अपनी सीट पर बैठ कर देवा ने पानी भरी प्लास्टिक की बोतल का ढक्कन खोल कर पानी पिया, फिर मुनिया की तरफ बोतल बढ़ा दी, ‘‘लो प्यास लग आई होगी, पानी पी लो.’’ वाकई बड़ी देर से मुनिया की इच्छा पानी पीने की हो रही थी. उस ने बोतल में मुंह लगाया और बचा हुआ सारा पानी गटक गई.
खाली बोतल को उस ने देवा की तरफ बढ़ाया, फिर बोली, ‘‘क्या तुम वाकई मेरे बारे में जानना चाहते हो?’’ जब देवा ने हां में सिर हिलाया, तो वह बोली, ‘‘मेरी पूरी दास्तां सुनने के बाद तुम्हें मेरे उद्धार का रास्ता ढूंढ़ना होगा, क्योंकि मैं कैसे भी इस हरीराम से पिंड़ छुड़ाना चाहती हूं. बोलो, कर पाओगे मेरा उद्धार?’’ देवा ने विश्वास दिलाने के लिए मुनिया का हाथ अपने दोनों हाथों में ले लिया. मुनिया ने अपनी आपबीती सुनानी शुरू की और जब आपबीती खत्म हुई तो रात के 11 बज चुके थे और जाने कब देवा ने मुनिया को अपनी एक बांह के घेरे में ले लिया था.
बस के अंदर की लाइटें भी बंद थीं. थकान से भरे होने के चलते ज्यादातर लोगों ने अपनीअपनी सीट पर ऊंघ कर एकएक नींद पूरी कर ली थी. देवा ने अपना हाथ मुनिया के कंधों से हटाया. उस ने महसूस किया कि अपनी आपबीती सुनाते हुए वह जितनी बार भी सुबक कर रोई है, उतनी बार उस की कमीज का सीने वाला हिस्सा गीला हुआ है और अभी भी गीला है.
कुछ सोच कर देवा अपनी सीट से उठा और ड्राइवर और उस के पास बैठे कंडक्टर से उस ने पूछा, ‘‘कहीं गाड़ी रोकोगे भी या यों ही चलते जाओगे?’’ ‘‘हम 10 मिनट बाद चाय पीने के लिए रुकेंगे. वहीं जिसे फ्रैश होना होगा, हो लेगा, फिर आगे जब राजस्थान बौर्डर पार कर के मध्य प्रदेश की तरफ बढ़ेंगे, तब खाना खाने के लिए एक ढाबे पर रुकेंगे.
वहीं अलगअलग प्रदेश से आनेजाने वाली बसें तकरीबन एक घंटे के लिए रुकती हैं, फिर अपनेअपने रूट पर निकल जाती हैं,’’ कंडक्टर बोला. ‘‘अच्छा, यह बताओ कि कब तक भोपाल पहुंचा दोगे?’’ ‘‘कुछ कह नहीं सकते, क्योंकि इस महामारी का प्रकोप हर इलाके में तेजी से फैल रहा है. सुन रहे हैं कि चीन से यह बीमारी पूरी दुनिया में फैल रही है. भारत भी इस की चपेट में आ चुका है.
बस की कहीं भी रोक कर चैकिंग की जा सकती है, इसलिए कह नहीं सकते कि हम अपनी मंजिल पर कब पहुंचेंगे.’’ देवा जानकारी ले कर वापस अपनी सीट पर लौट आया था. उस की आहट पा कर झपकी लेती मुनिया सीधी हो कर बैठ गई. लगातार देवा को चुप देख कर मुनिया थोड़ा घबराई और बोली, ‘‘क्या हमारी किसी बात से नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, तुम से हम नाराज क्यों होंगे. हम तो तुम्हें चाहने लगे हैं. हमारे दिमाग में अभीअभी एक विचार आया है.
