनों बच्चे अभिजीत और अनन्या बड़े हो गए हैं, दोनों ने अपनीअपनी डगर ले ली है. ‘लगता है, अब किसी को मेरी जरूरत नहीं है, कैसे ढोऊं अब उद्देश्यहीन जीवन का भार?’ आजकल कविता बस ऐसी ही बातें सोचती रहती. उसे अपनी मनोदशा स्वयं समझ नहीं आती. जितना सोचती उतना ही अपने बनाए

हुए भ्रमजाल में उलझती जाती. आज जब बच्चे उस के स्नेह की छांव को छोड़ कर अपने क्षितिज की तलाश में बढ़ चले हैं, तो वह नितांत अकेली खड़ी महसूस करती है, निराधार, अर्थहीन.

‘‘अरे, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है, कविता,’’ विनय की आवाज से कविता की

तंद्रा भंग हुई.

‘‘क्या सोच रही थी, तबीयत तो ठीक है न?’’ पूछतेपूछते विनय ने चाय के साथ पेपर उठा लिया तो कविता और अनमनी हो गई, सोचा, बस पेपर पढ़ कर औफिस चले जाएंगे, बच्चे भी कालेज चले जाएंगे, तीनों शाम तक ही लौटेंगे. बस, उस का वही बोरिंग रूटीन शुरू हो जाएगा. मेड से काम करवाएगी, नहाधो कर थोड़ी देर टीवी देखेगी, कोई पत्रिका पढ़ेगी और फिर शाम होतेहोते सब के आने का इंतजार शुरू हो जाएगा.

कविता सोचती वह पोस्ट ग्रैजुएट है. विवाह के बाद विनय और उस के सासससुर उस के नौकरी करने के पक्षधर नहीं थे, उस ने भी घरगृहस्थी खुशीखुशी संभाल ली थी. सब ठीक था, बस, इन कुछ सालों में कुछ कमी सी लगती है. वह अपने रूटीन से बोर हो रही है, आजकल उस का कुछ हट कर, कुछ नया करने को जी चाहता है. इन्हीं खयालों में डूबे उस ने दिन भर के काम निबटाए, शाम को सोसायटी के गार्डन में सैर करने गई. यह अब भी उस की दिनचर्या का सब से प्रिय काम था.

कविता आधा घंटा सैर करती, फिर गार्डन से क्लबहाउस के टैरेस पर जाने का जो रास्ता है, वहां जा कर थोड़ी देर घूमती. टैरेस से नीचे बना स्विमिंगपूल दिखता, उस में हाथपैर मारते छोटेछोटे बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते. शाम को ज्यादातर बच्चे ही दिखते थे, टीनएजर्स कभीकभी ही दिखते थे. पूल का नीलापन जैसे आसमान का आईना लगता. वह नीलापन कविता को आकर्षित करता. वह खड़ीखड़ी कभी आसमान को देखती तो कभी स्विमिंगपूल के नीलेपन को.

क्लब हाउस का पास तो कविता के पास था ही. अत: एक दिन वह ऐसे ही टहलतेटहलते पूल के पास पहुंच गई और फिर किनारे पर रखी चेयर पर बैठ गई. स्विमिंग

पूल से पानी की हलकीहलकी आवाजें आ रही थीं, अत: पानी में जाने की तीव्र इच्छा उस पर हावी हुई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था. उस के अंदर जैसे किसी ने कहा, कुछ हट कर करना है न तो स्विमिंग क्यों नहीं? दिल किया वह अभी इसी समय अपने इस एहसास को किसी के साथ बांटे. पूल में उतरने और तैरने के खयाल से ही वह उत्साहित हो गई. हां, यह ठीक रहेगा, वह हमेशा स्विमिंग से डरती है, पानी से उसे डर लगता है, जब भी जुहू या और किसी बीच पर जाती है, हमेशा पानी से दूर टहलती है.

2 साल पहले जब चारों गोआ घूमने गए थे, उसे बहुत मजा आया था. लेकिन वह लहरों के बीच जाने से कतराती रही थी. पिछले साल फिर जब उस ने विनय से गोआ चलने के लिए कहा तो अभिजीत और अनन्या दोनों ने ही कहा, ‘‘मम्मी, आप को गोआ जा कर करना क्या है? आप को दूरदूर किनारे ही तो घूमना है. उस के लिए तो यहीं मुंबई में ही जुहू बीच पर चली जाया करो.’’

कविता क्या करे, उसे लहरों के अंदर घबराहट सी होती और यह घबराहट उसे पहले नहीं होती थी. वह तो 10 साल पहले जब विनय की पोस्टिंग नईनई ठाणे में हुई थी तो वे घर के पास ही स्थित ‘टिकुजीनिवाड़ी वाटर पार्क’ में गए थे. वहां पहुंच कर कविता बहुत उत्साहित थी. यह किसी वाटरपार्क का उस का पहला अनुभव था. वहीं एक स्लाइड से नीचे आते हुए उस का संतुलन बिगड़ गया और वह सिर के बल पानी में गिर गई और घबराहट में स्वयं को संभाल नहीं पाई.

विनय ने ही उसे सहारा दे कर खड़ा किया. वे कुछ क्षण जब उसे अपनी सांस रुकती हुई लगी थी, उसे अब तक याद थे.

और आज जब कुछ नया करने की इच्छा है, तो वह क्यों न पानी में उतर जाए, वह मन ही मन संतुष्ट हुई, हां, स्विमिंग ठीक रहेगी और विनय और बच्चों को अभी नहीं बताऊंगी वरना इस उम्र में यह शौक देख कर वे तीनों हंसने लगेंगे. यह मैं अपने लिए करूंगी, कई सालों में बहुत दिनों बाद, जो मैं चाहती हूं वह करूंगी न कि वह जो सब सोचते हैं. उस ने अभी से अपने को युवा सा महसूस किया. पानी के किनारे बैठेबैठे अपनी योजना को आकार दिया. फिर उत्साहित कदमों से रिसैप्शन पर गई और पूछा, ‘‘लेडीज कोच है?’’

‘‘इस समय बस बच्चों के लिए ही एक कोच आता है, लेडीज के लिए बैच गरमियों में शुरू होगा,’’ रिसैप्शनिस्ट बोली.

अभी तो नवंबर है, कविता को अपना उत्साह काफूर होता लगा. लेकिन बस पल भर के लिए. फिर उस का उत्साह यह सोचते ही लौट आया कि वह खुद अपने बलबूते स्विमिंग सीखने की कोशिश करेगी.

घर आ कर कविता मन ही मन प्लानिंग करती रही. विनय ने हमेशा की तरह टीवी देखा, लैपटौप पर काम किया, बच्चे भी अपनेअपने क्रियाकलापों में व्यस्त थे. किसी ने उस के उत्साह पर ध्यान नहीं दिया. वह भी चुपचाप क्या करना है, कैसे करना है, सोचती रही.

अगले दिन तीनों के जाने के बाद कविता स्विमसूट खरीदने मार्केट गई. उसे बड़ा अजीब लग रहा था. उस ने शरीर को ज्यादा से ज्यादा ढकने वाला स्विमसूट खरीदा, ट्रायलरूम में पहन कर देखा और मन ही मन संतुष्ट हुई. सैर से अभी फिगर ठीक ही थी. वह खुश हुई. अगले 8-10 दिन वह पूल के किनारे बैठ जाती, बच्चों को देखती, कैसे वे पानी में पैर मारते हैं, कैसे बांहें चलाते हैं, किस तरह उन के पैर उन्हें आगे धकेलते हैं और कैसे यह सब वे सांस खींच कर हवा को अपने अंदर भरते हैं. उस ने गहरी सांस ली और रोक ली. उसे निराशा हुई. लगा, नहीं कर पाएगी. नहीं, वह हारेगी नहीं, उसे कुछ नया, कुछ अलग करना है. रात को जब वह सोने के लिए लेटी तो उस के सामने बस वह पल था जब वह पूल के पानी को अपने चारों ओर महसूस कर सकेगी.

10 दिन बाद वह पूल की ओर बढ़ी तो मन में कुछ डर भी था तो कुछ जोश भी. यह पल उसे उस समय की याद दिला गया जब सुहागरात पर दुलहन बनी उसे फूलों से सजे बैडरूम में ले जाया जा रहा था. वहां विनय इंतजार में थे, यहां पूल. मन ही मन इस तुलना पर उसे हंसी आ गई. वह चेंजिंगरूम में गई, सनस्क्रीन लोशन लगाया और फिर घुटनों तक के शौर्ट्स के ऊपर स्विमसूट पहन लिया. शरीर का काफी हिस्सा ढक गया था. खाली स्विमसूट पहनने से उसे संकोच हो रहा था. अब वह सहज थी, केशों को सूखा रखने के लिए उस ने कैप लगाई और शरीर पर तौलिया लपेट लिया.

11 बज रहे थे, यह क्लबहाउस में स्विमिंग का लेडीज टाइम था. बस एक लड़की स्विमिंग कर रही थी. कविता पूल के किनारे बने खुले शावर की ओर बढ़ी. वह जानती थी पूल में उतरने से पहले शावर लेना नियम है. उस ने तौलिया हटा दिया, शावर के ठंडे पानी की तेज बौछार से पल भर को उस की सांसें जैसे रुक सी गईं.

कविता पूल के कम पानी वाले किनारे खड़ी हो कर फिल्मों में पूल में उतरने के दृश्य याद करने लगी. वह इस पल का क्या खूब आनंद उठा रही है, यह सोच कर उस के होंठों पर मुसकान आ गई. उसे लाइफगार्ड किनारे बैठा नजर आया तो वह थोड़ा निश्चिंत हो गई. अब जो भी करना था अपने बलबूते करना था. पानी ठंडा था, उस ने याद किया, कैसे बच्चों का कोच बच्चों को सिखाता था, नीचे जाओ, सांस रोको, ठंड नहीं लगेगी. उस ने ऐसा ही किया. रौड पकड़ी, पानी में चेहरा डाला और पैर चलाने की कोशिश की. बस थोड़ी देर ही कर पाई. बाहर निकली, थोड़ी निराश थी, कैसे करेगी वह यह.

घर पहुंचते ही थोड़ी देर लेट गई. अगला1 हफ्ता वह बस पानी में पैर चलाती रही. थक जाती तो पानी के अंदर डुबकी लगा कर आंखें खुली रखने की कोशिश करती. क्लोरीनयुक्त पानी से आंखें लाल हो जातीं. वह खुद को समझाती कि इस की आदत भी हो जाएगी. फिर अपनी पीठ उठा लेती जैसे पीठ के बल तैर रही हो.

शाम की सैर के बाद कविता पूल के किनारे चेयर पर जरूर बैठती, अपने कान बच्चों के कोच के 1-1 शब्द पर लगाए रखती और अगले दिन वैसा ही करने की कोशिश करती. उसे इस खेल में विचित्र आनंद आने लगा था.

एक दिन कविता ने सोचा, वह रौड को नहीं छुएगी. उस ने पूल की दीवार से टांग टिकाई, मुंह में खूब हवा भरी और एक रबड़रिंग को पकड़ कर खुद को आगे धकेला. उस ने रबड़रिंग को छोड़ने की कोशिश की तो वह डूबने लगी. वह घबरा गई. लगा वह मर रही है, डूब रही है. फिर वह पानी के ऊपर आ गई. उस ने फिर स्टील की रौड को पकड़ लिया. उसे लगा वह अभी तैयार नहीं है.

