प्यार का पहला खत: सौम्या के दिल में उतरा आशीष

मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधरउधर देखे जा रही थी क्योंकि वह मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था या यों कहें वह कहीं छिप गया या वहां से दूर भाग चुका था. शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने उस से किताब ले ली थी. सच कहूं तो वह काफी समय से मुझे इंप्रैस करने में लगा हुआ था. हालांकि कभी कुछ कहा नहीं था और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस सब्जैक्ट की किताब की जरूरत है तो न जाने कहां से फौरन उस किताब को अरेंज कर के मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था.

मैं ने उस समय तो वह किताब पकड़ ली थी लेकिन अब उस के छिप जाने या गायब हो जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बैंच पर बैठ गई. वहां पर कुछ लोग जौगिंग कर रहे थे और वे मेरे आसपास ही घूम रहे थे. मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देख कर वे सब मेरे और करीब आ रहे हैं. खैर, हर तरफ से मन हटा कर मैं ने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफेद प्लेन पेपर मेरे हाथों के पास आ कर गिर पड़ा. न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इस में. फिर भी झुक कर उसे उठाया और खोल कर चैक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था.

मैं खुद को ही गलत कहने लगी. वह तो एक समझदार लड़का है और मेरी हैल्प करना चाहता है, बस. मैं ने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफेद प्लेन पन्ना सरक कर गिर पड़ा. इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी. पार्क में मौजूद आधे लोग पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे और बचेखुचे लोग भी अपनी सेहत पर ध्यान देने के बजाय मेरी ओर निहार रहे थे.

‘‘क्या हुआ सौम्या?’’ अचानक से आशीष दौड़ कर मेरे पास आ गया. वह मेरे चीखने की आवाज सुन कर काफी घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘कुछ नहीं, बस इस घास के कीड़े से डर गई थी. यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था,’’ उस ने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा.

‘‘तुम बहुत डरती हो सौम्या. इस नन्हे से कीड़े से ही डर गईं. देखो, वह तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया,’’ आशीष मुसकराते हुए बोला.

सौम्या भी थोड़ा झेंपते हुए मुसकरा दी.

‘‘तुम अभी तक कहां थे आशीष? मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचानक कहां से आ गए?’’

‘‘अरे पागल, मैं तो यहीं पर था, जौगिंग कर रहा था.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम यहां रोज आते हो?’’

‘‘हां और क्या. तुम्हें क्या लगा आज तुम्हारी वजह से पहली बार आया हूं?’’

‘‘नहींनहीं. ऐसा नहीं है, मैं ने यों ही पूछा.’’

‘‘चलो, अब मैं घर आ जा रहा हूं. तुम आराम से इस किताब को पढ़ कर वापस कर देना,’’ आशीष बिना कुछ कहे व रुके वहां से चला गया.

‘कितना बुरा है आशीष, बताओ उस ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि तुम साथ चल रही हो?’ उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किताब दे कर उस पर कोई एहसान कर के गया है.

मैं उदास होे घर की तरफ वापस चल पड़ी. मन में उस के लिए न जाने क्याक्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला.

घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा. कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा?

ओह, यह आज मेरे मन को क्या हो गया है. उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं. अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी. थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा.

वह मां के पास आ कर बैठ गई.

‘‘तुम आ गई सौम्या बेटा?’’

‘‘हां मा.’’

‘‘बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कौपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है. वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई.

लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की. उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं. शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं.

सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए.

आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. येलो कलर की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब उसे ही देख रहे थे. उसे लगा आज तो पक्का आशीष उस से बात करेगा. लेकिन पूरी पार्टी निकल गई पर आशीष ने एक बार भी उस की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा. अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था.

गुस्से और रोने के समय अकसर सौम्या के चेहरे पर लालिमा आ जाती है जो उस की सुंदरता में इजाफा कर देती है. वह यों ही कालेज गेट से बाहर निकल कर आ गई. अचानक से लगा कि कोई उस के पीछे आ रहा है. कौन हो सकता है, मन में थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा.

वह एकदम से सौम्या के सामने आ गया.

‘‘ओह आशीष तुम, मैं तो एकदम घबरा ही गई थी,’’ उस का दिल वाकई में घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था.

वह कुछ नहीं बोला, फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘यह सर ने आप के लिए भिजवाया है.’’

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘आप की ड्रैस के लिए शायद बैस्ट कौंप्लिमैंट्स हैं.’’

उस के चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वह सच ही कह रहा है, क्योंकि उस के चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिस से लगे कि वह मजाक कर रहा है. उस वक्त अचानक से उस के मन में यह खयाल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो.

‘‘सौम्या, अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं? आज मैं अपने पापा की कार ले कर आया हूं,’’ आशीष ने उसे जाते देख कर कहा.

उस ने बिना देर किए फौरन सिर हिला दिया था क्योंकि वह आशीष के साथ थोड़ी सी देर का साथ भी गंवाना नहीं चाहती थी. ड्राइविंग सीट पर बैठे आशीष के चेहरे को सौम्या बराबर पढ़ती रही पर उस पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिस से अनुमान भी लगाया जा सके कि उस के दिल में कोई कोमल भावना भी है.

सौम्या का घर आ गया था और वह उतर गई. उस ने आशीष से कहा, ‘‘आशीष घर के अंदर नहीं आओगे?’’

‘‘नहीं, आज नहीं फिर कभी. आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है.’’

‘ओह, कितना खड़ूस है यह, इस की नजर में उस की कोई वैल्यू ही नहीं. मैं ही पागल हूं, जो इस से एकतरफा प्यार कर रही हूं. आज से इस के बारे में सोचना बिलकुल बंद.’ उस ने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था. चाहे कैसे भी हो, मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा.

चलो, अब कभी उस का नाम ले कर उसे याद नहीं करूंगी. मैं मुसकराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गई. आईने के सामने खड़े हो कर खुद को निहारा. मन में उदासी का भाव आया. उस की वजह से ही तो इतना सजसंवर के गई थी. खैर, अब छोड़ो. उस ने हाथ में पकड़े लिफाफे को बैड पर रखा और कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने लगी.

‘चलो, पहले इस लिफाफे को ही खोल कर देख लूं, सर ने न जाने क्या लिखा होगा?’ बेमन से उस को खोला.

उस में से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा. ओह, यह तो आशीष की बदतमीजी है.

आज उसे फोन कर के कह ही देती हूं कि उसे इस तरह का मजाक पसंद नहीं है.

गुस्से में आ कर वह फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गई.

वह निकाल कर पढ़ने के लिए खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई.

मम्मी को भी अभी ही आना था.

‘‘बेटा, जरा मार्केट तक जा रही हूं, कुछ मंगाना तो नहीं है?’’

‘‘नहीं मम्मी, कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘चलो, ठीक है.’’

मम्मी के जाते ही उस ने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया, ‘प्रिय सौम्या, के संबोधन के साथ शुरू हुआ वह पत्र तुम्हारा आशीष के साथ खत्म हुआ. उस के बीच में जो लिखा था वह उसे खुशी से झुमाने के लिए काफी था. वह भी मुझे उतना ही प्यार करता था. वह भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था. वह भी कुछ कहने को तरसता था. वह भी मेरा साथ पाना चाहता था. लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूं. उस के प्यार को अस्वीकृत न कर दूं.

वाकई वह मुझे सच्चा प्यार करता है, तभी तो कभी उस ने मेरे हाथ तक को एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आए थे. वह खुशी से झूम उठी. एक बार खुद को आईने में निहारा और अब वह खुद पर ही मोहित हो गई और उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘आई लव यू, आशीष.’’

उस की आंखों के सामने आशीष का मुसकराता चेहरा था और अब वह शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ कर के जमीन को देखने लगी थी. आखिर, उस के सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गई थी.

यादों के सहारे : प्यार की अनोखी दास्तां

‘‘ तुम ने यह क्या फैसला कर लिया जेबा?’’ कार रोकते हुए प्रेम ने जेबा से पूछा.

‘‘इस के अलावा मैं और कर भी क्या सकती थी. मैं ने कोई गलत फैसला तो नहीं किया न?’’ प्रेम के करीब ही पार्क की नरम घास पर बैठते हुए जेबा ने जवाब दिया.

‘‘देखो जेबा, सवाल गलत और सही का नहीं, तुम्हारी जिंदगी का है.’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं?’’

‘‘हम इस शहर के बाहर चल कर कहीं शादी कर लेंगे.’’

‘‘हम चाहे कहीं भी जाएं, यह जालिम दुनिया वाले तो वहां होंगे ही. वैसे भी मेरे मांबाप चाहे जैसे भी हों, मैं उन के साथ धोखा नहीं कर सकती. मैं तुम्हारी यादों के सहारे जिंदगी गुजार दूंगी. किसी और मर्द से तो शादी कर ही नहीं सकती हूं, क्योंकि यह उस के साथ नाइंसाफी होगी. हां, तुम्हें पूरी इजाजत है, तुम जिस लड़की को पसंद करो, उस से शादी कर लेना.’’

‘‘तुम ने मुझे इतना नीच समझ लिया है जेबा…’’ दुखभरे शब्दों में प्रेम बोला, ‘‘तुम अगर अपने मांबाप के भरोसे को नहीं तोड़ सकती, तो मैं भी तुम्हारी तरह हमेशा कुंआरा ही रहूंगा. लेकिन मेरी एक इल्तिजा है. मुझ से कभी दूर मत होना, हमेशा मिलती रहना.’’

तब तक सूरज डूब चुका था. वे दोनों वहां से उठ गए. हमेशा हंसतीबोलती रहने वाली जेबा भी चुप थी रास्तेभर.

जेबा रहमान सांवले रंग, बड़ीबड़ी आंखों और खूबसूरत देह की धनी थी. वह अपने मांबाप की लाड़ली बेटी थी. उस से बड़ा एक भाई और था. उस के पिता यूनिवर्सिटी के जानेमाने प्रोफैसर थे.

जेबा और प्रेम ने एक ही स्कूल से मैट्रिक किया था. दोनों पढ़ाई में बहुत होशियार थे. मैट्रिक के बाद दोनों अलगअलग कालेजों में भरती हुए थे. जेबा ने आर्ट्स चुना था और प्रेम ने साइंस. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते थे.

बीए के बाद जेबा के मांबाप उस से शादी की जिद करने लगे. जेबा ने प्रेम का नाम लिया तो उन लोगों ने हिंदू लड़के का नाम सुनते ही कयामत खड़ी कर दी और उस की शादी प्रेम से करने से साफ इनकार कर दिया.

मांबाप ने जेबा के लिए उस की सहेली रूबीना के भाई यूसुफ को पसंद किया था, जो डाक्टर था और जेबा को चाहता भी था. लेकिन जेबा ने इस शादी से इनकार कर दिया और अपनी मां से कहा, ‘‘मैं शादी करूंगी तो सिर्फ प्रेम से, वरना जिंदगीभर कुंआरी रहूंगी.’’

उस के मांबाप ने उसे बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस ने एमए में दाखिला ले लिया.

समय बीतता गया. प्रेम इंजीनियर बन चुका था और जेबा लैक्चरर. लेकिन वे अब भी मिलते और एकदूसरे का दुख बांटते रहे.

एक बार जेबा ने प्रेम से कहा था, ‘‘मैं चाहती हूं, मेरा दम तुम्हारी ही बांहों में निकले.’’

तब प्रेम ने भी कहा था, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ अपनी जान दे दूंगा. तुम्हारे बगैर मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

प्रेम का तबादला दूसरे शहर में हो गया. फिर भी वह हर महीने आता और जेबा से मिलता था.

