Hindi Kahani: मैं जरा रो लूं – मधु को क्यों आ गया रोना

Hindi Kahani: सुबह जैसे ही वह सो कर उठी, उसे लगा कि आज वह जरूर रोएगी. रोने के बहुत से कारण हो सकते हैं या निकाले जा सकते हैं. ब्रश मुंह में डाल कर वह घर से बाहर निकली तो देखा पति कुछ सूखी पत्तियां तोड़ कर क्यारियों में डाल रहे थे.

‘‘मुझे लगता है आज मेरा ब्लडप्रैशर बढ़ने लगा है.’’

पत्तियां तोड़ कर क्यारी में डालते हुए पति ने एक उड़ती सी निगाह अपनी पत्नी पर डाली. उसे लगा कि उस निगाह में कोई खास प्यार, दिलचस्पी या घबराहट नहीं है.

‘‘ठीक है दफ्तर जा कर कार भेज दूंगा, अपने डाक्टर के पास चली जाना.’’

‘‘नहीं, कार भेजने की जरूरत नहीं है. अभी ब्लडप्रैशर कोई खास नहीं बढ़ा है. अभी तक मेरे कानों से कोई सूंसूं की आवाज नहीं आ रही है, जैसे अकसर ब्लडप्रैशर बढ़ने से पहले आती है.’’

‘‘पर डाक्टर ने तुम से कहा है कि तबीयत जरा भी खराब हो तो तुम उसे दिखा दिया करो या फोन कर के उसे

घर पर बुलवा लो, चाहे आधी रात ही क्यों न हो. पिछली बार सिर्फ अपनी लापरवाहियों के कारण ही तुम मरतेमरते बची हो. लापरवाह लोगों के प्रति मुझे कोई हमदर्दी नहीं है.’’

‘‘अच्छा होता मैं मर जाती. आप बाकी जिंदगी मेरे बिना आराम से तो काट लेते.’’ यह कहने के साथ उसे रोना आना चाहिए था पर नहीं आया.

‘‘डाक्टर के पास अकेली जाऊं?’’

‘‘तुम कहो तो मैं दफ्तर से आ जाऊंगा. पर तुम अपने डाक्टर के पास तो अकेली भी जा सकती हो. कितनी बार जा भी चुकी हो. आज क्या खास बात है?’’

‘‘कोई खास बात नहीं है,’’ उस ने चिढ़ कर कहा.

‘‘सो कर उठने के बाद दिमाग शांत होना चाहिए पर, मधु, तुम्हें सवेरेसवेरे क्या हो जाता है.’’

‘‘आप का दिमाग ज्यादा शांत होना चाहिए क्योंकि  आप तो रोज सवेरे सैर पर जाते हो.’’

‘‘तुम्हें ये सब कैसे मालूम क्योंकि तुम तो तब तक सोई रहती हो?’’

‘‘अब आप को मेरे सोने पर भी एतराज होने लगा है. सवेरे 4 बजे आप को उठने को कौन कहता है?’’

‘‘यह मेरी आदत है. तुम्हें तो परेशान नहीं कर रहा. तुम अपना कमरा बंद किए 8 बजे तक सोती रहती हो. क्या मैं ने तुम्हें कभी जगाया? 7 बजे या साढ़े 7 बजे तक तुम्हारी नौकरानी सोती रहती है.’’

‘‘जगा भी कैसे सकते हैं? सो कर उठने के बाद से इस घर में बैल की तरह काम में जुटी रहती हूं.’’

खाना बनाने वाली नौकरानी 2 दिनों की छुट्टी ले कर गई थी पर आज भी नहीं आई. दूसरी नौकरानी आ कर बाकी काम निबटा गई.

नाश्ते के समय उस ने पति से पूछा, ‘‘अंडा कैसा लेंगे?’’

‘‘आमलेट.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ उस ने चिढ़ कर कहा.’’

पति ने जल्दीजल्दी आमलेट और

2 परांठे खा लिए. डबलरोटी वे नहीं खा सकते, शायद गले में अटक जाती है.

उस ने पहला कौर उठाया ही था कि पति की आवाज आई, ‘‘जरा 10,000 रुपए दे दो, इंश्योरैंस की किस्त जमा करानी है.’’ चुपचाप कौर नीचे रख कर वह उठ कर खड़ी हो गई. अलमारी से 10,000 रुपए निकाल कर उन के  सामने रख दिए. अभी 2 कौर ही खा पाई थी कि फिर पति की आवाज आई, ‘‘जरा बैंक के कागजात वाली फाइल भी निकाल दो, कुछ जरूरी काम करने हैं.’’ परांठे में लिपटा आमलेट उस ने प्लेट में गुस्से में रखा और उठ कर खड़ी हो गई. फिर दोबारा अलमारी खोली और फाइल उन के हाथ में पकड़ा दी और नौकरानी को आवाज दे कर अपनी प्लेट ले जाने के लिए कहा.

‘‘तुम नहीं खाओगी?’’

‘‘खा चुकी हूं. अब भूख नहीं है. आप खाने पर बैठने से पहले भी तो सब हिसाब कर सकते थे. कोई जरूरी नहीं है कि नाश्ता करते समय मुझे दस दफा उठाया जाए.’’

‘‘आज तुम्हारी तबीयत वाकई ठीक नहीं है, तुम्हें डाक्टर के पास जरूर जाना चाहिए.’’

11 बजे तक खाना बनाने वाली नौकरानी का इंतजार करने के बाद वह खाना बनाने के लिए उठ गई. देर तक आग के पास खड़े होने पर उसे छींकें आनी शुरू हो गईं जो बहुत सी एलर्जी की गोलियां खाने पर बंद हो गईं.

उस ने अपने इकलौते बेटे को याद किया. इटली से साल में एक बार, एक महीने के लिए घर आता है. अब तो उसे वहां रहते सालों हो गए हैं. क्या जरूरत थी उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बाहर भेजने की? अब उसे वहां नौकरी करते भी कई साल हो गए हैं. एक महीना मां के पास रह कर वह हमेशा यही वादा कर जाता है, ‘अब की बार आऊंगा तो शादी जरूरी कर लूंगा, पक्का वादा रहा मां.’

झूठा कहीं का. हां, हफ्ते में एक बार फोन पर बात जरूर कर लेता है. उस की जिंदगी में बहुत खालीपन आ गया है. बेटे को याद कर के उसे हमेशा रोना आ जाता है पर आज नहीं आया.

लखनऊ से कितने दिन हो गए, कोई फोन नहीं आया. उस ने भी नहीं किया. पता नहीं अम्माजी की तबीयत कैसी है. वह अपने मांबाप को बहुत प्यार करती है. वह कितनी मजबूर है कि अपनी मां की सेवा नहीं कर पाती. बस, साल में एक बार जा कर देख आती है, ज्यादा दिन रह भी नहीं सकती है. क्या यही बच्चों का फर्ज है?

उस ने तो शायद अपनी जिंदगी में किसी के प्रति कोई फर्ज नहीं निभाया. अपनी निगाहों में वह खुद ही गिरती जा रही थी. सहसा उम्र की बहुत सी सीढि़यां उतर कर अतीत में खो गई और बचपन में जा पहुंची. मुंह बना कर वह घर की आखिरी सीढ़ी पर आ कर बैठ गई थी, बगल में अपनी 2 सब से अच्छी फ्राकें दबाए हुए. बराबर में ही अब्दुल्ला सब्जी वाले की दुकान थी.

‘कहो, बिटिया, आज क्या हुआ जो फिर पोटलियां बांध कर सीढ़ी पर आ बैठी हो?’

‘हम से बात मत करो, अब्दुल्ला, अब हम ऊपर कभी नहीं जाएंगे.’

अब्दुल्ला हंसने लगा, ‘अभी बाबूजी आएंगे और गोद में उठा कर ले जाएंगे. तुम्हें बहुत सिर चढ़ा रखा है, तभी जरा सी डांट पड़ने पर घर से भाग पड़ती हो.’

‘नहीं, अब हम ऊपर कभी नहीं जाएंगे.’

‘नहीं जाओगी तो तुम्हारे कुछ खाने का इंतजाम करें?’

‘नहीं, हम कुछ नहीं खाएंगे,’ और वह कैथ के ढेर की ओर ललचाई आंखों से देखने लगी.

‘कैथ नहीं मिलेगा, बिटिया, खा कर खांसोगी और फिर बाबूजी परेशान होंगे.’

‘हम ने तुम से मांगा? मत दो, हम स्कूल में रोज खाते हैं.’

‘कितनी दफा कहा है कि कैथ मत खाया करो, बाबूजी को मालूम पड़ गया तो बहुत डांट पड़ेगी.’

‘तुम इतनी खराब चीज क्यों बेचते हो?’ अब्दुल्ला चुपचाप पास खड़े ग्राहक के लिए आलू तौलने लगा. सामने से उस के पिताजी आ रहे थे. लाड़ली बेटी को सीढ़ी पर बैठा देखा और गोद में उठा लिया.

‘अम्माजी ने डांटा हमारी बेटी को?’

बहुत डांटा, और उस ने पिता की गरदन में अपनी नन्हीनन्ही बांहें डाल दी.

बचपन के अतीत से निकल कर उम्र की कई सीढि़यां वह तेजी से चढ़ गई. जवान हो गई थी. याद आया वह दिन जब अचानक ही मजबूत हाथों का एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर आ पड़ा था. वह चौंक कर उठ बैठी थी. उस के हाथ अपने गाल को सहलाने लगे थे. बापबेटी दोनों जलती हुई आंखों से एकदूसरे को घूर रहे थे.

पिता ने नजरें झुका लीं और थके से पास में पड़ी कुरसी पर बैठ गए. उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी को जिंदगी में पहला और आखिरी थप्पड़ मारा था. सामने खड़े हो कर अंगारे उगलती आंखों से

उस ने पिता से सिर्फ इतना ही पूछा, ‘क्यों मारा आप ने मुझे?’

‘तुम शादी में आए मेहमानों से लड़ रही थी. मौसी ने तुम्हारी शिकायत की है,’ बहुत थके हुए स्वर में पिता ने जवाब दिया.

‘झूठी शिकायत की है, उन के बच्चों ने मेरा इसराज तोड़ दिया है. आप को मालूम है वह इसराज मुझे कितना प्यारा है. उस से मेरी भावनाएं जुड़ी हुई हैं.’

‘कुछ भी हो, वे लोग हमारे मेहमान हैं.’

‘लेकिन आप ने क्यों मारा?’ वह उन के सामने जमीन पर बैठ गई और पिता के घुटनों पर अपना सिर रख दिया. अपमान, वेदना और क्रोध से उस का सारा शरीर कांप रहा था. पिता उस के सिर पर हाथ फेर रहे थे. यादों से निकल कर वह अपने आज में लौट आई.

कमाल है इतनी बातें याद कर ली पर आंखों में एक कतरा आंसू भी न आया. दोपहर को पति घर आए और पूछा, ‘‘क्या खाना बना है?’’

‘‘दाल और रोटी.’’

‘‘दाल भी अरहर की होगी?’’

‘‘हां’’

वे एकदम से बौखला उठे, ‘‘मैं क्या सिर्फ अरहर की दाल और रोटी के लिए ही नौकरी करता हूं?’’

‘‘शायद,’’ उस ने बड़ी संजीदगी से कहा, ‘‘जो बनाऊंगी, खाना पड़ेगा. वरना होटल में अपना इंतजाम कर लीजिए. इतना तो कमाते ही हैं कि किसी भी बढि़या होटल में खाना खा सकते हैं. मुझे जो बनाना है वही बनाऊंगी, आप को मालूम है कि नौकरानी आज भी नहीं आई.’’

‘‘मैं पूछता हूं, तुम सारा दिन क्या करती हो?’’

‘‘सोती हूं,’’ उस ने चिढ़ कर कहा, ‘‘मैं कोईर् आप की बंधुआ मजदूर नहीं हूं.’’

पति हंसने लगे, ‘‘आजकल की खबरें सुन कर कम से कम तुम्हें एक नया शब्द तो मालूम पड़ा.’’

खाने की मेज पर सारी चीजें पति की पसंद की ही थीं – उड़द की दाल, गोश्त के कबाब, साथ में हरे धनिए की चटनी, दही की लस्सी और सलाद. दाल में देसी घी का छौंक लगा था.

शर्मिंदा से हो कर पति ने पूछा, ‘‘इतनी चीजें बना लीं, तुम इन में से एक चीज भी नहीं खाती हो. अब तुम किस के साथ खाओगी?’’

‘‘मेरा क्या है, रात की मटरआलू की सब्जी रखी है और वैसे भी अब समय ने मुझे सबकुछ खाना सिखला दिया है. वरना शादी से पहले तो कभी खाना खाया ही नहीं था, सिर्फ कंधारी अनार, चमन के अंगूर और संतरों का रस ही पिया था.’’

‘‘संतरे कहां के थे?’’

‘‘जंगल के,’’ उस ने जोर से कहा.

उन दिनों को याद कर के रोना आना चाहिए था पर नहीं आया. अब उसे यकीन हो गया था कि वह आज नहीं रोएगी. जब इतनी बातें सोचने और सुनने पर भी रोना नहीं आया तो अब क्या आएगा.

हाथ धो कर वह रसोई से बाहर निकल ही रही थी कि उस ने देखा, सामने से उस के पति चले आ रहे हैं. उन के हाथ में कमीज है और दूसरे हाथ में एक टूटा हुआ बटन. सहसा ही उस के दिल के भीतर बहुत तेजी से कोई बात घूमने लगी. आंखें भर आईं और वह रोने लगी. Hindi Kahani

Hindi Kahani: बरसी मन गई – कैसे मनाई शीला ने बरसी

Hindi Kahani: इधर कई दिनों से मैं बड़ी उलझन में थी. मेरे ससुर की बरसी आने वाली थी. मन में जब सोचती तो इसी नतीजे पर पहुंचती कि बरसी के नाम पर पंडितों को बुला कर ठूंसठूंस कर खिलाना, सैकड़ों रुपयों की वस्तुएं दान करना, उन का फिर से बाजार में बिकना, न केवल गलत बल्कि अनुचित कार्य है. इस से तो कहीं अच्छा यह है कि मृत व्यक्ति के नाम से किसी गरीब विद्यार्थी को छात्रवृत्ति दे दी जाए या किसी अस्पताल को दान दे दिया जाए. यों तो बचपन से ही मैं अपने दादादादी का श्राद्ध करने का पाखंड देखती आई थी. मैं भी उस में मजबूरन भाग लेती थी. खाना भी बनाती थी. पिताजी तो श्राद्ध का तर्पण कर छुट्टी पा जाते थे. पर पंडित व पंडितानी को दौड़दौड़ कर मैं ही खाना खिलाती थी. जब से थोड़ा सा होश संभाला था तब से तो श्राद्ध के दिन पंडितजी को खिलाए बिना मैं कुछ खाती तक नहीं थी. पर जब बड़ी हुई तो हर वस्तु को तर्क की कसौटी पर कसने की आदत सी पड़ गई. तब मन में कई बार यह प्रश्न उठ खड़ा होता, ‘क्या पंडितों को खिलाना, दानदक्षिणा देना ही पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है?’

हमारे यहां दादाजी के श्राद्ध के दिन पंडितजी आया करते थे. दादीजी के श्राद्ध के दिन अपनी पंडितानी को भी साथ ले आते थे. देखने में दोनों की उम्र में काफी फर्क लगता था. एक  दिन महरी ने बताया कि  यह तो पंडितजी की बहू है. बड़ी पंडितानी मर चुकी है. कुछ समय बाद पंडितजी का लड़का भी चल बसा और पंडितजी ने बहू को ही पत्नी बना कर घर में रख लिया.

मन एक वितृष्णा से भर उठा था. तब लगा विधवा विवाह समाज की सचमुच एक बहुत बड़ी आवश्यकता है. पंडितजी को चाहिए था कि बहू के योग्य कोई व्यक्ति ढूंढ़ कर उस का विवाह कर देते और तब वे सचमुच एक आदर्श व्यक्ति माने जाते. पर उन्होंने जो कुछ किया, वह अनैतिक ही नहीं, अनुचित भी था. बाद में सुना, उन की बहू किसी और के साथ भाग गई.

मन में विचारों का एक अजीब सा बवंडर उठ खड़ा होता. जिस व्यक्ति के प्रति मन में मानसम्मान न हो, उसे अपने पूर्वज बना कर सम्मानित करना कहां की बुद्धिमानी है. वैसे बुढ़ापे में पंडितजी दया के पात्र तो थे. कमर भी झुक गई थी, देखभाल करने वाला कोई न था. कभीकभी चौराहे की पुलिया पर सिर झुकाए घंटों बैठे रहते थे. उन की इस हालत पर तरस खा कर उन की कुछ सहायता कर देना भिन्न बात थी, पर उन की पूजा करना किसी भी प्रकार मेरे गले न उतरता था.

अपने विद्यार्थी जीवन में तो इन बातों की बहुत परवा न थी, पर अब मेरा मन एक तीव्र संघर्ष में जकड़ा हुआ था. इधर जब से मैं ने एक महिला रिश्तेदार की बरसी पर दी गई वस्तुओं के लिए पंडितानियों को लड़तेझगड़ते देखा तो मेरा मन और भी खट्टा हो गया था. पर क्या करूं ससुरजी की मृत्यु के बाद से हर महीने उसी तिथि पर एक ब्राह्मण को तो खाना खिलाया ही जा रहा था.

मैं ने एक बार दबी जबान से इस का विरोध करते हुए अपनी सास से कहा कि बाबूजी के नाम पर कहीं और पैसा दिया जा सकता है पर उन्होंने यह कह कर मेरा मुंह बंद कर दिया कि सभी करते हैं. हम कैसे अपने रीतिरिवाज छोड़ दें.

मेरी सास वैसे ही बहुत दुखी थीं. जब से ससुरजी की मृत्यु हुई थी, वे बहुत उदास रहती थीं, अकसर रोने लगती थीं. कहीं आनाजाना भी उन्होंने छोड़ दिया था. सो, उन्हें अपनी बातों से और दुखी करने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. पर दूसरी ओर मन अपनी इसी बात पर डटा हुआ था कि जब हम चली आ रही परंपराओं की निस्सारता समझते हैं और फिर भी आंखें मूंद कर उन का पालन किए जाते हैं तो हमारे यह कहने का अर्थ ही क्या रह जाता है कि हम जो कुछ भी करते हैं, सोचसमझ कर और गुणदोष पर विचार कर के करते हैं.