20वें दिन जब वह कम पानी वाले पूल की चौड़ाई नाप रही थी, तो लाइफगार्ड, जो उसे रोज कोशिश करते देख रहा था, ने पूछा, ‘‘मैडम आप की लंबाई कितनी है?’’

‘‘5 फुट 5 इंच.’’

वह मुसकराया, ‘‘आप 4 फुट गहरे पानी में हैं, आप नहीं डूबेंगी. डूबने भी लगेंगी तो फौरन आप के पैर तली पर लग जाएंगे और आप ऊपर होंगी, आप को तो रिंग की भी जरूरत नहीं है.’’

कविता को लगा उस की बात में दम है. अत: उस ने फिर तैरने की कोशिश की और अब 1 घंटे में वह कई बार पूल की चौड़ाई में तैर चुकी थी.

हफ्ते में 1 दिन क्लबहाउस बंद रहता था, वह आराम करती, संडे को भी स्विमिंग के लिए नहीं जाती थी, क्योंकि विनय और बच्चे घर में होते थे. उस दिन संडे था. रात को वह जब सोने के लिए लेटी तो उसे अपने अंदर इच्छाओं की बंद मुट्ठी खुलती महसूस हुई, उस का शरीर जैसे खिल गया था. कुछ अलग करने के जोश से मन खुश था.

उस ने विनय के सीने पर हाथ रखा, तो विनय को कुछ अलग सा महसूस हुआ. उस ने करवट ले कर कविता की कमर पर हाथ रखा, फिर उस के शरीर पर हाथ फेरा तो चौंका. कविता के शरीर में नया कसाव था. बोला, ‘‘अरे, बहुत बढि़या फिगर लग रही है, क्या करती हो आजकल?’’

‘‘कुछ नहीं, बस आजकल मछली बनी हुई हूं,’’ कविता खुल कर हंसी.

विनय ने उसे हैरानी से देखा, एक पल विनय को लगा, आज उस ने पहले वाली कविता को देखा है, जो अपनी कातिल मुसकराहटों, घातक अदाओं और उत्तेजक देह से उस के होश उड़ा देती थी. आजकल तो कविता बस उस के घर की स्वामिनी और उस के बच्चों की मां थी. उधर कविता विनय की उधेड़बुन से बिलकुल अनजान थी.

विनय ने कहा, ‘‘बहुत चेंज लग रहा है तुम में, बताओ न, क्या चक्कर है?’’

कविता ने उसे स्विमिंग के बारे में सब बताया तो वह हैरान रह गया और फिर उसे बांहों में भर लिया. कविता वह जिन इच्छाओं को समझ रही थी कि हमेशा के लिए मर गई हैं, उन के जागने के आनंद में डूब गई. आखिरी बार वह कब भावनाओं के इस सागर में डूबी थी, याद करने लगी.

अगले दिन फिर उस ने गहरी सांस ली, खुद को आगे धकेला, उस के नीचे पूल की टाइल्स चमक रही थीं. शांत पानी उसे अपने चारों ओर लिपटता सा लगा. पूरे शरीर में हलकापन महसूस हुआ. मन में एक जीत की भावना तैर गई. उस ने कुछ अपने बोरिंग रूटीन से हट कर कर लिया है. परमसंतोष के इस पल की बराबरी नहीं है. जब उसे महसूस हुआ कि वह स्विमिंग कर सकती है. स्विमिंग का 1-1 प्रयास कविता के हिमशिला बने मनमस्तिष्क को पिघलाता जा रहा था. तेज हुए रक्तप्रवाह ने शिथिल पड़ी धमनियों को फिर से थरथरा दिया था. मन के समस्त पूर्वाग्रह न जाने कहां हवा हो चले थे और कई दिन पुराने कुछ नया कर गुजरने के तूफानी उद्वेग उन की जगह लेते जा रहे थे. उसे पता चल गया था उम्र बिलकुल भी माने नहीं रखती है, माने रखता है तो भीतर समाया उत्साह और हर पल जीने की इच्छा, जो हर दिन को आनंदमयी दिन में बदलने की चाह रखती हो. Hindi Family Story

Hindi Family Story: यह तो पागल है

Hindi Family Story: अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था?’’

‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है?’’

‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी?’’

‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में?’’

‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं?’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा.

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’

 

इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया?’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया.

फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ?’’

‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है?’’ बड़े बेटे ने पूछा.

‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’

‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी.

‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है.

‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो.

‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ? पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए.

2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए.

डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम?’’

‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई? कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं?’’

‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी.

6 वर्ष हो गए.’’

‘‘आप के कोई बच्चा?’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’

‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या? मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं?’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’

‘‘फिर समस्या कहां है?’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, उस के विचारों में है. उस के गंदे संस्कारों में है जो उस की मां ने उसे विरासत में दिए. सर, मां की प्रयोगशाला में बेटी पलती और बड़ी होती है, संस्कार पाती है. अगर मां अच्छी है तो बेटी भी अच्छी होगी. अगर मां खराब है तो मान लें, बेटी कभी अच्छी नहीं होगी. यही सत्य है.

‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’

‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’

‘‘क्या? यह बीमारी शादी से पहले की है?’’

‘‘जी हां, सर.’’

‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था?’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’

‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या? हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा? हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’

‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते. Hindi Family Story

Hindi Family Story: देर आए दुरुस्त आए

Hindi Family Story, नीलिमा शोरेवाल

‘‘अरे-रे, यह क्या हो गया मेरी बच्ची को. सुनिए, जल्दी यहां आइए.’’

बुरी तरह घबराई अनीता जोर से चिल्ला रही थी. उस की चीखें सुन कर कमरे में लेटा पलाश घबरा कर अपनी बेटी के कमरे की ओर भाग जहां से अनीता की आवाजें आ रही थीं.

कमरे का दृश्य देखते ही उस के होश उड़ गए. ईशा कमरे के फर्श पर बेहोश पड़ी थी और अनीता उस पर झुकी उसे हिलाहिला कर होश में लाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘क्या हुआ, यह बेहोश कैसे हो गई?’’

‘‘पता नहीं, सुबह कई बार बुलाने पर भी जब ईशा बाहर नहीं आई तो मैं ने यहां आ कर देखा, यह फर्श पर पड़ी हुई थी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा. मैं ने इस के मुंह पर पानी भी छिड़का लेकिन इसे तो होश ही नहीं आ रहा.’’

‘‘तुम घबराओ मत, मैं गाड़ी निकालता हूं. हम जल्दी से इसे डाक्टर के पास ले कर चलते हैं.’’

पलाश और अनीता ने मिल कर उसे गाड़ी की सीट पर लिटाया और तुरंत पास के नर्सिंगहोम की तरफ भागे. नर्सिंगहोम के प्रमुख डाक्टर प्रशांत से पलाश की अच्छी पहचान थी सो, बिना ज्यादा औपचारिकताओं के डाक्टर ईशा को जांच के लिए अंदर ले गए. अगले आधे घंटे तक जब कोई बाहर नहीं आया तो अनीता के सब्र का बांध टूटने लगा. वह पलाश से अंदर जा कर पता करने को कह ही रही थी कि डाक्टर प्रशांत बाहर निकले और उन्हें अपने कमरे में आने का इशारा किया.

‘‘क्या हुआ, प्रशांत भैया? ईशा को होश आया या नहीं? उसे हुआ क्या है?’’ उन के पीछे कमरे में घुसते ही अनीता एक ही सांस में बोलती चली गई.

‘‘भाभीजी, आप दोनों यहां बैठो. मुझे आप से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ पलाश और अनीता का दिल बैठ गया. जरूर कुछ सीरियस बात है.

‘‘जल्दी बताओ प्रशांत, आखिर बात क्या है?’’

डाक्टर प्रशांत अपनी कुरसी पर बैठ कर कुछ पल दोनों को एकटक देखते रहे. फिर बड़े नपेतुले स्वर में धीरे से बोले, ‘‘मेरी बात सुन कर तुम लोगों को धक्का लगेगा लेकिन सिचुएशन ऐसी है कि रोनेचिल्लाने या घबराने से काम नहीं चलेगा. कोई भी कदम उठाने से पहले चार बार सोचना होगा. दरअसल बात यह है कि ईशा ने आत्महत्या करने की कोशिश की है.’’

‘‘क्…क्याऽऽ?’’ पलाश और अनीता दोनों एकसाथ कुरसी से ऐसे उछल कर खड़े हुए जैसे करंट लगा हो.

‘‘क्या कह रहे हैं डाक्टर, ऐसा कैसे हो सकता है. आत्महत्या तो वे लोग करते हैं जिन्हें कोई बहुत बड़ा दुख या परेशानी हो. मेरी इकलौती बेटी इतने नाजों में पली, जिस की हर फरमाइश मुंह खोलने से पहले पूरी हो जाती हो, जो हमेशा हंसतीखिलखिलाती रहती हो, पढ़ाई में भी हमेशा आगे रहती हो, जिस के ढेरों दोस्त हों, ऐसी लड़की भला क्यों आत्महत्या करने की सोचेगी.’’ पलाश के चेहरे पर उलझन के भाव थे. अनीता तो सदमे के कारण कुरसी का हत्था पकड़े बस डाक्टर को एकटक घूरे जा रही थी. फिर अचानक जैसे उसे होश आया, ‘‘लेकिन अब कैसी है वह? सुसाइड किया कैसे? कोई जख्म तो शरीर पर था नहीं…’’

‘‘उस ने नींद की गोलियां खाई हैं. भाभी, 10-12 गोलियां ही खाई, तभी तो हम उसे बचा पाए. खतरे से तो अब वह बाहर है लेकिन इस समय उस की जो शारीरिक व मानसिक हालत है, उस में उसे संभालने के लिए आप को बहुत ज्यादा धैर्य और समझदारी की जरूरत है. और जहां तक सुखसुविधाओं का सवाल है पलाश, तो पैसे या ऐशोआराम से ही सबकुछ नहीं होता. उस के ऊपर जरूर कोई बहुत बड़ा दबाव या परेशानी होगी जिस की वजह से उस ने यह कदम उठाया है.

‘‘15-16 साल की यह उम्र बहुत नाजुक होती है. बचपन से निकल कर जवानी की दहलीज पर कदम रखते बच्चे अपनी जिंदगी और शरीर में हो रहे बदलावों की वजह से अनेक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं. अब तक मांबाप से हर बात शेयर करते आए बच्चे अचानक ही सबकुछ छिपाना भी सीख जाते हैं. इसीलिए अकसर पेरैंट्स को पता ही नहीं चलता कि उन के अंदर ही अंदर क्या चल रहा है. ‘‘ईशा के मामले में भी यही हुआ है, वह किसी वजह ये इतनी परेशान थी कि उसे उस का और कोई हल नहीं सूझा. अब तुम दोनों को बड़े ही प्रेम और धीरज से पहले उस की समस्या का पता लगाना है और फिर उस का निदान करना है. और हां, मैं ने अपने स्टाफ को हिदायत दे दी है कि यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए. वरना बेकार में पुलिस केस बन जाएगा. तुम लोग भी इस बात का खयाल रखना कि यह बात किसी को पता न चले वरना पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रह जाओगे. बदनामी होगी वह अलग. बच्ची का समाज में जीना दूभर हो जाएगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हो तुम. हम बिलकुल ऐसा ही करेंगे,’’ पलाश अब तक थोड़ा संभल गया था. ‘‘और हां,’’ डाक्टर प्रशांत आगे बोले, ‘‘वैसे तो तुम दोनों पतिपत्नी काफी समझदार और सुलझे हुए हो, फिर भी मैं तुम्हें बता दूं कि अभी 5-7 मिनट में ईशा होश में आने वाली है और जैसे ही उसे पता चलेगा वह जिंदा है, उसे एक धक्का लगेगा और वह काबू से बाहर होने लगेगी. उस समय तुम दोनों घबराना मत और न ही उस से कुछ पूछना. धीरेधीरे जब उस की मानसिक अवस्था इस लायक हो जाए, तब बड़े ही प्यार से उसे विश्वास में ले कर यह पता लगाना कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया.’’

