बेरहम बेटी : प्यार पाने के लिए कर दी अपने पिता की हत्या

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे.

जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.

जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे.

उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.

पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’

वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए. दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.

कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया.

आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.

बेटी का बयान  मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.

मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.

पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी.

डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.

पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था.

पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.

पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली.

डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए. हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे.

कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.

राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी.

मौडल बनने की चाह  अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.

महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया.

जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे.

पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी.

इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली.

जालिम बेटी  राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.  संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था.

इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी.

हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था.

इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.  राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी.

जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता.

बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लिव इन पार्टनर की मौत का राज

9 सितंबर, 2019 को अनीता अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. अगले दिन अपराह्न 2 बजे जब वह दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित अपने फ्लैट में पहुंची तो वहां का खौफनाक मंजर देखते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. उस के पैर दरवाजे पर ही ठिठक गए.

उस के लिवइन पार्टनर सुनील तमांग की लहूलुहान लाश फर्श पर पड़ी थी. उस की गरदन से खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था, जो अब जम चुका था. अनीता ने सब से पहले अपने फ्लैट के मालिक ए.के. दत्ता को फोन कर इस घटना की जानकारी दी. ए.के. दत्ता पास की ही एक दूसरी कालोनी में रहते थे. लिहाजा कुछ देर में वह अपने लाजपत नगर वाले फ्लैट पर पहुंचे, जहां बुरी तरह घबराई अनीता उन का इंतजार कर रही थी.

सुनील की खून से सनी लाश देखने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दी तो कुछ ही देर के बाद थाना अमर कालोनी के थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और घटनास्थल की जांच में जुट गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

घटनास्थल की फोटोग्राफी और वहां पर मौजूद खून के धब्बों के नमूने एकत्र करने के बाद थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने तहकीकात शुरू की. मृतक सुनील की गरदन पर पीछे की तरफ से किसी तेज धारदार हथियार से जोरदार वार किया गया था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर फर्श पर फैल गया था.

कमरे के सभी कीमती सामान अपनी जगह मौजूद थे, जिसे देख कर लगता था कि यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं बल्कि रंजिशन की गई होगी. उन्होंने अनीता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और सुनील पिछले एक साल से इस फ्लैट में लिवइन पार्टनर के रूप में रह रहे थे. वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी, जबकि सुनील एक रेस्टोरेंट में कुक था. लेकिन कई महीने पहले किसी वजह से उस की नौकरी छूट गई थी.

कल रात साढ़े 11 बजे किसी जरूरी काम से वह अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. रात को वह वहीं रुक गई थी. रात में उस ने फोन पर काफी देर तक सुनील से बातें की थीं.

आज दोपहर को वह यहां पहुंची तो देखा फ्लैट का दरवाजा खुला था और अंदर प्रवेश करते ही उस की नजर सुनील की लाश पर पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने मकान मालिक को फोन कर इस घटना के बारे में बताया तो उन्होंने यहां पहुंचने के बाद इस घटना की सूचना पुलिस को दी.

थानाप्रभारी ने मकान मालिक ए.के. दत्ता से भी पूछताछ की तो उन्होंने भी वही बातें बताईं जो अनीता ने बताई थीं.

सारी काररवाई से निपटने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और थाने लौट कर सुनील की हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस की गुत्थी सुलझाने के लिए दक्षिणपूर्वी दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने कालकाजी के एसीपी गोविंद शर्मा की देखरेख में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन, एसआई अभिषेक शर्मा, ईश्वर, आर.एस. डागर, एएसआई जगदीश, कांस्टेबल राजेश राय, मनोज, सज्जन आदि शामिल थे.

विरोधाभासी बयानों से हुआ शक  अगले दिन थानाप्रभारी ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई, ताकि वारदात की रात फ्लैट के आसपास घटने वाली सभी गतिविधियों की बारीकी से जांच की जा सके. साथ ही मृतक सुनील तमांग और अनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स और सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांचपड़ताल करने के बाद थानाप्रभारी ने गौर किया कि अनीता के बयान विरोधाभासी थे. इसलिए अनीता को पुन: पूछताछ के लिए अमर कालोनी थाने बुलाया गया. उस से सघन पूछताछ की गई तो अनीता यही कहती रही कि वह रात साढ़े 11 बजे अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी, लेकिन वह वहां देर रात को क्यों गई, इस की वजह नहीं बता पाई.

पुलिस को लग रहा था कि वह झूठ पर झूठ बोल रही है. उस ने उस रात जिनजिन नंबरों पर बात की थी, उन के बारे में भी वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी. लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई और सुनील तमांग की हत्या में खुद के शामिल होने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में उस का भाई विजय छेत्री तथा जीजा राजेंद्र छेत्री भी शामिल थे. ये दोनों पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग शहर के रहने वाले थे. अनीता द्वारा अपने लिवइन पार्टनर की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

बाकी आरोपियों विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने एसआई अभिषेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित की. यह टीम 13 सितंबर, 2019 को वेस्ट बंगाल के कालिंपोंग शहर पहुंच गई. स्थानीय पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से जब सुनील तमांग की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन दोनों ने पुलिस को बरगलाने की काफी कोशिश की लेकिन बाद में जब उन्हें बताया गया कि अनीता गिरफ्तार हो चुकी है और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, तो उन दोनों ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

वेस्ट बंगाल की स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद दिल्ली पुलिस दोनों आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर दिल्ली लौट आई.

अनीता, विजय और राजेंद्र से की गई पूछताछ तथा पुलिस की जांच के आधार पर इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अनीता मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग की रहने वाली थी. करीब 5 साल पहले वह अपने पति से अनबन होने पर उसे छोड़ कर अपने सपनों को पंख लगाने के मकसद से दिल्ली आ गई थी. यहां उस की एक सहेली थी, जो बहुत शानोशौकत से रहती थी. वह सहेली जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी कर दिया करती थी.

दरअसल, अनीता स्कूली दिनों से ही खुले विचारों वाली एक बिंदास लड़की थी. वह जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीना चाहती थी, जबकि उस का पति एक सीधासादा युवक था. उसे अनीता का ज्यादा फैशनेबल होना तथा लड़कों से ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था.

विपरीत स्वभाव होने के कारण शादी के थोड़े दिनों बाद ही वे एकदूसरे को नापसंद करने लगे थे. बाद में जब बात काफी बढ़ गई तो एक दिन अनीता ने पति को छोड़ दिया और वापस अपने मायके चली आई. कुछ दिन तो वह मायके में रही, फिर बाद में उस ने अपने पैरों पर खडे़ होने का फैसला कर लिया. और वह दिल्ली आ गई.

वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, महज 8वीं पास थी. छोटे शहर की होने और कम शिक्षित होने के बावजूद उस का रहने का स्टाइल ऐसा था, जिसे देख कर लगता था कि वह काफी मौडर्न है.

दिल्ली पहुंचने के बाद अनीता ने अपनी उसी सहेली की मदद से ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग ली. इस के बाद वह एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने लगी. नौकरी करने से उस की माली हालत अच्छी हो गई और जिंदगी पटरी पर आ गई.

इसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात सुनील तमांग नाम के युवक से हुई जो नेपाल का रहने वाला था. उस की मां कुल्लू हिमाचल प्रदेश की थी. 28 वर्षीय सुनील दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित एक रेस्टोरेंट में कुक था.

दोनों एकदूसरे को चाहने लगे  कुछ दिनों तक दोस्ती के बाद वह सुनील को अपना दिल दे बैठी. सुनील अनीता की खूबसूरती पर पहले से ही फिदा था. एक दिन सुनील ने अनीता को अपने दिल की बात बता दी और कहा कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता है. इतना ही नहीं, वह उस से शादी रचाना चाहता है.

अनीता उस के दिल की बात जान कर खुशी से झूम उठी. उस ने सुनील से कहा कि पहले कुछ दिनों तक हम लोग साथ रह लेते हैं. फिर घर वालों की रजामंदी से शादी कर लेंगे. इस की एक वजह यह भी थी कि अभी पहले पति से अनीता का तलाक नहीं हुआ था. तलाक के बाद ही दूसरी शादी संभव हो सकती थी.

कोई 4 साल पहले अनीता ने सुनील तमांग के साथ चिराग दिल्ली में किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. दोनों एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. सुनील अनीता का काफी खयाल रखता था. अनीता भी सुनील के साथ लिवइन में रह कर खुद को भाग्यशाली समझती थी.

सुनील न केवल देखने में स्मार्ट था, बल्कि एक अच्छे पार्टनर की तरह उस की प्रत्येक छोटीछोटी बात का विशेष ध्यान रखता था. अनीता भी सुनील की खुशियों का खूब खयाल रखती थी. वह अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करती थी, जिस से सुनील की कोई भावना आहत हो.

अनीता और सुनील 3 सालों तक चिराग दिल्ली स्थित इस मकान में रहे. इस बीच जब अनीता की पगार अच्छी हो गई तो वह चिराग दिल्ली से लाजपत नगर आ गई. यहां वह ए.के. दत्ता के फ्लैट में किराए पर रहने लगी. यहां उस का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था.

इतने दिनों तक लिवइन रिलेशन में रहने के कारण दोनों के परिवार वाले भी उन के संबंधों से परिचित हो गए थे. अनीता का भाई विजय छेत्री जबतब कालिंपोंग से दिल्ली में उस के पास आता रहता था. उसे सुनील का व्यवहार पसंद नहीं था.

विजय ने अनीता की पसंद पर ऐतराज तो नहीं जताया लेकिन एक दिन उस ने सुनील की गैरमौजूदगी में अपने मन की बात अनीता को बता दी. चूंकि अनीता सुनील से प्यार करती थी, इसलिए उस ने भाई से सुनील का पक्ष लेते हुए कहा कि सुनील दिल का बुरा नहीं है लेकिन फिर भी अगर सुनील की कोई बात उसे अच्छी नहीं लगती है तो वह उसे कह कर इस में सुधार लाने का प्रयास करेगी.

विजय ने जब देखा कि उस की बहन ने उस की बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है तो उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. सुनील और अनीता को विजय की बातों से जरा भी फर्क नहीं पड़ा था.

लेकिन कहते हैं कि हर आदमी का वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है. सुनील तमांग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी बात को ले कर सुनील की रेस्टोरेंट से नौकरी छूट गई. नौकरी छूट जाने की वजह से वह परेशान तो हुआ लेकिन अनीता अच्छा कमा रही थी, इसलिए घर का खर्च आराम से चल जाता था.

हालांकि कुछ दिन बाद अनीता सुनील को समझाबुझा कर जल्दी कहीं नौकरी खोजने का दबाव बना रही थी, मगर 6 महीने तक सुनील को उस के मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली.

धीरेधीरे अनीता को ऐसा लगने लगा जैसे सुनील जानबूझ कर नौकरी नहीं करना चाहता है और अब वह उस के ही पैसों पर मौज करना चाहता है. ऐसा विचार मन में आते ही उस ने एक दिन तीखे स्वर में सुनील से कहा, ‘‘सुनील, या तो तुम जल्दी कहीं पर नौकरी ढूंढ लो अन्यथा मेरा साथ छोड़ कर यहां से कहीं और चले जाओ.’’

हालांकि अनीता ने यह बात सुनील को समझाने के लिए कही थी, लेकिन उस दिन के बाद सुनील के तेवर बदल गए. उस ने अनीता से कहा कि वह उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा और फिर भी अगर वह उसे जबरन खुद से दूर करने की कोशिश करेगी तो उस के पास अंतरंग क्षणों के कई फोटो मोबाइल पर पड़े हैं, जिन्हें वह उस के सगेसंबंधियों के मोबाइल पर भेज देगा, जिस के बाद वह कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

रुपयों की तंगी तथा सुनील की धमकी को सुन कर अनीता कांप उठी. इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अनीता ने सुनील को नौकरी ढूंढने पर जोर देती रही, लेकिन सुनील पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

अंत में अनीता ने कालिंपोंग स्थित अपने भाई विजय को अपनी मुसीबत के बारे में बताया तो विजय गुस्से से भर उठा. उस ने अनीता से कहा कि वह जल्द ही सुनील नाम के इस कांटे को उस की जिंदगी से निकाल फेंकेगा.

भाई ने बनाया हत्या का प्लान  भाई की बात सुन कर अनीता को राहत महसूस हुई. विजय को सुनील पहले से नापसंद था. अब जब अनीता खुद ही उस से छुटकारा पाना चाहती थी तो उस ने अपने रिश्ते के बहनोई राजेंद्र के साथ मिल कर सुनील को मौत की नींद सुलाने की योजना तैयार कर ली. इस के बाद उस ने अनीता को अपनी योजना के बारे में बताया तो अनीता ने दोनों को दिल्ली पहुंचने के लिए कह दिया.

7 सितंबर, 2019 को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग से नई दिल्ली पहुंचे और पहाड़गंज के एक होटल में रुके. अनीता फोन से बराबर भाई के संपर्क में थी. लेकिन सुनील अनीता और विजय के षडयंत्र से अनजान था. उसे सपने में भी गुमान नहीं था कि अनीता उस की ज्यादतियों से तंग आ कर उस का कत्ल भी करवा सकती है.

9 सितंबर को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पूर्वनियोजित योजना के अनुसार रात के 10 बजे अनीता के फ्लैट पर पहुंचे. अनीता दोनों से ऐसे मिली जैसे उन्हें पहली बार देखा हो. सुनील भी उन से घुलमिल कर बातें करने लगा.

साढ़े 11 बजे उस ने अचानक सब को बताया कि उसे अभी इसी वक्त अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा जाना है. इस के बाद वह तैयार हो कर फ्लैट से बाहर निकल गई.  रात में अनीता सुनील के मोबाइल पर काल कर के उस से 2-3 घंटे तक मीठीमीठी बातें करती रही.

तड़के करीब 4 बजे जैसे ही सुनील सोया, तभी विजय ने राजेंद्र के साथ मिल कर उस की गरदन पर चाकू से वार किया. थोड़ी देर तड़पने के बाद जब उस का शरीर ठंडा पड़ गया तो दोनों वहां से आनंद विहार के लिए निकल गए, क्योंकि वहां से उन्हें कालिंपोंग के लिए ट्रेन पकड़नी थी.

आनंद विहार जाने के दौरान रास्ते में विजय ने खून से सना चाकू एक सुनसान जगह पर फेंक दिया. आनंद विहार स्टेशन से रेलगाड़ी द्वारा वे कालिंपोंग पहुंच गए.