मैं ने अपने पति से कहा कि वे अम्माजी से बात करें और उन्हें समझाने का प्रयत्न करें. पर उन की तरफ से टका सा जवाब मिल गया, ‘‘भई, यह सब तुम्हारा काम है.’’

वास्तव में मेरे पति इस विषय में उदासीन थे. उन्हें बरसी मनाने या न मनाने में कोई एतराज न था. अब तो सबकुछ मुझे ही करना था. मेरे मन में संघर्ष होता रहा. अंत में मुझे लगा कि अपनी सास से इस विषय में और बात करना, उन से किसी प्रकार की जिद कर के उन के दुखी मन को और दुखी करना मेरे वश की बात नहीं. सो, मैं ने अपनेआप को जैसेतैसे बरसी मनाने के लिए तैयार कर लिया.

हम लोग आदर्शों की, सुधार की कितनी बड़ीबड़ी बातें करते हैं. दुनियाभर को भाषण देते फिरते हैं. लेकिन जब अपनी बारी आती है तो विवश हो वही करने लगते हैं जो दूसरे करते हैं और जिसे हम हृदय से गलत मानते हैं. मेरे स्कूल में वादविवाद प्रतियोगिता हो रही थी. उस में 5वीं कक्षा से ले कर 10वीं कक्षा तक की छात्राएं भाग ले रही थीं. प्रश्न उठा कि मुख्य अतिथि के रूप में किसे आमंत्रित किया जाए. मैं ने प्रधानाध्यापिका के सामने अपनी सास को बुलाने का प्रस्ताव रखा, वे सहर्ष तैयार हो गईं.

पर मैं ने अम्माजी को नहीं बताया. ठीक कार्यक्रम से एक दिन पहले ही बताया. अगर पहले बताती तो वे चलने को बिलकुल राजी न होतीं. अब अंतिम दिन तो समय न रह जाने की बात कह कर मैं जोर भी डाल सकती थी.

अम्माजी रामचरितमानस पढ़ रही थीं. मैं ने उन के पास जा कर कहा, ‘‘अम्माजी, कल आप को मेरे स्कूल चलना है, मुख्य अतिथि बन कर.’’

‘‘मुझे?’’ अम्माजी बुरी तरह चौंक पड़ीं, ‘‘मैं कैसे जाऊंगी? मैं नहीं जा सकती.’’

‘‘क्यों नहीं जा सकतीं?’’

‘‘नहीं बहू, नहीं? अभी तुम्हारे बाबूजी की बरसी भी नहीं हुई है. उस के बाद ही मैं कहीं जाने की सोच सकती हूं. उस से पहले तो बिलकुल नहीं.’’

‘‘अम्माजी, मैं आप को कहीं विवाहमुंडन आदि में तो नहीं ले जा रही. छोटीछोटी बच्चियां मंच पर आ कर कुछ बोलेंगी. जब आप उन की मधुर आवाज सुनेंगी तो आप को अच्छा लगेगा.’’

‘‘यह तो ठीक है. पर मेरी हालत तो देख. कहीं अच्छी लगूंगी ऐसे जाती हुई?’’

‘‘हालत को क्या हुआ है आप की? बिलकुल ठीक है. बच्चों के कार्यक्रम में किसी बुजुर्ग के आ जाने से कार्यक्रम की रौनक और बढ़ जाती है.’’

‘‘मुझे तो तू रहने ही दे तो अच्छा है. किसी और को बुला ले.’’

‘‘नहीं, अम्माजी, नहीं. आप को चलना ही होगा,’’ मैं ने बच्चों की तरह मचलते हुए कहा, ‘‘अब तो मैं प्रधानाध्यापिका से भी कह चुकी हूं. वे क्या सोचेंगी मेरे बारे में?’’

‘‘तुझे पहले मुझ से पूछ तो लेना चाहिए था.’’

‘‘मुझे मालूम था. मेरी अच्छी अम्माजी मेरी बात को नहीं टालेंगी. बस, इसीलिए नहीं पूछा था.’’

‘‘अच्छा बाबा, तू मानने वाली थोड़े ही है. खैर, चली चलूंगी. अब तो खुश है न?’’

‘‘हां अम्माजी, बहुत खुश हूं,’’ और आवेश में आ कर अम्माजी से लिपट गई. दूसरे दिन मैं तो सुबह ही स्कूल आ गई थी. अम्माजी को बाद में ये नियत समय पर स्कूल छोड़ गए थे. एकदम श्वेत साड़ी से लिपटी अम्माजी बड़ी अच्छी लग रही थीं.

ठीक समय पर हमारा कार्यक्रम शुरू हो गया. प्रधानाध्यापिका ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आज मुझे श्रीमती कस्तूरी देवी का मुख्य अतिथि के रूप में स्वागत करते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है. उन्होंनेअपने दिवंगत पति की स्मृति में स्कूल को 2 ट्रौफियां व 10 हजार रुपए प्रदान किए हैं. ट्रौफियां 15 वर्षों तक चलेंगी और वादविवाद व कविता प्रतियोगिता में सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को दी भी जाएंगी. 10 हजार रुपयों से 25-25 सौ रुपए 4 वषोें तक हिंदी में सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को दिए जाएंगे. मैं अपनी व स्कूल की ओर से आग्रह करती हूं कि श्रीमती कस्तूरीजी अपना आसन ग्रहण करें.’’

तालियों की गड़गड़ाहट से हौल गूंज उठा. मैं कनखियों से देख रही थी कि सारी बातें सुन कर अम्माजी चौंक पड़ी थीं. उन्होंने मेरी ओर देखा और चुपचाप मुख्य अतिथि के आसन पर जा बैठी थीं. मैं ने देखा, उन की आंखें छलछला आई हैं, जिन्हें धीरे से उन्होंने पोंछ लिया.

सारा कार्यक्रम बड़ा अच्छा रहा. छात्राओं ने बड़े उत्साह से भाग लिया. अंत में विजयी छात्राओं को अम्माजी के हाथों पुरस्कार बांटे गए. मैं ने देखा, पुरस्कार बांटते समय उन की आंखें फिर छलछला आई थीं. उन के चेहरे से एक अद्भुत सौम्यता टपक रही थी. मुझे उन के चेहरे से ही लग रहा था कि उन्हें यह कार्यक्रम अच्छा लगा.

अब तक तो मैं स्कूल में बहुत व्यस्त थी. लेकिन कार्यक्रम समाप्त हो जाने पर मुझे फिर से बरसी की याद आ गई.

दूसरे दिन मैं ने अम्माजी से कहा, ‘‘अम्माजी, बाबूजी की बरसी को 15 दिन रह गए हैं. मुझे बता दीजिए, क्याक्या सामान आएगा. जिस से मैं सब सामान समय रहते ही ले आऊं.’’

‘‘बहू, बरसी तो मना ली गई है.’’

‘‘बरसी मना ली गई है,’’ मैं एकदम चौंक पड़ी, ‘‘अम्माजी, आप यह क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, शीला, कल तुम्हारे स्कूल में ही तो मनाईर् गई थी. कल से मैं बराबर इस बारे में सोच रही हूं. मेरे मन में बहुत संघर्ष होता रहा है. मेरी आंखों के सामने रहरह कर 2 चित्र उभरे हैं. एक पंडितों को ठूंसठूंस कर खाते हुए, ढेर सारी चीजें ले जाते हुए. फिर भी बुराई देते हुए, झगड़ते हुए. मैं ने बहुत ढूंढ़ा पर उन में तुम्हारे बाबूजी कहीं भी न दिखे.’’

‘‘दूसरा चित्र है   उन नन्हींनन्हीं चहकती बच्चियों का, जिन के चेहरों से अमित संतोष, भोलापन टपक रहा है, जो तुम्हारे बाबूजी के नाम से दिए गए पुरस्कार पा कर और भी खिल उठी हैं, जिन के बीच जा कर तुम्हारे बाबूजी का नाम अमर हो गया है.’’

मैं ने देखा अम्माजी बहुत भावुक हो उठी हैं.

‘‘शीला, तू ने कितने रुपए खर्च किए?’’

‘‘अम्माजी, 11 हजार रुपए. 5-5 सौ रुपए की ट्रौफी और 10 हजार रुपए नकद.’’

‘‘तू ने ठीक समय पर इतने सुंदर व अर्थपूर्ण ढंग से उन की बरसी मना कर मेरी आंखें खोल दीं.’’

‘‘ओह, अम्माजी.’’ मैं हर्षातिरेक में उन से लिपट गई. तभी ये आ गए, बोले, ‘‘अच्छा, आज तो सासबहू में बड़ा प्रेमप्रदर्शन हो रहा है.’’

‘‘अच्छाजी, जैसे हम लड़ते ही रहते हैं,’’ मैं उठते हुए बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली.

ये धीरे से मेरे कान में बोले, ‘‘लगता है तुम्हें अपने मन का करने में सफलता मिल गई है.’’

‘‘हां.’’

‘‘जिद्दी तो तुम हमेशा से हो,’’ ये मुसकरा पड़े, ‘‘ऐसे ही जिद कर के तुम ने मुझे भी फंसा लिया था.’’

‘‘धत्,’’ मैं ने कहा और मेरी आंखें एक बार फिर अम्माजी के चमकते चेहरे की ओर उठ गईं. Hindi Kahani

Family Story In Hindi: हकीकत – आखिर कहां थी कमाल साहब की अम्मी?

Family Story In Hindi: फारुकी साहब के खानदान के हमारे पुराने संबंध थे. वे पुश्तैनी रईस थे. अच्छे इलाके में दोमंजिला मकान था. उन के 2 बेटे थे, जमाल और कमाल. एक बेटी सुरैया थी, जिस की शादी भी अच्छे घर में हुई थी.

फारुकी साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. सुनते हैं कि उन की बीवी नवाब खानदान की हैं. उम्र 72-73 साल होगी. वे अकसर बीमार रहती हैं. जमाल व कमाल भी शादीशुदा व बालबच्चेदार हैं. उन का भरापूरा परिवार है. सुरैया से मुलाकात हो जाती थी. उन के भी एक बेटी व एक बेटा है. दोनों की भी शादी हो गई है.

उन्हीं दिनों कमाल साहब के यहां से शादी का कार्ड आया. उन के दूसरे बेटे की शादी थी. कार्ड देख कर बड़ी खुशी हुई. कार्ड उन की अम्मी दुरदाना बेगम के नाम से छपा था. नीचे भी उन्हीं का नाम था. अच्छा लगा कि आज भी लोग बुजुर्गों की इतनी कद्र और इज्जत करते हैं.

शादी में जाने का मेरा पक्का इरादा था. इस तरह अम्मी व सुरैया आपा से भी मुलाकात हो जाती, पर मुझे फ्लू हो गया. मैं शादी में न जा सकी.

फिर कहीं से खबर मिली कि कमाल साहब की अम्मी बीमार हैं. उन्हें लकवे का असर हो गया है. एक दिन मैं कमाल साहब के यहां पहुंच गई. दोनों भाई बड़े ही अपनेपन से मिले. नई बहू से मिलाया गया, खूब खातिरदारी हुई.

मैं ने कहा, ‘‘कमाल साहब, मुझे अम्मी से मिलना है. कहां हैं वे?’’

कमाल साहब का चेहरा फीका पड़ गया. वे कहने लगे ‘‘दरअसल, अम्मी सुरैया के यहां गई हुई हैं. वे एक ही जगह पर रहतेरहते बोर हो गई थीं.’’

मैं वहां से निकल कर सीधी सुरैया आपा के यहां पहुंच गई. वे मुझे देख कर बेहद खुश हो गईं, फिर अम्मी के कमरे में ले गईं.

खुला हवादार, साफसुथरा महकता कमरा. सफेद बिस्तर पर अम्मी लेटी थीं. वे बड़ी कमजोर हो गई थीं. कहीं से नहीं लग रहा था कि यह एक मरीज का कमरा है.

अम्मी मुझ से मिल कर खूब खुश हुईं, खूब बातें करने लगीं. उन्हीं की बातों से पता चला कि वे तकरीबन डेढ़ साल से सुरैया आपा के पास हैं. जब उन पर लकवे का असर हुआ था. उस के तकरीबन एक महीने बाद ही कमाल और जमाल, दोनों भाई अम्मी को यह कह कर सुरैया आपा के पास छोड़ गए थे कि हमारे यहां अम्मी को अलग से कमरा देना मुश्किल है और घर में सभी लोग इतने मसरूफ रहते हैं कि अम्मी की देखभाल नहीं हो पाती. तब से ही अम्मी सुरैया आपा के पास रहने लगी थीं.

सुरैया आपा और उन की बहू बड़े दिल से उन की खिदमत करतीं, खूब खयाल रखतीं.

मैं ने सुरैया आपा से कहा, ‘‘अम्मी डेढ़ साल से आप के पास हैं, पर 3-4 महीने पहले कमाल भाई के बेटे की शादी का कार्ड आया था, उस में तो दावत देने वाले में अम्मी का नाम था और दावत भी अम्मी की तरफ से ही थी.’’

सुरैया आपा हंस कर बोलीं, ‘‘दोनों भाइयों के घर में अम्मी के लिए जगह न थी, पर कार्ड में तो बहुत जगह थी. कार्ड तो सभी देखते हैं और वाहवाह करते हैं, घर आ कर कौन देखता है कि अम्मी कहां हैं? दुनिया को दिखाने के लिए यह सब करना पड़ा उन्हें.’’ Family Story In Hindi

Hindi Kahani: शेष शर्त – प्रभा के मामा की अनूठी शर्त

Hindi Kahani: मैं जब मामा के घर पहुंची तो विभा बाहर जाने की तैयारी में थी.

‘‘हाय दीदी, आप. आज ? जरा जल्दी में हूं, प्रैस जाने का समय हो गया है, शाम को मिलते हैं,’’ वह उल्लास से बोली.

‘‘प्रभा को तुम्हारे दर्शन हो गए, यही क्या कम है. अब शाम को तुम कब लौटोगी, इस का कोई ठिकाना है क्या?’’ तभी मामी की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहींनहीं, तुम निकलो, विभा. थोड़ी देर बाद मुझे भी बाहर जाना है,’’ मैं ने कहा.

मामाजी कहीं गए हुए थे. अमित के स्नान कर के आते ही मामी ने खाना मेज पर लगा दिया. पारिवारिक चर्र्चा करते हुए हम ने भोजन आरंभ किया. मामी थकीथकी सी लग रही थीं. मैं ने पूछा तो बोलीं, ‘‘इन बापबेटों को नौकरी वाली बहू चाहिए थी. अब बहू जब नौकरी पर जाएगी तो घर का काम कौन करेगा? नौकरानी अभी तक आई नहीं.’’

मैं ने देखा, अमित इस चर्चा से असुविधा महसूस कर रहा था. बात का रुख पलटने के लिए मैं ने कहा, ‘‘हां, नौकरानियों का सब जगह यही हाल है. पर वे भी क्या करें, उन्हें भी तो हमारी तरह जिंदगी के और काम रहते हैं.’’

अमित जल्दीजल्दी कपड़े बदल कर बाहर निकल गया. मैं ने मामी के साथ मेज साफ करवाई. बचा खाना फ्रिज में रखा और रसोई की सफाई में लग गई. मामी बारबार मना करती रहीं, ‘‘नहीं प्रभा, तुम रहने दो, बिटिया. मैं धीरेधीरे सब कर लूंगी. एक दिन के लिए तो आई हो, आराम करो.’’

मुझे दोपहर में ही कई काम निबटाने थे, इसलिए बिना आराम किए ही बाहर निकलना पड़ा.

जब मैं लौटी तो शाम ढल चुकी थी. मामी नौकरानी के साथ रसोई में थीं. मामाजी उदास से सामने दीवान पर बैठे थे. मैं ने अभिवादन किया तो क्षणभर को प्रसन्न हुए. परिवार की कुशलक्षेम पूछी. फिर चुपचाप बालकनी में घूमने लगे. बात कुछ मेरी समझ में न आई. अमित और विभा भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. मामाजी का गंभीर रुख देख कर उन से कुछ पूछने की हिम्मत न हुई.

तभी मामी आ गईं, ‘‘कब आईं, बिटिया?’’

‘‘बस, अभी, मामाजी कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘विभा अभी तक औफिस से नहीं लौटी है, जाने कैसी नौकरी है उस की.’’

कुछ देर बाद अमित और विभा साथसाथ ही आए. दोनों के मुख पर अजीब सा तनाव था. विभा बिना किसी से बोले तेजी से अपने कमरे में चली गई. अमित हम लोगों के पास बैठ कर टीवी देखने लगा. वातावरण सहसा असहज लगने लगा. किसी अनर्थ की आशंका से मन व्याकुल हो उठा.

विभा कपड़े बदल कर कमरे में आई तो मामी ने उलाहने के स्वर में कहा, ‘‘खाना तो हम ने बना लिया है. अब मेज पर लगा लोगी या वह भी हम जा कर ही लगाएं?’’

मामाजी मानो राह ही देख रहे थे, तमक कर बोले, ‘‘तुम बैठो चुपचाप, बुढ़ापे में मरी जाती हो. अभी पसीना सूखा नहीं कि फिर चलीं रसोई में. तुम ने क्या ठेका ले रखा है.’’

बात यहीं तक रहती तो शायद विभा चुप रह जाती, मामाजी दूसरे ही क्षण फिर गरजे, ‘‘लोग बाहर मौज करते हैं. पता है न कि घर में 24 घंटे की नौकरानी है.’’

इस आरोप से विभा हतप्रभ रह गई. कम से कम उसे यह आशा नहीं रही होगी कि मामाजी मेरी उपस्थिति में भी ऐसी बातें कह जाएंगे. उस ने वितृष्णा से कहा, ‘‘आप लोगों को दूसरों के सामने तमाशा करने की आदत हो गई है.’’

‘‘हम लोग तमाशा करते हैं? तमाशा करने वाले आदमी हैं, हम लोग? पहले खुद को देखो, अच्छे खानदान की लड़कियां घरपरिवार से बेफिक्र इतनी रात तक बाहर नहीं घूमतीं.’’

‘‘आप को मेरा खानदान शादी के पहले देखना था, बाबूजी.’’