‘‘ठीक है भैया, हम सब समझ गए. क्या हम अभी उस के पास चल सकते हैं?’’

‘‘चलिए,’’ और तीनों ईशा के कमरे की तरफ बढ़ गए.

जैसा डाक्टर प्रशांत ने उन्हें बताया था वैसा ही हुआ. होश आने पर बुरी तरह मचलती और हाथपांव पटकती ईशा को संभालते हुए अनीता का कलेजा मुंह को आ रहा था. चौबीसों घंटे साथ रहते हुए भी वह जान ही न पाई कि ऐसा कौन सा दुख था जो उस की जान से प्यारी बेटी को ऐसे उस से दूर ले गया. चाहे जो भी हो, मैं जल्दी से जल्दी सारी बात का पता लगा कर ही रहूंगी, यही विचार उस के मन में बारबार उठता रहा. लेकिन उस का सोचना गलत साबित हुआ. घटना के 10 दिन बीत जाने के बाद, लाख कोशिशों के बावजूद दोनों पतिपत्नी बुरी तरह डरीसहमी ईशा से कुछ भी उगलवाने में कामयाब नहीं हुए. तब डाक्टर प्रशांत ने उन्हें उसे काउंसलर के पास  ले जाने का सुझाव दिया. वहां भी 6 सिटिंग्स तक तो कुछ नहीं हुआ 7वीं सिटिंग के बाद काउंसलर ने उन्हें जो बताया उसे सुन कर तो दोनों के पैरों तले जमीन ही खिसक गई.

काउंसलर के अनुसार, ‘‘2 महीने पहले ईशा की 1 लड़के से फेसबुक पर दोस्ती हुई. चैटिंग द्वारा धीरेधीरे दोस्ती बढ़ी और फिर प्रेम में तबदील हो गई. फिर फोन नंबरों का आदानप्रदान हुआ और चैटिंग वाट्सऐप पर होने लगी. प्रेम का खुमार बढ़ने के साथसाथ फोटोग्राफ्स का आदानप्रदान शुरू हुआ. शुरू में तो यह साधारण फोटोज थे लेकिन धीरेधीरे नएनवेले प्रेमी की बारबार की फरमाइशों पर ईशा ने अपने कुछ न्यूड और सेमी न्यूड फोटोग्राफ्स भी उसे भेज दिए. अब प्रेमी की नई फरमाइश आई कि ईशा उसे आ कर किसी होटल में मिले. उस के साफ मना करने पर लड़के ने उसे धमकी दी कि अगर वह नहीं आई या उस ने किसी को बताया तो वह उस के सारे फोटोज फेसबुक पर अपलोड कर देगा.

‘‘ईशा ने उस से बहुत मिन्नतें कीं, अपने प्रेम का वास्ता दिया लेकिन प्रेम वहां था ही कहां? लड़के ने उसे 1 हफ्ते का अल्टीमेटम दिया और इस भयंकर प्रैशर को नहीं झेल पाने के कारण ही छठे दिन आधी रात के वक्त अपना अंतिम अलविदा का मैसेज उसे भेज कर ईशा ने सुसाइड करने की कोशिश की.’’ पलाश यह सब सुनते ही बुरी तरह भड़क गया, ‘‘मैं उस कमीने को छोड़ूंगा नहीं, मैं अभी पुलिस को फोन कर के उसे पकड़वाता हूं.’’ ‘‘प्लीज मिस्टर पलाश, ऐसे भड़कने से कुछ नहीं होगा. मेरी बात…’’

‘‘इतनी बड़ी बात होने के बाद भी आप मुझे शांति रखने को कह रहे हैं?’’ काउंसलर की बात बीच में ही काट कर पलाश गुर्राया.

‘‘अच्छा ठीक है, जाइए,’’ वह शांत मुसकराहट के साथ बोले, ‘‘लेकिन जाएंगे कहां? किसे पकड़वाएंगे? उस लड़के का नामपता है आप के पास? उस के फेसबुक अकाउंट के अलावा क्या जानकारी है आप को उस के बारे में? आप को क्या लगता है,  ऐसे लोग अपनी सही डिटेल्स देते हैं अपने अकाउंट पर? कभी नहीं. नाम, उम्र, फोटो आदि सबकुछ फेक होता है. तो कैसे ढूंढ़ेंगे उसे?’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’’ पलाश हारे हुए जुआरी की तरह कुरसी पर धम से बैठ गया.

तभी अनीता को याद आया, ‘‘फोन नंबर तो है न, ईशा के पास उस का.’’

‘‘उस से भी कुछ नहीं होगा. ऐसे लोग सिम भी गलत नाम से लेते हैं और ईशा का सुसाइड मैसेज मिलने के बाद तो वह उस सिम को कब का नाली में फेंक कर अपना नंबर बदल चुका होगा.’’ ‘‘ओह, तो अब हम क्या करें? ईशा का नंबर तो उस के पास है ही, जैसे ही उसे पता चलेगा कि वह ठीक है, वह फिर से उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर देगा. और भी न जाने कितनी लड़कियों को अपना शिकार बना चुका होगा. क्या इस समस्या का कोई हल नहीं?’’

‘‘आप दिल छोटा मत कीजिए. यह काम मुश्किल जरूर है पर असंभव नहीं. मैं एक साइबर सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट का नंबर आप को देता हूं. वे जरूर आप की मदद करेंगे.’

‘‘साइबर सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट से आप का क्या मतलब है?’’

‘‘मतलब, जैसे दुनिया में छोटेबड़े अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस होती है, वैसे ही इंटरनैट की दुनिया यानी साइबर वर्ल्ड में भी तरहतरह के अपराध और धोखाधड़ी होती हैं, उन से निबटने के लिए कंप्यूटर के जानकार सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट का काम करते हैं, ताकि इन स्मार्ट अपराधियों को पकड़ा जा सके. ये हमारी सरकार द्वारा ही नियुक्त किए जाते हैं और पुलिस और कानून भी इन का साथ देते हैं. आप आज ही जा कर मिस्टर अजीत से मिलिए.’’ अंधरे में जगमगाई इस रोशनी की किरण का हाथ थामे पलाश और अनीता उस ऐक्सपर्ट अजीत के औफिस में पहुंचे. ईशा को भी उन्होंने पूरी बात बता दी थी और उस लड़के के पकड़े जाने की उम्मीद ने उस के अंदर भी साहस का संचार कर दिया था. वह भी उन के साथ थी. उन सब की पूरी बात सुन कर अजीत एकदम गंभीर हो गया.‘‘बड़ा अफसोस होता है यह देख कर कि छोटेछोटे बच्चे पढ़ाईलिखाई की उम्र में इस तरह के घिनौने अपराधों में लिप्त हैं. आप की समस्या तो खैर हमारी टीम चुटकियों में सुलझा देगी. हमें बस इस लड़के का अकाउंट हैक करना होगा और सारी जानकार मिल जाएगी. फिर चैटिंग के सारे रिकौर्ड्स के आधार पर आप उसे जेल भिजवा सकते हैं.’’

‘‘क्या सचमुच यह सब संभव है?’’

‘‘जी हां, हमारे पास साइबर ऐक्सपर्ट्स की पूरी टीम है, जिन के लिए यह सब बहुत ही आसान है. हम लोग हर रोज करीब 15-20 ऐसे और बहुत से अलगअलग तरह के मामले हैंडल करते हैं. कुछ केस तो 1 ही कोशिश में हल हो जाते हैं, लेकिन कुछ में जहां अपराधी पढ़ेलिखे और कंप्यूटर के जानकार होते हैं वहां ज्यादा समय और मेहनत लगती है.’’ ‘‘तो क्या साइबर वर्ल्ड में इतनी धोखाधड़ी होती है?’’ ईशा ने हैरानी से पूछा.

‘‘बिलकुल,’’ अजीत ने जवाब दिया, ‘‘यह एक वर्चुअल दुनिया है. यहां जो दिखता है, अकसर वह सच नहीं होता. यहां आप एक ही समय में सैकड़ों रूप बना कर हजारों लोगों को एकसाथ धोखा दे सकते हैं. फेसबुक पर लड़कियों के नाम से झूठे प्रोफाइल बना कर दूसरी लड़कियों से मजे से दोस्ती करते हैं या उन्हें अश्लील मैसेज भेजते हैं. शादीविवाह वाली साइटों पर नकली प्रोफाइलों से शादी का झांसा दे कर अमीर लड़केलड़कियों को फंसाया जाता है. सोशल साइटों पर अकसर लोग अपनी विदेश यात्राओं, महंगी गाडि़यों आदि चीजों की फोटोग्राफ्स डालते रहते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ अपराधी तत्व उन के अकाउंट की इन सारी गतिविधियों पर नजर रखे होते हैं. जब जहां मौका लगता है, चोरियां करवा दी जाती हैं. औनलाइन बैंकिंग बड़ी सुविधाजनक  है, लेकिन अगर कोई हैकर आप का अकाउंट हैक कर ले तो आप का सारा बैंक बैलेंस तो गया समझो.’’

‘‘अगर ये सब इतना असुरक्षित है तो क्या ये सब छोड़ देना चाहिए?’’ अनीता ने पूछा.

‘‘नहीं, छोड़ने की जरूरत नहीं. हमें जरूरत है सिर्फ थोड़ी सावधानी की, दरअसल, हमारे यहां जागरूकता का अभाव है. हम छोटेछोटे बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन और लैपटौप तो पकड़ा देते हैं लेकिन उन्हें उन के खतरों से अवगत नहीं कराते. उन्हें हर महीने रिचार्ज तो करा देते हैं लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं करते कि बच्चे ने क्या डाउनलोड किया या क्याक्या देखा. उम्र के लिहाज से जो चीजें उन के लिए असल संसार में वर्जित हैं, वे सब इस वर्चुअल दुनिया में सिर्फ एक क्लिक पर उपलब्ध हैं.

‘‘कच्ची उम्र और अपरिपक्व दिमाग पर इन चीजों का अच्छा असर तो पड़ने से रहा. सो, वे तरहतरह की गलत आदतों में आपराधिक प्रवृत्तियों का शिकार हो जाते हैं. ये सब कुछ न हो, इस के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. बहुत छोटे बच्चों को अपने पर्सनल गैजेट्स न दें. पीसी या लैपटौप पर जब वे काम करें तो उन के आसपास रह कर उन पर नजर रखें ताकि वे किसी गलत साइट पर न जा सकें. चाइल्ड लौक सौफ्टवेयर का भी प्रयोग किया जा सकता है. फेसबुक या वाट्सऐप का प्रयोग करने वाले बच्चे और बड़े भी यह ध्यान रखें कि वे किसी के कितना भी उकसाने पर भी कोई गलत कंटैंट या तसवीरें शेयर न करें. अपनी सिक्योरिटी और प्राइवेसी सैटिंग्स को ‘ओनली फ्रैंड्स’ पर रखें ताकि कोई गलत आदमी उस में घुसपैठ न कर सके. अनजान लोगों से न दोस्ती करें न चैट. अगर कोई आप को गलत कंटैंट भेजता है तो उसे तुरंत ब्लौक कर दें और फेसबुक पर उस की शिकायत कर दें. ऐसी शिकायतों पर फेसबुक तुरंत ऐक्शन लेता है.