एक बार जब वह आने वाला था. जेबा के किसी रिश्तेदार की शादी थी, जहां वह अपने मांबाप और भाईभाभी के साथ गई थी. जेबा को मालूम था कि आज प्रेम आने वाला है, इसलिए वह सिर्फ दावत में शामिल हो कर तबीयत खराब होने का बहाना बना कर कार से आ रही थी.

जेबा प्रेम के खयालों में खोई हुई थी. कार पूरी रफ्तार से चल रही थी और सामने आते हुए ट्रक से टकरा गई. जेबा के होशोहवास गुम हो गए. वह बेहोश हो चुकी थी.

इधर प्रेम जेबा के घर पर उस का इंतजार कर रहा था. वहां सिर्फ नौकर ही था, तभी फोन की घंटी बज उठी. उस ने लपक कर रिसीवर उठा लिया.

दूसरी तरफ से आवाज आई कि जेबा का कार चलाते हुए एक्सिडैंट हो गया है. वह सदर अस्पताल में भरती

है. उस के सिर और बाएं पैर में बहुत चोट आई है और खून भी बहुत निकल चुका है.

जेबा के पर्स से विजिटिंग कार्ड मिला था. उसी से उस के फोन नंबर का पता चला था, जिस पर बचाने वाले ने फोन किया था. सारी बात नौकर को बता कर प्रेम अस्पताल की ओर लपका.

जेबा अब तक बेहोश थी. डाक्टर ने प्रेम से कहा, ‘‘2 बोतल खून की सख्त जरूरत है. एक बोतल का इंतजाम तो अस्पताल में हो जाएगा, एक बोतल का आप करें. इन का ग्रुप ओ नैगेटिव है.

इस ग्रुप का खून बहुत मुश्किल से मिलता है.’’

‘‘ओ नैगेटिव, मैं भी तो इसी ग्रुप का हूं, आप मेरा खून ले लें डाक्टर, लेकिन जेबा को बचा लें.’’

तब तक जेबा के मांबाप और रिश्तेदार भी आ गए. वे लोग एक अजनबी को खून देते देख हैरान थे. उस का भाई प्रेम की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगा.

प्रेम ने उसे एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन के कोई नाम नहीं होते, लेकिन ये बेनाम रिश्ते और रिश्तों से ज्यादा मजबूत होते हैं. मेरा भी जेबा से ऐसा ही रिश्ता है.’’

तभी जेबा को होश आ गया. उस ने आंखें खोल कर सब को देखा. उस की नजर प्रेम पर कुछ देर टिकी और उस ने आंखें बंद कर लीं.

सुबहशाम अस्पताल आना और जेबा को देखना प्रेम का रोजाना का काम हो गया था. जेबा की हालत में कुछ सुधार हो रहा था, लेकिन उस के पैर को डाक्टरों को काटना पड़ा था.

एक शाम जब प्रेम जेबा को देखने अस्पताल गया, तो अंदर से कुछ बातें करने की आवाजें आ रही थीं. वह दरवाजे पर ही रुक गया. अंदर जेबा और उस की सहेली रूबीना थी.

रूबीना कह रही थी, ‘‘जेबा, तुम कब तक यों ही यादों के सहारे अकेली जिंदगी बिता सकती हो?’’

‘‘नहीं रूबी, तुम नहीं जानतीं कि जिन के पास बीती हुई यादों के सहारे होते हैं, उन्हें किसी और सहारे की जरूरत नहीं होती.’’

‘‘जेबा, मेरी बात मानो, तुम शादी कर लो. यूसुफ अब भी तुम से शादी करने को तैयार है. अब तो तुम अपाहिज भी हो चुकी हो. तुम अकेली कैसे रहोगी?’’

जेबा को एक धक्का सा लगा. उस की सहेली रूबीना आज उसे अपाहिज कह रही है और ऐसी बातें कर रही है, जिन से उसे नफरत है. वह तड़प उठी.

प्रेम अंदर चला आया. उस ने जेबा को चमेली के फूलों का एक गुलदस्ता दिया. वह बैठ कर चूमने लगी. उस ने प्रेम को जी भर कर देखा. अचानक

उस की आंखें पथरा गईं और वह लुढ़कने लगी. प्रेम ने झट से जेबा को सहारा दिया.

जेबा ने थर्राई आवाज में कहा, ‘‘प्रेम मुझे भ… भूल जाना… और ज… जो लड़की… पसंद आए… उस… से शादी… कर लेना.’’

प्रेम की आंखों से आंसू ढलक कर जेबा की मांग पर गिर गए. उस की सूनी मांग पर आज उस के प्रियतम के आंसू चमक रहे थे.

जेबा ने अपने प्रियतम की बांहों में दम तोड़ दिया. उस की और किसी इच्छा को समाज ने पूरा नहीं होने दिया, पर यह इच्छा तो पूरी हो गई.

रूबीना चुपचाप खड़ी सब देख रही थी कि तभी प्रेम की गरदन भी एक ओर लुढ़क गई.

सपना : क्या पूरे हुए विकास के सपने

ट्रेन धीरेधीरे प्लेटफार्म पर पहुंच रही थी. वह एसी कोच में अपने छोटे से सूटकेस के साथ गैलरी में खड़ी ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रही थी. जैसे ही गाड़ी ठहरी, वह झटके से नीचे उतरी.

गोरा रंग, चेहरे पर बिखरी कालीकाली जुल्फें मानो कोई छोटी सी बदली चांद को ढकने की कोशिश कर रही हो.

स्टेशन से बाहर निकली तो सवारियों की तलाश में आटोरिकशा वालों की भीड़ जमा थी. शहर में अनजान सी लग रही अकेली जवान लड़की को देख कर 10-12 आटोरिकशा वालों ने उसे घेर लिया और अपनेअपने लहजे से पूछने लगे, ‘बहनजी, कहां चलोगी…’, ‘मैडम, किधर को जाना है…’

वह खामोशी से खड़ी रही. सिर्फ कहीं न जाने का गरदन हिला कर इशारा करती रही. कुछ ही देर में भीड़ छंट सी गई.

उस ने अपनी सुराहीदार गरदन को इधरउधर घुमा कर देखा. थोड़ी ही दूरी पर एक आटोरिकशा वाला एक किताब ले कर ड्राइवर सीट पर पढ़ता हुआ दिखाई दिया. वह छोटेछोटे कदमों से उस की ओर बढ़ी.

‘‘लोक सेवा आयोग चलोगे…?’’ उस ने पूछा.

‘‘जी… जी… जरूर…’’ उस ड्राइवर ने अपनी किताब बंद करते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या लोगे… मतलब, किराया कितना लगेगा…?’’ उस ने सूटकेस आटोरिकशा में रखते हुए पूछा.

‘‘80 रुपए…’’ उस ने बताया.

वह झट से आटोरिकशा में बैठ गई और बोली, ‘‘जल्दी चलो…’’

आटोरिकशा शहर की भीड़ से बाहर निकला ही था कि ड्राइवर ने पूछा, ‘‘आरएएस का इंटरव्यू देने के लिए आई हैं शायद आप?’’

‘‘जी…’’ उस ने छोटा सा जवाब दिया, फिर अगले ही पल उस ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि मैं इंटरव्यू देने आई हूं?’’

‘‘जी, आप पहले तो लोक सेवा आयोग जा रही हैं. दूसरे, इन दिनों इंटरव्यू चल रहे हैं… और…’’

‘‘और क्या?’’ उस ने पूछा.

वह नौजवान ड्राइवर बोला, ‘‘आप का पहनावा बता रहा है कि आप किसी बड़े पद के लिए ही इंटरव्यू देने आई हैं. काश, आज मैं भी…’’

‘‘काश, आज मैं भी… क्या तुम भी…?’’ उस ने थोड़ा हैरानी से पूछा.

‘‘जी मैडम, मैं ने भी मेन ऐग्जाम दिया था… सिर्फ 2 नंबरों से रह गया,’’ उस ने उदास मन से आटोरिकशा को लोक सेवा आयोग की तरफ घुमाते हुए कहा.

‘‘आप तो बड़े होशियार हो… मैं पहली ही नजर में पहचान गई थी कि आटोरिकशा में किताब ले कर पढ़ने वाला कोई साधारण ड्राइवर नहीं हो सकता… फिर तुम्हारा लहजा भी आम ड्राइवरों जैसा नहीं है…’’ अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकालते हुए उस ने कहा.

आटोरिकशा लोक सेवा आयोग के मेन गेट के सामने खड़ा था.

‘‘यह लीजिए…’’ लड़की ने पैसे देते हुए कहा.

‘‘मैडम, बैस्ट औफ लक,’’ 20 रुपए लौटाते हुए उस ड्राइवर ने कहा.

‘‘थैंक्स… तुम मैडम मत कहो मुझे… मेरा नाम सपना है. और हां… मुझे शाम को वापस स्टेशन छोड़ने के लिए आ सकते हो क्या? आनेजाने का भाड़ा दे दूंगी तुम्हें,’’ सपना ने चेहरे से बालों को हटाते हुए कहा.

‘‘ठीक है सपनाजी, आप को मैं यहीं मिल जाऊंगा. वैसे, लोग मुझे विकास कहते हैं…’’ आटोरिकशा वाले ने जवाब दिया.

‘‘ओके…’’ इतना कह कर सपना चल दी.

शाम को ठीक 5 बजे विकास अपना आटोरिकशा ले कर लोक सेवा आयोग के सामने अपनी अजनबी सवारी को लेने पहुंच गया.

कुछ लड़केलड़कियां बाहर निकल रहे थे. किसी का चेहरा उतरा हुआ था, तो किसी का फूलों की माफिक खिला हुआ था. विकास की निगाहें मेन गेट पर लगी थीं.

‘‘आ गए… तुम,’’ पीछे की तरफ से आवाज आई.

विकास एक झटके से पलटा और बोला, ‘‘आप… मैं तो कब से मेन गेट की तरफ देख रहा था…’’

‘‘अरे, मैं पीछे वाले गेट से निकल आई.’’

‘‘कैसा हुआ आप का इंटरव्यू?’’

‘‘बहुत ही बढि़या. मुझे पूरा भरोसा है कि मेरा सिलैक्शन हो जाएगा…’’ सपना ने आटोरिकशा में बैठते हुए कहा.

सपना ने अपना मोबाइल खोला और बोली, ‘‘अरे, यह क्या हुआ अब…

‘‘क्या हुआ सपनाजी?’’

‘‘जोधपुर वाली मेरी ट्रेन तकरीबन

5 घंटे लेट है…’’

विकास मुसकराते हुए बोला, ‘‘सपनाजी, चिंता मत करो. आप मेरे

घर ठहर जाना. मेरा भी घर जाने का समय हो गया… और फिर रात को मुझे  आटोरिकशा चलाने के लिए स्टेशन ही आना है.’’

‘‘अरे नहीं, आप को बेवजह तकलीफ होगी…’’

‘‘कैसी तकलीफ…? इस बहाने भविष्य के एक प्रशासनिक अधिकारी की सेवा करने का हमें भी मौका मिल जाएगा,’’ विकास ने हंसते हुए कहा.

सपना के पास अब मना करने का कोई ठोस बहाना नहीं रह गया था.

‘‘मां, देखो कौन आया है हमारी झोंपड़ी में…’’ विकास ने सपना को मिलवाते हुए कहा.

बूढ़ी मां ने पहले तो पहचानने की कोशिश की, पर अगले ही पल वह बोली, ‘‘बेटी, मैं ने तुम्हें नहीं पहचाना?’’

‘‘अरे, पहचानोगी भी नहीं… ये सपनाजी हैं…’’ विकास ने सारी कहानी बता दी.

