Crime story- चांदी की सुरंग: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

रामकरण जांगिड़ ने मैनपावर मुहैया कराने, सुरंग खोदने, कटर व ग्राइंडर से लोहे का बक्सा काटने और चांदी की सिल्लियां निकाल कर शेखर व जतिन की कार में रखवाने के बदले साढ़े 5 लाख रुपए लिए थे.

बनवारी लाल जांगिड़ ने पुलिस को बताया कि मकान की डील में तय हुआ था कि शेखर जब कहेगा, तब वह मकान उस के नाम कर देगा और शेखर इस के बदले उसे 15 लाख रुपए देगा. इस के अलावा चांदी में हिस्सेदारी की बात भी तय हुई थी.

पुलिस ने भले ही इस मामले में 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन चांदी चोरी के मास्टरमाइंड शेखर अग्रवाल और जतिन जैन फरार थे. चोरी गई चांदी की 30 सिल्लियों में से एक टुकड़ा भी बरामद नहीं हो पाया था. इस से जयपुर कमिश्नरेट पुलिस विवादों में आ गई.

आरोप यह भी लगा कि शेखर के सब से विश्वस्त केदार जाट और कालूराम सैनी ने उन ज्वैलर्स के नाम पुलिस को बताए थे, जिन्हें चांदी की सिल्लियां बेची गई थीं. पुलिस ने कई ज्वैलरों को पूछताछ के लिए बुलाया जरूर, लेकिन गिरफ्तारी किसी की नहीं की गई. चांदी की 3 सिल्लियां बरामद होने की चर्चा भी रही, लेकिन पुलिस इस से इनकार करती रही.

कहा यह भी जा रहा है कि बनवारी लाल जांगिड़ को पुलिस ने 25 फरवरी को ही हिरासत में ले लिया था. उस ने शेखर अग्रवाल का सारा भांडा भी फोड़ दिया था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. इस से उसे फरार होने का मौका मिल गया. हालांकि पुलिस ने शेखर का पासपोर्ट जब्त कर लिया है.

जयपुर कमिश्नरेट पुलिस की जांच पर उठे विवादों को देखते हुए राजस्थान के पुलिस महानिदेशक एम.एल. लाठर ने 9 मार्च को चांदी चोरी के इस मामले की जांच स्पैशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) को सौंप दी.

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एसओजी खोलेगी सारी परतें

एसओजी के एडिशनल डीजी अशोक राठौड़ ने 10 मार्च को तेजतर्रार आईपीएस अफसर राजेश सिंह के नेतृत्व में 4 अफसरों की एसआईटी गठित कर दी.

एसओजी के डीआईजी शरत कविराज, एसपी राजेश सिंह और अन्य अफसरों की टीम ने 11 मार्च को मौके पर पहुंच कर सुरंग का निरीक्षण किया. इस के बाद अदालत से प्रोडक्शन वारंट ले कर जेल में बंद बनवारी जांगिड़, केदार जाट और कालूराम सैनी को अपनी कस्टडी में ले लिया.

एसओजी का मानना है कि ये तीनों ही शेखर अग्रवाल के असली राजदार और कामगार हैं. इन से पूछताछ में शेखर और जतिन के सारे राज खुलेंगे. चांदी खरीदने वाले भी पकड़े जाएंगे. शेखर और जतिन भी ज्यादा दिनों तक पुलिस से नहीं भाग सकेंगे, क्योंकि उन के विदेश भागने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं.

नेपाल में जतिन जैन बैंकाक से सोने की तस्करी के मामले में अपनी मां सरिता जैन के साथ गिरफ्तार हुआ था. कहा जाता है कि करीब 5 साल पहले शेखर बाजार का 5-6 करोड़ रुपए का कर्ज हो जाने पर विदेश चला गया था. वह करीब एक साल बाद जयपुर लौटा था.

शेखर का नाम जोधपुर में सितंबर 2020 में सोने की तस्करी के मामले में डीआरआई की काररवाई में भी सामने आया था. डा. सोनी को इस बात का दुख है कि दोस्त ही उन्हें दगा दे गया. हालांकि डा. सोनी ने कथा लिखे जाने तक पुलिस को यह नहीं बताया था कि कितनी चांदी चोरी हुई, लेकिन चर्चा है कि उन के मकान के तहखाने में जमीन में 3 बक्से गड़े हुए थे.

पुलिस को जांच में एक बक्सा कटा हुआ और 2 खाली मिले. डा. सोनी ने पुलिस को बताया कि ये बक्से खाली ही थे. सवाल यह है कि खाली बक्से जमीन में दबाने की वजह क्या थी?

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चर्चा यह भी है कि डा. सोनी ने जब चांदी निकाली तो 2 बक्सों में चांदी सुरक्षित मिली. इसे निकाल लिया गया. लेकिन इस बात का खुलासा न डाक्टर सुनीत सोनी ने किया और न ही पुलिस ने.

एसओजी ने बनवारी, केदार और कालू से रिमांड अवधि में पूछताछ कर यह पता लगाया कि शेखर और जतिन ने डाक्टर के घर से चुराई गई चांदी की सिल्लियां किनकिन लोगों को बेची थीं. इन से पूछताछ के आधार पर एसओजी ने कुछ ज्वैलर्स को नोटिस जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया.

बाद में 16 मार्च तक जयपुर की ज्वैलर्स फर्म प्रदीप आर्ट्स, सरिता सिल्वर पैलेस, धनंजय कारपोरेशन, आर.के. ज्वैलर्स और सत्यनारायण मातादीन आदि से चांदी की 11 सिल्लियां बरामद कर लीं. इन का कुल वजन लगभग 300 किलो है. पुलिस ने ज्वैलर्स को गिरफ्तार नहीं किया लेकिन उन्हें मुकदमा दर्ज कराने की छूट दे दी.

इस दौरान ज्वैलर्स प्रदीप गुप्ता, देवेंद्र अग्रवाल, सर्वती, अंशुल सोनी और भंवरलाल कपूरिया आदि ने शेखर और जतिन के खिलाफ चांदी की सिल्लियां धोखाधड़ी से बेचने के 6 मुकदमे पुलिस में दर्ज करा दिए थे. एसओजी चांदी की बाकी सिल्लियों को बरामद करने और मुख्य आरोपी शेखर व जतिन की तलाश में जुटी हुई थी.

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Crime story- चांदी की सुरंग: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

जिस तरह सुरंग खोद कर डा. सुनीत सोनी के तहखाने से 540 किलोग्राम चांदी की 18 सिल्लियां चुराई गईं, वह हैरतंगेज था. लेकिन इस से भी हैरतंगेज बात यह थी कि यह काम डा. सुनीत के उसी दोस्त शेखर ने कराया था, जिस ने इतनी चांदी खरीदवाई  और बक्सों में भर कर डाक्टर के क्लीनिक के फर्श में दबवाई. कैसे  हुआ यह सब…

इसी साल फरवरी के महीने में जब चांदी के भावों में भारी उतारचढ़ाव चल रहा था, तो डा. सुनीत सोनी ने अपने घर में रखी चांदी की सिल्लियों को बेचने

का मन बनाया. बेचने के लिए पहले किसी सुनार या ज्वैलर्स को चांदी की सिल्ली या उस का छोटा टुकड़ा दिखाना जरूरी था ताकि खरीदार इस बात से संतुष्ट हो जाए कि चांदी में कोई खोट नहीं है.

चांदी बेचने का विचार मन में आने पर डा. सोनी ने भरोसे के लोगों से अपने मकान के बेसमेंट के फर्श को खुदवाया. क्योंकि चांदी जमीन खोद कर दबाए गए 2 बक्सों में सुरक्षित थी. फर्श खुदने पर डा. सोनी के होश उड़ गए. फर्श के नीचे दबाए गए दोनों बक्से कटे हुए थे और उन में रखी चांदी की सिल्लियां लापता थीं.

डाक्टर सोनी समझ नहीं पाए कि जमीन में गड़े बक्सों में से चांदी की सिल्लियां कहां गायब हो गईं. उन सिल्लियों को जमीन निगल गई या लोहे के बक्से खा गए. चांदी भी कोई कम नहीं 5 क्विंटल 40 किलो थी. पूरी 18 सिल्लियों में बंटी हुई.

डा. सोनी ने कटे हुए लोहे के बक्से निकलवाए तो देखा, वहां बड़े सुराखनुमा सुरंग बनी हुई थी. वह समझ गए कि इसी सुरंग के रास्ते से चांदी निकाली गई है. इसीलिए बाकायदा सुरंग बनाई गई थी. उन्होंने अपने एक कर्मचारी को टौर्च दे कर उस सुरंग में उतारा. वह कर्मचारी रेंगता हुआ सुरंग के अंदर घुसा. 5-7 फुट के बाद वह सुरंग बंद थी. यानी चांदी की चोरी के बाद सुरंग बंद कर दी गई थी.

डा. सुनीत सोनी राजस्थान की राजधानी जयपुर में रहते हैं. वैशाली नगर के आम्रपाली सर्किल के डी ब्लौक में उन का आलीशान मकान है. इसी मकान में उन्होंने मेडिस्पा नाम से अपना हौस्पिटल खोल रखा है. सोनी जयपुर के नामी हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन हैं.

कटे हुए और खाली बक्से देख कर डा. सोनी समझ गए कि किसी ने बहुत शातिराना अंदाज में चांदी की सिल्लियां चुराई हैं. यह किसी एक आदमी का काम नहीं था. चोर आगेपीछे या ऊपर से नहीं आए, बल्कि जमीन के नीचे सुरंग के रास्ते आए थे.

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डाक्टर ने बेसमेंट सहित पांच मंजिला मकान में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे थे. मकान के भूतल से ऊपर की मंजिल तक लोहे का मजबूत जाल लगा हुआ था. अच्छी गुणवत्ता वाले सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

मकान में नीचे की मंजिल पर उन का क्लीनिक था और ऊपर की मंजिल पर परिवार रहता था. मकान में आनेजाने वाले हरेक आदमी का नाम, पता रजिस्टर में लिखा जाता था.