इन से विस्तार से पूछताछ करने के बाद अगले दिन 16 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने सुनील तमांग की हत्या के आरोप में उस की लिवइन पार्टनर अनीता, विजय छेत्री तथा राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन कर रहे थे.

पहले की पत्नी की हत्या, फिर लगाया आम का पेड़

घरवालों के लाख मना करने के बाद भी दीपा ने गांव के ही दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली. इस के बाद दीपा ने ऐसा क्या किया कि प्रेमी से पति बने समरजीत ने उस की हत्या कर लाश जमीन में दफना कर उस पर आम का पेड़ लगा दिया. समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी. दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है. गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था.

इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया. तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’ यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी. समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर गयाथोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है. समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई. रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया. उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला. चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले. दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था.

समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गयाचूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गयाथानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है. उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई. थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेतीकिसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गएदोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो. मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो.

उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे. घर वाले तैयार हों या हों, उन्हें इस बात की फिक्र थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी. कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई. समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दीचूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया. दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगादीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी. इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा. समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थेसमरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए. समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.  रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुम, आज इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला. कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगावह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगीतभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है. अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा. समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी. 23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दियाउस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछाजब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर गई थी. समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

प्यार में मिली मौत की सजा

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के औरास थाना क्षेत्र के टिकरा सामद गांव के रहने वाले परमेश्वर कनौजिया का नाम खुशहाल लोगों में गिना जाता था. इस के साथ ही उन की गांव में अच्छी धाक भी थी. इस का एक कारण यह भी था कि उन की पत्नी उर्मिला देवी टिकरा सामद गांव की पूर्व प्रधान रह चुकी थी.

जब तक परमेश्वर कनौजिया के परिवार में ग्राम प्रधानी रही, तब तक वह गांव वालों के हर सुखदुख में शुमार होते रहे लेकिन अगले चुनाव में हाथ से ग्राम प्रधानी चली जाने के बाद वह अपने 3 बेटों जिस में बड़े रिंकू, मझले जितेंद्र व 18 वर्षीय छोटे बेटे धर्मेंद्र के साथ मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कालोनी में लौंड्री का काम करने लगे थे.

यहां रहते हुए उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र काम के साथ पढ़ाई भी करता रहा और साल 2020 में उस ने 12वीं की परीक्षा भी दी थी.

लेकिन साल 2020 लगते ही कोरोना के चलते देश के हालात खराब होने लगे तो सरकार ने देश भर में लौकडाउन लगाने का फैसला कर लिया तो लोग शहरों से वापस अपने गांव में पलायन करने लगे.

चूंकि मुंबई में लौकडाउन होने से सारे कामधंधे बंद होने लगे थे, ऐसे में परमेश्वर कनौजिया को भी लौंड्री का बिजनैस अस्थाई रूप से बंद करना पड़ा.

शुरू में परमेश्वर कनौजिया को लगा कि सरकार कुछ दिनों बाद लौकडाउन खोल देगी. लेकिन बाद में जब उन्हें लौकडाउन में ढील के कोई आसार नहीं दिखे तो उन्होंने अप्रैल 2020 में अपने तीनों बेटों के साथ गांव वापस आने का फैसला कर लिया और किसी तरह लौकडाउन के समय में ही मुंबई से गांव लौट आए.

मुंबई से गांव वापस आने के बाद लौकडाउन के चलते कोई कामधंधा करना संभव नहीं था. इसलिए परमेश्वर कनौजिया अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पूरा दिन घर पर ही बिता रहे थे. लेकिन उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया अकसर ही गांव में टहलने निकल जाता था.

उधर जैसेजैसे देश में कोरोना के केस कम हुए तो सरकार ने भी लौकडाउन में छूट देनी शुरू कर दी थी, जिस से धीरेधीरे कामकाज भी पटरी पर आना शुरू हो चुका था.

साल 2020 का जुलाई आतेआते तमाम लोग जो मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों से वापस गांव आ गए थे, वे फिर से कामकाज की तलाश में वापस जाना शुरू कर चुके थे.

लेकिन परमेश्वर कनौजिया अभी भी गांव से वापस मुंबई नहीं गए थे. ऐसे में वह अपने बेटों के साथ घर के कामकाज निबटाते रहे.

 

रोज की तरह परमेश्वर कनौजिया का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया दोपहर का खाना खा कर 19 अगस्त, 2020 को भी घर से टहलने निकला था, लेकिन हर रोज की तरह वह जब शाम तक वापस न लौटा तो परिजन धर्मेंद्र के मोबाइल पर काल लगाने लगे. लेकिन उस का फोन भी स्विच्ड औफ बताया जा रहा था.

ऐसे में परमेश्वर कनौजिया अपने परिजनों के साथ धर्मेंद्र की तलाश में घर से निकल कर आसपास पता करने लगे, लेकिन धर्मेंद्र के बारे में किसी से कुछ भी पता नहीं चला.

परमेश्वर कनौजिया को धर्मेंद्र के गायब होने का कोई कारण भी समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वह और उन के परिवार के सभी सदस्य धर्मेंद्र से बेहद प्यार करते थे, इसलिए कभी उसे डांटफटकार भी नहीं पड़ती थी.

वह ज्यादा परेशान हो उठे थे. वहीं उन की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी जिस से लगे कि किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उन के बेटे को गायब कर दिया हो. रही बात कहीं जाने की तो वह हाल में ही लौकडाउन के चलते मुंबई से आया था.

वह अपने घर के लोगों के साथ धर्मेंद्र के दोस्तों और परिचितों के यहां जब देर रात तक उसे खोजते रहे और उस का कोई पता नहीं चला तो उन्होंने पुलिस को बेटे की गुमशुदगी की सूचना देने का निर्णय लिया और 20 अगस्त की सुबह थाना औरास पहुंचे.

थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने जांच की बात कह कर उन्हें लौटा दिया.

थाने से पुलिस से अपेक्षित सहयोग न मिलने से निराश हो कर धर्मेंद्र के पिता गांव वापस लौट आए और फिर से आसपास तलाश करने लगे. परमेश्वर कनौजिया अपने दोनों बेटों के साथ धर्मेंद्र की तलाश कर ही रहे थे कि उन्हें अपने घर से करीब 300 मीटर दूर धर्मेंद्र की चप्पलें पड़ी हुई मिल गईं.

धर्मेंद्र के चप्पल मिलने के बाद उस के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. घर वाले किसी अनहोनी के अंदेशे के साथ चप्पल मिलने वाली जगह से आगे बढ़े तो 200 मीटर दूर गिरिजाशंकर द्विवेदी के आम के बाग के पास से निकले सकरैला नाले में धर्मेंद्र का औंधे मुंह शव पड़ा देखा, जहां धर्मेंद्र का पूरा शरीर पानी में और सिर बाहर था. इसे देख कर सभी बदहवास हो रोने लगे.

इस के बाद रोतेबिलखते धर्मेंद्र  के पिता परमेश्वर कनौजिया ने औरास थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की सूचना दी. धर्मेंद्र की हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबहादुर ने इस की  सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी और वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने ग्रामीणों की मदद से धर्मेंद्र कनौजिया के शव को बाहर निकलवाया. उधर घटना की सूचना पा कर बांगरमऊ सीओ गौरव त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच चुके थे.

नाले से धर्मेंद्र की लाश बाहर निकालने के बाद पिता परमेश्वर व मां उर्मिला देवी का कहना था कि उन के बेटे की हत्या की गई है और शरीर में मारपीट जैसे चोट के निशान भी हैं क्योंकि धर्मेंद्र के चेहरे पर सूजन, पैंट की जेब में मिले मोबाइल में खून के निशान थे. जिस के आधार पर वे बारबार बेटे की हत्या किए जाने की बात दोहरा रहे थे.

वहीं दूसरी ओर पुलिस का कहना था कि मृतक धर्मेंद्र की लाश पर किसी तरह के चोट का निशान नहीं दिखाई पड़ रहा था. लिहाजा पोस्टमार्टम से पहले कहना मुश्किल था कि उस की हत्या की गई है. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी और मृतक के पिता परमेश्वर कनौजिया से किसी से दुश्मनी होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन का या उन के परिवार के किसी भी सदस्य का किसी से भी झगड़ा या दुश्मनी नहीं थी.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की मौत के कारणों को ले कर छानबीन कर ही रही थी कि अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत का कारण स्पष्ट नहीं था. इस वजह से धर्मेंद्र का विसरा सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया. जिस के कुछ दिनों बाद ही विसरा की जांच रिपोर्ट भी आ गई. विसरा रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत जहर से होनी बताई गई थी.

विसरा रिपोर्ट मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि धर्मेंद्र की हत्या की गई है. लेकिन पुलिस को हत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था जिस के आधार पर हत्यारों तक पहुंचा जा सके. इसलिए पुलिस के सामने हत्या के कारण और हत्यारों तक पहुंचना चुनौती बना हुआ था.

ऐसे में पुलिस ने सर्विलांस की मदद से धर्मेंद्र के हत्यारों तक पहुचने का प्रयास शुरू कर दिया और मृतक के मोबाइल नंबर की पिछले एक सप्ताह की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कर दी.

धर्मेंद्र की हत्या के लगभग एक महीना बीतने को था, लेकिन पुलिस अभी भी हत्या के कारणों का पता लगाने व हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही थी. धर्मेंद्र की काल डिटेल्स के आधार पर भी हत्यारों तक पहुंचना पुलिस को कठिन लग रहा था.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की हत्या के मामले की जांच कर ही रही थी, इसी दौरान परमेश्वर कनौजिया को पता चला कि धर्मेंद्र के गायब होने वाले दिन आखिरी बार उसे गांव के ही रहने वाले लक्ष्मण, राहुल कनौजिया, संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत कनौजिया के साथ देखा गया था.

यह जानकारी मिलते ही परमेश्वर कनौजिया ने 17 सितंबर, 2020 को औरास थाने पहुंच कर संजीत व रंजीत, राहुल और लक्ष्मण के खिलाफ बेटे की हत्या में शामिल होने की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जब पुलिस आरोपियों के घर पहुंची तो सभी हत्यारोपी घर से फरार मिले. इस के आधार पर आरोपियों पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया. पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन आरोपी हाथ नहीं आए.

धर्मेंद्र की हत्या के कई माह बीत चुके थे और पुलिस लगातार आरोपियों के घर और संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन इस मामले में पुलिस के हाथ अब भी खाली थे.

इसे ले कर मृतक के घर वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कई बार एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी के साथसाथ उच्चाधिकारियों से गुहार भी लगा चुके थे.

इसी बीच थानाप्रभारी राजबहादुर की जगह औरास थाने की कमान तेजतर्रार हरिप्रसाद अहिरवार को सौंप दी गई थी.

चूंकि इस मामले का परदाफाश न होना पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. ऐसे में एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी और एएसपी शशिशेखर ने खुद इस मामले पर नजर रखते हुए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया.

अब नए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार  ने नए सिरे से आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाना शुरू किया. इसी बीच उन्हें 20 मई, 2021 को मुखबिरों से खबर मिली कि लक्ष्मण, राहुल, संजीत रंजीत उन्नाव की मड़ैचा तिराहे के पास हैं और कहीं भागने की फिराक में हैं.

इस सूचना के बाद थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने हैडकांस्टेबल दिलीप सिंह, कांस्टेबल प्रशांत, हर्षदीप व आशीष के साथ जाल बिछा कर मड़ैचा तिराहे से चारों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस आरोपियों को पकड़ कर थाने ले आई और धर्मेंद्र कनौजिया की हत्या के बारे में पूछताछ करने लगी. लेकिन चारों ही धर्मेंद्र की हत्या में शामिल होने की बात से नकारते रहे.

जब पुलिस को लगा कि आरोपी आसानी से हत्या की बात कुबूलने वाले नहीं हैं तो कड़ाई से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में चारों टूट गए और उन्होंने धर्मेंद्र की हत्या की बात कुबूल ली.

आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि उन लोगों ने वारदात वाले दिन राहुल, संजीत व रंजीत की मदद से धर्मेंद्र को गांव के बगीचे में बुला कर मछली के साथ शराब पार्टी रखी थी. जहां पहले से ही धर्मेंद्र की हत्या करने के लिए जहर खरीद कर रख लिया था.

आरोपियों ने धर्मेंद्र को जम कर शराब पिलाई और जब वह नशे में धुत हो गया तो मौका देख राहुल ने उस के शराब के गिलास में जहर मिला दिया. जहर मिली शराब पीने के बाद धर्मेंद्र अचेत हो कर गिर पड़ा. इस के बाद धर्मेंद्र की मौत का इंतजार करते रहे और जब उस की मौत हो गई तो धर्मेंद्र की लाश सकरैला नाले में फेंक दी.

पुलिस ने जब आरोपियों से हत्या का कारण पूछा तो आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि धर्मेंद्र कनौजिया उस की बेटी से प्रेम करता था और वह अकसर उस के घर उस की बेटी से मिलने आया करता था.

लक्ष्मण ने बताया कि वह अकसर दोनों को समझाता रहता था. लेकिन धर्मेंद्र के सिर पर प्रेम का मानो भूत सवार था.

धर्मेंद्र लगातार उस की बेटी के साथ नजदीकियां बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच लक्ष्मण के घर पर गांव के ही राहुल का आनाजाना शुरू हो गया, उस ने भी जब पहली बार लक्ष्मण की बेटी को देखा तो उस की खूबसूरती और चढ़ती जवानी को देख उस पर लट्टू हो गया.

अब राहुल लक्ष्मण के बेटी को देखने अकसर बहाने से उस के घर आने लगा था. वह जब भी आता तो लक्ष्मण की बेटी को देख अपनी सुधबुध खो बैठता था. उस के मन में लक्ष्मण की बेटी को ले कर कब प्यार की कोपलें पनपने लगीं, उसे पता ही नहीं चला.

लेकिन उस के सामने एक बड़ी समस्या धर्मेंद्र था. क्योंकि वह भी उसी के चक्कर में अकसर लक्ष्मण के घर आया करता था. इधर लगातार राहुल के घर आने से लक्ष्मण की बेटी का प्यार धर्मेंद्र से कम होता गया और वह राहुल की तरफ आकर्षित होने लगी.

अब वह धर्मेंद्र की जगह राहुल से प्यार करने लगी और दोनों में काफी नजदीकियां भी बढ़ चुकी थीं. इस वजह से अब वह धर्मेंद्र से दूरी बनाने लगी थी. लेकिन धर्मेंद्र दूरी नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह उस से हद से ज्यादा प्यार करने लगा था.