मामाजी भड़क उठे, ‘‘मुझ से जबान मत चलाना, वरना ठीक न होगा.’’ बात बढ़ती देख अमित पत्नी को धकियाते हुए अंदर ले गया. मैं लज्जा से गड़ी जा रही थी. पछता रही थी कि आज रुक क्यों गई. अच्छा होता, जो शाम की बस से घर निकल जाती. यों बादल बहुत दिनों से गहरातेघुमड़ते रहे होंगे, वे तो उपयुक्त अवसर देख कर फट पड़े थे.

थोड़ी देर बाद मामी ने नौकरानी की सहायता से खाना मेज पर लगाया. मामी के हाथ का बना स्वादिष्ठ भोजन भी बेस्वाद लग रहा था. सब चुपचाप अपने में ही खोए भोजन कर रहे थे. बस, मामी ही भोजन परोसते हुए और लेने का आग्रह करती रहीं.

भोजन समाप्त होते ही मामाजी और अमित उठ कर बाहर वाले कमरे में चले गए. मैं ने धीरे से मामी से पूछा, ‘‘विभा…?’’

‘‘वह कमरे से आएगी थोड़े ही.’’

‘‘पर?’’

‘‘बाहर खातीपीती रहती है,’’ उन्होंने फुसफुसा कर कहा.

मैं सोच रही थी कि विभा बहू की जगह बेटी होती तो आज का दृश्य कितना अलग होता.

‘‘देखा, सब लोगों का खाना हो गया, पर वह आई नहीं,’’ मामी ने कहा.

‘‘मैं उसे बुला लाऊं?’’

‘‘जाओ, देखो.’’

मैं उस के  कमरे में गई. उस की आंखों में अब भी आंसू थे. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि अमित उसे मेरे कारण औफिस का काम बीच में ही छुड़वा कर ले आया था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी कोई मेहमान आता, उसे औफिस से बुलवा लिया जाता.

‘‘तुम ने अमित को समझाने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘कई बार कह चुकी हूं.’’

‘‘वह क्या कहता है?’’

‘‘औफिस का काम छोड़ कर आने में तकलीफ होती है तो नौकरी छोड़ दो.’’

क्षणभर को मैं स्तब्ध ही रह गई कि जब नए जमाने का पढ़ालिखा युवक उस के काम की अहमियत नहीं समझता तो पुराने विचारों के मामामामी का क्या दोष.

‘‘चिंता न करो, सब ठीक हो जाएगा. शुरू में सभी को ससुराल में कुछ न कुछ कष्ट उठाना ही पड़ता है,’’ मैं ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा.

फिर घर आ कर इस घटना को मैं लगभग भूल ही गई. संयुक्त परिवार की यह एक साधारण सी घटना ही तो थी. किंतु कुछ माह बीतते न बीतते, एक दिन मामाजी का पत्र आया. उन्होंने लिखा था कि अमित का तबादला अमरावती हो गया है, परंतु विभा ने उस के साथ जाने से इनकार कर दिया है.

पत्र पढ़ कर मुझे पिछली कितनी ही बातें याद हो आईं… अमित मामाजी का एकलौता बेटा था. घर में धनदौलत की कोई कमी न थी, तिस पर उस ने इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. देखने में भी वह लंबाचौड़ा आकर्षक युवक था. इन तमाम विशेषताओं के कारण लड़की वालों की भीड़ उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

किंतु मामाजी भी बड़े जीवट आदमी थे. उन्होंने तय कर लिया था कि लड़की वाले चाहे जितना जोर लगा लें, पर अमित का विवाह तो वे अपनी शर्तों पर ही करेंगे. जिन दिनों अमित के रिश्ते की बात चल रही थी, मैं ने भी मामाजी को एक मित्रपरिवार की लड़की के विषय में लिखा था. लड़की मध्यवर्गीय परिवार की थी. अर्थशास्त्र में एमए कर रही थी. देखने में भली थी. मेरे विचार में एक अच्छी लड़की में जो गुण होने चाहिए, वे सब उस में थे.

मामाजी ने पत्रोत्तर जल्दी ही दिया था. उन्होंने लिखा था… ‘बेटी, तुम अमित के लिए जो रिश्ता देखोगी, वह अच्छा ही होगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है. पर अमित को विज्ञान स्नातक लड़की चाहिए. दहेज मुझे नहीं चाहिए, लेकिन तुम तो जानती हो, रिश्तेदारी बराबरी में ही भली. जहां तक हो सके, लड़की नौकरी वाली देखो. अमित भी नौकरी वाली लड़की चाहता है.’

मामाजी का पत्र पढ़ कर मैं हैरान रह गई. मामाजी उस युग के आदमी थे जिस में कुलीनता ही लड़की की सब से बड़ी विशेषता मानी जाती थी. लड़की थोड़ीबहुत पढ़ीलिखी और सुंदर हो तो सोने पर सुहागा. जमाने के हिसाब से विचारों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है. लेकिन लगता था कि वे बिना यह सोचेविचारे कि उन के अपने परिवार के लिए कैसी लड़की उपयुक्त रहेगी, जमाने के साथ नहीं बल्कि उस से आगे चल रहे थे.

संयोग से दूसरे ही सप्ताह मुझे नागपुर जाने का अवसर मिला. मामाजी से मिलने गई तो देखा, वे बैठक में किसी महिला से बातें कर रहे हैं. वे उस महिला को समझा रहे थे कि अमित के लिए उन्हें कैसी लड़की चाहिए.

उन्होंने दीवार पर 5 फुट से 5 फुट 5 इंच तक के निशान बना रखे थे और उस महिला को समझा रहे थे, ‘‘अपना अमित 5 फुट 10 इंच लंबा है. उस के लिए लड़की कम से कम 5 फुट 3 इंच ऊंची चाहिए. यह देखो, यह हुआ 5 फुट, यह 5 फुट 1 इंच, 2 इंच, 3 इंच. 5 फुट 4 इंच हो तो भी चलेगी. लड़की गोरी चाहिए. लड़की के मामापिता, भाईबहनों के बारे में सारी बातें एक कागज पर लिख कर ले आना. लड़की हमें साइंस ग्रेजुएट चाहिए. अगर गणित वाली हो या पोस्टग्रेजुएट हो तो और भी अच्छा है.’’

सामने बैठी महिला को भलीभांति समझा कर वे मेरी ओर मुखातिब हुए, ‘बेटे, आजकल आर्ट वालों को कोई नहीं पूछता, उन्हें नौकरी मुश्किल से मिलती है. खैर, बीए में कौन सी डिवीजन थी लड़की की? फर्स्ट डिवीजन का कैरियर हो तो सोचा जा सकता है. एमए के प्रथम वर्ष में कितने प्रतिशत अंक हैं?’

मैं समझ गई कि अमित के लिए रिश्ता तय करवाना मेरे बूते के बाहर की बात है. मामाजी के विचारों के साथ अमित की कितनी सहमति थी, इसे तो वही जाने, पर इस झंझट में पड़ने से मैं ने तौबा कर ली. लगभग 2-3 वर्षों की खोजबीन- जांचपरख के बाद अमित के लिए विभा का चयन किया गया था. वह गोरी, ऊंची, छरहरे बदन की सुंदर देह की धनी थी. उस की शिक्षा कौनवैंट स्कूल में हुई थी. वह फर्राटे से अंगरेजी बोल सकती थी. उस ने राजनीतिशास्त्र में एमए किया था.

बंबई से पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद वह नागपुर के एक प्रसिद्ध दैनिक समाचारपत्र में कार्यरत थी. इस विवाह संबंध से मामाजी, मामी और अमित सभी बहुत प्रसन्न थे. खुद मामाजी विभा की प्रशंसा करते नहीं थकते थे.

लेकिन विवाह के 3-4 महीने बाद ही स्थिति बदलने लगी. विभा के नौकरी पर जाते ही यथार्थ जीवन की समस्याएं उन के सामने थीं. मामाजी हिसाबी आदमी थे, वे यह सोच कर क्षुब्ध थे कि आखिर बहू के आने से लाभ क्या हुआ? अमित के तबादले ने इस मामले को गंभीर मोड़ पर पहुंचा दिया था.

इस के  बाद नागपुर जाने के अवसर को मैं ने जानबूझ कर टाल दिया था. किंतु लगभग सालभर बाद मुझे एक बीमार रिश्तेदार को देखने नागपुर जाना ही पड़ा. वहीं मामाजी से भेंट हो गई. अमित और विभा के विषय में पूछा तो बोले, ‘‘घर चलो, वहीं सब बातें होंगी.’’ हम लोग घर पहुंचे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था. मामी खिचड़ी बना कर अभीअभी लेटी थीं, उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. मुझे देखा तो उठ बैठीं और शिकायत करने लगीं कि मैं ने उन लोगों को भुला दिया है.

‘‘अमित अमरावती में है, उसे वहां बढि़या फ्लैट मिला है पर खानेपीने की कोई व्यवस्था नहीं है. कभी होटल में खा लेता है, कभी नौकर से बनवा लेता है. तुम्हारी मामी बीचबीच में जाती रहती है, इस का भी बुढ़ापा है. यह यहां मुझे देखे या उसे वहां देखे. मेरी तबीयत भी अब पहले जैसी नहीं रही. यहां का कारोबार देखना भी जरूरी है, नहीं तो सब अमरावती में ही रहते. विभा ने नौकरी छोड़ कर अमित के साथ जाने से इनकार कर दिया. सालभर से मायके में है,’’ मामाजी ने बताया.

अमित के विषय में बातें करते हुए दोनों की आंखों में आंसू भर आए. मैं ने ध्यान से देखा तो दीवार पर 5 फुट की ऊंचाई पर लगा निशान अब भी नजर आ रहा था. मन तो हुआ, उन से कहूं, ‘आप की समस्या इतनी विकट नहीं है, जिस का समाधान न हो सके. ऐसे बहुत से परिवार हैं जहां नौकरी या बच्चों की पढ़ाई के कारण पतिपत्नी को अलगअलग शहरों में रहना पड़ता है. विभा और अमित भी छुट्टियां ले कर कभी नागपुर और कभी अमरावती में साथ रह सकते हैं, ’ पर चाह कर भी कह न सकी.

दूसरे दिन सुबह हमसब नाश्ता कर रहे थे कि किसी ने घंटी बजाई. मामाजी ने द्वार खोला तो सामने एक बुजुर्ग सज्जन खड़े थे. मामी ने धीरे से परिचय दिया, ‘‘दीनानाथजी, विभा के पिता.’’ पता चला कि विभा और अमित के मतभेदों के बावजूद वे बीचबीच में मामाजी से मिलने आते रहते हैं.

मामी अंदर जा कर उन के लिए भी नाश्ता ले आईं. दीनानाथ सकुचाते से बोले, ‘‘बहनजी, आप क्यों तकलीफ कर रही हैं, मैं घर से खापी कर ही निकला हूं.’’ फिर क्षणभर रुक कर बोले, ‘‘क्या करें भई, हम तो हजार बार विभा को समझा चुके कि अमित इतने ऊंचे पद पर है, पूर्वजों का जो कुछ है, वह सब भी तुम्हारे ही लिए है, नौकरी छोड़ कर ठाट से रहे. पर वह कहती है कि ‘मैं सिर्फ पैसा कमाने के लिए नौकरी नहीं कर रही हूं. इस काम का संबंध मेरे दिलोदिमाग से है. मैं ने अपना कैरियर बनाने के लिए रातरातभर पढ़ाई की है. नौकरी के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरी हूं. अब इस नौकरी को छोड़ देने में क्या सार्थकता है?’ ऐसे में आप ही बताइए,’’ उन्होंने बात अधूरी ही छोड़ दी.

मामाजी ने अखबार पढ़ने का बहाना कर के उन की बात को अनसुना कर दिया. परंतु मामी चुप न रह सकीं, ‘‘भाईसाहब, लड़की तो लड़की ही है, लेकिन हम बड़े लोगों को तो उसे यही शिक्षा देनी चाहिए कि वह अपनी घरगृहस्थी देखते हुए नौकरी कर सके तो जरूर करे. नौकरी के लिए घरपरिवार छोड़ दे, पति को छोड़ दे और मायके में जा बैठे, यह तो ठीक नहीं है.’’

यद्यपि मामी ने अपनी बात बड़ी सरलता और सहजता से कही थी परंतु उन का सीधा आक्षेप दीनानाथजी पर था. कुछ क्षण चुप रह कर वे बोले, ‘‘बहनजी, एक समय था जब लड़कियों को सुसंस्कृत बनाने के लिए ही शिक्षा दी जाती थी. लड़की या बहू से नौकरी करवाना लोग अपमान की बात समझते थे. पर अब तो सब नौकरी वाली, कैरियर वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहते हैं. इस कारण लड़कियों के पालनपोषण का ढंग ही बदल गया है. अब वे किसी के हाथ की कठपुतली नहीं हैं कि जब हम चाहें, तब नौकरी करने लगें और जब हम चाहें, तब नौकरी छोड़ दें.’’

कुछ देर सन्नाटा सा रहा. उन की बात का उत्तर किसी के पास नहीं था. इधरउधर की कुछ बातें कर के दीनानाथ उठ खड़े हुए. मामाजी उन्हें द्वार तक विदा कर के लौटे और बोले, ‘‘देखा बेटी, बुड्ढा कितना चालाक है. गलती मुझ से ही हो गई. शादी के पहले ही मुझे यह शर्त रख देनी थी कि हमारी मरजी होगी, तब तक लड़की से नौकरी करवाएंगे, मरजी नहीं होगी तो नहीं करवाएंगे.’’

उन की इस शेष शर्त को सुन कर मैं अवाक रह गई. Hindi Kahani

Family Kahani In Hindi: उपहार – क्यों बीवी के सामने गिड़गिड़ाया बैजू?

Family Kahani In Hindi: बैजू की साली राधा की शादी बैजू के ताऊ के बेटे सोरन के साथ तय हो गई. बैजू और उस की पत्नी अनोखी नहीं चाहते थे कि यह शादी हो, पर सोरन के बड़े भाई सौदान ने राधा के भाई बिल्लू को बिना ब्याज के कर्ज दे कर यह सब जुगाड़ बना लिया था. अब ऊपरी खुशी से बैजू और अनोखी इस शादी को कराने में जुट गए. शादी से पहले ही राधा ने जीजा से अपने लिए एक रंगीन टीवी उपहार में मांग लिया.

बैजू ने दरियादिली से मान लिया, पर जब अनोखी ने सुना, तो वह जलभुन गई. घर आते ही वह आंखें तरेर कर बोली, ‘‘अपने घर में कालासफेद टैलीविजन नहीं और तुम साली को रंगीन टीवी देने चले हो.

‘‘चलो, सिर्फ साली को देते तो ठीक था, लेकिन उस की शादी में टीवी देने का मतलब है कि सोरन के घर टीवी आएगा. हम टीवी दे कर भी बिना टीवी वाले रहेंगे और सोरन बिना पैसा दिए ही टीवी देखने का मजा उठाएगा.

‘‘तुम आज ही जा कर राधा से टीवी के लिए मना कर दो, नहीं तो मेरीतुम्हारी नहीं बनेगी.’’

बैजू अनोखी की बात सुन कर सकपका गया. उसे तो खुद टीवी देने वाली बात मंजूर नहीं थी, लेकिन राधा ने रंगीन टीवी उपहार में मांगा, तो वह मना न कर सका.

समाज के लोग कहेंगे कि मर्द हो कर अपनी जबान का पक्का नहीं है. यह भी कहेंगे कि वह औरत की बातों में आ गया. सब उसे जोरू का गुलाम कहेंगे.

बैजू इतना सोच कर अपनी बीवी के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘अनोखी, मैं तेरे हाथ जोड़ता हूं. इतने पर भी तू न माने, तो मैं तेरे पैरों में गिर जाऊंगा. इस बार की गलती के लिए मुझे माफ कर दे. आगे से मैं तुझ से पूछे बिना कोई काम न करूंगा.

‘‘मैं ने राधा को टीवी देने की बात कह दी है, अब मैं अपनी बात से पीछे नहीं हट सकता. तू खुद ही सोच कि क्या मेरी बदनामी में तेरी बदनामी नहीं होगी? लोग मुझे झूठा कहेंगे, तो तुझे भी तो झूठे की बीवी कहेंगे. महल्ले की औरतें ताने मारमार कर तेरा जीना मुहाल कर देंगी. मुझे मजबूर मत कर.’’

अनोखी थोड़ी चालाक भी थी. उसे पता था कि कहने के बाद टीवी न देने से महल्ले में कितनी बदनामी होगी. वह अपने पति से बोली, ‘‘ठीक है, इस बार मैं तुम्हें माफ कर देती हूं, लेकिन आगे से किसी की भी शादी में ऐसी कोई चीज न देना, जो हमारे घर में न हो…

‘‘और तुम यह मत समझना कि मैं बदनामी से डरती हूं. मैं तो केवल तुम्हारे मनुहार की वजह से यह बात मान गई हूं.’’

राधा और सोरन की शादी हुई. बैजू ने अपने दिल पर पत्थर रख कर रंगीन टीवी का तोहफा शादी में दे दिया.

अनोखी भी टीवी की तरफ देखदेख कर अपना दिल थाम लेती थी. मन होता था कि उस टीवी को उठा कर अपने घर में रख ले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी.

अनोखी का सपना था कि उस के घर में भी रंगीन टीवी हो. उस टीवी पर आने वाले सासबहू की लड़ाई से लबरेज धारावाहिक धूमधाम से चलें. लेकिन ये सब अरमान सीने में ही दबे रह गए.

राधा सोरन के घर में आ कर रहने लगी. थोड़े ही दिनों में राधा ने सोरन से कह कर जीजा का दिया रंगीन टीवी चलाना शुरू कर दिया. टीवी इतनी तेज आवाज में चलता कि बगल में बने बैजू के घर में बैठी अनोखी के कानों तक सासबहू के भड़कते संवाद गूंजते.

अनोखी का दिल होता कि जा कर टीवी देख ले, लेकिन उस ने कसम खाई थी कि जब तक वह अपने घर में भी रंगीन टीवी न मंगवा लेगी, तब तक राधा के घर टीवी पर कोई प्रोग्राम न देखने जाएगी.

राधा ने एक दिन अपनी सगी बहन अनोखी से कहा भी, ‘‘जीजी, तू मेरे घर पर टीवी देखने क्यों नहीं आती? कहीं तुझे भी महल्ले के लोगों की तरह मुझ से जलन तो नहीं होती?’’