डा. सोनी के मकान के बेसमेंट की जमीन में गाड़ कर रखी गई चांदी की सिल्लियों की जानकारी केवल 6 लोगों को थी. इन लोगों में डा. सोनी और उन की पत्नी के अलावा परिवार से बाहर के केवल 4 लोगों को यह राज पता था कि डाक्टर साहब ने सुरक्षा के लिहाज से अपने मकान में फर्श के नीचे 2 बक्सों में चांदी की सिल्लियां रख कर गड़वाई थीं.

इस का मतलब चांदी की चोरी उन लोगों में से किसी ने की थी, या फिर उन चारों में से किसी ने कभी यह राज किसी पांचवें आदमी को बता दिया था और उस आदमी ने इस वारदात को अंजाम दिया था.

सुरंग के रहस्य का पता लगाने के लिए उन्होंने खुद आसपास के मकानों पर जा कर अपने तरीके से देखा, लेकिन कहीं भी ऐसी कोई बात नजर नहीं आई जिस से यह पता चले कि सुरंग वहां से बनाई गई थी.

डा. सोनी के मकान के पीछे वाले प्लौट में एक महीने से जरूर कुछ काम चल रहा था. उस प्लौट के चारों ओर लोहे की चादरें और हरे रंग का नेट लगा रखा था. डा. सोनी उस प्लौट पर भी गए, लेकिन उन्हें ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया, जिस से पता चलता कि सुरंग उस प्लौट में से खोदी गई थी.

चोरी हुई चांदी की कीमत करोड़ों रुपए थी. डाक्टर सोनी ने चांदी निवेश के लिहाज से खरीदी थी. इस में कुछ चांदी उन के पुरखों की भी थी. सुरक्षा के लिहाज से उन्होंने चांदी की सिल्लियां जमीन में गाड़ कर उस पर फर्श बनवा कर टाइल्स लगवा दी थीं.

डा. सोनी समझ नहीं पा रहे थे कि जमीन में दबी चांदी की बात बाहर कैसे निकली? यह तय था कि जिस ने भी चांदी चोरी की योजना बनाई, वह बहुत शातिर था.

काफी सोचविचार के बाद डा. सोनी ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया. उन्होंने 24 फरवरी, 2021 को वैशाली नगर थाने में चांदी चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने मकान के बेसमेंट के फर्श में सुरक्षा के लिए चांदी की सिल्लियां रखी हुई थीं. जरूरत पड़ने पर फर्श तुड़वा कर देखा, तो लोहे के 2 बक्सों में रखी चांदी गायब मिली.

दोनों बक्से बाहर निकाल कर देखे, तो उन्हें कटर से काटा गया था. मकान की उत्तर दिशा में एक सुरंग भी बनी हुई है. सोनी ने रिपोर्ट में केवल चांदी चोरी होने की बात बताई थी. चांदी की कीमत या वजन वगैरह बाद में बताने की बात कही. बहरहाल, पुलिस ने धारा 457 और 380 में मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस अफसरों ने मौके के हालात देखे, तो हैरान रह गए. चांदी चोरी की वारदात करने के लिए पीछे के प्लौट से डा. सोनी के मकान के बेसमेंट तक सुरंग खोदी गई थी. इसी सुरंग के रास्ते चांदी की चोरी की गई.

डा. सोनी ने हालांकि पुलिस रिपोर्ट में चांदी की कीमत या वजन नहीं बताया था, लेकिन चांदी रखने के लिए बनवाए लोहे के बक्सों को देख कर पुलिस अधिकारियों को यह अंदाज हो गया कि चोरी गई चांदी करोड़ों रुपए की रही होगी.

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एडिशनल पुलिस कमिश्नर अजयपाल लांबा के निर्देशन में एसीपी रायसिंह बेनीवाल, वैशाली नगर थानाप्रभारी अनिल जैमिनी और डीएसटी (पश्चिम) इंसपेक्टर नरेंद्र खींचड़ के नेतृत्व में चांदी चोरी की जांचपड़ताल शुरू की गई. फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर पहुंच कर जांच की और साक्ष्य जुटाए.

सब से पहले डा. सोनी के पड़ोस का प्लौट खरीदने वाले का पता लगाया गया. 20 साल से खाली पड़ा यह प्लौट इसी 4 जनवरी को 97 लाख रुपए में बनवारी लाल जांगिड़ ने खरीदा था. इस प्लौट में केवल एक कमरा बना हुआ था.

बनवारी जयपुर जिले के जमवा रामगढ़ थाना इलाके के गांव टोडा मीणा का रहने वाला था. पेशे से कारपेंटर बनवारी आजकल जयपुर में बालाजी विहार फूलवाड़ी आमेर कुंडा में रहता था.

मौके की हालत देखने से पता चला कि इस प्लौट में बने कमरे का फर्श खोद कर डा. सोनी के मकान के बेसमेंट तक सुरंग बनाई गई थी. चांदी चोरी के बाद गड्ढे में मिट्टी डलवा कर सुरंग को बंद कर दिया गया था और फर्श पर टाइल्स लगवा दी गई थीं.

पुलिस ने मजदूरों को बुला कर वह बंद सुरंग खुदवाई. इस काम में 2 दिन लग गए. बाद में पुलिस अधिकारियों और एफएसएल टीम ने सुरंग की नापतौल की. सुरंग 26 फुट लंबी, 10 फुट गहरी और 3 फुट चौड़ी थी. इस बीच पुलिस जांचपड़ताल कर लोगों से पूछताछ करती रही.

प्लौट खरीदार बनवारी लाल जांगिड़ को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि प्लौट बेशक उस के नाम से खरीदा गया है, लेकिन सारे पैसे शेखर अग्रवाल ने दिए थे. शेखर अग्रवाल के डा. सोनी से घनिष्ठ पारिवारिक और व्यावसायिक संबंध थे.

बड़ा खिलाड़ी निकला शेखर

जयपुर में राम मार्ग श्याम नगर में रहने वाले शेखर की बड़ी चौपड़ पर एन.जे. बुलियन और नारायण लाल जग्गीलाल सर्राफ और सिटी पल्स में बोरला के नाम से सोनेचांदी के आभूषणों के शोरूम हैं. पुलिस ने शेखर की तलाश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

पुलिस ने एक मार्च को बनवारी लाल जांगिड़ के अलावा कालूराम सैनी, केदार जाट और रामकरण जांगिड़ को चांदी चोरी के मामले में गिरफ्तार कर लिया.

बनवारी जांगिड़ ने कुछ साल पहले शेखर के मकान पर फरनीचर का काम किया था. इस बीच वह शेखर का इतना विश्वासपात्र बन गया था कि उस ने उस के नाम से 97 लाख रुपए का प्लौट खरीद दिया था.

कालूराम जयपुर के कानोता थाना इलाके के पुराना बगराना माली की कोठी आगरा रोड का रहने वाला था. वह कई साल से शेखर अग्रवाल की बड़ी चौपड़ स्थित फर्म एन.जे. बुलियन और नारायण दास जग्गीलाल सर्राफ शोरूम पर काम करता था.

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केदार जाट मूलरूप से टोंक जिले में निवाई के गांव लुहारा का रहने वाला था. वह शेखर अग्रवाल का ड्राइवर था. वह रहता भी शेखर के घर पर ही था. रामकरण जांगिड़ जयपुर में बालाजी विहार (प्रथम) फूलबाड़ी पीली तलाई आमेर का रहने वाला था. वह भी पेशे से कारपेंटर था.

बाद में पुलिस ने 3 मार्च को इस मामले में मनराज मीणा, दिलखुश मीणा और मोहम्मद नईमुद्दीन को गिरफ्तार किया. इन में मनराज और दिलखुश सगे भाई थे.

टोंक जिले के दत्तवास थाना इलाके के गांव तुकिया के रहने वाले दोनों भाई मजदूरी और हलवाई का काम करते थे. कुछ समय पहले दोनों ने शेखर के कहने पर डा. सोनी के फार्महाउस पर तारबंदी का काम किया था. मोहम्मद नईमुद्दीन सवाई माधोपुर जिले के मलारना डूंगर थाना इलाके के गांव पीलवा नदी का रहने वाला था. वह जयपुर में रहता था. वह पहले इस मामले में एक मार्च को गिरफ्तार रामकरण जांगिड़ के पास कारपेंटर का काम करता था.

चांदी चोरी के मामले में ही बाद में पुलिस ने 3 आरोपियों को और गिरफ्तार किया. इस तरह 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.

पुलिस की पूछताछ में चांदी चोरी की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह फिल्मी कहानियों से भी एक कदम आगे थी.

डा. सुनीत सोनी जयपुर के नामी हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन हैं. उन की पत्नी अनुपमा सोनी भी डाक्टर हैं. डा. अनुपमा सोनी मिसेज एशिया इंटरनैशनल-2018 रह चुकी थीं. डाक्टर दंपति का अच्छा कामकाज होने से आमदनी भी अच्छी थी.

डा. सोनी को 3-4 साल पहले एक युवती ने अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था. वह युवती उन्हें ब्लैकमेल कर लाखों रुपए मांग रही थी. उस ने डाक्टर के खिलाफ पुलिस में भी मामला दर्ज करा दिया था. बाद में डा. सोनी ने उस युवती के ही खिलाफ हनीट्रैप का मामला दर्ज कराया था. इस मामले में वह युवती और उस के गिरोह की कई अन्य युवतियों को जयपुर पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था.

डाक्टर सोनी के शेखर से कई सालों से घनिष्ठ संबंध थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. डाक्टर साहब शेखर से घरपरिवार और दुखसुख की बात करते थे. जिस के पास पैसा होता है, वह अपने पैसों को बढ़ाने की सोचता है. इसीलिए कभीकभार डा. सोनी शेखर से पैसों के निवेश के बारे में भी सलाह ले लेते थे.