‘‘अपने ईमेल, फेसबुक, ट्विटर या बैंक अकाउंट्स के पासवर्ड अलगअलग रखें और समयसमय पर उन्हें बदलते रहें. किसी और के फोन या कंप्यूटर से कभी अपना कोई भी अकाउंट खोलें तो लौगआउट कर के ही उसे बंद करें. इन छोटीछोटी बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो काफी हद तक हम साइबर क्राइम से अपने को बचा सकते हैं,’’ इतना कह कर अजीत चुप हो गया. पलाश, अनीता और ईशा मानो नींद से जगे, ‘‘इन सब चीजों के बारे में तो हम ने कभी सोचा ही नहीं. लेकिन देर आए दुरुस्त आए. अब हम खुद भी ये सब ध्यान रखेंगे और अन्य लोगों को भी इस बारे में जागरूक करेंगे,’’ पलाश दृढ़ता से बोला.

अगले 2 दिन बड़ी भागदौड़ में बीते. अजीत और उन की टीम को उस लड़के नितिन की पूरी जन्मकुंडली निकालने में सिर्फ 2 घंटे लगे. पुलिस की टीम के साथ उस के घर से उसे दबोच कर उसे जेल भेज कर वापस लौटते समय तीनों बहुत खुश थे.

‘‘मौमडैड, मुझे माफ कर दीजिए. मेरी वजह से आप को इतनी परेशानी उठानी पड़ी,’’ अचानक ईशा ने कहा.

‘‘ईशा, तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं और तुम्हारे पापा तो जीतेजी मर जाते,’’ एकदम से अनीता की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘कसम खाओ, आगे से कभी ऐसा कुछ करने के बारे कभी नहीं सोचोगी.’’ ‘‘नहीं, कभी नहीं. अब मैं सिर्फ अपनी पढ़ाई और भविष्य पर ध्यान दूंगी और ऐसी गलती दोबरा कभी नहीं करूंगी,’’ कहती हुई ईशा की आंखों में जिंदगी की चमक थी. Hindi Family Story

Family Story: भूल का अंत – किसकी वजह से खतरे में पड़ी मीता की शादीशुदा जिंदगी

Family Story: पूरे घर में हलचल मची हुई थी. कोई परदे बदल रहा था तो कोई नया गुलदस्ता सजा रहा था. अम्मा की आवाज रहरह कर पूरे घर में गूंज उठती, ‘‘किसी भी चीज पर धूल नहीं दिखनी चाहिए. बाजार से मिठाई आ गई या नहीं?’’

नित्या को यह हलचल, ये आवाजें बहुत भली लग रही थीं. फिर भी हृदय में विचित्र सी उथलपुथल थी. उस ने द्वार पर खड़े हो कर एक दृष्टि घर में हो रही सजावट पर डाली, और वह मीता को खोजने लगी. थोड़ी देर पहले तक तो उसी के साथ थी. उस की उंगलियों के नाखून सजाते हुए लगातार बोलती जा रही थी, ‘‘अब हाथ नहीं सजेंगे तो भला उन के सामने प्लेट बढ़ाती तुम्हारी उंगलियों पर ध्यान कैसे जाएगा जीजाजी का,’’ नित्या के दिमाग में पूरी घटना एकबारगी दौड़ गई.

मीता कैसे उसे चिढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या दहीबड़े बनाए हैं मैं ने. आने दो जरा, सजावट में इतनी लाल मिर्च डालूंगी कि ‘सीसी’ न कर उठें हमारे होने वाले जीजाजी तो कहना.’’

नित्या के मन में तो मीठीमीठी गुदगुदी हो रही थी पर ऊपर से क्रोध का दिखावा कर वह उसे डांटती भी जा रही थी, ‘‘चुप, मीतू, अभी वे कौन लगते हैं हम दोनों के?’’

‘‘हां भई, अभी कौन लगते हैं. अभी तो केवल देखनादिखाना हो रहा है.’’

फिर उस की हथेलियां छोड़ बोली, ‘‘तू भी दीदी, एकदम बोर है. वही पुराना जमाना लिए जी रही है. अपना तमाशा बनवाना,’’ यह कहने के साथ ही वह स्तब्ध सी हो उठी. नजरें झुकाए एकदम कमरे से बाहर निकल गई.

‘उफ, अब जाने कहां जा कर रो रही होगी, पगली,’ नित्या ने स्मृतियों को झटकते हुए सोचा तभी बड़ी ताई दनदनाती हुई उस के कमरे में आ गईं, ‘‘मीता कहां है?’’

‘‘पता नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘हूं…बता नहीं रहे तो ठीक है,’’ उन्होंने होंठ सिकोड़ कर कहा, ‘‘मैं ने तो सुबह ही छोटी को कह दिया था कि मीता को लड़के वालों के सामने न आने देना.’’

‘‘लेकिन ताई…’’ उस ने टोकना चाहा.

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. उस के कारण तू कब तक भुगतती रहेगी?’’

नित्या का मन अवसाद से भर उठा. पता नहीं ताई की बात में कितना सत्य है? मीता की एक छोटी सी भूल क्या उस के साथसाथ पूरे घर के लिए भी दुखों का पहाड़ बन गई है?

नित्या की आंखों में मीता की मस्तमौला छवि घूम गई. बचपन से ही अलमस्त सी हिरणी की तरह कुलांचें भरती. झूठे आडंबरों के विरुद्ध ऊंचीऊंची आवाज में बहस करती. जीवन के प्रति सदा अलग दृष्टिकोण अपनाकर चलने की धुन ने ही शायद उस से वह भूल हो जाने दी, जिस का पछतावा उस के जीवन से सारी उमंगें ही छीन ले गया.

कुछ देर को सब भूलभाल कर यदि वह खुश होती भी है तो ताई या मां सरीखी महिलाएं उसे पुरानी बातें याद दिला कर फिर से दुख के सागर में डूब जाने को विवश कर देती हैं.

नित्या को तैयार कराने की जिम्मेदारी ताई की बड़ी बहू पर थी. इस बीच नित्या ने कई बार मीता के बारे में जानना चाहा पर उसे टाल दिया गया. वह समझ गई कि मां ने मीता को एकांत में बैठने का आदेश दे दिया होगा ताकि लड़के वालों के सामने वह न पड़ने पाए.

लड़के वाले आ चुके थे और गहमागहमी बढ़ गई थी. सब के चेहरों पर नित्या के पसंद किए जाने की चिंता से अधिक संभवत: मीता का डर व्याप्त था. कहीं इन लोगों को भी भनक न लग गई हो कि लड़की की छोटी बहन अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई थी. हां, यही शब्द तो सब दोहराते हैं.

कितना भोंडा सा लगता है यह सब. क्या उस समय कोई भी मीता के हृदय में झांकना चाहता है? क्या बीतती होगी उस के मन पर. कैसी कोमल उमंगों के साथ सारे आडंबरों को अंगूठा दिखाती हुई वह अपने प्रेमी के साथ ब्याह रचाने गई थी.

वह भी इसलिए विवश हुई थी क्योंकि घर के सारे सदस्य एक विजातीय के साथ उस का विवाह करने को तैयार नहीं थे. कैसे उस ने अपने अरमानों का खयाली सेहरा उस व्यक्ति के सिर बांधा होगा और आर्य समाज मंदिर में चंद लोगों के समक्ष विवाह किया होगा.

इधर, हर तरफ उस की खोज के बाद पुलिस तक बात पहुंच गई थी. जब वह अपने पति के साथ स्कूटर पर घर वालों से मिलने आ रही थी, तभी पुलिस की जीप उन के पीछे लग गई.

मीता जल्दी से सीधे घर पहुंचना चाह रही थी कि तभी अचानक तेज रफ्तार के कारण घटी दुर्घटना में वह अपने सारे सपनों, सारे अरमानों से हाथ धो बैठी थी.

मीता अपने पति के शव पर ढंग से रो भी न पाई थी कि उसे घर वाले जबरदस्ती पकड़ कर ले आए थे.

मीता के ससुर ने एक पत्र द्वारा अपनी बहू को घर ले जाने का अनुरोध भी किया था पर उस के मातापिता ने उस विवाह को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया था.

कई माह तक मीता एकदम गुमसुम हो गई थी. तब चुपकेचुपके नित्या ही उसे समझाती थी. लेकिन घर के शेष सदस्य उसे इस सब से बाहर निकलने ही नहीं दे रहे थे. एक भूल की उसे इतनी कठोर सजा मिलेगी, यह तो उस ने सोचा भी नहीं था. वह अपने ही घर में एक कैदी बना दी गई थी.

पढ़ाई बंद हो गई. समाज की दृष्टि से छिपा कर उसे घर के कार्यों में लगा दिया गया. अभी उस की बड़ी बहन कुंआरी थी. यदि मीता पर कठोर अनुशासन न बैठाया जाता तो नित्या का जीवन भी अंधकारमय हो जाता. हालांकि तमाम सावधानियों के बाद भी नित्या के विवाह में निरंतर बाधाएं आ रही थीं. इसलिए अब लड़के वालों से मीता को छिपाया जाता था.

मेज पर कई प्रकार की मिठाइयां, नमकीन और मेवे सजाए जा रहे थे. ताई की बहू अतिथियों को शीतल पेय पेश कर रही थी.

ताई, मां व पिताजी लड़के वालों के सामने जम कर बैठ गए. मीता को रसोई में चाय बनाने में व्यस्त कर दिया गया था. थोड़ी ही देर में नित्या चाय की ट्रे ले कर भाभी के साथ बैठक में आई तो सब की दृष्टि उस की तरफ उठ गई. मां व पिताजी की आंखें अतिथियों की नजरों की टोह लेने में जुट गईं.

मेहमानों में लड़का, उस के मातापिता, विवाहित बहन व छोटा भाई भी था. सभी उत्सुकता से नित्या को देख रहे थे. मातापिता नित्या से उस की पढ़ाई आदि के बारे में प्रश्न कर रहे थे.

नित्या से अधिक उन के प्रश्नों का उत्तर ताई दे रही थीं. तभी अचानक जैसे धमाका हुआ. लड़के के पिता ने नित्या से कहा, ‘‘बेटी, हम ने सुना था कि तुम 2 बहनें हो. तुम्हारी छोटी बहन दिखाई नहीं दे रही.’’

नित्या ने घबरा कर मां व पिताजी को देखा. ताई सहित सभी के चेहरे का रंग उड़ गया.

पिताजी ने स्थिति को संभालने के लिए कहा, ‘‘जी हां, वह बहुत शरमीली है. रसोई में व्यस्त है.’’

‘‘वाह, बहुत अच्छी चाय बनी है,’’ लड़के के पिता ने कहा. शेष मेहमान मुसकरा कर उन का साथ दे रहे थे.

तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘बुलाइए न उसे भी, मिल तो लें.’’

पिताजी, मां तथा ताई आदि मन ही मन पिता को कोसने लगे कि आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का डर था. सब एकदूसरे का मुंह देख कर जैसे आंखों ही आंखों में पूछ रहे थे कि अब क्या करें.

‘‘जाओ बेटी, तुम बुला लाओ अपनी बहन को. आखिर अपने होने वाले जीजाजी से उसे भी तो मिलना चाहिए.’’

उन की इस बात पर घर वालों की आंखों में जहां यह संकेत पा कर चमक आ गई थी कि नित्या उन्हें पसंद आ गई है, वहीं आगे अब क्या होगा, यह सोच कर उन का सिर चकराने लगा.

ये लोग कुछ कहते, उस से पहले ही नित्या उठ कर अंदर चली गई. उस की आंखों में प्रसन्नता की लहर थी कि उसे पसंद कर लिया गया है. पीछे से ताई उठने लगीं तो लड़के की मां ने कहा, ‘‘आप बैठिए, वह ले आएगी.’’

ताई को मन मार कर बैठना पड़ा. नित्या ने मीता को पहले यह समाचार सुनाया कि उसे शायद पसंद कर लिया गया है. सुनते ही मीता की आंखों में प्रसन्नता के आंसू आ गए पर बाहर चलने के नाम पर उस के मन में भय की लहर दौड़ गई.

थोड़ी देर बाद लड़के की बहन जब भाभी के साथ वहीं आ गई तो मीता को बाहर जाना ही पड़ा.

मां और पिताजी के चेहरों का रंग बुरी तरह उड़ा हुआ था, जैसे सुख हाथ में आतेआते छीना जा रहा हो. मीता को उन लोगों ने अपने बीच में ही बैठा लिया.

लड़के की मां ने हंसते हुए कहा, ‘‘भई, छोटी बहनें तो सब से पहले बड़ी बहन के होने वाले पति को पसंद करने आती हैं. तुम तो अंदर ही छिपी बैठी थीं.’’

मीता ने मुसकरा कर गरदन झुका ली, लेकिन इस से पहले एक भयभीत दृष्टि मातापिता पर डाल ली.

वे लोग नित्या को छोड़ मीता से ही बातें करने लगे तो मां ने उन का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘आप लोग मेज तक चलें, नाश्ता ठंडा हो रहा है.’’

‘‘हांहां, वहां भी चलेंगे,’’ लड़के के पिता ने कहा, ‘‘लेकिन पहले अपने घर की सब से बड़ी बहू से कुछ बातें तो कर लें.’’

उन्होंने स्नेहपूर्वक मीता को देखा तो मां व पिताजी भय व आश्चर्य से एकदूसरे का मुख देखने लगे. सोचने लगे कि शायद इन लोगों ने नित्या की जगह मीता को पसंद कर लिया है.

तभी लड़के के पिता ने कहा, ‘‘आप लोग मेरी बात पर इतना परेशान न हों. हमें मालूम है कि आप की छोटी बेटी ने विवाह किया था. जिस घर की यह बहू है वह हमारे अभिन्न मित्र ही नहीं, सगे भाई से भी बढ़ कर हैं.’’

मीता की आंखों में सोया हुआ दर्द जाग उठा था. मातापिता की समझ में नहीं आ रहा था कि अब उन्हें क्या करना चाहिए.

तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि मीता ने कुछ जल्दबाजी की, पर एक भूल आप से भी हुई. अगर उस सत्य को आप स्वीकार कर लेते तो उस घर का इकलौता दीपक इस तरह बुझने से शायद बच जाता.’’

उन लोगों की आंखें नम थीं. लड़के के पिता बोले, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब हम अपनी बहू को पूरी मानमर्यादा से लेने आए हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अचानक नित्या के पिता ने चौंक कर कहा.

मीता के सिर पर हाथ फेरते हुए लड़के के पिता बोले, ‘‘बेटी, तुम्हारा खोया सुख तो वापस नहीं दे पाएंगे हम लेकिन दुख भी नहीं देंगे कभी. हमारा छोटा बेटा यदि तुम्हें पसंद हो तो हम दोनों बहनों को एक ही दिन विदा करवा कर ले जाएंगे.’’

मीता ने धीरेधीरे पलकें उठा कर उधर देखा. एक सलोना युवक मंदमंद मुसकरा रहा था. जैसे इतनी घुटन के बीच शीतल हवा का एक झोंका उस की राह में खुशियां बिखेरने को उत्सुक हो रहा हो.

मीता ने मातापिता की ओर देखा और दुख व संकोच से गरदन झुका ली. नहीं, अब कोई निर्णय वह स्वयं नहीं करेगी. मालूम नहीं, फिर कौन सी भूल कर बैठे.

लेकिन उस के मातापिता कदाचित अपनी सोच से बाहर निकल चुके थे. अनायास ही पिता ने उठ कर लड़के के पिता के दोनों हाथ थाम लिए, ‘‘हमें अपनी भूल का बहुत पछतावा है.’’

मां ने भी खुशी के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘हम अपनी दोनों बेटियों का रिश्ता आज ही करने को तैयार हैं.’’

घर में अचानक ही चारों ओर खुशियां बिखर गई थीं. शगुन की रस्म से पहले साडि़यां पहनते हुए नित्या ने अचानक मीता के कान में कहा, ‘‘मीतू, तेरे ‘उस’ की प्लेट में कितनी मिर्च डालूं कि जन्मभर ‘सीसी’ करता रहे…?’’ Family Story

Family Story: सब छत एक समान – अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ शीला के साथ?

Family Story, लेखक- देवेंद्र शर्मा

शीला को जरा भी फुरसत नहीं थी. अगले दिन उस के लाड़ले अंकुर का जन्मदिन था. शीला ने पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वह अंकुर के इस जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगी और एक शानदार पार्टी देगी.

बारबार पिताजी ने सुरेश को समझाया कि वह बहू को समझाए कि इस महंगाई के दौर में इस तरह की अनावश्यक फुजूलखर्ची उचित नहीं. उन की राय में अपने कुछ निकटतम मित्रों और पड़ोसियों को जलपान करवा देना ही काफी था.

सुरेश ने जब शीला को समझाया तो वह अपने निर्णय से नहीं हटी, उलटे बिगड़ गई थी.

शीला बारबार बालों की लटें पीछे हटाती रसोई की सफाई में लगी थी. उस ने महरी को भी अपनी सहायता के लिए रोक रखा था. दिन में कुछ मसाले भी घर पर कूटने थे, दूसरे भी कई काम थे. इसलिए वह सुबह से ही काम निबटाने में लग गई थी.

‘‘शीला, जरा 3 प्याली चाय बना देना. पिताजी के दोस्त आए हैं,’’ सुरेश रसोई के दरवाजे पर खड़ा अखबार के पन्ने पलटते हुए बोला.

‘‘चाय, चाय, चाय,’’ शीला उबल कर बोली, ‘‘सुबह से अब तक 5 बार चाय बन चुकी है और अभी 10 भी नहीं बजे हैं. तुम्हें अखबार पढ़ने से फुरसत नहीं और पिताजी को चाय पीने से.’’

‘‘शीला, कभी तो ठंडे दिमाग से बात किया करो,’’ सुरेश अखबार मोड़ते हुए बोला, ‘‘जब कल पार्टी दे रही हो तो काम तो बढ़ेगा ही. अब तुम्हारा काम ही पूरा नहीं हुआ. बाहर का सारा काम पिताजी और मैं ने निबटा लिया है.’’

‘‘अकेली जान हूं, देख नहीं रहे. 10 दिन पहले कार्ड डाल दिए थे, न तो अब तक देवरानीजी पधारीं और न ही आप की प्यारी बहन,’’ शीला डब्बों से धूल झाड़ती हुई बोली, ‘‘काम करना पड़ता न. कल पधारेंगी पार्टी में, बड़े आदमी हैं दोनों ही, आप के भाईसाहब और जीजाजी भी.’’

थोड़ी देर बाद उस ने हाथ धो कर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया और गुस्से से पति की ओर देखा, ‘‘6 साल का हो गया है मेरा अंकुर. कल उस का जन्मदिन है. मगर है जरा सी भी खुशी किसी के चेहरे पर?’’

सुरेश समझ गया कि शीला अब फिर शुरू हो गई है, इसलिए वह चुप ही रहा.

‘‘आप के पिताजी तो पार्टी को ही मना कर रहे थे, फुजूलखर्ची बता रहे थे, उन्हें तो घर से बाहर निकलना नहीं. समाज में रहना है तो साथ तो चलना पड़ेगा.’’

‘‘पिताजी ठीक कह रहे थे,’’ सुरेश ने उस के पास जा कर कहा.

‘‘क्या ठीक कहा? उन्हें तो मेरी हर खरीदी वस्तु फुजूलखर्ची लगती है. जब नया सोफा लाई तो कहने लगे कि क्या जरूरत थी इस की. नया रंगीन टैलीविजन लिया तो भी बड़बड़ करने लगे, ‘बहू, पैसा बचा कर रखो, काम आएगा.’

‘‘खुद तो अपनी गांठ ढीली करते नहीं. 700-800 से कम तो पैंशन भी नहीं मिलती. मगर मजाल है कि कभी अंकुर को भी 5-10 रुपए पकड़ा दें. सारा पैसा उस छोटे को पकड़ा दिया होगा, वरना कैसे इतनी जल्दी अपना मकान बना लेता इतने बड़े शहर में?’’

‘‘शीला, अरुण हमारा छोटा भाई है. पिताजी ने अगर उसे कुछ दे भी दिया होगा तो क्या बुरा है. तुम कुछ भी कहो, लेकिन पिताजी हमें भी उतना ही चाहते हैं जितना अरुण को,’’ सुरेश समझाने के लहजे में बोला.

‘‘तो क्यों नहीं हमारा भी मकान बनवा दिया? पड़े हैं हम इस किराए के मकान में. गांव में खाली पड़ा मकान बेच कर यहां क्यों नहीं ले लेते हमारे लिए एक मकान, तुम्हारे प्यारे पिताजी,’’ शीला ने फिर पुराना राग अलापना शुरू कर दिया था.

सुरेश चाय ले कर बैठक में चला गया.

अरुण अपनी पत्नी सीमा के साथ पहुंच चुका था. दीदी व जीजाजी भी आ गए थे. शीला, सीमा और दीदी तीनों रसोई में थीं. रात का खाना खाया जा चुका था. अंकुर व दीदी के दोनों बच्चे सो चुके थे. तीनों महिलाएं रसोई का काम निबटा रही थीं.

अरुण, सुरेश, पिताजी, जीजाजी सभी बैठक में बातें कर रहे थे.

‘‘सुरेश, अब तुम लोग भी आराम करो. काफी रात हो चुकी है. सुबह फिर काम में लगना है,’’ पिताजी ने यह कहा और खुद भी चारपाई पर लेट गए.

अंकुर बड़ा खुश था. उस के जन्मदिन पर पार्टी जो दी जा रही थी. उसे ढेर सारे उपहार मिलने थे. वह बच्चों के साथ हंसखेल रहा था. हलवाई की पूरी टीम आ चुकी थी. खाने की तैयारी शुरू हो गई थी. शीला की भागदौड़ बढ़ती जा रही थी.

‘‘सुरेश, मैं जरा बाजार हो कर आता हूं, थोड़ा काम है,’’ पिताजी बोले.

