पापाजी सभी मेहमानों का स्वागत उत्साहपूर्वक कर रहे थे. बीचबीच में शाम के प्रोग्राम की भी जानकारी ले रहे थे.
बहुत ही शानदार आयोजन था. लाइटें इतनी कि आंखें चौंधिया जाएं. कई व्यंजन, लजीज खाना… सभी तारीफ कर रहे थे.
तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था. कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है. रीमा को तो तुषार का साथ वैसे भी अच्छा लगता था और आज उस की नजरें तुषार के चेहरे से हट ही नहीं रही थीं.
पापाजी ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं ने सुना भर था कि बिन घरनी घर भूत का डेरा पर अब उस का अनुभव भी कर लिया. मेरा घर भूत के डेरे के समान ही था पर रीता ने आ कर उसे एक खूबसूरत और खुशहाल घर बना दिया. रीता ने घर ही नहीं घर में रहने वालों की भी काया पलट दी. मैं बहुत खुश हूं जो रीता जैसी बहू हमारे घर आई.’’
‘‘मेरे लिए भी घर एक सराय जैसा था जहां मैं रात गुजारने आता पर उस सराय को एक घर बनाने का श्रेय रीता को जाता है,’’ कहते हुए तुषार ने रीता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.
सभी ने रीता की खूब तारीफ की. तभी अचानक रीता को चक्कर आ गया. वह गिरती उस के पहले ही तुषार ने संभाल लिया. सभी घबरा गए. डाक्टर को बुलाया गया. जितने लोग उतनी बातें. कोई बोला काम की अधिकता की वजह से चक्कर आया तो किसी ने कहा नींद पूरी नहीं हुई होगी, कोई कह रहा था ठीक से खाना नहीं खाया होगा. महिलाओं में एक अलग ही खुसरफुसर थी. सब से ज्यादा चिंता पापाजी और तुषार के चेहरे पर थी.
डाक्टर ने जैसे ही रीता के पैर भारी होने की सूचना दी मुर झाए चेहरे खिल उठे. पापाजी तो इतने खुश हुए जैसे खजाना हाथ लग गया हो. रीमा, रीता की खुशी में खुश नहीं थी वरन उसे इस बात की जलन हो रही थी कि तुषार जैसा जीवनसाथी उसे क्यों नहीं मिला. वह तुषार की ओर खिंचाव सा महसूस करने लगी थी. वह तुषार के करीब आने का कोई न कोई बहाने ढूंढ़ती रहती थी. रीता की तबीयत के बहाने उस घर में उस का आनाजाना बढ़ गया था. घर का माहौल पूरी तरह पलट गया था. अभी तक रीता तुषार और पापाजी का खयाल रखती थी. अब ये दोनों मिल कर रीता का खयाल रख रहे थे. कभीकभी मजाक में रीता पापाजी से बोल भी देती थी कि आप तो ससुर से सासूमां बन गए.
जैसेजैसे समय नजदीक आ रहा था पापाजी की चिंता बढ़ती जा रही थी. अब तो वे रीता की हर गतिविधि पर नजर रख रहे थे.
उस दिन सुबह से रीता अनमनी सी थी. बारबार लेट जाती थी. पापाजी ने तुषार को औफिस जाने से मना किया. ऐसा पहले भी हुआ जब पापाजी ने उसे औफिस जाने से मना किया और उस ने हर बार उन की बात मानी.
दोपहर होतेहोते रीता को दर्द शुरू हो गया. हालांकि डाक्टरों ने जो तारीख दी थी उस में अभी 7 दिन बाकी थे. मगर वे कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे, इसलिए तुरंत अस्पताल पहुंचे.
रीता डिलिवरीरूम में थी. बाहर पापाजी और तुषार चहलकदमी कर रहे थे.
नर्स ने कई बार टोका, ‘‘आप लोग आराम से बैठ जाएं डिलिवरी में अभी टाइम है.’’
वे 2 मिनट बैठते फिर चहलकदमी शुरू कर देते. जितनी बार नर्स बाहर आती उतनी ही बार पापाजी उस से पूछते कि रीता तो ठीक है न और वह हर बार मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘सब ठीक है.’’
आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का उन्हें बेसब्री से इंतजार था. नर्स ने जैसे ही खबर दी पापाजी ने उस से पूछा, ‘‘रीता तो ठीक है न?’’
‘‘हां बिलकुल ठीक है पर आप ने यह नहीं पूछा कि बेटा हुआ या बेटी…’
‘‘उस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. बस दोनों स्वस्थ होने चाहिए.’’
नर्स ने उन्हें अचरज से देखा और फिर अंदर चली गई.