कुछ महीने पहले जब चांदी के भाव घट रहे थे, तब शेखर ने डा. सोनी को आयकर के छापों का डर दिखा कर चांदी में पैसा लगाने की सलाह दी.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सोनी को पसंद आया आइडिया क्यों पसंद आया

Crime Story- मुस्कुराती आयशा की दर्दभरी कहानी: भाग 1

तमाम तरह से प्रताडि़त होने के बावजूद आयशा अपने शौहर आरिफ को दिलोजान से मोहब्बत करती थी, लेकिन लालची आरिफ आयशा के बजाय अपनी प्रेमिका को चाहता था. निकाह के एक साल बाद आरिफ ने ऐसे हालात बना दिए कि आयशा को अपनी मौत का वीडियो बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा…

अहमदाबाद में साबरमती नदी की उफान मारती लहरों पर अटकी मेरी निगाहों में उस वक्त अतीत के लम्हे एकएक कर चलचित्र की तरह तैर रहे थे. रिवरफ्रंट के किनारे चहलकदमी करने वाले लोगों से बेपरवाह मेरे जेहन में सिर्फ जिंदगी के वे अफसोस भरे लम्हे उभर कर सामने आ रहे थे, जिन के कारण आज मेरी जिंदगी इतने अवसाद में भर चुकी थी कि मैं ने एक जिंदगी का सब से कठिन फैसला ले लिया था.

मैं अपने अब्बू लियाकत अली मरकाणी की 2 संतानों में सब से बड़ी थी, मुझ से छोटा एक भाई है. अब्बू पेशे से टेलर मास्टर थे. अब्बू बचपन से ही कहा करते थे कि मेरी आयशा बड़ी टैलेंटेड लड़की है. अब्बू ज्यादा पढ़लिख नहीं सके थे, लेकिन उन का सपना था कि उन के बच्चे पढ़लिख कर काबिल इंसान बनें और लोग उन्हें उन के बच्चों की शोहरत के कारण जानें.

अब्बू ने मुझे पढ़ालिख कर या तो आईएएस बनाने या टीचर बनाने का सपना देखा था. इधर अम्मी ने भी मुझे बचपन से ही घर के हर काम में पारंगत कर दिया था. वे कहा करती थीं कि पराए घर जाना है इसलिए अपने घर की जिम्मेदारियां संभाल कर ही ससुराल की जिम्मेदारियों के लिए तैयार होना पड़ता है. मेरा ख्वाब था कि मैं पीएचडी कर के लेक्चरर या प्रोफैसर बनूं.

लेकिन कहते हैं न कि इंसान की किस्मत में जो लिखा हो, होता वही है. मुझे राजस्थान के जालौर से बचपन से ही लगाव था. क्योंकि यहां शहर के राजेंद्र नगर में मेरे मामू अमरुद्दीन रहा करते थे. बचपन से ही जब भी स्कूल की छुट्टियां होती थीं तो मैं मामू के पास ननिहाल आ जाती थी.

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मामू भी कहते थे कि आयशा तुझे जालौर से जिस तरह का लगाव है उसे देख कर लगता है तेरी शादी यहीं करानी पडे़गी. बचपन में मामू की कही गई ये बातें एक दिन सच साबित हो जाएंगी, इस का मुझे उस वक्त अहसास नहीं था.

बात सन 2017 की है, मैं ने ग्रैजुएशन पूरी कर ली थी. हमेशा गरमियों की छुट्टियों की तरह उस साल भी मैं मामू के घर चली गई थी. लेकिन इस बार एक अलग अहसास ले कर लौटी. इस बार मेरी मुलाकात वहां जालौर के ही रहने वाले आरिफ खान से हुई थी. पता नहीं, वह कौन सा आकर्षण था कि पहली ही नजर में आरिफ मेरे दिल में उतर गया. उस से मिलने के बाद दिल में अजीब सा अहसास जागा, पहली मुलाकात के बाद जब वापस लौटी तो लगा जैसे कोई ऐसा मुझ से दूर चला गया है, जिस के बिना जीवन अधूरा है.

मुझे लगा शायद मैं उसे अपना दिल दे बैठी थी. बस यही कारण था कि आरिफ से मिलनेजुलने का सिलसिला लगातार शुरू हो गया. आरिफ में भी मैं ने खुद से मिलने की वैसी ही तड़प देखी, जैसी मुझ में थी. मिलनेजुलने का सिलसिला शुरू होते ही हम दोनों अपने परिवारों के बारे में भी एकदूसरे को जानकारी देने लगे.

आरिफ अपने पिता बाबू खान के साथ जालौर की एक ग्रेनाइट फैक्ट्री में काम करता था. उस के अपने पुश्तैनी घर के बाहर 2 दुकानें थीं, जो उस ने किराए पर दे रखी थीं. आरिफ ग्रेनाइट फैक्ट्री में सुपरवाइजर के पद पर तैनात था, जबकि उस के पिता कंस्ट्रक्शन कंपनी की देखरेख का काम करते थे.

जल्द ही हम दोनों की मुलाकातें प्यार में बदल गईं. आरिफ से बढ़ते प्यार के बारे में अपनी मामीजान को सारी बात बताई तो उन्होंने मामा से आरिफ के बारे में बताया. मामा ने पहले आरिफ से मुलाकात की और उस से जानना चाहा कि क्या वह सचमुच मुझ से प्यार करता है. जब उस ने कहा कि वह मुझ से निकाह करना चाहता है तो मामूजान ने आरिफ के अब्बा व अम्मी से मुलाकात की. उस के बाद जब सब कुछ ठीक लगा तो मामू ने मेरे अब्बू व अम्मी को आरिफ के बारे में बताया.

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शादी में बदल गया प्यार

मिडिल क्लास फैमिली की तरह बेटी के जवान होते ही मातापिता को बेटी के हाथ पीले करने की फिक्र होने लगती है. मेरे अब्बू  और अम्मी मेरे लिए काबिल शौहर तथा एक भले परिवार की तलाश कर ही रहे थे.

मामू ने अब्बू को यह भी बता दिया कि उन्होेंने आरिफ व उस के परिवार के बारे में पता कर लिया है. अच्छा खातापीता और शरीफ परिवार है. अब्बू को भी लगा कि चलो बेटी ननिहाल स्थित अपनी ससुराल में रहेगी तो उन्हें  भी चिंता नहीं रहेगी. इस के बाद मेरे परिवार ने आरिफ के परिवार वालों से मिल कर आरिफ से मेरे रिश्ते की बात चलानी शुरू की. एकदो मुलाकात व बातचीत के बाद आरिफ से मेरा रिश्ता पक्का हो गया.

6 जुलाई, 2018 को आरिफ से मेरे निकाह की रस्म पूरी हो गई और मैं आयशा आरिफ खान के रूप में नई पहचान ले कर अपने मायके से ससुराल जालौर पहुंच गई. हालांकि शादी में दानदहेज देने की कोई बात तय नहीं हुई थी, लेकिन अब्बा ने शादी में अपनी हैसियत के लिहाज से जरूरत की हर चीज दी. आरिफ की मोहब्बत में निकाह के कुछ दिन कैसे बीत गए, मुझे पता ही नहीं चला.

निकाह के 2 महीने बाद ही मेरी जिंदगी में संघर्ष का एक नया अध्याय शुरू हो गया. 2 महीने के भीतर ही मुझे समझ आने लगा कि निकाह के बाद पहली रात को अपने अंकपाश में लेते हुए आरिफ ने मुझ से ताउम्र मोहब्बत करने और जिंदगी भर साथ निभाने का जो वादा किया था, वह दरअसल एक फरेब था. असल में उस की जिदंगी में पहले से ही एक लड़की थी.

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अगले भाग में पढ़ें- आरिफ की बेवफाई आई सामने

Crime Story- मुस्कुराती आयशा की दर्दभरी कहानी: भाग 3

मैं अब भी अपना परिवार जोड़ना चाहती थी. मुकदमा दर्ज होने के बाद भी मैं आरिफ को समझाती रही कि अगर वह मुझे अपना लेगा तो अब्बू से कह कर सब ठीक करा दूंगी. मैं हर तरीके से अपने परिवार को वापस जोड़ने की कोशिश कर रही थी. लेकिन आरिफ मेरी हर बात को बारबार नकारता रहा.

22 फरवरी, 2021 को मैं ने आरिफ से आखिरी बार फोन पर बात की थी. लेकिन आरिफ ने उस दिन जो कुछ कहा, उस ने मुझे भीतर से तोड़ दिया. उस ने कहा कि वह मर भी जाए तो भी मुझे ले कर नहीं जाएगा.

मैं ने आरिफ से कहा कि अगर वह ले कर नहीं जाएगा तो मैं जान दे दूंगी. इस पर आरिफ ने कहा अगर मरना है तो मर जाए, लेकिन मरने से पहले वीडियो बना कर भेज दे. मैं ने भी वादा कर लिया कि ठीक है, मरूंगी जरूर और वीडियो भी भेजूंगी. उसी दिन से मन जिंदगी के प्रति निराशा से भर गया था.

25 फरवरी को मैं उसी निराशा और हताशा में मन की शांति के लिए साबरमती रिवरफ्रंट पर जा पहुंची. यहीं पर बैठेबैठे अतीत के पन्नों  को पढ़ते हुए हताशा ने मुझे एक बार फिर इस तरह घेर लिया कि सोचा जब जीवन खत्म ही करना है तो क्यों न आज ही कर लिया जाए.

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वीडियो में उस ने जिक्र किया कि इस मामले में आरिफ को परेशान न किया जाए. मैं आरिफ से प्यार करती थी, इसलिए उस से किया गया वादा पूरा करने के लिए मैं ने एक वीडियो बनाया.