3-4 घंटे में ही सपना विकास के परिवार से घुलमिल गई. विकास गरीब जरूर था, लेकिन होशियार बहुत था.

सपना को स्टेशन ले जाने के लिए विकास घर से बाहर आने लगा, तो सपना ने उस से कहा, ‘‘मुझ से एक

वादा करो…’’

‘‘कैसा वादा?’’ विकास एक पल के लिए ठहर सा गया.

‘‘यही कि तुम फिर से इम्तिहान

की तैयारी करोगे और तुम्हें भी

कामयाब होना है,’’ सपना ने हिम्मत देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मैं पूरी कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,’’ सपना ने हंसते हुए जवाब दिया.

स्टेशन पर सपना को छोड़ने के बाद विकास में भी फिर से तैयारी करने की इच्छा जाग गई. अब वह आईईएस की तैयारियों में जीजान से जुट गया.

तकरीबन एक महीने बाद आरएएस का नतीजा आया. सपना पास ही नहीं हुई थी, बल्कि टौप 10 में आई थी.

‘‘सपनाजी… बधाई…’’ विकास ने फोन मिलाते ही कहा.

‘थैंक्स… यह सब मां की दुआओं और तुम्हारी शुभकामनाओं का नतीजा है,’ सपना ने चहकते हुए कहा.

तकरीबन 2 साल तक उन दोनों के बीच फोन पर बातचीत होती रही. सपना एसडीएम बन चुकी थी. अब विकास की जिंदगी में बहुत बड़ा दिन आया. उस का आईईएस में चयन हो गया.

‘‘हैलो विकास, मैं तुम से एक

चीज मांगूं….’’

‘‘सपना, मुझ गरीब के पास तुम्हारे लायक देने के लिए कुछ नहीं है… और अभी मेरी ट्रेनिंग भी शुरू नहीं हुई है.’’

‘‘क्या एक आईईएस किसी आरएएस लड़की से शादी कर सकता है?’’ सपना ने अजीब सा सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं… अगर दोनों में प्यार हो तो…’’ विकास ने कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’ सपना ने साफसाफ पूछा.

कुछ पलों के लिए विकास चुप रहा.

‘‘बोलो विकास, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करते?’’ सपना ने धीरे से पूछा.

‘‘जी… करता हूं,’’ विकास हकलाते हुए बोला. दरअसल, विकास का दूसरा सपना भी सच हो गया. कभी उस का पहला सपना प्रशासनिक अधिकारी बनना था और दूसरा सपना था सपना को पाना.

एक हंसमुख लड़की : क्या था कजरी के दुख का कारण

उस की उम्र थी, यही कोई 18-19 बरस. बड़ीबड़ी आंखें, घने बाल, सफेद मोतियों की लड़ी से दांत. जब हंसती थी, तो लगता था मानो बिजली चमक गई हो. गलीमहल्ले के मनचलों पर तो उस की हंसी कहर बरसाती थी.

मुझे आज भी याद है, एक बार पड़ोस के चित्तू बाबू का लड़का काफी बीमार हो गया था. उस के परिवार के लोग बहुत परेशान थे, लेकिन कजरी बड़े इतमीनान से हंसते हुए कह रही थी, ‘‘ऐ बाबू, भैया ठीक हो जाएंगे, तुम फिक्र न करो,’’ और फिर ढेरों लतीफे सुनाने लगी. यहां तक कि बीमार लड़का भी कजरी के लतीफे सुनसुन कर हंसने लगा था.

मैं तकरीबन 10 साल बाद उस शहर, उस महल्ले में जा रहा था, जहां कजरी अपने बापू के साथ अकेली रहते हुए भी महल्लेभर के सुखदुख में शरीक होती थी.

एक बार जब मुझे एक कुत्ते ने काट लिया था, तो मैं बहुत परेशान हो गया कि अब तो 14 बड़ीबड़ी सूइयां लगवानी पड़ेंगी, लेकिन कजरी ने हंसतेहंसते कहा, ‘‘पड़ोसी बाबू, काहे को चिंता करते हो, कुत्ते ने ही तो काटा है, किसी सांप ने तो नहीं. सब ठीक हो जाएगा.’’

मैं भी कजरी की बात मान कर टीके लगवाने के पचड़े में पड़ने के बजाय घर में ही मामूली इलाज करवाता रहा. यह कजरी के बोल का फल था या कुछ और. खैर, मैं बहुत जल्दी ठीक हो गया.

वही सांवलीसलोनी कजरी मुझे फिर से मिलने वाली थी, यही सोचसोच कर मैं खुश हुआ जा रहा था, लेकिन मैं इस बात को ले कर परेशान भी था कि कहीं कजरी अपनी ससुराल न चली गई हो. 10 साल का अरसा कम नहीं होता.

अचानक ही एक कुली ने पूछा, ‘‘बाबूजी, सामान ले चलूं?’’

मैं चौंका, लेकिन तभी मुझे भान हुआ कि गाड़ी तो पहले से ही प्लेटफार्म पर आ कर खड़ी हो चुकी है और स्टेशन आ चुका है.

‘‘हांहां, ले चलो. कितने पैसे लोगे?’’ मैं ने पूछा.

‘‘100 रुपए लगेंगे,’’ कुली बोला.

‘‘अच्छा, ठीक है. चलो.’’

स्टेशन से बाहर आ कर मैं ने सोचा कि पहले कुछ नाश्ता कर लिया जाए, लेकिन फिर यह सोच कर कि अब तो कजरी के हाथ का बना नाश्ता ही करूंगा. मैं ने रिकशे वाले को आवाज दी, ‘‘सुमेरपुर चलोगे?’’

‘‘30 रुपए लगेंगे,’’ रिकशे वाले ने कहा और मेरा बैग व अटैची उठा कर रिकशे में रख लिया.

रिकशा चल पड़ा और मैं फिर गुजरे दिनों की दुनिया में खो गया.

एक दिन सुबहसुबह ही कजरी मेरे पास आई थी और हंसते हुए बोली थी, ‘‘पड़ोसी बाबू, आज मेरा दिल डूबा जा रहा है…’’ फिर खुद ही खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘बाबू, मैं तो मजाक कर रही थी.’’

तभी अचानक कजरी के बापू के रोने की आवाज ने हम दोनों को चौंका दिया. दोनों ही लपके. कजरी के बापू के इर्दगिर्द भीड़ जमा थी और बीच में पड़ी थी, कजरी की मां की लाश.

मैं तो दंग रह गया. कजरी न रोई, न ही गुमसुम हुई. उस की मां की लाश को देख कर मैं उदासी में डूबा वापस अपने कमरे में आ गया.

शाम को कजरी मेरे सामने थी, वही हंसता हुआ चेहरा लिए. कह रही थी, ‘‘ऐ बाबू, मां मरी थोड़े ही है, वह तो सो रही है…’’ और फिर हंसते हुए वह बोली, ‘‘बाबू एक दिन तुम्हें भी और हमें भी तो इसी तरह सोना है.’’

फिर वह रुकी नहीं, तुरंत ही चली गई. मैं हैरानी से उसे जाते हुए देखता रहा.

रिकशे वाले को मैं ने रोक कर अपना कमरा खोला, सामान रखा और फिर उसे पैसे दिए. सोचा, इतने सालों के बाद कजरी से मिलने क्या खाली हाथ जाऊंगा. मैं पास की हलवाई की दुकान पर मिठाई लेने पहुंचा. एक किलो लड्डू लिए और पैसे दे कर मैं अपने घर जाने के बजाय सीधा कजरी के ही घर जा पहुंचा.

दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ आदमी ने दरवाजा खोला और बोला, ‘‘कहिए, कहां से आए हैं? किस से मिलना है? आइए, अंदर आइए.’’

मैं भी उस के पीछेपीछे चला गया. वह अंदर जा कर एक तरफ पड़ी चारपाई पर बैठ गया. फिर चारपाई पर बैठते

हुए मैं ने अधेड़ से पूछा, ‘‘भैया, त्रिलोचन बाबू दिखाई नहीं दे रहे… कहीं गए हैं क्या?’’

यह सुनते ही वह आदमी उदास हो गया. फिर धीरे से वह अधेड़ बोला, ‘‘मामा को मरे तो 4 बरस हो गए भैया. आप कौन हो? कहां से आए हो?’’

‘‘और कजरी…?’’ उस के सवाल का जवाब दिए बिना ही मैं ने पूछा.

‘‘कहीं गई होगी, शाम को आ जाएगी,’’ कहते हुए वह उठा और बोला, ‘‘बाबूजी, आप बैठो, मैं चाय बना कर लाता हूं.’’

‘‘अरे नहींनहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है. लो, यह मिठाई रख लो… और हां, कजरी आए तो कह देना कि सामने वाले मकान में रहने वाला बाबू आया है,’’ कहते हुए मैं उठ खड़ा हुआ.

रातभर के सफर की वजह से मेरा बदन भारी हो रहा था. लिहाजा, कमरे में आ कर सब से पहले मैं नहाया और चारपाई पर लेट कर सोचने लगा कि

अब कैसी लगती होगी कजरी? यही सोचतेसोचते मैं सो गया.

शाम के वक्त मुझे ऐसा लगा, मानो कोई कह रहा हो, ‘‘पड़ोसी बाबू, पड़ोसी बाबू… उठो.’’

मैं ने लेटेलेटे ही सोचा कि यह कजरी ही होगी. आंखें खोलीं और देखा तो सचमुच कजरी ही थी. पर उसे देखते ही मैं हैरान रह गया कि क्या यह वही सुंदर लंबे बालों और पतले होंठों वाली कजरी है या कोई और?

वह बोली, ‘‘ऐ पड़ोसी बाबू, का सोचते हो? मैं कजरी ही हूं.’’

‘‘कजरी, आओ… बैठो, मैं तो सोच रहा था कि तुम इतनी दुबलीपतली कैसे हो गई?’’

जवाब में कजरी के होंठों पर फीकी मुसकान देख मैं चुप हो गया.

कुछ देर बाद भी जब वह कुछ न बोली, तो मैं ने कहा, ‘‘कजरी, बापू नहीं रहे, सुन कर बड़ा दुख हुआ. तुम बताओ, आजकल क्या कर रही हो? तुम्हारी शादी हो गई या नहीं?’’

जवाब में वह थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘बाबू, जो इस दुनिया में आया है, उसे तो जाना ही है. बापू चले गए, अब मैं भी चली जाऊंगी.’’

‘‘अरे नहीं पगली, मैं ने यह तो नहीं कहा. खैर, मैं समझता हूं तुम्हें दुख हुआ होगा. अच्छा, यह बताओ कि कहां

गई थीं सुबह से? कहीं काम करती

हो क्या?’’

वह जोर से हंसी. पर, पीले पड़ गए दांतों को देख कर अब मुझे कजरी

की हंसी रास नहीं आई. फिर भी मैं शांत बना रहा.

हंसतेहंसते ही वह बोली, ‘‘बाबू, तुम थक गए होगे. मैं अभी तुम्हारे लिए खाना ले कर आती हूं,’’ और मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बाहर जा चुकी थी.

उस के बाहर जाते ही मैं सोचने लगा कि कजरी कुछ छिपा रही है. उस की हंसी में अब पहले वाली बात नहीं है. तभी मुझे खयाल आया कि जब मैं ने उस से शादी की बात की थी, तो वह टाल

गई थी. अब आएगी तो सब से पहले यही पूछूंगा.

तकरीबन आधे घंटे बाद साड़ी के आंचल में छिपा कर कजरी मेरे लिए खाना ले कर आ गई. खाना पलंग पर रख कर वह नीचे बैठ गई और बोली, ‘‘खाना खाओ बाबूजी.’’