लक्ष्मण ने बताया कि उस की बेटी राहुल से प्यार के चलते धर्मेंद्र से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन धर्मेंद्र उस से दूर जाने के बजाय और करीब आने की कोशिश करने लगा था.

कई बार मना करने के बावजूद भी धर्मेंद्र का रोजाना घर आना उसे बरदाश्त नहीं था. इसलिए उस ने धर्मेंद्र को रास्ते से हटाने का खौफनाक निर्णय ले लिया. इस के लिए लक्ष्मण ने बेटी के दूसरे प्रेमी राहुल के साथ ही संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत को भी धर्मेंद्र की हत्या की साजिश में शामिल कर लिया.

फिर तय प्लान के अनुसार धर्मेंद्र को विश्वास में ले कर उसे शराब और मछली की पार्टी के लिए गांव से सटे बगीचे में बुलाया, जहां 19 अगस्त, 2020 को पार्टी के दौरान उस के शराब के पैग में जहर मिला कर उस की हत्या कर दी और लाश पास के नाले में फेंक दी.

पुलिस ने धर्मेंद्र की हत्या के नौवें महीने में साजिश का परदाफाश कर दिया और आरोपियों के बयान दर्ज कर धारा 302, 201, 34 भादंवि के तहत न्यायलय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक आरोपी जेल में ही थे.

एक माशूका का खौफनाक बदला

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं.

शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.

इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.

बचपन की मासूमियत

संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे. अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे. चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे.

संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे. अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था.

जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.

धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे. किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.

जवानी की आग

यों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता.

बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझाने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे.

इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा.

उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे. खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई

जैसा कि गांवदेहातों में होता है, 16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे.

यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’

संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि  संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी.

इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी. होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.

संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है.

संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था. उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा.

बेवफाई की दी सजा

राजो का अंदाजा गलत नहीं था. एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है.

वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी. 23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन में लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे.

रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई. जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा.

मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा. एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.

दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए.

संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झूठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है.

पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.

पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था.

तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की.

पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था.

राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है.

जिस्मफरोशी के नए अड्डे

इटावा के सिविल लाइंस क्षेत्र में रहने वाले उमेश शर्मा बैंक औफ बड़ौदा में सीनियर मैनेजर थे. वह 2 साल पहले रिटायर हो गए थे. रिटायर होने के बाद उन्होंने खुद को समाजसेवा में लगा दिया था. अपनी सेहत के प्रति वह सजग रहते थे, इसीलिए वाकिंग करने नियमित विक्टोरिया पार्क में जाते थे.

इटावा का विक्टोरिया पार्क वैसे भी पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है. पहले यहां एक बहुत बड़ा पक्का तालाब था. ब्रिटिश शासनकाल में महारानी विक्टोरिया यहां आई थीं तो उन्होंने इस पक्के तालाब में नौका विहार किया था. इस के बाद यहां विक्टोरिया मैमोरियल की स्थापना हुई. अब यह पार्क एक रमणीक स्थल बन गया है.

एक दिन उमेश शर्मा विक्टोरिया पार्क गए तो वहां उन की मुलाकात देवेश कुमार से हुई जो उन का दोस्त था. उसे देख कर वह चौंक गए. क्योंकि 50-55 की उम्र में भी वह एकदम फिट था. उमेश शर्मा उस से 8-10 साल पहले तब मिले थे, जब देवेश कुमार की पत्नी का देहांत हुआ था.

वर्षों बाद दोनों मिले तो वे पार्क में एक बेंच पर बैठ कर बतियाने लगे. उमेश ने महसूस किया कि पत्नी के गुजर जाने के बाद देवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, वह पहले से ज्यादा खुश दिखाई दे रहा था.

काफी देर तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. उसी दौरान उमेश शर्मा ने पूछा, ‘‘देवेश यार, यह बताओ तुम्हारी सेहत का राज क्या है. लगता है भाभीजी के गुजर जाने के बाद

तुम्हारे ऊपर फिर से जवानी आई है. क्या खाते हो तुम, जो तुम्हारी उम्र ठहर गई है.’’

‘‘उमेश भाई, खानापीना तो कोई खास नहीं है. मैं भी वही 2 टाइम रोटी खाता हूं जो आप खाते हो. लेकिन मैं अपनी मसाज पर ज्यादा ध्यान देता हूं.’’ देवेश बोला.

‘‘मसाजऽऽ’’ उमेश शर्मा चौंके.

‘‘हां भई, मैं सप्ताह में 1-2 बार मसाज जरूर कराता हूं.’’

‘‘लगता है, मसाज किसी अच्छे मसाजिए से कराते हो?’’ उमेश शर्मा ने ठिठोली की.

‘‘सही कह रहे हैं आप, मैं जिन से मसाज कराता हूं वे सारे मसाजिए बहुत अनुभवी हैं. वे शरीर की नसनस खोल देते हैं. आप भी एक बार करा कर देखो, फिर आप को भी ऐसी आदत पड़ जाएगी कि शौकीन बन जाओगे.’’ देवेश ने कहा.

‘‘अरे भाई, आप ठहरे बड़े बिजनैसमैन और हम रिटायर्ड कर्मचारी, इसलिए हम भला आप की होड़ कैसे कर सकते हैं. सरकार से जो पेंशन मिलती है, उस से गुजारा हो जाए वही बहुत है. वैसे जानकारी के लिए यह तो बता दो कि मसाज कराते कहां हो?’’ उमेश शर्मा ने पूछा.

‘‘उमेश भाई, आप अभी तक सीधे ही रहे. मैं आप के सिविल लाइंस एरिया के ही ग्लैमर मसाज सेंटर पर जाता हूं. वहां पर लड़कियां जिस अंदाज में मसाज के साथ दूसरे तरह का जो मजा देती हैं, वह काबिलेतारीफ है. आप को तो पता ही है कि मैं शौकीनमिजाज हूं, लड़कियों का कद्रदान.’’ देवेश ने बताया.

‘‘देवेश, तुम इस उम्र में भी नहीं सुधरे.’’ उमेश शर्मा बोले.

‘‘देखो भाई, मेरा जिंदगी जीने का तरीका अलग है. मैं लाइफ में फुल एंजौय करता हूं. कमाई के साथ लाइफ में एंजौय भी जरूरी है. भाई उमेश, मैं अपने तजुर्बे की बात आप को बता रहा हूं. देखो, मैं ने कृष्णानगर के वेलकम स्पा सेंटर के अलावा अन्य कई होटलों में चल रहे मसाज सेंटरों की सेवाएं ली हैं, लेकिन जितना मजा मुझे ग्लैमर मसाज सेंटर में आता है, उतना कहीं और नहीं आया.

ग्लैमर मसाज सेंटर की संचालिका कविता स्कूल, कालेज गर्ल से ले कर हाउसवाइफ तक उपलब्ध कराने में माहिर है. मेरी बात मानो तो एक बार आप भी मेरे साथ चल कर जलवे देख लो.’’ देवेश ने उमेश शर्मा को उकसाया.

‘‘नहीं देवेश, आप को तो पता है कि मैं इस तरह के कामों से बहुत दूर रहता हूं.’’ उमेश शर्मा ने कहा. कुछ देर बात करने के बाद दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए.

देवेश से बातचीत में उमेश शर्मा को चौंकाने वाली जानकारी मिली थी. वह यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि उन की कालोनी में मसाज सेंटर के नाम पर जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा था और उन्हें जानकारी तक नहीं थी. इस धंधे में स्कूल कालेज की लड़कियों को फांस कर ये लोग उन की जिंदगी तबाह कर रहे थे. चूंकि उमेश शर्मा खुद समाजसेवी थे, इसलिए वह इस बात पर विचार करने लगे कि जिस्मफरोशी के अड्डों को कैसे बंद कराया जाए.

उमेश शर्मा का इटावा के एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा से परिचय था. वह सामाजिक क्रियाकलापों को ले कर एसएसपी साहब से कई बार मुलाकात कर चुके थे. लिहाजा उन्होंने सोच लिया कि इस बारे में एसएसपी से मुलाकात करेंगे. और फिर एक दिन एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा से मिल कर उमेश शर्मा ने उन्हें स्पा और मसाज सेंटरों की आड़ में चल रहे जिस्मफरोशी के धंधे की जानकारी दे दी.

एसएसपी ने इस सूचना को गंभीरता से लिया. जैसी उन्हें सूचना मिली, उस के अनुसार यह धंधा शहर की पौश कालोनियों के अलावा कुछ होटलों में भी चल रहा था. इसलिए उन्होंने  सूचना की पुष्टि के लिए अपने खास सिपहसालारों तथा मुखबिरों को लगा दिया और उन से एक सप्ताह के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा.

एक सप्ताह बाद मुखबिरों व सिपहसालारों ने जो रिपोर्ट एसएसपी संतोष कुमार मिश्र के समक्ष पेश की, वह चौंकाने वाली थी. उन्होंने बताया कि स्पा और मसाज सेंटरों में ही नहीं, बल्कि शहर के कई मोहल्लों में देहव्यापार जोरों से चल रहा है. उन्होंने कुछ ऐसे मकानों की भी जानकारी दी, जहां किराएदार बन कर रहने वाली महिलाएं देह व्यापार में संलग्न थीं.

रिपोर्ट मिलने के बाद एसएसपी ने एएसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह, एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह, महिला थानाप्रभारी सुभद्रा कुमारी, क्राइम ब्रांच तथा 1090 वूमन हेल्पलाइन की प्रमुख मालती सिंह को बुला कर एक महत्त्वपूर्ण बैठक बुलाई.

बैठक में एसएसपी ने शहर में पनप रहे देह व्यापार के संबंध में चर्चा की तथा उन अड्डों पर छापा मारने की अतिगुप्त रूपरेखा तैयार की. इस का नाम उन्होंने ‘औपरेशन क्लीन’ रखा.

इस के लिए उन्होंने 4 टीमों का गठन किया. टीमों के निर्देशन की कमान एएसपी (सिटी) डा. रामयश तथा एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह को सौंपी गई.

योजना के अनुसार 22 सितंबर, 2019 की रात 8 बजे चारों टीमों ने सब से पहले सिविल लाइंस स्थित ग्लैमर मसाज सेंटर पर छापा मारा. छापा पड़ते ही मसाज सेंटर में अफरातफारी मच गई. यहां से पुलिस ने संचालिका सहित 4 महिलाओं तथा 3 पुरुषों को गिरफ्तार किया.

काउंटर पर बैठी महिला को छोड़ कर सभी महिलापुरुष अर्धनग्न अवस्था में पकड़े गए थे. इन में एक छात्रा भी थी. उस का स्कूल बैग भी बरामद हुआ.

मसाज सेंटर पर छापा मारने के बाद संयुक्त टीमों ने कृष्णानगर स्थित वेलकम स्पा सेंटर पर छापा मारा. यहां से पुलिस टीम ने नग्नावस्था में 2 पुरुष तथा 2 महिलाओं को पकड़ा. पकड़े जाने के बाद वे सभी छोड़ देने को गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी.

इस के बाद पुलिस ने स्टेशन रोड स्थित एक मकान पर छापा मारा. पूछने पर पता चला कि पकड़ी गई महिला तथा पुरुष पतिपत्नी हैं. पति ही पत्नी की दलाली करता था. पत्नी के साथ एक ग्राहक भी पकड़ा गया. इस मकान से पुलिस ने 2 संदिग्ध महिलाओं को भी गिरफ्तार किया. लेकिन जब उन दोनों से पूछताछ की गई तो वे निर्दोष साबित हुईं. अत: उन दोनों को पुलिस ने छोड़ दिया.

पुलिस टीमों को सफलता पर सफलता मिलती जा रही थी. अत: टीमों का हौसला भी बढ़ता जा रहा था. इस के बाद पुलिस ने चंद्रनगर, शांतिनगर तथा सैफई रोड स्थित कुछ मकानों पर छापा मारा और वहां से 7 महिलाओं तथा 8 पुरुषों को रंगेहाथ गिरफ्तार किया. पकड़ी गई युवतियों में 2 छात्राएं थीं जो कालेज जाने के बहाने घर से निकली थीं और देह व्यापार के अड्डे पर पहुंच गई थीं.

पुलिस टीम ने शहर के 2 होटलों तथा एक रेस्तरां पर भी छापा मारा लेकिन यहां से कोई नहीं पकड़ा गया. हालांकि होटल से 2 प्रेमी जोड़ों से पूछताछ की गई, पूछताछ में पता चला कि उन की शादी तय हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने उन्हें जाने दिया. रेस्तरां से पुलिस ने एक शादीशुदा जोड़े से भी पूछताछ की, जो रिलेशनशिप में रह रहे थे. वेरीफिकेशन के बाद पुलिस ने उन्हें भी जाने दिया.

छापे में पुलिस टीमों ने 14 कालगर्ल्स तथा 15 ग्राहकों को पकड़ा था. कालगर्ल्स को महिला थाना तथा पुरुषों को सिविल लाइंस थाने में बंद किया गया. महिला थानाप्रभारी सुभद्रा कुमारी वर्मा ने कालगर्ल्स से पूछताछ की.

पकड़ी कालगर्ल्स नेहा, माया, कविता, पूनम, गौरी, रिया, शमा, रीतू, साधना, शालू, अर्चना, दीपा, अमिता तथा मानसी थीं, वहीं जो ग्राहक गिरफ्तार हुए थे, उन के नाम पंकज, मनोज, अशोक, सुनील, अमन, आलोक, रमेश, पवन, रोहित, विक्की, उमेश, राजू, महेश, मनीष तथा प्रमोद थे. ये सभी इटावा, भरथना, इकदिल तथा बकेवर के रहने वाले थे.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना पर एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा भी महिला थाने पहुंच गए. वहीं पर उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर पत्रकारों को विभिन्न जगहों से गिरफ्तार की गई कालगर्ल्स और ग्राहकों की जानकारी दी.

कहीं खुद पति पत्नी का दलाल तो कहीं मजबूर लड़कियां  पकड़ी गई कालगर्ल्स से विस्तृत पूछताछ की गई तो सभी ने इस धंधे में आने की अलगअलग कहानी बताई. नेहा मूलरूप से इटावा जिले के लखुना कस्बे की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. उस के पिता एक ज्वैलर्स के यहां काम करते थे.

पिता को मामूली वेतन मिलता था, जिस से परिवार का भरणपोषण भी मुश्किल से होता था. भरणपोषण के लिए कभीकभी उन्हें कर्ज भी लेना पड़ जाता था. जब वह इस कर्ज को समय पर चुकता नहीं कर पाते थे, तो उन्हें बेइज्जत भी होना पड़ता था.