अंकुर पीछे दौड़ने लगा तो दीदी ने उसे रोका, ‘‘बेटा, दादाजी के साथ जा कर क्या करेगा. अरे, तेरे लिए वह सुंदर सा उपहार लाएंगे. इकलौता, प्यारा पोता है तू उन का.’’

‘‘अरे, जानती नहीं दीदी, पिताजी को फुजूलखर्ची बिलकुल पसंद नहीं. क्या करेंगे तोहफा ला कर, दे देंगे ढेर सारे ‘आशीर्वाद’ अपने पोते को.’’

शीला फिर शुरू हो गई थी. उस के कटाक्ष को सब समझ रहे थे. सीमा, दीदी, अरुण, जीजाजी और सुरेश भी. मगर सब खामोश रहे.

केक पर अंकुर की कब से नजर टिकी थी. आखिर वह समय भी आ गया. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझा दीं. ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाया गया. अंकुर केक के टुकड़े सब के मुंह में रखने लगा.

अंकुर को बहुत से उपहार मिले थे. सीमा उस के लिए बड़े सुंदर कढ़ाई किए हुए कपड़े लाई थी. दीदी भी कपड़े और खिलौने लाई थीं.

शीला बड़ी खुश नजर आ रही थी. लाल साड़ी में लिपटी वह अपने को काफी गर्वित महसूस कर रही थी.

‘‘अंकुर बेटा, इधर आना,’’ पिताजी छड़ी पकड़े उसे अपनी ओर बुला रहे थे.

वह सुरेश की बांहों से फिसल कर दादाजी की ओर लपक गया.

शीला मुंह बना कर उधर ही देखने लगी.

‘‘दादाजी, आप हमारे लिए क्या लाए हैं?’’ अंकुर को उन से उपहार मिलने की बड़ी उम्मीद थी.

‘‘हां बेटा,’’ पिताजी ने जेब में हाथ डाला. फिर एक लंबा लिफाफा जेब से निकाला और अंकुर के हाथों में थमा दिया. अंकुर को यह उपहार पसंद नहीं आया.

सुरेश ने उस के हाथ से लिफाफा ले लिया. शीला की नजरें अब सुरेश पर थीं. पिताजी चश्मा उतार कर उस के शीशे साफ करने में लगे थे

सुरेश ने ध्यान से कागज देखे और शीला की ओर बढ़ गया, ‘‘पिताजी ने अंकुर को एक छोटा सा उपहार दिया है. पता नहीं तुम पसंद करोगी या नहीं?’’ यह कह कर उस ने कागजों का वह छोटा सा पुलिंदा शीला के हाथ में थमा दिया.

‘‘मकान के कागज,’’ शीला को यकीन नहीं हो रहा था कि वह जिस किराए के मकान में अब तक रहती आई है, अब उस की मालकिन बन गई है और यह सब पिताजी ने किया है.

एक परदा सा हटने लगा था.

‘‘पिताजी,’’ शीला का स्वर बिलकुल बदला सा था.

‘‘हां, बेटी,’’ पिताजी बोले, ‘‘आखिर कब तक तुम्हें किराए के मकान में देखता. जब देखा कि अरुण ने भी मकान बना लिया है तो डरने लगा कि तुम्हें अपने घर में देखने से पहले ही न चल बसूं. गांव के घर की इतनी कीमत नहीं बनती थी कि यह खरीद पाता. इसलिए अपनी पैंशन के पैसे भी बचाने लगा. पिछले हफ्ते ही यह घर खरीद कर तुम्हारे नाम करवा दिया था. सोचा था, अंकुर के जन्मदिन पर यह खुशखबरी तुम्हें दूंगा. कई बार तुम्हारे गुस्से के बोल मेरे कानों में पड़ जाते थे मगर मैं ने कभी बुरा न माना.

‘‘बेटी, मैं यह नहीं कहता कि समाज या रीतिरिवाज के साथ न चलो. मगर बढ़ती महंगाई को भी देखना चाहिए और अपनी जेब को भी,’’ पिताजी अब खामोश हो गए.

शीला की नजरों के सामने से एकसाथ कई परदे उठ गए. वह कह तो कुछ न सकी. बस, पिताजी को निहारती रही, फिर उन के पैर छू लिए.

शीला अब भी पिताजी की ओर देखे जा रही थी. शायद वह समझ गई थी कि औलाद के लिए तो मांबाप बादल समान होते हैं जिन के लिए सब छत एक समान होती है. वे औलाद में भेदभाव नहीं करते.

‘‘शीला, अब जरा देखो…सब को खाना भी खिलाना है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘हां, आप, अरुण और पिताजी बाहर का देखिए. हम यहां का काम संभालती हैं,’’ शीला सीमा और दीदी के साथ अंदर बढ़ती हुई बोली, ‘‘और हां, पिताजी को याद से खाना खिला देना, पार्टी देर तक चलेगी. वे थक जाएंगे.’’

शीला के ये शब्द सुरेश की खुशी के लिए पर्याप्त थे. Family Story

Family Story In Hindi: सोने का हिरण – रजनी को आगाह क्यों नहीं कर पा रही थी मोनिका

Family Story In Hindi, लेखिका – डा. सुनीता जाजदिया 

लिफ्ट से उतरते हुए मोनिका सोच रही थी कि इस बार भी वह रजनी से वे सब नहीं कह पाई जिसे कहने के लिए वह आज दूसरी बार आई थी. 8वीं क्लास से रजनी उस की दोस्त है. तेल चुपड़े बालों की कानों के ऊपर काले रिबन से बंधी चोटियां, कपड़े का बस्ता, बिना प्रैस की स्कूल ड्रैस, सहमी आंखें क्लास में उस के छोटे शहर और मध्यवर्गीय होने की घोषणा कर रहे थे.

मोनिका को आज भी याद है कैसे क्लास की अभिजात्य वर्ग की लड़कियां उस से सवाल पर सवाल करती थीं. कोई उस की चोटी का रिबन खोल देती थी तो कोई उस का बैग कंधे से हटा देती थी. रजनी को तंग कर वे मजा लेती थीं.

ये वे लड़कियां थीं जो रिबन की जगह बड़ेबड़े बैंड लगाती थीं, जिन के सिर क्रीम और शैंपू की खुशबू से महका करते, जो कपड़े के बस्ते की जगह फैशनेबल बैग लाती थीं और पाबंदी होने के बावजूद उन के नाखून नित नई नेलपौलिश से रंगे होते थे. टीचर्स भी जिन्हें डांटनेडपटने के बदले उन से नए फैशन ट्रैंड्स की चर्चा किया करती थीं.

रजनी की सहमी आंखों में सरलता का ऐसा सम्मोहन था कि मोनिका हर बार उस की मदद के लिए आगे बढ़ जाती थी. किशोरावस्था की उन की यह दोस्ती गहराने लगी. देह की पहेलियां, जीवन के अनसुलझे प्रश्न, भविष्य के सपने, महत्त्वाकांक्षाएं आदि पर घंटों बातें होती थीं उन की. समय ऐसे ही सरकता गया और डिग्री के बाद एमबीए की पढ़ाई के लिए मोनिका विदेश चली गई.

लौटने पर पता चला कि बैंक मैनेजर वसंत से विवाह रचा कर रजनी गृहस्थी में रम गई है. यह रजनी का स्वभाव था कि अपने आसपास जो और जितना भी मिला वह उस में खुश रहती थी. उस से आगे बढ़ कर कुछ और अधिक पाने की मृगतृष्णा में वह हाथ आई खुशियों को खोना नहीं चाहती थी. किंतु इस के विपरीत मोनिका अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के आकाश की ऊंचाई और विस्तार की सीमा को आगे बढ़ कर स्वयं तय करने में विश्वास करती थी.

मोनिका ने बड़ी आईटी कंपनी जौइन कर ली थी. अब दोनों सखियां कम मिलती थीं पर फोन पर उन की बातों का सिलसिला जारी था. मोनिका कभी अपने मन का गुबार निकालने के लिए तो कभी कोई सलाहमशवरा लेने के लिए रजनी के घर का रुख करती थी.

हर परिस्थिति से तालमेल बैठा कर खुश रहने वाली रजनी अपने 2 बच्चों के साथ पूरी तरह गृहस्थी में रम गई थी. वसंत भी तो उस का पूरा खयाल रखता था. जन्मदिन हो या वर्षगांठ, वह कभी तोहफा देना नहीं भूलता था.

महंगी साडि़यां, परफ्यूम, नैकलैस, जड़ाऊ गहनों के तोहफों को बड़े उत्साह से रजनी मोनिका को दिखाती. घूमनाफिरना, छुट्टी मनाने के लिए नई जगहों में घूमना सब कुछ तो हासिल था रजनी को. हर माने में वह एक सुखी जीवन जी रही थी.

पर उस दिन वसंत को मोनिका ने शौपिंग मौल में किसी और के साथ देखा था. मीडियम हाइट और घुंघराले बालों वाले वसंत को पहचानने में उस की आंखें धोखा नहीं खा सकती थीं. एक झोंके की तरह दोनों उस के पास से निकल गए थे.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. जरूर उसे धोखा हुआ है,’’ यह कह कर उस ने इस बात को अपने मन से निकाल दिया था.

इस बात को अभी महीना भर भी नहीं हुआ था कि वसंत उसे कौफी शौप में मिल गया. शौपिंग मौल वाली उसी लड़की के साथ. नजरें टकराने पर कसी हुई कुरती और जींस पहने, छोटे बालों वाली 25-26 वर्षीय युवती का परिचय करवाया, ‘‘यह नीना है, मेरे बैंक में कैशियर…’’

एक ठंडा सा ‘हाय’ उछाल कर मोनिका वहां से खिसक गई. उस के दिमाग में कहीं कुछ खटक गया था पर जमाना तेजी से बढ़ रहा है…एक ही प्रोफैशन के लोग अकसर साथसाथ घूमते हैं. यह सोच उस ने इस बात को भी भुलाना चाहा, पर रजनी का मासूम चेहरा और सरल आंखें उस के सामने आ जातीं.

मोनिका के मन में आया कि वह रजनी से बात करे. फोन भी मिलाया उस ने, पर नंबर मिलते ही लाइन काट दी. उस ने अपने मन को मजबूत किया कि नहीं वह अपने दिमाग में कुलबुलाते वहम के कीड़े को नहीं पालेगी. उसे कुचलना ही होगा वरना वह काला नाग बन खुशियों को न डस ले.

फोन पर रजनी से अब भी बातचीत होती. उस के स्वर में झलकने वाली खुशी से मोनिका अपनेआप को धिक्कारती कि वसंत के लिए उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया.

गरमी के दिन थे. औफिस से निकलतेनिकलते आइसक्रीम खाने और समंदर के किनारे टहलने का प्रोग्राम बना. समंदर की ठंडी हवाओं की थपथपाहट से दिन भर की थकान उतर गई. आइसक्रीम का लुत्फ उठाते, गपियाते हुए मोनिका संजना के साथ एक ओर बैठ गई.

संजना को अचानक शरारत सूझी और थोड़ी दूर झाडि़यों के झुरमुट में बैठे जोड़े पर मोबाइल टौर्च से रोशनी फेंकी. मोनिका की आइसक्रीम कोन से पिघल कर उस की कुहनी तक बहने लगी. एकदूजे की बांहों में लिपटे वसंत और नीना का ही था वह जोड़ा.