अनोखी इस बात को सुन कर खून का घूंट समझ कर पी गई. उस ने राधा को कोई जवाब न दिया, लेकिन दोचार दिनों में ही आसपड़ोस की औरतों से उसे सुनने को मिला कि राधा सब से कहती है, ‘‘मेरी बड़ी बहन मुझ से दुश्मन की तरह जलती है. क्योंकि मेरे घर में रंगीन टीवी है और उस के घर कालासफेद टीवी भी नहीं है.’’

अनोखी इस बात को भी खून का घूंट समझ कर पी गई. लेकिन एक दिन अनोखी का लड़का रोता हुआ घर आया. जब अनोखी ने उस से रोने की वजह पूछी, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मौसी ने मुझे टीवी नहीं देखने दिया.’’

अपने लड़के से यह बात सुन कर अनोखी का अंगअंग जल कर कोयला हो गया. आखिर उस के पति का दिया टीवी उसी का लड़का क्यों नहीं देख सकता? शाम तक अनोखी इसी आग में जलती रही.

जब बैजू घर आया, तो उस ने तुगलकी फरमान सुना दिया, ‘‘तुम अभी जा कर उस टीवी को उठा लाओ. आखिर तुम ने ही तो उस को दिया है. जब हमारा दिया हुआ टीवी हमारा ही लड़का न देख सके, तो क्या फायदा… और वह राधा की बच्ची सारे महल्ले की औरतों से मेरी बदनामी करती फिरती है. तुम अभी जाओ और टीवी ले कर ही घर में कदम रखना.’’

अनोखी की लाल आंखें देख बैजू सकपका गया. अनोखी को जवाब भी देने की उस में हिम्मत न हुई. वैसे, गुस्सा तो बैजू को भी आ रहा था. वह सीधा सोरन के घर पहुंच गया.

राधा टीवी देख रही थी. बैजू को देखते ही वह मुसकरा कर बोली, ‘‘आओ जीजा, तुम भी टीवी देख लो.’’

बैजू थोड़ा नरम हुआ, लेकिन अनोखी की याद आते ही फिर से गरम हो गया. वह थोड़ी देर राधा को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘राधा, यह टीवी तुम्हें वापस करना होगा. मैं ने ही तुम्हें दिया था और मैं ही वापस ले जाऊंगा.’’

बैजू के मुंह से टीवी की वापसी वाली बात सुन कर राधा के रोंगटे खड़े हो गए. वह बोली, ‘‘जीजा, तुम्हें क्या हो गया है? आज तुम ऐसी बातें क्यों करते हो? यह टीवी तो तुम ने मुझे उपहार में दिया था.’’

बैजू कुछ कहता, उस से पहले ही महल्ले की कई औरतें और लड़कियां राधा के घर में आ पहुंचीं. उन्हें रंगीन टीवी पर आने वाला सासबहू का सीरियल देखना था.

शायद बैजू गलत समय पर राधा से टीवी वापस लेने आ पहुंचा था. इतने लोगों को देख बैजू के होश उड़ गए. भला, इतने लोगों के सामने उपहार में दिया हुआ टीवी कैसे वापस ले जाएगा. महल्ले की औरतों को देख कर राधा की हिम्मत बढ़ गई.

एक औरत ने राधा से पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है राधा बहन, इस तरह उदास क्यों खड़ी हो?’’

राधा शिकायती लहजे में उन सब औरतों को सुनाते हुए बोली, ‘‘देखो न बहन, जीजा ने पहले मुझे शादी के समय उपहार में यह टीवी दे दिया, लेकिन अब वापस मांग रहे हैं. भला, यह भी कोई बात हुई.’’

राधा की यह बात सुन कर बैजू सकपका गया. अब वह क्या करे. टीवी वापस लेने में तो काफी बदनामी होने वाली थी. उस ने थोड़ी चालाकी से काम लिया. वह गिरगिट की तरह एकदम रंग बदल गया और जोर से हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे राधा, तुम तो बड़ी बुद्धू हो. मैं तो मजाक कर रहा था.

‘‘तुम मेरी सगी और एकलौती साली हो, भला तुम से भी मैं मजाक नहीं कर सकता. तुम बड़ी भोली हो, सोचती भी नहीं कि क्या मैं यह टीवी वापस ले जा सकता हूं… पगली कहीं की.’’

बैजू की इस बात पर राधा दिल पर हाथ रख कर हंसने लगी और बोली, ‘‘जीजा, तुम ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी. फिर तुम बिना साली के भटकते फिरते. जिंदगीभर तुम किसी लड़की से जीजा सुनने को तरसते.’’

इस बात पर सभी औरतों की हंसी छूट पड़ी. सारा माहौल फिर से खुशनुमा हो गया. बैजू को एक पल भी वहां रहना अच्छा नहीं लग रहा था. वह राधा से बोला, ‘‘अच्छा राधा, अब मैं चलता हूं. मैं तो यह देखने आया था कि टीवी सही चल रहा है कि नहीं.’’ राधा अपने जीजा के मुंह से इतनी फिक्र भरी बात सुन खुश हो गई और बोली, ‘‘जीजा, तुम आए हो तो शरबत पीए बिना न जाने दूंगी. एक मिनट बैठ जाओ, अभी बना कर लाती हूं.’’

राधा ने खुशीखुशी शरबत बना कर बैजू को पिला दिया. शरबत पीने के बाद बैजू उठ कर अपने घर को चल दिया. उसे पता था कि अनोखी उस का क्या हाल करेगी. कहेगी कि साली की मुसकान से घायल हो गए. उस की मीठीमीठी बातों में फंस गए. उस ने शरबत पिला कर तुम को पटा लिया. उस के घर में ही जा कर रहो, अब तुम मेरे पति हो  ही नहीं. लेकिन बैजू भी क्या करता. भला उपहार को किस मुंह से वापस ले ले, वह भी इतनी औरतों के सामने. ऊपर से जिस से उपहार वापस लेना था, वह उस की सगी और एकलौती साली थी. बैजू ने सोच लिया कि वह बीवी का हर जुल्म सह लेगा, लेकिन दिया हुआ उपहार वापस नहीं लेगा. Family Kahani In Hindi

Family Story In Hindi: सपना पूरा हो गया – क्या पंकेश ने शादी की?

Family Story In Hindi: ‘‘पंकेश, अब तुम बड़े हो गए हो,’’ मां यशोदा ने आ कर जब यह कहा, तब पंकेश बोला, ‘‘मेरी अच्छी मम्मी, बेटा कितना ही बड़ा हो जाता है, वह अपनी मम्मी की नजर में छोटा ही रहता है. अब बताओ मम्मी, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मैं कह रही हूं कि तू अब शादी करने की हां कर दे.’’

‘‘अरे मम्मी, फिर वही बात. मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है,’’ एक बार फिर इनकार करते हुए पंकेश बोला.

‘‘अरे, अभी नहीं करेगा, तब क्या बूढ़ा हो कर करेगा?’’ यशोदा नाराज हो कर बोलीं.

‘‘ओह मम्मी, मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे अपना कैरियर बनाना?है. अभी से शादी के बंधन में बांध दोगी, तब मैं कैसे कैरियर बनाऊंगा.’’

‘‘कैरियरकैरियर सुनसुन कर मेरे तो कान पक गए हैं,’’ फिर गुस्से से यशोदा बोलीं, ‘‘तेरी बैंक में नौकरी लग गई. अब तुझे कौन सा कैरियर बनाना है?’’

‘‘अरे मम्मी, मुझे बहुत बड़ा अफसर बनना है. मैं उसी की तैयारी कर रहा हूं.’’

‘‘मैं भी चाहती हूं कि तू बहुत बड़ा अफसर बन जाए, मगर शादी के बाद भी तू तैयारी कर सकता है,’’ समझाते हुए यशोदा बोलीं, ‘‘मैं चाहती हूं कि मेरे सामने तेरी शादी हो जाए, ताकि बाकी जिंदगी सुखसंतोष से गुजार सकूं.’’

‘‘ओह मम्मी, ऐसी बात मत करो. तुम अभी 100 साल जिंदा रहोगी,’’ मां के गले लगते हुए पंकेश बोला.

‘‘जिंदगी का क्या भरोसा. तेरे पापा अगर आज होते, तब मैं इतनी गरज नहीं करती, फिर भी तू मेरी एक भी नहीं सुनता है.’’

‘‘अरे मम्मी, चिंता मत पालो, बस मुझे इम्तिहान देने दो. फिर शादी भी कर लूंगा,’’ भरोसा दिलाते हुए पंकेश बोला, ‘‘अभी तो मैं दफ्तर जा रहा हूं,’’ कह कर पंकेश दफ्तर चला गया.

यशोदा बड़बड़ाती रहीं. वे जब भी शादी की बात करती हैं, पंकेश इनकार कर देता. दिनरात उस की शादी की चिंता में घुली रहती हैं. काश, पंकेश के पिता सुनील जिंदा होते, तब यह नौबत भी नहीं आती. मगर यशोदा को चैन कहां मिलता.

पंकेश उन का एकलौता बेटा है. यह 3 लड़कियों के बाद तब पैदा हुआ, जब बड़ी बेटी सारिका जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. दूसरी वाली प्रभा और तीसरी वाली निर्मला. तीनों के जन्म का फर्क 2-3 साल का रहा. मगर पंकेश और निर्मला के बीच 10 साल का फर्क?है.

पंकेश के पिता सुनील सरकारी दफ्तर में औडिटर थे. जिस दिन पद से रिटायर हुए, उस के पहले उन्होंने खूब ऊपरी कमाई कर ली. उन्होंने तीनों बेटियों की शादी बड़े ही धूमधाम से की. बेटे पंकेश को भी अच्छी तालीम दिलाई. वह बैंक में बाबू बन गया.

अभी पंकेश को लगे 2 महीने भी नहीं हुए थे कि सुनील को हार्टअटैक आ गया. उन्हें अस्पताल ले गए, मगर बीच रास्ते में ही गुजर गए. यशोदा को इस तरह बीच रास्ते छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगा. तब कई महीनों तक वे इस गम से न उबर पाई थीं.

तीनों बेटियां भी खूब दबाव डाल रही थीं कि भैया की कब शादी कर रही हो, मगर पंकेश तो शादी के लिए हां भी नहीं कर रहा था. उस की शादी के लिए समाज के रिश्ते भी आए, मगर उसे एक भी समझ नहीं आई.

तभी यशोदा को बचपन की एक सहेली जमना याद आई, जो पिछले साल एक रिश्तेदार की शादी में उज्जैन गई थी. जब वह छत्री चौक पर एक दुकान में सामान खरीदने आईं, उसी दुकान से एक सजी हुई औरत उतर रही थी. दोनों की आंखें एकदूसरे को बहुत देर तक देखती रहीं, तब वह औरत बोली, ‘‘आप यशोदा हो न?’’

‘‘हां…’’ जमना यशोदा को गले लगाते हुए बोली, ‘‘कई सालों के बाद मिली हो तुम. तेरे तो बच्चे भी बड़े हो गए होंगे. उन की शादियां भी हो गई होंगी. तू तो नानीदादी भी बन गई होगी.’’

‘‘बसबस… सबकुछ एक ही सांस में पूछ लोगी,’’ यशोदा ने कहा.

‘‘ठीक?है. पहले एक ही सवाल पूछती हूं, जीजाजी कैसे हैं?’’ जब जमना ने यह सवाल पूछा, तब यशोदा का मन उदास हो गया.

तब जमना अफसोस जताते हुए बोली, ‘‘सौरी, मैं ने तेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया. मैं सब समझ गई. खैर छोड़, बच्चे कितने हैं?’’

‘‘3 लड़कियों के बाद एक लड़का है,’’ यशोदा ने जवाब दिया.

‘‘सब की शादी कर दी?’’

‘‘तीनों लड़कियों की शादी तो तेरे जीजाजी के रहते कर दी थी, मगर लड़का शादी नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्यों नहीं कर रहा है? बेरोजगार होगा, इसलिए नहीं कर रहा होगा.’’

‘‘नहीं, बैंक में है वह.’’

‘‘फिर क्यों नहीं कर रहा?है?’’

‘‘यही तो समझ में नहीं आ रहा?है.’’

‘‘तब समझने की कोशिश करो न.’’

‘‘सब तरह से समझा चुकी हूं, मगर वह तो…’’ कह कर यशोदा रुक गई. फिर पलभर रुक कर वे बोलीं, ‘‘तू बता जीजाजी के क्या हाल हैं? क्या करते हैं वे?’’ सुन कर जमना कोई जवाब नहीं

दे पाई. उस का हंसता हुआ चेहरा

मुरझा गया.

तब यशोदा बोली, ‘‘अरे, तुझे सांप क्यों सूंघ गया?’’

‘‘मैं मैडम चंपा के साथ देह धंधा करती हूं,’’ कह कर जमना ने अपने मन का दर्द कह दिया, फिर पलभर रुक कर वह बोली, ‘‘अब यह मत पूछना कि मैं ने मैडम चंपा को क्यों चुना?’’

यशोदा अब सारी बात समझ चुकी थी. वह आगे कुछ नहीं बोली. उसी की तो गलती की सजा जमना भुगत रही थी. तब जमना फिर बोली, ‘‘आगे सुन, मेरे एक लड़की भी है. उस के पिता कौन हैं, मत पूछना.’’

यशोदा का कालेज के दिनों में एक बौयफ्रैंड था. यशोदा अकसर उस के साथ रात बिता लेती, पर अपनी सुरक्षा के लिए जमना को भी साथ ले जाती थी.

एक रात यशोदा के बौयफ्रैंड ने जमना से भी जबरन संबंध बना लिया. अब वह शिकायत करती तो दोनों को फंसना पड़ता, इसलिए लड़के से संबंध तोड़ डाले, पर जमना पेट से हो गई. कहां गर्भपात कराए, यह उन्हें नहीं मालूम था.

उन के कालेज के पास ही चंपा नई लड़कियों को फंसाने के लिए घूमती थी. उस की कई लड़कियों से दोस्ती थी. जमना के मामले में चंपा ने उस की मदद की और अपने घर में बेटी का जन्म कराया. जमना की पूरी देखभाल की और फिर उसे देह धंधे में उतर जाने की सलाह दी.

जमना की पढ़ाई छूट गई थी और उस घर टूट गया था. मैडम चंपा ने यशोदा की इज्जत रखी और जमना की जान बचाई. यशोदा की शादी उस के मातापिता ने बिना अड़चन के कर दी.

‘‘अब तक तो तुम्हारी लड़की भी बड़ी हो गई होगी,’’ यशोदा ने पूछा.

‘‘वह 12वीं में पढ़ रही है. 3 साल की थी, तभी उसे होस्टल में डाल दिया था. वार्डन ही उसे संभालती है. उन को ही वह मांबाप मानती है.’’

‘‘वह जानती?है कि तू धंधा करती है?’’

‘‘हां, अब तो वह समझदार हो गई है. वह सब जानती है. मैडम चंपा तो उसे भी यह काम कराना चाहती है, मगर मैं नहीं चाहती.’’

‘‘तब उसे होस्टल में भी कब तक रखोगी?’’

‘‘उस की शादी करना चाहती हूं,’’ अभी जमना यह बात कह ही रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. वह कुछ देर बात करती रही, फिर फोन बंद करते हुए बोली, ‘‘माफ कर यशोदा, तुम सालों बाद मिली हो. पूरी बात नहीं हो सकी. मुझे मैडम ने बुलाया है. एक ग्राहक मेरा इंतजार कर रहा है.

‘‘हां, फोन नंबर हम एकदूसरे के ले लेते हैं, ताकि जरूरत पड़े तब फोन कर के सुखदुख बांट सकें.’’ फिर वे दोनों एकदूसरे का फोन नंबर ले कर चली गईं.

तब यशोदा का खयाल जमना पर गया. उस की लड़की होस्टल में पढ़ रही है. मैडम चंपा उसे कोठे पर बिठाने की जिद कर रही है. मगर जमना उस की शादी कर के घर बसाना चाहती है. मगर यह कैसे मुमकिन होगा? कौन करेगा शादी? जबकि उस के पिता का भी पता नहीं?है.

तब यशोदा के मन में विस्फोट हुआ. उस ने सोचा कि जमना से बात कर के कुछ दिनों के लिए वह उस की बेटी को अपने यहां बुला ले. पंकेश और उस में प्यार हो जाएगा, तब पंकेश खुद शादी के लिए राजी हो जाएगा. यही सोच कर वह मोबाइल लगा कर बात करने लगी.

जमना अपनी लड़की को भेजने के लिए कुछ शर्तों के साथ तैयार हो गई.

एक हफ्ते बाद यशोदा जमना की लड़की विभा को अपने घर ले आईं. पंकेश का विभा से परिचय कराते हुए वे बोलीं, ‘‘देख पंकेश, यह मेरी सहेली जमना की लड़की विभा है, जो उज्जैन में रहती है. पिछली बार जब मैं उज्जैन गई थी न, तब जमना से बात नहीं हो पाई थी. उस ने बुलाया, तो मैं वहां गई थी. यह अकेली होस्टल में रहती है, वहीं पढ़ाई करती है. मैं ने सोचा कि कुछ दिन यहां रह लेगी, तो हवापानी बदल जाएगा.’’

‘‘बहुत अच्छा किया मम्मी,’’ कह कर जब पंकेश ने विभा की तरफ देखा तो देखता ही रह गया. गदराई जवानी, आंखें हिरनी की तरह, गोरा सुंदर मुखड़ा कई देर तक देखता ही रहा.

तब यशोदा बोलीं, ‘‘क्या देख रहा है इसे. अरे, इसे जी भर के देख लेना. इसे यहां थोड़े दिन रहने के लिए लाई हूं. चाहे तो…

‘‘खैर, यह थक गई होगी. इसे थोड़ा आराम करने दे,’’ कह कर विभा को यशोदा भीतर ले गईं. मगर पंकेश के सामने विभा का चेहरा न जाने कितनी देर तक घूमता रहा.

विभा को आए 8-9 दिन हो गए थे. पंकेश उस का दीवाना हो गया. विभा भी पंकेश का बराबर ध्यान रखती थी. जैसे ही पंकेश दफ्तर जाता, उस के लिए टिफिन तैयार कर देती थी. पंकेश घर आता, तो वह चाय लिए खड़ी मिलती.

एक दिन चाय देते हुए विभा ने पूछा, ‘‘आप रोजाना यह क्या पढ़ाई करते

रहते हैं.’’

‘‘मुझे बहुत बड़ा अफसर बनना है, उस की पढ़ाई कर रहा हूं.’’

‘‘यह तो अच्छी बात है…’’ शरमाते हुए विभा बोली, ‘‘एक बात पूछूं?’’