नेहा बेहद खूबसूरत थी. वह कस्बे के बाल भारती स्कूल में 10वीं की छात्रा थी. 16-17 साल की उम्र ही ऐसी होती है कि लड़कियां खुली आंखों से सपने देखने लगती हैं. नेहा भी इस का अपवाद नहीं थी. उम्र के तकाजे ने उस पर भी असर किया और वह इंटरमीडिएट में पढ़ने वाले अर्जुन से दिल लगा बैठी. दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो उन के प्यार के चर्चे होने लगे.

पिता को जब नेहा के बहकते कदमों की जानकारी हुई तो वह चिंता में पड़ गए. नेहा उन की पीठ में इज्जत का छुरा घोंप कर कोई दूसरा कदम उठाए, उस के पहले ही उन्होंने उस की शादी करने का फैसला किया. दौड़धूप के बाद उन्होंने नेहा का विवाह इकदिल कस्बा निवासी गोपीनाथ के बेटे मनोज से कर दिया.

खूबसूरत नेहा से शादी कर के मनोज बहुत खुश हुआ. शादी के एक साल बाद नेहा एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम हर्ष रखा गया. बस इस के कुछ दिनों बाद से ही नेहा मनोज की नजरों से उतरनी शुरू हो गई.

इस की वजह यह थी कि शादी के बाद भी नेहा मायके के प्रेमी अर्जुन को भुला नहीं पाई थी. वह नेहा से मिलने आताजाता रहता था. यह बात मनोज को भी पता चल गई थी.

वक्त गुजरता गया. वक्त के साथ मनोज के मन में यह शक भी बढ़ता गया कि हर्ष उस की नहीं बल्कि अर्जुन की औलाद है. हर्ष की पैदाइश को ले कर मनोज नेहा से कुछ कहता तो वह चिढ़ कर झगड़ा करने लगती. रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर एक रोज उस ने पति को सलाह दी कि अगर तुम्हें लगता है कि अर्जुन से अब भी मेरे संबंध हैं तो यह घर छोड़ कर इटावा शहर में बस जाओ.

नेहा की यह बात मनोज को अच्छी लगी. मनोज का दोस्त अनुज इटावा शहर में ठेकेदारी करता था. उस ने इटावा जा कर अनुज से बात की. अनुज ने अपने स्तर से उसे अपने यहां काम पर लगा लिया और स्टेशन रोड स्थित एक मकान में किराए पर कमरा दिलवा दिया. मनोज अपने बीवीबच्चे को वहीं ले आया.

शहर आ कर मनोज ने चैन की सांस ली. उस के मन से अर्जुन को ले कर जो शक बैठ गया था, वह धीरेधीरे उतरने लगा. नेहा ने भी सुकून की सांस ली कि अब उस के घर में कलह बंद हो गई. दोनों के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे.

पर खुशियों के दिन अधिक समय तक टिक न सके. दरअसल, इटावा शहर आ कर मनोज को भी शराब की लत लग गई थी. पहले वह बाहर से पी कर आता था, बाद में दोस्तों के साथ घर में ही शराब की महफिल जमाने लगा. रोज शराब पीने से एक ओर मनोज जहां कर्ज में डूबता जा रहा था, वहीं कुछ दिनों से नेहा ने महसूस किया कि पति के दोस्त शराब पीने के बहाने उस की सुंदरता की आंच में आंखें सेंकने आते हैं. ऐसे दोस्तों में एक अनुज भी था.

नेहा ने कई बार मनोज से कहा भी कि वह छिछोरे दोस्तों को घर न लाया करे, लेकिन वह नहीं माना. मनोज क्या करना चाहता है, नेहा समझ नहीं पा रही थी. जब तक वह समझी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

एक शाम मनोज काम से कुछ जल्दी घर  आ गया. आते ही बोला, ‘‘नेहा, तुम सजसंवर लो. तुम्हें मेरे साथ चलना है. हम वहां नहीं गए तो वह बुरा मान जाएगा.’’

नेहा खुश हो गई. मुसकरा कर बोली, ‘‘आज बड़े मूड में लग रहे हो. वैसे यह तो बता दो कि जाना कहां है?’’

‘‘मेरे दोस्त अनुज को तुम जानती हो. आज उस ने हमें खाने पर बुलाया है.’’ मनोज ने कहा.

मनोज ने बीवी को ही झोंका धंधे में  अनुज का नाम सुनते ही नेहा के माथे पर शिकन पड़ गई, क्योंकि उस की नजर में अनुज अच्छा आदमी नहीं था. मनोज के साथ घर में बैठ कर वह कई बार शराब पी चुका था और नशे में उसे घूरघूर कर देखता रहता था. नेहा की इच्छा तो हुई कि वह साफ मना कर दे, लेकिन उस ने मना इसलिए नहीं किया कि मनोज का मूड खराब हो जाएगा. वह गालियां बकनी शुरू कर देगा और घर में कलह होगी.

नेहा नहाधो कर जाने को तैयार हो गई तो मनोज आटो ले आया. दोनों आटो से अनुज के घर की ओर चल पड़े. थोड़ी देर में आटो रुका तो नेहा समझ गई कि अनुज का घर आ गया है. मनोज ने दरवाजा थपथपाया तो दरवाजा अनुज ने ही खोला. मनोज के साथ नेहा को देख कर अनुज का चेहरा चमक उठा. उस ने हंस कर दोनों का स्वागत किया और उन्हें भीतर ले गया.

घर के भीतर सन्नाटा भांयभांय कर रहा था. सन्नाटा देख कर नेहा अनुज से पूछ बैठी, ‘‘आप की पत्नी नजर नहीं आ रहीं, कहां हैं?’’

‘‘वह बच्चों को ले कर मायके गई है.’’ अनुज ने हंस कर बताया.  नेहा ने पति को घूर कर देखा तो वह बोला, ‘‘थोड़ी देर की तो बात है, खापी कर हम घर लौट चलेंगे.’’

अनुज किचन से गिलास और नमकीन ले कर आ गया. पैग बने, चीयर्स के साथ जाम टकराए और दोनों दोस्त अपना हलक तर करने लगे. फिर तो ज्योंज्यों नशा चढ़ता गया, त्योंत्यों दोनों अश्लील हरकतें व भद्दा मजाक करने लगे. पीने के बाद तीनों ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. खाना खाने के बाद मनोज पास पड़ी चारपाई पर जा कर लुढ़क गया.

इसी बीच अनुज ने नेहा को अपनी बांहों में जकड़ लिया और अश्लील हरकतें करने लगा. नेहा ने विरोध किया और इज्जत बचाने के लिए पति से गुहार लगाई. लेकिन मनोज उसे बचाने नहीं आया. अनुज ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उस के बाद दोनों घर आ गए. जैसेतैसे रात बीती. सुबह मनोज जब काम पर जाने लगा तो उस से बोला, ‘‘नेहा, तुम सजसंवर कर शाम को तैयार रहना. आज रात को भी हमें एक पार्टी में चलना है.’’

नेहा ने उसे सुलगती निगाहों से देखा, ‘‘आज फिर किसी दोस्त के घर पार्टी है…’’

मनोज मुसकराया, ‘‘बहुत समझदार हो.  मेरे बिना बताए ही समझ गई. जल्दी से अमीर बनने का यही रास्ता है.’’ मनोज ने जेब से 2 हजार रुपए निकाल कर नेहा को दिए, ‘‘यह देखो, अनुज ने दिए हैं. इस के अलावा एक हजार रुपए का कर्ज भी उस ने माफ कर दिया.’’

नेहा की आंखें आश्चर्य से फट रह गईं. मनोज ने उस से देह व्यापार कराना शुरू कर दिया था. कल कराया. आज के लिए उस ने ग्राहक तय कर के रखा हुआ था. शाम को मनोज ने नेहा को साथ चलने को कहा तो उस ने मना कर दिया. इस पर मनोज ने उसे लातघूंसों से पीटा और जबरदस्ती अपने साथ ले गया.

इस के बाद तो यह एक नियम सा बन गया. मनोज रात को रोजाना नेहा को आटो से कहीं ले जाता. वहां से दोनों कभी देर रात घर लौटते, तो कभी सुबह आते. कभी मनोज अकेला ही रात को घर आता, जबकि नेहा की वापसी सुबह होती. नेहा भी इस काम में पूरी तरह रम गई.

धीरेधीरे जब ग्राहकों की संख्या बढ़ी तो नेहा ग्राहकों को अपने घर पर ही बुलाने लगी. छापे वाले दिन मनोज ने जिस्मफरोशी के लिए 2 ग्राहक तैयार किए थे. पहला ग्राहक मौजमस्ती कर के चला गया था, दूसरा ग्राहक सुनील जब नेहा के साथ था, तभी पुलिस टीम ने छापा मारा और वे तीनों पकड़े गए.

पुलिस द्वारा पकड़ी गई पूनम इकदिल कस्बे में रहती थी. उस के मांबाप की मृत्यु हो चुकी थी. एक आवारा भाई था, जो शराब के नशे में डूबा रहता था. कम उम्र में ही पूनम को देह सुख का चस्का लग गया था. पहले वह देह सुख एवं आनंद के लिए युवकों से दोस्ती गांठती थी, फिर वह उन से अपनी फरमाइशें पूरी कराने लगी. यह सब करतेकरते वह कब देहजीवा बन गई, स्वयं उसे भी पता नहीं चला.

पूनम को भिन्नभिन्न यौन रुचि वाले पुरुष मिले तो वह सैक्स की हर विधा में निपुण हो गई. अमन नाम का युवक तो पूनम का मुरीद बन गया था. अमन शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था.

पूनम और अमन की जोड़ी उस की पत्नी साधारण रंगरूप की थी. वह कपड़े का व्यापार करता था और इटावा के सिविल लाइंस मोहल्ले में रहता था. अमन को जब भी जरूरत होती, वह पनूम को फोन कर होटल में बुला लेता.

एक रात अमन से पूनम बोली, ‘‘अमन क्यों न हम दोनों मिल कर स्पा खोल लें. मसाज की आड़ में वहां देहव्यापार कराएंगे. शौकीन अमीरों को नया अनुभव और उन्माद मिलेगा तो हमारे स्पा में ग्राहकों की भीड़ लगी रहेगी. थोड़े समय में हम दोनों लाखों में खेलने लगेंगे.’’

पूनम का यह आइडिया अमन को पसंद आया. चूंकि वह स्वयं बाजारू औरतों का रसिया था, इसलिए जानता था कि देह व्यापार से अधिक मजेदार और कमाऊ धंधा कोई दूसरा नहीं. हालांकि इस धंधे में पुलिस द्वारा पकड़े जाने का अंदेशा बना रहता है, पर जोखिम लिए बिना पैसा भी तो छप्पर फाड़ कर नहीं बरसता.

आधा पैसा अमन ने लगाया, आधा पूनम ने. फिफ्टीफिफ्टी के पार्टनर बन कर दोनों ने कृष्णानगर स्थित किराए के मकान में वेलकम स्पा खोल लिया. यह लगभग एक साल पहले की बात है.

चूंकि पूनम खुद कालगर्ल थी, इसलिए अनेक देहजीवाओं से उस की दोस्ती थी. उन में से ही कुछ देहजीवाओं को उस ने मसाजर के तौर पर स्पा में रख लिया. वे केवल नाम की मसाजर थीं, वे तो केवल अंगुलियों के कमाल से कस्टमर की भावनाएं जगाने और बेकाबू होने की सीमा तक भड़काने में माहिर थीं. कस्टमर भी ऐसे आते थे, जिन्हें मसाज से कोई वास्ता नहीं था. कामपिपासा शांत करने के लिए उन्हें हसीन बदन चाहिए होता था.

चंद दिनों में ही स्पा की आड़ में देह व्यापार कराने का अमन और पूनम का यह धंधा चल निकला. स्पा के दरवाजे हर आदमी के लिए खुले रहते थे. शर्त केवल यह थी कि जेब में माल होना चाहिए.

बीच शहर में खुल्लमखुल्ला देह व्यापार होता रहे और पुलिस को खबर न हो, यह संभव नहीं होता.

वेलकम स्पा में होने वाले देह व्यापार की जानकारी स्थानीय थाना पुलिस को थी, पर किसी वजह से वह आंखें बंद किए थी. एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने जब औपरेशन क्लीन चलाया, तब छापा पड़ा और स्पा से 2 पुरुष अमन, आलोक तथा 2 महिलाएं पूनम व माया देह व्यापार करते पकड़ी गईं.

पुलिस टीम द्वारा छापे में पकड़ी गई कविता बकेवर कस्बे की रहने वाली थी. उस के पिता कानपुर में पनकी स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करते थे. लेकिन कुछ वर्ष पूर्व संदिग्ध परिस्थितियों में उन की मौत हो गई थी.

पति की मौत के बाद कविता की मां ने स्वयं को टूट कर बिखरने नहीं दिया. कभी स्वरोजगार तो कभी मेहनत मजदूरी कर के अपना और बेटी कविता की परवरिश करती रही. वक्त थोड़ा आगे बढ़ा.

कविता ने किशोरावस्था में प्रवेश किया. चेहरे पर लुनाई झलक मारने लगी. कच्ची कली मसलने के शौकीनों को यही तो चाहिए था. कविता को बड़ा लालच दे कर वे एकांत में उस के संग बड़ेबड़े काम करने लगे. कुछ ही समय बाद कविता कली से फूल बन गई. कविता को जो बुलाता, उस के साथ चली जाती.

जिस्मानी खेल में कविता को आनंद तो बहुत मिला पर बदनामी भी कम नहीं हुई. कस्बे में वह बदनाम लड़की के रूप में जानी जाने लगी. बेटी की करतूतें मां के कानों तक पहुंचीं तो उस ने सिर पीट लिया, ‘‘मुझ विधवा के पास एक इज्जत थी, वह भी इस लड़की ने लुटा दी. मैं तो हर तरह से कंगाल हो गई.’’

बेटी गलत राह पर चलने लगे तो हर मांबाप को उसे सुधारने की एक ही राह सूझती है शादी. कविता की मां ने भी उस का विवाह रोहित के साथ कर दिया. रोहित इटावा के सिविल लाइंस में रहता था और गल्लामंडी में काम करता था.

रोहित टूट कर चाहने वाला पति था. वह अपनी हैसियत के दायरे में कविता की फरमाइश भी पूरी करता था. इसलिए कविता रम गई. 3-4 साल मजे से गुजरे, उस के बाद कविता को रोहित बासी लगने लगा. पति से अरुचि हुई तो कविता का मन अतीत में खोने लगा.

