सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के मार्केट पर एआई की सेंध

अब एआई से सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनाए जा रहे हैं. ये हूबहू इंसानों जैसे दिखाई दे रहे हैं. भारत में नैना, कायरा, श्रव्या इन्फ्लुएंसर के मार्केट में उतर चुकी हैं. कहीं ये इन्फ्लुएंसर्स के मार्केट में सेंध न लगा दें.

गुलाबी ब्लोंड हेयर, शार्प नोज, सधे होंठ और सुराहीदार गरदन. रोलर कोस्टर सा जिस्म ऐसा कि कोई भी फिसल जाए पर जब पता चले कि सोशल मीडिया पर एटाना लोपेज नाम की यह लड़की रियल नहीं, बल्कि एआई की दुनिया की इल्यूजन है जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के रूप में परोस दिया गया है तो हर कोई अपना माथा पकड़ लेगा.

आखिर कैसे इतनी हूबहू इंसान जैसी कोई चीज बनाई जा सकती है जिस के एक्सप्रैशन, अदाएं सब इंसान जैसे हों, जो आंखों से इशारा करती हो, नाचती हो, होंठ हिलाती हो और मदमस्त हो. यह कमाल एआई ने किया है. पत्थर की मूरत में जान फूंकने को सच मान लेने वाले इस अंधविश्वासी समय में एआई लोहे में जान फूंक रहा है. उस के रोबोट्स टैनिस व चैस खेल रहे हैं, खाना बना रहे हैं, नाच रहे हैं और अब कंपनियों के प्रचार के लिए रील भी बना रहे हैं.

एटाना लोपेज एआई अवतार में चर्चा का विषय काफी पहले बन चुकी थी. एटाना लोपेज एआई वाली सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. अपनी प्रोफाइल में वह खुद को वर्चुअल सोल बताती है. इस ने अभी सिर्फ 73 पोस्ट किए हैं पर इन 73 पोस्ट्स में इसे 2 लाख 72 हजार लोगों ने फौलो किया है. खुद को फिटनैस मौडल बताने वाली एटाना ने हर एक पोस्ट पर हजारों लाइक्स और शेयर पाए हैं और उन्हें शेयर किया गया है.

एटाना लोपेज इंस्टाग्राम के अलावा ट्विटर, टिकटौक पर भी है. ट्विटर पर खुद को स्पैनिश गौड्स औफ टैंपटेशन बताती है, वहां इंटिमेट और सिडक्टिव कंटैंट डालती है. इस के अलावा वह गेमिंग, फिटनैस की शौकीन भी है.

नाम भी पैसा भी

द फाइनैंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एटाना लोपेज को एड एजेंसी क्लूपलैस की कोफाउंडर डिआना नूनेज ने बनाया है. नूनेज का कहना है कि वे इन्फ्लुएंसर्स की दिनोंदिन बढ़ती फीस से परेशान थीं. इस का कोई हल निकालने के लिए उन्होेंने एआई की सहायता से वर्चुअल इंफ्लुएंसर बनाने की सोची और एआई अवतार एटाना लोपेज को गढ़ दिया.

अब खबर यह है कि गुलाबी बालों वाली लोपेज हर महीने 9 लाख रुपए कमा रही है. सोशल मीडिया पर कंपनियां भी लोपेज से अपने प्रोडक्ट्स का प्रचार करवाने को हंसीखुशी पैसा देने को तैयार हैं.

पेटीएम फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा ने एक्सो पर एक पोस्ट में लोपेज का जिक्र करते हुए लिखा था कि कैसे ह्यूमन इन्फ्लुएंसर के बजाय एआई इन्फ्लुएंसर्स आने वाले समय में मार्केटिंग के लिए फायदेमंद हैं.

एआई अवतार धीरेधीरे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की जगह लेता जा रहा है. सिर्फ एटाना लोपेज ही नहीं, इस फेहरिस्त में एक बड़ा नाम लू दो मगालू का है. उस के 68 लाख फौलोअर्स हैं. अपने पेज में वह ब्यूटी प्रोडक्ट्स का प्रचार करती है. इस के फीचर इंसानों जैसे नहीं हैं पर यह रिप्लिका बेहद फेमस है.

इसी तरह लिलमिकेला है जो 19 साल की है. जिस का जन्म 2016 में इंस्टाग्राम पर हुआ. अपने प्रोफाइल पर उस ने हैशटैग ‘ब्लैक लाइव मैटर’ लिखा हुआ है. जाहिर है यह इन्फ्लुएंसर अमेरिका में हो रहे ब्लैक पर अत्याचार पर स्टैंड लेती है. इस के इंस्टाग्राम पर 27 लाख फौलोअर्स हैं, वहीं टिकटौक पर 35 लाख और फेसबुक पर 11 लाख. यह हूबहू इंसानों जैसी है. इस की पोस्ट में दिखाई देता है कि यह पब्लिक प्लेस में घूमती है. अलगअलग जगहें ट्रैवल करती है. साथ में कंपनियों और रैस्तरां का प्रचार भी करती है.

2019 में सुपरमौडल बेला हदीद ने केल्विन क्लेन के विज्ञापनों में लिलमिकेला के साथ तसवीर खिंचवाई, जिस पर तब बात उठी थी कि यह भविष्य की एक झलक है. आज वह झलक इसलिए भी सच साबित होती दिखाई दे रही है कि यह इन्फ्लुएंसर बड़ेबड़े स्टार्स के साथ पोडकास्ट करते हुए भी नजर आ रही है.

भारत में एआई इन्फ्लुएंसर की धूम

सोशल मीडिया पर एआई इन्फ्लुएंसर सिर्फ विदेशों में ही फेमस नहीं हो रहे, इंडिया भी इस मामले में पीछे नहीं है. नैना, कायरा, टिया शर्मा और श्रव्या वे नाम हैं जो अपनी धाक जमा चुके हैं. 22 साल की नैना जो झांसी से मुंबई आई है और उस का सपना एक ऐक्ट्रैस व मौडल बनने का है. लेकिन नैना की यह स्टोरी उतनी ही फेक है जितनी वह खुद है. वह एआई से तैयार की गई है.

भारत में नैना असल और नकल के बीच बनी लाइन को ब्लर करने का काम करती है. वह खुद को भारत की पहली एआई सुपरस्टार कहती है. उस के लुक्स, हरकतें सब असल ह्यूमन की तरह हैं. उसे देख कर कोई कह नहीं सकता कि यह नकली होगी.

नैना पैपराजी से बात करती है, सैलिब्रिटी की तरह फोटो खिंचवाती है. वह ‘द नैना शो’ के नाम से पोडकास्ट चलाती है जहां सान्या मल्होत्रा, सियामी खेर जैसी बौलीवुड सैलिब्रिटीज आती हैं. वह हर तरह की वीडियो बनाती है और बताती है कि साड़ी कैसे पहनी जाए, स्टाइलिस्ट और ट्रैंडी कैसे बना जाए, बाल कैसे बनाए जाएं और मिनिमम ज्वैलरी से अच्छा लुक कैसे बनाया जाए. यानी यह एआई की जीतीजागती इन्फ्लुएंसर है जो फैशन के बारे में जानकारी देती है.

जाहिर है, एआई अब इन्फ्लुएंसर के मार्केट पर सेंध लगाने जा रहा है. कंपनियां भी इसे बढि़या चांस की तरह देख रही हैं क्योंकि इन्फ्लुएंसर्स जिस तरह किसी प्रोडक्ट के प्रचार के लिए मोटी फीस ले रहे हैं उस के मुकाबले इस तरह के डमी या डोपलैंगर्स ज्यादा किफायती साबित हो रहे हैं.

तकनीक है कमाल की

हिमांशु ने माया, ब्लैंडर और अनरियल इंजन जैसे 3डी डिजाइन टूल्स का यूज कर 2022 में कायरा को बनाया था. इन टूल्स ने वीडियो गेम और मार्वल फिल्मों में यूज की जाने वाली तकनीक के जैसे ही कायरा के चेहरे और बौडी पार्ट्स को तराशने में मदद की. वहीं दूसरी तरफ वे बताते हैं कि श्रव्या को 2023 में केवल जेनरेटिव एआई का यूज कर के बनाया गया जो बिलकुल ही रीयलिस्टिक है.

3डी टैक्नोलौजी के माध्यम से पहले कायरा जैसे डोपलैंगर्स बनाए जाते थे जिस में काफी मेहनत और रिसौर्सेज लगते थे, हालांकि इस के बावजूद कायरा से मेकर्स को फायदा हुआ है. उस ने लोरियल पेरिस, बोट, टाइटन, रियलमी और अमेरिकन टूरिस्टर जैसे बड़े ब्रैंडों के साथ कोलैबोरेट किया. कायरा के कुछ प्रचार वीडियो को 35 मिलियन यानी साढ़े 3 करोड़ से अधिक बार देखा गया है. अब एआई की हैल्प से आसानी और किफायत में ये बनाए जा रहे हैं जो ज्यादा रियल दिखाई देते हैं.

एआई इन्फ्लुएंसर कहीं न कहीं रियल इन्फ्लुएंसर्स के लिए बड़ी चुनौती साबित होते जा रहे हैं. क्योंकि अधिकतर इन्फ्लुएंसर्स का कंटैंट एकजैसा होता है. उन में वैराइटी और क्रिएटिविटी की कमी होती है. किसी ट्रैंडिंग सौंग पर अपना शरीर और होंठ हिला लेना उन्हें कंटैंट लगता है.

आमतौर पर इन्फ्लुएंसर्स के लिए रील का कंटैंट यही है तो इस अनुसार इस से कहीं ज्यादा अच्छा कंटैंट एआई देने में सक्षम है. आज एआई इस फील्ड में घुस रहा है. इस तरह के इन्फ्लुएंसर्स गढ़ने में कई हाईप्रोफाइल टीम जुट गई हैं. उन की टीम ऐसे एआई मौडल बनाने पर काम कर रही है जो एक कमांड में कुछ सैकंड के छोटे रील व वीडियो बनाने में सक्षम हों.

अलग यह है कि एआई इन्फ्लुएंसर्स कई भाषाओं में कंटैंट दे सकते हैं. इन के पास भाषा की रुकावट नहीं है. इन के पास उम्र की भी सीमा नहीं है. ये आज जिस तरह दिखाई दे रहे हैं, हर समय उसी तरह दिखाई दे सकते हैं. इसलिए इस तरह के इन्फ्लुएंसर्स ग्लोबली पौपुलर होने का दमखम रखते हैं. यही कारण भी है कि एटाना लोपेज, लिलमिकेला ग्लोबली फेमस हैं.

नामचीन भी एआई की दुनिया में

और तो और, अब फेमस सैलिब्रिटीज ने भी अपना एआई अवतार बनाना शुरू कर दिया है, जिस में बौलीवुड स्टार सनी लियोनी का नाम जुड़ा है. उस ने अपने डोपलैंगर अवतार पर कहा कि, ‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि यह मैं हूं. अब जब आप चाहें मुझ से बात कर सकते हैं और देख सकते हैं.’ इस इंस्टा पोस्ट पर उन्होंने ञ्चद्मड्डद्वशह्लश.ड्डद्ब को टैग किया.

पिछले साल साइंस फिक्शन पौपुलर वैब सीरीज ‘ब्लैक मिरर’ का 6ठा सीजन आया था. उस में पहले एपिसोड ‘जोआन इज औफुल’ में इसी तरह के एआई अवतार की तरफ इशारा किया गया था. उस में दिखाया गया था कि कैसे एआई की मदद से अब परदे पर एआई सैलिब्रिटीज दिखाई जाएंगी जो हूबहू असल सैलिब्रिटीज की तरह ही होंगी. इस में रियल ऐक्ट्रैस के साथ कौन्ट्रैक्ट साइन होता है, फिर उस का एआई क्लोन बना कर फिल्म बना दी जाती है. यह सब आने वाले टाइम में सच साबित हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता.

लेकिन शुरुआत अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के साथ हो गई है, जहां उन का बाजार अब छिनता दिखाई दे रहा है. हालांकि इस तरह के एआई इन्फ्लुएंसर के साथ समस्या यह है कि ये चाहे परोस कैसा भी कंटैंट रहे हों, इन की बुनियाद झूठ पर टिकी होगी और कहे या बताए पर जल्दी भरोसा नहीं किया जा सकता. लेकिन सोशल मीडिया की बाढ़ में कौन,कब, कहां मिक्स हो जाए, पता नहीं चलता.

लवर औन मोबाइल औफ

एक तरफ सोशल मीडिया पर रिलेशनशिप आसानी से बनने लगे हैं वहीं दूसरी तरफ इसी के चलते टूट भी रहे हैं. हद से ज्यादा सोशल मीडिया में घुसे रहना रिश्तों में खटास लाता है. जरूरी है कि पार्टनर के साथ रहते सोशल मीडिया को म्यूट कर दिया जाए.