‘‘हां, पूछो?’’

‘‘आप की मम्मीजी आप से बहुत नाराज हैं.’’

‘‘मुझ से क्यों भला…?’’

‘‘आप उन्हें बहू ला कर नहीं दे रहे हैं. आप क्यों नहीं कर रहे हैं शादी?’’ जब विभा ने यह सवाल पूछा, तब पंकेश सोच में पड़ गया कि क्या जवाब दे? कुछ पल तक वह कुछ नहीं बोला, तो विभा ने फिर पूछा, ‘‘आप ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. शादी तो करनी है. मां के लिए बहू लानी है.’’

‘‘तो कर लीजिए न शादी?’’

‘‘कोई मेरे लायक लड़की तो मिले.’’

‘‘आप के लायक लड़की कब मिलेगी?’’ मुसकरा कर विभा ने पंकेश की ओर देखा, तब पंकेश ने उसी लहजे में मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार हो?’’

जवाब देने के बजाय विभा मुसकराते हुए भीतर चली गई. पंकेश को समझते देर न लगी कि हरी झंडी मिल गई.

तभी यशोदा ने आ कर पूछा, ‘‘क्या सोच रहा है पंकेश?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ पंकेश अपने भावों को छिपाते हुए बोला.

‘‘मैं ने तेरे चेहरे को पढ़ लिया. तू कुछ छिपा रहा है. क्या छिपा रहा है?’’

‘‘कहा न मम्मी, कुछ नहीं.’’

‘‘मैं तेरी मां हूं. मुझ से कुछ भी मत छिपा. जो बात है बोल दे. कहने से मन का बोझ हलका हो जाता है,’’ दबाव बनाते हुए यशोदा बोलीं, ‘‘अगर तू नहीं कहना चाहता है, तो मैं कह दूं कि तेरे मन में क्या चल रहा है.’’

‘‘हां मम्मी, आप ही कह दो. मैं कहने में हिचक रहा हूं.’’

‘‘तो सुन, तू मन ही मन विभा को चाहने लगा है और उस से शादी भी करना चाहता?है.’’

‘‘आप ने तो मम्मी मेरे मन की बात छीन ली,’’ खुशी से पंकेश बोला.

‘‘जब से विभा को ले कर मैं आई थी न, पहले दिन से ही तेरा झुकाव उस की ओर हो गया था. यह मैं ने तेरी आंखों में सबकुछ पढ़ लिया था.’’

‘‘तब तो मम्मी आप अपनी सहेली से बात कर लो न.’’

‘‘सब बातें पहले ही कर चुकी हूं. मेरी सहेली पूरी तरह से राजी हो गई. मगर उस की कुछ शर्तें हैं.’’

‘‘क्या शर्तें हैं मम्मी?’’ पंकेश ने पूछा.

‘‘इस की मम्मी क्या करती हैं, यह तुम नहीं पूछोगे.’’

‘‘बिलकुल नहीं पूछूंगा मम्मी.’’

‘‘समझ लो कि इस की शादी का इंतजाम होस्टल वाले करेंगे और इस के पिता इस के पैदा होते ही गुजर गए थे. जहां भी इस की शादी होगी, मेरी सहेली सिर्फ फेरे के समय 2 घंटे के लिए ही आएगी.’’

‘‘मम्मी, आप की सहेली की हर बात मंजूर है…’’ खुद से पंकेश बोला, ‘‘मैं तो विभा से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं सहेली से बात करती हूं,’’ कह कर यशोदा मोबाइल ले कर जमना से बात करने लगी.

उधर पंकेश ने जो सपना देखा था, वह पूरा हो गया, साथ में यशोदा का भी. उस के मन से बोझ उतर गया था. जमना के अहसानों का बदला उस ने चुका दिया था. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: संतुलन – रोहित का क्यों बढ़ा अपने माता पिता के साथ झगड़ा

Family Story In Hindi: झगड़ाशुरू कराने वाली बात बड़ी नहीं थी, पर बहसबाजी लंबी खिंच जाने से रोहित और उस के पिता के बीच की तकरार एकाएक विस्फोटक बिंदु पर पहुंच गई.

‘‘जोरू के गुलाम, तुझे अपनी मां और मेरी जरा भी फिक्र नहीं रही है. अब मुझे भी नहीं रखना है तुझे इस घर में,’’ ससुरजी की इस बात ने आग में घी का काम करते हुए रोहित के गुस्से को इतना बढ़ा दिया कि वे उसी समय अपने जानकार प्रौपर्टी डीलर से मिलने चले गए. मैं बहुत सुंदर हूं और रोहित मेरे ऊपर पूरी तरह लट्टू हैं. मेरी ससुराल वालों के अलावा उन के दोस्त और मेरे मायके वाले भी मानते हैं कि मैं उन्हें अपनी उंगलियों पर बड़ी आसानी से नचा सकती हूं. मेरे सासससुर ने अपनी छोटी बहू यानी मुझे कभी पसंद नहीं किया. वे दोनों हर किसी के सामने यह रोना रोते कि मैं ने उन के बेटे को अपने रूपजाल में फंसा कर मातापिता से दूर कर दिया है. वैसे मुझे पता था कि रोहित की घर से अलग हो जाने की धमकी से घबरा कर मेरी सास बिगड़ी बात संभालने के लिए जल्दी मुझे से मिलने मेरे कमरे  में आएंगी. गुस्से में घर से अलग कर देने की बात मुंह से निकालना अलग बात है, पर मेरे सासससुर जानते हैं कि हम दोनों के अलावा उन की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. ऊपरी मंजिल पर रह रहे बड़े भैया और भाभी मुझ से तो क्या, घर में किसी से भी ढंग से नहीं बोलते हैं.

मैं बहुत साधारण परिवार में पलीबढ़ी थी. इस में कोई शक नहीं कि अगर मैं बेहद सुंदर न होती, तो मुझ से शादी करने का विचार अमीर घर के बेटे रोहित के मन में कभी पैदा न होता. मेरे मातापिता ने बचपन से ही मेरे दिलोदिमाग में यह बात भर दी थी कि हर तरह की खुशियां और सुख पाना उन की परी सी खूबसूरत बेटी का पैदाइशी हक है. अपनी सुंदरता के बल पर मैं दुनिया पर राज करूंगी, किशोरावस्था में ही इस इच्छा ने मेरे मन के अंदर गहरी जड़ें जमा ली थीं. रोहित से मेरी पहली मुलाकात अपनी एक सहेली के भाई की शादी में हुई थी.वे जिस कार से उतरे उस का रंग और डिजाइन मुझे बहुत पसंद आया था. सहेली से जानकारी मिली कि वे अच्छी जौब कर रहे हैं. इस से उन से दोस्ती करने में मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी. उन की आंखों में झांकते हुए मैं 2-3 बार बड़ी अदा से मुसकराई, तो वे फौरन मुझ में दिलचस्पी लेने लगे. मौका ढूंढ़ कर मुझ से बातें करने लगते, तो मैं 2-4 वाक्य बोल कर कहीं और चली जाती. मेरे शर्मीले स्वभाव ने उन्हें मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने के लिए और ज्यादा उतावला कर दिया. उस रात विदा लेने से पहले उन्होंने मेरा फोन नंबर ले लिया. अगले दिन से ही हमारे बीच फोन पर बातें होने लगीं. सप्ताह भर बाद हम औफिस खत्म होने के बाद बाहर मिलने लगे.

हमारी चौथी मुलाकात एक बड़े पार्क में हुई. वहां एक सुनसान जगह का फायदा उठाते हुए उन्होंने अचानक मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ कर मुझे चूम लिया. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण मैं बहुत जोर से उन से लिपट गई. बाद में उन की बांहों के घेरे से बाहर आ कर जब मैं सुबकने लगी, तो उन की उलझन और बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई. बहुत पूछने पर भी न मैं ने उन्हें अपने आंसू बहाने का कारण बताया और न ही ज्यादा देर उन के साथ रुकी. पूरे 3 दिनों तक मैं ने उन से फोन पर बात नहीं की तो चौथे दिन शाम को वे मुझे मेरे औफिस के गेट के पास मेरा इंतजार करते नजर आए. उन के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने उदास लहजे में कहा, ‘‘आई ऐम सौरी पर हमें अब आपस में नहीं मिलना चाहिए, रोहित.’’

‘‘पर क्यों? मुझे मेरी गलती तो बताओ?’’ वे बहुत परेशान नजर आ रहे थे.

‘‘तुम्हारी कोई गलती नहीं है.’’

‘‘तो मुझ से मिलना क्यों बंद कर रही हो?’’

उन के बारबार पूछने पर मैं ने नजरें झुका कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो रही हूं…तुम्हारे साथ नजदीकियां बढ़ती रहीं तो मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सकूंगी.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ उन की आंखों में उलझन के भाव और ज्यादा बढ़ गए.

‘‘हम ऐसे ही मिलते रहे तो किसी भी दिन कुछ गलत घट जाएगा…तुम मुझे चीप लड़की समझो, यह सदमा मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. साधारण से घर की यह लड़की तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के सपने नहीं देख सकती है. तुम मुझ से न मिला करो, प्लीज,’’ भरे गले से अपनी बात कह कर मैं कुछ दूरी पर इंतजार कर रही अपनी सहेली की तरफ चल पड़ी. बाद में रोहित ने बारबार फोन कर के मुझे फिर से मिलना शुरू करने के लिए राजी कर लिया. मेरी हंसीखुशी उन के लिए दिनबदिन ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती चली गई. मेरे रंगरूप का जादू उन के सिर चढ़ कर ऐसा बोला कि महीने भर बाद ही उन के घर वाले हमारे घर रिश्ता पक्का करने आ पहुंचे. उस दिन हुई पहली मुलाकात में ही मुझे साफ एहसास हो गया कि यह रिश्ता उन के परिवार वालों को पसंद नहीं था. मेरी शादी को करीब 6 महीने हो चुके हैं और अब तक मेरे सासससुर और जेठजेठानी की मेरे प्रति नापसंदगी अपनी जगह कायम है. अपने पिता से झगड़ा करने के बाद रोहित को घर से बाहर गए 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि सासूमां मेरे कमरे में आ पहुंचीं. उन की झिझक और बेचैनी को देख कर कोई भी कह सकता था कि बात करने के लिए मेरे पास आना उन्हें अपमानित महसूस करा रहा है.

मेरे सामने झुकना उन की मजबूरी थी. उन का अपनी बड़ी बहू नेहा से 36 का आंकड़ा था, क्योंकि बेहद अमीर बाप की बेटी होने के कारण वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी. मेरे सामने बैठते ही सासूमां मुझे समझाने लगीं, ‘‘ घर में छोटीबड़ी खटपट, तकरार तो चलती रहती है, पर तू रोहित को समझाना कि वह घर छोड़ कर जाने की बात मन से बिलकुल निकाल दे.’’ मैं ने बेबस से लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप तो जानती ही हैं कि वे कितने जिद्दी इनसान हैं. मैं उन्हें घर से अलग होने से कब तक रोक सकूंगी? आप पापा को भी समझाओ कि वे घर से निकाल देने की धमकी तो बिलकुल न दिया करें.’’

‘‘उन्हें तो तब तक अक्ल नहीं आएगी जब तक गुस्से के कारण उन के दिमाग की कोई नस नहीं फट जाएगी.’’ ‘‘ऐसी बातें मुंह से न निकालिए, प्लीज,’’ मेरा मन ससुरजी के अपाहिज हो जाने की बात सोच कर ही बेचैनी और घबराहट का शिकार हो उठा था. कुछ देर तक अपनी व ससुरजी की गिरती सेहत के दुखड़े सुनाने के बाद सासूजी चली गईं. हम घर से अलग नहीं होंगे, मुझ से ऐसा आश्वासन पा कर उन की चिंता काफी हद तक कम हो गई थी. उस रात मुझे साथ ले कर रोहित अपने दोस्त की शादी की सालगिरह की पार्टी में जाना चाहते थे. उन का यह कार्यक्रम खटाई में पड़ गया, क्योंकि ससुरजी को सुबह से 5-6 बार उलटियां हो चुकी थीं. औफिस से आने के बाद जब उन्होंने मेरे जल्दी तैयार होने के लिए शोर मचाया, तो घर में क्लेश शुरू हो गया और बात धीरेधीरे बढ़ती चली गई.

सचाई यही है कि कुछ कारणों से मैं खुद भी रोहित के दोस्त द्वारा दी जा रही कौकटेल पार्टी में नहीं जाना चाहती थी. आज मैं जिंदगी के उसी मुकाम पर हूं जहां होने के सपने मैं हमेशा देखती आई हूं. संयोग से मैं ने जिस ऐशोआराम भरी जिंदगी को पाया है, उसे नासमझी के कारण खो देने का मेरा कोई इरादा नहीं था. रोहित की एक निशा भाभी हैं, जिन के अपने पति सौरभ के साथ संबंध बहुत खराब चल रहे हैं. उन के बीच तलाक हो कर रहेगा, ऐसा सब का मानना है. मैं ने पिछली कुछ पार्टियों में नोट किया कि फ्लर्ट करने में एक्सपर्ट निशा भाभी रोहित को बहुत लिफ्ट दे रही हैं. यह सभी जानते हैं कि एक बार बहक गए कदमों को वापस राह पर लाना आसान नहीं होता है. रोहित को निशा से दूर रखने के महत्त्व को मैं अपने अनुभव से बखूबी समझती हूं, क्योंकि अपने पहले प्रेमी समीर को मैं खुद अब तक पूरी तरह से नहीं भुला पाई हूं.

वह मेरी सहेली शिखा का बड़ा भाई था. मैं 12वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी करने उन के घर पढ़ने जाती थी. मेरी खूबसूरती ने उसे जल्दी मेरा दीवाना बना दिया. उस की स्मार्टनैस भी मेरे दिल को भा गई. उन के घर में कभीकभी हमें एकांत में बिताने को 5-10 मिनट भी मिल जाते थे. इस छोटे से समय में ही उस के जिस्म से उठने वाली महक मुझे पागल कर देती थी. उस के हाथों का स्पर्श मेरे तनमन को मदहोश कर मेरे पूरे वजूद में अजीब सी ज्वाला भर देता था. एक रविवार की सुबह जब उस की मां बाजार जाने को निकलीं. मां के बाहर जाते ही समीर बाहर से घर लौट आया. हमें कुछ देर की मौजमस्ती करने के लिए किसी तरह का खतरा नजर नहीं आया, तो हम बहुत उत्तेजित हो आपस में लिपट गए. फिर गड़बड़ यह हुई कि उस की मां पर्स भूल जाने के कारण घर से कुछ दूर जा कर ही लौट आई थीं. दरवाजा खोलने के बाद समीर और मैं अपनी उखड़ी सांसों और मन की घबराहट को उन की अनुभवी नजरों से छिपा नहीं पाए थे. उन्होंने मुझे उसी वक्त घर भेज दिया और कुछ देर बाद आ कर मां से मेरी शिकायत कर दी. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि मेरी शिखा से दोस्ती टूट गई और अपने मातापिता की नजरों में मैं ने अपनी इज्जत गंवा दी.

कच्ची उम्र में समीर के साथ प्यार का चक्कर चलाने की मूर्खता कर मैं ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी. मेरे सजनेसंवरने पर भी पूरी तरह से पाबंदी लग गई. मां की रातदिन की टोकाटाकी और पापा का मुझ से सीधे मुंह बात न करना मुझे बहुत दुखी करता था.  उन कठिन दिनों से गुजरते हुए एक सबक मैं अच्छी तरह सीख गई कि अगर मेरी ऐशोआराम की जिंदगी जीने की इच्छा और सारे सपने पूरे नहीं हुए तो जीने का मजा बिलकुल नहीं आएगा. घुटघुट कर जीने से बचने के लिए मुझे फौरन अपनी छवि सुधारना बहुत जरूरी था. ‘‘केवल सुंदर होने से काम नहीं चलता है. सूरत के साथ सीरत भी अच्छी होनी चाहिए,’’

मां से रातदिन मिलने वाली चेतावनी को मैं ने हमेशा के लिए गांठ बांध कर अपने को सुधार लेने का संकल्प उसी समय कर लिया. तभी से अपने जीवन में आने वाली हर कठिनाई, उलझन और मुसीबत से सबक ले कर मैं खुद को बदलती आई हूं. रोहित के विवाहेत्तर संबंध न बन जाएं, इस डर के अलावा एक और डर मुझे परेशान करता था. उन्हें सप्ताह में 1-2 बार ड्रिंक करने का शौक है. आज भी उन के गुस्से को बहुत ज्यादा बढ़ाने का यही मुख्य कारण था कि दोस्तों के साथ शराब पीने का मौका उन के हाथ से निकल गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि अगर हम अलग मकान में रहने चले गए, तो दोस्तों के साथ उन का पीनापिलाना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा. समीर वाले किस्से के बाद मेरी मां मेरे साथ बहुत सख्त हो गई थीं. उन की उस सख्ती के चलते मेरे कदम फिर कभी नहीं भटके थे. यहां मेरे सासससुर मां वाली भूमिका निभा रहे थे. रोहित और मुझे नियंत्रण में रख कर वे दोनों एक तरह से हमारा भला ही कर रहे थे. अब मुझे यह बात समझ में आने लगी थी.

पिछले दिनों तक मैं घर से अलग हो जाने की जरूर सोचती थी, पर अब इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं ने ऐसा करने का इरादा बदल दिया है. रोहित 2 घंटे बाद जब लौटे, तब भी उन की आंखों में तेज गुस्सा साफ झलक रहा था. फिर भी मैं ने रोहित को अपनी बात कहने का फैसला किया. उन्हें कुछ कहने का मौका दिए बिना मैंने आंखों में आंसू भर कर भावुक लहजे में पूछा, ‘‘तुम मुझे सब की नजरों में क्यों गिराना चाहते हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है?’’ उन्होंने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘टैंशन के कारण पापा को ढंग से सांस लेने में दिक्कत हो रही है. आपसी लड़ाईझगड़े की वजह से उन्हें कभी कुछ हो गया, तो मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर कभी नहीं जी सकूंगी.’’

‘‘वे लोग बात ही ऐसी गलत करते हैं…पार्टी में न जाने दे कर सारा मूड खराब कर दिया.’’

‘‘पार्टी में जाने का गम मत मनाओ, मैं हूं न आप का मूड ठीक करने के लिए,’’ मैं ने उन के बालों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम तो हो ही लाखों में एक जानेमन.’’