इन्हीं दिनों कविता की मुलाकात स्पा संचालिका पूनम से हुई. उस ने कविता को मसाज पार्लर खोलने की सलाह दी. यही नहीं, पूनम ने कविता को मसाज पार्लर चलाने के गुर भी सिखाए. पूनम की सलाह पर पति के सहयोग से कविता ने सिविल लाइंस में ग्लैमर मसाज सेंटर खोला. कविता ने मसाज के लिए कुछ देहजीवाओं को भी रख लिया.

शुरूशुरू में उसे मसाज पार्लर में कमाई नहीं हुई. लेकिन जब उस ने मसाज की आड़ में देह व्यापार शुरू किया तो नोटों की बरसात होने लगी. औपरेशन क्लीन के तहत जब कविता के मसाज सेंटर पर छापा पड़ा तो यहां से 4 युवतियां कविता, गौरी, रिया तथा शमा और 3 पुरुष रोहित, उमेश व पवन पकड़े गए.

पुलिस छापे में पकड़ी गई अर्चना कच्ची बस्ती इटावा की रहने वाली थी. अर्चना को उस के पिता रामप्रसाद ने ही बरबाद कर दिया था. 30 वर्षीय अर्चना शादीशुदा थी. उस का विवाह जय सिंह के साथ हुआ था. जय सिंह में मर्दों वाली बात नहीं थी. सो अर्चना ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी थी. उस ने पिता को साफ बता दिया था कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी.

रामप्रसाद तनहा जिंदगी गुजार रहा था. उस की पत्नी की मौत हो चुकी थी और बड़ा बेटा अलग रहता था. जब अर्चना ससुराल छोड़ कर आ गई तो रामप्रसाद की रोटीपानी की दिक्कत खत्म हो गई. अर्चना ने पिता की देखभाल की जिम्मेदारी संभाल ली. अर्चना ने अपना बिस्तर पिता के कमरे में ही बिछा लिया.

रामप्रसाद हर रात अर्चना के खुले अंग देखता था. उन्हीं को देखतेदेखते उस के मन में पाप समाने लगा. वह भूल गया कि अर्चना उस की बेटी है. मन में नकारात्मक एवं गंदे विचार आने लगे. वह हवस पूरी करने का मौका देखने लगा.

एक रात अर्चना गहरी नींद सो रही थी, तभी रामप्रसाद उठा और अर्चना की गोरी, सुडौल और चिकनी पिंडलियों को सहलाने लगा. रामप्रसाद की अंगुलियों की हरकत से अर्चना हड़बड़ा कर उठ बैठी, ‘‘पिताजी यह क्या कर रहे हो?’’

रामप्रसाद ने घबराने के बजाए अर्चना को दबोच लिया और उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘चुप रह, शोर मचाने की कोशिश की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

अर्चना ने हवस में अंधे हो चुके पिता को दूर धकेलने की कोशिश की. उसे पवित्र रिश्ता याद दिलाया. मगर रामप्रसाद ने उसे अपनी हसरत पूरी करने के बाद ही छोड़ा. इस के बाद यह खेल हर रात शुरू हो गया. अर्चना को भी आनंद आने लगा. जब दोनों का स्वार्थ एक हो गया तो पवित्र रिश्ते की पुस्तक में पाप का एक अलिखित समझौता हो गया.

लगभग एक साल तक बापबेटी रिश्ते को कलंकित करते रहे. उस के बाद अर्चना का मन बूढ़े बाप से भर गया. अब वह मजबूत बांहों की तलाश में घर के बाहर ताकझांक करने लगी. एक रोज उस की मुलाकात एक कालगर्ल संचालिका से हो गई. उस ने उसे पैसों और देहसुख का लालच दे कर देह व्यापार के धंधे में उतार दिया.

छापे में पकड़ी गई रीतू, शालू और साधना (काल्पनिक नाम) हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की छात्राएं थीं. तीनों गरीब परिवार की थीं. उन्हें ऊंचे ख्वाब और महंगे शौक ने यह धंधा करने को मजबूर किया. देह व्यापार में लिप्त संचालिकाओं ने इन छात्राओं को सब्जबाग दिखाए. हाथ में महंगा मोबाइल तथा रुपए थमाए, फिर देहधंधे में उतार दिया.

ये छात्राएं स्कूलकालेज जाने की बात कह कर घर से निकलती थीं और देह व्यापार के अड्डे पर पहुंच जाती थीं. घर आने में कभी देर हो जाती तो वे एक्स्ट्रा क्लास का बहाना बना देतीं. पकड़े जाने पर जब पुलिस ने उन के घर वालों को जानकारी दी तो वह अवाक रह गए. उन का सिर शर्म से झुक गया.

कुछ कहानियां मजबूरी की  छापा पड़ने के दौरान पकड़ी गई अमिता, मानसी व काजल घरेलू महिलाएं थीं. आर्थिक तंगी के कारण इन्हें देह व्यापार का धंधा अपनाना पड़ा. अमिता नौकरी के बहाने घर से निकलती थी और देह व्यापार के अड्डे पर पहुंच जाती थी. मानसी का पति टीबी का मरीज था. दवा और घर खर्च के लिए उस ने यह धंधा अपनाया.

2 बच्चों की मां काजल की उस के पति से नहीं बनती थी, इसलिए वह पति से अलग रहती थी. घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई तथा मकान के किराए के लिए उसे यह धंधा अपनाना पड़ा.

पुलिस द्वारा पकड़े गए अय्याशों में 3 महेश, मनीष और राजू दोस्त थे. तीनों चंद्रनगर में रहते थे और एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. विक्की, रमेश और पंकज ठेकेदारों के साथ काम करते थे और कृष्णानगर में रहते थे. उमेश और अशोक प्राइवेट नौकरी करते थे. ये भरथना के रहने वाले थे.

पुलिस ने थाना सिविललाइंस में आरोपियों के खिलाफ अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत केस दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

ड्राइवर बना जान का दुश्मन

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के दक्षिण में स्थित केंपेगौड़ा इंटरनैशनल एयरपोर्ट के पास एक गांव है कडयारप्पनहल्ली. 31 जुलाई, 2019 की बात है. इस गांव के कुछ लोग सुबहसुबह जब जंगल की ओर जा रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक युवती की लाश पड़ी देखी. उन लोगों ने इस बात की जानकारी कडयारप्पनहल्लीके सरपंच को दी. सरपंच ने बिना विलंब किए इस मामले की सूचना बेंगलुरु पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

सरपंच और कंट्रोल रूम से खबर पाते ही बेंगलुरु सिटी पुलिस हरकत में आ गई.  थानाप्रभारी ने ड्यूटी पर तैनात अफसर को इस मामले की डायरी बनाने को कहा और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

20 मिनट में पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. उस समय तक इस घटना की खबर आसपास के गांवों में फैल गई थी. देखतेदेखते घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र हो गई थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस टीम ने गांव के सरपंच से मामले की जानकारी ली और उसी के आधार पर जांच शुरू कर दी. सूचना मिलने पर बेंगलुरु (साउथ) के डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने जांच टीम को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

डीसीपी साहब के चले जाने के बाद पुलिस टीम ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका की लाश के पास से पुलिस को आईडी कार्ड या मोबाइल फोन वगैरह कुछ नहीं मिला था, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. लेकिन स्वस्थ, सुंदर युवती के कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी संपन्न और संभ्रांत परिवार से थी.

मृतका की कलाई में टाइटन की घड़ी थी. साथ ही वह ब्रांडेड कपड़े पहने हुए थी. उस की गरदन पर बना टैटू भी इस बात का संकेत था कि उस का संबंध किसी बड़े शहर से था. हत्यारे ने उस की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी.

युवती के सीने और पेट पर चाकू के गहरे घाव थे. सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. उस का चेहरा इतना विकृत कर दिया गया था ताकि उसे पहचाना न जा सके.

घटनास्थल का निरीक्षण कर के पुलिस ने युवती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए बेंगलुरु सिटी अस्पताल भेज दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर के पुलिस टीम थाने लौट आई और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस युवती की पहचान और हत्यारे की खोज में लग गई.

पुलिस की प्राथमिकता थी युवती की पहचान करना क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे बढ़ाना मुश्किल था. युवती की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास युवती के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के अलावा कुछ नहीं था. पुलिस ने उस के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के बार कोड का सहारा लिया. बार कोड से पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि ऐसी मार्केट कहांकहां और किनकिन शहरों में हैं, जहां मृतका जैसे कपड़े और चप्पल मिलते हों.

पुलिस की मेहनत रंग लाई  गूगल पर सर्च करने के बाद पुलिस को जानकारी मिली कि ऐसी मार्केट दिल्ली और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अधिक हैं. यह पता चलते ही पुलिस ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल की फेमस दुकानों की लिस्ट तैयार कर के उन से संपर्क साधा. पुलिस ने उन दुकानों से उन ग्राहकों की पिछले 2 सालों की लिस्ट मांगी, जिन्होंने औनलाइन या सीधे तौर पर खरीदारी की थी.

इस के साथ ही बेंगलुरु सिटी पुलिस ने उस युवती की लाश के फोटो और हुलिया दिल्ली और कोलकाता के सभी पुलिस थानों को भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में किसी युवती की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बावजूद पुलिस निराश नहीं हुई.

पुलिस उच्चाधिकारियों के आदेश पर जांच के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. इन में से एक टीम को दिल्ली भेजा गया और दूसरी को कोलकाता. इस कोशिश में पुलिस को कामयाबी मिली.

पुलिस को जो जानकारी चाहिए थी, वह कोलकाता के थाना न्यू टाउन से मिली. मृत युवती की गुमशुदगी थाना न्यू टाउन में दर्ज थी. पुलिस को पता चला कि जिस युवती की लाश मिली थी, वह कोई आम युवती नहीं बल्कि सेलिब्रिटी थी, नाम था पूजा सिंह.

वह इंटरटेनमेंट चैनल स्टारप्लस के सीरियल ‘दीया और बाती हम’ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी. उस ने और भी कई धारावाहिकों में महत्त्वूपर्ण भूमिकाएं निभाई थीं. साथ ही वह एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की फ्रीलांस मौडल भी थी. पूजा सिंह अपने पति सुदीप डे के साथ कोलकाता के न्यू टाउन में रहती थी.

पता मिल गया तो बेंगलुरु पुलिस न्यू टाउन स्थित सुदीप डे के घर पहुंच गई. पता चला कि सुदीप डे और पूजा सिंह ने लव मैरिज की थी. सुदीप डे ने बताया कि पूजा 29 जुलाई, 2019 को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के बुलावे पर उन के एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने बेंगलुरु गई थी. उसे 31 जुलाई की सुबह फ्लाइट ले कर कोलकाता आना था.

जब वह नहीं आई तो सुदीप ने उस के मोबाइल पर काल की, लेकिन पूजा का फोन बंद था. जहांजहां पूछताछ करना संभव था, उन्होंने फोन किया. लेकिन कहीं से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला. आखिर सारा दिन इंतजार करने के बाद उन्होंने थाना न्यू टाउन में पूजा की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने अपना काम किया भी, पर पूजा का कोई पता नहीं लग सका. वह खुद भी नातेरिश्तेदारों और दोस्तों से बात कर के पूजा का पता लगाते रहे.

हत्यारे ने खुद सुझाया रास्ता  इसी बीच सुदीप के मोबाइल पर एक चौंका देने वाला मैसेज आया. मैसेज पूजा सिंह के फोन से ही किया गया था. मैसेज में लिखा था कि वह हैदराबाद में है और पैसे के लिए परेशान है. इस मैसेज में एक बैंक एकाउंट नंबर दे कर उस में 5 लाख रुपए डालने को कहा गया था.

यह बात सुदीप डे को हजम नहीं हुई, क्योंकि यह संभव ही नहीं था कि पूजा सिंह पैसे के लिए परेशान हो और अगर ऐसा होता भी तो वह पति से सीधे बात कर सकती थी. जिस तरह टूटीफूटी अंगरेजी में मैसेज था, वह भी गले उतरने वाला नहीं था क्योंकि पूजा की इंग्लिश पर अच्छी पकड़ थी.

मतलब साफ था कि पूजा का मोबाइल किसी गलत व्यक्ति के हाथों में पड़ गया था. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि हैदराबाद में पूजा का कोई प्रोग्राम था ही नहीं.

सुदीप ने पुलिस हेल्पलाइन से बैंक एकाउंट नंबर का पता लगाने की रिक्वेस्ट की तो पता चला कि वह एकाउंट नंबर बेंगलुरु के किसी नागेश नाम के व्यक्ति का था और पूरी तरह फ्रौड था.

सुदीप से मिली जानकारी से पुलिस जांच को दिशा मिल गई. सुदीप डे को साथ ले कर पुलिस टीम बेंगलुरु लौट आई. मृतका की शिनाख्त के बाद पूजा सिंह की लाश सुदीप को सौंप दी गई.

दूसरी ओर पुलिस ने नागेश का बायोडाटा एकत्र करना शुरू किया. पूजा सिंह के फोन की काल डिटेल्स से नागेश का फोन नंबर पता चल गया. कुछ जानकारियां उस के बैंक एकाउंट से भी मिलीं.

नागेश के मोबाइल की लोकेशन के सहारे 10 अगस्त, 2019 को उसे टैक्सी स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया गया, वह टैक्सी ड्राइवर था. इस मामले में उस से पूछताछ डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने खुद की.

शुरू में तो नागेश ने इमोशनल ड्रामा कर के डीसीपी साहब को घुमाने की कोशिश की लेकिन जब पुलिस ने अपने हथकंडे अपनाए तो वह मुंह खोलने को मजबूर हो गया. अंतत: उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने टीवी एक्टर पूजा सिंह की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

साधारण परिवार का 22 वर्षीय एच.एम. नागेश बेंगलुरु के संजीवनी नगर, हेग्गनहल्ली का रहने वाला था. मातापिता की गरीबी की वजह से उस ने बचपन से ही काफी कष्ट उठाए थे. महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के नागेश ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी.

जवान होते ही उस ने टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था. नागेश की शादी हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे भी थे. घरपरिवार को चलाने की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी.

शुरू में काफी दिनों तक नागेश ने किराए की टैक्सी चलाई. बाद में उस ने यारदोस्तों की मदद और बैंक से लोन ले कर खुद की टैक्सी खरीद ली, जिसे उस ने ओला कैब में लगा दिया था. लेकिन इस से भी नागेश को ज्यादा कमाई नहीं होती थी, बस जैसेतैसे काम चल जाता था.