‘‘नहीं कजरी, पहले तू यह बता

कि तेरी शादी कहां हुई है? किस से

हुई है और कब हुई? तभी मैं खाना खाऊंगा…’’

‘‘खा लो न, बाबूजी…,’’ हंसते हुए वह बोली, ‘‘अभी बता दूंगी.’’

कजरी की मोहक अदा देख कर मैं और कुछ न बोल सका.

खाना खाने के बाद मैं चारपाई

पर लेट गया और बोला, ‘‘हां, अब बता.’’

कजरी हंसी और बोली, ‘‘बाबूजी, आप जानना चाहते हो न कि मेरा मर्द कौन है? मेरी ससुराल कहां है?’’

‘‘हां, हां, यही.’’

‘‘बाबूजी, वह जो सामने महल्ला है न… उस महल्ले का हर मर्द मेरा शौहर है, हर घर मेरी ससुराल है. बचपन में

मैं लोगों को खुश रखती थी न,

इसीलिए अब मुझे मर्दों को खुश रखना पड़ता है. ..

‘‘अच्छा बाबूजी, किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बुला लेना,’’ और फिर हंसते हुए वह बाहर निकल गई.

मेरे ऊपर तो मानो आसमान ही टूट पड़ा, होंठ सिल गए, ऐसा लगा कि कोई तूफान आया और मुझे उड़ा ले गया. पर कजरी मेरे कई सवालों का जवाब दिए बिना जा चुकी थी.

सुबह यह खबर सुन कर कि कजरी ने कुएं में कूद कर जान दे दी, मैं मानो जमीन में गड़ गया. सोचने लगा कि अब कभी नहीं सुनाई देगी कजरी की मासूम हंसी, क्योंकि अब वह इस दुनिया से बहुत दूर जा चुकी है.

ब्लैकमेलर: शिखा की सास ने बच्चे की मोह में क्या किया

बैडरूम की दीवार पर मर्फी रेडियो के पोस्टर बौय का फोटो आज भी मिलता है. जितना खूबसूरत बच्चा उतनी ही खूबसूरत अदा से मुसकराते हुए होंठों पर उंगली रखे पोज में रंगीन फोटो. यह फोटो शिखा के बैडरूम में पिछले 4 सालों से लगा था. सास ने कहा था कि सुंदर बच्चे का फोटो देखने से बच्चा भी सुंदर होगा. बच्चे की राह देखतेदेखते पिछले साल उस की सास चल बसीं.

खानापीना खत्म कर शिखा नाइट लाइट की मध्यम रोशनी में मर्फी बौय को देखे जा रही थी. तभी पति अमर ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा, ‘‘मैं ने डाक्टर से अपौइंटमैंट ले ली है. अब हमें चल कर टैस्ट करा लेना चाहिए. देखें डाक्टर क्या कहता है.’’

‘‘हां, पर यह पहले होता तो अम्मांजी की इच्छा पूरी होने की उम्मीद तो जरूर रहती.’’

‘‘आज से पहले डाक्टर ने कभी दोनों को टैस्ट करने के लिए नहीं कहा था… तुम्हारी सहेली जो डाक्टर है, उस ने भी कहा था कि कभीकभी प्रैगनैंसी में देर हो जाती है. वैसे हम ने भी

1 साल तक परहेज बरता था.’’

अमर ने ग्रैजुएशन के बाद एक प्राइवेट कंपनी में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी जौइन कर ली थी. वह स्टेट लैवल बौक्सिंग चैंपियन

था. अच्छीखासी पर्सनैलिटी थी अमर की. औफिस में उस के दोस्त उस से कहते भी थे, ‘‘अरे यार बौक्ंिसग रिंग में तो तुम चैंपियन हो. अब अपनी गृहस्थी जमाओ… कम से कम अपने जैसा बलवान, हृष्टपुष्ट एक फ्यूचर चैंपियन तो पैदा करो.’’

‘‘वह भी हो जाएगा… जल्दी क्या है?’’ अमर कहता.

अब शादी के 5 साल बाद शिखा और अमर दोनों ने डाक्टर से इस विषय पर सलाह लेने की जरूरत महसूस की. डाक्टर ने दोनों के कुछ टैस्ट किए और फिर 2 दिनों के बाद जब वे मिलने गए तो डाक्टर बोला, ‘‘आप की रिपोर्ट्स तैयार हैं. शिखा की रिपोर्ट्स नौर्मल हैं. उन में मां बनने के सभी लक्षण हैं, पर…’’

‘‘पर क्या डाक्टर?’’ शिखा ने बीच में डाक्टर की बात काट कर पूछा.

‘‘आई एम सौरी, बट मुझे कहना ही होगा कि अमर पिता बनने के योग्य नहीं हैं.’’

कुछ पल डाक्टर के कैबिन में सन्नाटा रहा. फिर शिखा ने कहा, ‘‘पर डाक्टर आजकल मैडिकल साइंस इतनी तरक्की कर चुकी है… कोई मैडिसिन या उपाय तो होगा?’’

‘‘हां है क्यों नहीं… आईवीएफ तकनीक

से आप मां बन सकती हैं आजकल यह बहुत

ही आसान हो गया है. किसी सक्षम पुरुष के शुक्राणु का इस्तेमाल कर आप बच्चे को जन्म दे सकती हैं.’’

‘‘डाक्टर, इस के अलावा और कोई उपाय नहीं है?’’

‘‘सौरी, इस के अलावा एक ही उपाय बचता है कि आप किसी बच्चे को गोद ले लें. आप लोग ठीक से विचार कर के बता दें… मैं थोड़ी देर में आता हूं. अगर आप कुछ और समय चाहते हैं, तो आप अपनी सुविधा से अपना फैसला ले सकते हैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने कुछ देर तक डाक्टर के क्लीनिक में बैठेबैठे विचार किया कि अब और देर करने से कोई लाभ नहीं होगा और बच्चा आईवीएफ तकनीक से ही होगा. शिखा ने मन में सोचा कि इस से उसे मातृत्व का अनुभव भी होगा. फिर दोनों ने डाक्टर को अपना फैसला बताया.

डाक्टर बोला, ‘‘वैरी गुड. आप के कुछ और टैस्ट होंगे. मेरे क्लीनिक में कुछ डोनर्स के सैंपल्स हैं. देख कर 1-2 दिन में आप को खबर दूंगा. कोई बड़ा प्रोसैस नहीं है. जल्द ही आप का काम हो जाएगा.’’

1 सप्ताह के अंदर ही शिखा आईवीएफ तकनीक की देन से गर्भवती हुई. डाक्टर ने शिखा को नियमित चैकअप कराते रहने को कहा.

कुछ दिनों के बाद जब अमर ने बड़ी शान से औफिस में दोस्तों से कहा कि वह पिता

बनने वाला है, तो एक दोस्त ने कहा, ‘‘आखिर हमारे चैंपियन ने बाजी मार ली. अब तुम्हें हम लोगों का मुंह मीठा कराना होगा.’’

दोस्तों के कहने पर औफिस की कैंटीन में ही उन्हें मिठाई खिलाई. दोस्तों ने उस से कहा, ‘‘इस छोटीमोटी पार्टी से तुम बचने वाले नहीं हो. हम लोगों को सपरिवार पार्टी देनी होगी.’’

‘‘ठीक है, वह भी होगी.’’

करीब 4 महीने बाद डाक्टर ने शिखा से कहा, ‘‘आप के बच्चे की ग्रोथ बिलकुल ठीक है. अब आप निश्चिंत रहें. आप का बच्चा स्वस्थ और हृष्टपुष्ट होगा.’’

इस खुशी में उस दिन रात अमर ने अपने घर पर दोस्तों को सपरिवार आमंत्रित किया. शिखा भी घर पर पार्टी की तैयारी में लगी थी. उसी समय कौल बैल बजी. उस ने दरवाजा खोला तो एक आदमी बाहर खड़ा था. वह बोला, ‘‘नमस्ते मैडम.’’

‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, पर लगता है पहले कहीं देखा है… अच्छा बोलिए क्या काम है? अभी साहब घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मुझे सिर्फ आप ही से काम है.’’

‘‘मुझ से? मुझ से भला क्या काम हो सकता है आप को?’’

‘‘मैडम, आप के पेट में जो बच्चा है वह मेरा है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो? गैट लौस्ट,’’ बोल कर शिखा दरवाजा बंद करने लगी.

उस आदमी ने हाथ से दरवाजा पकड़ कर कहा, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुनिए वरना बाद में शर्मिंदगी होगी और पछताना पड़ेगा. अमर बहुत शान से पार्टी दे रहा है बाप बनने की खुशी में. मैं पार्टी के बीच में ही आ कर सब को बताऊंगा कि यह बच्चा अमर का नहीं, मेरा है. उस की सारी मर्दानगी की हवा निकाल दूंगा मैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने आईवीएफ की बात छिपा रखी थी और अभी तक सभी से बता रखा था कि यह बच्चा उन का अपना है. वह डर गई और फिर बोली, ‘‘आखिर तुम क्या चाहते हो? हमें परेशान कर के तुम्हें क्या मिलेगा?’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ

क्व2 लाख दे दीजिए. मैं अपनी जबान बंद रखूंगा.’’

‘‘इतनी बड़ी रकम हम लोग तुम्हें नहीं दे सकते हैं.’’

‘‘देखिए, पैसे तो आप को देने ही होंगे, हंस कर या रो कर… आज नहीं तो कल… अब आप बताएं मैं रात में पार्टी में आऊं या नहीं.’’

शिखा कुछ देर सोचने लगी, फिर बोली, ‘‘अभी मेरे पास मुश्किल से क्व2 हजार हैं. उन्हें आप को दे रही हूं.’’

‘‘ठीक है, आप अभी वही दे दीजिए. बाकी आप एकमुश्त देंगी… मुझे डिलिवरी के पहले पूरी रकम मिल जानी चाहिए.’’

शिखा ने उस आदमी को क्व2 हजार देते हुए कहा, ‘‘अभी इन्हें रखो. बाकी के लिए मैं अमर से बात करती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 दिन बाद फिर आऊंगा.’’

उस रात पार्टी के बाद शिखा ने अमर को ब्लैकमेलर वाली बात बताई तो अमर बोला,

‘‘क्व2 लाख हमारे लिए बहुत बड़ी रकम होती है. कहां से लाऊंगा… उस के लिए मुझे कर्ज लेना होगा… पर यह तो ब्लैकमेलिंग हुई… उसे हमारा पता किस ने दिया होगा?’’

‘‘मुझे लगता है उस आदमी को कभी मैं ने डाक्टर के क्लीनिक में देखा है.’’

‘‘डाक्टर ऐसा नहीं कर सकता है, फिर भी एक बार मैं उस से बात करता हूं.’’

दूसरे दिन अमर डाक्टर के पास पहुंचा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘हम लोग ऐसी सूचनाएं गुप्त रखते हैं. इसीलिए हम 3 शपथ पत्र तैयार करते हैं- पहला आईवीएफ के लिए आप दोनों की सहमति का, दूसरा यह कि आप लोग कभी डोनर के बारे में जानकारी नहीं लेंगे और अगर किसी तरह से आप को यह मालूम भी हो जाए तो आप इसे किसी को नहीं बताएंगे और साथ ही आप के बच्चे का डोनर की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘हां, हमें याद है पर, तीसरा शपथपत्र कौन सा है?’’

‘‘तीसरा हम डोनर से लेते हैं कि वह अपना अंश स्वेच्छा से दे रहा है और उसे यह जानने का हक नहीं होगा कि उस का अंश किसे दिया गया. अगर किसी तरह उसे पता चल भी जाए तो वह इसे किसी को नहीं बताएगा और होने वाले बच्चे पर उस का कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘पर शिखा ने कहा है कि उस आदमी को शायद पहले आप के क्लीनिक में देखा है. कहीं आप का ही कोई स्टाफ तो उस से मिला नहीं है?’’