‘‘तो अपनी इस लाखों में एक जानेमन की छोटी सी बात मानेंगे?’’

‘‘जरूर मानूंगा.’’ मेरी सुंदरता मेरी बहुत बड़ी ताकत है और अब इसी के बल पर मैं सारे रिश्तों के बीच अच्छा संतुलन और घर में हंसीखुशी का माहौल बनाना चाहती हूं. इस दिशा में काफी सोचविचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि सासससुर के साथ अपने रिश्ते सुधार कर उन्हें मजबूत बनाना मेरे हित के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने रोहित के कान के पास मुंह ले जा कर प्यार भरे लहजे में पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें कभी किसी भी बात से नाराज हो कर सोने देती हूं?’’

‘‘कभी नहीं और आज भी मत सोने देना,’’ उन के होंठों पर एक शरारती मुसकान उभरी.

‘‘आज आप भी मेरी इस अच्छी आदत को अपनाने का वादा मुझ से करो.’’

‘‘लो, कर लिया वादा.’’

‘‘तो अब चलो मेरे साथ.’’

‘‘कहां?’’

‘‘अपने मम्मीपापा के पास.’’

‘‘उन के पास किसलिए चलूं?’’

‘‘आप उन के साथ कुछ देर ढंग से बातें कर लोगे, तो ही वे दोनों चैन से सो पाएंगे.’’

‘‘नहीं,’’ यह मैं नहीं…

मैं ने झुक कर पहले रोहित के होंठों पर प्यार भरा चुंबन अंकित किया और फिर उन की आंखों में प्यार से झांकते हुए मोहक स्वर में बोली, ‘‘प्लीज, मेरी खुशी की खातिर आप को यह काम करना ही पड़ेगा. आप मेरी बात मानेंगे न?’’ तुम्हारी बात कैसे टाल सकता हूं ब्यूटीफुल चलो,’’ रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूमने के बाद जब वे फौरन अपने मातापिता के पास जाने को उठ खड़े हुए, तो मैं मन ही मन विजयीभाव से मुसकराते हुए उन के गले लग गई. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: माय डैडी बेस्ट कुक

Family Story In Hindi: “सुनो! पेपर सोप और सैनीटाईजर पर्स में रख लिया है ना… और मास्क मत उतारना… दूरी बनाकर ही अपना काम करना है और हाथ बार-बार धोती रहना…” दो दिन के लिए टूर पर जाती विजया को पति कैलाश बस में बिठाने तक हिदायतें दे रहा था.

“हाँ बाबा! सब याद रखूँगी… और तुम भी अपना और निक्कू का खयाल रखना… संतरा को टाइम पर आने को कह देना ताकि आप दोनों को खाने-पीने की परेशानी ना हो…” विजया ने भी अपनी हिदायतों का पिटारा खोल दिया. बस चल दी तो कैलाश हाथ हिलाकर विदा करता हुआ पार्किंग की तरफ बढ़ गया.

“स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को घर में संभाले रखना कितना मुश्किल होता है… लेकिन कोई बात नहीं… दो दिन की ही तो बात है… संभाल लूँगा… फिर संतरा तो है ही…” मन ही मन सोचता… योजना बनाता… कैलाश घर की तरफ बढ़े जा रहा था. घर आकर देखा तो संतरा अपना काम निपटा रही थी.

“संतरा ना हो तो हम बाप-बेटे को दूध-ब्रेड से ही काम चलाना पड़े.” सोचते हुये कैलाश ने भी अपना टिफिन पैक करवाया और निक्कू को संतरा के पास छोडकर ऑफिस के लिए निकल गया.

“पापा! कार्टून चलाने दो ना.” रात को निक्कू ने कैलाश के हाथ से रिमोट लेने की जिद की.

“अभी ठहरो. आठ बजे हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं, उसके बाद.” कैलाश ने रिमोट वापस अपने कब्जे में कर लिया. मन मसोस कर निक्कू भी वहीं बैठकर भाषण समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा.

“आज रात बारह बजे से पूरे देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन किया जाएगा. समस्त देशवासियों से विनती है कि जो जहां है, वो वहीं रहकर इसमें सहयोग करे.” प्रधानमंत्री का उद्बोधन सुनते ही कैलाश के माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई. उसने तुरंत विजया को फोन लगाया.

“सुना तुमने! आज रात से पूरे देश में लॉकडाउन होने जा रहा है.” कैलाश के स्वर में चिंता थी.

“हाँ सुना! लेकिन तुम फिक्र मत करो. हमारा विभाग आवश्यक सेवाओं में शामिल है इसलिए ऑफिस बंद नहीं होगा.” विजया ने पति को आश्वस्त करने की कोशिश की.

“वो सब तो ठीक है लेकिन लॉकडाउन में तुम वापस कैसे आओगी?” कैलाश ने उत्तेजित होते हुये कहा.

“देखते हैं. कुछ न कुछ उपाय तो करना ही पड़ेगा. तुम फिक्र मत करो. बस! अपना और निक्कू का खयाल रखना. गुड नाइट.” कहते हुये विजया ने फोन काट दिया लेकिन कैलाश की चिंता दूर नहीं हुई. पूरी रात करवट बदलते-बदलते बीती. सुबह फोन की घंटी से आँख खुली. देखा तो संतरा का फोन था.

“साहब! हमारे मोहल्ले में एक आदमी कोरोना का मरीज निकला है. आसपास कर्फ़्यू लगा दिया गया है. मैं नहीं आ सकूँगी.” संतरा की बात सुनते ही कैलाश की नींद उड़ गई. वह फौरन बिस्तर से बाहर आया और निक्कू के कमरे में गया. निक्कू अभी तक सो रहा था. उसके चेहरे पर मासूमियत बिखरी थी. कैलाश को उस पर प्यार उमड़ आया.

“कितना बेपरवाह होता है बचपन भी.” कैलाश ने निक्कू के बालों में हाथ फिरा दिया. निक्कू ने आँखें खोली.

“दूध कहाँ है?” निक्कू ने कहा तो कैलाश को याद आया कि निक्कू दूध पीने के बाद ही फ्रेश होने जाता है. वह रसोई की तरफ लपका. दूध गर्म करके उसमें चॉकलेट पाउडर मिलाया और निक्कू को दिया. पहला घूंट भरते ही निक्कू ने मुँह बिचका दिया.

“आज इसका टेस्ट अजीब सा हैं. मुझे नहीं पीना.” निक्कू ने गिलास उसे वापस थमा दिया. कैलाश ने रसोई में रखे दूध को सूंघा तो उसमें से खट्टी-खट्टी गंध आ रही थी.

“उफ़्फ़! रात में दूध को फ्रिज में रखना भूल गया. विजेता ही ये सब काम निपटाती है इसलिए दिमाग में ही नहीं आया.” सोचते हुये कैलाश कुछ परेशान सा हो गया और दूध की व्यवस्था के बारे में सोचने लगा.

भाषण में कहा गया था कि आवश्यक दुकानें खुली रहेंगी. याद आते ही  कैलाश ने तुरंत गाड़ी निकाली और दूध पार्लर से दूध के पैकेट लेकर आया. घर पहुँचते ही मेल चेक किया तो पता चला कि आज से आधे कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे. उसे आज नहीं कल ऑफिस जाना है. उसने राहत की सांस ली और दूध गर्म करने लगा. इस बीच मोबाइल पर अपडेट्स देखना भी चालू था. सर्रर्रर्र… से दूध उबल कर स्लैब पर बिखर गया तो कैलाश ने अपना माथा पीट लिया. मोबाइल एक तरफ रखकर वह रसोई साफ करने लगा.

“घर संभालना किसी मोर्चे से कम नहीं.” अचानक ही उसका मन विजया और संतरा के प्रति आदर से भर उठा.

“पापा! आज नाश्ते में क्या है?” निक्कू रसोई के दरवाजे पर खड़ा था.

“अभी तो ब्रेड-जैम से काम चला ले बेटा. लंच में बढ़िया खाना खिलाऊंगा.” कैलाश ने उसे किसी तरह राजी किया और ब्रेड पर जैम लगाकर निक्कू को नाश्ता दिया. दो-तीन ब्रेड खुद भी खाकर वह अपना लैपटाप लेकर बैठ गया और ऑफिस के काम को अपडेट करने लगा.

“पापा! खाने में क्या बनाओगे? आपको आता तो है ना बनाना?” निक्कू ने पूछा तो कैलाश सचमुच सोच में पड़ गया. उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं. बेचारी विजेता कितना चाहती थी कि कभीकभार वह भी रसोई में उसकी मदद करे लेकिन उसने तो अपने हिस्से का काम संतरा के सिर डालकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी.

कैलाश रसोई में घुसा. आटे का डिब्बा निकालकर परात में आटा साना और उसे गूंधने की कोशिश करने लगा. कभी आटे में पानी ज्यादा तो कभी पानी में आटा ज्यादा… किसी तरह पार पाई तो देखा कि इतना आटा तो वे दोनों पूरे सप्ताह भी खत्म नहीं कर सकेंगे.

“चलो ठीक ही है, रोज-रोज की एक्सर्साइज़ से मुक्ति मिली.” सोचते हुये कैलाश ने सिंक में अपने हाथ धोये और फ्रिज में से सब्जी निकालने लगा. लौकी… करेला… टिंडे… नाम सुनते ही निक्कू मना में सिर हिला रहा था. कैलाश भी खुश था क्योंकि उसे ये सब बनाना भी कहाँ आता था. किसी तरह आलू पर आकार बात टिकी तो कैलाश ने भी राहत की सांस ली.

धो-काटकर आलू कूकर में डाले. मसाले और थोड़ा पानी डालकर कूकर बंद कर दिया. सीटी पर सीटी बज रही थी लेकिन कैलाश को कुछ भी अंदाज नहीं था कि गैस कब बंद की जाये. थोड़ी देर में कूकर में से जलने की गंध आने लगी तो कैलाश ने भागकर गैस बंद कि. ठंडा होने पर जब कूकर खुला तो माथा पीटने के अलावा कुछ भी शेष नहीं था. सब्जी तो जली ही, कूकर भी साफ करने लायक नहीं बचा था. निक्कू का मुँह फूला सो अलग.

किसी तरह दो मिनट नूडल बना-खाकर भूख मिटाई गई लेकिन कैलाश ने ठान लिया था कि आज रात वह निक्कू को शाही डिनर जरूर करवाएगा.

शाम को जब विजया का फोन आया तो कैलाश ने झेंपते हुये दिन की घटना का जिक्र किया. सुनकर वह भी हँसे बिना नहीं रह सकी.

“अच्छा सुनो! उस खट्टी गंध वाले दूध का क्या करूँ?” कैलाश ने पूछा.

“एकदम सही समय पर याद दिलाया. तुम उसे गर्म करके उसमें एक नीबू निचोड़ दो. पनीर बन जाए तो उसके पराँठे सेक लेना.” विजेता ने आइडिया दिया तो कैलाश भी खुश हो गया. उसने विडियो कॉल पर विजेता की निगरानी में पनीर बनाया और उसे एक कपड़े में बांधकर कुछ देर के लिए लटका दिया. दो घंटे बाद जब पनीर का सारा पानी निकल गया तो विजया की मदद से उसने पनीर का भरावन भी तैयार कर लिया. अब शाम को कैलाश पूरी तरह से बेटे को शाही डिनर खिलाने के लिए तैयार था.

आटा तो दोपहर से गूँथा हुआ ही था, कैलाश ने खूब सारा भरावन भर के परांठा बेला और निक्कू की तरफ गर्व से देखते हुये उसे तवे पर पटक दिया.

“पापा! करारा सा बनाना.” निक्कू भी बहुत उत्साहित था. तभी कैलाश का फोन बजा और वह कॉल लेने चला गया. नेटवर्क कमजोर होने के कारण कैलाश फोन लेकर बालकनी में आ गया. बात खत्म करके जब वह रसोई में आया तो तवे से उठते धुएँ को देखकर घबरा गया. उसने भागकर पराँठे को पलटा लेकिन तवा बहुत गर्म था और जल्दबाज़ी में उसे चिमटा कहाँ याद आता। नतीजन! पराँठे को छूते ही उसका हाथ जल गया और हड़बड़ाहट में पनीर के भरावन वाला प्याला स्लैब से नीचे गिर गया.

“गई भैंस पानी में!” कैलाश ने सिर धुन लिया. निक्कू का मूड तो खराब होना ही था.

“पापा प्लीज! आपसे नहीं होगा. मम्मी को बुला लीजिये.” निक्कू रोने लगा. वह अब कैलाश के हाथ का बना कुछ भी अंटशंट नहीं खाना चाहता था. निक्कू को खुश करने के लिए कैलाश ने ऑनलाइन खाने की तलाश की लेकिन उसे नाउम्मीदी ही हाथ लगी.

तभी उसे याद आया कि ऐसी ही कई परिस्थितियों में विजया झटपट मटरपुलाव बना लिया करती है. निक्कू भी शौक से खा लेता है. कैलाश ने फटाफट चावल धोये और थोड़े से मटर छील लिये. गैस पर कूकर भी चढ़ा दिया लेकिन फिर वही समस्या… कूकर में पानी कितना डाले और कितनी देर पकाये…

तुरंत हाथ फोन की तरफ बढ़े और विजया का नंबर डायल हुआ लेकिन कैलाश ने तुरंत फोन काट दिया. वह बार-बार अपने अनाड़ीपन का प्रदर्शन कर उसे परेशान नहीं करना चाहता था. घड़ी की तरफ देखा तो अभी नौ ही बजे थे. उसने संतरा को फोन लगाया.

“अरे साब! पुलाव बनाना कौन बड़ा काम है. पहले घी डालकर लोंग-इलाइची तड़का लो फिर चावल और जितना चावल लिया, ठीक उससे दुगुना पानी डालो… मसाले डालकर दो सीटी कूकर में लगाओ और पुलाव तैयार…” संतरा ने हँसते हुये बताया तो कैलाश को आश्चर्य हुआ.

“ये औरतें भी ना! कमाल होती हैं… कैसे उँगलियों पर हिसाब रखती हैं.” कैलाश ने सोचा. लेकिन तभी उसे कुछ और याद आ गया.

“और मसाले? उनका क्या हिसाब है?” कैलाश ने तपाक से पूछा.

“मसलों का कोई हिसाब नहीं होता साब. आपका अपना स्वाद ही उनका हिसाब है. पहले अपने अंदाज से जरा कम मसाले डालिए, फिर चम्मच में थोड़ा सा लेकर चख लीजिये… कम-बेसी हो तो और डाल लीजिये.” संतरा ने उसी सहजता से बताया तो कैलाश को पुलाव बनाना बहुत आसान लगने लगा.

और हुआ भी यही. यह डिश उसकी उम्मीद से कहीं बेहतर बनी थी. खाने के बाद निक्कू के चेहरे पर आई मुस्कान देखकर कैलाश का आत्मविश्वास लौटने लगा.

अगले दिन कैलाश को ऑफिस जाना था. पूरा दिन निक्कू अकेला घर पर रहेगा यह सोचकर ही वह परेशान हो गया. उसने रात को सोने से पहले ही निक्कू को आवश्यक हिदायतें देकर उसे सावधानी से घर पर रहने के लिए समझा दिया था.

आज कैलाश अपने हर काम में अतिरिक्त सावधानी बरत रहा था. दूध गर्म करके निक्कू को उठाना… फिर वेज सैंडविच का नाश्ता और लंच के लिए आलू का परांठा… ये सब करने में उसने यू ट्यूब की पूरी-पूरी मदद ली. विजया जैसा उँगलियाँ चाटने वाला तो नहीं लेकिन हाँ! काम चलाऊ खाना बन गया था.

शाम को घर वापस आते हुये जब उसने एक परचून की दुकान खुली देखी तो गाड़ी रोक ली. मुँह पर मास्क लगाकर वह भीतर गया और एक पैकेट मैदा और आधा किलो छोले खरीद लिए. साथ ही इमली का छोटा पैकेट भी. कई बार विजया ने उससे ये सामान मंगवाया है जब वो छोले-भटूरे बनाती है.

“निक्कू को बहुत पसंद हैं. कल सुबह मुझे ऑफिस नहीं जाना है. निक्कू को सरप्राइज दूँगा. शाम तक विजया आ ही जाएगी.” मन ही मन खुश होता हुआ अपनी प्लानिंग समझाने और छोले-भटूरे बनाने की विधि पूछने के लिए उसने विजया को फोन लगाया.

“सॉरी कैलाश! हमें अभी वापस आने की परमिशन नहीं मिली. लगता है तुम्हें कुछ दिन और अकेले संभालना पड़ेगा.” विजया के फोन ने उसे निराश कर दिया. आँखों के सामने तवा… कड़ाही… भगोना… चकला और बेलन नाचने लगे. मन खराब हो गया लेकिन घर पहुँचते ही जिस तरह निक्कू उससे लिपटा, वह सारा अवसाद भूल गया.

“पापा! आज हम दोनों मिलकर खाना बनाएँगे. आप रोटी बनाना और मैं डिब्बे में से अचार निकालूँगा…” निक्कू ने हँस कर कहा तो उसे फिर से जोश आ गया.

“लेकिन मैं गोल रोटी नहीं बना सकता…” कैलाश ने मुँह बनाया.

“कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएगी.” निक्कू खिलखिलाया तो कैलाश दुगुने जोश से भर गया. रात को दोनों ने आम के मीठे अचार के साथ पराँठे खाये. पराँठों की शक्ल पर ना जाया जाए तो स्वाद इतना बुरा भी नहीं था.

कैलाश ने रात को छोले भिगो दिये. सुबह दही डालकर भटूरे के लिए मैदा भी गूँध लिया. थोड़ा ठीला रह गया था लेकिन चल जाएगा. प्याज-टमाटर काटकर रख लिए. इमली को छानकर उसका गूदा अलग कर लिया. ये सारी तैयारी उसने निक्कू के जागने से पहले ही कर ली.अब छोले बनाने की रेसिपी देखने के लिये उसने यू ट्यूब खोला.