‘अपनी खास सहेली के घर को वह अपनी आंखों के आगे उजड़ते नहीं देख सकती,’ यह सोच कर औफिस से छुट्टी ले कर वह दूसरे ही दिन रजनी के घर पहुंच गई. वह किचन में रजनी के पास खड़ी अपनी बात कहने का सिरा तलाश रही थी जबकि रजनी बड़े प्यार से वसंत की मनपसंद भिंडी फ्राई, दालमक्खनी, रायता और फुलके तैयार कर रही थी.

मातृत्वसुख और वसंत के प्रेम में पगी रजनी की बातों के आगे मोनिका की बात का सिरा हर बार छूट जाता और आखिर बिना कुछ कहे ही वह उस दिन लौट गई.

आज दूसरी बार भी बिना कुछ बताए रजनी के घर से लौटते हुए वह सोच रही थी कि  वसंत एक पति और पिता की भूमिका बखूबी निभा रहा है. गृहस्थी की लक्ष्मणरेखा के दायरे में मिलने वाले सुख से रजनी खुश और संतुष्ट है. लक्ष्मणरेखा के दूसरी ओर वाले वसंत के बारे में जानना रजनी के लिए सोने के हिरण को पाने जैसा होगा.

मोनिका भलीभांति जानती है कि मरीचिका के पीछे दौड़ कर उसे हासिल करने का साहस रजनी में नहीं और अपनी प्यारी सखी की सरल आंखों और उस के मासूम बच्चों की हंसी को उदासी में बदलने का साहस तो मोनिका में भी नहीं है. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: दीप जल उठे – प्रतिमा ने सासूमां का दिल कैसे जीता?

Family Story In Hindi, लेखिका – डा. सुरेखा शर्मा 

दफ्तर से आतेआते रात के 8 बज गए थे. घर में घुसते ही प्रतिमा के बिगड़ते तेवर देख श्रवण भांप गया कि जरूर आज घर में कुछ हुआ है वरना मुसकरा कर स्वागत करने वाली का चेहरा उतरा न होता.

सारे दिन महल्ले में होने वाली गतिविधियों की रिपोर्ट जब तक मुझे सुना न देती उसे चैन नहीं मिलता था. जलपान के साथसाथ बतरस पान भी करना पड़ता था. अखबार पढ़े बिना पासपड़ोस के सुखदुख के समाचार मिल जाते थे. शायद देरी से आने के कारण ही प्रतिमा का मूड बिगड़ा हुआ है.

प्रतिमा से माफी मांगते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें फोन नहीं कर पाया. महीने का अंतिम दिन होने के कारण बैंक में ज्यादा काम था.’’

‘‘तुम्हारी देरी का कारण मैं समझ सकती हूं, पर मैं इस कारण दुखी नहीं हूं,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘फिर हमें भी तो बताओ इस चांद से मुखड़े पर चिंता की कालिमा क्यों?’’ श्रवण ने पूछा.

‘‘दोपहर को अमेरिका से बड़ी भाभी का फोन आया था कि कल माताजी हमारे पास पहुंच रही हैं,’’ प्रतिमा चिंतित होते हुए बोली.

‘‘इस में इतना उदास व चिंतित होने कि क्या बात है? उन का अपना घर है वे जब चाहें आ सकती हैं.’’ श्रवण हैरानी से बोला.

‘‘आप नहीं समझ रहे. अमेरिका में मांजी का मन नहीं लगा. अब वे हमारे ही साथ रहना चाहती हैं.’’ प्रतिमा ने कहा.

‘‘अरे मेरी चंद्रमुखी, अच्छा है न, घर में रौनक बढ़ेगी, बरतनों की उठापटक रहेगी, एकता कपूर के सीरियलों की चर्चा तुम मुझ से न कर के मां से कर सकोगी. सासबहू मिल कर महल्ले की चर्चाओं में बढ़चढ़ कर भाग लेना,’’ श्रवण चटखारे लेते हुए बोला.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है और मेरी जान सूख रही है,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘चिंता तो मुझे होनी चाहिए, तुम सासबहू के शीतयुद्ध में मुझे शहीद होना पड़ता है. मेरी स्थिति चक्की के 2 पाटों के बीच में पिसने वाली हो जाती है. न मां को कुछ कह सकता हूं, न तुम्हें.’’

कुछ सोचते हुए श्रवण फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हें कुछ टिप्स देना चाहता हूं. यदि तुम उन्हें अपनाओगी तो तुम्हारी सारी परेशानियां एक झटके में उड़नछू हो जाएंगी.’’

‘‘यदि ऐसा है तो आप जो कहेंगे मैं करूंगी. मैं चाहती हूं मांजी खुश रहें. आप को याद है पिछली बार छोटी सी बात से मांजी नाराज हो गई थीं.’’

‘‘देखो प्रतिमा, जब तक पिताजी जीवित थे तब तक हमें उन की कोई चिंता नहीं

थी. जब से वे अकेली हो गई हैं उन का स्वभाव बदल गया है. उन में असुरक्षा की भावना ने घर कर लिया है. अब तुम ही बताओ, जिस घर में उन का एकछत्र राज था वो अब नहीं रहा. बेटों को तो बहुओं ने छीन लिया. जिस घर को तिनकातिनका जोड़ कर मां ने अपने हाथों से संवारा, उसे पिताजी के जाने के बाद बंद करना पड़ा.

‘‘उन्हें कभी अमेरिका तो कभी यहां हमारे पास आ कर रहना पड़ता है. वे खुद को बंधन में महसूस करती हैं. इसलिए हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिस में उन्हें अपनापन लगे. उन को हम से पैसा नहीं चाहिए. उन के लिए तो पिताजी की पैंशन ही बहुत है. उन्हें खुश रखने के लिए तुम्हें थोड़ी सी समझदारी दिखानी होगी, चाहे नाटकीयता से ही सही,’’ श्रवण प्रतिमा को समझाते हुए बोला.

‘‘आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करने को तैयार हूं,’’ प्रतिमा ने आश्वासन दिया.

‘‘तो सुनो प्रतिमा, हमारे बुजुर्गों में एक ‘अहं’ नाम का प्राणी होता है. यदि किसी वजह से उसे चोट पहुंचती है, तो पारिवारिक वातावरण प्रदूषित हो जाता है यानी परिवार में तनाव अपना स्थान ले लेता है. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि मां के अहं को चोट न लगे बस… फिर देखो…’’ श्रवण बोला.

‘‘इस का उपाय भी बता दीजिए आप,’’ प्रतिमा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, सब से पहले तो जब मां आए तो सिर पर पल्लू रख कर चरणस्पर्श कर लेना. रात को सोते समय कुछ देर उन के पास बैठ कर हाथपांव दबा देना. सुबह उठ कर चरणस्पर्श के साथ प्रणाम कर देना,’’ श्रवण ने समझाया.

‘‘यदि मांजी इस तरह से खुश होती हैं, तो यह कोई कठिन काम नहीं है,’’ प्रतिमा ने कहा.

‘‘एक बात और, कोई भी काम करने से पहले मां से एक बार पूछ लेना. होगा तो वही जो मैं चाहूंगा. जो बात मनवानी हो उस बात के विपरीत कहना, क्योंकि घर के बुजुर्ग लोग अपना महत्त्व जताने के लिए अपनी बात मनवाना चाहते हैं. हर बात में ‘जी मांजी’ का मंत्र जपती रहना. फिर देखना मां की चहेती बहू बनते देर नहीं लगेगी,’’ श्रवण ने अपने तर्कों से प्रतिमा को समझाया.

‘‘आप देखना, इस बार मैं मां को शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘बस… बस… उन को ऐसा लगे जैसे घर में उन की ही चलती है. तुम मेरा इशारा समझ जाना. आखिर मां तो मेरी ही है. मैं जानता हूं उन्हें क्या चाहिए,’’ कहते हुए श्रवण सोने के लिए चला गया.

प्रतिमा ने सुबह जल्दी उठ कर मांजी के कमरे की अच्छी तरह सफाई करवा दी. साथ ही उन की जरूरत की सभी चीजें भी वहां रख दीं.

हम दोनों समय पर एयरपोर्ट पहुंच गए. हमें देखते ही मांजी की आंखें खुशी से चमक उठीं. सिर ढक कर प्रतिमा ने मां के पैर छुए तो मां ने सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया.

पोते को न देख कर मां ने पूछा, ‘‘अरे तुम मेरे गुड्डू को नहीं लाए?’’

‘‘मांजी वह सो रहा था.’’ प्रतिमा बोली.

‘‘बहू… आजकल बच्चों को नौकरों के भरोसे छोड़ने का समय नहीं है. आएदिन अखबारों में छपता रहता है,’’ मांजी ने समझाते हुए कहा.

‘‘जी मांजी, आगे से ध्यान रखूंगी,’’ प्रतिमा ने मांजी को आश्वासन दिया.

रास्ते भर भैयाभाभी व बच्चों की बातें होती रहीं.

घर पहुंच कर मां ने देखा जिस कमरे में उन का सामान रखा गया है उस में उन की

जरूरत का सारा सामान कायदे से रखा था. 4 वर्षीय पोता गुड्डू दौड़ता हुआ आया और दादी के पांव छू कर गले लग गया.

‘‘मांजी, आप पहले फ्रैश हो लीजिए, तब तक मैं चाय बनाती हूं,’’ कहते हुए प्रतिमा किचन की ओर चली गई.

रात के खाने में सब्जी मां से पूछ कर बनाई गई.

खाना खातेखाते श्रवण बोला, ‘‘प्रतिमा कल आलू के परांठे बनाना, पर मां से सीख लेना तुम बहुत मोटे बनाती हो,’’ प्रतिमा की आंखों में आंखें डाल कर श्रवण बोला.

‘‘ठीक है, मांजी से पूछ कर ही बनाऊंगी.’’ प्रतिमा बोली.

मांजी के कमरे की सफाई भी प्रतिमा कामवाली से न करवा कर खुद करती थी, क्योंकि पिछली बार कामवाली से कोई चीज छू गई थी, तो मांजी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया था.

अगले दिन औफिस जाते समय श्रवण को एक फाइल न मिलने के कारण वह बारबार प्रतिमा को आवाज लगा रहा था. प्रतिमा थी कि सुन कर भी अनसुना कर मां के कमरे में काम करती रही. तभी मांजी बोलीं, ‘‘बहू तू जा, श्रवण क्या कह रहा सुन ले.’’

‘‘जी मांजी.’’

दोपहर के समय मांजी ने तेल मालिश के लिए शीशी खोली तो प्रतिमा ने शीशी हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मांजी मैं लगाती हूं.’’

‘‘बहू रहने दे. तुझे घर के और भी बहुत काम हैं, थक जाएगी.’’

‘‘नहीं मांजी, काम तो बाद में भी होते रहेंगे. तेल लगातेलगाते प्रतिमा बोली, ‘‘मांजी, आप अपने समय में कितनी सुंदर दिखती होंगी और आप के बाल तो और भी सुंदर दिखते होंगे, जो अब भी कितने सुंदर और मुलायम हैं.’’

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, हां तुम्हारे बाबूजी जरूर कभीकभी छेड़ दिया करते थे. कहते थे कि यदि मैं तुम्हारे कालेज में होता तो तुम्हें भगा ले जाता.’’ बात करतेकरते उन के मुख की लालिमा बता रही थी जैसे वे अपने अतीत में पहुंच गई हैं.