‘‘हम पूरी सावधानी बरतते हैं, पर स्वार्थवश इस के लीक होने की संभावना हो सकती है,’’ डाक्टर बोला.

‘‘हम से गलती सिर्फ इतनी हुई है कि हम ने किसी से इस तकनीक की बात न कह कर इसे अपना बच्चा बताया है,’’ अमर बोला.

‘‘खैर, आप आगे भी यह बता सकते हैं.’’

‘‘नहीं डाक्टर, इट्स टू लेट… वह ब्लैकमेल कर रहा है… लगता है हमें पैसे देने ही होंगे.’’

डाक्टर कुछ देर सोचने के बाद बोला, ‘‘आप उसे एक पैसा भी नहीं देंगे. आप लोग खासकर शिखाजी को थोड़ी होशियारी से काम लेना होगा और जरा साहस भी दिखाना होगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘देखिए 2 रास्ते हैं- या तो अबौर्शन

करवा लें या…’’

‘‘प्लीज डाक्टर अबौर्शन की बात न कीजिए… शिखा टूट जाएगी.’’

‘‘मैं भी यही चाहता हूं… शिखाजी से कहें कि जब वह आदमी पैसों के लिए आए तो बिलकुल न डरें, बल्कि बोल्ड हो कर उसे फेस करें.’’

‘‘वह किस तरह?’’

‘‘अगली बार जब वह आए तो शिखाजी को बोलना होगा कि हां, मुझे अब पता चल गया है कि मेरा रेप तुम ने ही किया था और उसी के चलते मैं प्रैगनैंट हूं. अब मैं पुलिस को सूचित करने जा रही हूं. यह बात उसे धमकाते हुए बोल्डली कहनी होगी.’’

2 दिन बाद वह आदमी बाकी के रुपए लेने आने वाला था. शिखा ने उस दिन अमर को छुट्टी लेने को कहा, क्योंकि उसे डर था कहीं वह आदमी उस पर हमला न कर बैठे.

ठीक 2 दिन बाद ब्लैकमेलर जब पैसे मांगने आया तो शिखा ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मैं ने भी पता किया है, मेरे गर्भ में तुम्हारा ही अंश है… उस दिन जो तुम ने मेरा बलात्कार किया था उसी का नतीजा है यह. बलात्कार के दिन तुम ने नकाब से चेहरा ढक रखा था, मैं पहचान नहीं सकी थी, पर आज तुम स्वयं चल कर मेरे सामने आए हो, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. मैं ने उस दिन रुपए देने से पहले सैल फोन से तुम्हारा फोटो भी खींच रखा है. अब आसानी से पुलिस तुम्हें पकड़ सकती है.’’

पासा पलटते देख वह आदमी गिड़गिड़ाने लगा और बोला, ‘‘मैडम, आप ऐसा न

करें, मैं जेल चला जाऊंगा, मैं भी बालबच्चेदार आदमी हूं.’’

‘‘फिर तुम मेहनत कर क्यों नहीं कमाते हो… चलो मेरे क्व2 हजार वापस करो.’’

वह आदमी अपनी जेब से क्व5 सौ का एक नोट शिखा को देते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी मेरे पास इतने ही हैं… इन्हें रख लो. बाकी मैं जल्द ही लौटा दूंगा.’’

शिखा ने नोट उसे लौटाते हुए कहा, ‘‘इस से अपने बच्चों के लिए खिलौने और मिठाई मेरी तरफ से दे देना. बेहतर होगा कि तुम आगे से इस तरह के गलत काम न करने का वादा करो.’’

नोट वापस ले कर ब्लैकमेलर वहां से तुरंत खिसक लिया.

उस के जाने के बाद शिखा ने पति से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच पुलिस को फोन किया है?’’

‘‘नहीं, एक झूठ रेप का तुम ने कहा और दूसरा झूठ मैं ने कहा… चलो बला टल गई,’’ और फिर दोनों जोर से हंस पड़े.

ठगी का नया तरीका : औलाद की चाहत

नुसरत को जब कोई औलाद नहीं हुई, तो ससुराल वालों ने अपने एकलौते बेटे मसनून का दूसरा निकाह करने का मन बनाया. आपस में सलाह करने के बाद वे काजी मोहसिन के पास राय लेने उन के घर पहुंचे.

काजी मोहसिन के सामने उन्होंने अपनी बात रखी. पूरी बात सुनने के बाद काजी मोहसिन चुप रहे, फिर कुछ सोच कर उन्होंने मसनून के अब्बा खादिम मियां से कहा, ‘‘जनाब ऐसा है कि आजकल कानून बदल गया है. बीवी की रजामंदी और अदालत से मंजूरी ले कर निकाह कराओगे तो कोई कानूनी अड़चन नहीं आएगी, वरना…’’ कह कर वे खामोश हो गए.

‘‘फिर आप इस का कोई दूसरा हल निकालिए…’’ खादिम मियां ने काजी मोहसिन से कहा, ‘‘हमें आप पर पूरा भरोसा है. आप बहुतकुछ जानते हैं. तावीजगंडे हों या मजारों की मन्नत, हम सबकुछ करने को तैयार हैं. पैसा कितना भी लगे, हम खर्च करने को तैयार हैं. हमें खानदान को रोशन करने के लिए एक चिराग चाहिए,’’ खादिम मियां ने बात पूरी की.

‘‘बात तो आप ठीक कह रहे हैं. मु झे एक हफ्ते का वक्त दीजिए, इस के बाद ही मैं आप को कोई मशवरा दे सकता हूं. वैसे, मैं किसी को उलटीसीधी सलाह नहीं देता,’’ काजी मोहसिन ने जवाब दिया.

तकरीबन एक हफ्ता गुजर जाने के बाद एक दिन काजी मोहसिन खादिम मियां की दुकान के सामने से गुजर रहे थे, तभी खादिम मियां ने आवाज दे कर उन्हें बुलाया.

सलामदुआ के बाद खादिम मियां ने पूछा, ‘‘मेरी बात का क्या हुआ जनाब?’’

‘‘जी, मैं भी चाह रहा था कि इस बारे में आप से खुल कर बात करूं, पर मसरूफियत की वजह से समय ही नहीं मिला. मैं रात को खाना खा कर आप के पास आता हूं.

‘‘ठीक रहेगा न? वहीं बैठ कर इतमीनान से बात करेंगे,’’ काजी मोहसिन ने खादिम मियां से कहा.

‘‘आप ऐसा करें कि रात का खाना मेरे घर पर ही खाएं. आप अकेले जो ठहरे…’’ खादिम मियां बोले.

‘‘जी,’’ कह कर काजी साहब दुकान से उठ कर मदरसे चले गए.

मदरसे से लौट कर काजी मोहसिन ने अपने एक दोस्त काजी बाबुल को फोन लगा कर कहा, ‘‘बाबुल मियां, यहां के एक कबाड़ी परिवार से मेरी बात हुई है. उन की बहू को औलाद नहीं हो रही है. पैसे वाले लोग हैं. अगर हम चाहें तो सोनाचांदी और नकदी हड़प सकते हैं. वे गंडेतावीज, मजारों पर भरोसा करते हैं. अच्छा माल बन सकता है. हमारी सारी गरीबी दूर हो सकती है.’’

‘ठीक है, मैं अभी आप के पास आ रहा हूं. तुम तैयार रहना,’ काजी बाबुल ने कहा.

थोड़ी देर बाद ही काजी बाबुल काजी मोहसिन के घर पहुंच गया. दोनों के बीच खादिम मियां के बारे में खुल कर बात हुई.

शाम की नमाज से फारिग हो कर वे खादिम मियां के घर जा पहुंचे. उन के बीच बातचीत हुई और फिर फैसला लिया गया कि इसी हफ्ते इस काम पर अमल करना है.

काजी बाबुल ने खादिम मियां से कहा, ‘‘अगर आप को औलाद चाहिए, तो हमारी हर बात माननी पड़ेगी. जैसा हम कहेंगे, वैसा करना होगा.’’

खादिम मियां ने सिर हिला कर इस की मंजूरी दे दी.

‘‘आप हरे रंग के कपड़े की 4 नई थैलियां बनवा लें. उन में सोना, चांदी, तांबा, लोहा रख कर उन के मुंह सिल कर घर के एक खाली कमरे में रख दें. वहां चिल्ला बांध कर उन को फूलों से ढक दें. फिर ढाई दिनों तक उसी जगह रह कर मंत्र पढ़ें. इस के बाद मजार पर 2 घंटे चारों थैलियां रख कर वापस ले आएं, जो आप 9 महीने तक अपने घर में रखे रहेंगे. फिर आप उन्हें खोल कर इस्तेमाल में ले सकते हैं.’’

‘‘आप चाहें तो काजी मोहसिन से मदद ले सकते हैं, पर इस बात की किसी को कानोंकान खबर न हो.’’

खादिम मियां ने आननफानन हामी भर दी.

काजी बाबुल वहां से जाने लगे कि तभी खादिम मियां ने अगले जुमे को घर आ कर यह काम करनेकी गुजारिश की.

इधर काजी मोहसिन को बुला कर खादिम मियां ने जाप करने की तैयारी शुरू कर दी. एक छोटा कमरा खाली करा कर सफाई की गई. फिर किवाड़ से अच्छा लोहा और तांबा निकाल कर रखा गया.

रात को काजी मोहसिन ने घर आ कर एक थैली में लोहा, एक थैली में तांबा, एक थैली में सोने और चौथी थैली में चांदी के जेवर रख कर लोबान की धूनी दे कर कुछ देर तक जोरजोर से कुछ मंत्र पढ़ कर फूंके और थैली के मुंह सिलने लगे.

इसी बीच काजी मोहसिन ने बड़ी होशियारी से सोने और चांदी की थैलियों में पहचान के लिए अलग से दूसरे रंग की छाप लगा दी.

एक संदूक में चारों थैलियां रख कर बड़े से ताले में बंद कर चाबी खादिम मियां को दे दी.

काजी बाबुल के कहे मुताबिक ही काजी मोहसिन ने पूरी कार्यवाही को अंजाम दे कर उन से विदा ली और अपने घर आ गए.

जुमे की रात को काजी मोहसिन, काजी बाबुल, खादिम मियां और उन की बहू बैठे थे. कुछ फासले पर रखे संदूक पर फूल डाल कर और लोबान जला कर काजी बाबुल मंत्र बुदबुदाने लगे.

यह काम एक घंटे तक चला. फिर उन्होंने संदूक में से थैलियां निकालीं और बहू की गोद में रख कर मंत्र बुदबुदाए. लोबान की खुशबू से पूरा कमरा धुएं से भर गया था. यह सब आधा घंटे तक चला.

यह सिलसिला 2 दिनों तक शाम की नमाज के बाद डेढ़ घंटा चलता रहा.

तीसरे दिन वे सब सुबह की नमाज के बाद दूर जंगल में बने मजार पर पहुंचे. साथ में वह संदूक भी था, जिस में थैलियां रखी थीं.

काजी मोहसिन ने मजार के खादिम को पहले से सबकुछ बता रखा था.

वहां पहुंचने के बाद वे संदूक रख कर खड़े हो गए. मजार के खादिम ने संदूक खोल कर रखने को कहा और बोला, ‘‘हां जनाब, आप लोग गुसलखाने से फारिग हो कर आ जाएं.’’

वे सभी मजार पर खुला संदूक छोड़ कर कुछ दूरी पर बने गुसलखाने की तरफ चले गए.