“छोला रेसिपी” टाइप करते ही बहुत सी लिंक स्क्रीन पर दिखाई देने लगी. सभी में सबसे पहला निर्देश था- “सबसे पहले नमक-हल्दी डालकर छोले उबाल लें.” यही तो सबसे बड़ी समस्या थी कि छोले कैसे उबालें… कितना पानी डाले… कितनी देर पकाये… कूकर को कितनी सीटी लगाए…

उसने विजया की अलमारी में से कुछ पत्रिकाएँ निकाली जिन्हें वह रेसिपी के लिये संभाल कर रखती है. उन्हीं में से एक में उसे छोले-भटूरे बनाने की रेसिपी मिल गई. कैलाश खुश हो गया लेकिन पहला वाक्य पढ़ते ही फिर से माथा ठनक गया. लिखा था- “सबसे पहले छोले उबाल लें.” यानी समस्या तो अब भी जस की तस थी.

“विजया को फोन लगाए बिना नहीं बैठेगा.” सोचकर उसने विजया को फोन लगाया.

“बहुत आसान है कैलाश! छोलों में दो उंगल ऊपर तक पानी डालो. फिर नमक-हल्दी डालकर दो चम्मच घी भी डाल देना. अब कूकर में प्रेशर आने दो. एक सीटी आते ही गैस को सिम कर देना. आधा घंटा पकने देना. छोले उबल जाएंगे.” विजया ने जिस सहजता से बताया उसे सुनकर कैलाश को लगा कि छोले बनाना सचमुच बहुत आसान है.

छोले उबल चुके थे. बाकी का काम रेसिपी बुक और यू ट्यूब की मदद से हो जाएगा. कैलाश ने गैस पर कड़ाही चढ़ा दी. एक तरफ रेसिपी बुक खुली थी, दूसरी तरफ यू ट्यूब पर विडियो चल रहा था. कैलाश उन्हें देख-पढ़कर पूरी तन्मयता से छोले बनाने में जुट गया.

तेल गरम होने पर पहले प्याज, लहसुन और अदरक का पेस्ट डाला फिर सब्जी वाले मसाले डालकर उन्हें अच्छी तरह से पकाया. उबले हुये छोले कड़ाही में डालते समय कैलाश के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. पिछले घंटे भर की सारी घटनाएँ आँखों के सामने घूम गई.

इमली का गूदा डालकर जब कैलाश ने चम्मच में लेकर छोले चखे तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वह भी इतने स्वादिष्ट छोले बना सकता है.

अब बारी थी भटूरे बनाने की. कैलाश ने रेस्टोरेंट जैसे बड़े-बड़े भटूरे बेलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. तभी उसे निक्कू की बात याद आ गई- “रोटी गोल नहीं बनी… कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएंगी.” कैलाश मुस्कुरा दिया.

“बड़े भटूरे जरूरी तो नहीं… छोटों में भी वही स्वाद आएगा.” कैलाश ने एक छोटा सा भटूरा बेला और सावधानी से गर्म तेल में छोड़ दिया. कचोरी की तरह फूलकर भटूरा कड़ाही में नाचने लगा और इसके साथ ही कैलाश भी.

“तो आज हमारे निक्कू राजा के लिए एक खास सरप्राइज़ है.” कैलाश ने उसे दूध का गिलास थमा कर उठाया.

“क्या?” निक्कू ने पूछा.

“छोले-भटूरे.”

“तो क्या मम्मी आ गई?” निक्कू खुश हो गया.

“नहीं रे! पापा की  तरफ से है.” निक्कू बुझ गया. कैलाश मुस्कुरा दिया.

“निक्कू! सरप्राइज़ तैयार है.” कैलाश प्लेट में छोले-भटूरे लेकर खड़ा था. निक्कू को यकीन नहीं हो रहा था. वह खुशी के मारे उछल पड़ा. पहला कौर मुँह में डालने ही वाला था कि कैलाश बोला- “आहा! गर्म है… जरा आराम से.”

निक्कू खाता जा रहा था… उसकी आँखें फैलती जा रही थी… चेहरे पर संतुष्टि के भाव लगातार बढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही कैलाश के चेहरे की मुस्कान भी. उसने विजया को विडियो पर कॉल लगाई और उसे यह दृश्य दिखाया. वह भी हँस दी.

“पापा! आप एक अच्छे कुक बन सकते हो.” निक्कू ने अपनी उंगली और अंगूठे को आपस में मिलाकर “लाजवाब” का इशारा किया तो विडियो पर ऑनलाइन विजया ने तालियाँ बजकर बेटे की बात का समर्थन किया.

“तुम आराम से आना… हमारी फिक्र मत करना… हम मैनेज कर लेंगे…” कैलाश ने विजया से कहा. उसे आज परीक्षा में पास होने जैसी खुशी हो रही थी.

“माय डैडी इज द बेस्ट कुक.” निक्कू ने एक निवाला कैलाश के मुँह में डालकर कहा. स्वाद सचमुच लाजवाब था. कैलाश ने विजया की तरफ देखकर अपनी कॉलर ऊंची की और बाय करते हुये फोन काट दिया. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: जीवन और नाटक

Hindi Family Story: ‘‘माहिका बेटे, देख तो कौन आया है. जल्दी से गरम पकौड़े और चाय बना ला. चाय बढि़या मसालेदार बनाना.’’ जूही ने अपनी बेटी को पुकारा और फिर से अपनी सहेली नीलम के साथ बातचीत में व्यस्त हो गई.

‘‘रहने दे न. परीक्षा सिर पर है, पढ़ रही होगी बेचारी. मैं तुम्हें लड़कियों के फोटो दिखाने आई हूं. पंकज अगले माह 25 का हो जाएगा. जितनी जल्दी शादी हो जाए अच्छा है. उस के बाद उस की छोटी बहन नीना का विवाह भी करना है. ले यह फोटो देख और बता तुझे कौन सी पसंद है,’’ नीलम ने हाथ में पकड़ा लिफाफा जूही की ओर बढ़ाया. देर तक दोनों बारीबारी से फोटो देख कर मीनमेख निकालती रहीं.

कुछ देर बाद जूही ने 2 फोटो निकाल कर नीलम को थमा दिए.

‘‘दोनों ही अच्छी लग रही हैं. वैसे भी हमारेतुम्हारे पसंद करने से क्या होता है. पसंद तो पंकज की पूछो. महत्त्व तो पंकज की पसंद का है. है कि नहीं? हमारीतुम्हारी पसंद को कौन पूछता है. यों भी फोटो से किसी के बारे में कितना पता लग सकता है. असली परख तो आमनेसामने बैठ कर ही हो सकती है.’’

तब तक माहिका पकौड़े और चाय ले कर आ गई थी.

‘‘सच कहूं जूही, तेरी बेटी बड़ी गुणवान है, जिस घर में जाएगी उस का तो जीवन सफल हो जाएगा,’’ नीलम ने गरमगरम पकौड़े मुंह में रखते हुए प्रशंसा की झड़ी लगा दी.

‘‘माहिका तू भी तो बता अपनी पसंद,’’ नीलम ने माहिका की ओर फोटो बढ़ाए.

‘‘आंटी मैं भला क्या बताऊंगी. यह तो आप बड़े लोगों का काम है.’’ माहिका धीमे स्वर में बोल कर मुड़ गई.

‘‘ठीक ही तो कह रही है, बच्चों को इन सब बातों की समझ कहां. वैसे भी परीक्षा की तैयारी में जुटी है.’’ जूही बोली.

‘‘तुझे नहीं लगता कि आजकल माहिका बहुत गुमसुम सी रहने लगी है. पहले तो अकसर आ जाती थी, दुनिया भर की बातें करती थी, घर के काम में भी हाथ बंटा देती थी, पर अब तो सामने पड़ने पर भी कतरा कर निकल जाती है.’’

‘‘इस उम्र में ऐसा ही होता है. मुझ से भी कहां बात करती है. किसी काम को कहो तो कर देगी. दिन भर लैपटौप या फोन से चिपकी रहेगी. इन सब चीजों ने तो हमारे बच्चों को ही हम से छीन लिया है.’’

‘‘सो तो है पर हमारा भी तो अधिकतर समय फोन पर ही गुजरता है,’’ जूही ऐसी अदा से बोली कि दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंसीं.

नीलम को विदा करते ही जूही काम में जुट गई.

‘‘नीलम आती है तो जाने का नाम ही नहीं लेती. रजत के आने का समय हो गया है. अभी तक खाना भी नहीं बना है. रजत का कुछ भरोसा नहीं. कभी चाय पीते हैं, तो कभी सीधे खाना मांग लेते हैं,’’ जूही स्वयं से ही बातें कर रही थी.

‘‘माहिका तुम अब तक फोन से ही चिपकी हुई हो. यह क्या तुम तो रो रही हो. क्या हुआ?’’ माहिका का स्वर सुन कर जूही उस के कमरे में पहुंची थी.

‘‘कुछ नहीं अपनी सहेली स्नेहा से बात कर रही थी, तो आंखों में आंसू आ गए.’’

‘‘क्यों क्या हुआ? सब ठीक तो है.’’

‘‘कहां ठीक है. बेचारी बड़ी मुसीबत में है.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’

‘‘लगभग 4 वर्ष पहले उस ने सब से छिप कर मंदिर में विवाह कर लिया था. पर अब उस का पति दूसरी शादी कर रहा है.’’

‘‘क्या कह रही है? स्नेहा ने 4 वर्ष पहले ही विवाह कर लिया था? उस के मातापिता को पता है या नहीं?’’

‘‘किसी को पता नहीं है.’’

‘‘दोनों साथ रहते हैं क्या?’’

‘‘नहीं विवाह होते ही दोनों अपने घर लौट कर पढ़ाई में व्यस्त हो गए.’’

‘‘दोनों के बीच संबंध बने हैं क्या?’’

‘‘नहीं, इसीलिए तो दूसरा विवाह कर रहा है.’’

‘‘इस तरह छिप कर विवाह करने की क्या आवश्यकता थी. आजकल की लड़कियां भी बिना सोचेसमझे कुछ भी करती हैं. स्नेहा के मातापिता को पता लगा तो उन पर क्या बीतेगी?’’ जूही चिंतित स्वर में बोली.

‘‘पता नहीं आप ही बताओ अब वह

क्या करे?’’

‘‘चुल्लू भर पानी में डूब मरे और क्या. उस ने तो अपने मातापिता को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘थोड़ी ही देर में यहां आ रही है स्नेहा. आप ही उसे समझा देना.’’

‘‘यहां क्या करने आ रही है? उस से कहो अपने मातापिता से बात करे. वे ही कोई रास्ता निकालेंगे.’’ मांबेटी का वार्तालाप शायद कुछ और देर चलता कि तभी दरवाजे की घंटी बजी और स्नेहा ने प्रवेश किया.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के गले लिपट कर खूब रोईं. जूही सब कुछ चुपचाप देखती रहीं. समझ में नहीं आया कि क्या करे.

‘‘अब रोनेधोने से क्या होगा. अपने कमरे में चल कर बैठो मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं आंटी, कुछ नहीं चाहिए. मेरी चिंता तो केवल यही है कि इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा?’’ स्नेहा गंभीर स्वर में बोली.

‘‘सच कहूं, स्नेहा मुझे तुम से यह आशा नहीं थी.’’

‘‘पर मैं ने किया क्या है?’’

‘‘लो और करने को रह क्या गया है. तुम्हें छिप कर विवाह करने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मैं ने छिप कर विवाह नहीं किया आंटी? आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है.’’

‘‘समझती हूं मैं. पर मेरी मानो और जो हो गया सो हो गया, अब सब कुछ अपने मातापिता को बता दो.’’

‘‘मेरे मातापिता का इस से कोई लेनादेना नहीं है. वैसे भी मैं उन से कोई बात नहीं छिपाती. इस समय तो मुझे माहिका की चिंता सता रही है. आप को ही कोई राह निकालनी पड़ेगी जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘साफसाफ कहो न पहेलियां क्यों बुझा रही हो.’’

‘‘आंटी माहिका ने जो कुछ किया वह निरा बचपना था. जब तक उसे अपनी गलती समझ में आई, देर हो चुकी थी. मुझे भी लगा कि देरसबेर पंकज इसे स्वीकार कर लेगा पर यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. माहिका बेचारी हर साल पंकज के लिए करवाचौथ का व्रत करती रही पर वह नहीं पसीजा. अब बेचारी माहिका करे भी तो क्या?’’

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? विवाह तुम ने नहीं माहिका ने किया था?’’

‘‘वही तो. चलिए आप की समझ में तो आया. अभी तक तो आप मुझे ही दोष दिए जा रही थीं.’’ स्नेहा हंस दी.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं. माहिका इतनी बड़ी बात छिपा गईं तुम? हम ने क्याक्या आशाएं लगा रखी थीं और तुम ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. अब यह और बता दो कि किस से रचाया था तुम ने यह अद्भुत विवाह.’’

‘‘पंकज से.’’

‘‘कौन पंकज? नीलम का बेटा?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘नीलम जानती है यह सब?’’

‘‘मुझे नहीं पता.’’

‘‘पता क्या है तुझे कमबख्त. राखी बांधती थी तू उस को. मुझे अब सब समझ में आ रहा है इसीलिए तू करवाचौथ का व्रत करने का नाटक करती थी. तेरे पापा को पता चला तो हम दोनों को जान से ही मार देंगे. उन्हें तो वैसे भी उस परिवार से मेरा मेलजोल बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वे क्रोध में बोलीं और माहिका को बुरी तरह धुन डाला.

‘‘आंटी क्या कर रही हो? माना उस से गलती हुई है पर उस के लिए आप उस की जान तो नहीं ले सकतीं.’’ स्नेहा चीखी.

जूही कोई उत्तर दे पातीं उस से पहले ही माहिका के पापा रजत ने घर में प्रवेश किया. उन के आते ही घर में सन्नाटा छा गया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करें.

‘‘स्नेहा बेटे, कब आईं तुम और बताओ पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ बात रजत ने ही शुरू की.

‘‘जी ठीक चल रही है.’’

‘‘आज बड़ी शांति है घर में. जूही एक कप चाय पिला दो, बहुत थक गया हूं.’’ उत्तर में जूही सिसक उठीं.

‘‘क्या हुआ? इस तरह रो क्यों रही हो. कुछ तो कहो.’’

‘‘कहनेसुनने को बचा ही क्या है, माहिका ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा.’’

‘‘क्या किया है उस ने?’’

‘‘उस ने विवाह कर लिया है.’’

‘‘क्यों मजाक करती हो. कब किया उस ने विवाह?’’

‘‘4 साल पहले किसी मंदिर में.’’

‘‘और हम से पूछा तक नहीं?’’ रजत हैरानपरेशान स्वर में बोले.

‘‘हम हैं कौन उस के जो हम से पूछती?’’

‘‘तो ठीक है, हम उस के विवाह को मानते ही नहीं. 4 साल पहले वह मात्र 15 वर्ष की थी. हमारी आज्ञा के बिना विवाह कर कैसे सकती थी. हम ने उस के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे हैं. उन का क्या?’’ रजत बाबू नाराज स्वर में बोले. कुछ देर तक सब सकते में थे. कोई कुछ नहीं बोला. फिर अचानक माहिका जोर से रो पड़ी.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘पापा, मैं पंकज के बिना नहीं रह सकती. भारतीय नारी का विवाह जीवन में एकबार ही होता है.’’

‘‘किस भारतीय नारी की बात कर रही हो तुम? आजकल रोज विवाह और तलाक हो रहे हैं. जिस तरह पंकज के बिना 19 साल से रह रही हो, आगे भी रहोगी.’’

‘‘देखा स्नेहा मैं न कहती थी. पापा भी बिलकुल पंकज की भाषा बोल रहे हैं. पर मेरे पास अपने विवाह के पक्के सबूत हैं.’’

‘‘कौन से सुबूत हैं तुम्हारे पास,’’ रजत ने प्रश्न किया.

‘‘विवाह का फोटो है. गवाह के रूप में स्नेहा है और पंकज के कुछ मित्र भी विवाह के समय मंदिर में थे.’’

‘‘अच्छा फोटो भी है? बड़ा पक्का काम किया है तुम ने. ले कर तो आओ वह फोटो.’’ माहिका लपक कर गई और फोटो ले आई. रजत ने फोटो के टुकड़ेटुकड़े कर के रद्दी की टोकरी में डाल दिए.

‘‘कहां है अब सुबूत और स्नेहा बेटे बुरा मत मानना. तुम माहिका की बड़ी अच्छी मित्र हो जो उस के साथ खड़ी हो. पर इस समय अपने घर जाओ. जब हम यह समस्या सुलझा लें तब आना. केवल एक विनती है तुम से कि इन बातों का जिक्र किसी से मत करना.’’

‘‘जी, अंकल.’’ स्नेहा चुपचाप उठ कर बाहर निकल गई.

‘‘यह क्या किया आप ने? मैं तो सोच रही थी स्नेहा के साथ पंकज के घर जाएंगे. वही तो जीताजागत सुबूत है.’’ जूही जो अब तक इस सदमे से उबर नहीं पाई थीं आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘मुझे शर्म आती है कि इतना बड़ा कांड हो गया और हम दोनों को इस की भनक तक नहीं लगी. हमारा मुख्य उद्देश्य है माहिका को इस भंवर से निकालना वह भी इस तरह कि किसी को इस संबंध में कुछ पता न चले. हम कहीं किसी के घर नहीं जा रहे, न कोई सुबूत पेश करेंगे. माहिका जब तक अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता.’’

‘‘मुझे नहीं लगता पंकज का परिवार इतने लंबे समय तक प्रतीक्षा करेगा. नीलम तो आज ही बहुत सारे फोटो ले कर आई थी मुझे दिखाने.’’

‘‘समझा, तो यह खेल खेल रहे हैं वे लोग. तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि माहिका का विवाह पंकज से संभव है. मैं ने उसे दसियों बार नशे में चूर पब से बाहर निकलते देखा है. पढ़ाईलिखाई में जीरो पर गुंडागर्दी में सब से आगे.’’

‘‘पर इन का विवाह तो 4 वर्ष पहले ही हो चुका है.’’

‘‘फिल्मों और नाटकों में अभिनेता अलगअलग पात्रों से कई विवाह करते हैं, तो क्या यह जीवन भर का नाता हो जाता है. समझ लो माहिका ने भी ऐसे ही किसी नाटक के पात्र का अभिनय किया था और एक चेतावनी तुम दोनों के लिए, उस परिवार से आप दोनों कोई संबंध नहीं रखेंगे. फोन पर भी नहीं. माहिका जैसी मेधावी लड़की का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. मैं नहीं चाहता कि वह बेकार के पचड़ों में पड़ कर अपना जीवन तबाह कर ले,’’ रजत दोनों से कठोर स्वर में बोले. मृदुभाषी रजत का वह रूप न तो कभी जूही ने देखा था और न ही कभी माहिका ने. दोनों ने सिर हिला कर स्वीकृति दे दी.