पूजा सिंह मौत का साया नहीं देख पाईं  जिन दिनों उस की मुलाकात टीवी स्टार पूजा सिंह से हुई, उन दिनों वह आर्थिक रूप से काफी परेशान था. दरअसल, उसे हर हफ्ते बैंक को किस्त देनी होती थी. लेकिन उस की टैक्सी के 2 हफ्ते बिना पेमेंट के छूट गए थे. 2 किस्तें भरने के लिए बैंक ने लेटर भेजा था.

29 जुलाई, 2019 को पूजा सिंह जब इवेंट मैनेजमेंट के प्रोग्राम के लिए बेंगलुरु आईं तो उस ने एयरपोर्ट से नागेश की ओला कैब हायर की. पूजा उस की कैब से वरपन्ना की अग्रहारा लौज गई थीं. उस के बातव्यवहार से पूजा सिंह कुछ इस तरह प्रभावित हुईं कि उन्होंने नागेश को अपने पूरे प्रोग्राम में साथ रखने का फैसला कर लिया. होटल में फ्रैश होने के बाद पूजा अपने कार्यक्रम के लिए निकलीं तो रात लगभग 12 बजे के आसपास वापस लौटीं.

नागेश को किराया देने के लिए पूजा सिंह ने अपना पर्स खोला और किराए के अलावा उसे अच्छी टिप दी. 31 जुलाई, 2019 की सुबह साढ़े 4 बजे पूजा को कोलकाता वापस लौटना था. इस के लिए उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी, इसलिए उन्होंने नागेश को साढे़ 3 बजे एयरपोर्ट छोड़ने के लिए कहा. इस के लिए नागेश ने पूजा सिंह से 1200 रुपए मांगे, जिसे उन्होंने खुशीखुशी मान लिया. नागेश पूजा सिंह के व्यवहार से खुश था. लेकिन होनी को कौन रोक सकता है.

चूंकि सुबह 3 बजे नागेश को जल्दी आ कर पूजा सिंह को ले कर एयरपोर्ट छोड़ना था, इसलिए घर न जा कर उस ने टैक्सी होटल परिसर में ही पार्क कर दी और टैक्सी की सीट लंबी कर के सोने की कोशिश करने लगा.

लेकिन दिमागी परेशानी ने उसे आराम नहीं करने दिया. उसे बैंक की 3 हफ्ते की किस्तें देनी थीं. उसे घर के खर्च और बैंक की किस्तों की चिंता खाए जा रही थी.

पूजा सिंह ने नागेश को जब किराया और टिप दी थी तो उस की नजर नोटों से भरे पूजा के पर्स पर चली गई थी. जब उस के दिमाग में कई तरह के सवाल आ रहे थे, तब बारबार उस की आंखों के सामने पूजा सिंह का पर्स भी लहरा रहा था.

नागेश ने बनाई हत्या की योजना सोचतेसोचते नागेश के मन में एक खतरनाक योजना बन गई और उस ने उस पर अमल करने का फैसला कर लिया. पूजा सिंह को लूट कर वह अपनी परेशानियों से पीछा छुड़ाना चाहता था. उस ने सोचा कि पूजा सिंह दूसरे शहर की रहने वाली है, किसी को पता भी नहीं चलेगा.

मन ही मन योजना बनातेबनाते उसे नींद आ गई. उस की नींद तक टूटी जब होटल के स्टाफ का एक व्यक्ति पूजा सिंह का सामान ले कर उस के पास आया. टैक्सी में सामान रखवाने के बाद नागेश ने तरोताजा होने के लिए अपनी पानी की बोतल ले कर मुंह पर छींटे मारे. पूजा सिंह आ गईं तो उन्हें ले कर वह एयरपोर्ट की तरफ चल दिया.

जितनी तेजी से उस की टैक्सी भाग रही थी, उतनी ही तेजी से उस का दिमाग चल रहा था. काम में व्यस्त रहने के कारण पूजा ठीक से सो नहीं पाई थीं, जिस की वजह से कैब में बैठेबैठे उन्हें नींद आ गई. पूजा को नींद में देख नागेश के मन का शैतान रौद्र रूप लेने लगा. उस ने टैक्सी का रुख सुनसान निर्जन स्थान की तरफ कर दिया.

पूजा सिंह की नींद खुली तो कैब के आसपास सन्नाटा देख घबरा गईं. टैक्सी रुकवा कर वह नागेश से कुछ बात कर पातीं, इस से पहले ही नागेश ने जैक रौड से पूजा सिंह के सिर पर वार कर दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गईं.

नागेश पूजा सिंह का सारा सामान ले कर फरार हो पाता, इस के पहले ही पूजा सिंह को होश आ गया. वह अपने बचाव के लिए चीखतेचिल्लाते हुए कैब से उतर कर रोड की तरफ भागने लगीं. लेकिन वह अपनी मौत से भाग नहीं पाईं.

नागेश ने उन्हें पकड़ लिया और अपनी सुरक्षा के लिए रखे चाकू से पूजा सिंह को गोद कर मौत की नींद सुला दिया. बाद में वह पूजा सिंह के शव को वहीं छोड़ कर फरार हो गया.

पूजा सिंह को लूट कर वह निश्चिंत हो गया था, लेकिन उसे तब झटका लगा जब आशा के अनुरूप पूजा सिंह के पर्स से उस के हाथ कुछ नहीं लगा. जिस समस्या के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया था, वह पूरी नहीं हो सकी. वह कैसे या क्या करे, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

तभी पूजा सिंह का मोबाइल उस के लिए रोशनी की किरण बना. उस ने पूजा सिंह के मोबाइल से उन के पति सुदीप डे को अपना एकाउंट नंबर दे कर 5 लाख रुपए डालने का मैसेज भेज दिया. बस यही उस के गले की फांस बन गया.

एच.एम. नागेश से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जैक रौड और टैक्सी पहले ही बरामद कर ली थी.

जब बेटी बन गई नकली पुलिस

गुरुदेव सिंह असली पुलिस वाला था, जबकि परवीन नकली पुलिस वाली. इस के बावजूद परवीन ने पुलिस वरदी में थाने जा कर उस के खिलाफ रिपोर्ट ही नहीं दर्ज कराई, बल्कि उसे हवालात में बंद करा दियाशबाना परवीन सबइंसपेक्टर बनना चाहती थी, इसलिए बीए करने के बाद वह मन लगा कर सबइंसपेक्टर की परीक्षा की तैयारी करने लगी थी. पिता असलम खान भी उस की हर तरह से मदद कर रहे थे

मध्य प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर की जगह निकली तो शबाना परवीन ने आवेदन कर दिया. मेहनत कर के परवीन ने परीक्षा भी दी, लेकिन रिजल्ट आया तो शबाना परवीन का नाम नहीं था, जिस से उस का चेहरा उतर गया.

बेटी का उतरा चेहरा देख कर असलम ने उस की हौसलाअफजाई करते हुए फिर से परीक्षा की तैयारी करने को कहा. परवीन फिर से परीक्षा की तैयारी में लग गई. लेकिन अफसोस कि अगली बार भी वह सफल नहीं हुई. लगातार 2 बार असफल होने से परवीन के सब्र का बांध टूट गया. पिता ने उसे बहुत समझाया और फिर से परीक्षा की तैयारी करने को कहा. लेकिन परवीन की हिम्मत नहीं पड़ी. परवीन 20 साल से ऊपर की हो चुकी थी. आज नहीं तो कल उस की शादी करनी ही थी. नौकरी के भरोसे बैठे रहने पर उस की शादी की उम्र निकल सकती थी. रही बात नौकरी की तो शौहर के यहां रह कर भी वह तैयारी कर सकती थी

इसलिए असलम खान परवीन के लिए लड़का देखने लगे. थोड़ी भागादौड़ी के बाद उन्हें राजस्थान के कोटा शहर में एक लड़का मिल गया. अफसर खान एक शरीफ खानदान से था और अपना बिजनैस करता था. असलम को लगा कि परवीन इस के साथ सुखचैन से रहेगी. इसलिए अफसर खान के घर वालों से बातचीत कर के असलम ने शबाना परवीन की शादी उस से कर दी. शादी के बाद परवीन अपनी घरगृहस्थी में रम गई. एक साल बाद वह एक बेटे की मां भी बन गई. मां बनने के बाद उस की जिम्मेदारियां और बढ़ गईं. वह घरपरिवार में व्यस्त जरूर हो गई थी, लेकिन अभी भी पुलिस की वरदी पहनने की उस की तमन्ना खत्म नहीं हुई थी

यही वजह थी कि अकसर वह इंदौर आतीजाती रहती थी. अफसर खान कभी पूछता तो वह कहती, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मैं पुलिस सबइंसपेक्टर की तैयारी कर रही हूं. उसी के चक्कर में इंदौर आतीजाती हूं.’’ परवीन का इंदौर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो एक दिन अफसर खान ने उसे समझाया, ‘‘तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है. अल्लाह का दिया हमारे पास क्या कुछ नहीं है. रुपएपैसे तो हैं ही, एक खूबसूरत बेटा भी है. इसी को संभालो और खुश रहो.’’ लेकिन परवीन इस में खुश नहीं थी. वह पुलिस की नौकरी के लिए अपनी जिद पर अड़ी थी. इसलिए घर में रोज किचकिच होने लगी. दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. पति के लाख समझाने पर भी परवीन नहीं मानी. अफसर खान ज्यादा रोकटोक करने लगा तो एक दिन परवीन ने साफसाफ कह दिया, ‘‘अब हमारी और तुम्हारी कतई निभने वाली नहीं है. इसलिए तुम मुझे तलाक दे कर मुक्त कर दो.’’

अफसर खान अपनी बसीबसाई गृहस्थी बरबाद होते देख परेशान हो उठा. उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने ससुर को फोन किया. असलम खान ने भी कोटा जा कर बेटी को समझाया. लेकिन परवीन टस से मस नहीं हुई. मजबूर हो कर अफसर खान को तलाक देना ही पड़ा. तलाक के बाद परवीन अपने 5 साल के बेटे को ले कर अपने पिता के घर उज्जैन गई. पिता के घर आने के बाद भी परवीन का वही हाल रहा. वह पिता के घर से भी सुबह इंदौर के लिए निकल जाती तो देर रात तक लौटती. ऐसा कई दिनों तक हुआ तो एक दिन असलम खान ने पूछा, ‘‘बेटी, तुम रोज सुबह निकल जाती हो तो देर रात तक लौट कर आती हो, इस बीच तुम कहां रहती हो?’’

‘‘आप को पता नहीं,’’ परवीन ने कहा, ‘‘अब्बू, मैं ने मध्य प्रदेश पुलिस की सबइंसपेक्टर की परीक्षा दे रखी है. जल्दी ही मुझे नौकरी मिलने वाली है.’’

‘‘सच…?’’ असलम खान ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां अब्बूअब जल्दी ही आप को मेरे सबइंसपेक्टर होने की खुशखबरी मिलने वाली है.’’ परवीन ने कहा.

और फिर कुछ दिनों बाद सचमुच परवीन ने घर वालों को खुशखबरी दी कि वह प्रदेश पुलिस की परीक्षा पास कर के सबइंसपेक्टर हो गई है. असलम खान को बेटी की बात पर भरोसा तो नहीं हुआ, फिर भी उन्होंने उस की बात मान ली. लेकिन जब एक दिन परवीन सबइंसपेक्टर की वरदी में घर पहुंची तो असलम खान परवीन को देखते ही रह गए. वह चहकते हुए अब्बू से बोली, ‘‘देखो अब्बू मैं दरोगा हो गई हूं. मेरे कंधे पर 2 सितारे चमक रहे हैं.’’

मारे खुशी के असलम खान की आंखों में आंसू गए. उन के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. वह कुछ कहते, उस के पहले ही साथ लाए मिठाई के डिब्बे से एक टुकड़ा मिठाई उस के मुंह में ठूंसते हुए परवीन ने कहा, ‘‘अब्बू, पुलिस वरदी में मै ंकैसी लग रही हूं?’’

असलम ने अल्लाह को सजदा करते हुए कहा, ‘‘अल्लाह ने हमारी तमन्ना पूरी कर दी. मेरी बेटी बहुत सुंदर लग रही है. तू बेटी नहीं बेटा है. लेकिन बेटा, इस समय तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’

‘‘अभी तो मैं इंदौर के डीआरपी लाइन में हूं. जल्दी ही किसी थाने में पोस्टिंग हो जाएगी. एक साल तक मेरी ड्यूटी इंदौर में रहेगी. उस के बाद मेरा तबादला उज्जैन हो जाएगा. जब तक तबादला नहीं हो जाता, मुझे उज्जैन से इंदौर आनाजाना पड़ेगा. जरूरत पड़ने पर वहां रुकना भी पड़ सकता है.’’ परवीन ने कहा. इस के बाद तो असलम खान ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई तो सभी को पता चल गया कि परवीन सबइंसपेक्टर हो गई है. लोग उस की मिसालें देने लगे. बात थी ही मिसाल देने वाली. एक साधारण घर की बेटी का दरोगा बन जाना छोटी बात नहीं थी, वह भी शादी और एक बेटे की मां बन जाने के बाद.

परवीन रोजाना बस से इंदौर जाती और देर रात तक वापस घर जाती थी. कभीकभार आती तो फोन कर देती कि आज वह घर नहीं पाएगी. उस के सबइंसपेक्टर होते ही घर के सभी वाहनों पर पुलिस का लोगो चिपकवा दिया गया था, जिस से चैकिंग में कोई पुलिस वाला उन्हें परेशान करे. एक दिन परवीन अपने 2 साथियों के साथ सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल पर 3 युवक आते दिखाई दिए. परवीन ने उन्हें रुकने का इशारा  किया. लेकिन उन युवकों ने मोटरसाइकिल जरा भी धीमी नहीं की. परवीन को समझते देर नहीं लगी कि इन का रुकने का इरादा नहीं है. वह तुरंत होशियार हो गई और मोटरसाइकिल जैसे ही उस के नजदीक आई, उस ने ऐसी लात मारी कि तीनों सवारियों सहित मोटरसाइकिल गिर गई

तीनों युवक उठ कर खड़े हुए तो मोटरसाइकिल चला रहे युवक का कौलर पकड़ कर परवीन ने कहा, ‘‘मैं हाथ दे रही थी तो तुझे दिखाई नहीं दे रहा था?’’