इसी बीच मजार के खादिम ने काजी मोहसिन के बताए मुताबिक सोने व चांदी की निशान लगी थैलियां निकाल कर ठीक वैसी ही दूसरी थैलियां वहां रख दीं. उस ने असली थैलियां मजार के अंदर छिपा दीं और बाहर आ कर खड़ा हो गया.

उन सभी के गुसलखाने से फारिग होने के बाद मजार पर मंत्र बुदबुदाने का सिलसिला चला. फिर वे संदूक में थैलियां और फूल रख कर घर वापस आ गए.

बाबुल काजी ने समझाते हुए कहा, ‘‘औलाद मिल जाने पर संदूक खोल कर सोनेचांदी वाली थैलियां अलग रख लें, बाकी 2 थैलियों को पानी में बहा दें.

‘‘मैं 2 महीने बाद आऊंगा, तब तक बहू के पैर भारी हो जाएंगे. इन्हें आराम करने दें. संदूक पर फूल डालते रहें,’’ कह कर वे चले गए.

तकरीबन 3 महीने बीत गए, पर न तो काजी बाबुल और काजी मोहसिन लौटे, न बहू के पैर भारी हुए.

खादिम मियां को कुछ शक हुआ. उन्होंने संदूक खोल कर देखा तो पता चला कि सोनेचांदी वाली थैलियों में कंकड़पत्थर भरे थे. वे सम झ गए कि उन के साथ धोखा हुआ है.

गुपचुप तरीके से खोजबीन की गई, पर दूरदूर तक उन दोनों काजियों का कुछ भी पता नहीं चला.

15 अगस्त स्पेशल: फौजी ढाबा

ढाबा चलाने के लिए करतार सिंह ने 4 लड़कों का स्टाफ भी रख छोड़ा था, जो ग्राहकों को अच्छी सर्विस देते थे. उन की मजे में जिंदगी कट रही थी.

फौज में सूबेदार करतार सिंह का बड़ा जलवा था. अपनी बहादुरी के लिए मिले बहुत सारे मैडल उस की वरदी की शान बढ़ाया करते थे. बौर्डर से जब भी वह गांव लौटता तो पूरा गांव अपने फौजी भाई से सरहद की कहानी सुनने आ जाता था.

करतार सिंह सरहद की गोलीबारी और दुश्मन फौज की फर्जी मुठभेड़ की कहानी बड़े जोश से सुनाया करता था. अपनी बहादुरी तक पहुंचतेपहुंचते कहानी में जोश कुछ ज्यादा ही हो जाता था. गांव का हर नौजवान बड़ी हसरत से सोचता कि काश, वह भी फौज में होता तो करतार सिंह की तरह वरदी पहन कर गांव आया करता.

गांव के बुजुर्ग तो करतार सिंह पर फख्र किया करते हैं कि उस ने उन के गांव का नाम देशभर में रोशन किया है.

इस बार करतार सिंह जब घर आया तो अपने पैरों के बजाय बैसाखी के सहारे आया. असली मुठभेड़ में उस की एक टांग में गोली लगी थी जिसे काटना पड़ा.

6 महीने सेना के अस्पताल में गुजारने के बाद करतार सिंह को छुट्टी दे दी गई और साथ में जबरदस्ती रिटायरमैंट के कागजात भी भारीभरकम रकम के चैक के साथ थमा कर उसे वापस घर भेज दिया गया.

फौजी की कीमत उसी वक्त तक है, जब तक कि उस के हाथपैर सहीसलामत रहते हैं. जिस तरह टांग के टूटने के बाद घोड़ा रेस में दौड़ने के लायक नहीं रह जाता तो उसे गोली मार दी जाती है, ठीक उसी तरह फौज लाचार हो जाने वाले को रिटायर कर देती है.

करतार सिंह को बड़ी रकम के साथ सरकार ने हाईवे से लगी हुई एक जमीन भी तोहफे में दी थी जिस पर आज उस ने ‘फौजी ढाबा’ खोल दिया था. 2 बेटियां और एक बीवी के अलावा कोई खास जिम्मेदारी करतार सिंह पर थी नहीं. फौज से मिली हुई रकम और ढाबे से होने वाली आमदनी ने पैसों की अच्छी आवाजाही कर रखी थी, इसलिए अब काम में सुस्ती आने लगी. नौकरों के भरोसे ढाबा चल रहा था.

करतार सिंह ज्यादातर नशे में धुत्त रहता था. वह पीता पहले भी था, लेकिन फौज में इतनी दौड़ाई रहती थी कि कभी नशा सवार नहीं हो पाता था. अब काम कुछ था नहीं, इसलिए नशा उतरने भी नहीं पाता था कि बोतल दोबारा मुंह से लग जाती.

जब मालिक नशे में रहे तो नौकरों को मनमानी करने से कौन रोक सकता है. आमदनी कम होने लगी, पैसे गायब होने लगे.

मजबूर हो कर ढाबे की कमान बीवी सरबजीत कौर ने संभाली. अब वह गल्ले पर खुद बैठती और काम नौकरों से कराती.

तीखे नाकनक्श की सरबजीत कौर के ढाबे पर बैठते ही ढाबे ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली. दाल मक्खनी और पिस्तई खीर के साथ सरबजीत कौर का तड़का भी फौजी ढाबे की पहचान बन गया.

एक बार फिर से ग्राहकों की तादाद कम होने लगी. सरबजीत कौर ने इस की वजह मालूम की तो एक नौकर ने बताया कि चंद कदम के फासले पर एक ढाबा और खुल गया है. अब ज्यादातर ट्रक वहां पर रुकते हैं.

दूसरे दिन सरबजीत कौर ने खुद जा कर देखा कि नया ढाबा, जिस का नाम ‘भाभीजी का ढाबा’ था, वहां 25-26 साल की एक खूबसूरत औरत गल्ले पर बैठी है और ग्राहकों से मुसकरामुसकरा कर डील कर रही है.

‘फौजी ढाबा’ को तोड़ने के लिए गंगा ने शुरू से ही अपनी बीवी को बिठा कर करतार सिंह के ग्राहकों पर डाका डाल दिया था.

सरबजीत कौर के पास अब इस के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था कि वह अपने ब्लाउज के गले को बड़ा कर के गल्ले पर बैठा करे. इस तरकीब से कुछ सीनियर फौजी तो ढाबे पर आ गए, लेकिन अभी भी ‘भाभीजी का ढाबा’ नंबर वन पर चल रहा था.

‘फौजी ढाबा’ किस हाल से गुजर रहा था, इस की परवाह अब करतार सिंह को नहीं थी. उसे तो बस सुबहशाम 2 बोतल दारू और एक प्लेट चिकन टिक्का चाहिए था, जो किसी न किसी तरह सरबजीत कौर उस तक पहुंचा देती थी.

ढाबे की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से सरबजीत कौर पर आ गई थी. बच्चियां छोटी थीं. यों भी स्कूल जाने वाली बच्चियों को ढाबे के काम में लगाना मुनासिब नहीं था.

एक बार उस ने एक बच्ची को पलंग पर बैठे एक ड्राइवर के पास सलाद देने के लिए भेजा तो यह देख कर उस का खून खौल गया कि ड्राइवर ने बच्ची के गाल को नोचा और फिर ड्राइवर का हाथ बच्ची की गरदन से नीचे आ गया.

छोटी बच्ची सलाद की प्लेट पटक कर घर के अंदर भाग गई. दुकानदारी पर कहीं असर न पड़े, इसलिए सरबजीत कौर ने बात आगे नहीं बढ़ाई.

बाप नशे में धुत्त और मां दिनरात ढाबे के गल्ले पर बैठने के लिए मजबूर, ऐसे में बच्चियों पर कौन नजर रखे. कच्ची उम्र से जवानी की दहलीज पर पैर रखने वाली गीता की नजर चरनजीत से टकरा गई. 1-2 महीने से शनिवार की शाम को एक नए ट्रक के साथ एक नौजवान आ कर सब से अलग बैठ जाता. खाना खा कर सो जाता और दूसरे दिन वह ट्रक ले कर कहीं चला जाता. स्याह कमीज, स्याह पैंट और नारंगी रंग की पगड़ी में वह बहुत खूबसूरत लगता था.

पहली बार जब गीता ने देखा तो वह उसे देखती ही रह गई. इत्तिफाक से उस की नजर भी गीता की तरफ उठ गई तो उस ने नजर हटाई नहीं. अपनी बड़ीबड़ी आंखों से वह गीता को घूरता ही रहा.

साथ में बैठे क्लीनर ने जब पुकारा, ‘‘चरनजीते, कहां खो गया,’’ तो गीता को मालूम हुआ कि उस का नाम चरनजीत है.

दूसरे शनिवार को जब वह फिर वहां आया तो गीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उसे ऐसा लगा कि वह सिर्फ उसी के लिए आया है. लेकिन, चरनजीत के बरताव में कोई फर्क नहीं आया. खाना खा कर वह पलंग पर सो गया.

गीता ने घर से एक तकिया मंगा कर ढाबे के एक लड़के को देते हुए कहा कि उन साहब को दे आए. पहली बार किसी ग्राहक को तकिया पेश किया गया था. तकिए के कोने में गीता का मोबाइल नंबर और नाम भी लिखा था.

किसी को खबर भी नहीं हुई और चरनजीत और गीता एकदूसरे के इश्क में डूबते चले गए. मोबाइल पर बातें होती रहतीं. किसी को मालूम ही नहीं चल पाता कि चंद कदमों के फासले पर आशिक और माशूक बैठे एकदूसरे से हालेदिल बयां कर रहे हैं. स्कूल टाइमिंग में बाहर मुलाकातें होने लगीं.

एक दिन ऐसा भी आया, जब चरनजीत ने गीता से कहा कि ऐसा कब तक चलता रहेगा. हम लोगों को शादी कर लेनी चाहिए. गीता खामोश हो गई.

‘‘क्या मैं ने कुछ गलत बात कह दी?’’

‘‘नहीं, तुम ने कुछ गलत नहीं कहा. मेरे पापा सूबेदार रहे हैं, मेरी शादी वे किसी ट्रक ड्राइवर से कभी नहीं करेंगे.’’

‘‘फिर तो हम लोगों को अलग हो जाना चाहिए,’’ कहते हुए चरनजीत ने गीता का हाथ छोड़ दिया.

‘‘अब मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती…’’ थोड़ी देर की खामोशी के बाद गीता ने कहा, ‘‘मुझे यहां से ले कर कहीं दूर चले जाओ. वहीं शादी कर लेंगे.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है कि मैं तुम्हें भगा कर ले जाऊं. कितनी घटिया बात कही है तुम ने…’’ चरनजीत ने कहा, ‘‘मेरे मांबाप इस बात को पसंद नहीं करेंगे. तुम्हारे घर वाले भी यही सोचेंगे कि ट्रक ड्राइवरों का किरदार ऐसा ही होता है.

‘‘गीता, मैं पढ़ालिखा हूं. मास्टरी की है मैं ने. नौकरी नहीं मिली तो ड्राइवर बन गया.

‘‘यह मेरा अपना ट्रक है. शादी करूंगा तो इज्जत से करूंगा, वरना हम दोनों के रास्ते अलग हो जाएंगे. कल तुम्हारे मम्मीपापा से तुम्हारा हाथ मांगने आऊंगा. तैयार रहना.’’

करतार सिंह ने कभी सोचा भी नहीं था कि बेटियों की शादी भी की जाती है. उसे तो इस बात की फिक्र रहती थी कि कहीं रात में उस की बोतल खाली न रह जाए.

चरनजीत ने जब उस से उस की बेटी का हाथ मांगा तो सरबजीत कौर के साथ करतार सिंह के चेहरे का रंग भी बिगड़ गया. उसे ऐसा लगा, जैसे बोतल में किसी ने सिर्फ पानी मिला दिया था. पलभर में सारा नशा काफूर हो गया.

‘‘तुम ने गीता को मांगने से पहले यह नहीं सोचा कि तुम एक ट्रक ड्राइवर हो.’’

‘‘मैं ने यह तो नहीं सोचा, लेकिन यह जरूर सोचा कि आप की बेटी अगर मेरे साथ भाग जाएगी तो आप की कितनी बदनामी होगी. ट्रक ड्राइवरों पर से हमेशा के लिए आप का भरोसा उठ जाएगा.’’

ऐसा सुन कर फौजी करतार सिंह का सिर पहली बार किसी के सामने झुका था तो वह चरनजीत था.

‘‘अपने घर वालों से कहो शादी की तैयारी करें, गीता अब तुम्हारी हुई,’’ यह कह कर करतार सिंह ने शराब की बोतल को चरनजीत के सामने ही मुंह से लगा लिया.

बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

फरेब : कौन किस से कर रहा था दगाबाजी?

‘‘आज फिर मालकिन रात को देर से आएंगी क्या साहब?’’ कमला ने डिनर के बाद बरतन उठा कर सिंक में रखते हुए बाईं आंख दबा कर होंठ का कोना दांत से काटते हुए मुसकरा कर पूछा.

कमला की इस अदा पर जितेंद्र कुरसी से उठा और उसे पीछे से बांहों में भरते हुए धीरे से उस के कान में बोला, ‘‘हां जानेमन. उस के बैंक में क्लोजिंग चल रही है, तो कुछ दिन देर रात तक ही लौटेगी. बहुत हिसाबकिताब करना होता है न बैंक वालों को. और मैनेजर पर सब से ज्यादा जिम्मेदारी होती है.’’

‘‘अच्छा है साहब, फिर हम भी कुछ हिसाबकिताब कर लेंगे. वैसे, आप हिसाब बहुत अच्छा करते हैं साहब. बस, किसी दिन मेमसाहब पूरी रात बाहर रहें तो मैं आप से ब्याज भी वसूल कर लूं,’’ कमला ने जितेंद्र की ओर घूमते हुए कहा और उस के ऐसा करने से जितेंद्र के होंठ कमला के होंठों के सामने आ गए, जिन्हें कमला ने थोड़ा सा और आगे हो कर अपने होंठों से चिपका लिया.

जितेंद्र की सांसें तेज होने लगी थीं. वह अब कमला से पूरी तरह चिपकने लगा था कि तभी कमला एक झटके से घूम कर जितेंद्र से अलग हो गई और बोली, ‘‘छोडि़ए साहब, देखते नहीं कितना काम पड़ा है. और फिर मुझे घर जा कर अपने मरद को भी हिसाब देना होता है. आप के साथ हिसाब करने लगी तो फिर मेरे मरद के हिसाब में कमी हो जाएगी और वह मुझ पर शक करेगा.

‘‘वैसे भी पिछली बार जब मैं आप के साथ चिपक कर गई थी तो वह सवाल कर रहा था कि यह जमीन में इतनी नमी क्यों है. वह तो मैं ने किसी तरह उसे यह कह कर संभाल लिया कि बहुत दिन से कुछ हुआ नहीं तो आज तुम्हारे हाथ लगाने से ज्यादा ही जोश आ गया है और वह मान गया, नहीं तो मेरा भेद खुल ही जाना था उस दिन.’’

जितेंद्र जो अब पूरी तरह मूड में आ चुका था, कमला को ऐसे दूर जाते देख कर झटका खा गया. वह अब किसी भी हालत में कमला का साथ चाहता था, तो वह आगे बढ़ कर फिर से कमला को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘अरे कमला, क्या तुम्हें मेरा प्यार कम लगता है? किसी को कुछ नहीं पता चलेगा, बस तुम मुझ से दूर मत जाओ. कमला, मैं सच में तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारा साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है.

‘‘तुम जैसे मुझे प्यार करती हो न, ऐसा तो कभी तुम्हारी मेमसाहब भी नहीं करतीं. सच कहूं तो निर्मला को प्यार करना आता ही नहीं है,’’ जितेंद्र ने कमला को बांहों में भर कर उस के होंठों की तरफ होंठ ले जाते हुए कहा.

‘‘नहीं साहब, आप झूठ बोलते हैं. आप को मुझ से कोई प्यारव्यार नहीं है, आप तो बस अपनी जरूरत पूरी करते हो. मैं ही आप से प्रेम करने लगी थी साहब, लेकिन मैं अब समझ गई हूं कि आप बस मेरे साथ फरेब करते हो.

‘‘आप को मेरे जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए. आप का प्रेम बस इतना सा ही है. अभी मैं आप के साथ बिस्तर पर चली जाऊंगी आप का काम हो जाएगा और आप मुझे भूल जाओगे बस,’’ कमला फिर अपनेआप को छुड़ाते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं है कमला. मैं तुम से सच में प्यार करता हूं. अच्छा बताओ, मेरा प्यार सच्चा है, इसे साबित करने के लिए मैं तुम्हें क्या दूं?’’ जितेंद्र ने अब कमला को बांहों में उठा लिया था. हवस का जोश अब जितेंद्र के संभालने से बाहर हो रहा था.

जितेंद्र ने कमला को बिस्तर पर बिठाया और उस के सामने खड़े हो कर अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए बोला, ‘‘बताओ न, क्या चाहिए तुम्हें?’’

‘‘साहब, आप सच कह रहे हैं. सच में आप मुझे प्यार करते हैं,’’ कमला ने बिस्तर पर लेट कर अपने पैर से जितेंद्र के सीने के बालों को सहला कर होंठ काटते हुए पूछा.

‘‘हां सच कमला, तुम एक बार मांग कर तो देखो, जो कहोगी, मैं तुम्हें दे दूंगा,’’ जितेंद्र ने आगे बढ़ते हुए कहा. उस की आवाज हवस में बहक रही थी. कमला अपनी अदाओं से उस के जिस्म की आग को और बल दे रही थी.

‘‘क्या आप को नहीं लगता कि ऐसे छिपछिप कर मिलने से हमारे प्यार की अच्छे से भरपाई भी नहीं हो पाती और हमारे पकड़े जाने का डर रहता है सो अलग.

‘‘अब मान लो कि अभी हम प्यार शुरू ही कर रहे हैं और आप की पत्नी आ जाए तब? या फिर मेरा मरद ही मुझे ढूंढ़ता हुआ आ जाए तब? क्या ऐसे अच्छे से प्यार हो सकता है?’’ कमला ने एकएक शब्द सोच कर बोला.

‘‘नहीं हो सकता कमला, तभी तो कह रहा हूं कि आओ हम जल्दी से प्यार कर लें, उस के बाद तुम आराम से काम खत्म कर के अपने घर चली जाना,’’ जितेंद्र ने कमला के ऊपर झुकते हुए कहा.

‘‘कुछ ऐसा नहीं हो सकता साहब कि हम लोग जब मन करे प्यार करें और हमें रोकनेटोकने वाला कोई न हो?’’ कमला ने जितेंद्र के गले में बांहें डाल कर उस की आंखों में देखते हुए बहुत मीठे शब्दों में कहा.

‘‘कैसे हो सकता है बताओ कमला? बताओ, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हूं,’’ जितेंद्र ने अपनी उंगलियां कमला के ब्लाउज के बटनों में उलझाते हुए पूछा.

‘‘आप अपना ‘बोरीवली’ वाला वन रूम सैट मेरे नाम कर दो साहब. फिर जब आप का मन करे दिन या रात

कभी भी हम उस फ्लैट में आराम से प्यार करेंगे. वहां कोई हमें डिस्टर्ब नहीं करेगा साहब.’’

‘‘लेकिन, तुम्हारा मरद?’’ जितेंद्र ने कमला का कंधा सहलाते हुए कहा.

‘‘उस की फिक्र आप न करो साहब ऐसे तो वह 12-12 घंटे गार्ड की नौकरी करता है, कभी दिन, तो कभी रात. हमारे पास बहुत समय होगा अकेले में मिलने का, जब वह काम पर होगा.

‘‘और फिर मैं उसे बताऊंगी ही नहीं कि फ्लैट आप ने मेरे नाम पर किया है. मैं उस से कहूंगी कि मालिक ने तरस खा कर यह फ्लैट हमें रहने के लिए दिया है, इसलिए साहब जब चाहे यहां आ सकते हैं बस,’’ कमला ने जितेंद्र की पीठ पर हाथ चलाते हुए कहा.

‘‘लेकिन कमला, उस के लिए फ्लैट तुम्हारे नाम करने की क्या जरूरत है? उस में तो तुम ऐसे भी जा कर रह सकती हो?’’ जितेंद्र ने एक सवाल पूछा कि तभी कमला ने आगे बढ़ कर उस के होंठों को अपने होंठों में दबा कर एक लंबा सा चुम्मा किया और बोली, ‘‘तुम सोचते बहुत हो साहब, अभी तो कह रहे थे कि अपना प्यार साबित करने के लिए कुछ भी कर सकते हो और अब कुछ पेपर पर तनिक सा पैन घिसने में तुम्हारे पैन की स्याही खत्म होने लगी. फिर

तुम हमारे प्यार की कहानी कैसे लिखोगे साहब?’’

कमला ने जितेंद्र की आंखों में मुसकराते हुए देखा और अपने हाथ उस की पैंट की ओर बढ़ा दिए.

कमला की इस हरकत पर जितेंद्र के मुंह से हलकी ‘आह’ निकल गई और मस्ती से उस की आंखें बंद होने लगीं.

‘‘आप का पैन तो एकदम तैयार है साहब, तनिक इन पेपरों पर चला कर देखिए तो क्या यह हमारे प्रेम की कहानी लिख पाएगा…’’ कमला ने तकिए के नीचे से कुछ पेपर निकाल कर जितेंद्र के सामने रखे और उस के हाथ में एक कलम दे कर बोली, ‘‘यहां दस्तखत कीजिए साहब.’’

ऐसा कहने के साथ ही कमला के हाथ जितेंद्र की पैंट में हरकत करने लगे, उस से जितेंद्र की आंखें बंद हो गईं और वह बोला, ‘‘लेकिन, कमला…’’

‘‘ओहो… आप कितना सोचते हो साहब. बस जरा सा पैन ही तो चलाना है, फिर जी भर कर हम अपने प्यार की कहानी लिखेंगे. आप सोचिए मत. बस, दस्तखत कीजिए, तब तक मैं चैक करती हूं कि क्या आप की कलम मेरे प्रेम की किताब पर कोई कहानी लिख भी पाएगी या फिर…?’’ कह कर कमला ने अपने होंठ ‘उधर’ बढ़ा दिए.

अब जितेंद्र आगे कुछ नहीं कह पाया और उस ने कांपती उंगलियों से उन पेपरों पर दस्तखत कर दिए.

दस्तखत होने के बाद कमला को जैसे जितेंद्र के अंदर उमड़ रहे तूफान को शांत करने की बहुत जल्दी थी. उस ने अपनी हरकतों को और बढ़ा दिया और 3-4 मिनट में ही जितेंद्र निढाल हो कर बिस्तर पर लुढ़क गया.

कमला ने उठ कर अपना मुंह साफ किया और अपने कपड़े ठीक करते हुए गेट बंद कर के फ्लैट से बाहर निकल आई.

‘‘हो गया न काम?’’ नीचे आते ही चौकीदार की वरदी पहने खंभे की आड़ में खड़े एक आदमी ने उस से पूछा.

जवाब में कमला ने मुसकराते हुए पेपर उस के हाथ में रख दिए.

‘‘वाह मेरी जान, खूब फरेब में फंसाया तुम ने इस रईस को,’’ वह चौकीदार कमला को गले लगाते हुए खुश हो कर बोला.