कुछ माह ही बीते होंगे कि एक दिन रजत ने सारे परिवार को यह कह कर चौंका दिया कि वे सिंगापुर जा रहे हैं. वहां उन्हें नौकरी मिल गई है. जूही और माहिका चुप रह गईं पर उन का 15 वर्षीय पुत्र विपिन प्रसन्नता से उछल पड़ा.

‘‘मैं अभी अपने मित्रों को फोन करता हूं.’’ वह चहका.

‘‘नहीं, मैं नहीं चाहता कि किसी को पता चले कि हम कहां गए हैं.’’ रजत सख्ती से बोले.

‘‘क्यों पापा?’’

‘‘बेटे हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है. जब तक उस का हल नहीं मिल जाता हमें सावधानी से काम लेना पड़ेगा. इसीलिए हम चुपचाप जाएंगे बिना किसी को बताए.’’

तभी उन्हें पास ही माहिका के सुबकने का स्वर सुनाई पड़ा. जूही उसे शांत करने का प्रयत्न कर रही थी.

‘‘माहिका, इधर तो आओ. क्या हुआ बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं पापा, आप की बात सुन कर लगा आप अब भी मुझ पर विश्वास नहीं करते,’’ माहिका आंसुओं के बीच बोली.

‘‘तुम ने जो किया उस के बाद विश्वास करना क्या इतना सरल है माहिका? विश्वास जमने में सदियां लग जाती हैं पर टूटने में कुछ क्षण. बस एक बात पर सदा विश्वास रखना कि तुम्हारे पापा तुम्हें इतना प्यार करते हैं कि तुम्हारे हितों की रक्षा के लिए किसी सीमा तक भी जा सकते हैं.’’

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए मैं ने आप को बहुत दुख पहुंचाया है,’’ माहिका फूटफूट कर रो पड़ी. सारे गिलेशिकवे उस के आंसुओं में बह गए. Hindi Family Story

Hindi Family Story: कुछ हट कर

Hindi Family Story: एक सुबह कविता सो कर उठी और फ्रैश हुई. तभी अचानक उस की नजर कैलेंडर पर पड़ी तो वह जरा ठिठकी, ओह, कुछ ही दिनों में वह 42 साल की हो जाएगी. बस यही ठंडी सी सांस उस के मुंह से निकली. किचन में चाय बनाते हुए मन अजीब सा हुआ कि क्या सच में काफी उम्र हो रही है? चाय ले जा कर मेज पर रखी और फिर विनय का बाथरूम से निकलने का इंतजार करने लगी. लगा इतने सालों से वह बस इंतजार ही तो कर रही है…

आजकल कई दिनों से मन में फैली अजीब सी उदासीनता कविता से सहन नहीं होती. उसे अपने जीवन में शांत झील का ठहराव नहीं, बल्कि समुद्र की तूफानी लहरों का उफान चाहिए, कुछ तो खट्टामीठा स्वाद हो जीवन का.

दोनों बच्चे अभिजीत और अनन्या बड़े हो गए हैं, दोनों ने अपनीअपनी डगर ले ली है. ‘लगता है, अब किसी को मेरी जरूरत नहीं है, कैसे ढोऊं अब उद्देश्यहीन जीवन का भार?’ आजकल कविता बस ऐसी ही बातें सोचती रहती. उसे अपनी मनोदशा स्वयं समझ नहीं आती. जितना सोचती उतना ही अपने बनाए

हुए भ्रमजाल में उलझती जाती. आज जब बच्चे उस के स्नेह की छांव को छोड़ कर अपने क्षितिज की तलाश में बढ़ चले हैं, तो वह नितांत अकेली खड़ी महसूस करती है, निराधार, अर्थहीन.

‘‘अरे, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है, कविता,’’ विनय की आवाज से कविता की

तंद्रा भंग हुई.

‘‘क्या सोच रही थी, तबीयत तो ठीक है न?’’ पूछतेपूछते विनय ने चाय के साथ पेपर उठा लिया तो कविता और अनमनी हो गई, सोचा, बस पेपर पढ़ कर औफिस चले जाएंगे, बच्चे भी कालेज चले जाएंगे, तीनों शाम तक ही लौटेंगे. बस, उस का वही बोरिंग रूटीन शुरू हो जाएगा. मेड से काम करवाएगी, नहाधो कर थोड़ी देर टीवी देखेगी, कोई पत्रिका पढ़ेगी और फिर शाम होतेहोते सब के आने का इंतजार शुरू हो जाएगा.

कविता सोचती वह पोस्ट ग्रैजुएट है. विवाह के बाद विनय और उस के सासससुर उस के नौकरी करने के पक्षधर नहीं थे, उस ने भी घरगृहस्थी खुशीखुशी संभाल ली थी. सब ठीक था, बस, इन कुछ सालों में कुछ कमी सी लगती है. वह अपने रूटीन से बोर हो रही है, आजकल उस का कुछ हट कर, कुछ नया करने को जी चाहता है. इन्हीं खयालों में डूबे उस ने दिन भर के काम निबटाए, शाम को सोसायटी के गार्डन में सैर करने गई. यह अब भी उस की दिनचर्या का सब से प्रिय काम था.

कविता आधा घंटा सैर करती, फिर गार्डन से क्लबहाउस के टैरेस पर जाने का जो रास्ता है, वहां जा कर थोड़ी देर घूमती. टैरेस से नीचे बना स्विमिंगपूल दिखता, उस में हाथपैर मारते छोटेछोटे बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते. शाम को ज्यादातर बच्चे ही दिखते थे, टीनएजर्स कभीकभी ही दिखते थे. पूल का नीलापन जैसे आसमान का आईना लगता. वह नीलापन कविता को आकर्षित करता. वह खड़ीखड़ी कभी आसमान को देखती तो कभी स्विमिंगपूल के नीलेपन को.

क्लब हाउस का पास तो कविता के पास था ही. अत: एक दिन वह ऐसे ही टहलतेटहलते पूल के पास पहुंच गई और फिर किनारे पर रखी चेयर पर बैठ गई. स्विमिंग

पूल से पानी की हलकीहलकी आवाजें आ रही थीं, अत: पानी में जाने की तीव्र इच्छा उस पर हावी हुई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था. उस के अंदर जैसे किसी ने कहा, कुछ हट कर करना है न तो स्विमिंग क्यों नहीं? दिल किया वह अभी इसी समय अपने इस एहसास को किसी के साथ बांटे. पूल में उतरने और तैरने के खयाल से ही वह उत्साहित हो गई. हां, यह ठीक रहेगा, वह हमेशा स्विमिंग से डरती है, पानी से उसे डर लगता है, जब भी जुहू या और किसी बीच पर जाती है, हमेशा पानी से दूर टहलती है.

2 साल पहले जब चारों गोआ घूमने गए थे, उसे बहुत मजा आया था. लेकिन वह लहरों के बीच जाने से कतराती रही थी. पिछले साल फिर जब उस ने विनय से गोआ चलने के लिए कहा तो अभिजीत और अनन्या दोनों ने ही कहा, ‘‘मम्मी, आप को गोआ जा कर करना क्या है? आप को दूरदूर किनारे ही तो घूमना है. उस के लिए तो यहीं मुंबई में ही जुहू बीच पर चली जाया करो.’’

कविता क्या करे, उसे लहरों के अंदर घबराहट सी होती और यह घबराहट उसे पहले नहीं होती थी. वह तो 10 साल पहले जब विनय की पोस्टिंग नईनई ठाणे में हुई थी तो वे घर के पास ही स्थित ‘टिकुजीनिवाड़ी वाटर पार्क’ में गए थे. वहां पहुंच कर कविता बहुत उत्साहित थी. यह किसी वाटरपार्क का उस का पहला अनुभव था. वहीं एक स्लाइड से नीचे आते हुए उस का संतुलन बिगड़ गया और वह सिर के बल पानी में गिर गई और घबराहट में स्वयं को संभाल नहीं पाई.

विनय ने ही उसे सहारा दे कर खड़ा किया. वे कुछ क्षण जब उसे अपनी सांस रुकती हुई लगी थी, उसे अब तक याद थे.

और आज जब कुछ नया करने की इच्छा है, तो वह क्यों न पानी में उतर जाए, वह मन ही मन संतुष्ट हुई, हां, स्विमिंग ठीक रहेगी और विनय और बच्चों को अभी नहीं बताऊंगी वरना इस उम्र में यह शौक देख कर वे तीनों हंसने लगेंगे. यह मैं अपने लिए करूंगी, कई सालों में बहुत दिनों बाद, जो मैं चाहती हूं वह करूंगी न कि वह जो सब सोचते हैं. उस ने अभी से अपने को युवा सा महसूस किया. पानी के किनारे बैठेबैठे अपनी योजना को आकार दिया. फिर उत्साहित कदमों से रिसैप्शन पर गई और पूछा, ‘‘लेडीज कोच है?’’

‘‘इस समय बस बच्चों के लिए ही एक कोच आता है, लेडीज के लिए बैच गरमियों में शुरू होगा,’’ रिसैप्शनिस्ट बोली.

अभी तो नवंबर है, कविता को अपना उत्साह काफूर होता लगा. लेकिन बस पल भर के लिए. फिर उस का उत्साह यह सोचते ही लौट आया कि वह खुद अपने बलबूते स्विमिंग सीखने की कोशिश करेगी.

घर आ कर कविता मन ही मन प्लानिंग करती रही. विनय ने हमेशा की तरह टीवी देखा, लैपटौप पर काम किया, बच्चे भी अपनेअपने क्रियाकलापों में व्यस्त थे. किसी ने उस के उत्साह पर ध्यान नहीं दिया. वह भी चुपचाप क्या करना है, कैसे करना है, सोचती रही.

अगले दिन तीनों के जाने के बाद कविता स्विमसूट खरीदने मार्केट गई. उसे बड़ा अजीब लग रहा था. उस ने शरीर को ज्यादा से ज्यादा ढकने वाला स्विमसूट खरीदा, ट्रायलरूम में पहन कर देखा और मन ही मन संतुष्ट हुई. सैर से अभी फिगर ठीक ही थी. वह खुश हुई. अगले 8-10 दिन वह पूल के किनारे बैठ जाती, बच्चों को देखती, कैसे वे पानी में पैर मारते हैं, कैसे बांहें चलाते हैं, किस तरह उन के पैर उन्हें आगे धकेलते हैं और कैसे यह सब वे सांस खींच कर हवा को अपने अंदर भरते हैं. उस ने गहरी सांस ली और रोक ली. उसे निराशा हुई. लगा, नहीं कर पाएगी. नहीं, वह हारेगी नहीं, उसे कुछ नया, कुछ अलग करना है. रात को जब वह सोने के लिए लेटी तो उस के सामने बस वह पल था जब वह पूल के पानी को अपने चारों ओर महसूस कर सकेगी.

10 दिन बाद वह पूल की ओर बढ़ी तो मन में कुछ डर भी था तो कुछ जोश भी. यह पल उसे उस समय की याद दिला गया जब सुहागरात पर दुलहन बनी उसे फूलों से सजे बैडरूम में ले जाया जा रहा था. वहां विनय इंतजार में थे, यहां पूल. मन ही मन इस तुलना पर उसे हंसी आ गई. वह चेंजिंगरूम में गई, सनस्क्रीन लोशन लगाया और फिर घुटनों तक के शौर्ट्स के ऊपर स्विमसूट पहन लिया. शरीर का काफी हिस्सा ढक गया था. खाली स्विमसूट पहनने से उसे संकोच हो रहा था. अब वह सहज थी, केशों को सूखा रखने के लिए उस ने कैप लगाई और शरीर पर तौलिया लपेट लिया.

11 बज रहे थे, यह क्लबहाउस में स्विमिंग का लेडीज टाइम था. बस एक लड़की स्विमिंग कर रही थी. कविता पूल के किनारे बने खुले शावर की ओर बढ़ी. वह जानती थी पूल में उतरने से पहले शावर लेना नियम है. उस ने तौलिया हटा दिया, शावर के ठंडे पानी की तेज बौछार से पल भर को उस की सांसें जैसे रुक सी गईं.

कविता पूल के कम पानी वाले किनारे खड़ी हो कर फिल्मों में पूल में उतरने के दृश्य याद करने लगी. वह इस पल का क्या खूब आनंद उठा रही है, यह सोच कर उस के होंठों पर मुसकान आ गई. उसे लाइफगार्ड किनारे बैठा नजर आया तो वह थोड़ा निश्चिंत हो गई. अब जो भी करना था अपने बलबूते करना था. पानी ठंडा था, उस ने याद किया, कैसे बच्चों का कोच बच्चों को सिखाता था, नीचे जाओ, सांस रोको, ठंड नहीं लगेगी. उस ने ऐसा ही किया. रौड पकड़ी, पानी में चेहरा डाला और पैर चलाने की कोशिश की. बस थोड़ी देर ही कर पाई. बाहर निकली, थोड़ी निराश थी, कैसे करेगी वह यह.

घर पहुंचते ही थोड़ी देर लेट गई. अगला1 हफ्ता वह बस पानी में पैर चलाती रही. थक जाती तो पानी के अंदर डुबकी लगा कर आंखें खुली रखने की कोशिश करती. क्लोरीनयुक्त पानी से आंखें लाल हो जातीं. वह खुद को समझाती कि इस की आदत भी हो जाएगी. फिर अपनी पीठ उठा लेती जैसे पीठ के बल तैर रही हो.

शाम की सैर के बाद कविता पूल के किनारे चेयर पर जरूर बैठती, अपने कान बच्चों के कोच के 1-1 शब्द पर लगाए रखती और अगले दिन वैसा ही करने की कोशिश करती. उसे इस खेल में विचित्र आनंद आने लगा था.

एक दिन कविता ने सोचा, वह रौड को नहीं छुएगी. उस ने पूल की दीवार से टांग टिकाई, मुंह में खूब हवा भरी और एक रबड़रिंग को पकड़ कर खुद को आगे धकेला. उस ने रबड़रिंग को छोड़ने की कोशिश की तो वह डूबने लगी. वह घबरा गई. लगा वह मर रही है, डूब रही है. फिर वह पानी के ऊपर आ गई. उस ने फिर स्टील की रौड को पकड़ लिया. उसे लगा वह अभी तैयार नहीं है.

20वें दिन जब वह कम पानी वाले पूल की चौड़ाई नाप रही थी, तो लाइफगार्ड, जो उसे रोज कोशिश करते देख रहा था, ने पूछा, ‘‘मैडम आप की लंबाई कितनी है?’’

‘‘5 फुट 5 इंच.’’

वह मुसकराया, ‘‘आप 4 फुट गहरे पानी में हैं, आप नहीं डूबेंगी. डूबने भी लगेंगी तो फौरन आप के पैर तली पर लग जाएंगे और आप ऊपर होंगी, आप को तो रिंग की भी जरूरत नहीं है.’’

कविता को लगा उस की बात में दम है. अत: उस ने फिर तैरने की कोशिश की और अब 1 घंटे में वह कई बार पूल की चौड़ाई में तैर चुकी थी.

हफ्ते में 1 दिन क्लबहाउस बंद रहता था, वह आराम करती, संडे को भी स्विमिंग के लिए नहीं जाती थी, क्योंकि विनय और बच्चे घर में होते थे. उस दिन संडे था. रात को वह जब सोने के लिए लेटी तो उसे अपने अंदर इच्छाओं की बंद मुट्ठी खुलती महसूस हुई, उस का शरीर जैसे खिल गया था. कुछ अलग करने के जोश से मन खुश था.

उस ने विनय के सीने पर हाथ रखा, तो विनय को कुछ अलग सा महसूस हुआ. उस ने करवट ले कर कविता की कमर पर हाथ रखा, फिर उस के शरीर पर हाथ फेरा तो चौंका. कविता के शरीर में नया कसाव था. बोला, ‘‘अरे, बहुत बढि़या फिगर लग रही है, क्या करती हो आजकल?’’

‘‘कुछ नहीं, बस आजकल मछली बनी हुई हूं,’’ कविता खुल कर हंसी.

विनय ने उसे हैरानी से देखा, एक पल विनय को लगा, आज उस ने पहले वाली कविता को देखा है, जो अपनी कातिल मुसकराहटों, घातक अदाओं और उत्तेजक देह से उस के होश उड़ा देती थी. आजकल तो कविता बस उस के घर की स्वामिनी और उस के बच्चों की मां थी. उधर कविता विनय की उधेड़बुन से बिलकुल अनजान थी.

विनय ने कहा, ‘‘बहुत चेंज लग रहा है तुम में, बताओ न, क्या चक्कर है?’’

कविता ने उसे स्विमिंग के बारे में सब बताया तो वह हैरान रह गया और फिर उसे बांहों में भर लिया. कविता वह जिन इच्छाओं को समझ रही थी कि हमेशा के लिए मर गई हैं, उन के जागने के आनंद में डूब गई. आखिरी बार वह कब भावनाओं के इस सागर में डूबी थी, याद करने लगी.

अगले दिन फिर उस ने गहरी सांस ली, खुद को आगे धकेला, उस के नीचे पूल की टाइल्स चमक रही थीं. शांत पानी उसे अपने चारों ओर लिपटता सा लगा. पूरे शरीर में हलकापन महसूस हुआ. मन में एक जीत की भावना तैर गई. उस ने कुछ अपने बोरिंग रूटीन से हट कर कर लिया है. परमसंतोष के इस पल की बराबरी नहीं है. जब उसे महसूस हुआ कि वह स्विमिंग कर सकती है. स्विमिंग का 1-1 प्रयास कविता के हिमशिला बने मनमस्तिष्क को पिघलाता जा रहा था. तेज हुए रक्तप्रवाह ने शिथिल पड़ी धमनियों को फिर से थरथरा दिया था. मन के समस्त पूर्वाग्रह न जाने कहां हवा हो चले थे और कई दिन पुराने कुछ नया कर गुजरने के तूफानी उद्वेग उन की जगह लेते जा रहे थे. उसे पता चल गया था उम्र बिलकुल भी माने नहीं रखती है, माने रखता है तो भीतर समाया उत्साह और हर पल जीने की इच्छा, जो हर दिन को आनंदमयी दिन में बदलने की चाह रखती हो. Hindi Family Story

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