‘‘मैडम, मैं थाना महू का सिपाही हूं. विश्वास हो तो आप फोन कर के पूछ लें. मेरा नाम गुरुदेव सिंह चहल है. आज मैं छुट्टी पर था, इसलिए दोस्तों के साथ घूमने निकला था. यहां मैं डीआरपी लाइन में रहता हूं.’’ गुरुदेव सिंह ने सफाई देते हुए कहा. युवक ने बताया कि वह सिपाही है तो परवीन ने उसे छोड़ने के बजाए तड़ातड़ 2 तमाचे लगा कर कहा, ‘‘पुलिस वाला हो कर भी कानून तोड़ता है. याद रखना, आज के बाद फिर कभी कानून से खिलवाड़ करते दिखाई दिए तो सीधे हवालात में डाल दूंगी.’’

अपने गालों को सहलाते हुए गुरुदेव सिंह बोला, ‘‘मैडम, आप को पता चल गया कि मैं पुलिस वाला हूं, फिर भी आप ने मुझे मारा. यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘‘एक तो कानून तोड़ता है, ऊपर से आंख दिखाता है. अब चुपचाप चला जा, वरना थाने ले चलूंगी. तब पता चलेगा, कानून तोड़ने का नतीजा क्या होता है?’’ परवीन गुस्से में बोली. गुरुदेव सिंह ने मोटरसाइकिल उठाई और साथियों के साथ चला गया. लेकिन इस के बाद जब भी परवीन से उस का सामना होता, वह गुस्से से उसे इस तरह घूरता, मानो मौका मिलने पर बदला जरूर लेगा. परवीन भी उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरती. ऐसे में ही 27 मार्च, 2014 को एक बार फिर गुरुदेव सिंह और परवीन का आमनासामना हो गया

परवीन बेसबौल का बल्ला ले कर गुरुदेव सिंह को मारने के लिए आगे बढ़ी तो खुद के बचाव के लिए गुरुदेव सिंह भागा. लेकिन वह कुछ कदम ही भागा था कि ठोकर लगने से गिर पड़ा, जिस से उस की कलाई में मोच गई. परवीन पीछे लगी थी, इसलिए चोटमोच की परवाह किए बगैर वह जल्दी से उठ कर फिर भागा. परवीन उस के पीछे लगी रहीगुरुदेव भाग कर डीआरपी लाइन स्थित अपने क्वार्टर में घुस गया. परवीन ने उस के क्वार्टर के सामने खूब हंगामा किया. लेकिन वहां वह उस का कुछ कर नहीं सकी, क्योंकि शोर सुन कर वहां तमाम पुलिस वाले गए थे, जो बीचबचाव के लिए गए थे.

29 मार्च की रात करीब 12 बजे इंदौर रेलवे स्टेशन पर एक बार फिर गुरुदेव का आमनासामना परवीन से हो गया. उस समय गुरुदेव के घर वाले भी उस के साथ थे. उन्होंने परवीन को समझाना चाहा कि एक ही विभाग में नौकरी करते हुए उन्हें आपस में लड़ना नहीं चाहिएपहले तो परवीन चुपचाप उन की बातें सुनती रही. लेकिन जैसे ही गुरुदेव की मां ने कहा कि वह उन के बेटे को बेकार में परेशान कर रही है तो परवीन भड़क उठी. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे बेटे को परेशान कर रही हूं? अभी तक तो कुछ नहीं किया. अब देखो इसे किस तरह परेशान करती हूं.’’ 

इतना कह कर परवीन ने अपने साथियों से कहा, ‘‘इसे थाने ले चलो. आज इसे इस की औकात बता ही देती हूं.’’

परवीन के साथियों ने गुरुदेव को पकड़ कर कार में बैठाया और थाना ग्वालटोली की ओर चल पड़े. कार के पीछेपीछे परवीन भी अपनी एक्टिवा स्कूटर से चल पड़ी थी. थाने पहुंच कर परवीन गुरुदेव सिंह को धकियाते हुए अंदर ले गई और ड्यूटी पर तैनात मुंशी से बोली, ‘‘इस के खिलाफ रिपोर्ट लिखो. यह मेरे साथ छेड़छाड़ करता है. जब भी मुझे देखता है, सीटी मारता है.’’

परवीन सबइंसपेक्टर की वरदी में थी, इसलिए उसे परिचय देने की जरूरत नहीं थी. गुरुदेव सिंह ने अपने बारे में बताया भी कि वह सिपाही है, फिर भी उस के खिलाफ छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिख कर मुंशी ने इस बात की जानकारी ड्यूटी पर तैनात एएसआई श्री मेढा को दी. चूंकि नए कानून के हिसाब से मामला गंभीर था, इसलिए उन्होंने गुरुदेव सिंह को महिला सबइंसपेक्टर से छेड़छाड़ के आरोप में लौकअप में डाल दियाजबकि गुरुदेव सिंह का कहना था कि पहले इस महिला सबइंसपेक्टर के बारे मे ंपता लगाएं. क्योंकि इस का कहना है कि यह डीआरपी लाइन में रहती है

वहीं वह भी रहता है. लेकिन उस ने इसे वहां कभी देखा नहीं है. गुरुदेव परवीन के बारे में पता लगाने को लाख कहता रहा, लेकिन एएसआई मेढा ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि यह एक महिला सबइंसपेक्टर से छेड़छाड़ का मामला था. फिर उस ने एक अन्य सबइंसपेक्टर कुशवाह से मेढा की बात भी कराई थी, जबकि मेढा को पता नहीं था कि सबइंसपेक्टर कुशवाह कौन हैं और किस थाने में तैनात हैं. गुरुदेव सिंह को लौकअप में डलवा कर परवीन अपने साथियों के साथ कार से चली गई. उस ने अपना स्कूटर थाने में ही यह कह कर छोड़ दिया था कि इसे वह सुबह किसी से मंगवा लेगी

अगले दिन यानी 30 मार्च को सुबह उस ने थाना ग्वालटोली पुलिस को फोन किया कि वह अपने साथी इमरान कुरैशी को भेज रही है. उसे उस का स्कूटर दे दिया जाए. इमरान कुरैशी के थाने पहुंचने तक थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा थाने गए थे. पुलिस वालों ने रात की घटना के बारे में उन से कहा कि सबइंसपेक्टर शबाना परवीन का साथी इमरान कुरैशी उन का एक्टिवा स्कूटर लेने आया है तो उन्होंने उसे औफिस में भेजने को कहा. इमरान उन के सामने पहुंचा तो उस का हुलिया देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम पुलिस वाले हो?’’

‘‘नहीं साहब, मैं पुलिस वाला नहीं हूं. मैं तो चाट का ठेला लगाता हूं. चूंकि मैं परवीनजी का परिचित हूं इसलिए अपना स्कूटर लेने के लिए भेज दिया है.’’

इस के बाद वहां खड़े सिपाही से थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘परवीन को बुला लो कि वह कर अपना स्कूटर खुद ले जाए. उस का स्कूटर किसी दूसरे को नहीं दिया जाएगा.’’

इमरान के पास परवीन का नंबर था, उस ने उसे फोन कर दिया. थोड़ी देर में परवीन थाना ग्वालटोली पहुंची. उस समय भी वह पुलिस सबइंसपेक्टर की वरदी में थी. उस ने थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा के सामने जा कर दोनों हाथ जोड़ करनमस्तेकिया तो वह उसे हैरानी से देखते रह गए. वह पुलिस की वरदी में थी. उस के कंधे पर सबइंसपेक्टर के 2 स्टार चमक रहे थे. उन्होंने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘मैडम, तुम किस थाने में तैनात हो?’’

‘‘फिलहाल तो मैं डीआरपी लाइन में हूं.’’ परवीन बड़ी ही शिष्टता से बोली

‘‘आरआई कौन है?’’ थानाप्रभारी श्री शर्मा ने पूछा तो परवीन बगले झांकने लगी. साफ था, उसे पता नहीं था कि आरआई कौन है. जब वह आरआई का नाम नहीं बता सकी तो थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘अपना आईकार्ड दिखाओ.’’

परवीन के पास आईकार्ड होता तब तो दिखाती. उस ने जैसे ही कहा, ‘‘सर, आईकार्ड तो नहीं है.’’ थानाप्रभारी ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, ‘‘सचसच बताओ, तुम कौन हो? तुम नकली पुलिस वाली हो ?’’

परवीन ने सिर झुका लिया. थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने कहा, ‘‘मैं तो उसी समय समझ गया था कि तुम नकली पुलिस वाली हो, जब तुम ने दोनों हाथ जोड़ कर मुझ से नमस्ते किया था. तुम्हें पता होना चाहिए कि पुलिस विभाग में अपने सीयिर अफसर को हाथ जोड़ करनमस्तेकरने के बजाय सैल्यूट किया जाता हैतुम्हारे कंधे पर लगे स्टार भी बता रहे हैं कि स्टार लगाना भी नहीं आता. क्योंकि तुम ने कहीं टे्रनिंग तो ली नहीं है. तुम्हारे कंधे पर जो स्टार लगे हैं, उन की नोक से नोक मिल रही है, जबकि कोई भी पुलिस वाला स्टार लगाता है तो उस की स्टार की नोक दूसरे स्टार की 2 नोक के बीच होती है.’’

परवीन ने देखा कि उस की पोल खुल गई है तो वह जोरजोर से रोने लगी. रोते हुए ही उस ने स्वीकार कर लिया कि वह नकली पुलिस वाली है. इस के बाद थानाप्रभारी ने लौकअप में बंद गुरुदेव सिंह को बाहर निकलवाया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह भी सिपाही है और थाना महू में तैनात है. यहां वह डीआरपी लाइन में रहता है. रोजाना बस से महू अपनी ड्यूटी पर जाता हैइस के बाद थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने थाना महू फोन कर के गुरुदेव सिंह के बारे में जानकारी ली तो वहां से बताया गया कि वह उन के यहां सिपाही के रूप में तैनात है. फिर डीआरपी लाइन फोन कर के आरआई से भी उस के बारे में पूछा गया. आरआई ने भी बताया कि वह लाइन में रहता है.

पूछताछ में परवीन ने मान लिया कि उस ने गुरुदेव के खिलाफ फरजी मामला दर्ज कराया था तो थानाप्रभारी ने उसे छोड़ दिया. अब परवीन रोते हुए अपने किए की माफी मांग रही थी. पूछताछ में उस ने कहा, ‘‘मैं यह वरदी इसलिए पहनती हूं कि कोई मुझ से छेड़छाड़ करे. इस के अलावा मेरे पिता चाहते थे कि मैं पुलिस अफसर बनूं. मैं ने कोशिश भी की, लेकिन सफल नहीं हुई. पिता का सपना पूरा करने के लिए मैं नकली दरोगा बन गई. मेरे नकली दरोगा होने की जानकारी मेरे अब्बूअम्मी को नहीं है. अगर उन्हें असलियत पता चल गई तो वे जीते जी मर जाएंगे. इसलिए साहब आप उन्हें यह बात मत बताइएगा.’’

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने लोक सेवक प्रतिरूपण अधिनियम की धारा 177 के तहत परवीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उस की गिरफ्तारी की सूचना उस के पिता असलम खान को दी गईउज्जैन से इंदौर 53 किलोमीटर दूर है. थाना ग्वालटोली पहुंचने पर जब उसे पता चला कि परवीन नकली दरोगा बन कर सब को धोखा दे रही थी तो वह सन्न रह गया. वह सिर थाम कर बैठ गया. असलम खान बेटी की नादानी से बहुत दुखी हुआ. वह थानाप्रभारी से उस की गलती की माफी मांग कर उसे छोड़ने की विनती करने लगा.

चूंकि परवीन के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था, इसलिए थानाप्रभारी ने उसे थाने से ही जमानत दे दी. सिपाही गुरुदेव सिंह ने भी उस के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कराया था. क्योंकि वह खुद ही छेड़छाड़ के मामले में फंस रहा था. लेकिन अगले दिन परवीन के बारे में अखबार में छपा तो लोग पुलिस पर अंगुली उठाने लगे. लोगों का कहना था कि पहले पुलिस को परवीन के बारे में जांच करनी चाहिए थीक्योंकि इंदौर में आए दिन नकली पुलिस बन कर उन महिलाओं को ठगा जा रहा है, जो गहने पहन कर घर से निकलती हैं.

मौका देख कर नकली पुलिस के गिरोह के सदस्य महिला को रोक कर कहते हैं कि आजकल शहर में लूटपाट की घटनाएं बहुत हो रही हैं. इसलिए आप अपने गहने उतार कर पर्स या रूमाल में रख लीजिए. इस के बाद एक पुलिस वाला महिला के गहने उतरवाता है. उसी दौरान उस का साथी महिला को बातों में उलझा लेता है तो गहने उतरवाने वाला सिपाही महिला की नजर बचा कर गहने की जगह कंकड़ पत्थर बांध कर महिला को पकड़ा देता हैअब तक पुलिस ऐसे किसी भी नकली पुलिस के गिरोह को नहीं पकड़ सकी थी. इस के बावजूद पुलिस ने हाथ आई उस नकली दरोगा के बारे में जांच किए बगैर छोड़ दिया, इसलिए लोगों में गुस्सा था.

होहल्ला हुआ तो थाना ग्वालटोली पुलिस ने परवीन के बारे में थोड़ीबहुत जांच की. परवीन ने पुलिस को बताया था कि वह एक महीने से सबइंसपेक्टर की वरदी पहन रही है. लेकिन उस की वरदी तैयार करने वाले दरजी का कहना है कि वह एक साल से उस के यहां वरदी सिलवा रही है. वहीं चिकन की दुकान चलाने वाले नियाज ने पुलिस को बताया कि परवीन उस के यहां से चिकन ले जाती थी. पुलिस का रौब दिखाते हुए वह उस के पूरे पैसे नहीं देती थी. पुलिस की वरदी में होने की वजह से वह बस वालों का किराया नहीं देती थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस को कहीं से ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली थी कि उस ने किसी को ठगा हो या जबरन वसूली की हो.

शायद यही वजह है कि पुलिस कह रही है कि परवीन के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज है, उस का कोई पुराना आपराधिक रिकौर्ड है. किसी ने यह भी नहीं कहा है कि उस ने जबरदस्ती वसूली की है. इसलिए उसे थाने से जमानत दे दी गई है. बहरहाल पुलिस अभी उस के बारे में पता कर रही है. जांच पूरी होने के बाद ही उस के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में पेश किया जाएगा.

  —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुलिसवाले ने अपने ही बेटे की प्रेमिका को उतारा मौत के घाट

उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा बच्चू सिंह के बेटे तरुण की दोस्ती प्रियंका से हो गई थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन जब पिता के कहने पर तरुण ने शादी से इनकार कर दिया तो प्रियंका ने अपने हक की लड़ाई लड़ने की सोची. उसे क्या पता था कि इस लड़ाई में…   

प्रियंका को जल्दीजल्दी तैयार होता देख उस की मां चित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज कहीं जल्दी जाना है क्या, जो इतनी जल्दी उठ कर तैयार हो गई?’’

