कजरी का हृदय चीत्कार कर रहा था, समाज की उस सोच पर जहां औरत सिर्फ एक भोग्या है. बहुत कोशिश की उस ने सब समेटने की, लेकिन मजबूरी हर तरफ से उसे नोचने को तैयार बैठी थी.