बस यही सोच रहे हैं कि तुम्हारी खुशी की खातिर उस विचार को अंजाम दें या नहीं. फिर तुम पूरी तरह साथ दोगी, तभी वह मुमकिन होगा.’’ ‘‘तुम हमारी खुशी की सोचो और हम साथ न दें, ऐसा नहीं हो सकता. तुम बताओ तो सही, क्या करना है?’’ मुनिया ने पूछा. देवा ने इस बार अपने होंठ मुनिया के कानों से लगा दिए और अपनी योजना उस के कानों में बताने लगा, फिर बात पूरी कर के उस ने अंधेरे का फायदा उठा कर मुनिया के गालों को चूम लिया.
तभी बस झटका खा कर रुक गई. चाय पीने और फ्रैश होने की जगह आ गई थी. बस के अंदर की लाइटें जगमगा उठी थीं. बस का इंजन बंद कर के ड्राइवर भी उतर गया और कंडक्टर ने गुहार लगाई ‘‘बस यहां 20 मिनट रुकेगी, चाय पी लो, फ्रैश हो लो…’’ बस के रुकते ही देवा अपनी सीट से उठ कर खड़ा हो गया. मुनिया से पूछा, ‘‘नीचे उतरने का मन है?’’ मुनिया ने इशारे से कहा, कि तुम उतरो मैं आती हूं.
इतना कह कर उस ने पलट कर हरीराम वाली सीट की तरफ देखा. हरीराम के साथ जग्गू दादा भी हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए थे. वे दोनों जैसेतैसे खड़े हुए, फिर नीचे उतरने के लिए बस के गेट की तरफ बढ़े. उन को अपनी सीट के पास से गुजरते हुए मुनिया ने महसूस किया और कुछ इस अंदाज में अपना सिर पीछे की तरफ लुढ़का लिया मानो बड़ी देर से गहरी नींद में सो रही हो.
पास से गुजरता हुआ हरीराम दो पल को ठिठक कर रुका. उस का मन हुआ कि इतनी चैन से सोती हुई मुनिया को तेजी से झकझोर कर उठाए, पर पीछे से जग्गू दादा की आवाज सुन कर आगे बढ़ गया, ‘‘अरे, उसे सोने दो. चलो, चाय पी कर आते हैं. बस ज्यादा देर नहीं रुकेगी.’’ उन के उतरते ही तकरीबन खाली हो चुकी बस के अंदर देवा तेजी से मुनिया के पास आया और बोला, ‘‘टौयलैट आ रही हो तो उतर कर जल्दी से कर आओ. बाईं तरफ चली जाना. उधर ही लेडीज टौयलैट है.
उन दोनों के चाय पी कर लौटने से पहले आ जाना.’’ मुनिया नीचे उतरी और उस के आने तक देवा अपनी सीट पर ही बैठा रहा. उस के वापस आते ही वह फिर नीचे उतर गया. फिर जब दोबारा सब सवारियां बैठ गईं और बस स्टार्ट हुई तो 2 पानी की बोतलें और गरमागरम भुजिया ले कर देवा भी वापस अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. बस फिर चल दी. मुनिया और देवा एकदूसरे के प्रति जिस अपनेपन के भाव से भरते जा रहे थे, उस से खुद भी हैरान थे.
उन के एकदूसरे के करीब बैठने का अंदाज भी बदल चुका था. दोनों बड़े मजे से भुजिया खाने में जुटे हुए थे. बस अपनी रफ्तार से आगे बढ़ी चली जा रही थी. तकरीबन 2 बजे के आसपास बस उस जगह रुकी, जहां और भी बसें पहले से ही अलगअलग दिशाओं से आ कर रुकी हुई थीं. देवा ने बस से उतर कर यह जानकारी हासिल कर ली कि कौन सी बस देवास की तरफ इस से पहले निकलेगी.
उधर मुनिया ने अपनी सीट से उठ कर खाने की पोटली और पानी की बोतल हरिया को पीछे जा कर दे दी और बोली, ‘‘लो, खाना खा लो. इस में जग्गू दादा के लायक भी रोटियां हैं.’’ इधर जग्गू दादा बैठे थे, इसलिए पोटली उन्होंने ही पकड़ी और दोनों खाना खाने में जुट गए. खाना खाने के बाद उन्होंने भांग की एकएक गोली पानी में घोल कर पी और पीछे सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ ही देर में मुनिया ने खिड़की के बाहर देखा. देवा उसे बाहर आने का इशारा कर रहा था.