आयशा का आखिरी वीडियो

‘हैलो, अस्सलाम आलैकुम, मेरा नाम आयशा आरिफ खान है और मैं अब जो करने जा रही हूं, अपनी मरजी से करने जा रही हूं. मुझ पर कोई दबाव नहीं था. अब मैं क्या बोलूं? बस, यह समझ लीजिए कि अल्लाह द्वारा दी गई जिंदगी इतनी ही है और मेरी यह छोटी सी जिंदगी सुकून वाली थी. डियर डैड आप कब तक लड़ेंगे अपनों से? केस वापस ले लीजिए. नहीं लड़ना.

‘आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी. प्यार करते हैं आरिफ से, उसे परेशान थोड़े ही न करेंगे. अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे. चलो, अपनी जिंदगी तो यहीं तक है.

ayesa-3

‘मैं खुश हूं कि मैं अल्लाह से मिलूंगी और पूछूंगी कि मुझ से गलती कहां हो गई. मां बाप बहुत अच्छे मिले, दोस्त भी बहुत अच्छे मिले, पर शायद कहीं कमी रह गई मुझ में या फिर तकदीर में. मैं खुश हूं सुकून से जाना चाहती हूं, अल्लाह से दुआ करती हूं कि वो दोबारा इंसानों की शक्ल न दिखाए.

‘एक चीज जरूर सीखी है मोहब्बत करो तो दोतरफा करो, एकतरफा में कुछ हासिल नहीं है. कुछ मोहब्बत तो निकाह के बाद भी अधूरी रहती हैं. इस प्यारी सी नदी से प्रेम करती हूं कि ये मुझे अपने आप में समा ले.

‘मेरे पीछे जो भी हो प्लीज ज्यादा बखेड़ा खड़ा मत करना, मैं हवाओं की तरह हूं, सिर्फ बहना चाहती हूं. मैं खुश हूं आज के दिन, मुझे जिन सवालों के जवाब चाहिए थे वो मिल गए, जिसे जो बताना चाहती थी सच्चाई बता चुकी हूं. बस इतना काफी है. मुझे दुआओं में याद रखना. थैंक यू, अलविदा.’

आरिफ से मेरा यही वादा था, इसलिए इस वीडियो को मैं ने आरिफ और उस के परिवार वालों को सेंड कर दिया है ताकि उस को समझ आ जाए कि मैं वाकई उस से सच्ची मोहब्बत करती थी और मरने के बाद भी उसे किसी पचडे़ में नहीं फंसाना चाहती.

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इस वीडियो संदेश को आरिफ को भेजने के बाद मैं ने अपने अब्बू व अम्मी से बात की. उन्हेंबता दिया कि मैं साबरमती के किनारे खड़ी हूं और मरने जा रही हूं. हालांकि

अब्बू  ने खूब मन्नतें की कि कोई गलत कदम न उठाऊं. लेकिन मैं ने खुद की जिंदगी खत्म  करने का फैसला ले लिया था. मरने से पहले भी आरिफ के लिए मेरा प्यार कम नहीं हुआ था इसीलिए मैं ने अब्बू से कहा कि वे आरिफ और उस के खिलाफ दर्ज मामले को वापस ले लें.

मैं ने साबरमती के किनारे खड़े हो कर अपने इस फोन और बैग को किनारे रखा और साबरमती के सामने अपनी बांहें फैला दीं और उस के बाद मैं ने अपना भार साबरमती पर छोड़ दिया.

पति ने कहा था मर जाओ, मुझे वीडियो भेज देना

आयशा आरिफ खान ने 25 फरवरी, 2021 को सुसाइड किया था. उस से पहले आयशा ने एक वीडियो बनाया था. आयशा ने इस वीडियो को बनाने के बाद अपने पति को फोन कर के कहा था कि वह मरने जा रही है, तो आरिफ ने उस से कहा कि

वह मरने का वीडियो उसे भेजे तो वह यकीन कर लेगा.  आरिफ से बात करने के बाद आयशा ने अपने मातापिता से फोन पर बात की थी. पिता ने भांप लिया था कि बेटी बहुत परेशान व डिप्रेशन में है. उन्होंने बेटी को ऊंचनीच समझाते हुए उसे कोई भी गलत कदम न उठाने और फौरन घर लौटने के लिए कहा. लेकिन तब तक आयशा अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला कर चुकी थी.

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लिहाजा उस ने इस के कुछ देर बाद ही साबरमती नदी में छलांग लगा दी. कुछ लोगों ने जब आयशा को नदी में कूदते देखा तो रिवरफ्रंट औफिस को सूचना दी, जिस के बाद पुलिस व गोताखोरों ने कई घंटे बाद उस की लाश बाहर निकाली.

चंद रोज बाद ही आयशा की मौत का आखिरी वीडियो वायरल हुआ तो आयशा की दर्दभरी कहानी सब के सामने आई, जिस ने लोगों को झकझोर कर रख दिया.

अहमदाबाद के आयशा सुसाइड केस में गुजरात पुलिस ने उस के पति आरिफ के खिलाफ वायरल वीडियो और परिजनों की शिकायत के बाद आत्महत्या के लिए उकसाने, प्रताडि़त करने व दहेज की मांग करने का मुकदमा दर्ज कर लिया.

आयशा के सुसाइड के बाद जब उस की मौत का वीडियो वायरल हुआ तो आरिफ घर से फरार हो गया. गुजरात पुलिस जब जालौर में उस के घर पहुंची तो परिवार वालों ने बताया था कि वह एक शादी में गया था और वहीं से कहीं चला गया है. इस के बाद मोबाइल लोकेशन के आधार पर 3 मार्च, 2021 को आरिफ को पाली से अरेस्ट किया गया.

बाद में अदालत से 3 दिन का रिमांड मिलने के बाद पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो पुलिस भी यह देख कर हैरान रह गई कि आरिफ को आयशा के सुसाइड का कोई गम नहीं है. आरिफ का बर्ताव चौंकाने वाला था क्योंकि उस के चेहरे पर आयशा की मौत को ले कर रत्ती भर भी अफसोस नजर नहीं आया. वह ऐसा बर्ताव कर रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो. उस के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी.

आरिफ से पूछताछ में आयशा के गर्भपात के बारे में भी सवाल किए गए. उस ने बताया कि गर्भपात के बाद जब आयशा की हालत गंभीर थी तो वह बुलाने के बावजूद उसे देखने तक नहीं गया था.

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बेवफाई आई सामने

घर वाली के रूप में मेरे शरीर को भोगने के अलावा मोहब्बत तो आरिफ अपनी उस प्रेमिका से करता था, जिस से अब तक वह चोरीछिपे वाट्सऐप पर चैट और वीडियो काल कर के दिन के कई घंटे बातचीत में बिताता था. निकाह के 2 महीने बाद जब आरिफ के फोन से यह भेद खुला तो मेरे ऊपर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा.

आरिफ बेवफा होगा, इस की मुझे तनिक भी उम्मीद नहीं थी. एक औरत कुछ भी बांट सकती है, लेकिन पति का बंटवारा उसे कतई गवारा नहीं. जाहिर था, मैं भी एक औरत होने के नाते इस सोच से अछूती नहीं रही. मैं ने आरिफ की इस बात का विरोध किया कि आखिर मुझ में ऐसी कौन से कमी है, जो वह किसी दूसरी औरत में मेरी उस कमी को तलाश रहा है.

उस दिन आरिफ ने जो कहा मेरे लिए वह किसी कहर से कम नहीं था. आरिफ ने मुझे बताया कि वह तो शादी से पहले ही एक लड़की से प्यार करता था, मगर जातपात की ऊंचनीच के कारण परिवार वाले उस से शादी के लिए तैयार नहीं हुए.

उस ने तो बस परिवार की खातिर मुझ से निकाह किया था. यह बात मेरे लिए कितनी पीड़ादायक थी, इस का अहसास दुनिया की हर उस औरत को आसानी से हो सकता है जिस ने अपने पति से दिल की गहराइयों से प्यार किया होगा.

यह दुख, दर्द, तकलीफ मेरे लिए असहनीय थी. फिर अकसर ऐसा होने लगा कि आरिफ उस प्रेम कहानी को ले कर मेरे ऊपर हाथ छोड़ने लगा. इतना ही नहीं, अब तो वह चोरीछिपे नहीं मेरी मौजूदगी में ही अपनी प्रेमिका से वीडियो काल तक करने लगा था. आंखों से आंसू और दिल में दर्द लिए मैं सब कुछ तड़प कर सह जाती थी.

आरिफ की कमाई के साधन तो सीमित थे, लेकिन उस की आशिकी के कारण उस के खर्चे बेहिसाब थे. इसलिए जब भी उसे पैसे की जरूरत होती तो वह मुझे जरूरत बता कर दबाव बनाता कि मैं अपने अब्बू से पैसे मंगा कर दूं.

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जिंदगी में पति के साथ दूरियां तो बन ही चुकी थीं, सोचा कि चलो इस से ही आरिफ के साथ संबध सुधर जाएंगे. एकदो बार मैं ने 10-20 हजार मंगा कर आरिफ को दे दिए. लेकिन पता चला कि ये पैसा आरिफ ने अपनी महबूबा के साथ अय्याशियों के लिए मंगाया था.

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कुछ समय बाद ऐसा होने लगा कि आरिफ ने मुझे एकएक पाई के लिए तरसाना शुरू कर दिया और अपनी सारी कमाई आशिकी में लुटाने लगा. पैसे की कमी होती तो मुझ पर अब्बू से पैसा लाने का दबाव बनाता.

आखिर मैं भी एक साधारण परिवार की लड़की थी, लिहाजा मैं ने कह दिया कि अब मैं अब्बू से कोई पैसा मंगा कर नहीं दूंगी.

दरअसल, मैं इतना सब होने के बाद खामोश थी तो इसलिए कि मैं अपने गरीब मातापिता की इज्जत बचाना चाहती थी. पति से मिलने वाले दर्द को छिपाते हुए मैं हर पल एक नई तकलीफ से गुजरती थी, लेकिन इस के बावजूद सहती रही.