‘‘फरेब तो इस ने किया था मेरे साथ, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि अपने मरद के अलावा किसी को हाथ भी लगाने दूंगी, लेकिन उस दिन पार्टी के बाद इस कमीने ने मुझे जूस में न जाने क्या मिला कर पिलाया कि मैं इस की बांहों में गिर पड़ी और उस मदहोशी की हालत में इस की किसी भी हरकत का विरोध न कर सकी.

‘‘बस, आज मैं ने भी वही किया. और यह भी मदहोशी में मेरी किसी भी मांग का विरोध नहीं कर पाया. लेकिन इस ने जो काम मुझे ड्रग्स दे कर किया था. वह मैं ने केवल अपने हुस्न और अदाओं से कर दिया.

‘‘अच्छा, अब चलो यहां से. किसी ने देख लिया, तो गजब हो जाएगा. बस, कल सुबह ही ये पेपर ले कर वकील के पास चले जाना. एक बार 40 लाख

का वह फ्लैट अपने नाम हो जाए, फिर इसे लात मार कर भगा दूंगी,’’ कमला ने हंसते हुए कहा और दोनों वहां से चले गए.

‘‘कमला, तुम पिछले 5-6 दिन से काम पर क्यों नहीं आई? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम मेरा फोन भी नहीं उठा रही हूं और न ही तुम्हारा पति

फोन उठा रहा है. क्या हुआ? कोई बात है तो मुझे बताओ?’’ जितेंद्र ने सुबहसुबह फ्लैट पर पहुंच कर कमला से सवाल किया.

‘‘कुछ नहीं हुआ साहब, मेरे मरद ने अब मुझे लोगों के घरों में जा कर काम करने से मना किया है, तो आप दूसरी बाई ढूंढ़ लो. मैं अब काम नहीं करूंगी. अब मेरा मरद कमाएगा और मैं बैठ कर खाऊंगी बस,’’ कमला ने बहुत ही रूखे स्वर में जवाब दिया.

‘‘कैसी बात करती हो कमला? मैं किसी के घर काम की नहीं कह रहा हूं, लेकिन हमारे अपने घर…? क्या तुम्हारा प्यार खत्म हो गया, जो तुम मुझ से मिलने भी नहीं आईं और जैसी कि हमारी बात हुई थी कि इस फ्लैट में मैं और तुम साथ रहेंगे और प्यार करेंगे. क्या तुम वह भी भूल गईं?’’ जितेंद्र ने सवाल किया.

‘‘कौन सा प्यार साहब? वह तो बस एक सौदा था, उस में कुछ मैं ने अपना लुटाया और कुछ आप ने अपना. सौदा पूरा हुआ, साहब सब व्यापार खत्म,’’ कमला ने उसी रूखेपन से कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा प्यार सच में बस एक फरेब था कमला? क्या तुम ने मेरा मकान हड़पने के लिए मुझ से प्रेम का नाटक किया था?’’ जितेंद्र ने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘हाहाहा… फरेब… हां साहब, फरेब ही था वह. फरेब जो आप ने मेरे साथ किया था मेरे जूस में ड्रग्स मिला कर. फरेब जो आप ने अपनी पत्नी के साथ किया था पत्नी होते हुए भी मेरे साथ संबंध बना कर.

‘‘फरेब, जो आप ने अपने खुद के साथ किया था हवस में अंधे हो कर, यह मकान मेरे नाम कर के. अब

आप यहां से चले जाइए साहब, कहीं ऐसा न हो कि मैं आप की पत्नी को आप के फरेब के बारे में बता दूं और आप उन्हें भी खो दो. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है साहब, रोक दो इस फरेब को और बचा लो अपने असली घर को टूटने से.

‘‘मुझे भी अपना घर बचाने दो साहब. मेरा मरद बस आता ही होगा और मैं नहीं चाहती कि वह फिर मेरी गीली होती हुई देखे आंखें,’’ कमला ने कहा और जितेंद्र के मुंह पर फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया.

जितेंद्र खड़ाखड़ा सोच रहा था कि फरेब किस ने किया? फरेबी कौन है? द्य

एक युग: सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?- भाग 3

‘‘मैं अपने वादे से कहां मुकरी. मैं ने कब कहा कि वे मुझे पसंद नहीं या मैं ने कभी कोई गलत चुनाव किया था. पर पिताजी की भावनाओं का क्या करूं? उन्हें मेरी ही चिंता रहती है. दिनरात वे मेरे ही बारे में सोचते रहते हैं. वे मेरे लिए बहुत परेशान हैं.’’

‘‘जब उन के विरोध के बावजूद तू ने पंकज का हाथ थामा था तब उन की भावनाओं का खयाल कहां चला गया था? फिर यह भी सोचा है कि तू ही तो उन्हें परेशान कर रही है?’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं? मेरा तो दम घुटा जा रहा है. तू ही कुछ बता कि मुझे क्या करना चाहिए? मैं ही सब की परेशानी का कारण हूं.’’

‘‘पहले तो यह समझ ले कि इस सारे झगड़े में गलती की पूरी जिम्मेदारी तेरी ही है,’’ जया ने समझाने के लहजे में कहा.

‘‘हां, मैं यह मानने को तैयार हूं, पर पंकज की भी तो गलती है कि उस ने मुझे क्षमा मांगने का मौका ही नहीं दिया. उस ने मुझे कितना अपमानित किया.’’

‘‘वाह रानीजी, वाह, गलती तुम करो और दूसरा अपने मन का तनिक सा रोष भी न निकाल सके?’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं, बताओ न?’’

‘‘एक बात बता, क्या पंकज में कोई कमी है जो दूसरी शादी कर के तुझे उस से अच्छा पति मिल जाएगा? क्या गारंटी है कि आगे किसी छोटे से झगड़े पर तू फिर तलाक नहीं ले लेगी या जिस व्यक्ति से तेरी दूसरी शादी होगी वह अच्छा ही होगा, इस की भी क्या गारंटी है?’’ जया ने तनिक गुस्से से पूछा.

‘‘दूसरी शादी की बात मत कहो, जया. मैं तो पंकज के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती. शायद उस से अच्छा व्यक्ति इस संसार में दूसरा कोई हो ही नहीं सकता.’’

‘‘फिर किस बात का इंतजार है. क्या तुम समझती हो कि पंकज एक होनहार युवक तुम्हारी प्रतीक्षा में जिंदगी भर अकेला बैठा रहेगा? क्या उस के घर वाले उस के भविष्य के प्रति उदासीन बैठे होंगे? पंकज अपने घर का अकेला होनहार चिराग है.’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. अब बता कि मैं क्या करूं?’’

‘‘तू तुरंत पंकज से मिल कर अपने मन की दूरियां मिटा ले. उस से क्षमा मांग ले. आखिर गलती की पहल तो तू ने ही की थी.’’

‘‘लेकिन पिताजी?’’

‘‘क्या पिताजीपिताजी की रट लगा रखी है. क्या तू कोई दूध पीती बच्ची है? पिता क्या हमेशा ही तेरी जिंदगी के छोटेछोटे मसले हल करते रहेंगे? उन्हें अपने मुकदमों के फैसले ही करने दे, अपना फैसला तू खुद कर.’’

‘‘अगर पंकज ने मुझे क्षमा न किया तो? मुझ से मिलने से ही इनकार कर दिया तो?’’ सुषमा ने बेचारगी से कहा.

‘‘पंकज जैसा सुलझा हुआ व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता. तुझे उस ने क्षमा न कर दिया होता तो वह तेरे घर क्या करने आता. क्या तू इतना भी नहीं समझ सकती?’’

‘‘सच जया, तुम ने तो मेरी आंखें ही खोल दी हैं. मेरी तो सारी दुविधा दूर कर दी. मैं अभी पंकज के पास जाऊंगी. इस समय वह संभवत: दफ्तर में ही होगा. मैं अभी उसे फोन मिलाती हूं.’’

बिना तनिक भी देर किए हुए सुषमा जया के साथ तुरंत पास के टैलीफोन बूथ पर बात करने चली गई. उस ने दफ्तर का नंबर मिलाया तो पता चला कि पंकज किसी आवश्यक कार्य से अचानक आज दोपहर के बाद छुट्टी ले कर अपने घर के लिए चला गया है. पूछने पर पता चला कि शायद सगाई की तारीख तय हो रही है.

सुषमा का मन हजार शंकाओं से घिर आया. उस ने समय देखा तो ध्यान आया कि पंकज की गाड़ी छूटने में अभी आधे घंटे का समय बाकी है. अब उसे पंकज के बिछोह का एकएक क्षण एक युग जैसा लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘जया, मैं अभी, इसी समय स्टेशन जा रही हूं. तू भी मेरे साथ चली चल.’’

‘‘नहीं जी, अब मैं मियांबीवी के बीच दालभात में मूसलचंद बनने वाली नहीं, कल मिलूंगी तो हाल बताना. वैसे अब तू मुझे ढूंढ़ने वाली नहीं. मैं अपनी औकात समझती हूं,’’ कह कर जया अपने घर की ओर मुसकराती हुई चल पड़ी.

सुषमा का हृदय तेजी से धड़क रहा था. सोचने लगी कि ट्रेन में मैं उन्हें न ढूंढ़ पाई तो, टे्रन छूट गई तो? क्या करूंगी? उन्होंने देख कर मुंह फेर लिया तो क्या होगा? हजार शंकाओं से घिरी सुषमा टे्रन के हर डब्बे के बाहर निगाहें दौड़ा कर पंकज को ढूंढ़ रही थी. तभी टे्रन ने सीटी दे दी. उस की धड़कनें और भी तेज हो उठीं. पांव एकएक मन के भारी हो गए. सोचने लगी, आज तो उसे कैसे भी हो पंकज से मिलना ही है. न मिला तो क्या होगा. उस का तो दम ही निकल जाएगा. वह और भी तेजी से चलती इधरउधर देख रही थी. हर क्षण दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं. तभी उस का पैर स्टेशन पर रखे किसी सामान से टकराया और वह औंधे मुंह गिरने को हो आई.

लेकिन किन्हीं मजबूत बांहों ने उसे गिरने से संभाल लिया और एक चिरपरिचित आवाज उस के कानों में सुनाई दी, ‘‘किसे ढूंढ़ रही हो, सुषमा? बहुत देर से तुम्हें देख रहा हूं,’’ अपने डब्बे की ओर बढ़ते हुए पंकज ने कहा.

‘‘मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ घबराहट में धड़कते हृदय से सुषमा बस इतना ही बोल सकी.

‘‘अब तो बहुत देर हो चुकी है. मेरी गाड़ी छूट रही है.’’

सुषमा के पैरों के नीचे से तो मानो जमीन ही सरक गई. उस ने फिर कहा, ‘‘मुझे आप से जरूरी बात करनी है.’’

‘‘4 दिन बाद लौटूंगा तब यदि तुम ने मौका दिया तो जरूर बात करूंगा.’’

‘‘इतने दिन तो बहुत होते हैं. क्या मैं आप के साथ चल सकती हूं? मुझे अभी बातें करनी हैं.’’

‘‘तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगी? तुम्हारा सामान कहां है? तुम्हारे पिता…’’

‘‘बस, अब कुछ न कहें, मुझे अपने साथ लेते चलें. आप के साथ मुझे सबकुछ मिल जाएगा.’’

ट्रेन सरकने लगी थी. पंकज ने तेजी से हाथ बढ़ा कर सुषमा को अपने डब्बे में चढ़ा लिया.

सुषमा उस के सीने से लग कर सिसक पड़ी. वह यह भी भूल गई कि सब उसी की ओर देख रहे हैं.

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