ब्लैक शौर्ट ड्रैस पहनी 20 साल की सारा आधे घंटे से अपने मोबाइल फोन में लगी हुई है. कभी वह टेबल पर सजी डिश की फोटो खींच रही है तो कभी वैन्यू का बूमरैंग बना रही है, कभी सैल्फी क्लिक कर रही है. इस के साथ वह तुरंत ही इन्हें अपनी इंस्टा स्टोरी, व्हाट्सऐप और स्नैपचैट पर लगा रही है. यह हाल उस का तब है जब वह पहले से ही विशेष से इस वैन्यू पर अपनी कई रील बनवा चुकी है.

विशेष काफी देर से यह सब देख रहा है. लेकिन कुछ बोल नहीं रहा. वह बस इंतजार कर रहा है कि कब सारा अपना फोन साइड में रखे और उस से बातें करे. लेकिन सारा को तो फुरसत ही नहीं है सोशल मीडिया से.

हद तो तब हो गई जब सारा इंस्ट्राग्राम पर लाइव चली गई. वह भी तब जब वह अपने पार्टनर के साथ डेट पर आई है. कौफी, पिज्जा, पास्ता सब ठंडा हो गया लेकिन सारा के हाथ से फोन नहीं छूटा. यह बात विशेष को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी. उस का पेशेंस अब जवाब दे चुका है.

विशेष सारा से भौंहें चढ़ाते हुए कहता है, ‘‘यह हमारी डेट है, तुम्हारा कोई व्लौग वीडियो नहीं, जो तुम फोन में ही लगी रहो. मैं भी चाहूं तो फोन में लग सकता हूं, बूमरैंग बना सकता हूं पर मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताना है. तुम्हारी वाइब एंजौय करनी है. तुम से बातें करनी हैं. तुम्हारा हाथ पकड़ कर बैठना है. लेकिन तुम अपना मोबाइल छोड़ो तो न. मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम मेरे साथ डेट पर नहीं आईं बल्कि अपने फोन के साथ आई हो.’’

यह सब सुन कर सारा ने कहा, ‘‘वेट न विशेष, अभी मैं इंस्टा पर लाइव हूं. तुम थोड़ा वेट नहीं कर सकते.’’

यह सुन कर विशेष ने थोड़ी देर इंतजार किया, फिर वहां से उठ कर चल दिया. इस के बावजूद सारा ने अपना इंस्टा लाइव बंद नहीं किया. 5 मिनट बाद जब वह असल दुनिया में आई तो देखा विशेष सामने नहीं था. उस ने उसे कौल किया.

गुस्से में विशेष ने उस की कौल नहीं उठाई. सारा ने कई बार कौल किया लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ.

कई दिन हो गए विशेष और सारा के बीच में कोई बात नहीं हुई. न सारा ने अपने बिहेवियर के लिए सौरी कहा, न ही विशेष ने पैचअप करने की कोशिश की. फिर एक दिन विशेष को अपने म्यूचुअल फ्रैंड से पता चला कि सारा किसी और को डेट कर रही है और उसे वह लड़का सोशल मीडिया में ही मिला था.

सारा का विशेष से दूसरा ब्रेकअप था. उस के दोनों ब्रेकअप होने की वजह सोशल मीडिया पर हद से ज्यादा समय बिताना था. रील्स की लत उसे ऐसी लगी है कि बातें करतेकरते वह रील भी देखती रहती है. वह हर वक्त सोशल मीडिया में ही घुसी रहती थी, फिर चाहे वह किसी रोमांटिक डेट पर आई हो या गोवा के बीच पर सनराइज का मजा ले रही हो. 24 घंटे उस के हाथ में मोबाइल ही होता था.

सोशल मीडिया की यह लत हर दूसरे यंगस्टर को है. मैट्रो सिटी में रहने वालों के रिश्ते भी सोशल मीडिया पर बन कर टूट रहे हैं. सारा और विशेष का उदाहरण ही है, जहां उन के रिलेशनशिप टूटने या उस में मनमुटाव आने का कारण सोशल मीडिया व उन का मोबाइल फोन का ज्यादा यूज करना है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशन करने वाली 19 साल की ईशा कहती है, ‘‘यह जो दौर चल रहा है वह दिखावट का दौर है. यंगस्टर्स पर्सनल लाइफ सोशल मीडिया पर परोसना पसंद करते हैं. असल में इन्हें लाइक, शेयर और सब्सक्राइब की लत लगी है और इसे पाने के लिए ये हौस्पिटल में बीमार पड़ी अपने परिवार की सदस्या की रील बनाने से भी नहीं हिचकिचाते.

यंगस्टर्स सोशल मीडिया का इतना दीवाना है कि वह अपने हर मूमैंट को कैप्चर करना चाहता है, चाहे वह पार्टनर के साथ प्राइवेट मूमैंट ही क्यों न हो. वह जल्दी से इन्हें इंस्टाग्राम फेसबुक, स्नैपचैट, व्हाट्सऐप जैसे सोशल साइट्स पर अपलोड करना चाहता है.

इन में ऐसे भी कुछ लोग हैं जो रियल लाइफ से ज्यादा रील लाइफ में जीते हैं. दिन में 10 बार अपना स्टेटस अपडेट करते हैं. इतने से भी मन नहीं भरता तो दूसरे के व्हाट्सऐप स्टेटस देखते रहते हैं. कभी उन की इंस्टाग्राम स्टोरी तो कभी रील देखने लगते हैं. यही है अब यंगस्टर्स की लाइफ. क्या पर्सनल क्या प्राइवेट, सब सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर ऐक्टिव

लोग कितना वक्त सोशल मीडिया पर बिताते हैं, वर्ल्ड स्टेटिक्स नाम के एक ट्विटर अकाउंट पर इस की जानकारी दी गई. इस रिपोर्ट के मुताबिक, नाइजीरिया सब से ऊपर है, जहां लोग करीब साढ़े 4 घंटे सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया पर सब से कम जापान के लोग ऐक्टिव रहते हैं. जापान के लोग सिर्फ 49 मिनट ही सोशल मीडिया पर बिताते हैं. यही कारण है कि वे टैक्नोलौजी में सब से आगे हैं. अगर जापान टैक्नोलौजी से अपना हाथ खींच ले तो दुनिया से 16 फीसदी टैक्नोलौजी गायब हो जाए. वहीं स्वीडन में यूजर्स करीब 1 घंटे 11 मिनट हर दिन सोशल मीडिया पर बिताते हैं.

अगर भारत की बात करें तो करीब 30 देशों की इस लिस्ट में भारत का 14वां स्थान है. यहां एक यूजर एक दिन में करीब 2 घंटे 44 मिनट सोशल मीडिया पर खर्च करता है. भारत में 3 में से 1 व्यक्ति सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है. अमेरिका में यह 2 घंटे 11 मिनट है. चीन में 2 घंटे 1 मिनट है. इस के अलावा कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्पेन, डेनमार्क और यूके में लोग करीब 2 घंटे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं.

पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया हमारी लाइफ, वर्क और रिलेशन पर इफैक्ट कर रही है. जहां एक ओर सोशल मीडिया से रिलेशनशिप बनते हैं तो बहुत से टूटते भी हैं.

सोशल मीडिया से रिलेशनशिप पर असर

सोशल मीडिया का ज्यादा यूज एक रिलेशनशिप को कितना इफैक्ट करता है, यह एक सर्वे में बताया गया. इस सर्वे में 2 हजार लोगों की प्राइवेट लाइफ, कम्युनिकेशन और ट्रस्ट का आंकलन किया गया और यह जाना गया कि वे एक कपल्स के तौर पर औनलाइन कितनी सामग्री साझा करते हैं.

सर्वे में 52 फीसदी कपल ने बताया कि वे वीक में 3 से ज्यादा बार अपने रिलेशनशिप की फोटोज, वीडियोज औनलाइन पोस्ट करते हैं. इस में हैरान करने वाली बात यह थी कि इन में से सिर्फ 10 फीसदी लोगों ने बताया कि वे अपने रिश्ते से ‘बहुत खुश’ हैं.

हर कोई सोशल मीडिया पर अपने रोमांटिक मूमैंट को दिखाना पसंद करता है, खासकर अपने वैकेशन को. लेकिन सर्वे से यह पता चला कि जो कपल यह दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर बारबार पोस्ट करते हैं कि वे अपने पार्टनर की कितनी सराहना करते हैं.

सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से रिलेशनशिप पर बुरा असर पड़ता है. जो कपल्स सोशल मीडिया पर अपनी प्राइवेट लाइफ ज्यादा शेयर करते हैं, उन के रिलेशन पर इस का नैगेटिव इफैक्ट पड़ता है. इस से कपल के बीच ट्रस्ट की कमी होती है. इस से शाई पार्टनर भी अनकंफर्टेबल फील करता है.

सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने के कारण आप अपने पार्टनर को समय नहीं दे पाते, जिस से आपस में कम्युनिकेशन गैप हो जाता है. अपने रिलेशन को मजबूत बनाने के लिए एकदूसरे से बातचीत करते रहना बहुत जरूरी है. जो कपल अपने पार्टनर को औनलाइन दिखाना पसंद करते हैं, वे अपने रिलेशन में ज्यादा खुश नहीं होते हैं. इस के कई कारण होते हैं.

सोशल मीडिया पर बारबार पोस्ट करना, स्पैशली कपल सैल्फी, दरअसल दूसरों का अटैंशन पाने का एक तरीका होता है. जो कपल अपने रिलेशनशिप में खुश नहीं हैं, वे अपने रिलेशन में महसूस होने वाली कमी की भरपाई के लिए ज्यादा से ज्यादा कपल पोस्ट का सहारा लेते हैं.

सोशल मीडिया पर लगातार दूसरे कपल्स के खुशी के पलों को देखने से कई कपल्स में जलन और अपने रिश्ते में स्पार्क की कमी की भावना पैदा होती है. लगातार हैप्पी मूमैंट्स और रोमांटिक मूमैंट्स को पोस्ट करने से कपल्स पर एक आइडियल इमेज पेश करने का प्रैशर आ जाता है, जो स्ट्रैसफुल और नकली हो सकता है. यह आइडियल कपल दिखने का प्रैशर सोशल मीडिया पर ज्यादा ऐक्टिव रहने का एक कारण है.

जो कपल अपने रिश्तों में कम सिक्योर फील करते हैं, वे सोशल मीडिया पर ‘हैप्पी रिलेशनशिप’ की इमेज पेश करने की कोशिश करते रहते हैं. इन पोस्ट के जरिए वे खुद को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि सबकुछ ठीक है. सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने से रिश्ते के भीतर मीनिंगफुल कम्युनिकेशन और किसी बहस को सौल्व कर के तरीके तक पहुंचने पर लगने वाला समय काफी ज्यादा हो सकता है.

अगर कोई अपने पार्टनर के साथ बात करने के बजाय इंस्टाग्राम फीड को स्क्रौल करने में ज्यादा इंटरैस्ट दिखाता है तो इस से आप के रिलेशन पर नैगेटिव इफैक्ट पड़ता है. जितना ज्यादा टाइम आप अपने फोन पर बिताएंगे, उतना ही ज्यादा आप अपने पार्टनर के साथ बिताए गए हैप्पी मूमैंट और मौजमस्ती के छोटेछोटे मूमैंट्स को मिस कर देंगे.

सोशल मीडिया पर कई लोग अपने इमोशंस, अपनी पर्सनल लाइफ में चल रही प्रौब्लम्स को शेयर करते हैं. अपने रिलेशनशिप की छोटीछोटी बातें शेयर करना सही नहीं है. इस से पार्टनर हर्ट हो सकता है. बेहतर यह है कि सोशल मीडिया को बहस की जगह न बनाएं बल्कि आपस में बात कर मुद्दों को सुलझाएं.

करें हर काम, माहवारी है आम

कुछ साल पहले मैं अपने परिवार के साथ जयपुर गया था. वहां टूरिस्ट बस हमें एक मंदिर तक ले गई थी. मेरे साथ वहीं का एक और परिवार भी था.

उस परिवार की एक महिला सदस्य उस मंदिर के अहाते तक तो गईं, पर जहां मूर्ति थी वहां जाने से उन्होंने मना कर दिया. मुझे लगा कि वे पहले कई बार यहां आ चुकी होंगी इसलिए नहीं जा रहीं लेकिन बाद में मेरी पत्नी ने बताया कि उन के ‘खास दिन’ चल रहे हैं इसलिए वे मंदिर में नहीं जाएंगी.