वह अपना बैग पहले से ही बाहर उठा कर ले जा चुका था. मुनिया ने बस से नीचे उतरने से पहले हरिया की सीट की तरफ देखा. पलभर को एक खिंचाव सा हुआ. आखिर 2 साल तो वह हरिया के साथ रही ही थी, फिर मन को कड़ा कर के वह बस से नीचे उतर गई. देवा बोला, ‘‘तुम कंडक्टर को बताओ कि कौन सी अटैची तुम्हारी है.’’ बस के पीछे सामान चढ़ानेउतारने वाली लटकती सीढ़ी के कुछ डंडों पर चढ़ने के बाद मुनिया ने इशारे से बता कर अपनी अटैची उतरवाई.
अटैची उतरते ही देवा ने एक हाथ में मुनिया का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ में उस की अटैची उठा कर उस बस की तरफ दौड़ पड़ा, जो स्टार्ट हो कर देवास की तरफ जाने को तैयार थी. पहले उस ने मुनिया को चढ़ाया, फिर खुद चढ़ गया. मुनिया ने इस बस की खिड़की से उस बस की तरफ देखा जिस में हरिया रह गया था. एक बार उस ने मन में विचार आया कि कहीं देवा किसी मोड़ पर धोखा न दे जाए और वह कहीं की न रहे. मर्द औरत से ज्यादा उस के शरीर को चाहता है.
देवा भी कहीं उस के शरीर से खेलने के बाद उसे छोड़ न दे. तभी देवा की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मुनिया, हम सवेरेसवेरे ही देवास पहुंच जाएंगे. बड़े पापा का घर वहीं है.’’ ‘‘वह तो ठीक है, पर अपने घर पहुंच कर मेरा क्या परिचय दोगे? पता नहीं क्यों मेरा मन एक अजीब से डर से घबरा रहा?है. लगता है, कोई अनहोनी न हो जाए,’’ मुनिया बोली. ‘‘तुम ने मुझ पर विश्वास किया है न? बस, मैं इतना ही कहूंगा कि अगर मैं तुम्हारे विश्वास पर खरा न उतरूं, तो तुम अपने हरीराम के पास चली जाना,’’ कहतेकहते देवा रुका, फिर मुनिया का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम यह क्यों नहीं सोच रही हो कि मेरी तो किसी भी लड़की से शादी हो सकती थी, पर मैं ने तुम्हीं को क्यों चुना?
‘‘अपनी बात याद करो. तुम ने कहा था कि देवा क्या तुम मेरा उद्धार कर पाओगे? यों समझ लो कि तुम्हारी जिंदगी के उद्धार की बात ही है, इस समय मेरे मन में.’’ देवा की बातों से थोड़ा निश्चिंत हो कर मुनिया ने उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया और कुछ ही पलों में तेज दौड़ती बस के हिचकोलों ने उसे नींद में सुला दिया. सवेरे जब आंख खुली तो मुनिया देवास में थी.
बस से उतर कर देवा उसे ले कर सीधा अपने बड़े पापा के घर आ गया. मुनिया को देख कर बड़ी अम्मां और बड़े पापा ने हैरान होते हुए सवालिया निगाहों से देवा को देखते हुए पूछा कि यह कौन है? ‘‘बड़े पापा, यह मुनिया है. मेरी दुलहन. हम ने शहर में ही शादी कर ली थी, पर आप को बताना भूल गए थे, फिर वह मुनिया की तरफ घूमा और बोला, ‘‘अरे घबराओ नहीं… बड़े पापा और बड़ी अम्मां दोनों के पैर छुओ न झुक कर.’’ ‘‘ओह, तो तुम भी हमारी तरह अपनी पसंद की दुलहन ले कर घर में घुसे हो. अरे, हमें तो अपना समय याद आ गया जब…’’ कहतेकहते बड़े पापा अपना समय याद कर के हंस पड़े. तभी मुनिया उन दोनों के पैरों में झुक गई, हालांकि उस की आंखें भी छलक आई थीं, पर बूंदों को जमीन पर गिरने से वह बचा ले गई.