प्रतिमा ने चुटकी लेते हुए मांजी को फिर छेड़ा, ‘‘मांजी गुड्डू के पापा बताते हैं कि आप नानाजी के घर भी कभीकभी ही जाती थीं, बाबूजी का मन आप के बिना लगता ही नहीं था. क्या ऐसा ही था मांजी?’’

‘‘चल हट… शरारती कहीं की… कैसी बातें करती है… देख गुड्डू स्कूल से आता होगा,’’ बनावटी गुस्सा दिखाते हुए मांजी नवयौवना की तरह शरमा गईं. शाम को प्रतिमा को सब्जी काटते देख मांजी बोलीं, ‘‘बहू तुम कुछ और काम कर लो, सब्जी मैं काट देती हूं.’’

मांजी रसोईघर में गईं तो प्रतिमा ने मनुहार करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मुझे भरवां शिमलामिर्च की सब्जी बनानी नहीं आती, आप सिखा देंगी? ये कहते हैं, जो स्वाद मां के हाथ के बने खाने में है, वह तुम्हारे में नहीं.’’

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, मुझे मसाले दे मैं बना देती हूं. धीरेधीरे रसोई की जिम्मेदारी मां ने अपने ऊपर ले ली थी. और तो और गुड्डू की मालिश करना, उसे नहलाना, उसे खिलानापिलाना सब मांजी ने संभाल लिया. अब प्रतिमा को गुड्डू को पढ़ाने के लिए बहुत समय मिलने लगा. इस तरह प्रतिमा के सिर से काम का भार कम हो गया था.’’

साथसाथ घर का वातावरण भी खुशनुमा रहने लगा. श्रवण को प्रतिमा के साथ कहीं घूमने जाना होता तो वह यही कहती कि मां से पूछ लो, मैं उन के बिना नहीं जाऊंगी. एक दिन पिक्चर देखने का मूड बना. औफिस से आते हुए श्रवण 2 पास ले आया. जब प्रतिमा को चलने के लिए कहा तो वह झट से ऊंचे स्वर में बोल पड़ी, ‘‘मांजी चलेंगी तो मैं चलूंगी अन्यथा नहीं.’’ वह जानती थी कि मां को पिक्चर देखने में कोई रुचि नहीं है. उन की तूतू, मैंमैं सुन कर मांजी बोलीं, ‘‘बहू, क्यों जिद कर रही हो? श्रवण का मन है तो चली जा. गुड्डू को मैं देख लूंगी.’’ मांजी ने शांत स्वर में कहा.

‘अंधा क्या चाहे दो आंखें’ वे दोनों पिक्चर देख कर वापस आए तो उन्हें खाना तैयार मिला. मांजी को पता था श्रवण को कटहल पसंद है, इसलिए फ्रिज से कटहल निकाल कर बना दिया. चपातियां बनाने के लिए प्रतिमा ने गैस जलाई तो मांजी बोलीं, ‘‘प्रतिमा तुम खाना लगा लो रोटियां मैं सेंकती हूं.’’

‘‘नहीं मांजी, आप थक गई होंगी, आप बैठिए, मैं गरमगरम रोटियां बना कर लाती हूं.’’ प्रतिमा बोली. ‘‘सभी एकसाथ बैठ कर खाएंगे, तुम बना लो प्रतिमा,’’ श्रवण बोला.

एकसाथ सभी को खाना खाते देख मांजी की आंखें नम हो गईं. श्रवण ने पूछा तो मां बोलीं, ‘‘आज तुम्हारे बाबूजी की याद आ गई. आज वे होते तो तुम सब को देख कर बहुत खुश होते.’’

‘‘मां मन दुखी मत करो,’’ श्रवण बोला.

प्रतिमा की ओर देख कर श्रवण बोला, ‘‘कटहल की सब्जी ऐसे बनती है. सच में मां… बहुत दिनों बाद इतनी स्वादिष्ठ सब्जी खाई है. मां से कुछ सीख लो प्रतिमा…’’

‘‘मांजी सच में सब्जी बहुत स्वादिष्ठ है… मुझे भी सिखाना…’’

‘‘बहू… खाना तो तुम भी स्वादिष्ठ बनाती हो.’’

‘‘नहीं मांजी, जो स्वाद आप के हाथ के बनाए खाने में है वह मेरे में कहां?’’ प्रतिमा बोली.

श्रवण को दीवाली पर बोनस के पैसे मिले तो देने के लिए उस ने प्रतिमा को आवाज लगाई. प्रतिमा ने आ कर कहा, ‘‘मांजी को ही दीजिए न…’’ श्रवण ने लिफाफा मां के हाथ में रख दिया. मांजी लिफाफे को उलटपलट कर देखते हुए रोमांचित हो उठीं. आज वे खुद को घर की बुजुर्ग व सम्मानित सदस्य अनुभव कर रही थीं. श्रवण व प्रतिमा जानते थे कि मां को पैसों से कुछ लेनादेना नहीं है. न ही उन की कोई विशेष जरूरतें थीं. बस उन्हें तो अपना मानसम्मान चाहिए था.

अब घर में कोई भी खर्चा होता या कहीं जाना होता तो प्रतिमा मां से जरूर पूछती. मांजी भी उसे कहीं घूमने जाने के लिए मना नहीं करतीं. अब हर समय मां के मुख से प्रतिमा की प्रशंसा के फूल ही झरते. दीवाली पर घर की सफाई करतेकरते प्रतिमा स्टूल से जैसे ही नीचे गिरी तो उस के पांव में मोच आ गई. मां ने उसे उठाया और पकड़ कर पलंग पर बैठा कर पांव में मरहम लगाया और गरम पट्टी बांध कर उसे आराम करने को कहा.

यह सब देख कर श्रवण बोला, ‘‘मां मैं ने तो सुना था बहू सेवा करती है सास की, पर यहां तो उलटी गंगा बह रही है.’’

‘‘चुप कर, ज्यादा बकबक मत कर, प्रतिमा मेरी बेटी जैसी है. क्या मैं इस का ध्यान नहीं रख सकती,’’ प्यार से डांटते हुए मां बोली.

‘‘मांजी, बेटी जैसी नहीं, बल्कि बेटी कहो. मैं आप की बेटी ही तो हूं.’’ प्रतिमा की बात सुनते ही मांजी ने उस के सिर पर हाथ रखा और बोलीं, ‘‘तुम सही कह रही हो बहू, तुम ने बेटी की कमी पूरी कर दी.’’

घर में होता वही जो श्रवण चाहता, पर एक बार मां की अनुमति जरूर ली जाती. बेटा चाहे कुछ भी कह दे, पर बहू की छोटी सी भूल भी सास को सहन नहीं होती. इस से सास को अपना अपमान लगता है. यह हमारी परंपरा सी बन चुकी है. जो धीरेधीरे खत्म भी हो रही है. मांजी को थोड़ा सा मानसम्मान देने के बदले में उसे अच्छी बहू का दर्जा व बेटी का स्नेह मिलेगा, इस की तो उस ने कल्पना ही नहीं कीथी. प्रतिमा के घर में हर समय प्यार का, खुशी का वातावरण रहने लगा. दीवाली नजदीक आ गई थी. मां व प्रतिमा ने मिल कर पकवान बनाए. लगता है इस बार की दीवाली एक विशेष दीवाली रहेगी, सोचतेसोचते श्रवण बिस्तर पर लेटा ही था कि अमेरिका से भैया का फोन आ गया. उन्होंने मां के स्वास्थ्य के बारे में पूछा और बताया कि इस बार मां उन के पास से नाराज हो कर गई हैं. तब से मन बहुत विचलित है.

यह तो हम सभी जानते हैं कि नंदिनी भाभी और मां के विचार कभी नहीं मिले, पर अमेरिका में भी उन का झगड़ा होगा, इस की तो कल्पना भी नहीं की थी. भैया ने बताया कि वे माफी मांग कर प्रायश्चित करना चाहते हैं अन्यथा हमेशा उन के मन में एक ज्वाला सी दहकती रहेगी. आगे उन्होंने जो बताया वह सुन कर तो मैं खुशी से उछल ही पड़ा. बस अब 2 दिन का इंतजार था, क्योंकि 2 दिन बाद दीवाली थी.

इस बार दीवाली पर प्रतिमा ने घर कुछ विशेष प्रकार से सजाया था. मुझे उत्साहित देख कर प्रतिमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बहुत खुश नजर आ रहे हैं?’’

अपनी खुशी को छिपाते हुए मैं ने कहा, ‘‘तुम सासबहू का प्यार हमेशा ऐसे ही बना रहे बस… इसलिए खुश हूं.’’

‘‘नजर मत लगा देना हमारे प्यार को,’’ प्रतिमा खुश होते हुए बोली. दीवाली वाले दिन मां ने अपने बक्से की चाबी देते हुए कहा, ‘‘बहू लाल रंग का एक डब्बा है उसे ले आ.’’ प्रतिमा ने जी मांजी कह कर डब्बा ला कर दे दिया. मां ने डब्बा खोला और उस में से खानदानी हार निकाला.  हार प्रतिमा को देते हुए बोलीं, ‘‘लो बहू,

ये हमारा खानदानी हार है, इसे संभालो. दीवाली इसे पहन कर मनाओ, तुम्हारे पिताजी की यही इच्छा थी.’’  हार देते हुए मां की आंखें खुशी से नम हो गईं.

प्रतिमा ने हार ले कर माथे से लगाया और मां के पैर छू कर आशीर्वाद लिया. मुझे बारबार घड़ी की ओर देखते हुए प्रतिमा ने पूछा तो मैं ने टाल दिया. दीप जलाने की तैयारी हो रही थी तभी मां ने आवाज लगा कर कहा, ‘‘श्रवण जल्दी आओ, गुड्डू के साथ फुलझडि़यां भी तो चलानी हैं. मैं साढ़े सात बजने का इंतजार कर रहा था, तभी बाहर टैक्सी रुकने की आवाज आई. मैं समझ गया मेरे इंतजार की घडि़यां खत्म हो गईं.

मैं ने अनजान बनते हुए कहा, ‘‘चलो मां सैलिब्रेशन शुरू करें.’’

‘‘हां… हां… चलो, प्रतिमा… आवाज लगाते हुए कुरसी से उठने लगीं तो नंदिनी भाभी ने मां के चरणस्पर्श किए… आदत के अनुसार मां के मुख से आशीर्वाद की झड़ी लग गई, सिर पर हाथ रखे बोले ही जा रही थीं… खुश रहो, आनंद करो… आदिआदि.’’

भाभी जैसे ही पांव छू कर उठीं तो मां आश्चर्य से देखती रह गईं. आश्चर्य  के कारण पलक झपकाना ही भूल गईं. हैरानी से मां ने एक बार भैया की ओर एक बार मेरी ओर देखा. तभी भैया ने मां के पैर छुए तो खुश हो कर भाभी के साथसाथ मुझे व प्रतिमा को भी गले लगा लिया. मां ने भैयाभाभी की आंखों को पढ़ लिया था. पुन: आशीर्वचन देते हुए दीवाली की शुभकामनाएं दीं मां की आंखों में खुशी की चमक देख कर लग रहा था दीवाली के शुभ अवसर पर अन्य दीपों के साथ मां के हृदयरूपी दीप भी जल उठे. जिन की ज्योति ने सारे घर को जगमग कर दिया. Family Story In Hindi

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