आप ‘खास दिनों’ से शायद समझ गए होंगे कि उस समय वे महिला माहवारी से गुजर रही थीं जिन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से तो मुश्किल माना जा सकता है पर अगर उन के नाम पर उन्हें दूसरे आम काम करने से रोका जाए तो यह उन के साथ नाइंसाफी ही कही जाएगी.

क्या है माहवारी

12 से 13 साल की उम्र में अमूमन हर लड़की के शरीर में कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जब वह बच्ची से बड़ी दिखने लगती है. इन्हीं बदलावों में से एक बदलाव माहवारी आना भी है. इस में उन्हें हर महीने 4-5 दिन के लिए अंग से खून बहता है जो तकरीबन 50 साल की उम्र तक जारी रहता है.

माहवारी एक सामान्य प्रक्रिया है, पर भारतीय समाज में फैली नासमझी के चलते जब तक महिलाएं माहवारी के चक्र में रहती हैं तब तक उन्हें बहुत से कामों से दूर रखने के कुचक्रों में उलझाए रखा जाता है. कहींकहीं तो इन दिनों के बारे में किसी को बताने से भी परहेज किया जाता है जबकि दक्षिण भारत में तो जब कोई लड़की रजस्वला हासिल करती है तो उत्सव सा मनाया जाता है. रिश्तेदारों को यह खुशखबरी दी जाती है, डंके की चोट पर.

पर हर जगह ऐसा नहीं है तभी तो जब किसी बच्ची को माहवारी आना शुरू होती है तो सब से पहले मां यही कहती सुनी जा सकती है कि बेटी, तुझे इन दिनों मंदिर या रसोईघर में नहीं जाना है. अपनों से बड़ों को खाना बना कर नहीं देना है. अचार को नहीं छूना है. खेलनाकूदना नहीं है.

कुछ घरों में तो कोई सदस्य लड़की को छू नहीं सकता और न ही वह किसी सदस्य को छू सकती है. उन्हें सोने के लिए अलग जगह व अलग बिस्तर तक ऐसे दिया जाता है, जैसे वे उन 4-5 दिनों के लिए अछूत हो गई हैं. यह सब आज 21वीं सदी में भी चालू है.

यह तो माना जा सकता है कि माहवारी के चलते लड़की या औरत के बरताव में बड़ा बदलाव आ जाता है, पर यह कोई हौआ नहीं है या कोई बीमारी भी नहीं जो उन्हें दूसरों से अलग होने का फरमान सुना दिया जाता है. यह तो कुदरत की देन है.

हां, अगर किसी को माहवारी नहीं आती है तो परेशानी की बात होती है, डाक्टर के पास जाने की नौबत आ जाती है क्योंकि अगर माहवारी नहीं आएगी तो शादी के बाद बच्चा पैदा नहीं होगा.

भारत में खासकर उत्तर भारत में माहवारी से जुड़े कई ऐसे अंधविश्वास हैं जिन्हें बिना किसी ठोस वजह के सच मान लिया जाता है. जैसे इन दिनों में उन्हें ज्यादा भागदौड़ या कसरत नहीं करनी चाहिए, जबकि यह सोच गलत है, क्योंकि बेवजह के ज्यादा आराम से शरीर में खून का दौरा अच्छे से नहीं हो पाता और दर्द भी ज्यादा महसूस होता है.

डाक्टर भी मानते हैं कि अगर माहवारी के समय महिलाएं खेलतीकूदती या कसरत करती हैं तो इस से उन के शरीर में खून और औक्सिजन का दौरा अच्छे ढंग से होता है जिस से पेट में दर्द और ऐंठन जैसी समस्याएं नहीं होती हैं.

इन दिनों में घर की बड़ी औरतें हमेशा कहती हैं कि अचार को मत छूना नहीं तो वह खराब हो जाएगा जबकि ऐसा नहीं होता है.

इस की खास वजह यह है कि और दिनों के मुकाबले ज्यादा साफसफाई रखने से माहवारी के दिनों में लड़की के शरीर या हाथों में जीवाणु, विषाणु या कीटाणु नहीं होते हैं तो अचार को छूने से वह खराब कैसे हो जाएगा? और अगर ऐसा होता तो फिर उन की छुई खाने की हर चीज ही जहर हो जानी चाहिए.

पंडितों ने जानबूझ कर औरतों को नीचा दिखाने के लिए माहवारी को पाप का नाम दे दिया और पहले लोगों को लूटने के लिए मंदिर बनवा दिया, फिर औरतों को खास दिनों में आने से बंद करवा कर ढिंढोरा पिटवा दिया कि वह गंदी है.

मतलब, हद है पोंगापंथ की. जिस मंदिर की गद्दी को पाने के लिए पंडेपुजारियों में खूनखच्चर तक हो जाता है या बेजबान पशुओं की बलि दे कर खून बहाया जाता है, वह इस खून से कैसे अपवित्र हो सकता है?

अगर हम मान लें कि कहीं भगवान है और यह दुनिया उसी ने बनाई है तो फिर उस ने ही तो औरतों को माहवारी का वरदान दिया है. फिर भगवान अपनी ही दी हुई चीज से अपवित्र कैसे हो सकता है?

इन ‘खास दिनों’ में एक बात और सुनने को मिलती है कि माहवारी में रसोईघर में जाने से वह अपवित्र हो जाता है. लेकिन यहां एक बात सोचने की है कि अगर उस परिवार में एक ही औरत या लड़की है और उसे माहवारी है तो खाना कौन बनाएगा? सारे घर को बता दिया जाता है कि वह तो इस समय गंदी है.

औरतों को चाहिए कि वे इस के खिलाफ खड़ी हों. माहवारी के दिनों को खराब न समझें. जैसे रोज शौच करने जाते हैं वैसे ही माहवारी है. घर वालों से लड़ें. पंडों से लड़ें. भगवान में विश्वास न करें, पर पंडों से कहें कि वे तो मंदिर में घुसेंगी. वहां पूजा न करें क्योंकि कोई मूर्ति इस लायक नहीं है जो औरतों को नीचा दिखाए.

माहवारी जवानी की निशानी है. इसे मस्ती से जीते हुए सिर ऊंचा कर के चलें.

सांप काटने से ज्यादा मौत और अंधविश्वास

महाराष्ट्र के एक गांव नारायणगांव के डाक्टर सदानंद राउत और उन की पत्नी डाक्टर पल्लवी राउत ने जहरीले सांप के काटने का इलाज आज से 35 साल पहले अपने गांव में शुरू किया था. आज उन के गांव में सांप से काटे की मृत्युदर जीरो हो चुकी है, जो काबिलेतारीफ है. इस के लिए उन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं.

सांप काटने के इलाज के बारे में पूछने पर डाक्टर सदानंद राउत ने बताया, ‘‘मैं वर्ल्ड हैल्थ और्गनाइजेशन और नैशनल प्रोटोकोल ट्रीटमैंट गाइडलाइंस के आधार पर इलाज करता हूं. इस में ‘एंटी स्नेक वैनम’ जितनी जल्दी हो सके पीडि़त को देता हूं. इस के अलावा बाकी जो भी इमर्जैंसी लक्षण पीडि़त में दिखते हैं, उन के आधार पर इलाज करता हूं.

‘‘मेरी पत्नी डाक्टर पल्लवी भी इस काम में मेरा हाथ बंटाती हैं. इस काम को करने का मकसद हम दोनों को तब मिला था, जब एक दिन एक 8 साल की लड़की को उस के परिवार वाले हमारे पास ले कर आए थे, जिसे कोबरा सांप ने काटा था और 20 मिनट के बाद ही वह मु?ा तक पहुंची थी, लेकिन उस की मौत हो चुकी थी.

‘‘इस के बाद से हम ने स्नेक बाइट के पीडि़तों का इलाज करने का संकल्प लिया, लेकिन गांवदेहात के इलाकों में आज भी अंधविश्वास बहुत ज्यादा है और गांव वाले हमारे इलाज को सही नहीं सम?ाते थे.

‘‘वे तांत्रिक और झाड़फूंक वाले को अस्पताल में छिपा कर लाने लगे थे. अगर पीडि़त ठीक हो जाता था, तो उस का क्रेडिट तांत्रिक को मिलता था और अगर कुछ गलत हुआ, तो उस का खमियाजा मु?ो भोगना पड़ता था.’’

डाक्टर सदानंद राउत ने आगे बताया, ‘‘इस के बाद मैं गांव के लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए वर्कशौप करने लगा. करैत सांप के काटने पर पीडि़त 2 हफ्ते तक गहरे कोमा में जा सकता है और उसे वैंटिलेटर पर रखना पड़ता है, लेकिन गांव वाले सोचते थे कि मैं पैसे बनाने के लिए पीडि़त को वैंटिलेटर पर रख रहा हूं, पर ऐसा नहीं था और इसीलिए वहां के नौजवानों को जागरूक करना जरूरी था.’’

समस्या अंधविश्वास की शुरूशुरू में 10 साल का एक बच्चा जब डाक्टर सदानंद राउत के पास करैत सांप के काटने पर कोमा की हालत में आया, तो उसे 6 दिनों तक वैंटिलेटर पर रखने के बावजूद उसे होश नहीं आया. उस के दादा और गांव के बड़े बुजुर्ग उस बच्चे को मरा हुआ सम?ा रहे थे और अस्पताल से ले जाना चाहते थे.

डाक्टर सदानंद राउत ने उस बच्चे के परिवार को मौनिटर पर दिखाया और सम?ाया कि बच्चे का दिल धड़क रहा है और वह जिंदा है. 10 दिन बाद बच्चे की आंखों की पुतली हिली और 13 दिन में वह ठीक हो गया.

अपने ‘जीरो स्नेक बाइट डैथ’ मिशन के बारे में डाक्टर सदानंद राउत बताते हैं, ‘‘इस के बाद मैं ने छोटेछोटे आदिवासी गांवों में स्कूलकालेजों और दूसरी संस्थाओं के सारे हैड को स्नेक बाइट जागरूकता मुहिम में शामिल किया. दूसरे लोग भी इस में सहयोग देने लगे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि यह जिंदगी बचाने की मुहिम है.

‘‘गांव के लोगों को सम?ा में आ गया था कि सांप कितना भी जहरीला क्यों न हो, काटने के तुरंत बाद में पीडि़त को अस्पताल ले आने पर उसे बचाया जा सकता है.’’

एकएक सैकंड है खास डाक्टर सदानंद राउत बताते हैं, ‘‘जहरीले सांप के काटने से ज्यादातर कार्डिएक अरैस्ट (दिल का रुकना) होता है, जो एक मिनट के अंदर ही हो जाता है. ऐसे मरीज को जल्द से जल्द डाक्टर तक पहुंचा दें, ताकि समय पर इलाज शुरू हो जाए.

‘‘ज्यादातर लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है, इसलिए किसी तांत्रिक या ?ाड़फूंक वाले के पास न जा कर पीडि़त को तुरंत पास के किसी भी अस्पताल और डाक्टर के पास ले जाएं.’’

ऐसे बचें सांप के काटे से अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं, जहां पर जहरीले सांप ज्यादा पाए जाते हैं, तो इन उपायों पर जरूर ध्यान दें :

* गम शूज पहनें.

* पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें.

* घास पर काम करने से पहले छड़ी का इस्तेमाल करें.

* सही रास्ते पर चलें, जंगल के बीच से नहीं.

* रात में काम करते समय बैटरी और छड़ी का इस्तेमाल करें.

* जमीन पर न सोएं.

* मच्छरदानी का इस्तेमाल करें.

* घर को साफ रखें, ताकि चूहे अंदर न रहें.

* आसपास के पेड़ों की छंटाई करते रहें, ताकि खिड़की के पास की टहनियों से सांप कमरे में न आ सकें.

लगातार बढ़ता कुत्तों का खौफ

देशभर में कुत्तों का खौफ बढ़ रहा है. भोपाल शहर में 16 जनवरी, 2024 को 1-2 नहीं, बल्कि 45 लोगों को कुत्तों ने काट लिया था. इस के हफ्तेभर पहले ही कारोबारी इलाके एमपी नगर में महज डेढ़ घंटे में 21 लोगों को कुत्तों ने काटा था. छिटपुट घटनाओं की तो गिनती ही नहीं.

लेकिन दहशत उस वक्त भी फैली थी, जब अयोध्या इलाके में रहने वाले एक मजदूर परिवार के 7 महीने के मासूम बच्चे को कुत्तों के झुंड ने घसीट कर काटकाट कर मार डाला था. उस बच्चे का एक हाथ ही कुत्तों ने बुरी तरह से चबा डाला था.

देश के हर छोटेबड़े शहर की तरह भोपाल भी कुत्तों से अटा पड़ा है. कुत्तों की सही तादाद का आंकड़ा नगरनिगम के पास भी नहीं है, लेकिन पालतू कुत्तों की संख्या केवल 500 है. इतने ही लोगों ने अपने पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन कराया है, वरना तो पालतू कुत्तों की तादाद 10,000 से भी ज्यादा है.

लेकिन नई समस्या पालतू या आवारा कुत्तों की तादाद से ज्यादा उन का खौफ है, जिस का किसी के पास कोई हल या इलाज नहीं दिख रहा है.

इलाज तो कुत्तों के काटे का भी सभी को नहीं मिल पाता, क्योंकि ऐसे बढ़ते मामलों के मद्देनजर अस्पतालों में एंटी रेबीज इंजैक्शनों का टोटा पड़ने लगा है.

10 जनवरी, 2024 को कुत्ते के काटने के बाद जब 45 लोग एकएक कर जयप्रकाश अस्पताल पहुंचे थे, तब कुछ को ही ये इंजैक्शन मिल पाए थे.

वैसे तो कुत्तों का खौफ पूरे देश और दुनियाभर में है, लेकिन भोपाल के हादसों ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है सिवा सरकार और नगरनिगम के, जिन का कहना यह है कि जब वे कुत्तों पर कोई कार्यवाही करते हैं, तो ?ाट से कुत्ता प्रेमी आड़े आ जाते हैं.

14 जनवरी, 2024 को जब नगरनिगम की टीम आवारा कुत्तों को पकड़ने पिपलानी इलाके में पहुंची, तो एक कुत्ता प्रेमी लड़की उस टीम से भिड़ गई. नगरनिगम ने उस लड़की के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी.

यह जान कर हैरानी होती है कि भोपाल में नगरनिगम अमला अब तक तकरीबन 7 कुत्ता प्रेमियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा चुका है.

क्या करें इन कुत्तों का

जाहिर है कि कुत्ता प्रेमियों का विरोध ‘कुत्ता पकड़ो मुहिम’ में बाधा बनता है. कई एनजीओ तो बाकायदा कुत्ता प्रेम से फलफूल रहे हैं. इन की रोजीरोटी ही कुत्ता प्रेम है. इन लोगों को उन मासूमों की मौत से कोई लेनादेना नहीं, जिन्हें कुत्तों ने बेरहमी से काटकाट कर और घसीटघसीट कर मार डाला.

आवारा और पालतू कुत्तों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है, तो इस की बड़ी वजह कुत्तों की नसबंदी न हो पाना भी है जो आसान काम नहीं, लेकिन इस बाबत तो स्थानीय निगमों को जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी कि वे ढिलाई बरतते हैं और हरकत में तभी आते हैं, जब हादसे बढ़ने लगते हैं.

लाख टके का सवाल जो मुंहबाए खड़ा है वह यह है कि इन कुत्तों का क्या किया जाए? इन्हें मारो तो दुनियाभर के लोगों की हमदर्दी और कानून आड़े आ जाते हैं और न मारो तो बेकुसूर लोग परेशान होते हैं. कई मासूमों की मौत ने तो इस चिंता को और बढ़ा दिया है. जहां नजर डालें, चारों तरफ कुत्ते ही कुत्ते दिखते हैं.

धर्म भी कम जिम्मेदार नहीं

कुत्तों के हिंसक होने की कोई एक वजह नहीं होती. भोपाल के हादसों के बीच कुछ ज्ञानियों ने मौसम को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की, लेकिन यह दलील लोगों के गले नहीं उतरी.

असल में लोगों की धार्मिक मान्यताएं भी इस की जिम्मेदार हैं, जो यह कहती हैं कि कुत्तों को शनिवार के दिन खाना खिलाने से जातक पर शनि और राहू का प्रकोप नहीं होता. भोपाल में जगहजगह ऐसे सीन देखने को मिल जाते हैं, जिन में राहूशनि पीडि़त लोग कुत्तों का भंडारा कर रहे होते हैं.

भोपाल के ही शिवाजी नगर इलाके में हर शनिवार की शाम एक बड़ी कार रुकती है, तो कुत्ते जीभ लपलपाते उस की तरफ लपक पड़ते हैं.

इस गाड़ी से 2 सभ्य सज्जन उतरते हैं और कुत्तों को बिसकुट, रोटी, ब्रैड वगैरह खिलाते हैं और इतने प्यार से खिलाते हैं कि पलभर को आप यह भूल जाएंगे कि इन कुत्तों की वजह से औसतन 5 लोग रोज अस्पतालों के चक्कर काटते हैं और हैरानपरेशान होते हैं.

कहना तो यह बेहतर होगा कि इन धर्मभीरुओं की वजह से लोग तकलीफ उठाते हैं और पैसा भी बरबाद करने को मजबूर होते हैं.

कुत्तों के इस सामूहिक और सार्वजनिक भोज के नजारे में दिलचस्प बात यह भी है कि इस वक्त कुत्ते बिलकुल इनसानों की तरह अपनी बारी के आने का इंतजार इतनी शांति और अनुशासन से करते हैं कि लगता नहीं कि ये वही कुत्ते हैं, जो बड़ी चालाकी से घात लगा कर राह चलते लोगों की पिंडली अपने दांतों में दबा लेते हैं या फिर ग्रुप बना कर ‘भोंभों’ करते हुए राहगीरों और गाडि़यों पर ?ापट्टा मारते हैं.

नेताओं के प्रिय कुत्ते

इस में शक नहीं है कि गाय के साथसाथ कुत्ता पुराने जमाने से ही आदमी का साथी और पालतू रहा है. महाभारत काल में तो कुत्ता पांडवों के साथ स्वर्ग तक गया था.

हुआ यों था कि धर्मराज के खिताब से नवाजे गए युधिष्ठिर के लिए जब स्वर्ग का दरवाजा खुला, तो वे अड़ गए कि जाऊंगा तो कुत्ता ले कर ही, वरना नहीं जाऊंगा.

बात बिगड़ने लगी, तो उपन्यासकार वेद व्यास ने सुखांत के लिए यह बताते हुए सस्पैंस खत्म किया कि उस कुत्ते के वेश में यमराज ही थे, जो युधिष्ठिर का इम्तिहान ले रहे थे.

यानी, पौराणिक काल से ही कुत्ता आम के साथसाथ खास लोगों और शासकों का प्रिय रहा है. मौजूदा दौर में कई नेताओं का कुत्ता प्रेम अकसर खबर बनता है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रिय कुत्ता कालू तो इंटरनैट सैलिब्रिटी कहलाता है. यह लैब्राडोर नस्ल का कुत्ता गोरखपुर में उन के मठ में रहता है और पनीर खाने का शौकीन है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी कुत्तों के शौकीन हैं. उन के नए कुत्ते का नाम ‘नूरी’ है, जो उन्होंने अपनी मां सोनिया गांधी को कर्नाटक चुनाव के दौरान तोहफे में दिया था. इस कुत्ते की नस्ल जैक रसेल टैरियर है.

यहां बताना प्रासंगिक है कि इस कुत्ते (शायद कुतिया) का नाम ‘नूरी’ रखने पर एआईएमआईएम के एक नेता मोहम्मद फरहान ने इसे उन लाखों मुसलिम लड़कियों की बेइज्जती बताया था, जिन का नाम नूरी है.

भोपाल के हादसों के बाद साध्वी उमा भारती ने भी कुत्ता प्रेमियों को लताड़ लगाई थी. कुत्तों के खौफ से बचने के लिए उन्होंने कुत्तों के लिए अलग से अभयारण्य बनाए जाने की बात कही थी. मुमकिन है, अब गौशालाओं की तर्ज पर कुत्ताशालाएं खुलने की मांग उठने लगे.

लेकिन हल यह है

देशभर में कुत्तों के काटने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023 में 27 लाख,

50 हजार लोगों को कुत्तों ने काटा था. यह एक चिंताजनक आंकड़ा है, क्योंकि इन में से 20,000 लोग रेबीज से मरे. ऐसे में कोई वजह नहीं कि कुत्तों से हमदर्दी रखी जाए, लेकिन उन्हें मार देना भी हल नहीं.

बेहतर तो यह होगा कि लोग कुत्ते पालना बंद करें, इन्हें खाना देना बंद करें, अपने धार्मिक अंधविश्वास छोड़ें. इन सब से समस्या खत्म भले न हो, लेकिन कम तो जरूर होगी.

तन्मय अग्रवाल : गेंदबाजों को धुन कर बनाया एक नया क्रिकेट रिकॉर्ड

इतिहास बनाने वाले अनेक नहीं होते कोई एक होता है जो अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर जीत दर्ज करता है. ऐसा ही कुछ हुआ जिसके कारण आज तन्मय अग्रवाल का नाम बल्लेबाज के रूप में सम्मान से लिया जा रहा है. तन्मय धरमचंद अग्रवाल का जन्म 3 मई, 1995 को हुआ. ये एक भारतीय क्रिकेटर हैॆ जो हैदराबाद के लिए खेलते हैं. तन्मय एक बाएं हाथ के शीर्ष क्रम के बल्लेबाज हैं. उन्होंने 2014 में हैदराबाद के लिए अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट और लिस्ट ए क्रिकेट दोनों की शुरुआत की थी.

रणजी ट्राफी में 26 जनवरी, 2024 के दिन अरुणाचल प्रदेश और हैदराबाद के बीच खेला गया मुकाबला इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. सिर्फ एक दिन के खेल में तन्मय अग्रवाल ने धुआंधार अंदाज में गेंदबाजों की पिटाई करते हुए तिहरा शतक जमा कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. सिर्फ 147 गेंद पर 21 छक्के और 33 चौके की मदद से तन्मय अग्रवाल नामक इस नए बल्लेबाज ने 323 रन ठोंक कर दिखा दिया कि आने वाले समय में वह देश के लिए क्या कुछ कर सकता है.

आप को बता दें कि 28 साल के तन्मय अग्रवाल का क्रिकेट की तरफ नन्ही उम्र में ही शौक पैदा हो गया था. पिता ने इन्हें क्रिकेट की तरफ प्रोत्साहित किया और देखते ही देखते तन्मय के धमाकेदार खेल का नतीजा था कि उन्होंने हैदराबाद अंडर-14 टीम में जगह बनाई.

यही नहीं, इस के बाद तन्मय अग्रवाल अंडर-16, अंडर-19, अंडर-22 और अंडर-25 टीम में जगह बनाने में कामयाब हुए. दरअसल, 2014 में तन्मय को प्रथम श्रेणी क्रिकेट में खेलने का मौका मिला था. अभी तक वे हैदराबाद के लिए 56 प्रथम श्रेणी मैचों में 3,500 से अधिक रन बना चुके हैं. इतना ही नहीं, वे इंडियन प्रीमियर लीग में सनराइजर्स हैदराबाद के लिए साल 2017 और 2018 में टीम का हिस्सा भी बन कर अपनी चमक बिखेर चुके हैं.

महत्वपूर्ण यह है कि तन्मय अग्रवाल ने अब दक्षिण अफ्रीका के मार्को माराइस के 191 गेंद पर बनाए तिहरे शतक के रिकार्ड को 147 गेंद पर बना कर तोड़ डाला है. इसी कारनामे को वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स ने 244 गेंद पर अंजाम दिया था. एक दिन में 300 रन बना कर तन्मय अग्रवाल ने भारतीय दिग्गज वीरेंद्र सहवाग को भी पीछे छोड़ दिया. 2009 में उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ ब्रेबोर्न टेस्ट में एक दिन में 284 रन बनाए थे.

तन्मय अग्रवाल ने अपनी इस ऐतिहासिक पारी के बाद मीडिया से रूबरू हो कर कहा, ‘यह पूर्व नियोजित पारी नहीं थी. यह एक और सामान्य दिन था और मैं हर पारी में जिस तरह से खेलता हूं उसी तरह खेल रहा था. मैं ने इस सीजन के लिए कोई लक्ष्य नहीं तय किया था. मैं बस अच्छी बल्लेबाजी करना चाहता था. यह मानसिकता मददगार रही. अच्छा लगता है कि मेरा नाम सूची में सब से ऊपर है.

‘मैं अपने परिवार और दोस्तों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने इतने वर्षों तक मेरा समर्थन किया. बिना उन के समर्थन के यह सफलता प्राप्त करना आसान नहीं था.’

 

पाखंड की गिरफ्त में समाज, वजह जानकर हो जाएंगे शर्मसार

अंधविश्वास

रामप्यारे महतो गया जिले के एक गांव अमौना के रहने वाले हैं. वे अपनी पतोहू कलावती देवी को मगध मैडिकल अस्पताल, गया में ले कर आए थे, जहां उसे बेटा पैदा हुआ. नर्स ने ज्यों ही बताया कि लड़का पैदा हुआ है, बगल में अपनी पत्नी की जचगी कराने आए एक पंडे ने बताया कि भूल कर भी अपने बेटे को नहीं देखना, क्योंकि इस का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है.

यह बात रामप्यारे महतो के परिवार में चिंता की वजह बन गई. इस के बाद रामप्यारे महतो ने अपने पुरोहित किशोर पंडित के घर जा कर जब सारी बातें बताईं तो उन्होंने बताया कि अगर लड़का मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है तो ग्रह को शांत करने के लिए कुछ विधिविधान करना पड़ेगा.

यह है मूल नक्षत्र

किशोर पंडित के मुताबिक, उग्र और तीक्ष्ण नक्षत्र वाले को मूल नक्षत्र, सतईसा या गंडात कहा जाता है. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो इस का असर बालक और उस के मातापिता पर पड़ता है. मूल नक्षत्र के भी कई चरण हैं. पहले चरण में अगर बालक पैदा होता है तो उस का बुरा असर पिता के ऊपर होता है. अगर दूसरे चरण में बेटा पैदा होता है तो माता के ऊपर. अगर तीसरे चरण में पैदा होता है तो इस का बुरा असर लड़के पर पड़ता है.

किशोर पंडित अपने शास्त्र, जो खासकर नक्षत्र से ही संबंधित स्पैशल किताब है, में देख कर बताते हैं कि बालक मूल नक्षत्र के पहले चरण में पैदा हुआ है, इसलिए इस का बुरा असर बालक के पिता के ऊपर पड़ेगा. पिता को बिना मूल नक्षत्र की शांति का उपाय किए बालक का मुंह 27 दिनों तक नहीं देखना है. इस के लिए पूजापाठ कराना पड़ेगा, ब्राह्मणों, गांव वालों और रिश्तेदारों को खाना खिलाना पड़ेगा और दानदक्षिणा देनी पड़ेगी.

पंडितजी ने कहा कि आप दिल खोल कर परिवार को खिलाएं और ब्राह्मणों को बढ़चढ़ कर दान दें. इस से मूल की शांति जरूर होगी और बालक के साथसाथ उस के मातापिता को भी कोई परेशानी नहीं होगी.

रामप्यारे महतो के परिवार वालों ने इस का पूरा इंतजाम किया और पूजापाठ, हवन के साथ 11 ब्राह्मणों को खाना खिलाया और दानदक्षिणा दी.

रामप्यारे महतो ने सूद पर 50,000 रुपए ले कर खर्च किए, पर समाज के किसी भी शख्स ने सम झाने की कोशिश नहीं की कि इस से कुछ नहीं होता. उन्होंने पंडे की बातों में ही हां में हां मिलाने का काम किया.

पापपुण्य और विज्ञान

पापपुण्य और विज्ञान में फर्क यह है कि विज्ञान सभी लोगों के लिए एकसमान काम करता है. जहर खाने से हर धर्म को मानने वाला मरेगा ही. आग का काम जलाना है. कोई भी धर्म मानने वाला उसे छुएगा तो उस का हाथ जलेगा. ऐसा कभी नहीं हो सकता कि हिंदू को आग गरम लगे और ईसाई व मुसलिम को ठंडी.

चाल को समझें

इन पंडों के मूल ढकोसले को समझने की कोशिश करें. इतना सभी को जान लेना चाहिए कि मूल नक्षत्र केवल हिंदुओं के यहां होते हैं.

अगर मूल नक्षत्र में जन्म लेने से इस तरह की अनहोनी होती है तो मुसलिम और ईसाई धर्म वालों के यहां भी बच्चा पैदा होने पर इस तरह की घटनाएं घट सकती हैं, लेकिन मुसलिम और ईसाई धर्म समेत दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग जानते भी नहीं हैं कि मूल नक्षत्र क्या होता है?

पाखंड का जाल

पंडों ने समाज में अपने फायदे के लिए इस तरह से शास्त्रों को बनाया है कि कमेरा तबका डर से उन की बातों को मानता रहे. ये परजीवी लोगों को बेवकूफ और अंधविश्वासी बना कर लूटते आ रहे हैं. कमेरे तबके में भी पढ़ेलिखे और नौकरी कर रहे लोग इन धार्मिक पाखंडों को हवापानी देने का काम कर रहे हैं.

सवर्णों के साथसाथ अन्य पिछड़ा वर्ग और कारोबारी तबके के लोग भी इन बातों का पालन करते हैं. इन दकियानूसी बातों को मानते हैं, लेकिन इस का चलन दलित समुदाय में नहीं के बराबर है. इस की अहम वजह यह भी हो सकती है कि दलित समुदाय को लोग अछूत मानते आ रहे हैं.

गौहत्या का मसला

इसी तरह पदार्थ यादव जहानाबाद जिले के गांव ओरा का रहने वाला है. उस की गाय रात में अचानक मर गई. सुबह जब परिवार और गांवभर के लोगों ने देखा तो वे आपस में बातें करने लगे कि पगहा यानी रस्सी बंधी हुई गाय की मौत हो जाती है तो गौहत्या का पाप लग जाता है.

बिहार के गांवों में रहने वाले लोग इस बात को जानते हैं, इसलिए जब भी किसी किसान या मजदूर के यहां जानवर गंभीर रूप से बीमार होता है तो लोग रस्सी को सब से पहले खोल देते हैं.

पदार्थ यादव के पुरोहित यानी उन के गांव के ही पंडित रामाशंकर ने बताया कि इस गौहत्या से बचने के लिए जिस ने गाय को बांधा था, उसे पंचगव्य (दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर से मिला कर बनाया जाता है) थोड़ा सा खा कर और पूरे शरीर पर लगा कर गंगा स्नान करना पड़ेगा और गंगाजल ला कर पूरे घर में छिड़क कर पहले घर को शुद्ध करना होगा.

इतना ही नहीं, उस के बाद सत्यनारायण की कथा के साथसाथ 5 ब्राह्मण परिवारों को खाना खिलाना पड़ेगा, पूजापाठ, हवन वगैरह तो होगा ही.

एक तो गाय मरने का दुख, ऊपर से इन कामों में 50,000 रुपए अलग से खर्च. पदार्थ यादव के मैट्रिक पास लड़के अजय ने कहा कि हमें यह सब नहीं करना है तो गांव वाले इस का विरोध करने लगे और बोलने लगे कि यह तो करना ही पड़ेगा. अगर नहीं करोगे तो तुम्हारे यहां कोई परिवार कभी नहीं खाएगा. अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो भीख भी मांग कर तुम्हें यह करना पड़ेगा.

पदार्थ यादव का परिवार मजबूर हो गया और अपनी भैंस 40,000 रुपए में बेच कर ब्राह्मण भोज खिलाया, पूजापाठ किया और दानदक्षिणा दी.

लूट है जारी

इस तरह हमारे समाज में जन्म से ले कर मरने तक पंडों द्वारा कमेरा तबके को बेवकूफ और अंधविश्वासी बना कर लूटने की परंपरा 21वीं सदी में भी जारी है. झूठ की संस्कृति को हवापानी देने का काम कमेरे तबके के लोगों में पढ़ेलिखे ही कर रहे हैं. अपनी मेहनत से जो लोग पढ़लिख गए हैं, नौकरी या कारोबर कर रहे हैं, उन्हें पंडों की इस साजिश को समझना चाहिए, लेकिन वे और ही ज्यादा धर्म से डरने वाले और अंधविश्वासी हैं.

एक आम आदमी, जिस की मासिक आय 10,000 रुपए है, वह भी इन धार्मिक संस्कारों, पूजापाठ पर औसतन साल में 10-20 हजार रुपए खर्च कर देता है. जन्म से ले कर मरने तक सभी संस्कारों में पूजापाठ और पंडों को दानदक्षिणा देने की परंपरा आज भी है. बच्चा के जन्म लेने पर जन्मोत्सव, जनेऊ संस्कार, बच्चे के नामकरण और जन्म होने पर उस की शादी में तरहतरह के कर्मकांड कराए जाते हैं, जिन में इन पंडों का ही अहम रोल होता है.

मरने पर ब्रह्मभोज किया जाता है जिंदा रहने पर अपने पुरखों को कभी अच्छा खाना दिया हो या नहीं, पर मरने पर उन के मुंह में पंचमेवा ठूंसा जाता है. मृत शरीर को घी लगाया जाता है. जिंदा रहते जिन्हें खाने के लिए कभी घी दिया नहीं, उन्हें जलाने के लिए घी, चंदन और धूपअगरबत्ती का इस्तेमाल किया जाता है.

आज भी लोगों के मरने पर बाल मुंड़ाए जाते हैं. जमीन बेच कर, गिरवी रख कर, सूद पर पैसा ले कर भी ब्रह्मभोज कराना पड़ता है. जो लोग अगर इसका बहिष्कार करने की हिम्मत जुटाते हैं, उन्हें समाज से ही बाहर होना पड़ता है.

पंडों ने एक साजिश के तहत ऐसे धर्मग्रंथों की रचना की, जिस से मेहनत करने वाला कमेरा तबका अपनी मेहनत का एक हिस्सा इन काहिलों के ऊपर खर्च करता रहे और इन का परिवार बिना मेहनत किए लोगों को बेवकूफ बना कर लूटता रहे.

बीवी का चालचलन, शौहर का जले मन

दुनिया का सब से हसीन और खूबसूरत रिश्ता पतिपत्नी का ही माना जा सकता है, जिस में 2 अनजान लोग जिंदगी के सफर में कदम से कदम मिला कर चलते हैं, एकदूसरे के सुखदुख के भागीदार बनते हैं और घरगृहस्थी की जिम्मेदारी निभाते हुए बुढ़ापे में एकदूसरे का पूरा खयाल भी रखते हैं.

लेकिन यह रिश्ता कांच जैसा नाजुक भी बहुत होता है, जिस में एक कंकड़ भी पड़ जाए तो यह कुछ ऐसा दरकता है कि इस में सिवा अंधेरे के कुछ और नहीं दिखता. इस कंकड़ का नाम है शक.

कुछ चुनिंदा मामलों को छोड़ दें तो शक यों ही दिलोदिमाग में घर नहीं करता है. दरअसल, यह एक किस्म की बीमारी है जो अगर समय रहते दूर न हो तो यकीन में बदलने लगती है.

कामयाब और खुशहाल शादीशुदा जिंदगी की एक शर्त पतिपत्नी का एकदूसरे के प्रति ईमानदार रहना भी है और उस से भी ज्यादा अहम है एकदूसरे पर भरोसा होना. दोनों में से कोई भी इसे तोड़ता है तो जिंदगी भार बन जाती है.

हमारे समाज पर पकड़ और दबदबा मर्दों का है, जो घर के मुखिया भी होते हैं. इस नाते उन्हें औरतों के मुकाबले ज्यादा हक मिले हुए हैं, जिन का अगर वे बेजा इस्तेमाल करें तो किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता, पर औरतों पर आज भी कई बंदिशें हैं. इन में से एक है बहैसियत बीवी का किसी पराए मर्द की तरफ आंख उठा कर भी न देखना, फिर मर्द भले ही इधरउधर मुंह मारता फिरे, उसे दोष नहीं दिया जाता.

इस में भी कोई शक नहीं है कि कुछ बीवियां, वजह कुछ भी हो, अगर ये बंदिशें तोड़ती हैं तो एक जुर्म का जन्म और 2 जिंदगियों का खात्मा होता है. एक शौहर अपनी बीवी की कई जिद और ज्यादतियां बरदाश्त कर लेता है, लेकिन उस की बेवफाई पर मरनेमारने की हद तक तिलमिला उठता है. ऐसा इसलिए है कि वह बीवी को अपनी जायदाद समझता है और यह बात उसे बचपन में ही समझ आ जाती है कि बीवी किसी और से सैक्स करे तो गुनाहगार होती है, जिस की सजा भी उसे ही तय करनी है.

लेकिन अकसर शौहर के शक बेबुनियाद होते हैं, पर इस का मतलब यह नहीं है कि सभी बीवियां सतीसावित्री या पाकसाफ होती हैं, बल्कि यह है कि यह समस्या का हल नहीं है. समस्या और उस के हल को समझने से पहले कुछ ताजा हादसों पर नजर डालना जरूरी है :

-छत्तीसगढ़ के जांजगीरचांपा के रहने वाले 21 साला सिक्योरटी गार्ड संजय कुमार सूर्यवंशी ने अपनी 20 साला बीवी नीलम प्रधान की बेरहमी से गला घोंट कर बीती 8 जनवरी को हत्या कर दी. पकड़े जाने के बाद संजय ने जो वजह बताई वह यह थी कि नीलम अकसर मोबाइल फोन पर बातचीत और चैटिंग में बिजी रहती थी, इसलिए उसे उस के चालचलन पर शक हो चला था. इस हादसे में हैरानी की बात यह है कि इन दोनों ने 2 साल पहले ही लव मैरिज की थी.