अब चहलकदमी बंद हो गई थी. थोड़ी ही देर में नर्स कपड़े में लिपटे नवजात को ले कर बाहर आई. फिर तुषार को देते हुए बोली, ‘‘बेटा हुआ है.’’
तुषार ने पापाजी की ओर इशारा कर कहा कि पहला हक इन का है.
जैसे ही पापाजी ने उसे हाथों में लिया एकटक देखते रहे. उन्होंने कोशिश तो बहुत की, पर आंसुओं को न रोक पाए.
‘‘पापाजी क्या हुआ?’’ तुषार परेशान हो उठा.
बच्चे को तुषार को सौंपते हुए बोले, ‘‘कुछ नहीं आंखों से कुछ नहीं छिपा सकते… ये आंसू खुशी के हैं. मैं इतना खुश तो तेरे पैदा होने पर भी नहीं हुआ था जितना आज हूं. कभीकभी डर भी लगता है कहीं इन खुशियों पर किसी की नजर न लग जाए.’’
‘‘मूल से ब्याज जो प्यारा होता है,’’ तुषार ने हंस कर जवाब दिया.
‘‘अब बेबी मु झे दीजिए वैक्सिनेशन करना है.’’
‘‘सिस्टर, हम रीता से कब मिल सकते हैं?’’
‘‘थोड़ी देर बाद हम उसे रूम में शिफ्ट कर देंगे. तब मिल लेना.’’
‘‘8 नंबर रूम में जा कर आप लोग रीता से मिल सकते हैं,’’ थोड़ी देर बाद आ कर नर्स बोली.
पापाजी ने सम झदारी दिखाते हुए पहले तुषार को रीता से मिलने भेजा.
रीता का हाथ अपने हाथ में लेते तुषार ने कहा, ‘‘कैसी हो? थैंक्स मु झे इतना प्यारा गिफ्ट देने के लिए.’’
रीता ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘पापाजी कहां हैं?’’
‘‘बाहर हैं, अभी बुलाता हूं.’’
अंदर आते ही पापाजी ने रीता के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘ठीक तो हो न?’’
आज घर को फूलों से सजाया गया था. दरवाजे पर सुंदर सी रंगोली भी बनाई
गई थी. रीता अस्पताल से घर जो आने वाली थी. रीता और बच्चे का स्वागत पापाजी ने थाली बजा कर किया. पापाजी ने तो उस का नामकरण भी कर दिया ‘प्रिंस.’
रीता को देखभाल की जरूरत थी. सुचित्रा ने कुछ दिन यहीं रुकने का निश्चय किया तो रीमा की तो मन की मुराद ही पूरी हो गई. तुषार के साथ रहने का मौका जो मिल गया. ऐसा नहीं कि तुषार कुछ सम झता नहीं था. वह हमेशा कोशिश करता कि रीमा से दूर रहे. किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकता था. वह जितना दूर होता रीमा उतना ही उस के करीब आने की कोशिश करती. उस की तो जिद थी कि तुषार को पाना है. पर तुषार तो रीता से खुश और संतुष्ट था. वह किसी भी कीमत पर उसे धोखा नहीं देना चाहता था.
प्रिंस के आने से पापाजी का बचपना लौट आया था. उन्हें तो मानो एक खिलौना मिल गया था, जिसे वे अपनी आंखों से एक पल के लिए भी ओ झल नहीं होना देना चाहते थे. नैपी बदलना, पौटी साफ करने जैसे कामों में भी कोई हिचक नहीं थी.
समय बीतते देर नहीं लगती. प्रिंस 1 साल का हो गया था. अब तो वह चलने भी लगा था. प्रिंस को खेलाने के बहाने रीमा का आना जारी था. दिनभर प्रिंस के पीछेपीछे पापाजी भागते रहते. रीता ने कई बार टोका भी कि पापाजी आप थक जाएंगे, आप के घुटनों का दर्द बढ़ जाएगा पर उन की दुनिया तो प्रिंस के इर्दगिर्द ही थी. वे पहले से ज्यादा खुश और स्वस्थ नजर आते थे.
आखिर जिस की उम्मीद नहीं थी वही हुआ. रीमा अपने मकसद में कामयाब हो गई. उस का छुट्टी के दिन आना और घंटों बतियाना, कभीकभी एक ही थाली में खाना खाना पापाजी की अनुभवी आंखों से छिप न सका. उन्हें आने वाले तूफान का आभास होने लगा था. उन्होंने इशारेइशारे में रीता को कई बार सम झाने की कोशिश की पर रीता को तो तुषार और रीमा पर इतना विश्वास था कि वह इसे पापाजी का वहम मानती.
आज फिर पापाजी ने रीता से बात की.
‘‘पापाजी, जीजासाली में तो मजाक चलता है. आप बेकार में परेशान होते हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है उन दोनों के बीच.’’