मेरा दर्द सिर्फ इतना नहीं था. एक बार आरिफ मुझे अहमदाबाद मेरे मायके छोड़ गया. मैं उस समय प्रैग्नेंट थी. आरिफ ने कहा था कि जब मेरे अब्बू डेढ़ लाख रुपए दे देंगे तो वह मुझे अपने साथ ले जाएगा.

अचानक इस हाल में मायके आ जाने और आरिफ की शर्त के बाद मुझे परिवार को अपना सारा दर्द बताना पड़ा.

प्रैग्नेंसी के दौरान एक बार आरिफ ने मेरी पिटाई की थी. उसी के बाद से मुझे लगातार ब्लीडिंग होने लगी थी. मायके आने के बाद अब्बू ने मुझे हौस्पिटल में भरती कराया.

तब डाक्टर ने तुरंत सर्जरी की जरूरत बताई, लेकिन गर्भ में पल रहे मेरे बच्चे को नहीं बचाया जा सका. इस के बाद जिंदगी में पूरी तरह अवसाद भर चुका था.

प्रैग्नेंसी के दौरान आरिफ के बर्ताव से मैं बुरी तरह टूट गई थी. लेकिन ऐसे में अम्मीअब्बू ने मुझे सहारा दिया और मेरा मनोबल बढ़ा कर कहने लगे कि अगर आरिफ नालायक है तो इस के लिए मैं क्यों अपने को जिम्मेदार मान रही हूं.

लेकिन मेरी पीड़ा इस से कहीं ज्यादा इस बात पर थी कि इतना सब हो जाने पर भी आरिफ और उस के परिवार वाले मुझे देखने तक नहीं आए. मुझे लगने लगा कि आरिफ और उस के परिवार के लिए शायद पैसा ही सब कुछ है. वे यही रट लगाए रहे कि जब तक पैसा नहीं मिलेगा, मुझे अपने साथ नहीं ले जाएंगे.

मैं या अब्बूअम्मी जब भी आरिफ या उस के परिवार वालों से बात कर के ले जाने के लिए कहते तो वे फोन काट देते.

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निकाह के बाद दहेज के लिए किसी लड़की की जिंदगी नर्क कैसे बनती है, मैं इस का जीताजागता उदाहरण बन चुकी थी.

सब कुछ असहनीय था

मैं थक चुकी थी. मैं ने परिवार वालों को कुछ नहीं बताया. लेकिन मेरे बच्चे की मौत और आरिफ का मुझ से मुंह मोड़ लेना असहनीय हो गया था. लिहाजा थकहार कर 21 अगस्त, 2020 को मैं ने अब्बू के साथ जा कर अहमदाबाद के वटवा थाने में आरिफ और अपने सासससुर तथा ननद के खिलाफ दहेज की मांग तथा घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया.

10 मार्च, 2020 से आरिफ जब से मुझे अब्बू के घर छोड़ कर गया था, तब से मुझे लगने लगा था कि मैं अपने गरीब परिवार पर बोझ बन चुकी हूं. इसलिए मैं ने अहमदाबाद के रिलीफ रोड पर स्थित एसवी कौमर्स कालेज में इकोनौमिक्स से प्राइवेट एमए की पढ़ाई शुरू कर दी और एक निजी बैंक में नौकरी करने लगी. जिंदगी चल रही थी, गुजर रही थी लेकिन न जाने क्यों मुझे लगने लगा था कि जिदंगी पराई हो गई है.

अगले भाग में पढ़ें- आयशा ने मरने से पहले बनाया आखिरी वीडियो

Crime- दिल्ली: छोटी गलती बड़ी वारदात

अभी खबर आई थी कि दिल्ली दुनिया की सब से ज्यादा प्रदूषित राजधानी है. मतलब वहां की आबोहवा खराब है. पर वहां की एक और बात चिंता बढ़ाने वाली है, जो अपराध से जुड़ी है. अपराध भी ऐसे जो टाले जा सकते थे, लेकिन लोगों की नासम?ा ने उन ?ागड़ों को इतना बड़ा बना दिया कि बात खूनखराबे तक जा पहुंची.

पहले 2 हालिया घटनाओं पर नजर डालते हैं. दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में सोमवार, 15 मार्च, 2021 की आधी रात को रोडरेज में 2 नौजवानों की चाकू से गोद कर हत्या कर दी गई.

‘गोदना’ शब्द पर ध्यान दीजिएगा. चाकू से एक के बाद एक वार करना. इस मामले में एक स्कूटी और मोटरसाइकिल की हलकी सी टक्कर हो गई थी. इस के बाद स्कूटी पर सवार 2 लोगों द्वारा मोटरसाइकिल पर सवार 2 नौजवानों को तब तक चाकू से गोदा गया, जब तक उन्होंने प्राण नहीं छोड़ दिए. उन दोनों पर चाकू के 50-50 से ज्यादा वार किए गए थे.

यह वारदात उद्योग नगर मैट्रो स्टेशन के पास एक गली के नुक्कड़ पर हुई थी. नांगलोई के रहने वाले 23 साल के रोहित अग्रवाल और नरेला के रहने वाले 20 साल के घनश्याम (मूल रूप से बिहार का रहने वाला) तब ज्वालापुरी में हुए एक शादी समारोह से लौट रहे थे.

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वे दोनों मोटरसाइकिल से जैसे ही उस गली के नुक्कड़ पर पहुंचे, तो आरोपियों की स्कूटी और उन की मोटरसाइकिल की हलकी सी टक्कर हो गई. इसी से गुस्साए स्कूटी सवारों ने उन दोनों की जान ले ली.

यह पूरी वारदात एक सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई, जिसे अगले दिन सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया. इस के बाद पुलिस ने उन दोनों आरोपियों को पकड़ लिया, जिन में से एक नाबालिग था. इस वारदात में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया गया.

अब दूसरी वारदात पर नजर डालते हैं. यह एक परिवार का आपसी मामला था और बात भी बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी. दिल्ली के बिंदापुर इलाके का एक वीडियो वायरल न हुआ होता तो शायद यह मामला सामने आ ही नहीं पाता. पुलिस ने उस वीडियो को कब्जे में ले कर छानबीन की.

मामला कुछ यों है कि बिंदापुर इलाके में रणबीर सिंह का एक मकान है. उस ने मकान का एक हिस्सा किराए पर दे रखा है. सोमवार, 15 मार्च, 2021 की दोपहर को रणबीर सिंह का अपने किराएदार से गाड़ी पार्क करने को ले कर ?ागड़ा हो गया था. परिवार के बीचबचाव के बाद मामला तब शांत हो गया था.

इस के बाद रणबीर सिंह अपनी मां और पत्नी के साथ मकान के मेन गेट पर आ गया, लेकिन दरवाजा खुलने से पहले रणबीर सिंह अपनी 76 साल की मां अवतार कौर के साथ बहस करने लगा. वीडियो में दिखा कि उस की पत्नी मांबेटे को शांत करने की कोशिश कर रही थी, पर इसी बीच रणबीर सिंह ने अपनी मां को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया.

बूढ़ी मां अचानक हुए इस हमले में संभल नहीं सकीं और सड़क पर धड़ाम से गिर गईं. उन्हें बेहोशी की हालत में पास के अस्पताल में भरती कराया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मरा हुआ बता दिया.

इस के बाद आरोपी ने आननफानन में अपनी मां का अंतिम संस्कार कर दिया. पर बाद में मंगलवार, 16 मार्च, 2021 को वीडियो के सामने आने पर इस मामले का खुलासा हुआ.

दिल्ली में ऐसी वारदात होना नई बात नहीं है. कभी नेब सराय थाना इलाके में 2,700 रुपए को ले कर 2 पक्षों के ?ागड़े में बीचबचाव करने वाले नौजवान को चाकू मार दिया जाता है, तो कभी आदर्श नगर इलाके में किसी चार्टर्ड अकाउंटैंट को अपने ही घर की कंस्ट्रक्शन साइट पर गोली मार दी जाती है.

इन सभी वारदात में सिर्फ नेब सराय वाले मामले में चाकू के वार से घायल हुआ 20 साल का सौरभ बच पाया, वरना बाकी में सब अपनी जान से हाथ धो बैठे. बुजुर्ग औरत अवतार कौर की उम्र 75 पार थीं, पर बाकी 3 लोग तो कम उम्र के ही थे. रोहित अग्रवाल 23 साल का था, तो घनश्याम महज  20 साल का. उन दोनों की जिंदगी अभी शुरू ही हुई थी. चार्टर्ड अकाउंटैंट अनिल अग्रवाल 45 साल के थे.

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इन मौतों से पीडि़त परिवार वालों पर जो आफत आई है, उसे बयां करना मुश्किल है. रोहित अग्रवाल और घनश्याम के परिवार वालों पर तो कहर टूटा ही है, पर जिन लड़कों ने उन्हें चाकू से गोदा था, उन की जिंदगी भी नरक हो जाएगी. उन के परिवार वाले भुगतेंगे सो अलग.

अपनी बुजुर्ग मां की थप्पड़ से जान लेने वाले रणबीर सिंह को यह गुस्सा करना बड़ा भारी पड़ेगा. उसे कोर्टकचहरी में जूते रगड़ने पड़ेंगे और समाज में इज्जत भी गंवा दी.

अनिल अग्रवाल का परिवार तो सदमे से उबरा ही नहीं है. उन की पत्नी, बेटे और बेटी पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है.

इस तरह की वारदातें क्यों होती हैं? इस सवाल का सीधा सा जवाब है कि अब लोगों में सब्र न के बराबर रह गया है. तूतूमैंमैं कब इज्जत का सवाल बन जाएगी, कह नहीं सकते.

अनिल अग्रवाल के केस में पुलिस पहले की कोई रंजिश बता रही है, पर बाकी मामलों में ऐसा कुछ नहीं था. बेटे ने मां को तैश में ऐसा थप्पड़ रसीद किया कि वह दुनिया से ही उठ गई. बाकी मामलों में आरोपी शायद एकदूसरे को पहले से जानते भी नहीं थे, पर जरा सी कहासुनी चाकू मारने की नौबत तक पहुंच गई.

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अगर जरा से ठंडेपन से काम लिया जाए, तो इन वारदात को रोका जा सकता है. अगर एक को गुस्सा आ गया है, तो दूसरे को समझदारी दिखाते हुए मामले को तूल नहीं देना चाहिए, वरना दिल्ली की आबोहवा के साथसाथ जो यह हमारी इनसानियत प्रदूषित हो रही है, वह हमारी शारीरिक और मानसिक सेहत को कहीं का नहीं छोड़ेगी.

नाबालिगों के खून से “रंगे हाथ”!

जब कोई किसी की हत्या कर देता है तो समाज, कानून और हम सोच में पड़ जाते हैं. मगर जब कोई किशोर, नाबालिक किसी “अपने” की ही हत्या कर देता है तो एक गहरा सनाका खींच जाता है. एक चींटी को भी मारने से पहले कोई मनुष्य कई कई बार सोचता है. दरअसल, मानव का मनोविज्ञान ही शांति भाव से सहजीवन है. ऐसे में कुछ परिस्थितियां ऐसी विकट हो जाती है कि बड़े बूढ़े, जवान तो क्या कभी-कभी किसी नाबालिग के हाथों भी अपने अथवा गैर की हत्या जैसा नृशंस कांड घटित हो जाता है.जो समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज डिप्रेशन… तनाव और छोटी-छोटी बातों पर क्रोध के कारण ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं. जो मानव समाज के लिए एक गंभीर शोध और चिंता का सबब है.

आज इस रिपोर्ट में हम ऐसे ही कुछ घटनाक्रमों पर दृष्टिपात कर रहे हैं और यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऐसा क्यों और किस लिए हो रहा है. और ऐसी घटनाओं को किस तरह रोका जा सकता है.

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पहला घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तेलीबांधा में एक 15 वर्ष के नाबालिक ने जब उसकी साइकिल एक पड़ोसी के हाथों क्षतिग्रस्त हो गई तो गुस्से में आकर पड़ोसी को मार डाला.

दूसरा घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक 16 वर्ष के लड़के के हाथों अपने ही एक दोस्त की हत्या हो गई, क्योंकि वह उसे गाली गलौज कर रहा था उसकी मां को गाली दी थी.

तीसरा घटनाक्रम-

जिला कोरबा के पाली थाना अंतर्गत ग्राम नूनेरा में एक किशोर बालक में अपने ही चाचा की हत्या कर दी क्योंकि चाचा उसे कुछ सीख दे रहा था और डांट भी रहा था.

ऐसी ही अनेक घटनाएं हमारे आस पास अचानक ही घट जाती हैं और हम सन्नाटे में रह जाते हैं. आइए! देखते हैं कि ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं, और कैसे रोका जा सकता है.

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गुस्से में दादी को मार डाला

छोटी उम्र में अगर कोई नशे का आदी हो जाता है तो यह उसके लिए भयंकर साबित हो सकता है. यह इस एक घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाता है. सरगुजा जिले के सीतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत भिठुआ में 15 वर्षीय नाबालिग बालक के हाथ खून से रंग‌ गए. दरअसल, उसकी दादी ने उसे तंबाकू खाने से मना किया था, जिससे आहत होकर उसने यह कदम उठाया.

सीतापुर थाना जांच अधिकारी के अनुसार सीतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम भिठुआ ढाबपारा निवासी एक बुजुर्ग ने जानकारी दी कि उसका नाती तम्बाकू का सेवन करता था. तम्बाकू सेवन करने से मना करने पर उसने गुस्से में आकर अपनी दादी फिरतीन बाई की हत्या कर दी

यहां यह महत्वपूर्ण है कि सरगुजा को एक अप्रैल से तंबाकू मुक्त बनाने जिला कलेक्टर व स्वास्थ्य विभाग के द्वारा लोगों को जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन इस जागरूकता का असर ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई नहीं दे रहा है, जहां तंबाकू के सेवन से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का सामना करना पड़ता है. वही हत्या और आत्महत्या जैसी घटनाएं भी प्रकाश में आ रही हैं.

कैसे मिल सकती है निजात

दरअसल, पम्पहाउस नाबालिक बच्चों को सही मार्गदर्शन और संवेदना के साथ एक ऐसा बेहतर माहौल मिलना चाहिए जिससे उनमें मानवीय भावना और आपसी स्नेह का संचार हो, जब इन सब चीजों का अभाव होता है और घर और समाज में तनाव बढ़ने लगता है माता-पिता अन्य परिजन आपसी विवाद में घर को जबरन असहज बनाने लगते हैं तो धीरे धीरे छोटे बच्चों में इसका गंभीर असर होने लगता है. यही कारण है कि छोटे बच्चे जिनका समय शिक्षा एवं आपसी प्रेम में व्यतीत होना चाहिए वे भटक जाते हैं और क्रूर होने लगते हैं. परिणाम स्वरूप या तो छोटे बच्चे अवसाद में आकर आत्महत्या कर लेते हैं या फिर किसी की हत्या कर देते हैं. यह दोनों ही तो स्थितियां समाज के लिए चिंता का विषय है.

मनोविज्ञान के जानकार संगीत शिक्षक घनश्याम तिवारी का मानना है कि ऐसी परिस्थितियां इसलिए निर्मित होती है क्योंकि परिवार का माहौल असंवेदनशील होता है. नित्य माता पिता यानी पति पत्नी की तनावपूर्ण बातचीत व्यवहार का बच्चों में गंभीर असर होने लगता है और परिणाम स्वरूप बड़ी घटना घट जाती है.

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डॉक्टर गुलाब राय पंजवानी के मुताबिक घर का माहौल ही इसके लिए सबसे जिम्मेवार है अगर माता-पिता संवेदनशील है तो बच्चों में भी आपसी प्रेम की भावना उत्पन्न हो सकती है अन्यथा वे भटक सकते हैं.

पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह के मुताबिक अनेक दफा ऐसे गंभीर मामले प्रकाश में आए हैं जब बच्चों अथवा नाबालिगों के द्वारा आत्महत्या या हत्या की घटना घटित हुई है जांच में यह तथ्य सामने आता है कि घर और आसपास के माहौल के कारण बच्चे दिशा से भटक गए.

Crime Story: मेरी नहीं तो किसी की नहीं- भाग 1

लेखक- विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

सौजन्य- सत्यकथा

प्यार एक अहसास है, जब होता है तो अनूठी अनुभूति होती है. ऐसा न हो तो समझ लीजिए महज आकर्षण है. चंद्रशेखर रूपा के आकर्षण को प्यार समझ बैठा, यही उस की भूल थी और इसी भूल में उस ने वह कर डाला जो…

रूपा परेशान थी. सड़क किनारे खड़ी वह कभी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को देखती

तो कभी कलाई घड़ी की ओर. जैसेजैसे घड़ी की सुइयां आगे को सरक रही थीं, उस की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. परेशान लहजे में वह स्वयं ही बड़बड़ाई, ‘लगता है, आज फिर लेट हो जाऊंगी कालेज के लिए.’

उस के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव नुमाया हो रहे थे. एक बार फिर उस ने उम्मीद भरी निगाहों से दाईं ओर देखा. कोई चार पहिया मार्शल गाड़ी आ

रही थी. रूपा ने इशारा कर के गाड़ी रुकवा ली.

ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘मैं कालेज जाने को लेट हो रही हूं. कोई साधन नहीं मिल रहा. अगर आप मुझे लिफ्ट दे देंगे तो मेहरबानी होगी.’’ रूपा बोली.

‘‘हां हां, मैं कालेज की ओर ही जा रहा हूं. आओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’ कहते हुए ड्राइवर ने गेट खोल दिया.

रूपा तनिक झिझकी फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर जा बैठी.

बेलसोंडा से उस का कालेज करीब 8 किलेमीटर दूर महासमुंद में था. वह करीब 10 मिनट में अपने कालेज पहुंच गई.

कालेज के सामने पहुंचते ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. उतर कर रूपा थैंक यू कह कर तेज कदमों से चली ही थी कि ड्राइवर ने उसे आवाज दी, ‘‘सुनो…’’

सुनते ही रूपा ने ड्राइवर की तरफ पलट कर देखा तो ड्राइवर ने रुमाल उठा कर रूपा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये शायद आप का है.’’

गुलाबी रंग के उस रुमाल के एक किनारे पर सफेद रंग के थागे से कढ़ाई की गई थी. उस पर रूपा लिखा हुआ था.

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‘‘हां, मेरा ही है.’’ रूपा उस से रुमाल लेते हुए बोली.

‘‘आप का नाम रूपा है?’’ ड्राइवर ने पूछा. रूपा ने हौले से सिर हिला दिया और मुसकरा कर कालेज की तरफ चली गई.

ड्राइवर तब तक रूपा को देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही. रूपा के ओझल होते होने के बाद ही वह वहां से गया. युवक ड्राइवर का नाम चंद्रशेखर था और वह नदी मोड़ घोड़ारी का रहने वाला था. रूपा से वह बहुत प्रभावित हुआ.

इस रूट पर उस का अकसर आनाजाना होता था. इस के बाद वह रूपा के आनेजाने के समय उस रोड पर चक्कर लगाने लगा.

जब भी रूपा उसे मिलती, वह ऐसा जाहिर करता मानो अचानक उस से मुलाकात हो गई हो. वह रूपा को कार से उस के कालेज तक और कभी कालेज से उस के घर के पास तक छोड़ देता.

रूपा इस बात को समझने लगी थी कि इत्तफाक बारबार नहीं होता.

महीने में वह कई बार महासमुंद से बेलसोंडा और बेलसोंडा से महासमुंद आईगई होगी.