‘‘हां मम्मी, परसों जो मैडम आई थीं, जिन्हें मैं ने अपने फोटो, आई कार्ड और सीवी दिया था, उन्होंने बुलाया है. कह रही थीं कि उन्होंने अपने अखबार में मेरी नौकरी की बात कर रखी है. इसलिए मुझे टाइम से पहुंचना है.’’ प्रियंका ने कहा तो चित्रा ने टिफिन में खाना पैक कर के उसे दे दिया. प्रियंका ने टिफिन अपने बैग में रखा और शाम को जल्दी लौट आने की बात कह कर बाहर निकल गई. कुछ देर बाद प्रियंका के पापा जगवीर भी अपने क्लीनिक पर चले गए तो चित्रा घर के कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन शाम को करीब साढ़े 5 बजे जगवीर सिंह के मोबाइल पर उन के साले ओमदत्त का फोन आया

ओमदत्त ने उन्हें बताया, ‘‘जीजाजी, मेरे फोन पर कुछ देर पहले प्रियंका का फोन आया था. वह कह रही थी कि बच्चू सिंह ने अपने बेटे राहुल और कुछ बदमाशों की मदद से उस का अपहरण करवा लिया है और वह अलीगढ़ के पास खैर इलाके के वरौला गांव में है.’’ ओमदत्त की बात सुन कर जगवीर सिंह की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने जैसेतैसे अपने आप को संभाला और क्लीनिक बंद कर के घर गए. तब तक उन का साला ओमदत्त भी उन के घर पहुंच गया था. मामला गंभीर था. विचारविमर्श के बाद दोनों गाजियाबाद के थाना कविनगर पहुंचे और लिखित तहरीर दे कर 25 वर्षीया प्रियंका के अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जगवीर सिंह सपरिवार गोविंदपुरम गाजियाबाद में किराए के मकान में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चित्रा के अलावा 3 बच्चे थेबेटी प्रियंका और 2 बेटे पंकज तितेंद्र. उन का बड़ा बेटा पंकज एक टूर ऐंड ट्रैवल कंपनी की गाड़ी चलाता था, जबकि छोटा तितेंद्र सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा थाजगवीर सिंह ने 7 साल पहले प्रियंका की शादी गुलावठी के धर्मेंद्र चौधरी के साथ कर दी थी. धर्मेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में काम करता था. शादी के 1 साल बाद प्रियंका एक बेटे की मां बन गई थी, जो अब 6 साल का है. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से जगवीर अपने बच्चों को अधिक पढ़ालिखा नहीं सके. उन का छोटा सा क्लीनिक था, जहां वह बतौर आरएमपी प्रैक्टिस करते थे. यही क्लीनिक उन की आय का एकमात्र साधन था

प्रियंका शहर में पलीबढ़ी महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. शादी के बाद गांव उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा. इसी को ले कर जब पतिपत्नी में अनबन रहने लगी तो प्रियंका ने पति से अलग रहने का निर्णय ले लिया और बेटे सहित धर्मेंद्र का घर छोड़ कर मातापिता के पास गाजियाबाद गई. जगवीर सिंह की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब थी. बेटे सहित प्रियंका के मायके जाने से उन के पारिवारिक खर्चे और भी बढ़ गएकिसी भी मांबाप के लिए यह किसी विडंबना से कम नहीं होता कि उन की बेटी शादी के बाद भी उन के साथ रहे. इस बात को प्रियंका अच्छी तरह समझती थी. इसलिए वह अपने स्तर पर नौकरी की तलाश में लग गई. काफी खोजबीन के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मोबाइल शौप पर सेल्सगर्ल की नौकरी कर ली.

मोबाइल शौप पर काम करते हुए प्रियंका की मुलाकात तरुण से हुई. तरुण चढ़ती उम्र का अच्छे परिवार का लड़का था. पहली ही मुलाकात में तरुण आंखों के रास्ते प्रियंका के दिल में उतर गया. बातचीत हुई तो दोनों ने अपनाअपना मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिया. इस के बाद दोनों प्राय: रोज ही एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगेजल्दी ही मिलनेमिलाने का सिलसिला भी शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे को दिन में कई बार फोन और एसएमएस करने लगे. जब समय मिलता तो दोनों साथसाथ घूमते और रेस्टोरेंट वगैरह में जाते. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईंतरुण के पिता बच्चू सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर थे और गाजियाबाद के थाना मसूरी में तैनात थे. जब तरुण और प्रियंका के संबंध गहराए तो उन दोनों की प्रेम कहानी का पता बच्चू सिंह को भी लग गया.  

उन्होंने जब इस बारे में तरुण से पूछा तो उस ने बेहिचक सारी बातें पिता को बता दीं. प्रियंका के बारे में भी सब कुछ और यह भी कि वह उस से शादी की इच्छा रखता है. उधर प्रियंका भी तरुण से शादी का सपना देखने लगी थी. बेटे की प्रेमकहानी सुन कर बच्चू सिंह बहुत नाराज हुए. उन्होंने तरुण से साफसाफ कह दिया कि वह प्रियंका से दूर रहे, क्योंकि एक तलाकशुदा और एक बच्चे की मां कभी भी उन के परिवार की बहू नहीं बन सकती. इतना ही नहीं, उन्होंने प्रियंका को भी आगे बढ़ने की सख्त चेतावनी दी. प्रियंका और अपने बेटे की प्रेम कहानी को ले कर वह तनाव में रहने लगे. बच्चू सिंह ने प्रियंका और तरुण को चेतावनी भले ही दे दी थी, पर वे जानते थे कि ऐसी स्थिति में लड़का समझेगा लड़की. इसी वजह से उन्हें इस समस्या का कोई आसान हल नहीं सूझ रहा था. आखिर काफी सोचविचार कर उन्होंने प्रियंका को समझाने का फैसला किया.

बच्चू सिंह ने प्रियंका को समझाया भी, लेकिन वह शादी की जिद पर अड़ी रही. इतना ही नहीं, ऐसा होने पर उस ने बच्चू सिंह को परिवार सहित अंजाम भुगतने की धमकी तक दे डाली. अपनी इस धमकी को उस ने सच भी कर दिखाया1 मार्च, 2013 को उस ने थाना कविनगर में बच्चू सिंह, उन की पत्नी, बेटे राहुल, नरेंद्र, प्रशांत और रोबिन के खिलाफ धारा 376, 452, 323, 506 406 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में उस ने घर में घुस कर मारपीट, बलात्कार और 70 हजार रुपए लूटने का आरोप लगायाबलात्कार का आरोप लगने से बच्चू सिंह के परिवार की बड़ी बदनामी हुई. इस मामले में बच्चू सिंह का नाम आने पर उन का तबादला मेरठ के जिला बागपत कर दिया गया. मामला चूंकि एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, सो इस सिलसिले में गंभीर जांच करने के बजाय विभागीय जांच के नाम पर इसे लंबे समय तक लटकाए रखा गया

जबकि दूसरे आरोपियों के खिलाफ कानूनी काररवाई की गई. उधर बच्चू सिंह के खिलाफ कोई विशेष काररवाई होते देख प्रियंका ने उन के बड़े बेटे राहुल और उस के दोस्त के खिलाफ 17 जून, 2013 को छेड़खानी मारपीट का एक और मुकदमा दर्ज करा दिया. इस से बच्चू सिंह का परिवार काफी दबाव में गया. 2-2 मुकदमों में फंसने से बच्चू सिंह और उन के परिवार को रोजरोज कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे थे. इसी सब के चलते 31 नवंबर, 2013 को प्रियंका घर से गायब हो गई. प्रियंका के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने पर थानाप्रभारी कविनगर ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर शिवराज सिंह को सौंप दी. शिवराज सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए पिछले 2 केसों की भी जांच कर रहे थे. उन्होंने पिछले दोनों केसों की तरह इस मामले में भी कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ली

दूसरी ओर प्रियंका के मातापिता लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे. उन्होंने डीआईजी, आईजी और गाजियाबाद के एसपी, एसएसपी तक सभी अधिकारियों को अपनी परेशानी बताई . लेकिन किसी भी स्तर पर उन की कोई सुनवाई नहीं हुई. इसी बीच अचानक थानाप्रभारी कविनगर का तबादला हो गया. उन की जगह नए थानाप्रभारी आए अरुण कुमार सिंह. अरुण कुमार सिंह ने प्रियंका के अपहरण के मामले में विशेष दिलचस्पी लेते हुए इस की जांच का जिम्मा बरेली से तबादला हो कर आए तेजतर्रार एसएसआई पवन चौधरी को सौंप कर कड़ी जांच के आदेश दिएपवन चौधरी ने जांच में तेजी लाते हुए इस मामले में उस अज्ञात नामजद महिला पत्रकार के बारे में पता किया, जिस ने लापता होने वाले दिन प्रियंका को नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था. छानबीन में यह भी पता चला कि उस महिला का नाम रश्मि है और वह अपने पति के साथ केशवपुरम में किराए के मकान में रहती है. यह भी पता चला कि वह खुद को किसी अखबार की पत्रकार बताती है.

पवन चौधरी ने रश्मि का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से यह बात साफ हो गई कि 31 नवंबर को उसी ने प्रियंका को फोन किया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने 18 फरवरी, 2014 को रात साढ़े 12 बजे रश्मि और उस के पति अमरपाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो पहले तो पतिपत्नी ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन जब उन के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो वे टूट गए. मजबूर हो कर उन दोनों ने सारा राज खोल दिया. पता चला कि प्रियंका की हत्या हो चुकी है. रश्मि और उस के पति अमरपाल के बयानों के आधार पर 19 फरवरी को सब से पहले सिपाही विनेश कुमार को गाजियाबाद पुलिस लाइन से गिरफ्तार किया गया. इस के बाद उसी दिन इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड बच्चू सिंह को टटीरी पुलिस चौकी, बागपत से गिरफ्तार कर गाजियाबाद लाया गया.

थाने पर जब सब से पूछताछ की गई तो पता चला कि बच्चू सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमों से बहुत परेशान रहने लगे थे. इसी चक्कर में उन का तबादला भी बागपत कर दिया गया था. यहीं पर बच्चू सिंह की मुलाकात उन के साथ काम करने वाले सिपाही राहुल से हुईराहुल अलीगढ़ का रहने वाला था. बच्चू सिंह ने अपनी समस्या के बारे में उसे बताया. राहुल पर भी अलीगढ़ में एक मुकदमा चल रहा था, जिस के सिलसिले में वह पेशी पर अलीगढ़ आताजाता रहता था. राहुल का एक दोस्त विनेश कुमार भी पुलिस में था और गाजियाबाद में तैनात था. विनेश जब एक मामले में अलीगढ़ जेल में था तो उस की मुलाकात एक बदमाश अमरपाल से हुई थी. विनेश ने अमरपाल की जमानत में मदद की थी. इस के लिए वह विनेश का एहसान मानता था. बच्चू सिंह ने राहुल और विनेश कुमार के माध्यम से अमरपाल से प्रियंका की हत्या का सौदा 2 लाख रुपए में तय कर लिया.

योजना के अनुसार अमरपाल ने इस काम के लिए अपनी पत्नी रश्मि की मदद ली. उस ने रश्मि को प्रियंका से दोस्ती करने को कहाउस ने प्रियंका से दोस्ती गांठ कर उसे विश्वास में ले लियारश्मि को जब यह पता चला कि प्रियंका को नौकरी की जरूरत है तो उस ने खुद को एक अखबार की पत्रकार बता कर प्रियंका को 30 नवंबर, 2013 की सुबह फोन कर के घर से बाहर बुलाया और बसअड्डे ले जा कर उसे अमरपाल को यह कह कर सौंप दिया कि वह अखबार का सीनियर रिपोर्टर है और अब आगे उस की मदद वही करेगा. अमरपाल प्रियंका को बस से लालकुआं तक लाया, जहां पर रितेश नाम का एक और व्यक्ति मोटरसाइकिल लिए उस का इंतजार कर रहा था. तीनों उसी बाइक से ले कर देर शाम अलीगढ़ पहुंचे

वहां से वे लोग खैर के पास गांव बरौला गए. तब तक प्रियंका को शक हो गया था कि वह गलत हाथों में पहुंच गई है. जब एक जगह बाइक रुकी तो प्रियंका ने बाथरूम जाने के बहाने अलग जा कर अपने मामा को फोन कर के अपनी स्थिति बता दी. बाद में जब इन लोगों ने एक नहर के पास बाइक रोकी तो प्रियंका ने भागने की कोशिश भी की. लेकिन वह गिर पड़ी. यह देख अमरपाल और रितेश ने उसे पकड़ लिया और उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या के बाद इन लोगों ने प्रियंका की लाश नहर में फेंक दी और अलीगढ़ स्थित अपने घर चले गए. इस हत्याकांड में बच्चू सिंह के बेटे राहुल की भी संलिप्तता पाए जाने पर पुलिस ने अगले दिन उसे भी गिरफ्तार कर लिया

इस हत्याकांड में नाम आने पर सिपाही राहुल फरार हो गया था, जिसे पुलिस गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी. पूछताछ के बाद सभी गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन गाजियाबाद अदालत में पेश किया गया, जहां से रश्मि, बच्चू सिंह, विनेश कुमार और तरुण को जेल भेज दिया गया. जबकि अमरपाल को रिमांड पर ले कर प्रियंका की लाश की तलाश में खैर इलाके का चक्कर लगाया गया

लेकिन वहां पर लाश का कोई अवशेष नहीं मिला. पुलिस ने उस इलाके की पूरी नहर छान मारी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. रिमांड अवधि पूरी होने पर अमरपाल को भी डासना जेल भेज दिया गया. फिलहाल सभी अभियुक्त डासना जेल में बंद हैं.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित                                             

फूफा क्यों बनाना चाहता था भतीजी से अवैध संबंध

किसी से बात करना, उस के साथ घूमना रजनी का अधिकार था. उस के फूफा गंगासागर ने उसे और उस के प्रेमी को साथ देखा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि गंगासागर तो जान से गया ही रजनी और उस का प्रेमी कमल भी…  

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करतीमिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था. ‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोलाइस के बाद रजनी अपने घर गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी. ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग 38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी. उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’ रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात कहेंयह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की. ‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है. रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था. बह होते ही उस का फोन गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी. अपने आप बुलाई मौत 18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है. गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित बच सकेपुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी. उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी. गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया. दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं.

पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.                        

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें