बदलती दिशाएं : माही की बेहाल दशा का कौन था जिम्मेदार

माही बेहाल पड़ी थी. पूरे शरीर पर मारपीट के निशान पड़ चुके थे. रहरह कर दर्द की एक टीस उभरती तो वह कराह उठती. मारते समय कभी सोचता भी तो नहीं था उस का पति निहाल सिंह.

निहाल सिंह कभी माही को बालों से पकड़ कर खींचता तो कभी मारने के लिए छड़ी उठा लेता. शराब पीने के बाद तो वह बिलकुल जानवर बन जाता. फिर तो उसे यह भी ध्यान नहीं रहता कि उस के बच्चे अब बड़े हो चुके हैं. जब कभी उस की बेटी रूबी अपनी मां को बचाने के लिए आगे आती तो वह भी पिट जाती.

2 दिन पहले जब निहाल सिंह शराब पी कर घर में ऊलजुलूल बोलने लगा तो माही ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बस कीजिए, अब खाना खा लीजिए. सुबह काम पर भी जाना है.’

माही के इतना बोलने की ही देर थी कि निहाल सिंह चीखते हुए बोला, ‘अब तू रोकेगी मुझे… अभी बताता तुझे,’ फिर तो उस का हाथ न रूका.

आखिर में रूबी दोनों के बीच में आ गई और उस का हाथ पकड़ कर झटकते हुए बोली, ‘पापा, अब बस कीजिए. गलती तो आप की है, मम्मी को क्यों मार रहे हो?’

‘कितनी बार कहा है कि तू बीच में न बोला कर,’ रूबी को पीछे धकेलता हुआ निहाल सिंह फिर चीखा, ‘निकल जाओ मेरे घर से.’

माही घबरा गई. इस से पहले भी तो निहाल सिंह कई बार उसे घर से बाहर निकाल चुका था. लड़खड़ाता हुआ वह बिस्तर पर गिरा और बड़बड़ाता हुआ सो गया.

रूबी ने अपनी मां को उठाया और दूसरे कमरे में ले गई. उस के जख्मों पर दवा लगाते हुए वह बोली, ‘मम्मी, बहुत हो गया अब. पापा नहीं सुधरेंगे. ये रोजरोज के झगड़े हमें जीने नहीं देंगे.’

दर्द से कराहते हुए माही बोली, ‘हां रूबी, मैं भी अब थक चुकी हूं. मुझे समझ में आ गया है. अब मैं इन्हें कभी माफ नहीं करूंगी. ये कितना भी रोएं या गिड़गिड़ाएं, मैं इन की बातों में भी नहीं आऊंगी.’

अपने सिर पर लगी चोट को सहलाते हुए माही मन पक्का कर के बोली, ‘तुम बुलाओ पुलिस को, मैं दूंगी बयान इन के खिलाफ.’

रूबी ने झट से पुलिस का नंबर डायल किया और सारी घटना बता दी.

माही और निहाल सिंह की लव मैरिज हुई थी. घर वालों के खिलाफ जा कर माही ने निहाल सिंह का हाथ थामा था. दोनों भारत से यूरोप आ कर बस गए थे. शुरू में जब माही ने काम करना चाहा, तो निहाल सिंह ने उस से कहा था, ‘तुम मेरे घर की रानी हो, तुम घर संभालो. मैं बाहर संभालता हूं.’

माही ने इसे निहाल सिंह का अपने प्रति गहरा लगाव समझ था, मगर धीरेधीरे माही को महसूस होने लगा कि निहाल सिंह का स्वभाव दिन ब दिन बदलता जा रहा है. काम से आते ही वह शराब पीने लग जाता. तब तक उन के बच्चे भी हो चुके थे. माही ने खुद को बच्चों में बिजी कर लिया था.

जब कभी माही निहाल सिंह को बाहर जाने को कहती, तो वह मना कर देता. निहाल सिंह अब छोटीछोटी बातों पर माही पर शक करने लगा था. जब कभी काम का दबाव बढ़ जाता तो वह झल्ला कर कहता, ‘मुझ से नहीं होता इतना काम. मैं नहीं उठा सकता इतना बोझ.’

जब कभी माही नौकरी करने को कहती, तो वह उसे पीटने लगता. शराब पी कर मारपीट करना तो उस के लिए रोज की ही बात हो गई थी. बच्चे डरते हुए मां के पीछे छिप जाते थे. वे अब थोड़े बड़े भी हो गए थे. उन का स्कूल में दाखिला करवाना जरूरी हो गया था.

खर्चा बढ़ गया था तो माही ने निहाल सिंह को किसी तरह अपनी नौकरी के लिए मना लिया. वह घर का सारा काम निबटा कर ही नौकरी पर जाती और वापस आते ही बच्चों और घर को संभालने लग जाती.

माही ने कभी किसी से अपने साथ हुई मारपीट का जिक्र नहीं किया था. हां, कभीकभार उस के घर से आती मारपीट और चीखनेचिल्लाने की आवाजों से परेशान हो कर पड़ोसी खुद ही पुलिस में रिपोर्ट कर देते थे. पुलिस आती तो माही झूठ बोल कर निहाल सिंह को बचा लेती. ऐसे ही समय निकल रहा था.

निहाल सिंह प्यार भी उसे अपनी मरजी से करता, नहीं तो आधी रात को उसे मारपीट कर कमरे से निकाल देता. माही अपनी तकदीर को कोसती बच्चों के पास आ कर सो जाती.

इतना सबकुछ होने के बावजूद वह निहाल सिंह का पूरा ध्यान रखती. हर काम समय से करती. सुबह उठते ही सब से पहले उस का टिफिन तैयार करती. किसी तरह उस ने निहाल सिंह को मना कर बच्चों को साथ वाले बड़े शहर में पढ़ने के लिए भेज दिया था, ताकि वे दोनों पढ़लिख कर अच्छी नौकरी पर लग सकें. असल बात तो यह थी कि माही

उन दोनों पर पिता की गलत हरकतों का असर नहीं पड़ने देना चाहती थी.

1-2 बार पहले भी किसी बात पर गुस्सा हो कर निहाल सिंह ने माही को आधी रात में घर से बाहर निकाल दिया था. माही की मौसी का बेटा इसी शहर में रहता था. उस ने उसे फोन किया और वह माही को ले कर अपने घर चला गया. उस ने भी माही को समझाया कि यह ऐसे कभी नहीं सुधरेगा, तुम कब तक इस की मारपीट बरदाश्त करोगी.

उस ने आगे बढ़ कर पुलिस में उस की रिपोर्ट लिखवा दी. जब पुलिस निहाल सिंह को घर से उठा कर ले गई, तब माही डर गई और उस ने भाई को रिपोर्ट वापस लेने के लिए कहा. जब ऐसा 2-3 बार हुआ, तो भाई भी पीछे हट गया.

माही इसे अपनी किस्मत समझ कर समझाता कर रही थी. उसे पता था कि निहाल सिंह गुस्सैल है, पर उस के बच्चों का पिता है. वह भले ही अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं करता, मगर उस के लिए तो आज भी वही उस का प्यार है.

तभी एक दिन निहाल सिंह काम से आते समय अपने साथ एक जवान औरत को घर ले आया. माही ने उसे देखते ही निहाल सिंह से उस के बारे में पूछा कि यह कौन है, तो उस ने बताया, ‘यह प्रीत है. इस का पति मेरे साथ काम करता था. ज्यादा शराब पीने से वह मर गया. मैं इस की मदद कर रहा हूं, क्योंकि उस के बीमा और पैंशन के बारे में इसे कुछ नहीं पता.’

माही भोली थी. वह बोली, ‘अच्छा है. आप इन की मदद कर रहे हो, वरना कौन बेगाने देश में किसी की मदद करता है.’

अब तो जब भी प्रीत का फोन आता, निहाल सिंह भागाभागा उस के पास पहुंच जाता.

एक दिन माही काम से वापस आई, तो घर का दरवाजा खोलते ही बैडरूम से किसी के हंसने की आवाज आई. अंदर अंधेरा था. बिजली का स्विच औन करते ही माही की आंखें खुली रह गईं. उस ने उन दोनों को बैड पर आपत्तिजनक हालत में देखा. लेकिन शर्मिंदा होने के बजाय दोनों हंसने लगे. इस के बाद तो माही के सामने ही सबकुछ चलने लगा.

माही का दिल टूट चुका था. इतना सब होने के बावजूद उस ने कभी नहीं सोचा था कि निहाल सिंह उसे इस तरह धोखा देगा. वह फूटफूट कर रो पड़ी. अब उस को समझ में आया कि वह क्यों उस पर शक करता था. उस ने किसी तरह खुद को संभाला और अब वह सोच में पड़ गई.

एक दिन माही को पास बिठा कर निहाल सिंह बोला, ‘तू हां करे, तो मैं इसे भी अपने साथ रख लूं?’

निहाल सिंह किस हद तक गिर गया था, माही यह सोचने को मजबूर हो गई. बच्चे पढ़लिख कर अब अच्छी नौकरी पर लग चुके थे. सिर्फ छुट्टियों में ही घर आते थे. वे मां को अपने साथ चलने को कहते, मगर वह जानती थी कि निहाल सिंह बीमारी का शिकार है. उस के खानेपीने का ध्यान उस ने ही रखना है, इसलिए वह सबकुछ बरदाश्त कर के भी उसी के साथ रह रही थी.

आजकल छुट्टियों में रूबी घर आई हुई थी. कल की हुई मारपीट के बाद माही ने रूबी को निहाल सिंह और प्रीत के संबंधों के बारे में भी बता दिया. यह सुनते ही उस का खून खौल उठा. उस ने अपने पिता के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी थी.

थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई. रूबी और माही ने बयान दे दिया. माही की चोटें उस के साथ हुए जोरजुल्म की साफ गवाही दे रही थीं. माही ने यह भी बताया कि जब वह पेट से थी, तब निहाल सिंह ने उसे बहुत बार पीटा था.

रिपोर्ट को मजबूत बनाने के लिए पुलिस ने माही की चोट की तसवीरें खींच कर साथ लगा दीं. पुलिस निहाल सिंह को साथ ले गई. वहां 2 दिन उसे हिरासत में रखा, फिर उस को वार्निंग दे कर छोड़ दिया गया कि वह माही के आसपास भी नही फटकेगा. अगर उस ने माही को तंग किया, तो उस पर कार्यवाही की जाएगी और 2 साल की जेल भी हो सकती है. उसे एक अलग घर में रहने के लिए कहा गया.

निहाल सिंह फोन कर के बारबार माही से माफी मांगने लगा. उसे पता था कि माही का दिल पिघल जाता है. वह उसे अब भी प्यार करती है. मगर रूबी ने मां को साफसाफ कह दिया, ‘‘मम्मी, इस बार अगर तुम ने पापा को माफ किया, तो मैं कभी तुम से बात नहीं करूंगी.’’

माही ने निहाल सिंह का फोन उठाना भी बंद कर दिया.

रूबी पिता को फोन पर धमकी देते हुए बोली, ‘‘आज के बाद अगर आप ने मम्मी को फोन किया, तो आप को

2 साल की जेल हो जाएगी. आप यह बात भूलिएगा मत कि वे अब अकेली नहीं हैं. आज तक जो आप ने उन के साथ किया, उस के लिए हम तीनों आप से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे और उन्हें इंसाफ दिलवा कर ही रहेंगे.’’

पहले निहाल सिंह गिड़गिड़ाया, फिर बेशर्मी से बोला, ‘‘मैं भी तुम लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता. आज तक मैं ने तुम दोनों की पढ़ाई पर जो भी खर्चा किया, वह मुझे वापस कर दो.’’

यह सुनते ही रूबी की आंखों में आंसू आ गए. उस का बाप इतना गिर सकता है, उस ने कभी सोचा भी नहीं था, मगर फिर भी वह हिम्मत कर अपने आंसुओं को रोकते हुए बोली, ‘‘पैसा तो हम दे देंगे, लेकिन इतने सालों तक आप ने मम्मी को जो दुख दिया है, क्या वे दिन वापस लौटा देंगे?’’ कहते हुए रूबी ने फोन रख दिया और माही की तरफ देखा, जिस की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी.

रूबी ने झट से मां को अपने गले से लगा लिया. मगर उन्हें चुप नहीं कराया, बल्कि सालों का जो जमा सैलाब था, उसे बहने दिया.

सुरक्षाबोध: कहानी नए प्यार की

लड़के ने लड़की को मैसेज किया सुंदर से गुलाब के फूल के साथ, जिस की पंखुडि़यों पर ओस की बूंदें थीं. उस के हाथ जुड़े हुए थे और उस पर लिखा था, ‘‘बीते साल में हम से कोई गलती हुई हो तो माफ कीजिएगा. यह साथ नए वर्ष में भी बना रहे.’’

उस मैसेज को पढ़ कर लड़की ने हंसते हुए अनेक इमोजी दाग दिए.

‘‘अरे, ऐसा तो मैं ने कुछ नहीं कहा कि इतना हंसा जाए,’’ बेचारा हैरान सा हो कर रह गया. अभी सोच ही रहा था कि उधर से हंसी वाले इमोजी की एक कतार और टपक पड़ी. अगले दिन जब मुलाकात हुई तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘भला ऐसा क्या था मेरे मैसेज में जो तुम को हंसी आ गई, जोक तो नहीं भेजा था मैं ने.’’

लड़की फिर भी लगातार हंसे जा रही थी. उस ने थोड़ा झुक कर पेट पकड़ लिया था और दोहरी हुई जा रही थी. लड़की की विस्मय से आंखें फटी जा रही थीं.

‘‘तुम ने जोक नहीं सुनाया, यह तो सही है मगर तुम ने माफी किस बात की मांगी, यह तो बताओ,’’ लड़की ने कहा.

‘‘ऐसे ही, जानेअनजाने गलती हो जाती है. बस, इसीलिए मैं ने इंसानियत के नाते माफी मांग ली.’’

18 साल की वह लड़की देखने में पूरी तरह मौडर्न कही जा सकती थी. मिनी स्कर्ट के साथ पिंक स्लीवलैस टौप उस पर खूब फब रहा था. कंधे तक कटे बाल उस पर बहुत सूट कर रहे थे. आंखों में लगे मोटेमोटे काजल ने उन्हें और बड़ा बना दिया था. वह इतनी अदा से बोल रही थी कि लड़के की नजर उस के चेहरे से हट ही नहीं रही थी. लड़का कुछ कम स्मार्ट हो, ऐसा नहीं था. अच्छाखासा कद, चौड़े कंधे, स्टाइलिश बाल, उसे देख कर कोई भी लड़की उस पर फिदा हो सकती थी.

वे दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते थे. कालेज औफ कैंपस था. आसपास का माहौल भी ऐसा था कि बिगड़े और कुछ लफंगे लड़के ही नजर आते थे. कालेज में सुबह से शाम तक हलचल रहती थी और किसी न किसी बात पर होहल्ला भी होता रहता था.

वे दोनों कैंटीन में थे. लड़की चल कर बड़ी टेबल तक पहुंच गई. लड़का भी उस के पीछेपीछे चला जा रहा था जैसे सूई के पीछे धागा. लड़की ने टेबल पर अपना पर्स उलट दिया, छोटेछोटे कई सामान गिर पड़े, ब्रेसलेट, ईयर रिंग, रूमाल आदि. उस ने ब्रेसलेट हाथ में उठाया और लड़के की नाक के पास ले गई. लड़के को लगा था माथे पर मारेगी तो थोड़ा पीछे हटा, लेकिन, लड़की नहीं मानी, वह उतना ही आगे झुक गई.

‘‘यह ब्रेसलेट मुझे उस ने दिया,’’ लड़की ने कहा.

‘‘हकलाते हुए उस ने बोला, ‘‘किस ने?’’

‘‘वह जो फर्स्ट रौ में सब से लास्ट में बैठता है.’’

‘‘अच्छाअच्छा वह तो…’’ लड़के ने राहत की सांस ली. लेकिन अगले ही पल लड़की ने परफ्यूम उठा लिया और दाएंबाएं शीशी नचाने लगी. पास आते हुए बोली, ‘‘यह मुझे उस ने दिया.’’

‘‘किस ने?’’ लड़का फिर घबरा गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस की सांस क्यों तेज चल रही है.

‘‘वही जिस के बाजू पर टैटू है,’’ लड़की बोली, ‘‘और कुछ कहा भी, सुनना चाहोगे?’’

लड़का हकलाने लगा था, ‘‘हां, ब…ब… बताओ… क क क्या कहा था उस ने?’’

‘‘न्यू ईयर गिफ्ट जानेमन,’’ लड़की ने बताया.

लड़के की आंखों की पुतलियां फैल गईं, ‘‘उस ने ऐसा कहा?’’

लड़की अब एक के बाद एक आइटम उठाउठा कर लड़के की आंखों के सामने नचा रही थी और देने वाले का बखान भी कर रही थी.

फिर, लड़की एकदम गंभीर हो गई.

‘‘तुम लड़के क्या समझते हो? मित्रता क्या है?’’

लड़का मौन था. जैसे सांप सूंघ गया हो. उसे लड़की की ओर देखने के अलावा कुछ और सूझ नहीं रहा था. न सूझने के कारण ही वह अवाक था. ऐसा लगने लगा जैसे उस की आंखें 2 बटन की तरह लड़की के चेहरे पर टांक दी गई थीं.

लड़की अब तटस्थ हो चली थी, ‘‘तुम लड़के हम से मित्रता करते ही क्यों हो? क्योंकि यह एक अच्छा टाइमपास है?’’ उस ने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है,’’ लड़का मुश्किल से बस इतना ही बोल पाया.

‘‘तो फिर बताओ,’’ लड़की अब काफी नजदीक आ गई थी. उस का चेहरा फिर लड़के के चेहरे के बिलकुल सामने था जैसे कि उस की आंखें लड़के की आंखों में कूदी जा रही थीं.

‘‘तुम ने कभी इन सब को रोका क्यों नहीं, तुम तो जानते थे कि ये सब मुझे तंग करते हैं या नहीं, जानते थे. बोलो?’’ उस के हाथ से चुटकी बजी.

‘‘हां, थोड़ा तो…’’ लड़के ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर?’’ लड़की ने उसे घूरते हुए कहा.

‘‘सौरी,’’ लड़का झिझकते हुए बोला.

‘‘सौरी क्यों बोल रहे हो,’’ लड़की ने आश्चर्य से उस की ओर देखते हुए कहा.

‘‘मुझे इन सब के बारे में पता नहीं था लेकिन जब मैं उन सब को तुम्हारी तरह देखता, तो मुझे लगता था जैसे तुम्हें यह अटैंशन अच्छी लगती है.’’

‘‘क्या, सच में?’’

‘‘हां, पर सच अब जान पाया हूं और गलती का एहसास हो रहा है.’’

लड़के को फिर से कुछ सूझ नहीं रहा था. कुछ न सूझने की यह बीमारी उस की एकदम नई थी. बेचारा सही अर्थों में मिट्टी का माधो हो गया था. वैसे लड़का था मेधावी. हमेशा मैरिट लिस्ट में रहता था. स्कूल के दिनों में ऐथलीट भी रहा. लेकिन इधर कालेज में आने के बाद किताबी कीड़ा हो गया था. पिता की बेकरी शौप पर भी कभीकभी बैठ लेता था. ग्राहकों से मिठयामिठया कर बोलता. वैसे कोई ऐब नहीं था लड़के में. बस, दिन में 2-4 मैसेज वह लड़की को कर ही देता था. उस का हालचाल पूछता, गुडमौर्निंग और गुडनाइट के अलावा फलानेढिमकाने दिवस की शुभकामनाएं देता रहता और हां, उस की डीपी को एकांत में जूम कर के देखा करता.

शायद लड़का लड़की को मन ही मन चाहता था पर बेचारा बोलने से घबरा जाता. उसे लगता, कहीं जितनी बात होती है वह भी बंद न हो जाए.

इधर लड़की को भी लड़के की संजीदगी पसंद थी. लड़की के सामने आने पर वह मुसकरा कर रह जाता, कभीकभी हाय बोलता. कभी अधिक बात नहीं करता था. यही उस की एक बात थी जो लड़की को अच्छी लगती थी. वह चाहती थी इस घोंचू से कुछ कहे, मगर क्यों कहे, क्या उसे खुद नहीं दिखाई देता?

जब परफ्यूम वाले लड़के ने परफ्यूम गिफ्ट किया था और जानेमन कहा था तो सातों समंदर उस के अंदर खौल पड़े थे, फिर भी वह ऊपर से शांत पानी थी. लहर का कोई निशान नहीं. निर्भया के साथ क्या हुआ इधर हैदराबाद में वेटेरिनरी डाक्टर का भी कैसा हाल हुआ था. उन्नाव में भी… तभी उसे उस लड़की का चेहरा याद आ गया. वह किसी से मदद नहीं मांग सकती. हां, यह लड़का है न, कुछ और नहीं तो कम से कम उस के साथ चल तो सकता है, उन से बात कर सकता है समझा सकता है. लेकिन लड़के ने ऐसा कुछ नहीं किया. वह किसी तरह व्हाट्सऐप नंबर पा गया था और इतने में ही खुश था. लड़की ने लंबी सांस ली और बताया, ‘‘मैं अब क्लासेस अटैंड नहीं करूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘डर लगता है कहीं मैं भी… निर्भया…डाक्टर… उन्नाव… समझ गए न? मुझे इस माहौल में डर लगता है कभीकभी.’’

‘‘चुप,’’ न जाने कैसे लड़के का हाथ लड़की के मुंह तक चला गया. लड़की की आंखों में 2 बूंदें आंसू की छलक आई थीं. इस बार सातों समंदर में एकसाथ ज्वार आया था.

‘‘मैं वादा करता हूं,’’ लड़का अब तक स्वयं को संतुलित कर चुका था. ‘‘तुम्हारी सुरक्षा अब मेरी जिम्मेदारी है. तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा. तुम्हें अब से कोई तंग नहीं करेगा,’’ कहते हुए लड़का एक समझदार वयस्क की तरह पेश आ रहा था.

लड़की अब सुबकने लगी थी. उस ने लड़के का हाथ अपने मुंह से हटा दिया, ‘‘मगर वे तुम्हें कुछ करेंगे तो नहीं? झगड़ा मत करना प्लीज’’ लड़की को अब एक अलग तरह का डर सताने लगा था.

‘‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा,’’ उस ने लड़की का हाथ अपने हाथ में ले लिया, ‘‘मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ रहूंगा, देखूंगा तुम्हें कोई तंग न करे, तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा, बस.’’

‘‘सच?’’ लड़की खुश थी. उस ने लड़के के कंधे को अपने सिर से हलका धक्का दिया, ‘‘जाओ, अब माफ किया.’’

‘‘हैं?’’ लड़का फिर हैरान था.

‘‘नए साल में अगर मुझ से कोई गलती हो गई हो तो प्लीज मुझे माफ करना. यह साथ यों ही बना रहे,’’ कहते हुए लड़की के मुंह से फूल और सितारे झड़ रहे थे जो सीधे धरती से आकाश तक फैल गए थे. लड़का लड़की को खुश देख कर खुश था.

बस, और नहीं : क्या रीमा कभी समझ पाई शादीशुदा जिंदगी को

रीमा के ब्याह को 2 साल होने जा रहे थे, लेकिन आज तक वह खुद को इस सोच से बाहर नहीं निकाल पाई थी कि आखिर उस का पति रोशन उस से प्यार करता भी है या नहीं या फिर सिर्फ प्यार और पति धर्म निभाने की महज ऐक्टिंग ही करता है, क्योंकि अगर रोशन सचमुच उस से प्यार करता, तो कभी भी वह छोटीछोटी बातों पर उसे खरीखोटी नहीं सुनाता, जराजरा सी बात पर वह अपना आपा नहीं खोता.

कभीकभार की बात होती तो शायद रीमा के मन में यह विचार आता ही नहीं, लेकिन अब आएदिन गालीगलौज, लड़ाई?ागड़ा यह सब तो रोशन की आदत में ही शुमार हो गया था.

अपने पति से प्यार पाने की चाह में रीमा ने क्याकुछ नहीं किया. उस ने वह सब किया, जो अकसर ज्यादातर पत्नियां कभी खुशी से, तो कभी मजबूरी में किया करती हैं.

रीमा ने भी घर की सुखशांति, पति का प्यार और अपनी शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए पूजा, हवन, व्रत जिस ने जो कहा, जैसा करने को कहा, इन 2 सालों में वह सारे जतन कर डाले, लेकिन नतीजा ज्यों का त्यों ही बना रहा. रोशन के बरताव में रत्तीभर भी कोई बदलाव नहीं हुआ.

अलबत्ता, समय के साथसाथ रोशन का बरताव रीमा के संग और ज्यादा खराब होने लगा था. रीमा भी इसे अपनी किस्मत मान कर सम?ाता करती चली जा रही थी. वह रोशन के जोरजुल्म को चुपचाप सहती जा रही थी.

आमतौर पर देखा गया है कि हर दुख, जोरजुल्म सहने के बाद भी औरतें अपने पति के खिलाफ आवाज नहीं उठाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन का बसाबसाया घर टूट जाएगा, उन की जगहंसाई होगी और इस समाज में उन का इज्जत से जीना दूभर हो जाएगा.

रीमा पढ़ीलिखी और कामकाजी होने के बावजूद इसी सोच के तले दबी हुई थी और यही वजह थी कि वह रोशन की जीवनसंगिनी और बराबर की हकदार होने के बावजूद रोशन के लिए पैर की जूती से ज्यादा कुछ नहीं थी.

रोशन का जब मन करता, वह रीमा पर चीखनेचिल्लाने लगता. यहां तक कि कभीकभार वह हाथ चलाने से भी गुरेज न करता, लेकिन इतना था कि हाथापाई के दौरान अगर कभी रीमा को चोट लग जाती या कभी अचानक उस की तबीयत खराब हो जाती, तो वह रीमा को फौरन डाक्टर के पास ले कर जाता, उस की मरहमपट्टी कराता, उस का पूरा इलाज कराता. रीमा का पूरा खयाल रखता.

इसे देख कर आसपड़ोस के लोग कहते, ‘रीमा का पति भले ही गुस्से वाला है, लेकिन रीमा का कितना ध्यान रखता है, उस से कितना प्यार करता है.’

आसपास के लोगों की बातें सुन कर रीमा खुद भी यह मान बैठती कि उस का पति चाहे उस पर कितना भी जुल्म क्यों न करता हो, पर खयाल भी तो वही रखता है. उस से प्यार भी करता है.

रीमा के मन में जब भी ऐसे विचार आते, तब उस का दिमाग उस से कहता, ‘तेरा पति तु?ो से कैसा प्यार करता है? उस का जब जी चाहता है, गालीगलौज करता है, मारतापीटता है. रात को तेरा मन रहे या न रहे, पर वह अपनी मर्दानगी तुझ पर दिखाता है, तु?ो नोंचताखसोटता है.

‘छि:… क्या इसे ही प्यार कहते हैं. अगर यही प्यार है तो वह तु?ो प्यार न करे, वही अच्छा है. प्यार करना और खयाल रखना दोनों अलगअलग है…’

रीमा के दिल और दिमाग के सामने यह सवाल फन फैलाए खड़ा हो जाता कि उस का पति उस से प्यार करता भी है या नहीं?

आज सुबहसुबह घर के सारे काम निबटा कर रीमा आईने के सामने खड़ी स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी कि अचानक रोशन उस के सामने आ खड़ा हुआ और उस पर चिल्लाने लगा, ‘‘तुम स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती हो या फैशन परेड में… या फिर अपने जिस्म की नुमाइश करने? इतना ज्यादा चेहरे को लीपपोत कर और बनठन कर स्कूल जाने की जरूरत ही क्या है? किस को दिखाने के लिए यह सारा ताम?ाम है?’’

रोशन से यह सब सुन कर रीमा कुछ सम?ा ही नहीं पाई कि वह क्या कहे. वह तो रोज ऐसे ही तैयार होती है, फिर आज ऐसा क्या हो गया?

रीमा शांत भाव से बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ…? मैं तो रोज ऐसे ही स्कूल जाती हूं.’’

रीमा का इतना कहना था कि रोशन उस पर भड़क गया और रीमा के सिर के बालों को अपनी मुट्ठी में लेते हुए बोला, ‘‘वही तो मैं कह रहा हूं कि तुम रोज इतना मेकअप कर के स्कूल क्यों जाती हो?’’

रीमा खुद को छुड़ाते हुए बोली, ‘‘अरे, कैसी बातें करते हैं? मैं ने कहां मेकअप किया है. वर्क प्लेस में थोड़ा तो प्रैजेंटेबल दिखना पड़ेगा न. ऐसे ही मुंह उठा कर तो मैं स्कूल नहीं जा सकती न.’’

रोशन शायद रीमा से यही सुनना चाहता था, क्योंकि रीमा के ऐसा कहते ही रोशन बोला, ‘‘अगर वर्क प्लेस में प्रैजेंटेबल दिखना जरूरी है, तो तुम नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती हो? मैं अच्छाखासा कमाता हूं, तो तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है?’’

शादी के बाद से ही रोशन लगातार इसी बात पर जोर दे रहा था कि रीमा अपनी नौकरी छोड़ दे, लेकिन रीमा अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह किसी भी हालत में नौकरी नहीं छोड़ेगी. आज इसी बात को ले कर दोनों के बीच फिर ?ागड़ा छिड़ गया और रोशन गालीगलौज पर उतर आया था.

स्कूल के लिए देरी हो रही थी, इसलिए रीमा इस समय बेकार के ?ागड़े में पड़ कर अपना समय खराब नहीं करना चाहती थी और रोशन के हाथों को ?ाटक कर वह घर से स्कूल के लिए निकल गई. रोशन चिल्लाता रह गया.

सारे रास्ते रीमा का मन बस उसे यही सम?ाने में लगा हुआ था कि आखिर उस की नौकरी कौन सी सरकारी है? वह प्राइवेट स्कूल में एक टीचर ही तो है, फिर घर की शांति और पति से बढ़ कर नौकरी थोड़े होती है. वह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती? वह क्यों बेकार में नौकरी करने की हठ पकड़े हुए है? नौकरी थोड़े ही घर पर आएदिन हो रहे ?ागड़ों पर रोक लग जाएगी और वह सुकून से जिंदगी जी पाएगी.

बारबार रीमा का मन नौकरी छोड़ने का कर रहा था, इसलिए हार कर रीमा ने नौकरी से इस्तीफा देने का मन बना लिया. उस ने सोचा कि अगर नौकरी छोड़ने से घर की शांति, मन का सुकून और पति का प्यार सब मिल सकता है, तो हायहाय कर के नौकरी करने का क्या फायदा?

नौकरी से इस्तीफा देने का फैसला ले कर रीमा स्कूल पहुंची. जब वह स्टाफरूम पहुंची, तो उस ने पाया कि सभी टीचर अपनीअपनी क्लास लेने जा चुके हैं. केवल रीमा की पक्की सहेली श्रावणी बैठी हुई थी, क्योंकि उस का क्लास ब्रेक था.

रीमा को देखते ही श्रावणी को यह सम?ाने में समय नहीं लगा कि रीमा का अपने पति के संग ?ागड़ा हुआ है.

रीमा के बैठते ही श्रावणी बोली, ‘‘चेहरे पर बारह क्यों बजे हैं? आज फिर हो गया क्या पति से ?ागड़ा?’’

श्रावणी के ऐसा कहने पर लंबी सांसें लेते हुए रीमा बोली, ‘‘अब मैं तु?ो क्या बताऊं यार, आज फिर रोशन बेवजह मु?ा पर नाराज होने लगे, गालीगलौज करने लगे और मेरे बालों को पकड़ कर

इतना जोर से खींचा कि अब तक मेरे सिर में दर्द हो रहा है. मैं तो सम?ा ही नहीं पाती हूं कि आखिर रोशन मु?ा से चाहते क्या हैं?

‘‘लेकिन, अब मैं ने भी सोच लिया है कि इस रोजरोज के ?ां?ाट से छुटकारा पाने का बस एक ही रास्ता है कि मैं यह नौकरी ही छोड़ दूं. कम से कम रोशन से मेरा रिश्ता तो सुधर जाएगा.’’

रीमा की बातें सुन कर श्रावणी ने अपना सिर पकड़ लिया और उसे डांटते हुए बोली, ‘‘तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है न… नौकरी छोड़ने की बात तेरे दिमाग में आई तो आई कैसे… और, तु?ो क्या लगता है कि तू नौकरी छोड़ देगी, तो तेरा पति तु?ो गाली देना बंद कर देगा? तु?ो पीटना छोड़ देगा? तू अपने पति की प्रेमिका बन जाएगी?

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं होगा. अभी भी समय है कि अपनी आंखें खोल. अपने साथ हो रही इस नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठा. इस तरह कब तक तू अपने पति के हाथों की कठपुतली बनी रहेगी?’’

श्रावणी के इतना सब कहने के बावजूद रीमा पर इस का कोई असर नहीं हुआ और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी को बचाए रखने के लिए नौकरी छोड़ने के लिए तैयार थी.

असल में रीमा के दिलोदिमाग में अपनी मां की कही वे बातें बैठी हुई थीं, जो सालों से सुनती आ रही थी, ‘‘अपने घरपरिवार के लिए औरत को सबकुछ सहना ही पड़ता है. घर उसी औरत का बनता है, जो अपनी खुशियों को छोड़ कर हर तरह के दुखों और मुसीबतों को सहती है.’’

रीमा पढ़ीलिखी, कामकाजी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बावजूद सदियों से खींची गई उस लक्ष्मण रेखा को लांघ नहीं पा रही थी, जो समाज द्वारा केवल और केवल औरत को अपने काबू में रखने के लिए बनाई गई थी.

शाम को जब रीमा घर पहुंची, तो रोशन शराब के नशे में चूर उस के स्कूल से लौटने का इंतजार कर रहा था, क्योंकि रीमा सुबह उस का हाथ ?ाटक कर जो घर से निकल गई थी.

रीमा के घर के भीतर आते ही रोशन उस पर भड़क उठा, उसे भलाबुरा कहने लगा और गंदीगंदी गालियां देने लगा.

कुछ देर तक तो रीमा सुनती रही, लेकिन जब उस के बरदाश्त से बाहर हो गया, तो वह भी पलट कर जवाब देने लगी और दोनों के बीच ?ागड़ा बढ़ता चला गया. तभी अचानक रोशन रीमा को उस के बालों से पकड़ कर खींचता हुआ घर के आंगन में ले आया, उसे भद्दी और गंदी गालियां देने लगा, जिसे सुन कर आसपड़ोस के लोग वहां इकट्ठा हो गए, जिन में कुछ बड़ी, तो कुछ छोटी लड़कियां भी थीं.

कुछ ही देर बाद देखते ही देखते रोशन ने अपनी बैल्ट निकाल ली और रीमा को पीटने लगा, जिसे देख कर वहां खड़ी लड़कियां सहम गईं. उन की आंखों में डर साफ नजर आ रहा था.

यह देख कर अचानक रीमा ने रोशन के हाथों से बैल्ट छीन ली और रोशन पर पलटवार कर दिया, क्योंकि रीमा वहां पर खड़ी डरीसहमी लड़कियों के सामने यह उदाहरण पेश नहीं करना चाहती थी कि पति चाहे जो करे, सहना करना पत्नी का धर्म है.

रोशन की पिटाई होते देख वहां जमा छोटीबड़ी लड़कियों की आंखों में चमक आ गई और कुछ ऐसी औरतें जो मर्दों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने में खुद को कमजोर पाती थीं, के होंठों पर भी दबी हुई मुसकान उभर आई.

कई मर्दऔरत ऐसे भी वहां मौजूद थे, जो रीमा की इस हरकत पर बुदबुदा रहे थे, कानाफूसी कर रहे थे, रीमा को बेशर्म और न जाने क्याक्या कह रहे थे, लेकिन रीमा उन सभी की परवाह किए बगैर आज अपने पति रोशन के जोरजुल्म के खिलाफ पूरे दमखम के साथ खड़ी थी.

साथ ही साथ, रीमा अब यह फैसला भी ले चुकी थी कि वह रोशन के लिए, अपने घरपरिवार को एकतरफा बचाने की जद्दोजेहद और समाज द्वारा बनाए गए दकियानूसी नियमों को बस और नहीं सहेगी और न ही इन सभी के लिए अपनी नौकरी छोड़ेगी. वह अब दुनिया को एक मजबूत औरत बन कर दिखाएगी.

हवेली : गीता के दम तोड़ते एहसास

‘साड्डा चिडि़यां दा चंबा वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हे पिता, हम लड़कियों का अपने पिता के घर में रहना चिडि़यों के घोंसले में पल रहे नन्हे चूजों के समान होता है, जो जल्द ही बड़े हो कर उड़ जाते हैं. हे पिता, हमें तो बिछुड़ जाना है.

लोग कहते हैं कि हमारे लोकगीतों में जिंदगी के दुखदर्द की सचाई बयान होती है, मगर गीता के लिए इस लोकगीत का मतलब गलत साबित हुआ था. आसपास की सभी लड़कियां ससुराल जा कर अपनेअपने परिवार में रम गई थीं, मगर गीता ने यों ही सारी जिंदगी निकाल दी. इस तनहा जिंदगी का बोझ ढोतेढोते गीता के सारे एहसास मर चुके थे. कोई अरमान नहीं था. अपनी अधेड़ उम्र तक उसे अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार रहा, मगर अब तो उस के बालों में पूरी सफेदी उतर चुकी थी. आसपड़ोस के लोगों के सहारे ही अब उस के दिन कट रहे थे.

एक वक्त था, जब इसी हवेली में गीता का हंसताखेलता भरापूरा परिवार था. अब तो यहां केवल गीता है और उस की पकी हुई गम से भरी जवानी व लगातार खंडहर होती जा रही यह पुरानी हवेली. गीता की कहानी इसी खस्ताहाल हवेली से शुरू होती है और उस का खात्मा भी यहीं होना तय है.

‘साड्डी लंबी उडारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी हमारी उड़ान बहुत लंबी है. ससुराल का घर बहुत दूर लगता है, चाहे वह कुछ कोस की दूरी पर ही क्यों न हो. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.

गीता की शादी बहुत धूमधाम से हुई थी. बड़ेबड़े पंडाल लगाए गए थे. हजारों की तादाद में घराती और बराती इकट्ठा हुए थे. ऐसेऐसे पकवान बनाए गए थे, जो फाइवस्टार होटलों में भी कभी न बने हों. 10 किस्म के पुलाव थे, 5 किस्म के चिकन, बेहिसाब फलजूस, विलायती शराब की हजारों बोतलें पीपी कर लोग सारी रात झूमते रहे थे.

एक हफ्ते तक समारोह चलता रहा था. दनादन फोटो और वीडियो रीलें बनी थीं, जिन में गर्व से इतराते जवान दूल्हे और शरमाई दुलहन के साथ सभी रिश्तेदार खुशी से चिपक कर खड़े थे. गीता को तब पता नहीं था कि एक साल के अंदर ही उस की बदनामी होने वाली है.

‘कित्ती रोरो तैयारी वे… बाबुल, असां उड़ जाना…’ यानी शादी होने के बाद मैं ने बिलखबिलख कर ससुराल जाने की तैयारी कर ली है. हर किसी की आंखों में आंसू हैं. हे पिता, हमें बिछुड़ जाना है.

गीता का चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हुआ जा रहा था और वह अंदर से इतनी ज्यादा खुश थी कि एक बहुत बड़े रईस परिवार से अब जुड़ गई थी. 2 महीने बाद उसे अपने पति के साथ लंदन जाना था. लड़के के परिवार वाले भी बेहद खुश दिख रहे थे. दूल्हा बड़ी शान से एक सजे हुए विशाल हाथी पर बैठ कर आया था. फूलों से लदी एक काली सुंदर चमचमाती लंबी लिमोजिन कार गीता की डोली ले जाने के लिए सजीसंवरी उस के पीछेपीछे आई थी.

लड़के का पिता अपने इलाके का बहुत बड़ा जमींदार था. उस ने भारी रोबदार लहजे में गीता के पिता से कहा था, ‘मेरे लिए कोई खास माने नहीं रखता कि तुम अपनी बेटी को दहेज में क्या देते हो. हमारे पास सबकुछ है. हमारी बरात का स्वागत कुछ ऐसे तरीके से कीजिएगा कि सदियों तक लोग याद रखें कि चौधरी धर्मदेव के बेटे की शादी में गए थे.’ लोग तो उस शानदार शादी को आसानी से भूल गए थे. आजकल तकरीबन सभी शादियां ऐसी ही सजधज से होती हैं. पर गीता को कुछ नहीं भूला था. उस के दूल्हे ने पहली रात को उसे हजारों सब्जबाग दिखाए थे.

शादी के बाद एक महीना कैसे बीता, पता ही नहीं चला. गीता के तो पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे. वह पगलाई सी उस रस के लोभी भंवरे के साथ भारत के हर हिल स्टेशन पर घूमती रही, शादी को बिना रजिस्टर कराए. गीता के पति को एक दिन अचानक लंदन जाना पड़ा. कुछ महीनों बाद तक यह सारा माजरा गीता के परिवार वालों की समझ में नहीं आया. गीता तो कुछ ज्यादा ही हवा में थी कि विदेश जा कर यह कोर्स करेगी, वह काम करेगी.

कुछ दिनों तक गीता मायके में रही. ससुराल से कोई खोजखबर नहीं मिल पा रही थी. गीता का पति जो फोन नंबर उसे दे गया था, वह फर्जी था. लोगों को दो और दो जोड़ कर पांच बनाते देर नहीं लगती. अखबारों को भनक लगी, तो उन्होंने मिर्चमसाला लगा कर गीता के नाम पर बहुत कीचड़ उछाला. पत्रकारों को भी मौका मिल गया था अपनी भड़ास निकालने का. कहने लगे कि लालच के मारे ये

मिडिल क्लास लोग बिना कोई पूछताछ किए विदेशी दूल्हों के साथ अपनी लड़कियां बांध देते हैं. ये एनआरआई रईस 2-3 महीने जवान लड़की का जिस्मानी शोषण कर के फुर्र हो जाते हैं, फिर सारी उम्र ये लड़कियां विधवाओं से भी गईगुजरी जिंदगी बसर करती हैं. आने वाले समय में जिंदगी ने जो कड़वे अनुभव गीता को दिए थे, वे उस के लिए पलपल मौत की तरफ ले जाने वाले कदम थे. उस के मातापिता ने शादी में 25 लाख रुपए खर्च कर दिए थे और क्याकुछ नहीं दिया था. एक बड़ी कार भी उसे दहेज में दी थी.

खैर, 2-3 महीने बाद एक नया नाटक सामने आया. गीता के बैंक खाते में पति ने कुछ पैसे जमा किए. अब वह उसे हर महीने कुछ रुपए भेजने लगा था, ताकि पैसे के लिए ही सही गीता उस के खिलाफ कोई होहल्ला न करे. गीता के पिता ने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर उस की ससुराल जा कर खोजबीन की.

पता चला कि लड़का तो लंदन में पहले से ही शादीशुदा है. यह बात उस ने अपने मांबाप से भी छिपाई थी. कुछ अरसा पहले उस ने अपनी मकान मालकिन से ही शादी कर ली थी, ताकि वहां का परमानैंट वीजा लग जाए. बाद में उस से पीछा छुड़वा कर वह गीता से शादी करने से 7 महीने पहले एक और रूसी गोरी मेम से कोर्ट में शादी रचा चुका था. गीता के साथ तो उस ने अपने मांबाप को खुश रखने के लिए शादी की थी, ताकि वह सारी उम्र उन की ही सेवा में लगी रहे.

इस मामले में गीता के घर वाले उस की ससुराल वालों को फंसा सकते थे, मगर यह इतना आसान नहीं था. गीता के मांबाप ने उस के ससुराल पक्ष पर सामाजिक दबाव बढ़ाना शुरू किया और अदालत का डर दिखाया, तो वे 5 लाख रुपए दे कर गीता से पीछा छुड़ाने का औफर ले कर आ गए. गीता की शादी भारत में रजिस्टर नहीं हुई थी और इंगलैंड में उस की कोई कानूनी मंजूरी नहीं थी, इसलिए गीता के घर वाले उस के पति का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे, जिस ने गीता के साथ यह घिनौना मजाक किया था.

गीता के ससुराल वाले चाहते थे कि एक महीने तक उन के बेटे को जो गीता ने सैक्स सर्विस दी थी, उस का बिल 5 लाख रुपए बनता है. वह ले कर गीता दूसरी शादी करने को आजाद थी. वे बाकायदा तलाक दिलाने का वादा कर रहे थे. अब गीता का पति उन के हाथ आने वाला नहीं था.

तब गीता की ससुराल वालों ने उस के परिवार को एक दूसरी योजना बताई. गीता का देवर अभी कुंआरा ही था. उन्होंने सुझाया कि गीता चाहे तो उस के साथ शादी कर सकती है. ऐसा खासतौर पर तब किया जाता है, जब पति की मौत हो जाए. गीता की मरजी के बिना ही उस की जिंदगी को ले कर अजीबअजीब किस्म के करार किए जा रहे थे और वह हर बार मना कर देती. कोई उस के दिल के भीतर टटोल कर नहीं देख रहा था कि उसे क्या चाहिए.

फिर कुछ महीनों बाद गीता की ससुराल वालों का यह प्रस्ताव आया कि गीता के परिवार वाले 10 लाख रुपए का इंतजाम करें और गीता को उस के पति के पास लंदन भेज दें. शायद गीता के पति का मन अपनी विदेशी मेम से भर चुका था और वह गीता को बीवी बना कर रखने को तैयार हो गया था. गीता के सामने हर बार इतने अटपटे प्रस्ताव रखे जाते थे कि उस का खून खौल उठता था. शुरू में तो गीता को लगता था कि उस के परिवार वाले उस के लिए कितने चिंतित हैं और वे उस की पटरी से उतरी हुई गाड़ी को ठीक चढ़ा ही देंगे, मगर फिर उन की पिछड़ी सोच पर गीता को खीज भरी झुंझलाहट होने लगी थी.

गीता अपने दुखों का पक्का इलाज चाहती थी. समझौते वाली जिंदगी उसे पसंद नहीं थी. वह हाड़मांस की बनी एक औरत थी और इस तरह का कोई समझौता उस की खराब शादी को ठीक नहीं कर सकता था. अब गीता के मांबाप के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसे लंदन भेज सकें, ताकि गीता उस आदमी को पा सके. मगर पिछले 3 साल से वह भारत नहीं आया था और ऐसा कोई कानून नहीं था कि गीता के परिवार वाले उसे कोई कानूनी नोटिस भिजवा सकें.

गीता के मांबाप ने कोर्ट में केस दायर कर दिया था. वे अपने 25 लाख रुपए वापस चाहते थे, जो उन्होंने गीता की शादी में खर्च किए थे. गीता के लिए तो यह सब एक खौफनाक सपने की तरह था. वह पैसा नहीं चाहती थी. वह अपने बेवफा पति को भी वापस नहीं चाहती थी.

गीता क्या चाहती थी, यह उस की कच्ची समझ में तब नहीं आ रहा था. हर कोई अपनी लड़ाई लड़ने में मसरूफ था. किसी ने यह नहीं सोचा था कि गीता की उम्र निकलती जा रही है, उस के मांबाप बूढ़े होते जा रहे हैं. कोई सगा भाई भी नहीं है, जो बुढ़ापे में गीता की देखभाल करेगा.

अदालत के केस में फंसे गीता के पिता की सारी जमापूंजी खत्म हो गई. गीता की ससुराल वालों के पास खूब पैसा था. केस लटकता जा रहा था और एक दिन गीता के पिता ने तंग आ कर खेत में पेड़ से लटक कर जान दे दी. मां ने 3-4 साल तक गीता के साथ कचहरी की तारीखें भुगतीं, मगर एक दिन वे भी नहीं रहीं.

अब अपनी लड़ाई लड़ने को अकेली रह गई थी अधेड़ गीता. खेतों से जो पैदावार आती थी, वह इतनी ज्यादा नहीं थी कि लालची वकीलों को मोटी फीस दी जा सके. थकहार कर गीता ने कचहरी जाना ही छोड़ दिया. वह अपनी ससुराल वालों की दी गई हर पेशकश या समझौते को मना करती रही. एकएक कर के गीता के साथ के सभी लोग मरखप गए.

हवेली का रंगरूप बिगड़ता गया. अब इस कसबे में नए बाशिंदे आ कर बसने लगे थे. सरकार ने जब इस क्षेत्र को स्पैशल इकोनौमिक जोन बनाया, तो आसपास के खेतों में कारखाने खुलने लगे. उन में काम करने वालों के लिए गीता की हवेली सब से सस्ती जगह थी. गीता किराए के सहारे ही हवेली का थोड़ाबहुत रखरखाव कर रही थी. अपने बारे में तो उस ने कब से सोचना छोड़ दिया था.

ऐसा लग रहा था कि गीता और हवेली में एक प्रतियोगिता चल रही थी कि कौन पहले मिट्टी में मिलेगी.

हम बेवफा न थे : अख्तर के दिल की आवाज

‘‘अरे, आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? सब लोग वहां आप दोनों के इंतजार में खड़े हैं,’’ हमशां ने अपने भैया और होने वाली भाभी को एक कोने में खड़े देख कर पूछा.

‘‘बस कुछ नहीं, ऐसे ही…’’ हमशां की होने वाली भाभी बोलीं.

‘‘पर भैया, आप तो ऐसे छिपने वाले नहीं थे…’’ हमशां ने हंसते हुए पूछा.

‘काश हमशां, तुम जान पातीं कि मैं आज कितना उदास हूं, मगर मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता सकता,’ इतना सोच कर हमशां का भाई अख्तर लोगों के स्वागत के लिए दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया.

तभी अख्तर की नजर सामने से आती निदा पर पड़ी जो पहले कभी उसी की मंगेतर थी. वह उसे लाख भुलाने के बावजूद भी भूल नहीं पाया था.

‘‘हैलो अंकल, कैसे हैं आप?’’ निदा ने अख्तर के अब्बू से पूछा.

‘‘बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अख्तर के अब्बू ने प्यार से जवाब दिया.

‘‘हैलो अख्तर, मंगनी मुबारक हो. और कितनी बार मंगनी करने की कसम खा रखी है?’’ निदा ने सवाल दागा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मैं तो कुछ नहीं जानता कि हमारी मंगनी क्यों टूटी. पता नहीं, तुम्हारे घर वालों को मुझ में क्या बुराई नजर आई,’’ अख्तर ने जवाब दिया.

‘‘बस मिस्टर अख्तर, आप जैसे लोग ही दुनिया को धोखा देते फिरते हैं और हमारे जैसे लोग धोखा खाते रहते हैं,’’ इतना कह कर निदा गुस्से में वहां से चली गई.

सामने स्टेज पर मंगनी की तैयारी पूरे जोरशोर से हो रही थी. सब लोग एकदूसरे से बातें करते नजर आ रहे थे. तभी निदा ने हमशां को देखा, जो उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही थी.

‘‘निदा, आप आ गईं. मैं तो सोच रही थी कि आप भी उन लड़कियों जैसी होंगी, जो मंगनी टूटने के बाद रिश्ता तोड़ लेती हैं,’’ हमशां बोली.

‘‘हमशां, मैं उन में से नहीं हूं. यह सब तो हालात की वजह से हुआ है…’’ निदा उदास हो कर बोली, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि वह लड़की कौन है जो तुम लोगों को पसंद आई है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. वह देखो, सामने स्टेज की तरफ सुनहरे रंग का लहंगा पहने हुए खड़ी है,’’ हमशां ने अपनी होने वाली भाभी की ओर इशारा करते हुए बताया.

‘‘अच्छा, तो यही वह लड़की है जो तुम लोगों की अगली शिकार है,’’ निदा ने कोसने वाले अंदाज में कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इस में भैया की कोई गलती नहीं है. वह तो आज भी नहीं जानते कि हम लोगों की तरफ से मंगनी तोड़ी गई?है,’’ हमशां ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘मगर, तुम तो बता सकती थीं.

तुम ने क्यों नहीं बताया? आखिर तुम भी तो इसी घर की हो,’’ इतना कह कर निदा वहां से दूसरी तरफ खड़े लोगों की तरफ बढ़ने लगी.

निदा की बातें हमशां को बुरी तरह कचोट गईं.

‘‘प्लीज निदा, आप हम लोगों को गलत न समझें. बस, मम्मी चाहती थीं कि भैया की शादी उन की सहेली की बेटी से ही हो,’’ निदा को रोकते हुए हमशां ने सफाई पेश की.

‘‘और तुम लोग मान गए. एक लड़की की जिंदगी बरबाद कर के अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हो,’’ निदा गुस्से से बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं?है. मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मम्मी की कसम के आगे हम सब मजबूर थे वरना मंगनी कभी भी न टूटने देते,’’ कह कर हमशां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘देखो हमशां, अब पुरानी बातों को भूल जाओ. पर अफसोस तो उम्रभर रहेगा कि इनसानों की पहचान करना आजकल के लोग भूल चुके हैं,’’ इतना कह कर निदा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई.

‘‘निदा, इन से मिलो. ये मेरी होने वाली बहू के मम्मीपापा हैं. यह इन की छोटी बेटी है, जो मैडिकल की पढ़ाई कर रही है,’’ अख्तर की अम्मी ने निदा को अपने नए रिश्तेदारों से मिलवाया.

निदा सोचने लगी कि लोग तो रिश्ता टूटने पर नफरत करते हैं, लेकिन मैं उन में से नहीं हूं. अमीरों के लिए दौलत ही सबकुछ है. मगर मैं दौलत की इज्जत नहीं करती, बल्कि इनसानों की इज्जत करना मुझे अपने घर वालों ने सिखाया है.

‘‘निदा, आप भैया को माफ कर दें, प्लीज,’’ हमशां उस के पास आ कर फिर मिन्नत भरे लहजे में बोली.

‘‘हमशां, कैसी बातें करती हो? अब जब मुझे पता चल गया है कि इस में तुम्हारे भैया की कोई गलती नहीं है तो माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता,’’ निदा ने हंस कर उस के गाल पर एक हलकी सी चपत लगाई.

कुछ देर ठहर कर निदा फिर बोली, ‘‘हमशां, तुम्हारी मम्मी ने मुझ से रिश्ता तोड़ कर बहुत बड़ी गलती की. काश, मैं भी अमीर घर से होती तो यह रिश्ता चंद सिक्कों के लिए न टूटता.’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप नाराज हैं. मम्मी ने आप से मंगनी तो तोड़ दी, पर उन्हें भी हमेशा अफसोस रहेगा कि उन्होंने दौलत के लिए अपने बेटे की खुशियों का खून कर दिया,’’ हमशां ने संजीदगी से कहा.

‘‘बेटा, आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं. निदा, तुम भी चलो,’’ अख्तर के अब्बू खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘मुझे यहां इतना प्यार मिलता है, फिर भी दिल में एक टीस सी उठती?है कि इन्होंने मुझे ठुकराया है. पर दिल में नफरत से कहीं ज्यादा मुहब्बत का असर है, जो चाह कर भी नहीं मिटा सकती,’ निदा सोच रही थी.

‘‘निदा, आप को बुरा नहीं लग रहा कि भैया किसी और से शादी कर रहे हैं?’’ हमशां ने मासूमियत से पूछा.

‘‘नहीं हमशां, मुझे क्यों बुरा लगने लगा. अगर आदमी का दिल साफ और पाक हो, तो वह एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है,’’ निदा उमड़ते आंसुओं को रोकना चाहती थी, मगर कोशिश करने पर भी वह ऐसा कर नहीं सकी और आखिरकार उस की आंखें भर आईं.

‘‘भैया, आप निदा से वादा करें कि आप दोनों जिंदगी के किसी भी मोड़ पर दोस्ती का दामन नहीं छोड़ेंगे,’’ हमशां ने इतना कह कर निदा का हाथ अपने भैया के हाथ में थमा दिया और दोनों के अच्छे दोस्त बने रहने की दुआ करने लगी.

‘‘माफ कीजिएगा, अब हम एकदूसरे के दोस्त बन गए हैं और दोस्ती में कोई परदा नहीं, इसलिए आप मुझे बेवफा न समझें तो बेहतर होगा,’’ अख्तर ने कहा.

‘‘अच्छा, आप लोग मेरे बिना दोस्ती कैसे कर सकते हैं. मैं तीसरी दोस्त हूं,’’ अख्तर की मंगेतर निदा से बोली.

निदा उस लड़की को देखती रह गई और सोचने लगी कि कितनी अच्छी लड़की है. वैसे भी इस सब में इस की कोई गलती भी नहीं है.

‘‘आंटी, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं. प्लीज, इनकार न कीजिएगा,’’ निदा ने कहा.

‘‘तुम मुझ को शर्मिंदा तो नहीं कर रही हो?’’ अख्तर की अम्मी ने पलट कर पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं एक दोस्त होने के नाते अपने दोस्त की बहन को अपने भाई के लिए मांग रही हूं,’’ इतना कह कर निदा ने हमशां को गले से लगा लिया.

‘‘निदा, आप हम से बदला लेना चाहती?हैं. आप भी मम्मी की तरह रिश्ता जोड़ कर फिर तोड़ लीजिएगा ताकि मैं भी दुनिया वालों की नजर में बदनाम हो जाऊं,’’ हमशां रोते हुए बोली.

‘‘अरी पगली, मैं तो तेरे भैया की दोस्त हूं, दुख और सुख में साथ देना दोस्तों का फर्ज होता है, न कि उन से बदला लेना,’’ निदा ने कहा.

‘‘नहीं, मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ अख्तर की अम्मी ने जिद्दी लहजे में कहा.

तभी अख्तर के अब्बू आ गए.

‘‘क्या बात है? किस का रिश्ता नहीं होने देंगी आप?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘अंकल, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं.’’

‘‘तो देर किस बात की है. ले जाओ. तुम्हारी अमानत है, तुम्हें सौंप देता हूं.’’

‘‘निदा, आप अब भी सोच लें, मुझे बरबाद होने से आप ही बचा सकती हैं,’’ हमशां ने रोते हुए कहा.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो. मैं तो तुम्हें दिल से कबूल कर रही हूं, जबान से नहीं, जो बदल जाऊंगी,’’ निदा खुशी से चहकी.

‘‘हमशां, निदा ठीक कह रही हैं. तुम खुशीखुशी मान जाओ. यह कोई जरूरी नहीं कि हम लोगों ने उस के साथ गलत बरताव किया तो वह भी ऐसी ही गलती दोहराए,’’ अख्तर हमशां को समझाते हुए कहने लगा.

‘‘अगर वह भी हमारे जैसी बन जाएगी, तब हम में और उस में क्या फर्क रहेगा,’’ इतना कह कर अख्तर ने हमशां का हाथ निदा के भाई के हाथों में दे दिया.

‘‘निदा, हम यह नहीं जानते कि कौन बेवफा था, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हम बेवफा न थे,’’ अख्तर नजर झुकाए हुए बोला.

‘‘भैया, आप बेवफा न थे तो फिर कौन बेवफा था?’’ हमशां शिकायती लहजे में बोली. उस की नजर जब अपने भैया पर पड़ी तो देख कर दंग रह गई. उस का भाई रो रहा था.

‘‘भैया, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप को गलत समझा,’’ हमशां अख्तर के गले लग कर रोने लगी.

सच है कि इनसान को हालात के आगे झुकना पड़ता है. अपनों के लिए बेवफा भी बनना पड़ता है.

घुटन : शमा की भाभी ने ऐसा क्या देख लिया था

आसिफ को ऐसी घुटन में जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, उस ने इस की कभी कल्पना भी नहीं की थी. इस घुटन ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया था. रहरह कर आसिफ को अपनी पहली बीवी मुमताज की याद आ रही थी.

आज आसिफ की नई बीवी शमा उस पर शब्दों की ऐसी चोट करती थी, जिस का असर सीधे उस के दिल पर होता था, जबकि उस ने अपनी नई बीवी शमा और उस के बच्चों कैफ और आइजा को अपनी सगी औलाद से भी ज्यादा चाहा था और शमा से निकाह इसलिए ही किया था कि किसी बेवा और यतीमों का सहारा बन कर उन्हें दुनिया की हर खुशी देने की कोशिश करेगा. पर शमा लोगों के बहकावे में आ कर शब्दों की ऐसी चोट करती थी कि घर में ?ागड़ा शुरू हो जाता था.

आसिफ के अपनी पहली बीवी से

3 बच्चे फातिमा, आयशा और काशिफ थे. जब आसिफ की दूसरी शादी हुई थी, उस समय फातिमा की उम्र 10 साल, आयशा की उम्र 8 साल और काशिफ की उम्र महज 3 साल थी. शमा की बेटी आइजा की उम्र 10 साल और बेटे कैफ की उम्र 6 साल थी.

आसिफ ने डोनेशन दे कर आइजा और कैफ का एक अच्छे से इंगलिश मीडियम स्कूल में दाखिला करा दिया था, जबकि अपनी बेटी आयशा को साधारण स्कूल में ही रहने दिया था, क्योंकि उस के पास इस समय इतनी रकम नहीं थी कि एकसाथ 3-3 बच्चों के दाखिले के लिए डोनेशन दे सके.

शादी का एक साल प्यारमुहब्बत में गुजर गया और शमा को एक बेटा भी हो गया, जिसे पा कर पूरे घर में खुशी का माहौल था. सब बच्चे अपने छोटे भाई को पा कर खुश थे.

पर, जैसेजैसे समय अपनी रफ्तार से कटता गया, वैसेवैसे शमा में बदलाव आता गया. वह आसिफ की छोटी से छोटी बात पकड़ने लगी और उसे जलील करने लगी.

एक दिन शमा के भाईभाभी घर आए हुए थे. आसिफ का बेटा काशिफ खाना नहीं खा रहा था, तो आसिफ ने उसे पकड़ कर एक निवाला उस के मुंह में डाल दिया.

शमा की भाभी ने यह सब देख लिया और उस ने शमा के कान में जहर घोल दिया.

रात को जब आसिफ थकहार कर घर आया और अपने कमरे में गया, तो शमा मुंह फुलाए बैठी थी. आसिफ को देख वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम काशिफ को अपने हाथ से खाना खिला रहे थे. मेरी भाभी ने अपनी आंखों से देखा और मु?ा से कहा कि आसिफ अपनी औलाद को तो अपने हाथ से खाना खिलाता है, पर तुम्हारे बच्चों को कभी ऐसे खाना नहीं खिलाता. भाभी को और मु?ो तुम्हारा बच्चों में यह फर्क करना बहुत बुरा लगा.’’

आसिफ शमा को प्यार से सम?ाते हुए बोला, ‘‘तुम ही मु?ा से कितनी बार शिकायत करती हो कि तुम्हारे 2 छोटे बच्चों को खिलाना मेरे बस की बात नहीं है. ये बच्चे मेरे हाथ से खाना नहीं खाते हैं खासकर काशिफ. आज भी काशिफ खाने में नखरे कर रहा था, तो मैं ने एक निवाला उस के मुंह में डाल दिया.’’

शमा बिगड़ते हुए बोली, ‘‘तो एक टुकड़ा मेरे बच्चों के मुंह में भी डाल देते.’’

आसिफ ने उसे सम?ाया, ‘‘काशिफ अभी बहुत छोटा है. मैं ने सिर्फ उसे ही एक निवाला खिलाया था.’’

लेकिन शमा पर आसिफ की इस दलील का कोई असर नहीं पड़ा और वह अपनी बात पर अड़ी रही.

कुछ दिनों बाद आसिफ काशिफ के लिए एबीसीडी लिखने वाली एक नोटबुक ले आया. जैसे ही उस ने वह नोटबुक शमा को दी और कहा कि इस में काशिफ को लिखना सिखाओ, जल्दी सीख जाएगा.

नोटबुक देखते ही शमा आगबबूला हो गई और नोटबुक को फेंकते हुए बोली, ‘‘सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही लाए हो. मेरा भी तो बेटा कैफ है, उस के लिए क्यों नहीं लाए?’’

आसिफ को शमा की यह हरकत बहुत बुरी लगी. वह बोला, ‘‘कैफ तीसरी क्लास में है, उसे इस की क्या जरूरत है, जबकि काशिफ को तो अभी कुछ नहीं आता. उसे सीखने की जरूरत है. वह अभी 3 साल का ही तो है.’’

शमा चिल्ला कर बोली, ‘‘हांहां, सब तुम्हारे बच्चे के लिए ही जरूरी है.

वही तो पढ़ कर इंजीनियर बनेगा न… मेरा बच्चा कुछ न बने… सब अपने बेटे के लिए ही लाओ.’’

आसिफ को शमा से ऐसी उम्मीद न थी. उस ने जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया. न आसिफ को खाना दिया और न उस से बात की.

आसिफ ने वह नोटबुक फाड़ दी, तब कहीं जा कर शमा का गुस्सा

शांत हुआ.

आसिफ को अब अपने ही घर में घुटन होने लगी थी. उस का घर में मन नहीं लगता था, इसलिए वह देर से घर आता था. वह जानता था कि उस की कोई न कोई बात पकड़ कर शमा ?ागड़ा करेगी और वह चाह कर भी अपने छोटे बेटे को गले नहीं लगा सकता, क्योंकि एक बार ऐसा करने पर घर में क्लेश हो गया था.

एक रात की बात है. आसिफ और शमा सोए हुए थे. रात को काशिफ की नींद खुली और वह ‘अम्मीअब्बू’ कहता हुआ आसिफ के पास आ गया. केवल आसिफ और शमा ही डबलबैड पर सोए हुए थे.

काशिफ बोला, ‘‘अब्बा, मैं आप के पास सोऊंगा.’’

आसिफ ने काशिफ को सम?ाया, तो वह रोने लगा. बच्चे का रोना सुन कर शमा बोली, ‘‘लिटा लो न अपने पास.’’

आसिफ ने शमा की बात सुन कर काशिफ को अपने पास लिटा लिया, पर अभी उसे लेटे हुए आधा घंटा ही

हुआ था कि शमा ने गुस्से में अपना तकिया उठाया और दूसरे कमरे में सोने चली गई.

आसिफ ने देखा कि शमा बिस्तर पर नहीं है, तो वह उठ कर दूसरे कमरे में गया. वहां उस ने देखा कि शमा मोबाइल देख रही थी.

आसिफ शमा से बोला, ‘‘तुम यहां क्यों आ गई?’’

शमा बोली, ‘‘नींद नहीं आ रही थी, इसलिए आ गई.’’

आसिफ सम?ा गया था कि जो इतनी देर से नींद आ रही है कह कर सो गई थी, उस की अचानक नींद कैसे गायब हो गई.

आसिफ बोला, ‘‘सचसच बताओ कि क्या बात है?’’

शमा गुस्से में बोली, ‘‘जाओ, अपनी औलाद को चिपका कर सुलाओ. यहां क्या करने आए हो? मु?ो सोने दो. मु?ो नहीं आना तुम्हारे पास. अपनी औलाद को गले से लगा कर सो जाओ, वही तुम्हारे लिए सबकुछ है.’’

आसिफ शमा की ऐसी बेरुखी देख कर हैरत में पड़ गया और उसे सम?ाते हुए बोला, ‘‘अरे बाबा, मैं काशिफ को नीचे सुला देता हूं.’’

आसिफ ने काशिफ को बिस्तर से उठा कर नीचे सुला दिया, पर शमा फिर भी नहीं आई. वह गुस्से में मुंह फुलाए दूसरे कमरे में पड़ी रही.

कई दिन तक शमा का मुंह फूला रहा और आसिफ घुटता रहा.

एक बार घर पर शमा के मेहमान आए थे. उन के बच्चों ने काशिफ की साइकिल तोड़ दी. इस के बाद शमा के बेटे कैफ की भी साइकिल खराब हो गई. उस ने आसिफ से कहा, ‘‘मेरी साइकिल ठीक करा दो.’’

आसिफ ने बोला, ‘‘कल करा दूंगा.’’

पर, अगले दिन आसिफ को ध्यान नहीं रहा और वह काम पर चला गया. फिर क्या था. शमा ऐंठ गई. आसिफ ने सम?ाया कि काशिफ की भी साइकिल उस ने ठीक नहीं कराई है, पर शमा ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.

एक बार आसिफ की बेटी आयशा की तबीयत काफी खराब हो गई थी. आसिफ ने तुरंत उस का इलाज करा दिया था, पर जब शमा की बेटी आइजा को पीलिया हो गया, तो आसिफ ने उस का भी इलाज अच्छे डाक्टर के क्लिनिक में कराया, पर वहां शमा के रिश्तेदारों ने कान भर दिए कि तेरे ही बच्चे क्यों बीमारी का शिकार होते हैं.

शमा का यह सुनना था कि उस का गुस्सा फूट पड़ा आसिफ पर. वह बोली, ‘‘मेरे बच्चों का ध्यान नहीं रखते हो, न ही ढंग से इलाज कराते हो. अगर आज इन का असली बाप होता, तो यह इतनी बीमार न होती.’’

आसिफ बोला, ‘‘ऐसा कौन सा घर नहीं है, जहां बच्चे बीमार नहीं होते हैं. मैं सगा बाप नहीं तो क्या मैं ने इलाज कराने में कोई कमी की?’’

इतना सुनना था कि शमा और ज्यादा भड़क गई. वह अपने बच्चों को ले कर मायके चली गई. आसिफ हैरान सा उसे जाते देखता रहा.

सच के पैर: क्या थी गुड्डी के भैया-भाभियों की असलियत

बूआजी आएंगी फलमिठाई लाएंगी, नई किताबें लाएंगी सब को खूब पढ़ाएंगी…’ छोटी गा रही थी.

‘बूआजी आते समय मेरे लिए नई ड्रैसेज जरूर ले आना,’ दूसरी की मांग होती. इस तरह की मांगें हर साल गरमी की छुट्टियां आते ही भाइयों के बच्चों की होती. जिन्हें गुड्डी मायके जाते ही पूरा करती. मगर एक बार जब वह मायके गई, तो बड़े भैयाभाभी की बातचीत सुन उस के पांव तले की जमीन ही जैसे खिसक गई.

‘‘बड़ी मुश्किल से दोनों का तलाक कराया,’’ भाभी कह रही थीं.

‘‘और क्या, अगर तलाक नहीं होता तो क्या गुड्डी हमें इतना देती? देखना, बड़ी की शादी में कम से कम 10 लाख उस से लूंगा,’’ भैया कह रहे थे.

‘‘बदले में क्या देते हैं हम लोग? हर साल एक मामूली साड़ी पकड़ा देते हैं. वह इतने में भी अपना सर्वस्व लुटा रही है,’’ हंसते हुए उस की भाभी ने कहा तो वह जैसे धड़ाम से जमीन पर आ गिरी. सच में उस का शोषण तीनों भाइयों ने किया है. उसे याद आ गई 20 वर्ष पूर्व की घटना. उस के विवाह के लिए लड़का देखा जा रहा था. पिताजी तीनों बेरोजगार बेटों की लड़ाई व बहुओं की खींचतानी झेल न पाए और गुजर गए. फिर तो उस की शादी के लिए रखे क्व5 लाख वे सब खूबसूरती से डकार गए.

उस का विवाह उस से लगभग दोगनी उम्र के व्यक्ति रमेश से कर दिया गया और दहेज तो दूर सामान्य बरतनभांडे तक उसे नहीं दिए गए. यह देख मां से न रहा गया. वे बोल पड़ीं, ‘‘अरे थोड़े जेवर और जरूरी सामान तो दो, लोग क्या कहेंगे?’’ ‘‘आप चुप रहें मां. हमें अपनी औकात में शादी करनी है. सारा इसे दे देंगे, तो मेरी बेटियों की शादी कैसे होगी?’’ बड़ा भाई डांट कर बोला तो वे चुप रह गईं. फिर तो गुड्डी ससुराल गई और उस के बाद उस की पढ़ाई और नौकरी तक इन सबों ने कभी झांका तक नहीं. रमेश पत्नी को पढ़ाने के पक्षधर थे, इसलिए उन के सहयोग से उस ने बीए की परीक्षा पास की. उस के कुछ दिनों बाद बैंक की क्लैरिकल परीक्षा पास कर ली, तो बैंक में नौकरी लग गई. रमेश पढ़ीलिखी पत्नी चाहते थे परंतु कमाऊ पत्नी नहीं. अत: जैसे ही उस की नौकरी लगी उन्होंने समझाने की कोशिश की, ‘‘क्या तुम्हारा नौकरी करना इतना जरूरी है?’’

‘‘हां क्यों न करें. इतनी औरतें करती हैं. फिर बड़ी मुश्किल से लगी है,’’ उस ने सरलता से जवाब दिया.

‘‘फिर बच्चे होंगे, तो कौन पालेगा?’’

‘‘क्यों, दाई रख लेंगे. आजकल बहुत से लोग रखते हैं. मैं भविष्य की इस छोटी सी समस्या के लिए नौकरी नहीं छोड़ सकती.’’ इस दोटूक जवाब पर रमेश कुछ नहीं बोले. पर उन का जमीर इस बात को स्वीकार न कर सका कि लोग उन्हें जोरू का गुलाम या जोरू की कमाई खाने वाला कहें. इधर उस के मायके के लोग उस की नौकरी की खबर सुनते ही मधुमक्खी के समान आ चिपके. पतिपत्नी की लड़ाई में हमेशा मायके वाले फायदा उठाते हैं. यहां भी यही हुआ. मायके वालों के उकसाने पर वह तलाक का केस कर नौकरी पर चली गई. बाद में आपसी सहमति पर तलाक हो भी गया. इस के बाद इस दूध देती गाय का भरपूर शोषण सब ने किया. कभी बड़े भैया की लड़की का फार्म भरना है तो कभी किसी की बीमारी में इलाज का खर्च, तो कभी कुछ और. ऐसा कर के हर साल वे सब इस से अच्छीखासी रकम झटक लेते थे.

उस वक्त गुड्डी का वेतन 30 हजार था. उस में से सिर्फ 10 हजार किराए के मकान में रहने, खानेपीने वगैरह में जाते थे. बाकी भाइयों की भेंट चढ़ जाता था. मगर उस दिन की भैयाभाभी की बातचीत ने उस के मन को हिला कर रख दिया. उस के बाद वह 4 दिन की छुट्टियां ले कर किसी काम से मधुबनी गई थी, तो वहां संयोगवश उस के पति साइकिल पर फेरी लगाते दिख गए. ‘‘ये क्या गत बना रखी है?’’ औपचारिक पूछताछ के बाद उस ने पहला प्रश्न किया.

‘‘कुछ नहीं, बस जी रहे हैं, तुम कैसी हो?’’ उन्होंने डबडबाई आंखों को संभालते हुए प्रश्न किया.

‘‘मैं ठीक हूं, आप की पत्नी और बच्चे?’’ उस का दूसरा प्रश्न था.

‘‘पत्नी ने मुझे छोड़ कर नौकरी का दामन थामा, तो बिन पत्नी बच्चे कहां से होते?’’ उन्होंने जबरदस्ती हंसने का प्रयास करते हुए कहा.

‘‘गांव में कौनकौन है?’’ पिताजी का निधन तुम्हारे सामने हो गया था. तुम्हारे जाने के 1 साल बाद मां गुजर गईं और सभी भाइयों ने परिवार सहित दूसरे शहरों को ठिकाना बना लिया,’’ उन का सीधा उत्तर था.

‘‘और आप?’’

इस प्रश्न पर वे थोड़ा सकुचा गए. फिर बोले, ‘‘मैं यहीं मधुबनी में रहता हूं. सुबह से शाम ढले तक कारोबार में लगा रहता हूं. सिर्फ रात में कमरे में रहता हूं.’’ ‘‘मुझे अपने घर ले चलिए,’’ कह कर वह जबरदस्ती उन के साथ उन के घर में गई. वहां एक पुरानी चारपाई, एक गैस स्टोव व जरूरत भर का थोड़ा सा सामान था. उसे बैठा कर वे सब्जी व जरूरी समान की व्यवस्था करने गए तब तक उस ने सारे समान जमा दिए. उन के लौट कर आते ही सब्जीरोटी बना कर उन्हें खिलाई और खुद खाई. उस रात वह उन के बगल में लेटी तो उन के सिर पर उंगलियां फेरते उस ने पूछा, ‘‘आप ने दूसरी शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्यों, क्या एक शादी काफी नहीं है? जब पहली पत्नी ने ही साथ नहीं दिया, तो दूसरी की बात मैं ने सोची ही नहीं.’’ इस जवाब से वह टूट गई. दोनों रात में एक हो गए. आंसुओं ने नफरत के बांध को तोड़ दिया.

अगले दिन चलते समय उस ने कहा, ‘‘आप मेरे साथ चल कर वहीं रहिए.’’ ऐसा न जाने किस जोश में आ कर वह बोल उठी थी. पर रमेश ने बात को संभाला, ‘‘यह ठीक नहीं होगा. हम दोनों तलाकशुदा हैं वैसी दशा में मेरा तुम्हारे साथ रहना…’’

‘‘ठीक है, मैं दरभंगा में रहती हूं. आप महीने में 1 बार वहां आ सकते हैं?’’ उस ने पूछा. ‘‘मिलने में कोई बुराई नहीं है,’’ रमेश ने फिर बात को संभाला. फिर बस स्टैंड तक जा कर बस में बैठा आए और हाथ में 200 रख दिए. प्यार की भूखी गुड्डी इस व्यवहार से गदगद हो गई. दूसरी ओर अपने सगे भैयाभाभी की कही बात उसे तोड़ रही थी. सच कड़वा होता है मगर यह इतना कड़वा था कि इसे झेल पाना मुश्किल हो रहा था. उस के यही सब सोचते जब उस के मोबाइल की घंटी बजी तो वह वर्तमान में लौटी.

‘‘क्यों इस बार छुट्टी में नहीं आ रही हो?’’ उस के बड़े भैया का स्वर था.

‘‘नहीं, इस बार आना नहीं हो सकता,’’ उस ने विनम्रता से जवाब दिया.

‘‘क्यों, क्या हो गया?’’

‘‘कुछ नहीं भैया, बस जरूरी काम निबटाने हैं.’’ इस जवाब पर फोन कट गया. इस के बाद वह कई महीने मायके तो नहीं गई पर हर माह मधुबनी हो आती थी. रमेश उसे प्यार से घर लाते, उस का पूरा ध्यान रखते और भरपूर सुख देते. उन के साथ रात गुजारने में उसे असीम सुख मिलता था. वह इस प्यार से गदगद रहती. उस के जाते वक्त हर बार रमेश 100-200 या साड़ी हाथ में अवश्य रखते. फिर प्रेम से बस में चढ़ा आते. सब से बड़ी बात यह कि उन्होंने आज तक यह नहीं पूछा था कि अब वह किस पद पर है वेतन कितना मिलता है?

‘‘क्यों आप को मेरे बारे में कुछ नहीं जानना?’’ एक बार उस ने पूछा था.

‘‘जानता तो हूं कि तुम बैंक में हो,’’ उन्होंने सहज भाव से जवाब दिया. उन की सब से बड़ी बात यह थी कि वे अपने ऊपर 1 पैसा भी नहीं खर्च करने देते थे, इसलिए स्वाभाविक रूप से वह उन की ओर झुकती चली गई. एक दिन अचानक बहुत दिनों से मायके न जाने पर उस की मां, बड़े, मझले और छोटे भैयाभाभी सभी आए. मझले को मैडिकल में लड़के का ऐडमिशन कराने हेतु 1 लाख चाहिए थे, वहीं बड़े भैया बड़ी लड़की की शादी हेतु पूरे 5 लाख की मांग ले कर आए थे. इसी प्रकार छोटा भी दुकान हेतु पुन: 2 लाख की मांग ले कर आया था. उन सब की मांग सुन कर वह फट पड़ी, ‘‘क्यों आप लोग अपना इंतजाम खुद नहीं कर सकते, जो जबतब आ जाते हैं? मेरी भी शादी हुई थी, तब आप तीनों ने क्या दिया था?’’

इस पर सब सकपका गए मगर छोटा बेहयाई से बोला, ‘‘हमारे पास नहीं था, इसलिए नहीं दिया. तुम्हारे पास है तभी न ले रहे हैं.’’ ‘‘कुछ नहीं, पहले पिछला हिसाब करो. मुझ से जो लिया लौटाओ. मेरे पास सब लेनदेन लिखा है.’’ तभी उस के पति का फोन आ गया. ‘‘क्यों क्या हुआ, कैसे हैं आप?’’

‘‘बस 2 दिन से थोड़ा सा बुखार है. तुम्हारी याद आ रही थी, इसलिए फोन कर दिया.’’ पति का थका स्वर सुन कर वह तुरंत बोली. ‘‘रात की बस पकड़ कर मैं आ रही हूं आप चिंता न करें.’’ फिर वह फोन रख कर जल्दीजल्दी जाने का समान पैक करने लगी.

‘‘क्या हुआ अचानक कहां चल दीं?’’ मां ने घबरा कर पूछा.

‘‘जा रही होगी गुलछर्रे उड़ाने,’’ मझला भाई बोला. ‘‘सुनो, अपनी औकात में रह कर बोला करो. ये मेरे पति का फोन था.’’ यह सुन कर सभी की आंखें फटी रह गईं.

‘‘तलाकशुदा पति से तेरा क्या मतलब?’’ उस की मां बोलीं.

‘‘मां, मतलब तो शादी के बाद भाइयों का भी बहन की आमदनी या जायदाद से नहीं होता पर मेरे भाई तो बहन को दूध देती गाय समझ पैसा लूटते रहे. जब वापस देने की बारी आई तो बहाने करने लगे.’’ उस का यह रूप देख सब भौचक्के थे.

‘‘और हां मां, आप सब ने मिल कर मेरी शादी इसलिए तुड़वाई ताकि मेरे पैसे पर ऐश कर सकें.’’

‘‘बेटा, तुम गलत समझ रही हो,’’ मां ने फिर समझाना चाहा. ‘‘सच क्या है मां यह तुम भी जानती हो. पूरे 5 लाख जो पापा ने मेरी शादी के लिए रखे थे, इन तीनों ने डकार लिए थे. एक फटा कपड़ा तक नहीं दिया था. फिर 4 साल तक हाल नहीं पूछा. लेकिन जैसे ही नौकरी मिली चट से आ कर सट गए और तुम मां हो कर हां में हां मिलाती रहीं.’’ यह कड़वा सच उन सब के कानों में सीसे की तरह उतर रहा था. ‘‘आप लोग जाएं क्योंकि मुझे रात की बस से उन के पास जाना है. जब मेरा पूरा पैसा देने लायक हो जाएं तो आइएगा.’’ इतना कह कर वह तैयार हो कर घर से निकली, तो वे सब हाथ मलते ऐसे पछता रहे थे जैसे कारूं का खजाना हाथ से निकल गया हो और वह तेजी से बस स्टैंड की ओर बढ़ती जा रही थी.

परित्यक्ता : कजरी के साथ क्या हुआ था

बरसती बूंदें कजरी के पैरों से कदमताल कर रही थीं. अभी 6 ही तो बजे थे, पर तेज बारिश और काले बादलों ने वक्त से पहले ही जैसे अंधेरा करने की ठान ली थी. ठीक उस के जीवन की तरह, जिस में उस की खुशियों के उजाले को समय के स्याह बादलों ने हमेशा के लिए ढक लिया था. कजरी सोचती जा रही थी. झमाझम होती बारिश में उस की पुरानी छतरी ने भी आज उस का साथ छोड़ दिया था. बच्चों की चिंता ने उस के पैरों की गति को और बढ़ा दिया. उस का घर आने से पहले ही बाबूलाल किराने वाले की दुकान पड़ती थी, जहां से उसे कुछ किराना भी लेना था.

‘‘क्या चाहिए?’’ बाबूलाल ने कजरी की भीगी देह पर भरपूर नजर डालते हुए कहा.

‘‘2 किलो आटा, आधा लिटर तेल, पाव किलो शक्कर और हां, आधा लिटर दूध भी दे देना,’’ कजरी ने अपने आंचल को ठीक करते हुए कहा. बाबूलाल की ललचाई नजरों में उसे हमेशा ही एक मौन आमंत्रण दिखाई देता था. यह तो उस की मजबूरी थी कि वह यहां से वक्तबेवक्त कभी भी उधारी में सामान ले लिया करती थी, वरना उस की दुकान की ओर कभी वह मुड़ कर भी न देखती.

सोचतेसोचते कजरी घर पहुंच गई. बच्चे ‘‘मां, मां’’ कहते हुए उस से लिपट गए.

‘‘आई बहुत भूख लगी है, ताई ने कुछ खाने को नहीं दिया,’’ छोटे बेटे कमल ने दीदी की शिकायत की.

‘‘क्या करती आई, घर में आटा ही नहीं था,’’ सुमि ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘अच्छा मेरा राजा बेटा, मैं अभी गरमागरम रोटी बना कर अपने लाल को खिलाती हूं, मीठे दूध में मींज के खा लेना,’’ कजरी ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.

‘‘आई, मैं भी खाऊंगी,’’ 9 साल की रीना ने मचलते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मेरी गोलू, तू भी खाना.’’ गोलमटोल बड़ीबड़ी आंखों वाली रीना को सब गोलू ही कह कर बुलाते थे.

‘‘मैं ने टमाटर की मस्त चटनी भी बनाई है, आई,’’ सुमि ने उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा.

जल्दी से आटा गूंध कर उस ने बच्चों को खाना खिलाया. उन को सुलाने के बाद कजरी सुमि के साथ वहीं नीचे जमीन पर लेट गई.

‘‘आई, आज फिर दीनू रीना को चौकलेट खिला रहा था. तब मैं ने रीना के हाथ से छीन कर वापस उस के मुंह पर फेंक दी, तो वह मेरे को देख लेने की धमकी दे कर चला गया. मुझे उस से बहुत डर लगता है, आई,’’ सुमि ने भयभीत स्वर में मां को बताते हुए कहा.

‘‘तुम घबराओ नहीं, सुमि, मैं उस की मां से बात करूंगी,’’ कजरी ने उसे तो समझा दिया, परंतु खुद सोच में पड़ गई.

जब से रमेश उसे छोड़ कर गया है, जीना कितना दूभर हो गया है. कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी इस कदर बोझ बन जाएगी. रमेश के रहते उसे कभी भी बाहर जा कर काम करने की जरूरत नहीं पड़ी. 17 साल की थी जब मांबाप ने रमेश के साथ उस का ब्याह कर दिया था. बहुत खुश थी वह रमेश के साथ. पेशे से पेंटर रमेश इंदौर के राजेंद्रनगर इलाके से कुछ दूर बुद्धनगर के स्लम एरिया में किराए के मकान में रहता था. मकान बहुत अच्छा नहीं, पर रहने लायक जरूर था. दोनों की जिंदगी मजे में कट रही थी.

समय के साथ कजरी 3 प्यारे बच्चों की मां बनी. सब से बड़ी सुमि, उस से छोटी रीना और सब से छोटा कमल. बच्चों के जन्म के बाद कजरी का भरा बदन और भी सुंदर लगने लगा था. शादी के 12 साल बीत जाने पर भी रमेश उसे जीजान से चाहता था. आसपड़ोस के लोग उन दोनों के प्यारभरे रिश्ते से अनजान नहीं थे. कजरी के घर के पास ही एक बढ़ई परिवार रहता था. इस परिवार की इकलौती लड़की माया रमेश को बहुत पसंद करती थी, पर रमेश उस पर कभी ध्यान नहीं देता था.

इधर, बच्चों की देखरेख और घर के कामों में व्यस्त कजरी चाहते हुए भी रमेश को ज्यादा वक्त न दे पाती थी जिस वजह से अकसर दोनों में झड़प हो जाया करती थी. वह रमेश को समझाती थी कि बच्चों के आने के बाद उस का काम बढ़ गया है. पर पुरुषवादी सोच का गुलाम रमेश उस की न को अपना अपमान समझने लगा था. धीरेधीरे उन के बीच में दूरियां बढ़ती चली गईं.

अब काम से लौट कर रमेश सीधे जो बाहर निकलता, तो रात 11-12 बजे ही वापस आता. बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त कजरी ने पहले तो इस ओर ध्यान नहीं दिया, और जब ध्यान दिया तब तक बड़ी देर हो चुकी थी.

35 साल का रमेश अब 16 साल की लड़की माया का दीवाना बन चुका था. इस बात का पता लगते ही कजरी ने बहुत बवाल मचाया. रमेश से लड़ीझगड़ी, उस माया के घर जा कर उसे लताड़ा. फिर भी उन दोनों पर कोई असर न होता देख कजरी ने माया के सामने अपना आंचल फैलाते हुए अपने बच्चों के पिता को छोड़ देने के लिए बहुत अनुनयविनय की. पर माया टस से मस न हुई. माया के मातापिता भी उस की इस हरकत के आगे मजबूर थे.

फिर, एक दिन वह दिन भी आया जब काम पर गया रमेश कभी घर नहीं लौटा. इधर, माया भी घर से गायब थी. कजरी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह फूटफूट कर रोई. पर अब हो भी क्या सकता था. भारी मन से उस ने इस सचाई को स्वीकार कर लिया कि अब वह एक परित्यक्ता है, जिसे उस का आदमी हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका है.

पति द्वारा छोड़ी हुई औरत समाज के पुरुषों की बपौती बन जाती है, कुछ ही दिनों में यह बात उस की समझ में आ चुकी थी. यह वह समाज है, जहां पुरुषों द्वारा की गई गलती की सजा भी औरत को ही भुगतनी पड़ती है. घर के बाहर हर दूसरा आदमी उस के शरीर पर अपनी गिद्ध निगाह जमाए बैठा था. पर बच्चों के भरणपोषण के लिए उस का घर से निकलना बेहद जरूरी हो चुका था. ऐसे में रमेश के दोस्त लखन ने उस की बहुत सहायता की. उस ने अपने मालिक के घर पर कजरी को काम दिला दिया.

जल्द ही कजरी ने भी बेशर्मी की चादर ओढ़ कर जीना सीख लिया. लेकिन, अब भी काम पर जाने के बाद बच्चों की देखरेख की समस्या उस के आगे मुंहबाए खड़ी थी, जिस का जिम्मा उस की 11 साल की बेटी ने ले लिया. अपनी पढ़ाई छोड़ कर वह अपने छोटे भाईबहन को संभालने लगी. पापा के घर छोड़ कर चले जाने से वह अचानक ही अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी हो गई थी. कुछ महीनों में कजरी को ऐसा लगने लगा कि जिंदगी फिर पटरी पर आने लगी है.

एक दिन वह काम पर से वापस आ रही थी कि रास्ते में लखन मिल गया. बातोंबातों में उस ने कजरी से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस के एहसानों तले दबी कजरी उसे एकदम से इनकार न कर सकी. उस ने उस से सोचने के लिए कुछ समय मांगा. रातभर वह इसी ऊहापोह में रही कि अपने ही पति द्वारा वह एक बार ठगी जा चुकी है. क्या फिर से उसे किसी पर इतना विश्वास करना चाहिए? परंतु बिना मर्द के घर पर लोगों की चीलकौवे सी पड़ती निगाहों से बचने के लिए आखिरकार उसे यही रास्ता सब से उपयुक्त लगा.

उस के घर में ही लखन ने कुछ पासपड़ोसियों के सामने उसे मंगलसूत्र पहना कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. अब लखन उस के साथ ही आ कर रहने लगा. बच्चों ने भी कुछ समय बाद आखिर उसे अपना लिया.

शादी को 8 महीने हो चुके थे. पुराने जख्म भरने लगे थे कि अचानक एक दिन सुबहसुबह एक औरत उस के दरवाजे पर आ कर उसे भलाबुरा कहने लगी. पहले तो कजरी समझ ही न पाई कि यह चक्कर क्या है. बाद में उसे समझ आया, तो उस पर फिर से एक बार आसमान टूट पड़ा.

वह औरत लखन की पत्नी थी जो रात ही अपने गांव से आई थी, और लखन व उस के संबंध की जानकारी मिलते ही वह उस से लड़ने चली आई थी. कजरी ने इस बारे में लखन से कई सवाल किए, पर उस की खामोशी देख कर वह समझ गई कि समय ने फिर से उस के साथ बहुत ही गंदा मजाक किया है. लखन ने सिर्फ अपनी वासनापूर्ति की खातिर ही उस से संबंध जोड़ा था.

लखन जा चुका था, कजरी अंदर ही अंदर टूट कर फिर बिखर चुकी थी. पर इस बार वह पहले की तरह एक कमजोर औरत नहीं थी, जो अपनी बेबसी का रोना ले कर बैठे. सो, दूसरे दिन से ही उस ने सुमि पर भाईबहनों की जिम्मेदारी छोड़ कर काम पर जाना शुरू कर दिया.

इधर, पड़ोस में रहने वाला 22 साल का दीनू उस की छोटी बेटी रीना पर गलत निगाह रखता था. रीना 9 साल की एक अबोध बालिका थी, जिसे अकसर वह चौकलेट वगैरह का लालच दे कर अपने पास बुलाने की कोशिश करता था. एक दिन सुमि ने चौकलेट खाती रीना के शरीर पर उस के रेंगते हाथों को देख कर मां को तुरंत बताया था. कजरी ने भी इस वाकए को हलके रूप में न ले कर दीनू के मांबाप से जा कर तुरंत इस की शिकायत की थी. उस के बाद दीनू ने सब के सामने उस से माफी मांगी थी.

कुछ दिनों शांत बैठ कर दीनू फिर से वही काम दोहरा रहा था. कजरी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह क्या करे. कैसे बुरी नीयत व बुरी निगाह रखने वाले लोगों से अपनी बच्चियों को बचाए. खुद उस की देह भी तो उस के लिए बड़ी दुखदाई बन चुकी थी. मर्दों की पैनी निगाहें उस के शरीर पर यों फिसलती थीं मानो कपड़ों के अंदर तक झांक लेना चाहती हों.

पति की छोड़ी औरत शायद हर मर्द की जागीर हो जाती है. जिस पर हर कोईर् हाथ साफ करना चाहता है. कजरी के अंदर की औरत बहुत अकेली व लाचार हो गई थी. क्या बिना आदमी के औरत का कोई वजूद नहीं है? आखिर औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है? उस की बेचैनी आंसू बन कर उस के गालोें पर ढुलकने लगी. रात को न जाने कब उस की आंख लगी.

सुबह उठी तो सिर भारी हो रहा था.

आंखें भी जल रही थीं. देररात तक जागने से ऐसा हुआ है, यह  सोच कर कजरी ने उठने की कोशिश की परंतु शरीर ने साथ न दिया.सुमि ने मां को सहारा देने के लिए हाथ बढ़ाया, तो चौंक पड़ी, ‘‘आई, तुझे तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां रे, मुझ से तो उठा भी नहीं जा रहा,’’ कजरी पर बेहोशी छाती जा रही थी. शायद बारिश में भीगने से उसे बुखार ने जकड़ लिया था.

मां की हालत देख कर सुमि घबरा गई. मां को वैसे ही छोड़ कर वह दौड़ कर पड़ोस से विमला काकी को बुला लाई. विमला काकी के पति औटो चलाते थे. जल्दी से कजरी को अपने औटो में बैठा कर वे उसे पास के अस्पताल ले गए.

कजरी की बिगड़ती हालत देख कर डाक्टर ने उसे वहीं ऐडमिट कर ग्लूकोस की बोतल चढ़ाने की सलाह दी. जब तक वह हौस्पिटल में रही, विमला काकी ने उस की पूरी देखभाल की और हौस्पिटल का बिल भी उन्होंने ही भरा.

कजरी घर पर तो आ गई लेकिन कमजोरी के चलते उस से उठतेबैठते नहीं बन रहा था. कुछ पैसे जो उस ने बचा कर रखे थे, वे घर के खानेखर्च में खत्म हो गए. अभी विमला काकी का उधार पूरा बाकी था.

‘‘आई, आज आटा खत्म हो गया है, तेल भी नहीं बचा. खाना कैसे बनाऊं?’’ सुमि ने एक सुबह कुछ झिझकते हुए मां से कहा. काम पर गए उसे एक हफ्ता हो गया था.

‘‘आज कुछ अच्छा लग रहा है. आज जाती हूं काम पर. उधर से आते वक्त सब किराना लेती आऊंगी. तब तक तुम पास वाली दुकान से दूध और ब्रैड ले आना और चाय बना कर उस के साथ टोस्ट खा लेना,’’ अपने पास बचे 50 रुपए का आखिरी नोट सुमि को पकड़ाते हुए वह बोली.

काम पर जा कर उसे बहुत बड़ा झटका लगा. उस की मालकिन ने बगैर बताए इतने दिनों की छुट्टी करने पर उसे काम से हटा कर दूसरी बाई रख ली थी. उस ने लाख मिन्नतें कर उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की कि उस ने जानबूझ कर छुट्टी नहीं मारी. लेकिन उन का कलेजा न पसीजा. उन्होंने उसे दोबारा काम पर रखने से साफ मना कर दिया.

‘‘हमेशा ही चुका देती हूं, भैया. हां, इस बार जरूर कुछ देर हो गई. पर मैं जल्द ही आप के सारे रुपए चुका दूंगी,’’ कजरी ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘माफ करना, मैं ने यहां कोई धर्मखाता नहीं खोल रखा है, जो मुफ्त में ही सब को जलपान कराता जाऊं,’’ बाबूलाल ने उसे दुत्कारते हुए कहा.

‘‘आज मेरा काम छूट गया है, लेकिन मैं विश्वास दिलाती हूं कि जल्द ही कोई काम ढूंढ़ कर आप की पूरी उधारी चुका दूंगी,’’ कह कर कजरी ने बेबसी से अपने हाथ जोड़ दिए.

‘‘काम तो मैं भी तुम्हें दे सकता हूं, अगर तुम चाहो तो. इस से तुम्हारा आज तक का पूरा उधार चुक जाएगा और ऊपर से कुछ कमाई भी हो जाएगी.’’ बाबूलाल की आंखों से टपकती लार देख कर कजरी सहम गई.

जाने कैसे ये भेडि़ए एक औरत की मजबूरी को सूंघ कर अपना दांव गांठते हैं. कजरी ने गहरी सांस छोड़ी और दुकान के बाहर आ गई.

मोड़ तक आतेआते वह कुछ ठिठक कर खड़ी हो गई. घर जा कर बच्चों को क्या खिलाएगी? बच्चों के भूख से कलपते चेहरे उसे साफ दिखाई पड़ रहे थे. मकान का किराया कहां से आएगा? विमला काकी का पूरा उधार अभी बाकी है. उफ, कैसे होगा यह सब? कजरी के दिल और दिमाग में एक जंग सी छिड़ गई थी. दिल कहता था…यह गलत है जबकि दिमाग कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक हो चला था, जो हालफिलहाल की स्थिति से कैसे निबटा जाए, यह सोच रहा था. आखिरकार, एक औरत के सतीत्व पर मां की ममता भारी पड़ गई. कजरी के दुकान में दोबारा प्रवेश करते ही बाबूलाल की आंखों में वासनाजनित चमक आ गई.

कुछ देर बाद ही कजरी दोनों हाथों में सामान लिए घर की तरफ तेजी से बढ़ी चली जा रही थी. सामान्यतया रोज खुला रहने वाला दरवाजा आज भीतर से बंद था. अंदर से आती घुटीघुटी सिसकारी की आवाज ने कजरी को तनिक संशय में डाल दिया. किसी अनिष्ट की आशंका से उस का मन कांप गया. जोरजोर से बच्चों को आवाज लगा कर उस ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. पर दरवाजा न खुला.

इतने में सुमि और कमल को बाहर से आता देख कजरी चीख पड़ी, ‘‘रीना कहां है सुमि?’’

‘‘अंदर ही होगी, आई. मैं कुछ देर पहले ही ब्रैड और दूध लेने गई थी और यह कमल मेरे पीछे लग लिया. बहुत समझाया, पर माना ही नहीं.’’

तब तक चिल्लाने की आवाज सुन कर आसपड़ोस से कई लोग निकल कर जमा हो गए. तुरंतफुरत ही दरवाजा तोड़ दिया गया. दरवाजा टूटते ही कजरी अंदर घुसी और कमरे के एक कोने में रीना को बेसुध पड़ा देख बदहवास सी हो गई. तभी भीतर से एक साया निकल कर बाहर की तरफ भागा. हां, वह दीनू ही था, जिस ने रीना के अकेले होने का फायदा आज उठा ही लिया था. यह सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया.

शोरगुल की आवाज से विमला काकी भी आ चुकी थीं. कजरी ने रीना को उठानेहिलाने की बहुत कोशिश की, मगर सब बेकार था. रीना बेजान हो चुकी थी. एक नन्ही कली आज फिर किसी वहशी दरिंदे की बुरी नीयत का शिकार हो चुकी थी. कजरी सामने पड़ी सचाई स्वीकार नहीं कर पा रही थी. अपनी प्यारी गोलू का यह हाल देख कर वह कांप उठी थी. उस की पूरी दुनिया ही जैसे उजड़ गई थी. सुमि लगातार रोए जा रही थी और कमल सहमा हुआ एक तरफ खड़ा हुआ था.

लोगों की आपसी चर्चा चालू थी. कोई पुलिस को बुलाने की बात कर रहा था तो कोई रीना को डाक्टर के पास ले जाने को कह रहा था. कजरी अचानक उठी और पलंग के नीचे से हंसिया निकाल कर बिजली की फुरती से बाहर निकल गई. उधर, दीनू जल्दीजल्दी एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर कर घर से निकलने ही वाला था कि कजरी ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘मुझे माफ कर दो कजरी भाभी, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैं उसे मारना नहीं चाहता था, वह चिल्ला न सके, इसलिए मैं ने उस का मुंह बंद किया. मुझे नहीं…’’ दीनू अपनी सफाई देता रह गया और कजरी ने उस पर हंसिये से प्रहार करना शुरू कर दिया.

‘‘नीच, तू ने मेरी गोलू को क्यों मारा, क्या बिगाड़ा था उस मासूम ने तेरा,’’ कजरी चीखती जा रही थी. तभी पीछे से विमला काकी ने आ कर कुछ लोगों की मदद से उसे रोका.

दीनू घायल हो कर गिर पड़ा था. इलाके की पुलिस ने तुरंत ही दीनू को अस्पताल भेजा. और पूछताछ में लग गई. रीना की मृतदेह एम्बुलेंस में ले जाई जा रही थी. उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम थीं. इतनी देर से मूकदर्शक बनी कजरी ने अचानक अट्टहास करना शुरू कर दिया. भीड़ में से किसी ने कहा, ‘वह पागल हो गई है.’ एक विमला काकी ही ऐसी थीं जिन्हें कजरी में एक परित्यक्त मां की बेबसी और हताशा दिखाई दे रही थी, जो अपना सबकुछ दांव पर लगा कर भी अपनी मासूम बच्ची को नहीं बचा पाई.

दादी : एक परिवार ऐसा भी

किसी ने बड़ी जोर से दरवाजा खटखटाया और पिताजी को पुकारा. हम सब की नींद खुल गई. पिताजी हड़बड़ा कर उठ बैठे. फौरन बत्ती जलाई. घड़ी में सुबह के पौने 4 बजे थे. इस समय कौन होगा? कोई चोर या फिर…?

पिताजी ने दरवाजे के पास जा कर पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘भाई साहब, मैं हूं मंजीत सिंह,’’ बाहर से आवाज आई.

पिताजी को जब पूरी तरह से तसल्ली हो गई, तब उन्होंने दरवाजा खोला.

मंजीत सिंह ने अंदर आते ही कहा, ‘‘माताजी चल बसीं…’’

मां कल रात ही तो पड़ोस वाली दादी की बात कर रही थीं और बता रही थीं कि उन की हालत अच्छी नहीं है, पल दो पल की मेहमान हैं.

हम सब भी अपनेअपने बिस्तर से उठ कर बरामदे में आ गए. पिताजी के पूछने पर मंजीत सिंह को रोना आ गया, ‘‘भाई साहब, रात 12 बजे से ही मां की हालत बहुत खराब थी. पेट में दर्द था. शायद थोड़ी सूजन भी थी.’’

‘‘हां, उन्हें बहुत कष्ट था. चलो, अच्छा ही हुआ इस दर्द से छुटकारा मिल गया,’’ पिताजी बोले.

मां ने उन की बात में जोड़ते हुए कहा, ‘‘कल तो काफी तकलीफ थी, पर लगता नहीं था कि इतनी जल्दी…’’

पिताजी ने मंजीत चाचा को हिम्मत बंधाई. उन से किसी भी चीज की जरूरत के बारे में पूछा और बाहर तक छोड़ने चले गए. मां ने हाथमुंह धोया और मुझ से सफेद दुपट्टा निकालने को कहा.

मैं चाय बनाने रसोई में चली गई और खयालों में खो गई कि मंजीत चाचा की मां, प्रीतम चाची की सास और हरजीत, रानी और अमरजीत की दादी, कहने को तो छोटे बेटे चरणजीत की भी मां, छोटी बहू बलवंत की भी सास और बाबी व टिंकू की भी दादी थीं. लेकिन शायद किसी के मन में कोई शोक न था. किसी के मन में उन के जाने की पीड़ा न थी. आंखों से जो आंसू बह रहे थे, वे तो किसी भी अजनबी, अनजाने, अनचाहे इनसान के लिए निकल सकते हैं.

ये सब सगेसंबंधी तो शायद दादी की मौत का ही इंतजार कर रहे थे. शायद ही क्यों, यह तो पूरी सच बात है. जब से रानी की दादी ठीक से चलनेफिरने लायक नहीं रहीं, तब से ही सब बुढि़या के मरने का इंतजार कर रहे थे.

इस दुनिया में कहने को तो दादी का भरापूरा परिवार था, पर अपना दुखदर्द बांटने वाला, देखभाल करने वाला, हमेशा साथ बने रहने वाला एक ही आदमी था, वे थे दादी के पति. हां, दादाजी. बस, एक वे ही थे, जो दादी का पूरी तरह ध्यान रखते थे. दादी जो कहतीं, वे हाजिर करते.

कई बार मुंह का स्वाद बदलने को दादी खट्टीमिट्ठी गोलियां खा लेतीं, तब बड़े तो क्या बच्चे तक उन्हें चिढ़ाते, ‘अरे बुढि़या को तो देखो, क्या चटोरी हो कर गोलियां खा रही है. क्या जवानी में खानेपीने से मन नहीं भरा, जो बुढ़ापे में गोलियां चूस रही है?’

वे सब सुनती रह जातीं. बहुएं बूढ़े को भी नहीं छोड़ती थीं, ‘बड़ा प्यार हो रहा है, जो मांगती हैं वही ला कर देता है. इस बुढ़ापे में भी शर्म नहीं आती बुढि़या को गोलियां खिलाते हुए.’

जब दादाजी काम करते थे और पैसे ला कर देते थे, तो वे सभी को प्यारे लगते थे. तब तो दादी की भी पूछ थी. लेकिन जब से आंखों की रोशनी कम हो गई थी, काम कम ही मिलता था. धीरेधीरे सब के मन में बदलाव आ गया था. पहले बिना मांगे ही सुबह की चाय मिल जाती थी और अब धूप निकल आने पर भी, दादी के आवाज लगाने पर भी दो घूंट चाय नहीं मिलती थी.

कितनी अजीब बात है यह. क्या आदमी का रिश्ता पैसों तक ही सिमट गया है? क्या आदमी की अपनी कोई कीमत नहीं होती? क्या उस का खुद का कोई वजूद नहीं है या जो वजूद की कीमत है वह बस पैसे की ही है?

अगर यह हाड़मांस का पुतला निकम्मा हो जाता है, तो क्यों सबकुछ उस से दूर चला जाता है? उस के अपने भी क्यों पराए हो जाते हैं? यह बात समझ में नहीं आती.

दादी के साथ भी ऐसा ही हुआ था. नकारा होते ही वे अपने ही बेटों को भार लगने लगी थीं.

जो मकान दादीजी का अपना था, उन्होंने अपनी कमाई से बनवाया था, उस घर में ही अब दादादादी के लिए जगह नहीं थी. वैसे तो वे दोनों बड़े बेटे मंजीत के पास ही रहते थे, लेकिन कभीकभी उन्हें रखने के लिए बड़ी बहू और छोटी बहू में खूब जम कर लड़ाई भी हो जाती थी.

दादी कहलाने को तो घर की मालकिन थीं, लेकिन दो वक्त भी चैन से भरपेट भोजन नहीं मिलता था. एक चपाती, छोटी सी कटोरी में दाल या सब्जी, बस. और मांगने पर चपातियों

की जगह गालियां परोस दी जातीं, ‘कुछ कामधाम है नहीं, बैठीबैठी रोटियां तोड़ती रहती है, बुढि़या मरती भी नहीं. पता नहीं, कब पीछा छूटेगा.’

दादी शायद उन की यह नादानी समझ कर माफ करती रहती थीं. यह सब झेलते हुए भी दादी का मन अपने परिवार में ही बसा हुआ था. बाहर का कोई आ कर घर की किसी चीज को छू तो जाए फिर तो दादी की डांट सुनने ही लायक होती थी. अमरूद के मौसम में जब बच्चे पेड़ पर चढ़ कर अमरूद तोड़ते, तो दादी अपनी बैसाखी बजाबजा कर उन्हें भगाती थीं.

कितना अपनापन था दादी की हर हरकत में. पर, परिवार के सभी सदस्य इस अपनेपन की कोई कीमत नहीं समझते थे. उन्हें तो दादादादी मुसीबत लगते थे. हर समय दुत्कार ही दुत्कार और दुत्कार…

मुझे याद है, जब रानी के दादाजी गांव में अपनी जमीन बेच कर आए थे, तब उन के दिन फिर गए थे. उन की खातिरदारी बढ़ गई थी. समय पर चाय, खाना और प्यार से बोलना. दोनों बहुओं में होड़ लगी थी, दादाजी का मन जीत कर पैसे हड़पने की. लेकिन प्रीतम चाची जीत गई थीं.

मेरी मां ने बताया था कि सारे रुपए रानी के खाते में जमा करा दिए गए थे, यह कह कर कि बूढ़ेबुढि़या के आड़े वक्त में काम आएंगे. रुपए का तमाशा खत्म हुआ कि फिर से उन के वही बुरे दिन लौट आए थे.

मेरी मां उन के घर अफसोस जता कर आई तो कहने लगीं, ‘‘सब ने रोरो कर आंखें सुजा ली हैं. मन में तो उस समय आया कि एकएक से पूछूं, जीतेजी दादी की सेवा न हुई और अब ये आंसू किसलिए…’’

श्मशान ले जाने का समय आया, तो समाज की चिंता ने दोनों परिवारों को आ घेरा. अर्थी पर से पैसे फेंकने के लिए पैसों का इंतजाम किया गया. लोग क्या कहेंगे? 2-2 बेटे हैं, पोते भी हैं, काम अच्छा नहीं किया, तो समाज में नाक कट जाएगी.

वाह रे इनसान, जिंदा आदमी के लिए दो दाने अन्न के भी नहीं, मर गए तो पैसे फेंकते हैं. कितना घिनौना रिवाज है हमारे समाज, हमारे लोगों का. जैसेतैसे अंतिम संस्कार की रस्म पूरी हुई, सब तरफ से पूरी कोशिश की गई थी कि कोई कल को यह न कह दे कि 2-2 बेटों के रहते कुछ कमी रह गई थी.

जिस दादी की सेवा करने के लिए उन के पास जरा सा समय न होता था, मरने के बाद उस के लिए अफसोस जताने आए लोगों के साथ पूरा दिन बैठना पड़ता था.

लोगों ने आज को आधुनिक युग, नाम गलत दे दिया है. यह तो पत्थर युग है, पत्थर के दिल, जिन पर किसी के दर्द, आह का कोई असर नहीं होता.

13वें दिन अंतिम क्रिया की गई. पूरी बिरादरी और जानपहचान के लोगों को खाना खिलाया गया. दादी को भूखा मार दिया, लेकिन बिरादरी में नाक रखने के लिए खाना खिलाया.

क्या खाना था… मटरपनीर, चना, उड़द की दाल और चावल. बच्चों के लिए तो कोई त्योहार ही हो गया था. बड़े भी भूल चुके थे कि किसी की मृत्यु पर यह भोज दिया जा रहा है. किसी को याद तक न रहा था कि दादी ने हमारे बीच में अंतिम सांस छोड़ी थी. उन की आंखें पानी से भरी थीं, जिन में शायद अभी तक दादी नहीं रहीं.

पर दादाजी चुपचाप उस कमरे में चारपाई के साथ लगे बैठे थे, जहां दादी की धुंधली सी तसवीर बसी हुई थी, जिसे वे लोगों की उस भीड़ में खोज रहे थे, जो दादी की अंतिम क्रिया में शामिल हो कर मुंह का स्वाद बढ़ा रहे थे.

दोहराव : क्यों बेचैन था कुसुम का मन

शाम का धुंधलका सूर्य की कम होती लालिमा को अपने अंक में समेटने का प्रयास कर रहा था. घाट की सीढि़यों पर कुछ देर बैठ अस्त हो रहे सूर्य के सौंदर्य को निहार कर कुसुम खड़ी हुईं और अपने घर की ओर चलने लगीं. आज उन के कदम स्वयं गति पकड़ रहे थे…जब फूलती सांसें साथ देने से इनकार करतीं तो वह कुछ पल को संभलतीं मगर व्याकुल मन कदमों में फिर गति भर देता. बात ही कुछ ऐसी थी. कल सुबह की टे्रन से वह अपनी इकलौती बेटी नेहा के घर जा रही थीं. वह भी पूरे 2 साल बाद.

यद्यपि नेहा के विवाह को 2 साल से ऊपर हो चले थे मगर कुसुम को लगता था जैसे कल की बात हो. कुसुम के पति नेहा के जन्म के कुछ सालों के बाद ही चल बसे थे. उन के निधन के बाद कुसुम नन्ही नेहा को गोद में ले कर प्राकृतिक छटा से भरपूर उत्तराखंड के एक छोटे से कसबे में आ गईं. इस जगह ने कुसुम को वह सबकुछ दिया जो वह खो चुकी थीं. मानप्रतिष्ठा, नौकरी, घर और नेहा की परवरिश में हरसंभव सहायता.

कुसुम ने भी इन एहसानों को उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने छोटा सा स्कूल खोला, जो धीरेधीरे कालिज के स्तर तक पहुंच गया. उन्हीं की वजह से कसबे में सर्वशिक्षा अभियान को सफलता मिली.

कुसुम के पड़ोसी घनश्यामजी जब भी नेहा को देखते कुसुम से यही कहते, ‘बहनजी, इस प्यारी सी बच्ची को तो मैं अपने परिवार में ही लाऊंगा,’ और समय आने पर उन्होंने अपनी बात रखते हुए अपने भतीजे अनुज के लिए नेहा का हाथ मांग लिया.

अनुज एक संस्कारी और होनहार लड़का था. वह उत्तर प्रदेश सरकार के बिजली विभाग में इंजीनियर था. कुसुम ने नेहा को विवाह में देने के लिए कुछ रुपए जोड़ कर रखे थे, मगर अनुज ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि मुझे आप के आशीर्वाद के सिवा और कुछ नहीं चाहिए. मेरी पत्नी को मेरी कमाई से ही गृहस्थी चलानी होगी, अपने मायके से लाई हुई चीजों से नहीं. और उस की इस बात को सुन कर पल भर के लिए कुसुम अतीत में खो गई थीं.

उन के अपने विवाह के समय उन के पति ने भी ऐसा ही कुछ कह कर दहेज लेने से साफ मना कर दिया था. अपने दामाद में अपने दिवंगत पति के आदर्श देख कर कुसुम अभिभूत हो उठी थीं.

नेहा के विवाह के 2 महीने बाद कुसुम को कालिज के किसी काम से दिल्ली जाना था. लौटते हुए वह कुछ समय के लिए मेरठ में बेटीदामाद के घर रुकी थीं. बड़ा आत्मिक सुख मिला था कुसुम को नेहा का सुखी घरसंसार देख कर. हालांकि देखने में उन का घर किसी भी दृष्टि से सरकारी इंजीनियर का घर नहीं लग रहा था, फर्नीचर के नाम पर कुल 4 बेंत की कुरसियां थीं, 1 मेज और पुराना दीवान था. सामने स्टूल पर रखा छोटा ब्लैक एंड वाइट टीवी रखा था जो शायद अनुज के होस्टल के दिनों का साथी था. उन का घर महंगे इलेक्ट्रोनिक उपकरणों और फर्नीचर  से सजाधजा नहीं था मगर उन के प्रेम की जिस भीनीभीनी सुगंध ने उन के घर को महका रखा था उसे कुसुम ने भी महसूस किया था और वह बेटी की तरफ से पूरी तरह संतुष्ट हो खुशीखुशी अपने घर लौट आई थीं. आज वह एक बार फिर अपनी बेटी के घर की उसी सुगंध को महसूस करने जा रही थीं.

स्टेशन पर उतरने के बाद कुसुम की बेचैन आंखें बेटीदामाद को खोज रही थीं कि तभी पीछे से नेहा ने उन की आंखों पर हाथ रखरख कर उन्हें चौंका दिया. अनुज तो नहीं आ पाया था मगर नेहा अपनी मां को लेने ठीक समय पर पहुंच गई थी.

कुसुम ने बेटी को देखा तो वह कुछ बदलीबदली सी नजर आई थी, गाढ़े मेकअप की परत चढ़ा चेहरा, कीमती परिधान, हाथों और गले में रत्नजडि़त आभूषण. इन 2 सालों में तो जैसे उस का पूरा व्यक्तित्व ही बदल गया था. कुसुम सामान उठाने लगीं तो नेहा ने यह कहते रोक दिया,  ‘‘रहने दो, मम्मी, ड्राइवर उठा लेगा.’’

नेहा, मां को लेने सरकारी जीप में आई थी. जीप में बैठ नेहा मां को बताने लगी, ‘‘मम्मी, अनुज आजकल बड़े व्यस्त रहते हैं इसलिए मेरे साथ नहीं आ सके. हां, आप को लेने के लिए इन्होंने सरकारी जीप भेज दी है…हाल ही में इन का प्रमोशन हुआ है, बड़ी अच्छी जगह पोस्टिंग हुई है…उस जगह पर पोस्टिंग पाने के लिए इंजीनियर तरसते रहते हैं मगर इन को मिली…खूब कमाई वाला एरिया है…’’ इस के आगे के शब्द कुसुम नहीं सुन सकीं. नेहा के बदले व्यक्तित्व से वह पहले ही विचलित थीं. उन के मुंह से निकला, ‘कमाई वाला एरिया.’

नेहा की हर एक हरकत…हर एक बात उस की सोच में आए बदलाव का संकेत दे रही थी. उस की आंखों में बसी सादगी और संतुष्टि की जगह कुसुम को पैसे की चमक और अपने स्टेटस का प्रदर्शन करने की चाह नजर आ रही थी.

घर पहुंच कर कुसुम ने पाया कि घर भी नेहा की तरह उन के बढ़े हुए स्टेटस का खुल कर प्रदर्शन कर रहा है. आधुनिक साजसज्जा से युक्त घर में ऐशोआराम की हर एक चीज मौजूद थी.

‘‘लगता है, अनुज ने इन 2 सालों में काफी तरक्की कर ली है,’’ कुसुम ने चारों ओर दृष्टि घुमाते हुए पूछा.

‘‘अनुज ने कहां की है मम्मी, मैं ने जबरन इन के पीछे पड़ कर करवाई है… जब मैं ने देखा कि कभी इन के नीचे काम करने वाले कहां के कहां पहुंच गए और यह वहीं अटके पड़े हैं तो मुझ से रहा न गया…वैसे इन का बस चलता तो अभी तक हम उसी कबूतरखाने में पड़े रहते…’’

कुसुमजी समझ गईं कि उन की बेटी, शहर आ कर काफी सयानी हो गई है और पैसे बनाने की अंधी दौड़ में शामिल हो चुकी है. इस बात को ले कर वह गहन चिंता में डूब गईं.

‘‘अरे, मम्मी, आप अभी तक यों ही बैठी हैं, जल्दी से हाथमुंह धो कर फे्रश हो जाइए…खाना तैयार है…आप थकी होंगी, सो जल्दी खा कर सो जाइए…कल आराम से बातें करेंगे.’’

‘‘अनुज को आने दे…साथ ही डिनर करेंगे…वैसे बहुत देर हो गई है, कब तक आता है?’’

‘‘उन का तो कुछ भरोसा नहीं है, मम्मी, जब से प्रमोशन हुआ है अकसर देर से ही आते हैं…मैं तो समय पर खाना खा कर सो जाती हूं, क्योंकि ज्यादा देर से सोने से मेरी नींद उचट जाती है. वह जब आते हैं तो उन्हें नौकर खिला देता है.’’

‘‘मैं अनुज के साथ ही खाऊंगी, वैसे भी मुझे अभी भूख नहीं है, तुम चाहो तो खा कर सो जाओ…’’ कुसुम ने जवाब दिया.

थोड़ी ही देर में अनुज घर आया और आते ही कुसुम के चरण स्पर्श कर अभिवादन करते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें, मम्मीजी, कुछ जरूरी काम आ गया था सो आप को लेने स्टेशन नहीं पहुंच सका.’’

‘‘कोई बात नहीं, बेटा,’’ कुसुमजी बोलीं, ‘‘मगर यह तुम्हें क्या हो गया है… तुम्हारी तो सूरत ही बदल गई है…माना काम जरूरी है पर अपना ध्यान भी तो रखना चाहिए…’’

सचमुच इस अनुज की सूरत 2 साल पहले वाले अनुज से बिलकुल मेल नहीं खाती थी…निस्तेज आंखें, बुझा चेहरा, झुके कंधे, निष्प्राण सा शरीर…उस का पूरा व्यक्तित्व ही बदल गया था.

‘‘बस, मम्मीजी, क्या कहूं…काम कुछ ज्यादा ही रहता है,’’ इतना कह कर वह नजरें झुकाए अपने कमरे में चला गया और वहां जा कर नेहा को आवाज लगाई, ‘‘नेहा, ये 20 हजार रुपए अलमारी में रख दो, ये घर पर ही रहेेंगे…बैंक में जमा मत कराना.’’

अनुज के कमरे से आ रही पतिपत्नी की धीमी आवाज ने कुसुम पर वज्रपात कर दिया. 20 हजार रुपए, वह भी महीने के आखिर में…कहीं ये रिश्वत की कमाई तो नहीं…नेहा कह भी रही थी कि खूब कमाई वाले एरिया में पोस्टिंग हुई है…तो इस का अर्थ है कि इन दोनों को पैसे की भूख ने इतना अंधा बना दिया है कि इन्होंने अपने संस्कार, नैतिकता और ईमानदारी को ताक पर रख दिया. नहीं…मैं ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगी…कुछ भी हो इन्हें सही राह पर लाना ही होगा. मन में यह दृढ़ निश्चय कर वह सोने चली गईं.

आज रविवार था. अनुज घर पर ही था. उस के व्यवहार से कुसुमजी को लग रहा था जैसे वह घरपरिवार की तरफ से उदासीन हो कर अपने में ही खोया…गुमसुम सा…भीतर ही भीतर घुट रहा है…घर की हवा बता रही थी कि उन दोनों का प्यार मात्र औपचारिकताओं पर आ कर सिमट गया है, मगर नेहा इस माहौल में भी बेहद सुखी और संतुष्ट नजर आ रही थी और यही बात कुसुम को बुरी तरह कचोट रही थी.

‘‘मम्मी, आज इन की छुट्टी है. चलो, कहीं बाहर घूम कर आते हैं और आज लंच भी फाइव स्टार होटल में करेंगे,’’ नेहा ने चहकते हुए प्रस्ताव रखा.

‘‘नहीं…आज हम तीनों कहीं नहीं जाएंगे बल्कि घर पर ही रह कर ढेर सारी बात करेंगे…और हां, आज खाना मैं बनाऊंगी,’’ कुसुमजी ने नेहा के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए कहा.

‘‘वाह, मम्मीजी, मजा आ जाएगा, नौकरों के हाथ का खाना खाखा कर तो मेरी भूख ही मर गई,’’ अनुज ने नेहा पर कटाक्ष किया.

‘‘हां…हां, जब घर में नौकरचाकर हैं तो मैं क्यों रसोई का धुआं खाऊं,’’ नेहा ने प्रतिवाद किया.

‘‘तुम्हें मसालेदार छोले और भरवां भिंडी बहुत पसंद हैं न…वही बनाऊंगी,’’ कुसुमजी ने बात संभाली.

‘‘अरे, मम्मीजी, आप को मेरी पसंद अभी तक याद है…नेहा तो शायद भूल ही गई,’’ अनुज के एक और कटाक्ष से नेहा मुंह बनाते हुए वहां से उठ कर चली गई.

‘‘चलो, बाहर लौन में बैठ कर कुछ देर धूप सेंकी जाए. मुझे तुम दोनों से कुछ जरूरी बातें भी करनी हैं,’’ लंच से निबट कर कुसुम ने सुझाव रखा.

बाहर आ कर बैठते ही कुसुम की भावमुद्रा बेहद गंभीर हो गई. उन की नजरें शून्य में ऐसे ठहर गईं जैसे अतीत के कुछ खोए हुए लमहे तलाश कर रही हों. कुछ देर खुद को संयत कर उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘‘आज मैं तुम दोनों के साथ अपनी कुछ ऐसी बातें शेयर करना चाहती हूं जिन का जानना तुम्हारे लिए बेहद जरूरी है. बात उन दिनों की है जब मैं नेहा के पापा से पहली बार मिली थी. वह भी अनुज की तरह ही सरकारी विभाग में इंजीनियर थे. बेहद ईमानदार और उसूलों के पक्के. वह ऐसे महकमे में थे जहां रिश्वत का लेनदेन एक आम बात थी मगर वह उस कीचड़ में भी कमल की तरह निर्मल थे. हम ने एकदूसरे को पसंद किया और शादी कर ली. उन की जिद के चलते हमारी शादी भी बड़ी सादगी से और बिना किसी दानदहेज के हुई थी. पहले उन की पोस्टिंग उत्तरकाशी में थी.

‘‘साल भर बाद उन का तबादला गाजियाबाद हो गया. वह एक औद्योगिक शहर है, जो ऊपरी कमाई की दृष्टि से बहुत अच्छा था. वहां हमें विभाग की सरकारी कालोनी में घर मिल गया. उन्होंने मुझे शुरू  से ही हिदायत दी थी कि मैं वहां सरकारी कालोनी में रह रहे बाकी इंजीनियरों की बीवियों और उन के रहनसहन की खुद से तुलना न करूं क्योंकि उन का उच्च स्तरीय जीवन उन के काले धन के कारण है, जो हमारे पास कभी नहीं होगा.

‘‘धीरेधीरे मेरा पासपड़ोस में मेलजोल बढ़ने लगा और न चाहते हुए भी मैं उन के ठाटबाट से प्रभावित होने लगी. मेरे मन में भी उन सब की देखादेखी ऐशोआराम से रहने की इच्छा जागने लगी. मुझे लगने लगा कि यह लेनदेन तो जगत व्यवहार का हिस्सा है, जब इस दुनिया में हर कोई पैसे बटोर कर अपना और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर रहा है तो हम ही क्यों पीछे रहें…

‘‘बस, मैं ने अपनी सहेलियों के बहकावे में आ कर उन पर दबाव डालना शुरू कर दिया मगर उन्होंने अपने आदर्शों के साथ समझौता करना नहीं स्वीकारा. मैं उन्हें ताने देती, उन के सहकर्मियों की तरक्की का हवाला देती, यहां तक कि मैं ने उन्हें एक असफल पति भी करार दिया, मगर वह नहीं झुके.

‘‘इन्हीं उलझनों के बीच मैं गर्भवती हुई तो वह तमाम मतभेदों को भूल कर बेहद खुश थे. मैं ने उन से स्पष्ट कह दिया कि मैं इस हीनता भरे दमघोंटू माहौल में किसी बच्चे को जन्म नहीं दूंगी. हमारे घर संतान तभी होगी जब तुम अपने खोखले आदर्शों का चोगा उतार कर बाकी लोगों की तरह ही घर में हमारे और बच्चे के लिए तमाम सुखसुविधाओं को जुटाने का वचन दोगे. मुझे गर्भपात कराने पर उतारू देख तुम्हारे पिता टूट गए और धीरेधीरे धन पानी की तरह बरसने लगा…घर सुखसुविधाओं की चीजों से भरता चला गया.

‘‘मैं ने जो चाहा सो पा लिया, मगर तुम्हारे पिता का प्यार खो दिया. उस समय मेरी आंखों पर माया का ऐसा परदा पड़ा था कि मुझे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ा कि वह किसी मशीन की भांति काम करते जा रहे थे और मैं अपने ऊंचे स्टेटस के मद में पागल थी.

‘‘फिर तुम्हारा जन्म हुआ, तुम्हारे आने के बाद तुम्हारे भविष्य के लिए धन जमा करने की तृष्णा भी बढ़ गई. सबकुछ मेरी इच्छानुसार ही चल रहा था कि एक दिन अचानक…’’

कुसुमजी की वाणी कुछ पल के लिए थम गई और उन की आंखें नम हो गईं….

‘‘एक दिन क्या हुआ, मम्मी?’’ नेहा ने विस्मित स्वर से पूछा.

‘‘…आफिस से खबर आई कि तुम्हारे पिता को भ्रष्टाचार विरोधी दस्ते ने धर दबोचा. अखबार में नाम आया…खूब फजीहत हुई और फिर मुकदमे के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया…जेल जाते हुए उन्होंने मुझ को जिस हिकारत की नजर से देखा था वह मैं कभी भूल नहीं सकती…वह चुप थे, मगर उन की चमकती संतुष्ट नजरें जैसे कह रही थीं कि वह मुझे यों असहाय, भयभीत और अपमानित देख कर बेहद खुश थे.

‘‘बाद में पता चला कि उन्होंने अपनी इच्छा से ही खुद को गिरफ्तार करवाया था और अपना सब कच्चा चिट्ठा अदालत में खोल कर रख दिया था…मुझे दंडित करने का यही तरीका चुना था उन्होंने…जेल में वह कभी मुझ से नहीं मिले और एक दिन पता चला कि वहां उन का देहांत हो गया है…’’

इतना बता कर कुसुमजी फूटफूट कर रो पड़ीं…बरसों से बह रहे पश्चाताप के आंसू अभी भी सूखे नहीं थे…

‘‘मम्मी, इतनी तीक्ष्ण पीड़ा आप ने इतने साल कैसे छिपा कर रखी…मुझे तो कभी आभास भी नहीं होने दिया.’’

‘‘मन में अपार ग्लानि थी. बस, यही साध थी मन में कि बाकी जीवन उन के आदर्शों पर चल कर ही बिताऊं और तुम्हें भी तुम्हारे पिता के संस्कार दूं. मैं अब बूढ़ी हो चली हूं, पता नहीं कितने दिनों की मेहमान हूं…और कुछ तो नहीं है मेरे पास, बस यह आपबीती तुम दोनों को धरोहर के रूप में दे रही हूं…

‘‘वैसे, मैं ने देखा है कि  जो रिश्वत लेते हैं वे शराबीकबाबी हो जाते हैं और रातरात भर गायब रहते हैं. उन पर काम का भरोसा नहीं किया जा सकता है. और उन्हें छोटेमोटे प्रमोशन ही मिल पाते हैं. बेटी, इंजीनियरिंग ऐसा काम नहीं कि दोचार घंटे गए और हो गया. घंटों किताबों में मगजमारी करनी होती है और जिस को रिश्वत मिलती है, वह किताबों में नहीं पार्टियों में समय बिताता है, हो सकता है तुम्हें ये बातें बुरी लग जाएं पर मेरा अनुभव है. तुम्हारे पिता के जाने के बाद मैं यही तो देखती रही कि मैं गलत थी या तुम्हारे पिता,’’ कुसुम ने बात खत्म करते हुए कहा.

‘‘जरूर काम आएंगी मम्मी,… तुम्हारी यह धरोहर अब कभी मेरे कदम लड़खड़ाने नहीं देगी,’’ नेहा अपनी मां से लिपट गई. उस की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे जिन के साथ उस के भीतर छिपी न जाने कितनी तृष्णाएं भी बही जा रही थीं.

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