सफर भले ही 10 मिनट का होता था लेकिन दोनों को सुकून चौबीस घंटे के लिए मिल जाया करता था. इस बीच दोनों एकदूसरे के बारे  में काफी कुछ जान चुके थे. इस छोटी सी यात्रा के दरमियान दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और कभीकभी वे गाड़ी से लंबी दूरी के लिए घूमने निकलने लगे.

एक दिन चंद्रशेखर लौंग ड्राइव पर निकला तो मार्शल गाड़ी के मालिक ने उसे देख लिया. मालिक ने उस समय तो कुछ नहीं कहा लेकिन शाम को उस ने चंद्रशेखर से पूछा, ‘‘तुम गाड़ी में किस लड़की को बिठा कर घूमते हो?’’

‘‘साहब, किसी को ले कर नहीं घूमता. बस एकदो बार बेलसोंडा की रहने वाली एक लड़की को उस के कालेज तक छोड़ा था. इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

चंद्रशेखर ने आगे कहा, ‘‘साहब,मैं पूरी ईमानदारी के साथ आप की सेवा करता रहा हूं. आप के हर आदेश पर मैं ने तुरंत अमल किया है और आप इतनी सी बात को ले कर मुझ पर नाराज हो रहे हैं.’’

मार्शल के मालिक ने साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारे लिए यह इतनी सी बात होगी लेकिन कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो जवाबदेही तो मेरी होगी. अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो ठीक से करो. सैरसपाटे के इतने ही शौकीन हो तो खुद की गाड़ी खरीद लो. फिर जहां चाहो, जिसे चाहो बिठा कर घूमते रहना.’’ मालिक ने दोटूक कह दिया.

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चंद्रशेखर को मालिक की बात चुभ गई. उस ने बिना किसी पूर्वसूचना के नौकरी छोड़ दी. दूसरेतीसरे दिन वह रूपा से एक निश्चित जगह पर मिलने पहुंचा. वह अपनी बाइक से गया था. बाइक की सीट पर बैठा वह रूपा का इंतजार कर रहा था.

कुछ देर बाद रूपा वहां पहुंची. रूपा के बोलने से पहले ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘बाइक पर बैठो.’’

रूपा बाइक पर बैठ गई तो वह बाइक ले कर चल दिया. उस वक्त उस की बाइक का रुख महासमुंद की ओर न हो कर रायपुर जाने वाली सड़क की ओर था. रूपा को यह पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने नौकरी छोड़ दी है.

अगले भाग में पढ़ें- क्या रूपा और चंद्रशेखर का प्यार खत्म हो गया

Crime Story: मेरी नहीं तो किसी की नहीं- भाग 3

लेखक- विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

सौजन्य- सत्यकथा

उस ने चंद्रशेखर की आवाज को कोई तरजीह नहीं दी. फिर वह उस ओर चला गया, जहां एक पेड़ के नीचे उस की बाइक खड़ी थी. सोचों का बवंडर चंद्रशेखर को झकझोरने लगा था. रूपा आखिर इतनी निर्मोही, बेमुरव्वत कैसे हो गई. वह अपने गांव की ओर बढ़ चला.

2 पखवाड़े बाद उस ने रूपा से मिलने का मंसूबा बनाया. किसी तरह से वह रूपा से मिलने में कामयाब भी रहा. अब की बार वह रूपा से मिल कर ठोस निर्णय लेने के पक्ष में था. वह उस स्थान पर खड़ा रहा, जहां पर रूपा से

मिलना था.

रूपा वहां आई, काफी इंतजार करवाने के बाद वह चंद्रशेखर से मिली. चंद्रशेखर ने किसी तरह की भूमिका नहीं बांधी. वह सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘रूपा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रूपा ने उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर रूपा की ओर टकटकी लगा कर देखता हुआ बोला, ‘‘आखिर, तुम मुझ से शादी क्यों नहीं कर सकतीं? अच्छाभला कमा लेता हूं. घर से भी संपन्न हूं. अपनी हैसियत से बढ़ कर तुम्हें वह सब कुछ देने का प्रयास करूंगा, जिस की तुम ख्वाहिश रखती होगी.’’

‘‘चंद्रशेखर, मैं साफसाफ बता देती हूं कि मैं तुम से किसी भी कीमत पर शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर कुछ बोलने वाला ही था कि रूपा ने हाथ उठा कर चुप रहने का इशारा किया, ‘‘मेरे घर के लोग मेरी शादी जहां करेंगे, मुझे मंजूर होगा. उन की इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैं तुम से प्यार नहीं करती. और हां, अभी तक जो कुछ तुम ने मुझे दिया है. जस के तस लौटा रही हूं.’’ रूपा ने एक कैरीबैग चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया.

‘‘अपने पास ही रखो इसे, मैं दी हुई चीज वापस नहीं लेता.’’

‘‘तुम्हारी मरजी. और हां, यह खयाल रखना कि आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

रूपा जाने को हुई तो चंद्रशेखर ने धमकी दी, ‘‘रूपा, तुम्हारी शादी होगी तो सिर्फ मुझ से होगी. मैं तुम्हें किसी और की दुलहन बनते नहीं देख सकता. तुम मेरी नहीं हो सकतीं तो किसी और की भी नहीं बन पाओगी, याद रखना.’’

कुछ दिनों तक चंद्रशेखर के हवास पर रूपा का इनकार डंक मारता रहा. जलन की आग ने चंद्रशेखर को बुरी तरह सुलगा रखा था. उसे करार तभी आता जब या तो रूपा उस की हो जाती या वह रूपा के वजूद को मिटा देता.

उस पर पागलपन काबिज हो चुका था. दिमागी संतुलन खोता जा रहा था. आखिर उस ने एक योजना बना ली. उसी के तहत वह रूपा की रैकी करने लगा.

11 फरवरी, 2021 को दोपहर करीब सवा बजे रूपा अपनी बहन हेमलता के साथ दवा लेने एक मैडिकल स्टोर पर पहुंची. चंद्रशेखर कई दिनों से रूपा की टोह में लगा था.

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किसी छलावे की तरह चंद्रशेखर रूपा के सामने पहुंच गया. उस के साथ बाइक पर उस के 2 दोस्त भरत निषाद और गोपाल यादव भी थे. अप्रत्याशित रूप से अपने सामने चंद्रशेखर को देख कर रूपा घबरा गई.

चंद्रशेखर ने दोनों को अपने साथ इसलिए रखा था कि किसी तरह का व्यवधान आने पर भरत निषाद और गोपाल यादव उस की मदद करेंगे.

तभी फुरती से देशी तमंचा निकाल कर चंद्रशेखर रूपा की ओर तानते हुए बोला, ‘‘रूपा, तुम मेरी नहीं तो किसी की नहीं.’’

चंद्रशेखर का खूंखार चेहरा देख कर रूपा ने डर कर भागना चाहा तभी चंद्रशेखर ने उस की कलाई पकड़ ली. उस की बड़ीबहन हेमलता ने बीचबचाव करने की कोशिश की. जब तक वह कामयाब होती तब तक गोली रूपा की कनपटी के बाहर हो चुकी थी.

गोली लगते ही रूपा जमीन पर गिर पड़ी. किसी को कुछ समझ में नहीं आया. वे तीनों बाइक पर बैठ कर वहां से भाग गए.

चंद्रशेखर के कहने पर उस के दोस्तों ने उसे नदी मोड़ के पास बाइक से उतार दिया. वारदात को अंजाम देने के बाद दोपहर सवा 2 बजे चंद्रशेखर सीधे थाना सिटी कोतवाली, महासमुंद पहुंचा और आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस को उस ने रूपा की हत्या करने की बात बता दी.

थानाप्रभारी ने उसे हिरासत में ले लिया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने यह सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एडिशनल एसपी मेघा टेंभुरकर साहू, एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अलावा पुलिस अधिकारी शेर सिंह बंदे, यू.आर. साहू, संजय सिंह राजपूत (साइबर सेल प्रभारी) योगेश कुमार सोनी, टीकाराम सारथी आदि भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मृतका के घर वालों से पूछताछ करने के बाद रूपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

Crime Story: अपनों की दुश्मनी

इस के बाद उसी दिन शाम के समय आरोपी भरत निषाद और गोपाल यादव को उन्हीं के गांव मुडैना से गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 15 फरवरी तक पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने उन्हें फिर से कोर्ट में पेश कर महासमुंद जेल भेज दिया.

Crime Story: मेरी नहीं तो किसी की नहीं- भाग 2

लेखक- विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

सौजन्य- सत्यकथा

रास्ते में उस ने एक पेड़ के नीचे बाइक खड़ी की. फिर रूपा को मालिक से हुई तकरार के बारे में बताया. सुन कर रूपा गंभीर हो गई. वह बोली, ‘‘उन्होंने जो कुछ कहा, वह अपनी जगह सही है. अच्छाखासा काम हाथ से निकल गया.’’

‘‘तुम क्यों परेशान हो रही हो रूपा, काम चला गया तो क्या हुआ. हाथपैर और मेरा हुनर थोड़े ही चला गया है.’’ चंद्रशेखर ने उसे समझाया, ‘‘काम करना है तो कहीं भी कर लेंगे. तुम पर ऐसी दरजनों गाडि़यां और नौकरियां कुरबान.’’

फिर चंद्रशेखर जेब के अंदर हाथ डाल कर बंद मुट्ठी निकाल कर बोला, ‘‘गेस करो रूपा, इस मुट्ठी में क्या है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम.’’ वह बोली.

‘‘सोचो न.’’

‘‘टौफी है क्या?’’ रूपा ने पूछा.

‘‘नहीं…और कुछ, बताओ.’’

रूपा ने दिमाग पर जोर डाला. फिर उस ने अनभिज्ञता से कंधे उचकाए. तभी चंद्रशेखर बोला, ‘‘चलो, अपनी आंखें बंद करो…और हाथ आगे बढ़ाओ.’’

रूपा ने आंखें बंद कर के अपनी हथेलियां उस के सामने खोल दीं. तभी चंद्रशेखर ने रूपा की हथेली पर कुछ रख कर कहा, ‘‘अब अपनी आंखें खोलो.’’