-राजस्थान के जोधपुर की भोपालगढ़ तहसील के गांव मिंडोली के बाशिंदे 25 साला श्रवण कुमार भील को अपनी 20 साला बीवी जतनबाई के चालचलन पर महज इसलिए शक हो गया था कि शाम को काम के बाद जब वह घर लौटता था तो बीवी घर पर नहीं मिलती थी.

5 महीने से शक की आग में जल रहे श्रवण ने आखिकार बीती 23 दिसंबर की आधी रात को बिजली के तार से गला दबा कर बीवी की हत्या कर दी. उस समय जतनबाई पेट से थी. इन दोनों की शादी 5 साल पहले हुई थी.

-छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के बलरामपुर में होटल दीपक में एक पतिपत्नी बीती 8 जनवरी को मरे हुए मिले थे. पति विद्युत विश्वास की लाश कमरे के बाथरूम में फंदे पर झूलती मिली तो पत्नी रिक्ता मिस्त्री पलंग पर मरी पड़ी थी. इन दोनों ने भी तकरीबन डेढ़ साल पहले अदालत में लव मैरिज की थी.

अपने सुसाइड नोट में विद्युत ने साफसाफ लफ्जों में लिखा था कि उसे अपनी बीवी रिक्ता के चालचलन पर शक है, इसलिए वह उस की हत्या कर खुदकुशी कर रहा है.

-मध्य प्रदेश के नागदा के रहने वाले पेशे से ट्रक ड्राइवर राजेश ने बीती 13 जनवरी को अपनी बीवी राधाबाई का खून करने की कोशिश जिस वहशीपन से की उसे सुन हर किसी की रूह कांप उठी. उस की शादी 15 साल पहले हुई थी और 2 बेटे भी हैं.

राजेश और उस के मांबाप समेत मौसी ने राधाबाई को कमरे में बंद कर के पहले उस के साथ जी भर कर मारपीट की और फिर उस की जीभ, नाक, गाल और छातियां काट दीं. इस के बाद उस के मुंह में बेलन ठूंस दिया और राधा को मरा समझ कर चारों भाग गए, लेकिन वह बच गई थी, इसलिए उसे इलाज के लिए इंदौर भेज दिया गया.

जड़ में है धर्म भी

यहां इस बात के कोई खास माने नहीं हैं कि बीवियां भी आजकल इधरउधर मुंह मारते हुए सैक्स सुख और वह प्यार ढूंढ़ने लगी हैं, जो उन्हें शौहर से नहीं मिलता, लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे गलत होती हैं, लेकिन इस के माने ये नहीं हैं कि चालचलन के शक में या बदचलनी साबित हो जाने या फिर उजागर हो जाने पर उन के साथ वहशियाना बरताव किया जाए.

यह भी ठीक है कि कोई भी शौहर अपनी बीवी की बदचलनी आसानी से बरदाश्त नहीं कर पाता है, लेकिन जब वह खुद गलत राह पर चलता है तो वकील बन कर दलीलें देने लगता है और बीवी के मामले में जज बन कर फैसला करने लगता है.

इस फसाद की एक जड़ धर्म भी है, जिस के खोखले और दोहरे उसूलों ने उसे मर्दानगी के माने बहुत गलत तरीके से सिखा रखे हैं. धार्मिक किताबों में जगहजगह यह कहा गया है कि औरत नीच है, गुलाम है, पैर की जूती है और उस का जिम्मा शौहर को खुश रखना और उस की खिदमत करते रहना है. औरत का अपना कोई वजूद नहीं है और किसी भी तरह की आजादी देने से वह गलत रास्ते पर चल पड़ती है.

यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं है कि समाज पर दबदबा मर्दों का है, इसलिए वे न तो औरत की इज्जत करते हैं और न ही उसे बराबरी का दर्जा देते हैं, क्योंकि इस से उन की हेठी होती है.

जिस धर्मग्रंथ ‘मनुस्मृति’ को हिंदू अपना संविधान मानते हैं उस के अध्याय 9 के श्लोक 2 से ले कर 6 तक में साफसाफ हिदायत दी गई है कि ‘औरत को बचपन में पिता, जवानी में भाई और शादी के बाद पति की सरपरस्ती में रहना चाहिए. किसी भी उम्र में उसे आजाद नहीं रहना चाहिए.’

इसी किताब के अध्याय 9 के 45वें श्लोक में कहा गया है कि ‘पति पत्नी को छोड़ सकता है, गिरवी रख सकता है, बेच सकता है लेकिन औरत को यह हक नहीं है. शादी के बाद पत्नी सिर्फ पत्नी ही रहती है.’

यानी पति ऊपर लिखा कुछ भी करे यह उस का हक है. इस तरह की बातों और हिदायतों ने मर्दों को मनमानी करने की खुली छूट दे रखी है, जिस का कहर आएदिन बीवियों को भुगतना पड़ता है. उन के साथ जानवरों जैसा बरताव किया जाता है. अगर वे किसी से यों ही बात भी कर लें तो शौहर की भवें तन जाती हैं और वह उसे बदचलन मानने लगता है.

बकौल ‘मनुस्मृति’ औरत अकेलेपन का बेजा इस्तेमाल करने वाली होती है ( अध्याय 2 श्लोक 215 ) यानी औरत को अकेले छोड़ने से वह मर्दों को लुभाती है और उन्हें भी गलत रास्ते पर चलने के लिए उकसाती है.

औरतों को बदचलन साबित करने के लिए इसी किताब के अध्याय 9 श्लोक 114 में कहा गया है कि औरत सैक्स के लिए किसी भी उम्र या बदसूरती को नहीं देखती. अध्याय 9 के ही श्लोक 17 में तो हद ही कर दी गई है जिस के मुताबिक औरत सिर्फ गहने, कपड़ों और बिस्तर को ही चाहने वाली होती है. वह वासनायुक्त, बेईमान, जलनखोर और दुराचारी है.

अब जरा ‘मनुस्मृति’ के ही अध्याय 5 के श्लोक 115 पर नजर डालें तो पाएंगे कि ‘पति भले ही चरित्रहीन हो, दूसरी औरतों पर फिदा हो, नामर्द हो, जैसा भी हो औरत को पतिव्रता रहते हुए उसे देवता की तरह पूजना चाहिए.’

हिंदुओं की सब से बड़ी धार्मिक किताब ‘रामायण’ को न पढ़ने वाले आम लोग भी यह मानते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग क्यों किया था. इस बात को धर्मगुरु भी बांचते हैं और इस पर कई फिल्में और टैलीविजन सीरियल भी बन चुके हैं. कहानी बहुत सीधी और दिलचस्प है कि रावण को मारने के बाद जब राम अयोध्या आए तो जनता ने घी के दिए जलाते हुए उन का जोरदार स्वागत किया था. अभी कुछ दिन ही बीते थे कि राम के जासूसों ने उन्हें बताया कि प्रजा सीता की पवित्रता पर शक करती है. यह शक इसलिए था कि सीता लंबे समय तक लंका में रावण की सरपरस्ती में रही थीं.

बस इतना सुनना था कि अपनी मर्यादा और राजधर्म को निभाने वाले राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ले डाली. इस में कामयाब होने के बाद भी जनता में सीता को ले कर तरहतरह की बातें होती रहीं तो राम ने उन्हें जंगल भेज दिया. वह भी यह जानतेबूझते कि वे पेट से हैं और इस दौरान पत्नी को सब से ज्यादा जरूरत पति के साथ और प्यार की होती है.

लेकिन अपना राजधर्म निभाते हुए राम ने जो सख्ती दिखाई आज भी उस की मिसाल धर्म के ठेकेदार यह दलील देते हुए कहते देते हैं कि राजा हो तो राम जैसा जिस ने पत्नी से ज्यादा मर्यादा और प्रजा को तवज्जुह दी.

इस में कोई शक नहीं कि शक शौहर की फितरत होती है, लेकिन इस के नतीजे किसी के हक में अच्छे नहीं नकलते, इसलिए शौहरों को चाहिए कि शक होने पर वे सब्र से काम लें और बीवी की बदचलनी साबित भी हो जाए तो खुद के हाथ उस के खून से न रंगे, क्योंकि इस में नुकसान उन का भी है.

क्या करें शौहर

शक के बारे में यह कहावत मशहूर है कि इस का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं था, इसलिए शौहरों को बीवी पर बेवजह शक करने से बचना चाहिए. बीवी अगर खुले मिजाज वाली हो और दूसरों से हंसबोल कर बात करने वाली हो तो कुढ़ने और खुद का खून जलाने के बजाय उसे बताना चाहिए कि आप को यह सब पसंद नहीं है, लेकिन इस बाबत धौंसधपट या मारापीटी से काम नहीं लेना चाहिए.

बीबी का गैरमर्दों से हंसनाबोलना बदचलनी के दायरे में नहीं आता, इसलिए उस के स्वभाव से थोड़ा समझौता शौहर को भी करना चाहिए. अगर इस मुद्दे पर कलह होती है तो अकसर बीवियां जानबूझ कर शौहर को चिढ़ाने के मकसद से और भी ऐसा ही करती हैं, जिस से बनने के बजाय बात और बिगड़ती जाती है.

शौहर को अब चालचलन से कम अपने मर्द होने की हेठी पर गुस्सा आने लगता है, जिस के चलते वह उस की हत्या करने जैसे जुर्म को अंजाम देने भी उतारू हो आता है, जिस से उसे हासिल कुछ नहीं होता और बाकी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. अगर बच्चे हों तो उन का भी भविष्य खराब होता है.

बीवी की बदचलनी साबित हो न हो यह अलग बात है, लेकिन हर शौहर की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह बीवी को हर लिहाज से संतुष्ट रखे और उसे इज्जत और बराबरी का दर्जा दे. हां, बदचलनी जब साबित हो ही जाए तब बजाय उसे खुद सजा देने के तलाक के लिए अदालत में जाना चाहिए. हालांकि इस में थोड़ी दिक्कतें जरूर पेश आती हैं, लेकिन यकीन मानें कि वे उतनी नहीं होतीं जितनी हत्या के बाद पकड़े जाने पर होती हैं.

बीवी से हर समय प्यार जताते रहना भी एक अच्छा उपाय है जिस से वह हंसनेबोलने के लिए किसी और का रुख न करे. जिन शौहरों को लंबे समय या दिनों तक बाहर रहना पड़ता है, उन्हें चाहिए कि मोबाइल फोन के जरीए पत्नी से घरगृहस्थी के साथसाथ रोमांटिक बातें करते हुए प्यार जताते रहें. यह कतई न सोचें कि उन की गैरमौजूदगी में वह किसी और के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. यही शक होता है जिस की कोई जमीन नहीं होती.

याद रखें कि पतिपत्नी का रिश्ता आपसी भरोसे पर टिका होता है. अगर किसी भी वजह से यह दरकता है तो टूटता घर है. किसी दूसरे के चुगली करने पर भी बीवी पर शक करना उस के साथ ज्यादती है.

बीवियां भी समझें

अगर शौहर को आप का गैरमर्दों से हंसनाबोलना पसंद नहीं है तो उस के जज्बातों को समझते हुए धीरेधीरे यह आदत छोड़ें और याद रखें कि इस से आप का कोई नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन अगर पति का शक बढ़ता जाएगा तो जरूर कई दिक्कतें खड़ी होने लगती हैं.

अगर पति की आमदनी कम हो तो उसे ताने मारना उस के भीतर शक पैदा करने वाली बात भी हो सकती है.

पति अगर सैक्स में मनमुताबिक संतुष्ट न कर पाता हो तो इस की वजह बीवी को पहले खोजनी चाहिए. आजकल कमानाखाना मुश्किल होता जा रहा है. इस तनाव का असर मर्दों की सैक्स जिंदगी पर भी पड़ता है. कई बार वे टैंपरेरी नामर्दी के भी शिकार हो जाते हैं. ऐसे में बीवी को कहीं और सुख ढूंढ़ने की नादानी करने के बजाय शौहर से खुल कर बात कर डाक्टर से मशवरा लेना चाहिए. ज्यादातरर मरीज इलाज से ठीक हो जाते हैं.

इस पर भी बात न बने तो बजाय चोरीछिपे किसी और से जिस्मानी रिश्ता बनाने के पहले पति से खुल कर बात कर तलाक ले लेना ज्यादा ठीक रहता है, क्योंकि किसी की बीवी रहते नाजायज संबंध बनाना आ बैल मुझे मार जैसी बात साबित होती है और शौहर मरनेमारने पर उतारू हो आता है.

नाजायज संबंध आमतौर पर ज्यादा दिनों तक छिप नहीं पाते हैं और बिरले ही शौहर होते हैं जो आंखों देखी मक्खी निगल पाते हैं.

लुभाने वाले मर्दों से ज्यादा नजदीकियां भी पति के शक की वजह बनती हैं, इसलिए खुद को काबू में रखना चाहिए, खासतौर से उस सूरत में जब शौहर को यह पसंद न हो. आजकल ज्यादातर बीवियां मोबाइल फोन में बिजी रहती हैं, जिस पर शौहर की खीज कुदरती बात है और शक होना भी कि बीवी न जाने किस से गुटरगूं कर रही है, इसलिए मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से भी बचना चाहिए.

डेली व्लौग देखने का नशा, है बड़ा खतरनाक

सौरभ जोशी भारत के टौप डेली व्लौगरों में से एक है लेकिन उस के बनाए कंटैंट में ढूंढ़ने से भी कुछ काम का मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. हजारों की संख्या में यूथ उसे देखते हैं, ये यूथ न सिर्फ अपना समय बरबाद कर रहे हैं बल्कि अपने कैरियर के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं.

हल्द्वानी कहां है, यह किसी को पता हो या न हो पर यूथ को जरूर यह पता है कि सौरभ जोशी हल्द्वानी में रहता है. सौरभ जोशी खुद को इन्फ्लुएंसर कहता है पर उस की वीडियो में ऐसा कुछ नहीं होता जो किसी को इन्फ्लुएंस कर पाए. न तो सीखने के लिए कुछ है, न ही जानकारी लायक कुछ.

सौरभ जोशी कोई बौलीवुड स्टार, स्पोर्ट्स पर्सन या पौलिटीशियन नहीं है. वह है एक यूट्यूबर जो अपने घर की दीवारों, कंबल-रजाइयों, कपप्लेट, घर में क्या बन रहा है, क्या खा रहा है, कहां जा रहा है, उस की कार कौन सी है, कपड़े में सब्जी गिर गई, घर के सदस्य क्या कर रहे हैं जैसी फालतू बातें बताता है. बेसिकली वह अपनी दिनचर्या बताता है पर समझ से परे यह है कि इसे देखने वाले कैसे खलिहर हैं जो अपना कामधंधा छोड़ लगे रहते हैं इस की व्यूरशिप बढ़ाने में.

खुद को स्टार मानने वाला सौरभ कुछ सिखाता नहीं है बल्कि अपना डेली रूटीन दुनिया वालों को दिखाता है. वह क्या खाता है, क्या पीता है, कहां जाता है, बस यही सब कहता है उस का व्लौग.

सौरभ जोशी के व्लौग की बात करें तो उस ने 12 नवंबर, 2023 को एक व्लौग बनाया, जिस का टाइटल था ‘दीवाली गिफ्ट’.  नाम से ही पता चल रहा था कि ये पूरा व्लौग सिर्फ और सिर्फ इस विषय पर बना है कि दीवाली पर सब को क्याक्या गिफ्ट मिला. अब वह अपने रिश्तेदारों को क्या गिफ्ट दे रहा है, यह चिंता उसे करने दो, लेकिन नहीं, युवा अपने रिश्तेदारों की चिंता छोड़ लगे पड़े हैं वीडियो देखने.

व्लौग की शुरुआत में सौरभ मिठाई के डब्बे दिखाते हुए कहता है, ‘‘आज मुझे यह सब लोगों के घर देने जाना है. अभी सुबह के 9 बज रहे हैं और हम अपनी कार ले कर जा रहे हैं क्योंकि सुपरकार हर जगह नहीं जा पाएगी और रास्ते में गड्ढे भी हैं.’’ इस तरह के इन्फ्लुएंसर अपनी लग्जरी लाइफ का बखान करते नहीं थकते. वे युवाओं को अपनी महंगी कारों को दिखा कर रिझाने की कोशिश करते हैं.

इस के बाद व्लौग में उसे लोगों के घर जा कर उन्हें दीवाली की वेलविशेस और गिफ्ट देते हुए दिखाया जाता है. इस के बाद महल्ले के बच्चों को व्लौग में दिखाया जाता है. वह एक बौबी भइया नाम के एक शख्स को आईफोन गिफ्ट देता है. साथ में, स्टाफ मैंबर को दीवाली गिफ्ट देता है. उस की भी वीडियो क्लिप सौरभ अपने व्लौग में एड कर लेता है. इस के बाद घर वालों को गिफ्ट दिया जाता है. बस, यही कहता है सौरभ जोशी का व्लौग. अब इस वीडियो को कोई महाबेवकूफ ही हो जो देखे और लाइक करे. और यदि कोई फिर भी दिलचस्पी रख रहा है तो समझ जा सकता है कि कैसे अथाह बेरोजगारी में उस की मानसिक स्थिति हिली हुई है.

इसी तरह का उस का एक और व्लौग है, जिस का न सिर्फ टाइटल घटिया है बल्कि कंटैंट भी रद्दी है या कहें कंटैंट कहां है, पता नहीं. व्लौग के थंबनेल पर लिखा है, ‘यह क्या हो गया फौरचूनर को.’

इस व्लौग में वह फौरचूनर पर चढ़ी ब्लैक पीपीएफ को उतार कर उस के ओरिजिनल कलर में लाता है. पीपीएफ को पीयूष, जो कि सौरभ का छोटा भाई है और उस का चाचा का लड़का उतार रहा होता है और सौरभ व्लौग बना रहा होता है. फिर उस का चाचा भी आ जाता है. सौरभ अपने सब्सक्राइबर्स से पूछता है कि कौनकौन चाहता है कि चाचा सुपरकार चलाएं. कमैंट करो. फिर चाची और मम्मी व्लौग में आ जाती हैं. इस के बाद मम्मी से राय ली जाती है कि पीपीएफ को कितना उतारा जाए और कितना नहीं. इस के बाद कार के बारे में बताया जाता है.

अब यह कंटैंट ऐसा है कि सामान्य दिमाग वाला इंसान अपना सिर पीट ले. वीडियो के कंटैंट को समझाने के लिए या तो आप को आइंस्टीन होना पड़ेगा या बैलबुद्धि. आगे इस वीडियो में घर का सीन दिखाया जाता है, जिस में सब चाय ले कर बैठे हैं. लेकिन सौरभ के चाचा का बेटा दूध पी रहा है. सौरभ उस से पूछता है कि हम सभी शादी क्यों करते हैं? डैली व्लौगर ‘द ग्रेट सौरभ’ की बुद्धि का स्तर उस के इस सवाल से आंका जा सकता है. बच्चा जवाब देता है कि हमें किसी के साथ की जरूरत होती है, इसलिए हम शादी करते हैं. बच्चा आगे कहता है कि, ‘मैं ने यह सब यूट्यूब से सीखा है. मैं व्लौगर बनूंगा और सब का नाम रोशन करूंगा.’

इस के बाद सौरभ अपने पैट ओरियो को दिखाता है. फिर अपने डिनर की फोटो. इन सब के बाद वह कहता है, ‘मुझे बुखार है. अभी दवाई लूंगा. 2 दिनों बाद बाहर भी जाना है.’ यही था सौरभ का व्लौग. इस वीडियो पर 3 घंटे में 1,34,81,188 व्यूज थे.

आखिर, यह किस तरह का कंटैंट है जो सौरभ जोशी बना रहा है. अब इसे देख रहे युवाओं को इस पर विचार करना चाहिए कि यह कंटैंट है भी कि नहीं. क्या इस पर समय खर्च करना सही है.

सवाल यह भी कि क्या यूथ इतना फ्री बैठा है कि सौरभ या सौरभ जैसे दूसरे यूट्यूबरों के घर में उन की पर्सनल लाइफ में क्याक्या चल रहा है, लगे रहें घंटों देखने. यह भी कि सौरभ ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में क्या खा रहा है, टौयलेट कितने बजे जा रहा है, कौन सा टूथपेस्ट यूज कर रहा है, उस की गर्लफ्रैंड कौन है आदिआदि.

इस के आधे का आधा टाइम भी अगर युवा संसद में नेताओं की डिबेट में लगा लें तो देश के आधे मसले और झूठ बोल कर मलाई खा रहे नेताओं का सफाया यों ही हो जाए. उन्हें समझ आ जाएगा कि पकौड़े तलना रोजगार नहीं, बल्कि आजीविका है.

अगर यूथ इस तरह का फालतू कंटैंट देखेंगे वह भी पैसे दे कर तो अपना कैरियर क्या खाक बनाएंगे और जिन का थोड़ा बहुत कैरियर है वे भी अपने कैरियर की धज्जियां ही उड़ाएंगे.

सौमेंद्र जेना, जिन्हें यूट्यूब पर ‘सोमजैना’ के नाम से जाना जाता है, ने अपने हालिया वीडियो में से एक पर एक टिप्पणी के जवाब में अधिकांश भारतीय यूट्यूबर्स की सामग्री को ‘क्रिंज’ कहा है. उन्होंने कहा, ‘99 प्रतिशत भारतीय यूट्यूबर्स का कंटैंट घटिया है. लोगों की रुचि अच्छी नहीं है.’ सोम ने इस कमैंट का स्क्रीनशौट अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर भी शेयर किया. आगे उन्होंने कहा कि यह भारतीय यूट्यूब दृश्यों का दुखद सच है.

यह सच भी है. जैसे सौरभ अपने एक व्लौग में अपने नए घर का डिजाइन दिखाता है. इस व्लौग थंबनेल में उस ने ‘फाइनली न्यू घर का डिजाइन आया’ के नाम से बनाया. इस व्लौग में सौरभ हल्द्वानी में बनने वाले अपने नए घर का 3डी डिजाइन दिखाता है. वीडियो में दिख रहा है कि घर चारमंजिला है. इस में गेमिंगरूम है, जिस में स्लाइड कर के नीचे हौल तक जाया जा सकता है.

घर में डिजिटल लौक है. पूरे घर में लकड़ियों की सीढ़ियां हैं. घर में एक लिफ्ट भी है. इतना ही नहीं, घर में फायर बेस भी है. मतलब पूरा लग्जरी घर.

ग्राउंडफ्लोर की बात करें तों ग्राउंडफ्लोर में बैठने, पार्किंग और बच्चों के खेलने की जगह है. पहले फ्लोर पर दादादादी का रूम है. उस के बाद सब के रूम. सौरभ के रूम से पूरे घर का व्यू दिखेगा. उन के रुम में एक स्टडी टेबल भी है. यहां से वह अपने पूरे घर का व्लौग भी बना सकता है.

अब यह देखनेदिखाने में मन को सुकून दे सकता है पर इस का एक साइड इफैक्ट यह है कि सौरभ ने अपने पूरे घर की जानकारी पब्लिकली कर दी. सवाल है कि इस से क्या समाज के आपराधिक और असामाजिक तत्त्व के कान खड़े नहीं होंगे? सारी जानकारी तो उन्हें सोशल मीडिया से मिल ही गई है, अब बस उन्हें ऐक्शन लेना है.

ऐसी ही एक घटना उस के साथ पहले हो भी चुकी है, जिस में सौरभ ने व्लौग बनाया कि वह आज सपरिवार पहाड़ पर जाएगा. बस, इसी का फायदा उठा कर चोरों ने उस के घर सेंधमारी की और करीब डेढ़ लाख रुपए के गहनों की चोरी कर ली. यह घटना 22 अक्तूबर, 2022 की है.

आप का अपना डेली रूटीन पब्लिकली करना आप के लिए किस तरह आफत बन सकता है, यह आप सौरभ जोशी के साथ हुई घटना से समझ सकते हैं. अगर उस के घर में उस वक्त कोई होता तो यह घटना मर्डर में भी तबदील हो सकती थी.

हम अगर सौरभ जोशी के व्लौग को खंगाले तो हमें उस के व्लौग में ऐसेऐसे थंबनेल मिलेंगे जिन से लगेगा कि यह कोई व्लौग न हो कर किसी व्यक्ति की दिनचर्या हो.

जैसे कुछ थंबनेल हैं, ‘तबीयत खराब है, बट, मैगी खानी है’, ‘स्कूल से लेने गया पीयूष’, ‘कुणाली को सुपरकार में’, ‘कुणाली का टौय कलैक्शन’, ‘पीयूष वर्सेस कुणाली कार रेस’, ‘न्यू घर की पार्किंग’, ‘अम्मा को सुपरकार में बैठाया’, ‘हमारी दीवाली की लाइटिंग’, ‘फौरचूनर ठुक गई नई दिल्ली में’, ‘बहुत टाइम बाद गेम खेली’, ‘सुपरकार को पहाड़ पर ले गए’ वगैरहवगैरह. इन वीडियोज में कुछ भी इंटरैस्टिंग नहीं है जिस के चलते व्लौग देखा जाए. लेकिन अंधा यूथ दबा के सौरभ जोशी के व्लौग देख रहा है.

यूट्यूब अब एक ऐसा अड्डा बन गया है जहां लोग अपनी डेली लाइफ को कैमरे पर दिखाने लगे हैं, चाहे वह घर का काम करती हुई महिला हो, ट्यूशन जाता हुआ बच्चा हो, शौपिंग करती हुई लड़कियां हो, गायभैंस की खानापानी करती महिला हो या फिर घर में खाना बनाता हुआ यंग बौय. सभी को व्लौगर बनने का चस्का लगा हुआ है.

कोई भी व्यक्ति कैमरा उठाता है और बोलना चालू कर देता है- ‘‘हैलो गाईज, मैं आज अपनी बूआ के घर जा रही हूं, आप भी देखिए कि मुझे आज रास्ते में क्याक्या देखने को मिलेगा?’’ लोग भी उन के सफर में शामिल हो जाते हैं और अपना कीमती समय बेकार की चीजों में जाया कर देते हैं.

डेली व्लौग बनाने वाले लोग अपनी प्राइवेसी के साथ खेल रहे हैं. वे अपने पलपल की खबर दे रहे हैं. कहां रहते हैं, कहां जा रहे हैं, कब आएंगे, घर में कितने दरवाजे हैं, घर में कौनकौन है, कौन कब आता है, जाता है, औफिस कहां है, कौन बीमार है, कौन नहीं आदिआदि. वे अपनी पर्सनल लाइफ, फिर चाहे उन की मां, बहन और पत्नी हो, को सब के सामने ला रहे हैं और जब ट्रोल होने लगते हैं, गालियां खाने लगते हैं तो रोने भी लग जाते हैं.

कई बार व्लौगर कंप्लेन करते हैं कि व्यूअर्स उन की पर्सनल लाइफ के बारे में बुराभला कह रहे हैं. उन की फैमिली को रोस्ट कर रहे हैं. पर्सनल लाइफ को पब्लिक भी इन्हीं क्रिएटर्स ने किया है तो प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी आ सकता है. सो, क्रिएटर्स को इस के लिए तैयार रहना चाहिए.

सौरभ जोशी के यूट्यूब पर 23.5 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं, यानी 2 करोड़ 35 लाख के आसपास. उस ने अपने चैनल पर डेढ़ हजार के करीब व्लौग बनाए हैं. उसे इंडिया का नंबर वन डेली व्लौगर कहा जाता है पर सिर्फ नंबर के आधार पर यह पदवी दे देना सवाल छोड़ता है.

बात करें अगर सौरभ की उम्र की तो सौरभ महज 23 साल का है और उस ने सिर्फ 12वीं तक ही पढ़ाई की है. सौरभ एक ड्राइंग आर्टिस्ट भी है.

लिवइन का साइड इफैक्ट, कैसे फंस गए ओए इंदौरी

इंदौर के एमआईजी थाने में 19 दिसंबर, 2023 को एक रेप केस दर्ज कराया गया. यह केस धारा 376 के तहत दर्ज किया गया और आरोपी बनाया गया हाल के समय में फेमस यूट्यूबर ओए इंदौरी को, जो अपने इंदौरी ऐक्सैंट के लिए फेमस है.

वैसे ओए इंदौरी का असली नाम रोबिन अग्रवाल जिंदल है जो कि इंदौर का रहने वाला है, इसलिए इस ने अपने यूट्यूब चैनल का नाम भी ‘ओए इंदौरी – अब हंसेगा इंडिया’ रखा है. उस पर अब तक 2,784,323,079 व्यूज हैं. इस ने अपना यूट्यूब चैनल 2017 में शुरू किया था लेकिन कोविड में जब सब अपनेअपने घरों में बंद थे तो लोगों ने खाली बैठेबैठे यूट्यूब का खूब इस्तेमाल किया. उसी समय ओए इंदौरी फेमस हो गया.

ओए इंदौरी के वीडियोज में कौमेडी और प्रैंक देखने को मिलता है. उस का एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी है, जिस की आईडी है श4द्गट्ठद्बठ्ठस्रशह्म्द्ब. जिस पर उस के 7.4 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस अकाउंट पर उस ने अब तक 1,413 पोस्ट की हैं. उस के इंस्टाग्राम बायो में लिखा है- ‘आई विल मेक यू लाफ.’ हालांकि जिस तरह के कंटैंट वह बनाता था उस पर हंसना तो दूर, उसे झेलना भी एक टास्क जैसा है.

ओए इंदौरी उर्फ रोबिन सोशल मीडिया पर सामान्य स्तर के व्यूअर्स के बीच फेमस चेहरा है. साल 2019 में कलर्स टीवी के एक शो में ओए इंदौरी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. बिना टैलेंट के बस फौलोअर्स के दम पर लोगों को भी मुकाम मिलता है, यह इस का सटीक उदाहरण ओए इंदौरी से समझ जा सकता है. उस शो को कौमेडियन भारती सिंह और उस के पति हर्ष लिम्बाचिया ने होस्ट किया था.

असल में विवाद तब खड़ा हुआ जब एक पीड़िता ने ओए इंदौरी उर्फ रोबिन अग्रवाल जिंदल पर रेप का केस दर्ज कराया. शिकायतकर्ता युवती खुद को तलाकशुदा बता रही है. उस का कहना है कि ओए इंदौरी ने उसे शादी का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में किसी और लड़की से सगाई कर ली.

युवती ने कहा कि वह जब इंदौर आई थी तो उसे घर ढूंढ़ने में परेशानी हो रही थी. उस वक्त ओए इंदौरी ने उस की हैल्प की थी. बस, तभी से वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. उस के बाद ओए इंदौरी ने उस से अपने दिल की बात कही. वे दोनों लिवइन रिलेशनशिप में आ गए. उस दौरान उन के बीच फिजिकल रिलेशन बने. तब ओए इंदौरी ने उस से कहा था कि वह उस से ही शादी करेगा.

लेकिन 23 नंवबर को ओए इंदौरी की इंस्टाग्राम पोस्ट से पता चला कि उस की इंगेजमैंट किसी और से हो चुकी है. इस के बाद युवती ने पुलिस स्टेशन में केस दर्ज कराया. इस से पहले भी युवती ने मार्च के महीने में भी रिपोर्ट दर्ज कराई थी. लेकिन आपसी समझाता होने के बाद युवती ने केस वापस ले लिया. अब चूंकि ओए इंदौरी ने अपना वादा नहीं निभाया तो युवती फिर से पुलिस स्टेशन पहुंच गई. ओए इंदौरी के खिलाफ केस दर्ज कराने वाली युवती एक प्राइवेट कंपनी में जौब करती है.

गौरतलब है कि रोबिन ने कुछ समय पहले ही इंदौर के एक बड़े होटल में सगाई की है. उस की मंगेतर भी फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. उस का नाम अलिशा राजपूत है. उस के इंस्टाग्राम पर 7.31 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस रिंग सैरेमनी में सोशल मीडिया की कई हस्तियां शामिल हुई थीं.

ओए इंदौरी पर लगे रेप आरोप के बारे में एमआईजी थाने के एसआई सचिन आर्य ने बताया कि रोबिन जिंदल पुत्र मिथिलेश अग्रवाल निवासी महालक्ष्मी नगर के खिलाफ शादी का झांसा दे कर रेप करने का मामला दर्ज किया गया है. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी फरार है. फिलहाल हम उस तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

इस केस के बाद ओए इंदौरी बुरी तरह फंस गया है. साथ ही, उस का फेम भी खतरे में आ गया है. वैसे भी, किसी इन्फ्लुएंसर की लाइफ मुश्किल ही 6 महीने से ऊपर टिकती है. ओए इंदौरी जैसे किसी नामचीन इन्फ्लुएंसर के साथ यह होना अपवाद नहीं है. सोशल मीडिया की चमक, लोगों के बीच फेमस होना और खुद को बड़ा आदमी समझाने की भूल ऐसे लफड़ों में फंसा ही डालती है. लिवइन गलत नहीं पर संबंध किस से कैसे निभते हैं, यह समझ होना जरूरी है.

आजकल यंगस्टर्स बड़ी संख्या में लिव इनरिलेशनशिप को अपना रहे हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहते हुए आप ऐसे ही किसी केस में न फंसें, इस के लिए जरूरी है कि यंगस्टर्स को लिवइन रिलेशनशिप के बारे में सही जानकारी हो.

लिवइन के कंसीक्वेंसेस

लिवइन रिलेशनशिप का मतलब ‘शादी जैसा रिश्ता’ होता है. जब एक अनमैरिड लड़का और लड़की मैरिड कपल की तरह एक ही छत के नीचे रहते हैं तो उसे लिवइन रिलेशनशिप माना जाता है. लेकिन भारत के कानून में लिवइन रिलेशनशिप को ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है. यहां लिवइन रिलेशनशिप को 2 अनमैरिड लोगों के बीच ‘नेचर औफ मैरिज’ के तौर पर रखा जाता है.

लिवइन रिलेशनशिप में रह रही महिला भी घरेलू हिंसा कानून का इस्तेमाल कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ‘‘अगर कोई महिला किसी आदमी के साथ लिवइन में रहती है और महिला यह नहीं जानती कि आदमी पहले से मैरिड है तो इस सिचुएशन में दोनों पार्टनर्स के साथ रहने को ‘डोमैस्टिक रिलेशनशिप’ माना जाएगा.’’ ऐसी हालत में महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत गुजारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है.

2011 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण पाने का अधिकार है और महिला को यह कह कर मना नहीं किया जा सकता कि उस ने कोई वैध शादी नहीं की थी.

अगर कोई लड़का और लड़की लिवइन में रहना चाहते हैं तो दोनों का अनमैरिड होना जरूरी है. अगर किसी पार्टनर की पहले शादी हुई है तो उस के डायवोर्स के पेपर जारी होने के बाद ही वह कानूनी रूप से लिवइन में रह सकता है वरना यह व्यभिचार में आएगा.

भारत में लिवइन रिलेशनशिप का कल्चर भी बढ़ रहा है. 2018 में एक सर्वे हुआ था. इस सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने लिवइन रिलेशनशिप को सपोर्ट किया था. इन में से 26 फीसदी ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वे भी लिवइन रिलेशन में रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने लता वर्सेस यूपी राज्य, एआईआर 2006 एससी 2522 में यह माना कि एक एडल्ट महिला अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए आजाद थी. जैसेजैसे लोग लिवइन रिलेशनशिप को प्रायोरिटी देने लगे, रेप के झूठे केसेस बढ़ते चले गए. कई केसेस में ब्रेकअप के बाद महिला पार्टनर रेप की झठी एफआईआर फाइल कराती है.

बात करें अगर कानून की, तो भारतीय दंड संहिता 1860 के सैक्शन 375 के तहत रेप को डिफाइन किया गया है. इस में कहा गया है कि इन सिचुएशंस में माना जाएगा कि एक पुरुष ने एक महिला का ‘रेप’ किया है-

  1. अगर किसी महिला से शादी का झांसा दे कर संबंध बनाए गए हों.
  2. जब महिला के साथ उस की सहमति के बिना सैक्सुअल रिलेशन बनाया जाए.
  3. जब महिला फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए इस डर के साथ सहमति दे कि ऐसा न करने पर उसे या उस के किसी प्रिय व्यक्ति को चोट या जान का खतरा है.
  4. जब ऐसा करने की सहमति देते समय महिला मन से अस्वस्थ हो या किसी भी तरह मानसिक रूप से बीमार हो.
  5. जब महिला नशे की वजह से या किसी अन्य मूर्खतापूर्ण या हानिकारक चीज की वजह से सैक्सुअल रिलेशन बनाने की प्रकृति और रिजल्ट्स को समझने में अक्षम है और सहमति देती है.
  6. जब महिला 16 साल की उम्र से कम है फिर चाहे सैक्स मरजी से हो या बिना मरजी के.

ओए इंदौरी के केस में देखा जाए तो शादी का झांसा दे कर फिजिकल रिलेशन बनाने के चार्जेज लग सकते हैं. अब देखना यह होगा कि इस मामले के आखिर में क्या होता है. सारे परिणाम इस सुझाव की तरफ इशारा करते हैं कि अगर आप लिवइन रिलेशनशिप में हैं या आने की सोच रहे हैं तो आप को इस के सारे कानून और अधिकार पता हों ताकि बाद में आप किसी पचड़े में न पड़ें.

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