रूपा ने आंखें खोलीं. एक अंगूठी थी जो अमेरिकन डायमंड की थी और जगमगा रही थी.

अंगूठी पर पेड़ के पत्तों से छन कर आती हुई सूर्य की किरणें पड़ रही थीं. और रिफ्लेक्ट हो कर सात रंगों की किरणें बिखर रही थीं. अंगूठी देख कर रूपा बहुत खुश हुई.

‘‘कैसा लगा?’’ चंद्रशेखर ने पूछा.

‘‘बहुत सुंदर…बहुत ही प्यारा है.’’

‘‘पहन कर दिखाओ जरा.’’

‘‘जब लाए ही हो तो तुम्हीं पहना दो न.’’ कहती हुई रूपा ने अपना हाथ चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया. रूपा के हाथ से अंगूठी ले कर रूपा को पहना दी. उस की अंगुली में अंगूठी अच्छी लग रही थी.

सड़क के किनारे गन्ने का एक खेत था. चंद्रशेखर ने उस ओर इशारा किया तो रूपा बोली, ‘‘गन्ना खाना चाहते हो तो जाओ ले आओ.’’

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‘‘ऐसा करते हैं दोनों वहीं खेत में चलते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं मुझे गन्ने के झुरमुटों से डर लगता है. मैं नहीं जाऊंगी.’’

चंद्रशेखर ने जिद की तो रूपा को झुकना पड़ा. फिर दोनों गन्ने के खेत की ओर बढ़े और खेत में भीतर घुस गए. दोचार कदम चलने के बाद रूपा ठिठकी. तो चंद्रशेखर बोला, ‘‘अरे, आओ न… आओ, आती क्यों नहीं. अच्छा सा गन्ना तोडें़गे.’’

डरतीझिझकती रूपा चंद्रशेखर के पीछे चलने लगी. गन्ने के सूखे भूरे पत्ते पैरों में दब कर चर्रमर्र की आवाज कर रहे थे. जब दोनों काफी भीतर घुस गए तब चंद्रशेखर ने अपनी बाइक और सड़क की ओर देखा. लेकिन झुरमुटों की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अचानक चंद्रशेखर ठिठका. उसे ठिठकते देख कर रूपा भी ठिठक पड़ी.

चंद्रशेखर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रूपा, यहां तक चली आई. गन्ना ही खाना होता तो इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी. पहले ही न तोड़ लेता.’’

‘‘फिर क्यों आए इतनी दूर? मैं अभी भी नहीं समझी.’’

चंद्रशेखर के होंठों पर शरारत उभर आई. वह रूपा के करीब पहुंचा

और उस के हाथों को अपने हाथ में ले लिया, ‘‘रूपा…’’

चंद्रशेखर ने तर्जनी अंगुली को अंगुली पर रखा तो रूपा बोली, ‘‘ओह… इसलिए मुझे यहां इतनी दूर लाए हो.’’

‘‘हां, तुम तो जानती हो कि वहां तो ऐसा कुछ कर नहीं पाते, जगह भी मुफीद नहीं थी. यहां भला हमें कौन देखेगा.’’ कह कर चंद्रशेखर ने रूपा को अपने बाहुपाश में लेना चाहा. वह कोई ठोस निर्णय ले पाता कि उस ने देखा रूपा उस के पीछे देख रही है.

वह पीछे पलटा तो एक गाय तेजी से दौड़ती आ रही थी. गाय के पीछे से रखवाली करने वाले किसान की हा…हू.. की आवाज उन दोनों के कानों तक पहुंची. रूपा बोली, ‘‘चलो, यहां से. गाय आ रही है. लगता है, किसान गांव के पीछेपीछे आ रहा है.’’

फिर कई गायों का झुंड गन्ने में घुस आया. किसान की आवाज भी करीब आती जा रही थी. फिर रूपा वहां नहीं ठहरी. वह हाथों से गन्ने के पत्तों को अलग करती हुई वहां से भागी. चंद्रशेखर भी हड़बड़ाए अंदाज में बाइक की ओर भागा.

रूपा हांफ रही थी. वह हांफती हुई बोली, ‘‘खा लिए गन्ने? ऊपर से देखो…’’ उस के सैंडिल की पट्टी एक ओर से उखड़ गई थी. पत्तों से हाथपैर अलग छिल गए थे.

रूपा बोली, ‘‘कहां ला कर फंसा दिया.’’

फिर दोनों वहां ठहरे नहीं. बाइक पर बैठ कर चले गए.

इस के बाद दोनों की मेलमुलाकातों की चर्चाएं पहले कानाफूसी में तब्दील हुईं. फिर बेलसोंडा में दोनों की मुलाकात और प्यार की चर्चाएं होने लगीं. यह बात रूपा के पिता सुरेंद्र और मां जमुना के कानों तक भी पहुंची.

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चूंकि लड़की बालिग हो चुकी थी और बगावत पर उतर सकती थी. इसलिए सुरेंद्र ने रूपा को अपनी बड़ी बेटी हेमलता की ससुराल में उस के पास भेज दिया. रूपा हेमलता के यहां 20-25 दिन रह कर पिता के घर आ गई.

इस बीच चंद्रशेखर ट्रक चलाने लगा था. गुजरे हुए समय में रूपा और चंद्रशेखर ने सैकड़ों ख्वाब देखे थे. गांव आने के बाद कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा.

20-25 दिनों की जुदाई के बाद चंद्रशेखर और रूपा की मुलाकात हुई. चंद्रशेखर ने उस से शिकायत की, ‘‘रूपा, तुम अपनी बहन के पास रायपुर जा कर इतनी मशगूल हो गईं कि एक फोन तक नहीं किया.’’

‘‘मेरे पास फोन था ही कहां,’’ रूपा सफाई में बोली.

‘‘क्यों, कहां गया तुम्हारा फोन?’’

‘‘घर वालों ने ले लिया था.’’

‘‘नंबर तो जानती हो. फोन किसी से मांग लेती.’’

‘‘मैं दीदी की देखभाल में थी.’’

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि मैं याद ही नहीं रहा तुम्हें.’’ चंद्रशेखर ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. हमारा मिलना और हमारा प्यार गांव वालों की नजरों में आ चुका है. अब ऐसा लगता है कि हमें एकदूसरे से नहीं मिलना चाहिए.’’ रूपा बोली.

‘‘रूपा…तुम मिलने की बात पर अटकी हो, मैं तो तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ चंद्रशेखर बोला.

‘‘हमारे चाहने से क्या होगा? घर वालों और समाज की मंजूरी भी जरूरी है.’’ रूपा तनिक चिढ़ गई.

‘‘रूपा, तुम्हारी यह बात गलत है. बताओ, जब तुम ने मुझ से प्यारर किया था तो क्या घर, समाज और परिवार से पूछ कर किया था?’’

‘‘नहीं, उस वक्त मुझ पर घरपरिवार और समाज का दबाव नहीं था. और आज मैं इन तीनों की निगाहों में हूं. मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं इन से लड़ कर विद्रोह कर सकूं.’’ रूपा ने कहा.

‘‘यह बात तुम्हें उस वक्त सोचनी चाहिए थी, जब प्यार की डगर पर चंद कदम ही बढ़ी थीं. अब तो हम बहुत दूर निकल आए हैं रूपा. इस का मतलब, तुम मेरा साथ नहीं दोगी?’’

‘‘माना कि हम दोनों साल भर साथ रहे, दोस्त की तरह. लेकिन इस अपनेपन को प्यार का नाम नहीं दिया जा सकता.’’

कुछ पलों तक हैरानगी, बेचारगी से रूपा की ओर देख कर चंद्रशेखर बोला, ‘‘ऐसा मत कहो रूपा. हमारी चाहत को अपनेपन का लबादा मत ओढ़ाओ. मैं ने तुम्हें और खुद को ले कर ढेरों ख्वाब देखे हैं. तुम्हारे विचार जान कर जी चाहता है कि इसी सड़क पर किसी वाहन के नीचे कुचल कर मर जाऊं.’’

वह गहरी सांस ले कर फिर बोला, ‘‘सचमुच मैं बहुत दूर निकल आया हूं तुम्हारे साथ, अब वापस लौटना मुमकिन नहीं.’’

‘‘सड़क पर सिर पटक कर मरना चाहते हो, ऐसा कर के क्या यह जाहिर करना चाह रहे हो कि तुम मेरे बिना जी नहीं सकते?’’ रूपा तीखे शब्दों में बोली.

चंद्रशेखर रूपा की बात सुन कर पहली बार आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘मत भूलो रूपा कि जिस सड़क पर मैं स्वयं को फना करने का माद्दा रखता हूं. यहीं इस सड़क पर तुम्हारे साथ भी कर सकता हूं.’’

वह फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘प्लीज रूपा, ऐसा मत कहो.’’

‘‘चंद्रशेखर, तुम समझने का प्रयास नहीं कर रहे हो या फिर समझना नहीं चाहते.’’

‘‘रूपा, तुम क्या समझाना चाह रही हो? और मैं क्या नहीं समझ रहा हूं?’’

‘‘तो सुनो, फिर कह रही हूं कि जिसे तुम प्यार समझ रहे हो, वह प्यार नहीं. सिर्फ दोस्ती थी.’’ इस के बाद चंद्रशेखर के होंठों से बेबसी में शब्द निकले, ‘‘रूपा, जिस प्यार को तुम दोस्ती का नाम दे रही हो, इस से अच्छा है कि इसे बेनाम ही रहने दो. मैं देख रहा हूं तुम्हारा व्यवहार बदल रहा है.’’

चंद्रशेखर अभी कुछ और बोलने ही जा रहा था कि रूपा यह कहते हुए वहां से चली गई कि तुम्हें जो समझना है, समझते रहो. इतना मान कर चलो कि अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी.

अगले भाग में पढ़ें- चंद्रशेखर ने रूपा पर किया हमला

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